#रिवायत
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अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो
अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो गुनाह के बोझ से लदे काँधों को सलाम करो, पहचान गर बनानी हो तुम्हें अपनी इस भीड़ में ख़ुद को न दो तवज्जों दूसरों को बदनाम करो, कोई सिक्को का कोई कुर्सी का है गुलाम यहाँ जो आ ही गए हो तुम भी तो कुछ काम करो, गर चाहत है तुम्हे भी चाभी ए तरक्की की तो रोज़ सुबह ख़ुद से और यारों से धोखे शाम करो, यारों तुम को क्यूँ पड़ गया गैरत का दौरा अभी शाम रंगीन है महफ़िल जवाँ चलो जाम…
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अजनबियों से मेरी शिकायत अब उसकी रिवायत होगी,
और यह हम है की, अपनी हर ग़ज़ल के, हर शाख पर उस मुस्सवीर की तस्वीर का बखान कर रहे है |
– अय्यार��
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दशहरे पर फोड़े पटाखों ने बढ़ाया वायु प्रदूषण, बद्दी की हवा सबसे खराब; जानें बाकी शहरों का हाल
दशहरे पर फोड़े पटाखों ने बढ़ाया वायु प्रदूषण, बद्दी की हवा सबसे खराब; जानें बाकी शहरों का हाल #Air #Polution #Baddi
Himachal News: दशहरा के मौके पर ��ी हिमाचल में भी खूब पटाखे फूटे। इस दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों को फूंककर लोगों ने सालों पुरानी रिवायत को निभाया, मगर इस रिवायत से पर्यावरण भी प्रदूषित हुआ है। ऐसे मौकों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एयर क्वालिटी की मॉनिटरिंग करता है, खासकर दशहरे व दीपावली के अवसर पर एयर क्वालिटी को मापकर यह देखा जाता है कि किस शहर में कितना अधिक प्रदूषण हुआ। इस बार भी…
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Sajda E Sahw Ka Tarika । सजदा ए सहव का सही तरीका जानें
आज़ यहां पर आप नमाज़ मुकम्मल करने से ताल्लुक एक ज़रूरी इल्म यानी कि Sajda E Sahw Ka Tarika जानेंगे जो बहुत ही जरूरी है।
अगर हमसे नमाज़ अदा करते वक्त कोई वाजिब भूल से छूट जाती है तो उसे मुकम्मल करने के लिए हम सजदा ए सहव करते हैं।
इसकी इजाजत हमारी शरीयत ने दी है इसीलिए आप यहां पर ध्यान से पढ़ें और समझें जिसे फिर सजदा ए सहव करने में दिक्कत ना आए।
Must Know: 2 Rakat Namaz Ka Tarika
Sajda E Sahw Ka Tarika
आपको मालूम हो कि हमसे इस नमाज़ की कुछ वाजिब चीजें छूट गई है।
तो नमाज़ की आखिर के रकात मुकम्मल करने के बाद और सलाम से पहले।
अत्तहियात पढ़े और हर नमाज़ की जैसे यहां भी शहादत उंगली खड़ी करनी है।
अत्तहियात पढ़ने के बाद तुरंत सिर्फ दाहिनी तरफ एक सलाम फेरे।
फिर दो सजदा करें इसके बाद तशह्हुद, दुरूदे इब्राहिम और दुआ ए मसूरा पढ़ कर सलाम फेर लें।
सजदा ए सहव से पहले इन बातों का ख���याल रखें
सजदा ए सहव से सिर्फ नमाज़ की छूटी हुई वाजिबात ही पूरी की जा सकती है फर्ज नहीं।
फर्ज छूट जानें से नमाज़ जाती रहती है सजदा ए सहव से भी उसे पूरा नहीं किया जा सकता।
लेकिन अगर जान बूझ कर वाजिब छोड़ी हो तो सजदा ए सहव से भी पूरा नहीं किया जा सकता।
एक मसला: अगर बगैर सलाम एक तरफ़ फेरे भी दो सजदे कर लेते हैं तो काफी है लेकीन।
मगर ऐसा कसदन यानी जान बूझकर करना एक तरह से मकरूहे तनजीही होता है।
सजदा ए सहव का बयान
एक हदीस में है कि एक बार हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम 2 रकात पढ़ कर खड़े हो गए बैठे नहीं फिर सलाम के बाद सजदा ए सहव किया।
उस हदीस का तिर्मिजी ने मुगिरह इब्ने शोअबा रदियल्लाहु तआला अन्हुं से रिवायत किया और फरमाया कि यह हदीस हसन सही है।
नमाज़ के कोई वाजिब भूले से रह जाए तो उसकी तलाफी यानी कमी को पूरा करने के लिए सजदा ए सहव वाजिब है और तरीका यह है कि:
अत्तहियात के बाद दाहिनी तरफ सलाम फेर कर दो सजदे करें फिर तशह्हुद वगैरा पढ़ कर सलाम फेर लें — बहारे शरीयत 4।
सजदा ए सहव कब करना चाहिए?
