The Paras Parivaar Organization works 365 days a year to lug our Paras Guru's vision forward. We have helped more than 10 lakh needy people, and thanks to Maa and our Mahant Shri Paras Bhai Ji of Sanatan Dharm, this number is steadily rising and it is the grandeur of Sanatan Dharm that we strive to assist those who cannot afford to pay for their education or who are food insecure.
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परस भाई जी: सम्मान और आदर का प्रतीक
आज के समय में सम्मान और आदर वे मूल्य हैं जो किसी व्यक्ति के वास्तविक चरित्र को परिभाषित करते हैं। ऐसा ही एक नाम है पारस भाई जी। चाहे कोई उन्हें पारस, पारस भाई, या पूरी श्रद्धा से पारस भाई जी कहे, उनका नाम विश्वास, नेतृत्व और आत्मीयता का प्रतीक बन गया है।
कौन हैं पारस भाई जी?
पारस भाई जी केवल एक नाम नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो अपनी दयालुता, बुद्धिमत्ता और नैतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है। कई लोग उन्हें स्नेहपूर्वक पारस भाई कहते हैं, जो उनके साथ घनिष्ठता को दर्शाता है, जबकि अन्य उन्हें सम्मान के साथ पारस भाई जी कहते हैं, जो उनके प्रति उनकी श्रद्धा को दर्शाता है।
पारस भाई जी का सम्मान क्यों किया जाता है?
ईमानदारी के साथ नेतृत्व पारस भाई जी हमेशा अपने मित्रों, परिवार और समाज के लिए मार्गदर्शक बने रहते हैं। उनकी ईमानदारी और समर्पण उन्हें वह व्यक्ति बनाता है, जिसे हर कोई प्रेरणा के रूप में देखता है।
मदद के लिए हमेशा तैयार चाहे कोई परेशानी में हो या मार्गदर्शन की तलाश में, पारस भाई हमेशा उनकी सहायता के लिए तैयार रहते हैं। उनकी करुणामयी प्रकृति ही वह कारण है जिससे लोग उनका आदर करते हैं।
एक सच्चे मित्र और भाई "भाई" शब्द का अर्थ ही अपनापन और स्नेह है, और पारस भाई इस उपाधि के सच्चे हकदार हैं। वे सभी के साथ सम्मान और आत्मीयता से पेश आते हैं, जिससे हर कोई उनके साथ सहज महसूस करता है।
पारस भाई जी की विरासत
अपने जीवन में, पारस भाई जी ने सम्मान और आदर पर आधारित एक मजबूत छवि बनाई है। उनके कार्य उनके शब्दों से अधिक प्रभावशाली हैं, और उनका प्रभाव उनके ��सपास के लोगों को प्रेरित करता रहता है। चाहे वे पारस, पारस भाई, या पारस भाई जी के रूप में जाने जाएं, उनका नाम हमेशा सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक रहेगा।
निष्कर्ष
नाम में बहुत शक्ति होती है, और पारस भाई जी एक ऐसा नाम है जो गरिमा और सम्मान को दर्शाता है। आज के समय में, जब सम्मान की भावना धीरे-धीरे कम होती जा रही है, पारस भाई जैसे व्यक्तित्व हमें दयालुता, विनम्रता और सशक्त नैतिक मूल्यों का महत्व सिखाते हैं।
चाहे उन्हें पारस, पारस भाई, या पारस भाई जी कहें—एक बात तो निश्चित है: उनका नाम हमेशा सम्मान और आदर के साथ लिया जाएगा।
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परस भाई जी: सनातन धर्म के प्रचारक
भारत की विशाल आध्यात्मिक विरासत में, परस भाई जी एक ऐसे प्रकाश स्तंभ के रूप में उभरे हैं जो सनातन धर्म के वास्तविक सार को समझाने के लिए समर्पित हैं। धर्म, भक्ति और सेवा के प्रति उनकी अटूट निष्ठा ने उन्हें हिंदू धर्म के अनुयायियों के बीच सम्मानित स्थान दिलाया है। परस परिवार के माध्यम से, उन्होंने एक ऐसा आध्यात्मिक आंदोलन खड़ा किया है जो हमारी प्राचीन परंपराओं के मूल्यों को बनाए रखते हुए आधुनिक समय की आवश्यकताओं के साथ समायोजित होता है।
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कौन हैं परस भाई जी?
परस भाई जी केवल एक नाम नहीं, बल्कि सनातन धर्म के प्रति अटूट आस्था और समर्पण का प्रतीक हैं। उनका जीवन यात्रा आध्यात्मिक जागृति, सामाजिक सेवा और धर्म की निस्वार्थ साधना का अद्भुत उदाहरण है। वे मानते हैं कि सच्ची भक्ति केवल पूजा में ही नहीं, बल्कि समाज को uplift करने, ज्ञान फैलाने और स्वयं एक आदर्श उदाहरण बनने में निहित है।
परस परिवार: एक आध्यात्मिक परिवार
परस परिवार केवल एक समूह नहीं, बल्कि सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित भक्तों का एक आध्यात्मिक परिवार है। यह परिवार परस भाई जी के मार्गदर्शन में धार्मिक प्रवचनों, सामाजिक सेवा और सांस्कृतिक संरक्षण में सक्रिय रूप से भाग लेता है। परस परिवार द्वारा अनेक धार्मिक आयोजनों, जरूरतमंदों के लिए अन्नदान, और हिंदू धर्म की समृद्ध परंपराओं के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है।
सनातन धर्म के मूल संदेश
परस भाई जी का उद्देश्य सनातन धर्म की शाश्वत शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाना है। उनके उपदेश चार प्रमुख स्तंभों पर आधारित हैं:
भक्ति (Bhakti): प्रार्थना, पूजन और ध्यान के माध्यम से ईश्वर से जुड़ना।
ज्ञान (Gyaan): शास्त्रों को समझना और उनके ज्ञान को अपने जीवन में लागू करना।
सेवा (Seva): निःस्वार्थ भाव से जरूरतमंदों की सहायता करना।
सत्य (Satya): सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और धर्म के मार्ग पर चलना।
परस भाई जी का समाज में योगदान
परस भाई जी के प्रयासों से अनेक सामाजिक और धार्मिक कार्य हो रहे हैं, जिनमें शामिल हैं:
✅ धार्मिक प्रवचन एवं भागवत गीता के सत्रों का आयोजन। ✅ जरूरतमंदों के लिए भोजन वितरण अभियान। ✅ हिंदू परंपराओं, त्योहारों और अनुष्ठानों का प्रचार। ✅ युवाओं को धर्म और संस्कृति से जोड़ने के लिए प्रेरित करना।
निष्कर्ष
परस भाई जी और परस परिवार का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है और हजारों लोगों को सनातन धर्म की शिक्षाओं को नई ऊर्जा और श्रद्धा के साथ अपनाने की प्रेरणा दे रहा है। उनका उद्देश्य एक ऐसे समाज की स्थापना करना है जहाँ आध्यात्मिकता और मानवता एक साथ आगे बढ़ें, और लोग धर्म की शिक्षाओं में शांति और संतोष प्राप्त करें।
आज जब परंपराएँ धूमिल हो रही हैं, परस भाई जी आशा की किरण बनकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि सनातन धर्म के शाश्वत मूल्य आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित और जीवंत रहें।
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पारस परिवार धर्म और भक्ति का संगम
सनातन धर्म की महान परंपरा में अनेक संत, महापुरुष और भक्तगण हुए हैं, जिन्होंने धर्म और भक्ति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। ऐसे ही धर्मनिष्ठ और सेवा भाव से ओत-प्रोत "पारस परिवार" का नाम भी अत्यंत आदर और श्रद्धा से लिया जाता है। यह परिवार धर्म, भक्ति और समाजसेवा का एक सशक्त प्रतीक बन चुका है।
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पारस भाई जी धर्म और सेवा के प्रेरणास्त्रोत
