#पतंजलि सीमित
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pradhyayoga · 1 year ago
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योग क्या है ?
योग क्या है ?
हम में से ज्यादा तर लोग आज योग को मात्र शारीरिक स्वाथ्य के रूप में लेते है , कुछ आसान और शरीर की अलग अलग मुद्राओ को करना ही योग मानते है ,आधुनिक युग में योग के अलग -अलग तरीके आपको दिखाए जाते है जो की लुभावने होते है पर क्या वो आपके लिए लाभकारी है ,ये समझने के लिए पहले हमे योग क्या है ये जानना होगा -
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शरीर, मन और आत्मा का एकीकरण है योग
शरीर, मन और आत्मा का एकीकरण ही योग कहा गया है ,योग का अर्थ ही है जोड़ना / मिलाना ,और भी सरल शब्दों में कहा जाये तो अपने शरीर को स्वस्थ्य से ,मन को अच्छे विचारो से और अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाना /जोड़ना या मिलाने का प्रयास करना ही योग है ,
योग एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन और आत्मा के एकीकरण को समर्पित है। यह एक अद्वैत सिद्धांत है जो मनुष्य के सम्पूर्ण विकास और पूर्णता को प्राप्त करने की मार्गदर्शन करता है। योग आत्मा की अनुभूति और उसके अभिविकास को संभव बनाता है, जिससे हम आनंद, शांति, स्वस्थता और सच्ची संतुष्टि की अनुभूति कर सकते हैं।
योग का शास्त्रीय आधार पतंजलि के 'योग सूत्र' माना जाता है। पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया है, जिन्हें 'अष्टांग योग' कहा जाता है। ये अष्टांग योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। इन अंगों के माध्यम से, योगी अपने मन को नियंत्रित करते हैं, शरीर को स्वस्थ रखते हैं और आत्मा के साथ अद्वैत अनुभव करते हैं।
योग के माध्यम से हम अपने शरीर की स्थायित्वता, लचीलापन, शक्ति और स्थैर्य को विकसित करते हैं। आसनों के द्वारा हम अपने शरीर को सुव्यस्थ और लचीला बनाते हैं। प्राणायाम के माध्यम से हम अपने प्राण (श्वास-प्रश्वास) को नियंत्रित करते हैं और अपने मन को शांत करते हैं। प्रत्याहार के द्वारा हम अपने इंद्रियों को इन्द्रिय विषयों से वश में लाते हैं और मन को बाहरी विषयों से आंतरिक मंदिर में नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार योगी अपने मन को नियंत्रित कर अपनी चिंताओं और विचारों को स्वयं संयमित करते हैं।
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योग का ध्यान और समाधि अंग मन को एकाग्र करने, उसे अपनी सच्ची पहचान में ले जाने और आत्मा के साथ एकीकृत होने के लिए हैं। योगी ध्यान के माध्यम से अपने आंतरिक स्वरूप की पहचान करते हैं और समाधि में वह अपनी अस्तित्वता को भुल जाता है और परमात्मा के साथ अभिन्न हो जाता है। इस स्थिति में, योगी को सच्ची आनंद, शांति और आत्मिक समृद्धि की अनुभूति होती है।
योग आजकल एक प्रमुख ध्यान विधा के रूप में भी चर्चा में है। यहालांकि, योग केवल एक ध्यान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक पूर्ण जीवनशैली को भी दर्शाता है। योग का ��भ्यास व्यक्ति को तनाव, रोग, मानसिक चिंताओं और अनियंत्रित मन के साथ निपटने में मदद करता है। योग के माध्यम से हम अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत करते हैं, स्वस्थ और खुश जीवन जीते हैं और स्वयं को संतुष्ट रखते हैं।
योग का महत्वपूर्ण अंश योगासन है, जिसमें विभिन्न शारीरिक पोज़ और आसनों को प्रदर्शित किया जाता है। योगासनों के अभ्यास से हमारे शरीर की लचीलापन, संतुलन, स्थायित्व और शक्ति में सुधार होती है। इसके अलावा, योग आसनों के द्वारा हम विभिन्न रोगों को नियंत्रित कर सकते हैं, जैसे कि मधुमेह, हृदय रोग, अस्थमा, अवसाद आदि।
योग का अभ्यास मनोरोगों में भी मदद करता है। ध्यान और मन को नियंत्रित करके हम स्वयं को शांत और स्वस्थ बना सकते हैं। योग का अभ्यास करने से मन में स्थिरता और एकाग्रता की स्थिति बढ़ती है, जिससे समस्याओं और टेंशन को नियंत्रित किया जा सकताहै।