अगर फर्ज की पहली दो रकातों में सूरह फ़ातिहा भूल जाएं या सूरह भूल जाए तो सजदा ए सहव वाजिब हो जाएगा।
नमाज़ की किसी भी वाजिब को उसकी जगह से आगे या पीछे कर दे।
मसलन सूरह पहले पढ़े और उसके बाद सूरह फ़ातिहा पढ़े तो सजदा ए सहव वाजिब हो जाएगा।
अगर वाजिब की अदायगी 3 बार सुब्हानल्लाह कहने बराबर के वक़्त तक कुछ सोचते रहे।
इस हाल में भी आपके उपर सजदा ए सहव वाजिब हो जाएगा।
किसी वाजिब को बदल दे यानी इमाम ज़ाहिरी नमाज़ में अहिस्ता।
और सिर्री में बुलंद आवाज़ से किराअत करें तो सजदा ए सहव वाजिब हो जाएगा।
नमाज़ के फर्जों में से किसी फ़र्ज़ को उसकी जगह से हटा कर बाद में अदा करें।
मसलन पहले सज्दा बाद में रुकुअ करे तो सजदा सजदा ए सहव हो जाएगा।
अंतिम लफ्ज़
अब तक तो आप भी सजदा ए सहव का सही और आसान तरीका आसानी से समझ गए होंगे और अब से नमाज़ की छूटी हुई वाजिबात को आसानी से पूरा कर पाएंगे।
हमने यहां पर अपने जानिब से सजदा ए सहव करने का सही तरीका को बहुत ही साफ़ और आसान शब्दों में बताया था जिसे आप आसानी से समझ जाएं।
अगर अभी भी आपके मन में कोई सवाल या फिर किसी तरह कोई डाउट भी हो तो आप हमसे कॉन्टेक्ट मि पेज के ज़रिए जरूर पूछें हम आपके सभी सवालों का जवाब जल्द से जल्द देने की कोशिश करेंगे।
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सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
हर इक सफ़र को है महफ़ूस रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो
– दुनिया जिसे कहते हैं
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अब तो सुकून की तलाश भी छोड़ दी मैंने
ये रिवायत मेरी ज़िंदगी में कहां
के जिसको चाहूं वो मेरा हो जाए
ये सपनों की दुनिया मेरी किस्मत में कहां।
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On-demand Delivery Platforms के बढ़ते कदम
Online सामान खरीदना आज के समय में बिलकुल Normal हो चुका है, क्योंकि आये दिन एक नई Delivery Service Company आ रही है। और इन Delivery Service Company सामान को कम समय में Deliver करने के लिए एक से बढ़कर एक तरीके इस्तेमाल कर रही है। इन Companies का Delivery परिक्रिया को आसान बनाने के लिए On-demand Delivery करने का फैसला काबिले-तारीफ है। जिसके बाद ग्राहकों को सामान खरीदने में और आसानी होने लगी। On-demand Delivery से पहले जब ग्राहक किसी सामान को Online खरीदते थे तो उसको Customer तक पहुँचने में कई दिन लगता था। लेकिन On-demand Delivery ने कई दिनों में सामान पहुँचने वाली रिवायत को तोड़ कर 10 मिनट में Delivery, उसी दिन Delivery, जैसी अद्भुत Delivery Service से लोगो को अनुभव कराया। और इन तमाम Delivery Service को Advanced Technology की मदद से सुनिश्चित किया जाता है।
जबसे On-demand Delivery का प्रचलन हुआ है, तबसे On-demand Delivery Apps की भी लगातार वृद्धि हो रही है। क्योकि हर एक Delivery Service Company अपना अलग App बना रहे है। जिसके जरिये वो अपने Customers को आसानी से Deliver करना चाहते है। इसके इलावा भी बहुत सारे On-demand Delivery Apps के फायदे है। ये Retailers और Customers दोनों को Real-time Tracking की सुविधा मुहैया कराती है, जिसके जरिये Customers को पता चल जाता है कि सामान किस वक़्त Deliver हो सकता है, और Retailers को ये जानने में आसानी होती है कि इस Order को Deliver करने में कितना वक़्त लगेगा, और उसी हिसाब से दूसरे Order को भी भेजने की तैयारी कर सकते है। इन्ही सब फायदे को देख कर रोज On-demand Delivery Apps में वृद्धि हो रही है।