पारस भाई जी अपने भक्तिपूर्ण जीवन, धार्मिक ज्ञान औ��� समाजसेवा के कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी वाणी में शास्त्रों की गहराई है और उनके विचारों में सनातन धर्म की आत्मा समाहित है। उन्होंने अपने जीवन को धर्म प्रचार, सत्संग और समाज की सेवा में समर्पित किया है। उनकी शिक्षाएँ हजारों लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।
पारस परिवार: एक आध्यात्मिक संगम
पारस परिवार सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि भक्ति और सेवा का एक आंदोलन है। यह परिवार धार्मिक आयोजनों, सत्संगों और आध्यात्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से सनातन धर्म के मूल्यों का प्रचार-प्रसार करता है। यहाँ हर व्यक्ति को आत्मिक शांति और भक्ति का अनुभव होता है। पारस परिवार की पहल से अनेक धार्मिक और सेवा कार्य होते हैं, जो समाज को मजबूती प्रदान करते हैं।
सनातन धर्म और पारस परिवार का योगदान
सनातन धर्म की जड़ें बहुत गहरी हैं और इसकी शिक्षाएँ मानव मात्र के कल्याण के लिए हैं। पारस परिवार ने सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई है। यह परिवार धार्मिक ग्रंथों का ��ध्ययन और प्रचार करता है, जिससे लोग धर्म के सही अर्थ को समझ सकें। साथ ही, यह परिवार गरीबों की सहायता, भोजन वितरण और अन्य समाजसेवा कार्यों में भी सक्रिय रूप से योगदान देता है।
पारस भाई जी के विचार और शिक्षाएँ
भक्ति ही जीवन का सार है – पारस भाई जी के अनुसार, बिना भक्ति के जीवन अधूरा है। ईश्वर की आराधना और सच्चे मन से की गई प्रार्थना व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करती है।
सेवा ही सच्ची पूजा है – पारस परिवार समाजसेवा को सबसे महत्वपूर्ण कार्य मानता है। जरूरतमंदों की मदद करना, गरीबों को भोजन कराना और असहाय लोगों की सहायता करना ही असली धर्म है।
सनातन धर्म का पालन करें – पारस भाई जी सदैव लोगों को सनातन धर्म की महान परंपराओं को अपनाने और उसके अनुसार जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
निष्कर्ष
पारस परिवार ने धर्म, भक्ति और सेवा को एक सूत्र में पिरोकर समाज में एक नई जागरूकता पैदा की है। पारस भाई जी के नेतृत्व में यह परिवार न केवल सनातन धर्म की शिक्षाओं का प्रचार कर रहा है, बल्कि समाज के हर वर्ग तक इसका लाभ पहुंचाने का कार्य भी कर रहा है। इस परिवार का संदेश स्पष्ट है – "धर्म का पालन करें, भक्ति में लीन रहें और सेवा भाव को अपनाएँ।" यही सच्चा सनातन धर्म है।
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यह वाक्य सनातन धर्म और हिंदू सं��्कृति में एकता, भक्ति और गर्व को खूबसूरती से दर्शाता है। पारस भाई जी परंपरा की शक्ति, सामूहिकता की भावना और धार्मिक मूल्यों में अडिग विश्वास का प्रतीक हैं
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पारस भाई जी और सनातन परिवार | जय माता दी
आज के इस ब्लॉग में हम बात करेंगे "पारस भाई जी" और "पारस परिवार" के बारे में, जो एक साथ मिलकर सनातन धर्म और संस्कृति को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह ब्लॉग उन सभी लोगों के लिए है जो पारस परिवार के साथ जुड़कर एक नई दिशा में कदम बढ़ाना चाहते हैं।
पारस भाई जी: एक प्रेरणा
पारस भाई जी का नाम सुनते ही हमें एक ऐसी शख्सियत का ख्याल आता है, जिन्होंने अपने जीवन में सनातन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किए हैं। वह न केवल धार्मिक कार्यों में भाग लेते हैं, बल्कि उन्होंने समाज में शांति और प्रेम फैलाने के लिए कई कदम उठाए हैं। पारस भाई जी का मार्गदर्शन और उनके कार्यों से हम सभी को प्रेरणा मिलती है।
पारस परिवार का उद्देश्य
"पारस परिवार" शब्द का जिक्र करते ही हमारे मन में एक ऐसी छवि उभरती है, जो धार्मिकता, परिवार की अहमियत और समाज की सेवा को दर्शाता है। पारस परिवार का उद्देश्य केवल धार्मिक कार्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार मानवता की सेवा में भी अग्रणी है। पारस परिवार के सदस्य अपने व्यक्तिगत जीवन में भी सनातन धर्म के आदर्शों को जीने का प्रयास करते हैं, और साथ ही यह परिवार समाज के अन्य वर्गों को ��ी जागरूक करता है।
पारस परिवार और सनातन धर्म का महत्व
सनातन धर्म एक ऐसी पवित्र संस्कृति है, ज�� हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने का संदेश देती है। पारस परिवार के सदस्य इस संस्कृति के संवर्धन में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। वे न केवल धार्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, बल्कि वे समाज में एकता, प्रेम और शांति के प्रचारक भी हैं।
पारस भाई जी का योगदान
पारस भाई जी के योगदान से पारस परिवार को एक नई पहचान मिली है। उनके नेतृत्व में पारस परिवार ने कई धार्मिक और सामाजिक कार्यों का आयोजन किया है, जिनसे लाखों लोग लाभान्वित हुए हैं। पारस भाई जी की शिक्षाओं और उनके विचारों से यह परिवार एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहा है।
जय माता दी: पारस परिवार की एकता का प्रतीक
"जय माता दी" पारस परिवार का एक अहम मंत्र है, जो न केवल धार्मिक विश्वास को बढ़ावा देता है, बल्कि यह परिवार की एकता और समृद्धि का प्रतीक भी है। पारस परिवार में हर सदस्य का एक ही उद्देश्य होता है: समाज की भलाई और सनातन धर्म के आदर्शों का पालन करना।
निष्कर्ष
पारस भाई जी और पारस परिवार का योगदान समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अनमोल है। उनकी मेहनत, समर्पण और धार्मिकता से हम सभी को प्रेरणा मिलती है। यदि आप भी सनातन धर्म और पारस परिवार के आदर्शों का पालन करना चाहते हैं, तो इस परिवार का हिस्सा बनना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
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डॉ. मनमोहन सिंह: एक प्रेरणादायी नेता को श्रद्धांजलि
26 दिसंबर, 2024 को भारत ने अपने सबसे प्रिय राजनेताओं में से एक डॉ. मनमोहन सिंह को पूरी दुनिया को ईश्वर के पास ले जाते हुए देखा। वे देश के राजनीतिक और आर्थिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक हैं। वे भारत के 13वें प्रधानमंत्री थे, लेकिन उनकी सार्वजनिक नीतियों का दूरदर्शी उद्देश्य और सेवा के प्रति उनका समर्पण देश के लिए एक अमिट विरासत है। उनकी मृत्यु एक युग का अंत करती है, लेकिन लाखों लोग उनकी विरासत से प्रेरणा लेते हैं। आज हम डॉ. मनमोहन सिंह को उनके आदर्शों की तुलना महंत श्री पारस भाई जी के मार्गदर्शन में पारस परिवार के महान कार्यों से करके याद करते हैं।
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विनम्रता और सेवा का अस्तित्व
