The Paras Parivaar Organization works 365 days a year to lug our Paras Guru's vision forward. We have helped more than 10 lakh needy people, and thanks to Maa and our Mahant Shri Paras Bhai Ji of Sanatan Dharm, this number is steadily rising and it is the grandeur of Sanatan Dharm that we strive to assist those who cannot afford to pay for their education or who are food insecure.
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गुरु घासीदास जयंती: पारस परिवार के साथ संत ज्ञान।
गुरु घासीदास जी की शिक्षाएँ।
गुरु घासीदास जी की शिक्षाएं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक क्रांति के रूप में भी परिवर्तनकारी थीं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म से बढ़कर कुछ भी नहीं है, सनातन बहुत पवित्र है। मैंने हमेशा कहा है कि हर सुख और शांति भगवान के नाम से मिलती है। अगर उन्हें शिक्षा लेनी है तो सबसे पहली बात यह है कि धर्म में किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि सभी एक जैसे हैं। वे उन लोगों के सख्त खिलाफ थे जो सभी के साथ भेदभाव करते थे और उसके कारण उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। उनका कहना था कि भगवान ने सभी को एक जैसा बनाया है, इसलिए उनके जन्म से यह स्पष्ट नहीं होता कि कोई अच्छा है या बुरा।
सामाजिक सुधार और संघर्ष
गुरु घासीदास जी ने सामाजिक सुधार के माध्यम से समाज को बदलने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने सभी लोगों में अंधविश्वास और भेदभाव के खिलाफ़ जागरूकता पैदा करने के लिए बहुत मेहनत की। गुरु जी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जीवन का असली उद्देश्य सिर्फ़ व्यक्तिगत सुख की तलाश करना नहीं है, बल्कि दूसरों की भलाई में मदद करना है। वे सनातन धर्म का पालन करते थे क्योंकि सनातन धर्म समुदाय बिना किसी भेदभाव, बिना किसी दया के आधारित है और सभी के बीच समानता है। गुरु घासीदास जी ने महिलाओं के उत्थान का भी समर्थन किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि उन्हें समान अधिकार मिलने चाहिए और उनका शोषण नहीं किया जाना चाहिए। उनके काम ने धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देकर सामाजिक बदलाव में बहुत मदद की।
गुरु घासीदास जी का योगदान
हम आज भी गुरु घासीदास जी के योगदान को देख और याद कर सकते हैं। वे हजारों लोगों को यह बताना और सिखाना चाहते थे कि व्यक्ति को हमेशा समानता, न्याय और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए। उनके द्वारा स्थापित सतनामी समाज आज भी भेदभाव और शोषण सहित समाज की बुराइयों को खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है। गुरु घासीदास जी के आदर्शों पर चलने वाले संगठन, जैसे पारस परिवार, समानता और प्रेम के मूल्यों पर आधारित समाज बनाने के लिए व्यक्तियों को सहायता और सशक्त बनाकर हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पारस परिवार जैसे आध्यात्मिक समूह भी एकता और दयालुता को बढ़ावा देते हैं। यह संस्था इस समाज में बहुत मेहनत करती है ताकि हर व्यक्ति को, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, समान सम्मान और गरिमा मिले।
गुरु घासीदास जी की शिक्षाएँ हमें याद दिलाती हैं कि अगर हम प्रेम और समानता जैसे उनके सिद्धांतों पर चलें तो हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस जयंती पर हम वादा करते हैं कि हम उन बुराइयों और भेदभाव को मिटाने की पूरी कोशिश करेंगे। गुरु घासीदास जी द्वारा दिया गया यह संदेश आज हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर हम उनकी शिक्षाओं का पालन करेंगे तो हम हमेशा दुनिया को निष्पक्ष और सभी के प्रति दयालु बनाने की कोशिश करेंगे।
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आखिर कौन हैं पितरों के देवता अर्यमा ?
हमारे हिंदू धर्म में पितरों को बहुत सम्मान दिया जाता है, उनकी पूजा की जाती है और उनको समय-समय पर याद किया जाता है। सनातन धर्म में पितृ पक्ष की एक विशेष अवधि होती है, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। ये अवधि पितरों के लिए समर्पित है। पितृ पक्ष में अर्यमा देव की पूजा की जाती है। आपको बता दें कि अर्यमा पितरों के देवता माने जाते हैं। पितृ पक्ष में अयर्मा देव की पूजा का विधान है। इनकी उपासना करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। आइये विस्तार से जानते हैं आखिर कौन हैं ये अर्यमा देवता और क्यों की जाती है इनकी पूजा ?
कौन हैं पितरों के देव अर्यमा?
सनातन धर्म में पितृ पक्ष की अवधि पितरों के लिए समर्पित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए अर्यमा देव की पूजा क्यों की जाती है। कौन हैं अर्यमा देव जिन्हें पितरों के देव के रूप में भी जाना जाता है। तो आपको बता दें कि हिंदू धर्म में अर्यमा को पितरों के देवता के रूप में जाना जाता है। इनकी पूजा से पितरों को मुक्ति मिलती है। अर्यमा देव, ऋषि कश्यप और देवमाता अदिति के 12 पुत्रों में से एक हैं।
पितरों में अर्यमा सर्वश्रेष्ठ
सनातन धर्म में प्रात: और रात्रि के चक्र पर अयर्मा देव का अधिकार माना गया है। अर्यमा चंद्रमंडल में स्थित पितृलोक के सभी पितरों के अधिपति भी नियुक्त किए गए हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि अर्यमा देव का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है जो इस प्रकार है –
ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः। ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
इस श्लोक का मतलब है कि पितरों में अर्यमा सर्वश्रेष्ठ हैं। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे पिता, पितामह और प्रपितामह तथा हे माता, मातामह और प्रमातामह, आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।
अदिति के तीसरे पुत्र हैं अर्यमा
अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता कहा जाता है। वे जानते हैं कि कौन सा पितृ किस कुल और परिवार से है। अर्यमा पितरों के देव हैं। इनके प्रसन्न होने पर ही पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जलदान दिया जाता है।
कहा जाता है कि वैदिक देवता अर्यमा, अदिति के पुत्र, पितरों या ��ितरों में सबसे प्रमुख हैं। भगवत गीता के 10वें अध्याय में भगवान वासुदेव ने भी कहा है-
अनंतश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पिताॄनामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥
मैं नागों में अनन्त और जल के देवताओं में वरुण हूँ। पितरों में मैं अर्यमा हूँ और कानून और व्यवस्था बनाए रखने वालों में मैं यम (मृत्यु का राजा) हूं।
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पारस परिवार: नशामुक्ति में विजय का मार्ग
नशामुक्ति एक ऐसा विषय है जो आज के समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है। नशे की लत से मुक्ति पाने के लिए कई संगठन और परिवार काम कर रहे हैं। इनमें से एक प्रमुख नाम है पारस परिवार, जो नशामुक्ति में विजय के मार्ग पर अग्रसर है। इस ब्लॉग में हम देखेंगे कि पारस परिवार कैसे नशे के खिलाफ लड़ाई में एक प्रेरणास्त्रोत बन रहा है, और यह कैसे सनातन धर्म के सिद्धांतों के माध्यम से इस कार्य को आगे बढ़ा रहा है।
पारस परिवार की भूमिका
पारस परिवार ने नशामुक्ति के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यह परिवार न केवल अपने सदस्यों को नशे से मुक्त कराने का प्रयास करता है, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने का भी कार्य करता है। पारस परिवार का मानना है कि नशे की समस्या को केवल व्यक्तिगत दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों के माध्यम से ही हल किया जा सकता है।
सनातन धर्म और नशामुक्ति
सनातन धर्म के सिद्धांतों में जीवन की पवित्रता और आत्मा की शुद्धता पर जोर दिया गया है। पारस परिवार इन सिद्धांतों को अपने कार्यों में शामिल करता है। उनका उद्देश्य केवल शारीरिक नशे से मुक्ति नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता भी प्राप्त करना है। पारस परिवार का मानना है कि जब व्यक्ति अपने भीतर की शांति और संतुलन को खोजता है, तो वह नशे की ओर आकर्षित नहीं होता।
विजय का मार्ग
पारस परिवार ने कई सफल कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनमें लोगों को नशे के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाता है। इन कार्यक्रमों में योग, ध्यान, और पारिवारिक समर्पण जैसे तत्व शामिल होते हैं। इसके अलावा, पारस परिवार ने कई पुनर्वास केंद्र स्थापित किए हैं, जहां लोग नशे से मुक्ति पाने के लिए चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
समाज में परिवर्तन
पारस परिवार का प्रयास केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि समाज में व्यापक परिवर्तन लाने का भी है। वे स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि नशे की समस्या को सामूहिक रूप से समझा जा सके। इसके परिणामस्वरूप, कई लोग न केवल अपने जीवन को बदलने में सफल हुए हैं, बल्कि वे दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बने हैं।
निष्कर्ष
पारस परिवार का योगदान नशामुक्ति के क्षेत्र में अत्यंत सराहनीय है। उनका प्रयास यह दर्शाता है कि जब हम एकजुट होकर किसी समस्या का सामना करते हैं, तो विजय अवश्य संभव होती है। सनातन धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर पारस परिवार ने साबित कर दिया है कि नशामुक्ति केवल एक व्यक्तिगत यात्रा नहीं, बल्कि एक सामूहिक प्रयास होना चाहिए। इस प्रकार, पारस परिवार ने नशामुक्ति में विजय का मार्ग प्रशस्त किया है, जो अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन सकता है।
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पारस परिवार हिंदू धर्म की प्रेरणा
