#महर्षि सुश्रुत
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लीच थैरेपी का बढ़ता चलन और संभावनाएं
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अपनी ख़ास जगह बना चुकी लीच थैरेपी या जोंक चिकित्सा का दायरा बढ़ता जा रहा है.अनेक रोगों, और उन जटिलताओं में भी यह कारगर साबित हो रही है जहां आधुनिक चिकित्सा पद्धति या एलोपैथी नाक़ाम हो जाती है.इसे यूं कहिये कि अब यह एक पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा की परिधि से बाहर निकलकर अपनी विशिष्टता सिद्ध करती दिखाई देती है.कुछ मामलों में तो जोंक चिकित्सा आज एकमात्र उपचार विधि या आख़िरी…
#अशुद्ध रक्त#असाध्य रोग#आचार्य चरक#आधुनिक चिकित्सा पद्धति#आयुर्वेद#एंटीबायोटिक#एनेस्थेटिक#एलोपैथी#जलीय कीड़ा#जलौका#जलौका लगाना#जलौकावचरण#जोंक#प्राचीन चिकित्सा पद्धति#महर्षि सुश्रुत#रक्तमोक्षण#लीच थैरेपी#व्यासदेव महंता#संवेदनाहारी#सुश्रुत संहिता
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💥भारत के ऋषि - मुनियों का विश्व के महान वैज्ञानिक होने का परिचय 💥
पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया...
👉1. अश्विनीकुमार -:
मान्यता है कि ये देवताओं के चिकित्सक थे। कहा जाता है कि इन्होंने उड़ने वाले रथ एवं नौकाओं का आविष्कार किया था।
👉2. धन्वंतरि -:
इन्हें आयुर्वेद का प्रथम आचार्य व प्रवर्तक माना जाता है। इनके ग्रंथ का नाम धन्वंतरि संहिता है। शल्य चिकित्सा शास्त्र के आदि प्रवर्तक सुश्रुत और नागार्जुन इन्हीं की परंपरा में हुए थे।
👉3. ऋषि भारद्वाज -:
आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
👉4. ऋषि विश्वामित्र -:
ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
👉5. गर्गमुनि -:
गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्री कृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थ���ति व नतीजे गर्ग मुनि जी ने पहले बता दिए थे।
👉6. पतंजलि -:
आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
👉7. महर्षि कपिल -:
सांख्य दर्शन के प्रवर्तक व सूत्रों के रचयिता थे महर्षि कपिल, जिन्होंने चेतना की शक्ति एवं त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।
👉8. कणाद ऋषि -:
ये वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक हैं। ये अणु विज्ञान के प्रणेता रहे हैं। इनके समय अणु विज्ञान दर्शन का विषय था, जो बाद में भौतिक विज्ञान में आया।
👉9. सुश्रुत -:
ये शल्य चिकित्सा पद्धति के प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे। इन्होंने सुश्रुत संहिता नामक ग्रंथ में शल्य क्रिया का वर्णन किया है। सुश्रुत ने ही त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) और मोतियाबिंद की शल्य क्रिया का विकास किया था। पार्क डेविस ने सुश्रुत को विश्व का प्रथम शल्य चिकित्सक कहा है।
👉10. जीवक -:
सम्राट बिंबसार के एकमात्र वैद्य। उज्जयिनी सम्राट चंडप्रद्योत की शल्य चिकित्सा इन्होंने ही की थी। कुछ लोग मानते हैं कि गौतम बुद्ध की चिकित्सा भी इन्होंने की थ���।
👉11. बौधायन -:
बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुलयशास्त्र के रचयिता थे। आज दुनिया भर में यूनानी उकेलेडियन ज्योमेट्री पढाई जाती है मगर इस ज्योमेट्री से पहले भारत के कई गणितज्ञ ज्योमेट्री के नियमों की खोज कर चुके थे। उन गणितज्ञ में बौधायन का नाम सबसे ऊपर है, उस समय ज्योमेट्री या एलजेब्रा को भारत में शुल्वशास्त्र कहा जाता था।
👉12. भास्कराचार्य -:
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
👉13. चरक -:
चरक औषधि के प्राचीन भारतीय विज्ञान के पिता के रूप में माने जातें हैं। वे कनिष्क के दरबार में राज वैद्य (शाही चिकित्सक) थे, उनकी चरक संहिता चिकित्सा पर एक उल्लेखनीय पुस्तक है। इसमें रोगों की एक बड़ी संख्या का विवरण दिया गया है और उनके कारणों की पहचान करने के तरीकों और उनके उपचार की पद्धति भी प्रदान करती है। वे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पा��न, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताते थे और इसलिए चिकित्सा विज्ञान चरक संहिता में, बीमारी का इलाज करने के बजाय रोग के कारण को हटाने के लिए अधिक ध्यान रखा गया है। चरक आनुवांशिकी (अपंगता) के मूल सिद्धांतों को भी जानते थे।
👉14. ब्रह्मगुप्त -:
7 वीं शताब्दी में, ब्रह्मगुप्त ने गणित को दूसरों से परे ऊंचाइयों तक ले गये। गुणन के अपने तरीकों में, उन्होंने लगभग उसी तरह स्थान मूल्य का उपयोग किया था, जैसा कि आज भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने गणित में शून्य पर नकारात्मक संख्याएं और संचालन शुरू किया। उन्होंने ब्रह्म मुक्त सिध्दांतिका को लिखा, जिसके माध्यम से अरब देश के लोगों ने हमारे गणितीय प्रणाली को जाना।
👉15. अग्निवेश :- ये शरीर विज्ञान के रचयिता थे।
👉16. शालिहोत्र :- इन्होंने पशु चिकित्सा पर आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की।
👉17. व्याडि :-
ये रसायन शास्त्री थे। इन्होंने भैषज (औषधि) रसायन का प्रणयन किया। अलबरूनी के अनुसार, व्याडि ने एक ऐसा लेप बनाया था, जिसे शरीर पर मलकर वायु में उड़ा जा सकता था।
👉18. आर्यभट्ट :-
इनका जन्म 476 ई. में कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) पटना में हुआ था। ये महान खगोलशास्त्र और व गणितज्ञ थे। इन्होने ही सबसे पहले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की वियाख्या की थी और सबसे पहले इन्होने ही बताया था की धरती अपनी ही धुरी पर धूमती है और इसे सिद्ध भी किया था। और यही नही इन्होने हे सबसे पहले पाई के मान को निरुपित किया।
👉19. वराहमिहिर :-
इनका जन्म 499 ई . में कपित्थ (उज्जैन ) में हुआ था। ये महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्र थे। इन्होने पंचसिद्धान्तका नाम की किताब लिखी थी जिसमे इन्होने बताया था कि, अयनांश , का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर होता होता है | और इन्होने शून्य और ऋणात्मक संख्याओ के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया।
👉20. हलायुध :-
इनका जन्म 1000 ई . में काशी में हुआ था। ये ज्योतिषविद , और गणितज्ञ व महान वैज्ञानिक भी थे। इन्होने अभिधानरत्नमाला या मृतसंजीवनी नमक ग्रन्थ की रचना की | इसमें इन्होने या की पास्कल त्रिभुज ( मेरु प्रस्तार ) का स्पष्ट वर्णन किया है।पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
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#akshayjamdagni #hindu #Hinduism #bharat #hindi
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5000 साल पहले #ब्राह्मणों_ने_हमारा_बहुत_शोषण किया ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने से रोका
