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#फेमनिस्म
allgyan · 4 years
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फेमनिस्म और भारतीय नारीवाद -
नारीवाद एक बौद्धिक, दार्शनिक और राजनीतिक सम्वाद श्रंखला है जिसका केन्द्र में महिलाओं के लिए समान अधिकार और कानूनी संरक्षण का विचार निहित होता है। नारीवाद की संकल्पना में विभिन्न आन्दोलन, सिद्धान्त, दर्शन आदि समाहित होते है । जो लैिगक असमानता, नारी अधिकार और नारी हितों से संबद्ध होते है ।यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि भारतीय महिलाओं को अपने अधिकारों के कानूनी संरक्षण के लिए वो संघर्ष नहीं करना पड़ा जो पश्चिमी देशों की महिलाओं ने किया। भारतीय नारीवाद भी को इसके सिद्धांत एवं दर्शन मुख्य रूप से पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित रहे हैं। ये कह पाना तो मुश्किल है |हालाँकि ज़मीनी स्तर पर स्त्रीवादी विमर्श हर देश एवं भौगोलिक सीमाओं मे अपने स्तर पर सक्रिय रहती हैं और हर क्षेत्र के स्त्रीवादी विमर्श की अपनी खास समस्याएँ होती हैं।
भारत में नारीवादी आन्दोलन  को पुरषों ने प्रारंभ किया
उपनिवेशी शासन के आगमन के साथ ही प्रजातंत्र, समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की अवधारणा को बल प्राप्त हुआ। राष्ट्रवाद और भेदभावपूर्ण परंपराओं के आत्मविश्लेषण ने जाति व्यवस्था और लैंगिक समानता संबंधी सामाजिक सुधारों के आन्दोलन को जन्म दिया । भारत में प्रथम चरण के नारीवादी आन्दोलन को पुरूषो (जैसे की राजाराम मोहन राय ) ने प्रारंभ किया ।इस आन्दोलन के केन्द्र में सती प्रथा, विधवा विवाह, महिला साक्षरता, महिला संपत्ति अधिकार आदि ऐसे मुद्दे थे जिनका कानूनी तौर पर समाधान करने के प्रयास किये गये ।
नारीवाद की नींव-
ऐसा माना जाता है की नारीवाद की एक झलक प्राचीन रोम में 3rd सेंचुरी में देखने को मिला था |जब एक महिलाओं का एक समूह मोर्चाबंदी की थी एक कानून को निरस्त करने के लिए जो उस समय की सीमित महिलाओं को ही को महंगे सामान प्रयोग करने का अधिकार देता था |वैसे तो ये एक अलग ही घटना थी |जिसको पहली बार क्रिस्टीन दे पिसान ने सबकी नज़र में लाया था |वो एक बहुत बड़े थिंकर थी  |लेकिन ये भावनाये उनके लिखे हुए निबंधों में दीखता जरूर था |महिलाओं के शिक्षा के लिए उन्हें कई आंदोलन भी किये है |उसका बाद नारीवाद को बढ़ावा देने के लिए एक और फ्रेंच लेखिका ने इसको आगे बढ़ाया |
ओलेम्प डे गॉज एक फ्रांसीसी नाटककार और राजनीतिक कार्यकर्ता थे जिनके लेखन महिलाओं के अधिकारों और उन्मूलन पर विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी -"Declaration of the Rights of Woman and of the [Female] सिटीजन" ये बात 1791 की है | ऐसा माना जाता है की पहले यूरोपियन कांटिनेंट में ही इसका विकास हुआ था |
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट नारीवाद का झंडा बुलंद किया -
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट 18 वीं शताब्दी की ब्रिटिश प्रोटो-फेमिनिस्ट द्वारा लिखित राजनीतिक और नैतिक विषयों पर महिलाओं के अधिकारों का उल्लेख किया था और नारीवादी दर्शन की बात की थी। A Vindication of the Rights of Woman  ये उन्होंने 1792 में लिखा था |उनका मानना था की महिलाओं को भी समानता का अधिकार मिले | अगर वो खुद को पुरषों से कम समझती है तो उनमे शिक्षा की कमी है |ये पहला इंग्लिश भाषा में टेक्स्ट था |उसके बाद अमेरिकन चुनाव में पहली बार खड़ी एक महिला ने सबका अपनी ओर ध्यान खींचा उनका नाम था -विक्टोरिया वुडहल |उन्होंने इक्वल राइड पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 18वें राष्ट्रपति उल्सिस एस ग्रांट के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह बड़े अंतर से चुनाव हार गईं क्योंकि तब अमेरिकी समाज में सभी महिलाओं को न तो मतदान करने का अधिकार था और न ही उन्हें पुरुषों के बराबरी का समझा जाता था।
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allgyan · 4 years
