#संस्कृत अनुवाद
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🌿 *कबीर बड़ा या कृष्ण* 🌿
*(Part - 112)*
*तीन गुण क्या हैं? प्रमाण सहित
तीन गुण*
*‘‘तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी हैं। ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं‘‘*
📜प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ सं. 24 से 26 विद्यवेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता ‘‘इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत कहा गया है।
दूसरा प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123:- भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति की: कहा कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर तुम्हारी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होती है। हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं। तुम ही नित्य हो, जगत् जननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो। भगवान शंकर ने कहा: यदि भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ ? अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हों। इस संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार में तुम्हारे गुण सदा सर्वदा हैं। इन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम, ब्रह्मा-विष्णु तथा शंकर नियमानुसार कार्य में तत्त्पर रहते हैं।
उपरोक्त यह विवरण केवल हिन्दी में अनुवादित श्री देवीमहापुराण से है, जिस��ें कुछ तथ्यों को छुपाया गया है। इसलिए यही प्रमाण देखें श्री मद्देवीभागवत महापुराण सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुम्बई, इसमें संस्कृत सहित हिन्दी अनुवाद किया है। तीसरा स्कंद अध्याय 4 पृष्ठ 10, श्लोक 42ः-
ब्रह्मा - अहम् ईश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकृतिः पुराणा। (42) हिन्दी अनुवाद:- हे मात! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, नित्य नही हैं अर्थात् हम अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम ही अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो।
पृष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8:- यदि दयार्द्रमना न सदांऽबिके कथमहं विहितः च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसंभवः सुविहितः किमु सत्वगुणों हरिः।(8)
अनुवाद:- भगवान शंकर बोले:-हे मात! यदि हमारे ऊपर आप दयायुक्त हो तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण किस लिए बनाया तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया? अर्थात् जीवों के जन्म-मृत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों लगाया? श्लोक 12:- रमयसे स्वपतिं पुरुषं सदा तव गतिं न हि विह विद्म शिवे (12)
हिन्दी - अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
निष्कर्ष:- उपरोक्त प्रमाणों से प्रमाणित हुआ की रजगुण - ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव है ये तीनों नाशवान है। दुर्गा का पति ब्रह्म (काल) है यह उसके साथ भोग विलास करता है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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🙏बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय 🙏
आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा 👇
#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण
#रिंकी:- मोनिका! नमस्ते 🙏
#मोनिका:-रिंकी ! नमस्ते 🙏
#रिंकी :- मोनिका! कैसी हो।
#मोनिका:- रिंकी! अच्छी हूं !! मेरी प्यारी बहन। और तूम कैसी हूं।
#रिंकी:- मोनिका ! सत कबीर की दया है । अच्छी हूं।
#मोनिका:- रिंकी! सूना हूं , आप कबीर साहेब को भगवान मानते हों।
#रिंकी:- मोनिका! हां, गीता में प्रमाण है कबीर साहेब भगवान है।
#मोनिका:- रिंकी! कबीर भगवान नहीं है , वह एक संत और भक्त था । जो खुद भगवान की भक्ति करता था। भगवान तो कृष्ण जी है। कृष्ण नारायण के अवतार है मतलब स्वयं नारायण जी है जिसने सृष्टि की सृजन किया।
#रिंकी:- बहन मोनिका! जिसने सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन की वह कबीर साहेब जी है।
#मोनिका:- बहन रिंकी! लगता है आपको किसी ने बहकाया है , जो बिना जाने कुछ भी कह रहीं हों । गीता में खुद कृष्ण जी ने कहा है मैं ही भगवान हूं।
#रिंकी:- मोनिका! गीता का ज्ञान कृष्ण जी ने कहा ही नहीं है।
#मोनिका:- रिंकी ! गीता का ज्ञान भगवान नारायण श्री कृष्ण जी ने ही कहा है।
#रिंकी:- मोनिका ! गीता में अध्याय 11:31 में अर्जुन कहते हैं , आप कौन हो ? आपको मैं तात्विक रूप से जानना चाहता हुं । तब गीता ज्ञान दाता स्��यं अध्याय 11 :32 में कहा है - मै काल हूं।
गीता का ज्ञान काल ने कृष्ण के शरीर में प्रेतवत् प्रवेश कर बोली है।
#मोनिका:- रिंकी! पागल हो क्या तुम, जो कुछ भी बके जा रही हो । ऐसा कुछ भी नहीं है गीता का ज्ञान भगवान नारायण श्री कृष्ण जी ने ही कही है।
#रिंकी:- बहन मोनिका! सच में गीता का ज्ञान काल ने कृष्ण के शरीर में प्रेतवत् प्रवेश कर बोली है। आप एक बार गीता अध्याय 14:4-5 में कहीं है प्रकृति (दुर्गा) सभी प्राणियों की माता है और मैं ब्रह्म ( काल ) बीज को स्थापित करने वाला पिता हूँ। और प्रकृति से उत्पन्न ये तीनों गुण ( ब्रह्मा विष्णु महेश ) हैं।
इस से सिद्ध होती है ब्रह्मा विष्णु महेश की माता दुर्गा और पिता काल है । कृष्ण तो विष्णु जी के दस अवतारों में एक है.
#मोनिका:- रिंकी ! सच में गीता 14:4-5 में ऐसा ही लिखी है । पर कृष्ण जी ही भगवान है इसकी भक्ति करनी चाहिए है ।
#रिंकी:- मोनिका! बहन बुरा नहीं मानना एक बात बताऊं क्या?
#मोनिका:- रिंकी! बोलों बहन।
#रिंकी:- मोनिका! गीता अध्याय 7:22 में कहीं है जिनकी बुद्धि मेरी त्रिगुण माया ने हर ली है, वे तीनों देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) तक की पूजा करते हैं, वे राक्षस स्वभाव से युक्त, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्मी, मूर्ख इन तीनों से ऊपर वाले मुझ ब्रह्म को भी नहीं भजते।
इससे सिद्ध होती है ब्रह्मा विष्णु महेश की पूजा नहीं करनी चाहिए।
#मोनिका:- रिंकी! सच में गीता में यही बात लिखी है। रिंकी बहेंन ! मैं प्रतिदिन गीता जी की एक अध्याय का स्वाध्याय करती हूं पर आज तक यह बात समझ में नहीं आती जो आप जी बता रहे हैं। यकीं मानों आपको गीता का अच्छी ज्ञान है । पर एक बात समझ में नहीं आती है हमारे हिन्दू धर्म में ब्रह्मा विष्णु महेश और देवी देवताओं की पूजा अनादि काल से हो रही है इसका क्या मतलब है। अगर गीता में ब्रह्मा विष्णु महेश और देवी देवताओं की पूजा मना की है तो यह पूजा पाठ भला क्यों?
#रिंकी:- मोनिका! हमारे हिन्दू धर्म में जो धर्म गुरूवें है उन्हों खुद गीता जी का ज्ञान नहीं है गीता जी में भगवान ने क्या क्या उपदेश दी है । क्यों कि गीता जी खुद कहतीं हैं द्रव्यमय यज्ञ से ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है । वह ज्ञान को तत्वदर्शी संत के पास जाकर जान ।
हमारे हिन्दू धर्म के सभी धर्म गुरूओं को वह तत्वदर्शी संत नहीं मिला है इसलिए यह सब पाखंड हों रहीं हैं और हमें गीता जी के विरुद्ध साधना पर आरूढ़ कर दी है ।
#मोनिका:- रिंकी! वह तत्वदर्शी संत कौन है और उसकी क्या पहचान है? उसकी ज्ञान क्या है ?
#रिंकी:- मोनिका! आपने महत्वपूर्ण प्रश्न किया है इसकी उत्तर भी गीता जी में है अध्याय 15: 1 कहीं गयी है पीपल रूपी संसार वृक्ष की जो सभी भागों को जानता हो वह तत्वदर्शी संत हैं ।
और गीता अध्याय 15:4 में खुद गीता बोलने वाला ब्रह्म काल भगवान कह रहा है मैं भी उस आदिसत्यनारायण की शरण में हूं ।
#मोनिका:- रिंकी ! बहन! खुद गीता ज्ञान दाता स्वयं गीता अध्याय 18 :62और 66 में कहा रही है माम् एकम् शरण व्रज अर्थात मेरी शरण में आ जा । यह झूठ है क्या?
