#सुश्रुत संहिता
Explore tagged Tumblr posts
Text
लीच थैरेपी का बढ़ता चलन और संभावनाएं
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अपनी ख़ास जगह बना चुकी लीच थैरेपी या जोंक चिकित्सा का दायरा बढ़ता जा रहा है.अनेक रोगों, और उन जटिलताओं में भी यह कारगर साबित हो रही है जहां आधुनिक चिकित्सा पद्धति या एलोपैथी नाक़ाम हो जाती है.इसे यूं कहिये कि अब यह एक पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा की परिधि से बाहर निकलकर अपनी विशिष्टता सिद्ध करती दिखाई देती है.कुछ मामलों में तो जोंक चिकित्सा आज एकमात्र उपचार विधि या आख़िरी…
#अशुद्ध रक्त#असाध्य रोग#आचार्य चरक#आधुनिक चिकित्सा पद्धति#आयुर्वेद#एंटीबायोटिक#एनेस्थेटिक#एलोपैथी#जलीय कीड़ा#जलौका#जलौका लगाना#जलौकावचरण#जोंक#प्राचीन चिकित्सा पद्धति#महर्षि सुश्रुत#रक्तमोक्षण#लीच थैरेपी#व्यासदेव महंता#संवेदनाहारी#सुश्रुत संहिता
0 notes
Text
*🌞~ दिनांक - 12 सितम्बर 2024 का वैदिक हिन्दू पंचांग सटीक गणना के साथ ~🌞*
*⛅दिनांक - 12 सितम्बर 2024*
*⛅दिन - गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - भाद्रपद*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - नवमी रात्रि 11:32 तक तत्पश्चात दशमी*
*⛅नक्षत्र - मूल रात्रि 09:53 तक तत्पश्चात पूर्व आषाढ़ा*
*⛅योग - आयुष्मान रात्रि 10:41 तक तत्पश्चात सौभाग्य*
*⛅राहु काल - दोपहर 02:08 से दोपहर 03:41 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:25*
*⛅सूर्यास्त - 06:46*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:52 से 05:39 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:11 से दोपहर 01:01 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:12 सितम्बर 13 से रात्रि 12:59 सितम्बर 13 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - ज्येष्ठ गौरी विसर्जन*
*⛅विशेष - नवमी को लौकी खाना गौमाँस के सामान त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🚶♂️शारीरिक-मानसिक आरोग्य हेतु संजीवनी बूटी : पैदल भ्रमण🚶♂️*
*🔹कैसा भ्रमण है लाभदायी ?🔹*
*🔸पैदल भ्रमण करते समय शरीर सीध�� व वस्त्र कम रहें । दोनों हाथ हिलाते हुए और नाक से गहरे गहरे श्वास लेते हुए भ्रमण करना चाहिए । गहरे श्वास लेने से प्राणायाम का भी लाभ मिलता है ।*
*🔸शारीरिक के साथ यह मानसिक स्वास्थ्य में भी लाभदायी है । इससे काम, क्रोध, ईर्ष्या आदि मनोदोषों का शमन होता है । एकाग्रता विकसित होती है ।*
*🔸ओस की बूँदों से युक्त हरी घास पर टहलना अधिक हितकारी हैं । यह नेत्रों के लिए विशेष लाभकारी है । वर्षा के दिनों में भीगी घास पर टहल सकते हैं ।*
*🔸भ्रमण सामान्यरूप से शारिरिक क्षमता के अनुसार मध्यम गति से ही करें । सुश्रुत संहिता (चिकित्सा स्थान : २४.८०) में आता है : यत्तु चङ्क्रमणं नातिदेहपीडाकरं भवेत् । तदायुर्बलमेधाग्निप्रदमिन्द्रियबोधनम् ॥*
*🔸'जो भ्रमण शरीर को अत्यधिक कष्ट नहीं देता वह आयु, बल एवं मेधा प्रदान करनेवाला होता है, जठराग्नि को बढ़ाता है और इन्द्रियों की शक्ति को जागृत करता है ।'*
*🔹भ्रमण है अनेक रोगों में लाभकारी🔹*
*🔸स्नायु दौर्बल्य, मानसिक रोग, अनिद्रा, स्वप्नदोष, सर्दी, खाँसी, सिरदर्द, कब्ज, दुबलापन और कमजोरी आदि में टहलना रामबाण औषधि है ।*
*🔸इन रोगों में प्रातः भ्रमण का लाभ बताते हुए डॉ. कार्नेलिया ई. फिलिप्स, डी.ओ. कहते हैं : "मैं यह बात अपने ३० वर्षों के अनुभव से कह रहा हूँ, जिस अवधि में मैंने इन रोगों से पीड़ित न जाने कितने निराश, हताश और निरुपाय रोगियों को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ कराया है । इसलिए मुझे दृढ विश्वास हो गया है कि खोये हुए स्वास्थ्य को फिर से पाने का यह कुदरती तरीका इतना प्रभावशाली है कि इसके बारे में चाहे जितना भी कहा जाय उसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी ।"*
*🔸भ्रमण से मोटापा कम होता है, भूख खुलकर लगती है, पुराने कब्ज व अपच में यह उत्तम औषधि का काम करता है । यह युवकों में काम-वासना को नियंत्रित करता है ।*
*🔹आधुनिक अनुसंधानों के परिणाम🔹*
*आधुनिक अनुसंधानों में पाया गया है कि-*
*🔸पैदल चलने से संधिवात (arthritis) संबंधी दर्द कम हो जाता है । हर हफ्ते ५-६ मील (८-१० कि.मी.) तक पैदल चलने से संधिवात की बीमारी होने से भी बचा जा सकता है ।*
*🔸 जैसे-जैसे पैदल चलना बढ़ता जाता है । वैसे-वैसे कोरोनरी हृदयरोगों (हृदय की गति से भ्रमण करना अधिकांश व्यक्तियों के लिए रक्तवाहिनियों में अवरोध) के होने का जोखिम कम होता जाता है । आम जनता में कोरोनरी हृदयरोगों की रोकथाम के लिए भ्रमण को एक आदर्श व्यायाम के रूप में बढ़ावा देना चाहिए ।*
*🔸पैदल चलने से व्यक्ति की रचनात्मकता में औसतन ६० प्रतिशत तक की वृद्धि होती है ।*
*🔸भ्रमण उच्च रक्तचाप (hypertension) व टाइप-2 डायबिटीज होने के जोखिम को कम करता है ।*
*🔹ध्यान रखें🔹*
