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🕉️ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 30
कैसे जन्म और मृत्यु पुनः चलते रहते हैं ? पार्ट-1
सत्य से सृष्टि चल रही है! सत्य कड़वा है! इसलिए दिखाई नहीं देता! न दिखाई देने के फलसफे से कितने सच दब जाते हैं! झूठ शासन करता है! सत्य दब जाता है! जब जब सत्य की हानि होने लगती है! तब सत्य ही व्यवस्था की तैयारी में जुट जाता है।
सत्य ही परमात्मा है! सत्य एक ज्योतिर्लिंग है! जो पूरे ब्रह्मांड में फैली हुई है! जिसका कोई ओर-छोर नहीं!
परमात्मा कौन है ?
मैं एक ऊर्जा हूं ! जो पूरे ब्रह्मांड के अस्तित्व में फैली हुई है! मैं अणु भी हूं ! परमाणु भी मैं ही हूं ! मेरा छोटा कण ही सभी जीवो में व्याप्त है! उसी से तुम खुद को जीवित महसूस करते हो ! जैसे ही वो ऊर्जा मैें वापिस ले लेता हूं! तुम प्राणविहीन हो जाते हो।
सारे चर अचर जगत में मेरी ही ऊर्जा व्याप्त है। सारे ब्रह्मांड में मैं ही समाया हूं।
मैं पुरुष भी हूं, और प्रकृति भी! हम दोनों से इस सारे संसार की रचना व्याप्त है! पुरुष जो शिव है। प्रकृति जो दुर्गा है। जो इस संसार के कण-कण में व्याप्त है। प्रकृति जो सृजन कर्ता है! मैं विध्वंस कर्ता हूं ! हम दोनों एक दूसरे के पूरक है! हम में से एक भी रुकता है ! तो सृष्टि रूकती है ! इसलिए हम निरंतर चलते रहते है। मैं काल हूं और काली भी मैं ही हूं। मैं शिव अर्धनारीश्वर भी मैं ही हूं। इस संसार में जो भी जन्मा, सब में मेरा ही वास है।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख!
कैसे जन्म और मृत्यु पुनःचलते रहते है।
कल पार्ट 2
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ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 29
कौन सृष्टि चला रहा है ? पार्ट-5
114=SHUDHARSAN=114
114=SHREE LAXMI=114
SHU= यानि शुभ
DHARSAN=दर्शन
चक्र शब्द चरहूं और करहूं शब्दों के मेल से बना है।
जिसका अर्थ है गति, हमेशा चलने वाला।
सुदर्शन चक्र की हिंदू धर्म में बहुत मान्यता है।
वक्त सूर्य और जिंदगी कभी नहीं रुकती। वैसे ही इसका कोई अंत नहीं कर सकता।
बरमूडा ट्रायंगल है। पृथ्वी का सुदर्शन चक्र।
कलयुग चरम पर है। कलयुग में कल्कि के अवतार में आऊंगा । सफेद घोड़ा , सफेद शिवलिंग, सफेद चादर कल्कि का अवतार भक्तों को बचाने के लिए लूंगा।
सृष्टि कलयुग के छोर पर है। तांडव शुरू हो चुका है 15 साल तक जारी रहेगा। डमरु बीच-बीच में बजेगा। राधा नाचेगी।(बीमारियां आएंगी) गुफाओं में लंबी यात्राएं होंगी। फिर सवेरा होगा। प्रकृति खिल उठेगी। नया सवेरा नया आगाज़। सतयुग की शुरुआत देखने को ना कोई बच पाएगा। गुरु शरण में पड़ा व्यक्ति फिर सफेद चादर ओढ़े वापस आएगा।
मैं हूं ! मैं था! मै ही रहूंगा! आदि अनंत हमेशा।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख
कौन सृष्टि चला रहा है ? पार्ट-6 आगे
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🕉️️️ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 29
कौन सृष्टि चला रहा है ? पार्ट-4
शिव है रक्षक, शिव है शिक्षक, मित्र शिव, भ्राता शिव, शिव विधाता, शिव है दाता, शिव पिता माता भी शिव, ज्ञान का सूरज शिव, सारे जगत की आत्मा!