#रिंकी:- मोनिका ! संस्कृत श्लोक सही है पर हिन्दी अनुवाद सही नहीं है । व्रज का अर्थ जाना होती है पर अधिक अनुवाद कर्ताओं ने आना किया है ।
सही अर्थ है उस परमात्मा की शरण में जा । क्यों कि गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 64 तथा अध्याय 15 के श्लोक 4 में स्वयं गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि हे अर्जुन! मेरा उपास्य देव (इष्ट) भी वही परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) ही है तथा मैं भी उसी की शरण हूँ तथा वही सनातन स्थान (सतलोक) ही मेरा परम धाम है।
और गीता अध्याय 8:1 में अर्जुन ने भगवान से पूछा - वह तत ब्रह्म कौन है? तो उत्तर 8: 3 में कहा है - परम अक्षर ब्रह्म है और 8: 9 में परमात्मा कविं नाम भी बताया है।
यह वही कविं है जो सन् 1398 काशी मे संत कबीर की लीला की है ।
क्यों कि स्वयं कबीर साहेब जी ने कहा है
कवि: नाम जो वेदों ने गाया।
कबीरन् जो कूरान ने समाझाया।
वहीं नाम सबन में सारा ।
आदि नामा वहीं कबीर हमारा ।
#मोनिका:- रिंकी! चलो माना वेदों और गीता और बाईबल और पुराणों में कबीर साहेब का नाम है ।
पर मेरा मन विश्वास नहीं कर पा रही है वास्तव में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही हैं ।
#रिंकी:- मोनिका! बहन। इसके लिए आपको सबसे पहले कबीर साहेब जी द्वारा रचित संपूर्ण सृष्टि रचना का ज्ञान होना अनिवार्य है जो सम्पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान की कूंजी है ।
#मोनिका:- रिंकी! सच में संपूर्ण सृष्टि रचना
https://www.youtube.com/live/vdsHRKp5gPA?si=ItM74OfDEnPDu30i
को जानकर । अब पक्का विश्वास हो गई है कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा है । सारे सृष्टि के जनक है ।
धन्यवाद रिंकी बहेन । जो आपने मुझे परमात्मा के बारे में जानकारी दी।
#रिंकी:- मोनिका! धन्यवाद तो पूर्ण संत रामपाल जी महाराज की किजिए जिसने हम ज���से कितनों को सत्य ज्ञान से अवगत कराया जी ।
मैं भी पहले आप जैसे ही कृष्ण जी शिव जी दुर्गा जी की पूजा करती थी । पर एक दिन फेसबुक के जरिए से ज्ञान गंगा पुस्तक निःशुल्क मांगवाई ,और पढ़ी , तो दूध का दूध और पानी का पानी हो गई, और तो और यूट्यूब पर Santrampaljimharaj के सत्संग विडियो को भी देखी । मुझे भी पक्का विश्वास हो गई कबीर साहेब जी पूर्ण परमात्मा है। मैंने संत जी से 2/11/2023 को नाम दिक्षा ली और अपने मानव जीवन सफल बनाई और शास्त्रानुसार सत् भक्ति कर रही हूं ।
#मोनिका:- रिंकी ! बहन । आप से बात कर कर बहुत अच्छी लगी और मुझे सत्य का भी ज्ञान हुई ।
पर एक बात और है कृपया शंका का सामाधान चाहती हूं सुना संत रामपाल जी महाराज तो हिन्दू देवी देवताओं की पूजा छोड़वाते है, इसमें कितनी सच्चाई है।
#रिंकी:- मोनिका! संत रामपाल जी महाराज किसी भी देवी देवताओं की पूजा छोड़वाते नहीं है बल्कि पूजा और साधना की वास्तविक शास्त्रानुसार सत् भक्ति ��ताते हैं और जब आप प्रथम नाम दिक्षा लेने जाएंगे तो हमारे प्रधान देवी-देवताओं की मंत्र संत रामपाल जी महाराज देते हैं जिससे हमें सुख शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
#मोनिका:- रिंकी! सच में सुनी कुछ थी और आपसे बातें कर संत रामपाल जी महाराज की वास्तविकता मालूम हुई।
#रिंकी:- मोनिका! अब मालूम हुआ कबीर बड़ा भगवान कृष्ण से।
#मोनिका:- रिंकी बहेन ! सच में कब्बीर साहेब बड़ा है भगवान कृष्ण से।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart8 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart9
तीन गुण क्या हैं? प्रमाण सहित
तीन गुण
‘‘तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी हैं। ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं‘‘
प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ सं. 24 से 26 विद्यवेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता ‘‘इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत कहा गया है।
दूसरा प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123:- भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति की: कहा कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर तुम्हारी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होती है। हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं। तुम ही नित्य हो, जगत् जननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो। भगवान शंकर ने कहा: यदि भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ ? अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हों। इस संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार में तुम्हारे गुण सदा सर्वदा हैं। इन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम, ब्रह्मा-विष्णु तथा शंकर नियमानुसार कार्य में तत्त्पर रहते हैं।
उपरोक्त यह विवरण केवल हिन्दी में अनुवादित श्री देवीमहापुराण से है, जिसमें कुछ तथ्यों को छुपाया गया है। इसलिए यही प्रमाण देखें श्री मद्देवीभागवत महापुराण सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुम्बई, इसमें संस्कृत सहित हिन्दी अनुवाद किया है। तीसरा स्कंद अध्याय 4 पृष्ठ 10, श्लोक 42ः-
ब्रह्मा - अहम् ईश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकृतिः पुराणा। (42) हिन्दी अनुवाद:- हे मात! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, नित्य नही हैं अर्थात् हम अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम ही अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो।
पृष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8:- यदि दयार्द्रमना न सदांऽबिके कथमहं विहितः च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसंभवः सुविहितः किमु सत्वगुणों हरिः।(8)
अनुवाद:- भगवान शंकर बोले:-हे मात! यदि हमारे ऊपर आप दयायुक्त हो तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण किस लिए बनाया तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया? अर्थात् जीवों के जन्म-मृत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों लगाया? श्लोक 12:- रमयसे स्वपतिं पुरुषं सदा तव गतिं न हि विह विद्म शिवे (12)
हिन्दी - अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
निष्कर्ष:- उपरोक्त प्रमाणों से प्रमाणित हुआ की रजगुण - ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव है ये तीनों नाशवान है। दुर्गा का पति ब्रह्म (काल) है यह उसके साथ भोग विलास करता है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart8 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart9
तीन गुण क्या हैं? प्रमाण सहित
तीन गुण
‘‘तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी हैं। ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं‘‘
प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ सं. 24 से 26 विद्यवेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता ‘‘इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत कहा गया है।
दूसरा प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123:- भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति की: कहा कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर तुम्हारी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होती है। हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं। तुम ही नित्य हो, जगत् जननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो। भगवान शंकर ने कहा: यदि भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ ? अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हों। इस संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार में तुम्हारे गुण सदा सर्वदा हैं। इन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम, ब्रह्मा-विष्णु तथा शंकर नियमानुसार कार्य में तत्त्पर रहते हैं।
उपरोक्त यह विवरण केवल हिन्दी में अनुवादित श्री देवीमहापुराण से है, जिसमें कुछ तथ्यों को छुपाया गया है। इसलिए यही प्रमाण देखें श्री मद्देवीभागवत महापुराण सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुम्बई, इसमें संस्कृत सहित हिन्दी अनुवाद किया है। तीसरा स्कंद अध्याय 4 पृष्ठ 10, श्लोक 42ः-
ब्रह्मा - अहम् ईश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकृतिः पुराणा। (42) हिन्दी अनुवाद:- हे मात! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, नित्य नही हैं अर्थात् हम अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम ही अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो।
पृष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8:- यदि दयार्द्रमना न सदांऽबिके कथमहं विहितः च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसंभवः सुविहितः किमु सत्वगुणों हरिः।(8)
अनुवाद:- भगवान शंकर बोले:-हे मात! यदि हमारे ऊपर आप दयायुक्त हो तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण किस लिए बनाया तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया? अर्थात् जीवों के जन्म-मृत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों लगाया? श्लोक 12:- रमयसे स्वपतिं पुरुषं सदा तव गतिं न हि विह विद्म शिवे (12)
हिन्दी - अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
निष्कर्ष:- उपरोक्त प्रमाणों से प्रमाणित हुआ की रजगुण - ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव है ये तीनों नाशवान है। दुर्गा का पति ब्रह्म (काल) है यह उसके साथ भोग विलास करता है।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart74 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart75
"पवित्र वेदों में कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर का प्रमाण"
(पवित्र वेदों में प्रवेश से पहले) part -E
* विवेचन : ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18 पर विवेचन करते हैं। इसके अनुवाद में भी बहुत-सी गलतियाँ है। हम संस्कृत भी समझ सकते हैं। विवेचन करता हूँ तथा यथार्थ अनुवाद व भावार्थ स्पष्ट करता हूँ। मन्त्र 17 में कहा कि ऋषि या सन्त रूप में प्रकट होकर परमात्मा अमृतवाणी अपने मुख कमल से बोलता है और उस ज्ञान को समझकर अनेकों अनुयाईयों का समूह बन जाता है। (य) जो वाणी परमात्मा तत्वज्ञान की सुनाता है। वे (ऋषिकृत्) ऋषि रूप में प्रकट परमात्मा कृत (सहंस्रणीथः) हजारों वाणियाँ अर्थात् कबीर वाणियाँ (ऋषिमना) ऋषि स्वभाव वाले भक्तों के लिए (स्वर्षाः) आनन्ददायक होती हैं। (कविनाम पदवीः) कवित्व से दोहों, चौपाईयों में वाणी बोलने के कारण वह परमात्मा कवियों में से एक प्रसिद्ध कवि की पदवी भी प्राप्त करता है। वह (सोम) अमर परमात्मा (सिषासन) सर्व की पालन की इच्छा करता हुआ प्रथम स्थिति में (महिषः) बड़ी पृथ्वी अर्थात् ऊपर के लोकों में (तृतीयम् धाम) तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक के तीसरे पृष्ठ पर (अनुराजति) तेजोमय शरीर युक्त (स्तुप) गुम्बज में (विराजम्) विराजमान है, वहाँ बैठा है। यही प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3 में है कि परमात्मा सर्व लोकों के ऊपर के लोक में विराजमान है, (तिष्ठन्ति) बैठा है। * विवेचन ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 19 का भी आर्यसमाज के
विद्वानों ने अनुवाद किया है। इसमें भी बहुत सारी गलतियाँ हैं। पुस्तक विस्तार के कारण केवल अपने मतलब की जानकारी प्राप्त करते हैं।
इस मन्त्र में चौथे धाम का वर्णन है। आप जी सृष्टि रचना में पढ़ेंगे, उससे पूर्ण जानकारी होगी। पढ़ें इसी पुस्तक के पृष्ठ 359 पर।
परमात्मा ने ऊपर के चार लोक अजर-अमर रचे हैं। 1. अनामी लोक जो सबसे ऊपर है 2. अगम लोक 3. अलख लोक 4. सत्य लोक। हम पृथ्वी लोक पर हैं, यहाँ से ऊपर के लोकों की गिनती करेंगे तो 1.
