#शोर
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यहाँ शोर बच्चे मचाते नहीं हैं...
यहाँ शोर बच्चे मचाते नहीं हैं परिंदे भी अब गीत गाते नहीं हैं, वफ़ा के फ़लक पर मोहब्बत के तारे ख़ुदा जाने क्यूँ झिलमिलाते नहीं हैं, दिलासा न दे यूँ हमें शैख़ सादी दिलों में समुंदर समाते नहीं हैं विरासत में वाइ’ज़ लक़ब पाने वाले मोहल्ले की मस्जिद में जाते नहीं हैं, मुसव्विर ने तस्वीर-ए-फ़ुर्सत बना कर कहा वक़्त को हम बचाते नहीं हैं, ख़स-ओ-ख़ार से घोंसला शह कड़ी पर अबाबील क्यूँ अब बनाते नहीं…
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हज़रत मुहम्मद तथा उनके एक लाख अस्सी हजार अनुयाईयों ने कभी मांस-शराब, तम्बाखू सेवन नहीं किया और न ही ऐसा करने का आदेश दिया। लेकिन वर्तमान में शराब, तम्बाखू का ��्रयोग बहुत जोर शोर से हो रहा है और मुसलमान समाज में मांस तो आम बात हो गई।
#AlKabir_Islamic
#SaintRampalJi
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उस गांव में सुकून है जो शहर के शोर से दूर है।
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तुमने मुझे जाने से कभी नहीं रोका
शायद तुम रोक सकती थी मेरे हाथों को थाम कर
या मेरा नाम आसमां में चिल्ला कर
मगर तुम चुप रही
उन दिनों पर जब
तुम्हारी आवाज़ मुझे बचा सकती थी
तुम चुप रही।
तुम्हारी चुप्पी से मैंने जाना कि
दुनिया की सारी आवाज़ों से अधिक शोर
तुम्हारी चुप्पी में है
जिसे मापना तो दूर सहना भी बहुत कठिन है।
-praphull
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प्रताप की तलवार
राणा चढ चेतक़ पर तलवार उठा,
रख़ता था भूतल पानीं को।
राणा प्रताप सर क़ाट क़ाट,
क़रता था सफ़ल ज़वानी को।।
क़लकल ब़हती थी रणगंगा,
अरिदल् को डूब़ नहानें को।
तलवार वीर क़ी नाव बनीं,
चटपट उस पार लगानें को।।
बैरी दल को ललक़ार गिरी,
वह नागिन सी फुफ़कार गिरी।
था शोंर मौंत से बचों बचों,
तलवार गिरीं तलवार गिरीं।।
पैंदल, हयदल, गज़दल मे,
छप छप क़रती वह निकल गयी।
क्षण कहां गयी कुछ पता न फ़िर,
देख़ो चम-चम वह निक़ल गयी।।
क्षण ईधर गई क्षण ऊधर गयी,
क्षण चढी बाढ सी उतर गयी।
था प्रलय चमक़ती जिधर गयी,
क्षण शोर हो ग़या क़िधर गयी।।
लहराती थी सर क़ाट क़ाट,
बलख़ाती थी भू पाट पाट।
बिख़राती अव्यव बांट बांट,
तनती थीं लहू चाट चाट।।
क्षण भींषण हलचल मचा मचा,
राणा क़र की तलवार बढी।
था शोर रक्त पीनें को यह,
रण-चन्डी जीभ़ पसार बढी।।
~श्यामनारायण पाण्डेय
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Including link: https://www.freesexkahani.com/
"दोस्तो, मेरा नाम युग है और मैं मध्यप्रदेश राज्य के भोपाल शहर में रहता हूँ.
मैं अक्सर चूत चुदाई की कहानी पढ़ता रहता हूं और दिन में दो बार हिला लेता हूँ.
यह सेक्स कहानी मेरी और मेरी छोटी बहन वर्षा की चुदाई की कहानी है.
इसमें आप पढ़ेंगे कि कैसे मैंने अपनी ही सगी बहन को चोदकर अपनी ��ंडी बना लिया.
यह Xxx स��स फक कहानी आज से एक साल पहले की उस समय की है जब मैंने 12 वीं के बोर्ड के इम्तिहान दिए थे.
एग्जाम के बाद से स्कूल की छुट्टी चल रही थीं.
