#हिंदू धर्म प्रथाओं
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ramanan50 · 1 year ago
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महालया पक्ष आहार, बेहतर शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य
जो लोग महालया पर मेरे ब्लॉग पोस्ट पढ़ते हैं, उन्हें पता होगा कि मैंने संकेत दिया था कि कुछ आहार प्रतिबंधों का पालन किया जाना है । लगभग एक साल पहले मैंने पोस्ट किया था कि भगवद गीता भोजन की आदतों के बारे में विस्तार से बोलती है और स्पष्टीकरण के साथ ग्रंथों को उद्धृत करती है । मैंने पिछले महालया पक्ष से पत्र के लिए इन आहार संबंधी सिफारिशों की कोशिश की है । जबकि मैं उन आध्यात्मिक लाभों पर टिप्पणी…
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narmadeshwarshivling · 11 months ago
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नर्मदेश्वर शिवलिंग क्यों चुनें?
TOPIC Covered
परिचय
महत्व और इतिहास
नर्मदेश्वर शिवलिंग की कीमत क्या है?
आध्यात्मिक संबंध
कीमत को प्रभावित करने वाले कारक
मूल्य निर्धारण सीमा
मूल्य निर्धारण सीमा
परिचय
नर्मदेश्वर शिवलिंग (Narmadeshwar shivling price), हिंदू धर्म में एक पवित्र प्रतीक, आध्यात्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों में गहरा महत्व रखता है। इसके इतिहास, प्रकार और आध्यात्मिक संबंधों के दिलचस्प पहलू इसे अत्यधिक आकर्षण का वि��य बनाते हैं।
महत्व और इतिहास
नर्मदेश्वर शिवलिंग(Narmadeshwar shivling price )का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व सदियों पुराना है, जिसकी जड़ें हिंदू परंपराओं में गहराई से जुड़ी हुई हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की खोज से इसकी पवित्र प्रमुखता के विकास के बारे में अंतर्दृष्टि मिलती है।
नर्मदेश्वर शिवलिंग की कीमत क्या है?
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Narmadeshwar Shivling ओरिजिनल...
रेटिंग
5 में से 4.2 स्टार 103 समीक्षाएँ
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कीमत
₹999.00
₹498.00
विक्रेता
PANDIT NM SHRIMALI
NARMADESHWAR SHIVLING
मटीरियल
पत्थर
पत्थर
आध्यात्मिक संबंध
नर्मदेश्वर शिवलिंग (Narmadeshwar shivling price) से जुड़ी मान्यताओं के साथ-साथ ध्यान और पूजा पद्धतियों में गहराई से जाने से इसके गहन आध्यात्मिक संबंध का पता चलता है। कई लोगों को इसकी उपस्थिति में सांत्वना और ज्ञान मिलता है।
कीमत को प्रभावित करन��� वाले कारक
नर्मदेश्वर शिवलिंग की कीमत (Narmadeshwar shivling price) को प्रभावित करने वाले कारकों की खोज से इन पवित्र कलाकृतियों को प्राप्त करने से जुड़ी जटिलताओं का पता चलता है। आकार, वजन, गुणवत्ता और प्रामाणिकता समग्र मूल्य निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
 
मूल्य निर्धारण सीमा
सभी के लिए सुलभ प्रवेश स्तर के विकल्पों से लेकर प्रीमियम और कलेक्टर संस्करण तक, नर्मदेश्वर शिवलिंग की मूल्य सीमा विविध दर्शकों की जरूरतों को पूरा करती है। स्पेक्ट्रम को समझने से संभावित खरीदारों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है।
नर्मदेश्वर शिवलिंग की कीमत को कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
नर्मदेश्वर शिवलिंग (Narmadeshwar shivling price)का आकार, वजन, गुणवत्ता और प्रामाणिकता इसकी कीमत निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कलेक्टर के संस्करण और अनूठी विशेषताएं भी समग्र लागत में योगदान कर सकती हैं।
क्या नर्मदेश्वर शिवलिंग के रखरखाव के लिए कोई विशेष सुझाव हैं?
हां, नर्मदेश्वर शिवलिंग(Narmadeshwar shivling price) की पवित्रता बनाए रखने में सरल सफाई और रखरखाव युक्तियाँ शामिल हैं। कठोर रसायनों से बचें और इसके आध्यात्मिक सार को संरक्षित करने के लिए इसे सावधानी से संभालें।
शिवांश नर्मदेश्वर शिवलिंग को संग्रहणीय वस्तु क्यों बनाती है?
शिवांश नर्मदेश्वर शिवलिंग(Narmadeshwar shivling price) को अक्सर इसकी अनूठी विशेषताओं, दुर्लभ विशेषताओं और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण कलाकृतियों को प्राप्त करने में बढ़ती रुचि के कारण संग्रहकर्ता की वस्तु माना जाता है।
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parasparivaarorg · 1 month ago
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सनातन धर्म की ज्योति: पारस भाई जी के साथ
सनातन धर्म, जिसे अक्सर हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है, केवल एक धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने का शाश्वत मार्ग है। यह सत्य, अहिंसा और धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा देता है। ऐसे कई प्रेरणादायक व्यक्तियों में से जिन्होंने सनातन धर्म के पवित्र मूल्यों को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए अपना जीवन समर्��ित किया है, पारस भाई जी एक अद्भुत प्रकाशपुंज के रूप में उभरते हैं। उनके कार्य हिंदू धर्म के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करते हैं, समाज को एकजुट करते हैं और अनगिनत लोगों के जीवन को प्रेरित करते हैं।
सनातन धर्म को सशक्त बनाने में पारस भाई जी की भूमिका
पारस भाई जी का सनातन धर्म के आदर्शों के प्रति समर्पण हर पहल में झलकता है। उनके प्रवचन, सामुदायिक कार्यक्रम, और आध्यात्मिक संगोष्ठियाँ धर्म के मार्ग पर चलने के महत्व को उजागर करते हैं। उनके शिक्षण निम्नलिखित पर केंद्रित हैं
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हिंदू भाइयों के बीच एकता को बढ़ावा देना: पारस भाई जी हिंदू भाइयों को करुणा, आदर और आध्यात्मिक ज्ञान के साझा मूल्यों के तहत एकजुट करने के लिए अथक प्रयास करते हैं। उनकी एकता की भावना सीमाओं से परे जाती है और व्यक्तियों को एक बड़े उद्देश्य के लिए प्रेरित करती है।
"जय माता दी" के संदेश का प्रसार: पारस भाई जी की देवी माँ के प्रति भक्ति असीम है। अपने उपदेशों में "जय माता दी" का उच्चारण करके, वे अपने अनुयायियों में विश्वास, भक्ति और समर्पण के गुणों को स्थापित करते हैं। देवी के प्रति उनकी श्रद्धा यह याद दिलाती है कि ईश्वरीय कृपा जीवन की चुनौतियों को पार करने में सहायक होती है।
पारस परिवार की भावना को प्रोत्साहित करना: पारस परिवार की अवधारणा उनके मिशन का मुख्य भाग है। इस पहल के माध्यम से, पारस भाई जी लोगों को एकजुट करते हैं, सामूहिक उद्देश्य और अपनत्व की भावना को बढ़ावा देते हैं। यह परिवार-केंद्रित दृष्टिकोण हिंदू धर्म के मूल मूल्यों को दर्शाता है, जो समुदाय और रिश्तों के महत्व को उजागर करता है।
सनातन धर्म का ज्ञान: शाश्वत मार्ग
सनातन धर्म, जिसे शाश्वत सत्य भी कहा जाता है, सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित है जो हर युग में प्रासंगिक हैं। पारस भाई जी अपने शिक्षण में निम्नलिखित सिद्धांतों पर जोर देते हैं:
सत्य: ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के साथ जीवन जीना धर्ममय जीवन का मूल है।
अहिंसा: सभी जीवों के प्रति सम्मान हिंदू धर्म का एक मौलिक मूल्य है।
सेवा: निःस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करना ईश्वर से जुड़ने का एक मार्ग है।
भक्ति: "जय माता दी" मंत्र में पारस भाई जी की भक्ति, आध्यात्मिक विकास को पोष��त करती है।
युवाओं को प्रेरित करने में पारस भाई जी की भूमिका
पारस भाई जी का एक बड़ा योगदान यह है कि वे युवा पीढ़ी से जुड़ने में सफल रहे हैं। आज के तेज़-तर्रार समय में, कई युवाओं को आध्यात्मिक प्रथाओं से जुड़ना चुनौतीपूर्ण लगता है। पारस भाई जी इस अंतर को भरने में सफल हुए हैं:
आधुनिक मंचों का उपयोग करना: सोशल मीडिया, यूट्यूब चैनल, और लाइव इवेंट्स के माध्यम से, वे लाखों लोगों तक पहुँचते हैं और सनातन धर्म की शिक्षाओं को सरल और प्रासंगिक बनाते हैं।
रिवाजों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना: पारस भाई जी युवा पीढ़ी को पारंपरिक हिंदू अनुष्ठानों, त्योहारों, और सामुदायिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे सांस्कृतिक गर्व का विकास होता है।
ज्ञान के साथ मार्गदर्शन देना: उनके आधुनिक चुनौतियों पर गहरे विचार और हिंदू दर्शन में आधारित व्यावहारिक समाधान उन्हें युवाओं के लिए एक मार्गदर्शक बनाते हैं।
पारस परिवार की दृष्टि
पारस परिवार केवल एक समूह नहीं बल्कि एक आंदोलन है, जो सामंजस्य, परस्पर सम्मान, और सामूहिक आध्यात्मिक विकास के आदर्शों को दर्शाता है। पारस भाई जी की इस परिवार के लिए दृष्टि एक वैश्विक नेटवर्क बनाने की है, जिसमें लोग सनातन धर्म के संरक्षण और प्रसार के लिए समर्पित हैं। इस पहल का उद्देश्य है:
ज़रूरतमंदों की सहायता के लिए चैरिटी गतिविधियों का आयोजन।
हिंदू धर्म की समृद्ध विरासत के बारे में जागरूकता फैलाना।
लोगों को उद्देश्यपूर्ण और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करना।
पारस भाई जी का आह्वान: सनातन धर्म को अपनाएँ
अपने शिक्षण के माध्यम से, पारस भाई जी हमें सनातन धर्म की गहरी बुद्धि की याद दिलाते हैं। वे जोर देते हैं कि सनातन धर्म के सिद्धांतों को अपनाना केवल एक धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि आंतरिक शांति प्राप्त करने और समाज के कल्याण में योगदान देने का एक तरीका है। उनका मंत्र, "जय माता दी," भक्तों में गूंजता है और उन्हें उस दिव्य ऊर्जा की याद दिलाता है जो सभी जीवन को बनाए रखती है।
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samparkpanditji · 7 months ago
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10 चत्मकारी फायदे सूर्य देव को सुबह उठकर जल चढ़ाने के
सूर्य देव को सुबह उठकर जल चढ़ाने की प्रथा प्राचीन हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके दस चमत्कारी फायदे इस प्रकार हैं:
शारीरिक और मानसिक शुद्धि: सूर्य को जल चढ़ाने से तन-मन शुद्ध होता है। यह क्रिया नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और सकारात्मकता का संचार करती है।
आत्मविश्वास में वृद्धि: सुबह-सुबह सूर्य को जल चढ़ाने से आत्मविश्वास बढ़ता है। इस प्रक्रिया से ��्यक्ति में आत्म-शक्ति का संचार होता है, जो दिनभर के कार्यों में सहायक होता है।
नेत्र ज्योति में सुधार: सूर्य की रोशनी को देखकर जल चढ़ाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। यह प्राकृतिक दृष्टि-सुधारक के रूप में कार्य करता है।
