#सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष
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smdave1940 · 7 years ago
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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका – २
नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका – २
नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका – २
जाति आधारित राज्य रचना” कैसे की जा सकती है? उसकी प्रक्रिया कैसी होनी चाहिये? हमने जब देशकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये देशका विभाजन किया तब हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने कुछ गलतीयां की थी. वे गलतीयां हमे जाति–आधारित और धर्म आधारित राज्य रचना करनेमें दोहरानी नहीं चाहिये) तो चलो हम आगे बढें…
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एक बात सबको समज़नी है कि हमारी मीडीयाके अधिकतर संचालकगण और नहेरुव…
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be-jagruk · 3 years ago
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UP Election 2022: अंतिम चरण के मतदान में वोट पर चोट करने को तैयार मतदाता
यूपी चुनाव : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के छठे चरण की वोटिंग हो चुकी है ऐसे में आज यूपी चुनाव के लिए मतदाता सातवें और अंतिम चरण में वोट पर चोट करने को तैयार है आखिरी चरण के नौ जिलों की 54 सीटों पर मतदान हो रहा है जिसमे आजमगढ़, गाजीपुर , जौनपुर , वाराणसी, भदोही शामिल है इस चरण में उत्तर प्रदेश के तीन मंत्री चुनावी मैदान पर है वाराणसी दक्षिण विधानसभा सीट से राज्य के पर्यटन व सांस्कृतिक मंत्री नीलकंठ तिवारी है पंजीयन मंत्री रविन्द्र जयसवाल, दिव्यांग कल्याण मंत्री अनिल राजभर की किस्मत का फैसला जनता ईवीएम पर कैद कर देगी । यहां कुछ सीटें बड़ी खास है क्योंकि पिछले कुछ समय से विवादों में रहे ये प्रत्याशी भी जोर आजमाइश के लिए चुनावी मैदान पर डटे है भाजपा छोड़कर सपा का दामन थामने वाले गाजीपुर की जहूराबाद सीट से सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर है मऊ सदर से बांदा जेल ने बन्द मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी , और भदोही से विधायक अजय मिश्रा जैसे दिग्गज मैदान पर है
क्य��� था 2017 में जीत का समीकरण
इसमें कोई शक नहीं है इस बार का चुनाव उतना ही पेचीदा और कठिन खासकर बीजेपी के लिए । जितनी आसानी से बीजेपी ने साल 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में 54 सीटों में 29 पर जीत दर्ज की थी इस बार बीजेपी अपने ही गढ़ में खतरा महसूस कर रही है पिछले चुनाव में बीजेपी सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी ओम प्रकाश राजभर की पार्टी ने 3 सीटें जीती थीं निषाद पार्टी जिसके अध्यक्ष संजय निषाद है उन्होंने एक सीट कब��जाई थी बसपा ने 6 सीट और समाजवादी पार्टी ने 11 सीटों पर कब्जा किया था लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है पिछले चुनाव में जो समीकरण बने थे ठीक उससे उलट समीकरण इस बार बनते दिख रहे है मतलब भाजपा के लिए यह खतरे की आहट है आज 9 जिलों की 54 सीटों पर 2.6 करोड़ मतदाता अपने विधायक का फैसला करेगा जिसमें 1.9 करोड़ पुरुष है और 97.8 करोड़ महिला वहीं 1027 थर्ड जेंडर है ।
अब तक कौन किस पर पड़ा भारी
बस आज से तीन दिन और फिर उत्तर प्रदेश की जनता को 10 मार्च को 12 बजे सूबे का मुख्यमंत्री और अपने क्षेत्र का विधायक मिल जाएगा।  उत्तर प्रदेश में कुल सात चरणों में वोटिंग हुई है जो चुनावी गणित बता रहा है उसके लिहाज से पहले तीन चरण समाजवादी के खेमे में गए है मतलब पश्चिमी यूपी के चरण । राजनीतिक विश्लेषकों के आधार पर चौथे चरण से स्थितियां बदली है और बीजेपी के लिए चौथे चरण से लेकर छठे चरण के मतदान उसके पक्ष में गए है लेकिन यह सिर्फ अनुमान है असल में मतदाताओं ने क्या फैसला किया है इसका नतीजा तो गुरुवार यानी 10 मार्च को ही पता चलेगा । क्योंकि ऐसा कहा माना जा रहा था कि इस बार जनता ने अपना वोट दिल में दबाकर रखा है किसी के सामने जाहिर नहीं होने दिया और इवीएम के सामने ही अपना अंतिम फैसला सुनाया। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सिर्फ और सिर्फ लड़ाई सपा और बीजेपी के बीच थी अन्य दल तो कहीं नजर ही नहीं आ रहे थे।
बसपा – कांग्रेस की स्थित क्या है
कांग्रेस वो राजनीतिक पार्टी है जिसने उत्तर प्रदेश में एक छत्र राज किया है लेकिन पिछले 32 सालों से यूपी की धरती पर कांग्रेस का अस्तित्व का खत्म सा हो गया है जिस उत्तर प्रदेश की जनता ने कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को  कई विधानसभा चुनाव में लखनऊ की गद्दी पर बैठाया हो फिर ऐसा क्या हुआ कि उतनी ही तेजी से उसे उतार दिया और आज कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में ��हीं भी नहीं है कांग्रेस खुद इस बात को जानती और समझती है तो बहुजन समाज पार्टी जिसने 2007 विधानसभा चुनाव में 202 सीटें जीतकर बहुमत की सरकार बनाई थी आज पिछले दो चुनावों से बसपा जनता के मन में जगह नहीं बना पाई है दलितों , ब्राह्मण , और मुस्लिमो कि हितैषी समझी जाने वाली बसपा के पास आज तीनों ही वर्ग के मतदाता छिटक गए और नाराज भी है इस विधानसभा चुनाव में बसपा चमत्कार तो नहीं कर सकती लेकिन किसी पार्टी की डूबती नैया को बचा सकती है ।
SOURCE: https://www.bejagruk.in/election/up-election-2022/up-election-2022-5/
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kisansatta · 5 years ago
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विपक्षी दलों की स्थिति का जो सच सामने आया है, वह चिंताजनक,
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वेद प्रकाश शास्त्री देश में कोरोना महासंग्राम के दौर में राजनीतिक दलों के राजनीतिक जीवन को चमकाने का एक अवसर था, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में विपक्षी दल अपनी इस तरह की सार्थक भूमिका निर्वाह करने में असफल रहे हैं। क्योंकि दलों के दलदल वाले देश में दर्जनभर से भी ज्यादा विपक्षी दलों के पास कोरोना मुक्ति का कोई ठोस एवं बुनियादी मुद्दा नहीं रहा है, देश की जनता के दिलों को जीतने का संकल्प नहीं है, विपक्षी दलों की विडम्बना एवं विसंगतियां ही इन संकटकालीन दौर में उजागर होती रही है।सरकार की नीतियो के विपरीत योजना बनाते रहे लेकिन देश की जनता के बारे में कोई ठासे उपाय सुझाने में कारगर सावित नही हो पाये ।
