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1.2 तत्वमीमांसा का परिचय Introduction to the Metaphysics
इस शब्द संबंधी अर्थ भौतिक विश्व से परे है। इस भौतिक जगत् में हमारा भौतिक संसार से सीधा संबंध है और हम जीवन में इसकी उपस्थिति का अनुभव भी करते हैं। तत्त्वमीमांसा के मुद्दे वास्तविकता के के बौद्धिक विश्लेषण से से संबंधित हैं। वास्तव में देखा जाए तो इस ‘वास्तविकता’ को प्रदर्शित या सिद्ध नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे नकारा भी नहीं जा सकता है। इसलिए हमारे पास वास्तविकता के प्रति सकारात्मक और…
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1.1 दर्शनशास्त्र का परिचय Introduction to Philosophy
दर्शनशास्त्र के परिचय का वीडिओ दर्शनशास्त्र और विवेक Philosohy and wisdom दर्शनशास्त्र विवेक के प्रति आकर्षण विकसित करता है जो ज्ञान से भिन्न है। ज्ञान इंद्रियों और मन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है जबकि विवेक आत्मा प्राप्त किया जाता है। ज्ञान दोषार्ह, सशर्त, सीमित और परिवर्तनशील है जबकि विवेक अचूक, बिनशर्त, असीमित और अपरिवर्तनीय है। यद्यपि दर्शन प्रारंभ में ज्ञान से शुरू ह��ता है, परंतु इसकी…
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नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्
नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्।पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्॥ श्लोक का पदच्छेद नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोमि अहम्।पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्॥ श्लोक का शब्दार्थ नत्वा – नमन करके – having bowed सरस्वतीं देवीं – सरस्वती देवी को – to the Goddes Sarasvatī शुद्धां – शुद्ध, दोषरहित, pure, errorless गुण्यां – बहुगुणी, अच्छे गुणों वाली – virtuous, which…
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यदा – तदा
यदा – जब तदा – तब यदा ….. तदा ….. उदाहरण जब बारिष होती है तब फलस होती है। यदा वर्षा भवति तदा सस्यं भवति। जब रोगी औषध लेता है तब वह स्वस्थ होता है। यदा रोगी औषधं स्वीकरोति तदा सः स्वस्थः भवति। जब छात्र पढ़ता है तब वह उत्तीर्ण होता है। यदा छात्रः पठति तदा सः उत्तीर्णः भवति। जब सूर्य अस्त होता है तब रात होती है। जब शिक्षक आते हैं तब वे पढ़ा ते हैं। यदाः शिक्षकः आगच्छति तदा सः…
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मनस् शब्द रूप Manas Shabda Roop in Sanskrit
मनस् शब्द एक सकारान्त शब्द है। यह एक नपुंसकलिंग का शब्द है। सकारान्त किसे कहते हैं? What is Sakārānta जिस शब्द के अन्त में स् यह ध्वनि होती है वह सकारान्त शब्द होता है। अन्य सकारान्त शब्द अन्य भी सकारान्त शब्द हैं। उनके भी रूप मनस् शब्द के समान चलते हैं। जैसे कि – तेजस्, चेतस्, तपस्, रजस्, तमस्, वचस्, पयस्, वचस्, नभस्, अम्भस् इत्यादि। ये सभी नपुंसकलिंग के शब्द हैं। मनस् शब्द के सभी…
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राजन् शब्द रूप Rajan Shabda Roop in Sanskrit
राजन् शब्द एक नकारान्त शब्द है। यह एक पुँल्लिंग का शब्द है। नकारान्त किसे कहते हैं? जिस शब्द के अन्त में न् यह ध्वनि होती है वह नकारान्त शब्द होता है। अन्य नकारान्त शब्द नकारान्त शब्द अनेक प्रकार के होते हैं। विभिन्न प्रत्यय लगकर अलग-अलग तरह के नकारान्त शब्द बनते हैं। राजन् शब्द के सभी विभक्तियों में और तीनों वचनों में रूप राजन् शब्द की तालिका। Table of Rajan Shabda…