यह बात बताने वाले महान इतिहासकार यह नहीं बताते कि 500 #साल_पहले_मुगलों ने हमारे साथ क्या किया 100 #साल_पहले_अंग्रेजो_ने हमारे साथ क्या किया
हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897 में #शिवकर_बापूजी_तलपडे_ने_हवाई_जहाज बनाकर उड़ाया था मुंबई में जिसको देखने के लिए उस टाइम के हाई कोर्ट के जज महा गोविंद रानाडे और मुंबई के एक राजा महाराज गायकवाड के साथ-साथ हजारों लोग मौजूद थे जहाज देखने के लिए
उसके बाद एक #डेली_ब्रदर_नाम_की_इंग्लैंड की कंपनी ने #शिवकर_बापूजी_तलपडे के साथ समझौता किया और बाद में बापू जी की मृत्यु हो गई यह मृत्यु भी एक षड्यंत्र है हत्या कर दी गई और फिर बाद में 1903 में राइट बंधु ने जहाज बनाया
आप लोगों को बताते चलें कि आज से हजारों साल पहले की किताब है #महर्षि_भारद्वाज_की_विमान_शास्त्र जिसमें 500 जहाज 500 प्रकार से बनाने की विधि है उसी को पढ़कर शिवकर बापूजी तलपडे ने जहाज बनाई थी।
लेकिन यह तथाकथित #नास्तिक_लंपट_ईसाइयों के दलाल जो है तो हम सबके ही बीच से लेकिन हमें बताते हैं कि भारत में तो कोई शिक्षा ही नहीं था कोई रोजगार नहीं था।
#अमेरिका_के_प्रथम_राष्ट्रपति_जॉर्ज_वाशिंगटन 14 दिसंबर 1799 को अरे थे सर्दी और बुखार की वजह से उनके पास बुखार की दवा नहीं थी उस टाइम #भारत_में #प्लास्टिक_सर्जरी_होती थी और अंग्रेज प्लास्टिक सर्जरी सीख रहे थे हमारे गुरुकुल में अब कुछ वामपंथी लंपट बोलेंगे यह सरासर झूठ है।
तो वामपंथी लंपट गिरोह कर सकते है
#ऑस्ट्रेलियन_कॉलेज_ऑफ_सर्जन_मेलबर्न में #ऋषि_सुश्रुत_ऋषि की प्रतिमा "फादर ऑफ सर्जरी" टाइटल के साथ स्थापित है।
महर्षि सुश्रुत – ये #शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे# शल्यकर्म या #आपरेशन में दक्ष थे। #महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘#सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि #महर्षि_सुश्रुत_मोतियाबिंद_पथरी_हड्डी_टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में ��ाहिर थे। यही नहीं वे त्वचा ब��लने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
भास्कराचार्य – आधुनिक युग में धरती की #गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। #भास्कराचार्यजी ने अपने #‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के #गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
आचार्य कणाद – #कणाद #परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी #जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।
गर्गमुनि – गर्ग मुनि #नक्षत्रों के #खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।
ये #गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
आचार्य चरक – ‘#चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक #आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘#त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने #शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।
पतंजलि – आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही #ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला #योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
बौद्धयन – भारतीय #त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति #बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
15 साल साल पहले का 2000 साल पहले का मंदिर मिलते हैं जिसको आज के #वैज्ञानिक_और_इंजीनियर देखकर हैरान में हो जाते हैं कि मंदिर बना कैसे होगा अब #हमें_इन_वामपंथी_लंपट लोगो से हमें पूछना चाहिए कि मंदिर बनाया किसने
#ब्राह्मणों_ने_हमें पढ़ने नहीं दिया यह बात बताने वाले महान इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house में मिलेगा
भारत गरीब देश था चाहे है तो फिर दुनिया के तमाम आक्रमणकारी भारत ही क्यों आए हमें अमीर बनाने के लिए
भारत में कोई रोजगार नहीं था
भारत में पिछड़े दलितों को गुलाम बनाकर रखा जाता था लेकिन वामपंथी लंपट आपसे यह नहीं बताएंगे कि हम 1750 में पूरे दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा 24 परसेंट था
और सन उन्नीस सौ में एक परसेंट पर आ ग��ा आखिर कारण क्या था।
अगर हमारे देश में उतना ही छुआछूत थे हमारे देश में रोजगार नहीं था तो फिर पूरे दुनिया के व्यापार में हमारा 24 परसेंट का व्यापार कैसे था।
#यह_वामपंथी_लंपट यह नहीं बताएंगे कि कैसे अंग्रेजों के नीतियों के कारण भारत में लोग एक ही साथ 3000000 #लोग_भूख_से_मर गए कुछ दिन के अंतराल में
एक बेहद खास बात वामपंथी लंपट या अंग्रेज दलाल कहते हैं इतना ही भारत समप्रीत था इतना ही सनातन संस्कृति समृद्ध थी तो सभी अविष्कार अंग्रेजों ने ही क्यों किए हैं भारत के लोगों ने कोई भी अविष्कार क्यों नहीं किया
#उन_वामपंथी_लंपट लोगों को बताते चलें कि किया तो सब आविष्कार भारत में ही लेकिन उन लोगों ने चुरा करके अपने नाम से पेटेंट कराया नहीं तो एक बात बताओ भारत आने से पहले अंग्रेजों ने कोई एक अविष्कार किया हो तो उसका नाम बताओ एवर थोड़ा अपना दिमाग लगाओ कि भारत आने के बाद ही यह लोग आविष्कार कैसे करने लगे उससे पहले क्यों नहीं करते थे।
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उत्तराखंड: स्वास्थ्य मंत्री का बड़ा फैसला, ओथ की जगह ‘महर्षि चरक शपथ’ लेंगे मेडिकल छात्र
उत्तराखंड: स्वास्थ्य मंत्री का बड़ा फैसला, ओथ की जगह ‘महर्षि चरक शपथ’ लेंगे मेडिकल छात्र
देहरादून: राज्य के मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों में दीक्षा सत्रारंभ के अवसर पर हिप्पोक्रेटिक शपथ की बजाय छात्र-छात्राएं अब ‘महर्षि चरक शपथ’ लेंगे, जो भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के सर्वोच्च ग्रंथ चरक संहिता से ली जायेगी। प्रदेश के प्रत्येक मेडिकल शिक्षण संस्थानों में भारतीय चिकित्सा पद्धति की महान विभूतियों चरक, सुश्रुत एवं धन्वंतरि की…
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वास्तव में वैज्ञानिक ही ऋषि-मुनि ही थे.. जानिए उनके दिव्य आविष्कार 21 मार्च 202
भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि के नाम से पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से पटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उ��ासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये व युक्तियां बताई। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।
कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।
★ भास्कराचार्य :- आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है'।
★ आचार्य कणाद :- कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।
★ ऋषि विश्वामित्र :- ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग करना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