सवाल यह भी है कि यदि विपक्षी दल एवं नेता मोदी सरकार के कोरोना मुक्ति के प्रयत्नों की आलोचना करने की बजाय कुछ नये उपक्रम जनता को राहत पहु���चाने के करते तो आगामी चुनावों में उन्हें इसका लाभ मिलता। दरअसल कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जब समूचा देश लड़ रहा था तब कांग्रेस और उसके सहयोगी दल आलोचना और अवरोध के नए अवसर खोजने में मशगूल थे। इस समय महाराष्ट्र सर्वाधिक बुर��� दौर में है।
कथनी और करनी में अंतर से विश्वसनीयता घटती है, जो राजनीति अपरिपक्वता का लक्षण है। राजनीतिक दल आत्मीयता से बनता है, संगठन ढांचे से बनता है, व्यवस्था से बनता है। लेकिन आज कांग्रेस में इसका अभाव है। जिस कांग्रेस ने छह दशक तक देश में शासन किया, उसने केवल गांधी परिवार की चिंता की, उनके एजेंडे में न कभी संगठन रहा, न कार्यकर्ता, न भारत रहा न कभी भारत की जनता। और अब तो कोरोना जैसे महासंकट में जनता की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य भी उसके एजेंडे में नहीं है। कुछ अपवाद को छोड़ दें तो, व्यक्ति, वंश और परिवार आधारित सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की स्थिति यही रही है, चाहे बहुजन समाजवादी पार्टी हो, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी हो, तृणमूल कांग्रेस पार्टी हो, समाजवादी पार्टी हो, राष्ट्रीय जनता दल हो, द्रविड़ मुनेत्र कषगम हो या कोई अन्य दल।
कोरोना महामारी के महासंकट की इस घड़ी में भारत के लोकतंत्र के महत्वपूर्ण आधार माने जाने वाले विपक्षी राजनीतिक दलों की भूमिका ने बहुत निराश किया। इस संकट की घड़ी में विपक्षी राजनीतिक दल कहां रहे? क्या इन राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की नजरों में लोकतंत्र का मतलब केवल चुनाव लड़ना और सत्ता में आना है? कोरोना महामारी के प्रकोप का सामना करते हुए हमें लगभग एक सौ पचीस दिन से अधिक हो गए हैं और लाॅकडाउन लगे हुए लगभग पचहतर दिन हो गये। इस दौरान मानवता की सेवा में व्यक्ति, परिवार, समाज, संस्था सभी अपने-अपने स्तर पर लगे हुए हैं, पर इन संकट के क्षणों में विपक्षी दलों ने अपनी कोई प्रभावी एवं सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई है।
संकट की इस घड़ी में आज जब भारतीय लोकतंत्र के बारे में विचार करें तो सहसा मन में आता है कि देश में विपक्ष की क्या स्थिति हो गई है? लोकतंत्र की सफलता के लिए विपक्ष की सबलता भी जरूरी है। पिछले वर्षों में विपक्षी दलों की स्थिति का जो सच सामने आया है, वह चिंताजनक है। आज विपक्ष का जो रवैया है, वह लोकतंत्र के लिए घोर निराशाजनक एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। जबकि मोदी सरकार ने कोरोना के खिलाफ जो युद्ध लड़ा है, उसकी पूरे विश्व में प्रशंसा हुई है।
चुनाव से लेकर सरकार बनाने तक विपक्षी दलों का ध्येय देश की राजनीति को नयी दिशा देने एवं सुदृढ़ भारत निर्मित करने के बजाय निजी लाभ उठाने का ही रहा है। क्या यह बेहतर नहीं होता कि कोरोना महासंकट के समय बिना किसी राजनीतिक नफा-नुकसान के गणित के सेवा ��वं जनकल्याण के कुछ विशिष्ट प्र��ोग एवं प्रयत्न विपक्षी दल करते हुए नजर आते।
बजाय कि ‘लाइक माइंड दलों’ की राजनीतिक गुटबंदी करने के, अपनी जवाबदेही समझने में ये दल अधिक समय लगाते तो देशहित में इनका योगदान अधिक हो पाता और इनकी राजनीतिक स्वीकार्यता बढ़ती। यह वक्त कोरोना पर राजनीति से प्रेरित बयानबाजी करने का नहीं बल्कि साझा लड़ाई लड़ने का था, जिसे सभी राजनीतिक दलों ने खो दिया।
विपक्षी दलों ने इस महात्रासदी के क्षणों में भी मोदी को मात की ही सोच को कायम रखा। ऐसा लग रहा था कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में अब नेतृत्व के बजाय नीतियों को प्रमुख मुद्दा न बनाने के कारण विपक्षी दल नकारा साबित हो रहे हैं, अपनी पात्रता को खो रहे हैं, यही कारण है कि न वे मोदी को मात दे पा रहे हैं और न ही सेवा की राजनीति की बात करने के काबिल बन पा रहे हैं।
इस स्थिति का आम जनता के बीच यही संदेश गया कि विपक्षी दल कोई ठोस राजनीतिक विकल्प पेश करने को लेकर गंभीर नहीं है और उनकी एकजुटता में उनके संकीर्ण स्वार्थ बाधक बन रहे हैैं। वे अवसरवादी राजनीति की आधारशिला रखने के साथ ही जनादेश की मनमानी व्याख्या करने, मतदाता को गुमराह करने की तैयारी में ही लगे रहते है। इन्हीं स्थितियों से विपक्ष की भूमिका पर सन्देह एवं शंकाओं के बादल मंडराने लगे।
यही कारण है कि ये सभी दल आज हाशिये पर हैं और कोरोना काल उनके राजनीतिक जीवन का भी ‘काल’ बनने वाला है। जहां तक कम्युनिस्टों का सवाल है, उन्हें तो भारतीय राष्ट्र की अवधारणा से ही परहेज है। यही कारण है कि देश में कम्युनिस्टों के सभी गढ़ ढह गए हैं, चाहे पश्चिम बंगाल हो या त्रिपुरा। केवल केरल में बचा हुआ है। वहां भी उसका भविष्य कोई बहुत अधिक सुनहरा एवं सुरक्षित नहीं है।
कोरोना संक्रमण के इस कठिन परीक्षा की घड़ी में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व और संगठन ने सेवा की राजनीति का शंखनाद किया, जन-जन में जागृति पैदा की है। पार्टी जनपरीक्षा में न केवल उत्तीर्ण हुई है बल्कि जनता के दिलों में अपनी एक अमिट छाप स्थापित की है। इस सफलता के पीछे पार्टी के जीवनदानी-तपस्वी नेताओं की श्रृंखला का नैतिक समर्थन है जो निश्चय ही मेरुदंड के रूप में कार्य करता है। अगर भाजपा भी अन्य राजनीतिक पार्टियों की तरह वंश, परिवार, व्यक्ति आधारित पार्टी होती तो, कोरोना संकट के इस काल में क्या होता? देश के लोकतंत्र को तो राजनीतिक दलों को ही चलाना है।
विपक्ष की मजबूती ही लोकतंत्र की मजबूती है। विपक्षी नेता के रूप में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अटल बिहारी वाजपे��ी जैसी विभूतियों को आज भी स्मरण किया जाता है। विपक्ष की भूमिका कल भी थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। लेकिन वर्तमान विपक्षी दल अपनी भूमिका को लेकर इतने उदासीन क्यों है? जबकि राजनीति का बहुत सरल गणित है कि जो जितना सक्षम तरीके से विपक्ष की भूमिका निभाता है, वह उतना ही प्रभावी एवं सशक्त तरीके से पक्ष की भूमिका का पात्र बनता है।
कोरोना महाव्याधि के दौर में भी विपक्षी एकता के प्रयत्न हुए, लेकिन ये प्रयत्न किसी सेवा के उद्देश्य से न होकर मोदी की नीतियों एवं कार्यक्रमों को ही कमजोर करने के लिये होते रहे हैं। अहम सवाल यह है कि यदि वाकई इस एकजुटता के पीछे नीयत कोविड की त्रासदी से मुक्ति और जनहित की चिंता थी, तो ये सुझाव और मांग केंद्र की मोदी सरकार से ही क्यों किये गये? जिन राज्यों में इन विपक्षी दलों की सरकारें है, जहां कोरोना ने कहर बरपा रखा है, वहां क्यों नहीं?
