#नहेरुवीयन कोंग्रेस
Explore tagged Tumblr posts
Text
१९७७ का विपक्षी गठ बंधन २०२४ का विपक्षी गठबंधन भाग - १
१९२० में कोंग्रेसमें जो गुट बाजी चलती थी उसका अंत हो गया और लोकमान्य टीळख और गोपालकृष्ण गोखलेके गुट मिल गये. १९२० से १९४६ तक के कोंग्रेसके इतिहासकी हम चर्चा नहीं करेंगे. अनेक विपक्षोंका जन्म हुआ और नष्ट भी हुए. अनेक आंदोलन भी हुए और बं�� भी हो गये.
१९७७ का विपक्षी गठ बंधन २०२४ का विपक्षी गठबंधन भाग – १ १९७७का गठबंधन क्यों हुआ था? विपक्षी गठबंधन के समय शासक पक्ष नहेरुवीयन इंदिरा कोंग्रेस पक्ष था जो कोंग्रेस (आई) यानी कि, कोंगी नामसे जाना जाता था. प्रस्तावनाः कोंग्रेसका पक्षका जन्म कब हुआ? १९२०में कोंग्रेसने अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य का घोषित किया. तबसे कोंग्रेसका जन्म हुआ. ऐसा क्यों? पक्ष हमेशा अपने ध्येय से और उस ध्येयको कैसे प्राप्त करना…
View On WordPress
#अंग्रेज सरकार#अहिंसक आंदोलन#आमजनताकी जागृति#केंद्रीय कारोबारी समिति#केबीनेट मीशन#कोंगी#कोंग्रेस#कोंग्रेसका जन्म १९२०#कोंग्रेसकी मृत्यु १५ ओगष्ट १९४७#गांधीजी#गोपाल कृष्ण गोखले#देशका विभाजन#देशी राज्योका विलय#ध्येय#ध्येय प्राप्तिका तरिका#नहेरुका चरित्र#नहेरुवीयन कोंग्रेस#नहेरुवीयन कोंग्रेसका जन्म १५ ओगष्ट १९४७#नीतिमत्ता#नीतिमान#प्रभूत्त्व#बालगंगाधर तिळख#भ्रष्ट#विपक्ष#विपक्षी गठबंधन#विभागीय कारोबारी समिति#संगठन#सदस्य#साम दाम भेद और दंड
0 notes
Text
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो आज भी वही है जो १९४६में थी – ३.
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो आज भी वही है जो १९४६में थी – ३. क्या नहेरुवीयन गेंग और उनके सांस्कृतिक पक्षोंने नरेंद्र मोदी और बी. जे. पी. के सामने युद्ध घोषित किया है? नहेरुवीयन्स आदि को पराजित करने के लिये देशप्रेमीयोंको क्या करना चहिये? हमें सर्व प्रथम देशके दुश्मनोंके चरित्रको समझना पडेगा कि उनका ध्येय क्या है. अरे भाया, विपक्षके नेताओंका ध्येय यही है कि नरेंद्र मोदी/बीजेपी को हराओ. कैसे भी करके हराओ.…
View On WordPress
0 notes
Text
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो आज भी वही है जो १९४६में थी – २.
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो आज भी वही है जो १९४६में थी – २. दंभ करना, ज़ूठ बोलना, जब फंस जाओ तो फिलोसोफी मचलना, भाववाही शब्द प्रयोग करना, नौटंकी करना, प्रतिज्ञा लेना, चालाकी करना, अच्छे काम अपने नाम पर चढा देना, गलत कामोंको अन्यके नाम कर देना, एकाधिकारवादी (आपखुद) बनना ये सब नहेरुके समयसे चली आती आदतें है. ये आदतें उनको विरासतमें मिली है. आत्मख्यातिके लिये ये लोग कुछ भी कर सकते है. उदाहरण तो कई सारे…
View On WordPress
0 notes
Text
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो आज भी वही है जो १९४६में थी – १.
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो आज भी वही है जो १९४६में थी – १. जी हाँ, नहेरुवीयन कोंग्रेस यानी कि जब नहेरुने सबसे प्रथम, “नैतिक भ्रष्टता” की, वह समय था १९४६का. नहेरुवीयन कोंग्रेसका बीज तो १९४६में ही नहेरुने बो दिया था. जबसे नहेरुने ठान लिया था कि “हर हालतमें कोंग्रेस प्रमुख तो मुझे ही बनना है. ताकि मैं ही प्रधानमंत्री बन सकूं.” नहेरुने, जनतंत्रके सभी नियमोंको तोडके पक्ष प्रमुख बने. किसी भी प्रांतकी…
View On WordPress
0 notes
Text
भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना
भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना
भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना
व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.
हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.
विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु भारतमाता, हम शर्मिंदा है …., तेरे ��्रोही जिन्दा है
हमारी समस्याएं क्या है?
(१) समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिक…
View On WordPress
#अत्याचार#अनामत#अशिक्षण#आरक्षण#इसाई#उत्तरदाईत्व#ओन लाईन#कत्लेआम#खालिस्तान#ख्रीस्ती#गुमराह#जातिवाद#टीवी चेनल#दलित#दलितीस्तान#देशी राज्य#दो राष्ट्र परिकल्पना#द्रवीडीस्तान#नहेरुवीयन कोंग्रेस#निरपेक्ष#नेफा#पथभ्रष्ट#पाकिस्तान#प्रहार#प्राचीन इतिहास#प्राथमिक#बहु राष्ट्र#बहुमत#बीजेपी#बौद्धिक क्षमता
0 notes
Text
नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका – २
नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका – २
नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका – २
जाति आधारित राज्य रचना” कैसे की जा सकती है? उसकी प्रक्रिया कैसी होनी चाहिये? हमने जब देशकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये देशका विभाजन किया तब हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने कुछ गलतीयां की थी. वे गलतीयां हमे जाति–आधारित और धर्म आधारित राज्य रचना करनेमें दोहरानी नहीं चाहिये) तो चलो हम आगे बढें…
एक बात सबको समज़नी है कि हमारी मीडीयाके अधिकतर संचालकगण और नहेरुव…
View On WordPress
#ईष्टदेव#ईष्टदेवी#उप#उप-उप#उप-उप-उप#ख्रिस्ती#गोत्र#जाति#धर्म#नहेरुवीयन कोंग्रेस#प्रकिर्ण#भाषा#मीडीयाकर्मी#मुस्लिम#यक्ष#यहुदी#राज्य#लेखक#विद्वान#सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष#हिन्दु
0 notes
Photo
नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका “जातिवाद आधारित राज्य रचना” की मांग रक्खो जी हाँ, नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये, प्रवर्तमान समय एक अतिसुनहरा मौका है. सिर्फ नहेरुवीय कोंग्रेस ही नहीं लेकिन उसके सांस्कृतिक साथीयोंके लिये भी यह एक सुनहरा मौका है. इस मुद्देका लाभ उठा के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता भी प्राप्त कर सकती है. आप पूछोगे कि ऐसा कौनसा मुद्दा है जिस मुद्देको उछाल के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता प्राप्त कर सकती है? अब आप ��क बात याद रख लो कि जब भी हम “नहेरुवीयन कोंग्रेस” शब्दका प्रयोग करते है आपको इसका निहित अर्थ “नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष और उसके सांस्कृतिक साथी” ऐसा समज़ना है. क्यों कि समान ध्येय, विचार और आचार ही तो पक्षकी पहेचान है. तो अब हम बात आगे चलावें नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय नहेरु वंशको आगे बढाना है, नहेरुवीयन वंशज के लिये सत्ता प्राप्त करना है ताकि वे सत्ताकी मौज लेते रहे और अन्य लोग स्वंयंके परिवार और पीढीयोंकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा और सुख के लिये पैसा कमा सके. तो अब क्या किया जाय? देखो, अविभक्त भारतमें हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंकी समस्या थी. तो नहेरुने हिन्दु राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्रके फेडर युनीयनको नकार दिया और पाकिस्तान और भारत बनाया. लेकिन कुछ समय बाद मतोंकी भाषा राष्ट्रभाषा और राज्य भाषाकी समस्याओंका महत्व सामने आया. तो हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने) भाषाके आधार पर राज्योंकी रचना की. अब इसमें क्या हूआ कि हिन्दु-मुस्लिम झगडोंकी समस्या तो वहींकी वहीं रही लेकिन इस समस्या पर आधारित अन्य समस्याएं भी पैदा हूई. उसके साथ साथ भाषा के आधार पर और समस्याएं पैदा होने लगी. भूमि-पुत्र और जातिवाद आधारित समस्याएं भी पैदा होने लगी. आप कहेंगे कि क्या इन समस्याओंका समाधान करने की नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोशिस नहीं की? अरे वाह !! आप क्या बात कर रहे हो? नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो अपने तरीकेसे समस्याका हल करनेका पूरी मात्रामें प्रयत्न किया. नहेरुवीयन तरीका क्या होता है? कोई भी समस्या सामने आये तो उसको अनदेखा करो. समस्या कालचक्रमें अपने आप समाप्त हो जायेगी… अरे वाह !! यह कैसे? देखो हिन्दु-मुस्लिम समस्याको हल ही नहीं क्या. इसके बदले नहेरुने जीन्नाके साथ झगडा कर दिया. फिर हिन्दुस्तान पाकिस्तान हो गया. और हिन्दु-मुस्लिम झगडा तो कायम रहा. तिबट अपनी आझादी बचाने के लिये संघर्ष कर रहा था. हमारी समस्या थी कि तिबटक�� सुरक्षा कैसे करें !! तो नहेरुने चीनके साथे दोस्ती करके तिबट पर चीनका प्रभूत्व मान लिया. लेकिन एक और समस्या पैदा हुई कि चीन हमारे देशकी सीमाके पास आ गया और उसने घुसखोरी चालु की. तो नहेरुने पंचशील का करार किया. तो कालक्रममें चीनने भारत पर आक्रमण कर दिया. जरुरतसे ज्या भूमि पर कब्जा कर दिया. तो हमारा पूराना सीमा विवाद तो रहा नहीं. वह तो हल हो गया. नया सीमा विवादका तो देखा जायेगा. तिबटकी समस्या हमारी समस्या रही ही नहीं. पाकिस्तान हमारा सहोदर है. पाकिस्तानमें आंतरविग्रह हुआ तो पूर्वपाकिस्तानसे घुस खोर लाखोंकी संख्यामें आने लगे. तो हमारे लिये एक समस्या बन गई. इन्दिरा गांधीने यह समस्या प्रलंबित की. तो पाकिस्तानने भारतकी हवाई पट्टीयों पर आक्रमण कर दिया. हमारी सेनाने पाकिस्तानको परास्त किया तो भारतको घुसखोरोंके साथ साथ ९००००+ युद्ध कैदीयोंको खाने पीनेका इंतजाम करना पडा. सिमला करार किया और युद्ध कैदी पश्चिम पाकिस्तानको ही परत कर दिया. तो कालचक्रमें आतंकवाद पैदा हो गया. तो हिन्दु लोग विस्थापित हो गये. उनका पूनर्वसनकी समस्या पैदा गई. होने दो. ऐसी समस्याएं तो आती ही रहती है. विस्थापित हिन्दुओंकी समस्याको नजर अंदाज कर दो. हिन्दु लोग अपने आप निर्वासित कैंपसे कहीं और जगह अपना मार्ग ढूंढ लेगे. नहेरुवीयनोने कुछ किया नहीं. आतंकी मुस्लिम लोग भारतमें घुसखोरी करने लगे और बोंब ब्लास्ट करने लगे. आतंकी मुस्लिम अपना अपना गुट बनाने लगे. स्थानिक मुस्लिमोंका सहारा लेने लगे. उनको गुट बनाने दो हमारा क्या जाता है. एक समस्या को हल नहीं करनेसे कालांतरमें अनेक और समस्याएं पैदा होती है. और मूल समस्याका स्वरुप बदल जाता है. तो उसको नहेरुवीयन लोग समाधान मान लेते है और मनवा लेते है. जातिवादी समस्या भी ऐसी ही थी. अछूतोंके लिये आरक्षण रक्खा. अछूतोंका उद्धार नहीं किया लेकिन उनके कुछ नेताओंका उद्धार किया. और आरक्षण कायम कर दिया. तो और जातियां कहेने लगी हमें भी आरक्षण दो. नहेरुवीयनोंने एक पंच बैठा दिया और जिनको भी आरक्षण चाहीये वे अपनी जातिका नाम वहां दर्ज करावें. अब आरक्षणका व्याप बढने लगा. जिसने भारत पर दो शतक राज्य किया वे मुस्लिम लोग कहेने लगे हम भी गरीब है हमें भी आरक्षण दो. तो नहेरुवीयनोंने कहा कि तुम्हे अकेलेको आरक्षण देंगे तो हम तुम्हारा तुष्टी करण करते है ऐसा लोग कहेंगे. इस लिये उन्होने “लघुमति”के लिये विशेष प्रावधान किये. रामके वंशज रघुवंशी कहेने लगे हमे भी आरक्षण दो. क्रुष्णके वंशज यादव कहेने लगे हमें भी आरक्षण दो. अब जब भगवानके वंशज आरक्षण मांगने लगे तो और कौन पीछे रह सकता है? जटने बोला हमें भी आरक्षण दो. महाराष्ट्रके ठाकुरोंने बोला कि हमें भी आरक्षण दो. अब हुआ ऐसा कि कमबख्त सर्वोच्च अदालतने कहा कि ४९ प्रतिशतसे अधिक आरक्षण नहीं दे सकते. तो अब क्या करें? आरक्षण, हिन्दु-मुस्लिम और हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याओंका कोई पिता है तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस है. उसको सहाय करने वाले भी अनेक बुद्धिजीवी है उनका एजंडा भी नहेरुवीयनोंकी तरह “जैसे थे”-वादी है. ये लोग वास्तवमें दुःखी जीवनका कारण पूर्वजन्मके पाप मानते है इसलिये समस्याके समाधान पर ज्यादा चिंता करना आवश्यक नहीं है. सब लोग अपनी अपनी किस्मत लेके पैदा होते है. इसलिये समस्याओंका समाधान ईश्वर पर ही छोड दो. ईश्वरके काममें हस्तक्षेप मत करो. लेकिन हमसे रहा नहीं जाता है. हम नहेरुवीयन कोंग्रेसका आदर करते है. कटूतासे हम कोसों दूर रहते है. त्याग मूर्ति नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्ता प्राप्त करनेका और वह भी यावतचंद्र दिवाकरौ तक उसीके पास सत्ता रहे ऐसा रास्ता हम दिखाना चाहते है. यह रास्ता है कि नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसी छूटपूट जातिवादी आधारित आरक्षण और धर्म आधारित आरक्षणके बदले धर्म और जाति आधारित “राज्य रचना”की मांग पर आंदोलन करें. ऐसा आंदोलन करनेसे उसको सत्ताकी प्राप्ति तो होगी ही, उतना ही नहीं, धर्म आधारित और जाति अधारित राज्य रचनासे हिन्दु-मुस्लिम