#चीन का प्राचीन धर्म
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हिंदू धर्म चीन का धर्म महाभारत संदर्भ
चीन और इसकी संस्कृति काफी रहस्यमयी है।चीन और उसके धर्म के बारे में जानना बहुत मुश्किल है, पीआरसी द्वारा क्या प्रसार करने की अनुमति दी ��ई है, जिसके परिणामस्वरूप हममें से कई लोगों के पास बौद्ध धर्म के बारे में एक अस्पष्ट विचार है जो चीन में प्रचलित है और हमने लाओ त्से को सुना है। लेकिन गौतम बुद्ध के आगमन से पहले चीन में किस धर्म का पालन किया जाता था? भगवान नरसिम्हा के शिलालेखों का एक पैनल मंदिर…
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शास्त्र भी यदि विश्राम न दे पाएँ तो समझना कुछ कमी है।
तुम भव-रस सुखाने की चेष्टा मत करो,तुम प्रेम-रस प्रकट करने की चेष्टा करो; भव-रस अपने आप सूख जायेगा।
भूतकाल को शोकपूर्ण दृष्टि से न देखो,वह पुन: लौट नहीं सकता बुद्धिमत्ता के साथ वर्त्तमान की उन्नति करो,वह तुम्हारा है।
संत का कहना है सभी प्राणियों में एक ही ईश्वर का वास होता है,ईश्वर के अलावा और दूसरा है कहाँ? लोभ और द्वेष में पड़कर जब हम किसी को कष्ट,पीड़ा पहुँचाने का प्रयास करते हैं
तो हमारा चिन्तन ईश्वर से हटकर संसार में भटकने - लगता है। हम मुक्ति पाने से वंचित हो जाते हैं।
अत: दूसरे को कष्ट व पीड़ा पहुँचाने का भाव छोड़कर उनमें प्रेम व ज्ञान का प्रकाश करके आत्म सुख का अनुभव प्राप्त करना ही जीवन का मूल्य है।
प्रभु,हमें ऐसे लोगों की संगति देना,जिनके भीतर संदेह हो जो कर्मवादी हों. सपने देखते हों,जिनमें उत्साह भरा हो और जो हर दिन ऐसे जीते हों,जैसे यह आपकी महिमा को समर्पित हो !
🇮🇳 भारत की असली ताकत 🇮🇳
जब हम भारत के अतीत को देखते हैं,तो जो बात हमारा ध्यान सर्वाधिक आकर्षित करती है,वह है उसकी विलक्षण ऊर्जस्विता; उसके जीवन और जीवन के आनंद की असीम शक्ति;
सृजनशीलता। कम से कम तीन हजार वर्षों से- वस्तुतः और भी लंबे समय से भारत प्रचुरता से और निरंतरता से खुले हाथों व अनंत बहुपक्षीयता के साथ सुजित करता आ रहा है गणतंत्रों,राज्यों और साम्राज्यों की दर्शनों,राष्टि-मीमांसाओं को विज्ञानों और पंथी को, समुदायों, समाजों और धार्मिक व्यवस्थाओं को,कानूनों व संहिताओं,व्यापारी,उद्योगों को यह सूची अनंत है और प्रत्येक मद में प्रायः क्रियाशीलता का बाहुल्य है। वह सृजन करता ही जाता है,करता ही जाता है और
न संतुष्ट होता है,न थकता है,वह उसका अंत नहीं करना चाहेगा। आराम करने के लिए स्थान की आवश्यकता भी नहीं लगती,न आलस्य अथवा खाली पड़े रहने के लिए समय की। वह अपनी सीमाओं के बाहर भी विस्तार करता है; उसके जहाज महासागर पार करते हैं और उसकी संपदा का उत्तम अतिरेक छलककर
जूडेआ,मिस्र और रोम पहुंचता है; उसके उपनिवेश उसकी कलाओं,उसके महाकाव्यों और उसके पंथों को द्वीप-समूहों में प्रसारित कर देते हैं;
उसके चिह्न मैसोपोटामिया की रेतों में पाए जाते हैं; उसके धर्म चीन और जापान को जीत लेते हैं और पश्चिम की दिशा में
फलस्तीन और सिकंदरिया तक फैल जाते हैं और उपनिषदों के स्वर तथा बौद्धों की उक्तियां ईसा मसीह के होठों पर पुनः गुंजरित हो उठते हैं। सर्वत्र, जैसी उसकी मिट्टी में,वैसी ही उसके कामों में भरपूर जीवन की
ऊर्जा की अति- विपुलता है। ...
वस्तुतः इस भरपूर ऊर्जा और भरपूर बौद्धिकता के बिना भारत इतना कुछ कभी नहीं कर पाता,जितना उसने अपनी आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के साथ किया। यह समझना भारी भूल है कि आध्यात्मिकता सबसे अधिक वहां पनपती है,जहां की भूमि दरिद्र होती है,जीवन अधमरा होता है और बुद्धि हतोत्साहित तथा भयाक्रांति होती है।
ऐसी जो आध्यात्मिकता पनपती है,वह विकृत यदि चाहे,तो भारत उन समस्याओं को ��िर्णायक मोड�� दे सकता है, जिनके ऊपर सारी मानव जाति परिश्रम कर रही है और लड़खड़ा रही है,क्योंकि उनके हल का सुराग उसके प्राचीन ज्ञान में है।
यदि चाहे,तो भारत उन समस्याओं को एक नया और निर्णायक मोड़ दे सकता है, जिनके ऊपर साgरी मानव जाति परिश्रम कर रही है और लड़खड़ा रही है,क्योंकि BHARAT है!
उनके हल का सुराग उसके प्राचीन ज्ञान में है।
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When was the first time the name 'India' was used for 'Bharat'?
'भारत' के लिए 'इंडिया' नाम का प्रयोग पहली बार कब किया गया था? पहली बार 'भारत' के लिए 'इंडिया' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया? " इंडिया" शब्द की उत्पत्ति "सिंधु" शब्द से हुई है, जो सिंधु नदी को संदर्भित करता है। "इंडिया " शब्द का प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है जब प्राचीन यूनानी इतिहासकारों और लेखकों ने सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को "इंडिया" या "इंडी" कहा था। "India" शब्द का सबसे पहला दर्ज उपयोग हेरोडोटस के लेखन में पाया जा सकता है, जो एक यूनानी इतिहासकार था जो 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में रहता था। हालाँकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि "भारत" शब्द, जैसा कि हम आज जानते हैं, का उपयोग पूरे उपमहाद्वीप को एक एकल राजनीतिक इकाई के रूप में संदर्भित करने के लिए नहीं किया गया था। इसके बजाय, यह मुख्य रूप से वर्तमान पाकिस्ता�� में सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को संदर्भित करता है। दूसरी ओर, " भारत" शब्द की जड़ें प्राचीन भारतीय ग्रंथों और परंपराओं में हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, "भारत " नाम पौराणिक राजा भरत से लिया गया था, जो प्राचीन भारत के शासक थे और भारतीय महाकाव्य, महाभारत में एक प्रमुख व्यक्ति थे। "भारतवर्ष" या " भारत" नाम का प्रयोग प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए किया गया था। भारतीय संदर्भ में , पूरे देश को संदर्भित करने के लिए "भारत" शब्द का उपयोग प्राचीन काल से किया जा सकता है। इस शब्द का प्रयोग विभिन्न प्राचीन ग्रंथों और ग्रंथों में किया गया है, जो पूरे इतिहास में इसके उपयोग की निरंतरता को दर्शाता है। आधुनिक समय में देश का आधिकारिक नाम अंग्रेजी में "इंडिया" और अंग्रेजी में "भारत" है। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में . 1950 में अपनाए गए भारत के संविधान में औपचारिक रूप से अंग्रेजी में "इंडिया" और हिंदी में "भारत" को देश के नाम के रूप में मान्यता दी गई। देश की विविध भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को प्रतिबिंबित करने के लिए दोहरे नामकरण को चुना गया था। "इंडिया" और "भारत" को अपनाने का निर्णय "जैसा कि आधिकारिक नाम देश के समृद्ध इतिहास और भाषाई विविधता को स्वीकार करने और अपनाने का एक सचेत प्रयास था। दोनों नाम महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं, जो देश की पहचान के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। "भारत" प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की विरासत रखता है । , जबकि "भारत" भारतीय सभ्यता की ऐतिहासिक निरंतरता और प्राचीन जड़ों का प्रतीक है। "इंडिया" शब्द का प्रयोग भारत के संदर्भ में किये जाने के ऐतिहासिक साक्ष्य लेकिन ब्रिटिशों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए " इंडिया" शब्द का उपयोग किए जाने के सीमित ऐतिहासिक साक्ष्य हैं । जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "इंडिया" शब्द "सिंधु" शब्द से लिया गया है, जो सिंधु नदी का संदर्भ देता है। हेरोडोटस जैसे प्राचीन यूनानी इतिहासकारों और बाद के लेखकों ने सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र का वर्णन करने के लिए "इंडिया" या "इंडिक" शब्द का इस्तेमाल किया , जो वर्तमान पाकिस्तान में है। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से पहले, भारतीय उपमहाद्वीप को अलग-अलग नामों से जाना जाता था और इसकी विविध सांस्कृतिक और भाषाई पहचान थी। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "भारत" शब्द का उपयोग प्राचीन भारतीय ग्रंथों और परंपराओं में किया गया था, लेकिन उपमहाद्वीप में विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अन्य नाम भी थे। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से पहले भारत के नाम से जाने जाने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के ऐतिहासिक संदर्भ क्या हैं? प्राचीन भारत: प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप को विभिन्न क्षेत्रों और सभ्यताओं में विभिन्न नामों से जाना जाता था। वेदों और उपनिषदों जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस क्षेत्र को महान राजा भरत के नाम पर "भारत वर्ष" या " भारत खंड " कहा गया है । फ़ारसी और अरबी इतिहासकार, जिनका व्यापार और यात्रा के माध्यम से भारतीय उपमहाद्वीप से संपर्क था, उन्होंने इस क्षेत्र को "हिंद" या "अल-हिंद" कहा। फ़ारसी प्रत्यय "-स्तान" के साथ "हिंद" को मिलाकर "हिंदुस्तान" शब्द भी उभरा, जिसका अर्थ है भूमि या देश। मेगस्थनीज जैसे यूनानी इतिहासकार, जिन्होंने ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार का दौरा किया था, ने अपने लेखन में इस क्षेत्र को "इंडिका" कहा है। शास्त्रीय काल: शास्त्रीय काल के दौरान, भारतीय उपमहाद्वीप में कई शक्तिशाली साम्राज्य और राज्य थे। चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी में गुप्त साम्राज्य को प्राचीन ग्रंथों में "आर्यावर्त" के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ आर्यों की भूमि था। दक्षिण में चोल, चालुक्य और राष्ट्रकूट राजवंशों ने अपने डोमेन को "द्रविड़" या "तमिलकम" कहा। इस्लामी काल: मध्ययुगीन काल के दौरान, भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न इस्लामी राजवंशों का उदय हुआ। फ़ारसी और अरबी इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को संदर्भित करने के लिए "हिंद" या "अल-हिंद" शब्द का उपयोग करना जारी रखा। 13वीं शताब्दी में स्थापित दिल्ली सल्तनत अपने क्षेत्र को "हिंदुस्तान" कहती थी। यूरोपीय खोजकर्ता: भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा करने वाले यूरोपीय खोजकर्ताओं और यात्रियों ने इस क्षेत्र को संदर्भित करने के लिए "भारत" शब्द के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल किया। इतालवी खोजकर्ता मार्को पोलो ने अपने लेखों में भारत को "चिपंगु" कहा है, यह शब्द उन्होंने एशिया के विभिन्न क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया था। औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश सहित यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के आगमन के साथ, "भारत" शब्द को भौगोलिक और राजनीतिक पहचान के रूप में प्रमुखता मिली। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी उपस्थिति स्थापित की, और "ब्रिटिश इंडिया" शब्द का प्रयोग आम तौर पर उनके नियंत्रण वाले क्षेत्रों के लिए किया जाने लगा। मुगल साम्राज्य: मुगल साम्राज्य, जिसने 16वीं से 18वीं शताब्दी तक भारतीय उपमहाद्वीप के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर शासन किया था, ने फ़ारसी अभिलेखों में अपने डोमेन को "हिंदुस्तान" के रूप में संदर्भित किया। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जबकि "भारत" शब्द यूरोपीय और फारसी अभिलेखों में उभरा, भारतीय उपमहाद्वीप एक विविध और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र था, जिसमें विभिन्न सभ्यताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले विभिन्न नाम थे। "इंडिया" शब्द को औपनिवेशिक युग में प्रमुखता मिली और आधुनिक समय में इसे देश के आधिकारिक नाम के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त हुई। India का मतलब क्या है? "india" शब्द के उस संदर्भ के आधार पर कई अर्थ हैं जिसमें इसका उपयोग किया गया है। "india" के प्राथमिक अर्थ इस प्रकार हैं: भौगोलिक अर्थ: भारत दक्षिण एशिया में स्थित एक देश है, जिसकी सीमा उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में चीन और नेपाल, उत्तर पूर्व में भूटान और पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार से लगती है। यह दक्षिण में हिंद महासागर और दक्षिण पश्चिम में अरब सागर से घिरा है। "india" शब्द पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करता है, जिसमें इसके भूभाग और आसपास के क्षेत्रीय जल भी श��मिल हैं। राजनीतिक अर्थ: भारत /india एक संप्रभु राष्ट्र और एक संघीय संसदीय लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसे 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता मिली और इसे भारत के डोमिनियन के ��ूप में जाना जाने लगा। 26 जनवरी, 1950 को भारत ने अपना संविधान अपनाया और यह आधिकारिक तौर पर भारत गणराज्य बन गया। एक राजनीतिक इकाई के रूप में, भारत/india 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों से बना है। ऐतिहासिक अर्थ: ऐतिहासिक रूप से, "india" शब्द का उपयोग समग्र रूप से भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए किया गया है, जिसमें आधुनिक देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्यांमार और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल हैं। प्राचीन काल में, "india/indus" शब्द का उपयोग विभिन्न संस्कृतियों द्वारा सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र का वर्णन करने के लिए किया जाता था। सांस्कृतिक और सभ्यतागत अर्थ: भारत/india अपनी हजारों साल पुरानी समृद्ध सांस्कृतिक और सभ्यतागत विरासत के लिए जाना जाता है। यह हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म और इस्लाम सहित विभिन्न धर्मों के साथ-साथ विविध प्रकार की भाषाओं, कला, संगीत, साहित्य और परंपराओं का घर है। आर्थिक अर्थ: भारत/india दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स, विनिर्माण, कृषि और सेवाओं जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपने योगदान के लिए जाना जाता है। प्रतीकात्मक अर्थ: भारत को अक्सर विविधता, एकता और लचीलेपन के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह अपने जीवंत त्योहारों, विविध परिदृश्यों और विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए मनाया जाता है। कुल मिलाकर, "india" शब्द विविध अर्थों वाली एक महत्वपूर्ण और बहुआयामी इकाई का प्रतिनिधित्व करता है, जो वैश्विक मंच पर इसके ऐतिहासिक, भौगोलिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व को दर्शाता है। ऐतिहासिक सन्दर्भ विशेष रूप से 1800 से पहले या ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से पहले भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए "india" का उपयोग करते हैं जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "india" शब्द "सिंधु" शब्द से लिया गया था और शुरू में सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को संदर्भित करता था, जो वर्तमान पाकिस्तान में है. इसे बाद में व्यापक भारतीय उपमहाद्वीप का वर्णन करने के लिए विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं द्वारा अपनाया गया। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से पहले, भारतीय उपमहाद्वीप को विभिन्न नामों से जाना जाता था और इसकी विविध सांस्कृतिक और भाषाई पहचान थी। "india" शब्द का प्रयोग प्राचीन भारतीय ग्रंथों और परंपराओं में किया जाता था, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों और सभ्यताओं द्वारा अन्य नामों का भी प्रयोग किया जाता था। जैसा कि कहा जा रहा है, यहां 1800 से पहले भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ ऐतिहासिक संदर्भ दिए गए हैं: हेरोडोटस (5वीं शताब्दी ईसा पूर्व): प्राचीन यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने अपने काम "इतिहास" में सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को " इंडिया" या "इंडिक" कहा है। स्ट्रैबो (पहली शताब्दी ईसा पूर्व - पहली शताब्दी ईस्वी): यूनानी भूगोलवेत्ता और इतिहासकार स्ट्रैबो ने अपने लेखन में "india" का उल्लेख किया है , इसे फारस के पूर्व में स्थित भूमि के रूप में वर्णित किया है। प्लिनी द एल्डर (प्रथम शताब्दी सीई): रोमन लेखक प्लिनी द एल्डर ने अपने काम "नेचुरल हिस्ट्री" में "india" का उल्लेख रोमन साम्राज्य की पूर्वी सीमाओं से परे एक सुदूर भूमि के रूप में किया है। टॉलेमी (दूसरी शताब्दी सीई): ग्रीको-मिस्र के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और भूगोलवेत्ता क्लॉडियस टॉलेमी ने अपने प्रभावशाली काम "जियोग���राफिया" में भारतीय उपमहाद्वीप को " india" के रूप में संदर्भित किया। चीनी अभिलेख (विभिन्न तिथियाँ): चीनी ऐतिहासिक अभिलेख, जैसे कि हान राजवंश और तांग राजवंश के, भारतीय उपमहाद्वीप को " यिन्दु" या "तियानझू" ("Yindu" or "Tianzhu.")के रूप में संदर्भित करते हैं। अल-बिरूनी (11वीं शताब्दी सीई): फ़ारसी विद्वान और बहुज्ञ अल-बिरूनी ने अपने कार्यों में भारतीय उपमहाद्वीप को "hind" के रूप में संदर्भित किया। मार्को पोलो (13वीं शताब्दी ई.): इतालवी खोजकर्ता मार्को पोलो ने अपनी यात्राओं के विवरण में भारतीय उपमहाद्वीप को "india" कहा था। इब्न बतूता (14वीं शताब्दी ई.): मोरक्को के विद्वान और खोजकर्ता इब्न बतूता ने अपने लेखन में भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए "हिंद" शब्द का इस्तेमाल किया। तैमूर (14वीं शताब्दी ई.): मध्य एशियाई विजेता तैमूर ने अपने संस्मरणों में भारतीय उपमहाद्वीप को "हिंदुस्तान" कहा है। बाबरनामा (16वीं शताब्दी ई.): मुगल सम्राट बाबर की आत्मकथा, "बाबरनामा" में भारतीय उपमहाद्वीप को "हिंदुस्तान" के रूप में संदर्भित किया गया है। जबकि इन ऐतिहासिक संदर्भों में भारतीय उपमहाद्वीप का उल्लेख है, यह समझना आवश्यक है कि "india" शब्द का उपयोग विभिन्न संदर्भों में किया गया था और अभी तक पूरे क्षेत्र के लिए एकमात्र नाम के रूप में मजबूती से स्थापित नहीं हुआ था। भारतीय उपमहाद्वीप के प्राथमिक नाम के रूप में "इंडिया" का उपयोग ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान और उसके बाद अधिक प्रचलित हो गया।
"अंग्रेजों ने आमतौर पर 'भारत' के बजाय 'इंडिया' शब्द का इस्तेमाल क्यों किया?