उनका जीवन वर्तमान पाकिस्तान के एक छोटे से गाँव गाह से वैश्विक नेतृत्व में विश्व मंच तक पहुँचा है: डॉ. मनमोहन सिंह। यह जीवन जीने का एक बेहद विजयी तरीका है। कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से उन्होंने अर्थशास्त्री की कला में महारत हासिल करना सीखा है और भारत में कुछ गंभीर आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से विशिष्टता की कीमिया को बदल दिया है।
1991 में भारत के वित्त मंत्री के रूप में, सिंह ने देश को बदलने वाले आर्थिक सुधारों के लिए नेतृत्व किया। उनकी साहसिक उदारीकरण नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को उस समय दुनिया के लिए खोल दिया जब देश एक गंभीर भुगतान संतुलन संकट से पीड़ित था, इस प्रकार गहन विकास और विकास के वर्षों की शुरुआत हुई। उन्होंने एक समावेशी विकास गुणवत्ता के प्रति प्रतिबद्धता को मूर्त रूप दिया, जिसे महंत श्री पारस भाई जी के नेतृत्व वाले पारस परिवार द्वारा मान्यता प्राप्त है और सराहा जाता है, जो शिक्षा, आध्यात्मिकता और सेवा के माध्यम से समुदायों के उत्थान का प्रयास करता है।
सौम्य राजनेता
डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी हर भूमिका में गरिमापूर्ण और शालीन आचरण किया। वे अदम्य शांति के साथ-साथ अपार विनम्रता के लिए जाने जाते थे। वर्ष 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहने के दौरान उन्होंने भारत के लिए कई महत्वपूर्ण विरासतें दीं, जिनमें शायद सबसे महत्वपूर्ण भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, सूचना का अधिकार अधिनियम का अधिनियमन और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) शामिल हैं। उनके नेतृत्व में शासन में आम सहमति बनाने ��र नैतिक पहलुओं में अंतर्निहित विश्वास झलकता है।
अर्थव्यवस्थाओं के भीतर परिवर्तन की विरासत का निर्माण
डॉ. सिंह ने आर्थिक मामलों में भारत को बेजोड़ योगदान दिया है। वित्त मंत्री के रूप में उनकी सेवा ने न केवल भारत में आर्थिक स्थिरता लाई, बल्कि भारत को अपने आप में एक शक्तिशाली वैश्विक अर्थव्यवस्था भी बनाया। एक खुली अर्थव्यवस्था, संरक्षणवाद को बढ़ावा देना और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्वागत करना, ऐसे माहौल में लाया गया जिसने नवाचार और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित किया।
इसी तरह, महंत श्री पारस भाई जी के मार्गदर्शन में पारस परिवार का उद्देश्य जागरूकता और प्रशिक्षण के माध्यम से आत्मनिर्भर व्यक्तियों को प्रदान करना है। ये प्रयास ऐसे समुदायों को बनाने में सहायता करते हैं जो एक दिन आत्मनिर्भर होंगे और राष्ट्र के विकास में योगदान देंगे। यह वास्तव में नैतिक आधारों के साथ आर्थिक प्रगति के आंतरिककरण को दर्शाता है। यह डॉ. सिंह के शासन के दर्शन को दर्शाता है।
पीढ़ियों के लिए प्रेरणा
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन महत्वाकांक्षी नेताओं और परिवर्तन करने वालों के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने नैतिकता की भावना में खड़े होकर और महान दूरदर्शी नेता को जानकर, चुनौतीपूर्ण परीक्षणों को पार करने के लिए जितना कोई भी भविष्य में रुचि रखता है, उतना सीखकर दुनिया में योगदान दिया है। उनके नाम का जश्न मनाते समय, किसी को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए जो उन्होंने अपने श्रोताओं के बीच प्रेरित की हैं: अखंडता, समावेशिता और लचीलापन।
महंत श्री पारस भाई जी के नेतृत्व में पारस परिवार समग्र विकास के माध्यम से समाज के उत्थान के अपने मिशन में इस सिद्धांत को आगे बढ़ाता है। इसे पपीजी द्वारा भी मान्य किया गया है क्योंकि यह शैक्षिक कार्यक्रम प्रदान करता है, स्वास्थ्य सेवा पहल लाता है, और डॉ. मनमोहन सिंह के दृष्टिकोण के साथ सभी के लिए एक बेहतर दुनिया के निर्माण की दिशा में आध्यात्मिक मार्गदर्शन करता है।
जब डॉ. मनमोहन सिंह मैदान से आगे निकल जाते हैं, तो भारत अनंत काल तक सभी मानवता की सेवा में उपयोग किए गए जीवन को याद करता है और उसका जश्न मनाता है। राष्ट्र के विकास में उनके द्वारा किए गए योगदान को इस राष्ट्र के इतिहास से कभी नहीं मिटाया जा सकता। साथ ही, पारस परिवार के साथ उनके दीर्घकालिक संबंध और महंत श्री पारस भाई जी की शिक्षाओं के माध्यम से भी ऐसी हृदय विदारक विरासतें मिलती हैं।
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तुलसी दिवस सनातन धर्म में एक पवित्र पौधा
तुलसी दिवस सनातन धर्म के लिए एक असाधारण आयोजन है और यह दुनिया भर के हिंदुओं द्वारा बहुत ही निष्ठा और ईमानदारी से मनाए जाने वाले अवसरों में से ए��� है। यह तुलसी के पौधे के बारे में जानकारी देता है, जो इसके आध्यात्मिक, औषधीय और पर्यावरणीय महत्व का प्रतीक है। यह पवित्र पौधे तुलसी को समर्पित एक दिन है, जिसे पवित्र तुलसी भी कहा जाता है, जिसका हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है-जो पर्यावरण को शुद्ध करने वाला है। वर्ष 2025 के लिए तुलसी दिवस 25 दिसंबर को मनाया जाएगा। यह केवल अनुष्ठानों के लिए नहीं बल्कि प्रकृति और आध्यात्मिक मूल्यों के साथ फिर से जुड़ने के लिए है। तुलसी दिवस के पालन में अधिकतम भागीदारी के लिए काम करने वाला एक ऐसा संगठन है पारस परिवार, जो महंत श्री पारस भाई जी के मार्गदर्शन में है।
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सनातन धर्म में तुलसी का अर्थ
तुलसी शब्द सनातन धर्म के साथ “जड़ी-बूटियों की रानी” के रूप में बहुत निकटता से जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार, तुलसी के पौधे को भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी का सांसारिक रूप माना जाता है। प्राचीन हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि घर में तुलसी का पौधा लगाने और उसे पोषित करने से समृद्धि, शांति और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में तुलसी की प्रतिदिन पूजा करना एक सामान्य घरेलू प्रथा है, जिसमें विभिन्न धार्मिक समारोहों जैसे देवताओं को अर्पित करने में इसके पत्तों का उपयोग किया जाता है।
तुलसी का आध्यात्मिक अर्थ बहुत ��ड़ा है। इसका सबसे विस्तृत उल्लेख करने वाले श्लोक हैं: भागवत पुराण, पद्म पुराण और विष्णु पुराण। ये सभी इसके दिव्य गुणों के बारे में बात करते हैं, जो मन और आत्मा की सफाई के बीच समान हैं। भक्त इस दिन पौधे के लिए विशेष प्रार्थना और अनुष्ठान करने के लिए इच्छुक होते हैं और इसके माध्यम से आशीर्वाद मांगते हैं। यह गतिविधि सनातन धर्म के वास्तविक चरित्र का प्रतिनिधित्व करती है जो उपदेश देती है कि सभी जीव परस्पर जुड़े हुए हैं, जैसा कि पर्यावरण के मामले में है।
तुलसी दिवस कैसे मनाया जाता है?