समस्याएं, हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याएं, मुस्लिम-ख्रिस्ती समस्याएं, भाषा संबंधित समस्याएं जातिवादी समस्याएं, आरक्षण संबंधी समस्याएं, आर्टीकल “३५-ए” संबंधित समस्या, आर्टीकल ३७० संबंधित समस्या, पाकिस्तान हस्तक काश्मिर समस्या, आतंकी समस्या, पत्थरबाज़ोकी समस्या आदि कई सारी समस्याएं नष्ट हो जायेगी. आप कहोगे ऐसा कैसे हो सकता है? आप कहोगे भीन्न भीन्न जातिके, भीन्न भीन्न धर्मके लोग तो बिखरे पडे है और राज्य तो भौगोलिक होगा है. धर्म और जाति आधारित राज्य रचना करनेमें ही अनेक समस्याएं पैदा होगी. और यदि ऐसी राज्य रचना हो भी गई तो इसके बाद भी कई प्रश्न उठेंगे जिनका समाधान असंभव है. यदि आप समास्याओंके समाधानके लिये नहेरुवीयन तरीका अपनावें तो ठीक है लेकिन आपको पता होना चाहिये कि समस्याको हल ही नहीं करना, समस्याका समाधान नहीं है. मान लो कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने जाति आधारित और धर्म आधारित राज्य रचनाके मुद्दे पर आंदोलन चलाया और सत्ता प्राप्त भी कर ली, तो वह कैसे जाति और धर्म पर आधारित राज्य रचना करेगी. यदि आप नहेरुवीयन कोंग्रेसकी अकर्मण्यता पर विश्वास करते है तो आप दे सकते है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसका क्या हाल हुआ. समस्याका समाधान किये बिना नहेरुवीयन कोंग्रेस अब सत्ता पर नहीं रह सकती. अरे भाई, हम अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका उद्धार करनेके लिये प्रतिबद्ध है और हम उसको एक क्षति-रहित फोर्म्युला वाली सूचना देना चाहते है. (क्रमशः) शिरीष मोहनलाल दवे
#अकर्मण्यता#अविभक्त भारत#आतंकवाद#आरक्षण#ख्रिस्ती-मुस्लिम#घुसपैठी#चीन#जातिवाद आधारित#तिबट#धर्म आधारित#नहेरु वंश#नहेरुवीयन कोंग्रेस#नहेरुवीयन तरीका#निर्वासित#पाकिस्तान#पूनर्वसन#फेडरल युनीयन#भाषा#भूमि-पुत्र#मौका#राज्य रचना#सत्ता#समस्या#समाधान#सांस्कृतिक साथी#हिदु-मुस्लिम#हिन्दु#हिन्दु-ख्रिस्ती
0 notes
Photo
नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका “जातिवाद आधारित राज्य रचना” की मांग रक्खो जी हाँ, नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये, प्रवर्तमान समय एक अतिसुनहरा मौका है. सिर्फ नहेरुवीय कोंग्रेस ही नहीं लेकिन उसके सांस्कृतिक साथीयोंके लिये भी यह एक सुनहरा मौका है. इस मुद्देका लाभ उठा के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता भी प्राप्त कर सकती है. आप पूछोगे कि ऐसा कौनसा मुद्दा है जिस मुद्देको उछाल के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता प्राप्त कर सकती है? अब आप एक बात याद रख लो कि जब भी हम “नहेरुवीयन कोंग्रेस” शब्दका प्रयोग करते है आपको इसका निहित अर्थ “नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष और उसके सांस्कृतिक साथी” ऐसा समज़ना है. क्यों कि समान ध्येय, विचार और आचार ही तो पक्षकी पहेचान है. तो अब हम बात आगे चलावें नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय नहेरु वंशको आगे बढाना है, नहेरुवीयन वंशज के लिये सत्ता प्राप्त करना है ताकि वे सत्ताकी मौज लेते रहे और अन्य लोग स्वंयंके परिवार और पीढीयोंकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा और सुख के लिये पैसा कमा सके. तो अब क्या किया जाय? देखो, अविभक्त भारतमें हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंकी समस्या थी. तो नहेरुने हिन्दु राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्रके फेडर युनीयनको नकार दिया और पाकिस्तान और भारत बनाया. लेकिन कुछ समय बाद मतोंकी भाषा राष्ट्रभाषा और राज्य भाषाकी समस्याओंका महत्व सामने आया. तो हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने) भाषाके आधार पर राज्योंकी रचना की. अब इसमें क्या हूआ कि हिन्दु-मुस्लिम झगडोंकी समस्या तो वहींकी वहीं रही लेकिन इस समस्या पर आधारित अन्य समस्याएं भी पैदा हूई. उसके साथ साथ भाषा के आधार पर और समस्याएं पैदा होने लगी. भूमि-पुत्र और जातिवाद आधारित समस्याएं भी पैदा होने लगी. आप कहेंगे कि क्या इन समस्याओंका समाधान करने की नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोशिस नहीं की? अरे वाह !! आप क्या बात कर रहे हो? नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो अपने तरीकेसे समस्याका हल करनेका पूरी मात्रामें प्रयत्न किया. नहेरुवीयन तरीका क्या होता है? कोई भी समस्या सामने आये तो उसको अनदेखा करो. समस्या कालचक्रमें अपने आप समाप्त हो जायेगी… अरे वाह !! यह कैसे? देखो हिन्दु-मुस्लिम समस्याको हल ही नहीं क्या. इसके बदले नहेरुने जीन्नाके साथ झगडा कर दिया. फिर हिन्दुस्तान पाकिस्तान हो गया. और हिन्दु-मुस्लिम झगडा तो कायम रहा. तिबट अपनी आझादी बचाने के लिये संघर्ष कर रहा था. हमारी समस्या थी कि तिबटकी सुरक्षा कैसे करें !! तो नहेरुने चीनके साथे दोस्ती करके तिबट पर चीनका प्रभूत्व मान लिया. लेकिन एक और समस्या पैदा हुई कि चीन हमारे देशकी सीमाके पास आ गया और उसने घुसखोरी चालु की. तो नहेरुने पंचशील का करार किया. तो कालक्रममें चीनने भारत पर आक्रमण कर दिया. जरुरतसे ज्या भूमि पर कब्जा कर दिया. तो हमारा पूराना सीमा विवाद तो रहा नहीं. वह तो हल हो गया. नया सीमा विवादका तो देखा जायेगा. तिबटकी समस्या हमारी समस्या रही ही नहीं. पाकिस्तान हमारा सहोदर है. पाकिस्तानमें आंतरविग्रह हुआ तो पूर्वपाकिस्तानसे घुस खोर लाखोंकी संख्यामें आने लगे. तो हमारे लिये एक समस्या बन गई. इन्दिरा गांधीने यह समस्या प्रलंबित की. तो पाकिस्तानने भारतकी हवाई पट्टीयों पर आक्रमण कर दिया. हमारी सेनाने पाकिस्तानको परास्त किया तो भारतको घुसखोरोंके साथ साथ ९००००+ युद्ध कैदीयोंको खाने पीनेका इंतजाम करना पडा. सिमला करार किया और युद्ध कैदी पश्चिम पाकिस्तानको ही परत कर दिया. तो कालचक्रमें आतंकवाद पैदा हो गया. तो हिन्दु लोग विस्थापित हो गये. उनका पूनर्वसनकी समस्या पैदा गई. होने दो. ऐसी समस्याएं तो आती ही रहती है. विस्थापित हिन्दुओंकी समस्याको नजर अंदाज कर दो. हिन्दु लोग अपने आप निर्वासित कैंपसे कहीं और जगह अपना मार्ग ढूंढ लेगे. नहेरुवीयनोने कुछ किया