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मायने बदल गए
DKLIF/2021/EM24
रोजगार के लिए धूल फाकना ,अन्तहीन सड़कों की दूरी मापना |
कभी हमारा नित्य का व्यापार था ,थक –हार कर लौटना आदत में शुमार था |
सजल स्नेही बन्धु –बांधव पिता –माता नाकारा ,काहिल ,निठल्ला धरती का बोझ |
नित्य नए विषेशणो से हमको नवाजते थे ,निस दिन कटघरे में खुद को मै पाता था |
किस्मत का मारा ,बेरोजगार, बेसहारा अपमान का घूट पीकर घर में दुबकता था |
विश्वविद्यालयो के डिग्रियों का बोझ उठाकर ,घर के एक कोने में सुबकता था |
काम के न काज के दुश्मन अनाज के ,नित्य नए जुम्लो के बौछार का आदि था |
ख़ाली ठाले बैठना तब एक जलालत थी ,मजा देखिये एक विश्व – व्यापी वायरस का
जिन्��गी जीने के मायने बदल दिए ,काहिल कहे जाने वाले ,सुजान बन गये |
कल तक जिन्हें कोसा जाता था ,अब वे काबिले तारीफ़ है ,कल के नकारे |
गाइड लाइन्स का पालन करने वाले शरीफ बन गये |
अब घर में बैठने वाले हिकारक नहीं सम्मान पाते है |
चलो यही नुस्खा आज हम भी आजमाते है ,घर में बैठना नाकाबिलियत नहीं समझदारी है|
कोरोना का कहर हम सब पर भारी है ,इस अनूठे वायरस ने अनोखा कमाल किया |
जीने के तरीके का नया मायना बाहर किया, कोरोना के साथ जीना सीखकर घर में लुफ्त उठाये |
घर में ऑफिस का काम करे घर बैठे वेतन पाए |
Ms. Jayshree singh (Asst.professor Srinath College of Education, Aditypur, Jamshedpur)
(Persuing PhD in Hindi Satya Sai University)
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"वैदिक वाङमय में उपनिषद् साहित्य"तथा पाश्चात्य विद्वानों पर इसका प्रभाव
DKLIF/2021/EM23
अमूल्य निधि-परिपूरित संस्कृत-साहित्य के वैदिक मन्त्र अनादिकाल से मानव मात्र के लिये मार्गदर्शक रहे हैं। भारतीय संस्कृति के आधार भूत वेदों की अंतिम शब्दराशि ही "उपनिषद्' की संज्ञा से अभिहित है। भारतीय विचारधारा के विकास पथ में उपनिषदों का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यहाँ तक कि भारतीय साहित्य, शिल्प, विज्ञान, दर्शन, कुल धर्म, जातिधर्म, समाजधर्म, राष्ट्रनीति, अर्थनीति, स्वास्थ्यनीति और व्यवहार नीति इस सभी का निर्माण और प्रसार उपनिषद् ज्ञान को मानव जीवन के परम आदर्श के रूप में मान करके ही हुआ है। उपनिषद् ही भारतीय संस्कृति के प्राण स्वरूप है।
उपनिषदों के परिशीलन से परिलक्षित होता है कि “उपनिषद्-साहित्य व उज्ज्वल रत्न है, जिसके आलोक में विज्ञजनों की अंतरात्मा आलोकित हो उठती है। फलतः एक नवीन आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि तथा दार्शनिक तर्क प्रणाली प्राप्त होती है। आत्मा और परमात्मा की एकता सर्वशक्तिमत्ता विलक्षणता तथा महत्ता ही उपनिषदों का वर्ण्य विषय है।
वस्तुतः उपनिषद् साहित्य वह आध्यात्मिक मानस सरोवर है जिससे अनेकानेक सरिताएं निकलकर इस पावन दर्शन भूमि को अवगाहित करती हैं तथा मानव मात्र के ऐहिक कल्याण और आयुष्मिक मंगल का निष्पादन करती हैं। मानव जाति के आध्यात्मिक इतिहास में उपनिषद् साहित्य उस विस्तृत अध्याय की भांति है जो युग-युगान्तर से भारतीय धर्म, दर्शन और जीवन को निरन्तर अनुशासित करता आ रहा है।
भारतीय तथ्य ज्ञान का जितना उत्कृष्ट विवेचन उपनिषदों में मिलता है उतना अन्यत्र कहीं नहीं है। उपनिषदों का गर्भ अनेकानेक रहस्यों से परिपूरित है इसीलिए “इन्हें रहस्यों की उद्भाविका कहा गया है।“1
पवित्र पुस्तकों में उपनिषद् ही वे पवित्र पुस्तकें है जो सर्वाधिक पवित्र तथा उन्नत विचारों को धारण करती हैं।2
अनादि सनातन तथा कालातीत् उपनिषद् यद्यपि वेदशीर्ष या वेदसार है, तथापि वेद से पृथक नहीं है। अतः उपनिषद् वाङमय भी परमेश्वर का निःश्वासभूत है। जीव को कौन कहें परमेश्वर के भी प्रयत्न और बुद्धि का उपयोग उपनिषदों के निर्माण में नहीं ह��आ है, अपितु अकृत्रिम, अपौरुषेय, निःश्वासवत्, सहजरूप में उपनिषदें प्रादुर्भूत हुयी हैं। जिनका साक्षात्कार वैदिक ऋषियों द्वारा मंत्र के रूप में किया गया है। इन उपनिषदों का विषय वेदान्त विज्ञान अथवा ज्ञानकाण्ड है।
उपनिषदों के सर्वाधिक अमूल्य विचार वे हैं, जिनकी आधारशिला पर समस्त दार्शनिक परम्परा खड़ी है। औपनिशदिक दर्शन शास्त्रियों की सम्पूर्ण विचारधारा ब्रह्मः आत्मा और मायाका ज्ञान होना परमावश्यक हो जाता है। "पाश्चात्य विद्वान पालऽयूशन ने उपनिषदों की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि भारतीय बौद्धिकता रूपी वृक्ष पर उपनिषदों से अधिक सुन्दर कोई अन्य पुष्पवृत्त नहीं है।"3 उपनिषदें विभिन्न परिस्थितियों से ऊपर उठकर मानव को अन्तः प्रेरित करती है। यद्यपि उपनिषदों में विभिन्न विचारधारा में प्राप्त होती है। फिर भी अन्तोगत्वा सबका उद्देश्य मूलतः एक ही तत्त्व का प्रतिपादन है। जिसे कहीं सर्वोच्च सत्ता तथा कहीं आत्मा या ब्रह्मा की संज्ञा प्रदान की गयी है।
इस प्रकार सुस्पष्ट है कि उपनिषद् "वेद" का ज्ञान काण्ड है। यह वह चिर प्रदीप्त ज्ञान दीपक है जो सृष्टि के आदिकाल से प्रकाश देता चला आ रहा है, और लयपर्यन्त पूर्ववत प्रकाशित रहेगा इसके प्रकाश में अमरत्त्व है, जिसने सनातन धर्म के मूल का सिंचन किया है। वह जगतकल्याणकारी भारत की अपनी निधि है। जिसके सम्मुख विश्व का प्रत्येक स्वाभिमानी राष्ट्र श्रद्धा से नतमस्तक रहा है और सदैव रहेगा। अपौरुषेय वेद का अन्तिम अध्याय रूप यह उपनिषद ज्ञान का आदिस्रोत और विद्या का अक्षय भण्डार है। वेद विद्या के चरम सिद्धान्त "नेह नानास्तिं किञ्चन..........................।।" कठोपनिषद् 2/1/11/
इस तथ्य का प्रतिपादन करते हुए यह उपनिषद् जीव को अल्पज्ञता से सर्वज्ञता की ओर जगत के त्रिविध दुःखों के एकान्तिक आत्यान्तिकानन्द की ओर तथा जन्म मृत्यु बन्धन से अनवतर स्वातन्त्र्यमय शाश्वत शांति की ओर ले जाती है।