पाचन तंत्र की मजबूती: सुबह उठकर जल चढ़ाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है। इससे भोजन का सही पाचन होता है और पेट संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है।
मानसिक तनाव में कमी: सूर्य को जल चढ़ाने से मानसिक तनाव कम होता है। यह क्रिया मानसिक शांति प्रदान करती है और दिनभर की चिंताओं से मुक्त रखती है।
हृदय स्वास्थ्य में सुधार: सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करने से हृदय स्वस्थ रहता है। यह रक्त संचार को सुधारता है और हृदय संबंधी रोगों से बचाव करता है।
त्वचा में निखार: सूर्य की किरणों के संपर्क में आने से त्वचा में निखार आता है। यह प्रक्रिया त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाती है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: नियमित रूप से सूर्य को जल चढ़ाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इससे बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
आध्यात्मिक शांति: यह क्रिया आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति में आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
समृद्धि के मार्ग: सूर्य को जल चढ़ाने से समृद्धि के मार्ग खुलते हैं। यह प्रक्रिया धन-धान्य और समृद्धि का संचार करती है, जिससे जीवन में सुख-शांति आती है।
सूर्य को जल चढ़ाने की इन प्रथाओं से व्यक्ति के जीवन में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं, जिससे जीवन सुखमय और संतुलित बनता है।
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najninkoshr · 11 months ago
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हिंदू धर्म में ईश्वर-प्रेमी आत्माएं विभिन्न मान्यताओं और धार्मिक प्रथाओं का पालन करती हैं। हम अपनी पवित्र पुस्तकों पर शोध और अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन अभी तक हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं कि हिंदू धर्म में सर्वोच्च और सबसे शक्तिशाली भगवान कौन है? विभिन्न शास्त्र, गुरु, पंडित और संत अलग-अलग देवताओं की महिमा करते हैं। हिंदू धर्म में वह सर्वोच्च ईश्वर कौन है, जिसकी पूजा करने से हमें सभी लाभ मिल सकते हैं, इसके बारे में अब तक कोई भी हमें निर्णायक जानकारी नहीं दे पाया है।#हे_मेरी_कौम_के_हिंदुओं
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worldgirlsportal · 1 year ago
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विश्व का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर: robbinsville, new Jersey में विश्व रिकॉर्ड
रॉबिंसविले, न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका--बोचासनवासी अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) श्री स्वामीनारायण मंदिर, जिसे मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, एक 162 एकड़ का हिंदू मंदिर (मंदिर) परिसर है जो 68,000 क्यूबिक फीट इताल���ी बढ़ईगीरी का उपयोग करके नागरडी शैली में बनाया गया है। विश्व रिकॉर्ड अकादमी के अनुसार, संगमरमर ने दुनिया में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होने का विश्व रिकॉर्ड बनाया।
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"Swaminarayan Akshardham Robbinsville, न्यू जर्सी में एक (hindu mandir) परिसर है। परिसर के एक घटक BAps श्री स्वामीनारायण मंदिर का उद्घाटन 10 Agast 2014 को india के बाहर ) दुनिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिर के रूप में किया गया था। मंदिर भौगोलिक रूप से अमेरिका के पूर्वोत्तर मेगालोपोलिस के केंद्र में स्थित है। स्थित और नेवार्क अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के अपेक्षाकृत करीब है, जो भारत के लिए नॉनस्टॉप उड़ानें संचालित करता है। परिसर के कुछ हिस्सों में अक्षरधाम महामंदिर और आगंतुक केंद्र शामिल हैं। हिंदू धर्म और संस्कृति की प्रदर्शनी।
"मंदिर का निर्माण नागराडी शैली में 68,000 घन फीट इतालवी कैरारा संगमरमर का उपयोग करके किया गया था। यूरोप में खदानों से प्राप्त संगमरमर को भारत के राजस्थान में भेजा गया था, जहां सैकड़ों कारीगरों ने पत्थरों पर नक्काशी की थी। कार्यशाला में पत्थर के तैयार टुकड़ों को इकट्ठा करने के बाद, इंजीनियरों ने टुकड़ों को क्रम से गिना और उन्हें रॉबिन्सविले भेज दिया। उनके आगमन पर, मंदिर के निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए टुकड़ों को एक नंबरिंग प्रणाली का उपयोग करके व्यवस्थित किया गया।
क्या अक्षरधाम में काले कपड़े पहनने की अनुमति है? (Is black clothes allowed in Akshardham)
अक्षरधाम में काले कपड़े पहनने की अनुमति नहीं है। अक्षरधाम एक हिंदू धार्मिक ��्थल है और वहां के नियमों में आमतौर पर शुद्ध और सात्विक वस्त्र पहनने की सलाह दी जाती है। श्याम रंग (काला) अक्षरधाम में अनुचित माना जाता है, क्योंकि यह मान्यता है कि भगवान कृष्ण श्याम रंग के होते हैं और उनके समर्पित स्थान पर श्याम रंग की पहनावे की अनुमति नहीं होती है।
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हालांकि, इस बारे में सटीक और विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए मैं आपको सुझाव देता हूँ कि आप सीधे अक्षरधाम संपर्क करें और वहां के प्रशासनिक अधिकारियों से यह सुनिश्चित करें। वे आपको विस्तृत जानकारी और निर्देश प्रदान कर सकेंगे।
क्या अक्षरधाम मंदिर में छोटे कपड़े पहनने की अनुमति है?(Is short dress allowed in Akshardham Temple)
अक्षरधाम मंदिर के नियमों और अनुशासन की पूरी जानकारी नहीं है क्योंकि मेरी ज्ञान सीमा 2021 तक ही है। तथापि, विशाल और प्रसिद्ध मंदिरों में आमतौर पर कपड़े की निश्चित धार्मिक नियम होते हैं।
इसलिए, यदि आप अक्षरधाम मंदिर के बारे में निश्चित नियम जानना चाहते हैं, तो मैं आपको सलाह देता हूं कि आप संबंधित मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं या संपर्क करें ताकि आप उचित जानकारी प्राप्त कर सकें। मंदिर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के आधार पर नियम बनाते हैं, इसलिए यह अवश्यक है कि आप संबंधित नियमों को समझें और पालन करें।
क्या अक्षरधाम में शॉर्ट्स पहनने की अनुमति है? (Are shorts allowed in Akshardham)
अक्षरधाम मंदिर के विशेष नियमों की जानकारी नहीं है। विभिन्न मंदिरों में शॉर्ट्स पहनने के बारे में नियम अलग-अलग हो सकते हैं।
आमतौर पर, भारतीय मंदिरों में आदर्श रूप से विधान बनाए गए हैं और उचित संगठनता और शांति के लिए संबंधित नियमों का पालन किया जाता है। शॉर्ट्स, खुले कपड़े और अनुचित वस्त्र पहनने के मामले में, कुछ मंदिर ऐसे नियम लागू कर सकते हैं जो उचितता और पावनता के संरक्षण की दृष्टि से सामर्थ्यपूर्ण होते हैं।
यदि आप अक्षरधाम मंदिर के नियमों के बारे में निश्चित जानकारी चाहते हैं, तो आपको संबंधित मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट या संपर्क विवरण पर जाकर उचित जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। वे आपको संबंधित नियमों और पहन��वे के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
क्या आप अक्षरधाम मंदिर में जूते पहन सकते हैं?(Can you wear shoes in AkshardhamTemple)
अक्षरधाम मंदिर के विशेष नियमों की जानकारी के बारे में मुझे नहीं पता है, लेकिन सारे मंदिरों में जूते पहनने की अनुमति नहीं होती है। वैदिक संस्कृति में भगवान की पूजा के समय और मंदिर में जूते नहीं पहने जाते हैं, इसलिए आपको अक्षरधाम मंदिर के नियमों को समझने और पालन करने की सलाह दी जाती है।
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यदि आप विशेषता के बारे में जानना चाहते हैं, तो आपको संबंधित मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट या संपर्क विवरण पर जाकर नियमों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। आपको वहां संबंधित नियमों के बारे में जानकारी मिलेगी जिससे आप उचित तरीके से जूते पहन सकेंगे या उन्हें मंदिर के बाहर छोड़ सकेंगे।
रॉबिंसविले अक्षरधाम का उद्घाटन (Robbinsville Akshardham opening)
रॉबिंसविले अक्षरधाम कब उद्घाटित किया गया है। अगर आपको रॉबिंसविले अक्षरधाम के बारे में अधिक जानकारी चाहिए, तो मैं आपको सलाह देता हूँ कि आप संबंधित स्थानीय सूत्रों, अखबारों, या आधिकारिक वेबसाइटों की जाँच करें जो रॉबिंसविले अक्षरधाम के उद्घाटन के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
न्यू जर्सी हिंदू मंदिर (New Jersey Hindu temple)
न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित है और यहां कई हिंदू मंदिर स्थापित हैं। न्यू जर्सी के विभिन्न शहरों और प्रदेशों में हिंदू समुदाय के लोग रहते हैं और इसलिए यहां कई मंदिरों की स्थापना हुई है।
न्यू जर्सी में कुछ प्रमुख हिंदू मंदिरों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
श्री वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर, रोबिनवुड: यह मंदिर रोबिनवुड, न्यू जर्सी में स्थित है और वेंकटेश्वर बालाजी को समर्पित है। यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है और स्थानीय हिंदू समुदाय की मुख्य धार्मिक आयोजनों में से एक है।
श्री कृष्ण मंदिर, प्लेनफिल्ड: यह मंदिर प्लेनफिल्ड, न्यू जर्सी में स्थित है और श्री कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर हिंदी मंडल ऑफ प्लेनफिल्ड द्वारा संचालित होता है और स्थानीय समुदाय के लोगों के बीच बड़ी प्रसिद्धि है।
बीएपीएस न्यू जर्सी अक्षरधाम का उद्घाटन (BAPS New Jersey Akshardham opening)
न्यू जर्सी में बीएपीएस (ब्रह्मकुमारीज ईश्वरीय विद्यालय) द्वारा अक्षरधाम का उद्घाटन नहीं हुआ है। यह जानकारी मेरे नवीनतम ज्ञान के अनुसार है और उसके बाद के वक्त में कुछ बदल चुका हो सकता है।
अक्षरधाम एक विशाल हिंदू मंदिर है जो बीएपीएस द्वारा प्रबंधित ��िया जाता है। इसका मुख्य केंद्र दिल्ली, भारत में स्थित है, और यह विश्वविद्यालय और ध्यान केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां पर्यटकों को शांति और मनोचिंतन के लिए एक आध्यात्मिक वातावरण प्रदान किया जाता है, जहां उन्हें ध्यान, प्रार्थना, और आध्यात्मिक अभ्यास करने का अवसर मिलता है।
मैं सिर्फ अपडेटेड जानकारी दे सकता हूँ जो मेरे ज्ञान की सीमा तक है। यदि अक्षरधाम के बारे में कोई नई जानकारी हुई है, तो आपको स्थानीय स्रोतों या बीएपीएस की आधिकारिक वेबसाइट से जानकारी लें.
