#शरीर रचना विज्ञान और शरीर विज्ञान
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!! हे परमेश्वर!!*
कोई आवेदन नहीं किया था, किसी की सिफारिश नहीं थी, फिर भी यह स्वस्थ शरीर प्राप्त हुआ।
सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक हर क्षण रक्त प्रवाह हो रहा है…
जीभ पर नियमित लार का अभिषेक हो रहा है…
न जाने कौनसा यंत्र लगाया है कि निरंतर हृदय धड़कता है…
पूरे शरीर, हर अंग में बिना रुकावट संदेशवाहन करने वाली प्रणाली कैसे चल रही है कुछ समझ नहीं आता!
हड्डियों और मांस में बहने वाला रक्त कौन सा अद्वितीय आर्किटेक्चर है, इसका किसी को अंदाजा भी नहीं है।
हजार-हजार मेगापिक्सल वाले दो-दो कैमरे के रूप में आंखें संसार के दृश्य कैद कर रही हैं!
दस-दस हजार टेस्ट करने वाली जीभ नाम की टेस्टर कितने प्रकार के स्वाद का परीक्षण कर रही हैं!
सैकड़ों संवेदनाओं का अनुभव कराने वाली त्वचा नाम की सेंसर प्रणाली का विज्ञान जाना ही नहीं जा सकता।
अलग-अलग फ्रीक्वेंसी की आवाज पैदा करने वाली स्वर प्रणाली शरीर में कंठ के रूप में है।
उन फ्रीक्वेंसी को कोडिंग-डीकोडिंग करने वाले कान नाम का यंत्र इस शरीर की विशेषता है।
पचहत्तर प्रतिशत पानी से भरा शरीर लाखों रोमकूप होने के बावजूद कहीं भी लीक नहीं होता..
बिना किसी सहारे मैं सीधा खड़ा रह सकता हूं..
गाड़ी के टायर चलने पर घिसते हैं, पर पैर के तलवे जीवन भर चलने के बाद भी आज तक नहीं घिसे अद्भुत ऐसी रचना है!
हे भगवान तू इसका संचालक है, तू ही निर्माता।
स्मृति, शक्ति, शांति ये सब भगवान तू देता है। तू ही अंदर बैठ कर शरीर चला रहा है।
अद्भुत है यह सब, अविश्वसनीय!
ऐसी शरीर रूपी मशीन में हमेशा तू ही है.. इसका अनुभव कराने वाला आत्मा भगवान तू है।
यह तेरा खेल मात्र है। मैं तेरे खेल का निश्छल, निस्वार्थ आनंद का हिस्सा रहूं! ..ऐसी सद्बुद्धि मुझे दे!!
तू ही यह सब संभालता है इसका अनुभव मुझे हमेशा रहे!!!
रोज पल-पल कृतज्ञता से तेरा ऋणी होने का स्मरण, चिंतन हो, यही परमेश्वर के चरणों में प्रार्थना है 🙏🏻🙏🏻🌹💑🌹🙏🏻
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BAMS -Certificate of Basic Ayurvedic Medical Science.
CERTIFICATE OF BASIC AYURVEDIC MEDICAL SCIENCE.बुनियादी आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान (Basic Ayurvedic Medical Science) समकक्ष B.A.M.S.( आयुर्वेदाचार्य) कोर्स गुरु शिष्य परंपरा द्वारा ऐसे विद्यालय जहां विद्यार्थी (शिष्य) अपने परिवार से दूर होकर गुरु के आश्रम (विद्यालय )में गुरु के परिवार का हिस्सा बनकर शिक्षा प्राप्त करता है |भारत में इन गुरु आश्रम (विद्यालयों)का बहुत महत्व रहा है प्रसिद्ध आचार्य (शिक्षकों) के गुरुकुल से पढ़ रहे छात्र छात्राएं बहुत सम्मानित होते रहे हैं जिनमें राम (शिष्य विद्यार्थी) ने ऋषि वशिष्ठ गुरु (शिक्षक )व पांडवों (शिष्य विद्यार्थी)ने गुरु शिक्षक द्रोणाचार्य के गुरुकुल (विद्यालय )में रहकर शिक्षा प्राप्त की थी|भारत में मूल रूप से तीन प्रकार की शिक्षा संस्था में संचालित होती आई हैं (1)गुरुकुल- गुरुकुल में शिष्य गुरु के परिवार के साथ रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे (2)परिषद -जहां विशेषज्ञ द्वारा शिक्षा दी जाती थी | (3)तपस्थली जहां बड़े-बड़े सम्मेलन होते थे जिनमें प्रवचन ज्ञान दिया जाता था| किसी भी गुरुकुल के प्रधान प्रिंसिपल डायरेक्टर को कुलपति कहा जाता था |आज के समय में सभी के दिमाग में यह प्रश्न उठता है कि भारत की यह प्रश्न उठता है कि भारत की प्राचीन गुरुकुल की शिक्षा व्यवस्था कहां गई जब कोई वस्तु राजनीति के दायरे में आ जात��� है तो उस वस्तु को धीरे-धीरे अपना अस्तित्व समाप्त होने का आभास होता है और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली जिसे विश्व गुरु आर्यवर्त की शिक्षा पद्धति का क्योंकि किसी भी देश का विकास उन्नति तभी संभव है जब शिक्षा व्यवस्था ठीक हो भारत में प्राचीनतम समय से ही गुरुकुल शिक्षा पद्धति से शिक्षा दी जाती रही थी और यह भी सत्य है कि जब तक भारत में गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत शिक्षा प्रदान होती रहिए भारत का मान-सम्मान पूरे विश्व में बना रहा हमारा संस्थान भी भारत को पूरे विश्व में सर्वोच्च स्थान पर देखना चाहता है ,इसीलिए हमारे संस्थान ने विभिन्न शिक्षण कलाओं को प्राचीन शिक्षा पद्धति गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत शिष्य शिष्य छात्र-छात्राओं को सिखाने का संकल्प लिया है जिसके अंतर्गत हमारे गुरुकुल द्वारा अध्ययन कराया जाएगा भारतवर्ष में इस समय कुछ गुरुकुल विभिन्न शिक्षा कलाओं का गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत अध्ययन करा रहे हैं जिनमें हमारा संस्थान आयुष विकास विद्यापीठ के अंतर्गत माननीय होकर महर्षि वाल्मीकि गुरुकुल विद्यापीठ ऋषि वशिष्ठ गुरुकुल विद्यापीठ गुरु द्रोणाचार्य गुरुकुल विद्यापीठ आर्यावर्त गुरुकुल विद्यापीठ प्रमुख है हमारे गुरुकुल महर्षि वाल्मीकि गुरुकुल विद्यापीठ द्वारा पंचवर्षीय आयुर्वेद प्रमाणपत्र बुनियादी आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान समकक्ष बीएएमएस आयुर्वेदाचार्य कोर्स का संचालन हो रहा है जिसे गुरु शिष्य परंपरा द्वारा कुल प्रमुख (कुलपति) के आशीर्वाद से संचालित किया जा रहा है | कोर्स – बुनियादी आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान योग्यता -12बी अथवा समकक्ष | अवधि -5 वर्षीय | शिक्षा विधि- गुरुकुल (गुरु शिष्य परंपरा )/नियमित होगा| इस बुनियादी आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत प्रशिक्षण अवधि 5 वर्ष में व गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत निम्न विषयों में दी जाएगी | प्रथम वर्ष 1)आयुर्वेद का इतिहास 2) प्राथमिक चिकित्सा 3)पदार्थ विज्ञान 4)अष्टांग स���ग्रह एवं त्रिदोष विज्ञान 5)शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान द्वितीय वर्ष 1) स्वस्थवृत्त 2)रस शास्त्र एवं भृसजय कल्पना विज्ञान 3)द्रव्यगुण विज्ञान 4)रोग एवं विकृति विज्ञान 5)अगद तंत्र व्यवहार विधि तथा नीति विधि विधि तृतीय वर्ष 1)प्रसूति तंत्र एवं स्त्री रोग विज्ञान 2) बाल तंत्र कौमारभृत्य 3)काय चिकित्सा 4)शल्य सिद्धांत 5) नेत्र रोग चतुर्थ वर्ष 1)चरक संहिता सूत्र संस्थान विमान संस्थान इंद्रिय 2) रोग विज्ञान एवं चिकित्सा अध्यात्मक 3)रसायन बाजीकरण 4)यौन रोग निदान एवं उपचार 5)आधुनिक रोग निदान उपचार पंचम वर्ष 1)मानस रोग विज्ञान 2) चर्म रोग निदान 3)चरक संहिता चिकित्सा स्थान सिद्धि स्थान कल प्रस्थान 4)शल्य तंत्र 5)संतति निरोध कैंसर एक्स-रे निदान व चिकित्सा कोर्स शुल्क प्रतिमाह 1050/- रुपए ( नामांकन सहयोग राशि सदस्यता शुल्क रजिस्ट्रेशन शुल्क अतिरिक्त) Contect- [email protected]
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डॉ. थानवी ने छात्र कल्याण अधिष्ठाता का कार्यभार किया ग्रहण
बीकानेर, 26 नवम्बर। वेटरनरी कॉलेज के शरीर रचना विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज कुमार थानवी ने मंगलवार को राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता का कार्यभार ग्रहण किया। कार्यभार ग्रहण करने के बाद डॉ. थानवी ने बताया कि विद्यार्थियों के हित से जुड़े कार्य प्राथमिकता से किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि इससे पहले डॉ. थानवी के पास विश्वविद्यालय के पूल अधिकारी का कार्यभार…
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वर्चुअल रियलिटी स्वास्थ्य शिक्षा में लाएगी क्रांति, मेडिकल छात्रों के लिए इलाज सीखना होगा आसान
स्वास्थ्य शिक्षा में आभासी वास्तविकता: आभासी वास्तविकता (वीआर) इमर्सिव और इंटरैक्टिव तकनीक प्रदान करके स्वास्थ्य शिक्षा में क्रांति ला रही है। यह छात्रों और पेशेवरों को चिकित्सा प्रक्रियाओं और शरीर रचना विज्ञान के यथार्थवादी और व्यावहारिक सिमुलेशन में संलग्न होने की अनुमति देता है और वास्तविक जीवन के अभ्यास से जुड़े जोखिमों को कम करता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि स्वास्थ्य शिक्षा में आभासी…
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Ayurveda Specialist Sexologist in Patna, Bihar India | Dr. Sunil Dubey
आयुर्वेद और हमारा जीवन:
भारत की एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली जिसे आयुर्वेदिक उपचार कहा जाता है। प्राचीन समय के अध्ययन से पता चलता है कि आयुर्वेद की उत्पत्ति अथर्ववेद से मानी जाती है, जिसमे कई बीमारियों का उल्लेख उनके उपचारों के साथ किया गया है। आयुर्वेद का मानना है कि पूरा ब्रह्मांड पाँच तत्वों के संयोजन जैसे कि वायु, जल, अंतरिक्ष, पृथ्वी और अग्नि से बना है। ये पाँच तत्व हमेशा पंचमहाभूत को भी संदर्भित करते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा भारत का मूल व पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है जो पंचकर्म (5 क्रियाएँ) सहित कई तरह के उपचारों का संदर्भित करती है।
पंचकर्म के नाम निम्नलिखित हैं:-
योग
मालिश
एक्यूपंक्चर
हर्बल दवा
��्वास्थ्य संवर्धन
आयुर्वेद का हमारे जीवन में उद्देश्य:
आयुर्वेद एक प्राकृतिक चिकित्सा व उपचार की पद्धति है, जिसकी उत्पत्ति 3000 वर्ष पूर्व भारत में हुई थी। आयुर्वेद शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है- आयुर् का अर्थ है जीवन और वेद का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि (आयुर् + वेद) आयुर्वेद हमें प्रकृति के माध्यम से जीवन जीने का संपूर्ण ज्ञान प्रदान करता है। प्रकृति के साधनो व संसाधनों का सदुपयोग करना ही जीवन का मूल उद्देश्य है।