'वेद' भारतीय ज्ञान विज्ञान के उद्गम केन्द्र हैं। इनके महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक शब्दों का विस्तार उपनिषदों में हुआ है। अर्थात् वैदिक संहिताओं में यत्र-तत्र जो बिखरे हुये महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक तत्त्व दिखलाई देते हैं उन्हीं उपलब्ध तत्त्वों के आधार पर बाद में औपनिषद् को "श्रुति" भी कहा जाता है।
संहिता ब्राह्मण, आख्यक तथा उपनिषद् के भेद से वेद के चार विभाग माने गये हैं। इनमें अन्तिम विभाग उपनिषद् साहित्य ही "वेदान्त" के ना�� से जाना जाता है। वैदिक शिक्षा का मुख्य लक्ष्य इन्हीं उपनिषद् ग्रन्थों में ही समुपलब्ध होता है तथा विभिन्न दार्शनिक समस्याओं का समाधान भी प्राप्त होता है। अतः इनका कथन अन्त में ही अपेक्षित था । श्वेताश्वतरोपनिषद्के अनुसार "वेदान्त शब्द रहस्यात्मक ज्ञान का बोधक है।4
ज्ञातव्य है कि उपनिषदों के पूर्व वैदिक दार्शनिक-चिन्तन पद्धति उपनिषदों जैसी नहीं थी। यही कारण है कि संहिताओं में यत्र तत्र संक्षिप्त रूप में ही इन विचारों का प्रस्फुटन दृष्टिगोचर होता है। वैसे कहीं-कहीं दार्शनिक तथ्यों का विकसित स्वरूप भी देखने को मिलता है। जैसे नासकीय सूक्त5, पुरुष सूक्त6, हिरण्यगर्म सूक्त7, वाकसूक्त8 तथा शिव संकल्प सूक्त9 इत्यादि।
ऋग्वैदिक मंत्र “एक सद्धिप्रा वहुधावदन्ति । अग्निं यम मातरिष्वान माहः, के माध्यम से ऋषि उस परमसत्ता की ओर संकेत करता है जिसका उपनिषदों में भिन्न-भिन्न रूपों में उद्घोष किया गया है, जैसे – “ईशावास्यामिदं सर्वम् यात्विञ्च जगत्यां जगत"11 "आत्मैवेदं सर्वम"12 तथा "सर्व रवात्विदं ब्रह्मा"13 इत्यादि।
ऋग्वेदस्य नासकीय सूक्त में ब्रह्म के उस स्वरूप का वर्णन किया गया है जो सभी वस्तुओं का अन्तस्तत्व है। किन्तु स्वतः अवर्णनीय है।
"नासदासीन्नो सदासीत् तदान्तिं । नासीद्रजोतो चोयापरोयत्।। 14
अर्थात् जो कुछ था वह पहले नहीं था। न पृथ्वी थी न आकाश था और न उसके परे स्वर्ग लोक ही था। कहने का तात्पर्य यह है कि उस परम् ब्रह्म के परे भी नहीं था। इसी सूक्त के एक मंत्र में सृष्टि के उद्भव एवं ज्ञान के प्रति जिज्ञासा व्यक्त करते हुए ऋषि कहता है कि- इयं विसृष्टिर्यत् आवभूव यदिवादधे यदि वा न ।
यो अस्याध्यक्षः परमेत्योग्न्त्सो अड्ग वेद यदि वानवेद।।15
अर्थात् - यह सृष्टि जिससे उत्पन्न हुई है, उसने इसे बनाया या नहीं बनाया। तबसे उच्च लोक में, जो इसका अध्यक्ष है, वह इसे जानता है, वह भी नहीं जानता।
सृष्टि के आदि में मौलिक तत्व के संदर्भ में इस सूक्त में उल्लिखित है कि-
"अनादिवातं स्वध्या तदेकं । तस्माद्वन्यन्न परः किंचनास।।16
अर्थात् – उस समय एक ही तत्व था, जो हवा के बिना भी श्वास लेता था तथा
अपनी स्वाभाविक शक्ति से जीवित था।
दार्शनिक महत्व की दृष्टि से ऋग्वेद संहित का "पुरुषसूक्त" भी अत्यंत प्रसिद्ध हैं इस सूक्त में प्रस्फुटित विचार उपनिषद् चिन्तन की आधार शिला है। इस��ें आध्यात्मिक कल्पना का जो भव्य नि��र्शन होता है। वह अन्यंत्र सर्वत्र दुर्लभ है, परम्पुरुष की सर्वव्यापक्ता और महत्ता का एक ज्वलन्त ‘रूप अन्यंत्र देखने को नहीं मिलता। यहाँ पर परम्पुरुष को असंख्य शिरों, असंख्य पादों तथा असंख्य नेत्रों वाला बताया गया है। इसी परम्पुरुष को ही अमरतत्व का स्वामी तथा कार्य-कारण दोनों का नित्य है। इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ है। होगा, वह सब परम्पुरुष ही है। जितने भी जीव हैं, सबमें वहीं है। इस पुरुष की महिमा अनन्त और असीम है यह सम्पूर्ण विश्व उसी से व्याप्त है।17
इसके अतिरिक्त ऋग्वेद संहिता का हिरण्यगर्भ गर्भसूक्त तथा वाकसूक्त भी अपनी दार्शनिक गम्भीरता के कारण नितान्त प्रसिद्ध हैं। दृिख्यगर्भ के सन्दर्भ में अपनी विचिकित्सा प्रकट करते हुए ऋषि कहता है- “हिरण्यगर्भ (प्रजापति) सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ और उत्पन्न होते ही सम्पूर्ण प्राणियों का अद्वितीय स्वामी हो गया तथा उसने इस पृथ्वी और धुलोक को धारण किया। (उसे छोड़कर) हम किस देवता के लिये छवि का विधान करें।"18
इस प्रकार यजुर्वेद संहिता और अथर्ववेद संहिता में भी औपनिषद् चिन्तन के मूलतत्व दृष्टिगोचर होते हैं। यजुर्वेद संहिता का चालीसवें अध्याय ही ईशावास्योपनिषद के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर आत्मा की व्यापकता को दर्शाते हुये कहा गया है कि वह आत्मा सर्वत्र व्याप्त है। दीप्तिमान है: शरीर से असम्पृक्त तथा प्राणों से रहित है। वह नाडियों से रहित, शुद्ध और पापों से वर्जित है। वह सर्वदृष्टा मनीषी, सर्वोत्कृष्ट तथा स्वयम्भू है। उसके द्वारा सृष्ट पदार्थों में सदा से ही औचित्य का आधार बना हुआ है।19
अथर्ववेद संहिता में दार्शनिक सूक्तों का बाहुल्य है। उपनिषदों में प्रयुक्त सर्वाधिक महत्व का शब्द "ब्रह्मन" परमपुरुष के रूप में अनेकशः वर्णित है। जिसका उपनिषदे बार-बार वर्णन करती है अन्य वैदिक संहिताओं में "ब्रह्मन" शब्द का प्रयोग मंत्र या प्राथना के अर्थ में हुआ है। शतपथ ब्राह्मण का स्पष्ट कथन है- "ब्रहन वै मन्त्रे:20
ब्रह्म के स्वरूप तथा उसकी महत्ता को व्यक्त करते हुये अथर्वसंहिता में कहा गया है कि "ज्ञानियों द्वारा ज्ञेय और उपासनीय तथा पृथ्वी से अन्तरिक्ष पर्यन्त व्याप्त उस परम ब्रह्म की उपासना करनी चाहिए।
"डॉ० एस० राधाकृष्णन् के अनुसार" वैदिक सूक्तों में सन्निहित दार्शनिक प्रवृत्तियों का विकास उपनिषदों में ही हुआ। इन्हीं विचारों के पोषक महर्षि अरविन्द जी लिखते हैं" उपनिषदें वैदिक मंत्र और उनके स्वभाव तथा मूलभूत विचारों से क्रांतिकारी रूप में पृथक नहीं है, अपितु ये उनके विस्तार तथा विकास की ही साक्षात् प्रतिमूर्ति है।