भारत की संस्कृति और धर्म का आधार सनातन धर्म है, जो अपने गहरे मूल्यों और शिक्षाओं के लिए विश्वभर में पहचाना जाता है। इस धर्म को संरक्षित और प्रचारित करने में कई परिवारों और व्यक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्हीं में से एक नाम है पारस परिवार का, जो हिंदू धर्म और सनातन परंपराओं की प्रेरणा स्रोत ��ै। उनकी धार्मिक निष्ठा और स��ाज सेवा ने उन्हें न केवल स्थानीय समुदाय में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति दिलाई है। आइए, इस ब्लॉग में हम पारस परिवार की यात्रा और उनकी प्रेरणादायक भूमिका पर चर्चा करें।
पारस भाई जी: सनातन धर्म के सच्चे अनुयायी
पारस भाई जी पारस परिवार के प्रमुख सदस्य हैं, जिनका जीवन सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उनकी सरलता, समर्पण और सेवा भाव ने उन्हें हर वर्ग के लोगों का प्रिय बना दिया है। पारस भाई जी का मानना है कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। उनका उद्देश्य है कि हर व्यक्ति धर्म को समझे और इसे अपने जीवन में उतारे।
पारस भाई जी की शिक्षाएँ
धर्म को जीवन का आधार बनाना: पारस भाई जी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक मार्ग है।
समाज सेवा: उनके अनुसार, सच्चा धर्म वही है जो दूसरों की सेवा और मदद के लिए प्रेरित करे।
युवाओं को प्रेरित करना: पारस भाई जी युवाओं को अपनी परंपराओं और जड़ों से जोड़े रखने के लिए प्रेरित करते हैं।
पारस परिवार: धर्म और सेवा का संगम
पारस परिवार सनातन धर्म के प्रचार और सामाजिक सेवा के लिए समर्पित है। इस परिवार का हर सदस्य धर्म के प्रति निष्ठा और समाज के प्रति दायित्व निभाने में विश्वास रखता है। पारस परिवार का मुख्य उद्देश्य है कि हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाया जाए।
पारस परिवार के प्रमुख कार्य
धार्मिक आयोजन: पारस परिवार नियमित रूप से धार्मिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और सत्संग का आयोजन करता है।
समाज सेवा: गरीबों की मदद, शिक्षा का प्रचार और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना उनके प्रमुख कार्य हैं।
धर्म प्रचार: सनातन धर्म के सिद्धांतों को सरल और प्रभावी तरीके से समाज तक पहुँचाना उनकी प्राथमिकता है।
सनातन धर्म की महानता
सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म के रूप में भी जाना जाता है, विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। इसकी श��क्षाएँ सत्य, अहिंसा, करुणा और धर्म पालन पर आधारित हैं। पारस परिवार इन मूल सिद्धांतों को अपने जीवन और कार्यों में अपनाता है।
सत्य
सत्य सनातन धर्म का प्रमुख स्तंभ है। पारस भाई जी और उनका परिवार हमेशा सत्य की राह पर चलने का संदेश देता है। उनका मानना है कि सत्य से जीवन में स्थिरता और शांति आती है।
अहिंसा
अहिंसा केवल हिंसा न करने का संदेश नहीं है, बल्कि यह हमारे विचारों और वचनों में भी अपनाई जानी चाहिए। पारस परिवार इस सिद्धांत को अपने सामाजिक कार्यों में पूर�� तरह आत्मसात करता है।
करुणा
करुणा का अर्थ है दूसरों की पीड़ा को समझना और उनकी सहायता करना। पारस परिवार समाज के जरूरतमंद वर्गों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहता है।
पारस परिवार की प्रेरणा
पारस परिवार की प्रेरणा माता रानी की भक्ति और सनातन धर्म की शिक्षाएँ हैं। उनका मानना है कि धर्म के प्रति अटूट निष्ठा और भक्ति से हर समस्या का समाधान संभव है।
माता रानी की भक्ति
"जय माता दी" पारस परिवार के जीवन का आधार है। माता रानी के प्रति उनकी गहरी आस्था उनके कार्यों में झलकती है। पारस परिवार नियमित रूप से माता की चौकी और भक्ति आयोजनों का आयोजन करता है, जिसमें सैकड़ों भक्त भाग लेते हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणा
पारस भाई जी विशेष रूप से युवाओं को धर्म और परंपराओं से जोड़ने का प्रयास करते हैं। उनका मानना है कि आज की युवा पीढ़ी यदि धर्म को अपनाएगी, तो समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकता है।
समाज में पारस परिवार का योगदान
पारस परिवार ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देकर एक मिसाल कायम की है। उनके द्वारा चलाए गए सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम न केवल लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाते हैं, बल्कि समाज में एकता और सद्भाव का संदेश भी देते हैं।
धार्मिक जागरूकता
पारस परिवार के प्रयासों से हजारों लोग धर्म की महत्ता को समझ पाए हैं। उनके सत्संग और प्रवचन लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।
सामाजिक उत्थान
पारस परिवार गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए विभिन्न सेवाएँ प्रदान करता है। उनका मानना है कि धर्म का पालन तभी सार्थक है, जब यह समाज के हर वर्ग के लिए उपयोगी हो।
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जय माता दी पारस भाई जी का संदेश
जय माता दी केवल एक जयकारा नहीं है; यह देवी मां दुर्गा के प्रति भक्ति और आभार का एक गहरा भाव है। पारस भाई जी के नेतृत्व में पारस परिवार के लिए यह मंत्र अटूट विश्वास, प्रेम और कृतज्ञता का प्रतीक है। इस ब्लॉग में हम पारस भाई जी की आध्यात्मिक शिक्षाओं, पारस परिवार की भक्ति की परंपरा, और उनके जीवन में "जय माता दी" के महत्व को जानेंगे।
पारस भाई जी कौन हैं?
पारस एक प्रतिष्ठित आध्यात्मिक नेता और पारस परिवार के लिए मार्गदर्शक हैं। उनकी शिक्षाएं भक्ति, करुणा, और निःस्वार्थ सेवा के सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो सनातन धर्म के शाश्वत मूल्यों के अनुरूप हैं। अपनी बुद्धिमत्ता और विनम्र दृष्टिकोण के माध्यम से, पारस भाई जी ने अनगिनत व्यक्तियों को आध्यात्मिकता अपनाने और धर्ममय जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है।
उनका संदेश सरल लेकिन गहन है: ईश्वर पर विश्वास करें, मानवता की सेवा करें, और भक्ति के माध्यम से आंतरिक शांति प्राप्त करें। पारस भाई जी मानते हैं कि "जय माता दी" केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि हमारे भीतर मौजूद दिव्य ऊर्जा से जुड़ने का एक माध्यम है।
पारस परिवार की भूमिका
पारस परिवार एक ऐसा समुदाय है, जो मां दुर्गा और पारस भाई जी की शिक्षाओं के प्रति अपनी साझा भक्ति से बंधा हुआ है। वे आध्यात्मिक और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, और "जय माता दी" को आशा और शक्ति के प्रतीक के रूप में फैलाते हैं।
1. सत्संग के माध्यम से भक्ति
पारस परिवार नियमित रूप से सत्संग (आध्यात्मिक सभाएं) आयोजित करता है, जहां भक्त भजन गाते हैं, शास्त्रों का पाठ करते हैं, और अनुभव साझा करते हैं। ये सभाएं मां दुर्गा के साथ अपने संबंध को गहरा करने और पारस भाई जी की शिक्षाओं को मजबूत करने का अवसर प्रदान करती हैं।
2. भाईचारे को बढ़ावा देना
एकता और सद्भावना पारस परिवार के मूल मूल्य हैं। पारस भाई जी अपने अनुयायियों को जाति, धर्म और स्थिति से ऊपर उठकर सार्वभौमिक भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
3. सेवा के रूप में सामाजिक कार्य
"सेवा परमो धर्म:" (सेवा सबसे बड़ा धर्म है) के सिद्धांत का पालन करते हुए, पारस परिवार भोजन वितरण, चिकित्सा सहायता, और गरीबों की सहायता जैसे कार्यों में सक्रिय है। ये परोपकार के कार्य मां दुर्गा को अर्पण के रूप में देखे जाते हैं।
पारस परिवार में "जय माता दी" का अर्थ
पारस परिवार के लिए "जय माता दी" केवल एक मंत्र नहीं है; यह उनके जीवन का एक तरीका है। यह मां दुर्गा में उनके अटूट विश्वास को दर्शाता है और उनकी दिव्य उपस्थिति की निरंतर याद दिलाता है।
1. शक्ति का ��्रोत
पारस भाई जी सिखाते हैं कि "जय माता दी" का उच्चारण हृदय को साहस और सकारात्मकता से भर देता है। कठिन समय में, यह मंत्र एक ढाल के रूप में काम करता है, जो बाधाओं को दूर करने की शक्ति प्रदान करता है।
2. कृतज्ञता का आह्वान
कृतज्ञता पारस भाई जी की शिक्षाओं का मूल है। "जय माता दी" मां दुर्गा को उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देने का एक तरीका है।
3. आध्यात्मिक जागरण का मार्ग
पारस भाई जी इस बात पर जोर देते हैं कि "जय माता दी" का नियमित जाप मन को शुद्ध करता है और आत्मा को ऊंचा करता है, जिससे भक्त आध्यात्मिक जागृति के करीब आते हैं।
पारस भाई जी की शिक्षाएं
पारस भाई जी की शिक्षाएं भक्ति, सेवा, और आंतरिक शांति के इर्द-गिर्द घूमती हैं। उनका संदेश जीवन के जटिल पहलुओं को सरलता से नेविगेट करने के लिए एक रास्ता प्रदान करता है।
1. शुद्ध हृदय से भक्ति
पारस भाई जी मानते हैं कि सच्ची भक्ति ईश्वर के प्रति शुद्ध और ईमानदार हृदय से समर्पित होने में है। उनका मानना है कि स्वार्थरहित आस्था ही दिव्य आशीर्वाद की कुंजी है।
2. निःस्वार्थ सेवा
पारस भाई जी की शिक्षाएं दूसरों की सेवा बिना किसी अपेक्षा के करने को प्रोत्साहित करती हैं। वह अक्सर कहते हैं, "मानवता की सेवा मां दुर्गा की सेवा है।"
3. आस्था की शक्ति
पारस भाई जी अपने अनुयायियों को विशेष रूप से कठिन समय में मां दुर्गा पर अटूट विश्वास रखने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके अनुसार, आस्था एक शांतिपूर्ण और संतोषजनक जीवन की नींव है।
पारस परिवार "जय माता दी" का संदेश कैसे फैलाता है
पारस परिवार विभिन्न पहल के माध्यम से पारस भाई जी की शिक्षाओं और "जय माता दी" के मंत्र को बढ़ावा देता है।
1. सामुदायिक कार्यक्रम
वे नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें भक्त सामूहिक प्रार्थना और उत्सव में भाग लेते हैं।
2. डिजिटल आउटरीच
आधुनिक युग में, पारस परिवार डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग व्यापक दर्शकों तक पहुंचने के लिए करता है। वे ऑनलाइन शिक्षाएं, भक्ति गीत, और प्रेरणादायक संदेश साझा करते हैं।
3. शैक्षणिक कार्यक्रम
युवा पीढ़ी में आध्यात्मिक मूल्यों को विकसित करने के लिए पारस परिवार कार्यशालाओं और शिविरों का आयोजन करता है।
आज के समय में "जय माता दी" का महत्व
तनाव और चुनौतियों से भरी दुनिया में, "जय माता दी" का मंत्र सांत्वना और शक्ति प्रदान करता है।
आध्यात्मिक जुड़ाव
"जय माता दी" व्यक्ति और दिव्य के बीच एक सेतु का काम करता है। यह भक्तों को उनकी आध्यात्मिक जड़ों और उनके जीवन में मां दुर्गा की शाश्वत उपस्थिति की याद दिलाता है।
