#कलम है
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कलम चुप है
आज मेरी कलम चुप है मेरे सोच की लहरें भी गुपचुप हैं एक मायूसी और उदासी का आलम छाया हुआ है आज फिजाएं भी चुप चुप हैं, शब्द मेरे जैसे ही निःशब्द हो गए हैं आज मेरे ख्यालों से गुम हो गए हैं आज कलम चुप होकर कराह भरते हैं ।।
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15.09.2024, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के सहयोग से "दिल की कलम से- सीजन 2" कार्यक्रम का भव्य आयोजन जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के ऑडिटोरियम में किया गया | इस कार्यक्रम में कवि चंद्रशेखर वर्मा ने पद्मश्री कैफ़ी आज़मी जी, साहिर लुधियानवी जी,पद्म भूषण गोपालदास नीरज जी, पद्म भूषण गुलजार जी, श्री आनंद बक्शी जी, मखदूम मोहिउद्दीन जी, श्री सुदर्शन फकीर जी, श्री संतोष आनंद जी, अहमद फ़राज़ जी और हसरत जयपुरी जी जैसे प्रसिद्ध महान कवियों एवं गीतकारों के गीतों को नए शब्दों और धुनों से ��ंवारा जिन्हें गायिका डॉ. प्रभा श्रीवास्तव ने अपनी सुरीली आवाज में प्रस्तुत किया |
कार्यक्रम की शुरुआत लोकप्रिय गीत "फूलों के रंग से" से हुई, जिसके बाद "छिड़ी रात बात फूलों की", "बड़े अच्छे लगते हैं", "एक प्यार का नग़मा है", “आपकी आँखों मे कुछ महके हुए से ख्वाब हैं”, “जिंदगी के सफर में”, “प्यार का पहला खत” और “एक अकेला इस शहर में” जैसी कालजयी रचनाओं की प्रस्तुति हुई । इस संगीतमयी शाम में गायिका डॉ. प्रभा श्रीवास्तव का साथ श्री रिंकू राज (सिंथेसाइज़र), श्री राकेश आर्य (तबला) और श्री नितीश भारती (गिटार) ने दिया |
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्यों डॉ शिखा श्रीवास्तव, डॉ प्राची श्रीवास्तव, जानिसार जी, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, सेक्टर-25, इंदिरानगर से डॉ प्रमोद श्रीवास्तव, श्रीमती प्रभा श्रीवास्तव तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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उनकी आँखों में इक चमक,
उनके लफ्जों में इक नमी है।
उनकी आवाज़ की वो खनक,
धीरे-धीरे खलने लगी है।
उनकी बातों से मन बहलने को,
जी बेतहाशा चाहता है
मगर इस ज़माने की बातों से
हमें फुरसत कहां मिली है...।
- मेरी अपनी कलम से
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कलयुग की कल्पना
कनक कटाक्ष कंगन सी, कोमल सी तेरी काया,
कादम्बनी के कलम से कल्पित तेरी काया ।
कंकर कंकर डाल काग ने, शिक्षक का स्वांग रचाया,
काल का रहस्य जानकर, समय का चक्कर लगाया ।
कर्ण में माँ कुंती कण कण में थी,
किंतु कुरुक्षेत्र की कहानी में एक अनकही अनबन भी थी ||
कपीश किशन के कानुश अर्जुन ही थे,
किंतु कौरव के साथ खड़े इस कौनतय के लिए कानून कुछ अलग थे |।
कब, क्यों, कौन, कहा और कैसे हर कहानी किशन के कनवी में कंठित थी ||
कर्म की कुंजी हो या धर्म की पूंजी,
चंद्रमा के कुरपता का राज़ क�� या काले पथ पर बिछा कांच हो,
हर कथा उन कृष्ण नैनो में अंकित थी ||
काम की कामना, ख्याति की वासना,
किरण्या की काशविनी में नाचना, यही तो है, इस कलयुग की विडंबना |
नारी का तिरस्कार, पुरुषो के अधिकारों का बहिष्कार,
पूज्य है तो केवल अंधकार,
तू नग्नता जानता है, तो तू है बहुत बड़ा कलाकार,
यह कलयुग है मेरे दोस्त,
निरर्थक – निराकार |
– अय्यारी