आयुर्वेद के सात चरण होते है:
वास्तव में, आयुर्वेद के सात चरणों को सप्त धातुएँ भी कहा जाता है। प्रत्येक अवस्था का हमारे जीवन में अपना ही महत्व है। ये चरण निम्नलिखित हैं: -
रस: रस स्वाद से कहीं अधिक एक बड़ी अवधारणा है, जहाँ स्वाद किसी बड़ी अवधारणा में प्रवेश करने वाला पहला उपकरण होता है।
रक्त: "रक्त" शब्द देवनागरी शब्द "राज रंजने" से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है - लाल रंग।
मांस: यह शब्द संस्कृत भाषा "मनसा" से लिया गया है, जिसका आयुर्वेद में अर्थ होता है - तीसरा ऊतक, मांसपेशी ऊतक है।
मेद: आयुर्वेद चिकित्सा में, यह शब्द धातु ऊतक का प्रतिनिधित्व करता है जो वसा से संबंधित है।
अस्थि: आयुर्वेद में, अस्थि शब्द शरीर रचना के संदर्भ में मानव शरीर के बारे में सीखना को संदर्भित करता है।
मज्जा: यह शब्द तंत्रिका तंत्र से संबंधित है और इसे मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में चयापचय प्रक्रियाओं को विनियमित करने वाला माना जाता है।
शुक्र: इसे शरीर में सातवीं धातु माना जाता है। यह शरीर का अंतिम ऊतक तत्व है।
��युर्वेद के चार स्तंभ:
हमारे विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे जो कि पटना के बेस्ट सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर भी है, वे कहते हैं कि जैसे कि हम सभी जानते है कि आयुर्वेद के चार स्तंभ होते हैं जो व्यक्ति को उसके अच्छे स्वास्थ्य को प्रबंधन करना व उसे तंदरुस्त बनाए रखने की कला सिखाते हैं। ये चार स्तंभ निम्नलिखित हैं-
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दिनचर्या: व्यक्ति अपनी दिनचर्या के साथ इस प्रकृति में कैसे रहता हैं, यह हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हमेशा मायने रखता है।
शरीर के लिए पोषण: व्यक्ति क्या खाता हैं और उसकी इंद्रियाँ क्या और कैसे अनुभव करती हैं, यह हमारे स्वस्थ शरीर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ है।
शरीर का पाचन: व्यक्ति जो कुछ भी अपने शरीर में ग्रहण करते हैं, उसे उसका शरीर कैसे पाचन करता है और वे कैसे उसका उत्सर्जन होता हैं, यह हमारे शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण स्तंभ है।
ऊर्जा प्रबंधन: मनोवैज्ञानिक, तनाव और कई अन्य घटनाएँ व्यक्ति के दिमाग में चलती रहती हैं। उसका ऊर्जा का स्तर इसे कैसे प्रबंधित करता है, जो व्यक्ति की सोच का संदर्भित करता है।
दरअसल, आज की यह चर्चा आयुर्वेदिक चिकित्सा-उपचार और हमारे यौन स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सक (सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर) पर आधारित है। कई लोगों ने दुबे क्लिनिक से आयुर्वेद और व्यक्ति के दैनिक जीवन में इसके महत्व के बारे में कुछ जानकारी साझा करने का ��नुरोध किया। यहाँ दुबे क्लिनिक ने व्यक्ति के स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक चिकित्सा व उपचार के बारे में कुछ जानकारी साझा करने का प्रयास किया है। हमें उम्मीद है कि इस लेख को पढ़ने के बाद वे लोग अपने यौन स्वास्थ्य के बेहतरी के लिए इस प्राकृतिक चिकित्सा से संतुष्ट होंगे जो हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
गुप्त व यौन विकारों के इलाज में आयुर्वेदिक चिकित्सा सबसे सफल क्यों है?
वास्तव में, आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली जड़ी-बूटियों, रसायनों, भस्म आदि प्राकृतिक तत्वों पर आधारित है। एक अनुभवी आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर या आयुर्वेदाचार्य इस चिकित्सा प्रणाली में विशेषज��ञ होते हैं। डॉ. सुनील दुबे भारत के एक विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य और बिहार के सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट हैं, जिन्हें आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान में साढ़े तीन दशकों से अधिक का अनुभव है। उनका कहना है कि आयुर्वेद में समस्त गुप्त व यौन बीमारी के लिए 100% सटीक इलाज और दवा उपलब्ध है। वे भारत के सबसे सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर में से एक है और वे पुरुषों, महिलाओं, युवा और मध्यम आयु वर्ग के सभी गुप्त व यौन रोगियों को अपना व्यापक आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार प्रदान करते हैं।
उनका कहना है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार एक सुरक्षित इलाज की प्रक्रिया हैं क्योंकि उन्हें प्राकृतिक अवयवों को शुद्ध करने से लेकर निर्माण तक की कई प्रक्रियाओं से गुज़ारने के बाद बनाया जाता है। इन सभी प्रक्रियाओं में मैन्युअल रूप से और गर्मी या अन्य रूपों में बहुत अधिक ऊर्जा लगती है। इसलिए, यह महंगा हो सकता है लेकिन इसे सभी उद्देश्यों के लिए गुणवत्ता-सिद्ध और सत्यापित होना चाहिए। आयुर्वेदिक दवाएं सभी गुप्त व यौन रोगियों (पुरुष और महिला) के लिए सबसे सफल प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया है जो विभिन्न यौन रोगों से पीड़ित हैं।
पुरुष गुप्त रोगियों के लिए: - जो व्यक्ति स्तंभन दोष की समस्याओं, स्खलन विकार, शीघ्रपतन की समस्या, यौन संचारित रोगों, धातु रोग, कामे��्छा की कमी, बांझपन की समस्याओं व अन्य गुप्त रोग से पीड़ित हैं।
महिला यौन रोगियों के लिए:- जो मासिक धर्म संबंधी समस्याओं, यौन विकारों, योनि संबंधी समस्याओं, यौन संचारित संक्रमणों, दर्द विकारों, योनिजन्य दर्द आदि से पीड़ित हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार की विशेषता:
हमारे आयुर्वेदाचार्य आयुर्वेद एवं सेक्सोलॉजी के चिकित्सा संकाय में आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर के रूप में एक लम्बे समय से कार्यरत हैं। बिहार के सभी जिलों व भारत के विभिन्न शहरों से गुप्त व यौन रोगी हमेशा दुबे क्लिनिक में परामर्श लेने के लिए जुड़ते हैं, इसलिए वे भारत के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर भी हैं। उनका कहना है कि चिकित्सा की यह प्राकृतिक प्रणाली गुप्त व यौन रोगियों को हमेशा सुरक्षित, शुद्ध, प्रभावी और विश्वसनीय उपचार प्रदान करती है।
आयुर्वेद उपचार की विशेषताएं निम्नलिखित हैं: -
समग्र गुप्त व यौन समस्याओं का रामबाण इलाज।
स्वाभाविक रूप से एंटीऑक्सीडेंट गुणों में सुधार करता है।
प्रतिरक्षा और रोगाणुरोधी क्षमता का निर्माण करता है।
मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव प्रबंधन में मदद करता है।
हृदय, त्वचा, जोड़ों, यकृत और शरीर के लिए अच्छा है।
पाचन स्वास्थ्य के लिए हमेशा अच्छा है।
श्वसन स्वास्थ्य में भी सुधार करता है।
कोई भी रोगी इस आयुर्वेदिक दवा का उपयोग कर सकता है।
दुबे क्लिनिक के बारे में:
दुबे क्लिनिक भारत का विश्वसनीय व बिहार का पहला आयुर्वेदा व सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान क्लिनिक है। वर्तमान समय में भारत के अधिकांश गुप्त व यौन रोगियों के लिए सबसे विश्वसनीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय है। यह एक प्रमाणित क्लिनिक है और पिछले 60 वर्षों से सभी प्रकार के गुप्त व यौन रोगियों को अपनी चिकित्सा व उपचार प्रदान करते आ रही है। यह आयुर्वेदिक क्लिनिक 6 दशकों की विरासत के साथ लाखों लोगों के विश्वास के पर खड़ी है।
डॉ. सुनील दुबे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर हैं, जो विश्व के शीर्ष 10 सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर की सूची में स्थान में सम्मिलित हैं। वे पहले भारतीय सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर भी हैं, जिन्हें भारत गौरव अवार्ड, गोल्ड मैडल, अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेद रत्न अवार्ड और एश��या फेम आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। वे दुबे क्लिनिक में प्रतिदिन प्रैक्टिस करते हैं, जहाँ पूरे भारत से सौ के करीबन में प्रतिदिन गुप्त व यौन रोगी हमेशा इस क्लिनिक से फ़ोन पर संपर्क करते हैं। एक तिहाई गुप्त व यौन रोगी पटना के दुबे क्लिनिक में अपना इलाज करवाने प्रतिदिन आते हैं। वे उन सभी रोगियों को उनके समस्याओं के अनुसार चिकित्सा व उपचार प्रदान करते है।
शुभकामनाओं के साथ:
दुबे क्लिनिक
भारत में एक प्रमाणित क्लिनिक
डॉ. सुनील दुबे, गोल्ड मेडलिस्ट सेक्सोलॉजिस्ट
बी.ए.एम.एस. (रांची) | एम.आर.एस.एच. (लंदन) | पीएच.डी. आयुर्वेद में (यूएसए)
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350 92586
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना – 04
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Meet Best Choice sexologist doctor in Patna today | Make your sexual life better | Dubey Clinic
आयुर्वेद और हमारा जीवन:
आयुर्वेद प्रकृति का अनमोल उपहार जिसकी उत्पत्ति का सारा श्रेय अथर्ववेद को जाता है, जहाँ कई बीमारियों का उल्लेख और उनके उपचारों की सभी जानकारी इस वेद में दिया गया है। आयुर्वेद का मूल सार यह है कि पुरे ब्रह्मांडके जीवित प्राणी का समावेश पाँच तत्वों जैसे वायु, जल, अंतरिक्ष, पृथ्वी और अग्नि से बना है। ये पाँच तत्व हमेशा पंचमहाभूत को भी संदर्भित करते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा भारत की मूल एवं पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें पंचकर्म (5 क्रियाएँ) सहित कई प्रकार के उपचारों का उपयोग किया जाता है।