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8.4.58. अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः।
यह सूत्र परसवर्ण संधि का पहला सूत्र है। हालांकि परसवर्ण संधि को सीखने के लिए इन तीनों सूत्रों का अध्ययन होना आवश्यक है – 8.4.58. अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः। 8.4.59. वा पदान्तस्य। 8.4.60. तोर्लि। इस लेख में हम 8.4.58. अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः। इस सूत्र का अध्ययन कर रहे हैं। बाकी दोनों सूत्रों का भी अध्ययन हम आने वाले लेखों में करेंगे। 8.4.58. अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः – इस सूत्र का वीडिओ यदि आप…
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अकः सवर्णे दीर्घः । ६ । १ । १०१ ॥
अकः सवर्णे दीर्घः । ६ । १ । १०१ ॥ यह सूत्र दीर्घ सन्धि का विधान करने वाला सूत्र है। अनुवृत्ति अचि ….. इको यणचि। एकः पूर्वपरयोः …. एकः पूर्वपरयोः। अनुवृत्ति के साथ संपूर्ण सूत्र अकः पूर्वपरयोः एकः दीर्घः सवर्णे अचि। सूत्र का ��िन्दी शब्दार्थ अकः – अक् का, पूर्वपरयोः – पूर्व और पर दोनों के स्थान पर, एकः – एक, दीर्घः – दीर्घ (होता है), सवर्णे – सवर्ण, अचि – स्वर में। सूत्र का हिन्दी अर्थ अक्…
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1.3.9. तस्य लोपः
तस्य लोपः इस सूत्र को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें यह समझना पड़ेगा कि इत् किसे कहते हैं। पाणिनीय अष्टाध्यायी में उपदेशेऽजनुनासिक इत्। (१.३.२) इस सूत्र से लेकर न विभक्तौ तुस्माः। (१.३.८) इन सात सूत्रों में बताया है कि इत् इसे कहते हैं। और यदि बात लघुसिद्धान्तकौमुदी की करें तो लघुसिद्धान्त कौमुदी में हलन्त्यम् इस सूत्र ने बताया है कि इत् किसे कहते हैं। एक बार इत् को समझने के बाद आती है लोप करने की।…
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1.1.71. आदिरन्त्येन सहेता
यह सूत्र एक संज्ञासूत्र है जो प्रत्याहार-संज्ञा का विधान करता है। यानी इस सूत्र से हमे पता चलता है कि प्रत्याहार किस प्रकार से होता है। सूत्र का पदच्छेद आदिः अन्त्येन सह इता अनुवृत्तिसहित सूत्र आदिः अन्त्येन इता सह स्वस्य रूपस्य (बोधकः भवति) शब्दार्थ आदिः – प्रथम, पहला अन्त्येन – अन्तिम इता सह – इत के साथ स्वस्य – खुद के रूपस्य – रूप का बोधकः – बताने वाला भवति – होता है अर्थात् –…
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1.4.14. सुप्तिङन्तं पदम्
यह सूत्र हमें ‘पद’ संज्ञा के बारे में बताता है। बहुत बार हिन्दी में पद ��र शब्द इन दोनों को समानार्थक मानते हैं। परन्तु इन दोनों में भेद है। किसी भी सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं। परन्तु संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से देखा जाए तो पद एक भिन्न संज्ञा है। इस संज्ञा को सुप्तिङन्तं पदम् इस सूत्र से समझ सकते हैं। सूत्र का पदच्छेद सुप्-तिङ्-अन्तं पदम्। सूत्र का शब्दार्थ सुप् – विभक्ति तिङ् –…
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1.4.109. परः सन्निकर्षः संहिता
1.4.109. परः सन्निकर्षः संहिता