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फेमनिस्म और भारतीय नारीवाद -
नारीवाद एक बौद्धिक, दार्शनिक और राजनीतिक सम्वाद श्रंखला है जिसका केन्द्र में महिलाओं के लिए समान अधिकार और कानूनी संरक्षण का विचार निहित होता है। नारीवाद की संकल्पना में विभिन्न आन्दोलन, सिद्धान्त, दर्शन आदि समाहित होते है । जो लैिगक असमानता, नारी अधिकार और नारी हितों से संबद्ध होते है ।यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि भारतीय महिलाओं को अपने अधिकारों के कानूनी संरक्षण के लिए वो संघर्ष नहीं करना पड़ा जो पश्चिमी देशों की महिलाओं ने किया। भारतीय नारीवाद भी को इसके सिद्धांत एवं दर्शन मुख्य रूप से पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित रहे हैं। ये कह पाना तो मुश्किल है |हालाँकि ज़मीनी स्तर पर स्त्रीवादी विमर्श हर देश एवं भौगोलिक सीमाओं मे अपने स्तर पर सक्रिय रहती हैं और हर क्षेत्र के स्त्रीवादी विमर्श की अपनी खास समस्याएँ होती हैं।
भारत में नारीवादी आन्दोलन  को पुरषों ने प्रारंभ किया
उपनिवेशी शासन के आगमन के साथ ही प्रजातंत्र, समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की अवधारणा को बल प्राप्त हुआ। राष्ट्रवाद और भेदभावपूर्ण परंपराओं के आत्मविश्लेषण ने जाति व्यवस्था और लैंगिक समानता संबंधी सामाजिक सुधारों के आन्दोलन को जन्म दिया । भारत में प्रथम चरण के नारीवादी आन्दोलन को पुरूषो (जैसे की राजाराम मोहन राय ) ने प्रारंभ किया ।इस आन्दोलन के केन्द्र में सती प्रथा, विधवा विवाह, महिला साक्षरता, महिला संपत्ति अधिकार आदि ऐसे मुद्दे थे जिनका कानूनी तौर पर समाधान करने के प्रयास किये गये ।
नारीवाद की नींव-
ऐसा माना जाता है की नारीवाद की एक झलक प्राचीन रोम में 3rd सेंचुरी में देखने को मिला था |जब एक महिलाओं का एक समूह मोर्चाबंदी की थी एक कानून को निरस्त करने के लिए जो उस समय की सीमित महिलाओं को ही को महंगे सामान प्रयोग करने का अधिकार देता था |वैसे तो ये एक अलग ही घटना थी |जिसको पहली बार क्रिस्टीन दे पिसान ने सबकी नज़र में लाया था |वो एक बहुत बड़े थिंकर थी  |लेकिन ये भावनाये उनके लिखे हुए निबंधों में दीखता जरूर था |महिलाओं के शिक्षा के लिए उन्हें कई आंदोलन भी किये है |उसका बाद नारीवाद को बढ़ावा देने के लिए एक और फ्रेंच लेखिका ने इसको आगे बढ़ाया |
ओलेम्प डे गॉज एक फ्रांसीसी नाटककार और राजनीतिक कार्यकर्ता थे जिनके लेखन महिलाओं के अधिकारों और उन्मूलन पर विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी -"Declaration of the Rights of Woman and of the [Female] सिटीजन" ये बात 1791 की है | ऐसा माना जाता है की पहले यूरोपियन कांटिनेंट में ही इसका विकास हुआ था |
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट नारीवाद का झंडा बुलंद किया -
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट 18 वीं शताब्दी की ब्रिटिश प्रोटो-फेमिनिस्ट द्वारा लिखित राजनीतिक और नैतिक विषयों पर महिलाओं के अधिकारों का उल्लेख किया था और नारीवादी दर्शन की बात की थी। A Vindication of the Rights of Woman  ये उन्होंने 1792 में लिखा था |उनका मानना था की महिलाओं को भी समानता का अधिकार मिले | अगर वो खुद को पुरषों से कम समझती है तो उनमे शिक्षा की कमी है |ये पहला इंग्लिश भाषा में टेक्स्ट था |उसके बाद अमेरिकन चुनाव में पहली बार खड़ी एक महिला ने सबका अपनी ओर ध्यान खींचा उनका नाम था -विक्टोरिया वुडहल |उन्होंने इक्वल राइड पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 18वें राष्ट्रपति उल्सिस एस ग्रांट के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह बड़े अंतर से चुनाव हार गईं क्योंकि तब अमेरिकी समाज में सभी महिलाओं को न तो मतदान करने का अधिकार था और न ही उन्हें पुरुषों के बराबरी का समझा जाता था।
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allgyan · 4 years
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फेमनिस्म :भारतीय नारीवाद क्या केवल पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित है ?
