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#महिलाओंकेलिएसमानअधिकार
allgyan · 4 years
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फेमनिस्म और भारतीय नारीवाद -
नारीवाद एक बौद्धिक, दार्शनिक और राजनीतिक सम्वाद श्रंखला है जिसका केन्द्र में महिलाओं के लिए समान अधिकार और कानूनी संरक्षण का विचार निहित होता है। नारीवाद की संकल्पना में विभिन्न आन्दोलन, सिद्धान्त, दर्शन आदि समाहित होते है । जो लैिगक असमानता, नारी अधिकार और नारी हितों से संबद्ध होते है ।यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि भारतीय महिलाओं को अपने अधिकारों के कानूनी संरक्षण के लिए वो संघर्ष नहीं करना पड़ा जो पश्चिमी देशों की महिलाओं ने किया। भारतीय नारीवाद भी को इसके सिद्धांत एवं दर्शन मुख्य रूप से पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित रहे हैं। ये कह पाना तो मुश्किल है |हालाँकि ज़मीनी स्तर पर स्त्रीवादी विमर्श हर देश एवं भौगोलिक सीमाओं मे अपने स्तर पर सक्रिय रहती हैं और हर क्षेत्र के स्त्रीवादी विमर्श की अपनी खास समस्याएँ होती हैं।
भारत में नारीवादी आन्दोलन  को पुरषों ने प्रारंभ किया
उपनिवेशी शासन के आगमन के साथ ही प्रजातंत्र, समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की अवधारणा को बल प्राप्त हुआ। राष्ट्रवाद और भेदभावपूर्ण परंपराओं के आत्मविश्लेषण ने जाति व्यवस्था और लैंगिक समानता संबंधी सामाजिक सुधारों के आन्दोलन को जन्म दिया । भारत में प्रथम चरण के नारीवादी आन्दोलन को पुरूषो (जैसे की राजाराम मोहन राय ) ने प्रारंभ किया ।इस आन्दोलन के केन्द्र में सती प्रथा, विधवा विवाह, महिला साक्षरता, महिला संपत्ति अधिकार आदि ऐसे मुद्दे थे जिनका कानूनी तौर पर समाधान करने के प्रयास किये गये ।
नारीवाद की नींव-
ऐसा माना जाता है की नारीवाद की एक झलक प्राचीन रोम में 3rd सेंचुरी में देखने को मिला था |जब एक महिलाओं का एक समूह मोर्चाबंदी की थी एक कानून को निरस्त करने के लिए जो उस समय की सीमित महिलाओं को ही को महंगे सामान प्रयोग करने का अधिकार देता था |वैसे तो ये एक अलग ही घटना थी |जिसको पहली बार क्रिस्टीन दे पिसान ने सबकी नज़र में लाया था |वो एक बहुत बड़े थिंकर थी  |लेकिन ये भावनाये उनके लिखे हुए निबंधों में दीखता जरूर था |महिलाओं के शिक्षा के लिए उन्हें कई आंदोलन भी किये है |उसका बाद नारीवाद को बढ़ावा देने के लिए एक और फ्रेंच लेखिका ने इसको आगे बढ़ाया |
ओलेम्प डे गॉज एक फ्रांसीसी नाटककार और राजनीतिक कार्यकर्ता थे जिनके लेखन महिलाओं के अधिकारों और उन्मूलन पर विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी -"Declaration of the Rights of Woman and of the [Female] सिटीजन" ये बात 1791 की है | ऐसा माना जाता है की पहले यूरोपियन कांटिनेंट में ही इसका विकास हुआ था |
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट नारीवाद का झंडा बुलंद किया -
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट 18 वीं शताब्दी की ब्रिटिश प्रोटो-फेमिनिस्ट द्वारा लिखित राजनीतिक और नैतिक विषयों पर महिलाओं के अधिकारों का उल्लेख किया था और नारीवादी दर्शन की बात की थी। A Vindication of the Rights of Woman  ये उन्होंने 1792 में लिखा था |उनका मानना था की महिलाओं को भी समानता का अधिकार मिले | अगर वो खुद को पुरषों से कम समझती है तो उनमे शिक्षा की कमी है |ये पहला इंग्लिश भाषा में टेक्स्ट था |उसके बाद अमेरिकन चुनाव में पहली बार खड़ी एक महिला ने सबका अपनी ओर ध्यान खींचा उनका नाम था -विक्टोरिया वुडहल |उन्होंने इक्वल राइड पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 18वें राष्ट्रपति उल्सिस एस ग्रांट के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह बड़े अंतर से चुनाव हार गईं क्योंकि तब अमेरिकी समाज में सभी महिलाओं को न तो मतदान करने का अधिकार था और न ही उन्हें पुरुषों के बराबरी का समझा जाता था।
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allgyan · 4 years
