धूम्रपान मारता है लेकिन उदासी और अकेलापन आपको तेजी से मार सकता है, शोध कहता है
धूम्रपान मारता है लेकिन उदासी और अकेलापन आपको तेजी से मार सकता है, शोध कहता है
आणविक क्षति की शुरुआत उम्र से संबंधित कमजोरी और गंभीर बीमारियों को बदतर बना देती है। कुछ लोग अपनी आणविक प्रक्रियाओं के अधिक गहन होने के कारण दूसरों की तुलना में अधिक तेज़ी से बढ़ते हैं।
सौभाग्य से, उम्र बढ़ने के कम्प्यूटेशनल मॉडल को नियोजित करने से इसके विनाशकारी प्रभाव स्पष्ट होने से पहले उम्र बढ़ने की त्वरित दर की पहचान करने में मदद मिल सकती है (उम्र बढ़ने की घड़ियां)। इन मॉडलों का उपयोग…
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हरेक मिठो मुस्कानको पछाडी
एक तितो उदासी छ जुन कसैले
देख्न र महसुस गर्न सक्दैन।
#kamalsanjyal
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यहां सकारात्मकता की बात भी बेमानी हो जाती है। अपनी भावनाओं से कट जाना समर्पण नहीं है। हो सकता है कि कुछ चरम स्थितियों में 'अब' को स्वीकार करना आपके लिए संभव न हो। लेकिन समर्पण में आपको इसके लिए एक और अवसर तो मिल ही जाता है। यह जानने के बाद कि जो हो गया है, उसे वैसा ही नहीं किया जा सकता।
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It’s the same bougainvillea glabra plant that climbs on the red walls of the department of Chemistry/Geography at Jamia Millia Islamia.
This plant is dear to me as it has blessed with such serenity whenever I had trouble with my thoughts.
Normally we all call this, Kagaz ka phul but in my language I call this;
‘उज्ज्वल बगीचों में, जहाँ रंग नाचते हैं, यह पौधा जीवंत समाधि में है।
पंखुड़ियों के साथ, बहुत भव्य रंगों में, प्रकृति की एक उत्कृष्ट कृति, पूरे देश में।
इसके काँटे चुभ सकते हैं, फिर भी सुंदरता राज करती है, हर फूल में, एक कहानी कायम रहती है।
सूरज की गर्म, सुनहरी किरणों के बीच, यह खुशी के दिनों की टेपेस्ट्री बुनता है।
पूरी तरह खिलने पर, एक ऐसा नज़ारा जो सारी उदासी को दूर भगा दे।
आपकी उपस्थिति अनुग्रह का स्पर्श लाती है, हर कोने में, एक रंगीन आलिंगन।’
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The eyes never lie, do they?
प्यार, दर्द, उदासी, ख़ुशी, सब उन आँखों में ही दिख जाता है।
जो लफ्ज नहीं बयां कर पाते आंखें कर देती हैं
जो अनकहा, अनसुना रह जाता है, आंखें कह देती है
आंखें सब कह देती हैं, बस उन्हें कोई सुनने वाला होना चाहिए।
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"कभी-कभी उदासी भी थक जाती है"
Trans.