फेमनिस्म और भारतीय नारीवाद -
नारीवाद एक बौद्धिक, दार्शनिक और राजनीतिक सम्वाद श्रंखला है जिसका केन्द्र में महिलाओं के लिए समान अधिकार और कानूनी संरक्षण का विचार निहित होता है। नारीवाद की संकल्पना में विभिन्न आन्दोलन, सिद्धान्त, दर्शन आदि समाहित होते है । जो लैिगक असमानता, नारी अधिकार और नारी हितों से संबद्ध होते है ।यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि भारतीय महिलाओं को अपने अधिकारों के कानूनी संरक्षण के लिए वो संघर्ष नहीं करना पड़ा जो पश्चिमी देशों की महिलाओं ने किया। भारतीय नारीवाद भी को इसके सिद्धांत एवं दर्शन मुख्य रूप से पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित रहे हैं। ये कह पाना तो मुश्किल है |हालाँकि ज़मीनी स्तर पर स्त्रीवादी विमर्श हर देश एवं भौगोलिक सीमाओं मे अपने स्तर पर सक्रिय रहती हैं और हर क्षेत्र के स्त्रीवादी विमर्श की अपनी खास समस्याएँ होती हैं।
भारत में नारीवादी आन्दोलन  को पुरषों ने प्रारंभ किया
उपनिवेशी शासन के आगमन के साथ ही प्रजातंत्र, समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की अवधारणा को बल प्राप्त हुआ। राष्ट्रवाद और भेदभावपूर्ण परंपराओं के आत्मविश्लेषण ने जाति व्यवस्था और लैंगिक समानता संबंधी सामाजिक सुधारों के आन्दोलन को जन्म दिया । भारत में प्रथम चरण के नारीवादी आन्दोलन को पुरूषो (जैसे की राजाराम मोहन राय ) ने प्रारंभ किया ।इस आन्दोलन के केन्द्र में सती प्रथा, विधवा विवाह, महिला साक्षरता, महिला संपत्ति अधिकार आदि ऐसे मुद्दे थे जिनका कानूनी तौर पर समाधान करने के प्रयास किये गये ।
नारीवाद की नींव-
ऐसा माना जाता है की नारीवाद की एक झलक प्राचीन रोम में 3rd सेंचुरी में देखने को मिला था |जब एक महिलाओं का एक समूह मोर्चाबंदी की थी एक कानून को निरस्त करने के लिए जो उस समय की सीमित महिलाओं को ही को महंगे सामान प्रयोग करने का अधिकार देता था |वैसे तो ये एक अलग ही घटना थी |जिसको पहली बार क्रिस्टीन दे पिसान ने सबकी नज़र में लाया था |वो एक बहुत बड़े थिंकर थी  |लेकिन ये भावनाये उनके लिखे हुए निबंधों में दीखता जरूर था |महिलाओं के शिक्षा के लिए उन्हें कई आंदोलन भी किये है |उसका बाद नारीवाद को बढ़ावा देने के लिए एक और फ्रेंच लेखिका ने इसको आगे बढ़ाया |
ओलेम्प डे गॉज एक फ्रांसीसी नाटककार और राजनीतिक कार्यकर्ता थे जिनके लेखन महिलाओं के अधिकारों और उन्मूलन पर विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी -"Declaration of the Rights of Woman and of the [Female] सिटीजन" ये बात 1791 की है | ऐसा माना जाता है की पहले यूरोपियन कांटिनेंट में ही इसका विकास हुआ था |
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट नारीवाद का झंडा बुलंद किया -
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट 18 वीं शताब्दी की ब्रिटिश प्रोटो-फेमिनिस्ट द्वारा लिखित राजनीतिक और नैतिक विषयों पर महिलाओं के अधिकारों का उल्लेख किया था और नारीवादी दर्शन की बात की थी। A Vindication of the Rights of Woman  ये उन्होंने 1792 में लिखा था |उनका मानना था की महिलाओं को भी समानता का अधिकार मिले | अगर वो खुद को पुरषों से कम समझती है तो उनमे शिक्षा की कमी है |ये पहला इंग्लिश भाषा में टेक्स्ट था |उसके बाद अमेरिकन चुनाव में पहली बार खड़ी एक महिला ने सबका अपनी ओर ध्यान खींचा उनका नाम था -विक्टोरिया वुडहल |उन्होंने इक्वल राइड पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 18वें राष्ट्रपति उल्सिस एस ग्रांट के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह बड़े अंतर से चुनाव हार गईं क्योंकि तब अमेरिकी समाज में सभी महिलाओं को न तो मतदान करने का अधिकार था और न ही उन्हें पुरुषों के बराबरी का समझा जाता था।
पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/386HMWD
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allgyan · 4 years
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सेक्सिस्म या लिंगवाद टर्म कब हुआ पहला प्रयोग -