★ ऋषि भारद्वाज :- आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्��� उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
★ गर्ग मुनि :- गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।
ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
★ महर्षि सुश्रुत :- ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
★ आचार्य चरक :- ‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।
★ पतंजलि :- आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
★ बौद्धयन :- भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोर के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
★ महर्षि दधीचि :- महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं।
इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।
★ महर्षि अगस्त्य :- वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।
★ कपिल मुनि :- भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि ‘सांख्य दर्शन’ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही ‘सांख्य दर्शन’ कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर के द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।
★ शौनक ऋषि :- वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
★ ऋषि वशिष्ठ :- वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों ��ुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
★ कण्व ऋषि :- प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है। (स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति)
विश्व में जितनी भी खोजे हुई हैं वो हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान की गहराई में जाकर खोजी हैं जिनकी आज के वैज्ञानिक कल्पना भी नही कर सकते हैं।
आज ऋषि-मुनियों की परम्परा अनुसार साधु-संत चला रहे हैं । उनको राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा षडयंत्र के तहत बदनाम किया जा रहा है और जेल भिजवाया जा रहा है । अतः देशवासी षडयंत्र को समझें और उसका विरोध करें ।
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- एमपी न्यूज मेडिकल छात्र पढ़ेंगे बीजेपी के आरएसएस केशव बलराम हेडगेवार दीन दयाल उपाध्याय के बारे में
– एमपी न्यूज मेडिकल छात्र पढ़ेंगे बीजेपी के आरएसएस केशव बलराम हेडगेवार दीन दयाल उपाध्याय के बारे में
भोपाल मध्य प्रदेश के मेडिकल छात्र अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक सिंह (आरएसएस) और भाजपा के विचार पढ़ेंगे। नए सत्र से, महर्षि चरक, आचार्य सुश्रुत, स्वामी विवेकानंद, बाबा साहब भीम राव अंबेडकर, सिंह संस्थापक केशव राव बलराम हेडगेवार और भाजपा के दानिदियाल उपाध्याय के विचारों को मेडिकल छात्रों के फाउंडेशन कोर्स में शामिल किया जाएगा। सरकार ने छात्रों के बौद्धिक विकास के लिए देश के विचारकों के सिद्धांतों और…
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आयुर्वेद शल्य को लेकर शंका करना, अज्ञानता और भ्रम फैलाना: आचार्य बालकृष्ण
आयुर्वेद शल्य को लेकर शंका करना, अज्ञानता और भ्रम फैलाना: आचार्य बालकृष्ण
न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, हरिद्वार Updated Sat, 12 Dec 2020 04:47 PM IST पतंजलि योगपीठ के सीईओ आचार्य बालकृष्ण – फोटो : ANI file photo पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर कहीं भी, कभी भी। *Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP! पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद शल्य को लेकर शंका करना सिर्फ अज्ञानता और समाज में भ्रम फैलाना है। महर्षि सुश्रुत को शल्य…
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क्षार सूत्र क्या है? यह कैसे बनता है, और किन-किन बीमारियों में इस्तेमाल होता है जानिए
क्षार सूत्र आयुर्वेद की एक पैरा सर्जिकल तकनीक है, जो मेडिकेटेड या औषधियुक्त धागे के रूप में विख्यात है.शास्त्रों में सूत्र रूप से वर्णित क्षार सूत्र की चिकित्सा विधि कई बीमारियों, जैसे बवासीर, फिशर, फिस्टुला, आदि को समूल नष्ट करने सक्षम मानी जाती है.विशेषज्ञों के मुताबिक़ कई बार एलोपैथिक सर्जरी के बाद भी मरीज़ पूरी तरह ठीक नहीं हो पाता है, और इसके दुष्प्रभाव भी होते हैं, जबकि क्षार सूत्र विधि से…
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#अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान#अपामार्ग#आयुर्वेद#औषधियुक्त धागा#क्षार#क्षार सूत्र#डॉक्टर व्यासदेव महंता#तकनीक#धागा#पाइल्स#पानीय और प्रतिसारणीय#फिशर#फिस्टुला#बवासीर#बीएचयू#भगंदर#महर्षि सुश्रुत#लटजीरा#विज्ञान#स्नुही दूध#स्वास्थ्य
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#उत्तिष्ठ_भारत नमस्कार मित्रो। आज मेरी नजर जब निम्न पोस्ट पर पड़ी तो मुझे लगा इसको तुरन्त वाइरल करना चाहिए। क्योंकि अब सही समय है कि भारत मे इन सब मुद्दों पर बहस हो और जो सही है उसको स्वीकार किया जाय और जो गलत है उसको अस्वीकार । जिसने भी यह लिखा है उसको आभार। उम्मीद करता हूँ इस पर पर्याप्त बहस होगी। 5000 साल पहले #ब्राह्मणों_ने_हमारा_बहुत_शोषण किया ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने से रोका यह बात बताने वाले महान इतिहासकार यह नहीं बताते कि 500 #साल_पहले_मुगलों ने हमारे साथ क्या किया 100 #साल_पहले_अंग्रेजो_ने हमारे साथ क्या किया हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897 में #शिवकर_बापूजी_तलपडे_ने_हवाई_जहाज बनाकर उड़ाया था मुंबई में जिसको देखने के लिए उस टाइम के हाई कोर्ट के जज महा गोविंद रानाडे और मुंबई के एक राजा महाराज गायकवाड के साथ-साथ हजारों लोग मौजूद थे जहाज देखने के लिए उसके बाद एक #डेली_ब्रदर_नाम_की_इंग्लैंड की कंपनी ने #शिवकर_बापूजी_तलपडे के साथ समझौता किया और बाद में बापू जी की मृत्यु हो गई यह मृत्यु भी एक षड्यंत्र है हत्या कर दी गई और फिर बाद में 1903 में राइट बंधु ने जहाज बनाया आप लोगों को बताते चलें कि आज से हजारों साल पहले की किताब है #महर्षि_भारद्वाज_की_विमान_शास्त्र जिसमें 500 जहाज 500 प्रकार से बनाने की विधि है उसी को पढ़कर शिवकर बापूजी तलपडे ने जहाज बनाई थी। लेकिन यह तथाकथित दलाल जो है तो हम सबके ही बीच से लेकिन हमें बताते हैं कि भारत में तो कोई शिक्षा ही नहीं था कोई रोजगार नहीं था। #अमेरिका_के_प्रथम_राष्ट्रपति_जॉर्ज_वाशिंगटन 14 दिसंबर 1799 को अरे थे सर्दी और बुखार की वजह से उनके पास बुखार की दवा नहीं थी उस टाइम #भारत_में #प्लास्टिक_सर्जरी_होती थी और अंग्रेज प्लास्टिक सर्जरी सीख रहे थे हमारे गुरुकुल में अब कुछ वामपंथी लंपट बोलेंगे यह सरासर झूठ है। तो वामपंथी लंपट गिरोह कर सकते है #ऑस्ट्रेलियन_कॉलेज_ऑफ_सर्जन_मेलबर्न में #ऋषि_सुश्रुत_ऋषि की प्रतिमा "फादर ऑफ सर्जरी" टाइटल के साथ स्थापित है। महर्षि सुश्रुत – ये #शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे# शल्यकर्म या #आपरेशन में दक्ष थे। #महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘#सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानक https://www.instagram.com/p/B9uWZOHh5KM/?igshid=16itjaxjmaxc3