Sometimes even sadness gets tired
From गुनाहों का देवता by Dharmaveer Bharti
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बड़े दिन बाद उदासी आई है दरवाज़े पर मेरे,
ना ख़बर, ना ख़्याल, ना शिकन है दिल में मेरे,
फ़िर क्यूंँ आई है ये पुरानी कोई ख़बर बनके ज़हन में मेरे,
ढलते सूरज के साथ ढली पहरों की ठहर बनके,
बड़े दिनों बाद उदासी आई है दरवाज़े पर मेरे,
अब तो तौबा करली है आदतों से कितनी,
अब तो तौबा करली है ख़्वाबों के मिट्टी के महल बनाने से,
ये लंबे दौर की लहरें ले डुबा है ज़मीर के ख़ज़ाने मेरे कितने,
अब तो किनारे ही रह जाने की दरख़्वास्त है मेरी,
सुनने–सुनाने के किस्से यूंँ किस से जताऊंँ,
अब तो तौबा करली है लफ्ज़ों से ही ज़बान ने मेरी,
ना ख़बर, ना ख़्याल, ना शिकन है दिल में मेरे,
तब भी बड़े दिन बाद उदासी आई है दरवाज़े पर मेरे,
लगता है क़िस्मत बड़ी ख़फ़ा है मुझसे,
कितना डर–डर के जिया है जिगर मेरा हर दम,
अपना हर ग़म छुपाया है मुस्कुराहट के पर्दों में मैंने,
दूर ही रहता हूंँ इन टूटे शीशों से बनी बदनुमा दुनिया से,
हर पल ये भीड़ बताती है मुझे,
ऐ बंदे, बर्बादी बड़ी खड़ी है इस राह पर तेरे,
पर इस राह पर तो मुझे अपना सच दिखता है,
बर्बादी ही सही, सच तो रहे,
कफ़न ही सही, पर सर पर बंँधे,
पर सामना सिर्फ़ करना चाहता हूंँ इसका ज़माने के सामने,
अपनों के शायद मर्म को सह ना पाऊंँगा,
बड़ा बुज़दिल जो हुंँ कहीं मर ही जाऊंँगा,
आज हर सही–ग़लत का हिसाब करने आयी है इस ज़माने का पूरे,
बड़े दिन बाद उदासी आई है दरवाज़े पर मेरे
–शशि
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मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा
तुम्हारा फ़ैसला था याद होगा
बहुत से उजले उजले फूल ले कर
कोई तुम से मिला था याद होगा
बिछी थीं हर तरफ़ आँखें ही आँखें
कोई आँसू गिरा था याद होगा
उदासी और बढ़ती जा रही थी
वो चेहरा बुझ रहा था याद होगा
वो ख़त पागल हवा के आँचलों पर
किसे तुम ने लिखा था याद होगा
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literally everyone in our generation
डर लगता है इश्क करने में जी
दिल तो बच्चा है जी
थोड़ा कच्चा है जी
ऐसी उदासी बैठी है दिल में
हसने से घबरा रहें हैं
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ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया,
ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया,
ये ��ौलत के भूखे रवाजों की दुनिया,
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
हर इक जिस्म घायल, हर इक रूह प्यासी
निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
यहाँ इक खिलौना है इसां की हस्ती
ये बस्ती हैं मुर्दा परस्तों की बस्ती
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
जवानी भटकती हैं बदकार बन कर
जवान जिस्म सजते है बाज़ार बन कर
यहाँ प्यार होता है व्योपार बन कर
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है
वफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है
जहाँ प्यार की कद्र कुछ नहीं है
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
जला दो इसे फूक डालो ये दुनिया
जला दो, जला दो, जला दो
जला दो इसे फूक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
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एक खालीपन है,
इस दिल में,
सुन्न सन्नाटा है
धड़कनो के बीच,
उदासी की झील में
तरंग है उसके ख़याल ,
हल्का सा जीवन दे जाता है,
मगर है तो एक छल ही,
मृगतृष्णा इस मन का,
मेरे लिए कहाँ ही है
प्यार लिखा मेरे हाथो के लकीरो में ?
गर्दिश में है चाहत मेरी
मगर फिर भी काश..
होता कोई जिसे अपना बुला पाती
बिना ���ोचे समझे उसपर यकीन कर पाती
उसमे ही विलीन हो जाती
हमेशा हमेशा के लिए....
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उदासी एक अलग ही क़िस्म का नशा है। बाक़ी नशे सुकून देते हैं, सन्तुष्टि देते हैं, जीवन के प्रति आस्था पैदा करते हैं, नशे के प्रति लगाव पैदा करते हैं जबकि उदासी वैराग्य जगाती है, उदासी से दूर भाग जाने की इच्छा जगाती है और एक प्यास बढ़ाती रहती है। उदासी धरती की सबसे पुरानी धरोहर होगी। यह प्यार से हज़ारों साल पुरानी होगी।
‘ग्यारहवीं- A के लड़के’
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।।आप जैसों के लिए इसमें रखा कुछ भी नहीं
लेकिन ऐसा तो न कहिये की वफ़ा कुछ भी नहीं।
आप कहिये तो निभाते चले जायेंगे मगर
इस ताल्लुक़ में अज़ीयत के सिवा कुछ भी नहीं।
में किसी तरह भी समझौता नही कर सकता
या तो सब कुछ ही मुझे चाहिए या कुछ भी नहीं।
कैसे जाना है, कहाँ जाना है, क्यों जाना है
हम की चलते चले जाते हैं पता कुछ भी नहीं।
अब मैं क्या अपनी मोहब्बत का भ्रम भी न रखूं ?