तुलसी दिवस के नाम से प्रसिद्ध यह दिन कार्तिक महीने की एकादशी को मनाया जाता है। यह उस दिन किए जाने वाले अनुष्ठानों और समारोहों का एक हिस्सा है। कई भक्तों के अनुसार, वे सुबह बहुत जल्दी उठते हैं, तुलसी के पौधे को नहलाते हैं और उसे फूलों और सिंदूर से सजाते हैं। देवी तुलसी के लिए भगवान के हस्तक्षेप में छंद और मंत्रों का जाप करते हुए एक विशेष पूजा की जाती है। कई घरों में, इस दिन को ‘तुलसी विवाह’ के साथ भी मनाया जाता है, जिसे शालिग्राम पत्थर द्वारा दर्शाए गए भगवान विष्णु के साथ तुलसी का विवाह माना जाता है।
हालांकि इनमें से अधिकांश समारोह सामुदायिक स्तर पर आयोजित किए जाते हैं, लेकिन पारस परिवार जैसे संगठन तुलसी दिवस के उत्सव में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। महंत श्री पारस भाई जी की शिक्षाओं के मार्गदर्शन में, यह संस्थान लोगों को तुलसी की आध्यात्मिक और साथ ही पारिस्थितिक प्रासंगिकता के बारे में जागरूक करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करता है। ऐसे आयोजनों में आमतौर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, पर्यावरण जागरूकता गतिविधियाँ और तुलसी के पौधे चढ़ाकर उसे उगाने के लिए प्रोत्साहित करना शामिल होता है।
तुलसी दिवस के लिए महंत श्री पारस भाई जी का दृष्टिकोण
हिंदू धर्म के एक सम्मानित आध्यात्मिक नेता के रूप में प्रसिद्ध महंत श्री पारस भाई जी ने अपनी शिक्षाओं और नवाचारों के माध्यम से सनातन धर्म की पुरानी परंपराओं को पुनर्जीवित किया। उन्होंने तुलसी दिवस के बड़े पैमाने पर प्रचार के लिए काम किया, जो हिंदू धर्म की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिए उनकी दृढ़ता को दर्शाता है। महंत के मार्गदर्शन में, पारस परिवार ने युवा पीढ़ी को तुलसी के महत्व और पारिस्थितिकी में इसके योगदान को समझाने के लिए महान कार्य किए।
पारस परिवार सनातन धर्म का योगदान
इस प्रकार पारस परिवार सनातन धर्म और हिंदू धर्म की शिक्षाओं के प्रसार के लिए एक प्रमुख प्रचारक संस्था के रूप में उभरता हुआ प्रतीत होता है। तुलसी दिवस जैसे आयोजन व्यक्ति और उसकी संस्कृति के बीच के बंधन को और मजबूत करते हैं। महंत श्री पारस भाई जी के नेतृत्व में संगठन द्वारा किए गए इन प्रयासों ने कई अनिर्णा��क व्यक्तियों को अपने दैनिक कार्यों में स्थायी प्रथाओं का प्रचार जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया है।
यह केवल एक त्यौहार नहीं है, बल्कि जीवन भक्ति और पर्यावरण सद्भाव का उत्सव है। सनातन धर्म ने इस दिन को आध्यात्मिक और पर्यावरणीय आयाम के रूप में तुलसी के स्थान को ध्यान में रखते हुए मनाया है। पारस परिवार ने इस समय महंत श्री पारस भाई जी के आशीर्वाद से इस उत्सव को नया अर्थ दिया है।
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गुरु घासीदास जयंती: पारस परिवार के साथ संत ज्ञान।
गुरु घासीदास जी की शिक्षाएँ।
गुरु घासीदास जी की शिक्षाएं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक क्रांति के रूप में भी परिवर्तनकारी थीं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म से बढ़कर कुछ भी नहीं है, सनातन बहुत पवित्र है। मैंने हमेशा कहा है कि हर सुख और शांति भगवान के नाम से मिलती है। अगर उन्हें शिक्षा लेनी है तो सबसे पहली बात यह है कि धर्म में किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि सभी एक जैसे हैं। वे उन लोगों के सख्त खिलाफ थे जो सभी के साथ भेदभाव करते थे और उसके कारण उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। उनका कहना था कि भगवान ने सभी को एक जैसा बनाया है, इसलिए उनके जन्म से यह स्पष्ट नहीं होता कि कोई अच्छा है या बुरा।
सामाजिक सुधार और संघर्ष
गुरु घासीदास जी ने सामाजिक सुधार के माध्यम से समाज को बदलने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने सभी लोगों में अंधविश्वास और भेदभाव के खिलाफ़ जागरूकता पैदा करने के लिए बहुत मेहनत की। गुरु जी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जीवन का असली उद्देश्य सिर्फ़ व्यक्तिगत सुख की तलाश करना नहीं है, बल्कि दूसरों की भलाई में मदद करना है। वे सनातन धर्म का पालन करते थे क्योंकि सनातन धर्म समुदाय बिना किसी भेदभाव, बिना किसी दया के आधारित है और सभी के बीच समानता है। गुरु घासीदास जी ने महिलाओं के उत्थान का भी समर्थन किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि उन्हें समान अधिकार मिलने चाहिए और ��नका शोषण नहीं किया जाना चाहिए। उनके काम ने धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ ��ैतिक मूल्यों को बढ़ावा देकर सामाजिक बदलाव में बहुत मदद की।
गुरु घासीदास जी का योगदान
हम आज भी गुरु घासीदास जी के योगदान को देख और याद कर सकते हैं। वे हजारों लोगों को यह बताना और सिखाना चाहते थे कि व्यक्ति को हमेशा समानता, न्याय और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए। उनके द्वारा स्थापित सतनामी समाज आज भी भेदभाव और शोषण सहित समाज की बुराइयों को खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है। गुरु घासीदास जी के आदर्शों पर चलने वाले संगठन, जैसे पारस परिवार, समानता और प्रेम के मूल्यों पर आधारित समाज बनाने के लिए व्यक्तियों को सहायता और सशक्त बनाकर हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पारस परिवार जैसे आध्यात्मिक समूह भी एकता और दयालुता को बढ़ावा देते हैं। यह संस्था इस समाज में बहुत मेहनत करती है ताकि हर व्यक्ति को, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, समान सम्मान और गरिमा मिले।
गुरु घासीदास जी की शिक्षाएँ हमें याद दिलाती हैं कि अगर हम प्रेम और समानता जैसे उनके सिद्धांतों पर चलें तो हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस जयंती पर हम वादा करते हैं कि हम उन बुराइयों और भेदभाव को मिटाने की पूरी कोशिश करेंगे। गुरु घासीदास जी द्वारा दिया गया यह संदेश आज हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर हम उनकी शिक्षाओं का पालन करेंगे तो हम हमेशा दुनिया को निष्पक्ष और सभी के प्रति दयालु बनाने की कोशिश करेंगे।
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आखिर कौन हैं पितरों के देवता अर्यमा ?
हमारे हिंदू धर्म में पितरों को बहुत सम्मान दिया जाता है, उनकी पूजा की जाती है और उनको समय-समय पर याद किया जाता है। सनातन धर्म में पितृ पक्ष की एक विशेष अवधि होती है, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। ये अवधि पितरों के लिए समर्पित है। पितृ पक्ष में अर्यमा देव की पूजा की जाती है। आपको बता दें कि अर्यमा पितरों के देवता माने जाते हैं। पितृ पक्ष में अयर्मा देव की पूजा का विधान है। इनकी उपासना करने से पितरों क�� मुक्ति मिलती है। आइये विस्तार से जानते हैं आखिर कौन हैं ये अर्यमा देवता और क्यों की जाती है इनकी पूजा ?
कौन हैं पितरों के देव अर्यमा?
