#सीता हनुमान मिलन
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एसवीएम में मां दुर्गा के नौ रूपों से बच्चों ने कराया साक्षात्कार
इटारसी। न्यास कॉलोनी स्थित अंग्रेजी माध्यम के स्कूल साईं विद्या मंदिर में आज बच्चों ने आधे घंटे की रामायण पर आधारित नृत्य नाटिका प्रस्तुत कर उपस्थितजनों के समक्ष कई प्रसंगों का सजीव चित्रण किया। कैकई का छल व राम का वनवास, मृग द्वारा सीता हरण के लिये राम से छलावा, रावण द्वारा सीता का हरण, भरत मिलाप, राम हनुमान मिलन, राम सुग्रीव मिलन, रावण वध व रावण द्वारा लक्ष्मण को दी गयी शिक्षा का सजीव चित्रण…
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भरतनाट्यम की प्रस्तुति देख अभिभूत हुए विद्यार्थी ✡️|| मेवाड़ विश्वविद्यालय में स्पिक मैके प्रोग्राम के तहत नृत्यांगना विदुषी शिवारंजनी हरीश ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी।🪷
स्पिक मैके के तत्वाधान में आयोजित भरतनाट्यम की कार्यशाला के तहत बुधवार को मेवाड़ विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध कलाकार शिवारंजनी हरीश ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में प्रसिद्ध नृत्यांगना ने अपने चेहरे के हाव-भाव, उत्कृष्ट हस्त मुद्राएं, लयबद्ध पदचाप की सुंदर गतियों सेे भरतनाट्यम नृत्य शैली को बखूबी प्रस्तुत कर, वहां मौजूद सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर खूब तालियां बटोरी। कार्यक्रम की शुरुआत में कुलपति प्रो. (डॉ.) आलोक मिश्रा ने नृत्यांगना शिवारंजनी हरीश को दुशाला और चित्रकला विभाग द्वारा बनी फड पेंटिंग भेटकर स्वागत किया। उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय नृत्य भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। इसलिए युवाओं को अपनी संस्कृति विरासत को संजोने का कार्य करना चाहिए। इसके बाद नृत्यांगना शिवारंजनी हरीश ने कार्यक्रम की शुरुआत पुष्पांजलि और भूमि प्रणाम से की। इसके बाद उन्होंने नृत्य के माध्यम से विद्यार्थियों को भरतनाट्यम की उत्पत्ति, आठ शास्त्रीय नृत्य क्यों अलग है और इनकी क्या महत्ता है को बताया। नृत्य में किस प्रकार खड़ा हुआ जाता है, अरमांडी और अर्धमंडल क्या होती है, आदि अन्य मुद्राओं के बारें मे भी बखूबी बताया। तुलसीदास कृत श्लोकी रामायण में राम जन्म व कैकेयी-मंथरा संवाद, राम वनवास, सीता हरण, मारीच वध, सुग्रीव वध, हनुमान मिलन, जटायु संवाद, हनुमान-सीता संवाद, राम-रावण युद्ध और राम का राज्याभिषेक प्रसंगों पर अभिनय किया, जिसे देखकर दर्शक अभिभूत हो गए। कार्यक्रम में स्पिक मैके के पूर्व चेयरपर्सन जे. पी. भटनागर ने स्पिक मैके का इतिहास व कला के बारे में बताया। कला और संस्कृति विभाग की महानिदेशिका प्रो. (डॉ.) चित्रलेखा सिंह ने अपने स्वागत उद्बोधन में बताया कि भरतनाटयम भारत में सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन नृत्य शैलियों में से एक है। इससे शरीर में लचीलापन और संतुलन दोनों बना रहता है। मुख्य अतिथि क��लपति की पत्नी सुजाता मिश्रा ने कार्यक्रम की काफी प्रशंसा की। यह कार्यक्रम विशेष तौर पर विश्वविद्यालय के छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थियों और आवासीय शिक्षक और उनके परिवार के लिए आयोजित किया गया था। कार्यक्रम का संचालन अनुराधा कुमारी ने किया। जानकारी के मुताबिक शिवारंजनी हरीश कर्नाटक सरकार द्वारा युवा प्रतिभा व आर्यभट्ट अवार्ड और नृत श्री टाइटल भी प्राप्त कर चुकी है।
