The Paras Parivaar Organization works 365 days a year to lug our Paras Guru's vision forward. We have helped more than 10 lakh needy people, and thanks to Maa and our Mahant Shri Paras Bhai Ji of Sanatan Dharm, this number is steadily rising and it is the grandeur of Sanatan Dharm that we strive to assist those who cannot afford to pay for their education or who are food insecure.
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पुराण क्या हैं और कितने हैं?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
हमारे सनातन धर्म में सभी धार्मिक ग्रंथों में से पुराण का विशेष महत्व है तथा ये प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है। पुराण का अर्थ है प्राचीन रचना और इन पुराणों में लिखी बातें या बताई बातें और ज्ञान आज भी सच साब���त हो रहे हैं। हम सब इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि हमारे पुराणों में लिखी बातें, हमारी हिंदू संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। आइये इस आर्टिकल में जानते हैं पुराण क्या हैं और कितने हैं ?
पुराण क्या हैं?
पुराणों में देवी देवताओं से जुड़ी कई बातें हैं जिसमें पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म के बारे में बताया गया है। पुराण में व्यक्ति के जन्म-मृत्यु और मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक तक की यात्रा के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। सांस्कृतिक अर्थ में हिन्दू संस्कृति के वे धर्मग्रन्थ जिनमें सृष्टि से लेकर प्रलय तक का इतिहास है।
यानि कुछ पुराणों में इस सृष्टि की रचना से लेकर अंत तक का विवरण है। ‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है, प्राचीन या पुराना। पुराण, हिन्दुओं के धर्म-सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ हैं, जिनमें संसार, ऋषियों, राजाओं के वृत्तान्त आदि हैं। पुराण मनुष्य को धर्म, सदाचार और नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। इसके अलावा पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं।
पुराण कितने हैं?
हिन्दू धर्म में कुल 18 पुराण हैं, जो निम्न हैं – ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, लिङ्ग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण।
ब्रह्म पुराण Brahma Puran 18 पुराणों में ब्रह्म पुराण सबसे पहला और पुराना पुराण है। ब्रह्मपुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं और इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण को महापुराण भी कहते हैं। इस पुराण में ब्रह्मा जी के अलावा सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा अवतरण आदि कथायें हैं। इस पुराण में कलयुग का भी विवरण दिया गया है। ब्रह्म देव को आदि देव भी कहा जाता है इसलिए यह पुराण आदि पुराण के नाम से भी जाना जाता है।
पद्म पुराण Padma Puran पद्म पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। पद्म का अर्थ है कमल का फूल। पद्म पुराण में बताया गया है कि ब्रह्मदेव श्री नारायण जी के नाभि कमल से उत्पन्न हुए थे ��र उन्होंने सृष्टि की रचना की। इस पुराण के 5 खंडो में श्रुष्टि खंड, भूमि खंड, स्वर्ग खंड, पाताल खंड और उत्तर खंड में भगवान विष्णु की महिमा, तीर्थों के बारे में, श्री कृष्ण और श्री राम की लीलाओं और तुलसी महिमा का अलौकिक वर्णन किया गया है।
विष्णु पुराण Vishnu Puran विष्णु पुराण में भगवान विष्णु जी की महिमा का अद्भुत वर्णन किया गया है। विष्णु पुराण के रचयिता पराशर ऋषि हैं और यह पुराण संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में भक्त प्रह्लाद की कथा, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, गृह नक्षत्र, पृथ्वी, ज्योतिष, समुद्र मंथन, कृष्ण, रामकथा, विष्णु जी और लक्ष्मी माँ की महिमा, वर्णव्यवस्था, देवी देवताओं की उत्पत्ति आदि के बारे में बताया गया है।
वायु पुराण Vayu Puran वायु पुराण को के रचयिता श्री वेद व्यास जी हैं। वायु पुराण को शैव पुराण भी कहते हैं। वायु पुराण में खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, तीर्थ, शिव भक्ति, युग, श्राद्ध, पितरों, ऋषि वंश, राजवंश, संगीत शास्त्र, आदि का विस्तारपूर्वक विवरण दिया गया है। इस पुराण में शिव जी की महिमा का वर्णन है इसलिए इसे शिव पुराण भी कहा जाता है।
भागवत ( श्रीमद्भागवत ) पुराण Bhagavata Purana भागवत पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और भागवत पुराण 18 पुराणों में से पांचवा पुराण है। इसे श्रीमद्भागवतम् के नाम से भी जाना जाता है। इस पुराण को संस्कृत में लिखा गया है। भागवत पुराण आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताता है। इस पुराण में श्री कृष्ण के बारे में बताया गया है, इसमें उनके जन्म, प्रेम और कई लीलाओं का विवरण दिया गया है। इसमें महाभारत युद्ध और कृष्ण की भूमिका के बारे में भी बताया गया है।
नारद पुराण Narad Puran नारद पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। नारद पुराण को नारदीय पुराण भी कहा जाता है। महर्षि वेद व्यास जी ने इस पुराण को संस्कृत भाषा में लिखा था। इस पुराण में ज्योतिष, शिक्षा, ईश्वर की आराधना, व्याकरण, गणित आदि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। साथ ही इसमें कलियुग में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी बताया गया है।
मार्कण्डेय पुराण Markandey Puran मार्कण्डेय पुराण 18 पुराणों में से 7 वां पुराण है। यह पुराण अन्य पुराणों से छोटा है। महर्षि मार्कण्डेय द्वारा कहे जाने के कारण इसे मार्कण्डेय पुराण कहा जाता है। इस पुराण में मानव कल्याण के लिए भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक आदि विषयों के बारे में बताया है। यह पुराण दुर्गा चरित्र की व्याख्या के लिए जाना जाता है।
अग्नि पुराण Agni Puran अग्नि पुराण 18 पुराणों में से 8वां पुराण है और इस पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और वेद व्यास जी ने इसे संस्कृत भाषा में लिखा है। इस पुराण का नाम अग्नि पुराण इसलिए पड़ा दरसअल इसे अग्नि देव ने गुरु वशिष्ठ को सुनाया था। इस पुराण में त्रिदेवों ब्रह्म देव, विष्णु देव और शिव जी का वर्णन है। साथ ही महाभारत और रामायण का भी विवरण है।
भविष्य पुराण Bhavishya Puran भविष्य पुराण 18 पुराणों में से 9 वां पुराण है और इसके रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। महर्षि वेद व्यास जी ने इसे संस्कृत भाषा में लिखा था। भविष्य पुराण में नीति, सदाचार, धर्म, व्रत, दान, आयुर्वेद आदि का विवरण है। इस पुराण में सूर्य देव का भी विवरण है। इस पुराण में कई भविष्यवाणियाँ की गई जो सही साबित हुई। इसमें हर्षवर्धन महाराज, शिवाजी महाराज, पृथ्वीराज चौहान आदि कई वीर हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, बाबर, रानी विक्टोरिया, अकबर आदि के बारे में बताया गया है।
ब्रह्म वैवर्त पुराण Brahma Vaivarta Purana ���्रह्म वैवर्त पुराण 18 पुराणों में 10वां पुराण है और इसके रचयिता वेद व्यास जी हैं। इसे उन्होंने संस्कृत भाषा में लिखा है। इस पुराण में अनेक स्त्रोत हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि कृष्ण से ही शिवजी, विष्णु जी, ब्रह्म देव और इस प्रकृति का जन्म हुआ। इस पुराण में कृष्ण को ही परब्रह्म माना गया है।
लिङ्ग पुराण Ling Puran लिङ्ग पुराण 18 पुराणों में से 11वां पुराण है तथा इसके रचयिता वेद व्यास जी हैं। इस पुराण में भोलेनाथ के 28 अवतारों के बारे में बताया गया है और इसमें रुद्रावतार और लिंगोद्भव की कथा का भी विवरण है। साथ ही इसमें भोलेनाथ द्वारा ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट होने की घटना के बारे में भी बताया गया है।
वराह पुराण Varah Puran वराह पुराण 18 पुराणों में से 12 वां पुराण है और इसके रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। वराह पुराण संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में विष्णु जी के वराह अवतार का उल्लेख है। माना जाता है कि विष्णु जी धरती के उद्धार के लिए वराह रूप में अवतरित हुए थे। इसमें वराह कथा, माँ पार्वती और शिवजी की कथा, व्रत, तीर्थ, दान आदि का वर्णन है।
स्कन्द पुराण Skand Puran स्कन्द पुराण 18 पुराणों में से 13 वां पुराण है और इसकी रचना वेद व्यास जी ने संस्कृत भाषा में की थी। इस पुराण में शिव पुत्र कार्तिकेय जिनका दूसरा नाम स्कन्द भी है उनके बारे में बताया गया है। इसमें नर्मदा, गंगा, सरस्वती नदियों के उद्गम के बारे में कथाएँ हैं और साथ ही इसमें व्रतों का भी विवरण दिया गया है। इसमें योग, धर्म, सदाचार, भक्ति और ज्ञान के बारे में सुन्दर वर्णन किया गया है।
वामन पुराण Vaman Puran वामन पुराण 18 पुराणों में से 14 वां पुराण है और इसके रचयिता है वेद व्यास और इसे उन्होंने संस्कृत भाषा में लिखा। इस पुराण में भगवान विष्णु के वामन अवतार के बारे में लिखा गया है। इसमें शिव लिंग की पूजा विधि, शिव पार्वती विवाह, गणेश पूजन, भगवती दुर्गा, भक्त प्रह्लाद आदि का विवरण दिया गया है।
कूर्म पुराण Kurma Puran कूर्म पुराण 18 पुराणों में 15 वां पुराण है तथा इसके रचयिता वेदव्यास जी हैं। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में पाप का नाश करने वाले व्रतों के बारे में बताया गया है। साथ ही इसमें विष्णु का सुंदर विवरण, शिवलिंग की महिमा, वामन अवतार आदि के बारे में बताया गया है।
मत्स्य पुराण Matsya Puran मत्स्य पुराण 18 पुराणों में से 16वां पुराण है और इसके रचयिता वेदव्यास जी हैं। इस पुराण के श्लोकों में विष्णु जी के मत्स्य अवतार का विवरण दिया गया है। दरअसल विष्णु जी ने अपने मत्स्य अवतार में सप्त ऋषियों और राजा वैवश्वत मनु को जो उपदेश दिए थे यह पुराण उसी पर आधारित है। इस पुराण में नव गृह, तीनों युगों, तारकासुर वध कथा, नरसिंह अवतार आदि का विवरण दिया गया है।
गरुड़ पुराण Garuda Puran गरुड़ पुराण 18 पुराणों में से 17 वां पुराण है। इस पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और उन्होंने इसे संस्कृत में लिखा है। यह पुराण विष्णु भक्ति पर आधारित है। हमारे हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद इस पुराण को जरूर पढ़ा जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस पुराण को पढ़ने से मृतक की आत्मा को मुक्ति मिलती है। इसमें दान, सदाचार, शुभ कर्म, तीर्थ, आदि के बारे में विवरण दिया गया है।
ब्रह्माण्ड पुराण Brahmanda Puran ब्रह्माण्ड पुराण 18 पुराणों में से आखिरी पुराण है और ब्राह्माण पुराण के रचयिता वेदव्यास जी हैं। यह पुराण वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस पुराण को खगोल शास्त्र भी कहते हैं। इसमें समस्त ग्रहों का विस्तृत वर्णन है।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार जो व्यक्ति जीवन में इन सभी 18 पुराणों के नाम और उसमें लिख��त बातों का श्रवण करता है या पाठ करता है। वह इन 18 पुराणों से मिलने वाले पुण्य को पा लेता है।
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पारस: इस अहोई अष्टमी पर आपकी प्रार्थनाएं स्वीकार हों!