सत्यलोक 2. अलख लोक 3. अगम लोक तथा चौथा अनामी लोक उस चौथे धाम में बैठकर परमात्मा ने सर्व ब्रह्माण्डों व लोकों की रचना की। शेष रचना सत्यलोक में बैठकर की थी। आर्यसमाज के अनुवादकों ने तुरिया परमात्मा अर्थात् चौथे परमात्मा का वर्णन किया है। यह चौथा धाम है। उसमें मूल पाठ मन्त्र 19 का भावार्थ है कि तत्वदर्शी सन्त चौथे धाम तथा चौथे परमात्मा का (विवक्ति) भिन्न-भिन्न वर्णन करता है। पाठकजन कृपया पढ़ें सृष्टि रचना इसी पुस्तक के पृष्ठ 359 पर जिससे आप जी को ज्ञान होगा कि लेखक (संत रामपाल दास) ही वह तत्वदर्शी संत है जो तत्वज्ञान से परिचित है। * विवेचन : ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20 का यथार्थ जानते हैं :-
इस मन्त्र का अनुवाद महर्षि दयानन्द के चेलों द्वारा किया गया है। इनका दृष्टिकोण यह रहा है कि परमात्मा निराकार है क्योंकि महर्षि दयानन्द जी ने यह बात दृढ़ की है कि परमात्मा निराकार है। इसलिए अनुवादक ने सीधे
मन्त्र का अनुवाद घुमा-फिराकर किया है।
जैसे मंत्र 20 के मूल पाठ में लिखा है :-
मर्य न शुभ्रः तन्वा मृजानः अत्यः न सृत्वा सनये धनानाम्। वृर्षेव यूथा परि कोशम अर्षन् कनिक्रदत् चम्वोः आविवेश ।।
अनुवाद :- (मर्यः) मनुष्य (न) जैसे सुन्दर वस्त्र धारण करता है, ऐसे परमात्मा (शुभ्रः तन्व) सुन्दर शरीर (मृजानः) धारण करके (अत्यः) अत्यन्त गति से (सृत्वा) चलता हुआ (धनानाम्) भक्ति धन के धनियों अर्थात् पुण्यात्माओं को (सनये) प्राप्ति के लिए आता है (यूथा वृषेव) जैसे एक समुदाय को उसका सेनापति प्राप्त होता है। ऐसे वह परमात्मा संत व ऋषि रूप में प्रकट होता है तो उसके बहुत सँख्या में अनुयाई बन जाते हैं और परमात्मा उनका गुरू रूप में मुखिया होता है। वह परमात्मा (परि कोशम्) प्रथम ब्रह्माण्ड में (अर्षन्) प्राप्त होकर अर्थात् आकर (कनिक्रदत्) ऊँचे स्वर में सत्यज्ञान उच्चारण करता हुआ (चम्वौ) पृथ्वी खण्ड में (अविवेश) प्रविष्ट होता है।
भावार्थ :- जैसे पूर्व में वेद मन्त्रों में कहा है कि परमात्मा ऊपर के लोक में रहता है, वहाँ से गति करके पृथ्वी पर आता है, अपने रूप को अर्थात् शरीर के तेज को सरल करके आता है। इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20 में उसी की पुष्टि की है। कहा है कि परमात्मा ऐसे अन्य शरीर धारण करके पृथ्वी पर आता है। जैसे मनुष्य वस्त्र धारण करता है और (धनानाम्) दृढ़ भक्तों (अच्छी पुण्यात्माओं) को प्राप्त होता है, उनको वाणी उच्चारण करके तत्वज्ञान सुनाता है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मन्त्र 2 का अनुवाद महर्षि दयानन्द के चेलों ने किया है जो बहुत ठीक किया है।
इसका भावार्थ है कि पूर्वोक्त परमात्मा अर्थात् जिस परमात्मा के विषय में पहले वाले मन्त्रों में ऊपर कहा गया है, वह (सृजानः) अपना शरीर धारण करके (ऋतस्य पथ्यां) सत्यभक्ति का मार्ग अर्थात् यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान अपनी अमृतमयी वाक् अर्थात् वाणी द्वारा मुक्ति मार्ग की प्रेरणा करता है। वह मन्त्र ऐसा है जैसे (अरितेव नावम्) नाविक नौका में बैठाकर पार कर देता है, ऐसे ही परमात्मा सत्यभक्ति मार्ग रूपी नौका के द्वारा साधक को संसार रूपी दरिया के पार करता है। वह (देवानाम् देवः) सब देवों का देव अर्थात् सब प्रभुओं का प्रभु परमेश्वर (बर्हिषि प्रवाचे) वाणी रूपी ज्ञान यज्ञ के लिए (गुह्यानि) गुप्त (नामा आविष्कृणोति) नामों का अविष्कार करता है अर्थात् जैसे गीता अध्याय 17 ��्लोक 23 में "ॐ तत् सत्" में तत् तथा सत् ये गुप्त मन्त्र हैं जो उस��� परमेश्वर ने मुझे (संत रामपाल दास) को बताऐ हैं। उनसे ही पूर्ण मोक्ष सम्भव है।
सूक्ष्म वेद में परमेश्वर ने कहा है कि :-
"सोहं" शब्द हम जग में लाए, सारशब्द हम गुप्त छिपाए।
भावार्थ :- परमेश्वर ने स्वयं "सोहं" शब्द भक्ति के लिए बताया है। यह सोहं मन्त्र किसी भी प्राचीन ग्रन्थ (वेद, गीता, कुर्भान, पुराण तथा बाईबल) में नहीं है। फिर सूक्ष्म वेद में कहा है कि :-
सोहं ऊपर और है, सत्य सुकृत एक नाम। सब हंसो का जहाँ बास है, बस्ती है बिन ठाम ।।
भावार्थ :- "सोहं" नाम तो परमात्मा ने प्रकट कर दिया, अविष्कार कर दिया पर���्तु सार शब्द को गुप्त रखा था। अब मुझे (लेखक संत रामपाल को) बताया है जो साधकों को दीक्षा के समय बताया जाता है। इसका गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में कहे "ऊँ तत् सत्" से सम्बन्ध है।
विवचन : ऋग्वद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1 का अनुवाद भा आयसमाज के विद्वानों द्वारा किया गया है। पुस्तक विस्तार को ध्यान में रखते हुए उन्हीं के अनुवाद से अपना मत सिद्ध करते हैं। जैसे पूर्व में लिखे वेदमन्त्र में बताया गया है कि परमात्मा अपने मुख कमल से वाणी उच्चारण करके तत्वज्ञान बोलता है, लोकोक्तियों के माध्यम से, कवित्व से दोहों, शब्दों, साखियों, चौपाईयों के द्वारा वाणी बोलने से प्रसिद्ध कवियों में से भी एक कवि की उपाधि प्राप्त करता है। उसका नाम कविर्देव अर्थात कबीर साहेब है। इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1 में भी यही स्पष्ट है कि जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, वह (कवियन् व्रजम् न) कवियों की तरह आचरण करता हुआ पृथ्वी पर विचरण करता है।
विवेचन :- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 20 मन्त्र 1 का अनुवाद भी आर्यसमाज के विद्वानों ने किया है। इसका अनुवाद ठीक कम, गलत अधिक है। इसमें मूल पाठ में लिखा है :-
'प्र कविर्देव वीतये अव्यः वारेभिः अर्षति साहान् बिश्वाः अभि स्पृस्धः सरलार्थ :- (प्र) वेद ज्ञान दाता से जो दूसरा (कविर्देव) कविर्देव कबीर परमेश्वर है, वह विद्वानों अर्थात् जिज्ञासुओं को, (वीतये) ज्ञान धन की तृप्ति के लिए (वारेभिः) श्रेष्ठ आत्माओं को (अर्षति) ज्ञान देता है। वह (अव्यः) अविनाशी है, रक्षक है, (साहान्) सहनशील (विश्वाः) तत्वज्ञान हीन सर्व दुष्टों को (स्पृधः) अध्यात्म ज्ञान की कृपा स्पर्धा अर्थात् ज्ञान गोष्ठी रूपी वाक् युद्ध में (अभि) पूर्ण रूप से तिरस्कृत करता है, उनको फिट्टे मुँह कर देता है। विशेष : (क) इस मन्त्र के अनुवाद में आप फोटोकापी में देखेंगे तो पता चलेगा कि कई शब्दों के अर्थ आर्य विद्वानों ने छोड़ रखे हैं जैसे = "प्र" "वारेभिः" जिस कारण से वेदों का यथार्थ भाव सामने नहीं आ सका।
(ख) मेरे अनुवाद से स्पष्ट है कि वह परमात्मा अच्छी ��त्माओं (दृढ़ भक्तों) को ज्ञान देता है, उस परमात्मा का नाम भी लिखा है: "कविर्देव"। हम कबीर परमेश्वर कहते हैं।
विवेचन : ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3 की फोटोकापी में आप देखें, इसका अनुवाद आर्यसमाज के विद्वानों ने किया है। उनके अनुवाद में भी स्पष्ट है कि वह परमात्मा (भूवनोपरि) सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के ऊर्ध्व अर्थात् ऊपर (तिष्ठति) विराजमान है, ऊपर बैठा है:-
इसका यथार्थ अनुवाद इस प्रकार है :-
(अयं) यह (सोमः देव) अमर परमेश्वर (सूर्यः) सूर्य के (न) समान (विश्वानि) सर्व को (पुनानः) पवित्र करता हुआ (भूवनोपरि) सर्व ब्रह्माण्डों के ऊर्ध्व अर्थात् ऊपर (तिष्ठति) बैठा है।
भावार्थ :- जैसे सूर्य ऊपर है और अपना प्रकाश तथा उष्णता से सर्व को लाभ दे रहा है। इसी प्रकार यह अमर परमेश्वर जिसका ऊपर के मन्त्रों में वर्णन किया है। सर्व ब्रह्माण्डों के ऊपर बैठकर अपनी निराकार शक्ति से सर्व प्राणियों को लाभ दे रहा है तथा सर्व ब्रह्माण्डों का संचालन कर रहा है।
तर्क :- महर्षि दयानन्द का अर्थात् आर्यसमाजियों का मत है कि परमात्मा किसी एक स्थान पर किसी लोक विशेष में नहीं रहता।
प्रमाण :- सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास (Chapter) नं. 7 पृष्ठ 148 पर (आर्य साहित्य प्रचार ट्रस्ट 427 गली मन्दिर वाली नया बांस दिल्ली-78वां संस्करण) किसी ने प्रश्न किया ईश्वर व्यापक है वा किसी देश विशेष में रहता है? उत्तर (महर्षि दयानन्द जी का) व्यापक है क्योंकि जो एक देश में रहता तो सर्व अन्तर्यामी, सर्वज्ञ, सर्वनियन्ता, सब का सृष्टा, सब का धर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता। अप्राप्त देश में कर्ता की क्रिया का होना असम्भव है। (सत्यार्थ प्रकाश से लेख समाप्त)
महर्षि दयानन्द जी नहीं मानते थे कि परमात्मा किसी देश अर्थात् स्थान विशेष पर रहता है। महर्षि दयानन्द जी वेद ज्ञान को सत्य ज्ञान मानते थे। आप जी ने अनेकों वेदमन्त्रों में अपनी आँखों पढ़ा कि परमेश्वर ऊपर एक स्थान पर रहता है। वहाँ से गति करके यहाँ भी प्रकट होता है। महर्षि दयानन्द तथा आर्यसमाजी परमात्मा को निराकार मानते हैं।
प्रमाण :- सत्यार्थ प्रकाश के समुल्लास नं. 9 पृष्ठ 176, समुल्लास 7 पृष्ठ 149 समुल्लास 11 पृष्ठ 251 पर कहा है कि परमात्मा निराकार है।