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Epic Ramayana Story: Lord Hanuman and Mother Sita First Meet (हनुमान-सीता मिलन):
🚩🚩जय श्री राम🚩🚩
#हनुमान_सीता_मिलन (#HanumanSitaMilan):
यह मुद्रिका मातु मैं आनी।
दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥
#सीताजी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण #हनुमान जी को कल्प के समान बीता॥ तब हनुमान जी ने हदय में विचार कर (सीताजी के सामने) अँगूठी डाल दी। सीताजी ने #राम_नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचानकर सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और सोचती है ये जरूर कोई #रावण की माया है।
उसी समय हनुमान् जी मधुर वचन बोले-
रामचंद्र गुन बरनैं लागा।
सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई।
आदिहु तें सब कथा सुनाई॥
वे श्री #रामचंद्र जी के गुणों का वर्णन करने लगे, (जिनके) सुनते ही सीताजी का दुःख भाग गया। वे कान और मन लगाकर उन्हें सुनने लगीं। हनुमान्जी ने आदि से लेकर अब तक की सारी कथा कह सुनाई॥
सीताजी बोलीं- जिसने सुंदर कथा कही वह प्रकट क्यों नही होता?
हनुमान्जी ने कहा-
राम दूत मैं मातु जानकी।
सत्य सपथ करुनानिधान की॥
माँ जानकी मैं श्री रामजी का दूत हूँ। मैं सच कहता हूँ और ये #अंगूठी मैं ही लेकर आया हूँ जो की श्री #राम जी ने दी है।
सीताजी ने पूछा-) नर और #वानर का मिलन कैसे हुआ? तब हनुमानजी ने जैसे जो हुआ था, वह सब कथा कही॥
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#कबीरसागर_का_सरलार्थPart151
‘‘कबीर सागर’’ से अध्याय ‘‘हनुमान बोध’’ का सारांश:- Part C
{परमेश्वर कबीर जी की प्राप्ति के पश्चात् संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा प्रा��्त) ने परमेश्वर कबीर जी की महिमा बताई है। कबीर जी ने बताया है कि:-
कबीर, कह मेरे हंस को, दुःख ना दीजे कोय।
संत दुःखाए मैं दुःखी, मेरा आपा भी दुःखी होय।।
पहुँचुँगा छन एक मैं, जन अपने के हेत।
तेतीस कोटि की बंध छुटाई, रावण मारा खेत।।
जो मेरे संत को दुःखी करैं, वाका खोऊँ वंश।
हिरणाकुश उदर विदारिया, मैं ही मारा कंस।।
राम-कृष्ण कबीर के शहजादे, भक्ति हेत भये प्यादे।।}
लंका का राज्य रावण के छोटे भ्राता विभीषण को दिया। सीता की अग्नि परीक्षा श्री राम ने ली। यदि रावण ने सीता मिलन किया है तो अग्नि में जलकर मर जाएगी। यदि सीता पाक साफ है तो अग्नि में नहीं जलेगी। सीता जी अग्नि में नहीं जली। उपस्थित लाखों व्यक्तियों ने सीता माता की जय बुलाई। सीता सती की पदवी पाई। रावण का वध आसौज मास की शुक्ल पक्ष की दसवीं को हुआ था।