स्वामीनारायण अक्षरधाम (उत्तरी अमेरिका) (swaminarayan akshardham (north america)
स्वामीनारायण अक्षरधाम (Swaminarayan Akshardham) एक प्रमुख हिंदू मंदिर है जो दिल्ली, भारत में स्थित है। इसके अलावा, एक स्वामीनारायण अक्षरधाम उत्तरी अमेरिका में भी स्थापित है।
स्वामीनारायण अक्षरधाम (उत्तरी अमेरिका) न्यूजर्सी राज्य, संयुक्त राज्य अमेरिका के रोबबिन्सविल, न्यूजर्सी में स्थित है। यह मंदिर हिंदू धर्म और सांस्कृतिक परंपराओं को संजोने और प्रचारित करने का उद्देश्य रखता है। इसका निर्माण बूटी बेगम स्वामीनारायण अक्षरधाम (दिल्ली, भारत) के सामान्य प्रमुख प्रमाण में हुआ है और इसे सन् 2014 में उद्घाटन किया गया था।
स्वामीनारायण अक्षरधाम (उत्तरी अमेरिका) एक विशाल मंदिर संगठन है जिसमें भगवान स्वामीनारायण, अक्षरब्रह्म और गुणातितानन्द स्वामी की प्रतिष्ठाएं हैं। यहां परंपरागत हिंदू स्थानीय प्रवासी समुदाय और अन्य धार्मिक समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र की भूमिक है.
संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे बड़ा स्वामीनारायण मंदिर कौन सा है? (Which is the biggest Swaminarayan temple in USA)
संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे बड़ा स्वामीनारायण मंदिर "स्वामीनारायण अक्षरधाम" है, जो न्यूजर्सी राज्य के रोबबिन्सविल में स्थित है। यह विशाल मंदिर संगठन, जिसे "श्री स्वामीनारायण मंदिर" भी कहा जाता है, दिल्ली, भारत में स्थित स्वामीनारायण अक्षरधाम (दिल्ली) के समकक्ष के रूप में विकसित किया गया है। इस मंदिर में हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं, विशेष रूप से स्वामीनारायण भगवान, अक्षरब्रह्म और गुणातितानन्द स्वामी की प्रतिष्ठाएं हैं। यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और अमेरिकी संस्कृति और धर्म के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करता है।
 BAPS अक्षरधाम की लागत कितनी है? (How much does BAPS Akshardham cost)
BAPS (Bochasanwasi Shri Akshar Purushottam Swaminarayan Sanstha) अक्षरधाम मंदिरों की लागत भिन्न-भिन्न होती है और यह विभिन्न परियोजनाओं और स्थानों पर निर्भर करती है। लागत इमारत की विशालता, कार्यक्रमों की संख्या, सुंदरता और सामान्य बौद्धिक और धार्मिक व्यवस्थाओं के अनुरूप होती है।
सामान्य रूप से, BAPS अक्षरधाम मंदिरों का निर्माण काफी महंगा होता है क्योंकि वे बड़े और महानतम धार्मिक स्थल होते हैं। इसलिए, इन मंदिरों की लागत करोड़ों डॉलर तक पहुंच सकती है। हालांकि, यह लागत स्थान, आकार और विभिन्न प्रावधानों के आधार पर अलग-अलग हो सकती है।
आपकी प्रश्न में विशेष रूप से किसी विशेष BAPS अक्षरधाम की लागत के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया है, इसलिए मैं विस्तृत जानकारी प्रदान नहीं कर सकता हूँ। इसलिए, यदि आपको किसी विशेष BAPS अक्षरधाम की लागत के बारे में जानना है, तो ��ुझे विशेष ब्यूरो और प्राधिकरण के संपर्क करने की सलाह दी जाती है।
 BAPS रॉबिंसविले के लिए ड्रेस कोड क्या है? (What is the dress code for BAPS Robbinsville)
BAPS रॉबिंसविले (BAPS Robbinsville) मंदिर में एक आधारिक ड्रेस कोड होता है जिसे पालन किया जाना चाहिए। इसका मकसद धार्मिक आदर्शों, संस्कृति और शुद्धता को बनाए रखना है। यहां कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देश दिए जाते हैं:
पुरुषों के लिए: धार्मिक उपास्यों में धोती या पैंतालून और कुर्ता पहनना संस्कृति के अनुसार उचित माना जाता है। साथ ही, सफेद रंग की धोती और कुर्ता का उपयोग करना आपके लिए उचित होगा।
महिलाओं के लिए: साड़ी या सूट शलवार की पहनावे संबंधित संस्कृति के अनुसार उचित माने जाते हैं। साथ ही, सफेद रंग की साड़ी और शलवार का उपयोग करना आपके लिए उचित होगा।
ध्यान देने योग्य बातें: विशेष तौर पर मंदिर क्षेत्र में पैर के लिए पुरुषों के लिए जूते और महिलाओं के लिए चप्पल पहनना अनुचित माना जाता है। साथ ही, अपने शरीर को विश्राम और शांति देने के लिए मोबाइल फोन, फोटोग्राफी, खाद्य आदि का उपयोग कम से कम करें. 
 अक्षरधाम न्यू जर्सी का ड्रेस कोड क्या है? (What is the dress code for Akshardham New Jersey)
अक्षरधाम, न्यू जर्सी का आधिकारिक ड्रेस कोड सफेद रंग की कुर्ता-पजामा और साड़ी है। यह ड्रेस कोड स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर के धार्मिक और सांस्कृतिक अनुसार निर्धारित किया गया है।
पुरुषों के लिए:
सफेद रंग की कुर्ता-पजामा, जिसे व्यापक रूप से कुर्ता-पजामा सेट के रूप में जाना जाता है, पहनना आवश्यक होता है। धोती के बजाय पजामा पहना जा सकता है।
महिलाओं के लिए:
सफेद रंग की साड़ी पहननी चाहिए। इसके साथ संगीता ब्लाउज भी पहनी जा सकती है।
यह ड्रेस कोड अक्षरधाम मंदिर में उपस्थित आपकी आदर्श ड्रेसिंग के लिए सिफारिश की जाती है। यह आपके आपकी भक्ति और सम्मान का प्रतीक होता है। इसलिए, जब आप अक्षरधाम न्यू जर्सी की यात्रा करें, इस ड्रेस कोड का पालन करना सुनिश्चित करें।
 क्या अक्षरधाम में लड़कियां जींस पहन सकती हैं? (Can girls wear jeans in Akshardham)
अक्षरधाम जर्सी में लड़कियां जींस पहन सकती हैं। अक्षरधाम जर्सी एक शॉपिंग मॉल है जहां आपको विभिन्न ब्रांड्स की वस्त्रों और फैशन आइटम्स की विक्रेता मिलेंगे। वहां आपको जींस जैकेट, जींस पेंट, और अन्य जींस उपयोग की वस्त्रों की विविधता मिलेगी। इसलिए, जब भी आप अक्षरधाम जर्सी में जाते हैं, आपको जींस पहनने की विकल्प उपलब्ध होगी।
Read Full Article: https://www.worldgirlsportal.com/tours-and-travels/baps-akshardham-temple-in-robbinsville-usa/
English Details: https://www.worldgirlsportal.com/tours-and-travels/akshardham-temple-america/
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thestudyofpast · 1 year ago
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हिंदू धर्म में सप्तऋषि कौन थे और हिंदू धर्म में उनका योगदान?