सनातन धर्म में पितृ पक्ष की अवधि पितरों के लिए समर्पित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए अर्यमा देव की पूजा क्यों की जाती है। कौन हैं अर्यमा देव जिन्हें पितरों के देव के रूप में भी जाना जाता है। तो आपको बता दें कि हिंदू धर्म में अर्यमा को पितरों के देवता के रूप में जाना जाता है। इनकी पूजा से पितरों को मुक्ति मिलती है। अर्यमा देव, ऋषि कश्यप और देवमाता अदिति के 12 पुत्रों में से एक हैं।
पितरों में अर्यमा सर्वश्रेष्ठ
सनातन धर्म में प्रात: और रात्रि के चक्र पर अयर्मा देव का अधिकार माना गया है। अर्यमा चंद्रमंडल में स्थित पितृलोक के सभी पितरों के अधिपति भी नियुक्त किए गए हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि अर्यमा देव का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है जो इस प्रकार है –
ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः। ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
इस श्लोक का मतलब है कि पितरों में अर्यमा सर्वश्रेष्ठ हैं। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे पिता, पितामह और प्रपितामह तथा हे माता, मातामह और प्रमातामह, आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।
अदिति के तीसरे पुत्र हैं अर्यमा
अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता कहा जाता है। वे जानते हैं कि कौन सा पितृ किस कुल और परिवार से है। अर्यमा पितरों के देव हैं। इनके प्रसन्न होने पर ही पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जलदान दिया जाता है।
कहा जाता है कि वैदिक देवता अर्यमा, अदिति के पुत्र, पितरों या पितरों में सबसे प्रमुख हैं। भगवत गीता के 10वें अध्याय में भगवान वासुदेव ने भी कहा है-
अनंतश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पिताॄनामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥
मैं नागों में अनन्त और जल के देवताओं में वरुण हूँ। पितरों में मैं अर्यमा हूँ और कानून और व्यवस्था बनाए रखने वालों में मैं यम (मृत्यु का राजा) हूं।
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पारस परिवार: नशामुक्ति में विजय का मार्ग
नशामुक्ति एक ऐसा विषय है जो आज के समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है। नशे की लत से मुक्ति पाने के लिए कई संगठन और परिवार काम कर रहे हैं। इनमें से एक प्रमुख नाम है पारस परिवार, जो नशामुक्ति में विजय के मार्ग पर अग्रसर है। इस ब्लॉग में हम देखेंगे कि पारस परिवार कैसे नशे के खिलाफ लड़ाई में एक प्रेरणास्त्रोत बन रहा है, और यह कैसे सनातन धर्म के सिद्धांतों के माध्यम से इस कार्य को आगे बढ़ा रहा है।
पारस परिवार की भूमिका
पारस परिवार ने नशामुक्ति के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यह परिवार न केवल अपने सदस्यों को नशे से मुक्त कराने का प्रयास करता है, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने का भी कार्य करता है। पारस परिवार का मानना है कि नशे की समस्या को केवल व्यक्तिगत दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों के माध्यम से ही हल किया जा सकता है।
सनातन धर्म और नशामुक्ति
सनातन धर्म के सिद्धांतों में जीवन की पवित्रता और आत्मा की शुद्धता पर जोर दिया गया है। पारस परिवार इन सिद्धांतों को अपने कार्यों में शामिल करता है। उनका उद्देश्य केवल शारीरिक नशे से मुक्ति नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता भी प्राप्त करना है। पारस परिवार का मानना है कि जब व्यक्ति अपने भीतर की शांति और संतुलन को खोजता है, तो वह नशे की ओर आकर्षित नहीं होता।
विजय का मार्ग
पारस परिवार ने कई सफल कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनमें लोगों को नशे के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाता है। इन कार्यक्रमों में योग, ध्यान, और पारिवारिक समर्पण जैसे तत्व शामिल होते हैं। इसके अलावा, पारस परिवार ने कई पुनर्वास केंद्र स्थापित किए हैं, जहां लोग नशे से मुक्ति पाने के लिए चिकित्सा और मनोव��ज्ञानिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
समाज में परिवर्तन
पारस परिवार का प्रयास केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि समाज में व्यापक परिवर्तन लाने का भी है। वे स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि नशे की समस्या को सामूहिक रूप से समझा जा सके। इसके परिणामस्वरूप, कई लोग न केवल अपने जीवन को बदलने में सफल हुए हैं, बल्कि वे दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बने हैं।
निष्कर्ष
पारस परिवार का योगदान नशामुक्ति के क्षेत्र में अत्यंत सराहनीय है। उनका प्रयास यह दर्शाता है कि जब हम एकजुट होकर किसी समस्या का सामना करते हैं, तो विजय अवश्य संभव होती है। सनातन धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर पारस परिवार ने साबित कर दिया है कि नशामुक्ति केवल एक व्यक्तिगत यात्रा नहीं, बल्कि एक सामूहिक प्रयास होना चाहिए। इस प्रकार, पारस परिवार ने नशामुक्ति में विजय का मार्ग प्रशस्त किया है, जो अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन सकता है।
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पारस परिवार हिंदू धर्म की प्रेरणा
भारत की संस्कृति और धर्म का आधार सनातन धर्म है, जो अपने गहरे मूल्यों और शिक्षाओं के लिए विश्वभर में पहचाना जाता है। इस धर्म को संरक्षित और प्रचारित करने में कई परिवारों और व्यक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्हीं में से एक नाम है पारस परिवार का, जो हिंदू धर्म और सनातन परंपराओं की प्रेरणा स्रोत है। उनकी धार्मिक निष्ठा और समाज सेवा ने उन्हें न केवल स्थानीय समुदाय में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति दिलाई है। आइए, इस ब्लॉग में हम पारस परिवार की यात्रा और उनकी प्रेरणादायक भूमिका पर चर्चा करें।
पारस भाई जी: सनातन धर्म के सच्चे अनुयायी
पारस भाई जी पारस परिवार के प्रमुख सदस्य हैं, जिनका जीवन सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उनकी सरलता, समर्पण और सेवा भाव ने उन्हें हर वर्ग के लोगों का प्रिय बना दिया है। पारस भाई जी का मानना है कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। उनका उद्देश्य है कि हर व्यक्ति धर्म को समझे और इसे अपने जीवन में उतारे।
पारस भाई जी की शिक्षाएँ
धर्म को जीवन का आधार बनाना: पारस भाई जी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक मार्ग है।
समाज सेवा: उनके अनुसार, सच्चा धर्म वही है जो दूसरों की सेवा और मदद के लिए प्रेरित करे।
युवाओं को प्रेरित करना: पारस भाई जी युवाओं को अपनी परंपराओं और जड़ों से जोड़े रखने के लिए प्रेरित करते हैं।
पारस परिवार: धर्म और सेवा का संगम
पारस परिवार सनातन धर्म के प्रचार और सामाजिक सेवा के लिए समर्पित है। इस परिवार का हर सदस्य धर्म के प्रति निष्ठा और समाज के प्रति दायित्व निभाने में विश्वास रखता है। पारस परिवार का मुख्य उद्देश्य है कि हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाया जाए।
पारस परिवार के प्रमुख कार्य
धार्मिक आयोजन: पारस परिवार नियमित रूप से धार्मिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और सत्संग का आयोजन करता है।
समाज सेवा: गरीबों की मदद, शिक्षा का प्रचार और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना उनके प्रमुख कार्य हैं।
धर्म प्रचार: सनातन धर्म के सिद्धांतों को सरल और प्रभावी तरीके से समाज तक पहुँचाना उनकी प्राथमिकता है।
सनातन धर्म की महानता
सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म के रूप में भी जाना जाता है, विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। इसकी शिक्षाएँ सत्य, अहिंसा, करुणा और धर्म पालन पर आधारित हैं। पारस परिवार इन मूल सिद्धांतों को अपने जीवन और कार्यों में अपनाता है।
सत्य
सत्य सनातन धर्म का प्रमुख स्तंभ है। पारस भाई जी और उनका परिवार हमेशा सत्य की राह पर चलने का संदेश देता है। उनका मानना है कि सत्य से जीवन में स्थिरता और शांति आती है।
अहिंसा
अहिंसा केवल हिंसा न करने का संदेश नहीं है, बल्कि यह हमारे विचारों और वचनों में भी अपनाई जानी चाहिए। पारस परिवार इस सिद्धांत को अपने सामाजिक कार्यों में पूरी तरह आत्मसात करता है।
करुणा
करुणा का अर्थ है दूसरों की पीड़ा को समझना और उनकी सहायता करना। पारस परिवार समाज के जरूरतमंद वर्गों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहता है।
पारस परिवार की प्रेरणा
पारस परिवार की प्रेरणा माता रानी की भक्ति और सनातन धर्म की शिक्षाएँ हैं। उनका मानना है कि धर्म के प्रति अटूट निष्ठा और भक्ति से हर समस्या का समाधान संभव है।
माता रानी की भक्ति
"जय माता दी" पारस परिवार के जीवन का आधार है। माता रानी के प्रति उनकी गहरी आस्था उनके कार्यों में झलकती है। पारस परिवार नियमित रूप से माता की चौकी और भक्ति आयोजनों का आयोजन करता है, जिसमें सैकड़ों भक्त भाग लेते हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणा
पारस भाई जी विशेष रूप से युवाओं को धर्म और परंपराओं से जोड़ने का प्रयास करते हैं। उनका मानना है कि आज की युवा पीढ़ी यदि धर्म को अपनाएगी, तो समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकता है।
समाज में पारस परिवार का योगदान
पारस परिवार ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देकर एक मिसाल कायम की है। उनके द्वारा चलाए गए सामाजिक और धार्मिक कार्यक्���म न केवल लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाते हैं, बल्कि समाज में एकता और सद्भाव का संदेश भी देते हैं।
धार्मिक जागरूकता
पारस परिवार के प्रयासों से हजारों लोग धर्म की महत्ता को समझ पाए हैं। उनके सत्संग और प्रवचन लोगों के जीवन में सकार���त्मक बदलाव लाते हैं।
सामाजिक उत्थान
पारस परिवार गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए विभिन्न सेवाएँ प्रदान करता है। उनका मानना है कि धर्म का पालन तभी सार्थक है, जब यह समाज के हर वर्ग के लिए उपयोगी हो।
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जय माता दी पारस भाई जी का संदेश
जय माता दी केवल एक जयकारा नहीं है; यह देवी मां दुर्गा के प्रति भक्ति और आभार का एक गहरा भाव है। पारस भाई जी के नेतृत्व में पारस परिवार के लिए यह मंत्र अटूट विश्वास, प्रेम और कृतज्ञता का प्रतीक है। इस ब्लॉग में हम पारस भाई जी की आध्यात्मिक शिक्षाओं, पारस परिवार की भक्ति की परंपरा, और उनके जीवन में "जय माता दी" के महत्व को जानेंगे।
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पारस भाई जी कौन हैं?