मैं अपने परिवार के बारे में बता दूं.
मेरे घर में पाँच सदस्य हैं. मम्मी-पापा, दीदी और एक छोटी बहन.
मेरे पापा का नाम सुदेश है. उनकी उम्र 44 साल है.
मेरी मम्मी का नाम अदिति है. उनकी उम्र 42 साल है. लेकिन वे 30 से ज्यादा की नहीं लगती हैं.
उनका फिगर 32-28-36 का है. वे पारदर्शी साड़ी पहनती हैं और नाभि से नीचे साड़ी को बांधती हैं.
पारदर्शी साड़ी के साथ टू बाय टू की रुबिया के झीने ब्लाउज में से उनकी ब्रा साफ दिखाई देती है.
उनकी थिरकती चूचियों और मटकती गांड को देखकर किसी का भी लंड खड़ा हो जाए.
मेरी एक बड़ी बहन है, जिसका का नाम दीपाली है.
वह मुझसे एक साल बड़ी है और वह भी बहुत सेक्सी दिखती है.
दीपाली के बाद मैं हूँ और मुझसे छोटी बहन है.
उसका नाम वर्षा है.
वह मुझसे एक साल छोटी है.
उसकी उम्र 18 साल की है. उसने अभी जवानी की दहलीज पर अपना पहला कदम रखा ही है.
उसके दूध मस्त गोरे हैं और बहुत ही कांटा आइटम है.
उसकी फूली हुई गांड के बीच की दरार को देखकर मेरा उसे चोदने का मन करता है.
मैंने कई बार उसकी ब्रा पैंटी को सूंघकर लंड हिलाया है.
उन दिनों मैं उसकी चूत और गांड में लंड डालने की प्लानिंग कर रहा था.
वैसे सपनों में तो मैं उसे कई बार चोद चुका था पर हकीकत में उसे चोदने में डर लगता था कि कहीं उसने शोर मचा दिया तो सारी इज्जत की मां चुद जाएगी.
यों तो हम दोनों काफी खुले हुए हैं और हमें एक दूसरे के सारे सीक्रेट पता हैं.
कभी कभी वह मुझे गले लगाती है, तो उसके दूध मेरे सीने से लग कर एक मीठी रगड़ दे जाते हैं.
मैं उसके चूतड़ भी सहला देता था.
उस वक्त मन ही मन मैं उसे चोदने का सोचने लगता था.
ऐसा लगता था कि इसे यहीं घोड़ी बना कर इसकी गांड मार दूं.
एक रात को हम सब मिलकर टीवी देख रहे थे और वह हमेशा की तरह मेरी बगल में बैठी टीवी देख रही थी.
मैं भी हमेशा की तरह उसकी टांग से टांग रगड़ कर मस्त हो गया था. मेरा हाथ भी उसकी टांग पर घूम रहा था.
उस दिन काफी रात हो गई थी तो हम सब सोने के लिए जाने लगे.
वर्षा मेरे साथ सोती थी.
मैं भी उसके सो जाने के बाद उसके दूध दबाता, गांड में लंड रगड़ता … लेकिन कभी ��ोद नहीं सका था.
एक दिन मम्मी और दीदी मौसी के घर निकल गईं वे दो दिन के लिए गई थीं.
कुछ देर बाद पापा भी ऑफिस के लिए निकल गए थे.
पापा को दारू पीने की आदत है और आज मम्मी के न होने से उनके लिए यह किसी त्यौहार के जैसा दिन था.
मैं जानता था कि पक्के में आज पापा दोस्तों के साथ अपनी महफ़िल जमाएंगे.
मुझे पूरी उम्मीद थी कि वे मुझे फोन करके घर आने से मना करेंगे.
वही हुआ भी … एक घंटा बाद उनका फोन आ गया कि वे ऑफिस के काम से बाहर जा रहे हैं और कल शाम तक या परसों वापस आ जाएंगे.
उनके फोन से मुझे बेहद खुशी हुई कि अब बहन की चूत चोदी जा सकती है.
अब घर मैं और वर्षा अकेले थे.
आज चुदाई का सही समय था.
मैं हॉल में टीवी देख रहा था और वर्षा कमरे में थी.
मैंने सोचा कि चल कर देखूँ कि वर्षा क्या कर रही है.
