#धातु की ध्वनि
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हार्ट फेल्योर: कारण और जानकारी, डॉ. एमडी. फ़रहान शिकोह की दृष्टि से, कार्डियोलॉजिस्ट
हार्ट फेल्योर एक ही स्थिति नहीं है बल्कि यह हार्ट की क्षमता को प्रभावी रूप से पंप करने में प्रभावित करने वाली विभिन्न स्थितियों का एक शब्द है। सामान्य धारणा के विपरीत, यह निश्चित रूप से हार्ट का एक अचानक रुकावा नहीं है बल्कि एक ऐसी अवधि है जो समय के साथ विकसित होती है, जिससे इसकी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है।
डॉ. फ़रहान शिकोह उन विभिन्न कारणों को महत्वपूर्ण बताते हैं जिनसे हार्ट फेल्योर हो सकता है। इनमें शामिल हैं:
कोरोनरी धमनी रोग (केडी): केडी हार्ट फेल्योर का एक प्रमुख कारण है। यह तब होता है जब हृदय को रक्त प्रदान करने वाली धमनियों में प्लैक का निर्माण होता है, जिससे हृदय को रक्त का नियमित आपूर्ति नहीं होता है।
उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन): लगातार उच्च रक्तचाप हृदय पर अतिरिक्त दबाव डालता है, अंततः इसके पंजे को कमजोर कर देता है और हार्ट फेल्योर का कारण बनता है।
कार्डियोमायोपैथी: इस स्थिति में हृदय के मांसपेशियों को क्षति पहुंचती है, जो संक्रमण, शराब का दुरुपयोग या आनुवांशिक कारकों से हो सकती है, जिससे हृदय की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है।
धातु धमनी रोग: कमजोर हृदय ध्वनि की अशुद्धि धातु धमनियों में रक्त प्रवाह को बाधित कर सकती है, जिससे समय के साथ हार्ट फेल्योर हो सकता है।
अन्य कारक: हार्ट फेल्योर अन्य स्थितियों की वजह से भी हो सकता है जैसे कि मधुमेह, मोटापा, थायराइड विकार और कुछ दवाओं की वजह से।
Dr. Md. Farhan Shikoh, MBBS, MD (Medicine), DM (Cardiology) महत्वपूर्ण हार्ट स्वास्थ्य और हार्ट फेल्योर से संबंधित चिंताओं के लिए व्यापक कार्डियक देखभाल प्रदान करते हैं। रांची, झारखंड में सुकून हार्ट केयर में डॉ. एमडी. फ़रहान शिकोह से संपर्क करने के लिए 6200784486 पर संपर्क करें या और जानकारी के लिए drfarhancardiologist.com पर जाएं।
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पुरस्कारों की एक धारा: ऑस्कर 2021 पर
पुरस्कारों की एक धारा: ऑस्कर 2021 पर
इस वर्ष के ऑस्कर ने कई प्रथम देखे, और निरंतरता और पूर्वानुमान की उचित मात्रा भी पिछले साल के ऑस्कर स्वीप के बाद परजीवी, इस मिथक को दबाने वाले लोग थे कि बिजली एक ही जगह पर दो बार हमला नहीं करेगी। यह इस तरह से किया 93 वाँ अकादमी पुरस्कार, जब बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड साउ��-कोरिया के यूं युंग-जंग को गया था, तो वह जल्द ही दिल खोलकर दादी के रूप में अपनी भूमिका के लिए मीनारी, ग्लेन क्लोज के…
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#93 वाँ अकादमी पुरस्कार#एंथनी हॉपकिंस#एक स्त्री के टुकड़े#ऑस्कर#क्लो झाओ#ग्लेन क्लोज#घुमंतू जाति#चैडविक बोसमैन#डेविड फिंचर का मैनक#दक्षिण कोरियाई यूं युह-जंग#दो दूर के अजनबी#धातु की ध्वनि#निरंतरता और भविष्यवाणी#परजीवी#पिता#पुरस्कारों की ��क धारा#पुलिस बर्बरता#फ्रांसिस मैकडोरमैंड#भेड़ के बच्चे की चुप्पी#महामारी और तालाबंदी#मा रायनी का ब्लैक बॉटम#मीनारी#वन नाइट इन मियामी#शिकागो 7 का परीक्षण#संपादकीय#स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म#हिलबिली एलगी
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Oscars 2021: ब्लैक बॉटम, नोमैडलैंड और मेटल ऑफ साउंड ने जीता ऑस्कर, एक्ट्रेस एन रोथ ने रचा इतिहास
Oscars 2021: ब्लैक बॉटम, नोमैडलैंड और मेटल ऑफ साउंड ने जीता ऑस्कर, एक्ट्रेस एन रोथ ने रचा इतिहास
ऑस्कर 2021: ब्लैक बॉटम, नोमैडलैंड और मेटल ऑफ़ साउंड ने जीता ऑस्कर, एक्ट्रेस एन रोथ ने रचा इतिहास। Source link
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#93 अकादमी अवार्ड#93 अकादमी पुरस्कार#अकादमी अवार्ड#अनादर राउटर#एक और सीमा#ऑस्कर 2021#ऑस्कर अवार्ड सेरेमनी#ऑस्कर अवार्ड्स#घुमंतू जाति#ध्वनि की धातु#नोमैनलैंड#ब्लैक बॉटम#वॉट ऑफ साउंड#शैक्षणिक पुरस्कार
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स्वास्तिक एक चिन्ह और काल -
कोई भी चिन्हने कुछ न कुछ प्रदर्शित ही होता है | इसलिए चिन्ह का महत्व बहुत है | इसलिए जब भी कही कोई खुदाई में चीजें मिलती है तो पुरातत्व विभाग वालों खुदाई में मिलने वाली चीजें का अवलोकन करते है और कई दफा वो चिन्ह से पता लगाते है की ये किस काल की चीजें और उस समय किसका शासन था |क्योकि पुराने दौर में भी या कहे अभी के दौर में लोगों को खुश होना या कोई नया काम प्रदर्शित करने के लिए शुभ चिन्ह प्रयोग करते रहे है |इसलिए आज हम ऐसे ही एक सुप्रसिद्ध चिन्ह के बारे में बात करने वाले है |जो आपको हर जगह दिखाई ��े जाता है | उसका नाम 'स्वास्तिक' है | ये चिन्ह सिर्फ हिंदू धर्म के आलावा स्वास्तिक का उपयोग आपको बौद्ध, जैन धर्म और हड़प्पा सभ्यता तक में भी देखने को मिलेगा। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को "बेहद शुभ हो" और "अच्छे कर्म" का प्रतीक माना जाता है।
स्वास्तिक का अर्थ -
स्वास्तिक शब्द मूलभूत 'सु+अस' धातु से बना है। 'सु' का अर्थ कल्याणकारी एवं मंगलमय है,' अस 'का अर्थ है अस्तित्व एवं सत्ता। इस प्रकार स्वास्तिक का अर्थ हुआ ऐसा अस्तित्व, जो शुभ भावना से भरा और कल्याणकारी हो। जहाँ अशुभता, अमंगल एवं अनिष्ट का लेश मात्र भय न हो। साथ ही सत्ता,जहाँ केवल कल्याण एवं मंगल की भावना ही निहित हो और सभी के लिए शुभ भावना सन्निहित हो इसलिए स्वास्तिक को कल्याण की सत्ता और उसके प्रतीक के रूप में निरूपित किया जाता है।
भारतीय वेदों से स्वास्तिक का आशय -
ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है।मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है।
विभिन्न धर्म और स्वास्तिक-
ये चिन्ह हिन्दू धर्म के आलावा और भी धर्मों ने अपनाया है |जैसे स्वस्तिक का चिन्ह भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में देखने को मिल जायेगा।स्वास्तिक बौद्ध सिंबल है। स्वस्तिक मतलब अतः दिपः भवः। बुद्ध ने कहा खुद पर भरोसा करो, किसी वेदों पर या देवी देवताओं पर नहीं। स्व आस्तिक मतलब खुद पर भरोसा करना। इसके अलावा जैन धर्म की बात करें, तो जैन धर्म में यह सातवां जिन का प्रतीक है, जिसे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं।तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का शुभ चिह्न है स्वस्तिक जिसे साथिया या सातिया भी कहा जाता है।स्वस्तिक की चार भुजाएं चार गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन गुफाओं और मंदिरों की दीवारों पर भी यह स्वस्तिक प्रतीक अंकित मिलता है। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।इसी प्रकार कहा जाता है कि हड़प्पा सभ्यता की खुदाई की गई तो वहां से भी स्वास्तिक का चिन्ह निकला था।
हिटलर के स्वास्तिक और हमारे स्वास्तिक में क्या है अंतर -
प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'वामावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही 'वामावर्त स्वस्तिक' अंकित था|आपको किसी मांगलिक कार्य के दौरान अगर कोई स्वास्तिक चिह्न दिखे तो जानिए कि वो दक्षिणावर्त है| नाज़ी सेना द्वारा यूज़ किया गया स्वास्तिक वामावर्त था| दक्षिणावर्त वाले चिह्न को स्वास्तिक और वामावर्त वाले को सौवास्तिक कहा जाता है| सौवास्तिक का यूज़ आपको बौद्ध धर्म में भी दिखता है|
स्वास्तिक बनाने का सही तरीका क्या है ?