नहीं. आतंकी मुस्लिम लोग भारतमें घुसखोरी करने लगे और बोंब ब्लास्ट करने लगे. आतंकी मुस्लिम अपना अपना गुट बनाने लगे. स्थानिक मुस्लिमोंका सहारा लेने लगे. उनको गुट बनाने दो हमारा क्या जाता है. एक समस्या को हल नहीं करनेसे कालांतरमें अनेक और समस्याएं पैदा होती है. और मूल समस्याका स्वरुप बदल जाता है. तो उसको नहेरुवीयन लोग समाधान मान लेते है और मनवा लेते है. जातिवादी समस्या भी ऐसी ही थी. अछूतोंके लिये आरक्षण रक्खा. अछूतोंका उद्धार नहीं किया लेकिन उनके कुछ नेताओंका उद्धार किया. और आरक्षण कायम कर दिया. तो और जातियां कहेने लगी हमें भी आरक्षण दो. नहेरुवीयनोंने एक पंच बैठा दिया और जिनको भी आरक्षण चाहीये वे अपनी जातिका नाम वहां दर्ज करावें. अब आरक्षणका व्याप बढने लगा. जिसने भारत पर दो शतक राज्य किया वे मुस्लिम लोग कहेने लगे हम भी गरीब है हमें भी आरक्षण दो. तो नहेरुवीयनोंने कहा कि तुम्हे अकेलेको आरक्षण देंगे तो हम तुम्हारा तुष्टी करण करते है ऐसा लोग कहेंगे. इस लिये उन्होने “लघुमति”के लिये विशेष प्रावधान किये. रामके वंशज रघुवंशी कहेने लगे हमे भी आरक्षण दो. क्रुष्णके वंशज यादव कहेने लगे हमें भी आरक्षण दो. अब जब भगवानके वंशज आरक्षण मांगने लगे तो और कौन पीछे रह सकता है? जटने बोला हमें भी आरक्षण दो. महाराष्ट्रके ठाकुरोंने बोला कि हमें भी आरक्षण दो. अब हुआ ऐसा कि कमबख्त सर्वोच्च अदालतने कहा कि ४९ प्रतिशतसे अधिक आरक्षण नहीं दे सकते. तो अब क्या करें? आरक्षण, हिन्दु-मुस्लिम और हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याओंका कोई पिता है तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस है. उसको सहाय करने वाले भी अनेक बुद्धिजीवी है उनका एजंडा भी नहेरुवीयनोंकी तरह “जैसे थे”-वादी है. ये लोग वास्तवमें दुःखी जीवनका कारण पूर्वजन्मके पाप मानते है इसलिये समस्याके समाधान पर ज्यादा चिंता करना आवश्यक नहीं है. सब लोग अपनी अपनी किस्मत लेके पैदा होते है. इसलिये समस्याओंका समाधान ईश्वर पर ही छोड दो. ईश्वरके काममें हस्तक्षेप मत करो. लेकिन हमसे रहा नहीं जाता है. हम नहेरुवीयन कोंग्रेसका आदर करते है. कटूतासे हम कोसों दूर रहते है. त्याग मूर्ति नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्ता प्राप्त करनेका और वह भी यावत���ंद्र दिवाकरौ तक उसीके पास सत्ता रहे ऐसा रास्ता हम दिखाना चाहते है. यह रास्ता है कि नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसी छूटपूट जातिवादी आधारित आरक्षण और धर्म आधारित आरक्षणके बदले धर्म और जाति आधारित “राज्य रचना”की मांग पर आंदोलन करें. ऐसा आंदोलन करनेसे उसको सत्ताकी प्राप्ति तो होगी ही, उतना ही नहीं, धर्म आधारित और जाति अधारित राज्य रचनासे हिन्दु-मुस्लिम समस्याएं, हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याएं, मुस्लिम-ख्रिस्ती समस्याएं, भाषा संबंधित समस्याएं जातिवादी समस्याएं, आरक्षण संबंधी समस्याएं, आर्टीकल “३५-ए” संबंधित समस्या, आर्टीकल ३७० संबंधित समस्या, पाकिस्तान हस्तक काश्मिर समस्या, आतंकी समस्या, पत्थरबाज़ोकी समस्या आदि कई सारी समस्याएं नष्ट हो जायेगी. आप कहोगे ऐसा कैसे हो सकता है? आप कहोगे भीन्न भीन्न जातिके, भीन्न भीन्न धर्मके लोग तो बिखरे पडे है और राज्य तो भौगोलिक होगा है. धर्म और जाति आधारित राज्य रचना करनेमें ही अनेक समस्याएं पैदा होगी. और यदि ऐसी राज्य रचना हो भी गई तो इसके बाद भी कई प्रश्न उठेंगे जिनका समाधान असंभव है. यदि आप समास्याओंके समाधानके लिये नहेरुवीयन तरीका अपनावें तो ठीक है लेकिन आपको पता होना चाहिये कि समस्याको हल ही नहीं करना, समस्याका समाधान नहीं है. मान लो कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने जाति आधारित और धर्म आधारित राज्य रचनाके मुद्दे पर आंदोलन चलाया और सत्ता प्राप्त भी कर ली, तो वह कैसे जाति और धर्म पर आधारित राज्य रचना करेगी. यदि आप नहेरुवीयन कोंग्रेसकी अकर्मण्यता पर विश्वास करते है तो आप दे सकते है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसका क्या हाल हुआ. समस्याका समाधान किये बिना नहेरुवीयन कोंग्रेस अब सत्ता पर नहीं रह सकती. अरे भाई, हम अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका उद्धार करनेके लिये प्रतिबद्ध है और हम उसको एक क्षति-रहित फोर्म्युला वाली सूचना देना चाहते है. (क्रमशः) शिरीष मोहनलाल दवे
#अकर्मण्यता#अविभक्त भारत#आतंकवाद#आरक्षण#ख्रिस्ती-मुस्लिम#घुसपैठी#चीन#जातिवाद आधारित#तिबट#धर्म आधारित#नहेरु वंश#नहेरुवीयन कोंग्रेस#नहेरुवीयन तरीका#निर्वासित#पाकिस्तान#पूनर्वसन#फेडरल युनीयन#भाषा#भूमि-पुत्र#मौका#राज्य रचना#सत्ता#समस्या#समाधान#सांस्कृतिक साथी#हिदु-मुस्लिम#हिन्दु#हिन्दु-ख्रिस्ती
0 notes
Text
“आगसे खेल” मुल्लायम और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका
“आगसे खेल” मुल्लायम और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका
“आगसे खेल” मुल्लायम और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका यदि कोई जनताको धर्म, जाति और और क्षेत्रके नाम पर विभाजन करें और वॉट मांगे उसको गद्दार ही कहेना पडेगा. अब तो इस बातका समर्थन और आदेश सर्वोच्च न्यायालयने और चूनाव आयुक्तने भी परोक्ष तरिकेसे कर दिया है.
मुल्लायम, अखिलेश और उनके साथीयोंने युपीके चूनावमें बीजेपी के विरुद्ध आंदोलन छेड दिया है. ये लोग बीजेपी के नेतागण चूनाव प्रचारके लिये भी न आवें…
View On WordPress
#“बाहरी” और “बिहारी” (स्थानिक)#अकबरुद्दीन ओवैसी#अखिलेश#आगसे खेल#आझम खान#इन्दिरा#एडीएमके#केज्री#क्षेत्रवाद#चरण सिंहका फरजंद अजित सिंह#चूनाव आयुक्त#जनताको गुमराह#जातिवादका जन्म#डीएमके#देशके टूकडे करनेकी बात करने वाले नेता#नहेरु#नहेरुका वंशवाद#नहेरुवीयन कोंग्रेस#नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथी#नहेरुवीयन कोंग्रेसकी संस्कृतिका असर#नीतीश#पीला पत्रकारित्व (यलो जर्नालीझम)#फारुख अब्दुल्ला#फारुख अब्दुल्लाका फरजंद ओमर#बाहरी और युपीवाले#भाषावाद#ममता#महाराष्ट्रको मुंबई#मायावती#मुंबईमें भाषावाद
0 notes
Text
बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या क्या है?
बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या क्या है?
बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या क्या है? “प्रशस्ति पत्रोंकी वापसी, इसमें हम नहीं, मैं शर्मींदा हूँ, भारतके मुस्लिम सुरक्षित नहीं, अखलाक, पत्रकारकी हत्याएं, दलितों पर अत्याचार, व्यर्थ विमुद्रीकरणके ��ारण कई मृत्यु और आम आदमीको परेशानी, जीएसटी एक गब्बरसींग टेक्ष, राफेल डील, उद्योगकर्ताओंको खेरात, सुशील मोदी, माल्या आदिको अति अधिक ॠण देकर देशसे भगा देना, सरकारी बेंकोका एनपीएन उत्पन्न करना, मी टू,…
View On WordPress
#अंडर टेबल डील#अखलाक#अत्याचार#उपलब्धि#एजन्डा#कटारीयाजी#कश्मिर#क्रीमीनल निस्फलता#गठ बंधन#गब्बर सींग टेक्ष#जी.एस.टी.#नरसिंह राव#नरेन्द्र मोदी#नहेरुवीयन प्रणाली#नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष#निरर्थक#परिबल#पागल#पूर्ण बहुमत#प्रधान मंत्रीका प्रमोशन#प्रशस्तिपत्र#बीजेपी#बेंकोका एन.पी.एन#भारत छोडो आंदोलन#मन मोहन सिंह#महिला प्रदर्शन#मुस्लिम सुरक्षित नही#म��ल कोंग्रेसके सामान्य सदस्य#राष्ट्रीय सरकार#राष्ट्रीय सुरक्षा
0 notes
Text
तितलीयां कौन उडाते है?
तितलीयां कौन उडाते है?
समाचार माध्यमोंके लिये अभी कई सारे ट्रोल विद्यमान (जिन्दा) है. खास करके बीजेपी-नरेन्द्र मोदी विरोधीयोंके लिये कई ट्रोल विद्यमान है. ट्रोलसे प्रयोजन है. समग्रतया दृष्टिसे देखा जाय तो कोई एक, जो वास्तवमें छोटा है, तथापि उसको बडा कर दो. और उसकी लगातार चर्चा किया करो. वह ट्रोल बन जाता है. ऐसी भी कई घटना घटती है जो वास्तवमें अधिक प्रभावशाली होती है किन्तु वह यदि हमारे निश्चित…
View On WordPress
#कटारीया#क्षतिपूर्ण#जमानत#जी.एस.टी.#जी.एस.टी. परिषद#जीन्स#ट्रोल#तितलीयां#दूर दूर क्षितिज#नरेन्द्र#नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष#नहेरुवीयन कोंग्रेसके युवराज#नोटबंदी#पूर्वालेख#प्रतिस्पर्धी#प्रस्ताव#फुद्दे#बीजेपी#मक्खी#मजाक#मोदी#राजकीय पक्ष#विद्यमान#व्हीस्की#संकलन शक्ति#सक्षम#समाचार माध्यम#सहयोगी#सुंदरता ही आकर्षण#��ुशोभित
0 notes
Photo
“दुष्कर्मोंकी जड नहेरुवीयन कोंग्रेस है” भारतीय जनता इससे सावधान रहें, “दुष्कर्मोंकी जड नहेरुवीयन कोंग्रेस है” इससे सावधान रहे भारतीय जनता नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह पूर��नी आदत है कि जनताको विभाजित करना और अपना उल्लु सीधा करना. जिसने देशके वर्तमान पत्रोंके हिसाबसे गुजरातमें युपी-बिहार वालोंके विरुद्ध लींचीन्ग चालु किया वह कौन है? अल्पेश ठाकोर नामका एक व्यक्ति है जो वर्तमान पत्रोंने बनाया हुआ टायगर है. वह गुजरात (नहेरुवीयन) कोंग्रेसका प्रमुख भी है. वह गुजरात विधानसभाका सदस्य भी है. उसने गुजरात विधान सभाके गत चूनाव पूर्व अपनी जातिके अंतर्गत एक आंदोलन चलाया था कि ठाकोर जातिको शराबकी लतसे मूक्त करें. यह तो एक दिखावा था. कोंग्रेसने उसको एक निमित्त बनाया था. किसी भी मानव समूह शराबसे मूक्त करना एक अच्छी बात है. लेकिन अभीतक किसीको पता नहीं कितने ठाकोर लोग शराब मूक्त (व्यसन मूक्त) बने. इस संगठनका इस लींचींगमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका पूरा लाभ लिया. दो पेपर टायगर है गुजरात में “नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरात”के नेताओंने पहेले पाटीदारोंमेंसे एकको पेपर टायगर बनाया था. उसने आंदोलन चलाया और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी मददसे करोडों रुपयेकी सरकारी और नीजी संपत्तिका नाश करवाया था. वर्तमान पत्रोंने (पेपरोंने) उनको टायगर बना दिया था. नहेरुवीयन कोंग्रेसको गुजरातके अधिकतर वर्तमान पत्रोंने भरपूर समर्थन दिया है, और इन समाचार पत्रोंने पाटीदारोंके आंदोलनको फूंक फूंक कर जीवित रक्खनेकी कोशिस की है. वर्तमान पत्रोंको और उनके विश्लेषकोंने कभी भी आंदोलनके गुणदोषके बारेमें चर्चा नहीं की है. लेकिन आंदोलन कितना फैल गया है, कितना शक्तिशाली है, सरकार कैसे निस्फल रही है, इन बातोंको बढा चढा कर बताया है. पाटीदार आंदोलनसे प्रेरित होकर नहेरुवीयन कोंग्रेसने अल्पेश ठकोरको आगे किया है. यह एक अति सामान्य कक्षाका व्यक्ति है. जिसका स्वयंका कुछ वजुद न हो और प्रवर्तमान फेशन के प्रवाहमें आके दाढी बढाकर अपनी आईडेन्टीटी (पहेचान) खो सकता है वह व्यक्तिको आप सामान्य कक्षाका या तो उससे भी निम्न कक्षाका नहीं मानोगे तो आप क्या मान मानोगे? “दुष्कर्म” तो एक निमित्त है. ऐसा निमित्त तो आपको कहीं न कहींसे मिलने वाला ही है. यह पेपर टायगर खुल्लेआम हिन्दीभाषीयोंके विरुद्ध बोलने लगा है. और समाचार माध्यम उसको उछाल रहे है. वैसे तो मुख्य मंत्रीने १२०० व्यक्तियोंको हिरासतमें लिया है. और इन सबको पता चल जायेगा कि कानून क्या कर सकता है. लेकिन यदि किसीको अति जिम्मेवार समज़ना है तो वे वर्तमान पत्र है. समाचार पत्रोंको तो लगता है कि उनके मूँहमें तो गुड और सक्कर किसीने रख दिया है. लेकिन अब नहेरुवीयन कोंग्रेसकी और उसके दंभी समाचार पत्रोंकी पोल खूल रही है और उनके कई लोग कारावासमें जाएंगे यह सुनिश्चित है इसलिये उनकी आवाज़के सूर अब बदलने लगे है लेकिन कानूनसे गुजरातमें तो को�� बच नहीं सकता. इसलिये ये सब नहेरुवीयन कोंग्रेसी डर गये हैं. इस विषयमें हमें यह देखना आवश्यक बन जाता है कि आजकी कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस) आज के दुष्कर्मोंके उच्च (निम्न) स्तर तक कैसे पहोंची? वैसे तो बीजेपीकी सरकार और नेतागण सतर्क और सक्रिय है. शासन भी सक्रिय है. जो लोग