कौन सृष्टि चला रहा है ? शिव शक्ति
हमारे शरीर में 114 तरह के चक्र मौजूद है
A=1 14=N = AN=114
114=SUDHARSHANA=114
K-KING
H-HUMAN
K-11=8=H=KH=118
118=TRISHOOL B - =118
118=B+26 JANUARY=118
118=A1 THURSDAY=118
118=DURGA SHAKTI=118
97=SHOONYA=97
97=PRESENT=97
97=AARYABHATT=97
97-1 14 15 15 10 10 10 114-0
11 11 0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 11=99=0
B E R M U D A -T R I A N G L E
1 2 3 4 5 6 7...8 9 10 11 12 13 14 15
A B C D E FG H I J K L M N O
R-0 15-0
0= 15 = AN= 1 N= 114
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख
कौन सृष्टि चला रहा है ? पार्ट-5 आगे
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🕉️️️ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 29
कौन सृष्टि चला रहा है ? पार्ट-3
पृथ्वीलोक के देवता, जगत पिता महादेव और आदिशक्ति उनके पुत्र कार्तिकेय गणेश और मां आदिशक्ति के नौ रूप पृथ्वी के देवता है। यही सत्य है । सत्यम शिवम सुंदरम और कुछ नही। रामायण का पहला विश्राम और चौथा विश्राम सत्य ���
बाकी जीवन जीने की कला, इस संसार में जीवन जीना कैसे चाहिए । बस और कुछ नहीं । जो समझ नहीं पाया। उसने मंदिरों का निर्माण किया। किसी ने गिरजाघर किसी ने मस्जिद, बस निर्माण किया । मन का मंदिर सूना ही रह गया। मानव ज्ञान के अभाव में भटकता रहा । इस संसार का यही सत्य है! और कुछ नहीं ! आत्मज्ञान प्राप्त करें ! इसी सत्य की खोज का नाम मोक्ष है ! भ्रम में न रहना ही मोक्ष है!
सत्य को जान लेना ही मोक्ष है। सत्य जान लेने के बाद आदमी सत्य ही बोलता है। अब असत्य उसे पहचान नहीं पाता । इसलिए सत्य कड़वा होता है । इस संसार का सत्य जान लेने के बाद, कुछ बचता नहीं कि झूठ बोला जाए। क्योंकि सत्य सत्य ही है ? सत्य जैसा इस संसार में कुछ और नही! सत्य ही परमात्मा है ! सत्यम शिवम सुंदरम! सत्य ही शिव है! शिव ही सुंदर है!
जो लोग सतयुग में ईश्वर है समझाना चाहते थे । उन लोगों ने मूर्ति को माध्यम बनाया । ताकि लोगों के अंदर ईश्वर के प्रति आस्था बनी रहे । उस मंदिर में जाकर उस प्रतिमूर्ति के सामने बैठ अपनी आत्म प्रतिमा को जान सके। सतयुग में पाप न के बराबर होता है। इसीलिए इंसान प्रेमभाव सदाचार से जीवन जीते हुए जीवन व्यतीत करतेे है। लेकिन ज्यों ज्यों पाप की अधिकता बढ़ती है! त्यों त्यों मंदिर मस्जिद का निर्माण बढ़ता है और पुण्य घटता है । जहां अंत है।
लेकिन किसी का अंत होने से पहले वह अपने धरातल पर उफान मारती है। ईश्वर अपना कर्तव्य पूरा करते हैं। क्योंकि मानव उनकी संरचना है उनकी व्यवस्था के अनुसार ही सब कुछ घटित होता है। वह किसी न किसी माध्यम से अपने पास बुलाने का इंतजाम भी स्वयं करते है। अंत की और जब सृष्टि बढ़ती है। तब ये ईश्वर कार्य, पुरजोर रहता है। जिसमें मोक्ष पाकर सद्गति को उपलब्ध होना अत्यंत सरल होता है।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा की पंख
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🕉️️ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 29
कौन सृष्टि चला रहा है ? पार्ट-2
पार्ट 2 कुमार अमित पाठक जी के सहयोग से संपूर्ण हुआ। शिव शक्ति चाहते थे। सत्य सब जाने। लेकिन कुछ परेशानी के कारण वह ये कार्य पूर्ण न कर पाए। जिसके कारण महादेव आदिशक्ति ने मुझे चुना और इस कार्य को संपूर्ण कराया। पाठक जी के सहयोग के लिए मैं आभार प्रकट करती हूं। गुरु भाई को कोटि-कोटि नमन।
शिव है अक्षर, शिव गणित है, शिव है विद्या, ध्यान शिव, ज्ञान विज्ञान शिव,कंठ शिव वाणी भी शिव है, शिव हमारी चेतना।
74-रामायण
R A M A Y A N A
18 1 13 1 25 1 14 1=74