प्रिय पाठकों ने अनेकों वेदमंत्रों में पढ़ा कि परमात्मा साकार है, वह मनुष्य जैसा है। ऊपर के लोक में रहता है, वहाँ से गति करके चलकर आता है, पृथ्वी पर प्रकट होता है। अच्छी आत्माओं को जो दृढ़ भक्त होते हैं, उनको मिलता है। उनको तत्वज्ञान अपने मुख कमल से बोलकर सुनाता है, कवियों की तरह आचरण करता है। पृथ्वी पर विचरण करके परमात्मा अपना अध्यात्म ज्ञान ऊँचे स्वर में उच्चारण करके सुनाता है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में भी यही प्रमाण है।
प्रिय पाठको! आप स्वंय निर्णय करें किसको कितना अध्यात्म ज्ञान था। विशेष आश्चर्य यह है कि वेद मन्त्रों का अनुवाद भी महर्षि दयानन्द जी तथा उनके चेलों आर्यसमाजियों ने किया हुआ है। जिसमें उनके मत का विरोध है। > निवेदन वेद मन्त्रों की फोटोकापियाँ लगाने का उद्देश्य यह है कि यदि मैं (लेखक) अनुवाद करके पुस्तक में लगाता तो अन्य व्यक्ति यह कह देते कि संत रामपाल को संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है। इसलिए इनके अनुवाद पर विश्वास नहीं किया जा सकता। अब यह शंका उत्पन्न नहीं हो सकती। अब तो यह दृढ़ता आएगी ��ि संत रामपाल दास ने जो वेद मन्त्रों का अनुवाद किया है, वह यथार्थ है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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Understanding Ashtanga Yoga: A Step-by-Step Guide
Introduction to Ashtanga Yoga
अष्टांग, जिसे कभी-कभी अष्टांग योग भी कहा जाता है, आज भारत के मैसूर में श्री के. पट्टाभि जोइस/K. Pattabhi Jois नामक व्यक्ति द्वारा सिखाया जाता है। वे लगभग 25 साल पहले अष्टांग योग को पश्चिम में लेकर आए और आज भी 91 साल की उम्र में सिखाते हैं। अष्टांग योग की शुरुआत प्राचीन पांडुलिपि योग कोरंटा की पुनः खोज से हुई। इसमें प्राचीन ऋषि वामन ऋषि द्वारा अभ्यास और निर्मित हठ योग की एक अनूठी प्रणाली का वर्णन किया गया है। माना जाता है कि यह पतंजलि द्वारा अभ्यास किया जाने वाला मूल आसन है। अष्टांग योग/Ashtanga Yoga, योग का एक व्यवस्थित रूप है जिसने वैश्विक प्रसिद्धि प्राप्त की है, इसकी संरचित प्रथा के. पट्टाभि जोइस की देन है, जिन्होंने 20वीं शताब्दी के दौरान इसे विकसित और लोकप्रिय बनाया। संस्कृत शब्द "अष्टांग" से उत्पन्न, जिसका अर्थ है "आठ अंग वाला", अष्टांग योग योग के प्रति समग्र दृष्टिकोण को समाहित करता है, जो शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न घटकों को एकीकृत करता है। इस अभ्यास का केंद्र उज्जयी श्वास की अवधारणा है, जो आंतरिक गर्मी उत्पन्न करने और ऑक्सीजन की खपत को अनुकूलित करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक प्रकार का योगिक श्वास नियंत्रण है। अभ्यासकर्ता एक गहरी, लयबद्ध श्वास पैटर्न का लक्ष्य रखते हैं जो उन्हें शारीरिक रूप से कठिन अनुक्रमों के माध्यम से बनाए रखने में मदद करता है। अष्टांग योग का एक और मूलभूत पहलू है इसके आसनों की श्रृंखला। इन क्रमों को प्राथमिक, मध्यवर्ती और उन्नत श्रृंखलाओं में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक क्रमिक रूप से पिछले एक पर आधारित है। प्राथमिक श्रृंखला, जिसे योग चिकित्सा के रूप में भी जाना जाता है, शरीर को विषमुक्त करने और रीढ़ ��ो संरेखित करने पर केंद्रित है। प्रत्येक आसन और उसका संक्रमण अभ्यासकर्ता को अगले के लिए तैयार करने के उद्देश्य से है, जिससे शक्ति, लचीलापन और सहनशक्ति को बढ़ावा मिलता है। दृष्टि या नज़र, अष्टांग योग का एक अभिन्न अंग है, जिसके लिए प्रत्येक आसन के दौरान अभ्यासियों को अपनी नज़र विशिष्ट बिंदुओं पर केंद्रित करने की आवश्यकता होती है। यह अभ्यास न केवल एकाग्रता को बढ़ाता है बल्कि एक गहरी ध्यान अवस्था को भी सुगम बनाता है, जो योग के शारीरिक और मानसिक आयामों के बीच एक सेतु प्रदान करता है। संक्षेप में, अष्टांग योग अपने व्यवस्थित दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है, जो संतुलित और व्यापक अभ्यास विकसित करने के लिए सांस, गति और नज़र को एक साथ लाता है। अष्टांग यात्रा शुरू करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए इन मूलभूत तत्वों को समझना आवश्यक है, क्योंकि यह एक अनुशासित और परिवर्तनकारी अनुभव के लिए मंच तैयार करता है।
अष्टांग योग श्रृंखला: प्राथमिक, मध्यवर्ती और उन्नत
The Ashtanga Yoga Series: Primary, Intermediate, and Advanced
अष्टांग योग योग का एक गतिशील और संरचित रूप है जिसे प्रगतिशील श्रृंखलाओं में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक को पिछले एक पर निर्माण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो अभ्यासकर्ताओं को शारीरिक और मानसिक विकास की यात्रा पर ले जाता है। अभ्यास को पारंपरिक रूप से तीन प्रमुख श्रृंखलाओं में विभाजित किया गया है: प्राथमिक श्रृंखला (योग चिकित्सा), मध्यवर्ती श्रृंखला (नाड़ी शोधन), और उन्नत श्रृंखला (स्थिर भाग)। प्रत्येक श्रृंखला एक अद्वितीय उद्देश्य प्रदान करती है और कठिनाई के मामले में बढ़ती जाती है।
प्राथमिक श्रृंखला (योग चिकित्सा)
Primary Series (Yoga Chikitsa)
प्राथमिक श्रृंखला, जिसे योग चिकित्सा के नाम से भी जाना जाता है, का अनुवाद "योग चिकित्सा" है। यह शरीर को शुद्ध करने और संरेखित करने पर ध्यान केंद्रित करता है, अभ्यासकर्ताओं को अधिक उन्नत अभ्यासों के लिए तैयार करता है। इस श्रृंखला में ऐसे आसन शामिल हैं जो आगे की ओर झुकने, कूल्हे खोलने और आधारभूत आसनों पर जोर देते हैं, जो शरीर को डिटॉक्सीफाई करने और समग्र लचीलेपन में सुधार करने में सहायता करते हैं। प्रमुख आसनों में मरीच्यासन, जानू शीर्षासन और सुप्त कुर्मासन शामिल हैं। आम तौर पर, अभ्यासकर्ता उचित संरेखण और सांस के समन्वय को सुनिश्चित करने के लिए ��गे बढ़ने से पहले इस श्रृंखला में महारत हासिल करने में काफी समय बिताते हैं।
मध्यवर्ती श्रृंखला (नाड़ी शोधन)
Intermediate Series (Nadi Shodhana)
प्राथमिक श्रृंखला के साथ सहज होने के बाद, अभ्यासकर्ता मध्यवर्ती श्रृंखला की ओर बढ़ते हैं, जिसे नाड़ी शोधन के रूप में जाना जाता है, जिसका अनुवाद "तंत्रिका सफाई" होता है। यह श्रृंखला कठिन बैकबेंड, ट्विस्ट और डीप हिप ओपनर्स के संयोजन का उपयोग करके तंत्रिका तंत्र की शुद्धि को लक्षित करती है। यह धीरज का निर्माण जारी रखते हुए कोर ताकत और स्थिरता को बढ़ाने में मदद करता है। प्रमुख आसनों में कपोतासन, अर्ध मत्स्येन्द्रासन और पिंचा मयूरासन शामिल हैं। इंटरमीडिएट श्रृंखला में महारत हासिल करने के लिए इसकी जटिल प्रकृति के कारण निरंतर अभ्यास और गहन स्तर की एकाग्रता की आवश्यकता होती है।
उन्नत श्रृंखला (स्थिर भाग)
Advanced Series (Sthira Bhaga)
उन्नत श्रृंखला, जिसे स्थिर भाग के रूप में संदर्भित किया जाता है, "शक्ति और अनुग्रह" का प्रतीक है। इस श्रृंखला को चार भागों में विभाजित किया गया है: उन्नत ए, बी, सी और डी, और यह उन अभ्यासियों के लिए है जिन्होंने काफी ताकत, लचीलापन और मानसिक ध्यान विकसित किया है। आसन अधिक चुनौतीपूर्ण हैं, उच्च स्तर के कौशल और समर्पण की मांग करते हैं। विश्वामित्रासन, गंध भेरुंडासन और हनुमानासन जैसे प्रमुख आसन व्यक्ति के संतुलन, शक्ति और लचीलेपन की सीमाओं का परीक्षण करते हैं। उन्नत श्रृंखला अभ्यासकर्ता के योग अभ्यास को गहरा करने, शरीर और मन को एक जटिल और संतुलित तरीके से सामंजस्य स्थापित करने का काम करती है। अष्टांग योग की यात्रा क्रमिक है, जिसमें अभ्यासकर्ता प्रत्येक श्रृंखला पर महीनों या वर्षो��� तक खर्च करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे आगे बढ़ने से पहले प्रवीणता प्राप्त करें। यह संरचित दृष्टिकोण न केवल शरीर और मन को मजबूत करता है बल्कि अनुशासन और धैर्य को भी बढ़ावा देता है, जो योग के सार का अभिन्न अंग है। Personal Care for Lung Health: Avoiding Cancer
पूर्ण अष्टांग योग अभ्यास के लिए चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका
Step-by-Step Guide to a Full Ashtanga Yoga Practice