मैं कमरे में गया तो वर्षा तौलिया में मेरे सामने थी. वह नहा कर निकली थी.
उसकी तौलिया छोटी थी, जिससे उसके दूध दिख रहे थे.
उसने गुस्से से मुझे बाहर जाने को कहा, मैं बाहर आ गया.
लेकिन अब उसे चोदने का मन कर रहा था.
शाम हो गई, मैं छत पर बैठा था कि तभी वह आई.
वर्षा- सॉरी भैया, मैं आज आप पर चिल्लायी.
मैं- कोई बात नहीं. वैसे तुम बहुत खूबसूरत हो!
वर्षा- आपको कैसे पता कि मैं खूबसूरत हूं?
मैं- आज तुम्हें बिना कपड़ों के देखा, तब से जाना कि तुम बेहद खूबसूरत हो … आई लव यू वर्षा. सच में मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.
मैंने न जाने किस आवेश में उससे यह कह तो दिया लेकिन मुझे डर लग रहा था कि अब वह क्या कहती है.
वह मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी और फिर एकदम से आगे बढ़ कर मुझे किस करने लगी.
मैं भी उसका साथ देने लगा और उसके मम्मों को दबाने लगा.
हम दोनों की 5 मिनट के किस के बाद वह हट गई और शर्माने लगी.
मैंने उसकी तरफ देख कर उसे वापस अपनी गोदी में लेने के लिए हाथ बढ़ाया.
तो वह कहने लगी- आज रात को आपके लिए मेरे पास कुछ बहुत खास है.
मैं समझ गया कि आज मैं इसकी चूत का रस ले सकूँगा.
मैंने कहा- आज खाना मत बनाना, मैं बाहर से ले आऊंगा.
उसने पूछा- क्या पापा का खाना भी लेकर आओगे?
मैंने उसे आंख मारते हुए बताया- नहीं, आज पापा अपनी दारू के प्रोग्राम में व्यस्त रहेंगे शायद … उनका फोन आया था कि वे कल शाम तक वापस आएंगे या हो सकता है कि परसों ही घर आ पाएं!
यह सुनकर मेरी छोटी बहन मुस्कुरा दी और बोली- ओके, इस खबर के लिए अब आपको और भी बढ़िया उपहार मिलेगा.
मैं समझ गया कि शायद अब यह और ज्यादा कामुक होकर चुदना चाहती है.
कुछ देर बाद मैं बाजार गया और वहां से खाना पैक करवा कर मेडिकल स्टोर से सेक्स की गोली लेता हुआ घर के लिए निकल पड़ा.
घर वापस आया तो 8 बज गए थे.
मैं घर पहुंचा तो मैंने देखा कि वर्षा ने लाल रंग की शॉर्ट नाइटी पहन रखी थी.
उसने मुझे देख कर आंख मारी और पूछा- मैं कैसी लग रही हूं?
मैं- बहुत सेक्सी लग रही हो मेरी जान!
यह कह कर मैं उस पर झपटने को हुआ.
वर्षा- चलो, पहले खाना खाना खाते हैं. आज की रात मैं तुम्हारी हूं, जो करना है … कर लेना.
फिर हम दोनों ने खाना खाया और मैं कमरे में गया.
मैंने देखा कि कमरा तो एकदम करीने से सजा हुआ था. उसने तकियों और कुशन से बेड सजाया था.
मैं मन ही मन खुश हुआ.
वर्षा- सजावट कैसी लग रही है?
मैं- अच्छी है, पर क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो!
वर्षा- मैं तो आपसे कबसे प्यार करती हूं, बस आप ही देर कर रहे थे.
मैं उसकी तरफ मादक भाव से देखने लगा.
मैं वर्षा को किस करने लगा.
वह भी मेरा साथ देने लगी.
कुछ देर बाद मैंने उसकी नाइटी उतार कर फेंक दी. उसने नाइटी के नीचे कुछ नहीं पहना था, शायद वह पूरी तरह नंगी होकर चुदवाना चाहती थी.
उसने भी मेरे सारे कपड़े उतार दिए और मेरा लंड चूसने लगी.
वह एकदम पेशेवर रंडी की तरह मेरा लंड चूस रही थी.
उसका लंड चूसना देख कर मुझे संदेह हुआ कि कहीं इसकी चूत पहले से ही तो खुली हुई नहीं है!