ज्योतिषी और वास्तु विद बताते हैं कि स्वास्तिक बनाने के लिए हमेशा लाल रंग के कुमकुम, हल्दी अथवा अष्टगं��, सिंदूर का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले धन (प्लस) का चिन्ह बनाना चाहिए और ऊपर की दिशा ऊपर के कोने से स्वास्तिक की भुजाओं को बनाने की शुरुआत करनी चाहिए।आप अक्सर लाल या पीले रंग के स्वास्तिक को बना हुआ ही देखते होंगे, लेकिन कई जगह आपको काले रंग से बना हुआ स्वास्तिक भी दिखाई देता है। इसमें घबराने की बात नहीं है, बल्कि काले रंग के कोयले से बने स्वास्तिक को बुरी नजर से बचाने का उपाय माना जाता है।
स्वास्तिक से मिलते -जुलते चिन्ह कई देशों में क्या है अर्थ -से
फ़्रांस में घुड़सवारी का यह भावचित्र एक सड़क-चिह्न है जापान में यह भावचित्र 'पानी' का अर्थ देता है भारत का स्वस्तिक भावचित्र 'शुभ' का अर्थ देता है चित्रलिपि ऐसी लिपि को कहा जाता है जिसमें ध्वनि प्रकट करने वाली अक्षरमाला की बजाए अर्थ प्रकट करने वाले भावचित्र (इडियोग्रैम) होते हैं। यह भावचित्र ऐसे चित्रालेख चिह्न होते हैं जो कोई विचार या अवधारणा (कॉन्सॅप्ट) व्यक्त करें। कुछ भावचित्र ऐसे होते हैं कि वह किसी चीज़ को ऐसे दर्शाते हैं कि उस भावचित्र से अपरिचित व्यक्ति भी उसका अर्थ पहचान सकता है, मसलन 'छाते' के लिए छाते का चिह्न जिसे ऐसा कोई भी व्यक्ति पहचान सकता है जिसने छाता देखा हो। इसके विपरीत कुछ भावचित्रों का अर्थ केवल उनसे परिचित व्यक्ति ही पहचान पाते हैं, मसलन 'ॐ' का चिह्न 'ईश्वर' या 'धर्म' की अवधारणा व्यक्त करता है और '६' का चिह्न छह की संख्या की अवधारणा व्यक्त करता है। हमारा उद्देश्य रहता है की आपको हमेशा कोई नया नजरिया प्रस्तुत कर सके | आपको अच्छा लगे तो हमे जरूर अवगत कराया |
#अच्छेकर्मअस्तित्व#इसकाइतिहासक्याउल्टास्वास्तिक#चारभुजाओंको चारदिशाओंकीउपमा#जैनधर्मतीर्थंकर सुपार्श्वनाथ#दक्षिणावर्त#पुरातत्वविभाग#बेहदशुभहो#बौद्धधर्ममेंस्वास्तिक#बौद्ध#भारतीयवेदोंसेस्वास्तिककाआशय#हिटलरके स्वास्तिकऔरहमारेस्वास्तिकमेंक्याहैअंतर#हड़प्पासभ्यताकीखुदाई#स्वास्तिकसेमिलतेजुलतेचिन्हकईदेशोंमेंक्याहैअर्थ#स्वास्तिकशब्दमूलभूत#स्वास्तिककोकल्याणकीसत्ता#स्वास्तिककोअष्टमंगलका मुख्यप्रतीक#स्वास्तिककाअर्थहुआऐसाअस्तित्व#स्वास्तिककाचिन्हनिकला#शुभचिन्ह
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भाषा (Language) की परिभाषा - भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में- जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है। सरल शब्दों में- सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है। आदिमानव अपने मन के भाव एक-दूसरे को समझाने व समझने के लिए संकेतों का सहारा लेते थे, परंतु संकेतों में पूरी बात समझाना या समझ पाना बहुत कठिन था। आपने अपने मित्रों के साथ संकेतों में बात समझाने के खेल (dumb show) खेले होंगे। उस समय आपको अपनी बात समझाने में बहुत कठिनाई हुई होगी। ऐसा ही आदिमानव के साथ होता था। इस असुविधा को दूर करने के लिए उसने अपने मुख से निकली ध्वनियों को मिलाकर शब्द बनाने आरंभ किए और शब्दों के मेल से बनी- भाषा। भाषा शब्द संस्कृत के भाष धातु से बना है। जिसका अर्थ है- बोलना। कक्षा में अध्यापक अपनी बात बोलकर समझाते हैं और छात्र सुनकर उनकी बात समझते हैं। बच्चा माता-पिता से बोलकर अपने मन के भाव प्रकट करता है और वे उसकी बात सुनकर समझते हैं। इसी प्रकार, छात्र भी अध्यापक द्वारा समझाई गई बात को लिखकर प्रकट करते हैं और अध्यापक उसे पढ़कर मूल्यांकन करते हैं। सभी प्राणियों द्वारा मन के भावों का आदान-प्रदान करने के लिए भाषा का प्रयोग किया जाता है। पशु-पक्षियों की बोलियों को भाषा नहीं कहा जाता। इसके द्वारा मनुष्य के भावो, विचारो और भावनाओ को व्यक्त किया जाता है। वैसे भी भाषा की परिभाषा देना एक कठिन कार्य है। फिर भी भाषावैज्ञानिकों ने इसकी अनेक परिभाषा दी है। किन्तु ये परिभाषा पूर्ण नही है। हर में कुछ न कुछ त्रुटि पायी जाती है। आचार्य देवनार्थ शर्मा ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार बनायी है। उच्चरित ध्वनि संकेतो की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते है उस यादृच्छिक, रूढ़ ध्वनि संकेत की प्रणाली को भाषा कहते है। यहाँ तीन बातें विचारणीय है- (1) भाषा ध्वनि संकेत है। (2) वह यादृच्छिक है। (3) वह रूढ़ है। (1) सार्थक शब्दों के समूह या संकेत को भाषा कहते है। यह संकेत स्पष्ट होना चाहिए। मनुष्य के जटिल मनोभावों को भाषा व्यक्त करती है; किन्तु केवल संकेत भाषा नहीं है। रेलगाड़ी का गार्ड हरी झण्डी दिखाकर यह भाव व्यक्त करता है कि गाड़ी अब खुलनेवाली है; किन्तु भाषा में इस प्रकार के संकेत का महत्त्व नहीं है। सभी संकेतों को सभी लोग ठीक-ठीक समझ भी नहीं पाते और न इनसे विचार ही सही-सही व्यक्त हो पाते हैं। सारांश यह है कि भाषा को सार्थक और स्पष्ट होना चाहिए। (2) भाषा यादृच्छिक संकेत है। यहाँ शब्द और अर्थ में कोई तर्क-संगत सम्बन्ध नहीं रहता। बिल्ली, कौआ, घोड़ा, आदि को क्यों पुकारा जाता है, यह बताना कठिन है। इनकी ध्वनियों को समाज ने स्वीकार कर लिया है। इसके पीछे कोई तर्क नहीं है। (3) भाषा के ध्वनि-संकेत रूढ़ होते हैं। परम्परा या युगों से इनके प्रयोग होते आये हैं। औरत, बालक, वृक्ष आदि शब्दों का प्रयोग लोग अनन्तकाल से करते आ रहे है। बच्चे, जवान, बूढ़े- सभी इनका प्रयोग करते है। क्यों करते है, इसका कोई कारण नहीं है। ये प्रयोग तर्कहीन हैं। प्रत्येक देश की अपनी एक भाषा होती है। हमारी राष्टभाषा हिंदी है। संसार में अनेक भाषाए है। जैसे- हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, बँगला, गुजराती, उर्दू, तेलगु, कन्नड़, चीनी, जमर्न आदिै। हिंदी के कुछ भाषावैज्ञानिकों ने भाषा के निम्नलिखित लक्षण दिए है। डॉ शयामसुन्दरदास के अनुसार - मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुअों के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है। डॉ बाबुराम सक्सेना के अनुसार- जिन ध्वनि-चिंहों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-बिनिमय करता है उसको समष्टि रूप से भाषा कहते है। उपर्युक्त परिभाषाओं से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते है- (1) भाषा में ध्वनि-संकेतों का परम्परागत और रूढ़ प्रयोग होता है। (2) भाषा के सार्थक ध्वनि-संकेतों से मन की बातों या विचारों का विनिमय होता है। (3) भाषा के ध्वनि-संकेत किसी समाज या वर्ग के आन्तरिक और ब्रा��्य कार्यों के संचालन या विचार-विनिमय में सहायक होते हैं। (4) हर वर्ग या समाज के ध्वनि-संकेत अपने होते हैं, दूसरों से भित्र होते हैं। भाषा एक संप्रेषण के रूप में : 'संप्रेषण' एक व्यापक शब्द है। संप्रेषण के अनेक रूप हो सकते हैं। कुछ लोग इशारों से अपनी बात एक-दूसरे तक पहुँचा देते हैं, पर इशारे भाषा नहीं हैं। भाषा भी संप्रेषण का एक रूप है। भाषा के संप्रेषण में दो लोगों का होना जरूरी होता है- एक अपनी बात को व्यक्त करने वाला, दूसरा उसकी बात को ग्रहण करने वाला। जो भी बात इन दोनों के बीच में संप्रेषित की जाती है, उसे 'संदे
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👌इसे सेव कर सुरक्षित कर ले। ऐसी पोस्ट कम ही आती है।
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)
■ काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भार��्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।
आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।
नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।
दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।
*उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हे.....💐
जय श्री राम राधे कृष्णा राधे श्याम🙏🙏
ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो सके आपका आभार धन्यवाद होगा
1-अष्टाध्यायी पाणिनी
2-रामायण वाल्मीकि
3-महा��ारत वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र चाणक्य
5-महाभाष्य ��तंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र नागार्जुन
7-बुद्धचरित अश्वघोष
8-सौंदरानन्द अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता भास
11-कामसूत्र वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम् कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम् कालिदास
14-विक्रमोउर्वशियां कालिदास
15-मेघदूत कालिदास
16-रघुवंशम् कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम् कालिदास
18-नाट्यशास्त्र भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम् शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता बरामिहिर
23-पंचतंत्र। विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर सोमदेव
25-अभिधम्मकोश वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस विशाखदत्त
27-रावणवध। भटिट
28-किरातार्जुनीयम् भारवि
29-दशकुमारचरितम् दंडी
30-हर्षचरित वाणभट्ट
31-कादंबरी वाणभट्ट
32-वासवदत्ता सुबंधु
33-नागानंद हर्षवधन
34-रत्नावली हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय जयानक
38-कर्पूरमंजरी र���जशेखर
39-काव्यमीमांसा राजशेखर
40-नवसहसांक चरित पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन राजभोज
42-वृहतकथामंजरी क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित बिल्हण
45-कुमारपालचरित हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी कल्हण
49-रासमाला सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध माघ
51-गौडवाहो वाकपति
52-रामचरित सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य हेमचन्द्र
वेद-ज्ञान:-
प्र.1- वेद किसे कहते है ?
उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।
प्र.2- वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने दिया।
प्र.3- ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।
प्र.4- ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।
प्र.5- वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।
1-ऋग्वेद
2-यजुर्वेद
3-सामवेद
4-अथर्ववेद
प्र.6- वेदों के ब्राह्मण ।
वेद ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद - ऐतरेय
2 - यजुर्वेद - शतपथ
3 - सामवेद - तांड्य
4 - अथर्ववेद - गोपथ
प्र.7- वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर - चार।
वेद उपवेद
1- ऋग्वेद - आयुर्वेद
2- यजुर्वेद - धनुर्वेद
3 -सामवेद - गंधर्ववेद
4- अथर्ववेद - अर्थवेद
प्र 8- वेदों के अंग हैं ।
उत्तर - छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष
प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
वेद ऋषि
1- ऋग्वेद - अग्नि
2 - यजुर्वेद - वायु
3 - सामवेद - आदित्य
4 - अथर्ववेद - अंगिरा
प्र.10- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।
प्र.11- वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर- सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।
प्र.12- वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- चार ।
ऋषि विषय
1- ऋग्वेद - ज्ञान
2- यजुर्वेद - कर्म
3- सामवे - उपासना
4- अथर्ववेद - विज्ञान
प्र.13- वेदों में।
ऋग्वेद में।
1- मंडल - 10
2 - अष्टक - 08
3 - सूक्त - 1028
4 - अनुवाक - 85
5 - ऋचाएं - 10589
यजुर्वेद में।
1- अध्याय - 40
2- मंत्र - 1975
सामवेद में।
1- आरचिक - 06
2 - अध्याय - 06
3- ऋचाएं - 1875
अथर्ववेद में।
1- कांड - 20
2- सूक्त - 731
3 - मंत्र - 5977
प्र.14- वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ? उत्तर- मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
प्र.15- क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर- बिलकुल भी नहीं।
प्र.16- क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर- नहीं।
प्र.17- सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर- ऋग्वेद।
प्र.18- वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर- वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व ।
प्र.19- वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर-
1- न्याय दर्शन - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन - व्यास मुनि।
प्र.20- शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर- आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान आदि।
प्र.21- प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर- केवल ग्यारह।
प्र.22- उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-
01-ईश ( ईशावास्य )
02-केन
03-कठ
04-प्रश्न
05-मुंडक
06-मांडू
07-ऐतरेय
08-तैत्तिरीय
09-छांदोग्य
10-वृहदारण्यक
11-श्वेताश्वतर ।
प्र.23- उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए ग�� है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर-
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र
प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000 वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000 वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000 वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000 वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122 वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है।
पंच महायज्ञ
1- ब्रह्मयज्ञ
2- देवयज्ञ
3- पितृयज्ञ
4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
5- अतिथियज्ञ
स्वर्ग - जहाँ सुख है।
नरक - जहाँ दुःख है।.
*#भगवान_शिव के "35" रहस्य!!!!!!!!
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में ��ैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महा��ाल।
*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -* ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
*🔱19.* तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं �� ॥ है।
*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -* शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वर���प है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।
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Wind chime for feng shui | विंड चाइम्स
जब भी फेंगशुई की बात होती है, तो सजावट की जिस वस्तु का ध्यान हमारे दिमाग में सबसे पहले आता है, वो विंड चाइम्स (wind chime) होती है।
इनका प्रयोग घर के बाहर,भीतर दोनों जगह किया जाता है। इनकी ध्वनि किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
विंड चाइम्स का उपयोग करने के दो मुख्य कारण हैं, पहला वे ध्वनि ऊर्जा कंपन उत्पन्न करती हैं, दूसरा ये आपके आसपास की ऊर्जा में धातु तत्व को सम्मिलित करती हैं।
विंड चाइम्स की सहायता से फेंगशुई के जानकार अंतरिक्ष की ऊर्जा को आपके आसपास के वातावरण में स्थानांतरित करते हैं।
नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने एवं नई सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करने के लिए एक विंड चाइम का उपयोग अंतरिक्ष समाशोधन उपकरण के रूप में भी किया जाता है।
#fengshui#vastu#vastuconsultant#vastudesign#vastuhome#vastulogy#vasturemedies#vastushastra#vastutips#vastuvidya
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*विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)*
■ काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।
आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।
नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।
दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।
*उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर...*
ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो सके आपका आभार धन्यवाद होगा
1-अष्टाध्यायी पाणिनी
2-रामायण वाल्मीकि
3-महाभारत वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र चाणक्य
5-महाभाष्य पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र नागार्जुन
7-बुद्धचरित अश्वघोष
8-सौंदरानन्द अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता भास
11-कामसूत्र वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम् कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम् कालिदास
14-विक्रमोउर्वशियां कालिदास
15-मेघदूत कालिदास
16-रघुवंशम् कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम् कालिदास
18-नाट्यशास्त्र भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम् शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता बरामिहिर
23-पंचतंत्र। विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर सोमदेव
25-अभिधम्मकोश वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस विशाखदत्त
27-रावणवध। भटिट
28-किरातार्जुनीयम् भारवि
29-दशकुमारचरितम् दंडी
30-हर्षचरित वाणभट्ट
31-कादंबरी वाणभट्ट
32-वासवदत्ता सुबंधु
33-नागानंद हर्षवधन
34-रत्नावली हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय जयानक
38-कर्पूरमंजरी राजशेखर
39-काव्यमीमांसा राजशेखर
40-नवसहसांक चरित पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन राजभोज
42-वृहतकथामंजरी क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित बिल्हण
45-कुमारपालचरित हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी कल्हण
49-रासमाला सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध माघ
51-गौडवाहो वाकपति
52-रामचरित सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य हेमचन्द्र
वेद-ज्ञान:-
प्र.1- वेद किसे कहते है ?
उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।
प्र.2- वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने दिया।
प्र.3- ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।
प्र.4- ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।
प्र.5- वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।
1-ऋग्वेद
2-यजुर्वेद
3-सामवेद
4-अथर्ववेद
प्र.6- वेदों के ब्राह्मण ।
वेद ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद - ऐतरेय
2 - यजुर्वेद - शतपथ
3 - सामवेद - तांड्य
4 - अथर्ववेद - गोपथ
प्र.7- वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर - चार।
वेद उपवेद
1- ऋग्वेद - आयुर्वेद
2- यजुर्वेद - धनुर्वेद
3 -सामवेद - गंधर्ववेद
4- अथर्ववेद - अर्थवेद
प्र 8- वेदों के अंग हैं ।
उत्तर - छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष
प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
वेद ऋषि
1- ऋग्वेद - अग्नि
2 - यजुर्वेद - वायु
3 - सामवेद - आदित्य
4 - अथर्ववेद - अंगिरा
प्र.10- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।
प्र.11- वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर- सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।
प्र.12- वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- चार ।
ऋषि विषय
1- ऋग्वेद - ज्ञान
2- यजुर्वेद - कर्म
3- सामवे - उपासना
4- अथर्ववेद - विज्ञान
प्र.13- वेदों में।
ऋग्वेद में।
1- मंडल - 10
2 - अष्टक - 08
3 - सूक्त - 1028
4 - अनुवाक - 85
5 - ऋचाएं - 10589
यजुर्वेद में।
1- अध्याय - 40
2- मंत्र - 1975
सामवेद में।
1- आरचिक - 06
2 - अध्याय - 06
3- ऋचाएं - 1875
अथर्ववेद में।
1- कांड - 20
2- सूक्त - 731
3 - मंत्र - 5977
प्र.14- वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ? उत्तर- मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
प्र.15- क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर- बिलकुल भी नहीं।
प्र.16- क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर- नहीं।
प्र.17- सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर- ऋग्वेद।
प्र.18- वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर- वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व ।
प्र.19- वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर-
1- न्याय दर्शन - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन - पतंजलि मुनि।
4- मीमां���ा दर्शन - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन - व्यास मुनि।
प्र.20- शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर- आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान आदि।
प्र.21- प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर- केवल ग्यारह।
प्र.22- उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-
01-ईश ( ईशावास्य )
02-केन
03-कठ
04-प्रश्न
05-मुंडक
06-मांडू
07-ऐतरेय
08-तैत्तिरीय
09-छांदोग्य
10-वृहदारण्यक
11-श्वेताश्वतर ।
प्र.23- उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर-
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र
प्र.25- *चार युग।*
1- सतयुग - 17,28000 वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000 वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000 वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000 वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122 वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है।
*पंच महायज्ञ*
1- ब्रह्मयज्ञ
2- देवयज्ञ
3- पितृयज्ञ
4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
5- अतिथियज्ञ
स्वर्ग - जहाँ सुख है।
नरक - जहाँ दुःख है।.
*# *भगवान_शिव के "35" रहस्य!!!!!!!!*
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -* ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्��� तथा भव।
*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
*🔱19.* तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।
*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -* शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।
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Bhasha Kise Kahate Hain - भाषा किसे कहते हैं, परिभाषा, उदाहरण
हैलो मित्रों। इस पोस्ट में हम भाषा (Bhasha) का अध्ययन करेंगे: भाषा की परिभाषा: भाषा किसे कहते हैं?, प्रकार या भेद और उदाहरण। इससे आपको यह समझने में मदद मिलेगी। पोस्ट को अंत तक पढ़ें
भाषा (Bhasha) किसे कहते हैं:
भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है।
अथवा
जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है।
अथवा
सरल शब्दों में: सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है।
डॉ शयामसुन्दरदास के अनुसार: – मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुअों के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है।
उपर्युक्त परिभाषाओं से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते है: (1) भाषा में ध्वनि-संकेतों का परम्परागत और रूढ़ प्रयोग होता है। (2) भाषा के सार्थक ध्वनि-संकेतों से मन की बातों या विचारों का विनिमय होता है। (3) भाषा के ध्वनि-संकेत किसी समाज या वर्ग के आन्तरिक और ब्राह्य कार्यों के संचालन या विचार-विनिमय में सहायक होते हैं। (4) हर वर्ग या समाज के ध्वनि-संकेत अपने होते हैं, दूसरों से भित्र होते हैं।
भाषा शब्द संस्कृत के भाष धातु से बना है। जिसका अर्थ है- बोलना।
कक्षा में अध्यापक अपनी बात बोलकर समझाते हैं और छात्र सुनकर उनकी बात समझते हैं। बच्चा माता-पिता से बोलकर अपने मन के भाव प्रकट करता है और वे उसकी बात सुनकर समझते हैं।
इसी प्रकार, छात्र भी अध्यापक द्वारा समझाई गई बात को लिखकर प्रकट करते हैं और अध्यापक उसे पढ़कर मूल्यांकन करते हैं। सभी प्राणियों द्वारा मन के भावों का आदान-प्रदान करने के लिए भाषा का प्रयोग किया जाता है। पशु-प��्षियों की बोलियों को भाषा नहीं कहा जाता।
इसके द्वारा मनुष्य के भावो, विचारो और भावनाओ को व्यक्त किया जाता है। वैसे भी भाषा की परिभाषा देना एक कठिन कार्य है। फिर भी भाषावैज्ञानिकों ने इसकी अनेक परिभाषा दी है। किन्तु ये परिभाषा पूर्ण नही है। हर में कुछ न कुछ त्रुटि पायी जाती है।
आचार्य देवनार्थ शर्मा ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार बनायी है। उच्चरित ध्वनि संकेतो की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते है उस यादृच्छिक, रूढ़ ध्वनि संकेत की प्रणाली को भाषा कहते है।
यहाँ तीन बातें विचारणीय है-
(1) भाषा ध्वनि संकेत है
(2) वह यादृच्छिक है
(3) वह रूढ़ है |
1. सार्थक शब्दों के समूह या संकेत को भाषा कहते है। यह संकेत स्पष्ट होना चाहिए। मनुष्य के जटिल मनोभावों को भाषा व्यक्त करती है; किन्तु केवल संकेत भाषा नहीं है। रेलगाड़ी का गार्ड हरी झण्डी दिखाकर यह भाव व्यक्त करता है कि गाड़ी अब खुलनेवाली है; किन्तु भाषा में इस प्रकार के संकेत का महत्त्व नहीं है। सभी संकेतों को सभी लोग ठीक-ठीक समझ भी नहीं पाते और न इनसे विचार ही सही-सही व्यक्त हो पाते हैं। सारांश यह है कि भाषा को सार्थक और स्पष्ट होना चाहिए।
2. भाषा यादृच्छिक संकेत है। यहाँ शब्द और अर्थ में कोई तर्क-संगत सम्बन्ध नहीं रहता। बिल्ली, कौआ, घोड़ा, आदि को क्यों पुकारा जाता है, यह बताना कठिन है। इनकी ध्वनियों को समाज ने स्वीकार कर लिया है। इसके पीछे कोई तर्क नहीं है।
3. भाषा के ध्वनि-संकेत रूढ़ होते हैं। परम्परा या युगों से इनके प्रयोग होते आये हैं। औरत, बालक, वृक्ष आदि शब्दों का प्रयोग लोग अनन्तकाल से करते आ रहे है। बच्चे, जवान, बूढ़े- सभी इनका प्रयोग करते है। क्यों करते है, इसका कोई कारण नहीं है। ये प्रयोग तर्कहीन हैं।
भाषा व्यक्त करने के चाहे जो भी तरीके हों, हम किसी-न-किसी शब्द, शब्द-समूहों या भावों की ओर ही इशारा करते हैं जिनसे सामनेवाले अवगत होता है। इसलिए भाषा में हम केवल सार्थक शब्दों की बातें करते हैं। इन शब्दों या शब्द-समूहों (वाक्यों) द्वारा हम अपनी आवश्यकताएँ, इच्छाएँ, प्रसन्नता या खिन्नता, प्रेम या घृणा, क्रोध अथवा संतोष प्रकट करते हैं। हम शब्दों का प्रयोग कर बड़े-बड़े काम कर जाते हैं या मूर्खतापूर्ण प्रयोग कर बने-बनाए काम को बिगाड़ बैठते हैं।
हम इसके प्रयोग कर किसी क्रोधी के क्रोध का शमन कर जाते हैं तो किसी शांत-गंभीर व्यक्ति को उत्तेजित कर बैठते हैं। किसी को प्रोत्साहित तो किसी को हतोत्साहित भी हम शब्द-प्रयोग से ही करते हैं। कहने का यह तात्पर्य है कि हम भाषा के द्वारा बहुत सारे कार्यो को करते हैं। हमारी सफलता या असफलता (अभिव्यक्ति के अर्थ में) हमारी भाषायी क्षमता पर निर्भर करती है।
भाषा से हमारी योग्यता-अयोग्यता सिद्ध होती है। जहाँ अच्छी और सुललित भाषा हमें सम्मान दिलाती है वहीं अशुद्ध और फूहड़ भाषा हमें अपमानित कर जाती है (समाज में) । स्पष्ट है कि भाषा ही मनुष्य की वास्तविक योग्यता, विद्वत्ता और बुद्धिमता, उसके अनुशीलन, मनन और विचारों की गंभीरता उसके गूढ़ उद्देश्य तथा उसके स्वभाव, सामाजिक स्थिति का परिचय देती है।
कोई अपमानित होना नहीं चाहता। अतएव, हमें सदैव सुन्दर और प्रभावकारिणी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि हमारा प्रयत्न निरंतर जारी रहे। भाषा में पैठ एवं अच्छी जानकारी के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर हमेशा ध्यान देना चाहिए-
(i) हम छोटी-छोटी भूलों पर सूक्ष्म दृष्टि रखें और उसे दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहें। चाहे जहाँ कहीं भी हों अपनी भाषायी सीमा का विस्तार करें। दूसरों की भाषा पर भी ध्यान दें।
(ii) खासकर बच्चों की भाषा पर विशेष ध्यान दें। यदि हम उनकी भाषा को शुरू से ��ी व्यवस्थित रूप देने में सफल होते हैं तो निश्चित रूप से उसका (भाषा का) वातावरण तैयार होगा।
(iii) सदा अच्छी व ज्ञानवर्द्धक पुस्तकों का अध्ययन करें। उन पुस्तकों में लिखे नये शब्दों के अर्थों एवं प्रयोगों को सीखें। लिखने एवं बोलने की शैली सीखें।
(iv) वाक्य-प्रयोग करते समय इस छोटी-सी बात का हमेशा ध्यान रखें- हर संज्ञा के लिए एक उपयुक्त विशेषण एवं प्रत्येक क्रिया के लिए सटीक क्रिया-विशेषण का प्रयोग हो।
(v) विराम-चिह्नों का प्रयोग उपयुक्त जगहों पर हो। लिखते और बोलते समय भी इस बात का ध्यान रहे।
(vi) मुहावरे, लो��ोक्तियों, बिम्बों आदि का प्रयोग करना सीखें और आस-पास के लोगों को सिखाएँ।
(vii) जिस भाषा में हम अधिक जानकारी बढ़ाना चाहते हैं, हमें उसके व्यावहारिक व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक है।
हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भाषा परिवर्तनशील होती है। किसी भाषा में नित नये शब्दों, वाक्यों का आगमन होते रहता है और पुराने शब्द टूटते, मिटते रहते हैं। किसी शब्द या वाक्य को पकड़े रहना कि यह ऐसा ही प्रयोग होता आया है और आगे भी ऐसा ही रहेगा या यही रहेगा- कहना भूल है। आज विश्व में कुल 2,796 भाषाएँ और 400 लिपियाँ मान्यता प्राप्त हैं। एक ही साथ इतनी भाषाएँ और लिपियाँ नहीं आई। इनका जन्म विकास के क्रम में हुआ, टूटने-फूटने से हुआ।
हम जानते हैं कि हर भाषा का अपना प्रभाव हुआ करता है। हर आदमी की अपने-अपने हिसाब से भाषा पर पकड़ होती है और उसी के अनुसार वह एक-दूसरे पर प्रभाव डालता है। जब पारस्परिक सम्पर्क के कारण एक जाति की भाषा का दूसरी जाति की भाषा पर असर पड़ता है, तब निश्चित रूप से शब्दों का आदान-प्रदान भी होता है।
इसे भी पढ़ें- वाक्य की परिभाषा, भेद, उदाहरण
यही कारण है कि कोई भाषा अपने मूल रूप में नहीं रह पाती और उससे अनेक शाखाएँ विभिन्न परिस्थितियों के कारण फूटती रहती हैं तथा अपना विस्तारकर अलग-अलग समृद्व भाषा का रूप ले लेती हैं। इस बात को हम एक सरल उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझने का प्रयास करें-
कल्पना कीजिए कि किसी कारण से अलग-अलग चार भाषाओं के लोग कुछ दिन तक एक साथ रहे। वे अपनी-अपनी भाषाओं में एक-दूसरे से बातें करते-सुनते रहे। चारों ने एक दूसरे की भाषा के शब्द ग्रहण किए और अपने-अपने साथ लेते गए। अब प्रश्न उठता है कि चारों में से किसी की भाषा अपने मूल रूप में रह पायी ?