पारस परिवार की ओर से अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
बच्चों के कल्याण और समृद्धि के लिए समर्पित अहोई अष्टमी का त्यौहार पारस परिवार संगठन द्वारा मनाया जाता है। यह त्यौहार, जो ज़्यादातर उत्तर भारत में मनाया जाता है, का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत ज़्यादा है, ख़ास तौर पर उन माताओं के लिए जो अपने बच्चों की भलाई के लिए व्रत रखती हैं।
अहोई अष्टमी का सार
कार्तिक महीने में, अहोई अष्टमी ढलते चंद्रमा के आठवें दिन होती है। इस दिन, माताएँ अपने बच्चों की समृद्धि और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं। देवी अहोई का उपवास और पूजा करना, जिन्हें परिवारों को स्वस्थ संतान प्रदान करने वाली माना जाता है, अनुष्ठानों का हिस्सा हैं।
इस अवसर पर कई परंपराएँ मनाई जात��� हैं, जैसे कि विशेष भोजन पकाना, पूजा स्थल को सुंदर रंगोली से सजाना और शाम के समय प्रार्थना करना। तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ना दिन के अंत का प्रतीक है।
पारस परिवार के साथ जश्न मना रहे हैं
पारस परिवार संगठन में हम इस त्यौहार का बड़े उत्साह से इंतज़ार करते हैं। हमारा समुदाय इस विरासत का सम्मान करने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए इकट्ठा होता है:
सामुदायिक सभाएँ: हम पार्टियाँ आयोजित करते हैं जहाँ परिवार जश्न मना सकते हैं, कहानियाँ साझा कर सकते हैं और पड़ोस के रिश्ते बना सकते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम: अहोई अष्टमी के महत्व को उजागर करने वाले प्रदर्शन युवा पीढ़ी को अपनी विरासत को सीखने और सराहने में मदद करते हैं।
खाद्य अभियान: उदारता की भावना से, हम अक्सर इस मौसम में जरूरतमंद लोगों की सहायता करने के लिए खाद्य अभियान चलाते हैं, जिससे सामुदायिक कल्याण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को बल मिलता है।
जश्न में हमारे साथ शामिल हों
इस वर्ष, हम सभी को अहोई अष्टमी मनाने में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। पारस परिवार में सभी के लिए जगह है, चाहे आप माता-पिता हों जो अपने बच्चे के लिए सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद कर रहे हों या कोई ऐसा व्यक्ति जो हमारे रीति-रिवाजों के बारे में अधिक जानना चाहता हो। हमारी गतिविधियों और कार्यक्रमों के बारे में अपडेट प्राप्त करने के लिए सोशल मीडिया पर हमारे साथ बने रहें:
Facebook: Paras Parivaar
Instagram: @parasparivaar
अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ! आइये हम सब मिलकर प्रेम, करुणा और सौहार्द के सिद्धांतों का सम्मान करें जो हमें वह बनाते हैं जो हम हैं और इस शुभ अवसर का आन��द लें।
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वाल्मिकी जयंती की हार्दिक शुभकामनाये।
पारस परिवार संगठन के सहयोग से वाल्मिकी जयंती मनाई गई।
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्या�� के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
वाल्मिकी जयंती, जिसे परगट दिवस के नाम से भी जाना जाता है, प्रसिद्ध ऋषि और महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी के जन्म की स्मृति में एक महत्वपूर्ण घटना है। हिंदू माह आश्विन की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह दिन कई भारतीय समुदायों, विशेषकर बाल्मीकि लोगों के लिए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। पारस परिवार संगठन में, हम साहित्य और आध्यात्मिकता में वाल्मिकी के योगदान पर ध्यान देने के साथ-साथ सामाजिक कल्याण के प्रति अपने समर्पण को नवीनीकृत करके इस कार्यक्रम को मनाते हैं।
महर्षि वाल्मिकी की विरासत
महर्षि वाल्मिकी एक कवि के साथ-साथ परिवर्तन और प्रायश्चित के प्रतीक के रूप में भी पूजनीय हैं। उनकी जीवन कहानी दर्शाती है कि कड़ी मेहनत और पश्चाताप किसी को भी महानता की ओर कैसे प्रेरित कर सकता है। एक समय उन्हें रत्नाकर के नाम से जाना जाता था, लेकिन गहन भक्ति और ध्यान से गुजरने के बाद, वह गुरु बन गए और रामायण लिखी, एक कहानी जो नैतिकता, धार्मिकता और बुराई पर अच्छाई की जीत का उपदेश देती है।
पारस परिवार में हमारा मिशन
महंत श्री पारस भाई जी द्वारा स्थापित पारस परिवार संगठन जरूरतमंदों की मदद करने और सामाजिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित है। हमारा मार्गदर्शक विश्वास, “उनकी मुस्कुराहट के पीछे माँ की खुशी है,” हर उस व्यक्ति को महसूस कराने के प्रति हमारे समर्पण को दर्शाता है जिसकी हम मदद करते हैं और उसे यह महसूस कराते हैं कि उसे प्यार और उसकी परवाह है। इस वाल्मिकी जयंती पर, हम उन सिद्धांतों का अनुकरण करने की आशा करते हैं जिनका वाल्मिकी ने प्रतिनिधित्व किया:
करुणा: हम जरूरतमंद लोगों को भेदभाव रहित सहायता प्रदान करने में वाल्मिकी के विश्वास को साझा करते हैं। हमारा समूह वंचित लोगों को भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने के लिए अंतहीन प्रयास करता है।
सशक्तिकरण: शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से, हमारा लक्ष्य लोगों को सशक्त बनाना है ताकि वे स्वतंत्र जीवन जी सकें। यह परिवर्तन और मानव प्रगति पर वाल्मिकी की शिक्षाओं के अनुरूप है।
एकता: समुदाय वाल्मिकी जयंती के दौरान जश्न मनाने और चिंतन करने के लिए एक साथ इकट्ठा होते हैं। ऐसा माहौल बनाने के लिए जहां हर कोई समाज की भलाई में योगदान दे सके, हम विभिन्न समूहों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देते हैं।
एक साथ वाल्मिकी जयंती मना रहे हैं
इस वर्ष जब हम वाल्मिकी जयंती मना रहे हैं तो हम आपको अनेक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं:
सामुदायिक कार्यक्रम: हमारी बैठकों में भाग लें जहां हम अपने सांस्कृतिक इतिहास का जश्न मनाते हैं, वाल्मिकी की शिक्षाओं पर चर्चा करते हैं और रामायण के अंशों का पाठ करते हैं।
खाद्य वितरण अभियान: यह सुनिश्चित करने के लिए कि जरूरतमंद लोगों को पौष्टिक भोजन मिले, हम खाद्य वितरण अभियान की योजना बनाएंगे। हम आपकी सहायता से इस खुशी के समय में अधिक लोगों तक पहुंच सकते हैं।
शैक्षिक कार्यशालाएँ: हमारी कार्यशालाओं में आएँ, जो वाल्मिकी की अंधकार से ज्ञानोदय की यात्रा पर आधारित हैं और शिक्षा और व्यक्तिगत विकास के मूल्य पर जोर देती हैं।
बदलाव लाने में हमसे जुड़ें
जैसा कि हम वाल्मिकी जयंती मनाते हैं, आइए हम एकता, करुणा और परिवर्तन पर उनकी सीख को ध्यान में रखें। हम आपको इस साहसिक कार्य में पारस परिवार संगठन के साथ आने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं। साथ मिलकर काम करके, हम उन लोगों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं जो कम भाग्यशाली हैं।
आइए हम महर्षि वाल्मिकी की विरासत को याद करने के लिए सांप्रदायिक एकजुटता, ��ेवा और करुणा के प्रति अपने समर्पण की पुष्टि करते हुए अपनी बात समाप्त करें। आइए हमारे साथ आएं क्योंकि हम एक ऐसा समुदाय बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें हर कोई समृद्ध हो सके, जैसे वाल्मिकी ने शांति और नैतिकता से युक्त दुनिया की कल्पना की थी।
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हर्षिल- उत्तराखण्ड का स्विट्जरलैंड
“पारस परिवार” में आपका स्वागत है, जहाँ आकर बदल जाता है आपका संपूर्ण जीवन और जीवन में आती है बस खुशहाली ही खुशहाली। जहाँ दुःख और दर्द का होता है नाश और चेहरे पर आती है एक मुस्कान।
“पारस परिवार” का मानना है कि खुशियाँ तभी मिलती हैं जब हम दूसरों की मदद करने में सदैव आगे रहते हैं। यानि असली ख़ुशी वो है जब हम दूसरे के चेहरे पर प्यारी सी एक मुस्कराहट बिखेर सकें और पारस परिवार इस नेक कार्य में हमेशा से आगे रहता है। पारस परिवार कभी भी छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब में अंतर नहीं करता है, उसके लिए सब एक समान हैं। वह कोशिश करता है कि सबके जीवन में खिली हुई धूप हो और दूर-दूर तक बस उजाला ही उजाला हो।
पारस परिवार एक सामाजिक-आध्यात्मिक संस्था है, जिसके संस्थापक और निदेशक “महंत श्री पारस भाई जी” हैं। इस संस्था की नींव 17 सितंबर 2012 को रखी गई थी।
महंत श्री पारस भाई जी माँ चण्डी के दुलारे हैं। कहते हैं कि माँ अपने बच्चों को नेक कार्य करते हुए देखकर हमेशा खुश होती हैं और उन्हें आशीर्वाद देती हैं। शायद यही वजह है कि माँ के आशीर्वाद और उनकी कृपा से महंत श्री पारस भाई जी के अंदर अद्भुत शक्तियां समाहित हैं, जिन शक्तियों का प्रयोग वह जन कल्याण में करते हैं और समाज की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
आज हर कोई इस भागदौड़ भरी जिंदगी से ऊब चुका है। ऐसे में इंसान इस भागमभाग जिंदगी से कहीं दूर पहाड़ों में कुछ पल सुकून के बिताना चाहता है और कुछ समय अपने लिए निकालना चाहता है। जहाँ बस शांति हो और जहाँ ��ाकर आपको लगे कि यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। यहाँ कुछ समय के लिए आप सब कुछ भूल जाएंगे।
यहाँ आपके आसपास खूबसूरत वादियां होंगी, जिन्हें आप एकटक निहारते रहें। आपके पास कुछ समय ऐसा हो जहां प्रकृति हो, शांति हो और सुकून के पल हों। यदि आप ऐसी जगह जाना चाहते हैं तो आप उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में कुछ समय बिता सकते हैं। दरअसल पहाड़ अपनी ख़ूबसूरती के लिए जाने जाते हैं।
इसी में से उत्तराखंड की एक खूबसूरत जगह है हर्षिल। यदि आप यहाँ जाते हैं तो इसे देखकर आपको स्विट्जरलैंड की याद जरूर आ जाएगी। तो चलिए जानते हैं उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थल हर्षिल के बारे में।
कहाँ स्थित है हर्षिल?