पर अगले ही पल मैं शांत हो गया कि कमसिन लड़की की चूत को सीलबंद चूत समझ कर ही चोदना चाहिए.
मैंने उसके सर पर अपना हाथ रख कर उसे अपने लौड़े पर दबाते हुए कहा- मेरी रानी, इतना अच्छा लंड चू��ना कहां से सीखा?
वर्षा- मैंने बहुत सारी पोर्न फिल्में देखी हैं. भैया मैं जानबूझ कर अपनी पैंटी और ब्रा बाथरूम में छोड़ देती थी ताकि आप उसे सूंघकर अपना लंड हिला सकें.
मैं- तुम मुझसे कबसे प्यार करती हो?
वर्षा- जब से मैंने आपका 7 इन्च लम्बा लंड देखा है, बस तभी से आपसे चुदवाना चाहती हूं.
यह कहते हुए उसने खड़े होकर अपनी सफ़ाचट चूत मुझे दिखाई.
मैंने उसकी चूत की महक को अपने नथुनों में भरा और कामोन्मत्त हो गया.
फिर हम दोनों 69 की पोजीशन में हो गए.
वह मेरा लंड चूसने लगी और मैं उसकी चूत चाटने लगा.
कुछ मिनट बाद उसने मुझसे कहा- भाई, अब रहा नहीं जा रहा है, जल्दी से अपना लंड डाल दो.
मैंने चुदाई की स्थिति बनाई और उसकी चूत की तरफ देखने लगा कि इतनी संकरी चूत में मेरा मूसल कैसे घुस सकता है.
तभी उसने मेरा लंड अपने हाथ से अपनी चूत पर सैट कर दिया.
मेरा सुपारा उसकी चूत की बंद लकीर पर मुँह मारने लगा.
वह भी सुपारे की गर्मी पाकर अपनी गांड हिलाती हुई मेरे लंड को अन्��र बुलाने लगी थी.
मुझसे रहा न गया और मैंने एक जोरदार धक्का लगा दिया.
शॉट एकदम सही समय पर और सही जगह पर लगा था तो करीब ढाई इंच लंड चूत को फाड़ कर अन्दर घुस गया था.
लंड क्या घुसा, उसकी तो चीख ही निकल गई.
उसकी चीख बता रही थी कि पक्का यह उसका पहली बार वाला हमला था.
मैं सजग हो गया और अन्दर ही अन्दर बेहद खुश भी हो गया था कि आज चूत फाड़ने का पहला मौका मिला है.
अब मैं उसे किस करने लगा और उसे सहलाने लगा, उसका एक दूध अपने मुँह में भर कर चूसने लगा.
अपने चूचे चुसवाने से उसे अच्छा लगने लगा.
थोड़ी देर बाद वह खुद अपनी कमर उठा कर लंड लेने लगी.
उसका दर्द कम हो गया था.
मैंने एक और जोरदार धक्का लगाया और अपना पूरा लंड उसकी चूत की जड़ तक उतार दिया.
उसकी दर्द भरी चीख निकल गई पर इस बार मेरे होंठ चूसने की वजह से आवाज नहीं निकल पाई.
इस बार मैंने बिना रुके धक्कों की स्पीड तेज कर दी.
उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे.
फिर 5 मिनट तक चुदाई के बाद उसे भी मजा आने लगा और वह मादक आवाजें निकालने लगी- आह हहह हहह आज मेरी चूत फ़ाड़ कर इसका भोसड़ा बना दो … बड़ा मजा आ रहा है भैया … आहह आज मेरी चूत की माँ चुद गईई ईई आह.
मुझे अपनी बहन की चूत रगड़ने में बेहद सुकून मिल रहा था.
मैं भी सांड की तरह अपनी छोटी बहन को बकरी समझ कर चोदने में लगा हुआ था.
काफी देर की जोरदार चुदाई के बाद मैंने चूत से लंड निकाल कर उसके मुँह में डाल दिया.
वह अच्छी तरह से लंड चूसने लगी.
मैंने उसके मुँह में ही जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए और 5 मिनट बाद उसके मुँह में ही झड़ गया.
उस रात मैंने उसे 3 बार चोदा, दो बार उसकी चूत और एक बार गांड बजाई.
