#श्लोकों का हिन्दी अनुवाद
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#गरिमा_गीता_की_Part_90
शास्त्र विधि को त्याग कर साधना करने वाले भगवानों के लिए दुःखदाई तथा नरक के अधिकारी।। Part B
गीता अध्याय 17 के कुछ श्लोकों का हिन्दी अनुवाद
गीता अध्याय 17 श्लोक 1-10:-
अध्याय 17 श्लोक 1 का अनुवाद: श्लोक 1 में अर्जुन ने जानना चाहा कि हे कृष्ण! जो मनुष्य शास्त्रविधिको त्यागकर श्रद्धासे युक्त हुए देवादिका पूजन करते हैं। उनकी स्थिति फिर कौन-सी सात्विकी है अथवा राजसी तामसी?(1)
गीता ज्ञान देने वाले काल ब्रह्म ने उत्तर दिया:-
अध्याय 17 श्लोक 2 का अनुवाद: मनुष्यों की वह स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी ऐसे तीनों प्रकार की ही होती है। उस अज्ञान अंधकाररूप जंजाल को सुन।(2)
अध्याय 17 श्लोक 3 का अनुवाद: हे भारत! सभी की श्रद्धा उनके अन्तःकरण के अनुरूप होती है। यह व्यक्ति श्रद्धामय है इसलिये जो पुरुष जैसी श्रद्धावाला है, वह स्वयं वास्तव में वही है।(3)
अध्याय 17 श्लोक 4 का अनुवाद: सात्विक पुरुष श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी आदि देवताओं को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसोंको तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं वे प्रेत और भूतगणों को पूजते हैं तथा मुख्य रूप से श्री शिव जी को भी इष्ट मानते हैं।(4)
अध्याय 17 श्लोक 5 का केवल हिन्दी अनुवाद: जो मनुष्य शास्त्रविधिसे रहित केवल मन माना घोर तपको तपते हैं तथा पाखण��ड और अहंकारसे युक्त एवं कामना के आसक्ति और भक्ति बल के अभिमान से भी युक्त हैं।(5)
अध्याय 17 श्लोक 6 का अनुवाद: शरीर में रहने वाले प्राणियों के मुखिया - ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा गणेश व प्रकृति को व मुझे तथा इसी प्रकार शरीर के हृदय कमल में जीव के साथ रहने वाले पूर्ण परमात्मा को परेशान करने वाले उनको अज्ञानियोंको राक्षसस्वभाववाले ही जान। गीता अध्याय 13 श्लोक 17 तथा अध्याय 18 श्लोक 61 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा विशेष रूप से सर्व प्राणियों के हृदय में स्थित है।(6)
अध्याय 17 श्लोक 7 का अनुवाद: भोजन भी सबको अपनी अपनी प्रकृतिके अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है इसलिए वैसे ही यज्ञ तप और दान भी तीन-तीन प्रकारके होते हैं उनके इस भेदको तू मुझसे सुन।(7)
अध्याय 17 श्लोक 8 का अनुवाद: आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीतिको बढ़ानेवाले रसयुक्त चिकने और स्थिर रहनेवाले तथा स्वभावसेही मनको प्रिय ऐसे आहार अर्थात् भोजन करनेके पदार्थ सतोगुण प्रधान अर्थात् विष्णु के उपासक को जिनका विष्णु उपास्य देव है। उनको ऊपर लिखे आहार करना पसंद होते हैं।(8)
अध्याय 17 श्लोक 9 का अनुवाद: कडुवे, खट्टे, लवणयुक्त बहुत गरम, तीखे, रूखे, दाहकारक और दुःख चिन्ता तथा रोगोंको उत्पन्न करनेवाले आहार राजस पुरुषको रजोगुण प्रधान अर्थात् जिनका ब्रह्मा उपास्य देव है उनको ऊपर लिखे आहार स्वीकार होते हैं। क्योंकि हिरणाकशिपु राक्षस ने ब्रह्मा की उपासना की थी।(9)
अध्याय 17 श्लोक 10 का अनुवाद: जो भोजन अधपका रसरहित दुर्गन्धयुक्त बासी और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र भी है वह भोजन तामस पुरुषको प्रिय होता है। तमोगुण प्रधान व्यक्तियों का उपास्य देव शिव है तथा वे उनसे निम्न स्तर के भूत प्रेतों को पूजते हैं उनको आहार ऊपर लिखित पसंद होता है। (10)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद
विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद
विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्।अश्वश्चेत् धावने वीरो भारस्य वहने ��रः॥ श्लोक का पदच्छेद और शब्दार्थ विचित्रे – विचित्र स्वरूप वालेखलु – सचमुचसंसारे – दुनिया मेंन – नहींअस्ति – हैकिञ्चित् – कोई भीनिरर्थकम् – व्यर्थम्। बेकारअश्वः – घोटकः। वाजी। हयः।चेत् – यदिधावने – दौड़ने मेंवीरः – विशेष कौशलयुक्त, बलवान्भारस्य – बोझ केवहने – ढोने मेंखरः – रासभः। गर्दभः। गधा श्लोक का…