#उत्तिष्ठ_भारत#ब्राह्मणों_ने_हमारा_बहुत_शोषण#साल_पहले_मुगलों#साल_पहले_अंग्रेजो_ने#शिवकर_बापूजी_तलपडे_ने_हवाई_जहाज#डेली_ब्रदर_नाम_की_इंग्लैंड#शिवकर_बापूजी_तलपडे#महर्षि_भारद्वाज_की_विमान_शास्त्र#अमेरिका_के_प्रथम_राष्ट्रपति_जॉर्ज_वाशिंगटन#भारत_में#प्लास्टिक_सर्जरी_होती#ऑस्ट्रेलियन_कॉलेज_ऑफ_सर्जन_मेलबर्न#ऋषि_सुश्रुत_ऋषि#शल्यचिकित्सा#आपरेशन#महर्षि#सुश्रुतसंहिता
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यह शख्स आयुर्वेद से करता है पेड़ों का इलाज, 100 साल से भी पुराने ठूंठ में तब्दील पेड़ों को दोबारा किया हरभरा
चैतन्य भारत न्यूज कोट्टायम. आपने पेड़ लगाने वाले, उनकी देखरेख करने वाले कई लोगों को देखा होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहें हैं जो मृत हो चुके पेड़ को जिंदा करते हैं। जी हां...केरल के 51 वर्षीय के. बीनू ऐसे शख्स हैं, जो आयुर्वेद के जरिए पेड़-पौधों का इलाज करते हैं। पेड़ों के संरक्षण के लिए वे बीते 10 सालों से जुटे हुए हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
खबरों के मुताबिक, बीनू पेशे से शिक्षक है और वह अभी तक 100 साल से भी पुराने कई ऐसे पेड़ों को फिर से जिंदा कर चुके हैं जो ठूंठ हो गए थे। खास बात यह है कि देशभर के लोग अपने पेड़ों की बीमारी के बारे में उन्हें बताते हैं और बीनू उनका इलाज करते हैं-वह भी मुफ्त। बीनू ने पेड़ों को बचाने के लिए वृक्ष आयुर्वेद से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो अब केरल के स्कूली कोर्स में भी शामिल की जा रही हैं।
बीनू का कहना है कि, वृक्ष आयुर्वेद में पेड़ों की हर बिमारी का इलाज बताया गया है, इनमें दीमक के टीले की मिट्टी, धान के खेतों की मिट्टी प्रमुख है। गोबर, दूध, घी और शहद का इस्तेमाल भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि, केले के तने का रस और भैंस के दूध का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो पेड़ों के घाव में महीनों तक भैंस के दूध की पट्टी भी लगानी पड़ती है।
बीनू ने बताया कि, सुबह लोगों से उनके वृक्षों की बीमारी सुनते हैं और स्कूल से लौटते समय वृक्षों का इलाज करते हैं। शनिवार-रविवार या फिर छुट्टी के दिन वे सुबह से ही वृक्षों के इलाज के लिए मौ��े पर पहुंच जाते हैं। उन्होंने बताया कि, यूपी के प्रयागराज और कौशांबी में कई एकड़ में अमरूदों के बाग में फैली बीमारी ठीक करने में भी मदद की। इसके अलावा उन्होंने 15 साल पहले एक अधजले पेड़ का इलाज कर उसे हराभरा बना दिया जिसके बाद लोग लोगों ने उन्हें ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ की ख्याति दिला दी। ज्यादातर लोग बीनू को अब 'पेड़ वाले डॉक्टर' के नाम से ही जानते हैं।
बीनू के मुताबिक, उनका ज्यादातर समय दीमक के टीले की मिट्टी ढूंढने में निकल जाता है। वे दीमक के टीले की मिट्टी से ही बीमार पेड़ों का इलाज करते हैं। उन्होंने बताया कि, '60 साल पहले तक वृक्ष आयुर्वेद काफी प्रचलित था। महर्षि चरक और सुश्रुत ने भी ग्रंथों में पेड़ों की बीमारी का उल्लेख किया है। मैंने अपनी कोशिशों के जरिए सैकड़ों वृक्ष बचाए, यही मेरा उद्देश्य है।' Read the full article
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“घृतन्तु चक्षुष्यं”- महर्षि सुश्रुत
शुद्ध गौ-घृत नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला होता है।
महर्षि सुश्रुत, महर्षि चरक,महर्षि वाग्भट्ट तीनो ही ऋषि गौघृतं का बखान करते हुए लिखते हैं कि नेत्र ज्योति बढ़ाने में सर्वोत्तम वस्तु इस पृथ्वी पर है तो वो पारंपरिक विधि से निकला शुद्ध गौघृत ही है।
अर्थात जो लोग अपनी नेत्र-ज्योति बढ़ाना चाहते हैं वो नियमित रूप से गाय का घी अपने भोजन में अवश्य सम्मिलित करें।
अधिक जानकारी के लिए कृपया नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें http://bit.ly/2lBj9g0
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🚩 वास्तव में वैज्ञानिक ही ऋषि-मुनि ही थे.. जानिए उनके दिव्य आविष्कार-27 फरवरी 2021
🚩भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि के नाम से पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से पटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये व युक्तियां बताई। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।
🚩कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।
★ भास्कराचार्य :- आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
★ आचार्य कणाद :- कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।
★ ऋषि विश्वामित्र :- ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग करना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
★ ऋषि भारद्वाज :- आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
★ गर्ग मुनि :- गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।
ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
★ महर्षि सुश्रुत :- ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
★ आचार्य चरक :- ‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।
★ पतंजलि :- आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाल�� योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
★ बौद्धयन :- भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोर के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
★ महर्षि दधीचि :- महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान ���र महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं।
इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।
★ महर्षि अगस्त्य :- वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।
★ कपिल मुनि :- भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर के द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।
★ शौनक ऋषि :- वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
★ ऋषि वशिष्ठ :- वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
★ कण्व ऋषि :- प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है। (स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति)
🚩विश्व में जितनी भी खोजे हुई हैं वो हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान की गहराई में जाकर खोजी हैं जिनकी आज के वैज्ञानिक कल्पना भी नही कर सकते हैं ।