H U N D R E D
8 21 14 4 18 5 4=74
E N G L I S H
5 14 7 12 9 19 8=74
G O D
7 15 4=74
शुन्य
रामायण पहला विश्राम= 74
चौथा विश्राम= 74
सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग ! 74 पर विश्राम समाप्त।
3 सत्य होते हैं सत्यम शिवम सुंदरम।
ये तीनों भी सत्य है।
74=रामायण गेम= गाँड
A = 1 - परमात्मा
B = 2 - अद्धितीय
B = अद्धितीयि
1 -1
A परमात्मा
कौन सृष्टि चला रहा है ? पार्ट-3 आगे
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🕉️ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 29
कौन सृष्टि चला रहा है ? पार्ट-1
AN-मैं अकेला ( परमात्मा)
हमारे शरीर में भी 114 तरह के चक्र मौजूद हैं। जिसमें अत्यंत ऊर्जा और अध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न करने की क्षमता है। योग उपनिषद में सहस्त्रार चक्र के अलावा छह चक्र और हैं।
मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धा, अंजना यानी आज्ञा चक्र।
2 चक्रों पर कार्य नहीं होता -शिव और शक्ति, 112 चक्रों पर ही हम अपनी ऊर्जा को आगे बढ़ाने का कार्य चुन सकते है।
लेकिन एक आम आदमी अपने 21 चक्रों या उससे भी कम 19 या 20 चक्रों के साथ ही, एक पूरा भौतिक जीवन व्यतीत करता है। कुण्डलिनी योग के द्वारा हम अपने पूर्ण चक्र को जागृत कर सकते है। क्योंकि यह बहुत ही शक्तिशाली योग है ? इसलिए यह खतरनाक भी होता है। क्योंकि हर शक्तिशाली वस्तु को आराम से पाया नहीं जा सकता । अगर गलत तरीके से किया जाए । तो यह घातक भी सिद्ध हो सकता है । मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र तक जाना सहज है। लेकिन आज्ञा चक्र से सहस्त्रार चक्र की यात्रा आसान नहीं। क्योंकि यहां कूदना है? खाई में ! बिना सोचे समझे । एक दृढ़ संकल्प, पूर्ण समर्पण के साथ।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख।
कौन सृष्टि चला रहा है ? आगे पार्ट-2
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🕉️️️️️ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 28,भाग-1
यह सृष्टि कैसे चल रही है ! पार्ट-२
पाप ! - एक झूठ आपको दूसरा झूठ बोलने को मजबूर करता है। यानी की एक ही पाप था। झूठ! मगर एक झूठ ने न जाने तुम्हारे भीतर कितने पापों को जन्म दे डाला।
पुण्य की मात्रा, पाप अपेक्षा बहुत कम ! क्योंकि कलयुग में पाप की तरफ तेजी से मानव बढ़ता है। उसे चुगली परनिंदा दूसरे का दुख, उसके आनंद का कारण है । इस कारण अनजाने में ही इतने पापों को जन्म दे देता है। कि उसे खुद मालूम नहीं होता।
कहते सभी हैं कि बुरा मत देखो । पर ये सांसारिक आंखें बुरा क्यों ना देखें । इसमें आनंद जो है। जो तुम्हारे मन का आनंद है। मन इस आनंद का विस्तार करने से खुद को रोकना नहीं चाहता। क्योंकि इसमें जो आनंद की प्राप्ति हो रही है। वह तो क्षणिक है! और क्षणिक होने के कारण, उस काम को बार-बार देखने और करने का मन करता है । पाप ही पाप को जन्म दे रहा है।
दूसरे जीवात्मा की पीड़ा को समझ न पाना। मुंह पर कहना आपके साथ भगवान ने अच्छा नहीं किया । अच्छा चिंता मत करो । भगवान ही सब ठीक करेंगे । लेकिन उसका पापी मन तो आपको व्यथित ही देखना चाहता है। यही उसका पाप है। पाप में क्षणिक आनंद जो ठहरा। भगवान को और उसमें घसीटा । जिसका उस व्यक्ति से कुछ लेना-देना ही नही। वह तो उसके अपने कर्मों का फल है।
कर्म की गति भी काल की तरह तेज चलती है। एक पाप अनेक पाप को जन्म देता है! और एक पुण्य दूसरे पुण्य को ही जन्म देता है!
यही कारण है! कि आदमी पाप अधिक और पुण्य बहुत कम कर पाता है।
बुरा मत देखो! - देखने का नजरिया परमात्मा की प्राप्ति के बिना बदल नहीं सकता! क्योंकि यही माया है?