विपक्षी दलों के गठबंधन ने वैचारिक, राजनीतिक और आर्थिक आधार पर सत्तारूढ़ दल भाजपा की आलोचना तो व्यापक की, पर कोई प्रभावी विकल्प नहीं दिया। किसी और को दोष देने के बजाय उसे अपने अंदर झांककर देखना चाहिए। लोकतंत्र तभी आदर्श स्थिति में होता है जब मजबूत विपक्ष होता है। आज आम आदमी महंगाई, व्यापार की संकटग्रस्त स्थितियां, बेरोजगारी आदि समस्याओं से परेशान है, ये स्थितियां विपक्षी एकता के उद्देश्य को नया आयाम दे सकती है, क्यों नहीं विपक्ष इन स्थितियों का लाभ लेने को तत्पर होता।
बात केवल विपक्षी एकता की ही न हो, बात केवल मोदी को परास्त करने की भी न हो, बल्कि देश की भी हो तो आज विपक्ष इस दुर्दशा का शिकार नहीं होता। वह कुछ नयी संभावनाओं के द्वार खोलता, देश-समाज की तमाम समस्याओं के समाधान का रास्ता दिखाता, सुरसा की तरह मुंह फैलाती महंगाई, अस्वास्थ्य, बेरोजगारी, आर्थिक असंतुलन और व्यापार की दुर्दशा पर लगाम लगाने का रोडमेप प्रस्तुत करता, कोरोना से आम आदमी, आम कारोबारी को हुई परेशानी को उठाता तो उसकी स्वीकार्यता बढ़ती। व्यापार, अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, ग्रामीण जीवन एवं किसानों की खराब स्थिति की विपक्ष को यदि चिंता है तो इसे उनके कार्यक्रमों एवं बयानों में दिखना चाहिए।
लोकतंत्र का मूल स्तम्भ विपक्ष मूल्यों की जगह कीमत की लड़ाई लड़ता रहा है, तब मूल्यों को संरक्षण कौन करेगा? कोरोना महासंकट के दौर में भी एक खामोश किस्म का ”सत्ता युद्ध“ देश में जारी है। एक विशेष किस्म का मोड़ जो हमें गलत दिशा की ओर ले जा रहा है, यह मूल्यहीनता और कीमत की मनोवृत्ति, अपराध प्रवृत्ति को भी जन्म दे सकता है। हमने सभी विधाओं को बाजार समझ लिया। जहां कीमत कद्दावर होती है और मूल्य बौना। सिर्फ ��त्ता को ही जब राजनीतिक दल एकमात्र उद्देश्य मान लेता है तब वह राष्ट्र दूसरे कोनों से नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तरों पर बिखरने लगता है। क्या इन विषम एवं अंधकारमय स्थितियों में विपक्षी दल कोई रोशनी बन सकती है, अपनी सार्थक भूमिका के निर्वाह के लिये तत्पर हो सकती है?
https://is.gd/Ybgp4D #ItIsWorrying, #TheTruthOfThePositionOfTheOppositionPartiesHasBeenRevealed it is worrying, The truth of the position of the opposition parties has been revealed In Focus, National, Top #InFocus, #National, #Top KISAN SATTA - सच का संकल्प
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onlinekhabarapp · 5 years ago
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चीन के गरिरहेको छ ?
चीनमा कोरोना संक्रमण फैलिरहेका बेला (कोरोना भाइरस प्रकोप संक्रमण संगको युद्धमा लडिरहँदा) केही देशहरु बाहेक प्राय धेरै देशहरु रमिता हेरेर बसे । चीनले अपनाएको बाटो त्यत्ति प्रजातान्त्रिक र समय सान्दर्भिक नभएको (जनताको स्वतन्त्रता हरण गरिएको) भनी कुरा काट्दै मात्र बसिरहे । उनीहरूले महामारी प्रकोपलाई खासै गम्भीर रुपमा लिएनन् ।
एक्कासी ती देशहरुमा पनि महामारी ह्वात्तै बढेपछि मात्रै गम्भीररूपमा लिन थाले कि यो भाइरस कत्तिको खतरनाक हो भनेर ।
चीनले महामारी प्रकोपको महायुद्ध लडिरहेको बेला केही देश पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, जापान, इरान, रुस लगायतका देशले भौतिक तथा नैतिक सहयोग गरे र धेरैले चिनियाँ जनताको मन जित्यो।
अहिले चीनमा कोरोना भाइरस महामारी प्रकोप लगभग नियन्त्रण भइसकेको छ । यही अप्रिल ४ मा कोरोना भाइरस महामारीबाट ज्यान गुमाएका सर्वसाधारण जनता तथा उद्धारमा खटिँदा ज्यान गुमाएका सहिदहरुप्रति देशभरि एकैसाथ हार्दिक समवेदनासहित मौनधारण पनि गरियो ।
यतिबेला विश्व रोइरहँदा कोरोनाको उद्गमस्थल चीन साँच्चै के गरिरहेको छ त ? के चीन पनि पहिले अरु देशहरु जस्तै रमिता हेरेर बसिरहेको छ ? यो जिज्ञासा अन्य देशका नागरिकहरूलाई हुन सक्छ ।
यदि विश्वले चीन यतिबेला सुतेर रमिता हेरिरहेको छ भनेर दोष लगाउँछ भने त्यो उनीहरु आफैंमा उब्जिएको भ्रम हुनेछ।
योबेला चीन पहिले आफूलाई सहयोग गर्ने देशहरुको गुण मात्रै तिरिरहेको छैन । आफूले सिकेको अनुभवहरु विश्वलाई बाँड्न आतुर छ र बाँडिरहेको छ । चीनबाट सबैभन्दा पहिला विज्ञसहितको सहयोगी टोली इरानमा पठाएको थियो । त्यसपछि युरोपको इटाली, स्पेन, एसियाको पाकिस्तान, क्याम्बोडिया, फिलिपिन्स, दक्षिण अमेरिकाको भेनेजुएला लगायतका देशहरुमा पनि विज्ञसहितको सहयोगी टोली पठाइसकेको छ। चीनले मानवीय क्षति न्यूनीकरण गर्नमा महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह गरिरहेको छ ।
अहिले चीन कोरोना भाइरस प्रकोपका कारण झन्डै ४ खर्ब अमेरिकी डलर बराबरको घाटाबाट सिथिल भएको आफ्नो अर्थतन्त्रलाई उकास्न लागि परिरहेको छ । रात दिन नभनी काम गरिरहेको छ । चीनमा लगभग ९५ % कामदारहरु काममा फर्किसकेका छन् भने त्यति नै प्रतिशत फ्याक्ट्रीहरुले उत्पादन गरिरहेको छ ।