रावण वध के 20 दिन बाद 14 वर्ष की वनवास अवधि पूरी करके श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पुष्पक विमान में बैठकर अयो��्या नगरी में आए। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या थी। उस काली अमावस्या को गाय के घी के दीप अपने-अपने घरों के अंदर तथा ऊपर मण्डेरों पर जलाकर श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण के आगमन की खुशी मनाई। भरत ने अपने भाई श्री रामचन्द्र जी को राज्य लौटा दिया। एक दिन श्री रामचन्द्र जी से सीता ने कहा कि मैं युद्ध में लड़ने वाले योद्धाओं को कुछ इनाम देना चाहती हूँ। इनाम में सीता जी ने हनुमान जी को अपने गले से सच्चे मोतियों की माला निकालकर दे दी तथा कहा, हे हनुमान! यह अनमोल उपहार मैं आपको दे रही हूँ, बहुत सम्भाल कर रखना। हनुमान जी ने उस माला का मोती तोड़ा, फिर फोड़ा। फिर दूसरा, देखते-देखते सब मोती फोड़कर जमीन पर फैंक दिए। सीता जी को हनुमान जी का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। क्रोध में भरकर कहने लगी कि हे मूर्ख! यह क्या कर दिया? ऐसी अनमोल माला का सर्वनाश कर दिया। तू वानर का वानर ही रहा। चला जा मेरी आँखों के सामने से। उस समय श्री रामचन्द्र जी भी सीता जी के साथ ही सिंहासन पर विराजमान थे। उन्होंने भी हनुमान के इस व्यवहार को अच्छा नहीं माना और चुप रहे। हनुमान जी ने कहा, माता जी! जिस वस्तु में राम-नाम अंकित नहीं है, वह मेरे किसी काम की नहीं है। मैंने मोती फोड़कर देखे हैं, इनमें राम-नाम नहीं निकला। इसलिए मेरे काम की नहीं है। सीता जी ने कहा, क्या तेरे शरीर में राम-नाम लिखा है? फिर इस शरीर को किसलिए साथ लिए है, इसको फैंक दे फाड़कर। उसी समय हनुमान जी ने अपना सीना चाक (चीर) कर दिखाया। उसमें राम-राम लिखा था। हनुमान जी उसी समय अयोध्या त्यागकर वहाँ से कहीं दूर चले गए।
श्री रामचन्द्र जी अपनी अयोध्या नगरी की जनता के दुःख दर्द जानने के लिए गुप्त रूप से रात्रि के समय वेश बदलकर घूमा करते थे। कुछ वर्ष उपरांत जब राजा रामचन्द्र जी रात्रि में अयोध्या की गलियों में विचरण कर रहे थे। एक घर से ऊँची-ऊँची आवाज आ रही थी। राजा रामचन्द्र जी ने निकट जाकर वार्ता सुनी। एक धोबी की पत्नी झगड़ा करके घर से चली गई थी। वह दो-तीन दिन अपने बहन के घर रही, फिर लौट आई। धोबी उसकी पिटाई कर रहा था। कह रहा था कि निकल जा मेरे घर से, तू दो रात बाहर रहकर आई है। मैं तेरे को घर में नहीं रखूँगा। तू कलंकित है। वह कह रही थी, मुझे सौगंध भगवान की। सौगंध है राजा राम की, मैं पाक साफ हूँ। आपने मारा तो मैं गुस्से से अपनी बहन के घर गई थी, मैं निर्दोष हूँ। धोबी ने कहा कि मैं दशरथ पुत्रा रामचन्द्र नहीं हूँ जो अपनी कलंकित पत्नी को घर ले आया है जो वर्षों रावण के साथ ��ही थी। अयोध्या नगरी के सब लोग-लुगाई चर्चा कर रहे हैं। क्या जीना है ऐसे व्यक्ति का जिसकी पत्नी अपवित्र हो गई हो। राजा राम ने धोबी के मुख से यह बात सुनी तो कानों में मानो गर्म तेल डाल दिया हो।
क्रमशः....