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हिंदू पौराणिक कथाओं में, “सप्तर्षि” (सप्तऋषि या सात संतों के रूप में भी लि��े गए) सात प्राचीन संत या द्रष्टा हैं जिन्होंने हिंदू परंपरा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्हें ब्रह्मांड के सात खगोलीय संरक्षक माना जाता है, और उनके नाम हैं:
अत्री भारद्वाज गौतम जमदग्नि काश्यप वशिष्ठ विश्वामित्र
इन सात संतों को कई वंशों के पूर्वज माना जाता है, और हिंदू धर्म में उनके योगदान में कई वैदिक भजनों की रचना, दार्शनिक ग्रंथ और विभिन्न आध्यात्मिक प्रथाओं की स्थापना शामिल है।
अत्री: अत्रि अपनी तपस्या और भगवान ब्रह्मा की भक्ति के लिए जाने जाते थे। उन्हें ऋग्वेद में कई भजनों की रचना करने का श्रेय दिया जाता है और वे ऋषि दुर्वासा के पिता थे।
भारद्वाज: भारद्वाज आयुर्वेद के विशेषज्ञ थे और कहा जाता है कि उन्होंने चिकित्सा पर कई ग्रंथ लिखे हैं। वह ऋषि भारद्वाज (इसी नाम के एक अन्य ऋषि) के शिष्य थे।
गौतम: गौतम अपनी बुद्धि और वेदों के ज्ञान के लिए जाने जाते थे। वह अहिल्या के पिता थे, जिन्हें भगवान इंद्र ने श्राप दिया था और बाद में भगवान राम ने उन्हें मुक्त कर दिया था।
जमदग्नि: जमदग्नि एक शक्तिशाली ऋषि और भगवान विष्णु के अवतार परशुराम के पिता थे। वह अपनी तपस्या और भगवान शिव की भक्ति के लिए जाने जाते थे।
कश्यप: कश्यप एक महान ऋषि थे और कई पौराणिक प्राणियों के पिता थे, जिनमें देव, असुर, नाग और गरुड़ शामिल थे। उनका विवाह देवों की माता अदिति से हुआ था।
वशिष्ठ: वशिष्ठ एक ऋषि और भगवान राम के सलाहकार थे। उन्हें वेदों के अपने ज्ञान और हिंदू दर्शन को आकार देने में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता था। कहा जाता है कि उन्होंने ऋग्वेद में कई सूक्तों की रचना की थी।
विश्वामित्र: विश्वामित्र अपने पहले जीवन में एक शक्तिशाली ऋषि और राजा थे। वह अपनी तपस्या और राक्षस राजा रावण को हराने में भगवान राम की मदद करने में उनकी भूमिका के लिए जाने जाते हैं। ऋग्वेद में अनेक सूक्तों की रचना करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है।
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sphhindi · 1 year ago
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ध्वजारोहण समारोह
ध्वजारोहण एक प्राचीन हिंदू अनुष्ठान है जो ब्रह्मोत्सवम के दौरान मंदिर के ध्वजस्तंभ के ऊपर फहराया जा��ा है। यह अनुष्ठान हिंदू धर्म में सबसे पवित्र और शक्तिशाली प्रथाओं में से एक है। यदि आप तीव्र सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करना चाहते हैं और अपने आंतरिक स्व से जुड़ना चाहते हैं, तो आपको गुरु पूर्णिमा ब्रह्मोत्सवम पर ध्वजारोहण अनुष्ठान को नहीं छोड़ना चाहिए।
इस लाइव वीडियो में, आप गुरु पूर्णिमा ब्रह्मोत्सवम के शुभ दिवस पर आयोजित ध्वजारोहण समारोह देखेंगे। समारोह एक अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन में आयोजित किया जाएगा जो अनुष्ठान में प्रत्येक चरण के महत्व को समझाएगा। आप मंदिर के पुजारियों को विभिन्न पवित्र प्रसाद, प्रार्थनाएँ और मंत्रोच्चार करते हुए भी देखेंगे।
इस वीडियो को देखकर, आप न केवल अनुष्ठान की सुंदरता और भव्यता का अनुभव करेंगे, बल्कि आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि भी प्राप्त करेंगे और अपने आंतरिक स्व से जुड़ेंगे। इस अनूठे और दुर्लभ अनुभव का हिस्सा बनने का अवसर न चूकें जो आपके जीवन को बदल सकता है। इस लाइव प्रसारण को देखें और स्वयं को प्राचीन अनुष्ठान के स्पंदनों में डुबो दें।
ध्वजारोहण #हिंदू अनुष्ठान #ब्रह्मोत्सवमोत्सव #गुरुपूर्णिमा #ध्वजारोहण समारोह #तीव्र ऊर्जा #पवित्र प्रसाद #मंदिर के पुजारी #मंत्र #आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि
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salasarjigemsllp222 · 2 years ago
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Gauri Shankar Rudraksha(गौरी शंकर रुद्राक्ष)
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Gauri Shankar Rudraksha is a type of Rudraksha bead that is considered highly auspicious in Hinduism. It is a rare and unique bead that represents the combined energy of Lord Shiva and Goddess Parvati.
The Gauri Shankar Rudraksha is formed when two Rudraksha beads naturally join together, symbolizing the union of Shiva and Shakti or the male and female energies. It is believed to have a strong influence on relationships, harmony, and unity.
This Rudraksha bead is often used in meditation and spiritual practices to enhance one's spiritual growth and to balance the energies within the body. It is said to help the wearer connect with their inner self, increase clarity and concentration, and improve overall well-being.
Wearing or meditating with a Gauri Shankar Rudraksha is believed to bring about a sense of calmness and harmony, and promote a deeper understanding of the self and others. It is often recommended for people who wish to improve their relationships, both in their personal and professional lives.
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गौरी शंकर रुद्राक्ष एक प्रकार का रुद्राक्ष है जिसे हिंदू धर्म में अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह एक दुर्लभ और अद्वितीय मनका है जो भगवान शिव और देवी पार्वती की संयुक्त ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है।
गौरी शंकर रुद्राक्ष तब बनता है जब दो रुद्राक्ष की माला स्वाभाविक रूप से एक साथ जुड़ती है, जो शिव और शक्ति या पुरुष और महिला ऊर्जा के मिलन का प्रतीक है। माना जाता है कि इसका रिश्तों, सद्भाव और एकता पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
यह रुद्राक्ष मनका अक्सर आध्यात्मिक विकास को बढ़ाने और शरीर के भीतर ऊर्जा को संतुलित करने के लिए ध्यान और आध्यात्मिक प्रथाओं में प्रयोग किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पहनने वाले को अपने भीतर से जुड़ने में मदद मिलती है, स्पष्टता और एकाग्रता बढ़ती है, और समग्र कल्याण में सुधार होता है।
माना जाता है कि गौरी शंकर रुद्राक्ष के साथ पहनने या ध्यान करने से शांति और सद्भाव की भावना आती है, और स्वयं और दूसरों की गहरी समझ को बढ़ावा मिलता है। यह अक्सर उन लोगों के लिए सिफारिश की जाती है जो अपने निजी और पेशेवर जीवन दोनों में अपने रिश्तों को बेहतर बनाना चाहते हैं।
RUDRAKSH
1 Mukhi Rudraksh
2 Mukhi Rudraksh
3 Mukhi Rudraksh
4 Mukhi Rudraksh
5 Mukhi Rudraksh
6 Mukhi Rudraksh
7 Mukhi Rudraksh
CORAL BEADS & BRACELETS
Coral Munga
Coral Beads
Pearl Beads
Healing Bracelet
Rudraksha Bracelet
Japa Mala
Rudraksha Mala
222, Aggarwal tower 2nd Floor I.P Extension Patparganj Delhi-110092
070428 91757
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dainiksamachar · 2 years ago
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सबसे बड़ा और पुराना धर्म है हिंदू... पहली बार किसी अमेरिकी राज्य में 'हिंदूफोबिया' के खिलाफ प्रस्ताव पारित
वॉशिंगटन : अमेरिका की जॉर्जिया असेंबली ने 'हिंदूफोबिया' (हिंदू धर्म के प्रति पूर्वाग्रह) की निंदा करने वाला एक प्रस्ताव पारित किया है। यह इस तरह का कानूनी उपाय करने वाला ��हला अमेरिकी राज्य बन गया है। हिंदूफोबिया और हिंदू विरोधी कट्टरता की निंदा करते हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि 'हिंदू धर्म दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना धर्म है' और दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में 1.2 अरब लोग इस धर्म को मानते हैं। प्रस्ताव में कहा गया कि यह धर्म स्वीकार्यता, आपसी सम्मान और शांति के मूल्यों के साथ विविध परंपराओं और आस्था प्रणालियों को सम्मिलित करता है।इस प्रस्ताव को अटलांटा की फोरसाइथ काउंटी से जनप्रतिनिधि लॉरेन मैक्डोनल्ड और टॉड जोन्स ने पेश किया था। अटलांटा में बड़ी संख्या में हिंदू और भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लोग रहते हैं। प्रस्ताव में कहा गया है कि अमेरिकी-हिंदू समुदाय का चिकित्सा, विज्ञान और इंजीनियरिंग, सूचना प्रौद्योगिकी, आतिथ्य, वित्त, शिक्षा, विनिर्माण, ऊर्जा और खुदरा व्यापार जैसे विविध क्षेत्रों में प्रमुख योगदान रहा है। 'हिंदू धर्म ने सुधारा लोगों का जीवन' इसमें कहा गया है कि योग, आयुर्वेद, ध्यान, भोजन, संगीत और कला के क्षेत्र में समुदाय के योगदान ने सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध किया है। साथ ही इसे अमेरिकी समाज में व्यापक रूप से अपनाया गया है तथा इसने लाखों लोगों के जीवन को सुधारा है। प्रस्ताव में कहा गया है कि बीते कुछ साल में देश के कई हिस्सों में हिंदू-अमेरिकियों के खिलाफ नफरती अपराध के कई मामले दर्ज हुए हैं। प्रस्ताव के मुताबिक, कुछ ऐसे 'शिक्षाविदों ने हिंदूफोबिया को भड़काया है जो हिंदू धर्म को नष्ट करने का समर्थन करते हैं और इसके पवित्र ग्रंथों और सांस्कृतिक प्रथाओं पर हिंसा और उत्पीड़न को बढ़ावा देने' का आरोप लगाते हैं। अमेरिका में मनाया गया 'हिंदू एडवोकेसी डे' इस प्रस्ताव संबंधी कदम की अगुवाई 'कॉलिशन ऑफ हिंदूज़ ऑफ नॉर्थ अमेरिका' (सीओएचएनए) की अटलांटा इकाई ने की है। उसने 22 मार्च को 'जॉर्जिया स्टेट कैपिटल' में 'हिंदू एडवोकेसी डे' का आयोजन किया था। इसमें करीब 25 जनप्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था जिसमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी, दोनों के सदस्य शामिल थे। सीओएचएनए के उपाध्यक्ष राजीव मेनन ने कहा, 'मैकडॉनल्ड और जोन्स के साथ-साथ अन्य जन प्रतिनिधियों के साथ काम करना बड़े सम्मान की बात है जिन्होंने इस प्रस्ताव को पारित करने की पूरी प्रक्रिया के दौरान हमारा मार्गदर्शन किया।' http://dlvr.it/Sls946
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karanaram · 3 years ago
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🚩 आखिर क्यों 10 मई 1857 को ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की पहली चिंगारी लगी थी❓, ये जानना जरूरी है। 10 मई 2022
🚩वर्ष 1857 में वह ऐतिहासिक दिन 10 मई ही था, जब देश की आजादी के लिए पहली चिंगारी मेरठ से भड़की थी। अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव साल 1857 में सबसे पहले मेरठ के सदर बाजार में भड़की, जो पूरे देश में फैल गई थी। यह मेरठ के साथ-साथ पूरे देश के लिए गौरव की बात है।
🚩1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी। इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई। क्रांति की शुरूआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, लेकिन समय के साथ उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया।
🚩आइये आजादी की पहली लड़ाई के इस वर्षगांठ के मौके पर इससे जुड़ी खास बातें जानते हैं…
🚩19वीं सदी की पहली आधी सदी के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा हो चुका था। जैसे-जैसे ब्रिटिश शासन का भारत पर प्रभाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे भारतीय जनता के बीच ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष फैलता गया। पलासी के युद्ध के एक सौ साल बाद ब्रिटिश राज के दमनकारी और अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ असंतोष विद्रोह के रूप में भड़कने लगा जिसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो इससे पहले देश के अलग-अलग हिस्सों में कई घटनाएं घट चुकी थीं। जैसे कि 18वीं सदी के अंत में उत्तरी बंगाल में संन्यासी आंदोलन और बिहार एवं बंगाल में चुआड़ आंदोलन हो चुका था। 19वीं सदी के मध्य में कई किसान आंदोलन हुए।
🚩19वी सदी के पहले 5 दशकों में कई जनजातीय विद्रोह भी हुए, जैसे- मध्य प्रदेश में भीलों का, बिहार में संथालों और ओडिशा में गोंड़ एवं खोंड़ जनजातियों का विद्रोह अहम था। लेकिन इन सभी आंदोलनों का प्रभाव क्षेत्र बहुत सीमित था यानी ये स्थानीय प्रकृति के थे। अंग्रेजों के खिलाफ जो संगठित पहला विद्रोह भड़का वह 1857 में था। शुरू में तो यह सिपाहियों के विद्रोह के रूप में भड़का लेकिन बाद में यह जनव्यापी क्रांति बन गया।
🚩विद्रोह के कौन-कौन से कारण थे???