पूर्ण अष्टांग योग अभ्यास में शामिल होने के लिए शरीर, मन और सांस को संतुलित करने के लिए डिज़ाइन किए गए एक सावधानीपूर्वक संरचित अनुक्रम की आवश्यकता होती है। अष्टांग योग एक गतिशील और संरचित योग शैली है जो आसनों के एक विशिष्ट अनुक्रम का पालन करती है, सांस को गति के साथ समन्वयित करती है। यहाँ हम आपको पूर्ण अष्टांग योग अभ्यास के लिए एक "चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका" बता रहे हैं : STEP- 1 "Chant":- सत्र पारंपरिक रूप से शुरुआती मंत्र से शुरू होता है, जो मन को शांत करने और अभ्यास के लिए तैयार करने के लिए एक संस्कृत आह्वान है। मंत्र एक केंद्रित वातावरण बनाता है और अक्��र मंत्र "ओम/OM" के तीन दोहराव के बाद, जो अभ्यासकर्ता का ध्यान केंद्रित करने का काम करता है। STEP- 2. "सूर्यनमस्कार Sun Salutations (Surya Namaskar A & B)" आरंभिक मंत्रोच्चार के बाद, अभ्यासी सूर्य नमस्कार या सूर्य नमस्कार से शुरुआत करते हैं। सूर्य नमस्कार ए को आम तौर पर पाँच बार किया जाता है, जिसमें गतिशील आसनों की एक श्रृंखला शामिल होती है जो प्रत्येक सांस के साथ सहज रूप से प्रवाहित होती है। सूर्य नमस्कार बी, जिसे तीन से पाँच बार किया जाता है, अनुक्रम में उत्कटासन (कुर्सी मुद्रा) और वीरभद्रासन I (योद्धा मुद्रा I) को जोड़ता है, जो शक्ति और स्थिरता पर जोर देता है। - सूर्य नमस्कार: 5 चक्र करें। - समस्तीति (सीधे खड़े होकर) से शुरुआत करें। - सांस अंदर लें, हाथों को ऊपर उठाएं। - साँस छोड़ें, आगे की ओर झुकें. - श्वास लें, आधा उठाएं (अर्ध उत्तानासन). - सांस छोड़ें, चतुरंग दंडासन (लो प्लैंक) में वापस आएं या कूदें - श्वास लें, उर्ध्व मुख श्वानासन करें। (Urdhva Mukha Svanasana). - साँस छोड़ें, नीचे की ओर मुख करें (Adho Mukha Svanasana). - पांच सांसों तक रुकें, फिर आगे कदम बढ़ाएं या कूदकर खड़े हो जाएं। - सूर्य नमस्कार बी: 5 चक्र करें। - इस क्रम में उत्कटासन (Utkatasana) (chair pose) and वीरभद्रासन I(Virabhadrasana I) (warrior I) को भी शामिल करें। - सूर्य नमस्कार ए के समान विन्यास प्रवाह, योद्धा मुद्राओं के साथ। STEP- 3."खड़े होने का क्रम/Standing Sequence" इसके बाद, अभ्यास खड़े आसनों में बदल जाता है। ये आसन, जिनमें त्रिकोणासन (त्रिकोण मुद्रा) और परिव्रत त्रिकोणासन (घुमावदार त्रिभुज मुद्रा) शामिल हैं, संतुलन, लचीलापन और संरेखण को बढ़ावा देते हैं। इन आसनों में सटीकता गहरे आसनों के लिए आधार तैयार करती है और स्थानिक जागरूकता को बढ़ाती है। - पादंगुष्ठासन (हाथ से पैर के अचार तक की मुद्रा)/Padangusthasana (Hand to Big Toe Pose) - पादहस्तासन (हाथ के नीचे पैर की मुद्रा)/Padahastasana (Hand Under Foot Pose) - उत्थिता त्रिकोणासन (विस्तारित त्रिकोण मुद्रा)/Utthita Trikonasana (Extended Triangle Pose) - परिवृत्त त्रिकोणासन (परिक्रामी त्रिकोण मुद्रा)/Parivrtta Trikonasana (Revolved Triangle Pose) - उत्थिता पार्श्वकोणासन (विस्तारित पार्श्व कोण मुद्रा)/Utthita Parsvakonasana (Extended Side Angle Pose) - परिवृत्त पार्श्वकोणासन (रिवॉल्व्ड साइड एंगल पोज़)/Parivrtta Parsvakonasana (Revolved Side Angle Pose) - प्रसारित पादोत्तानासन A-D (चौड़े पैरों वाला आगे की ओर झुकने वाला आसन)/Prasarita Padottanasana A-D (Wide-Legged Forward Bend variations) - पार्श्वोत्तानासन (तीव्र पार्श्व खिंचाव मुद्रा)/Parsvottanasana (Intense Side Stretch Pose) STEP- 4. बेठने का अनुक्रम (प्राथमिक श्रृंखला)Seated Sequence (Primary Series) इसके बाद बैठे हुए आसन किए जाते हैं, जो ��ंडासन (स्टाफ़ पोज़) से शुरू होते हैं और आगे की ओर झुकने, मुड़ने और कूल्हे खोलने की एक श्रृंखला से गुज़रते हैं। पश्चिमोत्तानासन (बैठे हुए आगे की ओर झुकना) से लेकर मरीच्यासन (मरीची की मुद्रा) तक प्रत्येक आसन रीढ़ को लंबा करने, पाचन में सुधार करने और समकालिक श्वास (उज्जयी श्वास) के माध्यम से शरीर को विषमुक्त करने का काम करता है। - दण्डासन (स्टाफ़ पोज़)/Dandasana (Staff Pose) - पश्चिमोत्तानासन ए और बी (बैठकर आगे की ओर झुकना)/Paschimottanasana A & B (Seated Forward Bend) - पूर्वोत्तानासन/Purvottanasana (Upward Plank Pose) - अर्ध बद्ध पद्म पश्चिमोत्तानासन/Ardha Baddha Padma Paschimottanasana (Half Bound Lotus Forward Bend) - जानु शीर्षासन/Janu Sirsasana A, B, C (Head to Knee Pose variations) - मरीच्यासन/Marichyasana A-D (Sage Marichi’s Pose variations) - नवासन/Navasana (Boat Pose) - भुजपीड़ासन/Bhujapidasana (Shoulder-Pressing Pose) - कुर्मासन/Kurmasana (Tortoise Pose) - **Garbha Pindasana (Embryo in the Womb Pose)** - **Baddha Konasana (Bound Angle Pose)** - **Upavistha Konasana (Seated Wide-Angle Forward Bend)** - **Supta Konasana (Reclined Wide-Angle Pose)** - **Supta Padangusthasana (Reclined Hand-to-Big-Toe Pose)** - **Ubhaya Padangusthasana (Both Big Toe Pose)** - **Setu Bandhasana (Bridge Pose)** 5. समापन अनुक्रम/Finishing Sequence - Sarvangasana (Shoulder Stand)** - Halasana (Plow Pose)** - Karnapidasana (Ear Pressure Pose)** - Urdhva Padmasana (Upward Lotus Pose)** - Matsyasana (Fish Pose)** - Uttana Padasana (Extended Leg Pose)** - Sirsasana (Headstand)** – hold for 25 breaths. - Baddha Padmasana (Bound Lotus Pose)** - Yoga Mudra (Yoga Seal)** - Padmasana (Lotus Pose)** - Utplutih (Uplifted Lotus Pose)** - Savasana (Corpse Pose)** – Final relaxation for 5-10 minutes. 6. Closing Chant/समापन मंत्र - अभ्यास को सील करने और आभार व्यक्त करने के लिए एक पारंपरिक मंत्र। अभ्यास के लिए सुझाव: - सांस: पूरे अभ्यास के दौरान गहरी, समान सांसों (उज्जयी श्वास) पर ध्यान केंद्रित करें। - दृष्टि: एकाग्रता बनाए रखने के लिए प्रत्येक मुद्रा में विशिष्ट बिंदुओं पर अपनी नज़र (दृष्टि) केंद्रित रखें। - विन्यासा: प्रत्येक साँस अंदर और बाहर लेते समय आसन के बीच तरल रूप से आगे बढ़ें। पूर्ण अष्टांग अभ्यास में 90 मिनट तक का समय लग सकता है और इसे आमतौर पर सप्ताह में छह दिन किया जाता है, जिसमें एक दिन आराम होता है। यदि आप शुरुआती हैं, तो अनुक्रम के छोटे या संशोधित संस्करण से शुरू करने पर विचार करें।
अष्टांग योग के लाभ और चुनौतियाँ/The Benefits and Challenges of Ashtanga Yoga
- बेहतर लचीलापन/Improved Flexibility: अष्टांग योग में आसनों का संरचित अनुक्रम धीरे-धीरे मांसपेशियों को खींचता और लंबा करता है, जिससे समय के साथ लचीलापन बढ़ता है। लगातार अभ्यास के माध्यम से, व्यक्ति अक्सर पाते हैं कि उनकी मांसपेशियाँ और जोड़ अधिक लचीले हो जाते हैं, जिससे गति की अधिक सीमा की अनुमति मिलती है और चोट लगने का जोखिम कम हो जाता है। इसके अतिरिक्त, अष्टांग योग अपने कठिन अनुक्रमों के लिए जाना जाता है जो शक्ति और सहनशक्ति का निर्माण करते हैं। गतिशील गति और आसनों का स्थिर प्रवाह मांसपेशियों की ताकत विकसित करने, हृदय स्वास्थ्य को बढ़ाने और समग्र सहनशक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। - मानसिक स्पष्टता और ध्यान/Mental Clarity and Focus: "शारीरिक लाभों से परे, अष्टांग योग का मानसिक स्वास्थ्य पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अनुक्रमों को बनाए रखने के लिए आवश्यक एकाग्रता और श्वास नियंत्रण तकनीक मानसिक स्पष्टता और ध्यान को बढ़ावा देती हैं। कई अभ्यासकर्ताओं को बढ़ी हुई सजगता और कम तनाव का अनुभव होता है। अभ्यास का ध्यान संबंधी पहलू मन की शांतिपूर्ण स्थिति प्राप्त करने में भी मदद करता है, जिससे भावनात्मक स्थिरता और लचीलापन बेहतर होता है।" श्वास नियंत्रण (उज्जयी श्वास), दृष्टि (टकटकी/gaze) Read the full article
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart70 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart71
"पवित्र वेदों में कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर का प्रमाण"
(पवित्र वेदों में प्रवेश से पहले) part -A
प्रभु जानकारी के लिए पवित्र चारों वेद प्रमाणित शास्त्र हैं। पवित्र वेदों की रचना उस समय हुई थी जब कोई अन्य धर्म नहीं था। इसलिए पवित्र वेदवाणी किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं है, केवल आत्म कल्याण के लिए है। इनको जानने के लिए निम्न व्याख्या बहुत ध्यान तथा विवेक के साथ पढ़नी तथा विचारनी होगी।
प्रभु की विस्तृत तथा सत्य महिमा वेद बताते हैं। (अन्य शास्त्र "श्री गीता जी व चारों वेदों तथा पूर्वोक्त प्रभु प्राप्त महान संतों तथा स्वयं कबीर साहेब (कविर्देव) जी की अपनी पूर्ण परमात्मा की अमृत वाणी के अतिरिक्त" अन्य किसी ऋषि साधक की अपनी उपलब्धि है। जैसे छः शास्त्र ग्यारह उपनिषद् तथा सत्यार्थ प्रकाश आदि। यदि ये वेदों की कसौटी में खरे नहीं उतरते हैं तो यह ��म्पूर्ण ज्ञान नहीं है।)
पवित्र वेद तथा गीता जी स्वयं काल प्रभु (ब्रह्म) दत्त हैं। जिन में भक्ति विधि तथा उपलब्धि दोनों सही तौर पर वर्णित हैं। इनके अतिरिक्त जो पूजा विधि तथा अनुभव हैं वह अधूरा समझें। यदि इन्हीं के अनुसार कोई साधक अनुभव बताए तो सत्य जानें। क्योंकि कोई भी प्राणी प्रभु से अधिक नहीं जान सकता।
वेदों के ज्ञान से पूर्वोक्त महात्माओं का विवरण सही मिलता है। इससे सिद्ध हुआ कि वे सर्व महात्मा पूर्ण थे। पूर्ण परमात्मा का साक्षात्कार हुआ है तथा बताया है वह परमात्मा कबीर साहेब (कविर् देव) है।
वही ज्ञान चारों पवित्र वेद तथा पवित्र गीता जी भी बताते हैं।