इसी तरह यदि दो-चार पीढ़ियों तक उन चारों के परिवारों का एक-साथ उठना-बैठ��ा हो तो निश्चित रूप से विचार-विनिमय के लिए एक अलग ही किस्म की भाषा जन्म ले लेगी, जिसमें चारों भाषाओं के शब्दों और वाक्यों का प्रयोग होगा। उस नई भाषा में उक्त चारों भाषाओं के सरल और सहज उच्चरित होनेवाले शब्द ही प्रयुक्त होंगे वे भी अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार और सरलतम रूपों में; क्योंकि जब कोई एक भाषाभाषी दूसरी भाषा के शब्दों को ग्रहण करता है तो वह सरल से सरलतम शब्दों का चयन करके भी उसे अपने अनुसार सहज बना लेता है। निम्नलिखित उदाहरणों से इसका अंदाजा लगाएँ-
मूल शब्द : विकास के क्रम में बने सरल से सरलतम रूप (विभिन्न भाषाओं में)
बाह्य : बाह > बाहर मध्यम : मुझ सप्तत्रिंशत : सैंतीस मनस्कामना : मनोकामना दक्षिण : दखिन > दाहिन > दहिन > दाहिना परीक्षा : परिखा > परख अग्नि : अग्नि > आग कुमार (संस्कृत) : कुँवर जायगाह (फारसी) : जगह लीचू (चीनी) : लीची ओपियम (यूनानी) : अफीम लैन्टर्न (अंग्रेजी) : लालटेन बेयरिंग (अंग्रेजी) : बैरंग कैंडल (अंग्रेजी) : कंदिल > कंडिल
किसी भाषा के दो मुख्य आधार हुआ करते हैं:-
(i) मानसिक आधार (Psychical Aspect) और (ii) भौतिक आधार (Physical Aspect)
मानसिक आधार से आशय है, वे विचार या भाव, जिनकी अभिव्यक्ति के लिए वक्ता भाषा का प्रयोग करता है और भौतिक आधार के जरिए श्रोता ग्रहण करता है। इसके सहारे भाषा में प्रयुक्त ध्वनियाँ (वर्ण, अनुतान, स्वराघात आदि) और इनसे निकलनेवाले विचारों या भावों को ग्रहण किया जाता है।
जैसे- ‘फूल’ शब्द का प्रयोग करनेवाला भी इसके अर्थ से अवगत होगा और जिसके सामने प्रयोग किया जा रहा (सुननेवाला) वह भी। यानी भौतिक आधार अभिव्यक्ति का साधन है और मानसिक आधार साध्य। दोनों के मिलने से ही भाषा का निर्माण होता है। इन्हें ही ‘ब्राह्य भाषा’ (Outer Speech) और आन्तरिक भाषा (Inner Speech) कहा जाता है।
भाषा समाज-द्वारा अर्जित सम्पत्ति है और उसका अर्जन मानव अनुकरण के सहारे समाज से करता है। यह अनुकरण यदि ठीक-ठाक हो तो मानव किसी शब्द को ठीक उसी प्रकार उच्चरित करेगा, परन्तु ऐसा होता नहीं है। वाक्य, अर्थ आदि का अनुकरण मानसिक रूप में समझकर किया जाता हैं।
अनुकरण करने में प्रायः अनुकर्त्ता कुछ भाषिक तथ्यों को छोड़ देता है और कुछ को जोड़ लेता है। जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी, भाषा का अनुकरण कर रही होती है, तब ध्वनि, शब्द, रूप, वाक्य, अर्थ- भाषा के पाँचों क्षेत्रों में इसे छोड़ने और जोड़ने के कारण परिवर्तन बड़ी तेजी से होता है। इस अनुकरण की अपूर्णनता के लिए कई ��ारण जिम्मेदार हैं-
शारीरिक विभिन्नता, एकाग्रता की कमी, शैक्षिक स्तरों में अंतर का होना, उच्चारण में कठिनाई होना, भौतिक वातावरण, सांस्कृतिक प्रभाव, सामाजिक प्रभाव आदि।
उपर्युक्त प्रभावों के कारण अनुकरणात्मक विविधता के कुछ उदाहरण:
बोली (BOLI) और भाषा (Bhasha) में अन्तर क्या है ?
बोली और भाषा में अन्तर है। भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है। भाषा में लिखित और मौखिक दोनों रूप होते हैं। बोली भाषा का ऐसा रूप है जो किसी छोटे क्षेत्र में बोला जाता है। जब बोली इतनी विकसित हो जाती है कि वह किसी लिपि में लिखी जाने लगे, उसमें साहित्य-रचना होने लगे और उसका क्षेत्र भी अपेक्षाकृत विस्तृत हो जाए तब उसे भाषा कहा जाता है।
भाषा (Bhasha) के प्रकार:
भाषा के तीन रूप होते है:
1.मौखिक भाषा 2. लिखित भाषा 3. सांकेतिक भाषा
(1)मौखिक भाषा :-विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में वक्ताओं ने बोलकर अपने विचार प्रकट किए तथा श्रोताओं ने सुनकर उनका आनंद उठाया। यह भाषा का मौखिक रूप है। इसमें वक्ता बोलकर अपनी बात कहता है व श्रोता सुनकर उसकी बात समझता है।
इस प्रकार, भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति बोलकर विचार प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता है, मौखिक भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिस ध्वनि का उच्चारण करके या बोलकर हम अपनी बात दुसरो को समझाते है, उसे मौखिक भाषा कहते है।
उदाहरण: टेलीफ़ोन, दूरदर्शन, भाषण, वार्तालाप, नाटक, रेडियो आदि।
मौखिक या उच्चरित भाषा, भाषा का बोल-चाल का रूप है। उच्चरित भाषा का इतिहास तो मनुष्य के जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। मनुष्य ने जब से इस धरती पर जन्म लिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा। इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा मूलतः मौखिक है।
यह भाषा का प्राचीनतम रूप है। मनुष्य ने पहले बोलना सीखा। इस रूप का प्रयोग व्यापक स्तर पर होता है।
मौखिक भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं- (1) यह भाषा का अस्थायी रूप है। (2) उच्चरित होने के साथ ही यह समाप्त हो जाती है। (3) वक्ता और श्रोता एक-दूसरे के आमने-सामने हों प्रायः तभी मौखिक भाषा का प्रयोग किया जा सकता है। (4) इस रूप की आधारभूत इकाई ‘ध्वनि’ है। विभिन्न ध्वनियों के संयोग से शब्द बनते हैं जिनका प्रयोग वाक्य में तथा विभिन्न वाक्यों का प्रयोग वार्तालाप में किया जाता हैं। (5) यह भाषा का मूल या प्रधान रूप हैं।
(2)लिखित भाषा :-मुकेश छात्रावास में रहता है। उसने पत्र लिखकर अपने माता-पिता को अपनी कुशलता व आवश्यकताओं की जानकारी दी। माता-पिता ने पत्र पढ़कर जानकारी प्राप्त की। यह भाषा का लिखित रूप है। इसमें एक व्यक्ति लिखकर विचार या भाव प्रकट करता है, दूसरा पढ़कर उसे समझता है।
इस प्रकार भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति अपने विचार या मन के भाव लिखकर प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति ��ढ़कर उसकी बात स��झता है, लिखित भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिन अक्षरों या चिन्हों की सहायता से हम अपने मन के विचारो को लिखकर प्रकट करते है, उसे लिखित भाषा कहते है।
उदाहरण:पत्र, लेख, पत्रिका, समाचार-पत्र, कहानी, जीवनी, संस्मरण, तार आदि।
उच्चरित भाषा की तुलना में लिखित भाषा का रूप बाद का है। मनुष्य को जब यह अनुभव हुआ होगा कि वह अपने मन की बात दूर बैठे व्यक्तियों तक या आगे आने वाली पीढ़ी तक भी पहुँचा दे तो उसे लिखित भाषा की आवश्यकता हुई होगी। अतः मौखिक भाषा को स्थायित्व प्रदान करने हेतु उच्चरितध्वनि प्रतीकों के लिए ‘लिखित-चिह्नों’ का विकास हुआ होगा।
इस तरह विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों ने अपनी-अपनी भाषिक ध्वनियों के लिए तरह-तरह की आकृति वाले विभिन्न लिखित-चिह्नों का निर्माण किया और इन्हीं लिखित-चिह्नों को ‘वर्ण’ (letter) कहा गया। अतः जहाँ मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि (Phone) है तो वहीं लिखित भाषा की आधारभूत इकाई ‘वर्ण’ (letter) हैं।
लिखित भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं- (1) यह भाषा का स्थायी रूप है। (2) इस रूप में हम अपने भावों और विचारों को अनंत काल के लिए सुरक्षित रख सकते हैं। (3) यह रूप यह अपेक्षा नहीं करता कि वक्ता और श्रोता आमने-सामने हों। (4) इस रूप की आधारभूत इकाई ‘वर्ण’ हैं जो उच्चरित ध्वनियों को अभिव्यक्त (represent) करते हैं। (5) यह भाषा का गौण रूप है।
इस तरह यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि भाषा का मौखिक रूप ही प्रधान या मूल रूप है। किसी व्यक्ति को यदि लिखना-पढ़ना (लिखित भाषा रूप) नहीं आता तो भी हम यह नहीं कह सकते कि उसे वह भाषा नहीं आती। किसी व्यक्ति को कोई भाषा आती है, इसका अर्थ है- वह उसे सुनकर समझ लेता है तथा बोलकर अपनी बात संप्रेषित कर लेता है।
(3)सांकेतिक भाषा :- जिन संकेतो के द्वारा बच्चे या गूँगे अपनी बात दूसरों को समझाते है, वे सब सांकेतिक भाषा कहलाती है। दूसरे शब्दों में- जब संकेतों (इशारों) द्वारा बात समझाई और समझी जाती है, तब वह सांकेतिक भाषा कहलाती है।
जैसे- चौराहे पर खड़ा यातायात नियंत्रित करता सिपाही, मूक-बधिर व्यक्तियों का वार्तालाप आदि। इसका अध्ययन व्याकरण में नहीं किया जाता।
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मेटल रिव्यू राउंडअप की आवाज़: 'गहरा, भयावह, उत्थान और लुभावनी'
मेटल रिव्यू राउंडअप की आवाज़: ‘गहरा, भयावह, उत्थान और लुभावनी’
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द्वारा लिखित क्षितिज रावत | नई दिल्ली | 23 नवंबर, 2020 4:32:26 बजे
साउंड ऑफ़ मेटल अमेज़न प्राइम वीडियो पर 4 दिसंबर, 2020 को रिलीज़ होगा। (फोटो: अमेज़न प्राइम वीडियो)
ब्रिटिश अभिनेता रिज़ अहमद की साउंड ऑफ़ मेटल को अभिनेता के प्रदर्शन, पटकथा और निर्देशन की प्रशंसा करने के साथ आलोचकों द्वारा बेहद सकारात्मक समीक्षा मिल रही है।…
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स्वास्तिक एक चिन्ह और काल -
कोई भी चिन्ह ने कुछ न कुछ प्रदर्शित ही होता है | इसलिए चिन्ह का महत्व बहुत है | इसलिए जब भी कही कोई खुदाई में चीजें मिलती है तो पुरातत्व विभाग वालों खुदाई में मिलने वाली चीजें का अवलोकन करते है और कई दफा वो चिन्ह से पता लगाते है की ये किस काल की चीजें और उस समय किसका शासन था |क्योकि पुराने दौर में भी या कहे अभी के दौर में लोगों को खुश होना या कोई नया काम प्रदर्शित करने के लिए शुभ चिन्ह प्रयोग करते रहे है |इसलिए आज हम ऐसे ही एक सुप्रसिद्ध चिन्ह के बारे में बात करने वाले है |जो आपको हर जगह दिखाई दे जाता है | उसका नाम 'स्वास्तिक' है | ये चिन्ह सिर्फ हिंदू धर्म के आलावा स्वास्तिक का उपयोग आपको बौद्ध, जैन धर्म और हड़प्पा सभ्यता तक में भी देखने को मिलेगा। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को "बेहद शुभ हो" और "अच्छे कर्म" का प्रतीक माना जाता है।
स्वास्तिक का अर्थ -
स्वास्तिक शब्द मूलभूत 'सु+अस' धातु से बना है। 'सु' का अर्थ कल्याणकारी एवं मंगलमय है,' अस 'का अर्थ है अस्तित्व एवं सत्ता। इस प्रकार स्वास्तिक का अर्थ हुआ ऐसा अस्तित्व, जो शुभ भावना से भरा और कल्याणकारी हो। जहाँ अशुभता, अमंगल एवं अनिष्ट का लेश मात्र भय न हो। साथ ही सत्ता,जहाँ केवल कल्याण एवं मंगल की भावना ही निहित हो और सभी के लिए शुभ भावना सन्निहित हो इसलिए स्वास्तिक को कल्याण की सत्ता और उसके प्रतीक के रूप में निरूपित किया जाता है।
भारतीय वेदों से स्वास्तिक का आशय -
ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है।मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है।
विभिन्न धर्म और स्वास्तिक-
ये चिन्ह हिन्दू धर्म के आलावा और भी धर्मों ने अपनाया है |जैसे स्वस्तिक का चिन्ह भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में देखने को मिल जायेगा।स्वास्तिक बौद्ध सिंबल है। स्वस्तिक मतलब अतः दिपः भवः। बुद्ध ने कहा खुद पर भरोसा करो, किसी वेदों पर या देवी देवताओं पर नहीं। स्व आस्तिक मतलब खुद पर भरोसा करना। इसके अलावा जैन धर्म की बात करें, तो जैन धर्म में यह सातवां जिन का प्रतीक है, जिसे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं।तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का शुभ चिह्न है स्वस्तिक जिसे साथिया या सातिया भी कहा जाता है।स्वस्तिक की चार भुजाएं चार गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन गुफाओं और मंदिरों की दीवारों पर भी यह स्वस्तिक प्रतीक अंकित मिलता है। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।इसी प्रकार कहा जाता है कि हड़प्पा सभ्यता की खुदाई की गई तो वहां से भी स्वास्तिक का चिन्�� निकला था।
हिटलर के स्वास्तिक और हमारे स्वास्तिक में क्या है अंतर -
प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'वामावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही 'वामावर्त स्वस्तिक' अंकित था|आपको किसी मांगलिक कार्य के दौरान अगर कोई स्वास्तिक चिह्न दिखे तो जानिए कि वो दक्षिणावर्त है| नाज़ी सेना द्वारा यूज़ किया गया स्वास्तिक वामावर्त था| दक्षिणावर्त वाले चिह्न को स्वास्तिक और वामावर्त वाले को सौवास्तिक कहा जाता है| सौवास्तिक का यूज़ आपको बौद्ध धर्म में भी दिखता है|
स्वास्तिक बनाने का सही तरीका क्या है ?