पाश्चात्य विद्वानों पर उपनिषदों का ��्रभाव:- उपनिषदों के गूढ़तम तथा सार्वभौमिक सिद्धान्तों से प्रत्येक विद्वान प्रभावित हुआ है। चाहे वह किसी भी देश का अथवा किसी भी धर्म का अनुयायी क्यों न हो। यही कारण है कि मानव मात्र से जो सम्मान उपनिषदों को प्राप्त हुआः वह किसी अन्य धर्मग्रन्थ को प्राप्त न हो सका।
विदेशी विद्वान उपनिषदों में बहुत से ऐसे प्रश्नों का समाधान पाकर आश्चर्य चकित हो गये, जिनका उत्तर अन्य धर्मों तथा दर्शनों में उन्हें या तो मिला ही नहीं था, या तो सन्तोष जनक नहीं था, उदाहरणार्थ- ब्रह्म अथवा ईश्वर का स्वरूप क्या है। जीवात्मा किस तत्व से बना है ? संसार की रचना किस तत्व से हुयी है जीव की स्वर्ग या नर्क में स्थिति कितने काल तक रहती है, मरने के बाद क्या होता है ? देह की रचना के पूर्व देही का अस्तित्व था या नहीं? कुछ लोग जन्म से ही सुखी या दुःखी क्यों होते हैं ? इत्यादि प्रश्नों का उत्तर उपनिषद् ग्रन्थों में इतना वैज्ञानिक तथा सन्तोषप्रद है कि प्रत्येक जिज्ञासु के मन पर अपनी अमिट छाप छोड़े बिना नहीं रह सकता। यही कारण है कि केवल भारतीय मनीषियों ने ही मुक्तकण्ठ से प्रशंसा नही की है :-अपितु विधर्मी और विदेशी विद्वानों ने भी इसकी महत्ता तथा सर्वोपदेयता को निःसंकोचभाव से स्वीकार किया है। इन विद्वानों में शापेनहावर, मैक्समूलर, पाल डयूसन, मैक्डानल ह्यूम, आर्क, काजिन्स, लेगल, हक्सले, ब्लूमफील्ड, श्रीमती एनी बेसेन्ट, ए० बी० कीथ, ओल्टायेयर, ओल्डेन वर्ग, ए० डी० गफ, जी० एच० लोगले, मैकेन्जी, स्टेटर इत्यादि के नाम विशेष उल्लेखनीय है। कुछ प्रमुख पाश्चात्य विचारकों के उपनिषद सम्बन्धी विचार निम्नलिखित है-
जर्मन विद्वान शापेनहावर उपनिषदों की प्रशंसा करते हुये लिखते हैं कि “सम्पूर्ण विश्व में उपनिषदों के समान जीवन को ऊँचा उठाने वाला कोई दूसरा अध्ययन का विषय नहीं है। उनसे मेरे जीवन को शान्ति मिली है, इन्हीं से मुझे मृत्यु में भी शान्ति मिलेगी।" 22 शापेनहावर के इन शब्दों को उदधृत करते हुये प्रो० मैक्समूलर ने लिखा है कि - शापेनहावर के इन शब्दों के लिये यदि किसी समर्थन की आवश्यकता हो तो अपने जीवन भर के अध्ययन के आधार पर मैं इनका प्रसन्नतापूर्वक समर्थन करूँगा।23 शापेनहावर महोदय की स्पष्ट घोषण है कि ये सिद्धान्त ऐसे हैं जो एक प्रकार से अपौरुषेय ही हैं। ये जिनके मस्तिष्क की उपज है उन्हें मनुष्य मात्र कहना कठिन है।
जर्मन विद्वान पाल डयूशन से उपनिषदों का मूलतः संस्कृत अध्ययन करने के पश्चात लिखा है कि उपनिषदों के ��ीतर जो दार्शनिक कल्पना है, वह भारत में तो अद्वितीय है ही, सम्यवतः सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है।24 डयूशन महोदय की स्पष्ट घोषणा है कि-
काण्ट और शापेनहावर के विचारों की उपनिषदों ने बहुत कल्पना कर ली थी तथा सनातन दार्शनिक सत्य की अभिव्यंजना, मुक्तिदायनी आत्मविद्या के सिद्धान्तों से बढ़कर निश्चयात्मक प्रभावपूर्ण रूप से कदाचित ही कही हुयी हो।25
मैक्डॉनल का कथन है कि:- मानवीय चिन्तन के इतिहास में सबसे वृहदाख्यकोपनिषद् में ही ब्रह्म अथवा पूर्णतत्व को ग्रहण करके इसकी यथार्थव्यंजना हुयी है।200 डयूशन महोदय ने तो यहाँ तक लिखा है कि मैं भारत की यात्रा पर गया था, वहाँ मैने बहुत कुछ पाया, परन्तु मैने वहाँ जो सबसे बहुमूल्य विभूति प्राप्त की है वह है - पवित्र संस्कृत भाषा में ऋषियों के दिव्य ज्ञान से ओत-प्रोत "उपनिषेद" 26
ह्यूम महोदय के अनुसार स��करात अरस्तु अफलातून आदि कितने ही दार्शनिकों के ग्रन्थ मैने ध्यानपूर्वक पढ़े: परन्तु जैसे शक्तिमयी आत्मविद्या उपनिषदों में पाया वैसी कही अन्यत्र देखने को नहीं मिली।27
डी० जी० आर्क ने उपनिषदों की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि मनुष्य की आत्मिक मानसिक और सामाजिक गुत्थियों किस प्रकार सुलझ सकती हैं। इसका ज्ञान उपनिषदों में ही मिल सकता है। यह शिक्षा इतनी सत्य शिव और सुन्दर है कि आत्मा की गहराई तक उसका प्रयोग प्रवेश होता है। जब मनुष्य सांसारिक दुःखों से और चिन्ताओं से घिरा हो, तो उसे शान्ति और सहारा देने के अमोद्य साधन के रूप में उपनिषदें सहायक हो सकती हैं।28
सन् 1944 बर्लिन में थ्री शेलिंग महोदय के उपनिषद सम्बन्धी व्याख्यान को सुनकर प्रसिद्ध प्रो० मैक्समूलर अत्यन्त प्रभावित हुये तथा अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुये अपनी पुस्तक (द उपनिषद्) में लिखें-उपनिषद् प्रतिपादित वेदान्त धर्म ही सम्पूर्ण पृथ्वी का धर्म होगा, यही मनीषियों की भविष्यवाणी है।29
इस प्रकार सुस्पष्ट है कि न केवल भारतीय मनीषियों ने ही नहीं, अपितु पाश्चात्य मनीषियों ने भी औपनिदिक तथ्यों को मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है अपवाद रूप में कुछ पाश्चात्य विद्वानों को रखा जा सकता है जिन्होंने न केवल उपनिषदों की अपितु सम्पूर्ण वैदिक वाङमय की निन्दा की है इसका प्रमुख कारण उन महामहिम विद्वानों को ओछी (निम्न) बुद्धि जो उस तत्व तक न पहुँच सकी जहाँ तक पहुँचने में न केवल एक जन्म का अपितु अनेक जन्मों का समय तथा श्रम लगता है।
सन्दर्भ ग्रन्थों की सूची
1- The upnishads contain a secret which is not easy to explore or
unrevealed. The ten upnishads essentally means the secret or
"Rahasya" Studies in the upnishads P.10
2- Alone amont the large number of sacred texts of Hindu religion, the
upnishads have been held a 10p+as specimens of Indian thoughts at
it's highest. The upnishads alone are entitled to respect the true Indian
spirit in the sphere of religion and philosopy (The upnishads Costwoys
of Knowledge P.5)
3- The tree of the Indian wisdom there is no fairer flower than the upnishads.