गुजरात छोडकर गये थे उनको वापस बुलारहे है और वे वापस भी आ रहे है. गुजरातकी जनता और खास करके बीजेपी के नेतागण उन सभीका गुलाबका पुष्प देके स्वागत कर रहे है. हिन्दी भाषीयोंने ऐसा प्रेम कभी भी महाराष्ट्रमें नहीं पाया. नहेरुवीयन कोंग्रेसका गुजरातके संदर्भमें ऐतिहासिक विवरण देखा जा सकता है. नहेरुने महात्मा गांधीको ब्लेकमेल करके तत्काल प्रधान मंत्री पद तो ग्रहण कर लिया, लेकिन उनको तो अपनेको प्रधानमंत्रीके पद पर शाश्वत भी बनाये रखना था. और इसमें तो गांधी मददमें आने वाले नहीं थे. इस बात तो नहेरुको अच्छी तरह ज्ञात थी. गांधी तो मर गये. नहेरुसे भी बडे कदके सरदार पटेल एक मात्र दुश्मन थे. लेकिन नहेरुके सद्भाग्यसे वे भी चल बसे. नहेरुका काम ५०% तो आसान हो गया. उन्होने कोंग्रेसके संगठनका पूरा लाभ लिया. जनता को कैसे असमंजसमें डालना और अनिर्णायक बना देना यह एक शस्त्र है. इस शस्त्रका उपयोग अंग्रेज सरकार करती रहेती थी. लेकिन गांधीकी हत्याके बाद हिन्दु विरुद्ध मुस्लिमका शस्त्र इतना धारदार रहा नहीं. “तू नहीं तो तेरा नाम सही” नहेरु बोले लेकिन शस्त्रका जो काम था वह “जनताका विभाजन” करना था. तो ऐसे और शस्त्र भी तो उत्पन्न किये जा सकते है. नहेरुने सोचा, ऐसे शस्त्रको कैसे बनाया जाय और कैसे इस शस्त्रका उपयोग किया जाय. कुछ तो उन्होंने ब्रीटीश शासकोंसे शिखा था और कुछ तो उन्होंने उस समयके रुसकी सरकारी “ओन लाईन” अनुस्नातकका अभ्यास करके शिखा था. यानी कि साम्यवादी लोग जब सत्तामें आ जाते है तो सत्ता बनाये रखने के लिये जनताको असमंजसमें रखना और विभाजित रखना आवश्यक मानते है. १९५२मे नहेरुने काश्मिर और तिबटकी हिमालयन ब्लन्डरके बाद भी चीनपरस्त नीति अपनाई, और जनताका ध्यान हटाने के लिये भ��षा पर आधारित राज्योंकी रचना की. लेकिन कोई काम सीधे तरिकेसे करे तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं. नहेरुने प्रदेशवादको उकसायाः “मुंबई यदि महाराष्ट्रको मिलेगा तो मुज़े खुशी होगी” नहेरुने बोला. ऐसा बोलना नहेरुके लिये आवश्यक ही नहीं था. “भाषाके आधार पर कैसे राज्योंकी रचना करना” उसकी रुपरेखा “कोंग्रेस”में उपलब्ध थी. लेकिन नहेरुका एजन्डा भीन्न था. इस बातका इसी “ब्लोग-साईट”में अन्यत्र विवरण दिया हुआ है. नहेरुका हेतु था कि मराठी भाषी और गुजरात��� भाषी जनतामें वैमनष्य उत्पन्न हो जाय और वह बढता ही रहे. इस प्रकार नहेरुने मराठी जनताको संदेश दिया कि गुजराती लोग ही “मुंबई” महाराष्ट्रको न मिले ऐसा चाहते है. याद रक्खो, गुजरातके कोई भी नेताने “‘मुंबई’ गुजरातको मिले” ऐसी बात तक नहीं की थी, न तो समाचार पत्रोमें ऐसी चर्चा थी. लेकिन नहेरुने उपरोक्त निवेदन करके मराठी भाषीयोंको गुजरातीयोंके विरुद्ध उकसाया और पचासके दशकमें मुंबईमें गुजरातीयों पर हमले करवाये और कुछ गुजरातीयोंने मुंबईसे हिजरत की. गुजरातीयोंका संस्कार और चरित्र कैसा रहा है? एक बात याद रक्खोः उन्नीसवे शतकके अंतर्गत, गुजरातीयोंने ही मुंबईको विकसित किया था. मुंबईकी ९० प्रतिशत मिल्कत गुजरातीयोंने बनाई थी. ७० प्रतिशत उद्योगोंके मालिक गुजराती थे. और २० प्रतिशत गुजराती लोगोंका मुंबई मातृभूमि था. “गुजराती” शब्द से मतलब है कच्छी, सोरठी, हालारी, झालावाडी, गोहिलवाडी, काठियावाडी, पारसी, सूरती, चरोतरी, बनासकांठी, साबरकांठी, पन्चमाहाली, आबु, गुजरातसे लगने वाले मारवाडी, मेवाडी आदि प्रदेश. गुजरातीयोंने कभी परप्रांतीयों पर भेद नहीं किया. गुजरातमें ४० प्रतिशत जनसंख्या पछात दलित थे. लेकिन गुजरातीयोंने कभी परप्रांतमें जाकर, गुजरातीयोंको बुलाके, नौकरी पर नहीं रक्खा. उन्होंने तो हमेशा वहांके स्थानिक जनोकों ही व्यवसाय दिया. चाहे वह ताता स्टील हो, या मेघालय शिलोंगका “मोदी कोटेज इन्डस्ट्री” हो. गुजरातकी मानसिकता अन्य राज्योंसे भीन्न रही है. गुजरात और मुंबई रोजगारी का हब है. पहेलेसे ही गुजरात, मुंबई और महाराष्ट्र, व्यवसायीयोंका व्यवसाय हब है. उन्नीसवीं शताब्दीसे प्रथम अर्ध शतकसे ही अहमदाबादमें कपडेकी मिलोंमें हिन्दी-भाषी लोग काम करते है. १९६४-६५में जब मैं जबलपुरमें था तब मेरे हिन्दीभाषी सहाध्यायी लोग बता रहे थे कि हमारे लोग, पढकर गुजरात और महाराष्ट्रमें नौकरी करने चले जाते है. गुजरातमें सेन्ट्रल गवर्नमेंटके कार्यालयोंमे चतूर्थ श्रेणीके कर्मचारीयोंमें हिन्दीभाषी लोगोंका बहुमत रहेता था. सेन्ट्रल गवर्नमेंटके कार्यालयोंमे प्रथम और द्वितीय श्रेणीके कर्मचारीयोंमे आज भी हिन्दीभाषीयोंका बहुमत होता है, वैसे तो अधिकारीयोंके लिये गुजरात एक टेन्योर क्षेत्रमाना जाता है तो भी यह हाल है. नरेन्द्र मोदी और गुजराती गुजराती लोग शांति प्रिय और राष्ट्रवादी है. जब नरेन्द्र मोदी जैसे कदावर नेता गुजरातके मुख्यमंत्री थे तब भी उन्होंने कभी क्षेत्रवादको बढावा देनेका काम नहीं किया. नरेन्द्र मोदी हमेशा कहेते रहेते थे कि गुजरातके विकासमें हिन्दीभाषी और दक्षिणभारतीयोंका महान योगदान रहा है. गुजरातकी जनता उनका ऋणी है. २००२ के चूनावमें और उसके बादके चूनावोंमें भी, नरेन्द्र मोदी, यदि चाहते तो ममता, अखिलेश, मुलायम, माया, लालु, चन्द्रबाबु नायडु की तरह क्षेत्रवाद-भाषावादको हवा देकर उसको उछाल के गुजराती और बिन-गुजराती जनताको भीडवा सकते थे. लेकिन ऐसी बात गुजराती जनताके डीएनए में नहीं है. और नरेन्द्र मोदीने राष्ट्रवादको गुजरातमें बनाये रक्खा है. याद रक्खो, जब नहेरु-इन्दिराके शासनके सूर्यका मध्यान्ह काल था तब भी नहेरुवीयन कोंग्रेस की (१९७१के एक दो सालके समयको छोड) गुजरातमें दाल नहीं