सेक्सिस्म या लिंगवाद नाम से पता चलता है |जो भी लिंग के आधार पर भेद करता है |इसका आशय है की लिंगवाद किसी व्यक्ति के लिंग के आधार पर पक्षपात या भेदभाव को मानना है|सेक्सिस्म जो टर्म है उसका सबसे पहले 1960 में प्रयोग हुआ ये दौर स्त्रीवाद का था |पहले के लोग जो सेक्सिस्म या लिंगवाद के हिमायती थे उनका मानना था की एक लिंग श्रेष्ट होता है दूसरे के अपेक्षा |और जबरदस्ती वो नियम कानून लगाते है की लड़का क्या कर सकता है और लड़की क्या नहीं कर सकती है |
फीमेल को दोयम दर्जा का समझते है |ऐसा शुरुआत हर धर्म में देखा गया है | आज के समाज में भी जो अधिकार लड़के को जन्मते मिला जाता है लेकिन लड़कियों को उन अधिकारों पाने के लिए वर्षों संघर्ष करना पड़ा  |ऐसे समाज से में बहुत से अभी भी भेद है जो समाज में व्याप्त है |ये बस उस दौर की कोशिश थी पितृसत्तात्मकता को मनाये रखने के लिए |
पूंजीवाद और सेक्सिस्म -
पहला का दौर और समाज की संरचना ऐसे बना था |की उसमे ये दुसंगति रहा करती थी | ये एक जरिया थी किसी का भी आर्थिक शोषण का | क्योकि समाज ये विसंगति रहेगी तो समाज के एक बड़ी आबादी को उनकी बहुत मांगों से दूर किया जा सकता था |और इसलिए पूंजीवाद समाज का लाभ के आलावा कोई चरित्र नहीं होता है |पूंजीवाद की उस समय की मांग यही थी | और आज के दौर में भी आप इसे देख सकते है | जैसा मैंने कहा आज कई ऐसे देश में सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा मिला हुआ है | ये पूंजीवाद ही तो है जो महिला को एक उत्पाद के रूप में बेच रही है | हद तो तब है की आप कोई विज्ञापन देख लीजिये |जो भी उत्पाद जो महिलाये अपने प्रयोग में लाती है उनका तो महिला विज्ञापन कर रही है साथ साथ में पुरषों के प्रयोग की वस्तु का भी महिला ही विज्ञापन कर रही है |उनके शरीर को दिखाकर कई उत्पाद बेचे जा रहे है |
सेक्सिस्म या लिंगवाद क्या आर्थिक शोषण का कारण -
क्योकि बाज़ारवाद भी इसका एक प्रमुख कारण है | जो कुछ ऐसी परिस्थितयां बनायीं रखना चाहती है जिससे ऐसी स्तिथि बनी रही है | इससे उन्हें आर्थिक शोषण करने का अधिकार मिलता है | उन्हें लाभ होता है | आप देखेंगे आज भी बॉलीवुड में मेल एक्टर को फीमेल एक्ट्रेस से हमेशा ज्यादा वेतन मिलता है |कई फीमेल एक्ट्रेस इसके लिए आवाज उठा चुकी है | एक ही कंपनी है जो अमेरिका में वो गोरा करना वाला प्रोडक्ट नहीं बेचने की हिम्मत जुटा पा रही है लेकिन वही आपके देश में धड़ल्ले से बेच रही है |वही कंपनी है विकसीत देशों के हर रूल रेगुलेशन मान रही है लेकिन आपके देश में ऐसा नहीं कर रही है | समाज में वैसे तो कई बुराई है लेकिन इसके पीछे लाभ ही मुख्या कारण है जो अक्सर आपके सामने गुज़र जाता है और आपको दीखता नहीं है |
लिंगवाद को खतम करने के लिए संघर्ष -
लिंगवाद को बनाया रखना के कारण उन तबको को समाज में हिस्सेदारी से भी है |महिलाओं को बहुत दिन बाद वोट देने का अधिकार मिला |इसका साफ़ और सीधा मतलब की आप उससे भी नहीं चुन सकते जो आपके देश को चलाएगा |और कानून बनाएगा | इसलिए मुफ्त कोई चीज नहीं मिलती है संघर्षों से छीनना पड़ता है | रही बात समाज में जब ऐसी बुराई धीरे -धीरे महिलाये लड़कर ख़तम कर रही है वो महिलाये और संघठन काबिले तारीफ़ भी है |जैसे आप ने देखा एक प्राइवेट कंपनी ने माहवारी के लिए ऑफ का प्रयोजन अपनी कंपनी में जोड़ा |भारत युवा लोगों का देश है इसलिए हमे भी इन बारे में विचार जरूर करना चाहिए | सेक्सिस्म या लिंगवाद को एकदम भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए |
महिलाये हवाई जहाज तक उड़ा रही है -
कई बार आप देख्नेगे की महिलाओं के लिए पुरष कहते मिल जायेंगे की -ये महिलाये अच्छी कार नहीं चला सकती और अच्छा नेता नहीं बन सकती क्योकि उनके अंदर इमोशंस होते है वो किसी भी कंपनी को लीड नहीं कर सकती है | लेकिन कौन उन्हें बताया की आज के दौर की लड़किया हवाई जहाज उड़ा रही है | भारत की महिला प्रधानमंत्री के बारे में इंदिरा गाँधी के बारे में नहीं जानते है तो उन्हें जानना चाहिए |एक समय ऐसा भी था जब देश सब प्रतिष्ठ बैंकों में महिला ही उनके सबसे बड़े पदों पर आसीन थी |ये मानसिकता को छोर के खुद के अंदर समनता का भाव लाना चाहिए |मेरी उन लोगों से बस अपील है |
क्या बोलियाँ भी लिंगवाद को बढ़ावा देती है ?
