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यह शख्स आयुर्वेद से करता है पेड़ों का इलाज, 100 साल से भी पुराने ठूंठ में तब्दील पेड़ों को दोबारा किया हरभरा
चैतन्य भारत न्यूज कोट्टायम. आपने पेड़ लगाने वाले, उनकी देखरेख करने वाले कई लोगों को देखा होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहें हैं जो मृत हो चुके पेड़ को जिंदा करते हैं। जी हां...केरल के 51 वर्षीय के. बीनू ऐसे शख्स हैं, जो आयुर्वेद के जरिए पेड़-पौधों का इलाज करते हैं। पेड़ों के संरक्षण के लिए वे बीते 10 सालों से जुटे हुए हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
खबरों के मुताबिक, बीनू पेशे से शिक्षक है और व�� अभी तक 100 साल से भी पुराने कई ऐसे पेड़ों को फिर से जिंदा कर चुके हैं जो ठूंठ हो गए थे। खास बात यह है कि देशभर के लोग अपने पेड़ों की बीमारी के बारे में उन्हें बताते हैं और बीनू उनका इलाज करते हैं-वह भी मुफ्त। बीनू ने पेड़ों को बचाने के लिए वृक्ष आयुर्वेद से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो अब केरल के स्कूली कोर्स में भी शामिल की जा रही हैं।
बीनू का कहना है कि, वृक्ष आयुर्वेद में पेड़ों की हर बिमारी का इलाज बताया गया है, इनमें दीमक के टीले की मिट्टी, धान के खेतों की मिट्टी प्रमुख है। गोबर, दूध, घी और शहद का इस्तेमाल भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि, केले के तने का रस और भैंस के दूध का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो पेड़ों के घाव में महीनों तक भैंस के दूध की पट्टी भी लगानी पड़ती है।
बीनू ने बताया कि, सुबह लोगों से उनके वृक्षों की बीमारी सुनते हैं और स्कूल से लौटते समय वृक्षों का इलाज करते हैं। शनिवार-रविवार या फिर छुट्टी के दिन वे सुबह से ही वृक्षों के इलाज के लिए मौके पर पहुंच जाते हैं। उन्होंने बताया कि, यूपी के प्रयागराज और कौशांबी में कई एकड़ में अमरूदों के बाग में फैली बीमारी ठीक करने में भी मदद की। इसके अलावा उन्होंने 15 साल पहले एक अधजले पेड़ का इलाज कर उसे हराभरा बना दिया जिसके बाद लोग लोगों ��े उन्हें ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ की ख्याति दिला दी। ज्यादातर लोग बीनू को अब 'पेड़ वाले डॉक्टर' के नाम से ही जानते हैं।
बीनू ��े मुताबिक, उनका ज्यादातर समय दीमक के टीले की मिट्टी ढूंढने में निकल जाता है। वे दीमक के टीले की मिट्टी से ही बीमार पेड़ों का इलाज करते हैं। उन्होंने बताया कि, '60 साल पहले तक वृक्ष आयुर्वेद काफी प्रचलित था। महर्षि चरक और सुश्रुत ने भी ग्रंथों में पेड़ों की बीमारी का उल्लेख किया है। मैंने अपनी कोशिशों के जरिए सैकड़ों वृक्ष बचाए, यही मेरा उद्देश्य है।' Read the full article
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यह शख्स आयुर्वेद से करता है पेड़ों का इलाज, 100 साल से भी पुराने ठूंठ में तब्दील पेड़ों को दोबारा किया हरभरा
चैतन्य भारत न्यूज कोट्टायम. आपने पेड़ लगाने वाले, उनकी देखरेख करने वाले कई लोगों को देखा होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहें हैं जो मृत हो चुके पेड़ को जिंदा करते हैं। जी हां...केरल के 51 वर्षीय के. बीनू ऐसे शख्स हैं, जो आयुर्वेद के जरिए पेड़-पौधों का इलाज करते हैं। पेड़ों के संरक्षण के लिए वे बीते 10 सालों से जुटे हुए हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
खबरों के मुताबिक, बीनू पेशे से शिक्षक है और वह अभी तक 100 साल से भी पुराने कई ऐसे पेड़ों को फिर से जिंदा कर चुके हैं जो ठूंठ हो गए थे। खास बात यह है कि देशभर के लोग अपने पेड़ों की बीमारी के बारे में उन्हें बताते हैं और बीनू उनका इलाज करते हैं-वह भी मुफ्त। बीनू ने पेड़ों को बचाने के लिए वृक्ष आयुर्वेद से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो अब केरल के स्कूली कोर्स में भी शामिल की जा रही हैं।
बीनू का कहना है कि, वृक्ष आयुर्वेद में पेड़ों की हर बिमारी का इलाज बताया गया है, इनमें दीमक के टीले की मिट्टी, धान के खेतों की मिट्टी प्रमुख है। गोबर, दूध, घी और शहद का इस्तेमाल भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि, केले के तने का रस और भैंस के दूध का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो पेड़ों के घाव में महीनों तक भैंस के दूध की पट्टी भी लगानी पड़ती है।
बीनू ने बताया कि, सुबह ��ोगों से उनके वृक्षों की बीमारी सुनते हैं और स्कूल से लौटते समय वृक्षों का इलाज करते हैं। शनिवार-रविवार या फिर छुट्टी के दिन वे सुबह से ही वृक्षों के इलाज के लिए मौके पर पहुंच जाते हैं। ���न्होंने बताया कि, यूपी के प्रयागराज और कौशांबी में कई एकड़ में अमरूदों के बाग में फैली बीमारी ठीक करने में भी मदद की। इसके अलावा उन्होंने 15 साल पहले एक अधजले पेड़ का इलाज कर उसे हराभरा बना दिया जिसके बाद लोग लोगों ने उन्हें ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ की ख्याति दिला दी। ज्यादातर लोग बीनू को अब 'पेड़ वाले डॉक्टर' के नाम से ही जानते हैं।
बीनू के मुताबिक, उनका ज्यादातर समय दीमक के टीले की मिट्टी ढूंढने में निकल जाता है। वे दीमक के टीले की मिट्टी से ही बीमार पेड़ों का इलाज करते हैं। उन्होंने बताया कि, '60 साल पहले तक वृक्ष आयुर्वेद काफी प्रचलित था। महर्षि चरक और सुश्रुत ने भी ग्रंथों में पेड़ों की बीमारी का उल्लेख किया है। मैंने अपनी कोशिशों के जरिए सैकड़ों वृक्ष बचाए, यही मेरा उद्देश्य है।' Read the full article
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