ब्रिटिश आमतौर पर कई कारणों से "भारत" के बजाय "इंडिया" शब्द का इस्तेमाल करते थे, जो मुख्य रूप से ऐतिहासिक संदर्भ, भाषाई विचारों और औपनिवेशिक प्रभावों से संबंधित थे। यह समझना आवश्यक है कि भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल ने अपने शासन के दौरान और उसके बाद अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में "इंडिया" शब्द के उपयोग को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया। यहां कुछ कारण बताए गए हैं कि अंग्रेजों ने "भारत" के बजाय " इंडिया" शब्द का इस्तेमाल क्यों किया : ऐतिहासिक उपयोग: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "भारत" शब्द का उपयोग प्राचीन ग्रीक और फ़ारसी इतिहासकारों सहित विभिन्न संस्कृतियों द्वारा, अंग्रेजों के भारत में आने से पहले ही सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को संदर्भित करने के लिए किया गया था। अंग्रेजों ने इस ऐतिहासिक उपयोग को जारी रखा और भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए इस शब्द को अपनाया। औपनिवेशिक विरासत: ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश क्राउन ने भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल क्षेत्रों पर शासन किया। उन्होंने अपनी प्रशासनिक, राजनीतिक और आर्थिक संरचनाएँ स्थापित कीं और "भारत" शब्द उनके नियंत्रण वाले क्षेत्रों का पर्याय बन गया। भाषाई सुवि��ा: अंग्रेजी में "इंडिया" शब्द " भारत " की तुलना में छोटा और उच्चारण में आसान है। यह भारत और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन दोनों में अंग्रेजी भाषा के दस्तावेजों, आध���कारिक रिकॉर्ड और संचार में क्षेत्र का सामान्य नाम बन गया। प्रशासन में एकरूपता: अंग्रेजों का लक्ष्य अपने शासन के दौरान शासन और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना था। क्षेत्र के लिए एक सुसंगत नाम, यानी, "india" का उपयोग करने से आधिकारिक संचार और प्रशासन में एकरूपता बनाने में मदद मिली। अंतर्राष्ट्रीय संबंध: "india" शब्द को भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता और उपयोग किया गया था । ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से पहले ही यह विभिन्न यूरोपीय शक्तियों, व्यापारियों और खोजकर्ताओं के बीच इस नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश राज की विरासत: ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत ने भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति, भाषा, शासन और शिक्षा प्रणाली को गहराई से प्रभावित किया। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी , आधिकारिक दस्तावेजों, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और लोकप्रिय मीडिया सहित विभिन्न संदर्भों में " इंडिया" नाम व्यापक रूप से उपयोग में रहा। विदेशियों के लिए सुविधा: "इंडिया" शब्द उन विदेशियों के लिए अधिक परिचित और पहचानने योग्य है जो भारत की स्थानीय भाषाओं में "india" शब्द से परिचित नहीं हो सकते हैं । यह देश के लिए एक सामान्य और आसानी से पहचाने जाने योग्य नाम प्रदान करता है। (नवीन सिन्हा) Read the full article
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डॉ एनी बेसेन्ट सामान्य जानकारी के अनुसार एक अग्रणी आध्यात्मिक, थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक एवं प्रसिद्ध वक्ता थी। एवं कुछ तथ्यों के अनुसार संभवतः ईसाई मिशनरी थी। सन 1917 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा भी बनीं। इन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की ।
💥जन्म : १ अक्टूबर १८४७
लन्दन कलफम
💥मृत्यु : 20 सितम्बर 1933 (उम्र 85)
अड्यार मद्रास
परिचय और कार्य : एनी बेसेन्ट भारतीय वर्ण व्यवस्था की प्रशंसक थीं। डॉ॰ एनी बेसेन्ट की मान्यता थी कि बिना राजनैतिक स्वतंत्रता के इन सभी कठिनाइयों का समाधान सम्भव नहीं है।
डॉ॰ एनी बेसेन्ट के कथन और विचारों पर कुछ तथ्य :
(१) डॉ. एनी बेसेन्ट का विचार था कि अच्छाई के मार्ग का निर्धारण बिना अध्यात्म के संभव नहीं। कल्याणकारी जीवन प्राप्त करने के लिये मनुष्य की इच्छाओं को दैवी इच्छा के अधीन होना चाहिये। राष्ट्र का निर्माण एवं विकास तभी सम्भव है जब उस देश के विभिन्न धर्मों, मान्यताओं एवं संस्कृतियों में एकता स्थापित हो। सच्चे धर्म का ज्ञान आध्यात्मिक चेतना द्वारा ही म��लता है। (उनके इन विचारों को महात्मा गाँधी ने भी स्वीकार किया।)
(२) प्राचीन भारत की सभ्यता एवं संस्कृति का स्वरूप आध्यात्मिक था। यही आध्यात्मिकता उस समय के भारतीयों की निधि थी।
(३) बेसेन्ट का निश्चित मत था कि वह पिछले जन्म में हिन्दू थीं। वह धर्म और विज्ञान में कोई भेद नहीं मानती थीं। उन्होंने भारतीय धर्म का अध्ययन किया। उनका भगवद्गीता का अनुवाद 'थाट्स आन दी स्टडी ऑफ दी भगवद्गीता' है।
(४) "वे यह मानती थीं कि विश्व को मार्ग दर्शन करने की क्षमता केवल भारत में निहित है। "
(५) उस समय विदेश यात्रा को अधार्मिक समझा जाता था। उन्होंने बताया कि प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि श्याम, जावा, सुमात्रा, कम्बोज, लंका, तिब्बत तथा चीन आदि देशों में हिन्दू राज्य के चिह्न पाये गये हैं। अत: हिन्दूओं की विदेश यात्रा प्रमाणित हो जाती है। उन्होंने विदेश यात्रा को प्रोत्साहन दिये जाने का समर्थन किया। उनके अनुसार आध्यात्मिक बुद्धि एवं शारीरिक शक्ति के सम्मिश्रण से राष्ट्र का उत्थान करना प्राचीन भारत की विशेषता रही है।
(६) डॉ एनी बेसेन्ट का विचार था कि शताब्दियों से ईसाई धर्म के नेता स्त्रियों को 'आवश्यक बुराई' कहते चले आ रहे हैं और चर्च के सबसे महान सेन्ट वे हैं जो स्त्रियों से सर्वाधिक घृणा करते हैं। अपने 'क्रिस्चियानिटी' नामक ग्रन्थ में वे बताती हैं कि वे गास्पेल को विश्वसनीय क्यों नहीं मानतीं हैं।
(७) डॉ . एनी बेसेन्ट ने वैज्ञानिक तथा एतिहासिक दृष्टिकोण से स्पष्ट कहा है - " हिन्दू धर्म (सनातन वैदिक धर्म) के सामने पाश्चात्य सभ्यता अत्यन्त हीन ज्ञात होती है । ज्ञान की कुञ्जी सदा से हिन्दुओं के हाथ में रही है । "
💥 सुकरात और अरस्तू पाश्चात्यो के सबसे बड़े विचारक और दार्शनिक है । वे कहते हैं- “ स्त्री शरीर में आत्मा नही होती । स्त्री ऐसे होती है जैसे मेज या कुरसी । जिस तरह मेज या कुरसी को कही भी उठाकर फेंका जा सकता है , स्त्री को भी कही भी उठाकर फेंका जा सकता है । स्त्री ऐसे होती है जैसे कोई कपडा । जब जरूरत पड़ी उतार के फेंक दिया , जब जरूरत पड़ी पहन लिया । कपडा शरिर पर हमेशा धारण किया नही जा सकता इसलिए स्त्री को भी हर समय साथ नही रखा जा सकता । उसे कपडे की तरह पहनना , फेंकना और बदलते रहना चाहिए । "
((also Ref : History of Animals Aristotle & Socrates Words of Wisdom.))
स्पष्ट है कि पाश्चात्यो के सर्वोच्च दार्शनिक और विचारकों के तुलना में ��मारे निकृष्ट से निकृष्ट दार्शनिक भी उनसे अनेक गुणा अतित्योत्तम ही सिद्ध होंगे....पाशात्य के नितांत असभ्य जंगली गंवार uncivilized होने का जीवंत साक्ष्य है रखैल या लिव इन.. जहा परिवार नही है और विवाह नही बिल्कुल पशु... फटे कपड़े, शौचालय का न होना (भारत में प्राचीन शौचालय है, सिंधु घाटी से लेकर आज तक ), शौच करने पर बैल कुत्ते आदि जानवरों के भांती गुदा न धोना, खडे होकर भोजन करना, हर काम बिलकुल विज्ञान के विरूद्ध, 14 वी शताब्दी तक जंगली रहना, वन्य पशु के भांति रहना। जब भारत में लाखों विद्यालय थे तब वहा एक भी स्कूल नही था। इस प्रकार पाश्चात्य फटीचर वस्त्र विहिन, मानवता विहिन असभ्य जंगली थे। उनको चरित्र और मानवता सनातन सभ्यता या भारत कि देन है।
आज से केवल कुछ साल पहले जंगल के जानवरों और पाश्चात्यो मे कोई अंतर न था। अभद्रभुषा, कुत्ता कुत्तियो सी लिव इन उक्त अवस्था के जीवंत साक्ष्य है। पाश्चात्य और कुत्तो के जीवनशैली मे तब भी ९९. ९% साम्य था। आज भारत उनका अनुकरणीय होकर पिछड रहा है। आधुनिकता अर्थात् जंगली पाश्चात्य पशुओं का अंधाधुंधीकरण नही अपितु सत्य के कसौटी पर वैज्ञानिक अध्यात्म के साथ सनातन शाश्वत संस्कृति को धर्म को धारण करना सभ्यता है। सनातन पूर्ण विज्ञान होता है, unique होता है, ईश्वर की हर वस्तु unique है, सनातन धर्म संस्कृति ईश्वरीय है, जैसे चंद्रमा, सुर्य, पृथ्वी..
भारत में जो बौद्धिक दास सनातन को कहते हैं पुरानी परंपरा है , इसे छोड देना चाहिए वे मुख से खाना छोड़ दें , नेत्र से देखना और कानो से श्रवण भी छोड़ दे क्योंकि ये सब भी पुरानी परंपरा है और ये काम किसी और इन्द्रियों से करके दिखाए । सुर्य , चंद्रमा , जल , वायु भी पुराणे है । पृथ्वी भी पुराणी हैं इन सभी को त्यागकर के किसी नये लोक मे बस जाएं । सनातन तो सनातन है , सत्य है , परम है , प्राचीन होकर सदैव नवीन है शाश्वत है इसलिए उसे सनातन कहते हैं ।
भारतीय संस्कृति के बारे में अपना मत प्रकट करते हुए मि . डेलमार ( न्यूयार्क ) ने लिखा है - “ पश्चिमी संसार जिन बातों पर अभिमान करता है वे असल में भारतवर्ष से ही वहाँ गई हैं । और तो और तरह तरह के फल - फूल , पेड़ - पौधे , जो इस समय यूरोप में पैदा होते हैं हिन्दुस्तान में लाकर वहाँ उगाये गये थे । मलमल रेशम , घोड़े , टीन इनके साथ - साथ लोहा ओर सीसे का प्रचार भी यूरोप में भारत से ही हुआ । केवल इतना ही नहीं ज्योतिष , वैद्यक अंकगणित , चित्रकारी ओर कानून भी भारत वासियों ने ही यूरोप को सिखलाया ।"
~ (Ref . Akhanda jyoti . Sept. 1964)
(( #इतिहास #धर्म #भारतीयसंस्कृति))
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भारतीय संस्कृति की विश्व को देन (जावा, मॉरीशस)
भारतीय संस्कृति की विश्व को देन (जावा, मॉरीशस) ‘भारतीय संस्कृति के निरंतरअनुदान’ एक ऐतिहासिक सत्य हैं। अमेरिका, चीन, जापान, रूस, कम्बोड़िया, इण्डोनेशिया, जावा, श्रीलंका, मिश्र, मॉरीशस आदि अनेक देशों में आज भी भारतीय संस्कृति के चिह्न-प्रतीक इसकी विशाल यात्रा एंव मानवतावादी संदेश को चरितार्थ करते हैं।
जावा- प्रसिद्ध इतिहासकार एच.एल.मिल ने सप्रमाण सिद्ध किया हैं कि जावा निवासी रक्त की दृष्टि से भारतीयों के वंशज हैं। उनकी धार्मिक मान्यतायें ब्राह्मण धर्म की जनकल्याण, आत्मकल्याण, की भावनाओं से प्रभावित हैं। जावा की भाषा पर संस्कृत का स्पष्ट प्रभाव हैं। इतिहासकार टॉलेमी के अनुशार दूसरी शताब्दी ��ें भारत और जावा में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध थे। पश्चिमी जावा में हिंदू राज्य की स्थापना के सम्बन्ध में अधिक जानकारी हमें राजा पूर्णवर्मन के चार संस्कृत शिलालेखों से प्राप्त होती हैं। प्राचीन जावानी भाषा में लिखा रामायण ग्रंथ हैं- यह हिन्दू जावानी साहित्य की सबसे सुन्दर एवं प्रसिद्ध रचना है, इसमें अग्नि परीक्षा के बाद सीता माता और राम का मिलन बताया हैं। जावा का दूसरा महत्वपूर्ण प्रसिद्ध भारतीय ग्रंथ महाभारत का गद्य अनुवाद है। महाभारत का अनुवाद जावानी भाषा में होने से देश में अधिक लोकप्रिय हो गया। जैसे-जैसे समय बीतता ��या भारतीय धर्म ने अपने पूर्ण प्रभाव की विजय पताका स्वर्ण भूमी में फहरा दी। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि वे भारतीय उपनिवेश - श्रद्धा, विस्वास एवं धार्मिक क्रियाओं की दृष्टि से अपनी मातृभूमी भारत की प्रायःपुर्ण प्रतिलिपि थे।
आठवीं शताब्दी में ब्राह्मण धर्म का पौराणिक स्वरूप् जावा में दृड़ता के साथ जमा था। इसके अनुसार त्रिवेदी (ब्रह्म, विष्णु एवं शिव), उनकी दिव्य शक्तियाँ तथा उनसे सम्बन्धित अनेकें देवी देवताओं की पूजा का विधान हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता हैं कि हिन्दुओं के प्रायः सभी देवताओं की मूर्तियां जावा में मिलती हैं।
जावा में भारतीय ग्रंथों पर आधारित धार्मिक साहित्य प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हैं । इससें प्रकट होता हैं कि पौराणिक हिन्दू धर्म के अध्यात्म ज्ञान धार्मिक मान्यताओं एवं दर्शन ने जावा में अपना पूर्ण प्रभाव जमा लिया था।
मॉरीशस - छोटा भारत- अफ्रिका महाद्वीप के अन्तर्गत 29 मील चौड़ा, 39 मील लम्बा मॉरीशस एक छोटा-सा टापू हैं। यह द्वीप भारत सें लगभग 2 हजार मील, मैडागास्कर से 500 मील तथा अफ्रीकी तट से सवा हजार मील दूर है। वर्ष 1729 ई. में भारतीयों का एक दल श्रमिकों के रूप में वहाँ पहुँचा ।
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भारत का कालक्रम - 1
500,000-10,000 ईसा पूर्व पाषाण काल संस्कृति – 100,000 ईसा पूर्व अफ्रीका में होमो सेपियंस सेपियंस (Homo Sapiens Sapiens) का उदय|
10,000-4000 ईसा पूर्व मध्य पाषाण संस्कृति|
4000 ईसा पूर्व नवपाषाण काल|
3200 ईसा पूर्व सुमेर निवासियों (Sumerian) ने विश्व की पहली सभ्यता की स्थापना की|
3000-2600 ईसा पूर्व हड़प्पा सभ्यता की शुरुआत।
2600-2500 ईसा पूर्व हड़प्पा सभ्यता अपनी सबसे विकसित अवस्था में- 2200 ईसा पूर्व चीनी सभ्यता का उदय ।
2000-1900 ईसा पूर्व हड़प्पा सभ्यता का पतन।
2000-1500 ईसा पूर्व उत्तर-पश्चिम भारत में आर्यों का आक्रमण।
1500-500 ईसा पूर्व वैदिक युग का प्रारंभ।
1200-900 ईसा पूर्व चार संहिताओं अथर्ववेद, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद (Atharva Veda, Rig Veda, Sama Veda, Yajur Veda) की रचना हुई – 1200 ईसा पूर्व हिब्रू सभ्यता (Hebrew civilization) का उदय।
1000 ईसा पूर्व आर्यों ने गंगा की घटी में प्रवास किया।
800-700 ईसा पूर्व उ��निषदों की रचना हुई।
600 ईसा पूर्व ऋग्वेद में सबसे प्राचीन तिथि किखी गयी।
600 ईसा पूर्व सोलह महान राज्यों (महाजनपद) का उदय।
563-483 ईसा पूर्व बुद्ध का जीवन काल।
540-493 ईसा पूर्व बिम्बिसार का शासनकाल – 509 ईसा पूर्व रोमन गणराज्य की स्थापना।
540-468 ईसा पूर्व चौबीसवें जैन तीर्थंकर महावीर का जीवन काल
527 ईसा पूर्व बुद्ध ने पहला धर्मोपदेश दिया।
517 ईसा पूर्व फारस (Persia) के हख़ामनी साम्राज्य (Achaemenid empire) ने गांधार पर कब्जा कर लिया।
500 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में मगध राज्य का उदय।
490-459 ईसा पूर्व अजातशत्रु का शासनकाल।
400 ईसा पूर्व महाभारत और रामायण की रचना।
362-321 ईसा पूर्व उत्तर और मध्य भारत में नंद वंश का शासन।
326 ईसा पूर्व सिकंदर ने सिंधु नदी को पार किया, सिकंदर और पोरस के बीच हायडापेस का युद्ध- प्राचीन ग्रीक भाषा में झेलम नदी को हायडापेस (Hydaspes) और ऋग्वेद में वितस्ता कहा गया है।
321-297 ईसा पूर्व मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त (Chandragupta) का शासनकाल।
321-296 ईसा पूर्व अर्थ शास्त्र की रचना।
302 ईसा पूर्व यूनानी राजदूत मेगस्थनीस (Megasthenes) चंद्रगुप्त के दरबार में आया, जिसे यूनानी राजा सेल्यूकस प्रथम (Hellenistic king Seleucus I) ने भेजा था| मेगस्थनीस ने इंडिका (Indica) की भी रचना की थी| – चीन में महान दीवार का निर्माण।
297-272 ईसा पूर्व बिन्दुसार का शासनकाल।
268-231 ईसा पूर्व अशोक का शासनकाल।
260 ईसा पूर्व अशोक द्वारा कलिंग की विजय।
257-256 ईसा पूर्व अशोक के कलिंग शिलालेखों के साथ, 14 शिलालेखों का निर्माण।
251 ईसा पूर्व अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र को सीलोन (श्रीलंका) बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा।
250-240 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगीति।
242 ईसा पूर्व अशोक के सात स्तंभ शिलालेखों का निर्माण।
240-232 ईसा पूर्व लघु स्तंभ शिलालेखों का निर्माण।
184 ईसा पूर्व अंतिम मौर्य राजा ब्रिह्दार्थ की मृत्यु, शुंग राजवंश के राजा पुष्यमित्र का उदय।
73 ईसा पूर्व अंतिम शुंग राजवंश के राजा देवभूति की हत्या।
भारतीय-बैक्ट्रियंस और उत्तर पश्चिम भारत Indo-Bactrians And Northwest India
250 ईसा पूर्व बक्ट्रियन यूनानियों द्वारा ओक्सस नदी (Amu Darya, greek- Oxus River) के मैदानों पर राज्य की स्थापना।
200-190 ईसा पूर्व देमेत्रियस (Demetrius) भारतीयों का राजा बना|
166-155 ईसा पूर्व सबसे प्रसिद्ध इंडो-ग्रीक शासक मिनांडर (Menander) का शासन काल।
150 ईसा पूर्व गांधार कला का विकास एवं प्रसार।
140-130 ईसा पूर्व अंतिम भारतीय-बक्ट्रियन राजा हेलिओक्लीज (Heliokles) का शासन|
94 ईसा पूर्व उत्तर-पश्चिम भारत में मॉएस (Maues), शक् या इंडो-पार्थियन राजाओं का शासन।
78 ईसवी कनिष्क ने “गांधार के राजा” के र���प में कुषाण वंश की स्थापना की।
दक्षिण और मध्य भारत South And Central India
50 ईसा पूर्व- 50 ईसवी रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार अपनी ऊँचाईयों पर।
5 ईसा पूर्व-ईस्वी 29, यीशु का जीवन और ईसाई धर्म का उदय।
27 ईसा पूर्व-2 ईस्वी सातवाहन (आंध्र) राजवंश।
68 ईसवी, मायलापुर, मद्रास में सेंट थॉमस का मौत।
150 ईसवी, रुद्र्मन ने पश्चिमी भारत में शक् सत्ता की स्थापना की।
174-203 ईसा पूर्व यजन के अंतर्गत आन्ध्र में विकसित राज्य की स्थापना।
225 ईसा पूर्व सातवाहन वंश (आन्ध्र प्रदेश) का अंत।
255 ईसा पूर्व-मध्य 6 वीं शताब्दी बुंदेलखंड के वाकाटक का शासन।
325 ईसा पूर्व पल्लव वंश की स्थापना।
गुप्त वंश Gupta Dynasty
320-335 ईसवी चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा गुप्त साम्राज्य की स्थापना।
320 ईसवी पुराणों की रचना।
335-375 ईसवी समुद्रगुप्त का शासनकाल।
375–415 ईसवी चंद्रगुप्त द्वितीय या चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन के दौरान गुप्त वंश का स्वर्ण काल। चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में कालिदास भी रहा करते थे।
405-411 ईसवी चीनी तीर्थयात्री फ़ह्सिएन (Fa-hsien) का भारत में चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आगमन।
454 ईसवी जैन धर्म की वल्लभी परिषद् का आयोजन – श्वेतांबर और दिगंबर दो अलग संप्रदायों में उदभव।
455-467 ईसवी स्कन्दगुप्त का शासनकाल, हूणों का उत्तर पश्चिमी भारत पर आक्रमण।
543-566 ईसवी पुलकेशिन प्रथम के तहत बादामी के चालुक्यों के राजवंश की स्थापना।
560-574 ईसवी सिम्हाविष्णु द्वारा कांची में पल्लव राजवंश की स्थापना।
600-630 ईसवी महेन्द्रवर्मन के तहत पल्लव शक्ति का का विकास – 570-632 ईसवी मोह्हमद साहब का जीवन काल, 7-8 वीं शताब्दी इस्लाम की वृद्धि और प्रसार
609-642 ईसवी पुलकेशिन द्वितीय के अंतर्गत चालुक्य शक्ति का विस्तार, दक्षिण भारत में प्रभुत्व के लिए पल्लव और चालुक्यों के बीच संघर्ष|
752 ईसवी-10वीं के बीच राष्ट्र्कूटों द्वारा एलोरा गुफाओं का निर्माण।
756-757 ईसवी एलोरा में कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण।
उत्तर भारत North India
606-647 ईसवी कन्नौज के हर्ष वर्धन का शासन।
629-645 ईसवी चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग (Hsieun Tsang) की भारत यात्रा।
630 ईसवी चालुक्यों द्वारा हर्ष वर्धन की पराजय।
711 ईसवी में अरबों द्वारा सिंध की विजय, भारत में इस्लाम की स्थापना।
736 ईसवी दिल्लिका (दिल्ली) स्थापित।
750-770 ईसवी गोपाल द्वारा बंगाल में पाल वंश की स्थापना।
752 ईसवी पल्लव राजा ने चालुक्यों को हराया।
780 ईसवी उज्जैन में गुर्जर-प्रतिहारों ने अपनी शक्ति स्थापित की।
788-836 ईसवी शंकराचार्य का जीवनकाल।
814-840 ईसवी सबसे शक्तिशाली राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष का शासनकाल।
836-885 ईसवी राजा भोज द्वारा प्रतिहार साम्राज्य की स्थापना।
885-910 ईसवी राजा महेन्द्रपाल द्वारा प्रतिहार साम्राज्य का प्रसार।
1077-1120 ईसवी पाल वंश के राजा रामपाल के तहत पाल राजवंश की शक्ति में वृद्धि।
11वीं-13वीं शताब्दी में धर्मयुद्ध के परिणामस्वरूप पूर्व-पश्चिम में अधिक से अधिक संपर्क।
1148 ईसवी कल्हण द्वारा राजतरंगिणी की रचना।
दक्षिण भारत South India
897 ईसवी राजा आदित्य द्वारा चोल राजवंश की स्थापना।
907 ईसवी परांतक प्रथम के तहत चोलों की शक्ति में वृद्धि।
939-968 ईसवी दक्कन में राष्ट्रकूटों का प्रभुत्व।
973 ईसवी तायला, कल्याणी के चालुक्यों ने राष्ट्रकूटों को हराया, और बाद में चालुक्य वंश की स्थापना की।
985-1016 ईसवी राजराजा प्रथम ने चोल साम्राज्य स्थापित किया।
1016-1044 ईसवी राजेंद्र चोल का शासनकाल।
1025 ईसवी चोलों दक्षिण पूर्व एशिया में नौसेना के साथ युद्ध का संचालन किया।
1025-1137 ईसवी वैष्णव शिक्षक रामानुज का जीवनकाल।
1077 ईसवी चोल व्यापारियों ने चीन की यात्रा की।
1100 ईसवी रामानुज ने भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया।