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख।
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🕉️️️️️ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 28,भाग-1
यह सृष्टि कैसे चल रही है ! पार्ट-२
पाप ! - एक झूठ आपको दूसरा झूठ बोलने को मजबूर करता है। यानी की एक ही पाप था। झूठ! मगर एक झूठ ने न जाने तुम्हारे भीतर कितने पापों को जन्म दे डाला।
पुण्य की मात्रा, पाप अपेक्षा बहुत कम ! क्योंकि कलयुग में पाप की तरफ तेजी से मानव बढ़ता है। उसे चुगली परनिंदा दूसरे का दुख, उसके आनंद का कारण है । इस कारण अनजाने में ही इतने पापों को जन्म दे देता है। कि उसे खुद मालूम नहीं होता।
कहते सभी हैं कि बुरा मत देखो । पर ये सांसारिक आंखें बुरा क्यों ना देखें । इसमें आनंद जो है। जो तुम्हारे मन का आनंद है। मन इस आनंद का विस्तार करने से खुद को रोकना नहीं चाहता। क्योंकि इसमें जो आनंद की प्राप्ति हो रही है। वह तो क्षणिक है! और क्षणिक होने के कारण, उस काम को बार-बार देखने और करने का मन करता है । पाप ही पाप को जन्म दे रहा है।
दूसरे जीवात्मा की पीड़ा को समझ न पाना। मुंह पर कहना आपके साथ भगवान ने अच्छा नहीं किया । अच्छा चिंता मत करो । भगवान ही सब ठीक करेंगे । लेकिन उसका पापी मन तो आपको व्यथित ही देखना चाहता है। यही उसका पाप है। पाप में क्षणिक आनंद जो ठहरा। भगवान को और उसमें घसीटा । जिसका उस व्यक्ति से कुछ लेना-देना ही नही। वह तो उसके अपने कर्मों का फल है।
कर्म की गति भी काल की तरह तेज चलती है। एक पाप अनेक पाप को जन्म देता है! और एक पुण्य दूसरे पुण्य को ही जन्म देता है!
यही कारण है! कि आदमी पाप अधिक और पुण्य बहुत कम कर पाता है।
बुरा मत देखो! - देखने का नजरिया परमात्मा की प्राप्ति के बिना बदल नहीं सकता! क्योंकि यही माया है?
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख।
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️🕉️️️️ॐ नमः शिवाय🕉️शिव वाणी -पार्ट 27 भाग-1
ये सृष्टि कैसे चल रही है ?
ऐसा कोई भी मानव नही! जो पाप से अछूता रह पाए! पापो से छुटकारा, मोक्ष प्राप्ति के बाद ही मिलता है! इसलिये मोक्ष के बाद जन्म-मरण के चक्कर से, मानव छुटकारा पा, अपने इष्ट मे विलीन हो जाता है।
पाप हम सभी करते है। अनगिनत! जिसको यदि हम अपनी दृष्टि से देखें। तो हम स्वीकार ही नहीं करेंगे कि हम पाप करते है। हम हर क्षण पाप करते है। सबसे अधिक, अपने विचारों के द्वारा, मानसिक रूप से, हम सबसे अधिक पाप करते है।
पाप किसी भी जीव जिसमें प्राणशक्ति है। उसे शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना। इंसान सबसे अधिक मानसिक रूप से एक-दूसरे को प्रताड़ित करते है, और अनजाने में इतने पाप कर डालते है। कि संचित पुण्यों की मात्रा घट जाती है। पुण्य की मात्रा घट जाने पर, हम ईश्वर के सानिध्य से वंचित होना शुरू हो जाते है।
क्योंकि पुण्य एक बराबर एक है ? और एक पुण्य दूसरे पुण्य को ही जन्म देता है, और एक पाप सौ पाप को जन्म देता है । ईश्वर का आशीर्वाद कम होने के साथ ही हम और अधिक पाप करने लगते है।
जब जब पृथ्वी पर पाप की मात्रा गहराने लगती है। तब पृथ्वी पर जनसंख्या का प्रकोप गहराने लगता है। उसमें अधिक जनसंख्या दरिद्र लोगों की होती है। पाप दरिद्रता में जन्म लेता है। और उसी दरिद्रता में और फलने फूलने लगता है। जिस कारण घर घर में कलह, निंदा, बीमारियां खूब जोरों पर ज़ोर पकड़ने लगती है।
पाप कि��ने प्रकार है। उसका वर्णन कर पाना असंभव है। यही कारण है। कि कोरोना जैसी बीमारियां, हर सौ साल के बाद आती रहती है, और आती रहेंगी।
ये सृष्टि का नियम है। उसे किसी की आज्ञा की जरूरत नहीं होती। वह अपना कार्य समान रूप से करती चलती है। परमात्मा एक ऐसी शक्ति है। जो किसी से भेदभाव नहीं करती। सिर्फ पाप और पुण्य के आधार पर ही सृष्टि चल रही है। चलती रहेगी।
अभी कोरोना काल चल रहा है, और इससे जल्दी मुक्ति मिलने वाली नहीं । जिससे पूरे विश्व में अशांति का माहौल बना हुआ है। क्योंकि पाप इस समय पुरजोर में है। कलयुग का अंत निकट है। महादेव का कालचक्र बहुत तेजी से घूम रहा है। उनका कालचक्र उनके नियम अनुसार विपरीत दिशा में घूम रहा है।