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बना��ं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#कबीरसागर_का_सरलार्थPart151
‘‘कबीर सागर’’ से अध्याय ‘‘हनुमान बोध’’ का सारांश:- Part C
{परमेश्वर कबीर जी की प्राप्ति के पश्चात् संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा प्रान्त) ने परमेश्वर कबीर जी की महिमा बताई है। कबीर जी ने बताया है कि:-
कबीर, कह मेरे हंस को, दुःख ना दीजे कोय।
संत दुःखाए मैं दुःखी, मेरा आपा भी दुःखी होय।।
पहुँचुँगा छन एक मैं, जन अपने के हेत।
तेतीस कोटि की बंध छुटाई, रावण मारा खेत।।
जो मेरे संत को दुःखी करैं, वाका खोऊँ वंश।
हिरणाकुश उदर विदारिया, मैं ही मारा कंस।।
राम-कृष्ण कबीर के शहजादे, भक्ति हेत भये प्यादे।।}
लंका का राज्य रावण के छोटे भ्राता विभीषण को दिया। सीता की अग्नि परीक्षा श्री राम ने ली। यदि रावण ने सीता मिलन किया है तो अग्नि में जलकर मर जाएगी। यदि सीता पाक साफ है तो अग्नि में नहीं जलेगी। सीता जी अग्नि में नहीं जली। उपस्थित लाखों व्यक्तियों ने सीता माता की जय बुलाई। सीता सती की पदवी पाई। रावण का वध आसौज मास की शुक्ल पक्ष की दसवीं को हुआ था।
रावण वध के 20 दिन बाद 14 वर्ष की वनवास अवधि पूरी करके श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या नगरी में आए। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या थी। उस काली अमावस्या को गाय के घी के दीप अपने-अपने घरों के अंदर तथा ऊपर मण्डेरों पर जलाकर श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण के आगमन की खुशी मनाई। भरत ने अपने भाई श्री रामचन्द्र जी को राज्य लौटा दिया। एक दिन श्री रामचन्द्र जी से सीता ने कहा कि मैं युद्ध में लड़ने वाले योद्धाओं को कुछ इनाम देना चाहती हूँ। इनाम में सीता जी ने हनुमान जी को अपने गले से सच्चे मोतियों की माला निकालकर दे दी तथा कहा, हे हनुमान! यह अनमोल उपहार मैं आपको दे रही हूँ, बहुत सम्भाल कर रखना। हनुमान जी ने उस माला का मोती तोड़ा, फिर फोड़ा। फिर दूसरा, देखते-देखते सब मोती फोड़कर जमीन पर फैंक दिए। सीता जी को हनुमान जी का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। क्रोध में भरकर कहने लगी कि हे मूर्ख! यह क्या कर दिया? ऐसी अनमोल माला का सर्वनाश कर दिया। तू वानर का वानर ही रहा। चला जा मेरी आँखों के सामने से। उस समय श्री रामचन्द्र जी भी सीता जी के साथ ही सिंहासन पर विराजमान थे। उन्होंने भी हनुमान के इस व्यवहार को अच्छा नहीं माना और चुप रहे। हनुमान जी ने कहा, माता जी! जिस वस्तु में राम-नाम अंकित नहीं है, वह मेरे किसी काम की नहीं है। मैंने मोती फोड़कर देखे हैं, इनमें राम-नाम नहीं निकला। इसलिए मेरे काम की नहीं है। सीता जी ने कहा, क्या तेरे शरीर में राम-नाम लिखा है? फिर इस शरीर को किसलिए साथ लिए है, इसको फैंक दे फाड़कर। उसी समय हनुमान जी ने अपना सीना चाक (चीर) कर दिखाया। उसमें राम-राम लिखा था। हनुमान जी उसी समय अयोध्या त्यागकर वहाँ से कहीं दूर चले गए।