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#हरि_आये_हरियाणे_नू
संत गरीबदास जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी सतलोक से आकर 10 वर्ष की आयु में मिले। उसके बाद उन्हें सतलोक दिखाया। जिसका वर्णन गरीब दास जी ने सत्यग्रन्थ साहिब में कलम तोड़ किया है।अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नही भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन
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ऐसा क्यों होता है
जब लिखने के लिए वक्त नहीं
तभी जज़्बातों को बयान करने को दिल कहता है
जब हाथ में काग़ज़ कलम नहीं
तभी अल्फ़ाज़ों को सामने पेश करने को मन तरसता है
जब शरीर में कोई जान नहीं
तभी कहीं दूर भाग जाने को जी चाहता है
ऐसा क्यों होता है,
भला ऐसा क्यों होता है
~ साँझ
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जिंदगी के रंग by रूपम महतो
किताब के बारे में... इस किताब में मैंने जिंदगी में मिलने वाली रिश्तों की खूबसूरती को अल्फाजों में पिरोकर कविता का रूप दिया है। हम अपने जीवन में कई रिश्तों को जीते हैं। सभी का अहसास अलग अलग होता है। कुछ रिश्तें प्रेम के, कुछ दोस्ती के और कुछ रिश्तें परिवार से मिलते हैं। इन सब में सबसे बड़ा रिश्ता होता है इंसानियत का जिनकी बात सबसे ख़ास होती है। रिश्तों में उठते जज्बातों को,भावनाओं को मैंने शब्दों में पिरोने की कोशिश की है। बहुत बार ऐसा होता है कि हम अपने मन की बात ज़ुबां से नहीं बोल पाते तब कलम ही हमारी जुबान बन जाती है। इस किताब में मैंने उन भावनाओं को भी सामिल किया है जो मन जिंदगी की अलग अलग परिस्थितियों मैं महसूस करता है। कुछ कविताएँ ऐसी भी जो हमें कठिन स्थितियों में प्रेरणा देती है। जीवन में हार न मानकर आगे बढ़ते रहने में दर्शन करती है। बस ये सारी भावनाओं का संग्रह है ये किताब।
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सुनो, जो भी काम में व्यस्त हो, वो थोड़ा बाजू रख के,
क्या मुझसे मिल सकते हो?
माना देरी नहीं हुई है, लेकिन मुझे जल्दी है थोड़ी।
वो, दरअसल, मुझे, तुम्हे, घूमान��� ले जाना है।
उस नदी के छोटे वाले किनारे,
जहा हररोज शाम को मछलियां झुंड बनाके
जमीन का दर्शन करने आती है।
मछुवारे से नही डरती है।
क्योंकि एक अबोल समझौता है उनमें
की सुबह मछुवारे की होगी, और शाम मछलियों की।
वो, दरअसल, मुझे, तुम्हे, घूमाने ले जाना है।
नदी को तुमसे मिलाने ले जाना है।
उस्सी नदी के किनारे बैठ,
आधा पिघला कॉर्नेटो आइसक्रीम कोन खाना है,
वो आइसक्रीम के कागज़ों को हाथों में संभाल के रखना है,
हाथ को घर मान बैठी चॉकलेट की उस हल्की सी परत को, धोने के बहाने से, पानी में उतरना है।
किसी बच्चे सा, बेफिक्र, पानी उछालना है,
फिर गीले पाऊं लिए, वापिस उन icecream के कागज़ों के पास चले आना है।
मुझे तुम्हे घूमाने ले जाना है।
उन मछलियों का खेल दिखाने ले जाना है।
माना देरी नहीं हुई है, लेकिन मुझे जल्दी है थोड़ी।
मुझे जल्दी है थोड़ी, क्योंकि कॉर्नेटो अब मिलता नहीं है,
मिलता है तो पिघलता नहीं है,
जब से कलम छोड़ लैपटॉप चुना है,
चॉकलेट हाथों को घर कहता नहीं है,
वो किनारा, वो नदी सुख रही है,
पीली नाव, बाजार में, बिक रही है।
मछुवारा धंधा बदल रहा है,
और मछलियां खत्म हो रही है।
इसलिए, सुनो, जो भी काम में व्यस्त हो, वो थोड़ा बाजू रख के,
क्या मुझसे मिल सकते हो?