*🔸घास न हो तो नंगे पैर भ्रमण न करें । नंगे पैर भ्रमण रोगकारक, नेत्रज्योति व आयु नाशक है । भ्रमण प्रदूषणरहित स्थान पर करें । यदि यह सुविधा न हो सके तो अपने घर की छत के ऊपर गमलों में त��लसी, मोगरा, गुलाब आदि लगाकर सुबह- शाम उनके आसपास पैदल चल सकते हैं ।*
#motivational motivational jyotishwithakshayg#tumblr milestone#akshayjamdagni#mahakal#panchang#hanumanji#rashifal#nature
0 notes
Text
Surgical instrument in Ayurved
Surgical instrument in Ayurved
Calculus stone extractor, India, Science museum London This is an Indian example of a calculus stone extractor. It was used in a painful operation to remove the growths. The oldest reference to the surgical removal of calculus stones is in the Susrata Samhita सुश्रुत संहिता classic text of Ayurvedic medicine. Susrata practiced surgery since about 500BCE. Science Museum, London Surgical…
View On WordPress
8 notes
·
View notes
Text
*आयुर्वेदः सेहत के खजाने की कुंजी हैं ये जड़ी बूटियां*
आयुर्वेद को सेहत का खजाना कहा जाए तो गलत नहीं होगा. हर जड़ी-बूटी अपने भीतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई गुण समेटे हुए है. वैसे तो आयुर्वेद में लगभग 1,200 औषधीय जड़ी-बूटियों का वर्णन है. लेकिन यहां उन जड़ी बूटियों के बारे में बताया गया है जो आसानी से उपलब्ध हो सकें. इनमें से कई तो ऐसी हैं जिनके पौधे लोग घरों में बड़े शौक से लगाते है
हर जड़ी-बूटी अपने भीतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई गुण समेटे हुए है.
Book Appointment Now
हर जड़ी-बूटी अपने भीतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई गुण समेटे हुए है.
*गिलोय (गुडूचि, अमृता)*
गिलोय अथवा अमृता अपने नाम से ही अपने गुण को दर्शाती है. यह एक बेल है जिसके तने से रस निकालकर अथवा सत्व बनाकर प्रयोग किया जाता है. यह स्वाद में कड़वी लेकिन त्रिदोषनाशक होती है. इसका प्रयोग वातरक्त (गाउट), आमवात (आर्थराइटिस), त्वचा रोग, प्रमेह, हृदय रोग आदि रोगों में होता है. ये डेंगू हो जाने पर द्ब्रलड प्लेटलेट्स की घटी मात्रा को बहुत जल्दी सामान्य करती है. खून के अत्यधिक बह जाने और प्र��िरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तो यह रामबाण है.
*अश्वगंधा (असगंध)*
अश्वगंधा आयुर्वेद में अत्यधिक प्रयुक्त होने वाली औषधि है इसकी जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर उपयो��� में लाया जाता है. इसके चूर्ण के सत्व का सेवन तो और भी ज्यादा असरदायक है. अश्वगंधा चूर्ण बलकारी, शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने वाला, शुक्रवर्धक खोई हुई ऊर्जा को दोबारा देकर लंबी उम्र का वरदान देता है.
*शतावरी (शतावर)*
शतावरी की बेल की जड़ को सुखाकर चूर्ण के रूप में उपयोग किया जाता है. शतावरी भी रसायन औषधि है यह बौद्धिक विकास, पाचन को सुदृढ़ करने वाली, नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाली, उदर गत वायु दोष को ठीक करने वाली, शुक्र बढ़ाने वाली, नव प्रसूता माताओं में स्तन" को बढ़ाने वाली औषधि है. शतावरी का सेवन आपको आयुष्मान होने का आशीष देता है.
*आंवला (आमलकी)*
आंवले के फल को लगभग सभी आयुर्वेद की संहिताओं में रसायन कहा गया है. चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश, अष्टांग हृदय सभी शास्त्र आंवले को प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला मानते हैं. इसके अलावा आंवले को त्वचारोगहर, ज्वरनाशक, रक्तपित्त हर, अतिसार, प्रवाहिका, हृदय रोग आदि में बेहद लाभकारी माना गया है. आंवले का नियमित सेवन लंबी आयु की गारंटी भी देता है.
*मुलहठी (यष्टिमधु** )
मुलहठी के तने का प्रयोग अधिकतर किया जाता है. यह बलवर्धक, दृष्टिवर्धक, पौरुष शक्ति की वृद्धि करने वाली, वर्ण को आभायुक्त करने वाली, खांसी, स्वरभेद, व्रणरोपण तथा वातरक्त (गाउट) में अत्यंत उपयोगी होती है. इसका उपयोग पेप्टिक अल्सर के इलाज में किया जाता है. एसिडिटी के इलाज में तो यह बेहद कारगर है.
Find Best Hospital Near me
*ब्राह्मी*
ब्राह्मी देखने में तो सामान्य सी झाड़ी लगती है लेकिन ये बेहद असरकारी है. यह नर्वस सिस्टम के लिए अचूक औषधि है. बच्चों के लिए स्मृति और मेधावर्धक है. मिर्गी में इसका खासतौर पर प्रयोग होता है. मानसिक विकारों के इलाज के लिए तो यह रामबाण है. इसके अलावा इसका उपयोग ज्वर, त्वचा रोगों, प्लीहा संबंधी विकारों में भी होता है.
*अशोक*
अशोक की छाल बेहद गुणकारी होती है. यह स्त्री संबंधी रोगों में बेहद उपयोगी पाई गई है. यह विशेषतया श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, हृदय, दाहहर तथा अपच में उपयोगी है. वैसे इसके ��ाम में ही इसके गुण झलकते हैं. अशोक अर्थात अपने नाम को सिद्ध करने वाला, स्त्रियों के शोक तथा दुख को दूर करने वाला है.