आंतरिक शांति और सकारात्मकता
इस मंत्र को विश्वास के साथ जपने से मन शांत होता है और सकारात्मकता आती है। पारस भाई जी इसके माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों में बदलने की शक्ति को महत्व देते हैं।
सामाजिक सद्भाव का निर्माण
एकता और सेवा पर केंद्रित पारस भाई जी की शिक्षाएं लोगों को समाज की भलाई के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करती हैं।
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सनातन धर्म की ज्योति: पारस भाई जी के साथ
सनातन धर्म, जिसे अक्सर हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है, केवल एक धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने का शाश्वत मार्ग है। यह सत्य, अहिंसा और धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा देता है। ऐसे कई प्रेरणादायक व्यक्तियों में से जिन्होंने सनातन धर्म के पवित्र मूल्यों को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है, पारस भाई जी एक अद्भुत प्रकाशपुंज के रूप में उभरते हैं। उनके कार्य हिंदू धर्म के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करते हैं, समाज को एकजुट करते हैं और अनगिनत लोगों के जीवन को प्रेरित करते हैं।
सनातन धर्म को सशक्त बनाने में पारस भाई जी की भूमिका
पारस भाई जी का सनातन धर्म के आदर्शों के प्रति समर्पण हर पहल में झलकता है। उनके प्रवचन, सामुदायिक कार्यक्रम, और आध्यात्मिक संगोष्ठियाँ धर्म के मार्ग पर चलने के महत्व को उजागर करते हैं। उनके शिक्षण निम्नलिखित पर केंद्रित हैं
हिंदू भाइयों के बीच एकता को बढ़ावा देना: पारस भाई जी हिंदू भाइयों को करुणा, आदर और आध्यात्मिक ज्ञान के साझा मूल्यों के तहत एकजुट करने के लिए अथक प्रयास करते हैं। उनकी एकता की भावना सीमाओं से परे जाती है और व्यक्तियों को एक बड़े उद्देश्य के लिए प्रेरित करती है।
"जय माता दी" के संदेश का प्रसार: पारस भाई जी की देवी माँ के प्रति भक्ति असीम है। अपने उपदेशों में "जय माता दी" का उच्चारण करके, वे अपने अनुयायियों में विश्वास, भक्ति और समर्पण के गुणों को स्थापित करते हैं। देवी के प्रति उनकी श्रद्धा यह याद दिलाती है कि ईश्वरीय कृपा जीवन की चुनौतियों को पार करने में सहायक होती है।
पारस परिवार की भावना को प्रोत्साहित करना: पारस परिवार की अवधारणा उनके मिशन का मुख्य भाग है। इस पहल के माध्यम से, पारस भाई जी लोगों को एकजुट करते हैं, सामूहिक उद्देश्य और अपनत्व की भावना को बढ़ावा देते हैं। यह परिवार-केंद्रित दृष्टिकोण हिंदू धर्म के मूल मूल्यों को दर्शाता है, जो समुदाय और रिश्तों के महत्व को उजागर करता है।
सनातन धर्म का ज्ञान: शाश्वत मार्ग
सनातन धर्म, जिसे शाश्वत सत्य भी कहा जाता है, सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित है जो हर युग में प्रासंगिक हैं। पारस भाई जी अपने शिक्षण में निम्नलिखित सिद्धांतों पर जोर देते हैं:
सत्य: ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के साथ जीवन जीना धर्ममय जीवन का मूल है।
अहिंसा: सभी जीवों के प्रति सम्मान हिंदू धर्म का एक मौलिक मूल्य है।
सेवा: निःस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करना ईश्वर से जुड़ने का एक मार्ग है।
भक्ति: "जय माता दी" मंत्र में पारस भाई जी की भक्ति, आध्यात्मिक विकास को पोषित करती है।
युवाओं को प्रेरित करने में पारस भाई जी की भूमिका
पारस भाई जी का एक बड़ा योगदान यह है कि वे युवा पीढ़ी से जुड़ने में सफल रहे हैं। आज के तेज़-तर्रार समय में, कई युवाओं को आध्यात्मिक प्रथाओं से जुड़ना चुनौतीपूर्ण लगता है। पारस भाई जी इस अंतर को भरने में सफल हुए हैं:
आधुनिक मंचों का उपयोग करना: सोशल मीडिया, यूट्यूब चैनल, और लाइव इवेंट्स के माध्यम से, वे लाखों लोगों तक पहुँचते हैं और सनातन धर्म की शिक्षाओं को सरल और प्रासंगिक बनाते हैं।
रिवाजों में ��ागीदारी को प्रोत्साहित करना: पारस भाई जी युवा पीढ़ी को पारंपरिक हिंदू अनुष्ठानों, त्योहारों, और सामुदायिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे सांस्कृतिक गर्व का विकास होता है।
ज्ञान के साथ मार्गदर्शन देना: उनके आधुनिक चुनौतियों पर गहरे विचार और हिंदू दर्शन में आधारित व्यावहारिक समाधान उन्हें युवाओं के लिए एक मार्गदर्शक बनाते हैं।
पारस परिवार की दृष्टि
पारस परिवार केवल एक समूह नहीं बल्कि एक आंदोलन है, जो सामंजस्य, परस्पर सम्मान, और सामूहिक आध्यात्मिक विकास के आदर्शों को दर्शाता है। पारस भाई जी की इस परिवार के लिए दृष्टि एक वैश्विक नेटवर्क बनाने की है, जिसमें लोग सनातन धर्म के संरक्षण और प्रसार के लिए समर्पित हैं। इस पहल का उद्देश्य है:
ज़रूरतमंदों की सहायता के लिए चैरिटी गतिविधियों का आयोजन।
हिंदू धर्म की समृद्ध विरासत के बारे में जागरूकता फैलाना।
लोगों को उद्देश्यपूर्ण और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करना।
पारस भाई जी का आह्वान: सनातन धर्म को अपनाएँ
अपने शिक्षण के माध्यम से, पारस भाई जी हमें सनातन धर्म की गहरी बुद्धि की याद दिलाते हैं। वे जोर देते हैं कि सनातन धर्म के सिद्धांतों को अपनाना केवल एक धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि आंतरिक शांति प्राप्त करने और समाज के कल्याण में योगदान देने का एक तरीका है। उनका मंत्र, "जय माता दी," भक्तों में गूंजता है और उन्हें उस दिव्य ऊर्जा की याद दिलाता है जो सभी जीवन को बनाए रखती है।
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जय माता दी पारस परिवार के साथ कुंडली भजन
सनातन धर्म के हृदय में दिव्य मंत्र है: जय माता दी। यह सिर्फ़ अभिवादन से कहीं बढ़कर है; यह एक प्रार्थना है, सार्वभौमिक माँ, माँ का आह्वान है। चाहे वह मंदिरों में गूंजने वाले मधुर भजन हों या हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने वाली कुंडली पढ़ना, हिंदू धर्म का सार पारस परिवार की आध्यात्मिक प्रथाओं में जटिल रूप से बुना हुआ है। आइए जानें कि पारस परिवार किस तरह से माँ के सार का जश्न मनाता है और कुंडली पढ़ने, भजन और सनातनी आध्यात्मिकता से इसका क्या संबंध है।
पारस परिवार और जय माता दी का महत्व
जय माता दी का जाप न केवल दिव्य माँ का आह्वान है, बल्कि दुनिया भर के हिंदू भाइयों (हिंदू भाइयों और बहनों) के लिए एक एकीकृत नारा भी है। पारस परिवार, सनातन धर्म में गहराई से निहित एक समुदाय है, जो माँ से जुड़ने के साधन के रूप में इस आध्यात्मिक अभिवादन पर जोर देता है। यह देवी से आशीर्वाद, सुरक्षा और मार्गदर्शन की मांग करते हुए एक हार्दिक प्रार्थना का प्रतिनिधित्व करता है।
सनातन धर्म के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित पारस परिवार आध्यात्मिक एकजुटता का एक मजबूत समर्थक है। समुदाय प्राचीन परंपराओं को कायम रखता है और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से हिंदू भाइयों को एक साथ लाता है, जो दिव्य माँ के प्रति अपने प्रेम और भक्ति से एकजुट होते हैं।
सनातन धर्म और पारस परिवार में कुंडली की भूमिका
सनातन धर्म की प्रथाओं में, कुंडली (जन्म कुंडली) का एक प्रमुख स्थान है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के आधार पर किसी के जीवन का खाका प्रदान करती है। पारस परिवार, वैदिक परंपराओं की अपनी गहरी समझ के साथ, भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करने के लिए कुंडली पढ़ने का उपयोग करता है।
हिंदू धर्म में कुंडली का महत्व
कुंडली की अवधारणा ब्रह्मांडीय व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जो हिंदू धर्म में एक मुख्य विश्वास है। प्रत्येक ग्रह (ग्रह) का व्यक्ति के जीवन पर एक विशिष्ट प्रभाव होता है। इन प्रभावों को समझकर, व्यक्ति चुनौतियों का सामना कर सकता है और शक्तियों का लाभ उठा सकता है। पारस परिवार कुंडली पढ़ने के माध्यम से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे भक्तों को माँ और ब्रह्मांडीय शक्तियों द्वारा निर्धारित उनके जीवन पथ को समझने में मदद मिलती है।
कुंडली पढ़ना: पारस परिवार की एक परंपरा
पीढ़ियों से, कुंडली पढ़ना हिंदू धर्म में आध्यात्मिक प्रथाओं का हिस्सा रहा है। पारस परिवार इस परंपरा को जारी रखता है, अपने समुदाय के सदस्यों को व्यक्तिगत रीडिंग प्रदान करता है। इस प्राचीन प्रथा को ईश्वरीय इच्छा के साथ अपने कार्यों को संरेखित करने का एक तरीका माना जाता है, जिससे सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए माँ से आशीर्वाद मांगा जा सके। जब पारस परिवार के किसी जानकार मार्गदर्शक द्वारा कुंडली पढ़ी जाती है, तो यह जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे करियर, विवाह, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
पारस परिवार में भजनों की शक्ति
जय माता दी का कोई भी उत्सव भजनों की भावपूर्ण प्रस्तुति के बिना पूरा नहीं होता है। भजन ईश्वर की स्तुति में गाए जाने वाले भक्ति गीत हैं, विशेष रूप से माँ की कृपा पर ध्यान केंद्रित करते हुए। पारस परिवार को देवी माँ को समर्पित भजन गाने और रचना करने की अपनी समृद्ध परंपरा पर बहुत गर्व है।
भजन: हिंदू धर्म का आध्यात्मिक संगीत
सनातन धर्म के हृदय में, भजनों को भक्ति का संगीतमय अवतार माना जाता है। माना जाता है कि इन भजनों को गाने से उत्पन्न कंपन ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, जो गायक को माँ के करीब लाते हैं। पारस परिवार के भजन अपनी सादगी, माधुर्य और गहरे आध्यात्मिक अर्थ के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें हिंदू भाइयों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बनाते हैं।
आत्मा पर भजनों का प्रभाव
भजन मन और आत्मा पर शांत प्रभाव डालते हैं। वे तनाव को दूर करने, विचारों को शुद्ध करने और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करते हैं। भजन गाने या सुनने का कार्य, विशेष रूप से जय माता दी के साथ गाया जाने वाला भजन, वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। पारस परिवार की सभाओं में, ये भजन एक शक्तिशाली सामूहिक आध्यात्मिक अनुभव बनाते हैं, जो हिंदू भाइयों की एकता और विश्वास को मजबूत करते हैं।