पंचकर्म के नाम निम्नलिखित हैं:- 1. योग 2. मालिश 3. एक्यूपंक्चर 4. हर्बल मेडिसिन 5. स्वास्थ्य को बढ़ावा। आयुर्वेद चिकित्सा की एक प्राकृतिक प्रणाली है, जिसकी उत्पत्ति भारत में 3000 वर्ष से भी पहले हुई थी। आयुर्वेद शब्द संस्कृत शब्दों (आयुर् एवं वेद) से लिया गया एक शब्द है आयुर् जिसका अर्थ है जीवन और वेद जिसका अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद हमें प्रकृति के माध्यम से जीवन का संपूर्ण ज्ञान सिखाता है।
आयुर्वेद के सात चरण: दरअसल, आयुर्वेद के इन सात चरणों को सप्त धातु कहा जाता है। प्रत्येक चरण का हमारे जीवन के लिए अपना महत्व है। ये निम्नलिखित हैं:-
रस: रस स्वाद से कहीं अधिक बड़ी अवधारणा है, जहाँ स्वाद किसी बड़ी अवधारणा में प्रवेश करने वाला पहला उपकरण है। जिससे की जीवित प्राणी इस रस का आनंद लेता है।
रक्त: "रक्त" शब्द देवनागरी शब्द "राज रंजने" से लिया गया है, जिसका अर्थ लाल रंग होता है।
मांस: यह संस्कृत शब्द "मनसा" से लिया गया है, जो आयुर्वेद में तीसरे ऊतक, मांसपेशी ऊतक को दर्शाता है।
मेद: आयुर्वेद चिकित्सा में, यह धातु ऊतक का प्रतिनिधित्व करता है जो वसा का प्रतिनिधित्व करता है।
अस्थि: आयुर्वेद में, अस्थि शरीर रचना के संदर्भ में मानव शरीर के बारे में दर्शाता है।
मज्जा: यह तंत्रिका तंत्र से संबंधित है और मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में चयापचय प्रक्रियाओं को विनियमित करने वाला होता है।
शुक्र: इसे शरीर में सातवीं धातु माना जाता है। यह शरीर का अंतिम ऊतक तत्व है।
आयुर्वेद के चार स्तंभ:
हमारे विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे बताते हैं कि आयुर्वेद के चार स्तंभ होते हैं जो हमें अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में हमारी मदद करते हैं। ये चार स्तंभ निम्नलिखित हैं-
1. हमारी दिनचर्या: हम अपनी दिनचर्या के साथ इस प्रकृति में कैसे रहते हैं, यह हमेशा हमारे शरीर के लिए मायने रखता है। यह हमारी प्रकृति को भी व्यक्त करता है।
2. शरीर के लिए पोषण: हम क्या खाते हैं और हमारी इंद्रियाँ क्या अनुभव करती हैं, यह हमारे स्वस्थ शरीर के लिए महत्वपूर्ण है। एक कहावत है कि हम जैसा खाते है, वैसे ही बनते है।
3. शरीर का पाचन: हम जो कुछ भी अपने शरीर में ग्रहण करते हैं, उसे हम कैसे पचाते और उत्सर्जित करते हैं, यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है।
4. ऊर्जा प्रबंधन: मनोवैज्ञानिक, तनाव और कई अन्य घटनाएँ हमारे दिमाग में चलती रहती हैं। हमारा ऊर्जा स्तर इसे कैसे प्रबंधित करता है, यह हमारी सोच का संकेत है। ऊर्जा का संचयन व सकारात्मक व्यय हमारे शरीर में एक प्रतिफल के रूप में होता है।
आज की हमारी चर्चा का मुख्य बिंदु आयुर्वेदिक चिकित्सा और हमारे यौन स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सक पर आधारित है। भारत के विभिन्न शहरों से ���ई लोगों ने हमसे आयुर्वेद और हमारे दैनिक जीवन में इसके महत्व के बारे में कुछ जानकारी साझा करने का अनुरोध किया। यहाँ दुबे क्लिनिक ने स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक प्रद्धति एवं इसके दवाओं के बारे में कुछ जानकारी साझा करने की कोशिश की है। हमें उम्मीद है कि इस लेख को पढ़ने के बाद वे लोग इस प्राकृतिक चिकित्सा की पद्धति से संतुष्ट होंगे जो हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
बहुत सारे लोगो ने यह पूछा कि यौन रोगियों के उपचार के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा सबसे सफल क्यों है?
यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है क्योकि बहुत सारे लोग जो लोग आयुर्वेदिक उपचार को हल्के में लेते है। निश्चित ही, आयुर्वेदिक उपचार के वास्तविकता को समझेंगे तो उन्हें बहुत फायदा ह��गा। वास्तव में, आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली जड़ी-बूटियों, रस - रसायनों, भस्मो आदि जैसे प्राकृतिक पदार्थों पर आधारित है। आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर या आयुर्वेदाचार्य इस चिकित्सा प्रणाली में विशेषज्ञता रखते हैं। डॉ. सुनील दुबे एक विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य और पटना में सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर हैं, जिन्हें आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान में साढ़े तीन दशकों से भी अधिक समय का अनुभव है।
उनका मानना है कि आयुर्वेद में किसी भी बीमारी का 100% सटीक व शुद्ध उपचार और दवा उपलब्ध है। वे भारत में एक वरिष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर के रूप में दुबे क्लिनिक में कार्यरत हैं साथ-ही-साथ वे पुरुषों, महिलाओं, युवा और मध्यम आयु वर्ग के सभी प्रकार के यौन रोगियों को अपना आयुर्वेदिक उपचार और दवा प्रदान करते हैं।
उनका कहना है कि आयुर्वेदिक दवाएँ महंगी हो सकती हैं क्योंकि वे शुद्धिकरण से लेकर निर्माण तक की कई प्रक्रियाओं के लिए प्राकृतिक अवयवों के अधीन होने के बाद बनाई जाती हैं। इन सभी प्रक्रियाओं में मैन्युअल रूप से और गर्मी या अन्य रूपों में बहुत अधिक ऊर्जा की खपत होती है। यही कारण है कि यह महंगा हो सकता है लेकिन इसे सभी उद्देश्यों के लिए गुणवत्ता-सिद्ध और सत्यापित होना चाहिए। आजकल के प्रतिस्पर्धा में सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर ने गुणवत्ता कम मात्रा पर अधिक ध्यान दिया है जिससे वे मरीज को तो बेवकूफ बना देते है, परन्तु इस पेशे के वास्तविक्ता को नहीं।
आयुर्वेदिक दवाएं उन सभी यौन रोगियों (पुरुषों व महिलाओं) के लिए सबसे सफल उपचार प्रक्रिया है जो विभिन्न प्रकार के यौन रोगों से पीड़ित हैं।
पुरुष यौन रोगियों के लिए:- जो पुरुष इरेक्शन की समस्या (कमजोर इरेक्शन, कभी-कभार इरेक्शन व इरेक्शन न की स्थिति), स्खलन विकार (शीघ्रपतन, प्रतिगामी स्खलन, व विलम्बित स्खलन), यौन संचारित रोग, धातु रोग, कामेच्छा और बांझपन की समस्याओं से पीड़ित हैं।
महिला यौन रोगियों के लिए:- जो मासिक धर्म की समस्याओं, यौन विकार, योनि संबंधी समस्याओं, यौन संचारित संक्रमण, दर्द विकार, वैजिनिस्मस आदि से पीड़ित हैं।
आयुर्वेद की विशेषता: हमारे आयुर्वेदाचार्य आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी के चिकित्सा संकाय में भारत के नंबर वन आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनसे इलाज के लिए भारत के साथ-साथ बिहार के पूरे जिलों से यौन रोगी हमेशा दुबे क्लिनिक आते हैं, इसलिए; वे उन सभी के लिए बिहार के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट हैं। उनका लोगो से यही कहना है कि चिकित्सा की यह प्राकृतिक प्रणाली हमेशा यौन रोगियों को सुरक्षित, शुद्ध, प्रभावी और विश्वसनीय उपचार प्रदान करती है। यह रोगो को जड़ से ख़त्म करती है जिससे कि यौन या गुप्त रोगी को आजीवन उसके परेशानी से छुटकारा मिल जाता है।
आयुर्वेद चिकित्सा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:-
संपूर्ण यौन समस्याओं से राहत मिलती है।
प्राकृतिक रूप से एंटीऑक्सीडेंट गुणों में सुधार करता है।
प्रतिरक्षा और रोगाणुरोधी गुणों का निर्माण करता है।
मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव प्रबंधन में मदद करता है।
हृदय, त्वचा, जोड़, यकृत और शरीर के लिए अच्छा है।
पाचन स्वास्थ्य के लिए हमेशा अच्छा है।
श्वसन स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है।
कोई भी रोगी इस आयुर्वेदिक दवा का उपयोग कर सकता है।
दुबे क्लिनिक के बारे में:
दुबे क्लिनिक बिहार का पहला आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान क्लिनिक है जो कि पटना के लंगर टोली, चौराहा के नजदीक स्थित है। वर्तमान समय में सभी भारतीय यौन रोगियों के लिए यह आयुर्वेदिक क्लिनिक सबसे विश्वसनीय स्थान है। यह एक प्रमाणित क्लिनिक है जो कि 60 वर्षों से यौन रोगियों की सेवा व उनका इलाज करते आ रहा है। वास्तव में, इस आयुर्वेदिक क्लिनिक की 6 दशकों की विरासत लाखों लोगों के विश्वास के साथ खड़ी है। यह चिकित्सालय अपने प्राकृतिक दवा व इलाज के गुणवत्ता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है।
डॉ. सुनील दुबे एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर हैं जो दुनिया के शीर्ष-5 वरिष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर की सूची में स्थान रखते हैं। वे पहले भारतीय सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर भी हैं जिनको कि भारत गौरव पुरस्कार, स्वर्ण पदक, अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेद रत्न पुरस्कार और एशिया फेम आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर से सम्मानित किया गया है। वह दुबे क्लिनिक नित्य-दिन प्रैक्टिस करते हैं, जहाँ पूरे भारत से सौ से अधिक यौन रोगी प्रतिदिन उनसे फ़ोन पर संपर्क करते हैं। एक तिहाई यौन रोगी पटना के दुबे क्लिनिक में अपना इलाज करवाने आते हैं। वह उन सभी की उचित प्रतिक्रिया देते हैं और उन्हें उनका इलाज और दवाएँ देने में मदद करते है।
शुभकामनाओं के साथ:
दुबे क्लिनिक
भारत में एक प्रमाणित क्लिनिक
डॉ. सुनील दुबे, गोल्ड मेडलिस्ट सेक्सोलॉजिस्ट
बी.ए.एम.एस. (रांची) | एम.आर.एस.एच. (लंदन) | आयुर्वेद में पी.एच.डी. (यू.एस.ए.)