*हल्दी (हरिद्रा)*
यह भारत में सर्वाधिक मसालों में प्रयुक्त होने वाला प्रकंद है. त्वचा रोगों में, आर्थराइटिस, रक्तशोधक, आदि में इसका खूब प्रयोग होता है. विश्वभर में कई प्रकार के कैंसर के इलाज में भी इसके प्रभावजनक परिणाम सामने आए हैं.
*नीम (निम्ब* )
नीम का पेड़ भारत में बेहद उपयोगी माना गया है. इसके सूखे पत्ते लोग कपड़े रखने वाली जगह पर कीटनाशक के रूप में रखते हैं. इसके अतिरिक्त किसी भी तरह के त्वचा रोग में इसके काढ़े और लेप का प्रयोग किया जाता है. स्नान के दौरान इसकी पत्तियों का प्रयोग बेहद लाभकारी होता है.
*मोरिंगा*
यह पेड़ पूरे भारत में बहुतायत से होता है तथा इसके पत्ते और फलियों का उपयोग किया जाता है. इसकी फलियों को तो सांभर में भी डाला जाता है. यह बलवर्धक होने के साथ ही जीर्ण ज्वर में बेहद उपयोगी है.
*तुलसी*
यह औषधीय पौधा कई घरों में मिल जाएगा तथा सामान्य सर्दी-खांसी से लेकर ज्वर इत्यादि में भी उपयोग किया जाता है. इसकी हर्बल चाय तो विश्व प्रसिद्ध है. यह वातावरण को शुद्ध करती है तथा बैक्टिरियल इन्फेक्शन को झट से खत्म करने वाली होती है. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना इसका मौलिक गुण है.
*घृतकुमारी** (गवारपाठा)
यह सर्वाधिक पाया जाने वाला छोटा-सा मांसल पत्तियों वाला पौधा है जो कि कई रोगों में अत्यंत उपयोगी है. इसके पत्तों के बीच का गूदा बाह्य उपयोग में त्वचा रोगों में काम आता है. स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमितता को खत्म करने में कारगर है, यकृत (लीवर), तिल्ली (स्पलीन) तथा पाचन संबंधी बीमारियों और आर्थराइटिस के इलाज में इसका खूब प्रयोग होता है.
2 notes
·
View notes
Text
भारतवर्ष के गुरुकुलों में क्या पढ़ाई होती थी, ये जान लेना आवश्यक है। इस शिक्षा को लेकर अपने विचारों में परिवर्तन लाएं और भ्रांतियां दूर करें!!! वामपंथी लंपट इसे जरूर पढें!
१. अग्नि विद्या ( Metallergy )
२. वायु विद्या ( Aviation )
३. जल विद्या ( Navigation )
४. अंतरिक्ष विद्या ( Space Science)
५. पृथ्वी विद्या ( Environment & Ecology)
६. सूर्य विद्या ( Solar System Studies )
७. चन्द्र व लोक विद्या ( Lunar Studies )
८. मेघ विद्या ( Weather Forecast )
९. पदार्थ विद्युत विद्या ( Battery )
१०. सौर ऊर्जा विद्या ( Solar Energy )
११. दिन रात्रि विद्या
१२. सृष्टि विद्या ( Space Research )
१३. खगोल विद्या ( Astronomy)
१४. भूगोल विद्या (Geography )
१५. काल विद्या ( Time )
१६. भूगर्भ विद्या (Geology and Mining )
१७. रत्न व धातु विद्या ( Gemology and Metals )
१८. आकर्षण विद्या ( Gravity )
१९. प्रकाश विद्या ( Optics)
२०. तार संचार विद्या ( Communication )
२१. विमान विद्या ( Aviation )
२२. जलयान विद्या ( Water , Hydraulics Vessels )
२३. अग्नेय अस्त्र विद्या ( Arms and Amunition )
२४. जीव जंतु विज्ञान विद्या ( Zoology Botany )
२५. यज्ञ विद्या ( Material Sc)
वैज्ञानिक विद्याओं की अब बात करते है व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की
वाणिज्य ( Commerce )
भेषज (Pharmacy)
शल्यकर्म व चिकित्सा (Diagnosis and Surgery)
कृषि (Agriculture )
पशुपालन ( Animal Husbandry )
पक्षिपलन ( Bird Keeping )
पशु प्रशिक्षण ( Animal Training )
यान यन्त्रकार ( Mechanics)
रथकार ( Vehicle Designing )
रतन्कार ( Gems )
सुवर्णकार ( Jewellery Designing )
वस्त्रकार ( Textile)
कुम्भकार ( Pottery)
लोहकार (Metallergy)
तक्षक (Toxicology)
रंगसाज (Dying)
रज्जुकर (Logistics)
वास्तुकार ( Architect)
पाकविद्या (Cooking)
सारथ्य (Driving)
नदी जल प्रबन्धक (Dater Management)
सुचिकार (Data Entry)
गोशाला प्रबन्धक (Animal Husbandry)
उद्यान पाल (Horticulture)
वन पाल (Forestry)
नापित (Paramedical)
अर्थशास्त्र (Economics)
तर्कशास्त्र (Logic)
न्यायशास्त्र (Law)
नौका शास्त्र (Ship Building)
रसायनशास्त्र (Chemical Science)
ब्रह्मविद्या (Cosmology)
न्यायवैद्यकशास्त्र (Medical Jurisprudence) - अथर्ववेद
क्रव्याद (Postmortem) --अथर्ववेद
आदि विद्याओ क़े तंत्रशिक्षा क़े वर्णन हमें वेद और उपनिषद में मिलते है ॥
यह सब विद्या गुरुकुल में सिखाई जाती थी पर समय के साथ गुरुकुल लुप्त हुए तो यह विद्या भी लुप्त होती गयी।
आज अंग्रेज मैकाले पद्धति से हमारे देश के युवाओं का भविष्य नष्ट हो रहा तब ऐसे समय में गुरुकुल के पुनः उद्धार की आवश्यकता है।
कुछ_प्रसिद्ध_भारतीय_प्राचीन_ऋषि_मुनि_वैज्ञानिक_एवं_संशोधक
पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
अश्विनीकुमार: मान्यता है कि ये देवताओं के चिकित्सक थे। कहा जाता है कि इन्होंने उड़ने वाले रथ एवं नौकाओं का आविष्कार किया था।
धन्वंतरि: इन्हें आयुर्वेद का प्रथम आचार्य व प्रवर्तक माना जाता है। इनके ग्रंथ का नाम धन्वंतरि संहिता है। शल्य चिकित्सा शास्त्र के आदि प्रवर्तक सुश्रुत और नागार्जुन इन्हीं की परंपरा में हुए थे।