गलती थी. वह १९८० तक कमजोर थी और मोरारजी देसाईकी कोंग्रेस (संस्था) सक्षम थी. मतलब कि, राष्ट्रवाद गुजरातमें कभी मरा नहीं, न तो कभी राष्ट्रवाद गुजरातमें कमजोर बना. १९८०से १९९५ तक गुजरातमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन रहा लेकिन उस समय भी राष्ट्रवाद कमज़ोर पडा नहीं क्यों कि गुजरातकी नहेरुवीयन कोंग्रेसके “आका” तो नोन-गुजराती थे इसलिये “आ बैल मुज़े मार” ऐसा कैसे करते? भाषा और क्षेत्रवादके लिये गुजरातमें जगह नहीं है; उद्धव -बाला साहेब थाकरे, राज ठाकरे, ममता, अखिलेश, मुलायम, माया, लालु, चन्द्रबाबु नायडु–वाले क्षेत्रवाद के लिये गुजरातमें जगह नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें गुजरातमें दंगे, और संचार बंदी तो बहोत होती रही, लेकिन कभी क्षेत्र-भाषा वादके दंगे नहीं हुए. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह संस्कृति और संस्कार है कि जूठ बार बार बोलो और चाहे वह जूठ, जूठ ही सिद्ध भी हो जाय, अपना असर कायम रखता है. (१) पहेले उन्होंने अखलाक का किस्सा उछाला, और ठेर ठेर हमें गौवध आंदोलनके और लींचींगके किस्से प्रकाशित होते हुए दिखने लगे, (२) फिर हमें भारतके टूकडेवाली गेंग दिखाई देने लगी और उनके और अफज़ल प्रेमी गेंगके काश्मिरसे, दिल्ली, बनारस, कलकत्ता, और हैदराबाद तकके प्रदर्शन दिखनेको मिले, (३) फिर सियासती खूनकी घटनाएं और मान लो कि वे सब खून हिन्दुओंने ही करवायें ऐसा मानके हुए विरोध प्रदर्शन के किस्से समाचार पत्रोंमे छाने लगे, (४) फिर सियासती पटेलोंका आरक्षणके हिंसक प्रदर्शन और मराठाओंका आरक्षण आदि के प्रदर्शनोंकी घटनाएं आपको समाचार माध्यमोंमे प्रचूर मात्रामें देखने को मिलने लगी. (५) फिर आपको कठुआ गेंग रेप की घटनाको, कायदा-व्यवस्थाके स्थान पर, सेना और कश्मिरके मुस्लिमोंकी टकराहट, के प्रदर्शन स्वरुप घटना थी, इस बातको उजागर करती हुए समाचार देखने को मिलने लगे. (६) अब तो समाचार पत्रोंमे हररोज कोई न कोई पन्ने पर या पन्नों पर एक नाबालीग के गेंगरेप या दुष्कर्मकी घटना चाहे उसमें सच्चाई हो या न हो, देखनेको मिलती ही है. नाम तो नहीं लिखना है इसलिये बनावटी घटनाओं का भी प्रसारण किया जा सकता है. नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसा माहोल बनाना चाहती है कि जनताको ऐसा लगता है कि बीजेपीके शासनमें गेंग रेप, दुष्कर्म की आदत उत्पन्न हुई. और नहेरुवीयन कोंग्रेसके ७० सालके जमानेमें तो भारत एक स्वर्ग था. न कोई बेक��र था, न कोई गरीब था, न कोई अनपढ था, हर घर बिजली थी, हर कोई के पास पक्का मकान था और दो खड्डेवाला संडास था, पेट्रोल मूफ्तमें मिलता था और महंगाईका नामोनिशान नहीं था. सब आनंदमंगल था. कश्मिरमें हिन्दु सुरक्षित थे और आतंकवादका तो नामोनिशान नहीं था. ये ठाकोर लोग कौन है? ठाकोर (ठाकोर क्षत्रीय होते है. श्री कृष्ण को भी गुजरातमें “ठाकोरजी” कहे जाते है.) वैसे वे लोग एससी/ओसी में आते हैं और कहा जाता है कि वे लोग व्यसन के आदि होते हैं. “नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरात”की तबियत गुदगुदाई नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तबियत गुदगुदायी है कि, अब वह क्षेत्रवादका शस्त्र जो उन्होंने महाराष्ट्रमें गुजरातीयोंको मराठीयोंसे अलग करनेमें किया था उस शस्त्रको अजमाया जा सकता है. शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, नहेरुवीयन कोंग्रेसके क्रमानुसार पूत्र और पौत्र है. ये दोनों पार्टीयां तो खूल्ले आम क्षेत्रवादकी आग लगाती है. शिवसेना कैसे बीजेपीका समर्थन करती है वह एक संशोधनका विषय है, लेकिन यदि शरद पवारको प्रधान मंत्री बननेका अवसर आयेगा तो यह शिवसेना और एमएनएस, उसके पल्लेमें बैठ जायेंगे यह बात निश्चित है. जैसे कि उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसके प्रत्याषी प्रतिभा पाटिलको समर्थन किया था. महाराष्ट्रमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेसने क्षेत्रवादको बहेकानेका काम प्रचूर मात्रामें किया है. पाटीदारोंके आंदोलनके प��िणाम स्वरुप, ज्ञातिवादके साथ साथ अन्य कोई शस्त्र है जिससे गुजरातमें कुछ और हिंसक आंदोलन करवा सकें? गुजरात विरुद्ध हिन्दीभाषी गुजरातमें हिन्दीभाषी श्रम जीवी काफी मात्रामें होते है. गुजरातके विकासमें उनका योगदान काफी है. किसीका भी परप्रांतमें नौकरी करनेका शौक नहीं होता है. जब अपने राज्यमें नौकरीके अवसर नहीं होते है तब ही मनुष्य परप्रांतमें जाता है. मैंने १९६४-६५में भी ऐसे लोगो देखे है जो युपी बिहार के थे. उनके मूँहसे सूना था कि हमारे यहां लडका एमएससीमें डीवीझन लाता है तो भी कई सालों तक बेकार रहेता है. नौकरी मिलने पर उसका भाव बढता है. ये सब तो लंबी बाते हैं लेकिन हिन्दी भाषी राज्योंमे बेकारीके कारण उनके कई लोगोंको अन्य राज्योंमें जाना पडता है. कौन पर प्रांती है? अरे भाई, यह तो वास्तवमें घर वापसी है. सुराष्ट्र-गुजरातका असली नाम तो है आनर्त. जिसको गुरुजनराष्ट्र भी कहा जाता था जिसमेंसे अपभ्रंश होकर गुजरात हुआ है प्राचीन इतिहास पर यदि एक दृष्टिपात् करें तो भारतमें सरस्वती नदीकी महान अद्भूत सुसंस्कृत सभ्यता थी. उसका बडा हिस्सा गुजरातमें ही था. गुजरातका नाम “गुरुजनराष्ट्र था”. अगत्स्य ऋषिका आश्रम साभ्रमती (साबरमती)के किनारे पर था, वशिष्ठ ऋषि का आश्रम अर्बुद पर���वत पर था, सांदिपनी ऋषिका आश्रम गिरनारमें था, भृगुरुषिका आश्रम भरुचके पास नर्मदा तट पर था, विश्वामित्र का आश्रम विश्वामित्री नदीके मुखके