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना - 04
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350 92586; +91 91555 55112
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Financetime.in हरियाणा में चिकित्सा शिक्षा के पाठ्यक्रम को बदलने के लिए एमबीबीएस में आयुर्वेद को शामिल करना, स्वास्थ्य समाचार, ईटी हेल्थवर्ल्ड
नई दिल्ली: हरियाणा सरकार एमबीबीएस छात्रों के लिए पांचवें वर्ष में आयुर्वेद की पढ़ाई अनिवार्य करने की दिशा में काम कर रही है। इस दिशा में हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने मेडिकल छात्रों को आयुर्वेद पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम कार्यक्रम तैयार करने और तैयार करने के लिए टीमों का गठन किया है। शरीर रचना विज्ञान और शरीर विज्ञान जैसे विषय, जो एलोपैथी और आयुर्वेद दोनों में पाए जाते हैं, दोनों शाखाओं के…
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बसंत पंचमी ,नया कामकाज शुरू करने के लिए साथ ही अनसूझा विवाह के लिए है बहुत शुभ, बन रहे हैं चार शुभ योग
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बसंत पंचमी ,नया कामकाज शुरू करने के लिए साथ ही अनसूझा विवाह के लिए है बहुत शुभ, बन रहे हैं चार शुभ योग
बसंत पंचमी का महत्व ज्ञान और शिक्षा से जोड़कर माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विद्या, कला, विज्ञान, ज्ञान और संगीत की देवी, माता सरस्वती का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है।
परमपरा अनुसार हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। बसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया ज��ता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ वहीं इस दिन से वसंत के मौसम की शुरुआत भी माना जाता है। इस दिन ज्ञान की देवी माता सरस्वती की पूजा करने की परंपरा है।
मां शारदे की पूजा के साथ-साथ इस दिन को नया कामकाज शुरू करने के लिए साथ ही अनसूझा विवाह के लिए बहुत शुभ माना गया है।
26 जनवरी गणतंत्र दिवस भी है।पंचांग के मुताबिक माघ शुक्ल पंचमी तिथि 25 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 33 मिनट से आरंभ हो रही है, जो अग���े दिन 26 जनवरी को सुबह 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगी। इसलिए उदयातिथि को आधार मानते हुए बसंत पंचमी का त्योहार 26 जनवरी को मनाया जाएगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार सरस्वती पूजा के दिन चार शुभ योग- शिव योग, सिद्ध योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बने रहे हैं। आपको बता दें कि रवि योग 26 जनवरी की शाम 06 बजकर 56 मिनट से आरंभ हो रहा है और यह अगले दिन 27 जनवरी को सुबह 07 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। रवि योग को ज्योतिष में बेहद शुभ योग माना गया है। वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग 26 जनवरी की शाम 06:58 बजे से आरंभ हो रहा है, जो 27 जनवरी को सुबह 07:11 बजे तक रहेगा। ज्योतिष के अनुसार इस योग में जो भी काम किया जाता है। वह सिद्ध हो जाता है।
हिन्दू धर्म में मां सरस्वती विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई हैं। देवीपुराण में सरस्वती को सावित्री, गावत्री, सती, लक्ष्मी और अंबिका नाम से संबोधित किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में इन्हें वाग्देवी, वाणी, शारदा, भारती, वीणापाणि, विद्याधरी, सर्वमंगला आदि नामों से अलंकृत किया गया है। यह संपूर्ण संशयों का उच्छेद करने वाली तथा बोधस्वरूपिणी हैं। ये संगीतशास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी हैं। ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी आदि का प्रादुर्भाव भी इन्हीं से हुआ है सात प्रकार के स्वरों द्वारा इनका स्मरण किया जाता है, इसलिए ये स्वरात्मिका कहलाती हैं। सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती है। वीणावादिनी सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरणावस्था है। वीणावादन शरीर यंत्र को एकदम स्थैर्य प्रदान करता है। इसमें शरीर का अंग-अंग परस्पर गुंथकर समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है । साम-संगीत के सारे विधि-विधान एकमात्र वीणा में सन्निहित हैं।
वाक् (वाणी) सत्त्वगुणी सरस्वती के रूप में प्रस्फुटित हुआ। सरस्वती के सभी अंग श्वेताभ हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि सरस्वती सत्त्वगुणी प्रतिभा स्वरूपा हैं। इसी गुण की उपलब्धि जीवन का अभीष्ट है। कमल गतिशीलता का प्रतीक है। यह निरपेक्ष जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने, सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है।
देवी भागवत के अनुसार, सरस्वती को ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा पूजा जाता है । जो सरस्वती की आराधना करता है, उसमें उनके वाहन हंस के नीर-क्षीर-विवेक गुण अपने आप ही आ जाते हैं। माघ माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है, तब संपूर्ण विधि-विधान से मां सरस्वती का पूजन करने का विधान है। लेखक, कवि, संगीतकार सभी सरस्वती की प्रथम वंदना करत��� हैं। उनका विश्वास है कि इससे उनके भीतर रचना की ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होती है। इसके अलावा मां सरस्वती देवी की पूजा से रोग, शोक, चिंताएं और मन का संचित विकार भी दूर होता है। इस प्रकार वीणाधारिणी, वीणावादिनी मां सरस्वती की पूजा-आराधना में मानव कल्याण का समग्र जीवनदर्शन निहित है।
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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।लोक केसरी किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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इस प्राचीन केकड़े की असामान्य रूप से बड़ी आंखें थीं
इस प्राचीन केकड़े की असामान्य रूप से बड़ी आंखें थीं
आधुनिक, वयस्क केकड़े अपनी तैराकी क्षमता या अपनी दृष्टि के लिए प्रसिद्ध नहीं हैं। वे खामोश समुद्रों की मंजिलों को पार करते हैं, छोटी आंखों पर शायद ही भरोसा करते हैं क्योंकि वे सफाई करते हैं या चरते हैं। लेकिन 95 मिलियन वर्ष पहले, एक असामान्य केकड़ा, जो अब कोलंबिया है, के उष्णकटिबंधीय जल के चारों ओर असामान्य अनुग्रह के साथ उड़ता है। चौथाई आकार की प्रजाति, कैलिचिमाएरा पेर्प्लेक्सा, एक मकड़ी की तरह…
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वेद को ईश्वरकृत सिद्ध करने का एकमात्र माध्यम
मैंने सभी महानुभावों से निम्न विषयों पर अपने विचार प्रकट करने हेतु कहा था -
वेद की वैज्ञानिकता को कैसे सिद्ध किया जा सकता है?
वेद में ऐसा क्या विशेष है, जिससे यह सिद्ध हो सके सम्पूर्ण वैज्ञानिकों के समक्ष कि वेद ही ईश्वरीकृत है, जिससे वेद सम्पूर्ण विश्व में स्थापित हो सके।
आप सभी महानुभावों ने अपनी-अपनी योग्यतानुसार इस विषय पर अपने विचार प्रकट किए, जिसके लिए मैं आभार व्यक्त करता हूँ। सभी प्रिय महानुभावों ने कुछ इस प्रकार के विचार प्रकट किए, जो मैं आगे उद्धृत कर रहा हूँ। सभी महानुभावों ने ये विचार प्रकट किए कि वेद सबसे प्राचीन पुस्तक है, वेद श्रुति रूप में थे, वेद सृष्टि के आरम्भ से ही हैं, वेद में कोई इतिहास नही हैं, वेद में विज्ञान विरुद्ध कोई बात नही हैं, वेद में विज्ञान सम्मत बातें हैं, वेद सभी सत्य विद्याओं की पुस्तक है, वेद ज्ञान का भंडार है, संसार के सभी विद्याओं का मूल वेद है, वेद में प्राणी मात्र के कल्याण के लिए व लोक व्यवहार के लिए सत्य उपदेश व सत्य विद्या विद्यमान है, वेद में मानव विरुद्ध एवं सृष्टि विरुद्ध कोई भी बात नहीं लिखी हुई है, वेद में अनंत ज्ञान व विज्ञान है, कुछ वैज्ञानिक लोग वेद पर शोध कर रहे हैं, सभी ऋषियों का यह कथन है कि वेद ही ईश्वरकृत है, वेद स्वयं प्रमाण है, जहां किसी अन्य से प्रमाणित ना हो, वहां वेद से प्रमाण लिया जाता है, वेद का काल सृष्टि के आरंभ से है जिसे ईश्वर ने मनुष्य मात्र के लिए दिया है, वेद ऐसी रचना है जो मनुष्य द्वारा नहीं रचा जा सकता, ऋषियों के शब्द ��्रमाण हैं कि वेद ईश्वरकृत है, इसलिए बुद्धिमान लोग यह कह सकते हैं कि वेद ईश्वरकृत रचना है, आदि। ये सभी विचार व शब्द प्रमाण मेरे सभी प्रिय महानुभावों ने रखें थे।
अब इस पर मेरा विचार
अब तक हम सब वेद के बारे में यही जानते आये हैं और मान्यतानुसार, ऋषियों के शब्द प्रमाणों के आधार पर यही मानते आए हैं कि वेद ईश्वरकृत है। शब्द प्रमाण के अतिरिक्त हमारे पास और कुछ है भी नहीं। यद्यपि ऋषियों के शब्द प्रमाण में हम सभी वैदिक धर्मियों को कोई भी सन्देह नहीं। हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमें ऋषियों के कथन पर कोई भी सन्देह नहीं, क्योंकि ऋषियों के कथन व शब्द प्रमाण पूर्णतः सत्य होते हैं। किन्तु व्यवहारिक रूप से वैज्ञानिक आधार व दृष्टिकोण से संसार के समस्त वैज्ञानिकों के समक्ष यह कैसे सिद्ध होगा कि वेद ही ईश्वर कृत है? वैज्ञानिक तो वेद को ईश्वरकृत नहीं मानते। हमारे सभी ऋषियों के शब्द प्रमाण मात्र से संसार का कोई भी वैज्ञानिक यह स्वीकार कभी नहीं कर सकता कि वेद ईश्वरकृत रचना है। हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि मेरे जितने भी प्रिय महानुभावों ने वेद को ईश्वर कृत सिद्ध करने के लिए अपनी योग्यतानुसार जितने भी विचार व प्रमाण रखे, जिसका उल्लेख मैंने ऊपर किया है, उन सभी विचारों व प्रमाणों के आधार पर वैज्ञानिकों के समक्ष वेद को ईश्वरकृत सिद्ध नहीं किया जा सकता।
वेद को वैज्ञानिक आधार, दृष्टिकोण व विज्ञान के माध्यम से वैज्ञानिकों के समक्ष ईश्वरकृत सिद्ध करने का माध्यम