माना देरी नहीं हुई है, लेकिन मुझे जल्दी है थोड़ी।
वो, दरअसल,
जब तक नदी है, नाव है, मछली है, मछुआरा है,
लैब में बना नहीं, सृष्टि निर्मित वारा है,
तब तक, या उससे पहले,
मुझे, तुम्हे, घूमाने ले जाना है।
Sau
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धुंधले छाँव में जब शाम धले,
सपनों की लहरें ख्वाबों में मचले।
अनदेखी धुनें हवाओं में बहे,
सूरों की मिसालों से सजे।
तारों का नृत्य जगमगाहट में,
हर चमक रात और दिन की कहानी में।
रहस्य खोलते हैं रेशमी बोल,
भूली हुई बिती युगों की ध्वनि।
एक अकेले सांस की गहराई में,
चाँदनी के छुम्बन में सागर की विलाप में।
कवि की कलम लिखती आसमान पर,
शब्द जो उड़ान भरते हैं और नहीं मरते।
एक गुप्त सोच की खामोशी में खो जाएं,
जहां ब्रह्मांड की तलाश हो खोजी।
नई कविता खिलती है, अनदेखी, अनसुनी,
अनंत जीवन की निरंतर भाषा में नाचती है वो नयी कला की रानी।
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कागज़ है कलम है और लबों पे तेरा नाम है ,
हां तुम को बयां करने का पूरा इंतजाम हैं ।।
—Sitara
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मैं कागज़ पर शब्दों का कोई खेल नहीं खेलती,
जिसे महसूस नहीं किया उस दर्द को मैं नहीं लिखती।
I don't just write words on paper, Only the pain I've felt finds its way there.
जब नहीं रो सकती, कलम से खून निकलता है,
मेरी खोज में सुकून, कागज़ पर मिलता है।
When tears won't come, I let my pen bleed, And pour my heart out until it's freed.
–Nyx
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#Likhna
ना किसी को देखा ना किसी को चाहने लगी हूँ
ना किसी ने दिल तोड़ा ना गम को आजमाने लगी हूँ
लिखने को मजबूर कभी-कभी हालात भी कर देते है
मैं बस उस दर्द को कलम से कागज़ पर उतारने लगी हूं
Na kisi ko dekha or na kisi ko chahne lgi hu
Na kisi ne dil toda na gum ko aajmaane lgi hu
Likhne ko majboor kbhi-kbhi haalaat bhi kr dete hai
Me bs us dard ko kalam se kaagaz pr utarne lgi hu..