बिशेष गरी यो बेलाको विश्व बजार��ो मागलाई ध्यानमा राखी धेरैजसो गैरमेडिकल फ्याक्ट्रीहरु मेडिकल मास्क बनाएर बितेका दुइ तीन महिनाको घाटा पूर्ति गरी केही हदसम्म नाफा आर्जन गर्न अग्रसर छ । २०२० अप्रिल पहिलो साता सम्म आइपुग्दा चीनले विश्वबजारमा ३ सय देखि ४ सय करोड मेडिकल मास्कको मात्रै व्यापार गरिसकेको छ । जसमा इटालीले मात्रै झन्डै २ करोड २० लाख मेडिकल मास्क चीनबाट किन्यो ।
यतिबेला विश्वमा शायद एउटा मात्र देश नाफामा गइरहेको छ र त्यो देश चीन हो भन्दा फरक नपर्ला ।
चीनबाट निर्यात भएका मेडिकल सामग्रीहरुका गुणस्तरको बारेमा केही देशमा भने विवाद पनि भयो । पच्छिलो समय नेदरल्याण्ड सरकारले चिनियाँ मेडिकल सामग्रीको गुणस्तर कम भएको भनी प्रश्न उठाएपछि चिनियाँ संचार जगतमा यसले ठुलै तरङ्ग उत्पन्न गरायो । जसमा, चीन सरकारलाई यसको उत्तर दिनसमेत लगाइयो ।
नेपालमा पनि चीनबाट लगिएको मेडिकल सामग्रीको गुणस्तर बारेमा प्रश्न उठाइएको छ । यो काण्डमा नेपाल पक्ष या चीनियाँ पक्ष को दोषी छ ? भनेर चिनियाँ सरकारको बिशेष मेडिकल टोलीले अध्यन गरी नै रहेको होला ।
अहिले चीन सरकारले विदेशमा रहेका चिनियाँ दूतावासको माध्यमबाट ती देशमा रहेका आफ्ना जनतालाई मेडिकल सामग्री उपहारस्वरुप वितरण गरिरहेको छ । यसको अलावा, उक्त देशलाई तत्कालै आवश्यक पर्ने मेडिकल सम्बन्धी सामग्रीहरु उपहार दिएर स्थानीय जनताको मन जित्न पनि सफल भइरहेको छ ।
यहाँ स्वदेशमा रहने जनताहरुले भने चीन सरकारले विश्व संकटमा आफ्नो अब्बलपन प्रमाणित गर्न सफल भएकोमा गर्व गरिरहेका छन् ।
यति बेला केही चीनियाँ नागरिकहरूले वोईपो, क्यू क्यू , वि च्याट आदि जस्ता सामाजिक संजालमार्फत धनी देशहरुले पैसा तिरेर मेडिकल सामग्री खरिद गर्न सक्ने भएकाले उनीहरूलाई चीन सरकारले उपहार स्वरुप दिनुहुन्न । यदि उपहार स्वरुप दिने नै हो भने अर्थतन्त्र कमजोर भएको देशहरुलाई दिनुपर्छ भन्ने गुनासो पनि पोखिरहेका छन्।
उहान सहरमा कोरोना भाइरसले प्रताडीतहरुलाई सहयोग गर्ने संघ–संस्थाहरु यतिखेर आफ्नो च्यानलबाट विश्वका विभिन्न देशमा सहयोग गरिरहेका छन् । जसमा ज्याक मा फाउन्डेसन र आलिबाबा समूह, चिनियाँ अन्तरास्ट्रिय सांस्कृतिक प्रचार केन्द्र अग्रपंक्तिमा उभिएर चीनको प्रतिनिधित्व गरिरहेका छन् ।
अप्रिल पहिलो सातासम्म नेपालले पनि झन्डै ५ टन बराबरको विभिन्न मेडिकल सामाग्रीहरु सहयोगका रुपमा प्राप्त गरिसकेको छ । जसमा झन्डै १ लाख प्रति मेडिकल मास्क मात्रै रहेको छ ।
विश्व स्वास्थ संगठनले कोरोना महामारी प्रकोपका कारण विश्वभर ९० प्रतिशत अर्थात् १ करोड ५० लाखभन्दा बढी बिद्यार्थीहरु प्रभावित भएको भनिरहँदा चीन भने वि��्तारै विद्यालय जीवनमा फर्किन खोजिरहेको छ । राजधानी बेइजिङ र कोरोना भाइरस उद्गम स्थल हुपेइ प्रान्त बाहेक अरू प्रान्त तथा स्वशाशित क्षेत्रहरुले अप्रिल महिनाको दोस्रो सातादेखि आंशिक या पूर्णरुपमा विद्यालय खोल्ने भइसकेका छन् ।
जनावरी अन्तिम साताबाट पूर्ण रुपले बन्द भएको नयाँ कोरोना भाइरस उद्गम सहर उहान पनि झन्डै सवा दुइ महिनापछि अप्रिल ८ बाट खुल्ला गरिएको छ । बेइजिङ् लगायत देश भरिका मूख्य पर्यटकीय स्थलहरु पनि यहि महिनाको सुरुदेखि बिस्तारै खुल्ने क्रममा छ।
चीनको व्यवस्थापन प्रणालीलाई देख्दा अहिले धेरै देशमा चीनको प्रशंसा भइरहेको छ । यसबेला विश्वले नै चीनको सहयोगको अपेक्षा गरिरहेको छ । यहीँबाट सबैले बुझ्नुपर्छ कि एउटा देशमा आइपरेको समस्या विश्वभरिको समस्या हो ।
त्यसैले एक अर्कालाइ दोषारोपन गर्नुभन्दा सहयोग गरेर समस्या हल गर्न अग्रसर भयौँ भने विश्व संकटमा गाँजिनुपर्दैन ।
(राई हाल बेइजिङ्गमा अध्यनरत छन्)
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airnews-arngbad · 7 years ago
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Regional Marathi Text Bulletin, Aurangabad Date – 29 January 2018 Time 6.50 AM to 7.00 AM
आकाशवाणी औरंगाबाद प्रादेशिक बातम्या दिनांक २९ जानेवारी २०१८ सकाळी ६.५० मि. ****  संसदेच्या अर्थसंकल्पीय अधिवेशनास आजपासून प्रारंभ; गुरूवारी अर्थसंकल्प सादर होणार  विकलांग कर्मचाऱ्यांसाठीचं आरक्षण चार टक्के करण्याचा निर्णय; मानसिक आजार, बौध्दिक विकलांग आणि ॲसिड हल्ल्याचे बळी ठरलेल्यांना केंद्र सरकारच्या नोकरीत आरक्षण मिळणार  प्रजासत्ताक दिनाच्या पथ संचलनात महाराष्ट्राच्या चित्ररथाला पहिला क्रमांक आणि  ऑस्ट्रेलियन खुल्या टेनिस स्पर्धेच्या मिश्र दुहेरीत भारताचा रोहन बोपन्ना आणि इंडोनेशिया मास्टर्स बॅडमिंटन स्पर्धेत सायना नेहवालला उपविजेते पद **** संसदेचं अर्थसंकल्पीय अधिवेशन आजपासून सुरु होत आहे. आज सकाळी ११ वाजता राष्ट्रपती रामनाथ कोविंद यांच्या अभिभाषणानं अधिवेशनास प्रारंभ होईल. त्यानंतर आर्थिक सर्वेक्षण सादर केलं जाईल. येत्या गुरुवारी एक फेब्रुवारीला सन २०१८-१९ चा अर्थसंकल्प सादर केला जाणार आहे. अधिवेशनाचं हे पहिलं सत्र नऊ फेब्रुवारीपर्यंत चालणार आहे. त्यानंतर एक महिन्याच्या सुटीनंतर ५ मार्च रोजी अधिवेशन पुन्हा सुरू होईल आणि ते ६ एप्रिलपर्यंत चालेल. या काळात तिहेरी तलाक विधेयक आणि मागासवर्ग आयोगाला वैधानिक दर्जा देणारं विधेयक मंजूर करण्याचा सरकारचा प्रयत्न राहील. दरम्यान, अर्थसंकल्पीय अधिवेशनात सहकार्य करण्याचं आवाहन पंतप्रधानांनी विरोधी पक्षांना केलं आहे. अधिवेशनाच्या पार्श्वभूमीवर सरकारनं सर्वपक्षीय बोलावली होती. या बैठकीनंतर संसदीय कार्यमंत्री अनंतकुमार यांनी वार्ताहरांना माहिती दिली. ही बैठक जवळ��ास दोन तास चालली. सरकार कोणत्याही मुद्यावर चर्चा करण्यास तयार असल्याचं त्यांनी सांगितलं. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन यांनी बोलावलेल्या बैठकीत सभागृहाचं कामकाज सुरळीत चालवण्यासाठी सहकार्य करण्याचं आश्वासन सर्व पक्षांनी दिलं असल्याचं त्यांनी सांगितलं. **** विकलांग कर्मचाऱ्यांसाठीचं आरक्षण सध्याच्या तीन टक्क्यांवरून चार टक्के करण्याचा निर्णय केंद्र सरकारनं घेतला आहे. यामध्ये स्वमग्न, मानसिक आजार, बौध्दिक विकलांगता आणि ॲसिड हल्ल्याचे बळी असलेल्यांना यापुढे केंद्र सरकारच्या नोकरीत आरक्षणाचा लाभ देण्यात येणार आहे. कार्मिक आणि प्रशिक्षण विभागानं सर्व केंद्रीय विभागांना याबाबतची सूचना जारी केली आहे. विकलांगता अधिकार अधिनियम २०१६ पारित झाल्यावर हा निर्णय घेण्यात आला. केंद्र सरकारच्या नोकरीत प्रत्येक पदाच्या एक टक्के भाग दृष्टीबाधित, कर्णबधीर, प्रमस्तिष्काघात - सेरेब्रल पालसी सारखी शारीरिक स्नायू दुर्बलता, कुष्ठरोगांमधून बरे झालेले आणि ॲसिड हल्ल्याचे बळी यांच्यासाठी राखीव ठेवण्याचे निर्देश या विभागानं दिले आहेत. **** कालबाह्य असलेली प्रत्येक गोष्ट सोडून देत, आवश्यक तिथे सुधारणांचा स्वीकार केला पाहिजे, असं पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी म्हटलं आहे. आकाशवाणीवरुन प्रसारित झालेल्या मन की बात कार्यक्रमात ते काल बोलत होते. या मालिकेचा चाळीसावा भाग काल प्रसारित झाला. सुधारणा घडवून आणणं ही भारताची परंपरा असून, कुप्रथांचं समाजातून समूळ उच्चाटन करण्याची प्रतिज्ञा आपण सगळ्यांनी करावी, असं ते म्हणाले. स्वच्छ भारत अभियानाबद्दल सांगताना पंतप्रधानांनी अकोल्यातल्या मोरणा नदी स्वच्छता उपक्रमाचा गौरवपूर्ण उल्लेख केला. ३० जानेवारी ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी यांची पुण्यतिथी असून, त्यांनी सांगितलेल्या मार्गावरुन पुढे जाण्याचा संकल्प करणं, यापेक्षा मोठी श्रद्धांजली त्यांना होऊ शकणार नाही, असं पंतप्रधान म्हणाले. **** प्रजासत्ताक दिनानिमित्त राजपथावरील पथ संचलनात महाराष्ट्राच्या 'छत्रपती शिवाजी महाराज राज्याभिषेक सोहळा' या संकल्पनेवर आधारित चित्ररथाला पहिला क्रमांक मिळाला आहे. काल नवी दिल्लीत झालेल्या समारंभात संरक्षण मंत्री निर्मला सीतारमण यांच्या हस्ते, महाराष्ट्र सांस्कृतिक संचालनालयाचे संचालक संजय पाटील यांना हा पुरस्कार प्रदान करण्यात आला. पथ संचलनात विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम सादर करण्यात आले होते, यामध्ये नागपूरच्या दक्षिण-मध्य केंद्राला प्रथम पुरस्कार देऊन गौरवण्यात आलं. प्रजासत्ताक दिनानिमित्त राष्ट्रीय रंग शाळेत झालेल्या आंतरराज्यीय नृत्य स्पर्धेत महाराष्ट्राच्या पथकानं प्रथम ��्रमांक मिळवला. **** २०१९ ची निवडणूक शिवसेना स्वबळावर लढवणार असली तरी भारतीय जनता पक्ष हा तिचा सहयोगी पक्ष शिवसेनेला असं करू देणार नाही असं मत, माजी मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण यांनी, व्यक्त केलं आहे. ते काल मुंबईत पीटीआय या वृत्तसंस्थेशी बोलत होते. भाजप यासाठी आपली सर्व राजकीय ताकद पणाला लावेल असंही त्यांनी पुढं नमूद केलं. ***** हे बातमीपत्र आकाशवाणीच्या औरंगाबाद केंद्रावरून प्रसारित केलं जात आहे. आमचं हे बातमीपत्र न्यूज ऑन एआयआर डॉट कॉम या संकेतस्थळावरही उपलब्ध आहे. **** देशभरात काल सर्वत्र पोलिओ लसीकरण मोहीम राबवण्यात आली. मराठवाड्यातल्या सर्व आठही जिल्ह्यात ही मोहिम यशस्वीपणे राबवली गेली. **** महाराष्ट्र टंचाई मुक्ती तसंच दुष्काळमुक्तीकडे वाटचाल करत असल्याचं, राज्याचे जलसंधारण मंत्री राम शिंदे यांनी म्हटलं आहे. काल औरंगाबाद इथं आयोजित ११व्या गुणीजन साहित्य संमेलनात ते बोलत होते. ज्येष्ठ कवी फ.मुं शिंदे यांच्या हस्ते या संमेलनाचं उद्घाटन झालं. यावेळ��� ज्येष्ठ शास्त्रीय संगीत गायक पंडित नाथराव नेरळकर यांना जीवन गौरव पुरस्कार प्रदान करण्यात आला. महेश लोंढे, लक्ष्मी चव्हाण, एकनाथ पांडवे तसंच इंद्रजित घुले यांना यावेळी धोंडिराम माने साहित्य पुरस्कार,तर संजय झट्टू, वंदना मुळे तसंच सुभेदार बाबुराव पेठकर यांना गंगाबाई माने सामाजिक कृतज्ञता पुरस्कार प्रदान करण्यात आले. **** मातंग समाजानं लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे महामंडळाच्या माध्यमातून घेतलेल्या कर्जाची परतफेड करून स्वाभिमानानं जगण्याचं आवाहन सामाजिक न्याय राज्यमंत्री दिलीप कांबळे यांनी केलं आहे. क्रांतीगुरू लहुजी साळवे विकास परिषदेच्या वतीनं काल औरंगाबाद इथं आयोजित राज्यस्तरीय मातंग समाज मेळाव्यात ते बोलत होते. विधानसभा अध्यक्ष हरिभाऊ बागडे, परिषदेचे संस्थापक अध्यक्ष उत्तमराव कांबळे यांच्यासह अन्य मान्यवर यावेळी उपस्थित होते. माजी आमदार किशनचंद तनवाणी, यांच्यासह सहा जणांना क्रांतीगुरू लहुजी साळवे समाज गौरव पुरस्कार यावेळी प्रदान करण्यात आले. **** ऑस्ट्रेलियन खुल्या