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लखनऊ | 30 अगस्त |
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर उर्दू के अज़ीम शायर व नाज़िम पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी द्धारा देवनागरी लिपि (हिंदी) में रचित पुस्तक उर्दू शायरी में गीता का ऑडियो वर्जन आज यूट्यूब (YouTube) पर रिलीज़ हुआ l हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल की परिकल्पना के तहत भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा ने आवाज़ और संगीत विवेक प्रकाश ने दिया है l ऑडियो वर्जन ट्रस्ट के YouTube चैनल youtube.com/c/HelpUTrust पर उपलब्ध है l ऑडियो में भगवद्गीता के 18 अध्याय के 18 ट्रैक हैं और सम्पूर्ण संस्करण 452 मिनट का है l साहित्य, आध्यात्म, संस्कृति एवं राष्ट्रीय सौहार्द के संवर्धन एवं उत्थान के मद्देनज़र ट्रस्ट ने इसे निःशुल्क उपलब्ध कराया है l ट्रैक के प्रारम्भ में अनवर जलालपुरी के स्वर में प्रत्येक अध्याय का संक्षिप्त विवरण है तथा भगवद्गीता के 700 श्लोक जिन्हें अनवर जलालपुरी ने उर्दू शायरी के 1761 अशआर में भावान्तरित किया है l
इस ऑडियो वर्जन के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी भावनाएं इस प्रकार प्रकट की हैं, “हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट' के माध्यम से श्री अनवर जलालपुरी द्धारा रचित 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण तैयार किए जाने के बारे में जानकार प्रसन्नता हुई है l श्री अनूप जलोटा जी के स्वर से सजने वाला यह संस्करण निश्चय ही कर्णप्रिय और मनोहारी होगा l मुझे आशा है कि 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण से अधिकाधिक लोगों तक इसके अमृत वचनों का प्रसार होगा l इस महत्वपूर्ण कार्य से जुड़े सभी लोगों को बधाई और इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएं l”
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है, भगवद्गीता को शायरी में ढालना एक बहुत बड़ा काम है l वर्तमान परिवेश में, गीता पढ़ के आदमी साहसी बनता है l जिन लोगों का मनोबल कम हो जाता है गीता उन्हें शक्ति प्रदान करती है l गीता ने समाज को रास्ता दिखाया है l जितनी बार गीता पढ़ी जाती है उतनी ही सारगर्मित लगती है l गीता श्लोक को अनवर जलालपुरी ने अपनी शायरी में सरल शब्दों में पेश किया है l यह आम जनता में प्रचलित होगी l यह प्रयास समाज को सार्थक दिशा देने का काम करेगा l समाज को जोड़ने का काम करेगा l
डॉ० दिनेश शर्मा का विचार है, गीता का उपदेश संस्कृत भाषा में है, जैसे रामायण की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की है l मैं समझता हूँ अनवर जलालपुरी साहब ने आम बोलचाल की भाषा में गीता के फ़लसफ़े को पेश किया है l एक व्यक्ति कर्मयोगी बने इसके लिये गीता के उपदेश में तमाम श्लोकों का वर्णन जलालपुरी साहब ने अपने शब्दों में किया है l इसके लिये वह साधुवाद के पात्र हैं l
महाकवि डॉ० गोपाल दास 'नीरज' ने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था कि, “मैनें गीता के हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं के कई अनुवाद पढ़े हैं लेकिन जैसा अनुवाद अनवर जलालपुरी ने किया है वैसा मुझे अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिला l उर्दू शायरी में गीता इतनी बोधगम्य सहज और सरल है जो ज़ुबां पर तुरंत बैठ जाती है l सबसे बड़ी सार्थकता गीता की यही होगी कि, वो किताब में ही न होकर लोगों की ज़ुबां पर भी हो, जिसे वो गायेंगे भी गुनगुनायेंगे भी l
योगगुरु स्वामी रामदेव कहते हैं, पुस्तक के कुछ अंश पढ़ने पर मुझे बहुत खुशी हुई l मरहूम शायर ने लिखा है कि 'गीता क़दीम हिन्दुस्तान की बेइंतिहा मक़बूल किताब है l सारे हिन्दुस्तान के आवाम पर इसके फलसफे का बड़ा गहरा असर है l' अनवर साहब ने वास्तव में भगवद्गीता का गहराई से अध्ययन किया था l इस पवित्र ग्रन्थ से प्रेरणा प्राप्त कर उन्होनें 'उर्दू शायरी में गीता' की रचना कर जीवन की जटिल समस्याओं का हल साधारण हिन्दुस्तानी भाषा में आमजन के लिए प्रस्तुत किया l