हर्षिल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। इसे हर्षिल वैली के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय में भागीरथी नदी के किनारे बसा एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है, जिसे देखकर आप बस देखते ही रह जाओगे। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 34 पर गंगोत्री के हिन्दू तीर्थ स्थल के मार्ग में आता है।
‘हर्षिल’ उत्तरकाशी से 78 किमी और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान से 30 किमी दूर है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित ‘हर्षिल वैली’ की खूबसूरती आपको दीवाना बना देगी। देहरादून से लगभग 200 किलोमीटर स्थित इस हिल स्टेशन में कई सारी खूबसूरत जगहें हैं, जहाँ जाकर आप वापस आना भूल जायेंगे।
उत्तराखंड का स्वर्ग
हर्षिल वैली वो जगह है, जिसे उत्तराखंड का स्वर्ग माना गया है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 2660 मीटर है। हर्षिल भागीरथी नदी के किनारे स्थित घने देवदार के जंगलों के बीच स्थित एक छोटा सा हिल स्टेशन है। यह जगह सिर्फ यहाँ के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि बाहर से आये उन लोगों के लिए भी गर्व की बात है जो अपना समय प्रकृति के साथ बिताना पसंद करते हैं।
हर्षिल गांव प्रसिद्ध और पवित्र ��ाम गंगोत्री के पास बसा हुआ है। ह���्षिल वैली की सुंदरता आपका मन मोह लेगी। यहाँ आपको चारों ओर घास के मैदान, दूध की तरह बहने वाले सुंदर झरने, ऊंचे हरे-भरे पहाड़ और बर्फ से भरी चोटियां दिखाई देंगी। इसके अलावा घने देवदार के वृक्ष आपको अपना दीवाना बना देंगे।
विल्सन ने हर्षिल को दी थी स्विट्जरलैंड की उपाधि
हर्षिल, हिमालय की तराई में बसा है यह गांव, जो आपको अपनी ओर बरबस ही खींचता है। यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। यहाँ जाकर आपको ऐसा एहसास होगा मानो आप सपनों की दुनिया में पहुंच गए हों। यहाँ की फिजाओं में अलग तरह का नशा है।
आपको बता दें कि हर्षिल की खोज ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले अंग्रेज फेड्रिक विल्सन ने की थी। सन 1857 में जब फ्रेडरिक विल्सन ने ईस्ट इंडिया कंपनी को छोड़ दिया था जब वह गढ़वाल आए थे। यहाँ उन्होंने भागीरथी नदी के तट पर एक खूबसूरत गांव देखा, जो उन्हें बहुत पसंद आया और उन्होंने यहीं बसने का निर्णय लिया और यहीं रहने लगे।
यहां पर सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से ही जानी जाती है। दरअसल विल्सन ने यहां इंग्लैंड से सेब के पौधे मंगवाकर लगाए थे। तभी से यहां पर सेब की खेती और व्यापार होने लगा। यहाँ की सुंदरता से मंत्र मुग्ध होकर विल्सन ने ही हर्षिल को स्विट्जरलैंड की उपाधि दी थी।
पर्यटकों के लिए हर्षिल घाटी में हैं कई बेहतरीन स्थल
भागीरथी नदी के तट पर स्थित हर्षिल घाटी में बर्ड वॉचिंग और ट्रैकिंग के साथ-साथ अन्य कई बेहतरीन जगहें हैं। हर साल यहां हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। यहाँ जाकर आप अपने टूर को हमेशा के लिए एक यादगार लम्हा बना सकते हैं। यहां आप प्रकृति की खूबसूरती को देखते हुए बहती हुई ठंडी हवा की आवाज महसूस कर सकते हैं। यहां बर्फबारी का भी आप मजा ले सकते हैं।
लोग इस जगह को देवी गंगोत्री का घर भी मानते हैं। हर्षिल अपनी मनोरम प्राकृतिक छटा और गंगोत्री नदी के लिए प्रसिद्ध है। बर्डवॉचर्स के लिए के लिए भी यह जगह बहुत फेमस है। हर्षिल में हर साल उत्तरकाशी मेला लगता है, जो बेहद ही फेमस मेला है।
यहां के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल
हर साल यहां हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। आइये हर्षिल वैली के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में जानते हैं-
धराली
हर्षिल से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव, जो बहुत ही खूबसूरत है और खूबसूरती के मामले में यह अद्भुत है। इस गांव के बगल में बहती भागीरथी नदी इसे और भी अधिक आकर्षण का केंद्र बनाती है। सैलानियों के लिए यह एक पसंदीदा जगह है। ऐसा माना जाता है कि धराली वह स्थान है जहां, भागीरथ ने गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए तपस्या की थी। हिन्दुओं के लिए यह बेहद पवित्र स्थान भी है।
लामा टॉप
��दि आपको सनराइज देखना अच्छा लगता है तो आप इस जगह जा सकते हैं। हर्षिल वैली में घूमने वालों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। इस सनराइज प्वाइंट से पूरी हर्षिल वैली नजर आती है। इस जगह पर पहुंचने के लिए आपको पहाड़ी पर चढ़ना होगा। लामा टॉप का ट्रैक हर्षिल से शुरू होता है। ये ट्रेक दो किलोमीटर का है। ऊपर पहुंच कर आप सुबह की पहली किरण के साथ पूरे हर्षिल वैली को देख सकते हैं।
गंगोत्री धाम
उत्तराखंड के चार धामों में से एक है गंगोत्री धाम का यह मंदिर। यह मां गंगा को समर्पित है। यह हर्षिल से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर नदी के किनारा बना हुआ है। हिंदू धर्म में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। यह मंदिर जितना पवित्र है उतना ही खूबसूरत भी है।
मुखबा गांव
हर्षिल से मुखबा गांव की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है। यह गांव अद्भुत नजारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां आप प्रकृति की खूबसूरती को देखने के साथ-साथ बहती हुई ठंडी हवा की आवाज़ को भी महसूस कर सकते हैं। इसके साथ ही यहां आप बर्फ़बारी का भी लुत्फ़ ले सकते हैं। देवदार के वृक्ष और कई तरह के पेड़-पौधे और प्राकृतिक माहौल में यहाँ सुकून भरे पल आपको मिलेंगे। इसके अलावा यहां आप ट्रैकिंग का भी आनंद ले सकते हैं।
बर्डवॉचर्स के लिए बेस्ट है जगह
जहाँ हर्षिल प्राकृतिक खूबसूरती और गंगोत्री नदी के लिए प्रसिद्ध है, तो वहीं बर्डवॉचर्स के लिए के लिए भी यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। हर्षिल के घने जंगलों में पक्षियों की संख्या बहुत अधिक है। यहां 5 सौ से भी अधिक पक्षियों की प्रजातियां मौजूद हैं। इन पक्षियों की मधुर आवाज आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
हर्षिल में बर्फ का ले सकते हैं आनंद
यदि आपको बर्फ देखनी हो तो हर्षिल में ठंडियों में जाने का प्लान बनायें। अक्टूबर के अंत में यहां बर्फ पड़नी शुरू हो जाती है। आप हर्षिल वैली नवंबर से लेकर फरवरी तक के महीने में जा सकते हैं। यहाँ प्रकृति की खूबसूरती के साथ-साथ आप बर्फबारी का भी आनंद ले सकते हैं। हर्षिल को उत्तराखंड का स्विट्जरलैंड भी कहते हैं। क्योंकि बर्फबारी के बाद यहाँ की जो खूबसूरती है वह आपको स्विट्जरलैंड की याद दिला देगी।
बगोरी गांव
इस गांव में आपको हर ओर सेब के खेत दिखाई देंगे। हर्षिल में इस गावं को सेब का भंडार कहा जाता है। यदि आपको सेब के बगीचे में घूमने के साथ-साथ टेस्टी सेब का लुत्फ़ लेना है तो बगोरी गांव ज़रूर जायें। यदि आपको नौका विहार का आनंद लेना है तो हर्षिल में मौजूद झील में भी आप जा सकते हैं।
गरतांग गली
यह एक लकड़ी का पुल है, जिसका हमारे इतिहास से कनेक्शन है। पहाड़ों की चट्टानों के बीच बना ये वुडन का पुल लगभग 150 साल पुराना है। 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी गरतांग गली की सीढ़ियां इंजीनिय��िंग का एक नायाब नमूना है। इस ऐतिहासिक पुल को बनाने का तरीका पर्यटकों को हैरान करता है। आपको बता दें कि इस पुल का इस्तेमाल भारत और तिब्बत के बीच व्यापार के लिए किया जाता था।
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आखिर क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
सनातन धर्म में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से सभी कार्य सफल होते हैं। नवरात्रि में कन्या पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है और नवरात्रि के दिनों में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन करना सबसे अच्छा होता है।
इसी के साथ उपवास रखने वाले इन दोनों दिनों में कन्याओं को भोग लगाकर अपने व्रत का पारण भी करते हैं। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य में कन्याओं का पूजन सबसे पहले किया जाता है। आइये जानते हैं आखिर क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन और सनातन धर्म में क्या है कन्या पूजन का महत्व ?
कन्या पूजा या इसे कुमारी पूजा भी कहते हैं, यह एक हिंदू पवित्र अनुष्ठान है, जो मुख्य रूप से नवरात्रि उत्सव की अष्टमी और नवमी के दिन किया जाता है। इस पूजन में नौ लड़कियों की पूजा की जाती है, जो देवी दुर्गा क�� नौ रूपों यानि नवदुर्गा का प्रतिनिधित्व करती हैं।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि देवराज इंद्र ने जब भगवान ब्रह्मा जी से भगवती को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कुमारी पूजन ही बताया था। कुमारी पूजन से सम्मान, लक्ष्मी, विद्या और तेज़ प्राप्त होता है। इससे विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश भी होता है।
हमारे हिंदू धर्म में कन्या को मां दुर्गा का प्रतीक मानकर पूजा करते हैं। नवरात्रि में कन्या पूजन करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त करने के लिए कन्या पूजन किया जाता है। नवरात्रि में नौ कुमारी कन्याओं और एक छोटे लड़के को घर में बुलाकर और उनके पांव धोकर रोली और तिलक लगाकर पूजा-अर्चना की जाती है। लड़के को हनुमान जी का रूप माना जाता है। जिस तरह मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।
वैसे कुछ लोग नवरात्रि के दौरान हर दिन ही कन्या पूजन करते हैं लेकिन दुर्गा अष्टमी और नवमी के दिन इसका विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों के दौरान कन्याओं को भोजन कराने से माँ खुश होती हैं और यह भोजन माता रानी तक जरूर पहुँचता है।
कन्या पूजन से परिवार में खुशहाली आती है। नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माँ आपके दुखों को दूर करती हैं। माँ सुख-समृद्धि, धन-संपदा का आशीर्वाद देती हैं। इसके साथ ही कन्या पूजन करने से कुंडली में नौ ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। कन्या पूजन से लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजा करने से आपका व्रत और पूजन पूरा होता है।
माँ दुर्गा के दुलारे, महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माता रानी आपको आशीर्वाद देती हैं और छोटी कन्याओं को मां का साक्षात स्वरूप माना जाता है।
9 वर्ष तक की कन्याएं देवी मानी जाती हैं। वैसे तो हिंदू धर्म में समस्त नारियाें काे पूजनीय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जहाँ नारी की पूजा हाेती है वहाँ देवताओं का निवास हाेता है। जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होती जितनी कन्या पूजन से होती हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक कन्याओं को भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं। इससे माता अंधेरे को मिटाकर आपके जीवन में उजाला करती हैं। कन्या पूजन में कम से कम 9 बच्चियों की पूजा जरूर की जाती है।
नवरात्रि के दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा सुख की वर्षा करती हैं और भक्तों को सुख का वरदान देती हैं। अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्याओं को दक्षिणा देने से ही माँ प्रसन्न हो जाती हैं। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्तों का व्रत पूरा होता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि पूरे विश्व में “सनातन धर्म” एक ऐसा धर्म है जिसमें कन्याओं को देवी मानकर पूजा जाता है। यह हमारे धर्म की एक महान संस्कृति का उदाहरण है। नवरात्रि में अन्य सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। माना जाता है कि आयु के अनुसार कन्या पूजन के फल भी अलग अलग होते हैं।
जैसे दो वर्ष की ��न्या के पूजन से दुख और दरिद्रता को मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है और इस आयु की कन्या के पूजन से घर धन-धान्य से भर जाता है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है, इनके पूजन से घर-परिवार का कल्याण होता है। वहीं पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। इनकी पूजा से व्यक्ति को कोई रोग नहीं घेर पाता है। यानि अगर किसी पर रोहिणी की कृपा हो तो वह व्यक्ति रोगों से दूर रहता हैं।
छह वर्ष की कन्या को कालिका का रूप कहा गया है, जो विजय का प्रतीक होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप माँ चंडिका का है, माँ चंडिका रूप की पूजा करने से धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है और इनकी पूजा से करने से वाद-विवाद में सफलता प्राप्त होती है।
नौ वर्ष की कन्या दुर्गा माँ कहलाती है। इनकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है और लम्बे समय से यदि कोई काम अटका है तो वह भी जल्दी पूरा हो जाता है। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है, इनकी पूजा से आपकी हर मनोकामना पूरी होती है।
महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि सिर्फ 9 दिन ही नहीं बल्कि जीवन भर कन्याओं का सम्मान करें। क्योंकि इनका आदर करना ईश्वर की पूजा के ही बराबर पुण्य देता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में कन्या या नारी का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं।
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क्या होते हैं संस्कार?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री
पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
संस्कार का अर्थ उन कार्यों से है जो किसी व्यक्ति को यो��्य और चरित्रवान बनाकर उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करते हैं। कुल मिलाकर संस्कार मनुष्य को सभ्य बनाते हैं। मनुष्य को सही क्या है गलत क्या है उसके बारे में बताते हैं। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि श्रेष्ठ संस्कारवान मानव का निर्माण ही संस्कारों का मुख्य उद्देश्य है। संस्कारों के द्वारा ही मनुष्य में शिष्टाचरण एवं सभ्य आचरण की प्रवृत्ति का विकास होता है। इस ब्लॉग में आइये विस्तार से जानते हैं क्या होते हैं संस्कार ?