समाज में बहुत दिनों से ऐसे भेदभाव होते रहने से हमारी आपकी बोली में भी सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा दिया जाता रहा है | जैसा कहा जाता रहा चूड़ी पहन लो , ये एक सेक्सिस्म शब्द जो हम अक्सर बोलते है जिसे हमे पता नहीं है लेकिन आपको बताता हूँ |इसमें कमजोरता या कहे हीनता को दर्शाने के लिए पुरषों को कहा जाता है | इसका क्या मतलब है चुडिया पहनने वाले कमजोर होते है और चुडिया लड़किया का ही गहना है |ऐसे कई शब्द है जो हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते है |इसलिए इन चीजों को कृपया ध्यान दे |लेकिन कुछ ऐसे भी है जो इन सेक्सिस्म या लिंगवाद और फेमनिस्म को अपने फायदे के लिए प्रयोग लाते है | जहा भी इससे इनके कुछ सुविधा मिलती है उसको उठाती है |और फिर आपको बाहर फेमिनिस्म का झंडा उठाते दिख जाती है |ऐसे लोगों से बचें जो कभी दुखिया नारी तो कभी शशक्त महिला बनके उभरती है |शायद ये बात आपको लोग को कड़वी लग सकती है लेकिन मैं अपने अनुभव से आपको बताया है |और फेमिनिस्म का सपोर्ट करे लिंगवाद को खतम करने की कोशिश करे |
#हीनता को दर्शाने के#स्त्रीवाद#सेक्सिस्मयालिंगवादकोबढ़ावा#सेक्सिस्मयालिंगवाद#सेक्सिस्म#समानताकाभाव#समाजकीसंरचना#संघर्षोंसेछीननापड़ता#शरीरकोदिखाकरकईउत्पाद#लिंगवादटर्म#लिंगवादकोखतमकरनेकेलिए संघर्ष#लिंगवादकेहिमायती#लिंगवाद#लिंगकेआधारपरभेद#लाभकेआलावाकोईचरित्रनहीं#लड़कियाहवाईजहाजउड़ारही#महिलाकोएकउत्पादकेरूप#महिलाविज्ञापन#बोलियाँभीलिंगवादकोबढ़ावादेती#बाज़ारवाद#फेमिनिस्मकासपोर्टकर��#फीमेलकोदोयम दर्जा#प्रतिष्ठबैंकोंमेंमहिला#पूंजीवादऔरसेक्सिस्म#पितृसत्तात्मकता#चूड़ियाँलड़कियाकाहीगहना#चुडिया पहनने#लिंगवादयौनउत्पीड़न#गोराकरनावालाप्रोडक्ट#आर्थिकशोषणकाकारण
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allgyan · 4 years
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सेक्सिस्म या लिंगवाद टर्म कब हुआ पहला प्रयोग -
सेक्सिस्म या लिंगवाद नाम से पता चलता है |जो भी लिंग के आधार पर भेद करता है |इसका आशय है की लिंगवाद किसी व्यक्ति के लिंग के आधार पर पक्षपात या भेदभाव को मानना है|सेक्सिस्म जो टर्म है उसका सबसे पहले 1960 में प्रयोग हुआ ये दौर स्त्रीवाद का था |पहले के लोग जो सेक्सिस्म या लिंगवाद के हिमायती थे उनका मानना था की एक लिंग श्रेष्ट होता है दूसरे के अपेक्षा |और जबरदस्ती वो नियम कानून लगाते है की लड़का क्या कर सकता है और लड़की क्या नहीं कर सकती है |
फीमेल को दोयम दर्जा का समझते है |ऐसा शुरुआत हर धर्म में देखा गया है | आज के समाज में भी जो अधिकार लड़के को जन्मते मिला जाता है लेकिन लड़कियों को उन अधिकारों पाने के लिए वर्षों संघर्ष करना पड़ा  |ऐसे समाज से में बहुत से अभी भी भेद है जो समाज में व्याप्त है |ये बस उस दौर की कोशिश थी पितृसत्तात्मकता को मनाये रखने के लिए |
पूंजीवाद और सेक्सिस्म -