कलियुगी ऋषियों ने वेदों का टीका (भाषा भाष्य) ऐसे कर दिया जैसे कहीं दूध की महिमा कही गई हो और जिसने कभी जीवन में दूध देखा ही न हो और वह अनुवाद कर रहा हो, वह ऐसे करता है :-
पोष्टिकाहार असि। पेय पदार्थ असि। श्वेदसि । अमृत उपमा सर्वा मनुषानाम पेय्याम् सः दूग्धः असिः ।
(पौष्टिकाहार असि) - कोई शरीर पुष्ट कर ने वाला आहार है (पेय पदार्थ) पीने का तरल पदार्थ (असि) है। (श्वेत्) सफेद (असि) है। (अमृत उपमा) अमृत सदृश है (सर्व) सब (मनुषानाम्) मनुष्यों के (पेय्याम्) पीने योग्य (सः) वह (दूग्धः) पौष्टिक तरल (असि) है।
भावार्थ किया :- कोई सफेद पीने का तरल पदार्थ है जो अमृत समान है, बहुत पौष्टिक है, सब मनुष्यों के पीने योग्य है, वह स्वयं तरल है। फिर कोई पूछे कि वह तरल पदार्थ कहाँ है? उत्तर मिले वह तो निराकार है। प्राप्त नहीं हो सकता। यहाँ पर दूग्धः को तरल पदार्थ लिख दिया जाए तो उस वस्तु "दूध" को कैसे पाया व जाना जाए जिसकी उपमा ऊपर की है? यहाँ पर (दूग्धः) को दूध लिखना था जिससे पता चले कि वह पौष्टिक आहार दूध है। फिर व्यक्ति दूध नाम से उसे प्राप्त कर सकता है।
विचार :- यदि कोई कहे दुग्धः को दूध कैसे लिख दिया? यह तो वाद-विवाद का प्रत्यक्ष प्रमाण ही हो सकता है। जैसे दुग्ध का दूध अर्थ गलत नहीं है। भाषा भिन्न होने से हिन्दी में दूध तथा क्षेत्रीय भाषा में दूधू लिखना भी संस्कृत भाषा में लिखे दुग्ध का ही बोध है। जैसे पलवल शहर के आसपास के ग्रामीण परवर कहते हैं। यदि कोई कहे कि परवर को पलवल कैसे सिद्ध कर दिया, मैं नहीं मानता। यह तो व्यर्थ का वाद विवाद है। ठीक इसी प्रकार कोई कहे कि कविर्देव को कबीर परमेश्वर कैसे सिद्ध कर दिया यह तो व्यर्थ का वाद-विवाद ही है। जैसे "यजुर्वेद" है यह एक धार्मिक पवित्र पुस्तक है जिसमें प्रभु की यज्ञिय स्तुतियों की ऋचाएँ लिखी हैं तथा प्रभु कैसा है? कैसे पाया जाता है? सब विस्तृत वर्णन है।
अब पवित्र यजुर्वेद की महिमा कहें कि प्रभु की यज्ञीय स्तूतियों की ऋचाओं का भण्डार है। बहुत अच्छी विधि वर्णित है। एक अन���ोल जानकारी है और यह लिखें नहीं कि वह "यजुर्वेद" है अपितु यजुर्वेद का अर्थ लिख दें कि यज्ञीय स्तुतियों का ज्ञान है। तो उस वस्तु (पवित्र पुस्तक) को कैसे पाया जा सके ? उसके लिए लिखना होगा कि वह पवित्र पुस्तक "यजुर्वेद" है जिसमें यज्ञीय ऋचाएं हैं। अब यजुर्वेद की सन्धिच्छेद करके लिखें। यजुर्वेद, भी वही पवित्र पुस्तक यजुर्वेद का ही बोध है। यजुः वेद भी वही पवित्र पुस्तक यजुर्वेद का ही बोध है। जिसमें यज्ञीय स्तुति की ऋचाएं हैं। उस धार्मिक पुस्तक को यजुर्वेद कहते हैं। ठीक इसी प्रकार चारों पवित्र वेदों में लिखा है कि वह कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है। जो सर्व शक्तिमान, जगत्पिता, सर्व सृष्टि रचनहार, कुल मालिक तथा पाप विनाशक व काल की कारागार से छुटवाने वाला अर्थात् बंदी छोड़ है।
वेद यजुर्वेद
इसको कविर्+देव लिखें तो भी कबीर परमेश्वर का बोध है। कविः+देव लिखें तो भी कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर् प्रभु का ही बोध है।
इसलिए कविर्देव उसी कबीर साहेब का ही बोध करवाता है:- सर्व शक्तिमान, अजर-अमर, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार कुल मालिक है क्योंकि पूर्वोक्त प्रभु प्राप्त सन्तों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में 'कविर्' को 'कबीर' बोला है तथा 'वेद' को 'बेद' बोला है। इसलिए 'व' और 'ब' के अंतर हो जाने पर भी पवित्र शास्त्र वेद का ही बोध है।
विचार:- जैसे कोई अंग्रेजी भाषा में लिखें कि God (Kavir) Kaveer is all mighty इसका हिन्दी अनुवाद करके लिखें कविर या कवीर परमेश्वर सर्व शक्तिमान है। अब अंग्रेजी भाषा में तो हलन्त () की व्यवस्था ही नहीं है। फिर मात्र भाषा में इसी को कबीर कहने तथा लिखने लगे।
यही परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तीन युगों में नामान्तर करके आते हैं जिनमें इनके नाम रहते हैं सतयुग में सत सुकृत, त्रेतायुग में मुनिन्द्र, द्वापरयुग में करुणामय तथा कलयुग में कबीर देव (कविर्देव)। वास्तविक नाम उस पूर्ण ब्रह्म का कविर् देव ही है। जो सृष्टि रचना से पहले भी अनामी लोक में विद्यमान थे। इन्हीं के उपमात्मक नाम सतपुरुष, अकाल मूर्त, पूर्ण ब्रह्म, अलख पुरुष, अगम पुरुष, परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। उसी परमात्मा को चारों पवित्र वेदों में "कविरमितौजा", "कविरघांरि", "कविरग्नि" तथा "कविर्देव", कहा है तथा सर्वशक्तिमान, सर्व सृष्टि रचनहार बताया है। पवित्र कुरान शरीफ में सुरत फुर्कानी नं. 25 आयत नं. 19,21,52,58,59 में भी प्रमाण है। कई एक का विरोध है कि जो शब्द कविर्देव' है इसको सन्धिच्छेद करने से कविः देवः बन जाता है यह कबिर् परमेश्वर या कबीर साहेब कैसे सिद्ध किया? व को ब तथा छोटी इ (f) की मात्रा को बड़ी ई (१) की मात्रा करना बेसमझी है।
विचार: एक ग्रामीण लड़के की सरकारी नौकरी लगी। जिसका नाम कर्मवीर पुत्र श्री धर्मवीर सरकारी कागजों में तथा करमबिर पुत्र श्री धरमबिर पुत्र परताप गाँव के चौकीदार की डायरी में जन्म के समय का लिखा था। सरकार की तरफ से नौकरी लगने के बाद जाँ�� पड़ताल कराई जाती है। एक सरकारी कर्मचारी जाँच के लिए आया। उसने पूछा कर्मवीर पुत्र श्री धर्मवीर का मकान कौन-सा है, उसकी अमूक विभाग में नौकरी लगी है। गाँव में कर्मवीर को कर्मा तथा उसके पिता जी को धर्मा तथा दादा जी को प्रता आदि उर्फ नामों से जानते थे। व्यक्तियों ने कहा इस नाम का लड़का इस गाँव में नहीं है। काफी पूछताछ के बाद एक लड़का जो कर्मवीर का सहपाठी था, उसने बताया यह कर्मा की नौकरी के बारे में है। तब उस बच्चे ने बताया यही कर्मबीर उर्फ कर्मा तथा धर्मबीर उर्फ धर्मा ही है। फिर उस कर्मचारी को शंका उत्पन्न हुई कि कर्मबीर नहीं कर्मवीर है। उसने कहा चौकीदार की डायरी लाओ, उसमें भी लिखा था "करमबिर पुत्र धरमबिर पुत्र परताप" पूरा "र" "व" के स्थान पर "ब" तथा छोटी "" की मात्रा लगी थी। तो भी वही बच्चा कर्मवीर ही सिद्ध हुआ, क्योंकि गाँव के नम्बरदारों तथा प्रधानों ने भी गवाही दी कि बेशक मात्रा छोटी बड़ी या "र" आधा या पूरा है, लड़का सही इसी गाँव का है। सरकारी कर्मचारी ने कहा नम्बरदार अपने हाथ से लिख दे। नम्बरदार ने लिख दिया मैं करमविर पूतर धरमविर को जानता हूँ जो इस गाम का बासी है और हस्ताक्षर कर दिए। बेशक नम्बरदार ने विर में छोटी ई (f) की मात्रा का तथा करम में बड़े "र" का प्रयोग किया है, परन्तु हस्ताक्षर करने वाला गाँव का गणमान्य व्यक्ति है। किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि नाम की स्पेलिंग गलत नहीं होती। ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा का नाम सरकारी दस्तावेज (वेदों) में कविर्देव है, परन्तु गाँव (पृथ्वी) पर अपनी-2 मातृ भाषा में कबीर, कबिर, कबीरा, कबीरन् आदि नामों से जाना जाता है। इसी को नम्बरदारों (आँखों देखा विवरण अपनी पवित्र वाणी में ठोक कर गवाही देते हुए आदरणीय पूर्वोक्त सन्तों) ने कविर्देव को हक्का कबीर, सत् कबीर, कबीरा, कबीरन्, खबीरा, खबीरन् आदि लिख कर हस्ताक्षर कर रखे हैं।
वर्तमान (सन् 2006) से लगभग 600 वर्ष पूर्व जब परमात्मा कबीर जी (कविर्देव जी) स्वयं प्रकट हुए थे उस समय सर्व सद्ग्रन्थों का वास्तविक ज्ञान लोकोक्तियों (दोहों, चोपाईयों, शब्दों अर्थात् कविताओं) के माध्यम से साधारण भाषा में जन साधारण को बताया था। उस तत्त्व ज्ञान को उस समय के संस्कृत भाषा व हिन्दी भाषा के ज्ञाताओं ने यह कह कर ठुकरा दिया कि कबीर जी तो अशिक्षित है। इस के द्वारा कहा गया ज्ञान व उस में उपयोग की गई भाषा व्याकरण दृष्टिकोण से ठीक नहीं है।
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CIN /अनुवाद-साहित्य के उन्नायकों में से एक थे पं हंस कुमार तिवारी, प्रणम्य थी पीर मुहम्मद मूनिस की हिन्दी सेवा
पटना, 16 अगस्त । हिन्दी, संस्कृत और बांगला भाषाओं के उद्भट विद्वान पं हंस कुमार तिवारी अनुवाद-साहित्य के महान उन्नायकों में परिगणित होते हैं। इन्होंने बंगला साहित्य का हिन्दी में अनुवाद के साथ ही कई अनेक मौलिक साहित्य का सृजन कर हिन्दी का भंडार भरा। राष्ट्रभाषा परिषद, बिहार के मिदेशक के रूप में उनके कार्यों को आज भी स्मरण किया जाता है। वही चंपारण-सत्याग्रह के प्रथम-ध्वजवाहकों में से एक पीर…
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33 करोड़ देवी देवता |
23rd March 2024
एक प्रश्न जो कई बार चर्च का विषय रहा है- 33 करोड़ देवी देवता | यह सब जानते है की हिन्दू धर्म मे बहुत सारे देवी देवता की पूजा की जाती है | इस ब्लॉग मे आज हम 33 करोड़ देवी देवता का सच जानने की कोशिश करेंगे |