श्रीराम कथावाचक मोरारी बापू बताते हैं, अनवर जलालपुरी ने सम्पूर्ण गीता को बेहद आकर्षक ढंग से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है l मेरा यक़ीन है कि 'उर्दू शायरी में गीता' मदीना को काशी तक ले आएगी और काशी को मदीना तक ले जाएगी l यह किताब दोनों मज़हब की दूरी ख़त्म कर सकती है l 'हम इकट्ठे होते हैं लेकिन एक नहीं होते' l संस्कृत उर्दू में उतरे, उर्दू संस्कृत में उतरे, ये 21वीं सदी की ज़रूरत है l
भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा कहते हैं, हमने हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के ज़रिये गीता के उर्दू तर्जुमा के 1761 अशआर को अपनी आवाज़ दी l अक्सर तर्जुमे ऐसे होते हैं कि उनमें असल मज़मून के अर्थ नहीं आ पाते हैं, लेकिन अनवर जलालपुरी ने जो तर्जुमा किया उसमें ऐसी कमी ज़रा भी नहीं थी l इसीलिए हमने उसे रिकॉर्ड किया l मुझे उम्मीद है कि शायरी में श्रीमद्भगवद्गीता की संगीतमय प्रस्तुति हर उम्र के लोगों को पसंद आएगी l
वयोवृद्ध कवि उदय प्रताप सिंह का कहना है, गीता का दार्शनिक पक्ष जन सुलभ शैली में जन साधारण को उपलब्ध कराना काम जटिल ज़रूर है, साथ ही पवित्र भी है और आवश्यक भी l गीता का मूल संदेश कर्म करो फल की चिंता मत करो l संसार से दूर का लगाव रखना, सुख दुख में एक सा व्यवहार तथा आत्मा की अजरता, अमरता की प्रकृति से भौ��िक शरीर की नश्वरता से तुलना, अनवर जलालपुरी साहब ने अपने शेरों में बखूबी की है l
डॉ० कुमार विश्वास कहते हैं, उर्दू शायरी गीता में, गीता के विशद और व्यापक ज्ञान को अपनी सारगर्भित शायरी में बेहद सलीक़े से ढालने का काम बड़े भाई मरहूम अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l क़ौमी यकजहती के एक सशक्त शाब्दिक-सिपाही, अज़ीम शायर व नाज़िम थे अनवर जलालपुरी l
अनवर जलालपुरी के पुत्र शहरयार जलालप��री कहते हैं कि, सबसे पहले तो मैं ‘उर्दू शायरी में गीता’ को यूट्यूब पर रिलीज़ करने के लिये हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल जी का धन्यवाद करता हूँ l मेरे पिता पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी साहब की उर्दू शायरी में गीता को पढ़कर यह लगता है कि, इस महान पुस्तक के अन्दर जो ज्ञान का भण्डार है वह जन सामान्य की समझ में आसानी से आ जाये, इस का प्रयास श्री अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l अनवर जलालपुरी साहब पूरे जीवन हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा हिन्दी-उर्दू को करीब लाने का काम करते रहे यही भाव गीता में भी पाया जाता है l गीता हमें कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग का सन्देश देती है अर्थात गीता सभी को जोड़ने का कार्य करती है l गीता का दर्शन सदैव प्रासंगिक है l
ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल का कहना है कि, अनवर जलालपुरी जी ने भगवद्गीता के 18 अध्यायों के सभी 700 श्लोकों को 1761 अशआर में उर्दू काव्य में प्रस्तुत किया l साम्प्रदायिक एवं भावनात्मक सौहार्द तथा राष्ट्रीय एकीकरण के प्रति जलालपुरी जी के सुझाव एवं प्रेरणा को देखते हुए यह पहल उत्कृष्ट है l जलालपुरी जी का यह मत रहा है कि गीता आमजन में इंसानियत का बोध कराती है, "गीता, उपनिषद और क़ुरान 'मानव विरासत' से किसी भी प्रकार से कमतर नहीं है तथा इन्हें हर क़ीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए तथा धर्म का लिहाज़ किये बिना गीता में अन्तर्निहित संदेश को समस्त मानवजाति के बीच प्रसारित करने की प्रबल आवश्यकता है l"
उर्दू शायरी में गीता के 18 अध्याय निम्नलिखित YouTube Link पर उपलब्ध हैं:
https://www.youtube.com/playlist?list=PL7aGD41D00hALNqQTXp4B0y2-1OrdM3-G
#उर्दूशायरीमेंगीता
#UrduShayariMeinGita
#AnwarJalalpuri
#AnupJalota
#VivekPrakash
#HelpUTrust
#HelpUEducationalandCharitableTrust
#HarshVardhanAgarwal
www.helputrust.org