श्री रामचन्द्र जी अपनी अयोध्या नगरी की जनता के दुःख दर्द जानने के लिए गुप्त रूप से रात्रि के समय वेश बदलकर घूमा करते थे। कुछ वर्ष उपरांत जब राजा रामचन्द्र जी रात्रि में अयोध्या की गलियों में विचरण कर रहे थे। एक घर से ऊँची-ऊँची आवाज आ रही थी। राजा रामचन्द्र जी ने निकट जाकर वार्ता सुनी। एक धोबी की पत्नी झगड़ा करके घर से चली गई थी। वह दो-तीन दिन अपने बहन के घर रही, फिर लौट आई। धोबी उसकी पिटाई कर रहा था। कह रहा था कि निकल जा मेरे घर से, तू दो रात बाहर रहकर आई है। मैं तेरे को घर में नहीं रखूँगा। तू कलंकित है। वह कह रही थी, मुझे सौगंध भगवान की। सौगंध है राजा राम की, मैं पाक साफ हूँ। आपने मारा तो मैं गुस्से से अपनी बहन के घर गई थी, मैं निर्दोष हूँ। धोबी ने कहा कि मैं दशरथ पुत्रा रामचन्द्र नहीं हूँ जो अपनी कलंकित पत्नी को घर ले आया है जो वर्षों रावण के साथ रही थी। अयोध्या नगरी के सब लोग-लुगाई चर्चा कर रहे हैं। क्या जीना है ऐसे व्यक्ति का जिसकी पत्नी अपवित्र हो गई हो। राजा राम ने धोबी के मुख से यह बात सुनी तो कानों में मानो गर्म तेल डाल दिया हो।
क्रमशः....
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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Jab mata Sita se mile Sri Hanuman ji-रामायण सीता जी हनुमान जी मिलन
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आज सुंदरकांड प्रारम्भ करने से पहले लंका का निरूपण- लंका, शरीर, पृथ्वी, जगत, संसार, त्रिलोक और देह, ये सब पर्यायवाची शब्द हैं। त्रिदेह- स्थूल, सूक्ष्म, कारण शरीर, और उनकी तीन अवस्थाएँ- जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, यही लंका है। इसे "मन" रूपी मय दानव ने बनाया है। "रचित मन दनुज मय रूपधारी" इस देह रूपी लंका में पाँच रहते हैं, मोह- रावण, अहंकार- कुंभकर्ण, काम- मेघनाद, वासना- सूर्पनखा, और इन चारों से त्रस्त पाँचवाँ, जीव- विभीषण। यह विभीषण हम ही हैं, हम पूजा पाठ आदि तो करते हैं पर मोहादि द्वारा किए जा रहे अनाचार, दुराचार, पापाचार को चुनौती नहीं दे पाते। कारण कि आत्मबल नहीं है। यह विभीषण जिन सीता जी का मंदिर बनाकर पूजा करता है, वही सीता जी साक्षात ग्यारह महीने से, अशोक वाटिका में बंदी पड़ी हैं, दिन रात त्रास सहती हैं, बताइए विभीषण ने क्या किया? और ऐसा भी नहीं कि वह जानता न हो, हनुमान जी को सीता जी का पता विभीषण ने ही बताया है, पर सब कुछ जानते हुए भी अनजान सा रहता है। यही स्थिति हमारे साथ है, जानते हम भी हैं पर करते कुछ नहीं। "हाए आसार बुढ़ापे के हुए जाते हैं, और हम दिन की तरह रोज ढले जाते हैं। शर्म तो ये है के सब जानकर अनजान हुए, और अब भी उसी माया पे मरे जाते हैं॥" बस यही जीव का स्वभाव, उसे बंधन में बाँधे हुए है। जीव ऊपर ऊपर, पूजा, पाठ, जप, तप, व्रत, नियम, तीर्थ, दान आदि करता है, पर भीतर वासना का नंगा नाच चलता ही रहता है। उसके थोड़े बहुत टूटे फूटे, नामजप आदि के प्रभाव से, जब पुण्य का पुञ्ज फल देने को एकत्र होता है, तब उसे संत मिलन का सौभाग्य लाभ होता है। "पुण्य पुञ्ज बिनु मिलहिं न संता" जब हनुमान जी रूपी संत ने आकर मंत्र दिया, "तुम्हरो मंत्र विभीषण माना" तब विभीषण ने पहली बार, आत्मबल जुटा कर, रावण के सामने विरोध का स्व�� उठाया, लात तो खाई पर भगवान की शरण में पहुँच गया। लोकेशानन्द का कहना है कि हम तो कितनी ही लात खा चुके, पर हम तब भी नहीं सुधरते। "हजार बार जिस गली से होकर जलील निकले। लेकर चला मचलकर कमबख़्त दिल वहीं पर॥" अब विडियो देखें- https://youtu.be/kLJG5I_IU1I https://www.instagram.com/p/CDI9ET6nJsf/?igshid=14wwbinr6cutv
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माता सीता की सच मे अग्नि परीक्षा या प्रभु की कोई लीला....?