1246-1279 ईसवी राजेन्द्र तृतीय, अंतिम चोल राजा का जीवनकाल।
उत्तर भारत में ग़ज़नवी और ग़ोरी साम्राज्य Ghaznavids And Ghurids In North India
971-1030 गजनी के महमूद का शासनकाल
973–1048 अलबरूनी फिरदौसी का जीवनकाल
997-1014 अफगानिस्तान में गजनी के महमूद का उत्तरी भारत पर आक्रमण एवं हर साल लूटपाट। मुह्हमद गोरी ने, गजनवी को हराया और पंजाब पर कब्ज़ा कर लिया।
1175 मुहम्मद ग़ोरी का भारत पर पहला आक्रमण।
1179 मुहम्मद ग़ोरी द्वारा पेशावर पर कब्ज़ा।
1186 मुहम्मद ग़ोरी द्वारा लाहौर पर कब्ज़ा।
1192 मोहम्मद गोरी ने तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के नेतृत्व में राजपूतों को हराया।
1193 मुहम्मद ग़ोरी ने दिल्ली और उत्तर भारत पर कब्ज़ा किया।
1206 मुहम्मद ग़ोरी की लाहौर में हत्या कर दी गयी।
दिल्ली सल्तनत Delhi Sultanate
1206-1210 कुतुब-उद-दीन ऐबक ने मामलुक वंश (गुलाम वंश, या दिल्ली सल्तनत) की स्थापना की|
1211-1136 शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश का शासनकाल।
1221-1222 मंगोल द्वारा उत्तर पश्चिम भारत में आक्रमण शुरू।
1231 इल्तुतमिश द्वारा ग्वालियर पर कब्ज़ा।
1235 उज्जैन पर कब्ज़ा|
1236-1240 रजिया का शासनकाल।
1240–1246 चालीस रईसों के एक विशिष्ट समूह द्वारा शासन।
1246–1286 बलबन का शासन।
1266-1286 बलबन द्वारा दिल्ली की मुस्लिम कला और अध्ययन केंद्र के रूप में स्थपना।
1290 खिलजी वंश की स्थापना।
1290-1296 पहले खिलजी शासक जलाल-उद-दीन फ़िरोज़ शाह का शासनकाल – मंगोलों के आक्रमण को रोका।
1296-1326 अलाउद्दीन मुहम्मद खिलजी का शासनकाल।
14 वीं सदी सुहरावर्दी, चिश्ती और फिरदौसी सूफी संप्रदाय का उदय। 1300 ईसवी एज़्टेक सभ्यता अपने चरमोत्कर्ष पर।
1301 अलाउद्दीन मुहम्मद खिलजी द्वारा राजपूत किला रणथम्भौर पर कब्जा।
1303 अलाउद्दीन मुहम्मद खिलजी द्वारा राजपूत किला चित्तौड़ पर कब्जा।
1309-1311 अलाउद्दीन मुहम्मद खिलजी द्वारा दक्षिण भारत पर विजय।
1316 शिहाब-अल-दीन उमर का शासनकाल।
1316-1320 कुतुब-अल-दीन मुबारक शाह का शासनकाल।
1320 तुगलकों ने, खलजियों को दिल्ली के सुल्तानों के रूप प्रतिस्थापित किया।
1320-1324 गयासुद्दीन तुगलक शाह ���्रथम का शासनकाल।
1324-1351 मुहम्मद तुगलक शाह का शासनकाल।
1334 मालाबार तुग्लकों के शासन से मुक्त हुआ।
1336-1646 विजयनगर साम्राज्य।
1337 बंगाल पर मलिक शम्स-उद-दीन का शासनकाल, तुग्लकों के शासन से मुक्त हुआ।
1347-1526 बहमनी राजवंश।
1351 गियास-अल-दीन महमूद शाह का शासनकाल।
1351-1388 फ़िरोज़ शाह का शासनकाल।
1388-1389 गियास-अल-दीन तुगलक शाह द्वितीय का शासनकाल।
1389-1390 अबू बक्र शाह का शासनकाल।
1390-1394 नासिर अल-दीन मुहम्मद शाह का शासनकाल।
1394 अला-अल-दीन सिकंदर शाह का शासनकाल।
1394-1412 नासिर अल-दीन महमूद शाह का शासनकाल।
1398–1399 तैमुर लंग की सेनाओं द्वारा दिल्ली में लूटपाट।
1414-1450 दिल्ली के सुल्तानों के रूप में सय्यदों का शासन।
1440-1518 कबीर द्वारा सभी धर्मों की एकता का उपदेश।
1450 में लोधियों ने सय्यदों को दिल्ली में प्रस्थापित किया।
1469-1539 गुरु नानक, सिख धर्म के संस्थापक का जीवनकाल।
1480-1564 कर्नाटक संगीत के संगीतकार पुरन्दर दास का जीवनकाल।
1482-1673 अहमदनगर, बरार, बीजापुर के दक्षिणी सल्तनतों,
1482-1673 दक्कन के सल्तनत अहमदनगर, बरार, बीजापुर, बीदर, और गोलकुंडा का उदय।
1486-1533 हिंदू भक्ति के शिक्षक चैतन्य का जीवनकाल। 1492 कोलंबस ने अमेरिका के लिए पहली यात्रा की।
1498 वास्को डा गामा द्वारा भारत में पुर्तगाली उपस्थिति स्थापित।
1509-1529 विजयनगर पर कृष्णदेव राय का शासनकाल।
1510 अफोंसो डी अल्बुकर्क के नेतृत्व में पुर्तगालियों ने गोवा पर अधिकार किया।
1526 बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पराजित किया।
1530 बाबर की मौत और हुमायूं का शासन।
1532-1623 तुलसी दास का जीवनकाल।
1540 शेरशाह ने हुमायूं को पराजित किया, हुमायूं का फारस में निर्वासन।
1551-1602 अबुल फज़ल का जीवनकाल।
1555 हुमायूं की वापसी और हुमायूं द्वारा दिल्ली पर पुनः कब्ज़ा।
1556 हुमायूं की मौत और अकबर गद्दी का उत्तराधिकारी बना। पानीपत का द्वितीय युद्ध।
1556-1605 अकबर का शासनकाल। 1558 एलिजाबेथ प्रथम का इंग्लैंड में सिंहासन आरोहण।
1563 हिंदुओं पर तीर्थयात्रा कर की समाप्ति।
1564 गैर मुस्लिमों पर लगने वाले कर जिजया की समाप्ति।
1571 फतेहपुर सीकरी में नई राजधानी का निर्माण।
1573 गुजरात पर विजय।
1575 इबादतखाना का निर्माण।
1576 बंगाल पर विजय।
1581 काबुल पर विजय।
1582 अकबर द्वारा दीन-ए-इलाही का आरंभ।
1584 फतेहपुर सीकरी का त्याग।
1592 उड़ीसा की विजय।
1595 बलूचिस्तान की विजय।
1600 महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को चार्टर दिया गया।
1605-1627 जहांगीर का शासनकाल।
1612 ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सूरत में व्यापारिक केंद्र की स्थापना।
1616-1618 सर थॉमस रो जहांगीर के दरबार में आया, ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने के लिए अनुमति।
1619 सूरत में ब्रिटिश “कारखाने” की स्थापना।
1628-1658 शाहजहां का शासनकाल।
1630-1680 मराठा वंश के संस्थापक, शिवाजी का जीवनकाल।
1642 ब्रिटिश व्यापारिक किले फोर्ट सेंट जॉर्ज की मद्रास में स्थापना।
1643 ताजमहल का निर्माण पूरा हुआ।
1658-1707 औरंगजेब का शासनकाल।
1664 फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना।
1674 शिवाजी की छत्रपति के रूप में ताजपोशी।
1679 औरंगजेब ने गैर मुसलमानों पर जिजया पुनः लगाया।
1681 औरंगजेब ने दक्कन की विजय के लिए अभियान शुरू किया।
1686 बीजापुर पर विजय।
1689 गोलकुंडा पर कब्ज़ा, शम्भूजी को पकड़ कर हत्या की गयी।
1690 जॉब चर्नोक ने कलकत्ता में ब्रिटिश व्यापारिक केंद्र की स्थापना की।
1699 सिख खालसा दसवें गुरु, गोबिंद राय द्वारा स्थापित।
अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में मुगल Mughals In Eighteenth And Nineteenth Centuries
1707-1712 बहादुर शाह का शासनकाल।
1713-1719 फर्रुख़ सियर का शासनकाल। सैयद बंधु हुसैन अली और अब्दुल्ला का ‘राजा निर्माताओं’ के रूप में वर्चस्व।
1714 पेशवा बालाजी विश्वनाथ के तहत मराठा शक्ति का उदय।
1719 रफी-उद दरजात, रफी-उद दौलत, और निकुसियर का शासनकाल।
1719-1748 मुहम्मद शाह का शासनकाल।
1723 निजाम अल-मुल्क ने हैदराबाद में निज़ामी स्थापना की।
1739 करनाल की लड़ाई। ईरान के नादिर शाह ने दिल्ली में लूटपाट की।
1748-1754 अहमद शाह का शासनकाल। 1750 यूरोप में औद्योगिक क्रांति।
1754-1759 आलमगीर द्वितीय का शासनकाल।
1759-1806 शाह आलम द्वितीय का शासनकाल।
1806-1837 अकबर द्वितीय का शासनकाल।
1837-1857 बहादुर शाह द्वितीय का शासनकाल।
अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के भारत में ब्रिटिश – British In Eighteenth And Nineteenth-Century India
1742-1763 दक्षिण भारत पर वर्चस्व के लिए, अपने वैश्विक युद्ध के परिणाम के रूप में ब्रिटिश और फ्रेंच में लड़ाईयां।
1746 जोसेफ फ़्राँस्वा दुप्लेइक्स द्वारा मद्रास पर कब्जा।
1746-1794 सर विलियम जोन्स का जीवनकाल।
1748 अंग्रेजों ने मद्रास वापस प्राप्त किया।
1751 रॉबर्ट क्लाइव ने अर्काट पर कब्जा किया।
1756 कलकत्ता की ब्लैक होल घटना।
1757 क्लाइव ने प्लासी की लड़ाई जीती।
1760 में ब्रिटिश द्वारा फ्रांसीसियों की पराजय।
1761 हैदर अली द्वारा मैसूर में मुस्लिम सत्ता स्थापना।
1764 बक्��र की लड़ाई में ब्रिटिश जीत।
1765 ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल की दीवानी मिली।
1772–1785 वारेन हेस्टिंग्स, बंगाल का 1772-1773 गवर्नर जनरल; भारत का 1784-1785 गवर्नर जनरल।
1774 रोहिल्ला युद्ध।
1778 प्रथम मराठा युद्ध।
1784 में बंगाल एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना।
1786-1793 चार्ल्स कार्नवालिस, भारत का गवर्नर जनरल।
1793 कार्नवालिस द्वारा स्थायी जमींदारी व्यवस्था की स्थापना।
1789-1805 रिचर्ड कोले वेलेस्जली गवर्नर जनरल।
1799 मैसूर के टीपू सुल्तान को श्रीरंगपट्टम में अंग्रेजों द्वारा हरा दिया गया।
1801-1839 रणजीत सिंह द्वारा सिख साम्राज्य की स्थापना।
1802 भसीन की संधि।
1803 द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध।
1805 जुलाई-अक्टूबर, चार्ल्स कार्नवालिस, गवर्नर जनरल बना।
1805-1807 जॉर्ज बारलो कार्यवाहक गवर्नर जनरल बना।
1807-1813 गिल्बर्ट इलियट, फर्स्ट अर्ल ऑफ़ मिंटो, गवर्नर जनरल।
1813 ईसाई मिशनरियों का भारत आगमन।
1813–1823 वारेन हेस्टिंग्स गवर्नर जनरल।
1814-1816 आंग्ल-गोरखा युद्ध।
1818 तीसरे मराठा युद्ध में, मराठों की हार।
1817-1898 सैयद अहमद खान का जीवनकाल।
1823-1828 विलियम पिट एमहर्स्ट गवर्नर जनरल।
1826 बर्मा के साथ यांदबू की संधि।
1827 शिमला का गर्मियों में कामकाज के लिए इस्तेमाल शुरू किया गया।
1828 राम मोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना।
1828-1835 विलियम कैवेंडिश बेंटिक, गवर्नर जनरल।
1829 सती प्रथा को अवैध घोषित किया गया।
1835-1836 चार्ल्स थियोफिलस मेटकाल्फ, कार्यवाहक गवर्नर जनरल।
1836-1842 जॉर्ज ईडन, ऑकलैंड का अर्ल, गवर्नर जनरल।
1838-1842 पहला अफगान युद्ध।
1839-1842 अफ़ीम युद्ध।
1842-1844 एलनबरो गवर्नर जनरल|
1843 सिंध पर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कब्जा।
1844–1848 हेनरी हार्डिंग गवर्नर जनरल।
1845 प्रथम सिख युद्ध।
1848–1856 डलहौजी गवर्नर जनरल।
1848-1849 द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध।
1849 ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा पंजाब का विलय।
1852 द्वितीय बर्मा युद्ध।
1853 मुंबई और ठाणे के बीच पहली रेलवे लाइन, कोलकाता और आगरा के बीच पहली टेलीग्राफ लाइन।
1856 अवध का विलय।
1856–1861 कैनिंग, भारत का गवर्नर जनरल और वाइसराय।
1856-1920 बाल गंगाधर तिलक का जीवनकाल।
10 मई 1857, भारतीय विद्रोह की शुरुआत।
1858 में महारानी की घोषणा।
1862–1863 एल्गिन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1864–1869 जॉन लारेंस भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1865 इंग्लैंड और भारत के बीच टेलीग्राफ कनेक्शन।
1866-1915 गोपाल कृष्ण गोखले का जीवनकाल।
1867 प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम लागू।
1869–1872 मेयो भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1869-1948 मोहनदास करमचंद गांधी का जीवनकाल।
1872 भारत की पहली जनगणना।
1872–1876 नार्थब्रुक भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1875 मुहम्मद एंग्लो ��रिएंटल कालेज अलीगढ़ में स्थापित।
1875 मेयो कॉलेज अजमेर में स्थापित।
1875-1950 सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवनकाल।
1876 रॉयल टाइटल अधिनियम द्वारा महारानी विक्टोरिया, भारत की महारानी बनी।
1876–1880 लिटन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1876-1948 मोहम्मद अली जिन्ना का जीवनकाल।
1878 वर्नाकुलर प्रेस एक्ट एवं दूसरा आंग्ल-अफगान युद्ध।
1880–1884 रिपन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1880 मेवंद (अफगानिस्तान) का युद्ध, लार्ड रॉबर्ट्स ने कंधार की ओर कूच किया।
1882 मद्रास के पास थियोसोफिकल सोसायटी के मुख्यालय की स्थापना।
1883-1884 इल्बर्ट विधेयक विवाद।
1884–1888 डफरिन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1885 बंबई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना तीसरा आंग्ल-बर्मा युद्ध।
1886 बर्मा को कब्जे में लिया गया।
1888–1894 लैंसडाउन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1889 पंजाब में अहमदिया संप्रदाय स्थापित किया गया।
1889-1964 जवाहर लाल नेहरू का जीवनकाल।
1891 सहमति अधिनियम लागू (Age of Consent Act) किया गया।
1892 भारतीय परिषद अधिनियम लागू किया गया।
1894-1899 एल्गिन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1895-1951 लियाकत अली खान का जीवनकाल।
1899–1905 कर्जन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
बीसवीं सदी से 1947 Twentieth Century To 1947
1900 उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत बनाया।
1904 तिब्बत में यंगहसबंद अभियान।
1905 बंगाल का विभाजन।
1905–1910 मिन्टो भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1906 ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना।
1907 कांग्रेस सूरत में उदारवादियों और चरमपंथियों (नरम दल व गरम दल) के बीच विभाजित।
1908 समाचार पत्र अधिनियम।
1909 तिलक राजद्रोह का दोषी पाया। भारत के कानून की परिषदों (मिंटो-मोर्ले सुधारों) की स्थापना। लार्ड सिन्हा गवर्नर-जनरल की परिषद के लिए नियुक्त।
1910 श्री अरविंद घोष द्वारा पांडिचेरी में आश्रम की स्थापना।
1910 समाचार पत्र (अपराध के लिए उकसाना) अधिनियम।
1911 में दिल्ली दरबार। भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दी गयी। बंगाल के विभाजन को रद्द कर दिया।
1911–1916 हार्डिंग भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1913 रवीन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार।
1915 भारत रक्षा अधिनियम। प्रथम विश्व युद्ध, 1914-1918।
1916 ऑल इंडिया मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच लखनऊ समझौता। होम रूल आंदोलन।
1916–1921 चेम्सफोर्ड भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1917 मोंटेग्यू घोषणा।
1917-1984 इंदिरा गाँधी का जीवनकाल।
1918 में भारत सरकार अधिनियम (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार)।
1919 रोलेट अधिनियम। अमृतसर (जलियांवाला बाग) नरसंहार।
1920 महात्मा गांधी के पहले असहयोग आंदोलन की शुरूआत।
1920-1924 खिलाफत आंदोलन।
1921–1926 रीडिंग भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1921-1992 सत्यजीत रे का जीवनकाल।
1922 चौरा चौरी घटना। गांधीजी को छह साल की कैद की सजा सुनाई गयी। स्वराज पार्टी का गठन।
1924 गांधी जेल से रिहा।
1925 मुद्दिमन समिति की रिपोर्ट। सिख गुरुद्वारा अधिनियम।
1925–1931 इरविन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1927 साइमन कमीशन नियुक्त।
1928 नेहरू रिपोर्ट। लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत।
1929 में मोहम्मद अली जिन्ना का चौदह सूत्रीय फार्मूला।
1930 जनवरी 26, स्वतंत्रता दिवस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा घोषित। दांडी यात्रा। साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रस्तुत। प्रथम गोलमेज सम्मेलन। सर मुहम्मद इकबाल द्वारा मुस्लिम राज्य के निर्माण की मांग।
1931 मुंबई में पहली भारतीय फिल्म का निर्माण। गांधी-इरविन पैक्ट। दूसरा गोलमेज सम्मेलन। भारतीय प्रेस (आपातकालीन शक्तियां) अधिनियम।
1931–1936 विलिंगटन भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1932 अगस्त 16, सांप्रदायिक पुरस्कार। तीसरा गोलमेज सम्मेलन।
1935 भारत सरकार अधिनियम।
1936–1943 लिनलिथगो भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1937 आम चुनाव। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा सात प्रांतों में सरकार का गठन।
1939 भारत रक्षा अधिनियम। 1939-1945 द्वितीय विश्व युद्ध। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रांतीय सरकारों ने इस्तीफा दिया। 22 दिसंबर, ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने मुक्ति दिवस मनाया।
1940 अगस्त प्रस्ताव।
1941 मार्च 23, ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की लाहौर घोषणा, पाकिस्तान की मांग।
1942 क्रिप्स मिशन। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ‘भारत छोड़ो’ अभियान।
1943 में बंगाल का अकाल। सुभाष चंद्र बोस द्वारा इंडियन नेशनल आर्मी का गठन।
1943–1947 वेवेल भारत का गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1944 गांधी-जिन्ना वार्ता।
1945 देसाई-लियाकत समझौता। 27 जून से 14 जुलाई, पहला शिमला सम्मेलन।
आम चुनाव।
1946 कैबिनेट मिशन। अगस्त 16 ऑल इंडिया मुस्लिम लीग द्वारा सीधी कार्रवाई दिवस (Direct Action Day)। नोआखली के दंगे। दूसरा शिमला सम्मेलन। अंतरिम सरकार का गठन।
1947 20 फ़रवरी, प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली का बयान। माउंटबेटन गवर्नर जनरल और वायसराय। 3 जून की योजना, भारत की स्वतंत्रता और विभाजन की घोषणा। अगस्त 14, भारत और पाकिस्तान की आजादी।
1947 के बाद का भारत India Since 1947
1947-1948 लुईस माउंटबेटन गवर्नर जनरल एवं वाइसराय।
1947-1964 जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री।
30 जनवरी 1948, मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या। हैदराबाद पर आक्रमण और विलय।
1948-1950 चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के गवर्नर जनरल।
26 जनवरी 1950, भारतीय संविधान अस्तित्व में आता है। राजेन्द्र प्रसाद, भारत के प्रथम राष्ट्रपति। राष्ट्रीय योजना आयोग की स्थापना। वल्लभभाई पटेल की मौत। मदर टेरेसा द्वारा चैरिटी ऑफ़ मिशनरीज स्थापित।
1951 प्रथम पंचवर्षीय योजना।
1952 पहला आम चुनाव।
1955 बांडुंग सम्मेलन।
1956 भारत के पहले परमाणु रिएक्टर आपरेशन ने काम करना शुरू किया। राज��य पुनर्गठन अधिनियम। दूसरी पंचवर्षीय योजना।
1957 में जम्मू-कश्मीर के भारत में शामिल। दूसरा आम चुनाव।
1959 में दलाई लामा का तिब्बत से भारत के लिए पलायन।
1960 दिल्ली से दूरदर्शन का प्रसारण। पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि।
1961 गोवा पर आक्रमण किया और विलय।
1962 नागालैंड राज्य का गठन। पूर्वोत्तर में भारत और चीन के साथ सीमा युद्ध।
1962-1967 सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति।
1964 मई 24, जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु।
1964-1966 लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री।
1965 पाकिस्तान के साथ युद्ध।
1966 पाकिस्तान के साथ ताशकंद समझौता। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी।
1967 चौथा आम चुनाव।
1967-1969 जाकिर हुसैन भारत के राष्ट्रपति।
1968 हरित क्रांति की शुरूआत।
1969-1974 वराहगिरि वेंकट गिरि, भारत के राष्ट्रपति। मानव का चन्द्रमा पत पहला कदम 1969।
1971 प्रिंसेस प्रिवी पर्स समाप्त कर दिया। शांति, मैत्री और सहयोग पर भारत-सोवियत संधि। 4 दिसंबर, पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान के साथ युद्ध।
1974 मई 5, भारत द्वारा परमाणु परीक्षण।
1975 26 जून, “राष्ट्रीय आपातकाल” इंदिरा गांधी द्वारा घोषित।
1977-1979 मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
1980 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए दुबारा चुनी गयीं।
1984 जून, अमृतसर में, ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’। अक्टूबर 31, इंदिरा गांधी की हत्या। राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने।
1985 नई आर्थिक नीति।
1987 मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा नए राज्य बने। जुलाई, भारतीय-श्रीलंका ने संधि पर हस्ताक्षर किए।
1989 विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने।
1990 चन्द्र शेखर प्रधानमंत्री बने।
1991 मई 21, राजीव गांधी की हत्या। पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।
1992 अक्टूबर, बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया।
1996 तेरह दिनों के लिए अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। एच डी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने।
1997 इंदर कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने।
कोचेरी रमन नारायणन भारत के राष्ट्रपति। 29 सितंबर, भारत ने अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने की शुरूआत की।
1998 मार्च 20, अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री। 11-13 मई, भारत ने परमाणु परीक्षण किया। 13 मई, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया। ईसाइयों के खिलाफ हिंसा।
2004 आम चुनावों में कांग्रेस सत्ता में लौटी।
2005 भारत और पाकिस्तान मिसाइल परीक्षण की अग्रिम चेतावनी देने के लिए सहमत।
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💐🌼🌺🛕[श्री भक्ति ग्रुप मंदिर]🛕🌺🌼💐
हिन्दुओं के पवित्र सरोवर, जानिए कौन से?