Handover जैसी Delivery Service Companies कर रही हैं दुकानदारों और उनके ग्राहकों को On-demand Delivery Service से खुश।
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अबू सईद खुदरी- रजयियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जो अल्लाह के मार्ग में एक दिन रोज़ा रखेगा, अल्लाह उसके चेहरे को जहन्नम की आग से सत्तर साल की दूरी तक दूर कर देगा।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।
📃व्याख्या
इस हदीस में नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बताया है कि जिसने अल्लाह की राह में (युद्ध करते हुए) एक दिन रोज़ा रखा, अल्लाह प्रतिफल के तौर पर उसके चेहरे को जहन्नम से सत्तर साल की मसाफ़त के बराबर दूर कर देगा। क्योंकि उसने दो-दो कष्ट उठाए; अल्लाह की राह में जिहाद एवं पहरेदारी का कष्ट और रोज़े का कष्ट। यहाँ यह बता दें कि जहन्नम से दूर करने का तक़ाज़ा यह है कि उसे जन्नत से क़रीब कर दिया जाएगा। क्योंकि मार्ग तो दो ही होंगे; जन्नत का मार्ग और जहन्नम का मार्ग।
📎https://hadeethenc.com/hi/browse/hadith/4436
🗃️https://t.me/HadeethEncLanguages/411
#الهندية
हि��्दी
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मेरी इस रिवायत का …
क़लमकार भी मैं हूँ, किरदार भी मैं हूँ
मैं ही हूँ नायक भी, प्रतिनायक भी मैं ही हूँ,
कथाकार भी मैं हूँ, साक्षात्कार भी मैं हूँ,
मैं ही हूँ अथार्थ भी, उपसंहार भी मैं ही हूँ,
… अंत भी मैं हूँ, आगाज़ भी मैं हूँ।
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Gusl Khane Me Peshab Karna Kaisa Hai ? | गुसल खाने में पेशाब करना कैसा है ?
Gusl Khane Me Peshab Karna Kaisa Hai ? | गुसल खाने में पेशाब करना कैसा है ?
Gusl Khane Me Peshab Karna Kaisa Hai ? | गुसल खाने में पेशाब करना कैसा है ? जवाब : अबू दाऊद शरीफ की रिवायत है हज़रात अबू मिग्फल रदिअल्लहु अन्हु फरमाते हैं की हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया की कोई आदमी ऐसा न करे की वो अपने गुसल खाने में पेशाब करे फिर उसी में नहाये और वजू करे . लेकिन ये मसला उस वक़्त के लिए था की उस वक़्त ज़मीने कच्ची हुआ करती थी तो पानी वहां जमा होता था और छींटे भी उड़ कर पड़ते थे इसलिए मना किया…
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तुझे याद कर लिया है,
आयात की तरह|
कायाम तू हो गयी है,
रिवायत की तरह |
मरने तलक रहेगी,
तू आदत की तरह |
i have memorised you,
the way one memorises the holy verses.
you have become as perennial,
as the tradition of the land.
and you will stay with me,
till my death awaits me,
like a habit i cannot forget.
— Aayat, Bajirao Mastani, 2015.
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चिराग़!