संस्कार का अर्थ
संस्कार का अर्थ है किसी कार्य की छाप या उसका प्रभाव, जो हम उसके लक्ष्यों के प्रति पूर्ण जागरूकता के साथ करते हैं। दुनिया की हर चीज़ की तरह, हमारे सकारात्मक एवं नकारात्मक संस्कार और हमारे जीवन पर उनका प्रभाव निरंतर प्रवाह में रहता है। संस्कार शब्द का अर्थ है, शुद्धिकरण। संस्कार का अभिप्राय उन धार्मिक कृत्यों से था जो किसी व्यक्ति को पूर्ण रुप से योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करने के लिए किए जाते थे।
हिंदू संस्कारों का उद्देश्य व्यक्ति में अभीष्ट गुणों को जन्म देना है। महंत श्री पारस भाई जी की दृष्टि में संस्कार का अर्थ यह है कि,समाज या व्यक्ति जिन विशेष गुणों के कारण जाना जाता है वे गुण उस समाज और व्यक्ति के संस्कार कहलाते हैं। मानव जीवन में संस्कारों का अत्यधिक महत्व है। संस्कारों की सर्वाधिक महत्ता मानवीय चित्त की शुद्धि के लिए है। संस्कारों से ही मनुष्य का चरित्र निर्मित होता है और चरित्र, जिस पर मनुष्य का जीवन सुख और मान-सम्मान को प्राप्त करता है।
संस्कारों का उद्देश्य क्या है?
संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य में बुरी आदतों को दूरकर मानवता में परिवर्तित करना था। प्राचीन काल में मनुष्य के जीवन में धर्म का विशेष महत्व था। संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व को इस प्रकार विकसित करना है कि वह संपूर्ण विश्व में सद्बुद्धि और शक्तियों के साथ आगे बढ़े।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार संस्कारवान व्यक्ति की शक्ति और ऊर्जा समाज और विश्व के कल्याण के लिए कार्य करती है और वहीं असंस्कारित व्यक्ति की शक्ति और ऊर्जा विश्व और समाज के विध्वंस के लिए कार्य करती है। यही वजह है कि संस्कारवान होना अत्यंत आवश्यक है। संस्कारवान वह है जो परिवार, समाज, देश एवं विश्व के कल्याण के लिए कार्य करे।
संस्कार कैसे बनते हैं?
ऐसा माना जाता है कि जन्म से लेकर 21 वर्ष तक मुख्य रूप से संस्कारों का निर्माण हो जाता है। दरअसल इस उम्र में पड़ी हुई आदतें ही आगे चलकर संस्कार का रूप ले लेती हैं। बच्चों में अच्छी आदतों का निर्माण बचपन में ही शुरू हो जाता है। हर माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों में अच्छी आदतों का निर्माण करें। क्योंकि बच्चे कोरे
कागज की तरह हैं। उन्हें आप जैसे बनाओगे वो वैसे ही उभर कर आएंगे। बच्चों के ऊपर माता-पिता के संस्कारों का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। अपने बच्चों में खान-पान से लेकर, दूसरों का सम्मान, गुरु की इज्जत करना, प्रेम और पूजा-अर्चना आदि हर छोटी बड़ी बातों का महत्व जरूर समझायें।
संस्कार क्या होते हैं ?
संस्कृत में संस्कार का अर्थ संस्कृति या उत्तम बनाना है। हिंदू धर्म में संस्कार व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि संस्कार आपको सद्कर्मों की ओर ले जाते हैं। संस्कार आपको पापों से दूर रखते हैं। अच्छे संस्कार के लक्षण हैं, शुद्धता, पवित्रता एवं धार्मिकता। अच्छे कर्म सकारात्मक संस्कार बनाते हैं, वहीं बुरे कर्म नकारात्मक संस्कार पैदा करते हैं।
हिंदू धर्म में संस्कारों का महत्व
संस्कारों की बात करें तो गर्भावस्था में गर्भाधान, पुंसवन और सीमंतोन्नयन तीन संस्कार होते हैं। इन तीनों का उद्देश्य माता-पिता की जीवनचर्या इस प्रकार बनाना है कि बालक अच्छे संस्कारों को लेकर जन्म ले। इसलिए जात- कर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्न प्राशन, मुंडन, कर्ण बेध, ये छः संस्कार पाँच वर्ष की आयु में समाप्त हो जाते हैं। बाल्यकाल में ही मनुष्य की आदतें बनती हैं, अतः ये संस्कार बहुत जल्दी- जल्दी रखे गये हैं।
ऐसे ही गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्युपर्यंत तक संस्कार चलते हैं। व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी हिंदू धर्म में संस्कार किये जाते हैं। हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों का बहुत महत्व है। अत: गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्युपर्यंत तक क्रियाओं को संस्कार कहा जाता है। जो मंत्रों के द्वारा किये जाते हैं।
संस्कार दो तरह के हैं, सुसंस्कार और कुसंस्कार
देखा जाये तो संस्कार हमारे ही सही या गलत विचारों का हमारे मन, दिल दिमाग पर होने वाला प्रक्षेपण होता है। संस्कार मनुष्य के जीने के तरीके को प्रदर्शित करता
है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि संस्कार आपके जीवन की दिशा को निश्चित करते हैं। इसलिए जीवन में संस्कार बहुत महत्वपूर्ण है।
संस्कार, अच्छे भी होते हैं और बुरे भी यानि जिन संस्कारों से व्यक्ति का जीवन बुराइयों से हटकर, धर्म की राह पर चलता है, सद्मार्ग पर चलता है और अच्छे कर्म करता है वह संस्कारी कहलाता है। वहीं दूसरी ओर जिन संस्कारों से व्यक्ति का जीवन बुराइयों के साथ, कुमार्ग पर चलता है, अधर्म की राह पर चलता है, बुरे कर्म करता है, वह कुसंस्कारी कहलाता है।
एक बच्चे के जीवन में संस्कार का महत्त्व
संस्कार शब्द का अर्थ होता है ‘सज्जन बनाना’ अथवा ‘निर्माण करना’। संस्कार एक बच्चे को सद्भावपूर्ण और सभ्य नागरिक बनाते हैं। संस्कारों के द्वारा ही एक बच्चा सामाजिक और नैतिक मूल्यों को सीखता है, यह कहना है महंत श्री पारस भाई जी का। यह जरुरी भी है क्योंकि एक बच्चे को जीवन में आगे बढ़ने के लिए, सफलता और सुख की प्राप्ति के लिए अच्छे संस्कारों का ज्ञान होना जरुरी है।
संस्कार ही एक बच्चे को व्यक्तिगत और सामाजिक सफलता की ओर ले जाते हैं और एक सद्भावप���र्ण, सशक्त और सुदृढ़ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। बच्चे को कैसी शिक्षा दी जा रही है यह भी बहुत ज��ुरी है। क्योंकि शिक्षा भी संस्कारों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शिक्षा द्वारा ही सोचने की क्षमता और सही गलत की जांच करने की क्षमता का विकास होता है और साथ ही दूसरों के प्रति सम्मान करने की क्षमता विकसित होती है। कुल मिलाकर परिवार, स्कूल, मित्रों, शिक्षकों और सामाजिक घटनाओं द्वारा प्रभावित होकर एक बच्चे के व्यक्तित्व में संस्कारों का निर्माण होता है।
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पारस परिवार संगठन में रामनवमी उत्सव
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
रामनवमी, भगवान राम के जन्म की स्मृति में मनाया जाने वाला शुभ त्योहार, आत्मनिरीक्षण, भक्ति और सामुदायिक आनंद का अवसर है। पारस परिवार संगठन सेवा, करुणा और एकता के प्रति हमारे समर्पण को दोहराते हुए इस आयोजन की भावना को अपनाता है, जो सभी भगवान राम की शिक्षाओं में गहराई से निहित हैं।
हमारा विशेष कार्य
पारस परिवार चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना महंत श्री पारस भाई जी की सहायता से गरीबों के उत्थान और समुदाय की भावना को ��ढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ की गई थी। हमारा आदर्श वाक्य, “उनकी मुस्कुराहट के पीछे माँ की खुशी है,” यह सुनिश्चित करने के लिए हमारे समर्पण का प्रतीक है कि हम जिस भी व्यक्ति की मदद करते हैं वह महत्वपूर्ण और अच्छी देखभाल महसूस करता है।
भगवान राम से प्रेरित मूल्य
भगवान राम करुणा, धर्म और निस्वार्थ सेवा जैसे मूल्यों के अवतार हैं। हम पारस परिवार के रूप में अपने प��रयासों को इन सिद्धांतों पर आधारित करते हैं:
धार्मिकता (धर्म): हम जो कुछ भी करते हैं उसमें खुद को नैतिक रूप से संचालित करने का प्रयास करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारे कार्य जरूरतमंद लोगों की मदद करने के हमारे लक्ष्य के अनुरूप हैं।
करुणा: भगवान राम के समान, जो सभी जीवित चीजों के प्रति दयालु थे, हम अपने आउटरीच प्रयासों में सहानुभूति को प्राथमिकता देते हैं। हमारे कार्यक्रम तत्काल राहत प्रदान करने के अलावा दीर्घकालिक रूप से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
एकता: रामनवमी का मूल उद्देश्य लोगों को एकजुट करना है. हम सभी को पारस परिवार में अपने परिवार का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करते हैं क्योंकि हम सामुदायिक सहयोग की क्षमता में दृढ़ता से विश्वास करते हैं। एक टीम के रूप में हम बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
राम नवमी एक साथ मनाएं
हम आपको इस रामनवमी पर हमारे उत्सवों और स्वैच्छिक कार्यों में शामिल होने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं। यहां बताया गया है कि आप कैसे भाग ले सकते हैं:
स्वैच्छिक अवसर: जरूरतमंद लोगों को शिक्षा, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से विभिन्न आउटरीच कार्यक्रमों में हमसे जुड़ें।
सामुदायिक कार्यक्रम: हमारे उत्सव समारोहों में भाग लें जो सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाते हैं और विभिन्न समुदायों के बीच एकता को प्रोत्साहित करते हैं।
दान: आपका योगदान हमें अपनी पहुंच का विस्तार करने और गरीबी में रहने वाले और शिक्षा तक पहुंच के बिना रहने वाले अधिक लोगों की सहायता करने की अनुमति देगा।
हमारा प्रभाव
अपनी स्थापना के बाद से, हमने कई कार्यक्रम चलाए हैं जिनसे खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में दस लाख से अधिक लोगों के जीवन में सुधार हुआ है। हमारे निरंतर प्रयास यह गारंटी देते हैं कि हम न केवल त्वरित सहायता प्रदान करते हैं बल्कि देश भर में गरीबी कम करने और शैक्षिक संभावनाओं में सुधार करने का भी प्रयास करते हैं।
हमसे जुड़ें
आइए हम राम नवमी मनाते हुए भगवान राम के मूल्यों के जीवंत उदाहरण के रूप में अपना जीवन जीने का प्रयास करें। हम आपको उन लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए पारस परिवार संगठन में हमारे साथ काम करने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं जो कम भाग्यशाली हैं। साथ मिलकर काम करके, हम एक अधिक आशाजनक भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जो अवसरों से भरा हो।
आइए, अंत में, सेवा करने, दयालु होने और साथ मिलकर काम करने का संकल्प लेकर भगवान राम की विरासत को श्रद्धांजलि अर्पित करें। हमारे साथ इस सम्मानजनक यात्रा पर आइए क्योंकि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें हर कोई समृद्ध हो सके।
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शिवलिंग क्या है और सनातन परंपरा में क्या है?
पारस: सनातन परंपरा में शिवलिंग की पूजा का महत्व?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सो��ा हुआ नसीब भी जाग जाता है।
शिवलिंग क्या है और इसको क्यों पूजा जाता है। भगवान शिव से जुड़ी सबसे खास बात यह है कि वो केवल शिव ही हैं जिन्हें मूर्ति और निराकार लिंग दोनों रूपों में पूजा जाता है। आइये आज हम इस आर्टिकल में आपको शिवलिंग से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में बताएंगे।
शिवलिंग क्या है?
शिवलिंग परम ब्रह्म है तथा संसार की समस्त ऊर्जा का प्रतीक भी है। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे ‘शिवलिंग’ कहा गया है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है।
महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि शिवलिंग की पूजा समस्त ब्रह्मांड की पूजा के बराबर मानी जाती है, क्योंकि शिव ही समस्त जगत के मूल हैं। भगवान शिव प्रतीक हैं, आत्मा के जिसके विलय के बाद इंसान परमब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। शिवलिंग क्या है इसकी बात की जाये तो ‘शिव’ क�� अर्थ है ‘परम कल्याणकारी’ और ‘लिंग’ का अर्थ होता है ‘सृजन’। लिंग का अर्थ संस्कृत में चिंह या प्रतीक होता है। यानि शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। भगवान शिव अनंत काल और सृजन के प्रतीक हैं।
क्या है शिवलिंग का महत्व?