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'सरोवर' का अर्थ तालाब, कुंड या ताल नहीं होता। सरोवर को आप झील कह सकते हैं। भारत में सैकड़ों झीलें हैं लेकिन उनमें से सिर्फ 5 का ही धार्मिक महत्व है, बाकी में से कुछ का आध्यात्मिक और बाकी का पर्यटनीय महत्व है। श्रीमद् भागवत और पुराणों में प्राचीनकालीन 5 पवित्र ऐतिहासिक सरोवरों का वर्णन मिलता है।
जिस तरह 4 पवित्र वटवृक्ष (प्रयाग में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में ��ंशीवट, गया में गयावट-बौद्धवट और उज्जैन में सिद्धवट हैं) हैं, जिस तरह 7 पुरी (काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति (उज्जैन)) हैं, जिस तरह पंच तीर्थ (पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार एवं प्रयाग) हैं और जिस तरह अष्ट वृक्ष (पीपल, बढ़, नीम, इमली, कैथ, बेल, आंवला और आम) हैं, जिस तरह 9 पवित्र नदियां (गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, विस्ता) हैं उसी तरह 5 पवित्र सरोवर भी हैं।
हिन्दुओं ने अपने पवित्र स्थानों को परंपरा के नाम पर अपवित्र कर रखा है। उन्होंने इन पवित्र स्थानों को मनोरंजन और पर्यटन का केंद्र तो बना ही रखा है, साथ ही वे उन स्थलों को गंदा करने के सबसे बड़े अपराधी हैं। गंगा किनारे अपने मृतकों का दाह-संस्कार करना किसी शास्त्र में नहीं लिखा है। गंगा में पूजा का सामान फेंकना और जले हुए दीपक छोड़ना किसी भी हिन्दू शास्त्र में नहीं लिखा है। फिर भी ऐसा कोई हिन्दू करता है तो वह गंगा और सरोवरों का अपराधी और पापी है। खैर... आओ जानते हैं हम उन 5 सरोवरों के बारे में जिसमें से एक को छोड़कर बाकी सभी की हिन्दुओं ने मिलकर हत्या कर दी है।
पहला सरोवर
🔸🔸🔹🔹
कैलाश मानसरोवर :बस यही एक मानसरोवर है, जो अपनी पवित्र अवस्था में आज भी मौजूद है, क्योंकि यह चीन के अधीन है। कैलाश मानसरोवर को सरोवरों में प्रथम पायदान पर रखा जाता है। इसे देवताओं की झील कहा जाता है। यह हिमालय के केंद्र में है। इसे शिव का धाम माना जाता है। मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। यह हिन्दुओं के लिए प्रमुख तीर्थस्थल है। संस्कृत शब्द 'मानसरोवर', मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- 'मन का सरोवर'। हजारों रहस्यों से भरे इस सरोवर के बारे में जितना कहा जाए, कम होगा।
हिमालय क्षेत्र में ऐसी कई प्राकृतिक झीलें हैं उनमें मानसरोवर सबसे बड़ा और केंद्र में है। लद्दाख की एक निर्मल झील।
मानसरोवर लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में राक्षसताल है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। यह समुद्र तल से लगभग 4,556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर टेथिस सागर का अवशेष है। जो कभी एक महासागर हुआ करता था, वह आज 14,900 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है। इन हजारों सालों के दौरान इसका पानी मीठा हो गया है, लेकिन जो कुछ चीजें यहां पाई जाती हैं, उनसे जाहिर है कि अब भी इसमें म��ासागर वाले गुण हैं।
कहते हैं कि इस सरोवर में ही माता पार्वती स्नान करती थीं। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। यह स्थान पूर्व में भगवान विष्णु का स्थान भी था। हिन्दू पुराणों के अनुसार यह सरोवर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। बौद्ध धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोग भी इसे पवित्र मानते हैं।
दूसरा सरोवर
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नारायण सरोवर :नारायण सरोवर का संबंध भगवान विष्णु से है। 'नारायण सरोवर' का अर्थ है- 'विष्णु का सरोवर'। यहां सिंधु नदी का सागर से संगम होता है। इसी संगम के तट पर पवित्र नारायण सरोवर है। पवित्र नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदिनारायण का प्राचीन और भव्य मंदिर है। नारायण सरोवर से 4 किमी दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है।
इस पवित्र नारायण सरोवर की चर्चा श्रीमद् भागवत में मिलती है। इस पवित्र सरोवर में प्राचीनकालीन अनेक ऋषियों के आने के प्रसंग मिलते हैं। आद्य शंकराचार्य भी यहां आए थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस सरोवर की चर्चा अपनी पुस्तक 'सीयूकी' में की है।
नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन का भव्य मेला आयोजित होता है। इसमें उत्तर भारत के सभी संप्रदायों के साधु-संन्यासी और अन्य भक्त शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं।
गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में स्थित है नारायण सरोवर। नारायण सरोवर पहुंचने के लिए सबसे पहले भुज पहुंचें। दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद से भुज तक रेलमार्ग से आ सकते हैं। प्राचीन कोटेश्वर मंदिर यहां से 4 किमी की दूरी पर है।
तीसरा सरोवर
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पुष्कर सरोवर :राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। इस झील का संबंध भगवान ब्रह्मा से है। यहां ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर बना है। पुराणों में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह कई प्राचीन ऋषियों की तपोभूमि भी रहा है। यहां विश्व का प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है, जहां देश-विदेश से लोग आते हैं। पुष्कर की गणना पंच तीर्थों में भी की गई है।
पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। विश्वामित्र के यहां तप करने की बात कही गई है। अप्सरा व मेनका यहां के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। सांची स्तूप दानलेखों में इसका वर्णन मिलता है।
पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा न��पाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3,000 गायों एवं एक गांव का दान किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। जैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावती का पद्मावतीपुरम यहां जमींदोज हो चुका है जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं।
पुष्कर सरोवर 3 हैं- ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढ़ा) पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं।
ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छो��� पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आद्य शंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई. में बनवाया था।
तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में 5 तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अर्द्धचंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है।
झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है।
चौथा सरोवर
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पंपा सरोवर :मैसूर के पास स्थित पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में पंपा सरोवर स्थित है।
पंपा सरोवर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। यहीं पर एक पर्वत है, जहां एक गुफा है जिससे शबरी की गुफा कहा जाता है। माना जाता है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपा सरोवर यही है, जो आजकल हास्पेट नामक कस्बे में स्थित है।
कर्नाटक में बैल्लारी जिले के हास्पेट से हम्पी जाकर जब आप तुंगभद्रा नदी पार करते हैं तो हनुमनहल्ली गांव की ओर जाते हुए आप पाते हैं शबरी की गुफा, पंपा सरोवर और वह स्थान जहां शबरी राम को बे�� खिला रही है। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।
पांचवां सरोवर
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बिंदु सरोवर :बिंदु सरोवर 5 पवित्र सरोवरों में से एक है, जो कपिलजी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि ने 10,000 वर्ष तक तप किया था। कपिलजी का आश्रम सरस्वती नदी के तट पर बिंदु सरोवर पर था, जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है। कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रणेता और भगवान विष्णु के अवतार हैं।
अहमदाबाद (गुजरात) से 130 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित ऐतिहासिक सिद्धपुर में स्थित है विन्दु सरोवर। इस स्थल का वर्णन ऋग्वेद की ऋचाओं में मिलता है जिसमें इसे सरस्वती और गंगा के मध्य अवस्थित बताया गया है। संभवतः सरस्वती और गंगा की अन्य छोटी धाराएं पश्चिम की ओर निकल गई होंगी। इस सरोवर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है।
महान ऋषि परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध यहां सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर किया था। वर्तमान गुजरात सरकार ने इस बिंदु सरोवर का संपूर्ण पुनरुद्धार कर दिया है जिसके लिए वह बधाई की पात्र है। इस स्थल को गया की तरह दर्जा प्राप्त है। इसे मातृ मोक्ष स्थल भी कहा जाता है।
अन्य सरोवर👉 इसके अलावा अमृत सरोवर (कर्नाटक के नंदी हिल्स पर), कपिल सरोवर (राजस्थान- बीकानेर), कुसुम सरोवर (मथुरा- गोवर्धन), नल सरोवर (गुजरात- अहमदाबाद अभयारण्य में), लोणास सरोवर (महाराष्ट्र- बुलढाणा जिला), कृष्ण सरोवर, राम सरोवर, शुद्ध सरोवर आदि अनेक सरोवर हैं जिनका पुराणों में उल्लेख मिलता है।
अमृत सरोवर👉 कर्नाटक के नंदी हिल्स पर स्थित पर्यटकों को नंदी हिल्स की सैर के दौरान अमृत सरोवर की यात्रा की सलाह दी जाती है जिसका विकास बारहमासी झरने से हुआ है। इसी कारण इसे 'अमृत का तालाब' या 'अमृत की झील' भी कहा जाता है। अमृत सरोवर एक खूबसूरत जलस्रोत है, जो इस इलाके का सबसे सुंदर स्थल है।
अमृत सरोवर सालभर पानी से भरा रहता है। यह स्थान रात के दौरान पानी से भरा और चांद की रोशनी में बेहद सुंदर दिखता है। पर्यटक, बेंगलुरु के रास्ते से अमृत सरोवर तक आसानी से पहुंच सकते हैं, जो 58 किमी की दूरी पर स्थित है। योगी नंदीदेश्वर मंदिर, चबूतरा और श्री उर्ग नरसिम्हा मंदिर यहां के कुछ प्रमुख आकर्षणों में से एक है, जो अमृत सरोवर के पास स्थित हैं।
लोणार सरोवर👉 महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में लोणार सरोवर विश्वप्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहां पर लवणासुर का वध किया गया था जिसके कारण इसका नाम लवणासुर सरोवर पड़ा। बाद में यह बिगड़कर 'लोणार' हो गया। लोणार गांव में ही यह सरोवर स्थित है। इस सरोवर को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल कर रखा है।
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हिन्दुओं के पवित्र सरोवर, जानिए कौन से?
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'सरोवर' का अर्थ तालाब, कुंड या ताल नहीं होता। सरोवर को आप झील कह सकते हैं। भारत में सैकड़ों झीलें हैं लेकिन उनमें से सिर्फ 5 का ही धार्मिक महत्व है, बाकी में से कुछ का आध्यात्मिक और बाकी का पर्यटनीय महत्व है। श्रीमद् भागवत और पुराणों में प्राचीनकालीन 5 पवित्र ऐतिहासिक सरोवरों का वर्णन मिलता है।
जिस तरह 4 पवित्र वटवृक्ष (प्रयाग में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट-बौद्धवट और उज्जैन में सिद्धवट हैं) हैं, जिस तरह 7 पुरी (काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति (उज्जैन)) हैं, जिस तरह पंच तीर्थ (पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार एवं प्रयाग) हैं और जिस तरह अष्ट वृक्ष (पीपल, बढ़, नीम, इमली, कैथ, बेल, आंवला और आम) हैं, जिस तरह 9 पवित्र नदियां (गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, विस्ता) हैं उसी तरह 5 पवित्र सरोवर भी हैं।
हिन्दुओं ने अपने पवित्र स्थानों को परंपरा के नाम पर अपवित्र कर रखा है। उन्होंने इन पवित्र स्थानों को मनोरंजन और पर्यटन का केंद्र तो बना ही रखा है, साथ ही वे उन स्थलों को गंदा करने के सबसे बड़े अपराधी हैं। गंगा किनारे अपने मृतकों का दाह-संस्कार करना किसी शास्त्र में नहीं लिखा है। गंगा में पूजा का सामान फेंकना और जले हुए दीपक छोड़ना किसी भी हिन्दू शास्त्र में नहीं लिखा है। फिर भी ऐसा कोई हिन्दू करता है तो वह गंगा और सरोवरों का अपराधी और पापी है। खैर... आओ जानते हैं हम उन 5 सरोवरों के बारे में जिसमें से एक को छोड़कर बाकी सभी की हिन्दुओं ने मिलकर हत्या कर दी है।
पहला सरोवर
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कैलाश मानसरोवर :बस यही एक मानसरोवर है, जो अपनी पवित्र अवस्था में आज भी मौजूद है, क्योंकि यह चीन के अधीन है। कैलाश मानसरोवर को सरोवरों में प्रथम पायदान पर रखा जाता है। इसे देवताओं की झील कहा जाता है। यह हिमालय के केंद्र में है। इसे शिव का धाम माना जाता है। मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। यह हिन्दुओं के लिए प्रमुख तीर्थस्थल है। संस्कृत शब्द 'मानसरोवर', मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- 'मन का सरोवर'। हजारों रहस्यों से भरे इस सरोवर के बारे में जितना कहा जाए, कम होगा।
हिमालय क्षेत्र में ऐसी कई प्राकृतिक झीलें हैं उनमें मानसरोवर सबसे बड़ा और केंद्र में है। लद्दाख की एक निर्मल झील।
मानसरोवर लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में राक्षसताल है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। यह समुद्र तल से लगभग 4,556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर टेथिस सागर का अवशेष है। जो कभी एक महासागर हुआ करता था, वह आज 14,900 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है। इन हजारों सालों के दौरान इसका पानी मीठा हो गया है, लेकिन जो कुछ चीजें यहां पाई जाती हैं, उनसे जाहिर है कि अब भी इसमें महासागर वाले गुण हैं।
कहते हैं कि इस सरोवर में ही माता पार्वती स्नान करती थीं। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। यह स्थान पूर्व में भगवान विष्णु का स्थान भी था। हिन्दू पुराणों के अनुसार यह सरोवर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। बौद्ध धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोग भी इसे पवित्र मानते हैं।
दूसरा सरोवर
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नारायण सरोवर :नारायण सरोवर का संबंध भगवान विष्णु से है। 'नारायण सरोवर' का अर्थ है- 'विष्णु का सरोवर'। यहां सिंधु नदी का सागर से संगम होता है। इसी संगम के तट पर पवित्र नारायण सरोवर है। पवित्र नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदिनारायण का प्राचीन और भव्य मंदिर है। नारायण सरोवर से 4 किमी दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है।
इस पवित्र नारायण सरोवर की चर्चा श्रीमद् भागवत में मिलती है। इस पवित्र सरोवर में प्राचीनकालीन अनेक ऋषियों के आने के प्रसंग मिलते हैं। आद्य शंकराचार्य भी यहां आए थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस सरोवर की चर्चा अपनी पुस्तक 'सीयूकी' में की है।
नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन का भव्य मेला आयोजित होता है। इसमें उत्तर भारत के सभी संप्रदायों के साधु-संन्यासी और अन्य भक्त शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं।
गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में स्थित है नारायण सरोवर। नारायण सरोवर पहुंचने के लिए सबसे पहले भुज पहुंचें। दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद से भुज तक रेलमार्ग से आ सकते हैं। प्राचीन कोटेश्वर मंदिर यहां से 4 किमी की दूरी पर है।
तीसरा सरोवर
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पुष्कर सरोवर :राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। इस झील का संबंध भगवान ब्रह्मा से है। यहां ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर बना है। पुराणों में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह कई प्राचीन ऋषियों की तपोभूमि भी रहा है। यहां विश्व का प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है, जहां देश-विदेश से लोग आते हैं। पुष्कर की गणना पंच तीर्थों में भी की गई है।
पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। विश्वामित्र के यहां तप करने की बात कही गई है। अप्सरा व मेनका यहां के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। सांची स्तूप दानलेखों में इसका वर्णन मिलता है।
पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3,000 गायों एवं एक गांव का दान किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। जैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावती का पद्मावतीपुरम यहां जमींदोज हो चुका है जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं।
पुष्कर सरोवर 3 हैं- ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढ़ा) पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं।
ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आद्य शंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई. में बनवाया था।
तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में 5 तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अर्द्धचंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है।
झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है।
चौथा सरोवर
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पंपा सरोवर :मैसूर के पास स्थित पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में पंपा सरोवर स्थित है।
पंपा सरोवर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। यहीं पर एक पर्वत है, जहां एक गुफा है जिससे शबरी की गुफा कहा जाता है। माना जाता है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपा सरोवर यही है, जो आजकल हास्पेट नामक कस्बे में स्थित है।
कर्नाटक में बैल्लारी जिले के हास्पेट से हम्पी जाकर जब आप तुंगभद्रा नदी पार करते हैं तो हनुमनहल्ली गांव की ओर जाते हुए आप पाते हैं शबरी की गुफा, पंपा सरोवर और वह स्थान जहां शबरी राम को बेर खिला रही है। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।
पांचवां सरोवर
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बिंदु सरोवर :बिंदु सरोवर 5 पवित्र सरोवरों में से एक है, जो कपिलजी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि ने 10,000 वर्ष तक तप किया था। कपिलजी का आश्रम सरस्वती नदी के तट पर बिंदु सरोवर पर था, जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है। कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रणेता और भगवान विष्णु के अवतार हैं।
अहमदाबाद (गुजरात) से 130 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित ऐतिहासिक सिद्धपुर में स्थित है विन्दु सरोवर। इस स्थल का वर्णन ऋग्वेद की ऋचाओं में मिलता है जिसमें इसे सरस्वती और गंगा के मध्य अवस्थित बताया गया है। संभवतः सरस्वती और गंगा की अन्य छोटी धाराएं पश्चिम की ओर निकल गई होंगी। इस सरोवर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है।
महान ऋषि परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध यहां सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर किया था। वर्तमान गुजरात सरकार ने इस बिंदु सरोवर का संपूर्ण पुनरुद्धार कर दिया है जिसके लिए वह बधाई की पात्र है। इस स्थल को गया की तरह दर्जा प्राप्त है। इसे मातृ मोक्ष स्थल भी कहा जाता है।
अन्य सरोवर👉 इसके अलावा अमृत सरोवर (कर्नाटक के नंदी हिल्स पर), कपिल सरोवर (राजस्थान- बीकानेर), कुसुम सरोवर (मथुरा- गोवर्धन), नल सरोवर (गुजरात- अहमदाबाद अभयारण्य में), लोणास सरोवर (महाराष्ट्र- बुलढाणा जिला), कृष्ण सरोवर, राम सरोवर, शुद्ध सरोवर आदि अनेक सरोवर हैं जिनका पुराणों में उल्लेख मिलता है।
अमृत सरोवर👉 कर्नाटक के नंदी हिल्स पर स्थित पर्यटकों को नंदी हिल्स की सैर के दौरान अमृत सरोवर की यात्रा की सलाह दी जाती है जिसका विकास बारहमासी झरने से हुआ है। इसी कारण इसे 'अमृत का तालाब' या 'अमृत की झील' भी कहा जाता है। अमृत सरोवर एक खूबसूरत जलस्रोत है, जो इस इलाके का सबसे सुंदर स्थल है।
अमृत सरोवर सालभर पानी से भरा रहता है। यह स्थान रात के दौरान पानी से भरा और चांद की रोशनी में बेहद सुंदर दिखता है। पर्यटक, बेंगलुरु के रास्ते से अमृत सरोवर तक आसानी से पहुंच सकते हैं, जो 58 किमी की दूरी पर स्थित है। योगी नंदीदेश्वर मंदिर, चबूतरा और श्री उर्ग नरसिम्हा मंदिर यहां के कुछ प्रमुख आकर्षणों में से एक है, जो अमृत सरोवर के पास स्थित हैं।
लोणार सरोवर👉 महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में लोणार सरोवर विश्वप्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहां पर लवणासुर का वध किया गया था जिसके कारण इसका नाम लवणासुर सरोवर पड़ा। बाद में यह बिगड़कर 'लोणार' हो गया। लोणार गांव में ही यह सरोवर स्थित है। इस सरोवर को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल कर रखा है।
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🇮🇳भारत की असली ताकत🇮🇳
जब हम भारत के अतीत को देखते हैं,तो जो बात हमारा
ध्यान सर्वाधिक आकर्षित करती है,वह है उसकी
विलक्षण ऊर्जस्विता; उसके जीवन और जीवन के
आनंद की असीम शक्ति; उसकी कल्पनातीत
सृजनशीलता। कम से कम तीन हजार वर्षों से- वस्तुतः
और भी लंबे समय से भारत प्रचुरता से और निरंतरता
से खुले हाथों व अनंत बहुपक्षीयता के साथ सुजित
करता आ रहा है गणतंत्रों,राज्यों और साम्राज्यों की
दर्शनों,राष्टि-मीमांसाओं को विज्ञानों और पंथी को,
समुदायों, समाजों और धार्मिक व्यवस्थाओं को,कानून��ं
व संहिताओं,व्यापारी,उद्योगों को यह सूची अनंत है
और प्रत्येक मद में प्रायः क्रियाशीलता का बाहुल्य है।
वह सृजन करता ही जाता है,करता ही जाता है और
न संतुष्ट होता है,न थकता है,वह उसका अंत नहीं
करना चाहेगा। आराम करने के लिए स्थान की
आवश्यकता भी नहीं लगती,न आलस्य अथवा खाली
पड़े रहने के लिए समय की। वह अपनी सीमाओं के
बाहर भी विस्तार करता है; उसके जहाज महासागर पार
करते हैं और उसकी संपदा का उत्तम अतिरेक छलककर
जूडेआ,मिस्र और रोम पहुंचता है; उसके उपनिवेश
उसकी कलाओं,उसके महाकाव्य���ं और उसके पंथों को
द्वीप-समूहों में प्रसारित कर देते हैं; उसके चिह्न
मैसोपोटामिया की रेतों में पाए जाते हैं; उसके धर्म चीन
और जापान को जीत लेते हैं और पश्चिम की दिशा में
फलस्तीन और सिकंदरिया तक फैल जाते हैं और
उपनिषदों के स्वर तथा बौद्धों की उक्तियां ईसा मसीह के
होठों पर पुनः गुंजरित हो उठते हैं। सर्वत्र, जैसी उसकी
मिट्टी में,वैसी ही उसके कामों में भरपूर जीवन की
ऊर्जा की अति- विपुलता है। ...