पहला का दौर और समाज की संरचना ऐसे बना था |की उसमे ये दुसंगति रहा करती थी | ये एक जरिया थी किसी का भी आर्थिक शोषण का | क्योकि समाज ये विसंगति रहेगी तो समाज के एक बड़ी आबादी को उनकी बहुत मांगों से दूर किया जा सकता था |और इसलिए पूंजीवाद समाज का लाभ के आलावा कोई चरित्र नहीं होता है |पूंजीवाद की उस समय की मांग यही थी | और आज के दौर में भी आप इसे देख सकते है | जैसा मैंने कहा आज कई ऐसे देश में सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा मिला हुआ है | ये पूंजीवाद ही तो है जो महिला को एक उत्पाद के रूप में बेच रही है | हद तो तब है की आप कोई विज्ञापन देख लीजिये |जो भी उत्पाद जो महिलाये अपने प्रयोग में लाती है उनका तो महिला विज्ञापन कर रही है साथ साथ में पुरषों के प्रयोग की वस्तु का भी महिला ही विज्ञापन कर रही है |उनके शरीर को दिखाकर कई उत्पाद बेचे जा रहे है |
सेक्सिस्म या लिंगवाद क्या आर्थिक शोषण का कारण -
क्योकि बाज़ारवाद भी इसका एक प्रमुख कारण है | जो कुछ ऐसी परिस्थितयां बनायीं रखना चाहती है जिससे ऐसी स्तिथि बनी रही है | इससे उन्हें आर्थिक शोषण करने का अधिकार मिलता है | उन्हें लाभ होता है | आप देखेंगे आज भी बॉलीवुड में मेल एक्टर को फीमेल एक्ट्रेस से हमेशा ज्यादा वेतन मिलता है |कई फीमेल एक्ट्रेस इसके लिए आवाज उठा चुकी है | एक ही कंपनी है जो अमेरिका में वो गोरा करना वाला प्रोडक्ट नहीं बेचने की हिम्मत जुटा पा रही है लेकिन वही आपके देश में धड़ल्ले से बेच रही है |वही कंपनी है विकसीत देशों के हर रूल रेगुलेशन मान रही है लेकिन आपके देश में ऐसा नहीं कर रही है | समाज में वैसे तो कई बुराई है लेकिन इसके पीछे लाभ ही मुख्या कारण है जो अक्सर आपके सामने गुज़र जाता है और आपको दीखता नहीं है |
लिंगवाद को खतम करने के लिए संघर्ष -
लिंगवाद को बनाया रखना के कारण उन तबको को समाज में हिस्सेदारी से भी है |महिलाओं को बहुत दिन बाद वोट देने का अधिकार मिला |इसका साफ़ और सीधा मतलब की आप उससे भी नहीं चुन सकते जो आपके देश को चलाएगा |और कानून बनाएगा | इसलिए मुफ्त कोई चीज नहीं मिलती है संघर्षों से छीनना पड़ता है | रही बात समाज में जब ऐसी बुराई धीरे -धीरे महिलाये लड़कर ख़तम कर रही है वो महिलाये और संघठन काबिले तारीफ़ भी है |जैसे आप ने देखा एक प्राइवेट कंपनी ने माहवारी के लिए ऑफ का प्रयोजन अपनी कंपनी में जोड़ा |भारत युवा लोगों का देश है इसलिए हमे भी इन बारे में विचार जरूर करना चाहिए | सेक्सिस्म या लिंगवाद को एकदम भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए |
महिलाये हवाई जहाज तक उड़ा रही है -
कई बार आप देख्नेगे की महिलाओं के लिए पुरष कहते मिल जायेंगे की -ये महिलाये अच्छी कार नहीं चला सकती और अच्छा नेता नहीं बन सकती क्योकि उनके अंदर इमोशंस होते है वो किसी भी कंपनी को लीड नहीं कर सकती है | लेकिन कौन उन्हें बताया की आज के दौर की लड़किया हवाई जहाज उड़ा रही है | भारत की महिला प्रधानमंत्री के बारे में इंदिरा गाँधी के बारे में नहीं जानते है तो उन्हें जानना चाहिए |एक समय ऐसा भी था जब देश सब प्रतिष्ठ बैंकों में महिला ही उनके सबसे बड़े पदों पर आसीन थी |ये मानसिकता को छोर के खुद के अंदर समनता का भाव लाना चाहिए |मेरी उन लोगों से बस अपील है |
क्या बोलियाँ भी लिंगवाद को बढ़ावा देती है ?