🚩आज ऋषि-मुनियों की परम्परा अनुसार साधु-संत चला रहे हैं । उनको राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा षडयंत्र के तहत बदनाम किया जा रहा है और जेल भिजवाया जा रहा है । अतः देशवासी षडयंत्र को समझें और उसका विरोध करें ।
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वर्षाकाल में आयुर्वेद की ऋतुचर्या
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वर्षाकाल में आयुर्वेद की ऋतुचर्या
🌈🌈 आयुर्वेद में दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, स्वस्थवृत्त, सद्वृत्त, आहार, विहार आदि स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा के उपयोगी और रणनीतिक उपाय हैं। पर्यावरण और पारिस्थिक तंत्र के साथ हमारे रिश्तों की अनवरत सार-संभाल या अनुकूलन ही ऋतुचर्या है। यह अनुकूलन ही धातुसाम्य और दोषसाम्य रखता है। यही हमें रोगों से बचाता है या आयुर्वेद की भाषा में कहें तो अनागत रोगों का प्रतिकार या विकार-अनुत्पत्ति में सहायक है। आज की चर्चा वर्षाऋतु में स्वास्थ्य रक्षा के विविध उपायों पर केन्द्रित है, जिसके मुख्य शास्त्रीय स्रोत चरकसंहिता (च.सू.6.33-40), सुश्रुतसंहिता (सु.उ.64.46-55) एवं अष्टांगहृदय (अ.हृ.सू.3.42-48) हैं। ऋतुसंहार (2.1-29) में वर्षाऋतु का आँखों-देखा हाल रोचक है। स्वस्थवृत्त पर प्रकाशित समकालीन वैज्ञानिक शोध, जो लगभग नगण्य है, का भी सहारा लिया गया है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुभवजन्य ज्ञान भी यहाँ समाहित है। संहिताओं में उपलब्ध जानकारी का मूल स्रोत लगभग आठवीं शताब्दी ईसापूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी के मध्य का है। किन्तु इनकी समकालीन सार्थकता को आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययनों के सन्दर्भ में देखने पर भी यथावत उपयोगी हैं।
वर्षा ऋतु आते आते, शिशिर, बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु के प्रभाव से कमजोर हुये शरीर की अग्नि या भूख वात आदि दोषों से मंद पड़ती जाती है। प्रायः बादलों की छाया, नमी के कारण शीतल ��ुई हवा, मिट्टी में पानी पड़ने पर निकलने वाली शुरुआती भाप, भोजन का अम्लविपाक होना और सतही जल में प्रदूषण बढ़ जाने से जठराग्नि मंद हो जाती है। वात कुपित होकर अन्य दोषों पर भी प्रभाव पड़ता है। इस कारण वर्षा ऋतु में आहार-विहार में बड़ी सावधानी रखना आवश्यक है। आहार-विहार ऐसा हो जिसमे मुख्यतया वात के शमन के साथ ही कफ और पित्त का शमन भी हो। जठराग्नि चूँकि मंद रहती है, अतः भोजन का अग्निवर्धक होना आवश्यक है। सूत्र रूप में कहें तो वात शमन एवं जठराग्नि को दीप्त किये बिना वर्षा ऋतु में बीमारी से बच पाना संभव नहीं है। वर्षा ऋतु के प्रारम्भ में ही, अपने आयुर्वेदाचार्यो की सलाह से समुचित वमन, विरेचन, स्वेदन, मर्दन आदि से शरीर में संचित दोषों का शोधन करते हुये आस्थापन या निरूहण बस्ति का प्रयोग करना चाहिये।
खान-पान में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जब तक पहले खाया हुआ भोजन ठीक से पच न जाये, तब तक पुनः भोजन नहीं करना चाहिये। वर्षा ऋतु में आराम से पच जाने वाले खाद्य पदार्थ लेना स्वास्थ्यकर रहता है। मधुर, अम्ल एवं लवण रसों का सेवन, हलका गरम दूध, घी, पुराने जौ, गेहूं व चावल, विशेष कर साठी के चावल लेना लाभकारी होता है। मूंग की दाल का जूस, पुराना शहद, पुराने आसव व अरिष्ट, मस्तु या दही का पानी, सौवर्चल या काला नमक, सैन्धव नमक, पंचकोल (पिप्पली, पीपलामूल, चव्य, चीता, नागरमोथा) का चूर्ण वर्षा ऋतु में बहुत उपयोगी रहते हैं। जिस दिन आकाश में बादल छाये हों, उस दिन खट्टे, नमकीन व स्निग्ध खाद्य पदार्थों के साथ सूखे चने-चबैने का आनंद लिया जा सकता है। ये सब लघु होने से जल्दी पच जाते हैं। रुक्ष व उष्ण खाद्य पदार्थ, नये अन्न, बहुत ठंडा पानी आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिये। छाछ या मठा, सत्तू के घोल आदि से बचना ही श्रेयस्कर है।
वर्षा ऋतु में नदियों, तालाबों और पोखरों में सिमट सिमट कर आने वाला सतही जल अपने साथ बड़ी गन्दगी बहाकर लाता है। भारत में तीव्र आर्थिक विकास, साक्षरता दर में सुधार, और बेहतर जल स्रोतों की व्यापक पहुंच के बावज़ूद वर्ष 2011 की जनगणना में यह पाया गया कि 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में शौचालय नहीं है। स्वाभाविक है कि पूरे देश के नदी-नाले, तालाब, पोखर और यहाँ तक कि कुओं के पानी में कॉलिफोर्म बैक्टीरिया भारी संख्या में पाये जाते हैं। बरस���त के दिनों में नदियों का जल प्रकृति से ही अहितकर होता है। हालाँकि देश में नदियों के प्रदूषण पर देश भर के प्रदूषण नियंत्रण मंडलों के आंकड़े और वैज्ञानिक अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि 3000 साल पूर्व महर्षि चरक की यह सलाह अब हर ऋतु के लिये सही है। भारत में आज कोई ऐसी नदी नहीं है जो नगरीय मल-जल या औद्योगिक प्रदूषण से प्रदूषित न हो। उपचार के बिना कोई सतही जल पीने योग्य नहीं बचा है। यहाँ तक कि भारत की सबसे पूज्य और पवित्र नदी का जल भी आज समुचित उपचार के बिना पीने के पूर्णतः अयोग्य है। अतः बिल्कुल साफ़ पानी ही पीने में प्रयोग करना चाहिये। नहाने के लिये भी नदी, नालों, तालाब या पोखर के पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये, क्योंकि दूषित पानी में ऋतु-जन्य, परिस्थिति-जन्य एवं पर्यावरण-जन्य संक्रमणकारी और प्रदूषणकारी तत्व मिले रहते हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिये दिनचर्या, ऋतुचर्या, स्वस्थवृत्त आदि जैसे सभी साधारण उपाय करना चाहिये।
बिना जूते पहने नंगे पैर कीचड़ या गीली मिट्टी में चलना ठीक नहीं होता। गीले कपड़े नहीं पहनना चाहिये। वस्त्रों को समय समय पर धूप में डालते रहना चाहिये या धोकर और सुखाकर अच्छी तरह प्रेस करने के बाद पहनने चाहिये। रहने की जगह भी ऐसी हो जहाँ सीलन या वर्षा की बौछारें न पहुँचती हों। वर्षा ऋतु में दिन में नहीं सोना चाहिये। अधिक परिश्रम करना, या धूप या ओस में बहुत ज्यादा समय तक रहना भी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। बहुत अधिक व्यायाम या सेक्स भी वर्षा ऋतु में ठीक नहीं होता, हालाँकि आत्रेय विरचित सारसंग्रह में उपवन में टहलना और नियमित व्यायाम शक्ति संचय के लिये कल्याणकारी माना गया है। वर्षाऋतु के अन्त में जब शरदऋतु आने वाली होती है तब तक शरीर में पित्त का संचय होता रहता है और शरद ऋतु के आते ही संचित पित्त कुपित होने लगता है। अतः वर्षाऋतु के अन्त में अपने आयुर्वेदाचार्य की सलाह से तिक्तघृत या महातिक्तघृत का प्रयोग लाभकारी होता है।