माता सीता की सच मे अग्नि परीक्षा या प्रभु की कोई लीला….?
त्रेता युग मे प्रभु राम और रावण युद्ध और सीता हरण की कथाएँ पूरे विश्व मे प्रचलित है। रावण एक बलवान , बुद्धिमान और शक्तिशाली राक्षस सम्राट था। उसके आतंक से ऋषिमुनि , मानव इत्यादि परेशान थे और अंततः भगवान विष्णु को सृष्टि और मानव कल्याण के लिए रामावतार लेना पड़ा।
सभी ये जानते है कि रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था , तत्पश्चात प्रभु राम उन्हें ढूंढने निकलते है , बाली वध , हनुमान मिलन , रामेश्वर…
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भरत जी को जब राम के वनवास का पता लगता है तो वह माता कैकयी को भला बुरा कहते हैं नोयडा सेक्टर 82 स्थित निरंजनी अखाड़ा, ब्रम्हचारी कुटी में आयोजित श्री महालक्ष्मी यज्ञ एवं श्रीराम कथा के आठवें दिन यज्ञाचार्य महेश पाठक शास्त्री द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के बीच महालक्ष्मी यज्ञ कराया गया। कथा व्यास अतुल प्रेम जी महाराज ने आगे का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान राम ,लक्ष्मण सीता सहित चित्रकूट में वास करते हैं। भरत जी को जब राम के वनवास का पता लगता है तो वह माता कैकयी को भला बुरा कहते हैं। गुरु, माताओं और अयोध्या वासियों के साथ भगवान को मनाने के लिए चित्रकूट पहुंचते हैं।वल्कल वस्त्र एवं जटा धारण किये हुए सीता राम ऐसे लग रहे हैं जैसे रति और कामदेव ने मुनि का वेश धारण कर लिया हो। भगवान राम को भरत जी प्रणाम करते हैं और राम जी उन्हें अपने गले लगा लेते हैं। राम जी लौटने से मना करते है और भरत जी उनकी चरण पादुका लेकर सभी के साथ अयोध्या आ जाते हैं। इसके अलावा अतुल प्रेम जी ने सीता हरण, हनुमान मिलन ,सुग्रीव राम मित्रता आदि रोचक प्रसंगों का भावपूर्ण वर्णन किया।
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धर्म : जेष्ठ माह के चारों मंगलवारों के महत्व और हनुमान जी के गुणगान पर विशेष – – – -भोलानाथ मिश्र साल एक महीना ऐसा आता है जिसे महाबली अंजनी सुत संकटमोचन का महीना माना जाता है। इस महीने को जेठ कहते हैं और अंग्रेजी में इसे मई कहते हैं।इस महीने के चारों मंगलवारों को पवनसुत जगतजननी और प्रभु श्रीराम के अनन्य प्रिय भक्त हनुमानजी का गुणानुवाद गुड़ धनिया चढ़ाकर किया जाता है।इस जेठ महीने और उसके चारों मंगलवार इसलिए भी विशेष महत्व रखते हैं क्योंकि इसी महीने के मंगलवार को ही भगवान शिव ने विष्णु अवतार भगवान राम के लिए बंदर का स्वरूप धारण करके हनुमान के रुप में जन्म लिया था। यहीं कारण है कि जेठ के महीने को भगवान शिव के बारहवें रूद्र बजरंगबली का जन्मोत्सव मनाया जाता है।