#भारत की सांस्कृतिक विरासत किसमें निहित है
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भारतीय संस्कृति की विश्व को देन (जावा, मॉरीशस)
भारतीय संस्कृति की विश्व को देन (जावा, मॉरीशस) ‘भारतीय संस्कृति के निरंतरअनुदान’ एक ऐतिहासिक सत्य हैं। अमेरिका, चीन, जापान, रूस, कम्बोड़िया, इण्डोनेशिया, जावा, श्रीलंका, मिश्र, मॉरीशस आदि अनेक देशों में आज भी भारतीय संस्कृति के चिह्न-प्रतीक इसकी विशाल यात्रा एंव मानवतावादी संदेश को चरितार्थ करते हैं।
जावा- प्रसिद्ध इतिहासकार एच.एल.मिल ने सप्रमाण सिद्ध किया हैं कि जावा निवासी रक्त की दृष्टि से भारतीयों के वंशज हैं। उनकी धार्मिक मान्यतायें ब्राह्मण धर्म की जनकल्याण, आत्मकल्याण, की भावनाओं से प्रभावित हैं। जावा की भाषा पर संस्कृत का स्पष्ट प्रभाव हैं। इतिहासकार टॉलेमी के अनुशार दूसरी शताब्दी में भारत और जावा में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध थे। पश्चिमी जावा में हिंदू राज्य की स्थापना के सम्बन्ध में अ��िक जानकारी हमें राजा पूर्णवर्मन के चार संस्कृत शिलालेखों से प्राप्त होती हैं। प्राचीन जावानी भाषा में लिखा रामायण ग्रंथ हैं- यह हिन्दू जावानी साहित्य की सबसे सुन्दर एवं प्रसिद्ध रचना है, इसमें अग्नि परीक्षा के बाद सीता माता और राम का मिलन बताया हैं। जावा का दूसरा महत्वपूर्ण प्रसिद्ध भारतीय ग्रंथ महाभारत का गद्य अनुवाद है। महाभारत का अनुवाद जावानी भाषा में होने से देश में अधिक लोकप्रिय हो गया। जैसे-जैसे समय बीतता गया भारतीय धर्म ने अपने पूर्ण प्रभाव की विजय पताका स्वर्ण भूमी में फहरा दी। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि वे भारतीय उपनिवेश - श्रद्धा, विस्वास एवं धार्मिक क्रियाओं की दृष्टि से अपनी मातृभूमी भारत की प्रायःपुर्ण प्रतिलिपि थे।
आठवीं शताब्दी में ब्राह्मण धर्म का पौराणिक स्वरूप् जावा में दृड़ता के साथ जमा था। इसके अनुसार त्रिवेदी (ब्रह्म, विष्णु एवं शिव), उनकी दिव्य शक्तियाँ तथा उनसे सम्बन्धित अनेकें देवी देवताओं की पूजा का विधान हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता हैं कि हिन्दुओं के प्रायः सभी देवताओं की मूर्तियां जावा में मिलती हैं।
जावा में भारतीय ग्रंथों पर आधारित धार्मिक साहित्य प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हैं । इससें प्रकट होता हैं कि पौराणिक हिन्दू धर्म के अध्यात्म ज्ञान धार्मिक मान्यताओं एवं दर्शन ने जावा में अपना पूर्ण प्रभाव जमा लिया था।
मॉरीशस - छोटा भारत- अफ्रिका महाद्वीप के अन्तर्गत 29 मील चौड़ा, 39 मील लम्बा मॉरीशस एक छोटा-सा टापू हैं। यह द्वीप भारत सें लगभग 2 हजार मील, मैडागास्कर से 500 मील तथा अफ्रीकी तट से सवा हजार मील दूर है। वर्ष 1729 ई. में भारतीयों का एक दल श्रमिकों के रूप में वहाँ पहुँचा ।
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