समाज में बहुत दिनों से ऐसे भेदभाव होते रहने से हमारी आपकी बोली में भी सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा दिया जाता रहा है | जैसा कहा जाता रहा चूड़ी पहन लो , ये एक सेक्सिस्म शब्द जो हम अक्सर बोलते है जिसे हमे पता नहीं है लेकिन आपको बताता हूँ |इसमें कमजोरता या कहे हीनता को दर्शाने के लिए पुरषों को कहा जाता है | इसका क्या मतलब है चुडिया पहनने वाले कमजोर होते है और चुडिया लड़किया का ही गहना है |ऐसे कई शब्द है जो हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते है |इसलिए इन चीजों को कृपया ध्यान दे |लेकिन कुछ ऐसे भी है जो इन सेक्सिस्म या लिंगवाद और फेमनिस्म को अपने फायदे के लिए प्रयोग लाते है | जहा भी इससे इनके कुछ सुविधा मिलती है उसको उठाती है |और फिर आपको बाहर फेमिनिस्म का झंडा उठाते दिख जाती है |ऐसे लोगों से बचें जो कभी दुखिया नारी तो कभी शशक्त महिला बनके उभरती है |शायद ये बात आपको लोग को कड़वी लग सकती है लेकिन मैं अपने अनुभव से आपको बताया है |और फेमिनिस्म का सपोर्ट करे लिंगवाद को खतम करने की कोशिश करे |
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allgyan · 4 years
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सेक्सिस्म या लिंगवाद क्या है ?
सेक्सिस्म या लिंगवाद टर्म कब हुआ पहला प्रयोग -
सेक्सिस्म या लिंगवाद नाम से पता चलता है |जो भी लिंग के आधार पर भेद करता है |इसका आशय है की लिंगवाद किसी व्यक्ति के लिंग के आधार पर पक्षपात या भेदभाव को मानना है|सेक्सिस्म जो टर्म है उसका सबसे पहले 1960 में प्रयोग हुआ ये दौर स्त्रीवाद का था |पहले के लोग जो सेक्सिस्म या लिंगवाद के हिमायती थे उनका मानना था की एक लिंग श्रेष्ट होता है दूसरे के अपेक्षा |और जबरदस्ती वो नियम कानून लगाते है की लड़का क्या कर सकता है और लड़की क्या नहीं कर सकती है |
फीमेल को दोयम दर्जा का समझते है |ऐसा शुरुआत हर धर्म में देखा गया है | आज के समाज में भी जो अधिकार लड़के को जन्मते मिला जाता है लेकिन लड़कियों को उन अधिकारों पाने के लिए वर्षों संघर्ष करना पड़ा  |ऐसे समाज से में बहुत से अभी भी भेद है जो समाज में व्याप्त है |ये बस उस दौर की कोशिश थी पितृसत्तात्मकता को मनाये रखने के लिए |
पूंजीवाद और सेक्सिस्म -
पहला का दौर और समाज की संरचना ऐसे बना था |की उसमे ये दुसंगति रहा करती थी | ये एक जरिया थी किसी का भी आर्थिक शोषण का | क्योकि समाज ये विसंगति रहेगी तो समाज के एक बड़ी आबादी को उनकी बहुत मांगों से दूर किया जा सकता था |और इसलिए पूंजीवाद समाज का लाभ के आलावा कोई चरित्र नहीं होता है |पूंजीवाद की उस समय की मांग यही थी | और आज के दौर में भी आप इसे देख सकते है | जैसा मैंने कहा आज कई ऐसे देश में सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा मिला हुआ है | ये पूंजीवाद ही तो है जो महिला को एक उत्पाद के रूप में बेच रही है | हद तो तब है की आप कोई विज्ञापन देख लीजिये |जो भी उत्पाद जो महिलाये अपने प्रयोग में लाती है उनका तो महिला विज्ञापन कर रही है साथ साथ में पुरषों के प्रयोग की वस्तु का भी महिला ही विज्ञापन कर रही है |उनके शरीर को दिखाकर कई उत्पाद बेचे जा रहे है |
सेक्सिस्म या लिंगवाद क्या आर्थिक शोषण का कारण -