वैज्ञानिकों के समक्ष वेद को ईश्वरकृत सिद्ध करने के लिए सर्वप्रथम तो हमें ईश्वर की सत्ता को सिद्ध करना होगा, ठोस वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर, क्योंकि वैज्ञानिक ईश्वर की सत्ता को नहीं मानते। यह भी सत्य है कि कुछ वैज्ञानिक ऐसे भी हुए हैं, जो ईश्वर की सत्ता को तो मानते हैं किन्तु उनके पास भी ईश्वर के अस्तित्वत को सिद्ध करने के लिए वैसा कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है। उनमें से कुछ वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि कोई तत्व ऐसा तो है, जो ब्रह्माण्ड को संचालित कर रहा है परंतु उनके पास इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण, आधार व वैज्ञानिक व्याख्या नही। अतः ईश्वर की अस्तित्वता को लेकर वैज्ञानिकों के बीच बहुत ही विरोधाभास व मतभेद है। इस कारण ईश्वर को विज्ञान के माध्यम से सिद्ध करने की सामथ्र्य संसार के क���सी भी वैज्ञानिक में नहीं, फलस्वरूप आधुनिक विज्ञान ईश्वर की सत्ता को नहीं मानता। यदि ईश्वर का अस्तित्वत विज्ञान के माध्यम से सिद्ध हो जाये, तो ही हम आगे की ओर बढ़ सकते हैं वेद को ईश्वर कृत सिद्ध करने की दिशा में वैज्ञानिक आधार, विज्ञान व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम व प्रमाण से वैज्ञानिकों के समक्ष। यद्यपि यह अनुसंधान, शोध व खोज के कार्य तो विश्व के एकमात्र वैदिक वैज्ञानिक, विश्व के एकमात्र वैदिक भौतिक वैज्ञानिक, विश्व के एकमात्र वैदिक ब्रह्माण्ड वैज्ञानिक व सम्पूर्ण विश्व में वर्तमान काल के वेदों के सबसे बड़े महाप्रकाण्ड ज्ञाता पूज्य गुरुदेव आचार्य अग्निव्रत जी नैष्ठिक के हैं। मैं केवल वह माध्यम व उनके इस महान् खोज, शोध व अनुसंधान को ही यहाँ बताऊंगा, जिससे सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिकों के समक्ष वैज्ञानिक दृष्टिकोण, आधार व प्रमाण से पूर्ण रूप से यह सिद्ध हो जाएगा कि केवल वेद ही ईश्वरकृत रचना है। यह सिद्ध होने के पश्चात् संसार के सभी वैज्ञानिक व समस्त लोग यह स्वीकार करेंगे कि वेद ही ब्रह्मांडीय व ईश्वरकृत रचना है, फलस्वरूप वेद की ईश्वरीयता को संसार का कोई भी मानव नकार नहीं पायेगा तथा वेद की स्थापना भी स्वतः सम्पूर्ण विश्व में अवश्य होगी।
ईश्वर के अस्तित्वत को विज्ञान के माध्यम से सिद्ध करने का सामर्थ्य इस संसार में केवल एक ही महात्मा ऋषि कोटि के विश्व के एकमात्र वैदिक वैज्ञानिक व वर्तमान काल के वेदों के सबसे महाप्रकाण्ड ज्ञाता, श्रद्धेय गुरुदेव आचार्य अग्निव्रत जी नैष्ठिक के पास ही है। श्रद्धेय आचार्य जी के अतिरिक्त संसार के किसी अन्य मानव में यह सामथ्र्य, योग्यता व क्षमता नहीं है और ईश्वर को विज्ञान के माध्यम से सिद्ध करने की संपूर्ण वैज्ञानिक प्रक्रिया, वैज्ञानिक व्याख्या व प्रणाली का ज्ञान केवल आचार्य जी को ही है और आचार्य जी के पास ही यह सामथ्र्य है, जो अटल सत्य है। आचार्य जी बहुत पूर्व ही ईश्वर को विज्ञान के माध्यम से सिद्ध कर चुके हैं और विश्व के सभी बड़े वैज्ञानिकों के समक्ष उन्होंने यह सिद्ध करने हेतु भरसक प्रयास भी किये। कई बार भारत सरकार को भी लिखा और अप्रैल 2018 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के विज्ञान संस्थान में भारत सरकार ने एक अन्तर्राष्ट्रिय काॅफ्रैंस के आयोजन का आयोजन भी किया, परन्तु कुछ षड्यंत्रकारियों ने उस काॅफ्रैंस को बाधित करके विश्वस्तरीय नहीं रहने दिया और उस काॅफ्रैंस में आचार्य जी ने अपनी वैदिक थ्योरी आॅफ यूनिवर्स को सर्वप्रथम प्रस्तुत किया।
अब हम वेद को ईश्वरकृत सिद्ध करने का वह मार्ग व माध्यम, वैज्ञानिक दृष्टिकोण व आधार के बारे में बतलाने जा रहें, जो वस्तुतः श्रद्धेय आचार्य जी की खोज, शोध व अनुसंधान है। यह अत्यंत जटिल है, जिसे साधारण जन नहीं समझ सकते, केवल भौतिक वैज्ञानिक, ब्रह्माण्ड वैज्ञानिक व ब्रह्माण्ड विज्ञान पर शोध करने वाले तथा भौतिक विज्ञान का उच्चतम ज्ञान रखने वाले जन ही समझ सकते हैं। फिर भी मैं अति सरल शब्दों में अति सरल भाषा में व संक्षिप्त में ही बताने का प्रयास करूंगा, ताकि साधारण जन व विज्ञान की उच्चतम जानकारी नहीं रखने वाले लोग भी सरलता से कम शब्दों में इसे समझ सकें।
श्रद्धेय आचार्य जी के कई वर्षों के कठोर परिश्रम, पुरुषार्थ, उनके तपोबल, साधना, तप, तर्क शक्ति, ��हा के बल पर वेद व ऋषिकृत ग्रँथों पर शोध व अनुसन्धान के पश्चात् आचार्य जी ��े यह खोजा व जाना कि वेद मन्त्रों से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण होता है। आचार्य जी ने यह जाना व खोजा कि वेद मंन्त्र वास्तव में एक ध्वनि ऊर्जा है। वेद मंत्र, छन्दों का समूह है। वेद मन्त्रों में आये शब्दों के समूहों को ही छन्द कहा जाता है, ये सभी छन्द ही वेद मंत्र कहलाते हैं। वस्तुतः यह सभी छन्द, अति सूक्ष्म पदार्थ कहलाते हैं। ब्रह्माण्ड के प्रत्येक पदाथ का निर्माण इन्हीं वेद मंत्रों अर्थात छन्दों से होता है। ब्रह्माण्ड अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति में वेद मंन्त्रों की ही भूमिका होती है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति वेद मन्त्रों से होती है। वास्तव में जब ईश्वर ब्रह्माण्ड का निर्माण कर रहा होता है तो ईश्वर सर्वप्रथम सूक्ष्म स्पंदन उत्पन्न करता है, मनस्तत्व में। वह स्पंदन कम्पन करते हुए तरंग के रूप में फैलता है, जो रश्मि कहलाती है। इसे वैदिक विज्ञान की भाषा में रश्मि कहा जाता है। ऐसे कई प्रकार के सूक्ष्म स्पंदन ईश्वर उत्पन्न करता है। ये रश्मियां ही वैदिक ऋचाएं अर्थात् वेद मंन्त्र हैं। वेद मंत्रों के संघनन से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण होता है। ये रश्मियां ध्वनि ऊर्जा रूपी कम्पन करते हुए तरंगों के रूप में होते हैं। यही सूक्ष्म ध्वनि ऊर्जा ही वेद मंन्त्र हैं। वेद मंत्र ही उपादान कारण भी हैं, ब्रह्माण्ड के निर्माण का। वेद के सभी मंत्र संसार के सभी पदार्थों के अंदर वाणी अर्थात् ध्वनि की परा व पश्यन्ति अवस्था में सर्वत्र कम्पन करते हुए गूंज रहे हैं। यह ध्वनि ऊर्जा रूपी वेद मन्त्रों के शब्द कभी भी नष्ट नहीं होते।
श्रद्धेय आचार्य जी ने यह खोजा व जाना कि हमारे शरीर की एक-एक कोशिका इन्हीं वेद मंत्रों से बनी है। हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं के अंदर ध्वनि की पश्यन्ति व परा अवस्था में ये वेद मंन्त्र गूंज रहे हैं। ब्रह्माण्ड में सर्वत्र वेद के सभी मंत्र शब्द रूप में ध्वनि ऊर्जा के रूप में गूंज रहे हैं। ब्रह्माण्ड के सूक्ष्म से सूक्ष्म, स्थूल से स्थूल व विशाल से विशाल सभी पदार्थों जैसे सभी कण, सूर्य, चन्द्र, तारे, उल्का-पिंड, धूमकेतु, ग्रह, उपग्रह, सौरमण्डल, गैलेक्सी, अंतरिक्ष, आकाश, जल, वायु, अग्नि, प्रकाश, आदि ब्रह्माण्ड में उपस्थित समस्त पदार्थों का निर्माण इन्ही वेद मंत्रों से हुआ है। ब्रह्माण्ड के सभी पदार्थों के भीतर ध्वनि की पश्यन्ति व परा अवस्था में वेद मंन्त्र ही सर्वत्र गूंज रहे हैं। ब्रह्माण्ड के सभी पदार्थों में कोई न कोई बल, ऊर्जा, गति, त्वरण आदि होते हैं, जो ध्वनि ऊर्जा रूपी वेद मंत्रों से ही होते हैं जो सभी पदार्थों के भीतर ध्वनि की पश्यन्ति व परा अवस्था में कम्पन करते हुए तरंगों के रूप में रश्मियों के रूप में निरन्तर गूँज रहे हैं तथा इन्हीं वेद मन्त्रों से ही ब्रह्माण्ड के सभी पदार्थों की रचना होती है। सृष्टि की आदि में हुए 4 ऋषियों ने समाधि की अवस्था में अपने अन्तःकरण वा आत्मा के माध्यम से ईश्वर की प्रेरणा से उन सभी ईश्वरीकृत मन्त्रों को जाना। वे सभी मन्त्र ही वेद कहलाये।
यद्यपि ऋषियों के अतिरिक्त संसार का कोई अन्य मनुष्य वेद के इस यथार्थ वैज्ञानिक स्वरूप को नहीं जानता। वेद मंत्रों से ब्रह्माण्ड का निर्माण व जितनी भी व्याख्या ऊपर मैंने की है, वेद व वेद मंत्रों से ब्रह्माण्ड के निर्माण की प्रक्रिया, यह ऋषियों के अतिरिक्त और कोई भी नहीं जानता। हमारे ऋषि लोग इसे भली-भाँति जान लिया करते थे व इसका सम्पूर्ण ज्ञान ऋषियों को हो जाता था। आप लोगों को यह भी बतला दूँ कि वेद में ��था ऋषिकृत ग्रँथों में अनेकत्र स्थान पर यह संकेत है कि वेद मंत्रों से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण होता है, किन्तु वेद व ऋषिकृत ग्रँथों को न समझ पाने से साधारण जन व यहां तक कि सभी वैदिक विद्वान् भी यह आज तक नहीं जान व समझ पाऐ कि वेद मंत्रों से यह सृष्टि बनती है। इसका मुख्य कारण यह है कि उनके पास तर्क शक्ति, वैज्ञानिक बुद्धि, ऊहा का अभाव है। वेद व अनेक ऋषिकृत ग्रन्थ विज्ञान के ग्रन्थ हैं। केवल संस्कृत व्याकरण, निरुक्त, निघण्टु आदि के परम्परागत अध्ययन के बल पर वेदों व ऋषिकृत ग्रँथों को नहीं समझा जा सकता। उसे समझने के लिए वैदिक संस्कृत व्याकरण, निरुक्त, निघण्टु, छन्द शास्त्र, ब्राह्मण ग्रन्थ, वेदांग, आरण्यक, शाखाएं आदि अनेक ऋषिकृत ग्रँथों का पूर्ण ज्ञान इसके साथ ही ईश्वरीय प्रेरणा, ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा, उच्च कोटि की तर्क शक्ति, ऊहा, वैज्ञानिक बुद्धि से सम्पन्न, विज्ञान की उच्च समझ रखने वाला व पवित्र आत्मा का होना अनिवार्य है। वस्तुतः ऋषियों के पश्चात् वर्तमान में केवल श्रद्धेय आचार्य अग्निव्रत जी नैष्ठिक ही ऐसे ऋषि कोटि के महात्मा हैं, जिन्होंने अपनी कठोर साधना, परिश्रम, पुरुषार्थ, तर्क शक्ति, ऊहा से वेद व ऋषिकृत ग्रँथों पर शोध व अनुसंधान करके यह जाना है। अतएव यह खोज आचार्य जी की है। आचार्य जी द्वारा रचित ‘वेदविज्ञान-आलोकः’ ग्रन्थ का गहन अध्ययन करेंगे, तो इसे और भी अच्छे व विस्तार से आप लोग जान पाएंगे।