🚩राजनीतिक कारण
🚩1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनीतिक कारण ब्रिटिश सरकार की ‘गोद निषेध प्रथा’ या ‘हड़प नीति’ थी। यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति थी जो ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के दिमाग की उपज थी। कंपनी के गवर्नर जनरलों ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए। उदाहरण के लिए, किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय राजाओं में बहुत असंतोष पैदा हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर नहीं बैठने दिया गया। हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। अब अन्य राजाओं को भय सताने लगा कि उनका भी विलय थोड़े दिनों की बात रह गई है। इसके अला��ा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब की पेंशन रोक दी गई जिससे भारत के शासक व��्ग में विद्रोह की भावना मजबूत होने लगी।
🚩आग में घी का काम उस घटना ने किया जब बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों को लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी गई। कुशासन के नाम पर लार्ड डलहौजी ने अवध का विलय करा लिया जिससे बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, अधिकारी एवं सैनिक बेरोजगार हो गए। इस घटना के बाद जो अवध पहले तक ब्रिटिश शासन का वफादार था, अब विद्रोही बन गया।
🚩सामाजिक एवं धार्मिक कारण
🚩भारत में तेजी से पैर पसारती पश्चिमी सभ्यता को लेकर समाज के बड़े वर्ग में आक्रोश था। 1850 में ब्रिटिश सरकार ने हिंदुओं के उत्तराधिकार कानून में बदलाव कर दिया और अब क्रिस्चन धर्म अपनाने वाला हिंदू ही अपने पूर्वजों की संपत्ति में हकदार बन सकता था। इसके अलावा मिशनरियों को पूरे भारत में धर्म परिवर्तन की छूट मिल गई थी। लोगों को लगा कि ब्रिटिश सरकार भारतीय लोगों को क्रिस्चन बनाना चाहती है। भारतीय समाज में सदियों से चली आ रही कुछ प्रथाओं, जैसे- सती प्रथा आदि को समाप्त करने पर लोगों के मन में असंतोष पैदा हुआ।
🚩आर्थिक कारण
🚩भारी टैक्स और राजस्व संग्रहण के कड़े नियमों के कारण किसान और जमींदार वर्गों में असंतोष था। इन सबमें से बहुत से ब्रिटिश सरकार की टैक्स मांग को पूरा करने में असक्षम थे और वे साहूकारों का कर्ज चुका नहीं पा रहे थे जिससे अंत में उनको अपनी पुश्तैनी जमीन से हाथ धोना पड़ता था। बड़ी संख्या में सिपाहियों का इन किसानों से संबंध था और इसलिए किसानों की पीड़ा से वे भी प्रभावित हुए।
🚩इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारतीय बाजार ब्रिटेन में निर्मित उत्पादों से पट गए। इससे भारत का स्थानीय कपड़ा उद्योग खासतौर पर तबाह हो गया। भारत के हस्तशिल्प उद्योग ब्रिटेन के मशीन से बने सस्ते सामानों का मुकाबला नहीं कर पाए। भारत कच्ची सामग्री का सप्लायर और ब्रिटेन में बने सामानों का उपभोक्ता बन गया। जो लोग अपनी आजीविका के लिए शाही संरक्षण पर आश्रित थे, सभी बेरोजगार हो गए। इसलिए अंग्रेजों के खिलाफ उनमें काफी गुस्सा भरा हुआ था।
🚩सैन्य कारण
🚩भारत में ब्रिटिश सेना में 87 फीसदी से ज्यादा भारतीय सैनिक थे। उनको ब्रिटिश सैनिकों की तुलना में कमतर माना जाता था। एक ही रैंक के भारतीय सिपाही को यूरोपीय सिपाही के मुकाबले कम वेतन दिया जाता था। इसके अलावा भारतीय सिपाही को सूबेदार रैंक के ऊपर प्रोन्नति नहीं मिल सकती थी। इसके अलावा भारत में ब्रिटिश शासन के विस्तार के बाद भारतीय सिपाहियों की स्थिति बुरी तरह प्रभावित हुई। उनको अपने घरों से काफी दूर-दूर सेवा देनी पड़��ी थी। 1856 में लार्ड कैनिंग ने एक नियम जारी किया जिसके मुताबिक सैनिकों को भारत के बाहर भी सेवा देनी पड़ सकती थी।
🚩बंगाल आर्मी में अवध के उच्च समुदाय के लोगों की भर्ती की गई थी। उनकी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, उनका समुद्र (कालापानी) पार करना वर्जित था। उनलोगों को लार्ड कैनिंग के नियम से शक हुआ कि ब्रिटिश सरकार उनलोगों को क्रिस्चन बनाने पर तुली हुई है। अवध के विलय के बाद नवाब की सेना को भंग कर दिया गया। उनके सिपाही बेरोजगार हो गए और ब्रिटिश हुकूमत के कट्टर दुश्मन बन गए।
🚩तात्कालिक कारण
🚩1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारणों में यह अफवाह थी कि 1853 की राइफल के कारतूस की खोल पर सूअर और गाय की चर्बी लगी हुई है। यह अफवाह हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही थी। ये राइफलें 1853 के राइफल के जखीरे का हिस्सा थीं।
🚩मंगल पांडे
🚩29 मार्च, 1857 ई. को मंगल पांडे नाम के एक सैनिक ने ‘बैरकपुर छावनी’ में अपने अफसरों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, लेकिन ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों ने इस सैनिक विद्रोह को सरलता से नियंत्रित कर लिया और साथ ही उसकी बटालियन ’34 एन.आई.’ को भंग कर दिया। 24 अप्रैल को 3 एल.सी. परेड मेरठ में 90 घुड़सवारों में से 85 सैनिकों ने नए कारतूस लेने से इंकार कर दिया। आज्ञा की अवहेलना के कारण इन 85 घुड़सवारों को कोर्ट मार्शल द्वारा 5 वर्ष का कारावास दिया गया। ‘खुला विद्रोह’ 10 मई, दिन रविवार को सांयकाल 5 व 6 बजे के मध्य प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम पैदल टुकड़ी ’20 एन.आई.’ में विद्रोह की शुरूआत हुई, उसके बाद ‘3 एल.सी.’ में भी विद्रोह फैल गया। इन विद्रोहियों ने अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियां चलाई। मंगल पांडे ने ‘ह्यूसन’ को गोली मारी थी, जबकि ‘अफसर बाग’ की हत्या कर दी गई थी। मंगल पांडे को 8 अप्रैल को फांसी दे दी गई। 9 मई को मेरठ में 85 सैनिकों ने नई राइफल इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया जिनको नौ साल जेल की सजा सुनाई गई।
🚩विद्रोह का प्रसार
🚩इस घटना के बाद मेरठ छावनी में विद्रोह की आग भड़क गई। 9 मई को मेरठ विद्रोह 1857 के संग्राम की शुरूआत का प्रतीक था। मेरठ में भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी और जेल को तोड़ दिया। 10 मई को वे दिल्ली के लिए आगे बढ़े। 11 मई को मेरठ के क्रांतिकारी सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर, 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इन सैनिकों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह द्वितीय को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। शीघ्र ही विद्रोह लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार और झांसी में भी फैल गया। अंग्रेजों ने पंजाब से सेना बुलाकर सबसे पहले दिल्ली पर अधिकार किया। 21 सितंबर, 1857 ई. को दिल्ली पर अंग्रेजों ने पुनः अधिकार कर लिया, परन्तु संघर्ष में ‘जॉन निकोलसन’ मारा गया और लेफ्टिनेंट ‘हडसन’ ने धोखे से बहादुरशाह द्वितीय के दो पुत्रों ‘मिर्जा मुगल’ और ‘मिर्जा ख्वाजा सुल्तान’ एवं एक पोते ‘मिर्जा अबूबक्र’ को गोली मरवा दी। लखनऊ में विद्रोह की शुरुआत 4 जून, 1857 ई. को हुई। यहां के क्रांतिकारी सैनिकों द्वारा ब्रिटिश रेजिडेंसी के घेराव के बाद ब्रिटिश रेजिडेंट ‘हेनरी लॉरेन्स’ की मृत्यु हो गई। हैवलॉक और आउट्रम ने लखनऊ को दबाने का भरकस प्रयत्न किया, लेकिन वे असफल रहे। आखिर में कॉलिन कैंपवेल’ ने गोरखा रेजिमेंट के सहयोग से मार्च, 1858 ई. में शहर पर अधिकार कर लिया। वैसे यहां क्रांति का असर सितंबर तक रहा।
