#स्वास्तिककोकल्याणकीसत्ता
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स्वास्तिक एक चिन्ह और काल -
कोई भी चिन्हने कुछ न कुछ प्रदर्शित ही होता है | इसलिए चिन्ह का महत्व बहुत है | इसलिए जब भी कही कोई खुदाई में चीजें मिलती है तो पुरातत्व विभाग वालों खुदाई में मिलने वाली चीजें का अवलोकन करते है और कई दफा वो चिन्ह से पता लगाते है की ये किस काल की चीजें और उस समय किसका शासन था |क्योकि पुराने दौर में भी या कहे अभी के दौर में लोग���ं को खुश होना या कोई नया काम प्रदर्शित करने के लिए शुभ चिन्ह प्रयोग करते रहे है |इसलिए आज हम ऐसे ही एक सुप्रसिद्ध चिन्ह के बारे में बात करने वाले है |जो आपको हर जगह दिखाई दे जाता है | उसका नाम 'स्वास्तिक' है | ये चिन्ह सिर्फ हिंदू धर्म के आलावा स्वास्तिक का उपयोग आपको बौद्ध, जैन धर्म और हड़प्पा सभ्यता तक में भी देखने को मिलेगा। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को "बेहद शुभ हो" और "अच्छे कर्म" का प्रतीक माना जाता है।
स्वास्तिक का अर्थ -
स्वास्तिक शब्द मूलभूत 'सु+अस' धातु से बना है। 'सु' का अर्थ कल्याणकारी एवं मंगलमय है,' अस 'का अर्थ है अस्तित्व एवं सत्ता। इस प्रकार स्वास्तिक का अर्थ हुआ ऐसा अस्तित्व, जो शुभ भावना से भरा और कल्याणकारी हो। जहाँ अशुभता, अमंगल एवं अनिष्ट का लेश मात्र भय न हो। साथ ही सत्ता,जहाँ केवल कल्याण एवं मंगल की भावना ही निहित हो और सभी के लिए शुभ भावना सन्निहित हो इसलिए स्वास्तिक को कल्याण की सत्ता और उसके प्रतीक के रूप में निरूपित किया जाता है।
भारतीय वेदों से स्वास्तिक का आशय -
ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है।मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है।
विभिन्न धर्म और स्वास्तिक-
ये चिन्ह हिन्दू धर्म के आलावा और भी धर्मों ने अपनाया है |जैसे स्वस्तिक का चिन्ह भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में देखने को मिल जायेगा।स्वास्तिक बौद्ध सिंबल है। स्वस्तिक मतलब अतः दिपः भवः। बुद्ध ने कहा खुद पर भरोसा करो, किसी वेदों पर या देवी देवताओं पर नहीं। स्व आस्तिक मतलब खुद पर भरोसा करना। इसके अलावा जैन धर्म की बात करें, तो जैन धर्म में यह सातवां जिन का प्रतीक है, जिसे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं।तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का शुभ चिह्न है स्वस्तिक जिसे साथ���या या सातिया भी कहा जाता है।स्वस्तिक की चार भुजाएं चार गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन गुफाओं और मंदिरों की दीवारों पर भी यह स्वस्तिक प्रतीक अंकित मिलता है। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।इसी प्रकार कहा जाता है कि हड़प्पा सभ्यता की खुदाई की गई तो वहां से भी स्वास्तिक का चिन्ह निकला था।
हिटलर के स्वास्तिक और हमारे स्वास्तिक में क्या है अंतर -
प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'वामावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही 'वामावर्त स्वस्तिक' अंकित था|आपको किसी मांगलिक कार्य के दौरान अगर कोई स्वास्तिक चिह्न दिखे तो जानिए कि वो दक्षिणावर्त है| नाज़ी सेना द्वारा यूज़ किया गया स्वास्तिक वामावर्त था| दक्षिणावर्त वाले चिह्न को स्वास्तिक और वामावर्त वाले को सौवास्तिक कहा जाता है| सौवास्तिक का यूज़ आपको बौद्ध धर्म में भी दिखता है|
स्वास्तिक बनाने का सही तरीका क्या है ?
