#कविता
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माझ्या डावीकडे तू एका वहीत काहीतरी लिहत होतास पण रोमन अक्षरांतले ते शब्दं मी वाचले नाहीत सिनेमा हॉलमध्ये अंधार व्हायला अजून वेळ होता पण त्या गोष्टींच्या अंधारात तुझे शब्दं टिकणार नाहीत
जागेत बसून डोळे वळवले डावीकडे, तरी तुझं लेखन वाचायची हिंमत झाली नाही असती हिंमत तर निर्लज्जपणे तुझे शब्दं त्या कृत्रिम प्रकाशात वाचून काढले असते मग ते मला पटतात का, पटत नाहीत का, या सगळ्याचा विचार करून तुझी कवटी कोरली असती व त्यातले विचार चावून गिळले किंवा थुकले असते
पण नजरेला रोखून मी माझ्या फोनचा पडदा पाहत बसलो तेच ते डिस्कॉर्डवरचे संदेश, तेच ते टंब्लरवरचे पोस्ट पण मनात तुझ्या मांडीवरची ती वही, काळ्या पेनाची ती अक्षरं कोणतं कारण काढू, की ज्याने मला त्यांच्यातला अर्थ मिळेल?
तसाच विचार झाला, की तुझे ते हस्तलिखित शब्द जर का इंटरनेटवर कोणत्यातरी अमेरिकन सर्व्हरच्या कोपर्यात बसले असते तर ते मी मोकळ्या मनाने वाचू शकलो असतो, समजू शकलो असतो तशीच तू तुझी वही बंद करून पायाजवळच्या बॅगेत टाकलीस
#marathi#indian languages#कविता#happened to me yesterday#felt like turning it into a poem#first of many? we can only hope#काव्य
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" Ye dil tumhare liye hi dhadakta hai "
Kuch sawalon ke jawab milna zaruri nahi hai
Kuch logon ka humesha apke saath rehna zaruri nhi hai
Kuch kahanion ka pura hona zaruri nhi hai
Kuch raaston ka manzil tak le jana zaruri nhi hai
Kya zaruri hai kya nahi ye is dil se pucho
Sab pta hoke bhi jhooth bolna koi is dil se seekho
Yun to ye dil tumhein bhulane ki koshish krta hai
Par fir bhi ye dil tumhare liye hi dhadakta hai
Par fir bhi ye dil tumhare liye hi dhadakta hai
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dil aakhir tu kyun rota hai?
"साथ मे तो आज भी नही है तू
फिर भी दिल तुझे खोने से डरता है
पास रहे के भी साथ नही
फिर भी दिल यूं बिलखता है।"
मुस्कुराते हुए मैने कहा,
"साथ अब भी खड़ा हूं तेरे,
पास में तो अब भी हूं तेरे।
शिखवा क्या है इस दिल को,
जो आज भी खफा रहता है मुझसे।
तेरे नज़दीक रहने को जी करता है,
तेरे शिकायते सुनने का जी करता है।
होश खो बैठा हूं यहां मैं,
जो तुझे मुझसे बिछड़ने से डर लगता है।"
🍁🍂
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एक चापलूस चिपकू मजनू/ लट्टू रोमियो/ दिलफेंक
आशिक की अपनी दिलरुबा से याचना!
हे तेजस्विनी वीरांगना, हे प्रेयसी हे प्रियतमा
हे महाज्योतिष्मती, अरी मनमोहिनी हे प्रिया
तनिक सुन तो लो तुम मेरे मन की भी व्यथा
मेरे ह्रदय ने बसायी है तुम्हारी ही याद सदा!