पारस परिवार के साथ सनातन धर्म का जश्न मनाना
सनातन धर्म को संरक्षित करने और मनाने के लिए पारस परिवार की प्रतिबद्धता इसकी विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों में स्पष्ट है। भव्य नवरात्रि कार्यक्रमों के आयोजन से लेकर नियमित भजन सत्रों की मेजबानी तक, पारस परिवार हिंदू धर्म की परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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पारस भाई देवउठनी एकादशी पर एक शुभ दिन
सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है। पूरे वर्ष में लगभग 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन देवउठनी ग्यारस का अपना महत्व है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन को भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से सभी तरह के शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयन एकादशी के बाद ये सभी शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं।
धार्मिक महत्व और देवउठनी एकादशी।
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु देवशयन एकादशी योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसके बाद वे चार महीने बाद देवउठनी एकादशी पर जागते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। यह समय ध्यान, साधना, संयम और त्याग का प्रतीक कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के पावन काल में भगवान विष्णु के शुभ जागरण के साथ ही सभी सकारात्मक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है और इस दिन की गई पूजा और व्रत से विशेष लाभ मिलता है। श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी, हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता में कहा जाता है कि एक बार हिंदू धर्म की लोकप्रिय देवी मां लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया और उन्हें और देवताओं को चार महीने के लिए अपने काम से आराम करने और योग निद्रा में जाने के लिए कहा। भगवान उनकी बात मान गए और चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए। भगवान ने आषाढ़ माह में यह निद्रा ली और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपना नैतिक कार्य फिर से शुरू किया। जागने के बाद उन्होंने सभी देवताओं को उनके कर्तव्यों के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में देवउठनी ग्यारस को आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है पारस भाई जी की मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं, जीवन के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र विवाह अनुष्ठान को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
पारस परिवार के मुखिया श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी तुलसी विवाह के पीछे एक कथा है। भगवान विष्णु ने राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा को पवित्र तुलसी मां में बदल दि��ा और फिर उनका विवाह स्वयं विष्णु के एक रूप भगवान शालिग्राम से कराया। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा मनाई जाने लगी।
पवित्र देवउठनी ग्यारस व्रत की विधि
सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने धूपबत्ती और दीपक जलाया जाता है। भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष फूल, फल, मिठाई, चावल आदि अर्पित किए जाते हैं। इस दिन लोग अपने पूजा स्थल पर तुलसी के पत्ते रखकर उनकी पूजा भी करते हैं। पारस भाई जी के अनुसार तुलसी के पत्ते चढ़ाए बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी रहती है। इस दिन शाम के समय भगवान विष्णु को मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत के लाभ
देवउठनी एकादशी का व्रत करने से कई लाभ मिलते हैं। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सनातन धर्म व्रत अनुष्ठानों का पालन करता है और अपनी आत्मा को इन धार्मिक देवों से जोड़ने का प्रयास करता है। व्रत करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। तुलसी विवाह करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है और उनके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी पर ध्यान देने योग्य बातें
व्रत का पालन: इस दिन व्रत करने से मन शुद्ध होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। व्रती को केवल फलाहार ही करना चाहिए तथा अन्न नहीं खाना चाहिए।
दिनभर विष्णु भजन: इस दिन भगवान विष्णु के भजनों का पाठ करना चाहिए, जिससे मन को शांति मिलती है।
सामूहिक पूजा: इस दिन पूरा परिवार सामूहिक पूजा करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
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पुराण क्या हैं और कितने हैं?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के ���ाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
हमारे सनातन धर्म में सभी धार्मिक ग्रंथों में से पुराण का विशेष महत्व है तथा ये प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है। पुराण का अर्थ है प्राचीन रचना और इन पुराणों में लिखी बातें या बताई बातें और ज्ञान ��ज भी सच साबित हो रहे हैं। हम सब इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि हमारे पुराणों में लिखी बातें, हमारी हिंदू संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। आइये इस आर्टिकल में जानते हैं पुराण क्या हैं और कितने हैं ?
पुराण क्या हैं?
पुराणों में देवी देवताओं से जुड़ी कई बातें हैं जिसमें पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म के बारे में बताया गया है। पुराण में व्यक्ति के जन्म-मृत्यु और मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक तक की यात्रा के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। सांस्कृतिक अर्थ में हिन्दू संस्कृति के वे धर्मग्रन्थ जिनमें सृष्टि से लेकर प्रलय तक का इतिहास है।
यानि कुछ पुराणों में इस सृष्टि की रचना से लेकर अंत तक का विवरण है। ‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है, प्राचीन या पुराना। पुराण, हिन्दुओं के धर्म-सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ हैं, जिनमें संसार, ऋषियों, राजाओं के वृत्तान्त आदि हैं। पुराण मनुष्य को धर्म, सदाचार और नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। इसके अलावा पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं।
पुराण कितने हैं?
हिन्दू धर्म में कुल 18 पुराण हैं, जो निम्न हैं – ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, लिङ्ग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण।
ब्रह्म पुराण Brahma Puran 18 पुराणों में ब्रह्म पुराण सबसे पहला और प��राना पुराण है। ब्रह्मपुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं और इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण को महापुराण भी कहते हैं। इस पुराण में ब्रह्मा जी के अलावा सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा अवतरण आदि कथायें हैं। इस पुराण में कलयुग का भी विवरण दिया गया है। ब्रह्म देव को आदि देव भी कहा जाता है इसलिए यह पुराण आदि पुराण के नाम से भी जाना जाता है।
पद्म पुराण Padma Puran पद्म पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। पद्म का अर्थ है कमल का फूल। पद्म पुराण में बताया गया है कि ब्रह्मदेव श्री नारायण जी के नाभि कमल से उत्पन्न हुए थे और उन्होंने सृष्टि की रचना की। इस पुराण के 5 खंडो में श्रुष्टि खंड, भूमि खंड, स्वर्ग खंड, पाताल खंड और उत्तर खंड में भगवान विष्णु की महिमा, तीर्थों के बारे में, श्री कृष्ण और श्री राम की लीलाओं और तुलसी महिमा का अलौकिक वर्णन किया गया है।
विष्णु पुराण Vishnu Puran विष्णु पुराण में भगवान विष्णु जी की महिमा का अद्भुत वर्णन किया गया है। विष्णु पुराण के रचयिता पराशर ऋषि हैं और यह पुराण संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में भक्त प्रह्लाद की कथा, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, गृह नक्षत्र, पृथ्वी, ज्योतिष, समुद्र मंथन, कृष्ण, रामकथा, विष्णु जी और लक्ष्मी माँ की महिमा, वर्णव्यवस्था, देवी देवताओं की उत्पत्ति आदि के बारे में बताया गया है।
वायु पुराण Vayu Puran वायु पुराण को के रचयिता श्री वेद व्यास जी हैं। वायु पुराण को शैव पुराण भी कहते हैं। वायु पुराण में खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, तीर्थ, शिव भक्ति, युग, श्राद्ध, पितरों, ऋषि वंश, राजवंश, संगीत शास्त्र, आदि का विस्तारपूर्वक विवरण दिया गया है। इस पुराण में शिव जी की महिमा का वर्णन है इसलिए इसे शिव पुराण भी कहा जाता है।
भागवत ( श्रीमद्भागवत ) पुराण Bhagavata Purana भागवत पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और भागवत पुराण 18 पुराणों में से पांचवा पुराण है। इसे श्रीमद्भागवतम् के नाम से भी जाना जाता है। इस पुराण को संस्कृत में लिखा गया है। भागवत पुराण आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताता है। इस पुराण में श्री कृष्ण के बारे में बताया गया है, इसमें उनके जन्म, प्रेम और कई लीलाओं का विवरण दिया गया है। इसमें महाभारत युद्ध और कृष्ण की भूमिका के बारे में भी बताया गया है।
नारद पुराण Narad Puran नारद पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। नारद पुराण को नारदीय पुराण भी कहा जाता है। महर्षि वेद व्यास जी ने इस पुराण को संस्कृत भाषा में लिखा था। इस पुराण में ज्योतिष, शिक्षा, ईश्वर की आराधना, व्याकरण, गणित आदि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। साथ ही इसमें कलियुग में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी बताया गया है।
मार्कण्डेय पुराण Markandey Puran मार्कण्डेय पुराण 18 पुराणों में से 7 वां पुरा�� है। यह पुराण अन्य पुराणों से छोटा है। महर्षि मार्कण्डेय द्वारा कहे जाने के कारण इसे मार्कण्डेय पुराण कहा जाता है। इस पुराण में मानव कल्याण के लिए भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक आदि विषयों के बारे में बताया है। यह पुराण दुर्गा चरित्र की व्याख्या के लिए जाना जाता है।