2029 में घोर त्रासदी से गुजरना होगा। 2029 के अन्त में तीसरा विश्व युद्ध घटेगा। जिसमें विनाश का चक्र घुमेगा। कलयुग समाप्ति की ओर बढ़ेगा। सतयुग का आगाज़ होगा। 2030 से 2050 तक का समय फिर से सृष्टि का सृजन का होगा। तब सतयुग फिर से आरंभ होगा। इस समय वही बचेगा। जो परमात्मा की शरण में होगा। सब विलुप्त होने की कगार पर होगा।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख।
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🕉️🕉️️️️ॐ नमः शिवाय🕉🕉️शिव वाणी -पार्ट 26
गुरु धारण करने की विधि।
हे देवों के देव महादेव और गुरुओं के गुरु भगवान शिव आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम है।
ब्रह्मांड के प्रति मुझसे जाने अनजाने हुए अपराधों को क्षमा करें मुझ पर प्रसन्न हो।
मेरे मन मंदिर में विराजमान हो। मैं आपको गुरु धारण कर रहा हूं या कर रही हूं-3।
आप मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करें-3 बार इसे द��हराये।
5. मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करने के लिए आपका धन्यवाद। आप को साक्षी बनाकर मैं इसकी घोषणा अंतरिक्ष में कर रहा हूं।ताकि अंतरिक्ष की शक्तियां मुझे शिव शिष्य के रूप में पहचान सकें। शिव मेरे गुरु है मैं उनका शिष्य हूं -3 बार दोहराएं।
हर हर महादेव
हे शिव आप मेरे गुरु है। मैं आपका शिष्य हूं। मुझ शिष्य पर दया करें । मेरा नमन स्वीकारे-3बार दोहराएं।
ॐ नमः शिवाय गुरुवे 5 मिनट जाप करें।
हे शिव आप मेरे गुरु हैं मैं आपका शिष्य हूं मुझ शिष्य पर दया करें।
भगवान शिव को राम नाम बहुत प्रिय है। वे सदैव राम नाम का चिंतन करते रहते हैं। इसीलिए गुरु दक्षिणा के रूप में उन्हें रोज 10 मिनट राम नाम जरूर सुनाएं । उनसे कहें हे मेरे गुरुदेव आपको प्रणाम है। आपको शाक्षी बनाकर मैं गुरु दक्षिणा के रूप में आपको राम नाम सुना रहा हूं । मेरे मन मंदिर में विराजमान होकर राम नाम सुने और प्रसन्न हो और मुझे निरंतर शिव ज्ञान प्रदान करें।
ध्यान रखें राम नाम सुनने के लिए, भगवान शिव को जहां भी आमंत्रित किया जाता है वो तुरंत पहुंच जाते हैं । क्योंकि राम का नाम बड़ा है। राम ही दुर्गा शक्ति है। जो हम मोक्ष पाने के बाद समझ पाते हैं।
जब तक आप को शिव तत्व या मोक्ष प्राप्त ना हो जाए साधक को साधना जारी रखनी चाहिए और किसी भी व्यक्ति से कुछ भी शेयर करने से बचना चाहिए। अन्यथा शक्तियां रुष्ट हो जाती है। और साधक को दोबारा बहुत मेहनत करनी पड़ती है । प्रभु कृपा बड़ी मुश्किल से मिलती है । इसलिए शेयर करने से बचें हां यदि कोई परेशानी आ रही है। तो आप जिसे मोक्ष प्राप्त हो ऐसे व्यक्ति है । गुरु से पूछ सकते है। वैसे मैंने इस किताब में हर बात लिख दी है। ये किताब मेरे गुरुदेव द्वारा लिखवाई गई है। ताकि लोग भ्रमित ना हो । क्योंकि यह शिव की वाणी है । मेरी नहीं । कलम भी उनकी। शब्द भी उनके । ये आत्मा भी उनकी ।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख।
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🕉️🕉️️️️ॐ नमः शिवाय🕉🕉️शिव वाणी -पार्ट 25
1. साधना मार्ग या मोक्ष प्राप्ति के लिए गुरु अनिवार्य है।
2. इसमें आपको कई महीने या कई वर्ष भी लग सकते है। क्योंकि साधना के साथ-साथ आपके पास कर्म की गठरी कैसी है? ये भी बड़ा महत्व रखती है।
3. आपके पुण्य के आधार पर आपको तत्व ज्ञान पाने में सफलता प्राप्त होती है। इसमें कई बार पूर्व जन्म के पुण्य भी संचित होते है।
4. काम भावना बड़ी अड़चन का कारण बनती है। इसके नियंत्रण में बहुत अधिक समय लगता है। क्योंकि इसे हम अपना शरीर समझते है, और समर्पण नहीं कर पाते। जबकि न यह शरीर हमारा है। न ही हमारी जीवात्मा ।
5. प्रभु को कुछ नहीं चाहिए सिर्फ आप के समर्पण भाव से प्रसन्न हो ज्ञान के द्वार को खोल देते है। धीरे-धीरे ही सही हमें ना की सामग्री को अपनाना चाहिए।
6. हमारी सांस लेने की प्रक्रिया, हमें दूसरे आयाम यानी परमपिता तक हमें पहुंचा देती है।
7. अपनी ऊर्जा को जागृत कर ईश्वर की ऊर्जा से जोड़ना जिसका सबसे अच्छा समय ब्रह्म मुहूर्त होता है। उस समय ब्रह्मांड की सारी शक्तियां तीव्र रूप से उपस्थित हो। साधक की पूर्ण रूप से मदद करती है।