सूर्योदय होते ही प्रतिदिन पौ जभी फटती है
सूरज लालिमा नीला आकाश जब रंगती है
निद्रा तंद्रा मुझसे पल्लू छुड़ाकर बिछुड़ती है
प्रथम किरणों से जो मेरी आँख झपकती है
निद्रा से निकल विरह सागर में बह जाता हूँ
तुम्हारी याद की भूलभुलैया में खो जाता हूँ।
हर प्रातः उठते ही प्रभात वंदना के संग संग
करबद्ध शीष झुका प्रणाम तुम्हें मैं करता हूँ
तुम्हारा कुशलक्षेम जानने को हो मन आतुर
मंगल कामनाएँ करता ख़ाली भीतर भरता हूँ।
कामना यही है गगनचुंबी हो ख्याति तुम्हारी
प्रसिद्धि सौभाग्य हर क्षण तुम्हारे कदम चूमे
ह्रदय हर्षोल्लास से रहे हर पल ही पुलकित
स्नेह विश्वास से रोमांचित मन हर पल झूमे
विजय ध्वज लहराके करो गौरवान्वित प्रिय
ध्वनि तुम्हारे नाम प्रभाव की हर तरफ़ गूंजे।
ह्रदय कुंज में जो छवि तुम्हारी बसा रक्खी है
उसे समर्पित मंगल कामनाएँ मन में सच्ची हैं
हे अतुलनीय इन्हें स्वीकृति देकर कृतार्थ करें
यदि कृपा हो जाये तो बात कितनी अच्छी है।
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कोटर: वृक्ष की आत्मकथा
प्रकृति की ध्वजा
मिट्टी से पोषित मिट्टी से उपजा,
कहीं मिलते खान स्वर्ण मुहरों भरे
तल पर कहीं काले मोती खरे
उसी पृथ्वी पर एक बीज होता न्यौछावर
एक कल्प के लिए 'मैं' वृक्ष होता सांवर
ज्वाला ज्येष्ठ का पिए, एक काष्ठ कठोर,
करूं निर्मित —निर्भीक एक ठौर
कोटर—ना चपटा ना चौकोर
एक खोखला स्थल,
जल से दूर तथा जड़ में है थल
जैसे वृक्ष के पेट पर
हुआ हो एक प्रहार
हां मुष्ठी प्रहार
सम्भवतः किसी दानव का वार
अथवा एक हीन सा कीट
छाल को कर गया छींट
ऋतु ने बांह मरोड़ दिया
अहंकारी दीमक सेनापति
आक्रमकता करता रहा अति
आपात नहीं बेला वृक्ष बतला रहा महत्व
गल कर देता वह मृदा को पोषक तत्व
अथवा है वह गृह द्वार
गिलहरी, मूषक संग मधु का बाड़
अंत भी संभव है विराट विशाल
इच्छुक हो बनने को पक्षी, वानर क���शल
वृक्ष उवाच सुनो भई साधु, सुनो आदि नर,
करते जिनकी छांव पर तप, बनाते घर,
नहीं अमर मेरा भी जीवन,
वृक्ष बचाओ वृक्ष उगाओ,
स्वयं एवं पीढ़ियां समझाओ,
जो बनाओ मुझसे कई उपवन,
उपकारी रहेंगे मेरे अनन्य मन।
©2024
—प्राची शर्मा
सर्वाधिकार सुरक्षित
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घनघोर जंगल मा।
प्रेम में होना किसी व्यक्तित्व का सबसे उन्नत संस्मरण होता है, प्रेम साध्य है जबकि प्रेमी साधन, यह बात विपरीत सी मालूम होती है। प्रेम हमारे भीतर होता है इसलिए जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो हम प्���ेमी के अंतर्गत को ही झंकृत करते हैं, यह झंकार प्रेम की तरंगों को पैदा करती है। प्रेम साध्य है क्योंकि प्रेम रहेगा, प्रेम शाश्वत है, प्रेमी हर युग में इसे प्राप्त करने का साधन बनता है।
प्रेम में आकृष्ट चित्त अपनी प्रेमिका को प्रकृति के विभिन्न उपादानों में अभिव्यंजित करता है, और उसके पास उपाय ही क्या है? अंतर्मन में प्रेमिका तो बाह्य जगत में प्रकृति। जंगल से लेकर दंगल तक, दंगल से लेकर मंगलकारी कृत्यों तक, सब में प्रेमिका का आरोप, प्रेमिका की तीखी स्मृति को परिदर्शित करती है। प्रेम-आरूढ़ चित्त में प्रेमिका के शिवाय केवल शिव ही हो सकता है यानी कल्याण और सिर्फ कल्याण।
पंकज बिंदास
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दुपट्टे से झूलती लाशें...