वस्तुतः इस भरपूर ऊर्जा और भरपूर बौद्धिकता के बिना भारत इतना कुछ कभी नहीं कर पाता,जितना उसने अपनी आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के साथ किया। यह समझना भारी भूल है कि आध्यात्मिकता सबसे अधिक वहां पनपती है,जहां की भूमि दरिद्र होती है,जीवन अधमरा होता है और बुद्धि हतोत्साहित तथा भयाक्रांति होती है।
ऐसी जो आध्यात्मिकता पनपती है,वह विकृत यदि चाहे,तो भारत उन समस्याओं को निर्णायक मोड़ दे सकता है, जिनके ऊपर सारी मानव जाति परिश्रम कर रही है और लड़खड़ा रही है,क्योंकि उनके हल का सुराग उसके प्राचीन ज्ञान में है।
होती है,क्षयग्रस्त होती है और उससे हमेशा खतरनाक प्रतिक्रियाओं का डर बना रहता है। जब जाति अत्यंत
समुद्धता से रह लेती है और भव्यता के साथ विचार कर
लेती है,तभी आध्यात्मिकता अपनी ऊंचाइयों और
गहराइयों को तथा अपनी निरंतर व बहुमुखी सिद्धि को
प्राप्त करती है।...
यदि चाहे,तो भारत उन समस्याओं को एक नया और निर्णायक मोड़ दे सकता है, जिनके ऊपर साgरी मानव जाति परिश्रम कर रही है और लड़खड़ा रही है,क्योंकि उनके हल का सुराग उसके प्राचीन ज्ञान में है।
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When was the first time the name 'India' was used for 'Bharat'?
'भारत' के लिए 'इंडिया' नाम का प्रयोग पहली बार कब किया गया था? पहली बार 'भारत' के लिए 'इंडिया' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया? " इंडिया" शब्द की उत्पत्ति "सिंधु" शब्द से हुई है, जो सिंधु नदी को संदर्भित करता है। "इंडिया " शब्द का प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है जब प्राचीन यूनानी इतिहासकारों और लेखकों ने सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को "इंडिया" या "इंडी" कहा था। "India" शब्द का सबसे पहला दर्ज उपयोग हेरोडोटस के लेखन में पाया जा सकता है, जो एक यूनानी इतिहासकार था जो 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में रहता था। हालाँकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि "भारत" शब्द, जैसा कि हम आज जानते हैं, का उपयोग पूरे उपमहाद्वीप को एक एकल राजनीतिक इकाई के रूप में संदर्भित करने के लिए नहीं किया गया था। इसके बजाय, यह मुख्य रूप से वर्तमान पाकिस्तान में सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को संदर्भित करता है। दूसरी ओर, " भारत" शब्द की जड़ें प्राचीन भारतीय ग्रंथों और परंपराओं में हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, "भारत " नाम पौराणिक राजा भरत से लिया गया था, जो प्राचीन भारत के शासक थे और भारतीय महाकाव्य, महाभारत में एक प्रमुख व्यक्ति थे। "भारतवर्ष" या " भारत" नाम का प्रयोग प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए किया गया था। भारतीय संदर्भ में , पूरे देश को संदर्भित करने के लिए "भारत" शब्द का उपयोग प्राचीन काल से किया जा सकता है। इस शब्द का प्रयोग विभिन्न प्राचीन ग्रंथों और ग्रंथों में किया गया है, जो पूरे इतिहास में इसके उपयोग की निरंतरता को दर्शाता है। आधुनिक समय में देश का आधिकारिक नाम अंग्रेजी में "इंडिया" और अंग्रेजी में "भारत" है। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में . 1950 में अपनाए गए भारत के संविधान में औपचारिक रूप से अंग्रेजी में "इंडिया" और हिंदी में "भारत" को देश के नाम के रूप में मान्यता दी गई। देश की विविध भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को प्रतिबिंबित करने के लिए दोहरे नामकरण को चुना गया था। "इंडिया" और "भारत" को अपनाने का निर्णय "जैसा कि आधिकारिक नाम देश के समृद्ध इतिहास और भाषाई विविधता को स्वीकार करने और अपनाने का एक सचेत प्रयास था। दोनों नाम महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं, जो देश की पहचान के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। "भारत" प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की विरासत रखता है । , जबकि "भारत" भारतीय सभ्यता की ऐतिहासिक निरंतरता और प्राचीन जड़ों का प्रतीक है। "इंडिया" शब्द का प्रयोग भारत के संदर्भ में किये जाने के ऐतिहासिक साक्ष्य लेकिन ब्रिटिशों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए " इंडिया" शब्द का उपयोग किए जाने के सीमित ऐतिहासिक साक्ष्य हैं । जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "इंडिया" शब्द "सिंधु" शब्द से लिया गया है, ज��� सिंधु नदी का संदर्भ देता है। हेरोडोटस जैसे प्राचीन यूनानी इतिहासकारों और बाद के लेखकों ने सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र का वर्णन करने के लिए "इंडिया" या "इंडिक" शब्द का इस्तेमाल किया , जो वर्तमान पाकिस्तान में है। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से पहले, भारतीय उपमहाद्वीप को अलग-अलग नामों से जाना जाता था और इसकी विविध सांस्कृतिक और भाषाई पहचान थी। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "भारत" शब्द का उपयोग प्राचीन भारतीय ग्रंथों और परंपराओं में किया गया था, लेकिन उपमहाद्वीप में विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अन्य नाम भी थे। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से पहले भारत के नाम से जाने जाने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के ऐतिहासिक संदर्भ क्या हैं? प्राचीन भारत: प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप को विभिन्न क्षेत्रों और सभ्यताओं में विभिन्न नामों से जाना जाता था। वेदों और उपनिषदों जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस क्षेत्र को महान राजा भरत के नाम पर "भारत वर्ष" या " भारत खंड " कहा गया है । फ़ारसी और अरबी इतिहासकार, जिनका व्यापार और यात्रा के माध्यम से भारतीय उपमहाद्वीप से संपर्क था, उन्होंने इस क्षेत्र को "हिंद" या "अल-हिंद" कहा। फ़ारसी प्रत्यय "-स्तान" के साथ "हिंद" को मिलाकर "हिंदुस्तान" शब्द भी उभरा, जिसका अर्थ है भूमि या देश। मेगस्थनीज जैसे यूनानी इतिहासकार, जिन्होंने ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार का दौरा किया था, ने अपने लेखन में इस क्षेत्र को "इंडिका" कहा है। शास्त्रीय काल: शास्त्रीय काल के दौरान, भारतीय उपमहाद्वीप में कई शक्तिशाली साम्राज्य और राज्य थे। चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी में गुप्त साम्राज्य को प्राचीन ग्रंथों में "आर्यावर्त" के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ आर्यों की भूमि था। दक्षिण में चोल, चालुक्य और राष्ट्रकूट राजवंशों ने अपने डोमेन को "द्रविड़" या "तमिलकम" कहा। इस्लामी काल: मध्ययुगीन काल के दौरान, भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न इस्लामी राजवंशों का उदय हुआ। फ़ारसी और अरबी इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को संदर्भित करने के लिए "हिंद" या "अल-हिंद" शब्द का उपयोग करना जारी रखा। 13वीं शताब्दी में स्थापित दिल्ली सल्तनत अपने क्षेत्र को "हिंदुस्तान" कहती थी। यूरोपीय खोजकर्ता: भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा करने वाले यूरोपीय खोजकर्ताओं और यात्रियों ने इस क्षेत्र को संदर्भित करने के लिए "भारत" शब्द के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल किया। इतालवी खोजकर्ता मार्को पोलो ने अपने लेखों में भारत को "चिपंगु" कहा है, यह शब्द उन्होंने एशिया के विभिन्न क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया था। औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश सहित यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के आगमन के साथ, "भारत" शब्द को भौगोलिक और राजनीतिक पहचान के रूप में प्रमुखता मिली। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी उपस्थिति स्थापित की, और "ब्रिटिश इंडिया" शब्द का प्रयोग आम तौर पर उनके नियंत्रण वाले क्षेत्रों के लिए किया जाने लगा। मुगल साम्राज्य: मुगल साम्राज्य, जिसने 16वीं से 18वीं शताब्दी तक भारतीय उपमहाद्वीप के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर शासन किया था, ने फ़ारसी अभिलेखों में अपने डोमेन को "हिंदुस्तान" के रूप में संदर्भित किया। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जबकि "भारत" शब्द यूरोपीय और फारसी अभिलेखों में उभरा, भारतीय उपमहाद्वीप एक विविध और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र था, जिसमें विभिन्न सभ्यताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले विभिन्न नाम थे। "इंडिया" शब्द को औपनिवेशिक युग में प्रमुखता मिली और आधुनिक समय में इसे देश के आधिकारिक नाम के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त हुई। India का मतलब क्या है? "india" शब्द के उस संदर्भ के आधार पर कई अर्थ हैं जिसमें इसका उपयोग किया गया है। "india" के प्राथमिक अर्थ इस प्रकार हैं: भौगोलिक अर्थ: भारत दक्षिण एशिया में स्थित एक देश है, जिसकी सीमा उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में चीन और नेपाल, उत्तर पूर्व में भूटान और पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार से लगती है। यह दक्षिण में हिंद महासागर और दक्षिण पश्चिम में अरब सागर से घिरा है। "india" शब्द पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करता है, जिसमें इसके भूभाग और आसपास के क्षेत्रीय जल भी शामिल हैं। राजनीतिक अर्थ: भारत /india एक संप्रभु राष्ट्र और एक संघीय संसदीय लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसे 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता मिली और इसे भारत के डोमिनियन के रूप में जाना जाने लगा। 26 जनवरी, 1950 को भारत ने अपना संविधान अपनाया और यह आधिकारिक तौर पर भारत गणराज्य बन गया। एक राजनीतिक इकाई के रूप में, भारत/india 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों से बना है। ऐतिहासिक अर्थ: ऐतिहासिक रूप से, "india" शब्द का उपयोग समग्र रूप से भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए किया गया है, जिसमें आधुनिक देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्यांमार और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल हैं। प्राचीन काल में, "india/indus" शब्द का उपयोग विभिन्न संस्कृतियों द्वारा सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र का वर्णन करने के लिए किया जाता था। सांस्कृतिक और सभ्यतागत अर्थ: भारत/india अपनी हजारों साल पुरानी समृद्ध सांस्कृतिक और सभ्यतागत विरासत के लिए जाना जाता है। यह हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म और इस्लाम सहित विभिन्न धर्मों के साथ-साथ विविध प्रकार की भाषाओं, कला, संगीत, साहित्य और परंपराओं का घर है। आर्थिक अर्थ: भारत/india दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स, विनिर्माण, कृषि और सेवाओं जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपने योगदान के लिए जाना जाता है। प्रतीकात्मक अर्थ: भारत को अक्सर विविधता, एकता और लचीलेपन के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह अपने जीवंत त्योहारों, विविध परिदृश्यों और विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए मनाया जाता है। कुल मिलाकर, "india" शब्द विविध अर्थों वाली एक महत्वपूर्ण और बहुआयामी इकाई का प्रतिनिधित्व करता है, जो वैश्विक मंच पर इसके ऐतिहासिक, भौगोलिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व को दर्शाता है। ऐतिहासिक सन्दर्भ विशेष रूप से 1800 से पहले या ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से पहले भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए "india" का उपयोग करते हैं जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "india" शब्द "सिंधु" शब्द से लिया गया था और शुरू में सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को संदर्भित करता था, जो वर्तमान पाकिस्तान में है. इसे बाद में व्यापक भारतीय उपमहाद्वीप का वर्णन करने के लिए विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं द्वारा अपनाया गया। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से पहले, भारतीय उपमहाद्वीप को विभिन्न नामों से जाना जाता था और इसकी विविध सांस्कृतिक और भाषाई पहचान थी। "india" शब्द का प्रयोग प्राचीन भारतीय ग्रंथों और परंपराओं में किया जाता था, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों और सभ्यताओं द्वारा अन्य नामों का भी प्रयोग किया जाता था। जैसा कि कहा जा रहा है, यहां 1800 से पहले भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ ऐतिहासिक संदर्भ दिए गए हैं: हेरोडोटस (5वीं शताब्दी ईसा पूर्व): प्राचीन यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने अपने काम "इतिहास" में सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को " इंडिया" या "इंडिक" कहा है। स्ट्रैबो (पहली शताब्दी ईसा पूर्व - पहली शताब्दी ईस्वी): यूनानी भूगोलवेत्ता और इतिहासकार स्ट्रैबो ने अपने लेखन में "india" का उल्लेख किया है , इसे फारस के पूर्व में स्थित भूमि के रूप में वर्णित किया है। प्लिनी द एल्डर (प्रथम शताब्दी सीई): रोमन लेखक प्लिनी द एल्डर ने अपने काम "नेचुरल हिस्ट्री" में "india" का उल्लेख रोमन साम्राज्य की पूर्वी सीमाओं से परे एक सुदूर भूमि के रूप में किया है। टॉलेमी (दूसरी शताब्दी सीई): ग्रीको-मिस्र के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और भूगोलवेत्ता क्लॉडियस टॉलेमी ने अपने प्रभावशाली काम "जियोग्राफिया" में भारतीय उपमहाद्वीप को " india" के रूप में संदर्भित किया। चीनी अभिलेख (विभिन्न तिथियाँ): चीनी ऐतिहासिक अभिलेख, जैसे कि हान राजवंश और तांग राजवंश के, भारतीय उपमहाद्वीप को " यिन्दु" या "तियानझू" ("Yindu" or "Tianzhu.")के रूप में संदर्भित करते हैं। अल-बिरूनी (11वीं शताब्दी सीई): फ़ारसी विद्वान और बहुज्ञ अल-बिरूनी ने अपने कार्यों में भारतीय उपमहाद्वीप को "hind" के रूप में संदर्भित किया। मार्को पोलो (13वीं शताब्दी ई.): इतालवी खोजकर्ता मार्को पोलो ने अपनी यात्राओं के विवरण में भारतीय उपमहाद्वीप को "india" कहा था। इब्न बतूता (14वीं शताब्दी ई.): मोरक्को के विद्वान और खोजकर्ता इब्न बतूता ने अपने लेखन में भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए "हिंद" शब्द का इस्तेमाल किया। तैमूर (14वीं शताब्दी ई.): मध्य एशियाई विजेता तैमूर ने अपने संस्मरणों में भारतीय उपमहाद्वीप को "हिंदुस्तान" कहा है। बाबरनामा (16वीं शताब्दी ई.): मुगल सम्राट बाबर की आत्मकथा, "बाबरनामा" में भारतीय उपमहाद्वीप को "हिंदुस्तान" के रूप में संदर्भित किया गया है। जबकि इन ऐतिहासिक संदर्भों में भारतीय उपमहाद्वीप का उल्लेख है, यह समझना आवश्यक है कि "india" शब्द का उपयोग विभिन्न संदर्भों में किया गया था और अभी तक पूरे क्षेत्र के लिए एकमात्र नाम के रूप में मजबूती से स्थापित नहीं हुआ था। भारतीय उपमहाद्वीप के प्राथमिक नाम के रूप में "इंडिया" का उपयोग ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान और उसके बाद अधिक प्रचलित हो गया।
"अंग्रेजों ने आमतौर पर 'भारत' के बजाय 'इंडिया' शब्द का इस्तेमाल क्यों किया?
ब्रिटिश आमतौर पर कई कारणों से "भारत" के बजाय "इंडिया" शब्द का इस्तेमाल करते थे, जो मुख्य रूप से ऐतिहासिक संदर्भ, भाषाई विचारों और औपनिवेशिक प्रभावों से संबंधित थे। यह समझना आवश्यक है कि भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल ने अपने शासन के दौरान और उसके बाद अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में "इंडिया" शब्द के उपयोग को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया। यहां कुछ कारण बताए गए हैं कि अंग्रेजों ने "भारत" के बजाय " इंडिया" शब्द का इस्तेमाल क्यों किया : ऐतिहासिक उपयोग: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "भारत" शब्द का उपयोग प्राचीन ग्रीक और फ़ारसी इतिहासकारों सहित विभिन्न संस्कृतियों द्वारा, अंग्रेजों के भारत में आने से पहले ही सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र को संदर्भित करने के लिए किया गया था। अंग्रेजों ने इस ऐतिहासिक उपयोग को जारी रखा और भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए इस शब्द को अपनाया। औपनिवेशिक विरासत: ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश क्राउन ने भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल क्षेत्रों पर शासन किया। उन्होंने अपनी प्रशासनिक, राजनीतिक और आर्थिक संरचनाएँ स्थापित कीं और "भारत" शब्द उनके नियंत्रण वाले क्षेत्रों का पर्याय बन गया। भाषाई सुविधा: अंग्रेजी में "इंडिया" शब्द " भारत " की तुलना में छोटा और उच्चारण में आसान है। यह भारत और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन दोनों में अंग्रेजी भाषा के दस्तावेजों, आधिकारिक रिकॉर्ड और संचार में क्षेत्र का सामान्य नाम बन गया। प्रशासन में एकरूपता: अंग्रेजों का लक्ष्य अपने शासन के दौरान शासन और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना था। क्षेत्र के लिए एक सुसंगत नाम, यानी, "india" का उपयोग करने से आधिकारिक संचार और प्रशासन में एकरूपता बनाने में मदद मिली। अंतर्राष्ट्रीय संबंध: "india" शब्द को भारतीय उपमहाद्वीप को संदर्भित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता और उपयोग किया गया था । ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से पहले ही यह विभिन्न यूरोपीय शक्तियों, व्यापारियों और खोजकर्ताओं के बीच इस नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश राज की विरासत: ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत ने भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति, भाषा, शासन और शिक्षा प्रणाली को गहराई से प्रभावित किया। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी , आधिकारिक दस्तावेजों, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और लोकप्रिय मीडिया सहित विभिन्न संदर्भों में " इंडिया" नाम व्यापक रूप से उपयोग में रहा। विदेशियों के लिए सुविधा: "इंडिया" शब्द उन विदेशियों के लिए अधिक परिचित और पहचानने योग्य है जो भारत की स्थानीय भाषाओं में "india" शब्द से परिचित नहीं हो सकते हैं । यह देश के लिए एक सामान्य और आसानी से पहचाने जाने योग्य नाम प्रदान करता है। (नवीन सिन्हा) Read the full article
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🚩 टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था भगत सिंह का वामपंथ -23 मार्च 2021
🚩 अमर क्रांतिकारी भगत सिंह को वामपंथी अक्सर अपने गुट का दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उन्हें ऐसे चित्रित किया जाता है, जैसे वो वामपंथ के अनुयायी रहे हों और वो वही वामपंथ है, जो आज जेएनयू में कुछ ‘छात्रों’ द्वारा और देश के कई हिस्सों में नक्सलियों द्वारा फॉलो किया जाता है। देश के लिए बलिदान देने वाले एक राष्ट्रवादी को इस तरह से एक संकीर्ण विचारधारा के भीतर बाँधना वामपंथियों की एक चाल है।
🚩 जैसा कि हम जानते हैं, भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए शूली पर चढ़ गए थे। इतने कम उम्र में क्रांतिकारी, विद्वान और चिंतक होने का अर्थ है कि उन्होंने काफी कम समय में देश-दुनिया की कई विचारधाराओं को पढ़ा और कई क्रांतिकारियों का अध्ययन किया।
🚩 भगत सिंह के नास्तिक होने की बात को ऐसे प्रचारित किया जाता है, जैसे वे हिन्दू धर्म से और देवी-देवताओं से घृणा करते हों। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। वामपंथी स्वतंत्रता सेनानियों में भी विचाधारा के हिसाब से बँटवारा करते हैं। वीर सावरकर उनके लिए मजाक का विषय हैं और उन्हें ‘माफ़ी माँगने वाला’ बताया जाता है। यहाँ हम इस प्रपंच पर बात करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछेक घटनाओं को देखते हैं।
शुरुआत उसी संगठन के मैनिफेस्टो से क्यों न करें, जिसके भगत सिंह अहम सदस्य थे? हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मैनिफेस्टो में ही लिखा हुआ था कि वे भारत के समृद्ध इतिहास के महान ऋषियों के नक्शेकदम पर चलेंगे। इसमें कहा गया था कि कमजोर, डरपोक और शक्तिहीन व्यक्ति न तो अपने लिए और न ही देश के लिए कुछ कर सकता है। क्या वामपंथी इस संगठन को भी गाली देंगे, जिसके तहत भगत सिंह काम करते थे?