सनातन धर्म बहुत पुराना धर्म है और इसके धर्म ग्रन्थ भी बहुत प्रचीन है | इन ग्रंथो मे समय समय पर बातें जोड़ी गयी और बहुत सी बातो का अनुवाद भी किया गया | इसी कारण बहुत से भ्रम भी उत्पन हुए और 33 करोड़ देवी देवता का विषय इसी का परिणाम है | सनातन धर्म के कोई भी ग्रन्थ में 33 करोड़ देवी देवत का उल्लेख नहीं किया गया है, अपितु 33 कोटि का उल्लेख किया गया है | हमारी वर्णवाली मे कई शब्दों के दो मतलब है जैसे कोटि के दो मतलब है- प्रकार और करोड़ | हिंदी जाने वाले लोग को यह पता होगा की कोटि को ही करोड़ बोला जाता है |
यदि हम 33 कोटि देवी देवत की बात करते है तो इसमे 8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल है | कई जगहों पर इन्द्र इन्द्र इन्द्र एवं प्रजापति के स्थान पर तो 2 अश्विनी कुमार को कोटि में शामिल किया गया है | तो करोड़ के नाम इस प्रकार है:-
8 वसुओं के नाम- 1. आप 2. ध्रुव 3. सोम 4. धर 5. अनिल 6. अनल 7. प्रत्यूष 8. प्रभाष
11 रुद्रों के नाम- 1. मनु 2. मन्यु 3. शिव 4. महत 5. ऋतुध्वज 6. महिनस 7. उम्रतेरस 8. काल 9. वामदेव 10. भव 11. धृत-ध्वज
12 आदित्य के नाम- 1. अंशुमान 2. अर्यमन 3. इंद्र 4. त्वष्टा 5. धातु 6. पर्जन्य 7. पूषा 8. भग 9. मित्र 10. वरुण 11. वैवस्वत 12. विष्णु
इन सभी देवताओं से 33 कोटि देवताओं की संख्या पूर्ण होती है | कोटि शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है प्राकार और कोटि शब्द को बहुत जगह करोड़ भी बोला गया है |
हिंदू धर्म में 33 करोड़ नहीं बल्की 33 कोटि अर्थात प्रकार के देवी देवता हैं |
PK
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प्रथम आक्षेप की समीक्षा
सर्वप्रथम हम वेदों पर उठाये गये आक्षेपों का उत्तर दे रहे हैं। उसमें भी सबसे अधिक प्रक्षेप वेद का भेद साइट पर सुलेमान रजवी ने किये ��ैं। राजवी वेदों पर हिंसा एवं साम्प्रदायिकता का आरोप लगाते हुए लिखते हैं—
आक्षेप संख्या १ – Vedas are terror manual which turns humans into savages. Many tribes were destroyed as a result of the violent passages in Vedas. As per Vedas, you must kill a person who rejects Vedas, who hates Vedas and Ishwar, who does not worship, who does not make offerings to Ishwar, who insults god (Blasphemy), one who oppresses a Brahmin etc. There are several passages in Vedas which calls for death of disbelievers. अर्थात् इनकी दृष्टि में वेद मनुष्य को बर्बर आतंकी बनाने वाला ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ ने अनेक जनजातियों को नष्ट कर दिया है। वेद और ईश्वर को न मानने वाले, ईश्वर की पूजा न करने वाले, ईश्वर की निन्दा करने वाले और ब्राह्मïण का अपमान करने वाले को मार डालने का आदेश वेद में दिया गया है।
इसके साथ ही रजवी का कहना है कि वेदों को मानने वाले वेदों में निर्दिष्ट हिंसा को नहीं देखते, बल्कि अन्य सम्प्रदायों के ग्रन्थों का गलत अर्थ करके उन पर हिंसा का आरोप लगाते हैं।
आक्षेप की समीक्षा – मैं रजवी के साथ सभी इस्लामी विद्वानों से पूछना चाहूँगा कि मक्का-मदीना से प्रारम्भ हुआ इस्लाम क्या शान्ति और सत्य के द्वारा विश्व के ५६-५७ देशों में फैला है? क्या तैमूर, अलाउद्दीन खिलजी, बाबर, अकबर और औरंगजेब जैसे लोग इस्लाम के शान्तिदूत बनकर भारत में आए थे? क्या इन शान्तिदूतों की शान्ति से आहत होकर हजारों रानियों ने जौहर करके अपने प्राण गँवाए थे? क्या उन्होंने भारत में शान्ति की स्थापना के लिए हजारों मन्दिर तोड़े थे? क्या कुरान में काफिरों की गर्दनें उड़ाने का वर्णन नहीं है? आप वेदानुयायियों के द्वारा वनवासियों, जिन्हें षड्यन्त्रपूर्वक आदिवासी कहा गया है, की हत्या का आरोप लगा रहे हैं। आपको इतनी समझ तो रखनी चाहिए कि भारत में आज भी वनवासी वर्ग अपनी परम्परा व मान्यताओं को प्रसन्नतापूर्वक निभा रहा है और इस्लामी देशों में सभी को बलपूर्वक या तो इस्लामी मान्यताओं को मानने के लिए विवश किया गया है अथवा उन्हें नष्ट कर दिया गया है। भारत में तो सम्पूर्ण वनवासी समाज क्षत्रियों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना बलिदान देता चला आया है, चाहे इस्लामी आक्रान्ताओं के विरुद्ध युद्ध हो अथवा अंग्रेजों के विरुद्ध। वनवासियों ने सदैव राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए सदैव अपना बलिदान दिया है। इसलिए आपको अपने घर की चिन्ता करनी चाहिए, हमारे घर की नहीं। अगर वेदानुयायी समाज हिंसक होता, तो संसार में कोई दूसरा सम्प्रदाय पैदा ही नहीं होता और यदि पैदा हो जाता, तो वह जीवित भी नहीं ��हता।
आप कुरान पर किये गये किसी आक्षेप को नासमझी का परिणाम बता रहे हैं, तो कृपया समझदारी का परिचय देकर क्या आप कुरान के उन अनुवादों को नष्ट करवा कर उनके सही अनुवाद कराने का साहस करेंगे? छह दिन में सम्पूर्ण सृष्टि का बन जाना, मिट्टी से मानव का शरीर बन जाना, खुदा का तख्त पर बैठे रहना एवं अन्य सृष्टि सम्बन्धी आयतों की सही व्याख्या करके सम्पूर्ण सृष्टि प्रक्रिया को मुझे समझाने का प्रयास करेंगे? मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि कोई भी इस्लामी विद्वान् इसमें समर्थ नहीं हो सकता।
आपने वेद को तो सही ढंग से समझ ही लिया होगा, तभी तो आरोप लगा रहे हैं। यदि आप वेद समझते हैं, तब तो आपको किसी के भाष्य उद्धृत करने की आवश्यकता ही नहीं थी। यहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि आपका मुख्य लक्ष्य आर्यसमाज एवं पौराणिक (कथित सनातनी हिन्दु) को ही बदनाम करना है। आपको संस्कृत भाषा का कोई ज्ञान नहीं है, अन्यथा आप आचार्य सायण का भाष्य भी उद्धृत करते। आपने श्री देवीचन्द को भी आर्य विद्वान् कहा है, यह ज्ञान क्या आपको खुदा ने दिया है कि देवीचन्द आर्यसमाज के विद्वान् थे? मैंने तो आर्य समाज में किसी देवीचन्द नामक वेदभाष्यकार का नाम तक नहीं सुना। भाष्यों में भी प्राय: आपने अंग्रजी अनुवादों को ही अधिक उद्धृत किया है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि आपको हिन्दी भाषा का भी बहुत अधिक ज्ञान नहीं है और केवल अंग्रेजी भाषा पढक़र वेद के अधिकारी विद्वान् बनकर वेद पर आक्षेप करने बैठ गये। मैं मानता हूँ कि ऋषि दयानन्द के अतिरिक्त अन्य सभी भाष्यकारों से वेदभाष्य करने में भारी भूलें हुई हैं। अब हम क्रमश: आपके द्वारा उद्धृत एक-एक वेद मन्त्र पर विचार करते हैं—
क्रमशः...
सभी वेदभक्तों से निवेदन है कि वेदों पर किये गए आक्षेपों के उत्तर की इस शृंखला को आधिकाधिक प्रचारित करने का कष्ट करें‚ जिससे वेदविरोधियों तक उत्तर पहुँच सके और वेदभक्तों में स्वाभिमान जाग सके।
✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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शिव मानस पूजन का महत्व और भावार्थ शिव मानस पूजन - संस्कृत से हिंदी अनुवाद Astrobhoomi
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#हिन्दू_भाई_संभलो
अड़गड़ानंद जी महाराज ने गीता का अनुवाद अपने शब्दों में करकर एक नई पुस्तक यथार्थ गीता नाम तो रख दिया किंतु एक "व्रज" शब्द का अनुवाद नहीं कर पाएं।
Hindu Bhai Dhokhe Mein
संस्कृत हिंदी शब्दकोष में व्रज का सही अर्थ जाना लिखा है जो वास्तव में ठीक है।
#India
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart70 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart71
"पवित्र वेदों में कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर का प्रमाण"
(पवित्र वेदों में प्रवेश से पहले) part -A
प्रभु जानकारी के लिए पवित्र चारों वेद प्रमाणित शास्त्र हैं। पवित्र वेदों की रचना उस समय हुई थी जब कोई अन्य धर्म नहीं था। इसलिए पवित्र वेदवाणी किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं है, केवल आत्म कल्याण के लिए है। इनको जानने के लिए निम्न व्याख्या बहुत ध्यान तथा विवेक के साथ पढ़नी तथा विचारनी होगी।
प्रभु की विस्तृत तथा सत्य महिमा वेद बताते हैं। (अन्य शास्त्र "श्री गीता जी व चारों वेदों तथा पूर्वोक्त प्रभु प्राप्त महान संतों तथा स्वयं कबीर साहेब (कविर्देव) जी की अपनी पूर्ण परमात्मा की अमृत वाणी के अतिरिक्त" अन्य किसी ऋषि साधक की अपनी उपलब्धि है। जैसे छः शास्त्र ग्यारह उपनिषद् तथा सत्यार्थ प्रकाश आदि। यदि ये वेदों की कसौटी में खरे नहीं उतरते हैं तो यह सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है।)
पवित्र वेद तथा गीता जी स्वयं काल प्रभु (ब्रह्म) दत्त हैं। जिन में भक्ति विधि तथा उपलब्धि दोनों सही तौर पर वर्णित हैं। इनके अतिरिक्त जो पूजा विधि तथा अनुभव हैं वह अधूरा समझें। यदि इन्हीं के अनुसार कोई साधक अनुभव बताए तो सत्य जानें। क्योंकि कोई भी प्राणी प्रभु से अधिक नहीं जान सकता।
वेदों के ज्ञान से पूर्वोक्त महात्माओं का विवरण सही मिलता है। इससे सिद्ध हुआ कि वे सर्व महात्मा पूर्ण थे। पूर्ण परमात्मा का साक्षात्कार हुआ है तथा बताया है वह परमात्मा कबीर साहेब (कविर् देव) है।
वही ज्ञान चारों पवित्र वेद तथा पवित्र गीता जी भी बताते हैं।