आज हम सबसे पहले अपने सभी पाठकों को हनुमान जन्मोत्सव की बधाई एवं श��भकामनाएं देते हैं और असुर निकन्दन अजर अमर रोग दोष संकटमोचन हनुमानजी से सभी साथियों के निष्कंटक सुखमय आन्नदित जीवन की कामना करते हैं। हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और जीवन में मोहमाया से ग्रसित नहीं हुये और हमेशा भगवान राम और माता सीता को भ्राता लक्ष्मण के साथ दिल में बिठाये रहते थे।पवनसुत की बाल लीला अपने आप में अद्वितीय मनमोहक है इसीलिए वह बचपन में ही भगवान राम को पसंद आ गये थे। महाबली की अद्भुत बाल लीला के चलते अपने गुरूजी का श्राप झेलना पड़ा और अपनी सारे ताकत ही भूल गये।इस��लिए महाबली को उनकी ताकत का अहसास कराना पड़ता है और जबतक कोई उन्हें उनकी शक्ति का गान नहीं करता है तबतक वह निष्क्रिय निष्प्रोज्य जैसे रहते हैं। मान्यता है कि हनुमान जी ने बाल्यकाल में ही सूर्य को निगल लिया था जिससे अंधेरा छा गया था और सूर्य को बाहर करने के लिये देवताओं को विनती करनी पड़ी थी।भगवान राम के साथ बाल्यकाल बिताने के बाद वह अपने मूल बंदर समाज में लौटकर वानरराज सुग्रीव के रक्षक बन गये थे और माता सीता की तलाश में भगवान राम लक्ष्मण भटक रहे थे तब उन्हें सुग्रीव से मिलाकर मानव और वानर का अद्भभुत मिलन करा दिया था।महाबली रावण राम से ज्यादा हनुमान जी से घबड़ाता था क्योंकि वह उनकी ताकत से वाकिफ थे और जबसे उन्होंने उसकी लंका को जला दिया था तबसे वह बहुत डरने लगा था। रावण प्रकांड विद्वान होने के बावजूद यह नहीं जानता था कि वह जिस भगवान शिव की पूजा करके घमंड करते हैं वही भगवान हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए हैं। कहते हैं कि हनुमान जी उपेक्षा करके भगवान राम से कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती है क्योंकि हनुमानजी को भक्तों का बादशाह माना जाता है और भगवान राम को पाने के लिए हनुमान जी की भक्ति जरूरी मानी जाती है।संकट में फैसे भगवान राम को पाताललोक से वापस लाने के बाद ही उन्हें संकटमोचन की उपाधि भगवान श्रीराम ने दी थी।जेठ का महीना ऐसा होता है जिसमें घर धनधान्य से भर जाता है और लोग मांगलिक कार्यों में मस्त रहते हैं। भगवान राम तो समय पूरा होने के बाद अपने लोक वापस लौट गये थे लेकिन हनुमानजी को वापस लौटने की अनुमति न देकर लोगों की रक्षा के लिए रहने का निर्देश दिया था।रामनगरी अयोध्या जी में स्थित हनुमानगढ़ी में समय समय पर होने वाले अद्भभुत चमत्कार आज भी उनके मौजूद होने के प्रमाण हैं। - वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी ।