8. शरीर का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। जितनी कम उम्र में साधना शुरू हो उतना ही अधिक संभलने की शक्ति प्राप्त होती है। क्योंकि ? यदि आपका शरीर स्वस्थ नहीं या आप कमजोर है। तो ये ऊर्जा अनियंत्रित होकर आपको पागल भी बना सकती है। इसीलिए प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट फ्रूटस इन सभी का सही मात्रा में इस्तेमाल करें । दूध पनीर अधिक ले। साधक को हमेशा शाकाहारी होना चाहिये। तामसी और गर्म प्रवति के खाद्य पदार्थों से अपने को दूर रखना चाहिए।
9. नियमित एक ही स्थान पर बैठ ध्यान साधना करने से वह जगह प्राण प्रतिष्ठित हो जाती है। इससे आपको परिणाम जल्दी मिलता है।
10. यदि आप शिव भक्त हैं या आपने शिव गुरु रूप में धारण किया है। तो आपको सांसारिक होने की प्रक्रिया में रहते हुए, आप काम क्रिया को जारी रख सकते है। यहां ब्रह्मचर्य पालन की कोई आवश्यकता नहीं। क्योंकि शिव खुद अर्धनारीश्वर है।
12. मंत्र जाप, ध्यान की अवस्था में आने के लिए बहुत उपयोगी है । मंत्र आप स्वयं चुन सकते है। ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र आप चुन सकते है।
13. आगे गुरु कैसे बनाया जाए शिव वाणी 26 में मौजूद हैं।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख।
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🕉️🕉️️️️ॐ नमः शिवाय🕉🕉️शिव वाणी -पार्ट 24
लेकिन कुछ लोगों का लक्ष्य परमात्मा प्राप्ति का ना होकर, हठयोगी बन केवल सिद्धियां प्राप्त करने का होता है। जिससे सिद्धियां प्राप्त कर जीव आत्मा भटक जाती है। और फिर से जन्म मरण के चक्कर में आ फंसती है।
पूर्ण ज्ञान हर गुरु के पास नहीं। क्योंकि तत्व ज्ञान की प्राप्ति होते ही किसी को पूर्ण ज्ञान नहीं होता। पूर्ण तत्वज्ञान के लिए परीक्षाओं के स्तर को पार करना होता है। लेकिन कुछ तत्व ज्ञान प्राप्त करते ही खुद गुरु बन बैठते है। क्योंकि अधूरा ज्ञान होने के कारण वो स्वयं भ्रमित होते है,और ऐसे गुरु परमात्मा से साक्षात्कार से हटाकर जीवात्मा का बहुमूल्य जीवन व्यर्थ करा देते है। जिस कारण फिर पशु योनि में भटकना पड़ता है। जन्म मरण कट नहीं पाता।
यदि आप अपने इष्ट को गुरु धारण करते है। तब देर लगती है, समय लगता है, पर धीरे धीरे गुरु कृपा से सब ज्ञात होता चला जाता है ।
आदि देव, योगी महादेव जो देवों के देव हैं। आप उन्हें बहुत सरलता से गुरु बना सकते हैं। गुरु बनाना आसान है ।लेकिन पूर्ण समर्पण किए बिना कुछ प्राप्त नहीं होता।
साधना मार्ग पर चलते हुए काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है। यदि आपको जानकारी नहीं है। इसलिए यहां में वर्णन कर रही हूं ताकि आप जब भी इस मार्ग पर चलें। पूर्ण तैयारी के साथ चलें । जिसका विवरण शिवा वाणी 25 में है।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख।
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🕉️🕉️️️️ॐ नमः शिवाय🕉🕉️शिव वाणी -पार्ट 23
मोक्ष प्राप्त करने के बाद , दूसरा मार्ग अध्यात्म की तरफ मुड़ जाता है। उसमें प्रभु का कार्य करना होता है। यानी आपने जो प्राप्त किया। वह दूसरों तक पहुंचाने का जरिया आप बने।
अध्यात्म के मार्ग पर चलकर प्रभु का कार्य करने वाले ऐसे ही अनेक विरले व्यक्तित्व के लोगों ने जन्म लिया। गुरु नानक,गुरु गोविंदसिंह मोहम्मद पैगंबर, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी रमण महर्षि, महात्मा गौतम बुद्ध, रामानुज रामदास, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रजनीश, ऐसे अन्य महापुरुषों ने, जो पहले भी धरती पर आकर, मोक्ष प्राप्त कर चुके थे, और दोबारा जन्म ले प्रभु कार्य संपन्न करने के लिए इन महापुरुषों का जन्म हुआ।
जिस समय, जिस काल में, जिस तरह की व्यवस्था होती है। उसी तरह के गुरु अवतरित होते है। समझाने का माध्यम भगवत प्राप्ति और मोक्ष के मार्ग को सुगम रूप से प्राप्ति का साधन। ये सभी एक ही बात समझाना चाहते है। कि ध्यान और योग की पद्धति के द्वारा हम कैसे मोक्ष को प्राप्त कर सकते है ?