- (The Philosophy of upnishads. P.18)
4- वेदान्ते परम गुहनां पुराकल्पे प्रचोदितयं (श्वेताश्वर उपनिषद्) 6122
5-'ऋग्वेद : 10/1291
6- ऋग्वेद : 10/90
7-ऋग्वेद : 10/121
8-ऋग्वेद :10/125
9- शुक्लयजुर्वेद : माध्यन्दिन वाजसनेय संहित 34/1-611
10- ऋग्वेद : 10/168/46
11- ईशा वास्योपनिषद् : 1
12- छान्दोग्योपनिषद् : 17/25/2
13- छान्दोग्योपनिषद :13/14/1
14- ऋग्वेद : 10/129/1
15- ऋग्वेद : 10/129/7
16- ऋग्वेद : 10/129/2
17- सहसृर्शीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात
स चूमि विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठदशागुलम्पु
रुष एवेदं सर्व-यद्धतं यच्च मध्यम्
उतामृतत्व स्येशानो यदन्नोति रोहति
18- हिरण्यगर्भः सयवर्तताग्ते भूतस्य जातः
पतिरेक आसीत् स दाधार पाथिवी
द्यायुतेयां देवाय हविषा विधेय (ऋग्वेद) : 10/121/1
19- शुक्लयर्जुवेद संहिताः : 140/8
अथवा ईश्वास्योपनिषद् :8
20- शतपथ ब्राह्मण : 7/1/1/1/5/
21- यस्यभूमिः प्रभान्तरिक्षमुतोदरम्
दिवं यश्चक्रे मूर्धानं तस्मै ज्येष्ठाम ब्राह्मणेनमः
22- "In the whole world there is no study so elovating as that of the upnishads.
It has be neto solace of my life ut will be the solace of my death."
- Sacred book of East P.44
23-"It these word of schopen hour required any confirmation I would willingly
give it as a result of my life long study." The upanishads P.64
24-"Almost superhuman conception whose originato rs can hardly be said
to be mere men."
25-"Philosophical conception unequalled in indai, or perhaps any where
clse in the world." - The philosophy of the upanishads P.14
26-"Iternal philosophical truth has scldom found more decisive and suriking
expression then in the doctrine of the emanupating knowledge the Atma:"
27-Bramha or Abslute is grasped and definitely enpressed for the first time
in the history of human thought in the Brihedaranyako-panishad"
A History of Sanskrit literature P.36
28-The Philosophy of upanishads. P.26
29-Dogmas of Buddhism P.25
डॉ० सुधा शुक्ला
-सहायक आचार्य (संस्कृत)
कर्मयोगी कालेज आफ एजूकेशन मुलिहामऊ, रायबरेली
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New Education Policy
DKLIF/2021/EM22
New Education policy implemented by the Central Government and adopted by CBSE and some of the states, is the most welcoming steps of govt. The policy has comprehensive approach catering to the needs of the time.
In Teaching, Learning process, we must have inclusive approach involving Students/learners, Teachers/Resource persons/ School, Parents and Peers. The policy has included all the five mentioned above, we have in practice to involve Students /Learners, Teachers/ Resource Persons and School, but only three components were not enough to bring desired result. Even CCE implemented by CBSE lacked practical aspects and education particularly secondary education was school dominated.
The new policy includes Parents and Peers, involvement of parents is essential for making a meaningful system and for proper development of students. Parents must spare some time to get themselves involved with their child to know the ABILITY/MINDSET/ INCLINATION, and Approach towards achieving goal. 'Peers' interaction and selection of 'Peers' depends partially on Parents and Students. Interaction with friends and their involvement in judgement will give a clear picture, sometimes students/ parents, become hostile towards their Teachers and School in such situation role of friends becomes important.
The New policy stands as per ' GLOBAL NORMS'. In most of the foreign countries 'Earning while Learning Concept' gives freedom to student for developing personality and to understand the real life situation at close end. Tethering students to complete Academic years or fear of disconnection is prevented Digital Platform in the realm of Education is paving towards objectivity and making the learners more attentive and responsible. Parents association and monitoring will help learners emotionally and will help to Overcome stress and strain during Covid Pandemic.
By: Mr. Sankar Kumar Mishra
(Ex-Principal Holy Mission School, Laheriasarai (Bihar)
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विष्णु पुराना में पशु पालन एवं पर्यावरण रक्षा की व्यवस्था ।
DKLIF/2021/EM21
विविध पशु-पक्षी किसी न किसी रूप में पर्यावरण की रक्षा में सहायक रहे है। मानव इनका विविध रूपों में उपयोग करता आया है। कृषि कार्य हेतु, हल खीचने, पटेला चलाने, गन्ने की चारखियां फेरने, कुओं से जल निकालने एवं बोझा ढ���ने के लिए अश्वों, बैलों एवं ऊंटों आदि का उपयोग किया जाता रहा है। इन पशुओं से खाल की प्राप्ति होती है जिसका उपयोग चमड़े का सामान बनाने में किया जाता है।
विशाल शरीर वाला पशु हांथी जिसका भारतीय संस्कृति में धार्मिक एवं सामाजिक महत्व रहा है।राजनीति परम्परा में इसका स्थान महत्वपूर्ण तो था ही, आज भी वैवाहिक, मांगलिक उत्सवों, जुलूसों में यह शोभा वृद्धि करता है। किन्तु आज इस भौतिवादी युग में इनमें उत्तरोत्तर कमी होती जा रही है।
इसी प्रकार अश्व, गधा, उष्ट्र, बैल आदि पशुओं का भी समाज में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इन पशुओं के द्वारा व्यापार आदि का काम लिया जाता था। अश्व का संस्कृत साहित्य के ग्रंथो में बहुशः उल्लेख प्राप्त होता है। इनके द्वारा उस समय रथ खींचा जाता था, इन पर सवार होकर युद्ध भी किया जाता था।
श्वान, सुअर आदि पशु वातावरण में व्याप्त गंदगी का सकायाकरके पर्यावरण को सुरक्षित बनायें रखने में अपनी महत्वपूर्णभूमिका निभाते रहे है। गौ सेवा,गौपालन हमारी भारतीय संस्कृतिका मुख्य प्रतीक है। गौ सेवा की परम्परा आर्य सभ्यता के समय सेही रही है। गोधन का महत्व आज भी कम नहीं है।
मांगलिक कार्यक्रमों में गायों के मल का ही प्रयोग किया जाता है। इनके मल से चौक की लिपाई-पुताई की जाती है तथा 'गौरी' का निर्माण करके उसका पूजन किया जाता है। कहा गया है कि-" गाय के मल से घर को लीपने से गृह पवित्र रहता है। अनेक रोगों के निवारण हेतु इनके मूत्र का भी पान किया जाता है। यह अजीवन, परोपकार में समर्पित रहनेवाली प्रेरणादायक पशु है। किंतु वर्तमान समय में इसे भी गौण समझा जाने लगा है। इसका अंग प्रत्यंग यहां तक कि मल-मूत्रादि भी पर्यावरण की दृष्टि से उपयोगी रहा है। कृष्ण का गोपालन एवं गोचारण इसी तथ्य की पुष्टि करता है।