महर्षि_भारद्वाज: आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
महर्षि_विश्वामित्र: ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
महर्षि_गर्गमुनि: गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
महर्षि_पतंजलि: आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
महर्षि_कपिल_मुनि: सांख्य दर्शन के प्रवर्तक व सूत्रों के रचयिता थे महर्षि कपिल, जिन्होंने चेतना क��� शक्ति एवं त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।
महर्षि_कणाद: ये वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक हैं। ये अणु विज्ञान के प्रणेता रहे हैं। इनके समय अणु विज्ञान दर्शन का विषय था, जो बाद में भौतिक विज्ञान में आया।
महर्षि_सुश्रुत: ये शल्य चिकित्सा पद्धति के प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे। इन्होंने सुश्रुत संहिता नामक ग्रंथ में शल्य क्रिया का वर्णन किया है। सुश्रुत ने ही त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) और मोतियाबिंद की शल्य क्रिया का विकास किया था। पार्क डेविस ने सुश्रुत को विश्व का प्रथम शल्यचिकित्सक कहा है।
जीवक: सम्राट बिंबसार के एकमात्र वैद्य। उज्जयिनी सम्राट चंडप्रद्योत की शल्य चिकित्सा इन्होंने ही की थी। कुछ लोग मानते हैं कि गौतम बुद्ध की चिकित्सा भी इन्होंने की थी।
महर्षि_बौधायन: बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुलयशास्त्र के रचयिता थे। आज दुनिया भर में यूनानी उकेलेडियन ज्योमेट्री पढाई जाती है मगर इस ज्योमेट्री से पहले भारत के कई गणितज्ञ ज्योमेट्री के नियमों की खोज कर चुके थे। उन गणितज्ञ में बौधायन का नाम सबसे ऊपर है, उस समय ज्योमेट्री या एलजेब्रा को भारत में शुल्वशास्त्र कहा जाता था।
महर्षि_भास्कराचार्य: आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
महर्षि_चरक: चरक औषधि के प्राचीन भारतीय विज्ञान के पिता के रूप में माने जातें हैं। वे कनिष्क के दरबार में राज वैद्य (शाही चिकित्सक) थे, उनकी चरक संहिता चिकित्सा पर एक उल्लेखनीय पुस्तक है। इसमें रोगों की एक बड़ी संख्या का विवरण दिया गया है और उनके कारणों की पहचान करने के तरीक��ं और उनके उपचार की पद्धति भी प्रदान करती है। वे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताते थे और इसलिए चिकित्सा विज्ञान चरक संहिता में, बीमारी का इलाज करने के बजाय रोग के कारण को हटाने के लिए अधिक ध्यान रखा गया है। चरक आनुवांशिकी (अपंगता) के मूल सिद्धांतों को भी जानते थे।
ब्रह्मगुप्त: 7 वीं शताब्दी में, ब्रह्मगुप्त ने गणित को दूसरों से परे ऊंचाइयों तक ले गये। गुणन के अपने तरीकों में, उन्होंने लगभग उसी तरह स्थान म��ल्य का उपयोग किया था, जैसा कि आज भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने गणित में शून्य पर नकारात्मक संख्याएं और संचालन शुरू किया। उन्होंने ब्रह्म मुक्त सिध्दांतिका को लिखा, जिसके माध्यम से अरब देश के लोगों ने हमारे गणितीय प्रणाली को जाना।
महर्षि_अग्निवेश: ये शरीर विज्ञान के रचयिता थे।
महर्षि_शालिहोत्र: इन्होंने पशु चिकित्सा पर आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की।
व्याडि: ये रसायनशास्त्री थे। इन्होंने भैषज (औषधि) रसायन का प्रणयन किया। अलबरूनी के अनुसार, व्याडि ने एक ऐसा लेप बनाया था, जिसे शरीर पर मलकर वायु में उड़ा जा सकता था।
आर्यभट्ट: इनका जन्म 476 ई. में कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) पटना में हुआ था | ये महान खगोलशास्त्र और व गणितज्ञ थे | इन्होने ही सबसे पहले सूर्ये और चन्द्र ग्रहण की वियाख्या की थी | और सबसे पहले इन्होने ही बताया था की धरती अपनी ही धुरी पर धूमती है| और इसे सिद्ध भी किया था | और यही नही इन्होने हे सबसे पहले पाई के मान को निरुपित किया।
महर्षि_वराहमिहिर: इनका जन्म 499 ई . में कपित्थ (उज्जेन ) में हुआ था | ये महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्र थे | इन्होने पंचसिद्धान्तका नाम की किताब लिखी थी जिसमे इन्होने बताया था की , अयनांश , का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर होता होता है | और इन्होने शून्य और ऋणात्मक संख्याओ के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया |
हलायुध: इनका जन्म 1000 ई . में काशी में हुआ था | ये ज्योतिषविद , और गणितज्ञ व महान वैज्ञानिक भी थे | इन्होने अभिधानरत्नमाला या मृतसंजीवनी नमक ग्रन्थ की रचना की | इसमें इन्होने या की पास्कल त्रिभुज ( मेरु प्रस्तार ) का स्पष्ट वर्णन किया है।पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
5000 साल पहले ब्राह्मणों_ने_हमारा_बहुत_शोषण किया ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने से रोका,यह बात बताने वाले महान इतिहासकार यह नहीं बताते कि 500 साल पहले मुगलों ने हमारे साथ क्या किया 100 साल पहले अंग्रेजो ने हमारे साथ क्या किया?
हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897 में शिवकर_बापूजी_तलपडे_ने_हवाई_जहाज बनाकर उड़ाया था मुंबई में जिसको देखने के लिए उस टाइम के हाई कोर्ट के जज महा गोविंद रानाडे और मुंबई के एक राजा महाराज गायकवाड के साथ-साथ हजारों लोग मौजूद थे जहाज देखने के लिए
उसके बाद एक डेली_ब्रदर_नाम_की_इंग्लैंड की कंपनी ने शिवकर_बापूजी_तलपडे के साथ समझौता किया और बाद में बापू जी की मृत्यु हो गई यह मृत्यु भी एक षड्यंत्र है हत्या कर दी गई और फिर बाद में 1903 में राइट बंधु ने जहाज बनाया।
आप ��ोगों को बताते चलें कि आज से हजारों साल पहले की किताब है महर्षि_भारद्वाज_की_विमान_शास्त्र जिसमें 500 जहाज 500 प्रकार से बनाने की विधि है उसी को पढ़कर शिवकर बापूजी तलपडे ने जहाज बनाई थी।
लेकिन यह तथाकथित नास्तिक_लंपट_ईसाइयों के दलाल जो है तो हम सबके ही बीच से लेकिन हमें बताते हैं कि भारत में तो कोई शिक्षा ही नहीं था कोई रोजगार नहीं था।
अमेरिका_के_प्रथम_राष्ट्रपति_जॉर्ज_वाशिंगटन 14 दिसंबर 1799 को मरे थे सर्दी और बुखार की वजह से उनके पास बुखार की दवा नहीं थी उस टाइम भारत_में_प्लास्टिक_सर्जरी_होती_थी और अंग्रेज प्लास्टिक सर्जरी सीख रहे थे हमारे गुरुकुल में अब कुछ वामपंथी लंपट बोलेंगे यह सरासर झूठ है।
तो वामपंथी लंपट गिरोह कर सकते है
ऑस्ट्रेलियन_कॉलेज_ऑफ_सर्जन_मेलबर्न में ऋषि_सुश्रुत_ऋषि की प्रतिमा "फादर ऑफ सर्जरी" टाइटल के साथ स्थापित है।
15 साल साल पहले का 2000 साल पहले का मंदिर मिलते हैं जिसको आज के वैज्ञानिक_और_इंजीनियर देखकर हैरान में हो जाते हैं कि मंदिर बना कैसे होगा अब हमें_इन_वामपंथी_लंपट लोगो से हमें पूछना चाहिए कि मंदिर बनाया किसने
ब्राह्मणों_ने_हमें पढ़ने नहीं दिया यह बात बताने वाले महान इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house में मिलेगा ।
भारत गरीब देश था चाहे है तो फिर दुनिया के तमाम आक्रमणकारी भारत ही क्यों आए हमें अमीर बनाने के लिए!
भारत में कोई रोजगार नहीं था।
भारत में पिछड़े दलितों को गुलाम बनाकर रखा जाता था लेकिन वामपंथी लंपट आपसे यह नहीं बताएंगे कि हम 1750 में पूरे दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा 24 परसेंट था
और सन उन्नीस सौ में एक परसेंट पर आ गया आखिर कारण क्या था?
अगर हमारे देश में उतना ही छुआछूत थे हमारे देश में रोजगार नहीं था तो फिर पूरे दुनिया के व्यापार में हमारा 24 परसेंट का व्यापार कैसे था?
यह वामपंथी लंपट यह नहीं बताएंगे कि कैसे अंग्रेजों के नीतियों के कारण भारत में लोग एक ही साथ 3000000 लोग भूख से मर गए कुछ दिन के अंतराल में ।
एक बेहद खास बात वामपंथी लंपट या अंग्रेज दलाल कहते हैं इतना ही भारत समप्रीत था इतना ही सनातन संस्कृति समृद्ध थी तो सभी अविष्कार अंग्रेजों ने ही क्यों किए हैं भारत के लोगों ने कोई भी अविष्कार क्यों नहीं किया?
उन वामपंथी लंपट लोगों को बताते चलें कि किया तो सब आविष्कार भारत में ही लेकिन उन लोगों ने चुरा करके अपने नाम से पेटेंट कराया नहीं तो एक बात बताओ भारत आने से पहले अंग्रेजों ने कोई एक अविष्कार किया हो तो उसका नाम ��ताओ एवर थोड़ा अपना दिमाग लगाओ कि भारत आने के बाद ही यह लोग आविष्कार कैसे करने लगे, उससे पहले क्यों नहीं करते थे।
हरे कृष्णा🙏🙏🙏
4 notes
·
View notes
Text
भारत की विज्ञान और प्रौद्योगिकी विरासत के लिए एक डिजिटल बढ़ावा...