परमेश्वर परमपिता एक है। हम सब उनके अंश है। कृष्ण की भक्ति करो या राम की । ये सभी काल तक सीमित है । चाहे आप अगले करोड़ जन्म भी गंवा दे। बिना गुरु के तत्वज्ञान की प्राप्ति असंभव है। बिना तत्वज्ञान के चौरासी लाख योनियों के चक्कर से छुटकारा पाना असंभव है।
हम सब ऐसे ही ,एक बने बनाए ढर्रे पर चलते रहते है। हमें मालूम नहीं होता। कि सही क्या है ? कौन सी दिशा मोक्ष तक लेकर जाएगी ?
हम राम या कृष्ण की भक्ति में समर्पण भाव के अधीन हो जाते है। लेकिन पूर्ण समर्पण, गुरु के बिना तत्व ज्ञान की प्राप्ति असंभव है। इष्ट को यदि हम गुरु बना कर मनन सिमरन करते है। फिर कहीं भटकने की जरूरत नहीं। वह आपको सही मार्ग पर ले जाकर तत्व ज्ञान की प्राप्ति की ओर अग्रसर करते है।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख
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️️️🕉️️️ॐ नमः शिवाय🕉🕉️शिव वाणी -पार्ट 22
हमारे देश में श्री आर्यभट्ट हुएे। जिन्होंने शुन्य (०) का आविष्कार किया ! उनसे भी पहले भारतीय विद्वान पिंगला ने शुन्य (०) के लिए (संस्कृत का शब्द शुन्य के लिए) इस्तेमाल किया!
हमारे देश में अनेक महाऋषि हुए ! जिन्होंने समाज को सुधारने में बहुत बड़ा योगदान दिया । ये वो व्यक्ति थे। जिन्होंने मानवता और इंसानियत के प्रति किसी भी प्रकार से चिंतित हो; जो अच्छाई के लिए परिवर्तन लाने का कार्य; समाज को व्यवस्थित रूप से चलाने में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया!
ये वे व्यक्ति थे । जिनके पास प्रबुद्ध वैचारिक प्रक्रिया थी! जो किसी भी कमजोर वर्ग के लिए पीड़ा को सहन नहीं कर सकते थे!
ये सभी कमजोर वर्ग के लोगों की सेवा को अपना कर्तव्य मानते थे! तथा अपने बाद एक ऐसी धरती छोड़ना चाहते थे। जो पहले से बेहतर हो ।
वास्तव में एक समाज सुधारक एक आम इंसान ही होता है। जो असाधारण तरीके से मानवता की सेवा करता है। भारत बहुत सौभाग्यशाली है। कि उसने बहुत से असाधारण लोगों को जन्म दिया ! क्योंकि सनातन धर्म ही सबसे पुराना धर्म है? ये ना हिंदू है, ना मुसलमान न सिख न इसाई !