टेनिस स्पर्धेच्या मिश्र दुहेरीत भारताचा रोहन बोपन्ना आणि त्याची जोडीदार टेमिया बाबोस जोडीला उपविजेतेपदावर समाधान मानावं लागलं. काल या गटाच्या झालेल्या चुरशीच्या अंतिम सामन्यात क्रोएशियाच्या मॅट पॅविच आणि कॅनडाच्या गॅब्रिएला दाब्रोव्हस्की जोडीनं बोपन्ना बाबोस जोडीचा पराभव केला. दरम्यान या स्पर्धेच्या पुरुष एकेरीत स्वित्झर्लंडचा र��जर फेडरर अजिंक्य ठरला आहे. काल झालेल्या चुरशीच्या अंतिम सामन्यात फेडररनं क्रोएशियाच्या मरिन सिलिकचा पराभव करत, या स्पर्धेचं अजिंक्यपद सहाव्यांदा पटकावलं. फेडररचं हे कारकिर्दीतलं वीसावं ग्रॅण्डस्लॅम अजिंक्यपद आहे. **** जकार्ता इथं काल झालेल्या इंडोनेशिया मास्टर्स बॅडमिंटन स्पर्धेत भारताच्या सायना नेहवालला उपविजेते पदावर समाधान मानावं लागलं. अंतिम फेरीत तिचा चीनी तैपेईच्या ताइ जू यिंगनं पराभव केला. **** उस्मानाबाद जिल्ह्यातल्या तुळजापूर इथं नेहरु युवा केंद्राच्या जिल्हास्तरीय युवा पुरास्कारांचं वितरण काल आमदार सुजितसिंह ठाकूर यांच्या उपस्थितित करण्यात आलं. जिल्ह्यातल्या युवतींचा सहभाग असलेल्या वैयक्तिक, सामुहीक नृत्य स्पर्धेचही आयोजन केंद्रातर्फे करण्यात आलं होतं. **** उस्मानाबाद जिल्ह्यात मुख्यमंत्री ग्रामसडक योजनेंतर्गत जवळपास ६७ किलोमीटर स्त्यांच्या कामांसाठी निधी मंजूर झाला आहे. यात खामसवाडी-देवळाली, उस्मानाबाद ते झरेगाव, शेकापूर ते धारुर यासह अन्य तीन अशा एकूण सहा विविध ठिकाणच्या मार्गांचा समावेश आहे. **** बीड जिल्ह्यातल्या परळी उपजिल्हा रूग्णालयात काल एका नऊ महिन्याच्या बालिकेस बुस्टर डोस दिल्यानं तिचा मृत्यु झाल्याची घटना घडली. डोस दिल्यानंतर दुध पिल्यावर काही वेळातच या बालिकेचा मृत्यु झाल्याचं तिच्या नातेवाइकांनी सांगितलं असल्याचं आमच्या वार्ताहरानं कळवलं आहे. **** सरकारनं जातीच्या आधारावर मदत न करता ती आर्थिक निकषांवर करावी असं मत माजी केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटील चाकूरकर यांनी व्यक्त केलं आहे. काल उदगीर इथं त्यांच्या हस्ते डॉ. ना.य.डोळे स्मृती पुरस्कार आमदार कपिल पाटील यांना प्रदान करण्यात आला त्यावेळी ते बोलत होते. स्वार्थापोटी स्वतंत्र धर्माची मागणी केल्यापेक्षा सर्वव्यापी विचार रूजणं महत्त्वाचं असल्याचं म्हणाले. **** बीड जिल्ह्यातल्या किल्ले धारूरच्या ऐतीहासिक किल्ल्यात वीस गावच्या पाच हजार नागरिकांनी एकत्र येत काल महास्वच्छता मोहीम राबवली. ४० एकरात असलेल्या या किल्ल्यात ३८ पथकांनी किल्ल्याचा प्रत्येक भाग स्वच्छ केला. **** नांदेड जिल्ह्यातल्या माहूर इथं वनपरिक्षेत्र कार्यालयाजवळच्या रामगड किल्ला परिसरातल्या जंगलाला आग लागून मोठ्या प्रमाणात वनसंपदा काल जळाली. यात काही वन्यजीवांचा होरपळून मृत्यू झाला असण्याची शक्यता वर्तवण्यात येत आहे. या भागात जाण्यासाठी रस्ता नसल्यानं अग्निशमन दलाला आग विझवण्यात अडचण झाली होती. ***** ***
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onlinekhabarapp · 5 years ago
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यमपञ्चकको पाँच दिन : आज भैलो, भोलिबाट देउसी
हामी तिहार अर्थात् यम पञ्चक मनाइरहेका छौं । आज यमपञ्चकको तेस्रो दिन अर्थात् लक्ष्मी पूजा । मखमली र सयपत्री फक्रिएसँगै सुरु भएको तिहारको हामी मध्यमा आइपुगेका छौं । सयपत्रीको पत्ता जस्तो कैयौं महत्वले भरिएको यो पर्व आधुनिकताको चेपाईले अपभ्रंश हुँदै गएको छ । संस्कृति संरक्षणको नाममा गरिने भद्दा प्रदर्शनले हाम्रो संस्कृति संरक्षण होइन अपभ्रंस हुँदै गएको छ । यसमा सबै पक्ष सचेत हुनुपर्ने देखिन्छ ।
तिहारको महत्वलाई दृष्टिगत गर्��ा यो पर्व सांस्कृतिक, दार्��निक र सामाजिक महत्वले भरिपूर्ण पर्व हो । यम भनेको अष्टांग योगको पहिलो अंग हो । शाब्दिक अर्थ हेर्ने हो भने यम भनेको अनुशासन वा नियन्त्रण हो । त्यसैले यो पाँचदिन हामी विशेष किसिमको नियममा बस्नुपर्छ । दुखद् पक्ष यो छ कि यही पाँच दिनको नियम समेत पछिल्लो समय अपभ्रंस हुँदै गएको छ ।
हामी तिहारलाई जनाउनको लागि शुभ दीपावली भन्ने शब्द प्रयोग गर्छौं । यो शव्द आफैंमा अपूर्ण छ । यमपञ्चकको पाँच दिन मनाईने पर्व तिहार हो । यो कात्तिक कृष्ण त्रयोदशीदेखि पाँच दिनसम्म चल्ने गर्छ । त्यसको एउटा भाग वा एक दिन हो दीपावली । त्यसैले तिहारको महत्वलाई घटाउने गरी यसलाई संकुचित रुपले परिभाषा गर्नु राम्रो होइन ।
तिहार भन्ने शव्द हिन्दी शब्द त्यौहारसँग मिल्दोजुल्दो छ । हिन्दीमा त्यौहारले सबै पर्वहरुलाई जनाउने गर्छ भने नेपालीमा भनिने तिहार शब्द केवल यही उमंग र उज्यालो पर्वको विशेष नाम हो । त्यसैले यसलाई हामीले दीपावली होइन तिहार भन्नुपर्छ । जस्तो हामी दशैंलाई विजयादशमी भन्ने गर्छौं । त्यो पनि एक किसिमले गलत अभ्यास हो । त्यो बडादशैं हो । त्यसको १० दिन सबै हाम्रोलागि महत्वपूर्ण छ न कि विजयादशमी एकदिन मात्रै । त्यसैले तिहारलाई शाब्दिक संकुचनको शिकार गराउनु किमार्थ उचित होइन ।
यमपञ्चकको पाँच दिन : भिन्दा भिन्दै महत्व