🚩 वीर सावरकर से काफी प्रभावित थे भगत सिंह
अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ‘सिपाही विद्रोह’ साबित करने की भरसक कोशिश की, लेकिन वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक पुस्तक के जरिए इस धारणा को तोड़ दिया। क्या आपको पता है कि इस पुस्तक का एक संस्करण भगत सिंह के क्रांतिकारी दल ने भी प्रकाशित किया था?
उनके सहयोगी राजाराम शास्त्री ने कहा था कि वीर सावरकर की इस पुस्तक ने भगत सिंह को काफी प्रभावित किया था। उन्होंने राजाराम शास्त्री को भी ये पुस्तक पढ़ने के लिए दी और फिर प्रकाशन के लिए योजना बनाई। उन्होंने ही प्रेस का प्रबंध किया और रात को प्रूफ रीडिंग के लिए शास्त्री के पास वो पन्ने भेजते और सुबह ले जाते। सुखदेव ने भी इस काम में बखूबी साथ दिया था। राजर्षि टंडन ने इसकी पहली प्रति खरीदी।यहाँ तक कि 1929-30 में भगत सिंह और उनके साथियों की गिरफ़्तारी के समय भी अंग्रेजों को उनके पास से वीर सावरकर की पुस्तक की काफी प्रतियाँ मिलीं। लेकिन, आज के वामपंथी भगत सिंह को तो गले लगाते हैं, लेकिन वीर सावरकर के बारे में क्या सोचते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। जब भाजपा ने महाराष्ट्र चुनाव से पहले उन्हें भारत रत्न देने का वादा किया तो सीपीआई इसका विरोध करने वाली पहली पार्टी थी।
🚩 सीपीआई ने कहा था कि एक मिथक बना दिया गया है कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और राष्ट्रवादी थे। पार्टी ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत सावरकर जैसे ‘सांप्रदायिक व्यक्ति’ को आइकॉन बनाया जा रहा है। उन्हें ‘डरपोक’ लिखा गया। कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब सावरकर के योगदानों पर चर्चा की तो सीपीआई ने उन पर भी निशाना साधा। अब जब यही वामपंथी भगत सिंह को गले लगाने का नाटक करें तो इसे क्या कहा जाए? अर्थात, वामपंथी कहते हैं कि सावरकर ‘सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी’ हैं, लेकिन भगत सिंह ने वीर सावरकर की पुस्तकों को न सिर्फ छपवाया बल्कि वो इससे काफी प्रभावित भी थे- इस पर वो कन्नी काट जाते हैं। ड्रामेबाज वामपंथियों का ये दोहरा रवैया बताता है कि भगत सिंह को ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का हिस्सा बताने के लिए वो पागल हो रहे हैं। जिनकी श्रद्धा भारत से ज्��ादा चीन के लिए है, वो देश के बलिदानियों पर भला क्यों गर्व करें?
🚩 लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं वामपंथी?
भगत सिंह ने ब्रिटिश एएसपी जॉन सॉन्डर्स का वध क्यों किया था? भारत की राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के लिए लंदन से साइमन कमीशन को भेजा गया। भारत में ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने इसका प्रचंड विरोध किया। लाहौर में इसके विरोध के दौरान उन्हें लाठी लगी। इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसने भगत सिंह सहित ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सभी क्रांतिकारियों को आक्रोशित कर दिया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही भगत सिंह और उनके साथियों ने अपनी जान को दाँव पर लगाया था। लाला लाजपत राय की मृत्यु के ठीक 1 महीने बाद भगत सिंह ने अपना बदला पूरा किया और आर्य समाज के नेता रहे लालाजी को अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दी। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक ‘शहीद भगत सिंह- क्रांति में एक प्रयोग’ में लिखा है कि भगत सिंह, लाला लाजपत राय के समर्पण और देशसेवा के सामने अपना सिर झुकाते थे।उन्होंने लिखा है कि कैसे जब भगत सिंह ने उस प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय को अंग्रेजों की लाठी खा कर जमीन पर गिरता हुआ देखा तो उनके अंदर जालियाँवाला बाग़ नरसंहार के बाद जो गुस्सा भर गया था वो और धधक उठा। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि गोरे एक भलेमानुष के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं। उनकी मृत्यु के बाद इन क्रांतिकारियों की जो बैठक हुई, उसमें ऐसा गम का माहौल था जैसे उनके घर के किसी बुजुर्ग की हत्या कर दी गई हो।
🚩 अब वापस उन वामपंथियों पर आते हैं, जो भगत सिंह को तो अपना मानने का नाटक करते हैं, लेकिन उन्होंने किसके लिए बलिदान दिया- इससे वो अनजान बन कर रहना चाहते हैं और लोगों को भी अनजान रखना चाहते हैं। लेकिन, वो लोग लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं, जरा वो देखिए। इतिहासकार विपिन चंद्रा ने अपनी पुस्तक ‘India’s Struggle for Independence, 1857-1947‘ में उन्हें लिबरल और मॉडरेट कम्युनिस्ट साबित करने का प्रयास किया है।
🚩 लाला लाजपत राय एक राष्ट्रवादी थे और हिंदुत्व को लेकर उनकी श्रद्धा अगाध थी। वो आर्य समाजी थे। भारत में हिंदुत्व भावना को पुनर्जीवित कर लोगों में अपने प्राचीन इतिहास के प्रति गौरव जगाने वालों में तिलक और लाला लाजपत राय का नाम आता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और छत्रपति शिवाजी का चरित्र लिखा। लाला लाजपत राय वेदों को हिन्दू धर्म की रीढ़ मानते थे। वो कहते थे कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है।जबकि आज के वामपंथी असहिष्णुता की ढपली बजाते हैं। भगत सिंह के गुरु लाला लाजपत राय जिस हिन्दू धर्म को विश्व को सबसे ज्यादा सहिष्णु बतात��� थे, वामपंथी उसे गाली देते हैं। जिन वेदों को भी हिंदू धर्म की रीढ़ मानते थे, उन्हें वामपंथी ब्राह्मणों का ‘प्रोपेगेंडा’ कहते हैं। जब गुरु के लिए वामपंथियों के मन में कोई सम्मान नहीं है तो उसके शिष्य के लिए कैसे हो सकता है? क्यों न इसे ड्रामा माना जाए?
🚩 जनेऊधारी आजाद और भगत सिंह
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों में आपने उन्हें नंगे बदन मूँछों पर ताव देते हुए और जनेऊ व धोती पहने हुए देखा होगा। वो ब्राह्मण थे। वो वाराणसी में संस्कृत के छात्र थे और उन्होंने इस भाषा के ज्ञान के कारण हिन्दू ग्रंथों का भी अध्ययन किया। भगत सिंह का उनके साथ अच्छा सम्बन्ध था। देश के लिए दोनों ने साथ मिल कर काम भी किया। लेकिन कभी भगत सिंह को इससे दिक्कत नहीं हुई।
🚩 वहीं आज के वामपंथी जनेऊ के बारे में क्या सोचते हैं? आज यही वामपंथी यज्ञोपवीत को अत्याचार का प्रतीक मानते हैं। वो कहते हैं कि ये ब्राह्मणों के खुद को श्रेष्ठ दिखाने की निशानी है। क्या भगत सिंह ने कभी चंद्रशेखर आजाद से ऐसा कहा होगा? बिलकुल नहीं। फिर किस मुँह से ये वामपंथी खुद की विचारधारा के भीतर भगत सिंह को बाँधने की कोशिश करते हैं? वीर सावरकर, लाला लाजपत राय और चंद्रशेखर आजाद के विचारों का ये सम्मान क्यों नहीं करते?जबकि इन तीनों के प्रति ही भगत सिंह की अपार श्रद्धा थी। भगत सिंह के पार्थिव शरीर को जलाने की अंग्रेजों ने कोशिश की थी, गुपचुप तरीके थे। लेकिन, बाद में परिवार ने पूरे वैदिक तौर-तरीके से रावी नदी के किनारे उनके शरीर को मुखाग्नि दी। क्या ये वामपंथी भगत सिंह के परिवार को भी कोसेंगे? उनका परिवार को स्वामी दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज आंदोलन से काफी ज्यादा प्रभावित था।
आज वाले वामपंथी नहीं थे भगत सिंह, उनके कुछ सवाल थे
🚩 भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने दयानन्द सरस्वती को सुना था और वो उनसे खासे प्रभावित थे। वो माँस-शराब का सेवन नहीं करते थे, संध्या वंदन करते थे और यज्ञोपवीत धारण करते थे। उन्होंने एक पुस्तक लिख कर दिखाया कि कैसे सिख गुरु भी वेदों की शिक्षाओं को मानते थे। ‘ईश्वर की उपस्थिति’ और भारत के बड़े-बड़े संतों ने चर्चा की है और इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि वे सारे वामपंथी हैं।
🚩 भगत सिंह का वामपंथ टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था।1962 के युद्ध में चीन का समर्थन करने वाले और हालिया भारत-चीन तनाव के दौरान चीन की निंदा तो दूर, अपनी ही सरकार के स्टैंड का विरोध करने वाले वामपंथियों को समझना चाहिए कि भगत सिंह ने ईश्वर के अस्तित्व पर चिंतन किया था और अपने अध्ययन और विचारों के हिसाब से लेख लिखे, जिनके आधार पर उन्हें वामपंथी ठहराना सही नहीं है।भगत सिंह ने कभी ऐसा नहीं लिखा कि वो हिन्दू धर्म को नहीं मानते या फिर वो हिन्दू देवी-देवताओं से घृणा करते हैं। उनके पास बस कुछ सवाल थे, जो उनके लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ में सामने आता है। उनके विचार था कि फाँसी के बाद उनकी ज़िंदगी जब समाप्त होगी, उसके बाद कुछ नहीं है। वो पूर्ण विराम होगा। वे पुनर्जन्म को नहीं मानते थे। वो प्राचीन काल में ईश्वर पर सवाल उठाने वाले चार्वाक की भी चर्चा करते थे।
🚩 उन्होंने लिखा है: “मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं। एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं। उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ।”
ऊपर की पंक्तियों को देख कर और भगत सिंह के इस लेख को पढ़ कर स्पष्ट होता है कि कुछ रूढ़िवादी चीजें थीं, जिनसे उन्हें दिक्कतें थीं। वो ये मानने को तैयार नहीं थे कि मनुष्य अपने पुनर्जन्म के पापों की सज़ा इस जन्म में भोग रहा है। उनके सवाल थे कि राजा के विरुद्ध जाना हर धर्म में पाप क्यों है? उनके सारे धर्मों के बारे में एक ही विचार थे। वे दो समुदाय के लोगों के बीच धर्म को लेकर होने वाले तनाव के खिलाफ थे।
आज का वामपंथ, आज के वामपंथी, और भगत सिंह
🚩 स्वतंत्रता सेनानियों में सिर्फ बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय ही नहीं थे, जो हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में विश्व रखते हुए धर्म और राष्ट्र को एक साथ देखते थे, बल्कि क्रांतिकारियों में भी कई ऐसे थे जो कर्मकांड करते थे, प्रखर हिंदूवादी थे। ‘बिस्मिल’ खुद आर्यसमाजी थे। बटुकेश्वर दत्त पूजन-वंदन किया करते थे।पंडित मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म की शिक्षा को महत्ता देते थे। इन सबके बारे में भगत सिंह के क्या ख्याल हैं? असल में आज का वामपंथ देश को खंडित करने वाला, चिकेन्स नेक को काट कर चीन को भारत पर हमला करने का मौके देने वाला और ‘नरेंद्र मोदी भ@वा है’ का नारा लगाने वाला है। जबकि भगत सिंह की विचारधारा क्रांति की थी। वो रूस के क्रांतिकारियों से इसीलिए प्रभावित थे, क्योंकि उन्हें उनलोगों से क्रान्ति के तौर-तरीकों की सीख मिलती थी। वो उन्हें अध्ययन कर के भारत के परिप्रेक्ष्य में आजमाने के तरीके ढूँढ़ते थे।
🚩 आज वामपंथियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे अपने देश की सेना का सम्मान कर सकें, तो फिर वो देश के लिए बलिदान देने वाले को अपनी विचारधारा का व्यक्ति कैसे बता सकते हैं? अरुंधति रॉय जैसे लोग तो विदेश में जाकर भारतीय सेना को अपने ही लोगों पर ‘अत्याचार करने वाला’ बताते हैं, क्या भगत सिंह किसी भी कीमत पर इस चीज को बर्दाश्त करते? देश के खिलाफ बोलने वालों के लिए क्रांति सिर्फ अपने ही देश के लोगों को मारना है।
🚩 आज नक्सली झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक सरकारी कर्मचारियों को मारते हैं, अपने ही देश के लोगों का खून बहाते हैं और संविधान को नहीं मानते हैं। क्या भगत सिंह को अपना बनाने का नाटक करने वाले वामपंथी वामपंथ के इस हिस्से की निंदा करने का भी साहस जुटा पाते हैं? नहीं। आज का वामपंथ चीनपरस्ती का वामपंथ है, जो अपने ही देश के इतिहास और संस्कृति से घृणा करता है, भगत सिंह का नाम भी लेने का इन्हें कोई अधिकार नहीं।
🚩 और हाँ, यज्ञोपवीत को ब्राह्मणों का आडम्बर और अत्याचार का प्रतीक बताने वाले वामपंथियों को ये बात भी पसंद नहीं आएगी कि भगत सिंह का भी यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। एक पत्र में उन्होंने अपने पिता को याद दिलाया है कि वे जब बहुत छोटे थे, तभी बापू जी (दादाजी) ने उनके जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि उन्हें वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है।
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1374190412810743809?s=19
🚩 आज के वामपंथी ये जान कर अच्छा महसूस नहीं करेंगे कि भगत सिंह ने देशसेवा का जो वच��� निभाया, वो उनके यज्ञोपवीत संस्कार से उनके ही पूर्वजों ने दिया था। वामपंथ ने नहीं। किसी एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी का नाम अपने निहित स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना कर उसके प्रेरकों को गाली देना, ये भगत सिंह का अपमान नहीं तो और क्या है? अखंड भारत के लिए लड़ने वाला ‘टुकड़े-टुकड़े’ के नारे लगाने वालों का आइडल कैसे हो सकता है?