ज्योतिषी और वास्तु विद बताते हैं कि स्वास्तिक बनाने के लिए हमेशा लाल रंग के कुमकुम, हल्दी अथवा अष्टगंध, सिंदूर का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले धन (प्लस) का चिन्ह बनाना चाहिए और ऊपर की दिशा ऊपर के कोने से स्वास्तिक की भुजाओं को बनाने की शुरुआत करनी चाहिए।आप अक्सर लाल या पीले रंग के स्वास्तिक को बना हुआ ही देखते होंगे, लेकिन कई जगह आपको काले रंग से बना हुआ स्वास्तिक भी दिखाई देता है। इसमें घबराने की बात नहीं है, बल्कि काले रंग के कोयले से बने स्वास्तिक को बुरी नजर से बचाने का उपाय माना जाता है।
स्वास्तिक से मिलते -जुलते चिन्ह कई देशों में क्या है अर्थ -से
फ़्रांस में घुड़सवारी का यह भावचित्र एक सड़क-चिह्न है जापान में यह भावचित्र 'पानी' का अर्थ देता है भारत का स्वस्तिक भावचित्र 'शुभ' का अर्थ देता है चित्रलिपि ऐसी लिपि को कहा जाता है जिसमें ध्वनि प्रकट करने वाली अक्षरमाला की बजाए अर्थ प्रकट करने वाले भावचित्र (इडियोग्रैम) होते हैं। यह भावचित्र ऐसे चित्रालेख चिह्न होते हैं जो कोई विचार या अवधारणा (कॉन्सॅप्ट) व्यक्त करें। कुछ भावचित्र ऐसे होते हैं कि वह किसी चीज़ को ऐसे दर्शाते हैं कि उस भावचित्र से अपरिचित व्यक्ति भी उसका अर्थ पहचान सकता है, मसलन 'छाते' के लिए छाते का चिह्न जिसे ऐसा कोई भी व्यक्ति पहचान सकता है जिसने छाता देखा हो। इसके वि��रीत कुछ भावचित्रों का अर्थ केवल उनसे परिचित व्यक्ति ही पहचान पाते हैं, मसलन 'ॐ' का चिह्न 'ईश्वर' या 'धर्म' की अवधारणा व्यक्त करता है और '६' का चिह्न छह की संख्या की अवधारणा व्यक्त करता है। हमारा उद्देश्य रहता है की आपको हमेशा कोई नया नजरिया प्रस्तुत कर सके | आपको अच्छा लगे तो हमे जरूर अवगत कराया |
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स्वास्तिक एक चिन्ह और काल -
कोई भी चिन्ह ने कुछ न कुछ प्रदर्शित ही होता है | इसलिए चिन्ह का महत्व बहुत है | इसलिए जब भी कही कोई खुदाई में चीजें मिलती है तो पुरातत्व विभाग वालों खुदाई में मिलने वाली चीजें का अवलोकन करते है और कई दफा वो चिन्ह से पता लगाते है की ये किस काल की चीजें और उस समय किसका शासन था |क्योकि पुराने दौर में भी या कहे अभी के दौर में लोगों को खुश होना या कोई नया काम प्रदर्शित करने के लिए शुभ चिन्ह प्रयोग करते रहे है |इसलिए आज हम ऐसे ही एक सुप्रसिद्ध चिन्ह के बारे में बात करने वाले है |जो आपको हर जगह दिखाई दे जाता है | उसका नाम 'स्वास्तिक' है | ये चिन्ह सिर्फ हिंदू धर्म के आलावा स्वास्तिक का उपयोग आपको बौद्ध, जैन धर्म और हड़प्पा सभ्यता तक में भी देखने को मिलेगा। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को "बेहद शुभ हो" और "अच्छे कर्म" का प्रतीक माना जाता है।
स्वास्तिक का अर्थ -
स्वास्तिक शब्द मूलभूत 'सु+अस' धातु से बना है। 'सु' का अर्थ कल्याणकारी एवं मंगलमय है,' अस 'का अर्थ है अस्तित्व एवं सत्ता। इस प्रकार स्वास्तिक का अर्थ हुआ ऐसा अस्तित्व, जो शुभ भावना से भरा और कल्याणकारी हो। जहाँ अशुभता, अमंगल एवं अनिष्ट का लेश मात्र भय न हो। साथ ही सत्ता,जहाँ केवल कल्याण एवं मंगल की भावना ही निहित हो और सभी के लिए शुभ भावना सन्निहित हो इसलिए स्वास्तिक को कल्याण की सत्ता और उसके प्रतीक के रूप में निरूपित किया जाता है।
