#फ़लक
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soujjwalsays · 2 years ago
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अहमद फ़राज़ sahab once wrote...
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
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सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं
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सुना है रात उसे चाँद तकता रहता हैं
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं
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सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
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सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं
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chandnihumai · 8 months ago
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
अहमद फ़राज़
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं
सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
सो हम भी मो'जिज़े अपने हुनर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की
सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं
सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत है
सो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं
सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं
सुना है आइना तिमसाल है जबीं उस की
जो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं
सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल ओ गुहर के देखते हैं
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में
पलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
कि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
सुना है उस के शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जल्वे इधर के देखते हैं
रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं
किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं
कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ
'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
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wordofheart3 · 1 year ago
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Teri daaman mei sitaare hai to honge aei falak
mujh ko apni maa kee mailee odhnee achi lagee
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तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक
मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
मुनव्वर राना
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bakaity-poetry · 2 years ago
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तुम न आए थे तो हर इक चीज़ वही थी कि जो है
आसमाँ हद्द-ए-नज़र राहगुज़र राहगुज़र शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
और अब शीशा-ए-मय राहगुज़र रंग-ए-फ़लक
रंग है दिल का मिरे ख़ून-ए-जिगर होने तक
चम्पई रंग कभी राहत-ए-दीदार का रंग
सुरमई रंग कि है साअत-ए-बेज़ार का रंग
ज़र्द पत्तों का ख़स-ओ-ख़ार का रंग
सुर्ख़ फूलों का दहकते हुए गुलज़ार का रंग
ज़हर का रंग लहू रंग शब-ए-तार का रंग
आसमाँ राहगुज़र शीशा-ए-मय
कोई भीगा हुआ दामन कोई दुखती हुई रग
कोई हर लहज़ा बदलता हुआ आईना है
अब जो आए हो तो ठहरो कि कोई रंग कोई रुत कोई शय
एक जगह पर ठहरे
फिर से इक बार हर इक चीज़ वही हो कि जो है
आसमाँ हद्द-ए-नज़र राहगुज़र राहगुज़र शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
~ फैज़
Before you came things were just what they were:
the road precisely a road, the horizon fixed,
the limit of what could be seen,
a glass of wine was no more than a glass of wine.
With you the world took on the spectrum
radiating from my heart: your eyes gold
as they open to me, slate the color
that falls each time I lost all hope.
With your advent roses burst into flame:
you were the artist of dried-up leaves, sorceress
who flicked her wrist to change dust into soot.
You lacquered the night black.
As for the sky, the road, the cup of wine:
one was my tear-drenched shirt,
the other an aching nerve,
the third a mirror that never reflected the same thing.
Now you are here again—stay with me.
This time things will fall into place;
the road can be the road,
the sky nothing but sky;
the glass of wine, as it should be, the glass of wine.
English Translation by Naomi Lazard
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melancholic-academia · 2 years ago
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सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
सो हम भी मो'जिज़े अपने हुनर के देखते हैं।
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं ।
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं ।