अग्नि पुराण Agni Puran अग्नि पुराण 18 पुराणों में से 8वां पुराण है और इस पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और वेद व्यास जी ने इसे संस्कृत भाषा में लिखा है। इस पुराण का नाम अग्नि पुराण इसलिए पड़ा दरसअल इसे अग्नि देव ने गुरु वशिष्ठ को सुनाया था। इस पुराण में त्रिदेवों ब्रह्म देव, विष्णु देव और शिव जी का वर्णन है। साथ ही महाभारत और रामायण का भी विवरण है।
भविष्य पुराण Bhavishya Puran भविष्य पुराण 18 पुराणों में से 9 वां पुराण है और इसके रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। महर्षि वेद व्यास जी ने इसे संस्कृत भाषा में लिखा था। भविष्य पुराण में नीति, सदाचार, धर्म, व्रत, दान, आयुर्वेद आदि का विवरण है। इस पुराण में सूर्य देव का भी विवरण है। इस पुराण में कई भविष्यवाणियाँ की गई जो सही साबित हुई। इसमें हर्षवर्धन महाराज, शिवाजी महाराज, पृथ्वीराज चौहान आदि कई वीर हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, बाबर, रानी विक्टोरिया, अकबर आदि के बारे में बताया गया है।
ब्रह्म वैवर्त पुराण Brahma Vaivarta Purana ब्रह्म वैवर्त पुराण 18 पुराणों में 10वां पुराण है और इसके रचयिता वेद व्यास जी हैं। इसे उन्होंने संस्कृत भाषा में लिखा है। इस पुराण में अनेक स्त्रोत हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि कृष्ण से ही शिवजी, विष्णु जी, ब्रह्म देव और इस प्रकृति का जन्म हुआ। इस पुराण में कृष्ण को ही परब्रह्म माना गया है।
लिङ्ग पुराण Ling Puran लिङ्ग पुराण 18 पुराणों में से 11वां पुराण है तथा इसके रचयिता वेद व्यास जी हैं। इस पुराण में भोलेनाथ के 28 अवतारों के बारे में बताया गया है और इसमें रुद्रावतार और लिंगोद्भव की कथा का भी विवरण है। साथ ही इसमें भोलेनाथ द्वारा ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट होने की घटना के बारे में भी बताया गया है।
वराह पुराण Varah Puran वराह पुराण 18 पुराणों में से 12 वां पुराण है और इसके रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। वराह पुराण संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में विष्णु जी के वराह अवतार का उल्लेख है। माना जाता है कि विष्णु जी धरती के उद्धार के लिए वराह रूप में अवतरित हुए थे। इसमें वराह कथा, माँ पार्वती और शिवजी की कथा, व्रत, तीर्थ, दान आदि का वर्णन है।
स्कन्द पुराण Skand Puran स्कन्द पुराण 18 पुराणों में से 13 वां पुराण है और इसकी रचना वेद व्यास जी ने संस्कृत भाषा में की थी। इस पुराण में शिव पुत्र कार्तिकेय जिनका दूसरा नाम स्कन्द भी है उनके बारे में बताया गया है। इसमें नर्मदा, गंगा, सरस्वती नदियों के उद्गम के बारे में कथाएँ हैं और साथ ही इसमें व्रतों का भी विवरण दिया गया है। इसमें योग, धर्म, सदाचार, भक्ति और ज्ञान के बारे में सुन्दर वर्णन किया गया है।
वामन पुराण Vaman Puran वामन पुराण 18 पुराणों में से 14 वां पुराण है और इसके रचयिता है वेद व्यास और इसे उन्होंने संस्कृत भाषा में लिखा। इस पुराण में भगवान विष्णु के वामन अवतार के बारे में लिखा गया है। इसमें शिव लिंग की पूजा विधि, शिव पार्वती विवाह, गणेश पूजन, भगवती दुर्गा, भक्त प्रह्लाद आदि का विवरण दिया गया है।
कूर्म पुराण Kurma Puran कूर्म पुराण 18 पुराणों में 15 वां पुराण है तथा इसके रचयिता वेदव्यास जी हैं। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में पाप का नाश करने वाले व्रतों के बारे में बताया गया है। साथ ही इसमें विष्णु का सुंदर विवरण, शिवलिंग की महिमा, वामन अवतार आदि के बारे में बताया गया है।
मत्स्य पुराण Matsya Puran मत्स्य पुराण 18 पुराणों में से 16वां पुराण है और इसके रचयिता वेदव्यास जी हैं। इस पुराण के श्लोकों में विष्णु जी के मत्स्य अवतार का विवरण दिया गया है। दरअसल विष्णु जी ने अपने मत्स्य अवतार में सप्त ऋषियों और राजा वैवश्वत मनु को जो उपदेश दिए थे यह पुराण उसी पर आधारित है। इस पुराण में नव गृह, तीनों युगों, तारकासुर वध कथा, नरसिंह अवतार आदि का विवरण दिया गया है।
गरुड़ पुराण Garuda Puran गरुड़ पुराण 18 पुराणों में से 17 वां पुराण है। इस पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और उन्होंने इसे संस्कृत में लिखा है। यह पुराण विष्णु भक्ति पर आधारित है। हमारे हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद इस पुराण को ज��ूर पढ़ा जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस पुराण को पढ़ने से मृतक की आत्मा को मुक्ति मिलती है। इसमें दान, सदाचार, शुभ कर्म, तीर्थ, आदि के बारे में विवरण दिया गया है।
ब्रह्माण्ड पुराण Brahmanda Puran ब्रह्माण्ड पुराण 18 पुराणों में से आखिरी पुराण है और ब्राह्माण पुराण के रचयिता वेदव्यास जी हैं। यह पुराण वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस पुराण को खगोल शास्त्र भी कहते हैं। इसमें समस्त ग्रहों का विस्तृत वर्णन है।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार जो व्यक्ति जीवन में इन सभी 18 पुराणों के नाम और उसमें लिखित बातों का श्रवण करता है या पाठ करता है। वह इन 18 पुराणों से मिलने वाले पुण्य को पा लेता है।
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पारस: इस अहोई अष्टमी पर आपकी प्रार्थनाएं स्वीकार हों!
पारस परिवार की ओर से अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
बच्चों के कल्याण और समृद्धि के लिए समर्पित अहोई अष्टमी का त्यौहार पारस परिवार संगठन द्वारा मनाया जाता है। यह त्यौहार, जो ज़्यादातर उत्तर भारत में मनाया जाता है, का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत ज़्यादा है, ख़ास तौर पर उन माताओं के लिए जो अपने बच्चों की भलाई के लिए व्रत रखती है��।
अहोई अष्टमी का सार
कार्तिक महीने में, अहोई अष्टमी ढलते चंद्रमा के आठवें दिन होती है। इस दिन, माताएँ अपने बच्चों की समृद्धि और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं। देवी अहोई का उपवास और पूजा करना, जिन्हें परिवारों को स्वस्थ संतान प्रदान करने वाली माना जाता है, अनुष्ठानों का हिस्सा हैं।
इस अवसर पर कई परंपराएँ मनाई जाती हैं, जैसे कि विशेष भोजन पकाना, पूजा स्थल को सुंदर रंगोली से सजाना और शाम के समय प्रार्थना करना। तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ना दिन के अंत का प्रतीक है।
पारस परिवार के साथ जश्न मना रहे हैं
पारस परिवार संगठन में हम इस त्यौहार का बड़े उत्साह से इंतज़ार करते हैं। हमारा समुदाय इस विरासत का सम्मान करने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए इकट्ठा होता है:
सामुदायिक सभाएँ: हम पार्टियाँ आयोजित करते हैं जहाँ परिवार जश्न मना सकते हैं, कहानियाँ साझा कर सकते हैं और पड़ोस के रिश्ते बना सकते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम: अहोई अष्टमी के महत्व को उजागर करने वाले प्रदर्शन युवा पीढ़ी को अपनी विरासत को सीखने और सराहने में मदद करते हैं।
खाद्य अभियान: उदारता की भावना से, हम अक्सर इस मौसम में जरूरतमंद लोगों की सहायता करने के लिए खाद्य अभियान चलाते हैं, जिससे सामुदायिक कल्याण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को बल मिलता है।
जश्न में हमारे साथ शामिल हों
इस वर्ष, हम सभी को अहोई अष्टमी मनाने में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। पारस परिवार में सभी के लिए जगह है, चाहे आप माता-पिता हों जो अपने बच्चे के लिए सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद कर रहे हों या कोई ऐसा व्यक्ति जो हमारे रीति-रिवाजों के बारे में अधिक जानना चाहता हो। हमारी गतिविधियों और कार्यक्रमों के बारे में अपडेट प्राप्त करने के लिए सोशल मीडिया पर हमारे साथ बने रहें:
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अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ! आइये हम सब मिलकर प्रेम, करुणा और सौहार्द के सिद्धांतों का सम्मान करें जो हमें वह बनाते हैं जो हम हैं और इस शुभ अवसर का आनंद लें।
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वाल्मिकी जयंती की हार्दिक शुभकामनाये।
पारस परिवार संगठन के सहयोग से वाल्मिकी जयंती मनाई गई।
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
वाल्मिकी जयंती, जिसे परगट दिवस के नाम से भी जाना जाता है, प्रसिद्ध ऋषि और महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी के जन्म की स्मृति में एक महत्वपूर्ण घटना है। हिंदू माह आश्विन की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह दिन कई भारतीय समुदायों, विशेषकर बाल्मीकि लोगों के लिए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। पारस परिवार संगठन में, हम साहित्य और आध्यात्मिकता में वाल्मिकी के योगदान पर ध्यान देने के साथ-साथ सामाजिक कल्याण के प्रति अपने समर्पण को नवीनीकृत करके इस कार्यक्रम को मनाते हैं।
महर्षि वाल्मिकी की विरासत
महर्षि वाल्मिकी एक कवि के साथ-साथ परिवर्तन और प्रायश्चित के प्रतीक के रूप में भी पूजनीय हैं। उनकी जीवन कहानी दर्शाती है कि कड़ी मेहनत और पश्चाताप किसी को भी महानता की ओर कैसे प्रेरित कर सकता है। एक समय उन्हें रत्नाकर के नाम से जाना जाता था, लेकिन गहन भक्ति और ध्यान से गुजरने के बाद, वह गुरु बन गए और रामायण लिखी, एक कहानी जो नैतिकता, धार्मिकता और बुराई पर अ��्छाई की जीत का उपदेश देती है।
पारस परिवार में हमारा मिशन
महंत श्री पारस भाई जी द्वारा स्थापित पारस परिवार संगठन जरूरतमंदों की मदद करने और सामाजिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित है। हमारा मार्गदर्शक विश्वास, “उनकी मुस्कुराहट के पीछे माँ की खुशी है,” हर उस व्यक्ति को महसूस कराने के प्रति हमारे समर्पण को दर्शाता है जिसकी हम मदद करते हैं और उसे यह महसूस कराते हैं कि उसे प्यार और उसकी परवाह है। इस वाल्मिकी जयंती पर, हम उन सिद्धांतों का अनुकरण करने की आशा करते हैं जिनका वाल्मिकी ने प्रतिनिधित्व किया:
करुणा: हम जरूरतमंद लोगों को भेदभाव रहित सहायता प्रदान करने में वाल्मिकी के विश्वास को साझा करते हैं। हमारा समूह वंचित लोगों को भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने के लिए अंतहीन प्रयास करता है।
सशक्तिकरण: शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से, हमारा लक्ष्य लोगों को सशक्त बनाना है ताकि वे स्वतंत्र जीवन जी सकें। यह परिवर्तन और मानव प्रगति पर वाल्मिकी की शिक्षाओं के अनुरूप है।
एकता: समुदाय वाल्मिकी जयंती के दौरान जश्न मनाने और चिंतन करने के लिए एक साथ इकट्ठा होते हैं। ऐसा माहौल बनाने के लिए जहां हर कोई समाज की भलाई में योगदान दे सके, हम विभिन्न समूहों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देते हैं।
एक साथ वाल्मिकी जयंती मना रहे हैं
इस वर्ष जब हम वाल्मिकी जयंती मना रहे हैं तो हम आपको अनेक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं:
सामुदायिक कार्यक्रम: हमारी बैठकों में भाग लें जहां हम अपने सांस्कृतिक इतिहास का जश्न मनाते हैं, वाल्मिकी की शिक्षाओं पर चर्चा करते हैं और रामायण के अंशों का पाठ करते हैं।
खाद्य वितरण अभियान: यह सुनिश्चित करने के लिए कि जरूरतमंद लोगों को पौष्टिक भोजन मिले, हम खाद्य वितरण अभियान की योजना बनाएंगे। हम आपकी सहायता से इस खुशी के समय में अधिक लोगों तक पहुंच सकते हैं।
शैक्षिक कार्यशालाएँ: हमारी कार्यशालाओं में आएँ, जो वाल्मिकी की अंधकार से ज्ञानोदय की यात्रा पर आधारित हैं और शिक्षा और व्यक्तिगत विकास के मूल्य पर जोर देती हैं।
बदलाव लाने में हमसे जुड़ें
जैसा कि हम वाल्मिकी जयंती मनाते हैं, आइए हम एकता, करुणा और परिवर्तन पर उनकी सीख को ध्यान में रखें। हम आपको इस साहसिक कार्य में पारस परिवार संगठन के साथ आने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं। साथ मिलकर काम करके, हम उन लोगों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं जो कम भाग्यशाली हैं।
आइए हम महर्षि वाल्मिकी की विरासत को याद करने के लिए सांप्रदायिक एकजुटता, सेवा और करुणा के प्रत�� अपने समर्पण की पुष्टि करते हुए अपनी बात समाप्त करें। आइए हमारे साथ आएं क्योंकि हम एक ऐसा समुदाय बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें हर कोई समृद्ध हो सके, जैसे वाल्मिकी ने शांति और नैतिकता से युक्त दुनिया की कल्पना की थी।
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हर्षिल- उत्तराखण्ड का स्विट्जरलैंड
“पारस परिवार” में आपका स्वागत है, जहाँ आकर बदल जाता है आपका संपूर्ण जीवन और जीवन में आती है बस खुशहाली ही खुशहाली। जहाँ दुःख और दर्द का होता है नाश और चेहरे पर आती है एक मुस्कान।
“पारस परिवार” का मानना है कि खुशियाँ तभी मिलती हैं जब हम दूसरों की मदद करने में सदैव आगे रहते हैं। यानि असली ख़ुशी वो है जब हम दूसरे के चेहरे पर प्यारी सी एक मुस्कराहट बिखेर सकें और पारस परिवार इस नेक कार्य में हमेशा से आगे रहता है। पारस परिवार कभी भी छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब में अंतर नहीं करता है, उसके लिए सब एक समान हैं। वह कोशिश करता है कि सबके जीवन में खिली हुई धूप हो और दूर-दूर तक बस उजाला ही उजाला हो।
पारस परिवार एक सामाजिक-आध्यात्मिक संस्था है, जिसके संस्थापक और निदेशक “महंत श्री पारस भाई जी” हैं। इस संस्था की नींव 17 सितंबर 2012 को रखी गई थी।
महंत श्री पारस भाई जी माँ चण्डी के दुलारे हैं। कहते हैं कि माँ अपने बच्चों को नेक कार्य करते हुए देखकर हमेशा खुश होती हैं और उन्हें आशीर्वाद देती हैं। शायद यही वजह है कि माँ के आशीर्वाद और उनकी कृपा से महंत श्री पारस भाई जी के अंदर अद्भुत शक्तियां समाहित हैं, जिन शक्तियों का प्रयोग वह जन कल्याण में करते हैं और समाज की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
आज हर कोई इस भागदौड़ भरी जिंदगी से ऊब चुका है। ऐसे में इंसान इस भागमभाग जिंदगी से कहीं दूर पहाड़ों में कुछ पल सुकून के बिताना चाहता है और कुछ समय अपने लिए निकालना चाहता है। जहाँ बस शांति हो और जहाँ जाकर आपको लगे कि यह जगह किसी जन्नत से क�� नहीं है। यहाँ कुछ समय के लिए आप सब कुछ भूल जाएंगे।
यहाँ आपके आसपास खूबसूरत वादियां होंगी, जिन्हें आप एकटक निहारते रहें। आपके पास कुछ समय ऐसा हो जहां प्रकृति हो, शांति हो और सुकून के पल हों। यदि आप ऐसी जगह जाना चाहते हैं तो आप उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में कुछ समय बिता सकते हैं। दरअसल पहाड़ अपनी ख़ूबसूरती के लिए जाने जाते हैं।
इसी में से उत्तराखंड की एक खूबसूरत जगह है हर्षिल। यदि आप यहाँ जाते हैं तो इसे देखकर आपको स्विट्जरलैंड की याद जरूर आ जाएगी। तो चलिए जानते हैं उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थल हर्षिल के ब��रे में।
कहाँ स्थित है हर्षिल?
हर्षिल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। इसे हर्षिल वैली के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय में भागीरथी नदी के किनारे बसा एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है, जिसे देखकर आप बस देखते ही रह जाओगे। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 34 पर गंगोत्री के हिन्दू तीर्थ स्थल के मार्ग में आता है।
‘हर्षिल’ उत्तरकाशी से 78 किमी और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान से 30 किमी दूर है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित ‘हर्षिल वैली’ की खूबसूरती आपको दीवाना बना देगी। देहरादून से लगभग 200 किलोमीटर स्थित इस हिल स्टेशन में कई सारी खूबसूरत जगहें हैं, जहाँ जाकर आप वापस आना भूल जायेंगे।
उत्तराखंड का स्वर्ग
हर्षिल वैली वो जगह है, जिसे उत्तराखंड का स्वर्ग माना गया है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 2660 मीटर है। हर्षिल भागीरथी नदी के किनारे स्थित घने देवदार के जंगलों के बीच स्थित एक छोटा सा हिल स्टेशन है। यह जगह सिर्फ यहाँ के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि बाहर से आये उन लोगों के लिए भी गर्व की बात है जो अपना समय प्रकृति के साथ बिताना पसंद करते हैं।
हर्षिल गांव प्रसिद्ध और पवित्र धाम गंगोत्री के पास बसा हुआ है। हर्षिल वैली की स��ंदरता आपका मन मोह लेगी। यहाँ आपको चारों ओर घास के मैदान, दूध की तरह बहने वाले सुंदर झरने, ऊंचे हरे-भरे पहाड़ और बर्फ से भरी चोटियां दिखाई देंगी। इसके अलावा घने देवदार के वृक्ष आपको अपना दीवाना बना देंगे।
विल्सन ने हर्षिल को दी थी स्विट्जरलैंड की उपाधि
हर्षिल, हिमालय की तराई में बसा है यह गांव, जो आपको अपनी ओर बरबस ही खींचता है। यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। यहाँ जाकर आपको ऐसा एहसास होगा मानो आप सपनों की दुनिया में पहुंच गए हों। यहाँ की फिजाओं में अलग तरह का नशा है।
आपको बता दें कि हर्षिल की खोज ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले अंग्रेज फेड्रिक विल्सन ने की थी। सन 1857 में जब फ्रेडरिक विल्सन ने ईस्ट इंडिया कंपनी को छोड़ दिया था जब वह गढ़वाल आए थे। यहाँ उन्होंने भागीरथी नदी के तट पर एक खूबसूरत गांव देखा, जो उन्हें बहुत पसंद आया और उन्होंने यहीं बसने का निर्णय लिया और यहीं रहने लगे।
यहां पर सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से ही जानी जाती है। दरअसल विल्सन ने यहां इंग्लैंड से सेब के पौधे मंगवाकर लगाए थे। तभी से यहां पर सेब की खेती और व्यापार होने लगा। यहाँ की सुंदरता से मंत्र मुग्ध होकर विल्सन ने ही हर्षिल को स्विट्जरलैंड की उपाधि दी थी।
पर्यटकों के लिए हर्षिल घाटी में हैं कई बेहतरीन स्थल
भागीरथी नदी के तट पर स्थित हर्षिल घाटी में बर्ड वॉचिंग और ट्रैकिंग के साथ-साथ अन्य कई बेहतरीन जगहें हैं। हर साल यहां हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। यहाँ जाकर आप अपने टूर को हमेशा के लिए एक यादगार लम्हा बना सकते हैं। यहां आप प्रकृति की खूबसूरती को देखते हुए बहती हुई ठंडी हवा की आवाज महसूस कर सकते हैं। यहां बर्फबारी का भी आप मजा ले सकते हैं।
लोग इस जगह को देवी गंगोत्री का घर भी मानते हैं। हर्षिल अपनी मनोरम प्राकृतिक छटा और गंगोत्री नदी के लिए प्रसिद्ध है। बर्डवॉचर्स के लिए के लिए भी यह जगह बहुत फेमस है। हर्षिल में हर साल उत्तरकाशी मेला लगता है, जो बेहद ही फेमस मेला है।
यहां के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल
हर साल यहां हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। आइये हर्षिल वैली के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में जानते हैं-
धराली
हर्षिल से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव, जो बहुत ही खूबसूरत है और खूबसूरती के मामले में यह अद्भुत है। इस गांव के बगल में बहती भागीरथी नदी इसे और भी अधिक आकर्षण का केंद्र बनाती है। सैलानियों के लिए यह एक पसंदीदा जगह है। ऐसा माना जाता है कि धराली वह स्थान है जहां, भागीरथ ने गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए तपस्या की थी। हिन्दुओं के लिए यह बेहद पवित्र स्थान भी है।
लामा टॉप
यदि आपको सनराइज देखना अच्छा लगता है तो आप इस ��गह जा सकते हैं। हर्षिल वैली में घूमने वालों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। इस सनराइज प्वाइंट से पूरी हर्षिल वैली नजर आती है। इस जगह पर पहुंचने के लिए आपको पहाड़ी पर चढ़ना होगा। लामा टॉप का ट्रैक हर्षिल से शुरू होता है। ये ट्रेक दो किलोमीटर का है। ऊपर पहुंच कर आप सुबह की पहली किरण के साथ पूरे हर्षिल वैली को देख सकते हैं।
गंगोत्री धाम
उत्तराखंड के चार धामों में से एक है गंगोत्री धाम का यह मंदिर। यह मां गंगा को समर्पित है। यह हर्षिल से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर नदी के किनारा बना हुआ है। हिंदू धर्म में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। यह मंदिर जितना पवित्र है उतना ही खूबसूरत भी है।
मुखबा गांव