⚠️ सावधान : Trigger Warning
उत्तरप्रदेश, फर्रूखाबाद में जन्माष्टमी के मेले में गईं दो युवतियों की निर्मम हत्या के बाद ��व दुपट्टों के फंदे से लटका मिले। इस दिल दहलाने वाली हौलनाक घटना से विचलित मन की आक्रांत पुकार... #FarukabadMurder #BetiBachao
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कविता
मेरी कविता मेरा वजूद है उसमें ही मेरी जिंदगी का स��कून है जीवन की खट्टी मीठी यादों का रंग बिरंगा गुलदस्ता जरूर है । जिसमें गम भी है कुछ पल की खुशी भी जीवन के हर पड़ाव की जुफ्तजु भी कहीं गगन में उड़ते विचारों की लड़ी तो कहीं आशाओं की बुझती फुलझड़ी, मेरी कविता जीवन की रसमाधुरी ।।
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ज्यांनी हे शहर बांधले, ते केव्हाच वारले पुढच्या जन्मी ते या शहरात भोकं पाडायला आले
तिचा चेंडू कधी इथल्या गटारात हरवलेला, आता या चौकात तिला थांबायला वेळ नाही या शहरात कुठेही जाण्यासाठी लढावं लागतं, तरीच पावलांचं संगीत ऐकायला वेळ नाही
आठवणी टाकल्या बाथरूमच्या फरशीवर, फुलांच्या साबणाने धुवून काढल्या, तरी पुढच्या दिवशी पुन्हा तीच गर्दी, तीच जागा, त्याच पावलांवर त्याच मृतांच्यांचे तेच आत्मे
तिची ती आवृत्ती गटारात बुडली, आणि तिची आणखीन एक आवृत्ती बुडली सिमेंटात एक आवृत्ती वाहून गेली साबणासह, एक गेली गाणी किंचाळत, आणि एक राहिली माझ्याकडे
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लोग कहते हैं नया अच्छा है, पर यार पुराना भी तो बुरा नहीं है
ये घर पुराना हो गया है नया घर खरीदते हैं पर यार अपनों के प्यार से बना, अपनों के दुलार से सजा और सबकी यादों से भरा ये घर भी तो थोड़ी मुरम्मत के बाद बुरा नहीं है
इतने बड़े होगे हो अभी तक अपने मां बाप के साथ रहते हो, खुद का घर क्यों नही खरीदा अभी तक? पर यार जिन्होंने इतना बड़ा किया है और घर खरीदने लायक बनाया है उनके साथ उनके घर में रहना भी तो बुरा नही है
अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए अपनों को पीछे छोड़ना ही पड़ेगा पर यार अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए अपनों को साथ में लेके चलना भी तो बुरा नहीं है
नई पीढ़ी के हो नए ख्यालातों को अपनाओ पर यार नई पीढ़ी का होकर पुराने ख्यालात रखना भी तो बुरा नहीं है
आजकल के डेटिंग, कैजुअल हुकअप के दौर में रहकर राधा कृष्णा जैसे प्रेम की उम्मीद रखना भी तो बुरा नहीं है
लोग कहते हैं बदलाव अच्छा है पर ठहरा�� भी तो बुरा नहीं है
इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में दो पल रुक के चीज़ों की सुंदरता को निहारना भी तो बुरा नहीं है
अपने कल को बेहतर बनाने के लिए आज में भाग दौड़ करना अच्छा है पर यार उसी आज में से अपने लिए ही कुछ वक्त चुराना भी तो बुरा नहीं है
दिशा
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#निहारा
सुंदर सलोनी तेरी सूरत
मुझको कितना भाती है।
बसकर मेरी आंखों में
मोती बन बह जाती है।
फूलों जैसी मुस्कान तेरी
मेरे सारे गम भुलाती है।
जब तू आकर लिपटें मुझसे
मेरी रूह भी खिल जाती है।
नन्हें – नन्हें पैरों से तू
आंगन में खेलें आंख मिचौली।
पलभर भी ओझल होती तू
तो धड़कन मेरी रूक जाती है
माथे पे तेरे कुमकुम की ब��ंदी
लगती जैसे चाँद सितारा
मेरे दिल का टुकड़ा है तू
“मेरी बिटिया, मेरी निहारा”
– डॉ. मुल्ला आदम अली
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मक्कारी!
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नवरात्रि पर कविता l Poem On Navratri In Hindi l माता के नव रूपों का वर्ण...
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एक समय ऐसा भी
जिसे कभी-कभी नहीं, रोज़ ही कोई खयाल आता हो, उससे कभी सपनों के बारे मे पूछना। अतरंगी जवाब न मिले, ऐसा हो ही नहीं सकता। आज का ये मेरा खयाल ऐसे ही सोच के कुएँ से निकला है।
कहते हैं जहाँ चाह, वहाँ राह। पर उस चाहत की राह के गुण तभी गाने चाहिए जब खुद को साबित करने की क्षमता हो। वरना फिर वही बात हो जाती है कि, “अधजल गागरी छलकत जाए”। इतने सालों की मेहनत और अभ्यास के बाद, अब मैं ये कह सकती हूँ कि मैं हिंदी भाषा के क्षेत्र में पूरी तैयारी के साथ खड़ी हूँ। मुझे उम्मीद है आपको पसंद आएगा! कई सालों पहले साहिर लुधियानवी जी ने लिखा था, “कभी-कभी मेरे दिल मे खयाल आता है”। पर…
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तुम चांद हो, तुम रात हो, तुम मेरे मन का राग हो मैं शब्द हू, तुम गीत हो, तुम एक प्रसिद्ध संगीत हो
मैं अश्क हू, तुम झील हो, चिंतित के मन की जीत हो मैं पंक्ति हू, तुम काव्य हो, तुम एक कवि का ख्वाब हो
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