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं ।
सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं ।
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की
सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं।
सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत है
सो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं ।
सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं ।
- अहमद फ़राज़
(here’s another one for you cutuuu <3 )
😭😭❤️
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bazmeshayari · 3 months ago
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परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है ज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है, मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर सँभल के चल तुझे सारा जहान देखता है, कनीज़ हो कोई या कोई शाहज़ादी हो जो इश्क़ करता है कब ख़ानदान देखता है, घटाएँ उठती हैं बरसात होने लगती है जब आँख भर के फ़लक को किसान देखता है, यही वो शहर जो मेरे लबों से बोलता था यही वो शहर जो मेरी ज़बान देखता है, मैं जब मकान के बाहर क़दम निकालता…
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book-on-the-bright-side · 6 months ago
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हरेक लम्हा मेरी आग में गुज़ारे कोई
फिर उसके बाद मुझे इश्क़ में उतारे कोई
फ़लक पे चाँद सितारे टंगे हैं सदियों से
मैं चाहता हूँ ज़मीं पर इन्हें उतारे कोई
है दुख तो कह लो किसी पेड़ से, परिन्दे से
अब आदमी का भरोसा नहीं है प्यारे कोई
- आस्मां फुर्सत में है
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amresh-mishra · 1 year ago
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तलाश कर
अर्श पर भी ना ठहर, नयी ज़मीं तलाश कर,
छोड़ आब की तलब, तू तिश्नगी तलाश कर।
दूर से क्या पता, क्या दबी है राख में,
थोड़ी सी परत हटा के, ज़िंदगी तलाश कर।
दौलतों के ज़ोर से, चेहरे ये चमक रहे,
मुफ़्लिसी की गाँव में, सच्ची ख़ुशी तलाश कर।
तेरे दैर-ओ-हरम में, रहते अब ख़ुदा नहीं,
काफ़िरों की बस्तियों में, बंदगी तलाश कर।
देख लेंगे खुद ही सब, खींच तू बड़ी लकीर,
ऐब उसके ढूँढ मत, अपनी कमी तलाश कर।
कब तलक तेरे लिए जलता रहे ये आफ़ताब,
चल उठ फ़लक पे जा, खुद की ��ोशनी तलाश कर।।
                                           - अमरेश कुमार मिश्रा 
शब्दार्थ:
अर्श- सब आसमानों से ऊपर का स्थान 
आब- पानी 
तलब- खोज, तलाश
तिश्नगी- प्यास
मुफ़्लिसी- ग़रीबी
दैर-ओ-हरम- मंदिर और मस्जिद
काफ़िर- नास्तिक
आफ़ताब- सूरज
फ़लक- आसमान
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coffeeaurcyanide · 2 years ago
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फ़लक से चाँदनी फिर झाँकती है
ज़मीं पर तीरगी जब नाचती है
बना लेती है ज़ंजीरों से पायल
मोहब्बत रक़्स करना जानती है
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deepjams4 · 3 years ago
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शख़्सियत!
चाँद चाँदनी को फैलाकर अंधेरे रास्ते बेशक रौशन कर दे
मगर चाँद चाँदनी से कहाँ रात को दिन में बदल सकता है!
सूरज छुपने के लिए खुद को चाहे लाख बादल से ढक ले
मगर फिर भी कहाँ दिन को किसी रात में पलट सकता है!
उजाला कहाँ यूँ अपने आप को अंधेरे में तब्दील करता है
आख़िर सूरज को ही हर हाल में उरूज से डूबना पड़ता है!
रात भी तो कहाँ खुद-ब-खुद ही कोई नया सवेरा बनती है
सूरज को निकल आसमाँ में अपना बसेरा करना पड़ता है!
ज़मीन को अपने ही धुरी पर पुरा चक्कर काटना पड़ता है
चारों पहर गुजरने पर रात कटती है तब दिन निकलता है!
फ़लक पे अनगिनत तारे हैं मगर वो चाँद तो नहीं बनते है
चाँद सूरज की जगह ले सब ऐसी तबक्को क्यों रखते हैं!
हर शख़्स के हिस्से में हस्ब-ए-हैसियत फ़राइज़ आ��े हैं
मुख़्तलिफ़ ख़्याल के मुताबिक़ ही उन्होंने अंजाम पाये हैं!
तुम अलग दिखने की फ़िराक़ में खुद को न बेअसर करो
अपनी शख़्सियत की असलियत से बशर न बेख़बर रहो!
कोई मशविरा नहीं है मेरा तुम्हें मेरी बस यही गुज़ारिश है
जैसे हो बेझिझक वैसे ही रहो ज़िन्दगी की सिफ़ारिश है!
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kaminimohan · 3 years ago
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काव्यस्यात्मा 1127
"एक नज़्म क्या-क्या दुख सहे"
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
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एक नज़्म क्या-क्या दुख सहे,
किस-किस की आँख का ख़्वाब कहे।
वो जो है पलकों पर,
काग़ज़ पर परवान चढ़े।
ख़ामोश ज़ेहन के अरमान कहे,
या ख़ामोश फूलों का अफ़्साना कहे।
नज़्म भर भर कर,
मासूमियत से उठ कर रगो में बहे!
देख नज़्म तेरे बहाने
ज़माना तुझे क्या क्या न कहे?
नज्म-ए-ख़्वाब ज़िंदगी कहे!
हुस्न को नज़राना कहे!
आँखों को पैमाना कहे!
ख़ुद को दीवाना और बेगाना कहे,
नज्म-ए-सहर बन फ़लक पर खिलता कहे।
देख 'मोहन' ज़ियादा तलब ठीक नहीं
दिन भर बादलों के पर्दे में क्यूँ रहे?