🚩बगावत को कुचलना
🚩1857 का संग्राम एक साल से ज्यादा समय तक चला। इसे 1858 के मध्य में कुचला गया। मेरठ में विद्रोह भड़कने के चौदह महीने बाद 8 जुलाई, 1858 को आखिरकार कैनिंग ने घोषणा किया कि विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया है।
🚩विद्रोह की असफलता के कारण
🚩सीमित आंदोलन - हालांकि, बहुत कम समय में आंदोलन देश के कई हिस्सों तक पहुंच गया लेकिन देश के एक बड़े हिस्से पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। खासतौर पर दोआब क्षेत्र में इसका असर रहा। दक्षिण के प्रांतों ने इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। अहम शासकों, जैसे- सिंधिया, होल्कर, जोधपुर के राणा और अन्यों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया।
🚩प्रभावी नेतृत्व का अभाव
🚩विद्रोह के लिए असरदार नेतृत्व का अभाव था। नाना साहेब, तांत्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई की बहादुरी पर कोई शक नहीं है लेकिन वे आंदोलन को पूरे देश में असरदार नेतृत्व नहीं दे सके। इसके अलावा विद्रोहियों में अनुभव, संगठन क्षमता व मिलकर कार्य करने की शक्ति की कमी थी। विद्रोही क्रांतिकारियों के पास ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव था। उन्हें अगले क्षण क्या करना होगा और क्या नहीं- यह भी निश्चित नहीं था। वे मात्र भावावेश एवं परिस्थितिवश आगे बढ़े जा रहे थे। सैनिक दुर्बलता का विद्रोह की असफलता में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। बहादुरशाह जफर और नाना साहब एक कुशल संगठनकर्ता अवश्��� थे, पर उनमें सैन्य नेतृत्व की क्षमता की कमी थी, जबकि अंग्रेजी सेना के पास लॉरेन्स ब्रदर्स, निकोलसन, हेवलॉक, आउट्रम एवं एडवर्ड जैसे कुशल सेनानायक थे।
🚩सीमित संसाधन
🚩विद्रोहियों के पास न संख्याबल था और न पैसा। उसके उलट ब्रिटिश सेना के पास बड़ी संख्या में सैनिक, पैसा और हथियार थे जिसके बल पर वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे।
🚩मध्य वर्ग का हिस्सा नहीं लेना
🚩1857 ई. के इस विद्रोह के प्रति ‘��िक्षित वर्ग’ पूर्ण रूप से उदासीन रहा। व्यापारियों एवं शिक्षित वर्ग ने कलकत्ता एवं बंबई में सभाएं कर अंग्रेजों की सफलता के लिए प्रार्थना भी की थी। अगर इस वर्ग ने अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता, तो निःसंदेह ही क्रांति के इस विद्रोह का परिणाम कुछ ओर ही होता।
🚩विद्रोह के परिणाम
🚩विद्रोह के समाप्त होने के बाद 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित कर ईस्ट इंडिया कंपनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया और अब भारत पर शासन का पूरा अधिकार महारानी विक्टोरिया के हाथों में आ गया। इंग्लैंड में 1858 ई. के अधिनियम के तहत एक ‘भारतीय राज्य सचिव’ की व्यवस्था की गयी, जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘मंत्रणा परिषद्’ बनाई गई। इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा करने तथा 7 की ‘कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स’ द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई।
🚩हड़प नीति की समाप्ति
🚩ब्रिटिश सरकार की हड़प नीति को समाप्त कर दिया गया। कानूनी वारिस के तौर पर पुत्र गोद लेने के अधिकार को स्वीकार किया गया।
🚩1857 का विद्रोह इसलिए भी अहम था क्योंकि भारत की आजादी की लड़ाई के लिए इसकी वजह से मार्ग प्रशस्त हुआ।
🚩इस आंदोलन से हमें समझना चाहिए कि वर्तमान में जिस तरह देश की स्थिति है उसमें भी कहीं न कहीं आज़ादी को खतरा है- ऐसा लग रहा है, इसलिए देश में रहते हुए देश के साथ गद्दारी करनेवालों की पहचान होनी चाहिए और उनके फन कुचलने चाहिए जिससे हमारा देश सुरक्षित रहे।
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udaipurviews · 3 years ago
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आदिवासी और हिंदू धर्म
आदिवासी और हिंदू धर्म
-दिनेश भट्ट आदिवासी और हिंदू धर्म देश में सैकड़ों विभिन्न जनजातियां मौजूद हैं और उनके अपने रीति-रिवाज हैं, लेकिन वे आदिवासी धार्मिक प्रथाओं और सनातन धर्म के बीच प्रकृति पूजा (पेड़, पशु नदी, सूर्य, चंद्रमा,आदि) की तरह कई समानताओं के कारण सनातन धर्म का एक अभिन्न अंग हैं। गोत्र प्रणाली,समान गोत्र में विवाह नहीं, आदि मूर्ति पूजा के बारे में, आर्य समाजियों जैसे कई हिंदू मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं,…
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narmadeshwarshivling · 1 year ago
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I. प्रस्तावना
उ. नर्मदेश्वर शिवलिंग का संक्षिप्त अवलोकन
पवित्र नर्मदा नदी से उत्पन्न नर्मदेश्वर शिवलिंग अपनी पवित्रता और अद्वितीय ऊर्जा के लिए पूजनीय है। भक्तों का मानना ​​है कि शिवलिंग भगवान शिव के सार का प्रतीक है, जो इसे पूजा और ध्यान का केंद्र बिंदु बनाता है।
B. 2 इंच शिवांश नर्मदेश्वर शिवलिंग का महत्व
2 इंच के शिवांश नर्मदेश्वर शिवलिंग ने, विशेष रूप से, अपनी पोर्टेबिलिटी और पहुंच के लिए प्रमुखता प्राप्त की है। भक्त आसानी से इसे अपने दैनिक अनुष्ठानों में शामिल कर सकते हैं, जिससे आध्यात्मिकता के साथ गहरा संबंध विकसित हो सकता है।
C. अध्यात्म और शिवलिंग पूजा के बीच संबंध
शिवलिंग की पूजा करना न केवल एक धार्मिक अभ्यास है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का एक साधन भी है। शिवलिंग पूजा के दौरान निर्मित शांत आभा एक अपरंपरागत क्षेत्र - अंग्रेजी भाषा सीखने - में हमारी खोज के लिए मंच तैयार करती है।
द्वितीय. नर्मदेश्वर शिवलिंग का इतिहास
A. उत्पत्ति और सांस्कृतिक महत्व
नर्मदेश्वर शिवलिंग की जड़ें प्राचीन काल में पाई जाती हैं, जिसका उल्लेख विभिन्न ह���ंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। इसका सांस्कृतिक महत्व सदियों से विकसित हुआ है, जो धार्मिक प्रथाओं का एक अभिन्न अंग बन गया है।
B. हिंदू धर्म में शिवलिंग पूजा का विकास
व्यक्तियों की बदलती आध्यात्मिक आवश्यकताओं के अनुरूप, शिवलिंग पूजा में बदलाव आया है। आज, यह धर्म से परे चला गया है..