ज्योतिषी और वास्तु विद बताते हैं कि स्वास्तिक बनाने के लिए हमेशा लाल रंग के कुमकुम, हल्दी अथवा अष्टगंध, सिंदूर का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले धन (प्लस) का चिन्ह बनाना चाहिए और ऊपर की दिशा ऊपर के कोने से स्वास्तिक की भुजाओं को बनाने की शुरुआत करनी चाहिए।आप अक्सर लाल या पीले रंग के स्वास्तिक को बना हुआ ही देखते होंगे, लेकिन कई जगह आपको काले रंग से बना हुआ स्वास्तिक भी दिखाई देता है। इसमें घबराने की बात नहीं है, बल्कि काले रंग के कोयले से बने स्वास्तिक को बुरी नजर से बचाने का उपाय माना जाता है।
स्वास्तिक से मिलते -जुलते चिन्ह कई देशों में क्या है अर्थ -से
फ़्रांस में घुड़सवारी का यह भावचित्र एक सड़क-चिह्न है जापान में यह भावचित्र 'पानी' का अर्थ देता है भारत का स्वस्तिक भावचित्र 'शुभ' का अर्थ देता है चित्रलिपि ऐसी लिपि को कहा जाता है जिसमें ध्वनि प्रकट करने वाली अक्षरमाला की बजाए अर्थ प्रकट करने वाले भावचित्र (इडियोग्रैम) होते हैं। यह भावचित्र ऐसे चित्रालेख चिह्न होते हैं जो कोई विचार या अवधारणा (कॉन्सॅप्ट) व्यक्त करें। कुछ भावचित्र ऐसे होते हैं कि वह किसी चीज़ को ऐसे दर्शाते हैं कि उस भावचित्र से अपरिचित व्यक्ति भी उसका अर्थ पहचान सकता है, मसलन 'छाते' के लिए छाते का चिह्न जिसे ऐसा कोई भी व्यक्ति पहचान सकता है जिसने छाता देखा हो। इसके विपरीत कुछ भावचित्रों का अर्थ केवल उनसे परिचित व्यक्ति ही पहचान पाते हैं, मसलन 'ॐ' का चिह्न 'ईश्वर' या 'धर्म' की अवधारणा व्यक्त करता है और '६' का चिह्न छह की संख्या की अवधारणा व्यक्त करता है। हमारा उद्देश्य रहता है की आपको हमेशा कोई नया नजरिया प्रस्तुत कर सके | आपको अच्छा लगे तो हमे जरूर अवगत कराया |
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‘सप्ताह का प्रादर्श श्रृंखला-34’ (11 से 17 जनवरी, 2021 तक) झारी मिश्र धातु से बना मदिरा पात्र वेबसाइट की लिंक / Website link - https://igrms.com/wordpress/?page_id=2081 झारी मिश्र धातु से बना एक मदिरा पात्र है। इसका उपयोग बस्तर, छत्तीसगढ़ के बाइसन हॉर्न समुदाय के लोगों द्वारा स्थानीय शराब (महुआ दारू या सल्फी) के भंडारण के लिए किया जाता है। पात्र का आधार गोलाकार है, मध्य भाग बाहर की ओर उभरा हुआ है और इसकी वृत्ताकार परिधि को चारों ओर घुंघरुओं से सजाया गया है। ये गोल लटकनें हिलने पर ध्वनि उत्पन्न करती हैं। ऊपरी हिस्से में ज्यामितीय प्रतिमानों में विस्तृत रूपांकन हैं। पात्र में शराब डालने के लिए इसमें एक ढक्कन भी है। शराब परोसने और पीने के लिए घुंघरुओं से सुसज्जित घुमावदार टोंटी लगाई गई है। महुआ शराब, एक स्थानीय मादक पेय के रूप में, पारंपरिक मारिया जीवन के सामाजिक-धार्मिक और आर्थिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसे ये स्वयं तैयार करते हैं और अपनी आवश्यकता के अनुसार उपभोग के लिए संग्रहीत करते हैं। उत्सवों या सामाजिक समारोहों के दौरान पत्तियों से बने दोनों में झारी से शराब परोसी जाती है। बाइसन-हॉर्न मारिया जनजाति आमतौर पर घढ़वा कारीगरों से झारी लेते हैं जो लॉस्ट वैक्स तकनीक से बनाए जाने वाले पारंपरिक धातु शिल्प में विशेषज्ञता रखते हैं। समय के साथ, इस तरह के मदिरा पात्रों के स्थान पर कांच की बोतलों का प्रयोग किया जा रहा है, जो स्थानीय बाजारों में सुलभ और सस्ते में उपलब्ध हैं। आरोहण क्रमांक : 96 - 406 स्थानीय नाम: झारी, मिश्र धातु से ���ना मदिरा पात्र। जनजाति/समुदाय : बाइसन - हॉर्न मारिया स्थान: बस्तर, छत्तीसगढ़ माप: ऊँचाई - 27 सेमी।, चौड़ाई -26.6 सेमी।, श्रेणी : ’A‘ #jhari #liquorcontainer #bellmetal #narcotics #bisonhornmaria #bastar #chhattisgarh #igrms #museumfromhome #objectoftheweek #ethnograhicobject #museumobject #museumofman #museumofmankind #museumofhumankind #experienceigrms #igrmsstories #staysafe #covid19 https://www.instagram.com/p/CJ4349oFP9J/?igshid=wzn31r1i8oqf
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68500 SHIKSHK BHARTI :हिंदी के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
68500 SHIKSHK BHARTI :हिंदी के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
● सूरदास का काव्य किस भाषा में है।उत्तर - ब्रजभाषा में ।● हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की स्थापना कब हुई ।उत्तर - 1910 में ।● संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित भारतीय भाषाओं की संख्या है।उत्तर - 22 ।● हिन्दी की विशिष्ट बोली ब्रज भाषा किस रूप में सबसे अधिक प्रसिद्ध है।उत्तर - काव्य भाषा ।● देवनागरी लिपि किस लिपि का विकसित रूप है।उत्तर - ब्राम्ही लिपि ।● रामायण महाभारत आदि ग्रन्थ कौन सी भाषा में लिखे गये है।उत्तर - आर्यभाषा में ।● विद्यापति की प्रसिद्ध रचना पदावली किस भाषा में लिखी गई है।उत्तर - मैथिली में ।● भारत में हिन्दी का संवैधानिक स्��रूप है।उत्तर - राजभाषा । ।● जाटू किस बोली का उपनाम है।उत्तर - बॉगरू ।● ''एक मनई के दुई बेटवे रहिन'' यह अवतरण हिन्दी की किस बोली में है।उत्तर - भोजपुरी से ।● क्रिया विशेषण किसे कहते है।उत्तर - जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का ज्ञान होता है, उसे क्रिया विशेषण कहते है।जैसे – यहॉ , वहॉ , अब , तक आदि● अव्यय किसे कहते है।उत्तर - जिन शब्दों में लिंग , वचन , पुरूष , कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अव्यय कहते है।● अव्यय के सामान्यत: कितने भेद है।उत्तर - अव्यय के सामान्यत: 4 भेद है।1.क्रिया विशेषण2.संबंधबोधक3.समुच्चोय बोधक4.विस्मचयादि बोधक● हिन्दी् में वचन कितने प्रकार के होते है।उत्तर - हिन्दी् में वचन 2 प्रकार के होते है।1.एक वचन2.बहुवचन● वर्ण किसे कहते है।उत्तर - वह मूल ध्वनि जिसका और विभाजन नही हो सकता हो उसे वर्ण कहते है।जैसे - म , प , र , य , क आदि● वर्णमाला किसे कहते है।उत्तर - वर्णों का क्रमबद्ध समूह ही वर्णमाला कहलाता है।● शब्द किसे कहते है।उत्तर - दो या दो से अधिक वर्णों का मेल जिनका कोई निश्चित अर्थ निकलता हो उन्हे शब्द कहते है।● वाक्य किसे कहते है।उत्तर - दो या दो से अधिक शब्दों का सार्थक समूह वाक्य कहलाता है।● मूल स्वरों की संख्यां कितनी है।उत्तर - मूल स्वरों की संख्यां 11 होती है।● मूल व्यंजन की संख्यां कितनी होती है।उत्तर - मूल व्यंजन की संख्यां 33 होती है।● 'क्ष' ध्वनि किसके अर्न्तगत आती है।उत्तर - संयुक्त्ा वर्ण ।● 'त्र' किन वर्णों के मेल से बना है।उत्तर - त् + र ।● 'ट' वर्ण का उच्चारण स्थान क्या है।उत्तर - मूर्धा ।● 'फ' का उच्चारण स्थान है।उत्तर - दन्तोष्ठय ।● स्थूल का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - सूक्ष्म ।● शीर्ष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - तल ।● शोषक का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - शोषित ।● मृदु का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - कटु ।● कलुष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - निष्कलुष ।● निर्दय का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - सदय ।● नीरोग में संधि है।उत्तर - विसर्ग सन्धि ।● निस्तेज में कौन सी संधि है।उत्तर - विसर्ग संधि ।● उज्जवल का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - उत् + ज्वल ।● बहिष्कार का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - बहि: + कार ।● चयन में कौन सी सन्धि है।उत्तर - अयादि संधि ।● अन्वय में कौन सी संधि है।उत्तर - गुण संधि ।● सच्चिदानंद का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - सत् + चित् + आनंद ।● उन्नति का संधि विच्छेद है।उत्तर - उत् + नति ।● निर्धन में कौन सी सन्धि है।उत्तर - विसर्ग सन्धि ।● सूर्य + उदय का संधयुक्त शब्द है।उत्तर - सूर्योदय ।● किस युग को आधुनिक हिन्दी कविता का सिंहद्वार कहा जाता है।● भारतेन्दु युग को ।● द्विवेदी युग के प्रवर्तक कौन थे।उत्तर - महावीर प्रसाद द्विवेदी ।● हिन्दी का पहला सामाजिक उपन्यास कौन सा माना जाता है।उत्तर - भाग्यवती ।● सन् 1950 से पहले हिन्दी् कविता किस कविता के रूप में जानी जाती थी।उत्तर - प्रयोगवादी ।● ब्रज भाषा का सर्वोत्तम कवि है।उत्तर - सूरदास ।● आदिकाल के बाद हिन्दी में किस साहित्य का उदय हुआ ।उत्तर - भक्ति साहित्य का ।● निर्गुण भक्ति काव्य के प्रमुख कवि है।उत्तर - कबीरदास ।● किस काल को स्वर्णकाल कहा जाता है।उत्तर - भक्ति काल को ।● हिन्दी का आदि कवि किसे माना जाता है।उत्तर - स्व्यंभू ।● आधुनिक काल का समय कब से माना जाता है।उत्तर - 1900 से अब तक ।● जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है।उत्तर - कामायनी ।● बिहारी ने क्या लिखे है।उत्तर - दोहे ।● कबीर किसके शिष्य थे।उत्तर - रामानन्द ।● पद्यावत महाकाव्य कौन सी भाषा में लिखा है।उत्तर - अवधी ।● चप्पू किसे कहा जाता है।उत्तर - गद्य और पद्य मिश्रित रचनाओं को ।● कलाधर उपनाम से कविता कौन से कवि लिखते थे।उत्तर - जयशंकर प्रसाद ।● रस निधि किस कवि का उपनाम है।उत्तर - पृथ्वी सिंह ।● प्रेमचन्द्र के अधुरे उपन्यांस का नाम है।उत्तर - मंगलसूत्र ।● हिन्दी का सर्वाधिक नाटककार कौन है।उत्तर - जयशंकर प्रसाद ।● तुलसीकृत रामचरित मानस में कौन सी भाषा का प्रयोग किया गया है।उत्तर - अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।● एकांकी के जन्मदाता कौन है।उत्तर - धर्मवीर भारती ।● मीराबाई ने किस भाव से कृष्ण की उपासना की ।उत्तर - माधुर्य भाव से ।● रामचरित मानस का प्रधान रस है।उत्तर - शान्त रस ।● सबसे पहले अपनी आत्मकथा हिन्दी में किसने लिखी ।उत्तर - डॉं. राजेन्द्र प्रसाद ने ।● हिन्दी कविता का पहला महाकाव्य् कौन सा है।उत्तर - पृथ्वीराज रासो ।● हिन्दी के सर्वप्रथम प्रकाशित पत्र का नाम क्या है।उत्तर - उदन्ड मार्तण्ड ।