योग का अभ्यास सिर्फ शारीरिक और मानसिक लाभों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा के साथ एकीकृत होने की भी साधना है। जब हम योग के माध्यम से अपने मन को नियंत्रित करते हैं और अपनी आंतरिक स्वरूप को पहचानते हैं, तब हम एक ऊँचे स्तर पर उठते हैं और अपने स्वभाव के मूल्यों को समझते हैं। इस प्रकार, योग हमें सच्ची स्वतंत्रता, आनंद और मुक्ति की अनुभूति दिलाताहै।
योग हमारे शरीर, मन और आत्मा के एकीकरण को साधना करने और समर्पित होने का एक विज्ञान है। इसके माध्यम से हम अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं और एक सुखी, स्वस्थ और पूर्ण जीवन ��ी सकते हैं। योग का अभ्यास करने से हम अपनी सामर्थ्यों को पहचानते हैं और आपातकाल में भी स्थिर रहते हैं। इसलिए, योग हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है और हमें स्वस्थ, स्थिर और संतुष्ट बनाने में सहायता प्रदान करता है। योग का अभ्यास आपकी जीवनशैली को सुधारता है और आपको एक सकारात्मक दिशा में ले जाता है।
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dainiksamachar · 6 months ago
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पतंजलि की नाक में तो दम हो गया, लेकिन वाहियात विज्ञापनों से अटी पड़ी है फार्मा इंडस्ट्री, उसकी सुध कौन लेगा?
लेखक- किशोर पटवर्द्धनसाक्ष्य-आधारित दवाइयां तीन स्तंभों के आधार पर बनाए जाती हैं- रोगी की पसंद, डॉक्टर अनुभव और हालिया उपलब्ध साक्ष्य। गलत सूचना इन तीनों को कमजोर करती है और यही बात सुप्रीम कोर्ट में चल रहे पतंजलि के मामले को क्रिटिकल बनाती है। इस सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने कहा कि उसने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनी दिव्य फार्मेसी के 14 उत्पादों के मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस निलंबित कर दिए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि यह कार्रवाई तब की गई जब सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए राज्य प्राधिकरण की तीखी आलोचना की।नवंबर 2023 में, पतंजलि ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह अब अपने अपने उत्पादों के विज्ञापन या ब्रांडिंग में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं करेगी। साथ ही दवा के असर का दावा करने वाले या किसी भी चिकित्सा प्रणाली के खिलाफ कोई भी किसी भी रूप में मीडिया को जारी नहीं किया जाएगा। लेकिन कंपनी ने भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करना जारी रखा। इनमें उच्च रक्तचाप और मधुमेह सहित कई हेल्थ कंडीशंस के इलाज का झूठा वादा किया गया और साथ ही पश्चिमी चिकित्सा की विफलताओं की आलोचना भी की। इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया था। कंपनी ने नियमों का उल्लंघन करने वाले उत्पादों के विज्ञापन प्रकाशित करना जारी रखा था जबकि नवंबर में उसने कोर्ट को अंडरटेकिंग दी थी। इसके बाद पतंजलि को प्रमुख समाचार पत्रों में बिना शर्त माफी भी प्रकाशित करनी पड़ी। पतंजलि से आगे पतंजलि के विज्ञापनों में यह भी दावा किया गया है कि उन्होंने शोध के माध्यम से अपने फॉर्मूलेशन की प्रभावकारिता को साबित किया है। ऐसे कई शोध उद्धरणों के साथ समस्या यह है कि इनमें जरूरी शर्तों का अभाव है और यह विभिन्न बीमारियों के 'इलाज' के दावों को साबित करने के लिए नाकाफी हैं। इस खास फार्मा उद्योग में पेटेंट और मालिकाना दवाओं से जुड़ी समस्या है। इन फॉर्मूलेशन का उल्लेख आयुर्वेद की शास्त्रीय पाठ्यपुस्तकों में नहीं किया गया है लेकिन इनमें अलग-अलग मात्रा और संयोजन में बताए गए तत्व शामिल हैं। साथ ही फॉर्मूलेशन का लाइसेंस देने के लिए विभिन्न राज्य प्राधिकरणों द्वारा निर्धारित सुरक्षा और प्रभावकारिता मानक भी बहुत कड़े नहीं हैं।