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parasparivaarorg · 1 month ago
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जय माता दी पारस परिवार के साथ कुंडली भजन 
सनातन धर्म के हृदय में दिव्य मंत्र है: जय माता दी। यह सिर्फ़ अभिवादन से कहीं बढ़कर है; यह एक प्रार्थना है, सार्वभौमिक माँ, माँ का आह्वान है। चाहे वह मंदिरों में गूंजने वाले मधुर भजन हों या हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने वाली कुंडली पढ़ना, हिंदू धर्म का सार पारस परिवार की आध्यात्मिक प्रथाओं में जटिल रूप से बुना हुआ है। आइए जानें कि पारस परिवार किस तरह से माँ के सार का जश्न मनाता है और कुंडली पढ़ने, भजन और सनातनी आध्यात्मिकता से इसका क्या संबंध है।
पारस परिवार और जय माता दी का महत्व
जय माता दी का जाप न केवल दिव्य माँ का आह्वान है, बल्कि दुनिया भर के हिंदू भाइयों (हिंदू भाइयों और बहनों) के लिए एक एकीकृत नारा भी है। पारस परिवार, सनातन धर्म में गहराई से निहित एक समुदाय है, जो माँ से जुड़ने के साधन के रूप में इस आध्यात्मिक अभिवादन पर जोर देता है। यह देवी से आशीर्वाद, सुरक्षा और मार्गदर्शन की मांग करते हुए एक हार्दिक प्रार्थना का प्रतिनिधित्व करता है।
सनातन धर्म के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित पारस परिवार आध्यात्मिक एकजुटता का एक मजबूत समर्थक है। समुदाय प्राचीन परंपराओं को कायम रखता है और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से हिंदू भाइयों को एक साथ लाता है, जो दिव्य माँ के प्रति अपने प्रेम और भक्ति से एकजुट होते हैं।
सनातन धर्म और पारस परिवार में कुंडली की भूमिका
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सनातन धर्म की प्रथाओं में, कुंडली (जन्म कुंडली) का एक प्रमुख स्थान है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के आधार पर किसी के जीवन का खाका प्रदान करती है। पारस परिवार, वैदिक परंपराओं की अपनी गहरी समझ के साथ, भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करने के लिए कुंडली पढ़ने का उपयोग करता है।
हिंदू धर्म में कुंडली का महत्व
कुंडली की अवधारणा ब्रह्मांडीय व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जो हिंदू धर्म में एक मुख्य विश्वास है। प्रत्येक ग्रह (ग्रह) का व्यक्ति के जीवन पर एक विशिष्ट प्रभाव होता है। इ�� प्रभावों को समझकर, व्यक्ति चुनौतियों का सामना कर सकता है और शक्तियों का लाभ उठा सकता है। पारस परिवार कुंडली पढ़ने के माध्यम से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे भक्तों को माँ और ब्रह्मांडीय शक्तियों द्वारा निर्धारित उनके जीवन पथ को समझने में मदद मिलती है।
कुंडली पढ़ना: पारस परिवार की एक परंपरा
पीढ़ियों से, कुंडली पढ़ना हिंदू धर्म में आध्यात्मिक प्रथाओं का हिस्सा रहा है। पारस परिवार इस परंपरा को जारी रखता है, अपने समुदाय के सदस्यों को व्यक्तिगत रीडिंग प्रदान करता है। इस प्राचीन प्रथा को ईश्वरीय इच्छा के साथ अपने कार्यों को संरेखित करने का एक तरीका माना जाता है, जिससे सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए माँ से आशीर्वाद मांगा जा सके। जब पारस परिवार के किसी जानकार मार्गदर्शक द्वारा कुंडली पढ़ी जाती है, तो यह जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे करियर, विवाह, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
पारस परिवार में भजनों की शक्ति
जय माता दी का कोई भी उत्सव भजनों की भावपूर्ण प्रस्तुति के बिना पूरा नहीं होता है। भजन ईश्वर की स्तुति में गाए जाने वाले भक्ति गीत हैं, विशेष रूप से माँ की कृपा पर ध्यान केंद्रित करते हुए। पारस परिवार को देवी माँ को समर्पित भजन गाने और रचना करने की अपनी समृद्ध परंपरा पर बहुत गर्व है।
भजन: हिंदू धर्म का आध्यात्मिक संगीत
सनातन धर्म के हृदय में, भजनों को भक्ति का संगीतमय अवतार माना जाता है। माना जाता है कि इन भजनों को गाने से उत्पन्न कंपन ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, जो गायक को माँ के करीब लाते हैं। पारस परिवार के भजन अपनी सादगी, माधुर्य और गहरे आध्यात्मिक अर्थ के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें हिंदू भाइयों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बनाते हैं।
आत्मा पर भजनों का प्रभाव
भजन मन और आत्मा पर शांत प्रभाव डालते हैं। वे तनाव को दूर करने, विचारों को शुद्ध करने और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करते हैं। भजन गाने या सुनने का कार्य, विशेष रूप से जय माता दी के साथ गाया जाने वाला भजन, वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। पारस परिवार की सभाओं में, ये भजन एक शक्तिशाली सामूहिक आध्यात्मिक अनुभव बनाते हैं, जो हिंदू भाइयों की एकता और विश्वास को मजबूत करते हैं।
पारस परिवार के साथ सनातन धर्म का जश्न मनाना
सनातन धर्म को संरक्षित करने और मनाने के लिए पारस परिवार की प्रतिबद्धता इसकी विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों में स्पष्ट है। भव्य नवरात्रि कार्यक्रमों के आयोजन से लेकर नियमित भजन सत्रों की मेजबानी तक, पारस परिवार हिंदू धर्म की परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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abhay121996-blog · 4 years ago
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वैदिक आरक्षण की काट है संवैधानिक आरक्षण Divya Sandesh
#Divyasandesh
वैदिक आरक्षण की काट है संवैधानिक आरक्षण
 Writer Engineer Rajendra Prasad
आजकल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूछा जाना क�� यह आरक्षण कितनी पीढियों तक चलेगी की ़यह चर्चा गर्म है। इसके पक्ष-विपक्ष में विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां आ र��ी है। यह जाति व्यवस्था सनातनी हिंदुओं द्वारा ‘‘फूट डालो और राज करो‘‘ की नीति के तहत हजारों वर्ष पहले बनाई गई थी, जो आज भी जारी है। कठोर जातिगत भेदभाव के कारण दलित वर्ग को आरक्षण प्रदान किया गया। इससे पहले सभी प्रकार के लाभकारी आरक्षण केवल उच्च जातियों के लिए था। आरक्षण भारतीय समाज के लिए कोई नई बात नहीं है। पहले यह एक विशेष जाति के लिए विशेष नौकरियों में शत प्रतिशत आरक्षण था। छोटी जातियों के आरक्षण का मतलब किसी दूसरे का हिस्सा लेना नहीं है। बल्कि कमजोर वर्ग के हिस्से को दबंगों, शरारतबाजों और चालबाजों से बचाने के लिए यह आरक्षण है। उच्च जातियों को छोटी जातियों का जाति का आरक्षण दिखाई देता है। वे उसका मुखर विरोध करते हैं। लेकिन अपने जाति के नाम पर मिल रहे बड़े आरक्षण और विशेषाधिकार पर चुप रहते हैं। उन्हें छोटी जातियों के नाम पर किए जा रहे शोषण, भेदभाव और अत्याचार दिखाई नहीं देता है।
आरक्षण व्यवस्था वैदिक काल से ही चली आ रही है। यह देश हजारों वर्षों से आरक्षण का देश रहा है। सवर्णों ने सर्वप्रथम अपने लिए आरक्षण की शुरूआत की। स्वतंत्रता के बाद संवैधानिक आरक्षण लाया गया। संवैधानिक आरक्षण वैदिक आरक्षण का छोटा सा काट है, उसकी भरपाई है। यह उसका बहुत ही छोटा सा हिस्सा है। संवैधानिक आरक्षण वैदिक आरक्षण वाले लोगों को यह दिखाने के लिए है कि संवैधानिक आरक्षण वाले भी अवसर मिलने पर सुयोग्य और कुशल होते हैं। लेकिन जब वंचितों को आरक्षण दिया जाने लगा तब वैदिक आरक्षण वाले संवैधानिक आरक्षण वालों को बदनाम करने के साथ ही साथ उसे समाप्त करने के विभिन्न कार्यक्रम चलाने लगे। धनुर्विद्या में एकलब्य के सामने अर्जुन की क्या औकात थी? लेकिन द्रोणाचार्य ने कैसे छल किया ? क्या झूठ, छल और तिकड़म ही सुयोग्यता हैं? ये अपने जन्म और जाति के बल पर सुयोग्य बनते रहते हैं।
सवर्णों के हजारों साल से चले आ रहे आरक्षण की तुलना में दलितों के 75 साल का आरक्षण कितना है? वे हजारों साल से पीढ़ी दर पीढ़ी ब्राह्मण या उच्च जाति क्यों बनते आ रहे हैं? ब्राह्मणों या उच्च जातियों का आरक्षण कब समाप्त होगाा? अशिक्षित ब्राह्मण या उच्च जाति के लोग पढे लिखे दलितों से भी खुद को मन में श्रेष्ठ क्यों समझते हैं? सभी क्षेत्रों में दलितों को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है, फिर भी उन्हें जितना मिल रहा है, उससे हिंदू धार्मिक जाति व्यवस्था की मान्यताओं पर सीधी कठोर चोट हो रही है। हमारा संविधान छोटी जातियों के खिलाफ हिंदू धार्मिक ग्रंथों के आदेशों और निर्देशों को अमानवीय मानता है। सभी धार्मिक आदेश और रीति रिवाज जो समानता और मानव अधिकारों का हनन करता है, उसे संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत शून्य और निष्प्र��ावी कर दिया गया है। इसके आचरण को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। संविधान ने सामाजिक परिवर्तन और मानवीय गरिमा को गतिशील किया है।
आरक्षण सामाजिक परिवर्तन का एक साधन है। यह वंचित वर्ग का सत्ता में उसका हिस्सा प्रदान करता है। आरक्षण को समाप्त करने के लिए हमें जाति व्यवस्था को समाप्त करना होगा, ताकि जाति के अंत के साथ ही जाति आधारित आरक्षण स्वतः समाप्त हो जायेगाा। पहले के दिनों में लोग जाति पूछते थे। अब लोग जाति का पता लगाते हैं। इतना ही अन्तर आया है। जाति का प्रभुत्व इतना मजबूत है कि जाति जानने के बाद अधिकतर लोगों के व्यवहार और आचरण में बदलाव आ जाता है। जिस तरह अमीर दलित जाति के नाम पर अपमानित किया जाता है, उसी तरह क्या कोई गरीब ब्राह्मण जाति के नाम पर अपमानित किया जाता है? उसका उत्तर होगाा – कभी नहीं ।