● हिन्दी साहित्य की प्रथम कहानी है।उत्तर - इन्दुमती ।● आंचलिक रचनाऍं किससे सम्बन्धित होती है।उत्तर - क्षेत्र विषेश से ।● श् , ष् , स् , ह् व्यंजन कहलाते है।उत्तर - ऊष्म व्यंजन ।● य् , र् , ल् , व् व्यंजन को कहते है।उत्त��� - अन्तस्थ व्यंजन ।● क् से म् तक के व्यंजनों को कहा जाता है।उत्तर - स्पर्श व्यंजन ।● घोष का अर्थ है।उत्तर - नाद ।● जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास जिह्वा के दोनों ओर से निकल जाती है कहलाती है।उत्तर - पार्श्विक ।● 'आ' स्वर कहलाता है।उत्तर - विवृत स्वर ।● पश्च स्वर है।उत्तर - इ , आ ।● अग्र स्वर है।उत्तर - ऐ ।● 'श्र' व्यंजन किन दो व्यंजनों से मिलकर बना है।उत्तर - श् + र ।● 'ड' , 'ढ' का व्यंजन वर्ग है।उत्तर - मूर्धन्य -उत्क्षिप्त ।● ओम ध्वनि के उच्चारण में स्वर का कौन सा रूप प्रकट होता है।उत्तर - प्लुत स्वर ।● सघोष वर्णो का सही वर्ग है।उत्तर - ड , ढ ।● भ्राता का भाववाचक शब्द क्या होगा ।उत्तर - भ्रातृत्व ।● सीमा दौड़ती है। यहॉ दौड़ती है कैसी क्रिया है।उत्तर - अर्कमक ।● आशुतोष ने कहा कि मैं पढूँगा । इसमें 'कि मै पढूँगा' क्या है।उत्तर - संज्ञा उपवाक्य ।● सोना - चॉंदी और तेल - पानी किस प्रकार के संज्ञा शब्द है।उत्तर - द्रव्यवाचक ।● कृपाण का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - दानी ।● अनुराग का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - विराग ।● भोगी का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - योगी ।● कीर्ति का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - अपकीर्ति ।● पृथ्वीराज रासो किस काल की रचना है ।उत्तर - आदिकाल की ।● हिन्दी गद्य का जन्म दाता किसको माना जाता है।उत्तर - भारतेन्दु हरिचन्द्र जी को ।● कवि कालिदास की ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ का हिन्दी अनुवाद किसने किया।उत्तर - राजा लक्ष्मणसिंह ने ।● पद्य साहित्य को कितने भागों में बॉंटा गया है।उत्तर - पन्द्रह भागों में ।● कवि नरेन्द्र शर्मा ने राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के निधन से प्रभावित होकर कौन सी रचना की ।उत्तर - रक्त चन्दन की रचना की ।● नाट्यशास्त्रकारों द्वारा अमान्य रस कौन सा है।उत्तर - वीभत्स रस ।अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (One Word Substitution in Hindi)भारतीय संविधान में कौनसी विशेषता किस देश से ली गयी है - Indian constitutionवाक्यांश या शब्द समूहस्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित आंदोलन एवं वर्ष● काव्य शास्त्र का प्राचीनतम नाम क्या था।उत्तर - अलंकार शास्त्र ।● रीति सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे।उत्तर - आचार्य वामन ।● हिन्दी में काव्य शास्त्र के प्रथम आचार्य कौन है।उत्तर - केशवदास ।● साहित्य शब्द् किस शब्द से बना है।उत्तर - सहित शब्द से बना है।● हिन्दी साहित्य में जीवनी साहित्य का प्रारम्भ कौन से युग में हुआ ।उत्तर - भारतेंदु युग में ।● हिन्दी भाषा और सांहित्य के लेखक है।उत्तर - श्यामसुंदरदास ।● मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । यह किसने कहा ।उत्तर - अरस्तू ने ।● भाषा किसे कहते है।उत्तर - मनुष्य अपने मानसिक विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिस माध्यम का प्रयोग करता है। वह भाषा कहलाती है।● भाषा शब्द की उत्पत्ति कहॉ से हुई है।उत्तर - भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के भाष धातु से हुई है।● सामान्य् शब्दों मे हम भाषा को किस तरह से व्यक्तु करेगे ।उत्तर - भाषा वह साधन है । जिसके द्वारा मनुष्य अपने भावों या विचारों को बोलकर या लिखकर दूसरे मनुष्यो तक पहुँचाता है।● भाषा को मोटे रूप में कितने भागों मे बांटा गया है।उत्तर - भाषा को मोटे रूप में 2 भागों मे बांटा गया है।1.लिखित भाषा2.मौखिक भाषा● हिन्दी भाषा का सम्बंन्ध किस लिपि से है।उत्तर - देवनागरी लिपि से है।● बोलने वालो की संख्या की दृष्टि से हिन्दी का विश्व मे कौन सा स्थान है।उत्तर - तीसरा ।● सूरदास के काव्य किस भाषा में है।उत्तर - ब्रजभाषा में ।● संविधान के किस अनुच्छे्द में कहा गया है – ‘’ संघ की राजभाषा हिन्दी् और लिपि देवनागरी होगी ‘’ ।उत्तर - 343 वें अनुच्छेद में कहॉ गया ।● हिन्दी शब्द की व्युात्पात्ति कहॉ से हुई है।उत्तर - सिंधु से ।● वर्तमान हिन्दी का प्रचलित रूप कैसा है।उत्तर - खडी बोली ।● जिन ध्वनियों के संयोग से शब्दों का निर्माण होता है। उन्हें क्या कहते है।उत्तर - वर्ण ।● स्वरों की संख्या कितनी मानी गई है।उत्तर - 11 ।● हिन्दी मानक वर्ण माला में कुल कितने वर्ण है।उत्तर - 52 ।● अन्तस्थ व्यंजनों की संख्या कितनी है।उत्तर - 4 ।● हिन्दी वर्ण माला को कितने भागों में विभक्त किया गया है।उत्तर - दो भागो में ।● हिन्दो वर्ण माला में स्पर्श व्यंजनों की संख्या कितनी है।उत्तर - 25 ।● मात्रा के आधार पर हिन्दी स्वंरों के दो भेद कौन से है।उत्तर - हस्वर और दीर्घ ।● ‘ क्ष ‘ वर्ण किसके योग से बना है।उत्तर - ‘’ क् + ष ‘’ से बना है।● हिन्दी वर्ण माला में व्यंजनों की संख्या है।उत्तर - 33 व्यंजन है।● हिन्दी का पहला नाटक है।उत्तर - नहुष ।● कबीरदास की भाषा थी।उत्तर - सधुक्कडी ।● कलम का जादूगर किसे कहा जाता है।उत्तर - रामवृक्ष बेनीपुरी को ।● प्रगतिवाद उपयोगितावाद का दूसरा नाम है। यह कथन किसका है।उत्तर - रामविलास शर्मा ।● रामचरितमानस में कुल कितने काण्ड है।उत्तर - सात ।● हिन्दी साहित्य के इतिहास के रचयिता कौन है।उत्तर - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ।● गीत गोविन्द किस भाषा में है।उत्तर - संस्कृत भाषा में ।● लोक नायक किसको कहा जाता है।उत्तर - तुलसीदास जी को ।● इन्दिरापति किसे कहा जाता है।उत्तर - विष्णु को ।● पंचतंत्र क्या है।उत्तर - कहानी संग्रह ।● सामिष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - आमिष ।● गमन का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - आगमन ।● सम्मुख का विलोम शब्द है।उत्तर - विमुख ।● सुकाराथ का विलोम शब्द है।उत्तर - अकारथ ।● अगानत का विलोम शब्द है।उत्तर - आगत ।● उपमान का विलोम शब्द है।उत्तर - उपमेय ।● मौन का विलोम शब्द है।उत्तर - मुखर ।● .............. प्रयास की अपेक्षा सामूहिक प्रयास का बल अधिक होता है।उत्तर - एकांगी ।● गांधी जी के अनुसार अत्याचार का उत्तर ................ से देना ही मनुष्यता है।उत्तर - सदाचार ।● श्रवण कुमार के माता पिता द्वारा दशरथ को दिया गया शाप भी उनके लिए ............... बन गया ।उत्तर - वरदान ।● सत्य बोलो मगर कटु सत्य मत बोलो । किस प्रकार का वाक्य है।उत्तर - संयुक्त्ा वाक्य ।● जब तक वह घर पहुँचा तब तक उसके पिता जा चुके थे। यह वाक्य किस प्रकार का है।उत्तर - मिश्रित वाक्य ।● यथासंभव अपना गृहकार्य शाम तक पूरा कर लो । मे वाक्य का प्रकार है।उत्तर - विधिवाचक ।● हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना मदनमोहन मालवीय ने की थी । में वाक्य का प्रकार है।उत्तर - कर्तृवाच्य ।● व्यवहार में तुम बिलकुल वैसे ही हो, जैसे तुम्हारे पिताजी । में वाक्य का प्रकार है।उत्तर - मिश्र वाक्य ।● हम अपनी संस्कृति के बारे में कितना जानते है। में वाक्य का प्रकार है।उत्तर - प्रश्नवाचक ।● क्रिया के होने का समय तथा उसकी पूर्णता और अपूर्णता का बोध किससे होता है।उत्तर - काल से ।● मैने गीता पढ़ी वाक्य में वर्तमान काल का कौन सा भेद है।उत्तर - सामान्य वर्तमान ।● वाक्य में जो शब्द काम करने के अर्थ में आता है। उसे कहते है।उत्तर - कर्त्ता ।● मै खाना खा चुका हूँ । इस वाक्य में भूतकालिक भेद इंगित कीजिए ।उत्तर - पूर्ण भूत ।● क्रिया के साधन को बताने वाला शब्द कहलाता है।उत्तर - करण कारक ।● से विभक्ति किस कारक की है।उत्तर - करण ।● अपादान कारक की विभक्त्िा है।उत्तर - से, अलग ।● वह चटाई पर बैठा है। इस वाक्य में कौन सा कारक है।उत्तर - अधिकरण कारक ।● मोहन घोड़े से गिर पड़ा । इस वाक्य में कौन सा कारक है।उत्तर - अपादन कारक ।● वृक्ष से पत्ते गिरते है। इस वाक्य में इस कारक का चिन्ह है।उत्तर - अपादान ।● के लिए किस कारक का चिन्ह है।उत्तर - सम्प्रदान ।● कारक के कितने भेद होते है।उत्तर - 8 ।● जलमग्न में कौन सा कारक है।उत्तर - अधिकरण ।● जलधारा में कारक होगा ।उत्तर - संबंध ।● देवेन्द्र में कौन सी सन्धि है।उत्तर - गुण ।● निस्सार का सही सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - नि: + सार ।● गिरीश का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - गिरि + ईश ।● (अ + नि + आय) के मेल से कौन सा शब्द बनेगा ।उत्तर - अन्याय ।● परिच्छेद में कौन सी संधि है।उत्तर - व्यंजन ।● ��िश्चल में कौन सी संधि है।उत्तर - विसर्ग ।● जगन्नाथ में कौन सी संधि है।उत्तर - व्यंजन ।● अत्याचार का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - अति + आचार ।● सन्तोष का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - सम् + तोष ।● सप्तर्षि का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - सप्त + ऋषि ।● प्रत्येक में कौन सी समास है।उत्तर - अव्ययीभाव समास । समास:- परिभाषा - दो या दो से अधिक शब्दो के सम्बन्ध बताने वाले शब्द को लोप कर बने सार्थक यौगिक शब्द को समास कहते है ।समास के 6 भेद होते है । 1 अव्ययीभाव समास 2. तत्पुरूष समास 3. कर्मधारय समास 4. द्विगु समास 5. द्वंद्व समास 6. बहुव्रीहि समास● विशेषण और विशेष्य के योग से कौन सा समास बनता है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● देशांतर में समास है।उत्तर - कर्मधाराय ।● रामानुज में समास है।उत्तर - बहुव्रीहि समास ।● वनवास में समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● नीलकमल में समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● सदाचार का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - सत् + आचार ।