धार्मिक, सामाजिक र वैज्ञानिक रुपले समेत विशेष छ, हाम्रो तिहार । धार्मिक रुपले हेर्दा असुर रा��ा बलीको दबदबाबाट देवतालाई मुक्त गराएको पर्व हो यो । साथमा लक्ष्मीलाई प्रसन्न गराएर समृद्धि हाँसिल गर्ने पर्व पनि यही हो । सामाजिक घटनाक्रम वा समाजशास्त्रीय दृष्टिले हेर्दा मानिसको विकासक्रमको प्रतीक हो तिहार । सामाजिक रुपमा हेर्दा दिदीबहिनी एवं दाजुभाइबीचको घनिष्टताको चार्ड पनि हो ।
ॐकार परिवार भित्र रहेका विभिन्न धर्मको लागि विशेष रहेको यो पर्वलाई दार्शनिक रुपले हेर्दा हाम्रो अज्ञानताको अन्धकारलाई ज्ञानको ज्योतिले विस्थापित गर्ने पर्व पनि तिहार हो । तर, यही महत्वलाई आधुनिकताको विकाससँगै हामीले भुल्दै गएका छौं ।
तिहारको पाँच दिन हरेक कोणबाट भिन्न र विशिष्ट छ । तिहारको पहिलो दिन काग तिहार चतुर पक्षी कागको पूजा गरेर मनाउने गर्दछौं । पौराणिक रुपमा कागलाई हामी यमराजको दूत मान्छौं । त्यसैले कागले ल्याएको समाचार राम्रो होस् भन्नको लागि सबैभन्दा पहिले कागलाई पूजा गर्ने चलन छ । समाजशास्त्रीय रुपमा हेर्दा कागलाई घुमन्ते युगको प्रतीक हो । त्यही घुमन्ते युगको प्रतिक स्वरुप हामी पहिलो दिन काग तिहार मनाउने गर्दछौं ।
दोस्रो दिन हामी कुकुर तिहार मनाउँछौं । यसको पनि आफ्नै महत्व छ । कुकुर भैरवको बाहन हो । कुकुरले नै सत्यवादी राजा युधिष्ठिरलाई स्वर्ग पुर्‍याएको धार्मिक मान्यता छ । त्यसैले कुकुरको पूजा गरेमा नर्कको यातनाबाट मुक्ति पाउने धार्मिक विश्वास बोकेर नै हामी यो तिहार मनाउने गर्छाैं । यही कुकुर तिहारको दिन पर्ने चतुर्दशीलाई नरक चतुर्दशी पनि भन्ने गरिन्छ ।
समाजशास्त्रीय दृष्टिले हेर्दा यो शिकारी युगको प्रतीक हो । कुकुर स्वभावैले आँटिलो स्वभाव भएको पशु हो । त्यसैले पहिले पहिले शिकार खेल्न जाँदा पनि कुकुरलाई साथमा लिएर जाने गरिन्थ्यो । त्यसैले यो पर्व घुमन्ते युगसँग जोडिएको छ ।
तिहारको तेस्रो दिन लक्ष्मी पूजा मान्ने गरिन्छ । सोही दिन गाईको पनि पूजा गरिने भएकोले यसलाई गाईतिहार पनि भन्ने गरिएको छ । धनधान्यकी देवी लक्ष्मीलाई यस दिन खुशी बनाउन सकेको खण्डमा धनधान्यले पूर्ण हुने धार्मिक विश्वास छ । समाजशास्त्रीय मतलाई मान्ने हो भने यो दिन पशुपालनको युग सुरु भएको दिनको प्रतीक हो ।
पहिले शिकार गरेर मांस खानेहरुले यी पशुपंक्षीहरुलाई पालेर उनीहरुको दूधबाटै परिकार बनाएर खान सकिन्छ भन्ने सोचको विकास भयो । यो दिन मनाइने विभिन्न किसिमका रितिरिवाजहरुको आ-आफ्नै महत्व छ । त्यसैले यो पर्व पनि समाज विकास र सभ्यताको विकासक्रमसँग जोडिएको पर्व हो ।
यम पञ्चकको चौथो दिन हामी गोबर्द्धन पूजा गर्छाैं । यो पूजाको धार्मिक महत्व श्रीकृष्णले इन्द्रको घमण्ड मार्नको लागि गोबर्द्धन पर्वत उचालेर बृजबासीहरुको रक्षा गरेको घटनासँग सम्बन्धित छ । यो दिन हामी गोरुको पूजा गछौं । यो तिहारले हामी कृषिको युगमा प्रवेश गरेको र कृषि कार्यमा सहयोगी गोरुलाई पनि पूजा गर्ने प्रचलन सुरु भएको कुरालाई जनाउँछ ।
  त्यस्तै, यमपञ्चकको पाँचौं दिन हामी मान्छे कै पूजा गर्ने गर्छाैं । धार्मिक रुपमा हेर्दा एकातर्फ वैदिक किंवदन्ती भिन्न किसिमको छ भने यसको बारेमा पौराणिक कथा भिन्न छ । ऋग्वेदको यमयमी सूक्तले दाजुबहिनीबीचको पवित्र सम्बन्धको व्याख्या गर्दै सोही दिनदेखि भाइटीकाको सुरुवात भएको संकेत गरेको छ । पौराणिक कहानीमा यमराज र यमुनाको प्रसंग जोडिएको छ । समाजशास्त्रीय हिसाबले हेर्दा यो दिनले सभ्य समाजको सुरुवात भएको दिनलाई प्रतिनिधित्व गरेको छ । त्यसैले यो पर्वमा आउने ५ वटै दिनको आ-आफ्नै र विशेष महत्व रहेको छ ।
औंशीको दिन भैलो, प्रतिपदादेखि देउसी
हिजोआज देउसी भैलोको परम्परामा निकै परिवर्तन आएको छ । मेमेरी कार्डमा रेकर्ड गरेर देउसी खेल्ने चलन दुखद् कुरा हो । यो चलनले मादलको तालमा परम्परागत देउसी भाकामा गीत गाउने चलन हराउँदै गएको छ । हिजोआज काठमाडौंमा लक्ष्मी पूजाको दिन नै देउसी खेलिन्छ । भैलोको चलन हराईसकेको छ । यो दुखद् हो । हाम्रो ऐतिहासिकतालाई स्वीकार्ने हो भने देउसी औंशीको दिन खेल्ने नै होइन । यो दिन भैलो खेल्ने हो प्रतिपदाको दिनदेखि देउसी खेल्न सुरु गर्ने हो ।
तर, अहिले मादलको तालमा गाइने देउसी भाका हराउँदै गएका छन् । अरुको गीतमा आधुनिक नाच नाचेर खेलिने देउसी संस्थाको कोष बढाउने च��ँजो मात्रै भएको छ । यसले हाम्रो संस्कृति जोगाउन सक्दैन । त्यसैले औंशीको दिन सभ्य र सुसंस्कृत भएर परम्परागत भाकामा भैली खेल्ने र भोलिपल्टदेखि देउसी खेल्नुपर्छ ।
देउसीको सुरुवातको विषयले पनि यसलाई पुष्टि गर्छ । जुम्लाका राजा बलीले देउसी सुरु गरेको भन्ने किंवदन्ती पाइन्छ । जसका अनुसार उनले देवदास देवदासीहरुलाई मागेर खान अनुमती दिएका थिए । त्यो बेला देवदासीहरु औंशीको दिन भैली खेल्न गए । देवदासहरु त्यसको भोलिपल्टदेखि देउसी खेल्न गए । यसरी भैली महिलाहरुकोलागि र देउसी पुरुषहरुको लागि नाच्ने विशेष नाचको रुपमा विकास भएको हो ।
भाइटीकाको प्रसंग र यमयमीको कथा
पौराणिक पक्षलाई केलाउँदा यमुनाले यमराजलाई कहिलै पनि नसुक्ने तेलको घेरो लगाएर टीका लगाएको उल्लेख पाइन्छ । यो कथा धेरै चर्चित छ । तर, वैदिक मान्यतालाई आधारमान्दा यो पर्वको लागि भिन्न किसिमको कथा पाइन्छ । ऋग्वेदको यमयमी सूक्तमा दाजु यम र बहिनी यमीको कथा उल्लेख गरिएको छ ।