कलियुगी ऋषियों ने वेदों का टीका (भाषा भाष्य) ऐसे कर दिया जैसे कहीं दूध की महिमा कही गई हो और जिसने कभी जीवन में दूध देखा ही न हो और वह अनुवाद कर रहा हो, वह ऐसे करता है :-
पोष्टिकाहार असि। पेय पदार्थ असि। श्वेदसि । अमृत उपमा सर्वा मनुषानाम पेय्याम् सः दूग्धः असिः ।
(पौष्टिकाहार असि) - कोई शरीर पुष्ट कर ने वाला आहार है (पेय पदार्थ) पीने का तरल पदार्थ (असि) है। (श्वेत्) सफेद (असि) है। (अमृत उपमा) अमृत सदृश है (सर्व) सब (मनुषानाम्) मनुष्यों के (पेय्याम्) पीने योग्य (सः) वह (दूग्धः) पौष्टिक तरल (असि) है।
भावार्थ किया :- कोई सफेद पीने का तरल पदार्थ है जो अमृत समान है, बहुत पौष्टिक है, सब मनुष्यों के पीने योग्य है, वह स्वयं तरल है। फिर कोई पूछे कि वह तरल पदार्थ कहाँ है? उत्तर मिले वह तो निराकार है। प्राप्त नहीं हो सकता। यहाँ पर दूग्धः को तरल पदार्थ लिख दिया जाए तो उस वस्तु "दूध" को कैसे पाया व जाना जाए जिसकी उपमा ऊपर की है? यहाँ पर (दूग्धः) को दूध लिखना था जिससे पता चले कि वह पौष्टिक आहार दूध है। फिर व्यक्ति दूध नाम से उसे प्राप्त कर सकता है।
विचार :- यदि कोई कहे दुग्धः को दूध कैसे लिख दिया? यह तो वाद-विवाद का प्रत्यक्ष प्रमाण ही हो सकता है। जैसे दुग्ध का दूध अर्थ गलत नहीं है। भाषा भिन्न होने से हिन्दी में दूध तथा क्षेत्रीय भाषा में दूधू लिखना भी संस्कृत भाषा में लिखे दुग्ध का ही बोध है। जैसे पलवल शहर के आसपास के ग्रामीण परवर कहते हैं। यदि कोई कहे कि परवर को पलवल कैसे सिद्ध कर दिया, मैं नहीं मानता। यह तो व्यर्थ का वाद विवाद है। ठीक इसी प्रकार कोई कहे कि कविर्देव को कबीर परमेश्वर कैसे सिद्ध कर दिया यह तो व्यर्थ का वाद-विवाद ही है। जैसे "यजुर्वेद" है यह एक धार्मिक पवित्र पुस्तक है जिसमें प्रभु की यज्ञिय स्तुतियों की ऋचाएँ लिखी हैं तथा प्रभु कैसा है? कैसे पाया जाता है? सब विस्तृत वर्णन है।
अब पवित्र यजुर्वेद की महिमा कहें कि प्रभु की यज्ञीय स्तूतियों की ऋचाओं का भण्डार है। बहुत अच्छी विधि वर्णित है। एक अनमोल जानकारी है और यह लिखें नहीं कि वह "यजुर्वेद" है अपितु यजुर्वेद का अर्थ लिख दें कि यज्ञीय स्तुतियों का ज्ञान है। तो उस वस्तु (पवित्र पुस्तक) को कैसे पाया जा सके ? उसके लिए लिखना होगा कि वह पवित्र पुस्तक "यजुर्वेद" है जिसमें यज्ञीय ऋचाएं हैं। अब यजुर्वेद क��� सन्धिच्छेद करके लिखें। यजुर्वेद, भी वही पवित्र पुस्तक यजुर्वेद का ही बोध है। यजुः वेद भी वही पवित्र पुस्तक यजुर्वेद का ही बोध है। जिसमें यज्ञीय स्तुति की ऋचाएं हैं। उस धार्मिक पुस्तक को यजुर्वेद कहते हैं। ठीक इसी प्रकार चारों पवित्र वेदों में लिखा है कि वह कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है। जो सर्व शक्तिमान, जगत्पिता, सर्व सृष्टि रचनहार, कुल मालिक तथा पाप विनाशक व काल की कारागार से छुटवाने वाला अर्थात् बंदी छोड़ है।
वेद यजुर्वेद
इसको कविर्+देव लिखें तो भी कबीर परमेश्वर का बोध है। कविः+देव लिखें तो भी कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर् प्रभु का ही बोध है।
इसलिए कविर्देव उसी कबीर साहेब का ही बोध करवाता है:- सर्व शक्तिमान, अजर-अमर, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार कुल मालिक है क्योंकि पूर्वोक्त प्रभु प्राप्त सन्तों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में 'कविर्' को 'कबीर' बोला है तथा 'वेद' को 'बेद' बोला है। इसलिए 'व' और 'ब' के अंतर हो जाने पर भी पवित्र शास्त्र वेद का ही बोध है।
विचार:- जैसे कोई अंग्रेजी भाषा में लिखें कि God (Kavir) Kaveer is all mighty इसका हिन्दी अनुवाद करके लिखें कविर या कवीर परमेश्वर सर्व शक्तिमान है। अब अंग्रेजी भाषा में तो हलन्त () की व्यवस्था ही नहीं है। फिर मात्र भाषा में इसी को कबीर कहने तथा लिखने लगे।
यही परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तीन युगों में नामान्तर करके आते हैं जिनमें इनके नाम रहते हैं सतयुग में सत सुकृत, त्रेतायुग में मुनिन्द्र, द्वापरयुग में करुणामय तथा कलयुग में कबीर देव (कविर्देव)। वास्तविक नाम उस पूर्ण ब्रह्म का कविर् देव ही है। जो सृष्टि रचना से पहले भी अनामी लोक में विद्यमान थे। इन्हीं के उपमात्मक नाम सतपुरुष, अकाल मूर्त, पूर्ण ब्रह्म, अलख पुरुष, अगम पुरुष, परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। उसी परमात्मा को चारों पवित्र वेदों में "कविरमितौजा", "कविरघांरि", "कविरग्नि" तथा "कविर्देव", कहा है तथा सर्वशक्तिमान, सर्व सृष्टि रचनहार बताया है। पवित्र कुरान शरीफ में सुरत फुर्कानी नं. 25 आयत नं. 19,21,52,58,59 में भी प्रमाण है। कई एक का विरोध है कि जो शब्द कविर्देव' है इसको सन्धिच्छेद करने से कविः देवः बन जाता है यह कबिर् परमेश्वर या कबीर साहेब कैसे सिद्ध किया? व को ब तथा छोटी इ (f) की मात्रा को बड़ी ई (१) की मात्रा करना बेसमझी है।
विचार: एक ग्रामीण लड़के की सरकारी नौकरी लगी। जिसका नाम कर्मवीर पुत्र श्री धर्मवीर सरकारी कागजों में तथा करमबिर पुत्र श्री धरमबिर पुत्र परताप गाँव के चौकीदार की डायरी में जन्म के समय का लिखा था। सरकार की तरफ से नौकरी लगने के बाद जाँच पड़ताल कराई जाती है। एक सरकारी कर्मचारी जाँच के लिए आया। उसने पूछा कर्मवीर पुत्र श्री धर्मवीर का मकान कौन-सा है, उसकी अमूक विभाग में नौकरी लगी है। गाँव में कर्मवीर को कर्मा तथा उसके पिता जी को धर्मा तथा दादा जी को प्रता आदि उर्फ नामों से जानते थे। व्यक्तियों ने कहा इस नाम का लड़का इस गाँव में नहीं है। काफी पूछताछ के बाद एक लड़का जो कर्मवीर का सहपाठी था, उसने बताया यह कर्मा की नौकरी के बारे में है। तब उस बच्चे ने बताया यही कर्मबीर उर्फ कर्मा तथा धर्मबीर उर्फ धर्मा ही है। फिर उस कर्मचारी को शंका उत्पन्न हुई कि कर्मबीर नहीं कर्मवीर है। उसने कहा चौकीदार की डायरी लाओ, उसमें भी लिखा था "करमबिर पुत्र धरमबिर पुत्र परताप" पूरा "र" "व" के स्थान पर "ब" तथा छोटी "" की मात्रा लगी थी। तो भी वही बच्चा कर्मवीर ही सिद्ध हुआ, क्योंकि गाँव के नम्बरदारों तथा प्रधानों ने भी गवाही दी कि बेशक मात्रा छोटी बड़ी या "र" आधा या पूरा है, लड़का सही इसी गाँव का है। सरकारी कर्मचारी ने कहा नम्बरदार अपने हाथ से लिख दे। नम्बरदार ने लिख दिया मैं करमविर पूतर धरमविर को जानता हूँ जो इस गाम का बासी है और हस्ताक्षर कर दिए। बेशक नम्बरदार ने विर में छोटी ई (f) की मात्रा का तथा करम में बड़े "र" का प्रयोग किया है, परन्तु हस्ताक्षर करने वाला गाँव का गणमान्य व्यक्ति है। किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि नाम की स्पेलिंग गलत नहीं होती। ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा का नाम सरकारी दस्तावेज (वेदों) में कविर्देव है, परन्तु गाँव (पृथ्वी) पर अपनी-2 मातृ भाषा में कबीर, कबिर, कबीरा, कबीरन् आदि नामों से जाना जाता है। इसी को नम्बरदारों (आँखों देखा विवरण अपनी पवित्र वाणी में ठोक कर गवाही देते हुए आदरणीय पूर्वोक्त सन्तों) ने कविर्देव को हक्का कबीर, सत् कबीर, कबीरा, कबीरन्, खबीरा, खबीरन् आदि लिख कर हस्ताक्षर कर रखे हैं।
वर्तमान (सन् 2006) से लगभग 600 वर्ष पूर्व जब परमात्मा कबीर जी (कविर्देव जी) स्वयं प्रकट हुए थे उस समय सर्व सद्ग्रन्थों का वास्तविक ज्ञान लोकोक्तियों (दोहों, चोपाईयों, शब्दों अर्थात् कविताओं) के माध्यम से साधारण भाषा में जन साधारण को बताया था। उस तत्त्व ज्ञान को उस समय के संस्कृत भाषा व हिन्दी भाषा के ज्ञाताओं ने यह कह कर ठुकरा दिया कि कबीर जी तो अशिक्षित है। इस के द्वारा कहा गया ज्ञान व उस में उपयोग की गई भाषा व्याकरण दृष्टिकोण से ठीक नहीं है।
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अड़गड़ानंद जी महाराज ने गीता का अनुवाद अपने शब्दों में करकर एक नई पुस्तक यथार्थ गीता नाम तो रख दिया किंतु एक "व्रज" शब्द का अनुवाद नहीं कर पाएं।
Hindu Bhai Dhokhe Mein
संस्कृत हिंदी शब्दकोष में व्रज का सही अर्थ जाना लिखा है जो वास्तव में ठीक है।
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#india
हिंदू भाइयों के साथ हो रहा है धोखा। पढ़ा लिखा हिंदू समाज गीता जी 18 के श्लोक 66 में ब्रज शब्द का अर्थ जाना होता है लेकिन संस्कृत अनुवाद में उसका अर्थ आना किया गया है
संत रामपाल जी महाराज ने हमारी आंखें खोल दी हैं ।ज्यादा जानकारी के लिए आवश्यक विजिट करें संत रामपाल जी महाराज युटुब चैनल पर
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#हिन्दू_भाई_संभलो
अड़गड़ानंद जी महाराज ने गीता का अनुवाद अपने शब्दों में करकर एक नई पुस्तक यथार्थ गीता नाम तो रख दिया किंतु एक "व्रज" शब्द का अनुवाद नहीं कर पाएं।
Hindu Bhai Dhokhe Mein
संस्कृत हिंदी शब्दकोष में व्रज का सही अर्थ जाना लिखा है जो वास्तव में ठीक है।
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