भारत में छह प्रमुख वेक्टर जनित रोगों का भारी प्रकोप है। इनमें मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, फाइलेरिएसिस, जापानी एन्सेफलाइटिस और विसरल लिशमानियासिस शामिल हैं जो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बढ़ सकते हैं। वर्षा ऋतु में तापमान की अधिकता के साथ ही जल की प्रचुरता से बैक्टीरिया, वायरस, मच्छर, मक्खी आदि का प्रकोप भी बढ़ जाता है। अध्ययन बताते हैं कि वर्षाऋतु में डेंगू-संक्रमित मच्छरों का प्रतिशत बढ़ जाने से आगे चलकर उनकी संक्रामकता बढ़ जाती है। साथ ही सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार, अपच, डायरिया आदि का प्रकोप भी बढ़ जाता है। ऐसी दशा में बीमार पड़ने पर प्रायः आयुर्वेद की वे औषधियां जो एन्टी-वायरल, एन्टी-बैक्टेरियल व एन्टी-इन्फेक्टिव प्रभाव वाली होती हैं ��नसे शीघ्रता से लाभ मिलता है। विविध प्रकार के वायरल संक्रमण के कारण रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या में भारी कमी जानलेवा हो सकती है। अतः तुलसी, गुडूची, कालमेघ जैसे औषधीय पौधों से प्राप्त मानकीकृत औषधियाँ लाभकारी हो सकती हैं। इन प्रजातियों को घरों के आसपास उगाकर रखना और आयुर्वेदाचार्यों की सलाह से चिकित्सकीय उपयोग जीवन-रक्षा में मददगार हो सकता है।
इस सब चर्चा का हमारे लिये महत्व यह है कि यदि स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना है तो समुचित ऋतुचर्या का पालन करना चाहिये। इससे अनावश्यक बीमार पड़ने से होने वाली धन की बर्बादी से बचा जा सकता है। याद यह भी रखना है कि ऋतुचर्या के पालन का अर्थ यह नहीं है कि आयुर्वेदोक्त दिनचर्या, रात्रिचर्या, स्वस्थवृत्त या सद्वृत्त आदि से छुटकारा मिल गया।
सारांशतः देखें तो वर्षाऋतु में चार बातें सम्भालना आवश्यक है: प्रकुपित वात का शमन, मंद पड़ी जठराग्नि का प्रज्वलन, प्रदूषित जल व खाद्य सामग्री से पूर्ण बचाव, और वेक्टर-बॉर्न बीमारियों से बचाव। आचार्य चरक, सुश्रुत एवं वाग्भट आदि ने हालांकि यह स्पष्ट किया है कि वर्षा ऋतु में वात का प्रकोप बढ़ता है किन्तु समकालीन वैज्ञानिक अध्ययन और अनुभवजन्य ज्ञान स्पष्ट करता है कि आज दिनचर्या, रात्रिचर्या या ऋतुचर्या गड्डमड्ड होने के साथ ही प्रज्ञापराध या असात्म्येन्द्रियार्थ संयोग से मुक्त जीवन जीना दूभर हो रहा है। ऐसी स्थिति में वर्षा ऋतु में केवल वात ही नहीं, बल्कि पित्त व कफ भी भड़के रहते हैं। इसलिये वर्षाकाल में शरीर को स्वस्थ रखने के लिये केवल वात-नियामक, अग्नि-उद्दीपक और संक्रमण-मुक्त जीवनशैली नहीं बल्कि आयुर्वेदाचार्यों की सलाह से त्रिदोष-नियामक आहार-विहार और रसायन ही हमारा कल्याण कर सकते हैं।
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गोमूत्र के फायदे, उपयोग और नुकसान – Cow Urine (Gomutra) Benefits in Hindi
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गोमूत्र के फायदे, उपयोग और नुकसान – Cow Urine (Gomutra) Benefits in Hindi
Bhupendra Verma Hyderabd040-395603080 July 29, 2019
भारत में गाय का दर्जा मां के समान है। इसे कामधेनु के नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि गाय के दूध से लेकर उसके मूत्र व गोबर तक को पवित्र माना गया है। शास्त्रों में गाय का महत्व विस्तार से समझाया गया है। वहीं, आधुनिक युग की बात करें, तो विज्ञान ने भी इस बात की पुष्टि की है कि गाय के दूध और मूत्र में कई गुणकारी तत्व छुपे हैं। ये स्वास्थ्य के लिहाज से लाभकारी हैं। फिलहाल स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम सिर्फ गोमूत्र की बात करेंगे। हम आपको न सिर्फ गौमूत्र के फायदे बताएंगे, बल्कि गोमूत्र उपयोग करने के टिप्स भी देंगे।
विषय सूची
गोमूत्र इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
गौ मूत्र इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। यह कैंसर, एडिमा, एनीम��या और मधुमेह जैसे रोगों को ठीक करने के काम आ सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि गोमूत्र में एंटीबायोटिक, एंटिफंगल और एंटीकैंसर गुण पाए जाते हैं। इसमें 95% पानी, 2.5% यूरिया, मिनरल्स, और 2.5% एंजाइम पाए जाते हैं। इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं कि यह आपके लिए लाभदायक है (1)।
आइए, अब गोमूत्र के फायदे के बारे में विस्तार से जानते हैं।
गोमूत्र के फायदे – Cow Urine Benefits in Hindi
आयुर्वेद में कहा गया है कि गाय का मूत्र शरीर को कई रोगों से मुक्त करके स्वस्थ रहने में मदद कर सकता है। आइए, हम जानते हैं कि आपके लिए गोमूत्र के फायदे किस-किस प्रकार से हैं।
1. कैंसर के लिए
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गोमूत्र में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। साथ ही यह शरीर में फ्री रेडिक्लस व ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को खत्म करने का काम करता है। करीब 16 हफ्ते तक 70 चूहों पर किए गए अध्ययन से भी पुष्टि की गई है कि गोमूत्र में कीमोप्रिवेंटिव गुण होता है (1)।
2. वजन घटाने के लिए
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आयुर्वेदिक ग्रंथों में गोमूत्र को एक प्राकृतिक औषधीय पदार्थ के रूप में बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गोमूत्र के सेवन से वजन घटाने में सहायता मिल सकती है। इस बात को वैज्ञानिक शोध के जरिए भी प्रमाणित किया गया है (1)।
3. मधुमेह में फायदेमंद
गोमूत्र में एंटीडायबिटीक व एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जिस कारण यह शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित कर सकता है। वैज्ञानिक अध्ययन में माना गया है कि अगर मधुमेह से ग्रस्त मरीज गोमूत्र का सेवन करते हैं, तो 28 दिन में इंसुलिन का स्तर संतुलित हो सकता है (2)।
4. हाइपोलिपिडेमिक और हेपेटोप्रोटेक्टिव प्रभाव
जब आप अधिक तैलीय व वसा वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, तो शरीर में कालेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है। साथ ही शरीर में फ्री रेडिकल्स भी बनने लगते हैं। परिणामस्वरूप लिवर में सूजन आ सकती है और आपको कई बीमारियां घेर सकती हैं। ऐसे में अगर आप गौ मूत्र का सेवन करते हैं, तो इन बीमारियों से बच सकते हैं।
गौ मूत्र को इसलिए लाभदायक माना गया है, क्योंकि इसमें हाइपोलिपिडेमिक (कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करना) व हेपेटोप्रोटेक्टिव (लिवर को ठीक करना) गुण होते हैं। गोमूत्र का वैज्ञानिक परीक्षण करने पर पता चला है कि इसमें कॉपर, कैलिकेरिन, यूरोकिन्स, नाइट्रोजन, यूरिक एसिड और फॉस्फेट जैसे कई गुणकारी तत्व पाए जाते हैं। जब वैज्ञानिक अध्ययन के दौरान 30 दिन तक गोमूत्र का उपयोग किया जाता है, तो सीरम ट्राइग्लिसराइड्स (खून में पाया जाने वाला फैट) और कोलेस्ट्रॉल के स्तर में कमी दर्ज की गई। साथ ही लिवर के सूजन में भी कमी आई (3)।
5. पेट की समस्या