भारत की विज्ञान और प्रौद्योगिकी विरासत के लिए एक डिजिटल बढ़ावा…
संस्कृति मंत्रालय ��े तहत एनसीएसएम ने एक बयान में कहा कि इसने छह संवादात्मक कहानियों का योगदान दिया है जो भारत की लंबी और गौरवशाली विज्ञान और प्रौद्योगिकी विरासत में कुछ महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि साझा करती हैं। एनसीएसएमए के महानिदेशक ए.डी. चौधरी ने कहा। विज्ञापन देना एक बटन के क्लिक पर, कोई भी ‘सिंधु संस्कृति’, ‘आयुर्वेद: भारतीय चिकित्सा का योगदान’, ‘सुश्रुत संहिता: प्राचीन भारतीय सर्जिकल ज्ञान’,…
View On WordPress
0 notes
Text
उत्तराखंड: स्वास्थ्य मंत्री का बड़ा फैसला, ओथ की जगह ‘महर्षि चरक शपथ’ लेंगे मेडिकल छात्र
उत्तराखंड: स्वास्थ्य मंत्री का बड़ा फैसला, ओथ की जगह ‘महर्षि चरक शपथ’ लेंगे मेडिकल छात्र
देहरादून: राज्य के मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों में दीक्षा सत्रारंभ के अवसर पर हिप्पोक्रेटिक शपथ की बजाय छात्र-छात्राएं अब ‘महर्षि चरक शपथ’ लेंगे, जो भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के सर्वोच्च ग्रंथ चरक संहिता से ली जायेगी। प्रदेश के प्रत्येक मेडिकल शिक्षण संस्थानों में भारतीय चिकित्सा पद्धति की महान विभूतियों चरक, सुश्रुत एवं धन्वंतरि की…
View On WordPress
0 notes
Text
Adhimantha | अधिमंथ : Glaucoma - Symptoms, Treatment
Adhimantha | अधिमंथ : Glaucoma – Symptoms, Treatment
Adhimantha also known as Glaucoma, is a group of conditions that have a characteristic optic neuropathy associated with visual field defects and elevated intraocular pressure. संहिताओं में इसका वर्णन निम���न आचार्यों ने किया है:- सुश्रुत संहिता उत्तरतंत्र –6 (सर्वगतरोगविज्ञानीयध्याय)9 (वाताभिष्यन्द- अधिमन्थप्रतिषेध)10 (पित्ताभिष्यन्दप्रतिषेध)11 (श्लेष्माभिष्यन्दप्रतिषेध)12…
View On WordPress
#Acquired glaucoma#Adhimanth#Adhimantha#Adhimantha ashtanga hridayam#Adhimantha astang hridayam#Adhimantha astanga hridya#Adhimantha glaucoma#Adhimantha in Ayurveda#Adhimantha in hindi#Adhimantha ki chikitsa#Adhimantha management#Adhimantha sushrut samhita#Adhimantha vaidyanamah#Ayurvedic treatment of Adhimantha#Ayurvedic treatment of Glaucoma#Blood letting in Adhimantha#Causes of Glaucoma#Classification of Glaucoma#Complications of Glaucoma#Congenital Glaucoma#Define glaucoma#Definition of Glaucoma#Development of Glaucoma#Developmental glaucoma#Differential diagnosis in glaucoma#Drugs used in glaucoma#Epidemiology of Glaucoma#Etiology of Glaucoma#Filteration surgery in glaucoma#Full form of IOP in medical
0 notes
Text
Ayurveda (आयुर्वेद)
आयुर्वेद भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रणाली भारत में 5000 साल पहले उत्पन्न हुई थी। शब्द आयुर्वेद दो संस्कृत शब्दों 'आयुष' जिसका अर्थ जीवन है तथा 'वेद' जिसका अर्थ 'विज्ञान' है, से मिलकर बना है' अतः इसका शाब्दिक अर्थ है 'जीवन का विज्ञान'।
आयुर्वेद का क्या अर्थ है?
आयुर्वेद का प्रलेखन वेदों में वर्णित है। उसका विकास विभिन्न वैदिक मंत्रों से हुआ है, जिनमें संसार तथा जीवन, रोगों तथा औषधियों के मूल तत्व/दर्शन का वर्णन किया गया है।
आयुर्वेद का महत्व क्या है?
आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है जो की अनादि एवं शाश्वत है। जो शास्त्र या विज्ञान आयु का ज्ञान कराये उसे आयुर्वेद की संज्ञा दी गयी है। ... चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेद का प्रयोजन है स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य का संरक्षण करना एवं यदि व्यक्ति रुग्ण हो जाता है तो उसकी चिकित्सा करना।
आयुर्वेद के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा क्या है?
आयुर्वेद के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा
जिन कारकों के आधार पर व्यक्ति को स्वस्थ कहा जाता है, वे हैं दोषों का संतुलन (3 प्रमुख शारीरिक कारक), अग्नि (चयापचय स्वास्थ्य), धातु (ऊतक स्वास्थ्य), माला (उत्सर्जक कार्य), साथ ही साथ एक खुशहाल अवस्था जिसमे आत्मा, इंद्रिया (इंद्रिय अंग) और मानस (मन) का संतुलन हो।
आज के युग में आयुर्वेद का क्या महत्व है?
आयुर्वेद पांच हजार साल पुरानी चिकित्सा पद्धति है, जो हमारी आधुनिक जीवन शैली को सही दिशा देने और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी आदतें विकसित करने में सहायक ह��ती है। इसमें जड़ी बूटि सहित अन्य प्राकृतिक चीजों से उत्पाद, दवा और रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ तैयार किए जाते हैं।
आयुर्वेद कितने प्रकार के होते हैं?
इस पांच प्रकार की चिकित्सा, वमन, विरेचन, अनुवासन बस्ति, निरूह बस्ति तथा नस्य, को पंचकर्म कहा जाता है जो आयुर्वेद की अत्यन्त ही प्रसिद्ध तथा प्रचलित चिकित्सा है।
आयुर्वेद कितने साल पुराना है?
विभिन्न धार्मिक विद्वानों ने इसका रचना काल ५,००० से लाखों वर्ष पूर्व तक का माना है। इस संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थकार आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं।
0 notes
Text
🚩आशारामजी बापू ने 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस क्यों शुरू किया? 20 दिसंबर 2021
🚩तुलसी सम्पूर्ण धरा के लिए वरदान है, अत्यंत उपयोगी औषधि है; मात्र इतना ही नहीं, यह तो मानव जीवन के लिए अमृत है! यह केवल शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं, अपितु धार्मिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय एवं वैज्ञानिक आदि विभिन्न दृष्टियों से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
🚩एक ओर जहाँ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेद के ग्रंथों और पद्म पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि पुराणों तथा उपनिषदों व वेदों में भी तुलसी की महत्ता, उपयोगिता बतायी गयी है, वहीं दूसरी ओर यूनानी, होमियोपैथी एवं एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में भी तुलसी एक महत्त्वपूर्ण औषधि मानी गयी है तथा इसकी खूब-खूब स��ाहना की गयी है।
🚩विज्ञान ने विभिन्न शोधों के आधार पर माना है कि तुलसी एक बेहतरीन रोगाणुरोधी, तनावरोधी, दर्द-निवारक, मधुमेहरोधी, ज्वरनाशक, कैंसरनाशक, चिंता-निवारक, अवसादरोधी, विकिरण-रक्षक है। तुलसी इतने सारे गुणों से भरपूर है कि इसकी महिमा अवर्णनीय है।
पद्म पुराण में भगवान शिव कहते हैं, "तुलसी के सम्पूर्ण गुणों का वर्णन तो बहुत अधिक समय लगाने पर भी नहीं हो सकता।"
🚩अपने घर में, आस पड़ोस में अधिक-से-अधिक संख्या में तुलसी के पौधे लगाना-लगवाना माने हजारों-लाखों रूपयों का स्वास्थ्य खर्च बचाना है, पर्यावरण-रक्षा करना है।
हमारी संस्कृति में हर घर आँगन में तुलसी लगाने की परम्परा थी। संत विनोबाभावे की माँ बचपन में उन्हें तुलसी को जल देने के बाद ही भोजन देती थीं।
🚩पाश्चात्य अंधानुकरण के कारण जो लोग तुलसी की महिमा को भूल गये, अपनी सस्कृति के पूजनीय वृक्षों, परम्पराओं को भूलते गये और पाश्चात्य परम्पराओं व तौर तरीकों को अपनाते गये, वे लोग चिंता, तनाव, अशांति एवं विभिन्न शारीरिक-मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो गये।
इस घोर नैतिक पतन से व्यस्थित होकर हिन्दू संत आशारामजी बापू ने प्रेरणा दी कि तुलसी, पीपल, आँवला, नीम– इन लाभकारी वृक्षों के रोपण का अभियान चलाया जाय। प्रतिदिन तुलसी को जल देकर उसकी परिक्रमा करें, तुलसी पत्रों का सेवन करें। प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस मनायें।
🚩तुलसी की महत्ता जन-जन तक पहुँच सके और लोग इसका लाभ ले सकें इस उद्देश्य से बापू आशारामजी ने विश्वमांगल्य की दृष्टि से 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाने का आह्वान किया है।
🚩25 दिसम्बर को क्यों मनायें 'तुलसी पूजन दिवस'?
