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श्रीमद्भागवत गीता महात्म्य
11th October 2024
प्रथम अध्याय: देवर्षि नारद की भक्ति से भटे...Continuation
अब जब मैं वृन्दावन आई हूं, तब से पुन: परन सुंदरी नवयुवति हो गई हूं। किंतु ये दो पुरुष मेरे पुत्र जिनमें से एक ज्ञान और दूसरा वैराग्य कहलाता है वृद्ध हो गए है- इसलिए मैं बहुत दुखी हूं| मैं तरूणी और मेरे दोनो पुत्र बुढे क्यू ? माता को वृद्ध और पुत्र को तरूण होना चाहिए पर ऐसे विपरीत क्यू ? आप परम बुद्धिमान और योगनिधि है कृपा कर इसका करण बताइये |
तब नारदजी ने कहा- हे निष्पाप महिला! मैंने आध्यात्मिक ज्ञान से उत्पन्न अपनी अंतर्दृष्टि के माध्यम से आपकी सारी दुर्दशा देखी और समझी है। देवी! यह दारुण कलयुग है और यही कारण है इस समय सदाचार, योगमार्ग और तप, आदि लुप्त हो गए हैं | संसार में सत्पुरुष दुखी और दुष्ट पुरुष सुखी हो रहे हैं | इस समय जिस पुरुष का धैर्य बना रहे, वही ज्ञानी और पंडित है | अब पृथ्वी छूने योग्य और देख ने योग्य भी नहीं रह गई है | अब किसी को पुत्रो के साथ तुम्हारा दर्शन नहीं होता है |...Continued
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श्रीमद्भागवत गीता महात्म्य
23rd August 2024
प्रथम अध्याय: देवर्षि नारद की भक्ति से भटे...Continuation
इस तहर कलयुग के दोषों को देख कर नारदजी यमुनाजी के तट पर पहुँचे जहाँ श्रीकृष्ण की लीलाएं हो चुकी है| तभी नारदजी ने वहाँ देखा की एक युवती स्त्री खिन्न मन से बैठी थी और उसके पास दो वृद्ध पुरष अचेत अवस्था मे पड़े थे| वह युवती कभी उन्हें चेत करने का प्रयत्न करती तो कभी उनके आगे रोने लगती थी| उनके चारो ओर सैकड़ो स्त्रियां पंखा झल रहे थी और बार- बार समझती जा रहे थी| ये सब नारदजी ने देख कर उत्साह वश उसके पास चले गए| नारदजी को देखकर युवती ने बड़ी व्याकुलता से कहा-हे महात्माजी, आप के दर्शन संसार के सभी पापों को नाश कर देते हैं| मनुष्य का बड़ा भाग्य होता है तभी आप के दर्शन होते हैं| आप के वचनों से मेरे दुख को भी कुछ शांति मिलेगी| ये सुन कर नारदजी ने युवती से कहा कि तुम कौन हो और ये दोनों पुरुष कौन है और ये सब देविया कौन है? तुम हमें विस्तार से अपने दुख का कारण बताओ|
युवती बताती है कि उसका नाम भक्ति है और ये दो पुरुष-ज्ञान और वैराग्य मेरे पुत्र हैं| ये सब देविया गंगाजी आदि नादिया है जो मेरे सेवा करने के लिए आती है| फिर भक्ति अपनी कथा सुनाती है:-
मैं द्रविड़ देश में उत्पन्न हुआ, कर्नाटक में बढ़ गया, महाराष्��्र में सम्मान हुआ, परंतु गुजरात में घोर कलयुग के कारण मुझे बुढ़ापे ने घेर लिया| .....Continued
PK
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श्रीमद्भागवत गीता महात्म्य
22nd August 2024
प्रथम अध्याय: देवर्षि नारद की भक्ति से भटे...Continuation
इस आधाय मे नारद जी ने कैसे सनकादि के संयोग से भगवत शास्त्र की प्राप्ति हुईस कथा का वर्णन किया गया है:-
एक दिन विशालपुरी मई चारो ऋषि सत्संग के लिए आये और उन्होंने नारद जी को उदास देखकर उसका कारण पूछा| तब नारदजी ने कहा की वो पृथ्वी को सर्वोतम लोक समझ कर पुष्कर,प्रयाग, कशी, गोदावरी, हरिद्वार, कुरक्षत्रे, श्रीरंग और सेतुबन्ध आदि तीर्थो पर विचरने गए पर कही भी संतोष देने वाली शांति नहीं मिली| इसी समय अधर्म और कलयुग ने सारी पृथ्वी को पीडित कर रखा था| नारदजी ने बताया कि सत्य, तप, दया, दान कुछ भी नहीं है और जीव केवल अपना पेट पालने मे लगे हुए है| मनुष्य असत्यभाषी , आलसी, मंदबुद्धि, भाग्यहीन, उपद्रव ग्रस्त हो गए है| साधु संत पाखंडी हो गए है| ....Continued
PK
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श्रीमद्भागवत गीता महात्म्य
20th August 2024
प्रथम अध्याय: देवर्षि नारद की भक्ति से भटे
सच्चिदानंद स्वरुप भगवान् श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं, जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधीभौतिक - तीनो प्रकार की तापों का नाश करने वाले हैं।
शास्त्रों में तीन प्रकार के दु:ख बताए गए हैं-आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक। आधिभौतिक दु:ख अत्याचारी आदि प्राणियों से उत्पन्न होते हैं। आधिदैविक दु:ख आंधी, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न होते हैं। आध्यात्मिक दु:खों मन, इंद्रिय, शरीर आदि के दु:खों का समावेश होता है।
सूतजी ने कहा - शौनकजी! जिस इंसान के हृदय में भगवान का प्रेम है और जो जन्म मुत्यु के भय का नाश कर देता है, जो भक्ति के प्रभाव को बढ़ाता है और जो भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता का कारण है, मैं तुम्हें वह साधन बतलाता हूँ- वह है श्रीमद भागवत शास्त्र| मन कि शुद्धि के लिये इससे बढ़कर कोई साधन नहीं है।जब मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर का पुण्य उदय होता है, तभी उसे इस भागवतशास्त्र की प्राप्ति होती है और यह देवताओं को भी दुर्लभ है|