यो सूक्तका अनुसार एक जुम्ल्याहा दाजु बहिनी यम र यमी थिए । उनीहरु उमेरले परिपक्व हुँदै जाँदा बहिनी यमीले दाजु यमसँग एक अर्काबीच वैवाहिक सम्बन्धमा बाँधिनको लागि प्रस्ताव गरिन् । त्यतिबेलाको चलन चल्ती नै त्यस्तै थियो कि ? त्यही बेलामा दाजु यमले बहिनीलाई विवाहको अर्थ यौन सम्पर्क समेत रहेको र विकसित मानव जातिले यौनको मामलामा सचेत हुनै पर्ने सुझाव दिएका थिए ।
उनले दाजु र बहिनीको आदर्शको बारेमा बहिनी यमीलाई पाठ पढाएका थिए । ‘तिमी एउटा लहरोले रुखलाई बेरेको जस्तै नयाँ परपुरुषलाई वरण गर भनेर’ यमले उन्नत मानव समाजको बारेमा ज्ञान दिएका थिए । साथमा कात्तिक शुक्ल द्वितीयाको दिन उनले बहिनी यमीबाट टीका र माला समेत लगाएर नयाँ किसिमको चलन बसाएका थिए ।
बत्तीमा बिर्सिएको संस्कृति
कात्तिकको त्यो पनि आमावश्याकै दिन किन यो उज्यालो पर्व मनाईयो ? यसको पनि छुट्टै महत्व छ । तर, हामीले यो महत्वलाई बिर्सिँदै गएका छौं । पहिलेको टुकी बत्ती बिस्थापित गरेर हामीले बिजुली बत्तीको चलन ल्यायौं । यो समयको आवश्यकता भएकोले ठिक हो । तर, दीपावलीको उज्यालोको महत्व मैनबत्ती र बिजुली बत्तीले पूरा गर्न सक्दैन । अहिले तिहारको दिनमा बिजुली बत्ती बालेर तिहार मान्ने गरेको पाइएको छ ।
यो हाम्रो प्राचीन परम्परा हुँदै होइन । हाम्रो प्राचीन संस्कृतिलाई जोगाउने हो भने बिमिरोको खोचीमा नै बत्ती किन नबाल्ने ? हाम्रो चलन त त्यही नै हो । पछि गाउँघरमा हुनेखानेहरुले तामाको दियोमा कपासको बत्ती बालेर तिहारमा झिलिमिली बनाउने थाले । अहिले पनि कसैकसैले माटोको पालामा बत्ती बाल्ने गरेका छन् । तर, हाम्रो बास्तविकता तामा र माटोको दियोमा पनि भेटिँदैन । त्यो त बिमिरोको पातले बनेको खोचीले बोक्ने गरेको छ । त्यो बत्ती पनि कहाँ कहाँ बाल्ने ? भन्ने छुट्टै महत्वको विषय हो । यस्तो खोचीमा बत्ती बालेर एउटा बत्तीलाई गौरेटो (गाग्री राख्ने ठाउँमा) राखिन्छ । अर्काे दुईवटा बत्ती संघारमा बालिन्छ । एउटा ��िकीमा, एउटा जाँतोमा र एउटा दोबाटोमा बाल्ने गरिन्छ ।
पहिले पहिले बिमिरोको खोचीमा बत्ती बाल्नेहरुहरुको पनि महत्व छुट्टै छ । त्यो खोचीमा तिलको तेलले बत्ती बाल्ने चलन थियो । बिमिरोको खोची जहाँ भन्यो त्यहीँ नअट्ने भएकोले त्यसलाई पाएसम्म गाईको गोबर, नपाए गोरुको र त्यो पनि नभएमा माटोमाथि राखेर बाल्ने गरिन्थ्यो । निघण्टु शास्त्रमा द्रव्य गुण भन्ने हुन्छ । त्यहाँ बिमिरोको खोचीमा चौरीको घिउले बालेको बत्ती राख्दा आँखाको ज्योति बढ्छ भन्ने मान्यता छ । आँखाको तेजलाई राम्रो गराउने र त्यसमा भाइरस हटाउने एन्टिबायोटिक पाइने भएकोले पनि बिमिरोको महत्व बढ्ने गरेको हो । त्यसैले यसको महत्व बढ्दै गएको पाइन्छ ।
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानका उपकूलपति एवं संस्कृतिविद् डा. गुरुङसँग गरिएको कुराकानीमा आधारित
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vibudhah · 6 years ago
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संवाद सहयोगी, कादियां : कादियां नगर में विप्र संघ भारत द्वारा नौ दिन की कार्यशाला का समापन हो गया। 25 दिसंबर से आरंभ हुई इस कार्यशाला के समापन कार्यक्रम में दैनिक प्रार्थना सभा बटाला से मुख्य अतिथि के रूप में ज¨तदर नाथ शर्मा तथा उनके सहयोगी सोहन लाल प्रभाकर जी उपस्थित हुए। उनके आने पर विप्र संघ की सभापति विनोद कुमारी शर्मा, अध्यक्ष पूजा तिवारी, उपाध्यक्ष नीरज बाला, मानवधिकार विभाग के सचिव अभिषेक भट्टी, सांस्कृतिक विभाग के सचिव ओमकार शास्त्री, समाजिक सेवा विभाग सचिव ज्योति गुप्ता, राजनीति जागरूकता विभाग से मेघा शर्मा, प्रबंधक साहिल सेठ ने उनको सम्मानित करते हुए भेंट किए फूल।
मुख्य अतिथि ने संस्था की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज देश में इस प्रकार की संस्थाओं का होना बहुत आवश्यक है, जो किसी प्रकार की राजनैतिक पार्टी का पक्ष न लेकर निष्पक्ष होकर समाज के लिए हो रहे अच्छे कार्यो को समर्थन करे। उन्होंने आगे कहा कि विप्र संघ के नाम से यह समष्ट होता है की यह बहुत ही बुद्धिजीवी व्यक्तियों का समूह व संगठन है, जो भारत को आगे लाने के लिए सभी वर्ग के व्यक्तियों को साथ जोड़ रहा है। विप्र संघ से ओमकार शास्त्री जी ने कहा कि कुछ लोग इस संगठन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिस्सा समझ रहे हैं, विप्र संघ का अर्थ विवेकी व्यक्तियों का संगठन है, जिसके अपने उद्देश्य तथा विचारधारा है। इसकी बाकी सभी संगठनों से भिन्न कार्यनीति है। मुख्य सचिव विनय पुष्करणा ने कहा कि हम जल्द ही एक नई शिक्षा प्रणाली का गठन करने जा रहे हैं, जिसके माध्यम से हम आने वाले बच्चों को इतना जागरूक एवं सक्षम कर देंगे कि ब���े से बड़े भ्रष्ट नेता भी उनके सामने थर-थर कांपा करेंगे। विप्र संघ की अध्यक्ष पूजा तिवारी ने अधिक से अधिक विवेकी लोगों को इस संस्था से जुड़ने को कहा। अंत में सभी बच्चों एवं सदस्यों ने शांति पाठ कर सबके हित की कामना करते इस कार्यक्रम को पूर्ण किया।
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