● महेन्द्र का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - महा + इन्द्र ।● हैदराबाद में कौन सी समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● रामकहानी में कौन सी समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● चन्द्रमौलि में कौन सी समास है।उत्तर - बहुव्रीहि समास ।● मंदबुद्धि में कौन सी समास है।उत्तर - कर्मधाराय समास ।● नीलगाय में कौन सी समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● प्रतिमान में कौन सी समास है।उत्तर - अव्ययीभाव समास ।● नरसिंह में कौन सी समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● शाखामृग में कौन सी समास है।उत्तर - बहुव्रीहि समास ।● वीणापाणि में कौन सी समास है।उत्तर - बहुव्रीहि समास ।● नवयुवक में कौन सी समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● विज्ञान शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - वि ।● निर्वाह शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - निर् ।● प्रतिकूल शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - प्रति ।● चिरायु शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - चिर् ।● संस्कार शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - सम् ।● बेइन्साफ शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - बे ।● प्रत्युत्पन्नमति शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - प्रति ।● प्रतिकूल शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - प्रति ।● सदाचार शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - सत् ।● आदेश शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है।उत्तर - आ ।● धुंधला शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - ला ।● दोषहर्ता शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - हर्ता ।● अनुज शब्द को सत्रीवाचक बनाने के लिए आप किस प्रत्यय का प्रयोग करेगें।उत्तर - आ ।● घुमक्कड़ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - अक्कड़ ।● ऊँचाई शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - आई ।● जेठानी शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - आनी ।● प्राचीन शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - ईन ।● भगोड़ा शब्द में कौन सा प्रत्यय है।उत्तर - ओड़ा ।● कब्रिस्तान शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - इस्तान ।● यादव शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है।उत्तर - व ।● जो बहुत बात करता हो ।उत्तर - वाचल ।● जहॉ पहुँचा न जा सके ।उत्तर - अगम ।● हर काम को देर से करने वाला ।उत्तर - दीर्घसूत्री ।● जिसका भोजन दूध ही हो ।उत्तर - दुग्धाहारी ।● जिसके आर पार देखा जा सके ।उत्तर - पारदर्शी ।● दो पर्वतों के बीच की भूमि ।उत्तर - उपत्यका ।● बिना घर का ।उत्तर - अनिकेत ।● पुरूष एवं स्त्री का जोडा ।उत्तर - दम्पती ।● जिसने देश के साथ विश्वासघात किया हो ।उत्तर - देशद्रोही ।● जो शत्रु की हत्या करता हो ।उत्तर - शत्रुघ्न ।● जिन शब्दों के अन्त में ‘अ’ आता है, उन्हें क्या कहते है।उत्तर - अकारांत कहते है।● हिन्दी वर्ण माला में अयोगवाह वर्ण कौन से है।उत्तर - अं , अ: वर्ण अयोगवाह वर्ण है ।● हंस मे लगा ( ं ) चिन्ह कहलाता है।उत्तर - अनुस्वार● चॉद शब्द में लगा ( ँ ) चिन्ह कहलाता है।उत्तर - अनुनासिक ।● भाषा की सबसे छोटी इकाई क्या है।उत्तर - वर्ण ।● जिन शब्दों में किसी प्रकार का विकार या परिवर्तन नही होता, उसे क्या कहते है।उत्तर - तत्सम ।● कार्य के होने का बोध कराने वाले शब्द को क्या् कहते है।उत्तर - क्रिया कहते है।● भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान किससे होता है।उत्तर - व्याकरण से होता है।● विशेषण जिस शब्द की विशेषता बताते है, उसे क्या कहते है।उत्तर - विशेष्ये ।● हिन्दी में लिंग का निर्धारण किस से होता है।उत्तर - संज्ञा से ।● क्रिया का मूल रूप क्या् कहलाता है।उत्तर - धातु ।● सर्वनाम के साथ प्रयुक्त होने वाली विभक्तियॉं होती है।उत्तर - संश्लिष्ट ●हिन्दी में कारक चिन्ह कितने होते है।उत्तर - 8 होते है।जबकि संस्कृत भाषा में कारक चिन्ह 7 होते है।● संज्ञा कितने प्रकार की होती है।उत्तर - संज्ञा 5 प्रकार की होती है।1. व्यवक्ति वाचक संज्ञा2. जाति वाचक संज्ञा3. भाव वाचक संज्ञा4. समूह वाचक संज्ञा5. द्वव्या वाचक संज्ञा● वे शब्द जो विशेषण की भी विशेषता बतलाते है। उन्हे क्या कहते है।उत्तर - प्रविशेषण ।● सर्वनाम किसे कहते है।उत्तर - सर्वनाम वे शब्द कहलाते है। जो संज्ञा के स्थान पर प्रयोग मे लाये जाते है।जैसे – यह , वह , वे , उनका , इनका , इन्हे आदि● सर्वनाम के कितने भेद होते है।उत्तर - सर्वनाम के 6 भेद होते है।1. पुरूषवाचक सर्वनाम2. निश्चवयवाचक सर्वनाम3. अनिश्चायवाचक सर्वनाम4. प्रश्नावाचक सर्वनाम5. संबंधवाचक सर्वनाम6. निजवाचक सर्वनाम● क्रिया किसे कहते है।उत्तर - जिस शब्द – से किसी काम के करने या होने का बोध हो उसे क्रिया कहते है।जैसे – खाना , हँसना , रोना , बैठना आदि● क्रिया मुख्य रूप से कितने प्रकार की होती है।उत्तर - मुख्य रूप से क्रिया 2 प्रकार की होती है।1. अकर्मक क्रिया2. सकर्मक क्रिया● काल कितने प्रकार के होते है।उत्तर - काल 3 प्रकार के होते है।1. वर्तमान काल2. भूतकाल3. भविष्य काल● 'श' व्यंजन का उच्चारण स्थान कौन सा है।उत्तर - तालु ।● 'व' वर्ण का उच्चारण स्थान कौन सा है ।उत्तर - दन्त + ओष्ठ ।● 'ड.' का उच्चारण स्थान क्या है।उत्तर - कण्ठ ।● 'क' वर्ण उच्चारण की दृष्टि से क्या है।उत्तर - कंठ्य ।● वर्ग के द्वितीय व चतुर्थ व्यंजन क्या कहलाते है।उत्तर - महाप्राण ।● 'ए' और 'ऐ' का उच्चारण स्थान है।उत्तर - कंठतालु ।● 'घ' का उच्चारण स्थान क्या है।उत्तर - कंठ ।● वर्ण के प्रथम, तृतीय व पंचम वर्ण क्या कहलाते है।उत्तर - अल्पप्राण ।● मात्रा के आधार पर हिन्दी स्वरों के दो भेद कौन से है।उत्तर - हस्व और दीर्घ ।● सर्वनाम के साथ प्रयुक्त्ा होने वाली विभक्तियॉ होती है ।उत्तर - संश्लिष्ट ।● 'शिक्षक विद्यार्थी को हिन्दी पढ़ाते है। वाक्य में क्रिया के किस रूप का प्रयोग हुआ है।उत्तर - द्विकर्मक क्रिया ।● 'मुझे' किस प्रकार का सर्वनाम है।उत्तर - उत्तम पुरूष ।● मानव शब्द का विशेषण बनेगा ।उत्तर - मानवीय ।● चिडि़या आकाश में उड़ रही है। उस वाक्य ���ें उड़ रही क्रिया किस प्रकार की है।उत्तर - अकर्मक ।● पशु शब्द का विशेषण है।उत्तर - पाशविक ।● नेत्री शब्द का पुल्लिंग रूप है।उत्तर - नेता ।● अनायस में समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● लोकप्रिय शब्द में समास है।उत्तर - कर्मधारय समास ।● कन्यादान में समास है।उत्तर - तत्पुरूष समास ।● चौराहा में समास है।उत्तर - द्विगु समास ।● महीश का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - मही + ईश ।● शुभेच्छा का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - शुभ + इच्छा ।● भानूदय का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - भानु + उदय ।● नवोढ़ा का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - नव + ऊढ़ा ।● पावक का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - पौ + अक ।● दुश्चरित्र का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - दु: + चरित्र ।● मृगेन्द्र का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - मृग + इन्द्र ।● सुरेन्द्र का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - सुर + इन्द्र ।● उत्कर्ष का विशेषण क्या होगा ।उत्तर - उत्कृष्ट ।● काम का तत्सम रूप है।उत्तर - कर्म ।● दूध का तत्सम रूप क्या है।उत्तर - दुग्ध ।● प वर्ग का उच्चारण मुँह के किस भाग से होता है।उत्तर - ओष्ठ ।● च, छ, ज, झ व्यंजन के उच्चारण को मुखांगो के व्यवहार के आधार पर क्या नाम दिया जाता है।उत्तर - तालव्य ।● मुझे किस प्रकार का सर्वनाम है।उत्तर - उत्तम पुरूष सर्वनाम ।● वह धीरे धीरे आ रहा है। वाक्य अव्यय के किस भेद के अन्तर्गत आता है।उत्तर - क्रिया विशेषण ।● मानव शब्द से विशेषण बनेगा ।उत्तर - मानवीय ।● चिडि़या आकाश में उड़ रही है। इस वाक्य में उड़ रही क्रिया किस प्रकार की है।उत्तर - अकर्मक ।● बुढ़ापा भी एक प्रकार का अभिशाप है। इस वाक्य में बुढापा शब्द की संज्ञा का भेद बताइए ।उत्तर - भाववाचक संज्ञा ।● आलस्य शब्द का विशेषण क्या है।उत्तर - आलसी ।● प्रवृत्ति का विलोम शब्द है।उत्तर - निवृत्ति ।● अंतरंग का विलोम शब्द है।उत्तर - बहिरंग ।● गुप्त का विलोम शब्द है।उत्तर - प्रकट ।● सूरदास का काव्य किस भाषा में है।उत्तर - ब्रजभाषा में ।● हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की स्थापना कब हुई ।उत्तर - 1910 में ।● संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित भारतीय भाषाओं की संख्या है।उत्तर - 22 ।● हिन्दी की विशिष्ट बोली ब्रज भाषा किस रूप में सबसे अधिक प्रसिद्ध है।उत्तर - काव्य भाषा ।● देवनागरी लिपि किस लिपि का विकसित रूप है।उत्तर - ब्राम्ही लिपि ।● रामायण महाभारत आदि ग्रन्थ कौन सी भाषा में लिखे गये है।उत्तर - आर्यभाषा में ।● विद्यापति की प्रसिद्ध रचना पदावली किस भाषा में लिखी गई है।उत्तर - मैथिली में ।● भारत में हिन्दी का संवैधानिक स्वरूप है।उत्तर - राजभाषा । ।● जाटू किस बोली का उपनाम है।उत्तर - बॉगरू ।● ''एक मनई के दुई बेटवे रहिन'' यह अवतरण हिन्दी की किस बोली में है।उत्तर - भोजपुरी से ।● क्रिया विशेषण किसे कहते है।उत्तर - जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का ज्ञान होता है, उसे क्रिया विशेषण कहते है।जैसे – यहॉ , वहॉ , अब , तक आदि● अव्यय किसे कहते है।उत्तर - जिन शब्दों में लिंग , वचन , पुरूष , कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अव्यय कहते है।