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जब बात गोमूत्र के फायदे के बारे में हो रही हो, तो इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह आपके पेट के दर्द को कम करने में भी सहायता करता है। यह इसलिए संभव हो पाया है, क्योंकि गोमूत्र में अनेक प्रकार के आयुर्वेदिक गुण मौजूद होते हैं। आयुर्वेद आचार्य सुश्रुत व महर्षि चरक ने भी कहा है कि पेट दर्द से राहत पाने के लिए गौ मूत्र का प्रयोग किया जा सकता है (1)।
6. एंटी-यूरोलिथिएटिक व डाइयुरेटिक्स प्रभाव
गाय का मूत्र अच्छा डिटॉक्स पेय है, जो आपके रक्त और अंगों में मौजूद सभी प्रकार के विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करता है। साथ ही इसमें एंटी-यूरोलिथिएटिक (पथरी के प्रभाव को कम करना) व डाइयुरेटिक्स (मूत्रवर्धक गुण) प्रभाव भी होता है।
इसे साबित करने के लिए वैज्ञानिकों ने पथरी से प्रभावित चूहे पर परीक्षण किया। उन्होंने चूहे को गोमूत्र दिया, जिससे कैल्शियम ऑक्सलेट में 40 प्रतिशत व कैल्शियम फॉस्फेट में 35 प्रतिशत की कमी आई। आपको बता दें कि इन दोनों के कारण ही किडनी में पथरी का निर्माण होता है (4)। इसके अलावा, गोमूत्र में पाए जाने वाले डाइयुरेटिक्स, एंटीऑक्सीडेंट व एंटीइंफ्लेमेटरी गुण के कारण ही यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन से बचा जा सकता है।
7. थायराइड व आयोडीन की कमी में सुधार
गौमूत्र के फायदे में थाइराइड को ठीक करना भी शामिल है। आपको बता दें कि शरीर में थायरायड का स्तर सामान्य बनाए रखने के लिए ट्राईआयोडोथायरोनिन (T3) और थायरोक्सिन (T4) हार्मोंस का उत्पादन जरूरी है। इन हार्मोंस का उत्पादन संतुलित मात्रा में हो, इसके लिए अच्छा और पर्याप्त आयोडीन का सेवन करना जरूरी है। आयोडीन की कमी से थायराइड का खतरा बढ़ सकता है। गोमूत्र में आयोडीन पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है, जो थायराइड की समस्या को रोकने में मदद करता है (5)। सुश्रुत संहिता व चरक संहिता में भी इसका वर्णन किया गया है।
8. दर्द से राहत के लिए
गोमूत्र के लाभ की बात करें, तो यह दर्द से निजात दिलाने में भी सहायक है। इसके सेवन से किसी भी प्रकार के दर्द और सूजन को कम किया जा सकता है। यह बात एक रिसर्च द्वारा भी साबित हो चुकी है (1)।
9. जख्म भरने के लिए
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गाय का मूत्र आपके शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों के उत्पादन को रोकता है। यह कोलेजन (एक तरह के प्रोटीन का समूह) और टिशू के निर्माण में मदद करता है, जिससे जख्मों को भरने में मदद मिलती है (6)।
10. त्वचा के लिए
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गोमूत्र का उपयोग एक्जिमा, मुंहासे व फुंसियों के लक्षणों को ठीक करने में किया जाता है। गोमूत्र उपयोग चेहर�� और त्वचा से संबंधित क्रीम में भी किया जाता है। इसके उपयोग से चमकती व सुरक्षित त्वचा पाई जा सकती है। एंटीमाइक्रोबियल और एंटीऑक्सिडेंट गुण से युक्त गोमूत्र का उपयोग चेहरे और त्वचा के लिए बनाए जाने वाली क्रीम में भी किया जाता है (7)।
लेख के इस भाग में हम गोमूत्र उपयोग की जानकारी देंगे।
गोमूत्र का उपयोग – How to Use Cow Urine in Hindi
कृषि में: गोमूत्र के लाभ खेती के लिए देखे गए हैं। गोमूत्र को एक प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह नाइट्रोजन से समृद्ध होता है, जो रोगाणुरोधी गुण होता हैं (8)।
साबुन और शैंपू में: गोमूत्र का इस्तेमाल आयुर्वेदिक व हर्बल स्क्रब, शैंपू, साबुन व अन्य सौंदर्य उत्पादों में किया जाता है।
बिजली के लिए: गोमूत्र में अल्कलाइन प्रभाव पाया जाता है, जिस कारण इसे बिजली का बेहतरीन विकल्प माना जाता सकता है। ऐसा माना जाता है कि 5 लीटर ताजा गोमूत्र से लगभग 1 वॉट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है (9)।
गोमूत्र कैसे पिएं :
ध्यान रहे कि गोमूत्र को ऐसे नहीं पिया जा सकता। पहले उसे फिल्टर करना जरूरी होता है। उसके बाद ही इसका सेवन किया जा सकता है।
गोमूत्र को बिना कुछ मिलाए पिया जा सकता है।
आप आधे कप पानी में गोमूत्र, नमक और नींबू के रस को मिलाकर भी पी सकते हैं।
गोमूत्र में आंवला चूर्ण और दूध मिलाकर पिया जा सकता है।
नोट : आप खुद से इसका सेवन न करें, बल्कि डॉक्टर की सलाह पर ही इसे पिएं।
कब पी सकते है :
गोमूत्र को दिन में दो बार सुबह और शाम पिया जा सकता है।
कहा मिलेगा :
गोशाला से ताजा गोमूत्र ले सकते हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सालय या फिर मेडिकल स्टोर से भी गोमूत्र मिल जाएगा।
क्या गोमूत्र से कुछ नुकसान भी हो सकता है? आइए, जानते हैं।
गोमूत्र के नुकसान – Side Effects of Plums in Hindi
गोमूत्र का प्रयोग करके से आपका वजन बढ़ सकता है (10)।
गोमूत्र को ज्यादा देर तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता, क्योंकि उसमें बैक्टीरिया पनपने का खतरा बढ़ जाता है, जो शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
गोमूत्र के लाभ को जानने के बाद इसको लेकर नाक सिकोड़ने वाले भी इस���े सेवन करना चाहेंगे। इसे ऊपर दिए गए बीमारियों से राहत पाने के लिए आयुर्वेदिक दवा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और आप इसके गुणों का फायदा उठा सकते हैं। अगर आपके पास गोमूत्र के बारे में कोई अन्य जानकारी है, तो आप नीचे दिए कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमारे साथ शेयर कर सकते हैं।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/gomutra-ke-fayde-upyog-aur-nuksan-in-hindi/
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आयुर्वेद को विश्व मे पुनः सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करना ही लक्ष्य : स्वामी रामदेव
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आयुर्वेद को विश्व मे पुनः सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करना ही लक्ष्य : स्वामी रामदेव