Xxx सिस फक के बाद हम दोनों ऐसे ही नंगे सो गए.
अगली सुबह मैं 12 बजे उठा.
तब तक वर्षा नहाकर तैयार हो गई थी.
उसने मुझे जगाया और एक किस किया.
मैं जागा तो उसने मुझसे फ्रेश होने को कहा.
उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, हम दोनों दबा कर चुदाई करते.
मैंने वर्षा की मदद से अपनी मम्मी को भी चोदा.
यह सब कैसे हुआ था, उसे मैं अपनी अगली सेक्स कहानी में बताऊंगा.
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सब जिनके लिए झोलियां फैलाए हुए हैं वो रंग मेरी आंख के ठुकराए हुए हैं इक तुम हो कि शोहरत की हवस ही नहीं जाती इक हम हैं कि हर शोर से उकताए हुए हैं दो चार सवालात में खुलने के नहीं हम ये उक़दे तेरे हाथ के उलझाए हुए हैं अब किसके लिए लाए हो ये चांद सितारे हम ख़्वाब की दुनिया से निकल आए हुए हैं हर बात को बेवजह उदासी पे ना डालो हम फूल किसी वजह से कुम्हलाए हुए हैं कुछ भी तेरी दुनिया में नया ही नहीं लगता लगता है कि पहले भी यहां आए हुए हैं सब दिल से यहां तेरे तरफ़दार नहीं हैं कुछ सिर्फ़ मिरे बुज़ में भी आए हुए हैं
- फ़रीहा नक़वी
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मुझे भी हिंदी में कविताएं लिखनी है । लेकिन मेरे पास शब्द नहीं, कैसे व्यक्त करूँ मेरी भावनाएँ- क्योंकि हमारी भाषा में तो कभी वो बातें की ही नहीं किसी ने, उन सारी भावों को जिनके बारे में किसी ने कभी सिखाया ही नहीं क्या कहें इसको, जिनका नाम लेने पर पागल करार कर देतीं है ये दुनिया, जिनके बारे में बात करने पर पाबंदी है। क्योंकि लोग क्या कहेंगे और सोचेंगे, समाज में क्या होगा मेरा चरित्र का? अग�� मैं अपनी भाषा में बोलने लगीं ??
मगर बोलना भी चाहूँ तो कैसे किन शादबो में बताऊँ- उस शोर का नाम जो इस मन में है? कैसे बयान उस पेट के अंदर चल रहे उफान का आंखों में बनी तूफान का?? कैसे पंक्ति बनाउ उस दर्द की जो है इस तन में दबी हुई??
काश- काश किसी ने सिखाया होता इस धारणा को क्या नाम दे , बिना उसके लिए शर्म सार हुए, काश बतलाया होता है कि ये सब बातें गलत नहीं , तब शायद इतनी घुटन सी न होती अपने सोच को जाहिर करने पर , इतना सोचना ना पड़ता की कैसे बताऊँ मैं अपने विचार बिना किसी प्रकार की विफलता के ,
शायद तब मैं भी लिख पाती कविता अपनी भाषा में भी अपने दर्द की।।
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"शोर करूँगा और न कुछ भी बोलूँगा ख़ामोशी से अपना रोना रो लूँगा....
सारी उम्र इसी ख़्वाहिश में गुज़री है दस्तक होगी और दरवाज़ा खोलूँगा...."
-तहज़ीब हाफ़ी
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*सबका मालिक एक*
हमारे सतगुरु परमात्मा की बताते हैं कि ---
खोखापुर के काग मिले दिन दोय रे ।।
अरबो में कोई हंस हमारा होय रे।।
जगद्गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी बताते हैं कि कहां-कहां से मेरे हीरे मोती लाल को मैं ढूंढ के लाता हूं।
पीछे लाग्या जाऊं था मैं लोक वेद के साथ।।
रास्ते में सदगुरु मिले दीपक दे दिया हाथ।।
राम नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊं गली गली।
ले लो रे कोई राम का प्यारा शोर मचाऊ गली गली।।
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पुस्तक और डिलीवरी चार्ज बिल्कुल निःशुल्क (फ्री) है।
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हज़रत मुहम्मद तथा उनके एक लाख अस्सी हजार अनुयाईयों ने कभी मांस-शराब, तम्बाखू सेवन नहीं किया और न ही ऐसा करने का आदेश दिया। लेकिन वर्तमान में शराब, तम्बाखू का प्रयोग बहुत जोर शोर से हो रहा है और मुसलमान समाज में मांस तो आम बात हो गई।
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होठों पर रहती खामोशियाँ, अनवरत शोर मचाया करती हैं
आँखों में बसती उदासियाँ, अनहद मुस्कुराया करती हैं
मन में उफनती भावनाओं की नदियाँ, एहसासों का सैलाब लाया करती हैं
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घर में कितना सन्नाटा है, बाहर कितना शोर
ये दुनिया दीवानी है या मेरा दिल है चोर
How quiet it is in the house, how noisy it is outside
Either the world is frenzied (lover) or my heart is a thief.