शास्त्रीय आयुर्वेद की पाठ्यपुस्तकों में सीधे दर्ज किए गए फॉर्मूलेशन में भारी मात्रा में धातु और अन्य संभावित विषाक्त अवयवों की मौजूदगी के कारण इनकी सेफ्टी पर पहले से ही बहस चल रही है। नए फॉर्मूलेशन को बाजार में लाने से पहले विश्वसनीय डेटा की आवश्यकता होती है। हाल में यूपी ने 30 से अधिक आयुर्वेद उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसकी वजह यह थी कि इनमें से कई उत्पादों में स्टेरॉयड, दर्द निवारक और ओरल हाइपोग्लाइसेमिक एजेंट पाए गए थे। पब्लिक हेल्थ के लिए आगे के जोखिम से बचने के लिए आयुर्वेद प्रतिष्ठान को नकली और मिलावटी उत्पादों के मुद्दे पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। आयुर्वेद से आगे यह समस्या सिर्फ आयुष क्षेत्र तक सीमित नहीं है। हाल के व��्षों में फार्मा उद्योग में व्यावसायिक हितों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करने वाले कई मामले सामने आए हैं। केवल पतंजलि पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय इस बहस को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कुछ ऐसे हालिया मामलों पर विचार करें जो उद्योग और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच संघर्ष को उजागर करते हैं। ब्रिटिश-स्वीडिश बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने हाल ही में अदालती दस्तावेजों में स्वीकार किया कि उसके कोविड वैक्सीन से एक दुर्लभ दुष्प्रभाव थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (Thrombosis with thrombocytopenia syndrome) हो सकता है। टीटीएस रक्त के थक्के बना सकता है जो डीप वेन थ्रोम्बोसिस, दिल के दौरे और स्ट्रोक का कारण बन सकता है। यह दुष्प्रभाव सभी एडेनोवायरस वेक्टर-आधारित टीकों के लिए जाना जाता है। कई देशों ने इसका पता चलते ही इन टीकों को रोक दिया या एज-रेस्टिक्टेड कर दिया।इसी तरह यूके की एक अथॉरिटी ने हाल ही में फैसला दिया कि फाइजर ने ट्विटर पर अपनी बिना लाइसेंस वाली कोविड वैक्सीन का प्रचार किया लेकिन इसके साइड-इफेक्ट्स के बारे में कुछ भी नहीं बताया। इस कंपनी पर यूके में जुर्माना लगाया गया। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी को गहरा खेद है और वह अथॉरिटी के फैसले में उठाई गई बातों से पूरी तरह वाकिफ है और इसे स्वीकार करती है। तीसरा उदाहरण जिसे हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का ध्यान जाना चाहिए, वह यह है कि यूरोपीय संघ के खाद्य सुरक्षा एजेंसियों ने भारत से निर्यात किए जाने वाले 500 से अधिक खाद्य उत्पादों में कैंसर पैदा करने वाले एथिलीन ऑक्साइड की उपस्थिति का खतरा बताया है।… http://dlvr.it/T6J9ZZ
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ckpcity · 4 years ago
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उत्तराखंड सरकार ने कोविद -19 'इलाज' के लिए पतंजलि को नोटिस भेजा, लाइसेंस के लिए आवेदन करने पर फर्म का उल्लेख नहीं किया
उत्तराखंड सरकार ने कोविद -19 ‘इलाज’ के लिए पतंजलि को नोटिस भेजा, लाइसेंस के लिए आवेदन करने पर फर्म का उल्लेख नहीं किया
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योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद ने COVID-19 के लिए एक इलाज शुरू करने का दावा किया है, जिसके एक दिन बाद, उत्तराखंड सरकार ने कहा कि यह कंपनी को नोटिस देगी क्योंकि इसने केवल खांसी के खिलाफ प्रतिरक्षा बनाने के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन किया था एक अधिकारी ने बुधवार को बताया कि बुखार और बुखार का उल्लेख नहीं किया है।
उत्तराखंड आयुर्वेद विभाग के लाइसेंस अधिकारी वाईएस रावत ने कहा, “पतंजलि के…
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allgyan · 4 years ago