पारस एक प्रतिष्ठित आध्यात्मिक नेता और पारस परिवार के लिए मार्गदर्शक हैं। उनकी शिक्षाएं भक्ति, करुणा, और निःस्वार्थ सेवा के सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो सनातन धर्म के शाश्वत मूल्यों के अनुरूप हैं। अपनी बुद्धिमत्ता और विनम्र दृष्टिकोण के माध्यम से, पारस भाई जी ने अनगिनत व्यक्तियों को आध्यात्मिकता अपनाने और धर्ममय जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है।
उनका संदेश सरल लेकिन गहन है: ईश्वर पर विश्वास करें, मानवता की सेवा करें, और भक्ति के माध्यम से आंतरिक शांति प्राप्त करें। पारस भाई जी मानते हैं कि "जय माता दी" केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि हमारे भीतर मौजूद दिव्य ऊर्जा से जुड़ने का एक माध्यम है।
पारस परिवार की भूमिका
पारस परिवार एक ऐसा समुदाय है, जो मां दुर्गा और पारस भाई जी की शिक्षाओं के प्रति अपनी साझा भक्ति से बंधा हुआ है। वे आध्यात्मिक और सामाजिक गतिविधियों में सक्��िय रूप से भाग लेते हैं, और "जय माता दी" को आशा और शक्ति के प्रतीक के रूप में फैलाते हैं।
1. सत्संग के माध्यम से भक्ति
पारस परिवार नियमित रूप से सत्संग (आध्यात्मिक सभाएं) आयोजित करता है, जहां भक्त भजन गाते हैं, शास्त्रों का पाठ करते हैं, और अनुभव साझा करते हैं। ये सभाएं मां दुर्गा के साथ अपने संबंध को गहरा करने और पारस भाई जी की शिक्षाओं को मजबूत करने का अवसर प्रदान करती हैं।
2. भाईचारे को बढ़ावा देना
एकता और सद्भावना पारस परिवार के मूल मूल्य हैं। पारस भाई जी अपने अनुयायियों को जाति, धर्म और स्थिति से ऊपर उठकर सार्वभौमिक भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
3. सेवा के रूप में सामाजिक कार्य
"सेवा परमो धर्म:" (सेवा सबसे बड़ा धर्म है) के सिद्धांत का पालन करते हुए, पारस परिवार भोजन वितरण, चिकित्सा सहायता, और गरीबों की सहायता जैसे कार्यों में सक्रिय है। ये परोपकार के कार्य मां दुर्गा को अर्पण के रूप में देखे जाते हैं।
पारस परिवार में "जय माता दी" का अर्थ
पारस परिवार के लिए "जय माता दी" केवल एक मंत्र नहीं है; यह उनके जीवन का एक तरीका है। यह मां दुर्गा में उनके अटूट विश्वास को दर्शाता है और उनकी दिव्य उपस्थिति की निरंतर याद दिलाता है।
1. शक्ति का स्रोत
पारस भाई जी सिखाते हैं कि "जय माता दी" का उच्चारण हृदय को साहस और सकारात्मकता से भर देता है। कठिन समय में, यह मंत्र एक ढाल के रूप में काम करता है, जो बाधाओं को दूर करने की शक्ति प्रदान करता है।
2. कृतज्ञता का आह्वान
कृतज्ञता पारस भाई जी की शिक्षाओं का मूल है। "जय माता दी" मां दुर्गा को उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देने का एक तरीका है।
3. आध्यात्मिक जागरण का मार्ग
पारस भाई जी इस बात पर जोर देते हैं कि "जय माता दी" का नियमित जाप मन को शुद्ध करता है और आत्मा को ऊंचा करता है, जिससे भक्त आ��्यात्मिक जागृति के करीब आते हैं।
पारस भाई जी की शिक्षाएं
पारस भाई जी की शिक्षाएं भक्ति, सेवा, और आंतरिक शांति के इर्द-गिर्द घूमती हैं। उनका संदेश जीवन के जटिल पहलुओं को सरलता से नेविगेट करने के लिए एक रास्ता प्रदान करता है।
1. शुद्ध हृदय से भक्ति
पारस भाई जी मानते हैं कि सच्ची भक्ति ईश्वर के प्रति शुद्ध और ईमानदार हृदय से समर्पित होने में है। उनका मानना है कि स्वार्थरहित आस्था ही दिव्य आशीर्वाद की कुंजी है।
2. निःस्वार्थ सेवा
पारस भाई जी की शिक्षाएं दूसरों की सेवा बिना किसी अपेक्षा के करने को प्रोत्साहित करती हैं। वह अक्सर कहते हैं, "मानवता की सेवा मां दुर्गा की सेवा है।"
3. आस्था की शक्ति
पारस भाई जी अपने अनुयायियों को विशेष रूप से कठिन समय में मां दुर्गा पर अटूट विश्वास रखने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके अनुसार, आस्था एक शांतिपूर्ण और संतोषजनक जीवन की नींव है।
पारस परिवार "जय माता दी" का संदेश कैसे फैलाता है
पारस परिवार विभिन्न पहल के माध्यम से पारस भाई जी की शिक्षाओं और "जय माता दी" के मंत्र को बढ़ावा देता है।
1. सामुदायिक कार्यक्रम
वे नव��ात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें भक्त सामूहिक प्रार्थना और उत्सव में भाग लेते हैं।
2. डिजिटल आउटरीच
आधुनिक युग में, पारस परिवार डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग व्यापक दर्शकों तक पहुंचने के लिए करता है। वे ऑनलाइन शिक्षाएं, भक्ति गीत, और प्रेरणादायक संदेश साझा करते हैं।
3. शैक्षणिक कार्यक्रम
युवा पीढ़ी में आध्यात्मिक मूल्यों को विकसित करने के लिए पारस परिवार कार्यशालाओं और शिविरों का आयोजन करता है।
आज के समय में "जय माता दी" का महत्व
तनाव और चुनौतियों से भरी दुनिया में, "जय माता दी" का मंत्र सांत्वना और शक्ति प्रदान करता है।
आध्यात्मिक जुड़ाव
"जय माता दी" व्यक्ति और दिव्य के बीच एक सेतु का काम करता है। यह भक्तों को उनकी आध्यात्मिक जड़ों और उनके जीवन में मां दुर्गा की शाश्वत उपस्थिति की याद दिलाता है।
आंतरिक शांति और सकारात्मकता
इस मंत्र को विश्वास के साथ जपने से मन शांत होता है और सकारात्मकता आती है। पारस भाई जी इसके माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों में बदलने की शक्ति को महत्व देते हैं।
सामाजिक सद्भाव का निर्माण
एकता और सेवा पर केंद्रित पारस भाई जी की शिक्षाएं लोगों को समाज की भलाई के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करती हैं।
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सनातन धर्म की ज्योति: पारस भाई जी के साथ
सनातन धर्म, जिसे अक्सर हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है, केवल एक धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने का शाश्वत मार्ग है। यह सत्य, अहिंसा और धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा देता है। ऐसे कई प्रेरणादायक व्यक्तियों में से जिन्होंने सनातन धर्म के पवित्र मूल्यों को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है, पारस भाई जी एक अद्भुत प्रकाशपुंज के रूप में उभरते हैं। उनके कार्य हिंदू धर्म के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करते हैं, समाज को एकजुट करते हैं और अनगिनत लोगों के जीवन को प्रेरित करते हैं।
सनातन धर्म को सशक्त बनाने में पारस भाई जी की भूमिका
पारस भाई जी का सनातन धर्म के आदर्शों के प्रति समर्पण हर पहल में झलकता है। उनके प्रवचन, सामुदायिक कार्यक्रम, और आध्यात्मिक संगोष्ठियाँ धर्म के मार्ग पर चलने के महत्व को उजागर करते हैं। उनके शिक्षण निम्नलिखित पर केंद्रित हैं