राजा परीक्षित ने इसी श्रीमद्भागवत के श्रवण से ही मुक्ति प्राप्त की थी और इस कलयुग मे भगवत शास्त्र को पढ़ने-सुनने से तत्काल मोक्ष देने वाला निश्चय किया|
PK
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भागवत गीता और श्रीमद्भागवतम् पुराण में अंतर
27th March 2024
भागवत गीता और श्रीमद्भागवतम् पुराण ये दोनों ग्रंथ हर सनातनी को पढ़ना चाहिए | लेकिन बहुत लोगो को इस का अंतर नहीं पता है | भागवत गीता मतलब भगवान की बात (भागवत उपदेश) और भागवत गीता महाभारत का एक छोटा सा अंग है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म उपदेश देते हैं। इस में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।
श्रीमद्भागवत पुराण का अर्थ है भगवत इदं भागवतम् यानी जो भगवान का है वही भागवत है। श्रीमद्भागवत पुराण भगवान का ही एक स्वरूप है। जिस से हममें पता चलता है कि भगवान का चरित्र कैसा है। भगवान की लीला कैसी है और भगवान का स्वभाव कैसा है। श्रीमद्भागवत पुराण में 18000 श्लोक है।
जब भगवान इस धराधाम से जाने लगे, तो उद्धव जी ने कहा- प्रभु मत जाइए, धर्म की गति-मति विकृत हो जाएगी। निर्गुण उपासना बहुत कठिन है। आप तो बस यहीं रहिए, तब भगवान ने श्रीउद्धव जी से कहा, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा। यहीं रहूंगा, ऐसा कहते हुए भगवान श्रीमद्भागवत महापुराण में प्रविष्ट हो गए । इसलिए भागवत महापुराण को भगवान का साक्षात स्वरूप माना गया है।
PK
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33 करोड़ देवी देवता |
23rd March 2024
एक प्रश्न जो कई बार चर्च का विषय रहा है- 33 करोड़ देवी देवता | यह सब जानते है की हिन्दू धर्म मे बहुत सारे देवी देवता की पूजा की जाती है | इस ब्लॉग मे आज हम 33 करोड़ देवी देवता का सच जानने की कोशिश करेंगे |
सनातन धर्म बहुत पुराना धर्म है और इसके धर्म ग्रन्थ भी बहुत प्रचीन है | इन ग्रंथो मे समय समय पर बातें जोड़ी गयी और बहुत सी बातो का अनुवाद भी किया गया | इसी कारण बहुत से भ्रम भी उत्पन हुए और 33 करोड़ देवी देवता का विषय इसी का परिणाम है | सनातन धर्म के कोई भी ग्रन्थ में 33 करोड़ देवी देवत का उल्लेख नहीं किया गया है, अपितु 33 कोटि का उल्लेख किया गया है | हमारी वर्णवाली मे कई शब्दों के दो मतलब है जैसे कोटि के दो मतलब है- प्रकार और करोड़ | हिंदी जाने वाले लोग को यह पता होगा की कोटि को ही करोड़ बोला जाता है |
यदि हम 33 कोटि देवी देवत की बात करते है तो इसमे 8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल है | कई जगहों पर इन्द्र इन्द्र इन्द्र एवं प्रजापति के स्थान पर तो 2 अश्विनी कुमार को कोटि में शामिल किया गया है | तो करोड़ के नाम इस प्रकार है:-
8 वसुओं के नाम- 1. आप 2. ध्रुव 3. सोम 4. धर 5. अनिल 6. अनल 7. प्रत्यूष 8. प्रभाष
11 रुद्रों के नाम- 1. मनु 2. मन्यु 3. शिव 4. महत 5. ऋतुध्वज 6. महिनस 7. उम्रतेरस 8. काल 9. वामदेव 10. भव 11. धृत-ध्वज
12 आदित्य के नाम- 1. अंशुमान 2. अर्यमन 3. इंद्र 4. त्वष्टा 5. धातु 6. पर्जन्य 7. पूषा 8. भग 9. मित्र 10. वरुण 11. वैवस्वत 12. विष्णु
इन सभी देवताओं से 33 कोटि देवताओं की संख्या पूर्ण होती है | कोटि शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है प्राकार और कोटि शब्द को बहुत जगह करोड़ भी बोला गया है |
हिंदू धर्म में 33 करोड़ नहीं बल्की 33 कोटि अर्थात प्रकार के देवी देवता हैं |
PK
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First Blog
July 1, 2023, Bhopal
Hello Friends,
This is my first blog. I am not a writer, but the idea of writing a blog has been on my mind since watching the movie The Kerala Story. I named my blog Bhagavad Gita because, being a Hindu, I realized that I wasn't very familiar with Sanatan Dharma. This movie inspired me to delve deeper into Hinduism. So, I started reading the Bhagavad Gita, and it was a wonderful experience to read and try to understand it.
I have started looking at my life in a different way, and I feel happier and calmer. I have never experienced this before.
My blogs will be in Hindi because I believe we can connect with the Bhagavad Gita more deeply and truly feel its essence in our native language.
PK
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