लिंग शिव का ही निराकार रूप है। शिवलिंग का अर्थ अनंत भी है जिसका मतलब है कि इसका कोई अंत नहीं है न ही प्रारंभ है। वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में मिल जाता है और फिर संसार का इसी शिवलिंग से सृजन होता है। इसलिए महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि विश्व की संपूर्ण ऊर्जा का प्रतीक शिवलिंग को माना गया है।
मूर्तिरूप में शिव की भगवान शंकर के रूप में पूजा होती है। शिवलिंग का इतिहास कई हजार वर्षों पुराना है। आदिकाल से शिव के लिंग की पूजा प्रचलित है। सभी देव देवताओं में शिव ही एकमात्र भगवान हैं जिनके लिंगस्वरूप की आराधना की जाती है। शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक मानकर पूजा जाता है और इसकी पूजा विधिविधान से की जाती है।
शिवलिंग की पूजा से संपूर्ण ब्रह्मांड की पूजा के बराबर मिलता है फल शंकर भगवान से जुड़ी सबसे खास बात यह है कि केवल शिव ही हैं जिन्हें मूर्ति और निराकार लिंग दोनों रूपों में पूजा जाता है। हिंदू धर्म में शिवलिंग की पूजा का इतना महत्व है कि इसकी पूजा से संपूर्ण ब्रह्मांड की पूजा के बराबर फल मिलता है। ‘ૐ नमः शिवाय’ को महामंत्र माना जाता है। विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग का प्रतीक है। यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो मिलकर संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार बनाते हैं। इसी का प्रतीक शिवलिंग है जिसकी आस्था से पूजा-अर्चना की जाती है और इस तरह आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
विभिन्न प्रकार के शिवलिंग का महत्व
माना जाता है कि कई प्रकार के रत्नों से बना शिवलिंग धन और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है। पत्थर से बना शिवलिंग हर तरह के कष्टों को दूर करता है और सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। इसके अलावा धातु से बना शिवलिंग धन-धान्य देने वाला होता है। शुद्ध मिटटी से बना हुआ शिवलिंग सभी सिद्धियों की प्राप्ति करने वाला माना जाता है। पारा एक धातु है जिसमें चांदी को मिलाकर पारद शिवलिंग का निर्माण किया जाता है। भगवान शिव को पारा बहुत प्रिय है। इसलिए सावन में पारद शिवलिंग की पूजा से शिव जी जल्द प्रसन्न होते हैं। पारद शिवलिंग की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी होती हैं।
शिवलिंग के 12 नाम कौन से हैं?
भारत में भगवान शिव के लिंग के बारह ज्योर्तिंलिंग हैं। शिवजी के स्वरूप का बोध कराने वाला शब्द ‘लिंग’ है। शिवजी के दो स्वरूप हैं। एक भौतिक रूप जो भगवान शिव का प्रत्यक्ष रूप है और दूसरा निराकार रूप जो मंदिरों में स्थापित भगवान शिव का ‘लिंग’ रूप है।
देश भर में शिव के 12 ज्योर्तिंलिंग की पूजा बहुत ही श्रद्धा भाव से की जाती है। सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है।
ज्योतिर्लिंग यानी व्यापक ब्रह्मात्मलिंग जिसका अर्थ है व्यापक प्रकाश। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। महंत श्री पारस भाई जी ज्योतिर्लिंग के विषय में कहते हैं कि शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
शिवलिंग की पूजा के कुछ नियम
मान्यता है कि शिवलिंग की श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना से आपके जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर होते हैं। शिवलिंग की पूजा में हमेशा भगवान शंकर की प्रिय प्रिय चीजें जैसे सफेद पुष्प, धतूरा, बेलपत्र अवश्य अर्पित करने चाहिए। शिवलिंग पर बेलपत्र को हमेशा उलट कर चढ़ाना चाहिए। शिवलिंग पर भूलकर भी कटा-फटा बेलपत्र न चढ़ाएं।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार सभी प्रकार के रोगों को दूर करने के लिए कच्चे दूध एवं गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। दरअसल शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला जल अत्यंत पवित्र होता है इसलिए शिवलिंग प��� चढ़ाया गया जल जहाँ से निकलता है, उसे लांघा नहीं जाता है। ऐसा माना जाता है इसे लांघने पर दोष होता है। इसलिए शिवलिंग की आधी परिक्रमा का विधान है।
शिवलिंग के समीप जाप या ध्यान करने से मिलता है मोक्ष का मार्ग
शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान और पूजन किया जाता है। शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग मिलता है। शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं। भगवान शिव का ध्यान आप उनकी मूर्ति, चित्र अथवा शिवलिंग के माध्यम से कर सकते हैं। मूर्ति, चित्र अथवा शिवलिंग के सामने बैठकर उस पर ध्यान केन्द्रित करें और ऊँ नमः शिवाय का जप करें, आपके जीवन में सकारात्मकता आयेगी।
शिवलिंग की पूजा के फायदे
शिवलिंग की पूजा करने के अनेक फ़ायदे हैं-
परिवार में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। शिवलिंग हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है इसलिए इनकी पूजा करने से व्यक्ति के विचारों में सकारात्मकता आती है और नकारात्मकता दूर होती है। जीवन में सफलता के लिए, दरिद्रता से छुटकारा पाने के लिए और दाम्पत्य सुख के लिए शिवलिंग की पूजा की जाती है।
यदि आपका मन काम में नहीं लग रहा है तो इसके लिए शिवलिंग की पूजा अवश्य करें। शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने से रोगों का नाश होता है और शरीर स्वस्थ रहता है। अगर शिव मंदिर में शिवलिंग पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित हो तो सबसे ��त्तम माना जाता है।
शिवलिंग से जुड़ी एक कथा
देखा जाये तो शिवलिंग का इतिहास कई हजार वर्षों पुराना है। शिव ही एकमात्र भगवान हैं जिनके लिंग स्वरूप की आराधना की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, इसका इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब विष की उत्पत्ति हुई तो समस्त ब्रह्माण की रक्षा के लिए उसे महादेव द्वारा ग्रहण किया गया। इस वजह से उनका कंठ नीला हो गया और तब से उनका नामनीलकंठ पड़ गया।
लेकिन विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ़ गया। इसलिए उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक चली आ रही है।
क्या कहता है शिवपुराण?
शिव पुराण के मुताबिक शिवलिंग पर जल चढ़ाना पुण्य का काम है। इस जल को आप प्रसाद के रूप में ग्रहण कर सकते हैं और ऐसा करना बहुत ही शुभ माना गया है। शिव पुराण के 22 अध्याय के 18 श्लोक के अनुसार शिवलिंग पर चढ़ा हुआ जल पीना शुभ होता है। शिवलिंग का जल पीने से आपकी गंभीर बीमारियां दूर हो जाती हैं और आपको रोगों से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि शिवलिंग का जल ग्रहण करने से आप मानसिक तौर पर भी स्वस्थ रहते हो और तनाव भी दूर होता है।
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पारस परिवार संगठन में लाल बहादुर शास्त्री जयंती मनाई गई।
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
2 अक्टूबर क�� गांधी जयंती मनाने के साथ-साथ, हम भारत के दूसरे प्रधान मंत्री और “जय जवान जय किसान” नारे के प्रणेता लाल बहादुर शास्त्री की स्मृति का भी सम्मान करते हैं। शास्त्री अपनी ईमानदारी, दूरदर्शिता और नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध थे। पारस परिवार संगठन में हम आज के दिन को शास्त्री के सिद्धांतों पर विचार करने के अवसर के रूप में उपयोग करते हैं और कैसे वे कम भाग्यशाली लोगों की मदद करने के लिए हमारे काम को पूरक बनाते हैं।
सेवा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता
वंचितों की सेवा करना पारस परिवार चैरिटेबल ट्रस्ट का मिशन है, जिसे महंत श्री पारस भाई जी के निर्देशन में स्थापित किया गया था। हमारी टैगलाइन, “उनकी मुस्कुराहट के पीछे माँ की खुशी है,” यह सुनिश्चित करने के लिए हमारे समर्पण को दर्शाती है कि हम जिस भी व्यक्ति की मदद करते हैं वह महत्वपूर्ण और अच्छी देखभाल महसूस करता है। देश के कल्याण के लिए शास्त्री की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए, हम एक दयालु वातावरण को बढ़ावा देने की उम्मीद करते हैं जहां परिवर्तन करुणा से प्रेरित हो।
वे मूल्य जो हम लाल बहादुर शास्त्री के साथ साझा करते हैं
लाल बहादुर शास्त्री के निम्नलिखित आदर्श हमारे संगठन की भावना के बहुत करीब हैं:
अखंडता: शास्त्री अपनी सत्यनिष्ठा और नैतिक नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध थे। पारस परिवार में, हम अपने काम के सभी पहलुओं में खुलापन बनाए रखते हैं, यह गारंटी देते हैं कि धन और दान सीधे उन लोगों तक पहुंचे जिनकी हम सहायता करना चाहते हैं।
सशक्तिकरण: हम शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने पर जोर देते हैं, जैसा कि शास्त्री ने किया था जब उन्होंने किसानों और सैनिकों के मूल्य पर प्रकाश डाला था। हमारे कार्यक्रम तत्काल सहायता के अलावा दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता विकल्प प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
एकता: “जय जवान जय किसान” एक नारा है जो किसानों और योद्धाओं की एकजुटता का प्रतीक है, जो देश की उन्नति के लिए आवश्यक है। इसी तरह, हम पड़ोस के सहयोग की शक्ति पर भरोसा करते हैं। पारस परिवार में हमारे परिवार में शामिल होना हर किसी के लिए खुला है, क्योंकि जब हम एक साथ काम करते हैं तो और भी बहुत कुछ कर सकते हैं।
हमारा प्रभाव
हमने अपनी स्थापना के बाद से खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा को संबोधित करने वाले कई कार्यक्रम चलाकर दस लाख से अधिक लोगों पर लाभकारी प्रभाव डाला है। हमारे निरंतर प्रयास यह गारंटी देते हैं कि हम न केवल त्वरित सहायता प्रदान करते हैं बल्कि देश भर में गरीबी कम करने और शैक्षिक संभावनाओं में सुधार करने का भी प्रयास करते हैं।
बदलाव लाने में हमसे जुड़ें
आइए हम लाल बहादुर शास्त्री जयंती को ध्यान में रखें और हर दिन उनकी शिक्षाओं को जीने का प्रयास करें। हम आपको उन लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए पारस परिवार संगठन में हमारे साथ काम करने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं जो कम भाग्यशाली हैं। साथ मिलकर काम करके, हम एक अधिक आशाजनक भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जो अवसरों से भरा हो।
अंत में, आइए हम लाल बहादुर शास्त्री की विरासत को बनाए रखने के लिए खुद को एकता, अखंडता और सेवा के लिए समर्पित करें। हमारे साथ इस सम्मानजनक ��ात्रा पर आइए क्योंकि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें हर कोई समृद्ध हो सके।
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पारस परिवार संगठन के साथ गांधी जयंती मनाना
2 अक्टूबर को, हम गांधी जयंती मनाते हैं, यह दिन महात्मा गांधी द्वारा समर्थित अहिंसा, शांति और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को समर्पित है। पारस परिवार संगठन में, हम इन मूल्यों को पूरे दिल से अपनाते हैं, वंचितों के उत्थान और सामुदायिक कल्याण को बढ़ावा देने के अपने मिशन में उन्हें प्रतिबिंबित करते हैं।
हमारा मिशन और विजन
महंत श्री पारस भाई जी के मार्गदर्शन में स्थापित, पारस परिवार चैरिटेबल ट्रस्ट जरूरतमंद लोगों की मदद करने के उद्देश्य से विभिन्न पहलों के माध्यम से जीवन को बदलने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा मूल विश्वास है कि “माँ की खुशी उनकी मुस्कान के पीछे है” हमारी दैनिक गतिविधियों को प्रेरित करता है और हमें दूसरों के कल्याण के लिए अथक प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है। हमारा लक्ष्य एक ऐसी दुनिया बनाना है जहाँ हर व्यक्ति को शिक्षा और खाद्य सुरक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें मिल सकें।
उपलब्धियाँ और प्रभाव
अपनी स्थापना के बाद से, हमने 1 मिलियन से ज़्यादा लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। हमारे प्रयास सिर्फ़ तत्काल सहायता प्रदान करने तक सीमित नहीं हैं; हम शिक्षा और आत्मनिर्भरता के ज़रिए व्यक्तियों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। एकता की भावना को बढ़ावा देकर — गांधी के सिद्धांत “एकता में शक्ति है” को प्रतिध्वनित करते हुए — हम सभी को इस नेक काम में हमारे परिवार में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं। साथ मिलकर, हम पूरे देश में गरीबी को कम करने और शिक्षा के अवसरों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।
सामुदायिक सहभागिता
पारस परिवार सामुदायिक सहभागिता पर फलता-फूलता है। हम स्वयंसेवकों और समर्थकों को हमारे विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिनमें शामिल हैं:
शैक्षणिक सहायता: वंचित छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और संसाधन प्रदान करना।
खाद्य वितरण: खाद्य असुरक्षित लोगों को भोजन खिलाने के लिए खाद्य अभियान का आयोजन करना।
स्वास्थ्य पहल: स्वास्थ्य जांच और जागरूकता कार्यक्रम पेश करना।
आध्यात्मिक मार्गदर्शन
हमारे धर्मार्थ कार्यों के अलावा, हम महंत श्री पारस भाई जी की शिक्षाओं के माध्यम से आध्यात्मिक विकास पर भी जोर देते हैं। उनकी बुद्धि न केवल हमारे धर्मार्थ प्रयासों में हमारा मार्गदर्शन करती है, बल्कि हमारे व्यक्तिगत जीवन को भी समृद्ध बनाती है, सभी व्यक्तियों के बीच शांति, दया और समझ को बढ़ावा देती है।
हमसे जुड़ें
गांधी जयंती मनाते समय, हम उन मूल्यों पर विचार करते हैं जो हमें एकजुट करते हैं — करुणा, सेवा और ईमानदारी। हम आपको पारस परिवार संगठन के साथ इस यात्रा का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करते हैं। साथ मिलकर, आइए हम एक ऐसा समाज बनाने का प्रयास करें जहाँ हर कोई खुलकर मुस्कुरा सके और सम्मान के साथ जी सके।
अंत में, आइए हम हर दिन अपने कार्यों में उनके सिद्धांतों को अपनाकर महात्मा गांधी की विरासत का सम्मान करें। पारस परिवार में हमसे जुड़ें क्योंकि हम जरूरतमंदों की सेवा करना जारी रखते हैं और अपने समुदायों में सकारात्मकता फैलाते हैं।
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पारस परिवार: कथाएँ और उपाख्यान: महाभारत और रामायण से नैतिक शिक्षाएँ
महाभारत और रामायण, भारतीय संस्कृति के दो महान महाकाव्य हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनमें गहरे नैतिक और दार्शनिक संदेश भी निहित हैं। ये कथाएँ हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और सिखने का अवसर प्रदान करती हैं।
1. रामायण की नैतिक शिक्षाएँ
धर्म का पालन: रामायण का सबसे महत्वपूर्ण संदेश है "धर्म". भगवान राम ने हमेशा अपने धर्म का पालन किया, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
सत्य बोलना: रामायण में भगवान राम और माता सीता के चरित्र सत्य और ईमानदारी का प्रतीक हैं। सत्य का पालन करना और वचनबद्ध रहना महत्वपूर्ण है, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं।
न्याय और समानता: रामायण में रावण का वध एक नैतिक संदेश देता है कि अत्याचार और अन्याय का अंत होना चाहिए। समाज में समानता और न्याय की स्थापना आवश्यक है।
2. महाभारत की नैतिक शिक्षाएँ
कर्म का फल: महाभारत में कर्म और उसके फल का महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह दिखाता है कि हर कर्म का परिणाम होता है, जैसे युधिष्ठिर का सत्य बोलना और दुर्योधन की गलतियाँ।
विपरीत परिस्थितियों में धैर्य: महाभारत में भीम और अर्जुन जैसे पात्रों ने विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोया। यह हमें सिखाता है कि कठिन समय में धैर्य और साहस से काम लेना चाहिए।
मित्रता और विश्वास: महाभारत में मित्रता का विशेष महत्व है, विशेष रूप से कृष्ण और अर्जुन के बीच। यह दर्शाता है कि सच्चे मित्र हमेशा साथ खड़े होते हैं और कठिनाई में मदद करते हैं।
3. सामान्य नैतिक शिक्षाएँ
स्वार्थ से परे: दोनों महाकाव्यों में स्वार्थ का अंत महत्वपूर्ण है। रावण की स्वार्थी प्रवृत्ति और कौरवों की लालच को उनके पतन का कारण माना गया है।
संकट में परिवार का महत्व: रामायण और महाभारत दोनों में परिवार के महत्व को दर्शाया गया है। संकट के समय परिवार का साथ होना आवश्यक है।
क्षमा का महत्व: महाभारत में दुर्योधन की क्रूरता के बावजूद, पांडवों ने क्षमा का मार्ग चुना। यह हमें सिखाता है कि क्षमा से बड़ी शक्ति कोई नहीं होती।
निष्कर्ष
महाभारत और रामायण से प्राप्त नैतिक शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। ये हमें जीवन में सही रास्ता चुनने, कठिनाइयों का सामना करने और अच्छे आचरण को अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं। इन महाकाव्यों के माध्यम से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि नैतिकता और धर्म का पालन करना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
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आखिर कौन हैं पितरों के देवता अर्यमा?
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
हमारे हिंदू धर्म में पितरों को बहुत सम्मान दिया जाता है, उनकी पूजा की जाती है और उनको समय-समय पर याद किया जाता है। सनातन धर्म में पितृ पक्ष की एक विशेष अवधि होती है, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। ये अवधि पितरों के लिए समर्पित है।
पितृ पक्ष में अर्यमा देव की पूजा की जाती है। आपको बता दें कि अर्यमा पितरों के देवता माने जाते हैं। पितृ पक्ष में अयर्मा देव की पूजा का विधान है। इनकी उपासना करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। आइये विस्तार से जानते हैं आखिर कौन हैं ये अर्यमा देवता और क्यों की जाती है इनकी पूजा ?
कौन हैं पितरों के देव अर्यमा?
सनातन धर्म में पितृ पक्ष की अवधि पितरों के लिए समर्पित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए अर्यमा देव की पूजा क्यों की जाती है। कौन हैं अर्यमा देव जिन्हें पितरों के देव के रूप में भी जाना जाता है। तो आपको बता दें कि हिंदू धर्म में अर्यमा को पितरों के देवता के रूप में जाना जाता है। इनकी पूजा से पितरों को मुक्ति मिलती है। अर्यमा देव, ऋषि कश्यप और देवमाता अदिति के 12 पुत्रों में से एक हैं।
पितरों में अर्यमा सर्वश्रेष्ठ
सनातन धर्म में प्रात: और रात्रि के चक्र पर अयर्मा देव का अधिकार माना गया है। अर्यमा चंद्रमंडल में स्थित पितृलोक के सभी पितरों के अधिपति भी नियुक्त किए गए हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि अर्यमा देव का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है जो इस प्रकार है –
ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः। ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
इस श्लोक का मतलब है कि पितरों में अर्यमा सर्वश्रेष्ठ हैं। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे पिता, पितामह और प्रपितामह तथा हे माता, मातामह और प्रमातामह, आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।
अदिति के तीसरे पुत्र हैं अर्यमा
अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता कहा जाता है। वे जानते हैं कि कौन सा पितृ किस कुल और परिवार से है। अर्यमा पितरों के देव हैं। इनके प्रसन्न होने पर ही पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जलदान दिया जाता है।
कहा जाता है कि वैदिक देवता अर्यमा, अदिति के पुत्र, पितरों या पितरों में सबसे प्रमुख हैं। भगवत गीता के 10वें अध्याय में भगवान वासुदेव ने भी कहा है-
अनंतश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पिताॄनामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥
मैं नागों में अनन्त और जल के देवताओं में वरुण हूँ। पितरों में मैं अर्यमा हूँ और कानून और व्यवस्था बनाए रखने वालों में मैं यम (मृत्यु का राजा) हूं।
पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं
‘पितृ’ से अर्थ ‘ पिता, पितर या पूर्वज’ आदि होता है, धार्मिक मान्यताओं में जब पितृपक्ष या पितरों की बात आती है तो इसका अर्थ उन मृत परिजनों से लगाया जाता है जिन्हें मृत्यु के पश्चात किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति न होने के कारण मोक्ष नहीं मिलता। इसलिए पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म आदि किए जाते हैं जिससे व्यक्ति को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया या पितरों को तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। अर्यमन या अर्यमा आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक हैं। आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक माना जाता है। अर्यमा या अर्यमान प्राचीन हिन्दू धर्म के एक देवता हैं जिनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। ऋषि कश्यप की पत्नीं अदिति के 12 पुत्रों में से एक अर्यमन थे। ये बारह हैं:- अंशुमान, इंद्र, अर्यमन, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और त्रिविक्रम (वामन)।
पितरों को दुखी करके कौन सुखी रह सकता है?
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन ब्रह्म, गरूड़, विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में भी किया गया है। यमराज की गणना भी पितरों में होती है। अर्यमा को पितरों का प्रधान माना गया है और यमराज को न्यायाधीश। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार इस जमात के मुख्य गण प्रधान हैं।
पितृ पक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है। इन्हीं को पितर कहते हैं। पितर चाहे किसी भी योनि में हों वे अपने पुत्र, पुत्रियों एवं पौत्रों के द्वारा किया गया श्राद्ध का अंश जरूर स्वीकार करते हैं। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और ऐसा माना जाता है कि उन्हें नीच योनियों से मुक्ति भी मिलती है।
मान्यता है कि जो लोग श्राद्ध नहीं करते, उनके पितृ उनके दरवाजे से वापस दुखी होकर चले जाते हैं और इस तर�� आप सुख से नहीं रह पाते हैं। कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि पितरों को दुखी करके कोई भी सुखी नहीं रह सकता है फिर चाहे आप कुछ भी कर लो।
क्या प्रभाव पड़ता है पितरों का वर्तमान जीवन में ?
आपके पितर या पूर्वज आपके वर्तमान जीवन से जुड़े होते हैं। पितर अर्थात मृत परिजन आपसे सीधे बात नहीं कर सकते लेकिन आपके जीवन में होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं के द्वारा अपने भाव प्रकट करते हैं। महंत श्री पारस भाई जी का मानना है कि पितरों की प्रसन्नता से आपको खुशहाली, सम्मान और सफलता मिलती है, वहीं दूसरी ओर इनकी अप्रसन्नता से जीवन में अनावश्यक ही समस्याएं आने लगती हैं।
आपको हर ओर से परेशानियां घेर लेती हैं। पारिवारिक समस्याओं से लेकर आर्थिक नुकसान, कॅरियर में परेशानियां आदि आने लगती हैं। पितरों की प्रसन्नता और मुक्ति के लिए दान, श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिससे पितरों को मुक्ति मिलती है और वे प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देते हैं।
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अद्भुत रहस्यों से भरा है करणी माता का यह मंदिर पारस जी से जाने
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
राजस्थान अपनी खूबसूरती के लिए फेमस है। यह शहर देश विदेश के पर्यटकों का ��्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। यह धार्मिक स्थलों के लिए भी लोगों के बीच प्रसिद्ध है। यहाँ कई मंदिर ऐसे हैं जो कि अद्भुत रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। इन मंदिरों में हर कोई दर्शन के लिए जाना चाहता है।
ऐसे ही एक मंदिर है बीकानेर में करणी माता का मंदिर जो कि भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर करणी माता को समर्पित है और पर्यटकों के बीच काफी मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि करणी माता लोगों की रक्षा करने वाली देवी दुर्गा का अवतार हैं। आइये इस नवरात्रि के अवसर पर करणी माता मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं।
करणी माता मंदिर का निर्माण
ऐसा माना जाता है कि करणी माता 151 साल तक जिंदा रही और उनके ज्योतिर्लिन होने के बाद उनके भक्तों द्वारा उनकी मूर्ति की स्थापना कर उनकी पूजा शुरू कर दी गयी जो तब से लेकर आज तक चली आ रही है। यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत है। इस मंदिर का मुख्य दरवाजा चांदी का है और वहीं करणी माता के लिए सोने का छत्र बना हुआ है। करणी माता मंदिर के निर्माण की बात करें तो इस मंदिर का निर्माण 20वीं शताब्दी में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा किया गया था। बीकानेर की करणी माता की मूर्ति मंदिर के अंदर गर्भगृह के भीतर विराजित है। जिसमें माता एक हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए हैं। देवी की मूर्ति के साथ उनकी बहनों की मूर्ति भी है।
यह मंदिर संगमरमर से बना है और इसकी वास्तुकला मुगल शैली से मेल खाती है। वर्तमान में जहां आज यह मंदिर बना हुआ है वहां पर एक गुफा में करणी माता अपनी देवी की पूजा किया करती थी और यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में बनी हुई है। करणी माता का यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत है। इस मंदिर का मुख्य दरवाजा चांदी का है और वहीं करणी माता के लिए सोने का छत्र बना हुआ है। चांदी की बड़ी परतों में यहां चूहों को भोग लगाया जाता है।
कौन थी करणी माता?