भारतीय वेदों से स्वास्तिक का आशय -
ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कम�� नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है।मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है।
विभिन्न धर्म और स्वास्तिक-
ये चिन्ह हिन्दू धर्म के आलावा और भी धर्मों ने अपनाया है |जैसे स्वस्तिक का चिन्ह भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में देखने को मिल जायेगा।स्वास्तिक बौद्ध सिंबल है। स्वस्तिक मतलब अतः दिपः भवः। बुद्ध ने कहा खुद पर भरोसा करो, किसी वेदों पर या देवी देवताओं पर नहीं। स्व आस्तिक मतलब खुद पर भरोसा करना। इसके अलावा जैन धर्म की बात करें, तो जैन धर्म में यह सातवां जिन का प्रतीक है, जिसे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं।तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का शुभ चिह्न है स्वस्तिक जिसे साथिया या सातिया भी कहा जाता है।स्वस्तिक की चार भुजाएं चार गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन गुफाओं और मंदिरों की दीवारों पर भी यह स्वस्तिक प्रतीक अंकित मिलता है। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।इसी प्रकार कहा जाता है कि हड़प्पा सभ्यता की खुदाई की गई तो वहां से भी स्वास्तिक का चिन्ह निकला था।
हिटलर के स्वास्तिक और हमारे स्वास्तिक में क्या है अंतर -
प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'वामावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही 'वामावर्त स्वस्तिक' अंकित था|आपको किसी मांगलिक कार्य के दौरान अगर कोई स्वास्तिक चिह्न दिखे तो जानिए कि वो दक्षिणावर्त है| नाज़ी सेना द्वारा यूज़ किया गया स्वास्तिक वामावर्त था| दक्षिणावर्त वाले चिह्न को स्वास्तिक और वामावर्त वाले को सौवास्तिक कहा जाता है| सौवास्तिक का यूज़ आपको बौद्ध धर्म में भी दिखता है|
स्वास्तिक बनाने का सही तरीका क्या है ?
ज्योतिषी और वास्तु विद बताते हैं कि स्वास्तिक बनाने के लिए हमेशा लाल रंग के कुमकुम, हल्दी अथवा अष्टगंध, सिंदूर का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले धन (प्लस) का चिन्ह बनाना चाहिए और ऊपर की दिशा ऊपर के कोने से स्वास्तिक की भुजाओं को बनाने की शुरुआत करनी चाहिए।आप अक्सर लाल या पीले रंग के स्वास्तिक को बना हुआ ही देखते होंगे, लेकिन कई जगह आपको काले रंग से बना हुआ स्वास्तिक भी दिखाई देता है। इसमें घबराने की बात नहीं है, बल्कि काले रंग के कोयले से बने स्वास्तिक को बुरी नजर से बचाने का उपाय माना जाता है।
स्वास्तिक से मिलते -जुलते चिन्ह कई देशों में क्या है अर्थ -से