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पहले आप डाकघरों के महत्व का इस चीज से समझ सकते है जब फ़ोन का या तो अविष्कार नहीं हुआ था या आम लोग तक इसकी पहुंच नहीं थी तब डाकघर का महत्व बहुत था | सब लोगों की चिठ्ठी और पत्री से वार्तालाप हुआ करता था | लोग अपने परिवार से दूर लोगों से एक चिठ्ठी के माध्यम से ही बात करते थे | लेकिन जैसे -जैसे टेक्नोलॉजी आती गयी वैसे -वैसे डाकघर से लोगों जुड़ाव सीमित होता गया |
डाकघर के पुनरुद्धार के लिए क्या योजनाए -
अब ऐसा दौर है की लोग कुछ सरकारी कागजात या राखी ही डाकघर के दवरा भेजते है | और सरकारी काम तक ही ये सीमित है | लेकिन कुछ सालों में डाकघर के पुनरुद्धार के लिए इसे बैंकिंग कार्य से जोड़ा गया और अब तो इसे एक मा�� की तरह विकसीत करने की सरकार की योजना है | पंतजलि से डाकघर का करार होने के बाद आप डाक घर से पंतजलि संस्थान का सामान प्राप्त कर सकेंगे, तो वहीं आपको यहां से मास्क, खादी और हर्बल का सामान भी मिल जाएगा|
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khabaruttarakhandki · 4 years ago
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Covid-19 in India: रेमडेसिविर और फेवीपिराविर नहीं हैं कोविड- 19 की लड़ाई में गेम चेंजर दवाएं: विशेषज्ञ
��ांकेतिक तस्वीर
हाइलाइट्स
भारत में कोरोना दवाओं को मंजूरी पर एक्सपर्टस बोले- गेम चेंजर कहना जल्दबाजी
रेमडेसिविर और फेवीपिराविर के जेनरिक संस्करण लाने की तैयारी में कंपनियां
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना के इलाज में किसी दवा के खास प्रभावी होने का कोई सबूत नहीं
नई दिल्ली दवा कंपनियों द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए रेमडेसिविर और फेवीपिराविर के जेनरिक संस्करण लाने की तैयारी है। इस बीच चिकित्सा विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में यह सकारात्मक कदम है लेकिन उन्होंने इन एंटीवायरल दवाओं को ‘पासा पलटने वाला’ कदम मानने को लेकर सावधान किया। दवा कंपनी ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स ने हल्के से मध्यम संक्रमण वाले कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए फैबीफ्लू ब्रांड नाम से एंटीवायरल दवा फेवीपिराविर पेश किया है, जबकि सिप्ला और हेटेरो को क्रमश ‘सिप्रेमी’ और ‘कोविफोर’ ब्रैंड नामों से रेमडेसिविर को पेश करने के लिए भारतीय महा दवा नियंत्रणक से मंजूरी मिल गयी है। सिप्ला ने रविवार को सिप्रेमी को लॉन्च करने की घोषणा की। कोरोना की पहली आयुर्वेदिक दवा लॉन्च करेंगे बाबा रामदेव, पतंजलि ने तैयार की दवा
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सेंटर फार कम्युनिटी मेडिसीन के प्रोफेसर डॉ. संजय राय ने कहा कि अबतक कोई प्रभाव उपचार या कोरोना वायरस से लड़ने का टीका नहीं मिला है। उन्होंने कहा, ‘अबतक हमारे पर इस बात का सबूत नहीं है कि कोई खास दवा प्रभावी है, इसलिए तब तक हम किसी दवा को पासा पलटने वाला नहीं कह सकते। इन दवाओं को लांच किए जाने के साथ ही भविष्य में यह स्पष्ट होगा कि वे कितनी कारगर होंगी। क्या वे कोविड-19 के उपचार में सहायक भूमिका निभा सकती हैं, यह भी अभी तक पता नहीं है।’ कोरोना की एक और दवा को भारत में मंजूरी, साबित हो सकती है ‘गेमचेंजर
फोर्टिस अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनोलोजी ऐंड स्लीप डिसओर्डर के निदेशक डॉ. विकास मौर्या ने कहा कि रेमडेसिविर और फेवीपिराविर कोई पासा पलटने वाला नहीं है, क्योंकि वे अन्य बीमारियों में इस्तेमाल में लाई जाती हैं। अब वे कुछ हद तक कोविड-19 के मरीजों के उपचार में उपयोगी पायी गयी हैं। उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि जो ये दवाइयां लेंगे जो वे ठीक हो जाएंगे।’
मौर्या ने कहा कि यह जरूर पाया गया है कि वे वायरस का असर कुछ कम कर देती हैं लेकिन वे पासा पलटने वाली नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘हां, यह सकारात्मक घटनाक्रम है, क्योंकि कुछ न होने से बेहतर है कि हाथ में कुछ हो। मनोवैज्ञानिक असर भी है कि कुछ दिया जा रहा है जिसका कुछ लाभ हो सकता है।’