इस प्रकार प्रातः सभी पशु-पक्षी अपनी-अपनी सामर्थ्यानुसार मांस, चर्म, वेशभूषा, सौन्दर्य, प्रेरणा आदि के माध्यम से किसी न किसी रूप में पर्यावरण के प्रति योगदान करते रहे है। परोपकार के प्रतीक ये पशु, पर्यावरण संरक्षण में बड़े सजग रहे है, वस्तुत: इनके अभाव में पर्यावरण की क्या स्थिति होगी यह कल्पना करना अत्यंत कठिन है।
इसी लिए भारतीम संस्कृति में प्रत्येक प्राणी को महत्व दिया गया है। प्राय: सभी पशुओं का मल-मूत्र एक विशिष्ट उर्वरक का कार्या करता है जो रसायनि उर्वरक से भिन्न और कहीं अधिक उपजाऊ होता है।पशुओं का मल-मूत्र पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचाता, बल्कि वह मिट्टी में मिलकर वर्��ाजल के माध्यम सें उत्पादकता की वृद्धि करता है। यद्यपि प्राचीन काल में भी पशु हिंसा की प्रवृति विद्यमान थी और इनका आखेट किया जाता था, कि��्तु उनका उद्देश्य पर्यावरण से पशुओ का सर्वथा नाश करना नहीं था और न ही उनका कोई व्यापारिक उद्देश्य था।
पशु के प्रति, सौहार्द, व्यवहार के अनेक उदाहरण साहित्य में मिलते है। महाराज दिलीप युष्यन्त, श्री कृष्णा आदि ने इस क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, इसी प्रकार अनेक परवर्ती राजाओं ने भी पशु हिंसा के प्रति उदासीनता एवं उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया था। उस समय पशुपालन की महत्ता को समझा गया। विष्णुपुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने खुद कहा है-
न वयं कृषिकर्तारो वाणिज्याजीविनों न च।
गावोऽस्मद्दैवतं तातवयं वनचरा यतः।। विष्णु पुराण (५/१०/२६;)
पुराण कालीन समय में पशुओं को पालने के लिए उत्तम गोष्ठों का निर्माण किया जाता था। श्री कृष्ण और बलराम गौओं के गोष्ठों में घुटनों के बल रेंगते हुए चले जाते तथा शरीर को गोबर और मल से सान लेते थे। देवराज इंद्र ने लक्ष्मीजी को गोष्ठशाला में, गृह में, भोग सामग्री में और स्त्री आदि में निवास करने की स्तुति की थी।
इससे यह ज्ञात होता है कि उस समय मानव ही नहीं देवी-देवता भी पशुओं का पालन-पोषड़ एवं उनकी रक्षा करते थे। परवर्ती रघुवंश महाकाव्य में महाराज दिलीप द्वारा गौ सेवा का महत्वपुर्ण वर्णन मिलता है। अतः उस समय मानव पशुओं की गुणवत्ता को जाना, परखा तथा उनसे योग्य गुण और धन का दोहन किया।
आज के यांत्रिक जीवन में व्यक्ति का पशु-पक्षी प्रेम दिखावा मात्र रह गया है। आज दिन दहाड़े पशुओं की हत्यायें की जा रही है। मानव अपने स्वार्थ पुर्ति हेतु इनका क्रय- विकय कर रहा हैं। इन्हीं कारणों से आज मांस एवं चमड़ा उद्योग प्रगति कर रहे है। आज गिद्ध, चील, बाज़, कौवा जैसे पक्षी प्रायः लुप्त होते जा रहे है। जो कि पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे है। कुत्ता,सुअर एवं अन्य वन्यप्राणी अपशिष्ट पदार्थों का क्षय करके वातावरण की रक्षा करते रहे है किन्तु उचित वातावरण के अभाव में दिन-प्रतिदिन इनकी संख्या निरंतर कम होती जा रही है जो आने वाले समय में घातक सिद्ध हो सकती है।
आज के वैज्ञानिक युग में मानव आलसी अकर्मण्यता का शिकार होता जा रहा हैं। मशीनरी तत्वों के कारण खेती की, जुताई, फसलों की ��ढ़ाई इत्यादि अनेक कार्य जो पशु करते थे, उनसे छीन लिया गया है। आज समाज में मांसाहार एवं मदिरापान की दुष्प्रवृति व्याप्त होती चली जारी है। प्रगतिवादी इस युग में दुग्ध उत्पादन की वृद्धि हेतु दुधारू पशुओं का ही पालन-पोषण किया जाता है। इन पशुओं में यदि दुग्ध कम हो जाता है तो लोग विविध प्रकार की सूइयों एवं दवाओं के द्वारा दुग्ध वृद्धि करते है,जो पशुओ की जान-माल के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। यह बड़ी विडम्बना की बात है क्योंकि आज मानव मूल्यों का निरन्तर ह्रास हो रहा है। पशुओं एवं पक्षियों के प्रति उनकी प्रेम-भावना कम होती जा रही है।
प्राचीन काल में ऐसा दृष्टिगत नहीं होता है। लोग पशुओं और पक्षियों की रक्षा में तत्पर रहते थे, जिसके कारण वातावरण स्वच्छ निर्मल बना रहता था , लोग पशुओ के द्वारा प्रसन्नतापूर्वक कृषि, व्यापार आदि कार्य करते थे। अन्न की अधिकता थी। पक्षी भी वातावरण की सौंदर्य वृद्धि करते थे। अतः उस समय वातावरण,सर्वतोभावेन स्वच्छ, पवित्र एवं निर्मल था।
:डॉ. यज्ञशंकर द्विवेदी (संस्कृत प्रवक्ता)
कर्मयोगी डिग्री कॉलेज, मुलिहामऊ, रायबरेली(उत्तर प्रदेश)
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Livestock can be an excellent source of revenue during COVID-19.
DKLIF/2021/EM20
The COVID 19 pandemic represents an unprecedented emergency and it is effecting the key sectors to global food security, nutrition and livelihood, including the livestock sector considering by national policy makers to mitigate the impact of COVID 19 on the sector. The animal husbandry sector, there is a sharp decline in dairy, meat, poultry, goat and aquaculture.
The Government has announced several relief packages in order to reduce the impact of coronavirus effects like Mukhyamantri Pashudhan Vikas Yogna for goat, poultry and pig, Central government has also announced the setting up the animal husbandry infrastructure..
Therefore, the youth and farmers, especially the labours coming from other states may get employment through animal husbandry to invest on input and thereby driving higher productivity and leading to an increase in farmers' income. They may take benefits of different schemes of state and central government in dairy, poultry, goat, pig and aquaculture for employment as well as to improve their socioeconomic status.
By: Dr.Sushil Prasad Dean(Ranchi veterinary college)
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A Tribute to My Mom Anuchhaya Mishra
DKLIF/2021/EM19
In the year 1979 when we lost Dad, I was just 7years old and Pinky (my sister) was just 3years. Had you not been there with your rock solid support, love, affection and caring lap, we couldn't have been existed in this terrible society. You taught us to face the life and establish ourselves with utmost dignity. We have no words to describe your sacrifice to enable us, withstand all difficulties in life. We owe our lives to you, Maa. Love you and I am fortunate enough to be born as your son.