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क्रिसमस के बारे में रोचक तथ्य - Help Hindi Me
क्रिसमस के बारे में रोचक तथ्य | Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
पूरी दुनिया में हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है। क्रिसमस को जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह दावतों का आयोजन करके और एक दूसरे को उपहार देकर मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से ईसाईयों द्वारा मनाया जाता है लेकिन गैर-ईसाई भी इसे मनाते हैं। हम सभी क्रिसमस मनाते हैं या हमारे आस-पास के लोगों को क्रिसमस मनाते हुए देखते हैं, लेकिन हम वास्तव में क्रिसमस को कितना जानते हैं? यहां क्रिसमस के बारे में अनसुने और दिलचस्प तथ्य हैं जो आपको आश्चर्यचकित कर सकते हैं।
क्रिसमस के बारे में रोचक और मजेदार तथ्य इस प्रकार हैं:
01-10 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
यीशु के जन्मदिन को क्रिसमस के दिन मनाया जो मूल रूप से ईशा मसीह के नाम से पुकारे जाते हैं।
ब्रिटेन में, एक औसत परिवार क्रिसमस पर 800 पाउंड खर्च करता है।
अमेरिका में, एक औसत परिवार हर साल क्रिसमस पर 700 डॉलर खर्च करता है।
क्रिसमस दुनिया में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा अवकाश है।
फिल्म “ए क्रिसमस स्टोरी” को अमेरिका के प्रत्येक क्रिसमस में एक परंपरा के रूप में देखा जाता है।
आयरिश कैथोलिक विश्वास के अनुसार, क्रिसमस के बाद ऑल सेंट डे नाम का एक और अवकाश है।
क्रिसमस ट्री का उपयोग सबसे पहले प्राचीन रोमन और मिस्र द्वारा किया गया था।
आधुनिक क्रिसमस ट्री का उपयोग सर्वप्रथम जर्मनी द्वारा 16 वीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ था।
मूल रूप से फलों और नट का उपयोग क्रिसमस ट्री को सजाने के लिए किया जाता था।
‘एक्स-मस ’(X-Mas) शब्द में ‘एक्स’ प्राचीन ग्रीक से आता है। ग्रीक भाषा में ‘X’ का अर्थ है क्राइस्ट। तो, एक्स-मस शब्द का अर्थ है क्रिसमस। 11-20 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
डच में, सांता क्लॉस को सिन्टरक्लास(Sinterklaas) कहा जाता है।
सांता क्लॉज़ का चरित्र एक बिशप, सेंट निकोलस पर आधारित है।
सेंट निकोलस गरीब और जरूरतमंदों के लिए सहायता प्रदान करते थे और बच्चों को उपहार देते थे।
सांता क्लॉस पूर्व में मूलरूप से हरे, बैंगनी या नीले रंग के कपड़े पहनते थे।
अपने ब्रांड का विज्ञापन करने के लिए, कोका कोला ने संता को लाल और काले रंग का ड्रेस पहनाया था। तब से सारी दुनिया में हर जगह के सेंटा लाल और काली ड्रेस पहनते हैं।
संता के आठ बारहसिंगों में कामदेव, डेनियर, विक्सेन, डंडर, धूमकेतु, डैशर, नर्तक और ब्लिक्सम हैं।
रूडोल्फ नौवें लाल-नाक वाला बारहसिंगा है जो संता की स्लेज खींचता है।
हर साल, स्वीडन में 13 मीटर की एक बकरी का निर्माण तिनके से किया जाता है, और क्रिसमस पर परंपरा के रूप में आग लगा दी जाती है।
पेरू का एक गाँव हर साल क्रिसमस पर मुट्ठी लड़ाई का आयोजन करता है। इसका उद्देश्य सभी नफरत को हटाना है।
“जिंगल बेल” मूल रूप से एक धन्यवाद गीत था।
21-30 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
जिंगल-बेल का प्रारंभिक नाम “वन हॉर्स ओपन स्लीघ” था।
आयरलैंड में, सातवीं और आठवीं सदी के लोग 20 अप्रैल से क्रिसमस की छुट्टियां मनाते हैं।
ब्रिटेन में, उपहारों को कवर करने के लिए हर साल 226800 मील के रैपिंग पेपर का उपयोग किया जाता है।
प्रशांत महासागर में “क्रिसमस द्वीप” नाम का एक द्वीप है।
अमेरिका में, सांता क्लॉस के नाम पर तीन शहर हैं।
क्रिसमस के दौरान हर ईसाई बरामदे पर मिस्टलेट्स/बंडा(mistletoe) होते हैं। जिसके नीचे चुंबन का आदान-प्रदान करने के लिए एक परंपरा है।
एक क्रिसमस का पेड़ लगभग 15 वर्षों तक बढ़ता है।
सांता का कनाडा में अपना खुद का ज़िपकोड है। बच्चे सांता को पत्र लिख सकते हैं और इसे एक ज़िप कोड पर भेज सकते हैं।
स्टॉकिंग की परंपरा तब शुरू हुई जब संता ने एक गरीब घर में सोने के सिक्कों को चिमनी के पास सूख रहे स्टॉकिंग में गिराया था।
1950 में सबसे लंबा क्रिसमस ट्री सिएटल में वॉशिंगटन में बनाया गया था, यह 221 फीट लंबा था। 31-40 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
1950 से पहले, ब्रिटेन में केवल अमीर लोग क्रिसमस मनाते थे। क्रिसमस ट्री बहुत दुर्लभ था।
संता क्लॉज के अन्य और नाम हैं: सैंट निकोलस, फादर क्रिसमस, ग्रैंडफादर फ्रॉस्ट और क्रिस क्रृंगल।
1870 तक क्रिसमस एक संघीय अवकाश नहीं था। 1870 में, अमेरिका ने क्रिसमस को एक संघीय अवकाश घोषित किया।
1836 में, Alabama (अलबामा) क्रिसमस को कानूनी अवकाश घोषित करने वाला पहला राज्य था।
लाल रंग मसीह के रक्त को इंगित करता है, हरा-पुनर्जन्म और सोना रॉयल्टी और प्रकाश को इंगित करता है।
अंतरिक्ष से प्रसारित होने वाला पहला गीत जिंगल-बेल था।
1659-1681 में बोस्टान में क्रिसमस मनाना गैरकानूनी था।
1947 के बाद से, हर साल नॉर्वे के लोग लंदन के लोगों को क्रिसमस ट्री गिफ्ट करते हैं।
संता की स्लेज उड़ाने वाली पहली तस्वीर वाशिंगटन इरविंग ने बनाया था।
स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी, यूएस द्वारा फ्रेंच को दिया गया सबसे बड़ा क्रिसमस उपहार है। 41-50 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
“व्हाइट क्रिसमस” गीत सभी समय का सबसे अधिक बिकने वाला क्रिसमस गीत है। क्रिसमस के लिए सबसे अधिक बिकने वाले गीत के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है।
अमेरिकी पोर्टल हर साल क्रिसमस पर 850 मिलियन तोहफे पहुंचाता है ।
“होम अलोन” क्रिसमस सीजन के दौरान सबसे अधिक कमाई वाली फिल्म है।
19 वीं शताब्दी में, चार्ल्स डिकेंस ने “क्रिसमस कैरोल” नामक एक उपन्यास जारी किया था। जिसके बाद, क्रिसमस की छुट्टियों को एक नया दृष्टिकोण मिला और क्रिसमस की छुट्टियों परिवार उन्मुख हो गई।
कविता “अ विजिट फ्रॉम सेंट निकोलस” ने क्रिसमस के दौरान उपहार देने की परंपरा को बढ़ावा दिया।
1776 में अमेरिकी रिवोल्यूशन के दौरान क्रिसमस नहीं मनाया जाता था यह मानकर की यह एक अंग्रेजी रिवाज है।
“मेरी क्रिसमस” 19 वीं सदी में एक कहानी से लोकप्रिय हुआ था।
14 शताब्दी में, राजा रिकर्ड-II ने एक क्रिसमस की दावत का आयोजन किया, जहां 28 ऑक्सेना और 300 भेड़ों को परोसा गया था।
क्रिसमस को पहले दूसरे दिन मनाया जाता था। बहुत से लोगों का मानना है कि यह पहले मार्च या अप्रैल में मनाया जाता था।
बहुत क्रिश्चियन का मानना है कि 25 मार्च को यीशु के जन्म और मरण दिवस होता है। 51-60 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
14 वीं शताब्दी में क्रिसमस कैरोल को भी लोकप्रिय बनाया गया था। तब एक गायक गाता था और एक समूह में लोग नृत्यकारी नृत्य करते थे।
यहूदी धर्म में भी यह माना जाता है की यीशु का जन्म और मृत्यु 25 मार्च को हुई थी।
क्रिसमस के 12 दिन बाद “बारह-टाइड” मनाया जाता है।
क्रिसमस के ठीक 1 दिन बाद “सेंट स्टीफेंस डे” मनाया जाता है।
26 या 27 दिसंबर को बॉक्सिंग दिन मनाया जाता है जिसमें नियोक्ता या ग्राहक व्यापारियों को तोहफा देते हैं।
न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में लोग उत्साह के साथ बॉक्सिंग दिवस मनाते हैं। वे एक दूसरे को क्रिसमस बॉक्स देते हैं।
नए साल को ईसाइयों में “सेंट सिल्वेस्टर” (Saint Sylvester) भी कहा जाता है।
“क्रिसमस का अष्टक” क्रिसमस के बाद के आठ दिन हैं। लोग इसे एक सप्ताह के लिए दावतों और उपहारों पर मनाते हैं।
यूरोपीय लोग क्रिसमस के दौरान बुराई को दूर रखने के लिए सदाबहार पेड़ों के साथ घरों और खलिहान को सजाते हैं।
जर्मनी में, क्रिसमस ट्री के रिवाज को एक विरोधाभासी रिवाज के रूप में देखा गया और कुछ समय तक इसका पालन नहीं किया गया था। 61-70 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
क्रिसमस मालाओं को क्रिसमस के लिए दरवाजे पर लटका दिया जाता है। परंतु पहले ग्रीस में इससे साल भर दरवाजों पर लटकाया जाता था।
लाल, हरे और सुनहरे के अलावा, नीले और सफेद रंग भी क्रिसमस के दौरान उपयोग किया जाता है। सर्दियों को दर्शाने के लिए क्रिसमस में नीले और सफेद रंगों का उपयोग किया जाता है।
यहूदी धर्म में भी, क्रिसमस के रंगों का प्रयोग हनुक्काह (Hanukkah) को दर्शाने के लिए भी किया जाता है।
स्वीडन में लोग क्रिसमस के लिए अपने घरों को दिसंबर के पहले दिन से सजाने लगते हैं।
क्रिसमस का पेड़ मूल रूप से फलों और नट के आकार के बाउबल्स द्वारा सजाया जाता था।
अमेरीका में, वर्ष 2013 तक क्रिसमस के लिए 8 मिलियन क्रिसमस ट्री उगाए गए थे।
सांता की पत्नी की अवधारणा 19 वीं शताब्दी तक अमेरिकी लेखकों द्वारा बनाई गई थी।
सांता क्लॉज़ की अच्छी प्रकृति के अलावा, उसकी अन्य व्याख्याएँ भी हैं। ऐसा माना जाता है कि सांता बुरे बच्चों को सजा भी देता है।
चीन में क्रिसमस एक कानूनी अवकाश नहीं है। इसके बजाय यह सार्वजनिक अवकाश है।
बहुत कम ईसाई चीनी क्रिसमस सार्वजानिक रूप से मानते हैं। 71-80 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
जापान में क्रिसमस के दौरान तला हुआ चिकन खाने की परंपरा है।
क्रिसमस माला का निर्माण एवरग्रीन द्वारा यीशु के अनन्त जीवन का प्रतीक है।
चीन में हांगकांग में क्रिसमस बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
जापान में क्रिसमस के दौरान एक बार केएफसी (KFC) इतना भरा हुआ था कि केएफसी अध्यक्ष को भी इन दिनों में मदद करनी पड़ी थी।
वाशिंगटन इरविंग ने डच संस्कृति का मजाक उड़ाने के लिए सांता क्लॉस की पैरोडी के बारे में लिखा था।
दक्षिण कोरिया में क्रिसमस को सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है।
उत्तर कोरिया में लोग क्रिसमस के दौरान बाहरी सजावट नहीं कर सकते। वे क्रिसमस को बहुत ही निजी तौर पर मनाते हैं।
क्रिसमस माला के गोलाकार आकार का प्रतिनिधित्व करते हैं कि भगवान का कोई आरंभ नहीं है और न ही कोई अंत है।
सिंटरक्लास अमेरिका में 1773 में संता क्लॉस बनाया गया।
सांता क्लॉज़ की व्याख्या, उनके रेनडियर, कपड़े, आदि कविता “विजिट फ्रॉम सेंट निकोलस” से प्रभावित है। 81-90 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
“डंडर और ब्लिक्सेन” नामों को “डोनर और ब्लिटज़ेन” में बदलकर इसे जर्मन बनाया गया था।
थोमस नास्ट एक अमेरिकी कार्टूनिस्ट थे जिन्होंने विचार दिया था की सांता क्लॉस उत्तरी ध्रुव में रहता होगा।
सेंट निकोलस मूल रूप से मायरा के थे।
6 दिसंबर को सेंट निकोलस का अपना दिन होता है। यह उनकी पुण्यतिथि है।
भारत में क्रिसमस एक राजकीय अवकाश है और इसे गैर ईसाइयों द्वारा भी व्यापक रूप से मनाया जाता है।
फिलीपींस में क्रिसमस व्यापक रूप से मनाया जाता है क्योंकि काथिज्म प्रमुख धर्म है।
फिलीपींस में सितंबर से कैरोल गाए जाते हैं।
सिंगापुर में, क्रिसमस एक सार्वजनिक अवकाश है।
“द क्रिसमस कैरल” पुस्तक की 1 बिलियन रूपांतरण हैं।
ईसाई मूर्तिकला के अनुसार, राजाओं की संख्या के बारे म��ं कोई उल्लेख नहीं है। लोग मानते हैं कि तीन राजा थे क्योंकि यीशु को तीन उपहार मिले थे। 91-101 Interesting and Amazing facts about Christmas in Hindi
अधिकांश लोगों का मानना है कि त्योहार “डीस नटालिस सोलिस इनविक्टि” (Dies Natalis Solis Invicti) को नामांकित करने के लिए जीसस का जन्मदिन स्थानांतरित किया गया था।
1800 में, मेक्लेनबर्ग के शार्लोट (Charlotte of Mecklenburg) ने क्रिसमस ट्री की परंपरा को ब्रिटेन में लाई थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, क्रिसमस ट्री को अस्वीकार कर दिया गया था। लेकिन 1920 में वे फिर से लोकप्रिय हो गए।
1933 में, अमेरिका में क्रिसमस के पेड़ के आयात पर प्रतिबंध था। जिसकी वजह से स्थानीय ट्री कंपनियों ने देश में क्रिसमस ट्री उगाना शुरू कर दिया।
19 वीं शताब्दी तक, क्रिसमस ट्री संस्कृति का एक हिस्सा बन गया था।
1800 के दौरान, जर्मनी में हर घर का अपना क्रिसमस ट्री होता था।
2014 में, लॉस एंजेलिस में एक कलाकार पॉल मैकार्थी ने एक हरे शिशु क्रिसमस ट्री का निर्माण किया था। बाद में उस पर बर्बरता की गई और आग लगा दी गई क्योंकि यह क्रिसमस ट्री की तरह नहीं दिखता था।
दुनिया के पूर्व में केवल 12 प्रतिशत लोग ही क्रिसमस मनाते हैं।
पाकिस्तान में, क्रिसमस के दौरान ईसाई घर-घर जाकर कैरल गाते हैं या चर्च के लिए दान इकट्ठा करते हैं।
क्रिसमस की पूर्व संध्या पर, ईसाई चर्च में इकट्ठा होते हैं और दावत में शामिल होते हैं।
भारत में, क्रिसमस को “बड़ा दिन” के रूप में जाना जाता है।
https://helphindime.in/interesting-amazing-facts-about-christmas-in-hindi/
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यहूदी और ईसाई धर्म का इतिहास
यहूदी धर्म और ईसाई धर्म तुम अब तक प्राचीन भारत, ईरान, चीन, यूनान और इटली के जनगणों के धर्मों और धार्मिक विश्वासों के बारे में पढ़ चुके हो। इनमें से कुछ धर्म, उदाहरण के लिए बौद्ध धर्म अपनी जन्मभूमि से बाहर दूर देशों में फैले और उन्होंने अनेक देशों की जीवन और संस्कृति को प्रभावित किया। प्राचीन काल में पश्चिम एशिया में दो प्रमुख धर्मों का उदय हुआ और उन्होंने विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा…
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सीमा में हुई झड़प के बाद चीन ने कैलाश मानसरोवर की तरफ तैनात की मिसाइलें
नई दिल्ली : भारत और चीन सीमा विवाद के चलते, चीन ने कैलाश-मानसरोवर में एक झील के पास मिसाइल साइट का निर्माण किया है, जहां वो जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल बना रहा है |
सूत्रों से मिली जानकारी में विशेषज्ञों के अनुसार, मिसाइल निर्माण करके चीन भारत को उकसाने का काम कर रहा है | यह कदम दोनों देशों के बीच सीमा तनाव को और ज्यादा जटिल कर सकता है |
आपको बता दें कि माउंट कैलाश और मानसरोवर झील, जिसे आमतौर पर कैलाश-मानसरोवर स्थल के रूप में जाना जाता है | चार धर्मों द्वारा पूजनीय है और भारत में संस्कृति और आध्यात्मिक शास्त्रों से जुड़ा हुआ है |
कैलाश मानसरोवर का धर्मिक पहलू
हिंदू इस स्थान को शिव और पार्वती के निवास स्थान के रूप में मानते हैं, जबकि तिब्बती बौद्ध लोग पर्वत को कांग रिंपोछे कहते हैं, जो कि “ग्लेशियल स्नो का कीमती वन” है और इसे डेमचोग और उनके कंसर्ट डोरजे फाग्मो के निवास के रूप में मानते हैं |
वहीं जैन समुदाय ने पहाड़ को अस्तपद कहा और इसे वह स्थान माना जहां उनके 24 आध्यात्मिक गुरुओं में से पहले गुरु ने मोक्ष प्राप्त किया. तिब्बत के पूर्व-बौद्ध धर्म के अनुयायियों, बोन्स ने पर्वत को टीज़ शब्द दिया और इसे आकाश देवी, सिपाईमेन का निवास स्थान बताया. मिसाइल को पवित्र स्थल पर रखना, जो कि चार अंतर-नदियों का उद्गम भी है- सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली, गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी है.
भारत को उकसाने के लिए ये सब कर रहा है – चीन
लंदन स्थित थिंक टैंक ब्रिज इंडिया के विश्लेषक प्रियजीत देबसरकार ने में बताया, “मेरे विचार में, सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, यह भारत के खिलाफ चीनी उकसावे का एक सिलसिला है, जिसे हम लद्दाख में एलएसी से लेकर पूर्वी और मध्य क्षेत्र में भारत के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में देख रहे हैं |
देबसरकार ने कहा कि तिब्बत में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल को तैनात करने के इस कदम से हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह पूरी तरह साफ हो गया है कि चीन भारत को उकसाने के लिए ये सब कर रहा है |
मालूम हो कि भारत और चीन अप्रैल-मई से चीनी सेना द्वारा फ़िंगर एरिया, गैलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और कोंगरुंग नाला सहित कई इलाकों में किए गए बदलाव को लेकर गतिरोध में हैं | जून में, पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे |
“धर्म और संस्कृति में विश्वास नहीं करता चीन”
वॉशिंगटन स्थित हडसन इंस्टीट्यूट ऑफ द फ्यूचर ऑफ इंडिया एंड साउथ एशिया की निदेशक अपर्णा पांडे ने कहा कि चीन धर्म और संस्कृति का सम्मान और उसमें विश्वास नहीं करता है.
पांडे ने कहा, “हमें यह ध्यान रखना होगा कि चीनी ईसाई धर्म की परवाह नहीं करते हैं | वे किसी भी प्राचीन चीनी प्रथाओं की परवाह नहीं करते हैं | उनका मानना है कि धर्म जनता की अफीम है और वे जिस विचारधारा को मानते हैं, वो साम्यवाद का ही एक रूप है |
“उत्तर भारत के सभी शहरों को टारगेट कर सकती है मिसाइल”
रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में डिफेंस स्टडीज के प्रोफेसर गिरीश कांत पांडे के अनुसार कैलाश-मानसरोवर में मिसाइल बेस बनाने चीन के तिब्बत क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई को बढ़ाने का ही एक हिस्सा है |
पांडे ने एपोच टाइम्स को बताया, “कैलाश-मानसरोवर के पास स्थित मिसाइल को DF-21 कहा जाता है |यह मध्यम दूरी की 2,200 किलोमीटर की बैलिस्टिक मिसाइल है | इसका फायदा यह है कि यह उत्तर भारत के सभी शहरों को कवर कर सकती है |
https://kisansatta.com/after-the-border-clash-china-deployed-missiles-towards-kailash-mansarovar/ #AfterTheBorderClash, #ChinaDeployedMissilesTowardsKailashMansarovar After the border clash, China deployed missiles towards Kailash Mansarovar International, Top, Trending #International, #Top, #Trending KISAN SATTA - सच का संकल्प
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भारत विद्या एवं इसके विकास के विभिन्न चरण
भारत विद्या भारत के इतिहास, संस्कृति, इसकी प्राचीन भाषाओं और साहित्यों का अध्ययन है। कई विश्वविद्यालयों में इसे दक्षिण एशिया अध्ययन के अंतर्गत रखा गया है। जर्मनी में सबसे ज्यादा 13 विश्वविद्यालयों में भारत विद्या पर शोध एवं अध्ययन-अध्यापन होता है। कई जगह इसे इंडिक स्टडीज या इंडियन स्टडीज के नाम से भी जाना जाता है।
भारत को जानने की बाहरी लोगों की हमेशा से इच्छा रही है। समय-समय पर विदेशी विद्वान भारत आते रहे हैं। आधुनिक भारत विद्या के विकास को निम्नलिखित 6 चरण या काल में विभाजित कर अध्ययन किया जा सकता है :
1. आदि काल : भारत विद्या का प्राचीनतम उदाहरण मेगास्थनीज को माना जा सकता है। मेगास्थनीज (350–290 ईसा पूर्व) चंद्रगुप्त के शासनकाल में भारत आया था और उसने भारत पर चार खंडों की प्रसिद्ध पुस्तक ‘इंडिका’ लिखी जिसके कुछ अंश अभी भी उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय ज्ञान के लिए समय-समय पर चीन से भी विद्वान आते रहे हैं।
2. मध्य काल : अब्बासी वंश के समय वहा��� पर भारत से अनेक विद्वानों को बुलाया गया था और कई ग्रंथों का अनुवाद एवं रचना हुई थी। उस समय भी भारतीय ज्ञान की काफी मांग रही थी। पंचतंत्र का भारत से यूरोप तक की यात्रा भी इसी भारत विद्या का हिस्सा कहा जा सकता है। अलबरूनी (973–1048 ईस्वी) भारत विद्या का जनक भी कहा जाता है। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम ‘तारीख अल-हिन्द’ है।
3. पूर्व औपनिवेशिक काल : इस काल को हम मोटे तौर पर सोलहवीं से अठारहवीं शताब्दी (1500-1700) तक मान सकते हैं। कई विदेशी विद्वानों ने भारतीय समाज, इतिहास, संस्कृति के अध्ययन के लिए भारतीय भाषाओं को सीखा। इस समय हिंदुत्व या हिंदू धर्म को बहुत ही सांस्कृतिक, सम्मान एवं शोध के लिए सम्मान दिया जाता था। फ्रांस्वा बर्नियर आदि भारत आए । जर्मनी के हेनरिक रोथ (Heinrich Roth) (1620-1668) संस्कृत के पहले विद्वान थे।