कोरोना: इलाज के लिए भारत में आ गई तीसरी दवाभारत में कोरोनावायरस पर लगाम लगाने के लिए अब मार्केट में एक के बाद एक दवा आने का सिलसिला शुरू हो चुका है। पहले ग्लेन फार्मा ने कोरोना की दवा पेश की इसके बाद हेटरो लैब्स ने और अब तीसरी दवा मुंबई की सिप्ला कंपनी ने कोरोना मरीजों के लिए दवा पेश की है।
मैक्स अस्पताल के इंटरनल मेडिसीन के असोसिएट निदेशक डॉ. रोम्मल टिक्कू ने भी मौर्या जैसी ही राय प्रकट की। टिक्कू ने कहा, ‘इन दवाओं पर जो भी अध्ययन किए गए हैं वे बहुत सीमित हैं इसलिए उन्हें पासा पलटने वाला नहीं कहा जा सकता, लेकिन उनका लॉन्च एक सकारात्मक कदम है, क्योंकि कुछ भी नहीं से बेहतर कुछ होना है।’ कुछ अन्य चिकित्सा विशेषज्ञों ने भी ऐसी ही बात कही।(यह आर्टिकल एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड हुआ है। इसे नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम ने एडिट नहीं किया है।)
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khaspress · 6 years ago
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21 जून को सबसे लंबा दिन होता है और जैसा की हम सबको पता है योग मनुष्य को लंबी आयु प्रदान करता है।इसलिए पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को ही मनाया जाता है। पहली बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2015 में मनाया गया, जिसकी शुरुवात भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 27 सितम्बर 2014 को अपने भाषण के साथ की थी ।
जिसके बाद इसको अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर दिया। संयुक्त राष्ट्र में 11 दिसम्बर 2014 को 177 सदस्��ों द्वारा 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” को मनाने के प्रस्ताव पारित करवा दिया। जो पूर्ण बहुमत से पारित हुआ यह पहला प्रस्ताव था जो की 90 दिन में पारित हुआ, और संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी भी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। आज दुनिया भर के लोग इसे अपनी जीवनशैली का हिस्‍सा बना रहे हैं, काया को स्‍वस्‍थ और निरोगी बनाए रखने के लिए योग से बेहतर कुछ नहीं। यही नहीं योग आपके जीवन में सकारात्‍मक ऊर्जा भी लेकर आता है। यही वजह है कि हाल के दिनों में अगर सबसे ज्‍यादा क्रेज किसी का देखा गया है तो वह योग है।
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भारत ने पहले अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस पर बनाया था रिकार्ड 21 जून 2015 को पहला अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस मनाया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में 35 हजार से अधिक लोगों और 84 देशों के प्रतिनिधियों ने दिल्‍ली के राजपथ पर योग के 21 आसन किए थे. ​इस समारोह ने दो गिनीज रिकॉर्ड्स हासिल किए. पहला रिकार्ड 35,985 लोगों के साथ सबसे बड़ी योग क्लास और दूसरा रिकार्ड चौरासी देशों के लोगों द्वारा इस आयोजन में एक साथ भाग लेने का बना.
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भारतीय संस्‍कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्‍कृतियों में से एक है. भाारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है और इन्‍हीं में से एक योग भी है. आज योग सिर्फ भारत की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है बल्‍कि अब इसे अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति मिल चुकी है. इसे योग की महिमा ही कहा जाएगा इस साल देहरादून में होगा मुख्य योग कार्यक्रम इस बार का मुख्य योग कार्यक्रम देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में होगा और साल के इस सबसे लंबे दिन लोग अपने जीवन को अधिक से अधिक लंबा और स्वस्थ बनाए रखने का संकल्प लेंगे.