हर्षिल से मुखबा गांव की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है। यह गांव अद्भुत नजारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां आप प्रकृति की खूबसूरती को देखने के साथ-साथ बहती हुई ठंडी हवा की आवाज़ को भी महसूस कर सकते हैं। इसके साथ ही यहां आप बर्फ़बारी का भी लुत्फ़ ले सकते हैं। देवदार के वृक्ष और कई तरह के पेड़-पौधे और प्राकृतिक माहौल में यहाँ सुकून भरे पल आपको मिलेंगे। इसके अलावा यहां आप ट्रैकिंग का भी आनंद ले सकते हैं।
बर्डवॉचर्स के लिए बेस्ट है जगह
जहाँ हर्षिल प्राकृतिक खूबसूरती और गंगोत्री नदी के लिए प्रसिद्ध है, तो वहीं बर्डवॉचर्स के लिए के लिए भी यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। हर्षिल के घने जंगलों में पक्षियों की संख्या बहुत अधिक है। यहां 5 सौ से भी अधिक पक्षियों की प्रजातियां मौजूद हैं। इन पक्षियों की मधुर आवाज आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
हर्षिल में बर्फ का ले सकते हैं आनंद
यदि आपको बर्फ देखनी हो तो हर्षिल में ठंडियों में जाने का प्लान बनायें। अक्टूबर के अंत में यहां बर्फ पड़नी शुरू हो जाती है। आप हर्षिल वैली नवंबर से लेकर फरवरी तक के महीने में जा सकते हैं। यहाँ प्रकृति की खूबसूरती के साथ-साथ आप बर्फबारी का भी आनंद ले सकते हैं। हर्षिल को उत्तराखंड का स्विट्जरलैंड भी कहते हैं। क्योंकि बर्फबारी के बाद यहाँ की जो खूबसूरती है वह आपको स्विट्जरलैंड की याद दिला देगी।
बगोरी गांव
इस गांव में आपको हर ओर सेब के खेत दिखाई देंगे। हर्षिल में इस गावं को सेब का भंडार कहा जाता है। यदि आपको सेब के बगीचे में घूमने के साथ-साथ टेस्टी सेब का लुत्फ़ लेना है तो बगोरी गांव ज़रूर जायें। यदि आपको नौका विहार का आनंद लेना है तो हर्षिल में मौजूद झील में भी आप जा सकते हैं।
गरतांग गली
यह एक लकड़ी का पुल है, जिसका हमारे इतिहास से कनेक्शन है। पहाड़ों की चट्टानों के बीच बना ये वुडन का पुल लगभग 150 साल पुराना है। 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी गरतांग गल�� की सीढ़ियां इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है। इस ऐतिहासिक पुल को बनाने का तरीका ��र्यटकों को हैरान करता है। आपको बता दें कि इस पुल का इस्तेमाल भारत और तिब्बत के बीच व्यापार के लिए किया जाता था।
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आखिर क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
सनातन धर्म में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से सभी कार्य सफल होते हैं। नवरात्रि में कन्या पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है और नवरात्रि के दिनों में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन करना सबसे अच्छा होता है।
इसी के साथ उपवास रखने वाले इन दोनों दिनों में कन्याओं को भोग लगाकर अपने व्रत का पारण भी करते हैं। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य में कन्याओं का पूजन सबसे पहले किया जाता है। आइये जानते हैं आखिर क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन और सनातन धर्म में क्या है कन्या पूजन का महत्व ?
कन्या पूजा या इसे कुमारी पूजा भी कहते हैं, यह एक हिंदू पवित्र अनुष्ठान है, जो मुख्य रूप से नवरात्रि उत्सव की अष्टमी और नवमी के दिन किया जाता है। इस पूजन में नौ लड़कियों की पूजा की जाती है, जो देवी दुर्गा के नौ रूपों यानि नवदुर्गा का प्रतिनिधित्व करती हैं।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि देवराज इंद्र ने जब भगवान ब्रह्मा जी से भगवती को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कुमारी पूजन ही बताया था। कुमारी पूजन से सम्मान, लक्ष्मी, विद्��ा और तेज़ प्राप्त होता है। इससे विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश भी होता है।
हमारे हिंदू धर्म में कन्या को मां दुर्गा का प्रतीक मानकर पूजा करते हैं। नवरात्रि में कन्या पूजन करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त करने के लिए कन्या पूजन किया जाता है। नवरात्रि में नौ कुमारी कन्याओं और एक छोटे लड़के को घर में बुलाकर और उनके पांव धोकर रोली और तिलक लगाकर पूजा-अर्चना की जाती है। लड़के को हनुमान जी का रूप माना जाता है। जिस तरह मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।
वैसे कुछ लोग नवरात्रि के दौरान हर दिन ही कन्या पूजन करते हैं लेकिन दुर्गा अष्टमी और नवमी के दिन इसका विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों के दौरान कन्याओं को भोजन कराने से माँ खुश होती हैं और यह भोजन माता रानी तक जरूर पहुँचता है।
कन्या पूजन से परिवार में खुशहाली आती है। नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माँ आपके दुखों को दूर करती हैं। माँ सुख-समृद्धि, धन-संपदा का आशीर्वाद देती हैं। इसके साथ ही कन्या पूजन करने से कुंडली में नौ ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। कन्या पूजन से लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजा करने से आपका व्रत और पूजन पूरा होता है।
माँ दुर्गा के दुलारे, महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माता रानी आपको आशीर्वाद देती हैं और छोटी कन्याओं को मां का साक्षात स्वरूप माना जाता है।
9 वर्ष तक की कन्याएं देवी मानी जाती हैं। वैसे तो हिंदू धर्म में समस्त नारियाें काे पूजनीय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जहाँ नारी की पूजा हाेती है वहाँ देवताओं का निवास हाेता है। जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होती जितनी कन्या पूजन से होती हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक कन्याओं को भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं। इससे माता अंधेरे को मिटाकर आपके जीवन में उजाला करती हैं। कन्या पूजन में कम से कम 9 बच्चियों की पूजा जरूर की जाती है।
नवरात्रि के दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा सुख की वर्षा करती हैं और भक्तों को सुख का वरदान देती हैं। अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्याओं को दक्षिणा देने से ही माँ प्रसन्न हो जाती हैं। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्तों का व्रत पूरा होता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि पूरे विश्व में “सनातन धर्म” एक ऐसा धर्म है जिसमें कन्याओं को देवी मानकर पूजा जाता है। यह हमारे धर्म की एक महान संस्कृति का उदाहरण है। नवरात्रि में अन्य सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। माना जाता है कि आयु के अनुसार कन्या पूजन के फल भी अलग अलग होते हैं।
जैसे दो वर्ष की ��न्या के पूजन से दुख और दरिद्रता को मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है और इस आयु की कन्या के पूजन से ��र धन-धान्य से भर जाता है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है, इनके पूजन से घर-परिवार का कल्याण होता है। वहीं पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। इनकी पूजा से व्यक्ति को कोई रोग नहीं घेर पाता है। यानि अगर किसी पर रोहिणी की कृपा हो तो वह व्यक्ति रोगों से दूर रहता हैं।
छह वर्ष की कन्या को कालिका का रूप कहा गया है, जो विजय का प्रतीक होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप माँ चंडिका का है, माँ चंडिका रूप की पूजा करने से धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है और इनकी पूजा से करने से वाद-विवाद में सफलता प्राप्त होती है।
नौ वर्ष की कन्या दुर्गा माँ कहलाती है। इनकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है और लम्बे समय से यदि कोई काम अटका है तो वह भी जल्दी पूरा हो जाता है। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है, इनकी पूजा से आपकी हर मनोकामना पूरी होती है।
महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि सिर्फ 9 दिन ही नहीं बल्कि जीवन भर कन्याओं का सम्मान करें। क्योंकि इनका आदर करना ईश्वर की पूजा के ही बराबर पुण्य देता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में कन्या या नारी का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं।
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क्या होते हैं संस्कार?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री
पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
संस्कार का अर्थ उन कार्यों से है जो किसी व्यक्ति को योग्य और चरित्रवान बनाकर उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करते हैं। कुल मिलाकर संस्कार मन��ष्य को सभ्य बनाते हैं। मनुष्य को सही क्या है गलत क्या है उसके बारे में बताते हैं। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि श्रेष्ठ संस्कारवान मानव का निर्माण ही संस्कारों का मुख्य उद्देश्य है। संस्कारों के द्वारा ही मनुष्य में शिष्टाचरण एवं सभ्य आचरण की प्रवृत्ति का विकास होता है। इस ब्लॉग में आइये विस्तार से जानते हैं क्या होते हैं संस्कार ?
संस्कार का अर्थ
संस्कार का अर्थ है किसी कार्य की छाप या उसका प्रभाव, जो हम उसके लक्ष्यों के प्रति पूर्ण जागरूकता के साथ करते हैं। दुनिया की हर चीज़ की तरह, हमारे सकारात्मक एवं नकारात्मक संस्कार और हमारे जीवन पर उनका प्रभाव निरंतर प्रवाह में रहता है। संस्कार शब्द का अर्थ है, शुद्धिकरण। संस्कार का अभिप्राय उन धार्मिक कृत्यों से था जो किसी व्यक्ति को पूर्ण रुप से योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करने के लिए किए जाते थे।
हिंदू संस्कारों का उद्देश्य व्यक्ति में अभीष्ट गुणों को जन्म देना है। महंत श्री पारस भाई जी की दृष्टि में संस्कार का अर्थ यह है कि,समाज या व्यक्ति जिन विशेष गुणों के कारण जाना जाता है वे गुण उस समाज और व्यक्ति के संस्कार कहलाते हैं। मानव जीवन में संस्कारों का अत्यधिक महत्व है। संस्कारों की सर्वाधिक महत्ता मानवीय चित्त की शुद्धि के लिए है। संस्कारों से ही मनुष्य का चरित्र निर्मित होता है और चरित्र, जिस पर मनुष्य का जीवन सुख और मान-सम्मान को प्राप्त करता है।
संस्कारों का उद्देश्य क्या है?
संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य में बुरी आदतों को दूरकर मानवता में परिवर्तित करना था। प्राचीन काल में मनुष्य के जीवन में धर्म का विशेष महत्व था। संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व को इस प्रकार विकसित करना है कि वह संपूर्ण विश्व में सद्बुद्धि और शक्तियों के साथ आगे बढ़े।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार संस्कारवान व्यक्ति की शक्ति और ऊर्जा समाज और विश्व के कल्याण के लिए कार्य करती है और वहीं असंस्कारित व्यक्ति की शक्ति और ऊर्जा विश्व और समाज के विध्वंस के लिए कार्य करती है। यही वजह है कि संस्कारवान होना अत्यंत आवश्यक है। संस्कारवान वह है जो परिवार, समाज, देश एवं विश्व के कल्याण के लिए कार्य करे।
संस्कार कैसे बनते हैं?
ऐसा माना जाता है कि जन्म से लेकर 21 वर्ष तक मुख्य रूप से संस्कारों का निर्माण हो जाता है। दरअसल इस उम्र में पड़ी हुई आदतें ही आगे चलकर संस्कार का रूप ले लेती हैं। बच्चों में अच्छी आदतों का निर्माण बचपन में ही शुरू हो जाता है। हर माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों में अच्छी आदतों का निर्माण करें। क्योंकि बच्चे कोरे
कागज की तरह हैं। उन्हें आप जैसे बनाओगे वो वैसे ही उभर कर आएंगे। बच्चों के ऊपर माता-पिता के संस्कारों का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। अपने बच्चों में खान-पान से लेकर, दूसरों का सम्मान, गुरु की इज्जत करना, प्रेम और पूजा-अर्चना आदि हर छोटी बड़ी बातों का महत्व जरूर समझायें।
संस्कार क्या होते हैं ?
संस्कृत में संस्कार का अर्थ संस्कृति या उत्तम बनाना है। हिंदू धर्म में संस्कार व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि संस्कार आपको सद्कर्मों की ओर ले जाते हैं। संस्कार आपको पापों से दूर रखते हैं। अच्छे संस्कार के लक्षण हैं, शुद्धता, पवित्रता एवं धार्मिकता। अच्छे कर्म सकारात्मक संस्कार बनाते हैं, वहीं बुरे कर्म नकारात्मक संस्कार पैदा करते हैं।
हिंदू धर्म में संस्कारों का महत्व
संस्कारों की बात करें तो गर्भावस्था में गर्भाधान, पुंसवन और सीमंतोन्नयन तीन संस्कार होते हैं। इन तीनों का उद्देश्य माता-पिता की जीवनचर्या इस प्रकार बनाना है कि बालक अच्छे संस्कारों को लेकर जन्म ले। इसलिए जात- कर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्न प्राशन, मुंडन, कर्ण बेध, ये छः संस्कार पाँच वर्ष की आयु में समाप्त हो जाते हैं। बाल्यकाल में ही मनुष्य की आदतें बनती हैं, अतः ये संस्कार बहुत जल्दी- जल्दी रखे गये हैं।
ऐसे ही गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्युपर्यंत तक संस्कार चलते हैं। व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी हिंदू धर्म में संस्कार किये जाते हैं। हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों का बहुत महत्व है। अत: गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्युपर्यंत तक क्रियाओं को संस्कार कहा जाता है। जो मंत्रों के द्वारा किये जाते हैं।
संस्कार दो तरह के हैं, सुसंस्कार और कुसंस्कार
देखा जाये तो संस्कार हमारे ही सही या गलत विचारों का हमारे मन, दिल दिमाग पर होने वाला प्रक्षेपण होता है। संस्कार मनुष्य के जीने के तरीके को प्रदर्शित करता
है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि संस्कार आपके जीवन की दिशा को निश्चित करते हैं। इसलिए जीवन में संस्कार बहुत महत्वपूर्ण है।
संस्कार, अच्छे भी होते हैं और बुरे भी यानि जिन संस्कारों से व्यक्ति का जीवन बुराइयों से हटकर, धर्म की राह पर चलता है, सद्मार्ग पर चलता है और अच्छे कर्म करता है वह संस्कारी कहलाता है। वहीं दूसरी ओर जिन संस्कारों से व्यक्ति का जीवन बुराइयों के साथ, कुमार्ग पर चलता है, अधर्म की राह पर चलता है, बुरे कर्म करता है, वह कुसंस्कारी कहलाता है।
एक बच्चे के जीवन में संस्कार का महत्त्व
संस्कार शब्द का अर्थ होता है ‘सज्जन बनाना’ अथवा ‘निर्माण करना’। संस्कार एक बच्चे को सद्भावपूर्ण और सभ्य नागरिक बनाते हैं। संस्कारों के द्वारा ही एक बच्चा सामाजिक और नैतिक मूल्यों को सीखता है, यह कहना है महंत श्री पारस भाई जी का। यह जरुरी भी है क्योंकि एक बच्चे को जीवन में आगे बढ़ने के लिए, सफलता और सुख की प्राप्ति के लिए अच्छे संस्कारों का ज्ञान होना जरुरी है।
संस्कार ही एक बच्चे को व्यक्तिगत और सामाजिक सफलता की ओर ले जाते हैं और एक सद्भावपूर्ण, सशक्त और सुदृढ़ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। बच्चे को कैसी शिक्षा दी जा रही है यह भी बहुत जरुरी है। क्योंकि शिक्षा भी संस्कारों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शिक्षा द्वारा ही सोचने की क्षमता और सही गलत की जांच करने की क्षमता ��ा विकास होता है और साथ ही दूसरों के प्रति सम्मान करने की क्षमता विकसित होती है। कुल मिलाकर परिवार, स्कूल, मित्रों, शिक्षकों और सामाजिक घटनाओं द्वारा प्रभावित होकर एक बच्चे के व्यक्तित्व में संस्कारों का निर्माण होता है।
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पारस परिवार संगठन में रामनवमी उत्सव
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
रामनवमी, भगवान ��ाम के जन्म की स्मृति में मनाया जाने वाला शुभ त्योहार, आत्मनिरीक्षण, भक्ति और सामुदायिक आनंद का अवसर है। पारस परिवार संगठन सेवा, करुणा और एकता के प्रति हमारे समर्पण को दोहराते हुए इस आयोजन की भावना को अपनाता है, जो सभी भगवान राम की शिक्षाओं में गहराई से निहित हैं।
हमारा विशेष कार्य
पारस परिवार चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना महंत श्री पारस भाई जी की सहायता से गरीबों के उत्थान और समुदाय की भावना को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ की गई थी। हमारा आदर्श वाक्य, “उनकी मुस्कुराहट के पीछे माँ की खुशी है,” यह सुनिश्चित करने के लिए हमारे समर्पण का प्रत���क है कि हम जिस भी व्यक्ति की मदद करते हैं वह महत्वपूर्ण और अच्छी देखभाल महसूस करता है।
भगवान राम से प्रेरित मूल्य
भगवान राम करुणा, धर्म और निस्वार्थ सेवा जैसे मूल्यों के अवतार हैं। हम पारस परिवार के रूप में अपने प्रयासों को इन सिद्धांतों पर आधारित करते हैं:
धार्मिकता (धर्म): हम जो कुछ भी करते हैं उसमें खुद को नैतिक रूप से संचालित करने का प्रयास करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारे कार्य जरूरतमंद लोगों की मदद करने के हमारे लक्ष्य के अनुरूप हैं।
करुणा: भगवान राम के समान, जो सभी जीवित चीजों के प्रति दयालु थे, हम अपने आउटरीच प्रयासों में सहानुभूति को प्राथमिकता देते हैं। हमारे कार्यक्रम तत्काल राहत प्रदान करने के अलावा दीर्घकालिक रूप से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
एकता: रामनवमी का मूल उद्देश्य लोगों को एकजुट करना है. हम सभी को पारस परिवार में अपने परिवार का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करते हैं क्योंकि हम सामुदायिक सहयोग की क्षमता में दृढ़ता से विश्वास करते हैं। एक टीम के रूप में हम बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
राम नवमी एक साथ मनाएं
हम आपको इस रामनवमी पर हमारे उत्सवों और स्वैच्छिक कार्यों में शामिल होने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं। यहां बताया गया है कि आप कैसे भाग ले सकते हैं:
स्वैच्छिक अवसर: जरूरतमंद लोगों को शिक्षा, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से विभिन्न आउटरीच कार्यक्रमों में हमसे जुड़ें।
सामुदायिक कार्यक्रम: हमारे उत्सव समारोहों में भाग लें जो सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाते हैं और विभिन्न समुदायों के बीच एकता को प्रोत्साहित करते हैं।
दान: आपका योगदान हमें अपनी पहुंच का विस्तार करने और गरीबी में रहने वाले और शिक्षा तक पहुंच के बिना रहने वाले अधिक लोगों की सहायता करने की अनुमति देगा।
हमारा प्रभाव
अपनी स्थापना के बाद से, हमने कई कार्यक्रम चलाए हैं जिनसे खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में दस लाख से अधिक लोगों के जीवन में सुधार हुआ है। हमारे निरंतर प्रयास यह गारंटी देते हैं कि हम न केवल त्वरित सहायता प्रदान करते हैं बल्कि देश भर में गरीबी कम करने और शैक्षिक संभावनाओं में सुधार करने का भी प्रयास करते हैं।
हमसे जुड़ें
आइए हम राम नवमी मनाते हुए भगवान राम के मूल्यों के जीवंत उदाहरण के रूप में अपना जीवन जीने का प्रयास करें। हम आपको उन लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए पारस परिवार संगठन में हमारे साथ काम करने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं जो कम भाग्यशाली हैं। साथ मिलकर काम करके, हम एक अधिक आशाजनक भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जो अवसरों से भरा हो।
आइए, अंत में, सेवा करने, दयालु होने और साथ मिलकर काम करने का संकल्प लेकर भगवान राम की विरासत को श्र��्धांजलि अर्पित करें। हमारे साथ इस सम्मानजनक यात्रा पर आइए क्योंकि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें हर कोई समृद्ध हो सके।
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