चाँद का हर शब आसमान पर हसीन चाँदनी फैलाना
सितारों का आसमान पर बड़ा दिलकश मंज़र बनाना
फ़जर के वक्त ही पौ फटते उनका रूखसत हो जाना
आफ़ताब का सहर में उगकर अपने उरूज तक आना
इस छोर खलाओं में ढलकर दूसरे छोर पर उग जाना
सूरज चाँद सितारों का यह सिलसिला है बड़ा पुराना
कायनात से चली रिवायत का है मुसलसल दोहराना
है ज़ुहूर फ़राइज़ आसमाँ में उनपर वो है उन्हें निभाना
वैसे किसी का मोहताज नहीं उनका फलक पे आना।
मगर चिराग़ की मर्ज़ी क्या है ज़माना बना अनजाना
चाहता है क्या उसका दिल जलना ��ै या बुझ जाना।
चिराग़ ने अपना जिस्म जलाकर चाहे अंधेरा मिटाया
मगर उसे जलकर भी सूरज सा मुक़ाम न मिल पाया
सहर हुए बिना भी लोगों ने उसकी लौ को है मिटाया
चिराग़ कभी फूंक से बुझा तो कभी झोंकों ने बुझाया।
उसको हाथों का बस खिलौना समझ बैठा है ज़माना
चिराग़ नादान है नहीं मुमकिन है उसे दस्तूर समझना
काश दुनियाँ से अलग बनाता जाकर अपना ठिकाना
आफ़ताब की मानिंद होता मुमकिन उसे दूर रह पाना
न रौशन होता वो मर्ज़ी बिना न मुमकिन होता बुझाना।
©deepjams4-some wandering thoughts
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काव्यस्यात्मा 989
" आज मैं इक ख़ूबसूरत काम कर आया "
आज मैं इक ख़ूबसूरत काम कर आया,
एक क़दीम बदसूरत पिंजरा फेंक आया।
आज़ाद परिंदा दूर सय्यारे पर,
जहाँ बाजार में पिंजरे का जिक्र नहीं,
जहाँ आब-ओ-दाना का फिक्र नहीं,
सुनहरा घोंसला बनाने वाला है।
स्थिर और अडिग सय्यारे पर
किसी सफ़र का जतन नहीं,
ख़्वाब देखने का थकन नहीं।
कुछ ही दिनों में वीरान सय्यारा;
उल्फ़त के रंगों से भर गया,
हम-नफ़स, हम-सफ़र बन गया।
चाहत से भरी ज़िंदगी का मंज़र दे गया,
आज़ाद रुह को रंगों की रिवायत दे गया।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
-काव्यस्यात्मा।
क़दीम : पुराना
सय्यारा : अंतरिक्ष
उल्फ़त : मुहब्बत
हम-नफ़स : साथी
हम-सफ़र : सहपथ
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#काव्यस्यात्मा
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11:02pm 23/10/20
तू ईत्र कि खूशबू सा आबोहवा मे घुल जाए, पहली नजर मे ही उतर दिल मे छप जाए,
ये रिवायत ऐ मोहब्बत कहीं हम भी कर पाए
तभी मानना शायद मुमकिन है कि अब प्यार हमे भी हो जाए।
-ऋचा सिंह
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बिस्मिल्लाहिर रहमानिर्रहीम
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✦अल क़ुरान : कुल हुवल्लाहु अहद अल्लाहुस-समद लम यलीद वा लम युलद वा लम यकुल्लाहू कुफुवान अहद
कह दो वो अल्लाह एक है, अल्लाह बेनीयाज़ है, ना उसकी कोई औलाद है और ना वो किसी की औलाद है, और उसके बराबर का कोई नही है
सुरह अल-इख्लास (112)
अबू दर्दा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फ़रमाया क्या तुम में से कोई इस बात से थक जाता है की हर रात एक तिहाई कुरान पढ़ ले सहाबा रदी अल्लाहु अन्हुमा ने अर्ज़ किया की तिहाई कुरान (एक रात में) कैसे पढ़ सकते हैं , आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कुल हुवल्लाहु अ��द ( सुरह ईखलास ) एक तिहाई कुरान के बराबर है
सही मुस्लिम , 1886
अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम हमारे पास आए और फरमाया मैं तुम्हारे सामने एक तिहाई क़ुरान पढता हूँ , फिर आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने क़ुल हुवल्लाहू अहद (सुराह अल-इख्लास) पढ़ी यहाँ तक की इस सुरह को ख़तम किया
सही मुस्लिम, 1889
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हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के सरकार ए मदीनाﷺइरशाद फरमाते हैं जिस की अस्र की नमाज़ छुट गयी गोया की उस का घर और माल सब लुट गया
,,,,,,,,अल्लाहुअकबर
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