इस प्रकार यदि यह सिद्ध हो जाये कि सभी वेद मंत्रों से ही सम्पूर्ण पदार्थों व समस्त ब्रह्माण्ड का निर्माण होता है, जो ब्रह्माण्ड के सभी पदार्थों के भीतर ध्वनि के परा व पश्यन्ति अवस्था में सर्वत्र गूंज रहें है, जब यह वैज्ञानिक आधार व प्रमाण से सिद्ध हो जाएगा, तो सभी वैज्ञानिकों व समस्त संसार के समक्ष यह पूर्ण व वैज्ञानिक रूप से, वैज्ञानिक आधार पर, वैज्ञानिक प्रमाण से यह स्वतः सिद्ध हो जाएगा कि वेद ही ईश्वरकृत रचना है, तब संसार का कोई भी मनुष्य वेद के ईश्वरकृत होने को नकार नहीं पायेगा, जिससे स्वतः ही सं���ूर्ण विश्व में यह सिद्ध हो जाएगा कि केवल वेद ही ईश्वरकृत व ब्रह्मांडीय रचना है, जिससे वेद सम्पूर्ण विश्व में स्थापित होगा, जो आने वाले कुछ ही वर्ष में ही संसार के वैज्ञानिकों को यह बात समझ आ जाएगी, यदि वे पूर्वाग्रहों से मुक्त हो सकें तो।
यद्यपि मैं पुनः यह स्पष्ट कर दूं कि वेद को किसी वैज्ञानिक से सर्टिफिकेट व प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नही कि वेद ईश्वरकृत है अथवा नहीं? क्योंकि वेद स्वतः प्रमाण है ईश्वरकृत होने का परन्तु समय की यही मांग है कि यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण, आधार व प्रमाण से वेद ईश्वरकृत सिद्ध हो जाये सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिकों के समक्ष तो वेद को सम्पूर्ण जगत् के लोग स्वीकार करेंगे। वेद व वैदिक धर्म की स्थापना विश्व में स्वतः हो जायेगी। वेद को वैज्ञानिकों के समक्ष ईश्वरकृत सिद्ध करने का केवल यही एक मार्ग है, अन्य कोई भी दूसरा मार्ग व माध्यम नही, क्योंकि केवल इसी वैज्ञानिक ठोस प्रमाण से ही यह सिद्ध किया जा सकता है, समस्त वैज्ञानिकों के समक्ष कि वेद ही ईश्वर कृत रचना है, इससे वेद व वैदिक धर्म की स्थापना सम्पूर्ण विश्व में हो सकेगी व विश्व के सम्पूर्ण मानवों का कल्याण होगा। श्रद्धेय आचार्य जी द्वारा बहुत पूर्व ही यह सिद्ध किया जा चुका है। जैसा कि मैंने ��ूर्व ही बतलाया कि आगामी कुछ ही समय में विश्व के समस्त बड़े वैज्ञानिकों को कोई भी इस तथ्य का बोध हो जायेगा परन्तु बिना शासन के सहयोग वैज्ञानिकों द्वारा धार्मिकता व पूर्वाग्रहों के त्याग के बिना यह सम्भव नहीं है। आचार्य जी योगेश्वर श्री भगवान् कृष्ण जी महाराज के कथन ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ को शिरोधार्य करके आगे बढ़ रहे हैं। आचार्य जी के पुरुषार्थ से वेद व वैदिक धर्म की स्थापना सम्पूर्ण विश्व में अवश्य होगी, ऐसा हमें आशा व विश्वास करना चाहिए।
आशा करता हूँ कि वेद के इस वास्तविक सत्य यथार्थ वैज्ञानिक स्वरूप को जानकर आप सभी प्रियजनों को गर्व महसूस हो रहा होगा, जिस ईश्वरकृत वेद के बारे में अब तक आप सभी अनभिज्ञ थे।
- इंजीनियर संदीप आर्य
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क्यों है अवसाद से घिरी आज की युवा पीढ़ी
निराशा- आज के परिवेश में शायद ही ऐसा कोई हो जो निराशा से ना घिरा हो। आजकल की युवा पीढ़ी अवसाद से अधिक घिरी हुई है जिसके कारण अवसाद की दवाइयां लेना और उन दवाइयों से अपने शरीर को भी नुकसान पहुंचाना । कुछ युवावस्था में प्रवेश करते बच्चे आज इतने ज्यादा इस बीमारी को खुद को ग्रसित कर रहे हैं कि कोई कारण ही समझ नहीं पा रहा ऐसा क्यों
अंधी भागदौड़ हर किसी को आगे ही जाना है पीछे कोई रहना नहीं चाहता खुद को चारों तरफ अंधकार से ढक रखा है जो उसे पीछे देखने ही नहीं देती उजाला कहां है वह उसे देखना ही नही चाहता इसी निराशा से घिर कर जाने कितने ही अपराध जन्म ले लेते हैं जिसमें एक अपराध है जिसे महा अपराध कहते हैं आत्महत्या कर लेना अपने को खत्म कर लेना। ईश्वर के यहां इससे बड़ा अपराध नहीं जिस शरीर को हमने बनाया नहीं उसे खत्म करने का अधिकार हमें कहा वह अधिकार उस परमपिता परमात्मा का है निराशा ही अवसाद का शिकार बनाती है निराशा का जन्म क्यों होता है आशा से निराशा का जन्म हुआ आशा न होती तो ��िराशा का जन्म कैसे होता जो व्यक्ति खड़ा है चल रहा है डर तो उसी को है कि वह गिर सकता है ठोकर खा सकता है लेकिन जो लेटा हुआ है जमीन पर उसे कोई कैसे गिरा सकता है वह तो खुद ही गिरा हुआ है उसने खुद को पृथ्वी को सौंप दिया है
पृथ्वी जो परमात्मा है जिसने खुद को परमात्मा को सौंप दिया उसे डर कैसा लेकिन आज की युवा पीढ़ी यह मानने को तैयार कहा वह कहती है ऊर्जा है यह भी सत्य है ऊर्जा ही तो परमात्मा है मगर उसने इसे विज्ञान से जोड़ दिया और इस ऊर्जा से खुद को आजाद कर लिया आजाद करते ही मैं हूं उसके ऊपर चढ़कर बैठ गया अब जो करेगा वह मैं ही करेगा परमात्मा से तो उसने खुद को आजाद कर लिया
आजाद किया परमात्मा से खुद को और अपने ऊपर इतना भरोसा कर लिया कि मैं ही हूं इसका अहम उसे कुछ सोचने कहां दे रहा है जो वह कर रहा है वही ठीक है इसमें बहुत बड़ा दोष हमारे पूर्वजों का रहा जो अपने माता-पिता से मिला उसे ही अपने बच्चों के ऊपर थोपते चले आ रहे हैं
हमारे बच्चे को क्या पसंद है वह क्या चाहता है हमें इस से मतलब नहीं तू ये बन तू ये कर दुनिया कहां से कहां जा रही है यह देख तू वहां पहुंच जहां कोई ना पहुंचा भाग आगे निकल तुझे प्रथम आना है भाग जीना सीख आगे निकल नहीं तो तू पीछे रह जाएगा
आज का बच्चा इतना परेशान है वो क्या है वो बेचारा खुद नहीं सोच पाता एक कठपुतली बन जाता है जैसे मां-बाप नचा रहे है नाच रहा है
मां-बाप कभी संस्कारों के नाम पर कभी शिष्टाचार के नाम पर बस अपने ही शिष्टाचार का पाठ पढ़ाए जा रहे हैं वो क्या चाहता है उसका मन क्या चाहता है इतनी आजादी तो हम दे ही नहीं रहे
दे रहे है अपनी आशाएं हमने तुम्हारे लिए क्या किया क्या नहीं किया पढ़ाया लिखाया अच्छा भोजन क्या कमी कर दी अपने सारे विचार उस पर इस तरह से सौंप दिए कि उसके अपने विचारों का तो दमन ही हो गया जन्म हो ही नहीं पाया और वह जीने से पहले खिलने से पहले मुरझा गया
मेरा जन्म जब हुआ दादा बोला मेरे जैसा बनेगा थोड़े बड़े होते ही पापा बोले नहीं भागो नहीं तो ट्रेन छूट जाएगी मंजिल तक कैसे पहुंचाेगे
जो सुकून घर में मां बाप के बीच मिलना चाहिए था वो बचपन दब गया
ना ही खिलखिला कर हंस पाया मै, ना ही रो पाया, जन्म मेरा क्यों हुआ इस पर ही मुझे रोना आया कोई मुझे पनहा दे दो मेरे उजले मन में कुछ खाली जगह दे दे, फूल खिलने से पहले मुझे ना तोड़ो तुम, कुछ समय तो डाल पर ही मुझे छोड़ो तुम, जी लूं थोड़ा मैं कली बनकर खिलना तो सीख लूं, अपना ही पेड़ मुझे काटे तोड़े, बताओ स्वांस कैसे मैं भर�� कुछ स्वांस जी भर मैं भी ले पाऊं इतनी जगह मेरे मन में छोड़ो तुम, मैं तो पौधा था तुमने मुझे अपनी कल्पनाओं का कल्पवृक्ष बना डाला ना खिला मेरे मन का फूूल ना टहनिया ही निकली अपनी कल्पनाओं में तुमने मुझ को जला डाला जन्म मेरा जब हुआ दादा बोला मेरे जैसा बनेगा थोड़े बड़े होते ही पापा बोले नहीं भागो नहीं तो ट्रेन छूट जाएगी, मंजिल तक नहीं पहुंचागे तुम, मेरी मंजिल कहां मैं उसी से अनजान भटकता जा रहा हूं तूने मुझे कहां भेज दिया भगवान,ये जो लोग तेरे खुद को मेरा मां-बाप समझते हैं खुद को मेरा ही अपना संसार समझते हैं अपने संसार को इन्होंने मेरा संसार बना डाला मेरा कोमल मन बिखर गया जैसे कि मैं कोई भूल हूं ना पूछ भगवन मेरे साथ यहां क्या हो रहा है मैं तो तेरा ही फूल हूं मुझे मजबूर कर देते हैं ये जो तेरे ही बंदे है अवसाद मेरा घर नहीं था ।
मैं तो खिलखिलाना चाहता था आशाओं को ना अपने अंदर जगाना चाहता था मुझे पता था मैं तकदीर साथ अपनी खुद लेकर आया हूं इन्हें समझा जो समझे बैठे हैं कि मैं तेरा नहीं उनका ही साया हूं ये तेरे बंदे समझ जाएं कि तू ही बाप मेरा है जो नादान समझते हैं कि तू नहीं, मां बाप ये मेरे हैं यह मुझे जन्म देते हैं अपनी खुशियों के लिए पैदा होते ही मेरा गला जो घोट देते हैं हे खुदा तू बता ये कैसे मेरे मां-बाप हो सकते हैं सांसे लेना मेरा और छोड़ना ना मुझ पर रहा किस की कैद में तूने मुझको इस धरती पर छोड़ रहा इससे तो अच्छा था कि तू मुझे पंछी बना देता चोच मारकर तेरा ही पंछी मुझको उड़ा देता स्वांस जी भर के ले लेता झूमता तेरे गगन को और अंबर को, बैठता हर उस डाल पर और मग्न में होता जब चाहता कहीं भी उड़ के चला जाता हे भगवान तू मुझे मानव नहीं बनाता तेरी सबसे प्यारी रचना जो मानव है उसी ने मानव को क्या से क्या बना डाला थोड़ा बड़ा हो गया हूं नहीं चाहिए ऐसे मां और बाप इससे तो तेरी दी हुई तनहाई ही अच्छी जहां मैं करता हूं खुद से बात
आप सभी से हाथ जोड़कर मेरा विनम्र निवेदन है अपने बच्चों को खुलकर सांस लेने दीजिए सोचो क्यों एक गरीब मां-बाप का बच्चा ऊंचाइयों को छू पाता है वह अपनी तकदीर खुद साथ लेकर आता है ना समझो कि तुमको अपने बच्चों की तकदीर बनानी हैं थोड़ा रहम करो ये सांसे जो क्षण भर है इधर और उधर ही कहां जाना पता किसे इसकी मंजिल कहां ना डूब ऐसे कि तू सदा यहां रहने को आया है क्षणभंगुर ये जीवन है ना सदा यहां कोई रहने को आया है
परमात्मा के पंख
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विज्ञान में चेतना की व्याख्या
पता नहीं कब तक लोग चेतना और भगवान जैसी चीज़ों के पीछे दौड़ते रहेंगे. हमारी आदत रही है कि जिस सब को हम नहीं जानते हैं उसे कोई धुंधला सा लिहाफ़ पहना देते हैं ताकि हमारी "चेतना" यह मान सके कि हम बुद्धिमान हैं. उस लिहाफ़ का नाम चेतना, भगवान, आत्मा, डार्क मैटर जैसे कुछ भी हो सकता है. जब तक लोगों को समझ नहीं आया था कि डीएनए में जीवन का कोड है तब तक वैज्ञानिक भी कहते थे कि शायद कोशिका के केन्द्रक में डार्क मैटर भरा है. ये ब्रह्माण्ड क�� चेतना के ऐक्य का एक टुकड़ा है, जो हमें चेतन बनाता है. तो अगर आम आदमी उसमें विश्वास रखता है तो वो कोई इतनी बड़ी ग़लती नहीं है.