मान लेता हूँ कि उस शक़्स में था कुछ भी नहीं।
मैंने दुनिया से अलग रह कर भी देखा "जवाद"
ऐसी मुह-ज़ोर उदासी की दवा कुछ भी नहीं ।।
- जवाद शेख़
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"इसके पहले तो मन में कैसे तूफान आपस में लड़ रहे थे, कुछ समझ में नहीं आता। अब तूफान बीत गये। तूफान के बाद की खामोश उदासी है।"
From गुनाहों का देवता by धर्मवीर भारती।
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लता जी की शख्शियत व उनके सुरों को हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का शत शत नमन - हर्ष वर्धन अग्रवाल |
28.09.2022, लखनऊ | भारत की 'स्वर कोकिला' लता मंगेशकर जी की जन्म जयंती के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा "श्रद्धांपूर्ण पुष्पांजलि" का आयोजन ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय, 25/2G, सेक्टर-25 में किया गया | कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने 'स्वर कोकिला' भारत रत्न लता मंगेशकर जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्पण कर उन्हें श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि दी |
बताते चलें कि लीजेंड सिंगर भारत रत्न और Nightingale of India लता मंगेशकर दीदी भले ही इस दुनिया से रुखसत हो गईं हों, लेकिन उनकी मखमली आवाज हमेशा-हमेशा के लिए हमसब की रूह में उतर गई है । जमाना किसी का भी हो, रुहानी और खनकती आवाज का जादू हर उम्र-हर वर्ग के लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है ।
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि "लता जी एक ऐसी शख्सियत थी जिनकी गायकी के मुरीद माननीय तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी हैं, और यही कारण है कि वे प्रभावित होकर उनसे मिलने उनके घर तक पहुंच जाया करते थे । एक वक्त उस्ताद बड़े गुलाम अली खां लता जी की आवाज के कायल थे। गुलाम साहब ने लता जी की स्नेहभरी प्रशंसा पंडित जसराज के सामने भी की थी । ये वही गुलाम साहब हैं जिसके सामने हर संगीत प्रेमी का सिर सम्मान में झुक जाया करता है । सिर्फ संगीत प्रेमी ही नहीं, बल्कि उनकी गायकी को पसंद करने वाले हर-वर्ग के लोग शामिल हैं । बात तब कि है जब चीन के साथ 1962 के युद्ध के बीते एक साल ही हुए थे । 1963 में सैनिकों के बीच लताजी ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ! जरा आंख में भर लो पानी’ गाकर सुनाया, उस एक पल ने जैसे सुननेवालों के दिल को झकझोर कर रख दिया, हर किसी की आंखें भर आईं, तो ऐसी थीं लता दीदी । इसके 50 साल बाद इस गीत की स्वर्ण जयंती सम्पन्न होने पर लता जी का यह गीत उन्हीं के मुख से सुनकर पीएम मोदी भी भावुक हो उठे । उन्होंने कहा- दीदी का यह गीत अमर है । पीएम ने कहा कि, आप वास्तव में भारत रत्न हैं, आपके गायन की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है । लता दीदी, भले ही उदासी के ये वक्त निकल जाएं, मगर मसला तो आपकी यादों का है, आप हमारे ख्यालों में भी रहेंगी और दिल में भी, आपकी आवाजें हमने अपनी जिंदगी में उधार ली हैं, जिसकी याद में ब्याज भरती रहेंगी उम्र भर हमारी आंखें ।
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1360.
"अस्थिर गति स्थिरांक लिए"
- कामिनी मोहन।
हर दिन मन घूमता रहता है,
संतुलन की कमी को टटोलता रहता है।
अस्थिरता को विचित्र रंग में लपेटे हुए एक मिश्रण है,
जो ईट से ईट को जोड़ता रहता है।
अस्थिर गति स्थिरांक लिए,
अंधेरी दुनिया को घेरता रहता है।
अजन्मा संयोजन चारों ओर से,
पीली ज़र्द उदासी की भाषा में बोलता रहता है।
धुँधली रोगग्रस्त रोशनी को धमनियां निगल जाती है,
भरा भरा-सा रक्त धीरे-धीरे सूखता रहता है।
जो अभी तक महसूस नहीं हो सका है,
ब्रह्माण्डीय प्रवाह में शून्य से गुजरता रहता है।
फिर से पैदा होती है चीख़-पुकार,
फिर भी आहट को अनसुना करता रहता है।
काँपती भावनाओं की गड़गड़ाहट में,
ज्ञान से परे ज्ञान का लालित्य देखता रहता है।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
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