क्योकि बाज़ारवाद भी इसका एक प्रमुख कारण है | जो कुछ ऐसी परिस्थितयां बनायीं रखना चाहती है जिससे ऐसी स्तिथि बनी रही है | इससे उन्हें आर्थिक शोषण करने का अधिकार मिलता है | उन्हें लाभ होता है | आप देखेंगे आज भी बॉलीवुड में मेल एक्टर को फीमेल एक्ट्रेस से हमेशा ज्यादा वेतन मिलता है |कई फीमेल एक्ट्रेस इसके लिए आवाज उठा चुकी है | एक ही कंपनी है जो अमेरिका में वो गोरा करना वाला प्रोडक्ट नहीं बेचने की हिम्मत जुटा पा रही है लेकिन वही आपके देश में धड़ल्ले से बेच रही है |वही कंपनी है विकसीत देशों के हर रूल रेगुलेशन मान रही है लेकिन आपके देश में ऐसा नहीं कर रही है | समाज में वैसे तो कई बुराई है लेकिन इसके पीछे लाभ ही मुख्या कारण है जो अक्सर आपके सामने गुज़र जाता है और आपको दीखता नहीं है |
लिंगवाद को खतम करने के लिए संघर्ष -
लिंगवाद को बनाया रखना के कारण उन तबको को समाज में हिस्सेदारी से भी है |महिलाओं को बहुत दिन बाद वोट देने का अधिकार मिला |इसका साफ़ और सीधा मतलब की आप उससे भी नहीं चुन सकते जो आपके देश को चलाएगा |और कानून बनाएगा | इसलिए मुफ्त कोई चीज नहीं मिलती है संघर्षों से छीनना पड़ता है | रही बात समाज में जब ऐसी बुराई धीरे -धीरे महिलाये लड़कर ख़तम कर रही है वो महिलाये और संघठन काबिले तारीफ़ भी है |जैसे आप ने देखा एक प्राइवेट कंपनी ने माहवारी के लिए ऑफ का प्रयोजन अपनी कंपनी में जोड़ा |भारत युवा लोगों का देश है इसलिए हमे भी इन बारे में विचार जरूर करना चाहिए | सेक्सिस्म या लिंगवाद को एकदम भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए |
महिलाये हवाई जहाज तक उड़ा रही है -
कई बार आप देख्नेगे की महिलाओं के लिए पुरष कहते मिल जायेंगे की -ये महिलाये अच्छी कार नहीं चला सकती और अच्छा नेता नहीं बन सकती क्योकि उनके अंदर इमोशंस होते है वो किसी भी कंपनी को लीड नहीं कर सकती है | लेकिन कौन उन्हें बताया की आज के दौर की लड़किया हवाई जहाज उड़ा रही है | भारत की महिला प्रधानमंत्री के बारे में इंदिरा गाँधी के बारे में नहीं जानते है तो उन्हें जानना चाहिए |एक समय ऐसा भी था जब देश सब प्रतिष्ठ बैंकों में महिला ही उनके सबसे बड़े पदों पर आसीन थी |ये मानसिकता को छोर के खुद के अंदर समनता का भाव लाना चाहिए |मेरी उन लोगों से बस अपील है |
क्या बोलियाँ भी लिंगवाद को बढ़ावा देती है ?
समाज में बहुत दिनों से ऐसे भेदभाव होते रहने से हमारी आपकी बोली में भी सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा दिया जाता रहा है | जैसा कहा जाता रहा चूड़ी पहन लो , ये एक सेक्सिस्म शब्द जो हम अक्सर बोलते है जिसे हमे पता नहीं है लेकिन आपको बताता हूँ |इसमें कमजोरता या कहे हीनता को दर्शाने के लिए पुरषों को कहा जाता है | इसका क्या मतलब है चुडिया पहनने वाले कमजोर होते है और चुडिया लड़किया का ही गहना है |ऐसे कई शब्द है जो हम दैनिक जीवन में प्र���ोग करते है |इसलिए इन चीजों को कृपया ध्यान दे |लेकिन कुछ ऐसे भी है जो इन सेक्सिस्म या लिंगवाद और फेमनिस्म को अपने फायदे के लिए प्रयोग लाते है | जहा भी इससे इनके कुछ सुविधा मिलती है उसको उठाती है |और फिर आपको बाहर फेमिनिस्म का झंडा उठाते दिख जाती है |ऐसे लोगों से बचें जो कभी दुखिया नारी तो कभी शशक्त महिला बनके उभरती है |शायद ये बात आपको लोग को कड़वी लग सकती है लेकिन मैं अपने अनुभव से आपको बताया है |और फेमिनिस्म का सपोर्ट करे लिंगवाद को खतम करने की कोशिश करे |
पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/3his5zY
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