By: Mr.Samrendra Mishra
Entrepreneur (Anumah fresh mushroom farm)
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Importance of Pure Drinking Water
DKLIF/2021/EM18
As per the present scenario, it is very important to look after our health not only for ourself but for our loved ones too. We all know the importance of water in our life. Our body is made of 70 percentages of water. Earlier pure water was available in tap water, but nowadays it's almost impossible to have pure water because of pollution. Through technology we can have pure water because it kills germs through UV tube and maintenance TDS level through RO technology. According to WHO the TDS level of pure water should be between TDS level of 100 to 200 and the PH level of pure water should be between 7to10.Excess level of Total Dissolve Solid in the water is harmful and can affect our liver and kidney. Pure RO water is similar to water of waterfall which is pure naturally.
At last, I want to say have healthy food, pure water and plant trees so that we can contribute a little bit for pollution less environment.
By: Mr. Rashid Imran(Director-Safe Aqua Care Pvt. Ltd.)
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DKLIF/2021/EM17
Teacher's Role During Pandemic
We are talking about education, which means about teachers and students. Due to the hasty closing down of schools and colleges, in the wake of the COVID-19 pandemic. Remote teaching/learning was an emergency solution. Many had never dabbled in online teaching. Indian teachers are used to chalk-and-talk teaching, which is a practical way of communicating concepts, clarifying doubts, teaching even subjects but in online classes it is too tough to communicate with student’s. So the teacher’s started online classes for the students and they provide all the study materials online. By video calls, videos, audios, pdf’s etc. Even though it may not feel like it sometimes, still you continued our work.
Teaching during this coronavirus pandemic is so far from typical. It’s literally nothing school systems have ever done before. We miss our students, the classroom community, and the culture we cultivated. We’re the first teachers to tackle a challenge like the one we’re facing now. Years from now, 2020 will be remembered as the year we all learned how to live life at a distance from each other and continue to function as a society.
“Every year, World Teachers’ Day reminds us of the critical role teachers play in achieving inclusive, quality education for all. At last I would just like to say that “In this crisis, teachers have shown, as they have done so often, great leadership and innovation in ensuring that #LearningNeverStops, that no learner is left behind. Around the world, they have worked individually and collectively to find solutions and create new learning environments for their students to allow education to continue…
By: Ms. Kanchan Srivastav
(Teacher-Happy days Pre-Primary School, Kadru, Ranchi)
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A Critical Study of Question Hour in Lok Sabha(Book)
By Late Ms. Akhtar Jahan Badie
DKLIF/2021/EM16
This book is an attempt to present a comprehensive picture of Question in Lok Sabha. This Monograph on Question Hour in Lok Sabha is an excellent addition to the existing literature on Parliamentary Practice in India. This book has brought out the implications and significance of Question Hour with reference to the working of Lok Sabha and brought out excellent conclusions on the nature and practice of Parliamentary Government in India.
It is an in-depth study of Question Hour in Lok Sabha with a view to focus the attention on the nature of varying Questions, that are put to the Ministers and to signify the importance of Parliamentary Questions as a tool of democratic control of the Lok Sabha over the Council of Ministers. Parliamentary system is supposed a system of continuous accountability of the Executive to the Legislature. The Parliamentary Questions go a long way in keeping the Ministries responsive to the views of Members of Parliament. The degree of success which Parliamentary democracy can achieve in a country depends to a great extent on the manner in which this Hour is utilized. As India has adopted Parliamentary form of Government, the study of Question Hour in the Indian Parliament gains special significance.
This book is a very significant contribution for the study of "Rules" and "Procedures" of Question Hour in Lok Sabha. Most of the people want to know the games of Question Hour which is played daily on the floor of the House at the Opening Hour. This book will be very useful for those students of other countries also who are eager to have a broad and clear knowledge of the Procedure and Practice of the Question Hour in Indian Parliament.
Provided By Ms. Sania Badie( Daughter of Ms. Akhtar Jahan Badie)
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संथाल परगना की प्रख्यात कलाकार डॉ. (श्रीमती) रूपा सिन्हा -एक परिचय
DKLIF/2021/EM15
झारखंड की सभ्यता और संस्कृति अप्रतिम है, और इसलिए पूरे भारत वर्ष में इसकी पहचान भी सबसे अलग मानी जाती है। यहाँ की संस्कृति में समाहित यहाँ की लोक कलाएं बेहद खास है। झारखंड की संस्कृति अपने आप में अनोखी है जो लोगों के लिए सदा से आकर्षण का केंद्र रही है। लोक कला को निरंतर आगे ले जाने में यहाँ के कलाकारों एवं शोधकर्ताओं का योगदान रहा है ।
कला भगवान की देन मानी जाती है, बहुत कम हीं कलाकार है जिसमें एक साथ चहुमुखी विधा के गुण समाहित हो। आज ऐसे हीं एक संथाल परगना के प्रतिष्ठित महिला व्यक्तित्व से आपका परिचय कराते हैं जो एक कलाकार, रचनाकार, साहित्यकार, संगीतकार, शोधकर्ता है एवं सभी विधाओं में पारंगत है। डॉ (श्रीमती) रूपा सिन्हा जी, जिन्होने अपने जीवन के बहुमूल्य 30वर्ष झारखंड राज्य में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, झारखंडी संगीत एवं लोक संगीत की उन्नति एवं संथाल परगना के उज्ज्वल भविष्य को समर्पित किया है । डॉ (श्रीमती) रूपा सिन्हा जी का जन्म 17 जुलाई 1969 को अपने नानी के घर ग्राम- बरहरवा, जिला - साहेबगंज में हुआ था इनका पितृस्थल भी संथाल परगना में गंगा किनारे बसा हुआ छोटा सा शहर राजमहल है ।
माता पिता दोनों ही संगीत के प्रिय रहे, जिस वजह से इन्होने अपनी पुत्री को 3 वर्ष की आयु में ही गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की उच्च कोटी की शिक्षा दिलवाई। इनके कई गुरु रहे, पूर्णिया(बिहार) जिले के आकाशवाणी के पंडित पीताम्बर झा, राँची आकाशवाणी के ग्रेड कलाकार श्रीमती रीना भट्टाचार्य, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पंडित बद्रिका प्रसाद चौधरी इत्यादि ।
घरानेदार गायकी की तालिम के साथ-साथ इन्होने संस्थागत शिक्षा को भी पूरा किया । राँची से स्कुली शिक्षा समाप्त कर म्यूजिक एंड पर्फ़ोर्मिंग आर्ट में स्नातक तथा स्नातकोत्तर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से प्राप्त की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु वे 1990 के दशक में पश्चिम बंगाल के प्रख्यात कलाकार “उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ साहब के शागिर्द उस्ताद मो0 युनुस खाँ साहब से गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की उच्चकोटी की संगीत शिक्षा ली, उस दौरान उन्होने कई राज्य स्तरीय, राष्ट्र स्तरीय मंच प्रदर्शन किए, खूब नाम कमाए, सम्मानित हुए एवं तालियाँ बटोरी। वर्ष 1991 में उन्हें उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ साहब स्मृति पदक से सम्मानित किया गया। वर्ष 1994 में वे केन्द्रीय विद्यालय, बरकाकाना में संगीत शिक्षिका के पद पर नियुक्त हुईं, तत्पश्चात इनहोने कई ग्रामों, जिलों का भ्रमण किया यहाँ के लोगों को निकट से जानने समझने का प्रयास किया एवं यह अनुभव किया की झारखंड की कला संस्कृति बहुमूल्य है परंतु इसके संरक्षण हेतु चेष्टाएं नाम मात्र हीं थी । जिसकारण झारखंड की कला संस्कृति एवं लोक संगीत के संरक्षण के हित में कार्य करने का संकल्प लिया । तबसे अबतक इन्होने झारखंडी अखरा संस्कृति को बचाने मे भी बड़ा योगदान दिया। अपनी पुस्तकों में डमकच, अँगनई एवं मर्दानी झूमर इत्यादि का बहुत सुंदर विवरण एवं लोकगीतों के व्याकरण को दर्शाया है । उन्होने उत्कल संस्कृति विश्वविद्यालय से “ झारखंडी नागपुरी लोकसंगीत- एक शास्त्रीय अध्ययन” पर शोध कार्य किया। उस दौरान उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । कई ग्राम कस्बों में जाकर विलुप्त हो रहे झारखंडी संगीत वाद्य यंत्रों की खोज की और उन्हें प्रकाश में लाने का कार्य किया । केवल झारखंडी लोक संगीत ही नहीं बल्कि ठुमरी-दादरा, कजरी-चैती, होरी इत्यादि पर भी उन्होने प्रकाश डाला। राज्यस्तरीय एवं राष्ट्रीयस्तर पर उन्होने विद्यार्थियों को प्रेरणा दी और उन्हें ��गे बढ़ना सिखाया ।