यह मंदिर करणी माता को समर्पित है। राजस्थान के ऐतिहासिक नगर बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित है करणी माता का मंदिर जिसे चूहों वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि करणी माता को लोगों की रक्षा करने वाली देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है। करणी माता का जन्म एक चारण परिवार में हुआ था। करणी माता चारण जाति की योद्धा ऋषि थी। उनका बचपन का नाम रिघुबाई था। अपनी शादी के कुछ समय बाद ही उनका मन सांसारिक जीवन से ऊबने लगा। इसके बाद उन्होंने खुद को माता की भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया।
समाज सेवा, जनकल्याण, अद्भुत कार्यों और अलौकिक शक्तियों क��� कारण रिघु बाई को करणी माता के नाम से वहाँ के लोग पूजने लगे। उन्होंने सदा से एक तपस्वी का जीवन जिया। यहाँ के लोगों के बीच वह अत्यंत पूजनीय हैं। वैसे तो करणी माता को समर्पित कई मंदिर हैं
लेकिन बीकानेर के देशनोक शहर में स्थित इस मंदिर की मान्यता लोगों के बीच सबसे अधिक है। मंदिर में आने वाले भक्त देवी और चूहों को प्रसाद भी चढ़ाते हैं। इसके अलावा, बीकानेर में करणी माता मंदिर में नवरात्रि में लगने वाला मेला बड़ा मशहूर है। इस मेले में हजारों लोगों की भी��़ होती है।
इस मंदिर के पीछे क्या रहस्य छुपा है, क्यों है यह इतना लोकप्रिय?
यह मंदिर देखने में भी अत्यंत सुंदर है। आप इस मंदिर की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। यह मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है इसलिए सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग यहाँ दर्शन के लिए पहुँचते हैं। इस मंदिर में 30000 से ज्यादा चूहे होते हैं, जो यहां घूमते रहते हैं। यहाँ का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि यहाँ भक्तों को चूहों का झूठा प्रसाद मिलता है। यही इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य है और यहाँ की प्रथा भी। इन चूहों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ सुबह होने वाली मंगला आरती और शाम की आरती के समय चूहे अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं।
इस मंदिर में आने वाले भक्त देवी माँ और चूहों को भी प्रसाद चढ़ाते हैं। इस मंदिर की जो सबसे मुख्य बात है वो यह है कि यहाँ के प्रसाद को खाने के बाद अभी तक कोई भी बीमार नहीं हुआ है। वैसे तो इस मंदिर में आपको कालें रंग के चूहे नजर आएगे, लेकिन ऐसी मान्यता है कि जिस भी भक्त को सफेद रंग के चूहे नजर आते हैं, यह उसके लिए अत्यंत भाग्य की बात मानी जाती है और उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है। यानि माता का यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर सैकड़ों चूहें रहते हैं और इनके रहने से कोई बदबू नहीं फैलती है और न ही कोई बीमारी। यहां पर रहने वाले चूहों को काबा कहा जाता है।
करणी माता की प्रचलित कहानी
करणी माता मंदिर से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कहानी यह है कि करणी माता के एक सौतेले पुत्र थे जिनका नाम लक्ष्मण था। एक दिन सरोवर से पानी पीते समय लक्ष्मण उसमें डूब जाते हैं। इसके बाद करणी माता परेशान होकर यम देवता से हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हैं। वह उनकी विनती के आगे झुक जाते हैं और न सिर्फ लक्ष्मण बल्कि करणी माता के सभी पुत्रों को चूहों के रूप में जीवित कर देते हैं। इस मंदिर में जाने पर आपकी हर मुराद पूरी हो जाती है। जहाँ माता के द्वार पर सैकड़ों चूहे उनकी रक्षा करते हैं। यहाँ मां को जो प्रसाद चढाया जाता है उसे पहले चूहे खाते हैं। उसके बाद उसे भक्तों में बांटा जाता है।
यहाँ जो पुजारी हैं उनका मानना है कि यहां चूहों की संख्या 30000 के पार है और यह बात वास्तव में आश्चर्यचकित करने वाली है। यहाँ चूहों को मारना नहीं माना जाता है शुभ इस मंदिर में चूहों को मारने से या चूहों को किसी भी तरह की हानि पहुँचाने से पाप लगता है। यहाँ लोग चूहों के लिए खाना भी लेकर आते हैं। जैसे दूध, मिठाई आदि कई तरह की चीज़ें लाते हैं। सभी चूहों में से, सफेद चूहों को यहाँ पवित्र माना जाता है दरअसल उन्हें करणी माता और उनके पुत्रों के अवतार के रूप में देखा जाता है। यदि आप चूहे को गलती से मार देते हैं तो इसका पश्चाताप करने के लिए मरे हुए चूहे की जगह सोने के चूहे से बदलना होता है। यही वजह है कि जब लोग ��हाँ जाते हैं तो पैर उठाकर नहीं चलते हैं। इसके बजाय पैरों को घसीटकर चलते हैं जिससे कोई चूहा गलती से पैरों के नीचे आकर मर न जाये जाए। क्योंकि यदि ऐसा होता है तो इसे शुभ संकेत नहीं माना जाता है।
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विजया एकादशी क्या है पारस जी से जाने?
हर महीने में दो बार एकादशी व्रत किया जाता है और इस तरह एक साल में 24 एकादशी व्रत किए जाते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपको किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त हो तो इसके लिए विजया एकादशी का व्रत रखें। इस व्रत को रखने से और भगवान विष्णु की पूजा करने से आपको जीवन में अवश्य सफलता मिलती है। इसी कड़ी में आइये जानते हैं कब है विजया एकादशी का व्रत और क्या है इस व्रत का महत्व ?
कब है विजया एकादशी 2024 ?
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। उदयातिथि के आधार पर विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च बुधवार को है। क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 6 मार्च को होगा इसलिए यह व्रत इसी दिन किया जायेगा। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले विजया एकादशी का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से उन्होंने रावण का वध किया था इसलिए इस दिन व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि
विजया एकादशी के दिन सबसे पहले सवेरे उठकर स्नान आदि करें और फिर सच्चे मन से भगवान विष्णु का नाम लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर भगवान को अक्षत, फल, पुष्प, चंदन, मिठाई, रोली, मोली आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है। श्रद्धा-भाव से पूजा कर अंत में भगवान विष्णु की आरती करने के बाद सबको प्रसाद बांटें।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी शुभ होता है क्योंकि इस पाठ को करने से लक्ष्मी जी आपके घर में वास करती हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के शुभ दिन किसी गोशाला में गायों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करें। विजया एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गरीबों व जरूरतमंदों को अन्न , वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें।
विजया एकादशी पारण
विजया एकादशी व्रत के दूसरे दिन पारण किया जाता है। एकादशी व्रत में दूसरे दिन विधि-विधान से व्रत को पूर्ण किया जाता है। विजया एकादशी व्रत का पारण 7 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस व्रत का पारण करने से पहले आप ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें और साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद को दान करें और इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।
विजया एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। साल में जो 24 एकादशी आती हैं, हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की मुश्किलें दूर होती हैं और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पाप मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी जिसके नाम से ही पता चलता है कि इस एकादशी के प्रभाव से आपको विजय की प्राप्ति होती है। यानि विजय प्राप्ति के लिए इस दिन श्रीहरि की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उस मनुष्य के पितृ स्वर्ग लोक में जाते हैं।
पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें- कृं कृष्णाय नम:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:। महंत श्री पारस भाई जी ने इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलत��� है। विजया एकादशी का व्रत भी बाकी एकादशियों की तरह बहुत ही कल्याणकारी है।
महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि यदि आप शत्रुओं से घिरे हो और कैसी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, तब विजया एकादशी के व्रत से आपकी जीत निश्चित है।
इस दिन ये उपाय होते हैं बहुत ख़ास
तुलसी की पूजा विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा को बहुत ही अधिक महत्व दिया जाता है। इस तुलसी के पौधे को जल अर्पित कर दीपक जलाएं। इसके अलावा तुलसी का प्रसाद भी ग्रहण करें। ऐसा करने से घर से दुःख दूर होते हैं और घर में खुशालीआती है ।
शंख की पूजा
विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा की तरह शंख पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। इस दिन शंख को तिलक लगाने के बाद शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक कर शंख बजाएं। शंख से अभिषेक कर बजाना भी फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पीला चंदन प्रयोग करें
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के दिन पीले चंदन का अत्यंत महत्व होता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को और स्वयं भी पीले चंदन का टीका अवश्य लगाएं। पीले चंदन का टीका लगाने से आपको कभी असफलता नहीं मिलेगी और आपकी सदैव जीत होगी।
ॐ श्री विष्णवे नम: “पारस परिवार” की ओर से विजया एकादशी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
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आस्था का प्रतीक- अंजनी महादेव हिमाचल प्रदेश
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
यदि खूबसूरत जगहों की बात की जाये और हिमाचल प्रदेश,मनाली का जिक्र ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता है। अंजनी महादेव भी एक बहुत ही सुंदर जगह है, यह आस्था का केंद्र तो है ही साथ ही अपने खूबसूरत नजारों के लिए भी प्रसिद्ध है। वैसे भी मनाली पर्यटकों का एक पसंदीदा पर्यटन स्थल है। लेकिन इसके बावजूद भी आज वहां कई ऐसी जगहें हैं जो बेहद सुंदर हैं और अलौकिक शक्तियों से भरी हुई हैं किंतु अभी तक कई पर्यटकों को इन जगहों के बारे में जानकारी नहीं है। आज इस ब्लॉग में हम आपको एक ऐसी ही अद्भुत और हैरान कर देने वाली जगह के बारे में बताएंगे, तो वो पवित्र जगह है अंजनी महादेव। इस जगह पर एक पवित्र झरना शिवलिंग का जलाभिषेक करता है। यह देखना अपने आपमें एक बहुत ही अनोखा अनुभव है। इस पवित्र नज़ारे को देखने के बाद आपको एहसास होगा कि वास्तव में ईश्वर की शक्ति क्या है ?
क्यों है यह लोगों की आस्था का प्रतीक ?
अंजनी महादेव मंदिर एक प्राकृतिक शिवलिंग है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि यदि आप घूमने के शौकीन हैं और भगवान में आस्था रखते हैं तो अंजनी महादेव मंदिर में जाकर आपको एक अलग ही सुकून मिलेगा। इस जगह में प्रवेश करते ही आपको ऐसी शांति का अनुभव होगा, जो इससे पहले आपने शायद ही कभी अनुभव किया हो। कुछ समय के लिए तो आप सब कुछ भूल बैठोगे और इस जगह की अलौकिक छटा में खो जाओगे। आपको महसूस होगा जैसे वो दिव्य साक्षात् शक्ति आपके सामने खड़ी है। यहाँ पूरा बर्फ से ढका अद्भुत दृश्य आपका मन मोह लेगा।
क्या है अंजनी महादेव के पीछे की आस्था की कहानी ?
महंत श्री पारस भाई जी ने अंजनी महादेव के बारे में जानकारी देते हुए बताया, ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में माता अंजनी ने पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या की थी और तब भगवान शिव ने अंजनी माता को दर्शन दिए थे। साथ ही माता अंजनी को इच्छापूर्ति का आशीष भी दिया था। इसके बाद से ही यहां पर प्राकृतिक रूप से बर्फ का विशाल शिवलिंग बनता है, जो कि लोगों की आस्था का प्रतीक बन जाता है। इसे अंजनी माता की तपोस्थली भी कहा जाता है। श्री पारस भाई जी ने आगे बताया कि यदि आप यहाँ जाकर इस प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन करते हैं तो आपकी हर इच्छा पूरी होती है और जीवन में ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कहाँ स्थित है अंजनी महादेव मंदिर ?
