#संस्कृत सुभाषित श्लोक
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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काकः कृष्णः पिकः कृष्णः
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः
संस्कृत श्लोक काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः॥ श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण Roman transcription of the Shloka kākaḥ kṛṣṇaḥ pikaḥ kṛṣṇaḥ ko bhedaḥ pikakākayoḥ।vasantasamaye prāpte kākaḥ kākaḥ pikaḥ pikaḥ॥ श्लोक का शब्दार्थ काकः – कौआकृष्णः – कालापिकः – नर कोयलकृष्णः – कालाकः – कौन (सा)भेदः – अन्तर, फर्कपिककाकयोः – कोयल और कौवे मेंवन्तसमये प्राप्ते…
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nageshjain · 4 years ago
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कैसी वाणी कैसा साथ ? Kaisi vani Kaisa sath ?
कैसी वाणी कैसा साथ ? Kaisi vani Kaisa sath ?
दवे साहेब विश्वविद्यालय के विद्यार्थियो के बीच बहुत प्रसिद्द थे। उनकी वाणी , वर्तन तथा मधुर व्यवहार से कॉलेज के प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियो उन्हें ‘ वेदसाहेब ’ से संबोधन करते थे। ऐसे भी वे संस्कृत के प्राध्यापक थे , और उनकी बातचीत में संस्कृत श्लोक-सुभाषित बारबार आते थे। उनकी ऐसी बात करने की शैली थी जिससे सुनने वाले मुग्ध हो जाते थे। एक दिन विज्ञान के विद्यार्थियो की कक्षा में अध्यापक नहीं थे…
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avinashgiri · 5 years ago
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सर्वप्रथम मेरी तरफ से देश की सेवा में कार्यरत सभी लोगों को मैं नमन करता हूं और उन सब की मंगल कामना के लिए भगवान से प्रार्थना करता हूं
आप सभी लोगों को मेरी तरफ से -
ऊं नमो नारायण
आज मुझसे बहुत से लोगों ने एक बड़ा ही अच्छा प्रश्न पूछा
प्रश्न- कौन सा दान सबसे बड़ा दान कहलाता है?
मेरी कोशिश यही रहेगी कि जहां तक मुझसे संभव होगा मैं आपको उत्तर देकर संतुष्ट करने का प्रयास करूंगा हो सकता है कि मुझसे कुछ त्रुटियां रह गई हूं उसके लिए मुझे खेद है
उत्तर- दो दान होते हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं और सबसे बड़े दान हैं।
संस्कृत सुभाषित के अनुसार
अन्नदानं परम् दानं विद्यादानं अत: परम् ।
अन्नेन क्षणिका तॄप्ति: यावज्जीवं च विद्यया
अर्थात - अन्नदान परम दान है पर विद्यादान उससे भी श्रेष्ठ है। क्यों ? क्योंकि - अन्न से क्षणिक तृप्त��� ही होती है पर विद्या से जब तक जीव (व्यक्ति ) ज़िंदा है तृप्ति होती रहेगी।
सो विद्यादान - सर्वश्रेष्ठ दान है। सबसे बड़ा !!
लेकिन सब लोग तो विद्या दान नहीं कर सकते हैं (गुरु केटेगरी - शिक्षक/शिक्षिका , वाचक , वैज्ञानिक, कोरा के लेखक/लेखिका गण और सोशल मीडिया पर ज्ञान बांटने वालों को छोड़कर ) तो, बाकी लोग कैसे दान करेंगे ?
सबको दान का पुण्य मिलने का अवसर मिलना चाहिए।
अतएव, महाभारत के वनपर्व के अध्याय 312 औ 313 में यक्ष युधिष्ठिर वार्ता में यक्ष पूछता है
किं स्थैर्यमृषिभिः प्रोक्तं किं च धैर्यमुदाहृतम् ।
स्नानं च किं परं प्रोक्तं दानं च किमिहोच्यते ।।
(श्लोक : 95)
अर्थात,
ऋषियों ने स्थिरता किसे कहा है? धैर्य क्या कहलाता है?
स्नान किसे कहा गया ��ै?
दान किसे कहते है?