हिंदू भाइयों के बीच एकता को बढ़ावा देना: पारस भाई जी हिंदू भाइयों को करुणा, आदर और आध्यात्मिक ज्ञान के साझा मूल्यों के तहत एकजुट करने के लिए अथक प्रयास करते हैं। उनकी एकता की भावना सीमाओं से परे जाती है और व्यक्तियों को एक बड़े उद्देश्य के लिए प्रेरित करती है।
"जय माता दी" के संदेश का प्रसार: पारस भाई जी की देवी माँ के प्रति भक्ति असीम है। अपने उपदेशों में "जय माता दी" का उच्चारण करके, वे अपने अनुयायियों में विश्वास, भक्ति और समर्पण के गुणों को स्थापित करते हैं। देवी के प्रति उनकी श्रद्धा यह याद दिलाती है कि ईश्वरीय कृपा जीवन की चुनौतियों को पार करने में सहायक होती है।
पारस परिवार की भावना को प्रोत्साहित करना: पारस परिवार की अवधारणा उनके मिशन का मुख्य भाग है। इस पहल के माध्यम से, पारस भाई जी लोगों को एकजुट करते हैं, सामूहिक उद्देश्य और अपनत्व की भावना को बढ़ावा देते हैं। यह परिवार-केंद्रित दृष्टिकोण हिंदू धर्म के मूल मूल्यों को दर्शाता है, जो समुदाय और रिश्तों के महत्व को उजागर करता है।
सनातन धर्म का ज्ञान: शाश्वत मार्ग
सनातन धर्म, जिसे शाश्वत सत्य भी कहा जाता है, सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित है जो हर युग में प्रासंगिक हैं। पारस भाई जी अपने शिक्षण में निम्नलिखित सिद्धांतों पर जोर देते हैं:
सत्य: ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के साथ जीवन जीना धर्ममय जीवन का मूल है।
अहिंसा: सभी जीवों के प्रति सम्मान हिंदू धर्म का एक मौलिक मूल्य है।
सेवा: निःस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करना ईश्वर से जुड़ने का एक मार्ग है।
भक्ति: "जय माता दी" मंत्र में पारस भाई जी की भक्ति, आध्यात्मिक विकास को पोषित करती है।
युवाओं को प्रेरित करने में पारस भाई जी की भूमिका
पारस भाई जी का एक बड़ा योगदान यह है कि वे युवा पीढ़ी से जुड़ने में सफल रहे हैं। आज के तेज़-तर्रार समय में, कई युवाओं को आध्यात्मिक प्रथाओं से जुड़ना चुनौतीपूर्ण लगता है। पारस भाई जी इस अंतर को भरने में सफल हुए हैं:
आधुनिक मंचों का उपयोग करना: सोशल मीडिया, यूट्यूब चैनल, और लाइव इवेंट्स के माध्यम से, वे लाखों लोगों तक पहुँचते हैं और सनातन धर्म की शिक्षाओं को सरल और प्रासंगिक बनाते हैं।
रिवाजों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना: पारस भाई जी युवा पीढ़ी को पारंपरिक हिंदू अनुष्ठानों, त्योहारों, और सामुदायिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे सांस्कृतिक गर्व का विकास होता है।
ज्ञान के साथ मार्गदर्शन देना: उनके आधुनिक चुनौतियों पर गहरे विचार और हिंदू दर्शन में आधारित व्यावहारिक समाधान उन्हें युवाओं के लिए एक मार्गदर्शक बनाते हैं।
पारस परिवार की दृष्टि
पारस परिवार केवल एक समूह नहीं बल्कि एक आंदोलन है, जो सामंजस्य, परस्पर सम्मान, और सामूहिक आध्यात्मिक विकास के आदर्शों को दर्शाता है। पारस भाई जी की इस परिवार के लिए दृष्टि एक वैश्विक नेटवर्क बनाने की है, जिसमें लोग सनातन धर्म के संरक्षण और प्रसार के लिए समर्पित हैं। इस पहल का उद्देश्य है:
ज़रूरतमंदों की सहायता के लिए चैरिटी गतिविधियों का आयोजन।
हिंदू धर्म की समृद्ध विरासत के बारे में जागरूकता फैलाना।
लोगों को उद्देश्यपूर्ण और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करना।
पारस भाई जी का आह्वान: सनातन धर्म को अपनाएँ
अपने शिक्षण के माध्यम से, पारस भाई जी हमें सनातन धर्म की गहरी बुद्धि की याद दिलाते हैं। वे जोर देते हैं कि सनातन धर्म के सिद्धांतों को अपनाना केवल एक धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि आंतरिक शांति प्राप्त करने और समाज के कल्याण में योगदान देने का एक तरीका है। उनका मंत्र, "जय माता दी," भक्तों में गूंजता है और उन्हें उस दिव्य ऊर्जा की याद दिलाता है जो सभी जीवन को बनाए रखती है।
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जय माता दी पारस परिवार के साथ कुंडली भजन
सनातन धर्म के हृदय में ��िव्य मंत्र है: जय माता दी। यह सिर्फ़ अभिवादन से कहीं बढ़कर है; यह एक प्रार्थना है, सार्वभौमिक माँ, माँ का आह्वान है। चाहे वह मंदिरों में गूंजने वाले मधुर भजन हों या हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने वाली कुंडली पढ़ना, हिंदू धर्म का सार पारस परिवार की आध्यात्मिक प्रथाओं में जटिल रूप से बुना हुआ है। आइए जानें कि पारस परिवार किस तरह से माँ के सार का जश्न मनाता है और कुंडली पढ़ने, भजन और सनातनी आध्यात्मिकता से इसका क्या संबंध है।
पारस परिवार और जय माता दी का महत्व
जय माता दी का जाप न केवल दिव्य माँ का आह्वान है, बल्कि दुनिया भर के हिंदू भाइयों (हिंदू भाइयों और बहनों) के लिए एक एकीकृत नारा भी है। पारस परिवार, सनातन धर्म में गहराई से निहित एक समुदाय है, जो माँ से जुड़ने के साधन के रूप में इस आध्यात्मिक अभिवादन पर जोर देता है। यह देवी से आशीर्वाद, सुरक्षा और मार्गदर्शन की मांग करते हुए एक हार्दिक प्रार्थना का प्रतिनिधित्व करता है।
सनातन धर्म के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित पारस परिवार आध्यात्मिक एकजुटता का एक मजबूत समर्थक है। समुदाय प्राचीन परंपराओं को कायम रखता है और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से हिंदू भाइयों को एक साथ लाता है, जो दिव्य माँ के प्रति अपने प्रेम और भक्ति से एकजुट होते हैं।
सनातन धर्म और पारस परिवार में कुंडली की भूमिका
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सनातन धर्म की प्रथाओं में, कुंडली (जन्म कुंडली) का एक प्रमुख स्थान है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के आधार पर किसी के जीवन का खाका प्रदान करती है। पारस परिवार, वैदिक परंपराओं की अपनी गहरी समझ के साथ, भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करने के लिए कुंडली पढ़ने का उपयोग करता है।
हिंदू धर्म में कुंडली का महत्व
कुंडली की अवधारणा ब्रह्मांडीय व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जो हिंदू धर्म में एक मुख्य विश्वास है। प्रत्येक ग्रह (ग्रह) का व्यक्ति के जीवन पर एक विशिष्ट प्रभाव होता है। इन प्रभावों को समझकर, व्यक्ति चुनौतियों का सामना कर सकता है और शक्तियों का लाभ उठा सकता है। पारस परिवार कुंडली पढ़ने के माध्यम से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे भक्तों को माँ और ब्रह्मांडीय शक्तियों द्वारा निर्धारित उनके जीवन पथ को समझने में मदद ��िलती है।
कुंडली पढ़ना: पारस परिवार की एक परंपरा