पास पावापुरीमें था, अत्री ऋषिके पूत्र, आदिगुरु दत्तात्रेय गिरनारके थे. चंद्र वंश और सूर्यवंशके महान राजाओंकी पूण्य भूमि सुराष्ट्र-गुरुजनराष्ट्र ही था. सरस्वती नदीका सुखना और जलवायु परिवर्तन जब जलवायुमें परिवर्तन हुआ तो इस संस्कृतिकी, एक शाखा पश्चिममें ईरानसे गुजरकर तूर्क और ग्रीस और जर्मनी गई, एक शाखा समूद्रके किनारे किनारे अरबस्तान और मीश्र गई एक शाखा काराकोरमसे तिबट और मोंगोलिया गई, एक शाखा पूर्वमें गंगा जमना और ब्र्ह्म पूत्रके प्रदेशोंमे गई, जो वहांसे ब्रह्मदेश गई, और वहांसे थाईलेन्ड, फिलीपाईन्स, ईन्डोनेशिया, और चीन जापान गई, एक शाखा दक्षिण भारतमें और श्रीलंका गई. जब सुराष्ट्र (गुरुजन राष्ट्र)का जलवायु (वातावरण) सुधरने लगा तो गंगा जमनाके प्रदेशोंमें गये लोग जो अपनी मूल भूमिके साथ संपर्कमें थे वे एक या दुसरे कारणसे घरवापसी भी करने लगे. राम पढाईके लिये विश्वामित्रके आश्रममें आये थे, कृष्ण भी पढाईके लिये सांदिपनी ऋषिके आश्रममें आये थे. फिर जब जरासंघका दबाव बढने लगा तो श्री कृष्ण अपने यादवोंके साथ सुराष्ट्रमें समूद्र तट पर आ गये और पूरे भारतके समूद्र तट पर यादवोंका दबदबा रहा. ईश्वीसन की नवमी शताब्दीमें ईरानसे पारसी लोग गुजरात वापस आये थे. ईश्वीसनकी ग्यारहवी शताब्दीमें कई (कमसे कम दो हजार कुटूंबोंको) विद्वान और चारों वेदोंके ज्ञाता ब्राह्मणोंको मूळराज सोलंकी काशीसे लेकर आया था. वे आज औदिच्य ब्राह्मणके नामसे जाने जाते है. इसके बाद भी जनप्रवाह उत्तर भारतसे आनर्त-सुराष्ट्र में आता ही रहा है. “स्थानांतर” यह एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है. सुराष्ट्र-गुरुजनराष्ट्रमें सबका स्वागत है. आओ यहां आके आपकी मूल भूमिका वंदन करो और भारत वर्षका नाम उज्वल करो. नहेरुवीयन कोंग्रेस तेरा सर्वनाश हो, बीजेपी तेरा जय जयकार हो. शिरीष मोहनलाल दवे चमत्कृतिः डीबीभाई(दिव्यभास्कर की गुजराती प्रकाशन)ने क्या किया? जो हंगामा और मारपीट ठाकोरोंने गुजरातमें की, वे “जनता”के नाम पर चढा दी, और उनको नाम दिया “आक्रोश”. आगे तंत्रीलेखमें लिखा है “नीतीशकुमार हवे गुजरात विरुद्ध बिहार मोडलनी चर्चा तो शरु करी दीधी छे अने तेमनी चर्चाने उठावनारा नोबेलविजेता अर्थ शास्त्र अमर्त्यसेन पण चूप छे” यह कैसी वाक्य रचना है? इस वाक्यका क्या अर्थ है? इसका क्या संदेश है? यदि कोई भाष���शास्त्री बता पाये तो एक लाख ले जावे. यह वाक्य रचना और उसका अर्थ जनताके पल्ले तो पडता नहीं है. डीबीभाई खूद हिन्दीभाषी है. उनको भाषा शुद्धिसे और वाक्यार्थसे कोई मतलब नहीं है. आपको एक भी पेराग्राफ बिना क्षतिवाला मिलना असंभव है. शिर्ष रेखा कैसी भी बना लो. हमें तो बीजेपीके विरुद्ध केवल ऋणात्मक वातावरण तयार करना है. “(नहेरुवीयन) कोंग्रेसके पैसे, हमारे काम कब आयेंगे? यही तो मौका है …!!!” वर्तमान पत्रकी सोच.
#अंग्रेज सरकार#अखिलेश#अगत्स्य#अत्री#अनुस्नातक हिमालयन ब्लंडर#अपना उल्लु सीधा करना#अफज़ल प्रेम��#असमंजस#आबु#आरक्षण#उकसाया#उद्धव -बाला साहेब थाकरे#एक मात्र दुश्मन#कच्छी#काठियावाडी#गुजरातके मुख्य मंत्री#गुजरातसे लगने वाले मारवाडी#गोहिलवाडी#गौवध#चंद्र वंश#चन्द्रबाबु नायडु#चरित्र#चरोतरी#जनताका विभाजन#जलवायु परिवर्तन#झालावाडी#ठाकोर#दत्तात्रेय#दुष्कर्म#नहेरु
0 notes
Text
सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२
सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२
सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२ असत्यवाणी नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंका धर्म है यह कोई नई बात नहीं है. नहेरुने खुदने चीनी सेनाके भारतीय भूमिके अतिक्रमणको नकारा था. तत्पश्चात् भारतने ९२००० चोरसवार भूमि, चीनको भोजन-पात्र पर देदी थी. ईन्दिरा गांधी, राजिव गांधी आदिकी बातें हम २५ जूनको करेंगे. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेस अलगतावादी मुस्लिम नेताओंसे पीछे नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने सांस्कृतिक…
View On WordPress
#अध्यादेश#अपकिर्ती#अलगतावादी मुस्लिम नेता#अल्पसंख्यक#असहिष्णुता#अहिंसक विरोध#आकाशकुसुमवत#आपात्काल#आमरणांत अनशन#ईन्दिर गांधी मनोरोगी#ईन्दिरा गांधी#ओमर#कतलखाना#केरल#गाय#गौ-मांस#चीनी सेना#धर्मनिरपेक्षता#ध्येयमहात्मा गांधी#नहेरु#नहेरुवीयन कोंग्रेस#निर्देशात्मक#पत्थरबाज़#पशुबिक्री#पाकिस्तान#फरजंद#फारुख#बछडा#बाबा साहेब आंबेडकर#भोजन
0 notes
Text
सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१
सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१
सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१ यदि आप बछडेकी सरे आम और वह भी सडक पर हत्या कर सकते है और बछडेके मांसको पका सकते है और मांसका वितरण कर सकते है और भोजन समारंभ कर सकते है तो अब तुम कई सारे कार्य कर सकते हो. सोमनाथका मंदिर तोडने के लिये आगे बढो. प्रदर्शन करना, कानुन भंग करना जनतंत्रमें आपका अधिकार है. लोग पूछेंगे आप किससे बात कर रहे हो? कौन तोडेगा सोमनाथका मंदिर? नहेरुवीयन कोंग्रेस ही सोमनाथका…
View On WordPress
#अपकिर्ती#अल्पसंख्यक#असहिष्णुता#आकाशकुसुमवत#आनंदित करना#आपात्काल#आमरणांत अनशन#ईन्दिर गांधी मनोरोगी#ओमर#औषधि#कार्यसूचि#गाय#गाय-बछडा#गायके दूध#गौ-मांस#गौ-वंश वध निषेध#चूनाव चिन्ह#तंदुरस्त#देवाधिदेव महादेव#दो बैलोंकी जोडी#धर्मनिरपेक्षता#ध्येय#नहेरु#नहेरुवीयन कोंग्रेस#निर्देशात्मक#पत्थरबाज़#परमेश्वर#पाकिस्तान#फारुख#बंसीभाई पटेल
0 notes