प्रथम तो चेतना एक शुद्ध वैज्ञानिक शब्द नहीं है. दैनिक जीवन में इसके अलग मायने हैं, मनोविज्ञान-फ़लसफ़े के अध्ययन में अलग और न्यूरोसाइंस में अलग. तिसपर जिसकी जैसी श्रद्धा होती है वैसे वो इसे अपने दिमाग में फिट कर लेता है. कहीं इसको मानवों का ख़ास गुण मान लिया जाता है, कहीं इसको आत्मा से जोड़ा जाता है और कहीं प्रकृति और पुरुष के विभाजन से.
मनोविज्ञान के अनुसार अपने अस्तित्व और विचारों के बारे में ज्ञान होने को (आत्मज्ञान या सेल्फ-अवेयरनेस) चेतन होना कहते हैं. फ़लसफ़े में तो इसकी हज़ारों परिभाषाएँ हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है "अनुभव करने की, परिप्रेक्ष्य बनाने की क्षमता". मैं उन लोगों के बारे में कुछ नहीं कहना चाहता जो इसे एक अलौकिक गतिविधि मानते हैं. आप प्रकृति के ताने-बाने में कितना भी गहरा उतर, लौकिक कारण समझा दो, ये लोग उस वक़्त के ज्ञान की परिधि की ओर इशारा करके कहेंगे कि चेतना वहाँ मिलेगी.
न्याय दर्शन का मुख्य विचार द्वैत है. दुनिया में अच्छा-बुरा, नैतिक-अनैतिक, स्वर्ग-नरक है, वैसे ही प्रकृति और पुरुष भी है. इसी विचार को देकार्ते ने योरोप तक पहुँचाया था. ये विचार समाज में नियम-कानून लागू करने के हिसाब से आरामदायक है पर सत्य की खोज में साफ़ तौर पर भ्रामक. नीत्शे ने इसपर तफ़सील से लिखा है. योग-दर्शन का अद्वैत चेतना का विचार आमजन से थोड़ा हटकर, आध्यात्मिकता में पगे लोगों के बीच बड़ा ख्यात है.
मुझे सांख्य दर्शन और थॉमस हॉब्स के विचारों से लगाव है जिन्होंने इस प्रकार की परिभाषा को सिरे से ग़ैर ज़रूरी करार दिया था और भौतिक पेचीदगी को हमारी समझ का कारण बताया था. आज का विज्ञान इसी आधार पर चेतना की गुत्थी सुलझा रहा है. इसके हिसाब से इन्द्रियों से आने वाले इनपुट के साथ साथ अपने यादों, आवेगों और विचारों को एक परिप्रेक्ष्य से देखना चेतन होना है और यह न्यूरोन्स के क्लिष्ट तंत्र की अभिक्रियाओं का नतीज़ा है. एफ़एमआरआई जैसे तकनीकों के विकास के साथ इस क्लिष्ट तंत्र का एक गहन ���क्शा तैयार किया जा रहा है पर सेल्फ-अवेयरनेस को समझने में अभी काफी समय लगेगा. जो कुछ भौतिक लक्ष��� अब तक बताये गए हैं उन्हें इंसानों के अलावा कई जीवों में पाया गया है और उन्हें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से नियंत्रित किया या बदला जा सकता है.
यदि आप जीव को मारें नहीं बस बेहोश करदें, सूचना के बहाव में रोड़ा डाल दें तो कोई "चेतना" नहीं बचेगी.
तो असल जीवन का प्रश्न यह नहीं है कि चेतना क्या है और विज्ञान उसकी व्याख्या कैसे करेगा. असल प्रश्न यह है कि हमारा आत्मज्ञान मोड्यूल कैसे काम करता है और क्रमिक विकास के दौरान ये किस तरह बना? क्या नेचुरल सिलेक्शन में आत्मज्ञान का कोई महत्त्व था, या फिर यह हमारे क्लिष्ट तंत्रिका तंत्र का बाई-प्रोडक्ट है?
यदि आत्मज्ञान के आधार पर चेतना को परिभाषित किया जा सकता है तो इंसानों के अज्ञान (जिसे दूर करने की पुरज़ोर कोशिश वो कर रहे हैं) के बावज़ूद एक मोटा-मोटी समझाइश की बात की जा सकती है: चेतना/आत्मज्ञान का क्रमिक विकास समाज के विकास के साथ हुआ. भाषा का इसमें महत्वपूर्ण योगदान था. पर इसका प्राथमिक रूप काम्प्लेक्स शरीर के साथ बना होगा. क्योंकि हमारा शरीर इतने काम्प्लेक्स सिस्टम को सिर्फ़ हॉर्मोन से नियंत्रित नहीं कर सकता, शारीरिक और मानसिक परिस्थितियों का खाका हमारे परिप्रेक्ष्य की मोनिटरिंग का हिस्सा बन गया और अंगों का न्यूरल माध्यम से नियंत्रण होने लगा. समाज और भाषा के विकास के साथ इस मोनिटरिंग को व्यक्त करना महत्वपूर्ण हो गया और एफ़िशिएन्ट नियंत्रण का बाई-प्रोडक्ट जीव के अस्तित्व का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया. कालांतर में, आत्मज्ञान की वजह से जीवों के झुण्ड काम्प्लेक्स काम करने लगे और हमारे समाज एक और बड़े स्तर पर संगठित होकर काम करने लगे.
एक कैची फॉर्मेट में रखूँ तो
आत्मज्ञान/चेतना को एक व्यक्तिवादी रचना माना जाता है जबकि इसका अविर्भाव समूहों के बनने से हुआ. इंसान आज इतना सफल मुख्य तौर पर बुद्धिमत्ता के साथ साथ बड़ी संख्या में जुटकर काम करने की वजह से है.
बुद्धिमत्ता तो कम लोगों के पास भी हो तो चलेगा.
विज्ञान प्रयोगों के आधार पर अलौकिक अनुभूतियों को ख़ारिज करता आया है और चेतना के सारे अलौकिक हिस्सों को सच नहीं पाया गया है. हमारा दिमाग़ इन्द्रियों के अतिरिक्त किसी और स्रोत से सूचना ग्रहण नहीं करता है. लौकिक हिस्सों को विज्ञान धीरे-धीरे समझ रहा है और उनको कृत्रिम रूप से नियंत्रित और निर्मित करने के क़गार पर है.
अनिल चतुर्वेदी की टिप्पणी:
मान्यवर पहली बात तो ये है कि मनुष्य सदियों से परम सत्य को जानने की कोशिश मे लगा हुआ है और यह काम मनुष्य नही करेगा तो क्या कुत्ते बिल्ली या घो��़े गधे नही करेंगे । जिसका उत्तर आसानी से उपलब्ध हो वह चुनौती नही देता लेकिन कुछ चीजें है जिन पर सदियों से मनुष्य लगा हुआ है उनके जवाब भी दिये गये लेकिन वे अंतिम नही थे लिहाजा अब भी जद्दोजहद जारी है। ज्यादा नही मुश्किल से 20 से 30 साल से विज्ञान चेतना को लेकर गंभीर हुआ है आज दुनिया के तमाम महान वैज्ञानिक इसपर काम कर रहे। भारतीय षड दर्शन हो या पाश्चात्य दर्शन चेतना की कोई व्याख्या की ही नही गई। बुद्ध ने चेतना को समझा लेकिन अलग से कोई व्याख्या नही प्रस्तुत की। मुझे लगता है परम सत्य की राह मे चेतना एक महत्त्वपूर्ण कारक है। और अगर इस दिशा में कोई प्रयास कर रहा तो वह उचित ही है। कोई भी दर्शन सिर्फ एक विचारधारा है वह सार्वजनीन सत्य नही हो सकता । फिलहाल उत्तर के लिए धन्यवाद ।
मेरा उत्तर:
व्यंग्य से पगी टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद.
कोई उत्तर अंतिम नहीं होता सो सत्य है. विज्ञान भी कभी ऐसा नहीं मानेगा कि कोई निष्कर्ष अंतिम सत्य हो सकता है. पर दर्शन प्रयोगवादी नहीं होता और उनके विचारों को विज्ञान द्वारा समझने की ज़रूरत है.
विज्ञान के निष्कर्षों को सार्वजनीन सत्य माना जा सकता है अन्यथा वैक्सीन और दवाइयों की कोई उपादेयता नहीं रह जाती. विज्ञान कोई दर्शन नहीं है. विज्ञान जीनोम एडिटिंग को अभी दवाई नहीं बना रहा क्योंकि उसका सार्वजनीन उपयोग अभी संभव नहीं है. विज्ञान की चेतना को लेकर गंभीरता के बारे में आप ग़लत है क्योंकि एलन ट्यूरिंग ने १९६० में एक गंभीर गणितीय परिभाषा चेतना से जोड़ी थी और उससे भी पहले उसपर काम चल रहा था. यह कहा जा सकता है कि पिछले २०-३० सालों में ही वैज्ञानिकों ने वाकई में "आत्मा" जैसे अंधविश्वासों को नकारा है.
दर्शन में चेतना की व्याख्या की गयी है बस वो प्रायोगिक नहीं है. आपको शायद और पढने की ज़रूरत है. हो सकता है उनकी परिभाषाएँ आपके सुपरफिशिअल बिन्दुओं पर खरी नहीं उतरती पर उनसे उनकी टेस्टेबिलिटी बदल नहीं जाती.
बाक़ी, परम सत्य जैसी अध्यात्मिक चीज़ों के बारे में एक कांफर्मेशनल बायस से जुडी कहावत है, "ढूँढने निकलोगे तो मिल ही जायेगा". एक परम सत्य है, यह एक विचार है जिसका कोई प्रायोगिक आधार नहीं है और जान बूझ कर उसे इन्द्रियातीत कहा जाता है ताकि धर्म या कोई अन्य राजनैतिक शक्ति उसको काम ले सके.
घोड़े गधे नहीं करेंगे ये अच्छा जुमला है क्योंकि इसको अगर दर्शन और परम सत्य के खोजी याद रखेंगे तो ९०% दर्शन इतना मानव-केन्द्रित नहीं होता. प्रकृति-पुरुष जैसी चेतना की अवधारणाएं वहीँ से आतीं हैं.