युधिष्ठिर उत्तर देते हैं
स्वधर्मे स्थिरता स्थैर्यं धैर्यमिन्द्रियनिग्रहः ।
स्नानं मनोमलत्यागो दानं वै भूतरक्षणम् ।।
(श्लोक : 96)
अर्थात,
अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थिरता है, इन्द्रियनिग्रह धैर्य है, मन के विकारों का त्याग करना स्नान है एवं प्राणियों की रक्षा करना ही दान है।
अतः प्राणियों की रक्षा करना (मनुष्य और जानवर सभी) ही दान है, बाकी तो दान की कोटि में आते ही नहीं है। इसका तात्पर्य है, अवसर के अनुसार मदद करें जिससे जीवरक्षा हो।
कोई ठंड से मरा जा रहा है तो कंबल ही उसका जीवन रक्षक है, कोई कर्ज़ के मारे प्राणोत्सर्ग करता है (जैसे किसान , व्यापारी इत्यादि ) तो यथा सामर्थ्य अर्थदान से उसका जीवन बच जाएगा।
अंगदान , विद्यादान सब इसमें आ जाते हैं।
अवसर पर की गई मदद सबसे बड़ी मदद, औ रजरूरत के अनुसार दान सबसे बड़ा दान - जिससे प्राणरक्षा हो
मुझे आप सब से यह आशा है कि आप इस बात को समझेंगे और कहीं मुझसे कोई गलती हुई हो बताने में तो मुझे बताएं या कोई भी आपकी जिज्ञासा हो पूछने की तो वह भी आप पूछ सकते हैं
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः।
श्लोक प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः।तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥ श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण Roman transcription of the Shloka priyavākyapradānena sarve tuṣyanti mānavāḥ।tasmāt priyaṃ hi vaktavyaṃ vacane kā daridratā॥ श्लोक का शब्दार्थ प्रिय-वाक्य-प्रदानेन – प्रिय वाक्य देने से (मीठी बातें बोलने से)सर्वे – सभीतुष्यन्ति – सन्तुष्ट होते हैं, खुश होते हैं, प्रसन्न होते…
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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उद्यमेन हि सध्यन्ति कार्याणि
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥ काम परिश्रम से ही सिद्ध होते हैं, (केवल) मन में सोचने से नहीं। (क्योंकि) हिरणें सोए हुए शेर के मुंह में प्रवेश नहीं करती।
संस्कृत श्लोक उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥ श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण Roman transliteration of the Shloka udyamena hi sidhyanti kāryāṇi na manorathaiḥ।na hi suptasya siṃhasya praviśanti mukhe mṛgāḥ॥ शब्दार्थ उद्यमेन – उद्यम से, काम करने से, परिश्रम सेहि – हीसिध्यन्ति – सिद्ध होते हैं, पूरे होते हैं, कामयाब होते हैंकार्याणि – काम, (हमे…
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्
क्या महत्त्वपूर्ण है..... पैसा या आपका लोगों के प्रति बरताव? जानिए संस्कृत सुभाषितकार क्या कहते हैं....
संस्कृत श्लोक वृत्तं यत्नेन संरक्षेत् वित्तमेति च याति च।अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः॥ श्लोक का रोमन लिप्यंतरण Roman transliteration of the Shloka vṛttaṁ yatnena saṁrakṣet vittameti ca yāti caakṣīṇo vittataḥ kṣīṇo vṛttatastu hato hataḥ श्लोक का वीडिओ आप इस श्लोक को इस वीडिओ के माध्यम से बहुत आसानी से समझ सकते हैं – वृत्तं यत्नेन संरक्षेत् यदि आप लिखित स्वरूप में श्लोक को…
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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कार्यमद्यतनीयं यत्
कल करे सो आज कर, आज करे सो अब
सर्वप्रथम हम इस श्लोक को पढ़ते हैं – कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्।विपरीता गतिर्यस्य स कष्टं लभते धृवम्॥ श्लोक का शब्दार्थ अब हम इस श्लोक के प्रत्येक पद का हिन्दी अर्थ देखते हैं – कार्यम् – कामअद्यतनीयम् – आज कायत् – जोतत् – वहअद्य – आजएव – हीविधीयताम् – किया जाएविपरीता – उलटीगतिः – गति। काम करने की पद्धतियस्य – जिसकी (है)सः – वहकष्टम् – तकलीफलभते – पाता हैधृवम् – निश्चय ही।…
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madhukarshivshankar · 4 years ago
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विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद
विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद
विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्।अश्वश्चेत् धावने वीरो भारस्य वहने खरः॥ श्लोक का पदच्छेद और शब्दार्थ विचित्रे – विचित्र स्वरूप वालेखलु – सचमुचसंसारे – दुनिया मेंन – नहींअस्ति – हैकिञ्चित् – कोई भीनिरर्थकम् – व्यर्थम्। बेकारअश्वः – घोटकः। वाजी। हयः।चेत् – यदिधावने – दौड़ने मेंवीरः – विशेष कौशलयुक्त, बलवान्भारस्य – बोझ केवहने – ढोने मेंखरः – रासभः। गर्दभः। गधा श्लोक का…
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madhukarshivshankar · 4 years ago
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सम्पत्तौ च विपत्तौच महतामेकरूपता। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद
सम्पत्तौ च विपत्तौच महतामेकरूपता। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता। उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा॥ श्लोक का पदच्छेद और शब्दार्थ · सम्पत्तौ – अमीरी में · च – और · विपत्तौ – मुश्किली में · च – और · महताम् – महान लोगों की · एकरूपता – समान स्थिति होती है · उदये – उगने पर · सविता – सूर्यः। भानुः। रविः। सूरज · रक्तः – लाल (होता है) · रक्तः – लाल · च – और · अस्तमये –…
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madhukarshivshankar · 2 years ago
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यत्र देशेऽथवा स्थाने - श्लोक का अर्थ
यत्र देशेऽथवा स्थाने – श्लोक का अर्थ
पुरुष को किस स्थान अथवा गांव में (यत्र देशेऽथवा स्थाने) रहना नहीं चाहिए इस बात को इस श्लोक में बताया गया है। साथ ही ऐसे निषिद्ध स्थान पर रहनेवाले को पुरुषाधम (पुरुषों में अधम, नीच) कहा गया है। संस्कृत श्लोक यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥ श्लोक का रोमन (अंग्रेजी) लिप्यन्तरण yatra deshe-thavaa sthaane bhogaa bhuktaaH swaveeryataH.Tasmin…
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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अलक्ष्मीराविशत्येनं शयानमलसं नरम्। अनुवाद, शब्दार्थ , अन्वय
अलक्ष्मीराविशत्येनं शयानमलसं नरम्। अनुवाद, शब्दार्थ , अन्वय
संस्कृत श्लोक अलक्ष्मीराविशत्येनं शयानमलसं नरम्।निःसंशयं फलं लब्ध्वा दक्षो भूतिमुपाश्नुते॥ English Transliteration (IAST) of the Shloka alakṣmīrāviśatyenaṃ śayānamalasaṃ naram|niḥsaṃśayaṃ phalaṃ labdhvā dakṣo bhūtimupāśnute|| श्लोक का पदच्छेद अलक्ष्मीः आविशति एनं शयानम् अलसं नरम्। निःसंशयं फलं लब्ध्वा दक्षः भूतिम् उपाश्नुते॥ श्लोक का…
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः। श्लोक का अर्थ, अनुवाद और स्पष्टीकरण॥
यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः। श्लोक का अर्थ, अनुवाद और स्पष्टीकरण॥
क्या आप किंकर्तव्यमूढ हो गए हैं? यानी आप को समझ नहीं आ रहा है कि क्या करे और क्या नहीं करें? मनुष्य को कौन सा काम जरूर करना ही चाहिए? और कौन सा काम वर्जित (टालना, avoid) चाहिए? इन प्रश्नों के उत्तर अपनी ही आत्मा से पूछ कर मिल सकते हैं। इस संस्कृत सुभाषित को पढ़िए – संस्कृत श्लोक यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः। तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत्॥ English (Roman)…
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्
बहुत सारे लोग धर्म के पीछे पड़े रहते हैं। धर्म किसे कहते हैं? धर्म किसे कहते हैं? परन्तु ज्यादातर लोगों के लिए धर्म के तत्त्व को समझना बहुत कठिन हो जाता है, अथवा उनको धर्म समझता ही। परन्तु विदुरनीति में धर्म को केवल एक ही पंक्ति में समझाया गया है। जिस धर्म का सार है। बस इस एक बात को समझ लीजिए, इतना ही काफी है। विदुरनीति में महात्मा विदुर जी कहते हैं – संस्कृत श्लोक श्रूयतां धर्मसर्वस्वं…
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madhukarshivshankar · 3 years ago
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पुस्तके पठितः पाठः
पुस्तके पठितः पाठः जीवने नैव साधितः। किं भवेत् तेन पाठेन जीवने यो न सार्थकः॥ अगर पुस्तक में पढ़ा हुआ पाठ जीवन में इस्तेमाल नहीं किया। तो जो जीवन में सार्थक (उपयोगी) नहीं है, उस पाठ से क्या (लाभ) होगा?
संस्कृत श्लोक पुस्तके पठितः पाठः जीवने नैव साधितः।किं भवेत् तेन पाठेन जीवने यो न सार्थकः॥ श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण Roman transliteration of the Shloka pustake paṭhitaḥ pāṭhaḥ jīvane naiva sādhitaḥ।kiṃ bhavet tena pāṭhena jīvane yo na sārthakaḥ॥ श्लोक का शब्दार्थ पुस्तके – पुस्तक मेंपठितः – पढ़ा हुआपाठः – पाठ, सबकजीवने – जीवन मेंनैव – (न + एव)न – नहीं��व – बिल्कुलसाधितः – उपयोग किया, इस्तेमाल…
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madhukarshivshankar · 4 years ago
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SA style="font-size:10pt;line-height:115%;font-family:Mangal,serif">अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमौषधम्। अन्वय अर्थ हिन्दी अनुवाद
SA style=”font-size:10pt;line-height:115%;font-family:Mangal,serif”>अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमौषधम्। अन्वय अर्थ हिन्दी अनुवाद
अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमौषधम्। अन्वय अर्थ हिन्दी अनुवाद अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमौषधम्। अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः॥ श्लोक का पदच्छेद और हिन्दी अनुवाद · अमन्त्रम् – मन्त्रहीन, बिना किसी काम का, बेकार, · अ��्षरम् – अ, आ, ई, क��, ख् ग, इत्यादि अक्षर · न – नहीं · अस्ति है · नास्ति – नहीं है · मूलम् – जड़ · अनौषधम् – जो दवा न हो · अयोग्यः – बिना किसी काम का, बेकार, फालतू ·…
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