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🔵 हनुमान जी का चित्र घर में कहाँ लगायें 🔴 श्रीराम भक्त हनुमान साक्षात एवं जाग्रत देव हैं। हनुमानजी की भक्ति जितनी सरल है उतनी ही कठिन भी। कठिन इसलिए की इसमें व्यक्ति को उत्तम चरित्र और मंदिर में पवित्रता रखना जरूरी है अन्यथा इसके दुष्परिणाम भुगतने होते हैं हनुमानजी की भक्ति से चमत्कारिक रूप से संकट खत्म होकर भक्त को शांति और सुख प्राप्त होता है। विद्वान लोग कहते हैं कि जिसने एक बार हनुमानजी की भक्ति का रस चख लिया वह फिर जिंदगी में अपनी बाजी कभी ��ारता नहीं। जो उसे हार नजर आती है वह अंत में जीत में बदल जाती है। ऐसे भक्त का कोई शत्रु नहीं होता। आपने हनुमानजी के बहुत से चित्र देखे होंगे। जैसे- पहाड़ उठाए हनुमानजी, उड़ते हुए हनुमानजी, पंचमुखी हनुमानजी, रामभक्ति में रत हनुमानजी, छाती चिरते हुए, रावण की सभा में अपनी पूंछ के आसन पर बैठे हनुमानजी, लंका दहन करते हनुमान, सीता वाटिका में अंगुठी देते हनुमानजी, गदा से राक्षसों को मारते हनुमानजी, विशालरूप दिखाते हुए हनुमानजी, आशीर्वाद देते हनुमानजी, राम और लक्षमण को कंधे पर उठाते हुए हनुमानजी, रामायण पढ़ते हनुमानजी, सूर्य को निगलते हुए हनुमानजी, बाल हनुमानजी, समुद्र लांगते हुए हनुमानजी, श्रीराम-हनुमानजी मिलन, सुरसा के मुंह से सूक्ष्म रूप में निकलते हुए हनुमानजी, पत्थर पर श्रीराम नाम लिखते हनुमानजी, लेटे हुए हनुमानजी, खड़े हनुमानजी, शिव पर जल अर्पित करते हनुमानजी, रामायण पढ़ते हुए हनुमानजी, अखाड़े में हनुमानजी शनि को पटकनी देते हुए, ध्यान करते हनुमानजी, श्रीकृष्ण रथ के उपर बैठे हनुमानजी, गदा को कंधे पर रख एक घुटने पर बैठे हनुमानजी, पाताल में मकरध्वज और अहिरावण से लड़ते हनुमानजी, हिमालय पर हनुमानजी, दुर्गा माता के आगे हनुमानजी, तुलसीदासजी को आशीर्वाद देते हनुमानजी, अशोक वाटिका उजाड़ते हुए हनुमानजी, श्रीराम दरबार में नमस्कार मुद्रा में बैठे हनुमानजी आदि। जिस घर में हनुमानजी का चित्र होता है वहां मंगल, शनि, पितृ और भूतादि का दोष नहीं रहता। हनुमानजी के भक्त हैं तो घर में हनुमानजी के चित्र कहां और किस प्रकार के लगाएं यह जानना जरूरी है। आओ आज हम आपको बताते हैं श्रीहनुमानजी के चित्र लगाने के कुछ नियम. किस दिशा में लगाएं हनुमानजी का चित्र : वास्तु के अनुसार हनुमानजी का चित्र हमेशा दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए लगाना चाहिए। यह चित्र बैठी मुद्रा में लाल रंग का होना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके हनुमानजी का चित्र इसलिए अधिक शुभ है क्योंकि हनुमानजी ने अपना प्रभाव सर्वाधिक इसी दिशा में दिखाया है। हनुमानजी का चित्र लगाने पर दक्षि
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Jab mata Sita se mile Sri Hanuman ji-रामायण सीता जी हनुमान जी मिलन
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