चलो, आब-ओ-दाना का राज़ कहें,
खेत में किसान को लग रहे,
तल्ख़ धूप का जलाना कहे।
जब तलक आब-ओ-दाना मिलता रहे,
मिट्टी की हर फ़सल को ख़ज़ाना कहें।
नज़्म देख ! जो शहर चले गए,
वो अब गांव की धूप को सुहाना कहें।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
-काव्यस्यात्मा
शब्दार्थ:-
नज्म-ए-ख़्वाब : सपनों का चमकता सितारा
नज्म-ए-सहर : सुबह का चमकता सितारा
आब-ओ-दाना: दाना-पानी, रोज़ी- रोटी।
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olive-chashma · 4 years ago
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जो जीवन के हर रंग जी चुके हो वो अपने आप में ही इन्द्रधनुष हैं गर फ़लक में ना दिखे तो उन्ही को देख लेना माता - पिता 🌸 https://www.instagram.com/p/CCldszPHYbT/?igshid=my8me3btdbfo
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rasxkolnikov · 5 years ago
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मैं रेत के कतरों सी ख़ामोश
तू समंदर की लहरों सा मदहोश
आशिक़ी मेरी रेत पे लिखा वो बारीक अल्फ़ाज़,
जो तेरा ग़ुस्सा मिटाता हर एक लहर के बाद
दिल ना-ऊम्मीद का कोई ना चारासाज़,
और दर्द तेरा हो तो क्या ज़रूरत की करे कोई इलाज
जज़्बात मेरे इन तारों की तरह बेहिसाब,
क्या बताऊँ इस दिल का हाल जो तू रहे यूँ नाराज़
तू मुझे हौले से धकेले ज़िंदगी की तरफ़,
और मैं तुझमें ही मिल जाऊँ जैसे पिघलती बर्फ़
तू आँखों सा फ़लक पे मेरे,
मैं एक तारा चमकता टूट’ता तेरी पलकों तले
- pleiades
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bazmeshayari · 10 months ago
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यहाँ शोर बच्चे मचाते नहीं हैं...
यहाँ शोर बच्चे मचाते नहीं हैं परिंदे भी अब गीत गाते नहीं हैं, वफ़ा के फ़लक पर मोहब्बत के तारे ख़ुदा जाने क्यूँ झिलमिलाते नहीं हैं, दिलासा न दे यूँ हमें शैख़ सादी दिलों में समुंदर समाते नहीं हैं विरासत में वाइ’ज़ लक़ब पाने वाले मोहल्ले की मस्जिद में जाते नहीं हैं, मुसव्विर ने तस्वीर-ए-फ़ुर्सत बना कर कहा वक़्त को हम बचाते नहीं हैं, ख़स-ओ-ख़ार से घोंसला शह कड़ी पर अबाबील क्यूँ अब बनाते नहीं…
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indianhindinewssaif · 2 years ago
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प्यार में रुला देने वाली शायरी heart touching whatsApp status
हम रोते रोते रात भर ये फैसला भी ना कर सके कि तुम याद आते हो या हम याद करते है लोगों ने कहाँ भूल जाओ उसे कितना आसान है ना फ़लक मशवरा देना कुछ सपने तुमने हमारे तोड़ दिये और कुछ हमने देखना छोड़ दिए तुम भूले से भी याद ना कर सके हमे और हम भुला कर भी ना भूल सके तुम्हे।
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rhymecloud · 2 years ago
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Faiz Ahmed Faiz - Shafak ki raakh
Faiz Ahmed Faiz – Shafak ki raakh
 शफ़क़ की राख में जल-बुझ गया सितारः-ए-शाम शफ़क़ की राख में जल-बुझ गया सितारः-ए-शाम, शबे-फ़िराक़ के गेसू फ़ज़ा में लहराए कोई पुकारो कि इक उम्र होने आई है फ़लक को क़ाफ़िलः-ए-रोज़ो-शाम ठहराए ये ज़िद है यादे-हरीफ़ाने-बादः पैमाँ की केः शब को चाँद न निकले, न दिन को अब्र आए सबा ने फिर दरे-ज़िंदाँ पे आ के दी दस्तक सहर क़रीब है, दिल से कहो न घबराए (शफ़क़=सूर्यास्त की ला��ी, शबे-फ़िराक़= विरह की रात,…
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