इस सूत्र में हमें बताया है कि संहिता किसे कहते हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात जिसे हमें ध्यान में रखना है कि संहिता को ही सन्धि कहते हैं। अर्थात् परः सन्निकर्षः संहिता यह सूत्र हमें बताता है कि सन्धि किसे कहते हैं। यानी इस सूत्र में सन्धि की परिभाषा बताई गई है। सूत्र का शब्दार्थ परः – बहुत ज्यादा सन्निकर्षः – नजदीक आना संहिता – संहिता संज्ञक होता है। संहिता अथवा सन्धि किसे कहते हैं? (वर्णों) के…
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1.1.7. हलोऽनन्तराः संयोगः
संयोग को ही हिन्दी व्याकरण में संयुक्ताक्षर कहते हैं। यानी इस सूत्र से हमे पता चलता है कि संयुक्ताक्षर किसे कहते हैं। मराठी भाषा में इस संयोग को जोडाक्षर कहते हैं। हलोऽनन्तराः संयोगः इस सूत्र में संयोग इस संज्ञा के बारे में बताया है। यानी इस सूत्र में बताया है कि संयोग किसे कहते हैं। सूत्र का पदच्छेद हलः अन्-अन्तराः संयोगः। सूत्र का अर्थ हलः – व्यंजन, अन्-अन्तराः – जिन के बीच में कुछ नहीं है,…
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1.3.3. हलन्त्यम्
हलन्त्यम् यह सूत्र एक संज्ञा सूत्र है। पाणिनीय अष्टाध्यायी में इस सूत्र का क्रमांक है – १.३.३। हलन्त्यम् यह सूत्र ‘इत् संज्ञा विधायक’ सूत्र है। हलन्त्यम् सूत्र से हम पता चलता है कि इत् किसे कहते हैं। संज्ञा शब्द का अर्थ होता है – नाम। यानी किसी चीज को यदि कोई नाम दिया जाए तो उस नाम को ही उस चीज की संज्ञा कहते हैं। हलन्त्यम् सूत्र से हमें पता चलता है कि माहेश्वर स��त्रों के आखरी व्यंजन को इत् कहते…
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वर्णों का उच्चारण काल अर्थात् किस वर्ण की कितनी मात्राएं होती हैं?
वर्णों का उच्चारण काल अर्थात् किस वर्ण की कितनी मात्राएं होती हैं?
हमारी संस्कृत वर्णमाला में स्वर और व्यंजन ऐसे दो स्पष्ट विभाग दिखते हैं। इन में से स्वरों के तीन प्रकार हैं – ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत। निम्न कारिका में तीनों प्रकार के स्वरों के और व्यंजनों के काल के बारे में जानकारी मिलती है। कारिका एकमात्रो भवेद्ध्रस्वो द्विमात्रो दीर्घ उच्यते। त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयः व्यञ्जनं त्वर्धमात्रिकम् ॥ कारिका का पदच्छेद एकमात्रः भवेत् ह्रस्वः द्विमात्रः दीर्घः…
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नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् – श्लोक का हिन्दी English अनुवाद
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् – श्लोक का हिन्दी English अनुवाद
यह श्लोक महाभारत, श्रीमद्भागवत् महापुराण और वायुपुराण के आरंभ में पढ़ा गया है। इस लेख में हम इस श्लोक के अर्थ हिन्दी तथा English भाषा में पढ़ेगे। साथ ही साथ श्लोक का पदविभाग और अन्वयार्थ भी पढ़ेगे। श्लोक नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। English transliteration of श्लोक nārāyaṇaṃ namaskṛtya naraṃ caiva narottamam।devīṃ sarasvatīṃ vyāsaṃ tato…
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यत्र देशेऽथवा स्थाने - श्लोक का अर्थ
यत्र देशेऽथवा स्थाने – श्लोक का अर्थ
पुरुष को किस स्थान अथवा गांव में (यत्र देशेऽथवा स्थाने) रहना नहीं चाहिए इस बात को इस श्लोक में बताया गया है। साथ ही ऐसे निषिद्ध स्थान पर रहनेवाले को पुरुषाधम (पुरुषों में अधम, नीच) कहा गया है। संस्कृत श्लोक यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥ श्लोक का रोमन (अंग्रेजी) लिप्यन्तरण yatra deshe-thavaa sthaane bhogaa bhuktaaH swaveeryataH.Tasmin…
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