योग का इतिहास पूर्व वैदिक काल (2700 ईसा पूर्व) में एवं इसके बाद पतंजलि काल तक योग की मौजूदगी के ऐतिहासिक साक्ष्‍य देखे गए। मुख्‍य स्रोत, जिनसे हम इस अवधि के दौरान योग की प्रथाओं तथा संबंधित साहित्‍य के बारे में सूचना प्राप्‍त करते हैं, वेदों (4), उपनिषदों (18), स्‍मृतियों, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, पाणिनी, महाकाव्‍यों (2) के उपदेशों, पुराणों (18) आदि में उपलब्‍ध हैं।
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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – 21 जून 2018 21 जून को सबसे लंबा दिन होता है और जैसा की हम सबको पता है योग मनुष्य को लंबी आयु प्रदान करता है।इसलिए पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को ही मनाया जाता है। पहली बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2015 में मनाया गया, जिसकी शुरुवात भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 27 सितम्बर 2014 को अपने भाषण के साथ की थी । जिसके बाद इसको अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर दिया। संयुक्त राष्ट्र में 11 दिसम्बर 2014 को 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को "अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव पारित करवा दिया। जो पूर्ण बहुमत से पारित हुआ यह पहला प्रस्ताव था जो की 90 दिन में पारित हुआ, और संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी भी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। आज दुनिया भर के लोग इसे अपनी जीवनशैली का हिस्‍सा बना रहे हैं, काया को स्‍वस्‍थ और निरोगी बनाए रखने के लिए योग से बेहतर कुछ नहीं। यही नहीं योग आपके जीवन में सकारात्‍मक ऊर्जा भी लेकर आता है। यही वजह है कि हाल के दिनों में अगर सबसे ज्‍यादा क्रेज किसी का देखा गया है तो वह योग है। भारत ने पहले अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस पर बनाया था रिकार्ड 21 जून 2015 को पहला अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस मनाया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में 35 हजार से अधिक लोगों और 84 देशों के प्रतिनिधियों ने दिल्‍ली के राजपथ पर योग के 21 आसन किए थे. ​इस समारोह ने दो गिनीज रिकॉर्ड्स हासिल किए. पहला रिकार्ड 35,985 लोगों के साथ सबसे बड़ी योग क्लास और दूसरा रिकार्ड चौरासी देशों के लोगों द्वारा इस आयोजन में एक साथ भाग लेने का बना. भारतीय संस्‍कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्‍कृतियों में से एक है. भाारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है और इन्‍हीं में से एक योग भी है. आज योग सिर्फ भारत की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है बल्‍कि अब इसे अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति मिल चुकी है. इसे योग की महिमा ही कहा जाएगा इस स��ल देहरादून में होगा मुख्य योग कार्यक्रम इस बार का मुख्य योग कार्यक्रम देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में होगा और साल के इस सबसे लंबे दिन लोग अपने जीवन को अधिक से अधिक लंबा और स्वस्थ बनाए रखने का संकल्प लेंगे. योग का इतिहास पूर्व वैदिक काल (2700 ईसा पूर्व) में एवं इसके बाद पतंजलि काल तक योग की मौजूदगी के ऐतिहासिक साक्ष्‍य देखे गए। मुख्‍य स्रोत, जिनसे हम इस अवधि के दौरान योग की प्रथाओं तथा संबंधित साहित्‍य के बारे में सूचना प्राप्‍त करते हैं, वेदों (4), उपनिषदों (18), स्‍मृतियों, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, पाणिनी, महाकाव्‍यों (2) के उपदेशों, पुराणों (18) आदि में उपलब्‍ध हैं।
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allgyan · 4 years ago
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पतंजलि का समान क्या डाकघर से मिलेगा ?