पीढ़ियों से, कुंडली पढ़ना हिंदू धर्म में आध्यात्मिक प्रथाओं का हिस्सा रहा है। पारस परिवार इस परंपरा को जारी रखता है, अपने समुदाय के सदस्यों को व्यक्तिगत रीडिंग प्रदान करता है। इस प्राचीन प्रथा को ईश्वरीय इच्छा के साथ अपने कार्यों को संरेखित करने का एक तरीका माना जाता है, जिससे सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए माँ से आशीर्वाद मांगा जा सके। जब पारस परिवार के किसी जानकार मार्गदर्शक द्वारा कुंडली पढ़ी जाती है, तो यह जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे करियर, विवाह, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
पारस परिवार में भजनों की शक्ति
जय माता दी का कोई भी उत्सव भजनों की भावपूर्ण प्रस्तुति के बिना पूरा नहीं होता है। भजन ईश्वर की स्तुति में गाए जाने वाले भक्ति गीत हैं, विशेष रूप से माँ की कृपा पर ध्यान केंद्रित करते हुए। पारस परिवार को देवी माँ को समर्पित भजन गाने और रचना करने की अपनी समृद्ध परंपरा पर बहुत गर्व है।
भजन: हिंदू धर्म का आध्यात्मिक संगीत
सनातन धर्म के हृदय में, भजनों को भक्ति का संगीतमय अवतार माना जाता है। माना जाता है कि इन भजनों को गाने से उत्पन्न कंपन ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, जो गायक को माँ के करीब लाते हैं। पारस परिवार के भजन अपनी सादगी, माधुर्य और गहरे आध्यात्मिक अर्थ के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें हिंदू भाइयों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बनाते हैं।
आत्मा पर भजनों का प्रभाव
भजन मन और आत्मा पर शांत प्रभाव डालते हैं। वे तनाव को दूर करने, विचारों को शुद्ध करने और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करते हैं। भजन गाने या सुनने का कार्य, विशेष रूप से जय माता दी के साथ गाया जाने वाला भजन, वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। पारस परिवार की सभाओं में, ये भजन एक शक्तिशाली सामूहिक आध्यात्मिक अनुभव बनाते हैं, जो हिंदू भाइयों की एकता और विश्वास को मजबूत करते हैं।
पारस परिवार के साथ सनातन धर्म का जश्न मनाना
सनातन धर्म को संरक्षित करने और मनाने के लिए पारस परिवार की प्रतिबद्धता इसकी विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों में स्पष्ट है। भव्य नवरात्रि कार्यक्रमों के आयोजन से लेकर नियमित भजन सत्रों की मेजबानी तक, पारस परिवार हिंदू धर्म की परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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��ारस भाई देवउठनी एकादशी पर एक शुभ दिन
सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है। पूरे वर्ष में लगभग 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन देवउठनी ग्यारस का अपना महत्व है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन को भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से सभी तरह के शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयन एकादशी के बाद ये सभी शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं।
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धार्मिक महत्व और देवउठनी एकादशी।
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु देवशयन एकादशी योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसके बाद वे चार महीने बाद देवउठनी एकादशी पर जागते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। यह समय ध्यान, साधना, संयम और त्याग का प्रतीक कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के पावन काल में भगवान विष्णु के शुभ जागरण के साथ ही सभी सकारात्मक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है और इस दिन की गई पूजा और व्रत से विशेष लाभ मिलता है। श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी, हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता में कहा जाता है कि एक बार हिंदू धर्म की लोकप्रिय देवी मां लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया और उन्हें और देवताओं को चार महीने के लिए अपने काम से आराम करने और योग निद्रा में जाने के लिए कहा। भगवान उनकी बात मान गए और चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए। भगवान ने आषाढ़ माह में यह निद्रा ली और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपना नैतिक कार्य फिर से शुरू किया। जागने के बाद उन्होंने सभी देवताओं को उनके कर्त��्यों के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में देवउठनी ग्यारस को आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है पारस भाई जी की मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं, जीवन के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र विवाह अनुष्ठान को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
पारस परिवार के मुखिया श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी तुलसी विवाह के पीछे एक कथा है। भगवान विष्णु ने राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा को पवित्र तुलसी मां में बदल दिया और फिर उनका विवाह स्वयं विष्णु के एक रूप भगवान शालिग्राम से कराया। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा मनाई जाने लगी।
पवित्र देवउठनी ग्यारस व्रत की विधि
सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने धूपबत्ती और दीपक जलाया जाता है। भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष फूल, फल, मिठाई, चावल आदि अर्पित किए जाते हैं। इस दिन लोग अपने पूजा स्थल पर तुलसी के पत्ते रखकर उनकी पूजा भी करते हैं। पारस भाई जी के अनुसार तुलसी के पत्ते चढ़ाए बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी रहती है। इस दिन शाम के समय भगवान विष्णु को मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत के लाभ
देवउठनी एकादशी का व्रत करने से कई लाभ मिलते हैं। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सनातन धर्म व्रत अनुष्ठानों का पालन करता है और अपनी आत्मा को इन धार्मिक देवों से जोड़ने का प्रयास करता है। व्रत करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। तुलसी विवाह करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है और उनके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी पर ध्यान देने योग्य बातें
व्रत का पालन: इस दिन व्रत करने से मन शुद्ध होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। व्रती को केवल फलाहार ही करना चाहिए तथा अन्न नह��ं खाना चाहिए।
दिनभर विष्णु भजन: इस दिन भगवान विष्णु के भजनों का पाठ करना चाहिए, जिससे मन को शांति मिलती है।
सामूहिक पूजा: इस दिन पूरा परिवार सामूहिक पूजा करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
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