● अव्यय के सामान्यत: कितने भेद है।उत्तर - अव्यय के सामान्यत: 4 भेद है।1.क्रिया विशेषण2.संबंधबोधक3.समुच्चोय बोधक4.विस्मचयादि बोधक● हिन्दी् में वचन कितने प्रकार के होते है।उत्तर - हिन्दी् में वचन 2 प्रकार के होते है।1.एक वचन2.बहुवचन● वर्ण किसे कहते है।उत्तर - वह मूल ध्वनि जिसका और विभाजन नही हो सकता हो उसे वर्ण कहते है।जैसे - म , प , र , य , क आदि● वर्णमाला किसे कहते है।उत्तर - वर्णों का क्रमबद्ध समूह ही वर्णमाला कहलाता है।● शब्द किसे कहते है।उत्तर - दो या दो से अधिक वर्णों का मेल जिनका कोई निश्चित अर्थ निकलता हो उन्हे शब्द कहते है।● वाक्य किसे कहते है।उत्तर - दो या दो से अधिक शब्दों का सार्थक समूह वाक्य कहलाता है।● मूल स्वरों की संख्यां कितनी है।उत्तर - मूल स्वरों की संख्यां 11 होती है।● मूल व्यंजन की संख्यां कितनी होती है।उत्तर - मूल व्यंजन की संख्यां 33 होती है।● 'क्ष' ध्वनि किसके अर्न्तगत आती है।उत्तर - संयुक्त्ा वर्ण ।● 'त्र' किन वर्णों के मेल से बना है।उत्तर - त् + र ।● 'ट' वर्ण का उच्चारण स्थान क्या है।उत्तर - मूर्धा ।● 'फ' का उच्चारण स्थान है।उत्तर - दन्तोष्ठय ।● स्थूल का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - सूक्ष्म ।● शीर्ष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - तल ।● शोषक का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - शोषित ।● मृदु का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - कटु ।● कलुष का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - निष्कलुष ।● निर्दय का विलोम शब्द होगा ।उत्तर - सदय ।● नीरोग में संधि है।उत्तर - विसर्ग सन्धि ।● निस्तेज में कौन सी संधि है।उत्तर - विसर्ग संधि ।● उज्जवल का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - उत् + ज्वल ।● बहिष्कार का सन्धि विच्छेद होगा ।उत्तर - बहि: + कार ।● चयन में कौन सी सन्धि है।उत्तर - अयादि संधि ।● अन्वय में कौन सी संधि है।उत्तर - गुण संधि ।● सच्चिदानंद का संधि विच्छेद होगा ।उत्तर - सत् + चित् + आनंद ।● उन्नति का संधि विच्छेद है।उत्तर - उत् + नति ।● निर्धन में कौन सी सन्धि है।उत्तर - विसर्ग सन्धि ।● सूर्य + उदय का संधयुक्त शब्द है।उत्तर - सूर्योदय ।● किस युग को आधुनिक हिन्दी कविता का सिंहद्वार कहा जाता है।● भारतेन्दु युग को ।● द्विवेदी युग के प्रवर्तक कौन थे।उत्तर - महावीर प्रसाद द्विवेदी ।● हिन्दी का पहला सामाजिक उपन्यास कौन सा माना जाता है।उत्तर - भाग्यवती ।● सन् 1950 से पहले हिन्दी् कविता किस कविता के रूप में जानी जाती थी।उत्तर - प्रयोगवादी ।● ब्रज भाषा का सर्वोत्तम कवि है।उत्तर - सूरदास ।● आदिकाल के बाद हिन्दी में किस साहित्य का उदय हुआ ।उत्तर - भक्ति साहित्य का ।● निर्गुण भक्ति काव्य के प्रमुख कवि है।उत्तर - कबीरदास ।● किस काल को स्वर्णकाल कहा जाता है।उत्तर - भक्ति काल को ।● हिन्दी का आदि कवि किसे माना जाता है।उत्तर - स्व्यंभू ।● आधुनिक काल का समय कब से माना जाता है।उत्तर - 1900 से अब तक ।● जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है।उत्तर - कामायनी ।● बिहारी ने क्या लिखे है।उत्तर - दोहे ।● कबीर किसके शिष्य थे।उत्तर - रामानन्द ।● पद्यावत महाकाव्य कौन सी भाषा में लिखा है।उत्तर - अवधी ।● चप्पू किसे कहा जाता है।उत्तर - गद्य और पद्य मिश्रित रचनाओं को ।● कलाधर उपनाम से कविता कौन से कवि लिखते थे।उत्तर - जयशंकर प्रसाद ।● रस निधि किस कवि का उपनाम है।उत्तर - पृथ्वी सिंह ।● प्रेमचन्द्र के अधुरे उपन्यांस का नाम है।उत्तर - मंगलसूत्र ।● हिन्दी का सर्वाधिक नाटककार कौन है।उत्तर - जयशंकर प्रसाद ।● तुलसीकृत रामचरित मानस में कौन सी भाषा का प्रयोग किया गया है।उत्तर - अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।● एकांकी के जन्मदाता कौन है।उत्तर - धर्मवीर भारती ।● मीराबाई ने किस भाव से कृष्ण की उपासना की ।उत्तर - माधुर्य भाव से ।● रामचरित मानस का प्रधान रस है।उत्तर - शान्त रस ।● सबसे पहले अपनी आत्मकथा हिन्दी में किसने लिखी ।उत्तर - डॉं. राजेन्द्र प्रसाद ने ।● हिन्दी कविता का पहला महाकाव्य् कौन सा है।उत्तर - पृथ्वीराज रासो ।● हिन्दी के सर्वप्रथम प्रकाशित पत्र का नाम क्या है।उत्तर - उदन्ड मार्तण्ड ।● हिन्दी साहित्य की प्रथम कहानी है।उत्तर - इन्दुमती ।● आंचलिक रचनाऍं किससे सम्बन्धित होती है।उत्तर - क्षेत्र विषेश से ।● श् , ष् , स् , ह् व्यंजन कहलाते है।उत्तर - ऊष्म व्यंजन ��● य् , र् , ल् , व् व्यंजन को कहते है।उत्तर - अन्तस्थ व्यंजन ।● क् से म् तक के व्यंजनों को कहा जाता है।उत्तर - स्पर्श व्यंजन ।● घोष का अर्थ है।उत्तर - नाद ।● जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास जिह्वा के दोनों ओर से निकल जाती है कहलाती है।उत्तर - पार्श्विक ।● 'आ' स्वर कहलाता है।उत्तर - वहिंदी का गोल्ड स्मिथ किसे कहा जाता है ।उतर:----श्री सियारामशरण गुप्त2 💐हिन्दी का टेनिसन किसे कहा जाता हैउत्तर:----बाबू जगन्नाथ दास3💐बिहार का महावीर प्रसाद द्विवेदी किसे कहा जाता हैउतर:----आचार्य शिवपूजन सहाय4 💐हिन्दी का लघु प्रसाद किसे कहा जाता हैउतर:----जगदीश चन्द्र माथुर5💐आधुनिक रसखान किसे कहा जाता हैउतर:---श्री अब्दुल रसीद6💐आधुनिक रहीम किसे कहा जाता हैउतर:----मिर्जा नासिर हसन7💐शब्द सम्राट कोश किसे कहा जाता हैउतर:----बाबू श्याम सुंदर दास8💐साहित्य का महारथी किसे कहा जाता हैउतर:----आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी9💐हिन्दी का गालिब किसे कहा जाता हैउतर:-----बिहारी10💐हिन्दी का मिल्टन किसे कहा जाता हैउतर:---केशवदास11💐युग का वैतालिक किसे कहा जाता हैउतर:-----भारतेंदु जी12 💐पूरे ऋषि किस अष्टछापी कवि को कहा जाता हैउतर:----कुम्भनदास13 💐ऊंची योग्यता का कवि किसे कहा जाता हैउतर:----गद्दाधर भट्ट14💐हिन्दी का लैम्ब किसे कहा जाता हैउतर:----प्रताप नारायण मिश्र15💐हिन्दी का मम्मट किसे कहा जाता हैउतर:----पण्डित रामदिन मिस्र16💐अवतारी पुरुष किस कवि को कहा जाता हैउतर:----महावीर प्रसाद द्विवेदी17💐हिन्दी का इलिएट किसे कहा जाता हैउतर:-----अज्ञेय जी18💐छोटे निराला किस कवि को कहा जाता हैउतर:---- जानकी बल्लभ शास्त्री19💐हिन्दी का मल्लिनाथ किसे कहा जाता हैउतर:----राजा लक्ष्मण सिंह20💐आधुनिक काल का पद्माकर किसे कहा जाता हैउतर:----बाबू जगन्नाथ दास ।
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Science General Knowledge Questions
Science General Knowledge Questions Biology GK Questions and Physics GK Questions & Answers
Hello Friends, India Study Institute brings Science General Knowledge Questions, Biology GK Questions and Physics GK Questions Answers for all students for competitive exams. Beyond this we bring 500 Science General Knowledge Question Answer and General Science MCQ Questions with Answers for you. सबसे बड़ी आँखें किस स्तनधारी प्राणी की होती है? उत्तर: हिरण आज कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन में सर्वाधिक योगदान करने वाला देश है? उत्तर: संयुक्त राज्य अमरीका निम्नलिखित में से किस उद्योग में अभ्रक कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है? उत्तर: विद्युत विद्युत प्रेस का आविष्कार किसने किया था? उत्तर: हेनरी शीले ने प्रेशर कुकर में खाना जल्दी पक जाता है, क्योंकि? उत्तर: प्रेशर कुकर के अन्दर दाब अधिक होता है दाब बढ़ाने पर जल का क्वथनांक? उत्तर: बढ़ता है ‘प्रत्येक क्रिया के बराबर व विपरीत दिशा में एक प्रतिक्रिया होती है।’ यह न्यूटन का उत्तर: तीसरा नियम है ताँबा (कॉपर) का शत्रु तत्त्व है? उत्तर: गंधक उगते व डूबते समय सूर्य लाल प्रतीत होता है, क्योंकि? उत्तर: लाल रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है रेडियोऐक्टिवता की खोज किसने की थी? उत्तर: हेनरी बेकरल ने दो समतल दर्पण एक-दूसरे से 60° के कोण पर झुके हैं। इनके बीच रखी एक गेंद के बने प्रतिबिम्बों की संख्या कितनी होगी? उत्तर: पाँच
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पानी के अन्दर हवा का एक बुलबुला किस तरह बर्ताव करता है? उत्तर: एक अवतल लेंस इकाइयों की समस्त व्यवस्थाओं में किस इकाई की मात्रा समान होती है? उत्तर: विशिष्ट गुरुत्व यदि कोई मनुष्य समतल दर्पण की ओर 4 मीटर/सेकेण्ड की चाल से आ रहा है, तो दर्पण में मनुष्य का प्रतिबिम्ब किस चाल से आता हुआ प्रतीत होगा? उत्तर: 8 मीटर/सेकेण्ड कारों, ट्रकों और बसों में ड्राइवर की सीट के बगल में कौन-सा दर्पण लगा होता है? उत्तर: उत्तल दर्पण ऐसे तत्त्व जिनमें धातु और अधातु दोनों के गुण पाये जाते हैं वे कहलाते हैं? उत्तर: उपधातु वनस्पति विज्ञान के जनक कौन हैं? उत्तर: थियोफ्रेस्टस निम्नलिखित में से किसमें ध्वनि की चाल सबसे अधिक होगी? उत्तर: इस्पात में एक व्यक्ति घूमते हुए स्टूल पर बांहें फैलाये खड़ा है, एकाएक वह बांहें सिकोड़ लेता है, तो स्टूल का कोणीय वेग उत्तर: बढ़ जायेगा चन्द्रमा पर एक बम विस्फ़ोट होता है। इसकी आवाज़ पृथ्वी पर उत्तर: सुनाई नहीं देगी
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'साउंड ऑफ मेटल' के बारे में बात करते हैं डेरियस मार्डर
‘साउंड ऑफ मेटल’ के बारे में बात करते हैं डेरियस मार्डर
फिल्म निर्माता डेरियस मर्डर ने अपने नए साउंड ऑफ़ मेटल पर नए सिरे से ध्यान आकर्षित करने की बात कही है, जो महामारी के कारण, और मानव स्थिति पर फिल्म के अंतर्निहित संदेश के लिए धन्यवाद है। डेरियस मर्डर धातु की ध्वनि रूबेन (रिज अहमद) की खूबसूरती से बयां की गई कहानी, एक भारी धातु बैंड में ढोलकदार है जिसकी सुनवाई का नुकसान उसे आत्म-साक्षात्कार की यात्रा पर ले जाता है। रिज़ द्वारा एक ब्रावुरा प्रदर्शन…
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