फ़्रांस में घुड़सवारी का यह भावचित्र एक सड़क-चिह्न है जापान में यह भावचित्र 'पानी' का अर्थ देता है भारत का स्वस्तिक भावचित्र 'शुभ' का अर्थ देता है चित्रलिपि ऐसी लिपि को कहा जाता है जिसमें ध्वनि प्रकट करने वाली अक्षरमाला की बजाए अर्थ प्रकट करने वाले भावचित्र (इडियोग्रैम) होते हैं। यह भावचित्र ऐसे चित्रालेख चिह्न होते हैं जो कोई विचार या अवधारणा (कॉन्सॅप्ट) व्यक्त करें। कुछ भावचित्र ऐसे होते हैं कि वह किसी चीज़ को ऐसे दर्शाते हैं कि उस भावचित्र से अपरिचित व्यक्ति भी उसका अर्थ पहचान सकता है, मसलन 'छाते' के लिए छाते का चिह्न जिसे ऐसा कोई भी व्यक्ति पहचान सकता है जिसने छाता देखा हो। इसके विपरीत कुछ भावचित्रों का अर्थ केवल उनसे परिचित व्यक्ति ही पहचान पाते हैं, मसलन 'ॐ' का चिह्न 'ईश्वर' या 'धर्म' की अवधारणा व्यक्त करता है और '६' का चिह्न छह की संख्या की अवधारणा व्यक्त करता है। हमारा उद्देश्य रहता है की आपको हमेशा कोई नया नजरिया प्रस्तुत कर सके | आपको अच्छा लगे तो हमे जरूर अवगत कराया |
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स्वास्तिक एक चिन्ह और इसका इतिहास क्या है ?
स्वास्तिक एक चिन्ह और काल -
कोई भी चिन्ह ने कुछ न कुछ प्रदर्शित ही होता है | इसलिए चिन्ह का महत्व बहुत है | इसलिए जब भी कही कोई खुदाई में चीजें मिलती है तो पुरातत्व विभाग वालों खुदाई में मिलने वाली चीजें का अवलोकन करते है और कई दफा वो चिन्ह से पता लगाते है की ये किस काल की चीजें और उस समय किसका शासन था |क्योकि पुराने दौर में भी या कहे अभी के दौर में लोगों को खुश होना या कोई नया काम प्रदर्शित करने के लिए शुभ चिन्ह प्रयोग करते रहे है |इसलिए आज हम ऐसे ही एक सुप्रसिद्ध चिन्ह के बारे में बात करने वाले है |जो आपको हर जगह दिखाई दे जाता है | उसका नाम 'स्वास्तिक' है | ये चिन्ह सिर्फ हिंदू धर्म के आलावा स्वास्तिक का उपयोग आपको बौद्ध, जैन धर्म और हड़प्पा सभ्यता तक में भी देखने को मिलेगा। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को "बेहद शुभ हो" और "अच्छे कर्म" का प्रतीक माना जाता है।
स्वास्तिक का अर्थ -
स्वास्तिक शब्द मूलभूत 'सु+अस' धातु से बना है। 'सु' का अर्थ कल्याणकारी एवं मंगलमय है,' अस 'का अर्थ है अस्तित्व एवं सत्ता। इस प्रकार स्वास्तिक का अर्थ हुआ ऐसा अस्तित्व, जो शुभ भावना से भरा और कल्याणकारी हो। जहाँ अशुभता, अमंगल एवं अनिष्ट का लेश मात्र भय न हो। साथ ही सत्ता,जहाँ केवल कल्याण एवं मंगल की भावना ही निहित हो और सभी के लिए शुभ भावना सन्निहित हो इसलिए स्वास्तिक को कल्याण की सत्ता और उसके प्रतीक के रूप में निरूपित किया जाता है।
भारतीय वेदों से स्वास्तिक का आशय -
ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है।मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है।
विभिन्न धर्म और स्वास्तिक-