पुरस्कार एवं सम्मान :-
1. उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ साहब स्मृति पदक वर्ष- 1991
2. झारखंड सरकार द्वारा राजकीय सम्मान (कला एवं संस्कृति विभाग) – 2016
3. क्षेत्रीय प्रोत्साहन पुरस्कार केंद्रीय विद्यालय संगठन(मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार)-2016
4. विशिष्ट सेवा सम्मान(लोक सेवा समिति ) झारखंड राज्य- 2019
शोधकार्य एवं पुस्तकें :-
1. नागपुरी झूमर लोकसंगीत-एक शास्त्रीय अध्ययन
2. पलाश झारखंड
3. अनमोल रागांग
4. रविन्द्र संगीत पर शास्त्रीय संगीत के विश्लेषणात्मक अध्ययन, इत्यादि
5. कई शास्त्रीय संगीत एवं लोकसंगीत के एलबम/सीडी, निजी एलबम/सीडी भी उपलब्ध हैं ।
6. निजी यूट्यूब चैनल के माध्यम से शास्त्रीय संगीत पर प्रकाश डालने का मार्ग और भी परिपक्व किया है
इसके साथ-साथ उनकी कई शास्त्रीय संगीत एवं झारखंडी लोकसंगीत की रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो चुकी है । साहित्य के साथ-साथ पत्रकारिता,शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों में भी विशेष रुचि रखती हैं। इन्हें समय-समय पर विश्वविद्यालयों में तथा शोध केन्द्रों में व्याख्यान हेतु आमंत्रित किया जाता है जहाँ वे अपना अनुभव साझा करती रही हैं और विद्यार्थियों के मार्गदर्शन के लिए सर्वदा उपस्थित रही हैं। इनका दृढ़ प्रयास विद्यार्थियों में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करता है । डॉ॰ सिन्हा का मानना है की “ संगीत किसी भी प्रकार का हो शास्त्रीय संगीत, लोकसंगीत, सुगम संगीत, रविंद्रसंगीत, पाश्चात्य संगीत, इत्यादि, पर संगीत का कार्य केवल मनोरंजन मात्र नहीं, बल्कि यह एक ईश्वरीय वरदान है जो मनुष्य में एक सुंदर चरित्र के साथ-साथ एक अच्छे समाज का भी निर्माण करता है। “ अभी वो झारखंड के पारंपरिक ठेठ नागपुरी लोकसंगीत के व्याकरण एवं गीतों के स्वरलिपियों पर किताब ल��ख रही हैं जो बहुत जल्द बाज़ार में उपलब्ध होगा ।
विशाल कुमार गोस्वामी
छात्र- स्नातकोत्तर (संगीत एवं परफोर्मिंग आर्ट
केन्द्रीय विश्वविद्यालय झारखंड
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Role of Computers in Our Daily Lives
DKLIF/2021/EM14
The World has entered a new millennium. All the Countries of the World are showing a remarkable progress and development in the field of science and technology. Discoveries and inventions have brought a change in the standard of living. Computer is the biggest invention of the world. Computer is the most helpful Machine invented by man. Computer is an Electronic Device that accepts data and instruction. Computer is derived from the word "Compute" which means to Calculate. Computers are versatile and can handle different Applications at a time. The Acronym for Computer is commonly oriented Machine. Particularly used for Trade, Education, and Research. A computer Performs its task with great Accuracy. Computers are more reliable than Human Beings. As they do not get Bored of the repetitive tasks. A computer can Store large Amount of Data. A Computer can perform various types of Jobs. The uses of Computers reduce the Burden of Work in an Organization or Company. Everyone uses Computer in his/her life in one way or other. If there were No Computers, our life Would have become Difficult. We use Computers For Paying Bills, Reserving Ticket. It has made our work Easy and Fast. Computers are used at Places Like Banks, Hospitals, Hotels, Libraries etc. In today's world, we cannot imagine life without Computers in Our Daily Life
By: Dr. Santosh Gupta
(Retired Principal -Maharishi Vidya Mandir International Group, Almora Branch)
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GOOD DIET BOOST-UP IMMUNE SYSTEM
DKLIF/2021/EM14
In this modern era, especially in present scenario, it is very important to think of our health for this we should have a healthy diet and a small changes in our lifestyle.
1. For a normal human being 20 minutes of exercise is must on a daily basis.
2.People suffering from any diseases like diabetes and high blood pressure, etc. should not exercise, but should walk for 40 minutes on average speed per day.
3. The Body Mass Index for female should be between 18 to 22 and the Body Mass Index of the male should be between 18 to 23.
4.The BMR level of female should be between 1600–1800 and the BMR level of male should be between 1800–2000.
For a balance diet we should not skip meals. In fact, we should eat after every 3 hours in small portions. The intake of water should be 3–4 liters per day for a person whose weight is 60kg to 80kg.
At last I want to say stay healthy and stay safe.
By: Ms. Rashmi Sahay (Wellness Coach)
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Education and India
DKLIF/2021/EM13
Mahatma Gandhi once said, education is the realization of the best in man - body, soul and spirit. For any economy, being developed or developing, education of its citizens plays a pivotal role. Education enriches people's understanding of themselves and world. It raises people's productivity and creativity and promotes entrepreneurship and technological advances. In addition, it plays a very crucial role in securing economic and social progress and improving income distribution.
The idea of education which expects an effective and far researching influence on the impressionable minds of youth should not be alien to the national genius and culture. A glance into the past reveals that never in history has any generation of people seen such radical change in the system of education, as vast, which has affected the life of our ages tremendously. The progress of any country lies on the literacy and education of its population as it gives the required discrete power to judge and rationalize the events on natural surroundings as well as in the social conditions. A good judgment towards these aspects prevails in the mind of the truly educated one. The purpose of education cannot be just money making but truly man making.
Living in and working for a world of innovations requires fundamentally different attitudes, knowledge and skills from the citizens. Technological adaptation and innovation have been the main drivers of economic growth in developed countries since the world war 2nd and are praying to be important factors also in many developing countries. Successful economic complete on the basis of high values, not only low cost. High value is best guaranteed by well trained and educated personnel and flexible lifelong learning opportunities for all citizens. The most frequently presented general idea for increasing Indian economic development is to equip people with the skills and attitudes success in an increasingly knowledge- based economy.
The Indian Economic growth and development is built on three central ideas.
Economic growth can be analyzed within macro - economic environment, the quality of public institutions and technology.
Technological advance is the ultimate source of growth but its origins may be different across countries.
The importance of the determinates of economic development for core and non-core innovators.
In the end, I’d like to state that irrespective of the national boundary, education is something which is core power of humanity and mankind. Hence, no individual should, in any economic circumstances, be deprived of it as education give birth to nation builders.
By:- Mr. Vijay Gaur
(Principal-SMR International school, Safidon, Haryana)
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What Is Success?