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#TheLifeOfProphetMuhammad
हजरत मुहम्मद तथा उनके एक लाख अस्सी हजार अनुयाईयों ने कभी मांस-शराब, तम्बाखू सेवन नहीं किया और न ही ऐसा करने का आदेश दिया।
लेकिन वर्तमान में शराब, तम्बाखू का प्रयोग बहुत जोर शोर से हो रहा है और मुसलमान समाज में मांस तो आम बात हो गई।
Allah Kabir
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बहुत तेज़ हवा चल रही है। कई दिनों बाद मेरे चेहरे पर मुझे ठंड महसूस हो रही है। पिछले कुछ दिनों से बहुत गर्मी थी। शरीर एकदम झुलस चुका था गर्मी के मारे। न जाने कितने बोतल पानी के गटकने के बाद भी संतोष नहीं होता था। ���ारिश होना गर्मी में जन्नत के समान है। मगर बारिश भी नहीं हो रही। बस हवा है। ऐसी गर्मी में सफर करना मुश्किल है। मगर ज़िंदगी सर्दी गर्मी के लिए कहाँ रुकती। एग्जाम्स तो और नहीं रुकते। अब सोचता हूँ बेकार इतने फॉर्म्स भर दिए। ख़ैर।
रात को सर दर्द करता रहता है। शायद अधिक सोचने के कारण। बीमार रहना मुझे एकदम पसंद नहीं। मगर बीमारी टालना अपने हाथ में नहीं। कुछ भी अपने हाथ में नहीं। जीवन ऐसा ही है। कभी कभी विज्ञान से भरोसा उठने लगता है और उन बातों पर यकीन होने लगता है जिसे मैं हंसकर टाल दिया करता था। लोग कहते है व्रत करने से भगवान हम सबका ख्याल रखते है। मगर माँ को भूखे देखना एकदम अच्छा नहीं लगता। मेरे लिए तो व्रत करने के भी कोई फायदे नहीं।
छत पर हवा सुंदर है। आसमान में तारे बहुत कम है। न जाने कहाँ छिप गए है सब। सिर घुमाने पर चाँद दिखा। रात बहुत शांत होती है। काश दिन भी ऐसा होता। दिन बहुत शोर भरा होता है। शोर मुझे नहीं पसंद। शांति मेरी सबसे प्रिय चीज़ है। और रात में शांति है। रात ने कभी मुझे नहीं रोका सच होने से। सच—जैसा मैं हूँ। दिन मुझे नकाब में रखता है। हँसना सीखना पड़ता है दिन में जीने के लिए। और कुछ सीखने में बहुत मेहनत है। जब खुद को बदलने की बात हो तब मैं आलसी हूँ। बचपन में रात से डर लगता था। क्योंकि दिन में कोई फ़िक्र नहीं थी नक़ाब लगा कर घूमने की। मगर अब दिन और रात के मायने बदल चुके है।
एक दिन जीवन सही होगा ��गर सही करने में जीवन लगेगा। न जाने ये कितना सही होगा। ज़िंदगी लगाना ज़िंदगी के लिए। ख़ैर सब लगाते है मैं कोई पहला नहीं। जीवन को जीने के बहुत तरीके हो सकते थे मगर हम इंसानों ने एक अजीब सा तरीका चुना है। और बदलाव लाना मेरे बस की बात नहीं।।।
—praphull
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इश्क़....
ख़्याल रहे ये इश्क़ है..! इसकी ख़ामोशी में भी शोर है।...सुकूँ
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