आरक्षण आर्थिक उन्नति के लिए नहीं दिया जाता है। यह उनके सामाजिक उत्थान और सत्ता में हिस्सेदारी के लिए है। उनकी दबाई गई प्रतिभा को उभारने के लिए है। अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ी जाति का कोई व्यक्ति कितना भी धनी क्यों न हो जाए, समाज में ऊँची जातियों के लोग उसे हेय दृष्टि से ही देखते है। ऊँची जातियों को सम्मान देना उसका कत्र्तव्य माना जाता है। इन पूर्वाग्रहों को बदलने या निष्प्रभावी करने के लिए जातीय आरक्षण की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। समानता का अधिकार समान लोगों पर लागू होता है। असमान समाज के लोगों को समान अवसर देना असमानता को बढ़ावा देना ही कहा जाएगाा। दलितों को दी गई रियायतें अधिकार के मामले हैं, न कि दान या परोपकार के मामले हैं। यह जातीय भेदभाव का क्षतिपूरक है। गरीब व्यक्ति कुछ दिनों के बाद अमीर हो सकता है। उसी तरह अमीर व्यक्ति भी गरीब बन सकता है। लेकिन छोटीजाति का व्यक्ति कभी भी बड़ी जाति का व्यक्ति नहीं बन सकता है। क्या किसी अमीर और पढ़े लिखे डोम-भंगी जाति के व्यक्ति को ब्राह्मण बनते आपने देखा है? क्या किसी गरीब और अनपढ़ ब्राह्मण को डोम चमार बनते देखा है? मरने के बाद भी जाति लोगों का पीछा नहीं छोड़ती है ।
उच्च जातियों ने खुद ही आरक्षण का रास्ता दिखाया। आज वे छोटी जातियों के आरक्षण का विरोध कर रहे हैं। आखिर मंदिर का पुजारी ब्राह्मण ही क्यों होगा? शास्त्री की उपाधि पात्र भंगी मंदिर का पुजारी क्यों नहीं हो सकता है? अपने पास पहले से मौजूद आरक्षण को क्यों नहीं छोड़ते? देश का शासक वर्ग यह चाहता है कि जिन जातियों ने आज तक शासन किया है, उसे वैसे ही जारी रहना चाहिए। दो कारणों से उच्च जातियाँ छोटी जातियों के आरक्षण का विरोध कर रही हैं- पहला छोटी जातियों के उध्र्वगामी विकास से उत्पन्न असुरक्षा और दूसरा अपने सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक वर्चस्व को बनाए रखने की प्रबल इच्छा। इस प्रकार की परिवर्तित शक्ति से समाज मे उनकी स्थिति कमजोर होती जा रही है। वे पूर्ण वर्चस्व चाहते हैं। आरक्षण विरोध का मर्म यही है। इसलिए वे इसका कड़ा विरोध क�� रहे हैं। अब इस विरोध में न्यायपालिका भी षामिल हो गई है। ऐसे व्यक्ति आरक्षण को आर्थिक प्रश्न बनाकर आम लोगों के बीच भ्रम पैदा करना चाहते हैं। जाति को लेकर दलित आरक्षण की चर्चा अधिकांषतः सवर्ण परिवार अपने बच्चों से करते है। वे यह भ्रम फैलाते हंै कि देष की समस्या जातिवाद नहीं बल्कि आरक्षण है। वह आरक्षण को ही सारी समस्या की जड़ बताते है। यही बात वह अपने बच्चों को सिखाते है। वह अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ बताते हंै। वे अपने बच्चों के दिमाग को दुषित कर देते हैं। लेकिन सामान्यतः दलित परिवार अपने बच्चों को आरक्षण का इतिहास और महत्व नहीं बताते हैं। हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने संविधान में आरक्षण द्वारा जाति समस्या के जहर को कम किया है। यह जातीय समता के लिए है। उल्लेखनीय है कि आर्थिक उत्थान के लिए दूसरे गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम हैं, जो सिर्फ गरीबों के लिए चलाए जाते हैं।
आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँग धोखेबाजों की माँग जैसी है। जो अपने सामाजिक रूप से हासिये वाले भाइयों के हिस्से को हड़पने के फिराक में रहता है। दलितों-पिछड़ों के आरक्षण का प्रश्न मात्र दलितों-पिछड़ों का प्रश्न नहीं है, उनके लिए यह सामाजिक समता का प्रश्न है, स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व का प्रश्न है। यह राष्ट्रीय एकीकरण का सवाल है। यह प्रश्न हिन्दू धर्म की अमानवीय प्रथाओं में सुधार का है। ये जातियाँ राष्ट्रविरोधी हैं। जाति राष्ट्रीय एकीकरण में बाधक है। जातिप्रथा और छुआछूत को देश की एकता और अखण्डता तथा लोकतंत्र के लिए भयंकर खतरा है। जो लोग आर्थिक आधार पर आरक्षण का जोर शोर से नारा लगाते हैं कि जातीय आरक्षण से कार्य कुशलता और दक्षता का हनन होता है। उन्हें जानना चाहिए कि क्या आर्थिक आधार से लाभान्वित लोगों की दक्षता बढ़ जाएगी? क्या वे ज्यादा कार्यकुशल हो जाएंगे? क्या जातीय रूप से प्रताड़ित दलितों की प्रतिभा का हनन नहीं होता है ? क्या इस आरक्षण से अधिकतर गरीबों को रोजगार मिल जाएगा? क्या सभी पढ़े लिखे दलितों को रोजगार मिल जाता है? क्या दलित बेरोजगार नहीं है? क्या दलितों का आरक्षण समाप्त कर देने से बेरोजगारी खत्म हो जाएगी ? क्या आरक्षण का रिश्ता बेरोजगारी से है? वस्तुतः आरक्षण से बेरोजगारी का कोई रिश्ता ही नहीं है। ऐसे ही लोग जानबूझकर अप्रासंगिक मामले उठा कर अपना स्वार्थ साधना चाहते हैं। इसके बहाने वे दलितों को मिल रहे आरक्षण को हड़पना चाहते हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण का नारा लगाने वाले, यदि जाति समाप्त करो, अनिवार्य रूप से अंतर्जातीय विवाह कानून बनाओ का आंदोलन चलाते तो देष की बहुत सी समस्याएं हल हो जाती। जो लोग दलित आरक्षण को समाप्त करने का नारा लगाते हैं ,उन्हें पहले जाति समाप्त करो का नारा लगाना चाहिए। जाति की समाप्ति के साथ दलित-पिछड़ा आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाएगाा।
कुछ लोग कहते हैं कि आरक्षण से जातिवाद को बढ़ावा मिलता है। इससे जाति खत्म होने की बजाय बढ़ती है। क्या यह ऐसा है? प्रश्न उठता है कि क्या गैर-आरक्ष��त जातियों का जातिवाद खत्म हो गया है? गैर-आरक्षित जातियों का जातिवाद तो कब का खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन उनके बीच दलितों से ज्यादा आपसी संघर्ष क्यों है? ��िश्चित ही आरक्षण से जातिवाद नहीं बढ़ा है। कुछ लोग कहते हैं कि दलित खुद जाति खत्म नहीं करते हैं। अकेले दलित कैसे जाति समाप्त कर सकते हैं? प्रश्न उठता है कि दलित की जाति समाप्त हो जाने से क्या शेष लोगों की जाति खत्म हो जाएगी? निश्चित ही इससे जाति समाप्त नहीं होगी। जबतक सभी समाजों के लोग जाति समाप्त करने के लिए प्रयास नहीं करेंगे,जाति समाप्त नहीं हो सकती है। हमारे संविधान निर्माताओं ने कार्यकुशलता और वितरक न्याय के बीच संतुलन रखने का प्रयत्न किया था ताकि प्रशासन वास्तविक बन सके। उन्होंने कार्यकुशलता के जरूरतों की उपेक्षा नहीं की थी, बल्कि यह अनिवार्य कर दिया कि राज्य की सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार हो। कार्यकुशलता से उनका अभिप्राय परंपरागत अर्थ में अथवा मात्र कार्यकुशलता के लिए कार्यकुशलता का संरक्षण करना नहीं था बल्कि एक ऐसी कार्यकुशलता से था जो परिवर्तन की प्रकृति के अनुरूप हो।
यहाँ हीरा चोर को पुरस्कृत किया जाता है और खीरा चोर को दंड़ित किया जाता है। यह भ्रष्टाचार और जातिवाद हमारे अच्छे नागरिकों का मनोबल और राष्ट्रवाद के ताने बाने को छिन्न भिन्न कर रहा है। भ्रष्टाचार और जातिवाद न्याय का गला घोटता है। आज लोग मानने लगे हैं कि जो जितना बड़ा, है, वह उतना भ्रष्ट। यह राष्ट्र के भरोसे का दुरुपयोग और उसके साथ धोखा करना है। न्यायपालिका, सार्वजनिक सेवाओं, सार्वजनिक जीवन और सरकारी गतिविधियों के अन्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और जातिवाद सर्वत्र दिखाई देता है। इसे मिटाना आसान काम नहीं है। जब कानून लागू करने वाले सभी कानूनी संस्थान भी भ्रष्टाचार और जातिवाद में शामिल हैं, तो यह कैसे मिटाया जा सकता है? इसका हल कैसे निकले? यह एक बडी चुनौती है। क्या भारतीय संस्थाओं में भ्रष्टाचार और पक्षपात कभी खत्म होगा? अथवा यह केवल दिवास्वप्न ही बना रहेगा? क्या सर्वोच्च न्यायलय को इसपर विचार नहीं करना चाहिए? सर्वोच्च न्यायलय की इस पर चुप्पी उसे स्वयं कटघरे में खड़ा करती है। यह जाति कैसे टूटे ? यह भवन खम्भों पर खड़ा है। भवन को गिराना है तो खम्भों को गिरा दें। जिस चीज पर जाति प्रथा, वर्ण व्यवस्था खड़ी है उसे खींच लें वह गिर जायेगी। जाति प्रथा सुरक्षित रखने के लिये ऐसा कानून बनाया। आज समाज में उसको कानून जैसी ही शक्ति प्राप्त है कि एक ही जाति के वर और वधू की शादी जायज मानी जायेगी। आज यदि यह कानून बना दी जाये कि एक ही जाति के वर और वधू की शाादी नाजायज होगी। उसे कोई सरकारी पद और सरकारी सहायता नहीं दी जाएगी। उसे दंडित किया जाएगा। तब धीरे धीरे जाति प्रथा का बन्धन ढीला पड़ेगा। और यह समाप्त होगी। तब चालिस-पचास साल में हम जाति रूपी कोढ़ से छुटकारा पा सकते हैं। तब किसी को आरक्षण की जरुरत नहीं होगी। क्या सर्वोच्च न्यायलय का यह कर्तव्य नहीं है कि वह आरक्षण के साथ यह भी पूछे कि हजारों साल से जाति और जातीय भेदभाव क्यों चला आ रहा है? यह कब समाप्त होगा? इसी क्रम में सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष वकीलों द्वारा भी यह मामला उठाया जाना चाहिए कि यह जाति व्यवस्था कब तक जारी रहेगी? जजों की नियुक्ति के लिए कालेजियम व्यवस्था कब तक चलेगी? उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान के मूल अनुच्छेद 312 में भारतीय न्यायिक सेवा के गठन का प्रावधान बनाया गया है लेकिन उसका गठन आजतक नहीं किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय खुद इसमें बार बार अड़ंगा लगाती रहती है। देखें आने वाले कल में देष की जनता और वकील किसान आंदोलन की तरह जाति समाप्त करने और कालेजियम व्यवस्था के खिलाफ कब मुखर होगें?
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awamkiawazin · 4 years ago
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विवादित बोल -"सनातन धर्म में हिंदू प्रथाओं ने महिलाओं को वेश्या माना है", कांग्रेस समर्थक सांसद 'थोल थिरुमावलवन' (वीसीके अध्यक्ष) ने ‘पेरियार टीवी’ नामक यूट्यूब चैनल पर सेमिनार में बोला !
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