ये चिन्ह हिन्दू धर्म के आलावा और भी धर्मों ने अपनाया है |जैसे स्वस्तिक का चिन्ह भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में देखने को मिल जायेगा।स्वास्तिक बौद्ध सिंबल है। स्वस्तिक मतलब अतः दिपः भवः। बुद्ध ने कहा खुद पर भरोसा करो, किसी वेदों पर या देवी देवताओं पर नहीं। स्व आस्तिक मतलब खुद पर भरोसा करना। इसके अलावा जैन धर्म की बात करें, तो जैन धर्म में यह सातवां जिन का प्रतीक है, जिसे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं।तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का शुभ चिह्न है स्वस्तिक जिसे साथिया या सातिया भी कहा जाता है।स्वस्तिक की चार भुजाएं चार गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन गुफाओं और मंदिरों की दीवारों पर भी यह स्वस्तिक प्रतीक अंकित मिलता है। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।इसी प्रकार कहा जाता है कि हड़प्पा सभ्यता की खुदाई की गई तो वहां से भी स्वास्तिक का चिन्ह निकला था।
हिटलर के स्वास्तिक और हमारे स्वास्तिक में क्या है अंतर -
प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'वामावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही 'वामावर्त स्वस्तिक' अंकित था|आपको किसी मांगलिक कार्य के दौरान अगर कोई स्वास्तिक चिह्न दिखे तो जानिए कि वो दक्षिणावर्त है| नाज़ी सेना द्वारा यूज़ किया गया स्वास्तिक वामावर्त था| दक्षिणावर्त वाले चिह्न को स्वास्तिक और वामावर्त वाले को सौवास्तिक कहा जाता है| सौवास्तिक का यूज़ आपको बौद्ध धर्म में भी दिखता है|
स्वास्तिक बनाने का सही तरीका क्या है ?
ज्योतिषी और वास्तु विद बताते हैं कि स्वास्तिक बनाने के लिए हमेशा लाल रंग के कुमकुम, हल्दी अथवा अष्टगंध, सिंदूर का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले धन (प्लस) का चिन्ह बनाना चाहिए और ऊपर की दिशा ऊपर के कोने से स्वास्तिक की भुजाओं को बनाने की शुरुआत करनी चाहिए।आप अक्सर लाल या पीले रंग के स्वास्तिक को बना हुआ ही देखते होंगे, लेकिन कई जगह आपको काले रंग से बना हुआ स्वास्तिक भी दिखाई देता है। इसमें घबराने की बात नहीं है, बल्कि काले रंग के कोयले से बने स्वास्तिक को बुरी नजर से बचाने का उपाय माना जाता है।
स्वास्तिक से मिलते -जुलते चिन्ह कई देशों में क्या है अर्थ -से
फ़्रांस में घुड़सवारी का यह भावचित्र एक सड़क-चिह्न है जापान में यह भावचित्र 'पानी' का अर्थ देता है भारत का स्वस्तिक भावचित्र 'शुभ' का अर्थ देता है चित्रलिपि ऐसी लिपि को कहा जाता है जिसमें ध्वनि प्रकट करने वाली अक्षरमाला की बजाए अर्थ प्रकट करने वाले भावचित्र (इडियोग्रैम) होते हैं। यह भावचित्र ऐसे चित्रालेख चिह्न होते हैं जो कोई विचार या अवधारणा (कॉन्सॅप्ट) व्यक्त करें। कुछ भावचित्र ऐसे होते हैं कि वह किसी चीज़ को ऐसे दर्शाते हैं कि उस भावचित्र से अपरिचित व्यक्ति भी उसका अर्थ पहचान सकता है, मसलन 'छाते' के लिए छाते का चिह्न जिसे ऐसा कोई भी व्यक्ति पहचान सकता है जिसने छाता देखा हो। इसके विपरीत कुछ भावचित्रों का अर्थ केवल उनसे परिचित व्यक्ति ही पहचान पाते हैं, मसलन 'ॐ' का चिह्न 'ईश्वर' या 'धर्म' की अवधारणा व्यक्त करता है और '६' का चिह्न छह की संख्या की अवधारणा व्यक्त करता है। हमारा उद्देश्य रहता है की आपको हमेशा कोई नया नजरिया प्रस्तुत कर सके | आपको अच्छा लगे तो हमे जरूर अवगत कराया | पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/3i0HGnY
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