ये सनातन धर्म स्वधर्म के मार्ग पर चलने की एक प्रक्रिया है। जिसे आम आदमी समझ नहीं पाता। उसमें उलझ जाता है। जबकि यह बहुत सरल प्रक्रिया है।
चेतना जाग जाने के बाद ही कोई समाज सुधारक बनता है। जिसमें राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानंद, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, सुभाष चंद्र बोस इत्यादि।
आज के समय में सबसे बड़े समाज सुधारक मोदी जी है। मोदी जी को आम आदमी समझने की भूल न करना । उनके ऊपर भोलेनाथ की कृपा बरस रही है । जिस कारण इतनी आसानी से सारी व्यवस्था को संभाल पाते है। वैसे इस बात को समझने के लिए भी चेतना की आवश्यकता है।अनेक ऐसे लोग है। जिन्हें ईश्वर के द्वारा समाज की कुरीतियों को संभालने, बिगड़ी प्रक्रियाओं में संतुलन लाने का कार्यभार सौंपा जाता है । बिना ईश्वर की कृपा के ऐसे कामों को कर पाना असंभव है।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख
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🕉️️️🕉️️️ॐ नमः शिवाय🕉🕉️शिव वाणी -पार्ट 21
ऐसे तो इंसान हर समय परीक्षा ही दे रहा है। मगर उस परीक्षा की कोई सार्थकता नहीं। जिसमें ये मालूम न हो।
कि सफल हुआ। तो भी क्या मैंने मानव जीवन को सार्थक किया ? इसे सार्थक करने के लिए अपने इष्ट की ध्यान साधना करनी पड़ती है । ध्यान सध जाने पर मुक्ति मिलती है। मुक्ती मिल जाने पर परीक्षाएं आरंभ होती है। परीक्षाएं देने के डर से हम आगे की अध्यात्मिक प्रक्रिया जारी नहीं रख पाते।
तो ये ऐसे ही हुआ जैसे बच्चे का प्रवेश स्कूल में तो हुआ। लेकिन बिना परीक्षा के अगली कक्षा में ना पहुंच पाया। परीक्षा न दे पाने के कारण, हम मोक्ष को प्राप्त कर लेने के बाद भी अनपढ़ जैसे रह जाते है। बिना परीक्षा के फेल हो जाते है, और मोक्ष के कारण जो चेतना हमारी जाग चुकी थी । फिर से सुप्त अवस्था में चली जाती है, और सुप्त अवस्था में जाने के कारण। हम पहले से भी अधिक कामुक क्रोधी हो जाते है। क्योंकि अब आपकी इंद्रिया प्रभु के वश में नहीं, वे उनको फिर खुला छोड़ देते है।
ऐसा नहीं है कि लोग प्रभु तक पहुंच नहीं पाते। बहुत लोग पहुंचते है। लेकिन वो रास्ता कौन सा चुनते है। इसी पर आगे की यात्रा निर्भर करती है। यात्रा के रास्तों में परीक्षाओं के पड़ाव है। जिन्हें पार करे बिना आगे नहीं बढ़ सकते।
यात्रा को चुनने का अवसर हर परीक्षा में दिया जाता है। हो सकता है। आप अपना रास्ता परिवर्तन करना चाहते हो। इसीलिए तो बार-बार परीक्षा लेते है। ये उनका अधिकार है। क्योंकि हम उनक�� रचना है ?
यदि आप स्वयं कोई रास्ता नहीं चुनते। तो प्रभु आपके आगे दो मार्ग खोलते है, और कहते हैं चुनो। जो तुम चुनना चाहते हो एक मार्ग प्रभु की तरफ मुड़ जाता है। दूसरा संसार की ओर। प्रभु की तरफ मुड़े तो वह आपसे अध्यात्मिक कार्य करवाएंगे। अन्यथा आप संसार की ओर मुड़े। तो संसार में भी आपसे ऐसे कार्य करवाएंगे। जिससे परमपिता परमात्मा की सृष्टि की रचना को संभालने का कार्यभार उनके ऊपर सौंपेंगे। आप एक अच्छे राजनीतिज्ञ भी हो सकते है,और समाज कल्याण कारी भी हो सकते है। समाज को सुधारने हेतु लेखन भी कर सकते है। एवं एक गणितज्ञ भी हो सकते हैं।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख
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🕉️️️🕉️️️ॐ नमः शिवाय🕉🕉️शिव वाणी -पार्ट 20
अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ना, पीछे संसार में लौटने से कहीं बेहतर है, अध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ते हुए।आप दोनों जगह संतुलन बना पाते हैं। दोनों जगह उन्नति होती है।संसार में भी, और अध्यात्म में भी।
क्योंकि मोक्ष जब मिला? तब आपकी सोई हुई चेतना जाग गई। अब आपका काम, क्रोध,मोह, लोभ, अहंकार सब प्रभु ने अपने पास गिरवी रख लिये। अब आप निर्मल हो गए। जैसे आपका जन्म अभी हुआ हो।
अब वैराग्य उत्पन्न हुआ। लेकिन इस वैराग्य से आपके किसी भी प्रियजन का अहित नहीं होता। बल्कि ज्ञान प्राप्त हो जाने के कारण। आप परिस्थितियों को प्रेम पूर्वक अच्छे से व्यवस्थित कर पाते हो।
क्योंकि आप अब अकेले नहीं हो। आप के साथ आपकी चेतना यानि शिव,आदिशक्ति, आपके भीतर सुक्ष्म रूप में विराजमान है। जो आपका किसी भी प्रकार से अहित नहीं होने देते। हर स्थिति में आपकी मदद करते है। बिल्कुल माता-पिता जैसे।
सांसारिक मां बाप भी इतनी मदद नहीं कर पाते। क्योंकि वह भी अपनी औला�� को समझ नहीं पाते। क्योंकि वे भी परमपिता के द्वारा ही निर्मित है। लेकिन जिस पराशक्ति की हम रचना है। वो हाथ पकड़ ले। तो कहा नहीं जा सकता । असंभव भी संभव होने लगता है।
ॐ नमः शिवाय
परमात्मा के पंख।
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