👉इन दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर पाश्चात्य अंधानुकरण से नशाखोरी, आत्महत्या आदि की वृद्धि होती जा रही है। तुलसी के उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में यह पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा।
🚩25 दिसंबर को न क्रिसमस मनायें और न ही बधाई दें; 25 दिसंबर को तुलसी पूजन करें और अपने परिचितों को तुलसी पूजन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं जरूर दें।
1 note
·
View note
Text
*🌞~ आज दिनांक - 07 जुलाई 2024*का हिन्दू पंचांग ~🌞*
https://chat.whatsapp.com/BsWPoSt9qSj7KwBvo9zWID
*⛅दिनांक - 07 जुलाई 2024*
*⛅दिन - रविवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायण*
*⛅ऋतु - वर्षा*
*⛅मास - आषाढ़*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - द्वितीया प्रातः 04:59 जुलाई 8 तक तत्पश्चात तृतीया*
*⛅��क्षत्र - पुष्य पूर्ण रात्रि जुलाई 08 तक*
*⛅योग - हर्षण रात्रि 02:13 जुलाई 08 तक तत्पश्चात वज्र*
*⛅राहु काल - शाम 05:48 से शाम 07:29 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:00*
*⛅सूर्यास्त - 07:29*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:36 से 05:18 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:18 से दोपहर 01:12*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:24 जुलाई 08 से रात्रि 01:06 जुलाई 08 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण - श्री जगन्नाथ रथ यात्रा, सर्वार्थ सिद्धि योग एवं रविपुष्य अमृत योग (सूर्योदय से 8 जुलाई सूर्योदय तक)*
*⛅विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹कर्णवेध संस्कार क्यों व कैसे ?🔹*
*🔸हिन्दू धर्म- संस्कारों में कर्णवेध (कान छेदना) संस्कार नौवाँ संस्कार है । बालकों व बालिकाओं की शारीरिक व्याधियों से रक्षा ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है ।*
*🔸'आयुर्वेद' (सुश्रुत संहिता, चिकित्सा स्थान : १९.२४) के अनुसार कान छेदने से अंत्रवृद्धि (inguinal hernia) होने की सम्भावना नहीं रहती ।*
*🔸यह मान्यता है कि कर्ण-छेदन करने से सूर्य की किरणें कानों के उन छिद्रों से प्रवेश पाकर सामने बालक-बालिका को तेज-सम्पन्न बनाती हैं । बालक के पहले दायें कान में और बाद में बायें कान में छेद करें तथा बालिका के पहले बायें कान में फिर दायें कान में छेद करें । बालिका के बायें नथुने में भी छेद करके आभूषण पहनाने का विधान है ।*
*🔸मस्तिष्क के दोनों भागों को विद्युत के प्रभावों से प्रभावशाली बनाने के लिए नाक और कानों में सोना पहनना लाभकारी माना गया है ।*
*🔹 रविवार विशेष🔹*
*🔸 रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
*🔸 रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*
*🔸 रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*
*🔸 रविवार सूर्यदेव का दिन है, इस दिन क्षौर (बाल काटना व दाढ़ी बनवाना) कराने से धन, बुद्धि और धर्म की क्षति होती है ।*
*🔸 रविवार को आँवले का सेवन नहीं करना चाहिए ।*
*🔸 स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए । इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं ।*
*🔸 रविवार के दिन पीपल के पेड़ को स्पर्श करना निषेध है ।*
*🔸 रविवार के दिन तुलसी पत्ता तोड़ना वर्जित है ।*
#akshayjamdagni #astroakshay #Hinduism
#bharat #hindi
#panchang #vedicastrology
#astrology
#rashifal #astrologypost
#vastutips #shorts
#ytshorts #youtubeshorts
#status
#lovequotes #follow
#instagram #like
#motivation #attitude #instagood
#quotes #followme
#follow4follow #sadquotes
#happy #song
#photography #whatsappstatus
#motivational motivational jyotishwithakshayg#tumblr milestone#akshayjamdagni#mahakal#panchang#hanumanji#rashifal#nature
0 notes
Text
Shilajit Benifits in Hindi – Best 10 फाईदे,उपयोग
शिलाजीत को भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में सबसे महत्वपूर्ण पदार्थों में से एक माना जाता है। इसका उपयोग हजारों वर्षों से लंबी उम्र और कई अन्य बीमारियों के लिए किया जाता रहा है। शिलाजीत एक मोटे, गहरे भूरे र��ग का खनिज है जो गर्मी के तापमान के दौरान हिमालय के पहाड़ों में दरारों से निकलता है। शिलाजीत सदियों पुराने, विघटित पौधों से बना है जो विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों का एक शक्तिशाली स्रोत हैं। यह एक शक्तिशाली अनुकूलन है, जो सभी प्रकार के मानसिक और शारीरिक तनाव से बचाने में मदद करता है।
शिलाजीत एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला खनिज है जो भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय और हिंदुकुश पर्वतमाला में पाया जाता है। यह हजारों वर्षों में पौधों और पौधों की सामग्री के अपघटन द्वारा गठित एक दुर्लभ पदार्थ है। शिलाजीत एक गाढ़ा और चिपचिपा पदार्थ है।
शिलाजीत का उपयोग हजारों वर्षों से भारत की पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता रहा है। शिलाजीत का उल्लेख चक्र संहिता और सुश्रुत संहिता में भी मिलता है। इन ग्रंथों में इसे ‘सोने जैसा धातु का पत्थर’ और ‘चिपचिपा पदार्थ’ बताया गया है।
आयुर्वेद में, शिलाजीत को रसायन (मजबूत करने वाला) कहा जाता है क्योंकि यह समग्र स्वास्थ्य में सुधार करता है। शिलाजीत का अर्थ है ‘पहाड़ों को जीतने वाला और दुर्बलता को दूर करने वाला’। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि शिलाजीत सेहत के लिए कितना फायदेमंद है।
क्या आपको ये पता है?