पतंजलि का समान और डाकघर -
पहले आप डाकघरों के महत्व का इस चीज से समझ सकते है जब फ़ोन का या तो अविष्कार नहीं हुआ था या आम लोग तक इसकी पहुंच नहीं थी तब डाकघर का महत्व बहुत था | सब लोगों की चिठ्ठी और पत्री से वार्तालाप हुआ करता था | लोग अपने परिवार से दूर लोगों से एक चिठ्ठी के माध्यम से ही बात करते थे | लेकिन जैसे -जैसे टेक्नोलॉजी आती गयी वैसे -वैसे डाकघर से लोगों जुड़ाव सीमित होता गया |
डाकघर के पुनरुद्धार के लिए क्या योजनाए -
अब ऐसा दौर है की लोग कुछ सरकारी कागजात या राखी ही डाकघर के दवरा भेजते है | और सरकारी काम तक ही ये सीमित है | लेकिन कुछ सालों में डाकघर के पुनरुद्धार के लिए इसे बैंकिंग कार्य से जोड़ा गया और अब तो इसे एक माल की तरह विकसीत करने की सरकार की योजना है | पंतजलि से डाकघर का करार होने के बाद आप डाक घर से पंतजलि संस्थान का सामान प्राप्त कर सकेंगे, तो वहीं आपको यहां से मास्क, खादी और हर्बल का सामान भी मिल जाएगा|
डाकघर दवरा शुरू कॉमन सर्विस क्या है -
डाकघर में ��ॉमन सर्विस सेण्टर सेवा आरम्भ होने वाली या कहे हो चुकी क्योकि देश के 256 डाकघरों में ये शुरू भी हो चुकी है |जहां लोग अपने कई बैंकों के लेनदेन के साथ रेलवे टिकट प्राप्त कर सकते हैं और साथ ही आवासीय, जाति व आय प्रमाण पत्र के लिए आवेदन भी कर सकते हैं|हालांकि प्रमाण पत्रों के लिए आवेदक को संबंधित विभाग जाकर ही प्राप्त करना होगा| वहीं डाक विभाग द्वारा सभी डाक घरों में मास्क, खादी और हर्बल का सामान भी बेचा जा रहा है|
कोरोना महामारी और पतंजलि से करार -
कोरोना महामारी के दैरान पतंजलि के साथ डाकघरों का करार हुआ है जिसे डाकघरों से आप पतंजलि का सामन प्राप्त कर सकते है | कोरोना काल में डाकघरों के भूमिका के लिए प्रधानमंत्री ने कई बार डाक बिभाग को बधाई दी |डाकघर ने आधार इनेबल सिस्टम के जरिये बैंकों से 400 करोड़ से ज्यादा रूपए लोगों के घरों तक पहुंचाने का कार्य किया है | जैसे -जैसे दुनिया टेक्नोसेवी हो रही है | सरकारी बिभाग भी बदल रहा है | और अगर जो नहीं बदलेगा वो इस ज़माने में पिछड़ जायेगा |और बहुत सी इ -कॉमर्स साइट है जो भारत में सामान घर -घर तक पंहुचा रही है |
डाकघर के इस मुहीम का समर्थन -
डाकघर के इस मुहीम का हमे भी समर्थन करना चाहिए | अभी तो केवल पतंजलि के उत्पाद से करार हुआ धीरे -धीरे सब उत्पाद आ जायेंगे | ये सोच एक आगे बढ़ने की अच्छी सोच है | अगर प्राइवेट सेक्टर से गोवेर्मेंट सेक्टर को कम्पीट करना है तो ऐसे परिवर्तन लाने पड़ेंगे | जिससे ऐसी संस्थानों को बचाया भी जा सकेगा और हम आगे भी बढ़ेंगे |पतंजलि के कई प्रोडक्ट वैसे तो बहुत ही अच्छे है लोगआजकल उनका बहुत ज्यादा ही प्रयोग कर रहे है जैसे घी , पेस्ट और काढ़ा भी इस कोरोना काल में बहुत ही बिका है |
पूरा जानने के लिए -https://bit.ly/2SKK1b0
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khabaruttarakhandki · 4 years ago
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Covid-19 in India: रेमडेसिविर और फेवीपिराविर नहीं हैं कोविड- 19 की लड़ाई में गेम चेंजर दवाएं: विशेषज्ञ
सांकेतिक तस्वीर
हाइलाइट्स
भारत में कोरोना दवाओं को मंजूरी पर एक्सपर्टस बोले- गेम चेंजर कहना जल्दबाजी
रेमडेसिविर और फेवीपिराविर के जेनरिक संस्करण लाने की तैयारी में कंपनियां
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना के इलाज में किसी दवा के खास प्रभावी होने का कोई सबूत नहीं