बहादराबाद। आज पूरे देश के लिए गौरव का विषय है कि पतंजलि संस्थान के आचार्य बालकृष्ण को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए यूनिसेफ नेशनल डेवलपमेंट गोल द्वारा विश्व के के 10 सबसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की श्रेणी में स्थान दिया गया है। यह बात स्वामी रामदेव ने बुधवार को एक पत्रकार मिलन कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने कहा कि पतंजलि ने हमेशा ही भारत देश को अपनी माता मानते हुए अपने कर्म व धर्म क�� परम कर्तव्य की भावना से वैदिक ज्ञान को सर्वोपरि स्थान दिलाने का प्रयास किया है।उन्होंने कहा कि पतंजलि ने कभी भी किसी सूची में स्थान पाने के लिए कोई कार्य नहीं किया अपितु समाज सेवा में अहर्निश संलग्न रहकर मानवता की सेवा करने का संकल्प लिया है।उन्होंने बताया कि पतंजलि विश्व स्वास्थ्य सुधार के लिए वर्षो से कार्यरत है पतंजलि के रिसर्च सेंटर में 500 वैज्ञानिक कार्यरत है जो प्रतिदिन विभिन घातक बीमारियों को समूल नष्ट करने की दवाइयां खोजने में जुटे हैं। उन्होंने कहा कि योग और आयुर्वेद भारत की प्राचीन धरोहर है जिस प्रकार आज योग की महत्ता को समूचा विश्व मानव जीवन की एक महत्वपूर्ण क्रिया मानने के लिए बाध्य हुआ है ठीक उसी प्रकार आयुर्वेद को भी विश्व में पुनः सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करते हुए करोड़ों साध्य-असाध्य रोगों से पीड़ित रोगियों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के आचार्य बालकृष्ण और पतंजलि कृतसंकल्प है।उन्होंने बताया कि यु एन एस डी जी अनेक समाज सेवी कार्यों में संलग्न है जिनमे प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था व यूनिवर्सल हेल्थ,गरीबी उन्मूलन,विश्व में शांति समृद्धि की स्थापना प्रमुख है। बताया कि आगामी 25 मई को यु एन ओ द्वारा जेनेवा में यु एन एस डी जी हेल्थ सम्मिट में आचार्य बालकृष्ण महाराज को स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया जाना भारत देश के लिए गौरव की बात है। उन्होंए बताया कि उक्त आयोजन वर्ल्ड हेल्थ फोरम द्वारा किया जा रहा है जिसका लक्ष्य वैश्विक सार्वजानिक स्वास्थ्य और विकास को मंच प्रदान करना है। उन्होंने बताया कि इस स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन का उद्देश्य सस्ती प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच प्रदान करना स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करना और सामुदायिक जिला स्तर और देश के अनुसार स्वास्थ्य सेवा वितरण में तेजी लाना है। इस प्रकार यूनिवर्सल हेल्थ केयर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस शिखर सम्मेलन में नए सरल पारदर्शी और जवाबदेह लोगों लोगों के विकास द्वारा समर्थित नए और नवीन समाधानो का प्रस्ताव किया जाएगा। आचार्य बालकृष्ण को आयुर्वेद और योग के क्षेत्र में उत्थान और नवीन अनुसंधान के प्रति समर्पण के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है। वह यूएन एसडीजी जिनेवा में स्वास्थ्य सम्मेलन के लिए अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। उन्होंने बताया कि इस सबमिट में 50 देशों से लगभग 500 प्रतिभागी भाग लेंगे।
इस कार्यक्रम में देशों के प्रमुख स्वास्थ्य मंत्री नीति निर्माता उद्योग और सिविल सोसायटी के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों समेत विश्व स्वास्थ्य संगठन के शीर्ष अधिकारी तथा विख्यात वैज्ञानिक शामिल होंगे। शल्य चिकित्सा आयुर्वेद को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए कहा की शल्य चिकित्सा एक क्र��या है पैथी नहीं है। इस क्षेत्र में भी आयुर्वेद अग्रणी है महर्षि सुश्रुत आयुर्वेद के प्रथम शल्य चिकित्सक के रूप में जाने जाते हैं। स्वामी रामदेव ने कहा की पतंजलि द्वारा पांच लाख नए श्लोकों नए शास्त्रों की रचना की जा रही है। पतंजलि का मकसद स्वार्थ का नहीं है केवल परमार्थ का है हमें करोड़ों लोगों का साथ और आशीर्वाद मिला है उन्हीं के विश्वास के सहारे पतंजलि आगे बढ़ रही है। एक राजनीतिक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा की आगामी 23 मई के बाद देश का स्वास्थ्य भी अच्छा होने वाला है, देश को एक मजबूत निर्णय लेने वाला संकल्प वाली सरकार जिसे नकारने का संपूर्ण विश्व में साहस न हो ऐसी सरकार मिलने जा रही है। पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई घटना की भर्त्सना करते हुए उसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
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हाम्रा ऋषिमुनीहरुले सदियौं अघि खोज गरेका थिए यी रहस्य
राइट दाजुभाईले हवाइजहाजको आविष्कार गर्नुअघि नै हाम्रा पौराणिक कथामा आकासमा चरा जस्तै उड्ने यानको परिकल्पना गरिएको पाइन्छ । पृथ्वीको गुरुत्वबल आधुनिक विज्ञानको अभूतपूर्व खोज हो । जबकी ऋषिमुनी भास्कराचार्यले आफ्नो ग्रन्थ ‘शिद्धान्तशिरोमणि’मा लेखेका थिए, ‘पृथ्वीले आकाशीय पदार्थलाई आफ्नो विशिष्ठ शक्तिद्वारा आफुतर्फ तान्ने गर्छ ।’ आधुनिक चिकित्सा विज्ञानको खोज हुनुअघि नै आचार्य चरकले आयुर्वेद एवं औषधि विज्ञानको खोज गरेका थिए ।
शरीर रचनाको सन्दर्भमा होस् वा ब्रम्हाण्डको, सदियौंअघि नै हाम्रा ऋषिमुनीहरुले अनेक खोज-अध्ययन, प्रयोग एवं अभ्यास गरेका पाइन्छ ।
योग-विज्ञानका प्रणेता पतंजली
रोगमुक्त जीवन बाँच्ने चाहनासँगै आजको विश्वले योग, ध्यान, प्राणायामलाई उच्च महत्व दिन थालेको छ । जबकी यसको खोज र अभ्यास सदियौंअघि ऋषि पतन्जलीले गरेका थिए । उनले योगशास्त्रको रचना गरेर योग, ध्यानलाई व्यवस्थित गरेका थिए ।
शल्य चिकित्सका प्रवद्र्धक महर्षि सुश्रुत
उनलाई दुनियाकै पहिलो शल्य चिकित्सा विज्ञानका प्रवद्र्धक मानिन्छ । उनी शल्य कर्ममा दक्ष थिए । महर्षि शुश्रुतद्वारा लेखिएको ‘सुश्रुत संहिता’ ग्रन्थमा शल्य चिकित्साको बारेमा अहम् ज्ञान विस्तारमा बताइएको छ । यसमा सुई, चक्कु, चिम्टी जस्ता करिब एक सय २५ बढी शल्य चिकित्साको औजार र तीन सय किसिमको शल्य क्रियाको बारेमा विवरण छ । भनिन्छ, महर्षि सुश्रुत मोतियाबिन्दु, पथरी, भाँचिएको हड्डी जस्ता शल्यक्रियाका लागि माहिर थिए ।
अस्त्र एवं प्रक्षेपास्त्रका आविष्कारक विश्वमित्र
ऋषि बननुअघि विश्वमित्र क्षत्रिय (योद्धा) थिए । पछि उनी तपस्वी भए । भनिन्छ, विश्वमित्रले भगवान शिवबाट अस्त्र विद्या पाएक थिए । आजको युगमा प्रचलित प्रक्षेपास्त्र वा मिसाइल प्रणली हजारौं बर्षअघि विश्वमित्रले खोज गरेका थिए ।
सौर्यमण्डलका ज्ञाता गर्ग मुनि
गर्ग मुनिलाई नक्षत्रका खोजकर्ता मानिन्छ । उनी तारामण्डलका ज्ञाता थिए । उनले ‘गर्ग संहिता’ नामक ज्योतिष ग्रन्थ रचना गरेका थिए ।
वायुयानका आविष्कारक भारद्वाज
आधुनिक विज्ञानका अनुसार राइट दाजुभाईले वायुयानको आविष्कार गरेका थिए । तर, हिन्दु शास्त्र अनुसार सदियौंअघि ऋषि ��ारद्वाजले विमानशास्त्रका माध्यामबाट एक स्थानबाट अर्को स्थानमा वा एक ग्रहबाट अर्को ग्रहमा जाने वायुयानको रहस्य उजागर गरेका थिए ।
संख्या शास्त्रका प्रणेता कपिल मुनि
कपिलमुनीलाई संख्या शास्त्र अर्थात तत्वमा आधारित ज्ञानका प्रणेता मनिन्छ । ‘कपिलस्मृति’ उनको ग्रन्थ हो ।
यौन संहिताका अध्येता वात्स्यायन
यौनका अनेक आसन र आयम, यसका विधी लगायत दाम्पत्य जीवनको शृंगारबारे वात्स्यायनले सदियौंअघि खोज -अध्ययन गरेका थिए । उनीले लेखेका ‘कामसुत्र’ आज पनि उत्तिकै चर्चित मानिन्छ । उक्त ग्रन्थ विश्वकोप्रथम यौन संहिता मानिएको छ । कामसुत्रमा उनले महिला र पुरुषको बर्गिकरण । दम्पतीमा हुनुपर्ने गुण, परिवार सुखको राज आदिबारे उल्लेख गरेका छन् ।
विभिन्न स्रोतबाट
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