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फेमनिस्म और भारतीय नारीवाद -
नारीवाद एक बौद्धिक, दार्शनिक और राजनीतिक सम्वाद श्रंखला है जिसका केन्द्र में महिलाओं के लिए समान अधिकार और कानूनी संरक्षण का विचार निहित होता है। नारीवाद की संकल्पना में विभिन्न आन्दोलन, सिद्धान्त, दर्शन आदि समाहित होते है । जो लैिगक असमानता, नारी अधिकार और नारी हितों से संबद्ध होते है ।यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि भारतीय महिलाओं को अपने अधिकारों के कानूनी संरक्षण के लिए वो संघर्ष नहीं करना पड़ा जो पश्चिमी देशों की महिलाओं ने किया। भारतीय नारीवाद भी को इसके सिद्धांत एवं दर्शन मुख्य रूप से पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित रहे हैं। ये कह पाना तो मुश्किल है |हालाँकि ज़मीनी स्तर पर स्त्रीवादी विमर्श हर देश एवं भौगोलिक सीमाओं मे अपने स्तर पर सक्रिय रहती हैं और हर क्षेत्र के स्त्रीवादी विमर्श की अपनी खास समस्याएँ होती हैं।
भारत में नारीवादी आन्दोलन  को पुरषों ने प्रारंभ किया
उपनिवेशी शासन के आगमन के साथ ही प्रजातंत्र, समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की अवधारणा को बल प्राप्त हुआ। राष्ट्रवाद और भेदभावपूर्ण परंपराओं के आत्मविश्लेषण ने जाति व्यवस्था और लैंगिक समानता संबंधी सामाजिक सुधारों के आन्दोलन को जन्म दिया । भारत में प्रथम चरण के नारीवादी आन्दोलन को पुरूषो (जैसे की राजाराम मोहन राय ) ने प्रारंभ किया ।इस आन्दोलन के केन्द्र में सती प्रथा, विधवा विवाह, महिला साक्षरता, महिला संपत्ति अधिकार आदि ऐसे मुद्दे थे जिनका कानूनी तौर पर समाधान करने के प्रयास किये गये ।
नारीवाद की नींव-
ऐसा माना जाता है की नारीवाद की एक झलक प्राचीन रोम में 3rd सेंचुरी में देखने को मिला था |जब एक महिलाओं का एक समूह मोर्चाबंदी की थी एक कानून को निरस्त करने के लिए जो उस समय की सीमित महिलाओं को ही को महंगे सामान प्रयोग करने का अधिकार देता था |वैसे तो ये एक अलग ही घटना थी |जिसको पहली बार क्रिस्टीन दे पिसान ने सबकी नज़र में लाया था |वो एक बहुत बड़े थिंकर थी  |लेकिन ये भावनाये उनके लिखे हुए निबंधों में दीखता जरूर था |महिलाओं के शिक्षा के लिए उन्हें कई आंदोलन भी किये है |उसका बाद नारीवाद को बढ़ावा देने के लिए एक और फ्रेंच लेखिका ने इसको आगे बढ़ाया |
ओलेम्प डे गॉज एक फ्रांसीसी नाटककार और राजनीतिक कार्यकर्ता थे जिनके लेखन महिलाओं के अधिकारों और उन्मूलन पर विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी -"Declaration of the Rights of Woman and of the [Female] सिटीजन" ये बात 1791 की है | ऐसा माना जाता है की पहले यूरोपियन कांटिनेंट में ही इसका विकास हुआ था |
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट नारीवाद का झंडा बुलंद किया -
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट 18 वीं शताब्दी की ब्रिटिश प्रोटो-फेमिनिस्ट द्वारा लिखित राजनीतिक और नैतिक विषयों पर महिलाओं के अधिकारों का उल्लेख किया था और नारीवादी दर्शन की बात की थी। A Vindication of the Rights of Woman  ये उन्होंने 1792 में लिखा था |उनका मानना था की महिलाओं को भी समानता का अधिकार मिले | अगर वो खुद को पुरषों से कम समझती है तो उनमे शिक्षा की कमी है |ये पहला इंग्लिश भाषा में टेक्स्ट था |उसके बाद अमेरिकन चुनाव में पहली बार खड़ी एक महिला ने सबका अपनी ओर ध्यान खींचा उनका नाम था -विक्टोरिया वुडहल |उन्होंने इक्वल राइड पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 18वें राष्ट्रपति उल्सिस एस ग्रांट के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह बड़े अंतर से चुनाव हार गईं क्योंकि तब अमेरिकी समाज में सभी महिलाओं को न तो मतदान करने का अधिकार था और न ही उन्हें पुरुषों के बराबरी का समझा जाता था।
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allgyan · 4 years
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फेमनिस्म :भारतीय नारीवाद क्या केवल पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित है ?