DKLIF/2021/EM12
Are we really succeeded in our life?
Or we are just inferring something else as a success.
Having BMW or Sea-Facing apartments or any big business is a success for some but for others, it might not be.
Everyone has a different meaning of success, for a businessperson synonym of success would be the fluent working of the business or expansion of business, A worker or an employee might describe their permanent and secure job as their success, just a healthy business or secure job or wealth is able to describe “what success really is?”
“No..a Big No”
A 4-year-old kid can get success, a student or a teacher might be successful even a housewife can be successful, anyone can be successful even if they think their life is filled with failures and setbacks.
In my opinion, success is not a big thing, in fact, it’s not a thing, it’s just the feeling, emotion or sentiments, that we feel in our daily life, the feelings, that we felt in our those days when chocolate is more valuable than any other thing, the feeling of a kid after getting a new lunch box and showing it to friends or a feeling of having a new bicycle, for a housewife feeling of sending children to their school or completing all the household works within time.
The feeling of extra income of a rickshaw Driver is a success of that day for him.
Even a swindler can be successful or the police too, in their respective works.
Success is nothing but the happiness of our achievements or accomplishments in our lives. Success can be as small as solving any mathematical problem or big as ISRO’s interplanetary mission.
We can’t actually say about anyone that s(he) is successful or not because we don’t know others criteria of success, but we know what our standards so that we can surely say to us, “yes, I am successful, I have achieved what I wished.”
It is not the once in a lifetime thing, It is the combination of all the big and small things of our life, It is the combination of all the big and small happiness of our life. Success is for happiness, happiness is for life…
By: Elite Eduversity
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Thankyou 2020
DKILF/2021/EM11
This year I stood up and said ‘No you are wrong!’ when it was required. I stood by my team when they got fired unceremoniously on the last day of March and made sure they all got a better job within the next 3 months. I walked away from a toxic professional setup. I am currently volunteering for a weekend mobile bookstore that visits a different housing community on each of the 2 weekend days and sells books. The focus is to engage with senior citizens and little kids – 2 sets of people who don’t have much of a direct access to a bookstore or books.
I am ending the year on a happy, content, calm note – finally doing what I love and loving what I do.
2020 will mean a lot of things to a lot of people – to me, it will be the year I decided to walk down a path that didn’t even exist when I took the turn.
It will be the year when I listened to what we needed as a family – time to just be together and took action to make this a reality, and then watched in awe to see the magic change how this family communicated and evolved.
This year, I sat down quietly and lived in that one quiet moment. Infact we all did this as a family. I ensured that despite being sequestered at home, each one of us had their own quiet place and quiet zone where they were left alone, undisturbed to do as they pleased.
If any year needed this to become one of the essentials, it was 2020!
These quiet moments each day – and sometimes several times in a day – helped strengthen us as a family even more than all the time we spent together. We somehow understood when one of us is in need to zone out and be alone and everyone respected that.
This year, I stood up for people and did what I could to make sure someone’s troubles were a little less heavy. I did this over and over again all through out the year . I was there to send a virtual hug, an encouraging e-note and sometimes talk to them for as long as they needed to vent out what they were going through.
It felt good to be there to be someone’s support system.
I wrote tons and tons of gratitude notes this year- sometimes multiple ones for a single day. I wrote them even on the days when I was emotionally discharged and completely exhausted with the seemingly unending onslaught of toxicity.
The dog featured a lot in our personal healing this year as a family. She has been our single non-stop source of love and hope this year. She was there beside the person undergoing stress or physical sickness – even before the person knew it themselves. Angels come in a different form for each one of us – for us, it is our adorable furball.
I have so much to be grateful for this year. I usually don’t intend to or want to remember any specific year of my life. But 2020 will be one year I will always remember – who wouldn’t, right?
I became stronger this year. I took a stand. I am walking down a path that never existed before. I am happy, calm and content.
Thankyou 2020 and Thankyou Universe.
By: Ms.Saumya Dahake
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HOW TO HEAL YOURSELF?
DKILF/2021/EM10
Healing is not fixing yourself. Healing is the unlearning of patterns that no longer serve you. Unlearning patterns that no longer serves you helps you discover a more authentic version of yourself.
What exactly is Trauma?
Trauma, in it's most traditional definition, is seen as a big glaring instance of abuse and neglect. While yes, that is part of the definition, it isn't limited to that. A lot of trauma that we face is generally overlooked. Trauma also comes in the form of not feeling heard, seen or valued, either as a child or a teenager or an adult. It means having our boundaries neglected. Trauma involves having big overwhelming emotions with very little guidance on how to work through or process them.
Before we begin to look at ways to heal ourselves, I want to inform you about the VAGUS NERVE.
VAGUS NERVE :
It is a bundle of nerves that begins at the brain stem and connects all our major organs (heart, lungs, stomach, kidney). The brain and the body are always communicating back and forth through the vagus nerve. It is the reason why we have a mind-body connection. The vagus nerves impacts the parasympathetic (rest and digest) nervous system and the sympathetic (fight or flight) nervous system.
When we have unresolved trauma within our body, our vagal tone becomes weak. A weak vagal tone means we don't recover from stress easily and are “stuck” in sympathetic nervous system responses- fight, freeze, or shutdown.
How to heal?
These small ways help us to strengthen our vagal tone which in turn will help us to resolve the trauma that lives within us. The following are practices which we can apply in our daily lives :
1. Yoga
2. Meditation/Breathwork
3. Laughter
4. Gargling
5. Singing/Chanting
6. Movement (it could be a walk around your neighborhood or running or dancing or any kind of physical activity you are comfortable with)
Add any one of them or two of them or all of them in your life, as and when you feel comfortable and are able to follow through.
Through these activities, what we are trying to do is to cultivate over time our Body's Resilience(our body's ability to recover post stress).
P.S. This whole blog is taken from the works of Dr. Nicole Le Pera. You can follow her on Instagram to understand more on this topic. Her Instagram handle is - theholisticpsychologist. You can also follow her work on YouTube under the same name.
By: Ms. Aishwarya Nawal
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MS. Aishwarya Nawal
TO ALL THE WOMEN OUT THERE DKILF/2021/EM9
8th March is celebrated as International Women's day. It is one of the most important days of the year to :
- celebrate social, economic, cultural and political achievements of women
- raise awareness about women's equality
- lobby for accelerated gender parity (a statistical measure used to describe ratios between men and women, or boys and girls, in a given population)
- fundraise for female focused charities
We have come a long way in our journey towards having equal rights, addressing issues particular to women and much more. We all know, that we still have a long way to go. The enormity of the topics that can be written about on this particular day regarding women, is both overwhelming and exciting but I have decided to take this day to thank, admire and affirm all the women around me. So, here I begin.
Extract from amanda lovelace's - the witch doesn't burn in this one
this is
an overdue
love letter
to each
&every
woman
who walked
these fields
before me
&
made
the path
soft enough
for me to
walk through
to get to
the side
they could
never reach.
for that,
i owe you
so much
To all the women(even the little women) I take a moment today and affirm the following to you :
You are enough. You are brave. You are kind. You matter. You are worthy. You are beautiful, inside and out. You are capable. You are magic. You are enough. You are caring. You are loving. You deserve love. You deserve success. You deserve everything that your heart desires of. You are worthy. You are whole. You are capable. You are loved. You can do it. You matter. You are fearless. You are powerful. You are limitless. You are brave. YOU ARE ENOUGH.
A very HAPPY WOMEN'S DAY to all the women(even the little ones). Let us try and create, no- matter how small a change in ourselves, our families or in the world, so that those who walk after us have a softer path to walk on.
With all my love,
a fellow woman.
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