यदि आप मनाली घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो उससे 25 किलोमीटर की दूरी पर अंजनी महादेव का मंदिर स्थित है। अंजनी महादेव में साढ़े 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बना प्राकृतिक शिवलिंग है। यदि आप भोले के भक्त हैं तो एक बार जरूर घूमने जाइये इस खूबसूरत जगह पर और अंजनी महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करें। यहां जाकर आपको शांति का एहसास तो होगा साथ ही यह आपके जीवन का एक शानदार अनुभव होगा। इतनी उंचाई पर बने इस प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन भला कौन नहीं करना चाहेगा।
अंजनी महादेव, दर्शनीय स्थल के साथ-साथ पूजनीय स्थल भी
इस पवित्र स्थान पर बर्फ का विशाल शिवलिंग बन जाता है। यह स्थान पर्यटकों के लिए अत्यंत खूबसूरत दर्शनीय स्थल तो है ही साथ ही भक्तों के लिए एक पूजनीय स्थान भी। यहाँ की जो अनुपम छटा है वह देखने लायक होती है। अंजनी महादेव के दर्शन करने के लिए आप कुछ सीढ़ियां चढ़कर जब ऊपर पहुँचते हैं तो यह हैरान करने वाला दृश्य देखकर अचंभित हुए बिना नहीं रह पाते हैं। यहाँ एक बहुत ही सुंदर और ऊँचे झरने के नीचे पवित्र शिवलिंग है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस झरने का पानी शिवलिंग पर जब गिरता है तो यह अद्भुत दृश्य आँखों में बस जाता है। यह देखकर ऐसा लगता है जैसे प्रकृति खुद ही महादेव पर जल अर्पण कर रही हो। सच में इस अनुभव को आप कभी भुला नहीं पाओगे।
लगभग 35 फ़ीट फीट से भी ऊंचा होता है शिवलिंग
अंजनी महादेव मंदिर में शिवलिंग का आकार 30 फीट से ज्यादा ऊंचा होता है। यहाँ पर अंजनी महादेव से गिरता झरना बर्फ बनकर शिवलिंग का रूप धारण करता है। जैसे जैसे तापमान कम होता है वैसे-वैसे इसके आकार में लगातार बढ़ोतरी होती रहती है। भक्त भी इस झरने के जल से महादेव पर जलाभिषेक करते हैं। महादेव पर जलाभिषेक करने से महादेव भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।
यहाँ पर श्रद्धालु बर्फ पर नंगे पैर चलते हैं
शायद आप सोच भी नहीं सकते हैं कि आप बर्फ पर नंगे पैर चल सकते हैं। लेकिन आपको जरूर आश्चर्य होगा कि अंजनी महादेव के दर्शन के लिए भक्त बर्फ में नंगे पैर चलकर जाते हैं और इस तरह बर्फ में नंगे पैर जाने से आपको किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है। ये अंजनी महादेव की ही शक्तियों का असर होता है। किसी प्राकृतिक झरने द्वारा शिवलिंग के जलाभिषेक के इस खूबसूरत नज़ारे से आप अपनी नजरों को हटा नहीं पाओगे।
अंजनी महादेव को हिमाचल का अमरनाथ कहा जाता है
अंजनी महादेव पर सर्दियों में नवंबर से बर्फ़बारी की शुरुआत होती है और यहाँ का दृश्य बहुत ही सुंदर हो जाता है। चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है और यह नजारा आँखों में बस जाता है। यहाँ की ज्यादा ठंड से इस पवित्र झरने का जल शिवलिंग के ऊपर गिरकर जमने लग जाता है और फिर यह बर्फ विशाल शिवलिंग का रूप ले लेता है। फिर धीरे-धीरे फरवरी के अंत तक पवित्र शिवलिंग का आकार बढ़ता जाता है और इस शिवलिंग की ऊंचाई 35 फ़ीट से भी बढ़ जाती है। अंजनी महादेव के इसी प्राकृतिक शिवलिंग के कारण इसे हिमाचल का अमरनाथ कहा जाता है और यही वजह है कि सर्दियों में लोग इस पवित्र शिवलिंग के दर्शन के लिए जाते हैं।
यहाँ जाने के लिये सबसे अच्छा समय कौन सा है ?
यहाँ की प्राकृतिक ख़ूबसूरती इतनी अधिक है कि आप यहाँ कभी भी जा सकते हैं। यहाँ के प्राकृतिक नज़रों की खूबसूरती अलग ही दिखती है। यदि आप गर्मियों में यहाँ जाते हैं तो रास्ते में आपको चारों ओर हरियाली नजर आयेगी और साथ में सुन्दर कल कल बहती अंजनी ��दी आपको दिखाई देगी। वहीं यदि आप सर्दियों में यहाँ जाते हैं तो उस समय आपको यह पूरी जगह बर्फ से ढकी नजर आयेगी। क्योंकि इस समय आपको यहाँ पर अलौकिक और अद्भुत प्राकृतिक बर्फ से बना शिवलिंग देखने को मिलेगा। सर्दियों में जाते वक्त बस यह ध्यान रखें कि उस वक्त यहाँ का तापमान बहुत कम होता है इसलिए सावधानी से जायें।
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पारस: हिंदू धर्म में शंख का क्यों है इतना महत्व ?
पारस: हिंदू धर्म में शंख का महत्व
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक ��्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी शंख के महत्व के बारे में बताते हैं कि जिस घर में शंख होता है, वहां हमेशा देवी लक्ष्मी का वास होता है। शंख की पवित्रता और शुद्धता को आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि इसे सभी देवताओं ने स्वयं अपने हाथों में धारण किया है।
सनातन धर्म या हिंदू धर्म में शंख का विशेष महत्व है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हिंदू धर्म में शंख को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना गया है। क्योंकि सनातन परंपरा में जब भी कोई शुभ कार्य, पूजा पाठ, हवन आदि होता है तो शंख अवश्य बजाया जाता है। चलिये आज इस आर्टिकल में हम आपको शंख के महत्व और इसके लाभ के बारे में बताते हैं।
भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है
मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले 14 कीमती रत्नों से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शंख समुद्र मंथन में से निकले 14 रत्नों में से ��क है। भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है इसलिए भगवान श्री नारायण की पूजा में शंखनाद जरूर होता है। उत्तर पूर्व दिशा में शंख रखने से घर में खुशहाली आती है। भगवान विष्णु हमेशा अपने दाहिने हाथ में शंख पकड़े हुए दिखाई देते हैं। शंख हिंदू धर्म और धार्मिक परंपरा का एक अभिन्न अंग है। जब शंख बजाया जाता है तो ऐसा कहा जाता है कि इससे वातावरण की सारी नकारात्मकता दूर होती है और शंख की ध्वनि से वातावरण बुरे प्रभावों से मुक्त हो जाता है।
शंख सुख-समृद्धि और शुभता का कारक
पूजा पाठ या किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में शंख का उपयोग किया जाता है। शंख की ध्वनि जीवन में आशा का संचार करके बाधाओं को दूर करती है। पूजा करते समय शंख में रखा जल छिड़क कर स्थान की शुद्धि की जाती है। सनातन धर्म में किसी भी पूजा-पाठ के पहले और आखिरी में शंखनाद जरूर किया जाता है। पूजा-पाठ के साथ हर मांगलिक कार्यों के दौरान भी शंख बजाया जाता है। शंख को सुख-समृद्धि और शुभता का कारक माना गया है। शंख बजाए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
शंख के लाभ
शंख बजाने से हमारी सेहत भी अच्छी बनी रहती है।
हमारे फेफड़े मजबूत होते हैं और सांस लेने की समस्या दूर होती है।
नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और वातावरण शुद्ध होता है।
वास्तु शास्त्र में शंख का विशेष महत्व है।
शंख को घर में रखने से यश, उन्नति, कीर्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इससे आरोग्य वृद्धि, पुत्र प्राप्ति, पितृ दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है।
शंखनाद से अद्भुत शौर्य और शक्ति का अनुभव होता है इसलिए योद्धाओं द्रारा इसका प्रयोग किया जाता था।
शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
महत्व
पूजा-पाठ में शंख का विशेष महत्व माना जाता है। शंख का प्रयोग वास्तु दोषों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। इसके साथ ही शंख बजाने का संबंध स्वास्थ्य से भी है। शंख की पूजा के बारे में महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि तीर्थों में जाकर दर्शन करने से जो शुभ फल प्राप्त होता है, वह शंख को घर में रखने और दर्शन करने मात्र से ही पूरा हो जाता है। धार्मिक कार्यों में शंख बजाना बहुत ही अच्छा माना जाता है।
माना जाता है कि देवताओं को शंख की आवाज बहुत पसंद होती है इसलिए शंख की आवाज से प्रसन्न होकर भगवान भक्तों की हर इच्छा को पूरी करते हैं। वास्तु के अनुसार शंख बजाने से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में पूजा में न केवल शंख का इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि शंख की भी पूजा की जाती है।
महंत पारस भाई जी ने बताया कि अथर्ववेद में शंख को पापों का नाश करने वाला, लंबी आयु का दाता और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला बताया गया है।
महंत श्री पारस भाई जी बताते हैं कि शंख से घर में पॉजिटिव वाइब्स आती है। शंख से निकलने वाली ध्वनि से बीमारियों के कीटाणु खत्म होते हैं, जिससे आप स्वस्थ रहते हैं।
ध्वनि का प्रतीक माना जाता है शंख
शंख नाद ध्वनि का प्रतीक माना जाता है। शंख की ध्वनि आत्म नाद यानि आत्मा की आवाज की शिक्षा देती है। अध्यात्म में शंख ध्वनि, ओम ध्वनि के समान ही मानी गई है। शंख एकता, व्यवस्था और अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। शंख बजाने से घर की सभी बुराईयां नष्ट होती हैं और घर का वातावरण अच्छा रहता है। शंख जीव को आत्मा से जुड़ने का ज्ञान देता है।
पूजा में क्यों जरूरी माना जाता है शंख?
पूजा घर में दक्षिणावर्ती शंख रखना और बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि, पूजा या यज्ञ में शंख का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। शंख बजाने के बाद ही कोई भी पूजा सफल मानी जाती है। शंख बजाने से ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
सुबह-शाम शंख बजाने से आपका परिवार बुरी नजर से बचा रहता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि सभी समस्याओं और दोषों को दूर करती है। ऐसा माना जाता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां पर माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
शंख का पूजन कैसे करें
घर में नया शंख लाने के बाद उसे सबसे पहले किसी साफ बर्तन में रखकर अच्छी तरह से जल से साफ कर लें। इसके बाद शंख का गाय के कच्चे दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। अब शंख को पोंछकर चंदन, पुष्प, धूप और दीप से पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का स्मरण करें और हाथ जोड़कर निवेदन करें कि वो हमारे घर में आयें और इस शंख में आकर वास करें।
महान ज्योतिष महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हर दिन इसी तरह शंख की सच्चे भाव से पूजा करने के बाद ही इसे बजायें। क्योंकि ऐसा करने पर आपको अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
दूर होती हैं कई बीमारियां
कहते हैं रोजाना शंख बजाने से हमारी मांसपेशियां मजबूत होती हैं। जिस कारण पेट, छाती और गर्दन से जुड़ी बीमारियां दूर होती हैं। सा��� ही शंखनाद से श्वास लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। शंख बजाने से सांस की समस्याएं भी खत्म होती हैं। सांस की प्रक्रिया सही तरीके से चलती है और फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। इसके अलावा इससे थायराइड या बोलने संबंधित बीमारियों में राहत मिलती है।
जब हम शंख बजाते हैं तो तब हमारी मांसपेशियों में खिंचाव आता है जिसकी वजह से झुर्रियों की समस्या भी दूर होती है। शंख में कैल्शियम होता है। यदि आपको त्वचा से संबंधित कोई रोग है तो रात को शंख में पानी भरकर रख दें और फिर सुबह उस पानी से त्वचा पर मालिश करें। ऐसा करने पर त्वचा से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। शंख बजाने से हृदय रोग भी दूर होते हैं।
शंख बजाने से तनाव तो दूर होता ही है, साथ ही मन शांत रहता है। माना जाता है कि यदि आप प्रतिदिन शंख बजाते हैं तो दिल का दौरा पड़ने की संभावना काफी कम हो जाती है।
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