- Krishna Sharma ( कृष्��ा शर्मा )
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06.07.2024, लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक तथा मशहूर-ओ-मारूफ शायर "मोहब्बत के सफ़ीर" पदमश्री शायर अनवर जलालपुरी की 77वीं जन्म जयंती के अवसर पर ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया I कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने अनवर जलालपुरी जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण कर उन्हें श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि दी |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, “पद्मश्री अनवर जलालपुरी जी ने अपनी शायरी के माध्यम से लोगों के दिलों में मोहब्बत और इंसानियत का संदेश फैलाया । उनके शब्दों में वह जादू था जो लोगों के दिलों को छू लेता था और उन्हें एक दूसरे के करीब लाता था । उन्हें "मोहब्बत के सफ़ीर" कहे जाने का कारण यही था कि उन्होंने अपनी कलम के जरिए हमेशा मोहब्बत, भाईचारा और इंसानियत का संदेश दिया । अनवर जलालपुरी के विचार और उनकी शायरी आज भी हमें प्रेरित करते हैं । उन्होंने हमें सिखाया कि मोहब्बत सबसे बड़ा धर्म है और इंसानियत स�� बढ़कर कुछ भी नहीं । उनकी शायरी हमें याद दिलाती है कि अगर हम एक-दूसरे से मोहब्बत करें तो इस दुनिया को बेहतर बना सकते हैं । हमें उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए । हमें उनके संदेशों को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए और उनके द्वारा दिखाए गए मोहब्बत और इंसानियत के रास्ते पर चलना चाहिए । अंत में हम सभी अनवर जलालपुरी के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करते हैं । उनके विचार और उनकी शायरी सदैव हमें प्रेरित करते रहेंगे और हमें सही मार्ग पर चलने की दिशा दिखाते रहेंगे ।“
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Anwar Jalalpuri : Mohabbat Ke Safeer अनवर जलालपुरी : मोहब्बत के सफीर Urdu Shayari Mein Geeta by Padmashri Anwar Jalalpuri
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#Who_Is_SantGaribdasJiMaharaj संत गरीबदास जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी सतलोक से आकर 10 वर्ष की आयु में मिले। उसके बाद उन्हें सतलोक दिखाया। जिसका वर्णन गरीब दास जी ने सत्यग्रन्थ साहिब में कलम तोड़ किया है। अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नही भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।। #dham #chhudani #sachkhand #satlok #waheguru #sangat#granth #SantRampalJiMaharaj #SaintRampalJi https://www.instagram.com/p/CpG_pS7IWH5/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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इतिहास कलम की नोक पर नहीं, तलवार की धार पर लिखी गई है । कई पन्नो पर जो दाग थे, उन्हे कला का नाम दिया गया l
- अय्यारी
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चंदन की ठंडक पर तक्षक की घात है ऐसा ही कुछ मेरे इस दिल का हाल है,
ज़ुबान पर ज़हर है, कलम में ठहर है, लिखने का यूं तो दिल है, पर इस दिल का दिल नहीं लगता कहीं,
कैसे समझाऊंँ इसे के तुम मेरी नहीं,
पतझड़ की हवाओं में पत्ते जैसे पिघलते हैं,
ये नगमे मेरे बेगाने होके मुझसे तुझपे आके मरते हैं,
ज़रा कुछ दिन ना लिखूंँ तेरे बारे में तो ख़्वाब नहीं खुलता मेरा,
किसे सुनाऊंँ कहानी अपनी, सिर्फ़ इन पन्नों की ख़ामोशी में ही दबा है ज़िक्र तेरा,
ये करिश्मा है?, या कहानी है?, या है ये कयामत?,
या जादू है?, करतब है?, या है ये क़िस्मत?,
तकल्लुफ़ क्यूंँ करनी उसकी जिसकी बला छुट चुकी है?,
समझाता हूंँ इसको बार–बार,
कंबख़्त ये समझने को तैयार ही नहीं है,
अब तो लिखने वाले की तबीयत इतनी नासाज़ दिखाई पड़ती है,
के कमीनी ये दवात ही एक लौती दवा दिखाई पड़ती है,
पर रोता नहीं हूंँ उन झूठे मस्तानों की तरह,
ना तेरा दीवाना बना फि़रता हूंँ,
कहीं मगरुर ना होना इस बात पर,
के कैसे तेरी एक "ना" का इतना असर है ज़िगर पर किसी शायर के,
ये तो मेरा कुसूर है, तुम्हें किस बात का गुरूर है?,
ऐ ज़िंदगी तू ही इसकी कारसाज़ है,
तेरी तो नियत ही एक दाग है,
लकीरें नसीब की कितनी बदज़ात हैं,
नियत तेरी की तुझे ख़ुदा ना आज़माएं,
नियत तेरी की तुझे तेरा खोया रूबाब मिल जाए,
नियत तेरी के वापस कभी लब मेरे कोई नगमे न गाएं,
कितनी ही महफ़िलें मेरी तेरे नाम पर नीलाम हैं,
नसीब के सितारे मेरे फ़लक से उतर कर तेरे कदमों पर यूंँ गिरते हैं,
ये नगमे मेरे बेगाने होके मुझसे तुझपे आके मरते हैं
-शशि
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