फेमनिस्म और भारतीय नारीवाद -
नारीवाद एक बौद्धिक, दार्शनिक और राजनीतिक सम्वाद श्रंखला है जिसका केन्द्र में महिलाओं के लिए समान अधिकार और कानूनी संरक्षण का विचार निहित होता है। नारीवाद की संकल्पना में विभिन्न आन्दोलन, सिद्धान्त, दर्शन आदि समाहित होते है । जो लैिगक असमानता, नारी अधिकार और नारी हितों से संबद्ध होते है ।यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि भारतीय महिलाओं को अपने अधिकारों के कानूनी संरक्षण के लिए वो संघर्ष नहीं करना पड़ा जो पश्चिमी देशों की महिलाओं ने किया। भारतीय नारीवाद भी को इसके सिद्धांत एवं दर्शन मुख्य रूप से पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित रहे हैं। ये कह पाना तो मुश्किल है |हालाँकि ज़मीनी स्तर पर स्त्रीवादी विमर्श हर देश एवं भौगोलिक सीमाओं मे अपने स्तर पर सक्रिय रहती हैं और हर क्षेत्र के स्त्रीवादी विमर्श की अपनी खास समस्याएँ होती हैं।
भारत में नारीवादी आन्दोलन  को पुरषों ने प्रारंभ किया
उपनिवेशी शासन के आगमन के साथ ही प्रजातंत्र, समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की अवधारणा को बल प्राप्त हुआ। राष्ट्रवाद और भेदभावपूर्ण परंपराओं के आत्मविश्लेषण ने जाति व्यवस्था और लैंगिक समानता संबंधी सामाजिक सुधारों के आन्दोलन को जन्म दिया । भारत में प्रथम चरण के नारीवादी आन्दोलन को पुरूषो (जैसे की राजाराम मोहन राय ) ने प्रारंभ किया ।इस आन्दोलन के केन्द्र में सती प्रथा, विधवा विवाह, महिला साक्षरता, महिला संपत्ति अधिकार आदि ऐसे मुद्दे थे जिनका कानूनी तौर पर समाधान करने के प्रयास किये गये ।
नारीवाद की नींव-
ऐसा माना जाता है की नारीवाद की एक झलक प्राचीन रोम में 3rd सेंचुरी में देखने को मिला था |जब एक महिलाओं का एक समूह मोर्चाबंदी की थी एक कानून को निरस्त करने के लिए जो उस समय की सीमित महिलाओं को ही को महंगे सामान प्रयोग करने का अधिकार देता था |वैसे तो ये एक अलग ही घटना थी |जिसको पहली बार क्रिस्टीन दे पिसान ने सबकी नज़र में लाया था |वो एक बहुत बड़े थिंकर थी  |लेकिन ये भावनाये उनके लिखे हुए निबंधों में दीखता जरूर था |महिलाओं के शिक्षा के लिए उन्हें कई आंदोलन भी किये है |उसका बाद नारीवाद को बढ़ावा देने के लिए एक और फ्रेंच लेखिका ने इसको आगे बढ़ाया |
ओलेम्प डे गॉज एक फ्रांसीसी नाटककार और राजनीतिक कार्यकर्ता थे जिनके लेखन महिलाओं के अधिकारों और उन्मूलन पर विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी -"Declaration of the Rights of Woman and of the [Female] सिटीजन" ये बात 1791 की है | ऐसा माना जाता है की पहले यूरोपियन कांटिनेंट में ही इसका विकास हुआ था |
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट नारीवाद का झंडा बुलंद किया -
मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट 18 वीं शताब्दी की ब्रिटिश प्रोटो-फेमिनिस्ट द्वारा लिखित राजनीतिक और नैतिक विषयों पर महिलाओं के अधिकारों का उल्लेख किया था और नारीवादी दर्शन की बात की थी। A Vindication of the Rights of Woman  ये उन्होंने 1792 में लिखा था |उनका मानना था की महिलाओं को भी समानता का अधिकार मिले | अगर वो खुद को पुरषों से कम समझती है तो उनमे शिक्षा की कमी है |ये पहला इंग्लिश भाषा में टेक्स्ट था |उसके बाद अमेरिकन चुनाव में पहली बार खड़ी एक महिला ने सबका अपनी ओर ध्यान खींचा उनका नाम था -विक्टोरिया वुडहल |उन्होंने इक्वल राइड पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 18वें राष्ट्रपति उल्सिस एस ग्रांट के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह बड़े अंतर से चुनाव हार गईं क्योंकि तब अमेरिकी समाज में सभी महिलाओं को न तो मतदान करने का अधिकार था और न ही उन्हें पुरुषों के बराबरी का समझा जाता था।
पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/386HMWD
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