(इसपर अनिल प्रश्न करते हैं कि भारतीय मनीषा में चेतना कि व्याख्या कभी की ही नहीं गयी है जोकि ग़लत है और इससे आगे ये थ्रेड ख़त्म हो जाता है)
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Johann Wolfgang von Goethe Biography in Hindi जोहान वुल्फगैंग वॉन गोएथे जर्मन लेखक और राजनेता थे। उनके कार्यों में चार उपन्यास शामिल हैं; महाकाव्य और गीत कविता; गद��य और कविता नाटक; संस्मरण; एक आत्मकथा; साहित्यिक और सौंदर्य आलोचना; और वनस्पति विज्ञान, शरीर रचना, और रंग पर ग्रंथ। इसके अलावा, कई साहित्यिक और वैज्ञानिक टुकड़े हैं, 10,000 से अधिक पत्र हैं, और उनके द्वारा लगभग 3,000 चित्र मौजूद हैं। 25 वर्ष की आयु तक एक साहित्यिक सेलिब्रिटी, गोएथे को 1782 में अपने पहले उपन्यास द सॉरोज़ ऑफ़ यंग वेरथर (1774) की सफलता के बाद नवंबर 1775 में निवास करने के बाद 1782 में सक्स-वेमर, कार्ल अगस्त के ड्यूक द्वारा डूब गया था। वह स्टर्म अंड ड्रैंग साहित्यिक आंदोलन में शुरुआती प्रतिभागी थे। वीमर में अपने पहले दस वर्षों के दौरान, गोएथे ड्यूक की निजी परिषद के सदस्य थे, युद्ध और राजमार्ग आयोगों पर बैठे थे, पास के इल्मेनौ में रजत खानों को फिर से खोलने पर नजर रखे और जेना विश्वविद्यालय में प्रशासनिक सुधारों की एक श्रृंखला लागू की। उन्होंने वीमर के वनस्पति उद्यान की योजना और इसके ड्यूकल पैलेस के पुनर्निर्माण में भी योगदान दिया, जिसे 1998 में क्लासिकल वीमर नाम के तहत यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल को एक साथ नामित किया गया था।(Johann Wolfgang von Goethe Biography in Hindi) उनके पिता, जोहान कैस्पर गोएथे (1710-82), एक अमीर दर्जी से बने इंटर्नकीपर के बेटे, अवकाश का एक आदमी थे जो अपने विरासत में रहते थे और लीपजिग और स्ट्रैसबर्ग में कानून का अध्ययन करने और इटली, फ्रांस दौरे के बाद खुद को समर्पित थे , और कम देश, किताबें और चित्रों को इकट्ठा करने और अपने बच्चों की शिक्षा के लिए। गोएथे की मां, कैथरीना एलिज़ाबेथ टेक्स्टर (1731-1808), फ्रैंकफर्ट के सबसे वरिष्ठ अधिकारी की बेटियों में से एक थीं और अपने पति की तुलना में एक जीवंत महिला अपने बेटे की उम्र में करीब थीं। गोएथे सात बच्चों में से सबसे बड़े थे, हालांकि केवल एक अन्य वयस्कता में बचे थे, उनकी बहन कॉर्नेलिया (1750-77), जिनके लिए उन्हें एक संभावित स्नेह महसूस हुआ, जिनकी संभावित संवेदना प्रकृति को वह ��वगत मानते थे। कवि के बचपन में एक और भावनात्मक कारक जो उसके बाद के विकास को प्रभावित कर सकता था, एक छोटे भाई के साथ प्यार-नफरत संबंध था, जिसकी मृत्यु 1759 में छह वर्ष की आयु में हुई थी: गोएथे के साहित्यिक समकालीनों के साथ बाद के संबंध संदिग्ध थे, हालांकि उन्होंने उन्हें "भाइयों" के रूप में वर्णित किया , "और वह मृत्यु के साहित्यिक और कलात्मक प्रतिनिधित्व द्वारा हटाना था। गोएथे ने 1794 में कवि और नाटककार फ्रेडरिक शिलर से मुलाकात की, एक सहयोगी संबंध शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप दोनों कलाकारों के लिए रचनात्मक सफलता होगी। दोनों ने वीमर थियेटर को राष्ट्रीय खजाने में बदल दिया और उनके संचयी लेखन जर्मन साहित्य का दिल बनाते हैं, जिन्हें मोजार्ट और बीथोवेन जैसे कई संगीतकारों द्वारा भी अनुकूलित किया गया है। गोएथे ने इस अवधि के दौरान बड़े पैमाने पर लिखा, जिसमें रोमन एलेजीज, इटली की यात्रा के बारे में एक मोहक 24-कविता चक्र भी शामिल था, लेकिन 1805 में शिलर की मृत्यु के बाद तक वह अपने सबसे प्रसिद्ध काम, फास्ट, शैतान के साथ एक द्वंद्वयुद्ध के बारे में नहीं था उत्कृष्ट ज्ञान की तलाश में। महाकाव्य कविता-के-नाटक को ओपेरा में अनुकूलित किया गया है और अभी भी पूरी दुनिया में प्रदर्शन किया जाता है। यद्यपि गोएथे अपने साहित्यिक काम के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, फिर भी उन्होंने विज्ञान में गहरी रूचि रखी और रंग सिद्धांत और पौधे के रूप में काफी कुछ लिखा। उन्होंने यूरोप में खनिजों का सबसे बड़ा संग्रह स्वामित्व किया और उनके कामों ने 1 9वीं शताब्दी के प्रकृतिवादियों को बहुत प्रभावित किया। उनके काम, प्लांट्स के मेटामोर्फोसिस (17 9 0) और थ्योरी ऑफ़ कलर्स (1810) उनके कुछ महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयास हैं। Johann Wolfgang von Goethe hindi Johann Wolfgang von Goethe book Johann Wolfgang von Goethe movie Johann Wolfgang von Goethe Johann Wolfgang von Goethe history about Johann Wolfgang von Goethe Johann Wolfgang von Goethe Johann Wolfgang von Goethe Biography
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बायोकेमेस्ट्री और फिजियोलाजी की हिंदी में दो-दो किताबें होंगी
बायोकेमेस्ट्री और फिजियोलाजी की हिंदी में दो-दो किताबें होंगी
भोपाल। चिकित्सा की किताबों का हिंदी में अनुवाद करने के बाद पृष्ठ संख्या बढ़ गई है। एमबीबीएस प्रथम वर्ष में अभी तक बायोकेमेस्ट्री और फिजियोलाजी की एक-एक किताबें लगती थीं, लेकिन अब दो किताबें (वाल्यूम) कर दिए गए हैं। एनाटमी (शरीर रचना विज्ञान) की पुस्तक के पहले भी तीन खंड (वाल्यूम) थे। हिंदी में भी तीन खंड ही होंगे। हालांकि, खंड बढ़ने के बाद भी किताबों की कीमत लगभग पहले के बराबर ही है। चिकित्सा…
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Best Ayurveda Expert Sexologist in Patna, Bihar | Dr. Sunil Dubey
नमस्कार दोस्तों, जैसा कि बहुत से लोगो को गुप्त रोग डॉक्टर और सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर के बीच के भेद को समझ नहीं पाते है। उन्हें व्यक्तिगत मार्गदर्शन, उपचार, चिकित्सा और परामर्श उद्देश्य के लिए अपने यौन स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर को चुनने के बारे में कुछ भ्रम होता है। इसीलिए; आज के सत्र में, हम इस विषय को लेकर आए हैं जो गुप्त व यौन रोगी के जीवन में गुप्त रोग डॉक्टर और सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर की भूमिका व महत्व से संबंधित है।
गुप्त रोग चिकित्सक (आयुर्वेदिक/यूनानी चिकित्सा):
वास्तव में, गुप्त रोग डॉक्टर पारंपरिक भारतीय चिकित्सा व उपचार के विशेषज्ञ होते हैं। वे आयुर्वेदिक या यूनानी चिकित्सा पद्धतियों का उपयोग करके यौन स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे हर्बल उपचार, आहार परिवर्तन और जीवनशैली में बदलाव पर जोर देते हैं। हो सकता है कि उनके पास आधुनिक सेक्सोलॉजी में औपचारिक प्रशिक्षण न प्राप्त हो। उनका मुख्य उद्देश्य गुप्त व यौन रोगियों को इलाज आयुर्वेदिक दवाओं व स्वदेशी उपचार से सम्बंधित होता है।
सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर (आधुनिक चिकित्सा):
सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर एक प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवर होता है, जिसके पास सेक्सोलॉजी में एमडी या एमएस की डिग्री प्राप्त होता है। वह आधुनिक चिकित्सा का उपयोग करके यौन स्वास्थ्य समस्याओं के निदान और उपचार पर ध्यान केंद्रित करते है। वह साक्ष्य-आधारित उपचार, दवा और चिकित्सा पर जोर देते है। हो सकता है कि उनके पास मनोविज्ञान, मनोरोग विज्ञान या मूत्रविज्ञान में अतिरिक्त प्रशिक्षण हो।
आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर (आयुर्वेद में पीएचडी)
वास्तव में, आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर पारंपरिक और प्राकृतिक चिकित्सा में विशेषज्ञ होते है। वह आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग करके समग्र यौन स्वास्थ्य समस्याओं के निदान और उपचार पर ध्यान केंद्रित करते है। वह हर्बल उपचार, स्वदेशी उपचार और प्राकृतिक चिकित्सा पर जोर देते है। उसके पास मानव शरीर रचना विज्ञान, मनोविज्ञान चिकित्सा विज्ञान और समग्र स्वास्थ्य में अतिरिक्त प्रशिक्षण हो सकता है।
विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे, जो पटना में सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट के रूप में एक लम्बे समय से कार्यरत हैं, कहते हैं कि आयुर्वेद सभी गुप्त व यौन समस्याओं के लिए उपचार और चिकित्सा का सबसे अच्छा और सुरक्षित तरीका प्रदान करता है। यह उपचार व चिकित्सा किसी भी पुरानी गुप्त व यौन समस्या के लिए पूर्ण समाधान प्रदान करता है जहां शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। वह पिछले 35 वर्षों से दुबे क्लिनिक में सभी तरह के गुप्त व यौन रोगियों का इलाज करते हुए आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान के रिसर्चर व विशेषज्ञ हैं।
वे पुरुष और महिला गुप्त व यौन रोगियों को अपना व्यापक आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार प्रदान करते हैं। दुबे क्लिनिक में निम्नलिखित पुरुषों और महिलाओं गुप्त व यौन समस्याओं का इलाज प्रदान करता है। भारत के विभिन्न शहरों से लोग इस क्लिनिक से जुड़कर अपने-अपने इलाज करवाते है।
इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ED)
शीघ्रपतन (PE)
पुरुष बांझपन (MI)
महिला यौन रोग (FSD)
यौन संचारित संक्रमण (STI)
पुरुषों में यौन कमज़ोरी
स्वप्नदोष व रात्रि श्राव
ओलिगोस्पर्मिया (शुक्राणुओं की कम संख्या)
युगल यौन परामर्श
धातु सिंड्रोम या धातु रोग
यौन स्वास्थ्य में बेहतर परिणामों के लिए सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर से कब परामर्श करें: -
आम तौर पर, यदि आप अपने यौन स्वास्थ्य या जीवन में किसी भी प्रकार के कठिनाई का सामना कर रहे हैं; तो आप व्यक्तिगत मार्गदर्शन, उपचार और सहायता के लिए किसी ��ोग्य यौन स्वास्थ्य पेशेवर से परामर्श ले सकते हैं। यदि आप अपनी गुप्त व यौन समस्याओं से जड़ से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो आयुर्वेदिक क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। वास्तव में, यह चिकित्सा और उपचार की प्राकृतिक प्रणाली है जहाँ यह बिना किसी दुष्प्रभाव के समग्र यौन स्वास्थ्य में सुधार करता है।
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दुबे क्लिनिक
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डॉ. सुनील दुबे, सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350-92586
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना-04
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