आयुर्वेदिक डॉक्टरों के अनुसार शिलाजीत से गोमूत्र जैसी गंध आती है। शुद्ध शिलाजीत का सेवन महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है।
शिलाजीत के बारे में कुछ तथ्य: Shilajit Benifits in Hindi
लैटिन नाम: Asphaltum punjabianum
सामान्य नाम: डामर, खनिज पिच, खनिज मोम, शिलाजीत
संस्कृत नाम: शिलाजीत, शिलाजतु
भौगोलिक विवरण: शिलाजीत ज्यादातर हिमालय के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर में पाया जाता है। शिलाजीत भारत के अलावा चीन, नेपाल, पाकिस्तान, तिब्बत और अफगानिस्तान में पाया जाता है।
पूरे जानकारी केलिए आगे पढे
0 notes
Text
अद्भुत गुणों से भरपूर इस आयुर्वेदिक,खट्टी-मीठी घास का नाम इसके फायदे है
अद्भुत गुणों से भरपूर इस आयुर्वेदिक,खट्टी-मीठी घास का नाम इसके फायदे है
यह घास स्वाद में अनूठा होता है और कई अद्भुत गुणों से भरपूर होता है इस घास का नाम “चांगेरी” है इसकी बनावट फूलों के समान होती है इसका उपयोग प्राचीन सम�� से ही पेट की बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है, तो चलिए शुरू करते हैं। चांगेरी का आयुर्वेदिक, चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी इसका वर्णन किया हुआ है। इसके पत्ते एसिडिक प्रकृति के होते हैं सूजन आने पर चांगेरी का सेवन करना चाहिए जल्दी…
View On WordPress
0 notes
Text
पतंजलि आयुर्वेद अस्पताल हरिद्वार में होता है गंभीर बीमारी भगन्दर का सफल इलाज
पतंजलि आयुर्वेद अस्पताल हरिद्वार में होता है गंभीर बीमारी भगन्दर का सफल इलाज
निखिल दुबे : भगन्दर गुदा क्षेत्र में होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें गुदा द्वार के आस पास एक फुंसी या फोड़ा जैसा बन जाता है. जो एक पाइपनुमा रास्ता बनता हुआ गुदामार्ग या मलाशय में खुलता है. शल्य चिकित्सा के प्राचीन भारत के आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर रोग की गणना आठ ऐसे रोगों में की है जिन्हें कठिनाई से ठीक किया जा सकता है. इन आठ रोगों को उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में ‘अष्ठ महागद’…
View On WordPress
#HaridwarPatanjali#PatanjaliHospital#Acharya Bal krishna#Fistula tretment patanjali#Patanjali hospital#Swami ramdev
0 notes
Text
तुलसी, सम्पूर्ण धरा के लिए वरदान
तुलसी, सम्पूर्ण धरा के लिए वरदान
तुलसी सम्पूर्ण धरा के लिए वरदान है, अत्यंत उपयोगी औषधि है, मात्र इतना ही नहीं, यह तो मानव जीवन के लिए अमृत है ! यह केवल शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं, अपितु धार्मिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय एवं वैज्ञानिक आदि विभिन्न दृष्टियों से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक ओर जहाँ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेद के ग्रंथों, पद्म पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि पुराणों तथा उपनिषदों एवं…
View On WordPress
0 notes
Text
Kshar and kshar karma | क्षार व क्षार कर्म : Preparation, Treatment
Kshar and kshar karma | क्षार व क्षार कर्म : Preparation, Treatment
दुष्ट त्वचा, मांस आदि को स्वस्थान से दूर करता, काट कर हटाता है, उसे क्षार (Kshar) कहते हैं। बहुत से आचार्यों ने इसका वर्णन अपनी संहिताओं में किया है:- सुश्रुत संहिता = सूत्र स्थान 11, उत्तर तंत्र 42, गुल्म चिकित्सा अध्यायअष्टांग संग्रह = सूत्र स्थान 39अष्टांग हृदय = सूत्र स्थान 30चक्रदत्त अध्याय 5भैषज्य रत्नावली 9 क्षार: क्षार निरूक्ति:- ‘क्षर स्यन्दने‘ ‘क्षण हिंसायां, धातु से क्षार (Kshar)…
View On WordPress
#Anupaan of kshar#Best kshara#Contraindications of kshar karma#Dosage of kshar#Dose of kshara#How to increase the potency of kshar#How to make kshar#How to prepare kshar#How to prepare kshar sutra#How to prepare kshara tailam#How to use kshar#How to use kshar sutra#Importance of kshar karma#Indications of kshar karma#Kshaar#Kshar application#Kshar ayogya#Kshar dagdha#Kshar dagdha atiyog lakshan#Kshar dagdha heen lakshan#Kshar dagdha lakshan#Kshar dagdha samyak lakshan#Kshar dagdha treatment#Kshar dosha#Kshar guna#Kshar gutika#Kshar in Hindi#Kshar jal#Kshar kalpana#Kshar karm
0 notes