नई दिल्ली दवा कंपनियों द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए रेमडेसिविर और फेवीपिराविर के जेनरिक संस्करण लाने की तैयारी है। इस बीच चिकित्सा विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में यह सकारात्मक कदम है लेकिन उन्होंने इन एंटीवायरल दवाओं को ‘पासा पलटने वाला’ कदम मानने को लेकर सावधान किया। दवा कंपनी ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स ने हल्के से मध्यम संक्रमण वाले कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए फैबीफ्लू ब्रांड नाम से एंटीवायरल दवा फेवीपिराविर पेश किया है, जबकि सिप्ला और हेटेरो को क्रमश ‘सिप्रेमी’ और ‘कोविफोर’ ब्रैंड नामों से रेमडेसिविर को पेश करने के लिए भारतीय महा दवा नियंत्रणक से मंजूरी मिल गयी है। सिप्ला ने रविवार को सिप्रेमी को लॉन्च करने की घोषणा की। कोरोना की पहली आयुर्वेदिक दवा लॉन्च करेंगे बाबा रामदेव, पतंजलि ने तैयार की दवा
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सेंटर फार कम्युनिटी मेडिसीन के ���्रोफेसर डॉ. संजय राय ने कहा कि अबतक कोई प्रभाव उपचार या कोरोना वायरस से लड़ने का टीका नहीं मिला है। उन्होंने कहा, ‘अबतक हमारे पर इस बात का सबूत नहीं है कि कोई खास दवा प्रभावी है, इसलिए तब तक हम किसी दवा को पासा पलटने वाला नहीं कह सकते। इन दवाओं को लांच किए जाने के साथ ही भविष्य में यह स्पष्ट होगा कि वे कितनी कारगर होंगी। क्या वे कोविड-19 के उपचार में सहायक भूमिका निभा सकती हैं, यह भी अभी तक पता नहीं है।’ कोरोना की एक और दवा को भारत में मंजूरी, साबित हो सकती है ‘गेमचेंजर
फोर्टिस अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनोलोजी ऐंड स्लीप डिसओर्डर के निदेशक डॉ. विकास मौर्या ने कहा कि रेमडेसिविर और फेवीपिराविर कोई पासा पलटने वाला नहीं है, क्योंकि वे अन्य बीमारियों में इस्तेमाल में लाई जाती हैं। अब वे कुछ हद तक कोविड-19 के मरीजों के उपचार में उपयोगी पायी गयी हैं। उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि जो ये दवाइयां लेंगे जो वे ठीक हो जाएंगे।’
मौर्या ने कहा कि यह जरूर पाया गया है कि वे वायरस का असर कुछ कम कर देती हैं लेकिन वे पासा पलटने वाली नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘हां, यह सकारात्मक घटनाक्रम है, क्योंकि कुछ न होने से बेहतर है कि हाथ में कुछ हो। मनोवैज्ञानिक असर भी है कि कुछ दिया जा रहा है जिसका कुछ लाभ हो सकता है।’
कोरोना: इलाज के लिए भारत में आ गई तीसरी दवाभारत में कोरोनावायरस पर लगाम लगाने के लिए अब मार्केट में एक के बाद एक दवा आने का सिलसिला शुरू हो चुका है। पहले ग्लेन फार्मा ने कोरोना की दवा पेश की इसके बाद हेटरो लैब्स ने और अब तीसरी दवा मुंबई की सिप्ला कंपनी ने कोरोना मरीजों के लिए दवा पेश की है।
मैक्स अस्पताल के इंटरनल मेडिसीन के असोसिएट निदेशक डॉ. रोम्मल टिक्कू ने भी मौर्या जैसी ही राय प्रकट की। टिक्कू ने कहा, ‘इन दवाओं पर जो भी अध्ययन किए गए हैं वे बहुत सीमित हैं इसलिए उन्हें पासा पलटने वाला नहीं कहा जा सकता, लेकिन उनका लॉन्च एक सकारात्मक कदम है, क्योंकि कुछ भी नहीं से बेहतर कुछ होना है।’ कुछ अन्य चिकित्सा विशेषज्ञों ने भी ऐसी ही बात कही।(यह आर्टिकल एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड हुआ है। इसे नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम ने एडिट नहीं किया है।)
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