4. औपनिवेशिक काल : भारत विद्या का सबसे ज्यादा विकास औपनिवेशिक काल के दौरान ही हुआ। प्रशासकीय कार्यों की दृष्टि से भी भारतीय समाज की संरचना की व्यवस्थित जानकारी आवश्यक महसूस की गयी। कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने भारत की प्राचीन भाषाएँ सीखीं। मिशनरी सक्रियताओं के बढ़ावे ने भी भारत विद्या को विकास की गति दी। प्रारंभिक औपनिवेशिक काल को 1770-1820 तक मान सकते हैं। देशी विद्वानों और भारत विद्या के विद्वानों के बीच निकट संबंध थे । ईस्ट इंडिया कंपनी अच्छी तरह समझती थी कि भारत की संस्कृति, लोक परंपरा, रीति-रिवाज एवं भाषाओं की जानकारी के लिए देशी बुद्धिजीवी लोगों से जुड़ना होगा। इसी दौरान कई संस्थाओं की स्थापना हुई जिसमें कुछ प्रमुख निम्न हैं :
i. एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना (1784) कोलकता (तात्कालिक कलकत्ता),
ii. सोसिएते आजियातिक 1822 (Société Asiatique) ,
iii. रॉयल एशियाटिक सोसाइटी 1824,
iv. अमेरिकन ओरिएंटल सोसाइटी 1842,
v. जर्मन ओरिएंटल सोसाइटी 1845,
सन 1820 के बाद औपनिवेशिक काल अपने चरम पर पहुँच जाता है तथा उनमें भारत विद्या के प्रति स्वाभाविक लगाव कम और अपना फायदा ज्यादा था। वे भारतीय सांस्कृतिक एवं धार्मिक संपदाओं को नीचा दिखाने का भी प्रयास करते थे। कई नए विचार लाये जैसे आर्यन आक्रमण, आर्यन, द्रविड़ एवं आदिवासी भाषाओं की संकल्पना, जिससे भारत को वैचारिक स्तर पर विबह्जित कर सके।
इसमें से कुछ इंडोमेनिया या इंडोफोबिया से ग्रसित थे। इसमें प्राय: इसका उपयोग इसकी भारत की निंदा या भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए भी किया जाता था। 1773 में ब्रिटिश संसद में रेग्युलेटिंग एक्ट बना. वारेन हेस्टिंग्स गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। वह भारतीय संस्कृति की संभावनाओं को मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था के आधार के रूप में देखता था। चार्ल्स विल्किंस ने कलकत्ता में पहला सरकारी छापाखाना खोला। उसने 1783 में भगवत गीता का अनुवाद किया। 1781 में कलकत्ता मदरसा, 1792 में बनारस में संस्कृत कॉलेज, 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज 1820 में पूना एवं कलकत्ता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की स्थापना की गयी। 1813 टॉमस यंग ने पहली बार इंडो-यूरोपीयन की अवधारणा का नामकरण किया लेकिन इसका विस्तार विलियम जोन्स ने किया। टॉमस आर. ट्राउटमन और माइकल डॉडसन के अनुसार विलियम जोन्स की अवधारणा बाइबिल में वर्णित नोआ और उसके तीन पुत्रों के अवतरण पर आधारित थी। डार्विनवाद और दीर्घकालीन विलुप्त प्राणियों के करीब मानवीय अवशेषों की ख़ोज के साथ ही उनका आधार ध्वस्त हो गया। हेनरी थॉमस कोलब्रुक का कार्य भारत विद्या क्षेत्र में उल्लेखनीय है। कोलब्रुक ने 1801 ने तर्क दिया कि भारत की सभी आधुनिक भाषाएँ संस्कृत से अलग होकर बनी हैं। इस प्रकार उसने भारत में भाषाई एकता के सिद्धांत को प्रस्तुत किया। 1840 में स्टीवेंसन और हॉजसन ने भारत में संस्कृत आगमन के पहले, आदिवासी भाषा और लोगों की एकता (द्रविड़ियन और मुंडा परिवार समेत ) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। काल्डवेल ने अपने तुलनात्मक व्याकरण (1856) में स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि मुंडा का अपना अलग मानव-जाति भाषाविज्ञान सत्ता है जो आर्यन और द्रविड़ियन से अलग है
5. उत्तर- औपनिवेशिक काल : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान में भारत विद्या के लिए ‘जापानी एसोसिएशन ऑफ इंडियन एंड बुद्धिस्ट स्टडीज’ (1949) की स्थापना हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी कई जगह पर भरा विद्या के केंद्र स्थापित हुए। हिप्पियों, बीटल्स बैंड के कारण भी इस समय भारत विद्या के प्रति लोगों का रुझान ��ढ़ा। हिंदी फिल्म या बॉलीवुड के कारन भी भारत विद्या के प्रति लोगों का लगाव बढ़ा ।
6. वर्तमान काल : जहाँ वर्तमान काल में विश्व के अन्य विश्वविद्यालयों में पारंपरिक भारत विद्या के प्रति रुझान कम हुआ है और दक्षिण एशिया अध्ययन की मांग बढ़ी है, वहीं भारत में इसकी तरफ ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। भारतीय विश्वविद्यालय विदेशियों द्वारा किये गए कार्यों की समीक्षा, पुर्रीक्षण एवं अवलोकन करना चाहते हैं। इसी दिशा 2017-18 में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में संस्कृत एवं इंडिक स्टडीज के संस्थान की स्थापना हुई। अभी भी भारत के कई अन्य विश्वविद्यालयों में जैसे-कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, बड़ौदा विश्वविद्यालय इस दिशा में अनवरत कार्यरत हैं। डायस्पोरा अध्ययन से भी भारत विद्या के अध्ययन का विस्तार हुआ है।
इस प्रकार आधुनिक भारत विद्या का स्वरूप में बदलाव आता जा रहा है। वर्तमान में डायस्पोरा अध्ययन, दक्षिण एशिया अध्ययन के अंतर्गत भी इस पर कार्य किये जा रहे हैं।
© डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र
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दलाई लामा को जन्मदिन की मोदी की बधाई में खुरापाती चीन के लिए छिपा है संदेश Divya Sandesh
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दलाई लामा को जन्मदिन की मोदी की बधाई में खुरापाती चीन के लिए छिपा है संदेश
नई दिल्ली भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर उकसाऊ हरकतों के मद्देनजर चीन को सख्त संदेश देने का सिलसिला जारी रखा है। इसी के तहत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तिब्बती बौद���ध धर्म गुरु दलाई लामा को उनके 86वें जन्मदिन पर बधाई दी है। पीएम ने ट्विटर पर बताया कि उन्होंने दलाई लामा से फोन पर बात की। यह पहला मौका है जब मोदी ने दलाई लामा से संपर्क का खुला इजहार किया। स्वाभाविक है कि इसके पीछे मकसद चीन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को संदेश देना है। इससे पहले उन्होंने अमेरिका के 245वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति जो बाइडेन से बात की थी जबकि चाइजीन कम्यूनिस्ट पार्टी (CPC) के 100वें स्थापना दिवस पर कुछ नहीं कहा था।
पीएम मोदी की पहल और दलाई लामा का जवाब प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा, ‘मैंने परम पावन दलाई लामा को 86वें जन्मदिन की बधाई देने के लिए उनसे फोन पर बात की। हम उनकी लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं।’ पीएम मोदी के इस कदम ने चीन और तिब्बत की राजनीतिक और रणनीतिक घटनाओं पर नजर रखने वालों को हैरान कर दिया। रणनीतिकार मान रहे हैं कि चूंकि भारत की तरफ से सर्वोच्च स्तर पर हुआ है, इसलिए माना जा रहा है कि भारत अब तिब्बत पर खुलकर खेलने को तैयार है। दलाई लामा ने पीएम मोदी से कहा कि जब से उन्होंने भारत में आश्रय लिया है तब से यहां की आजादी और धार्मिक खुलेपन का भरपूर लाभ उठाया है। उन्होंने फोन पर मोदी से कहा, ‘आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं पूरी जिंदगी प्राचीन भारतीय ज्ञान को नई धार देने देने में खपा दूंगा।’
भारत की रणनीति में बड़ा बदलाव मान रहे एक्सपर्ट चीन और तिब्बत मामलों के एक्सपर्ट क्लाउडे आरपी ने हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) से कहा, ‘मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ी खबर है। यह चीन को सख्त संदेश देता है, खासकर 12वें राउंड का सैन्य वार्ता से पहले। इसमें यह भी संदेश है कि दलाई लामा अपने उत्तराधिकार के लिए जो भी फैसला लेंगे, भारत उनके पीछे खड़ा रहेगा। मेरी जानकारी में यह पहला मौका है जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने परम पावन दलाई लामा के जन्मदिन पर उनसे बात की और इसका खुला इजहार भी कर दिया। आशा है कि इससे दिल्ली का दलाई लामा के साथ-साथ सीटीए (सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन) के साथ रिश्ता प्रगाढ़ होगा।’
दलाई लामा के उत्तराधिकार का बड़ा मसला भारत ने दलाई लामा के उत्तराधिकार को लेकर अब तक अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है, लेकिन इतना संकेत जरूर दिया है कि यह तिब्बतियों का मामला है और किसी अन्य की इसमें कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। चीन ने तिब्बत पर अपने हालिया श्वेत पत्र में कहा है कि वह दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुनने की प्रक्रिया को नियंत्रित करेगा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय में तिब्बत मामलों के सलाहकार रह चुके अमिताभा माथुर कहते हैं, ‘यह सही दिशा में उठाया गया स्वागतयोग्य कदम है। उम्मीद है कि भारत सरकार उत्तराधिकार के मुद्दे पर दलाई लामा की इच्छा का सम्मान करेगी।’ पिछले साल ट्रंप प्रशासन ने तिब्बत पॉलिसी ऐंड सपोर्ट एक्ट पास करके कहा था कि उत्तराधिकार की प्रक्रिया पर सिर्फ और सिर्फ दलाई लामा का नियंत्रण होना चाहिए। बाइडेन प्रशासन ने भी इसी नीति का समर्थन किया है।
चीन को सख्त संदेश उधर, तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख पेन्पा सेरिंग ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से मंगलवार को कहा कि चीन की सरकार को यह मान लेना चाहिए कि दलाई लामा चीन-तिब्बत विवाद के समाधान के लिहाज से काफी अहम हैं और ‘उन्हें बिना शर्त तिब्बत और चीन की धार्मिक यात्रा पर बुलाया जाना चाहिए।’ सूत्रों के मुताबिक सीटीए के नए सिक्योंग हालिया हफ्तों में भारत सरकार के संपर्क में रहे हैं।
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फेंगशुई
चीन का एक अदृश्य "हथियार" एक कटु सत्य
फेंगशुई
चीन का एक अदृश्य "हथियार" एक कटु सत्य!
यह सच्ची घटना एक परिचित के साथ घटी थी,उन्होंने बाद में सुनाया था। जब गृह प्रवेश के वक्त मित्रों ने नए घर की ख़ुशी में उपहार भेंट किए थे। अगली सुबह जब उन्हेंने उपहारों को खोलना शुरू किया तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था!
एक दो उपहारों को छोड़कर बाकी सभी में लाफिंगबुद्धा, फेंगशुई पिरामिड, चाइनीज़ ड्रेगन, कछुआ, फेंगसुई सिक्के, तीन टांगों वाला मेंढक और हाथ हिलाती हुई बिल्ली जैसी अटपटी वस्तुएं दी गई थी।
जिज्ञासावश उन्होंने इन उपहारों के साथ आए कागजों को पढ़ना शुरू किया जिसमें इन चाइनीज़ फेंगशुई के मॉडलों का मुख्य काम और उसे रखने की दिशा के बारे में बताया गया था। जैसे लाफिंग बुद्धा का काम घर में धन, दौलत, अनाज और प्रसन्नता लाना था और उसे दरवाजे की ओर मुख करके रखना पड़ता था। कछुआ पानी में डूबा कर रखने से कर्ज से मुक्ति, सिक्के वाला तीन टांगों वाला मेंढक रखने से धन का प्रभाव, चाइनीज ड्रैगन को कमरे में रखने से रोगों से मुक्ति, विंडचाइम लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह, प्लास्टिक के पिरामिड लगाने से वास्तुदोषों से मुक्ति, चाइनीज सिक्के बटुए में रखने से सौभाग्य में वृद्धि होगी ऐसा लिखा ��ा।
यह सब पढ़ कर वह हैरान हो गया क्योंकि यह उपहार उन दोस्तों ने दिए थे जो पेशे से इंजीनियर, डॉक्टर और वकील जैसे पदों पर काम कर रहे थे। हद तो तब हो गई जब डॉक्टर मित्र ने रोग भगाने वाला और आयु बढ़ाने वाला चाइनीज ड्रैगन गिफ्ट किया! जिसमें लिखा था “आपके और आपके परिवार के सुखद स्वास्थ्य का अचूक उपाय”!
इन फेंगशुई उपहारों में एक प्लास्टिक की सुनहरी बिल्ली भी थी जिसमें बैटरी लगाने के बाद, उसका एक हाथ किसी को बुलाने की मुद्रा में आगे पीछे हिलता रहता था। कमाल तो यह था कि उसके साथ आए कागज में लिखा था “ मुबारक हो, सुनहरी बिल्ली के माध्यम से अपनी रूठी किस्मत को वापस बुलाने के लिए इसे अपने घर, कार्यालय अथवा दुकान के उत्तर-पूर्व में रखिए!”
उन्होंने इंटरनेट खोलकर फेंगशुई के बारे में और पता लगाया तो कई रोचक बातें सामने आई। ओह! जब गौर किया तो ' चीनी आक्रमण का यह गम्भीर पहलू समझ में आया।
दुनिया के अनेक देशों में कहीं न कहीं फेंगशुई का जाल फैला हुआ है। इसकी मार्केटिंग का तंत्र इंटरनेट पर मौजूद हजारों वेबसाइट के अलावा, TV कार्यक्रमों, न्यूज़ पेपर्स, और पत्रिकाओं तक के माध्यम से चलता है। मजहबी बनावट के कारण अमूमन मुस्लिम उसके शिकार नही होते। यानी इस हथियार का असल शिकार कौन है? आप समझ सकते हैं। चीनी इस फेंगसुई का इस्तेमाल किसी बाजार में प्रारंम्भिक घुसपैठ के लिए करते हैं।
अनुमानत: भारत में ही केवल इस का कारोबार लगभग 200 करोड रुपए से अधिक का है। उसी के सहारे धीरे-धीरे भारत के उत्पाद मार्केट पर चीनी उत्पादों ने पचास प्रतिशत तक कब्ज़ा लिया है। किसी छोटे शहर की गिफ्ट शॉप से लेकर सुपर माल्स तक चीनी प्रोडक्ट्स आपको हर जगह मिल जाएंगे....वह छा गये है। उन्होंने स्थानीय उत्पादों को लगभग समाप्त कर दिया है। चाइनीज उत्पादों का आक्रामक माल, भारत सहित दुनिया के अलग-अलग देशों में इस कदर बेचा जाता है कि दूसरों की मौलिक अर्थ-व्यवस्था तबाह हो जाती है। सस्ता और बड़ी मात्रा में होना उसका पैंतरा है।
अब आते हैं उसके जादुई हथियार पर जो जेहन का शिकार करती है !!!
चीन में "फेंग" का अर्थ होता है वायु और "शुई" का अर्थ है जल अर्थात फेंगशुई का पूरा मतलब है जलवायु। इसका आपके सौभाग्य, स्वास्थ्य और मुकदमे में हार जीत से क्या संबंध है? आप खुद ही समझ सकते हैं।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिपेक्ष्य से भी देखा जाए तो कौन सा भारतीय अपने घर में आग उगलने वाली चाइनीज छिपकली यानी dragon को देख कर प्रसन्नता महसूस कर सकता है? बल्कि घर मे नवजात शिशु भयानक मुख वाले ड्रेगन को देखकर अंदर ही अंदर भयभीत होता रहता है और जिसे डॉक्टर भी न समझ पाए ऐसी बीमारी के गिरफ्त में आ जाता है। उनके जिन में ड्रेगन को देवता मनाने की गुण हो सकता है। पर हम उनसे भिन्न हैं।, किसी जमाने में जिस बिल्ली को अशुभ मानकर रास्ते पर लोग रुक जाया करते थे; उसी बिल्ली के सुनहरे पुतले को घर में सजाकर सौभाग्य की मिन्नतें करना महामूर्खता नहीं तो और क्या है?
अब जरा सर्वाधिक लोकप्रिय फेंगशुई उपहार लाफिंगबुद्धा की बात करें- धन की टोकरी उठाए, मोटे पेट वाला गोल मटोल सुनहरे रंग का पुतला- क्या सच में महात्माबुद्ध है? किसी तरह वह बुध्द सा सौम्य,शांत और सुडौल दीखता है??
क्या बुद्ध ने अपने किसी प्रवचन में कहीं यह बताया था कि मेरी इस प्रकार की मूर्ति को अपने घर में रखो और मैं तुम्हें सौभाग्य और धन दूंगा? उन्होंने तो सत्य की खोज के लिए स्वयं अपना धन और राजपाट त्याग दिया था।
एक बेजान चाइनीज पुतले ( लाफिंगबुद्धा) को हमने तुलसी के बिरवे से ज्यादा बढ़कर मान लिया और तुलसी जैसी रोग मिटाने वाली सदा प्राणवायु देने वाली और हमारी संस्कृति की याद दिलाने वाली प्रकृति के सुंदर देन को अपने घरों से निकालकर, हमने लाफिंग बुद्धा को स्थापित कर दिया और अब उससे सकारात्मकता और सौभाग्य की उम्मीद कर रहे हैं? क्या यही हमारी तरक्की है?
अब तो दुकानद��र भी अपनी दुकान का शटर खोलकर सबसे पहले लाफिंग बुद्धा को नमस्कार करते हैं और कभी-कभी तो अगरबत्ती भी लगाते हैं!
फेंगसुई की दुनिया का एक और लोकप्रिय मॉडल है चीनी देवता फुक, लुक और साऊ। फुक को समृद्धि, लुक को यश-मान-प्रतिष्ठा और साउ को दीर्घायु का देवता कहा जाता है। फेंगशुई ने बताया और हम अंधभक्तों ने अपने घरों में इन मूर्तियों को लगाना शुरु कर दिया। मैंने देखा कि इंटरनेट पर मिलने वाली इन मूर्तियों की कीमत भारत में ₹200 से लेकर ₹15000 तक है, मसलन जैसी जेब- वैसी मूर्ति और उसी हिसाब से सौभाग्य का भी हिसाब-किताब सेट है।
क्या आप अपनी लोककथाओं और कहानियों में इन तीनों देवताओं का कोई उल्लेख पाते हैं? क्या भारत में फैले 33 कोटि देवी देवताओं से हमारा मन भर गया कि अब इन चाइनीज देवताओं को भी घर में स्थापित किया जा रहा है?
जरा सोचिए कि किसी कम्युनिस्ट चीन के बूढ़े देवता की मूर्ति घर में रखने से हमारी आयु कैसे ज्यादा हो सकती है? क्या इतना सरल तरीका विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को अब तक समझ में नहीं आया था?
इसी तरह का एक और फेंगशुई प्रोडक्ट है तीन चाइनीज सिक्के जो लाल रिबन से बंधे होते हैं, फेंगशुई के मुताबिक रिबिन का लाल रंग इन सिक्कों की ऊर्जा को सक्रिय कर देता है और इन सिक्कों से निकली यांग(Yang) ऊर्जा आप के भाग्य को सक्रिय कर देती है। दुकानदारों का कहना है कि इन सिक्कों पर धन के चाइनीज मंत्र भी खुदे होते हैं लेकिन जब मैंने उनसे इन चाइनीज अक्षरों को पढ़ने के लिए कहा तो ना वे इन्हें पढ़ सके और नहीं इनका अर्थ समझा सके?
मेरा पूछना है कि क्या चीन में गरीब लोग नहीं रहते? क्यों चीनी क्म्यूनिष्ट खुद हर नागरिक के बटुवे में यह सिक्के रखवा कर अपनी गरीबी दूर नहीं कर लेती? हमारे देश के रुपयों से हम इन बेकार के चाइनीससिक्के खरीद कर न सिर्फ अपना और अपने देश का पैसा हमारे शत्रु मुल्क को भेज रहे हैं बल्कि अपने कमजोर और गिरे हुए आत्मविश्वास का भी परिचय दे रहे हैं।
फेंगशुई के बाजार में एक और गजब का प्रोडक्ट है तीनटांगोंवालामेंढक जिसके मुंह में एक चीनी सिक्का होता है। फेंगशुई के मुताबिक उसे अपने घर में धन को आकर्षित करने के लिए रखना अत्यंत शुभ होता है। जब मैंने इस मेंढक को पहली बार देखा तो सोचा कि जो देखने में इतना भद्दा लग रहा है वह मेरे घर में सौभाग्य कैसे लाएगा?
मेंढक का चौथा पैर काट कर उसे तीन टांग वाला बनाकर शुभ मानना किस सिरफिरे की कल्पना है?
क्या किसी मेंढक के मुंह में सिक्का रखकर घर में धन की बारिश हो सकती है? संसार के किसी भी जीव विज्ञान के शास्त्र में ऐसे तीन टांग वाले ओर सिक्का खाने वाले मेंढक का उल्लेख क्यों नहीं है?
कम्युनिष्ट चाइना ने इसी तरह के आक्रामक रणनीति के सहारे धीरे-धीरे भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर लगभग कब्ज़ा लिया है। उनके इस हथियार से देश के हजारों छोटे कारीगर, लघु उद्यमी, स्थानीय व्यापार, छोटे-कल कारखाने नष्ट हो चुके है। सब वस्तुएं China से बनकर आ रही हैं।
वह वस्तुएं भी जिन्हें बनाने में हजारों सालो से हमारे कारीगर निपुण थे। केवल क���म्हार, बढ़ई, लुहार, कर्मकार आदि 2 करोड़ से अधिक जनसँख्या वाली जातियां थे। वे बेकारी के शिकार हो रहे हैं। आप लिस्टिंग करें। ऐसे हजारों काम-व्यापार दिखेगा जिसे चीन ने अपने छोटे-सस्ते उत्पादों को पाट कर नष्ट करके कब्ज़ा लिया।
हम केवल एक बिचौलिए विक्रेता की भूमिका में ही रह गये हैं।
बहुत दिमाग लगाकर समझिये अब युद्द के हथियार वह नही होते हैं जो पारपंरिक थे। अब पूरी योजना से शत्रु के पास जाकर उसके दिमाग को ग्रिप में लेना पड़ता है। यह फेंग-शुई भी उसी दिमागी खेल का हिस्सा है, जो हमारे हजारों साल के अध्यात्मिक ज्ञान को कमजोर करने के लिए भेजा गया है। कम्युनिष्टों ने उसे गोरिल्लारणनीति की तरह अपनाया है।
अपनी वैज्ञानिक सोच को जागृत करना और इनसे पीछा छुड़ाना अत्यंत आवश्यक है। आप भी अपने आसपास गौर कीजिए आपको कहीं ना कहीं इस फेंगशुई की जहरीली और अंधविश्वास को बढ़ावा देती चीजें अवश्य ही मिल जाएगी।
जब पूरे संसार ने एक मत से यह माना है कि सनातन धर्म ही विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। और हमारे उसी धर्म ने हमे आवास ( मकान और व्यापारिक स्थल ) निर्माण एवं उनके आंतरिक विन्यास को लेकर बहोत ही पवित्र, वैज्ञानिक, उन्नत तथा ग्राह्य शास्त्र दिया है जिसे हम "वास्तुशास्त्र" के नाम से जानते हैं. वास्तुशात्र हमे हमारी भौगोलिक स्थिति जैसे- हमारे उत्तर-पूर्व में हिमालय, दक्षिण और पश्चिम में विशाल सागर, दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी आदि के अनुरूप दिशाओं के वर्गीकरण, उत्तरीय और दक्षिणी ध्रुओं की चुम्बकीय रेखा और सूर्य रश्मियों के आधार पर हमारी सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा सुख-सौभाग्य निर्धारण करने में शसक्त और सक्षम है। यह हमारे स्वास्थ्य, सौभाग्य, प्रगति के साथ-साथ ही पूरे विश्व के लिए कल्याणकारक है।
यह तो बस हमारी "विदेशी चीज सदा अच्छी" जैसी सस्ती मानसिकता की वजह से अपने महान "वास्तुशात्र" के सहज और सरल निर्देशों का पालन न कर के स्मार्ट बनने के अंधे दौड़ में सामिल हैं. और फेंगसुई उत्पादों जैसे वाहियात चीजों के लिए अपनी गाढ़ी कमाई को खर्च कर के खुद और देश को कमजोर करने में लगे हैं।
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