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लखनऊ | 30 अगस्त |
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर उर्दू के अज़ीम शायर व नाज़िम पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी द्धारा देवनागरी लिपि (हिंदी) में रचित पुस्तक उर्दू शायरी में गीता का ऑडियो वर्जन आज यूट्यूब (YouTube) पर रिलीज़ हुआ l हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल की परिकल्पना के तहत भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा ने आवाज़ और संगीत विवेक प्रकाश ने दिया है l ऑडियो वर्जन ट्रस्ट के YouTube चैनल youtube.com/c/HelpUTrust पर उपलब्ध है l ऑडियो में भगवद्गीता के 18 अध्याय के 18 ट्रैक हैं और सम्पूर्ण संस्करण 452 मिनट का है l साहित्य, आध्यात्म, संस्कृति एवं राष्ट्रीय सौहार्द के संवर्धन एवं उत्थान के मद्देनज़र ट्रस्ट ने इसे निःशुल्क उपलब्ध कराया है l ट्रैक के प्रारम्भ में अनवर जलालपुरी के स्वर में प्रत्येक अध्याय का संक्षिप्त विवरण है तथा भगवद्गीता के 700 श्लोक जिन्हें अनवर जलालपुरी ने उर्दू शायरी के 1761 अशआर में भावान्तरित किया है l
इस ऑडियो वर्जन के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी भावनाएं इस प्रकार प्रकट की हैं, “हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट' के माध्यम से श्री अनवर जलालपुरी द्धारा रचित 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण तैयार किए जाने के बारे में जानकार प्रसन्नता हुई है l श्री अनूप जलोटा जी के स्वर से सजने वाला यह संस्करण निश्चय ही कर्णप्रिय और मनोहारी होगा l मुझे आशा है कि 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण से अधिकाधिक लोगों तक इसके अमृत वचनों का प्रसार होगा l इस महत्वपूर्ण कार्य से जुड़े सभी लोगों को बधाई और इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएं l”
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है, भगवद्गीता को शायरी में ढालना एक बहुत बड़ा काम है l वर्तमान परिवेश में, गीता पढ़ के आदमी साहसी बनता है l जिन लोगों का मनोबल कम हो जाता है गीता उन्हें शक्ति प्रदान करती है l गीता ने समाज को रास्ता दिखाया है l जितनी बार गीता पढ़ी जाती है उतनी ही सारगर्मित लगती है l गीता श्लोक को अनवर जलालपुरी ने अपनी शायरी में सरल शब्दों में पेश किया है l यह आम जनता में प्रचलित होगी l यह प्रयास समाज को सार्थक दिशा देने का काम करेगा l समाज को जोड़ने का काम करेगा l
डॉ० दिनेश शर्मा का विचार है, गीता का उपदेश संस्कृत भाषा में है, जैसे रामायण की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की है l मैं समझता हूँ अनवर जलालपुरी साहब ने आम बोलचाल की भाषा में गीता के फ़लसफ़े को पेश किया है l एक व्यक्ति कर्मयोगी बने इसके लिये गीता के उपदेश में तमाम श्लोकों का वर्णन जलालपुरी साहब ने अपने शब्दों में किया है l इसके लिये वह साधुवाद के पात्र हैं l
महाकवि डॉ० गोपाल दास 'नीरज' ने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था कि, “मैनें गीता के हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं के कई अनुवाद पढ़े हैं लेकिन जैसा अनुवाद अनवर जलालपुरी ने किया है वैसा मुझे अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिला l उर्दू शायरी में गीता इतनी बोधगम्य सहज और सरल है जो ज़ुबां पर तुरंत बैठ जाती है l सबसे बड़ी सार्थकता गीता की यही होगी कि, वो किताब में ही न होकर लोगों की ज़ुबां पर भी हो, जिसे वो गायेंगे भी गुनगुनायेंगे भी l
योगगुरु स्वामी रामदेव कहते हैं, पुस्तक के कुछ अंश पढ़ने पर मुझे बहुत खुशी हुई l मरहूम शायर ने लिखा है कि 'गीता क़दीम हिन्दुस्तान की बेइंतिहा मक़बूल किताब है l सारे हिन्दुस्तान के आवाम पर इसके फलसफे का बड़ा गहरा असर है l' अनवर साहब ने वास्तव में भगवद्गीता का गहराई से अध्ययन किया था l इस पवित्र ग्रन्थ से प्रेरणा प्राप्त कर उन्होनें 'उर्दू शायरी में गीता' की रचना कर जीवन की जटिल समस्याओं का हल साधारण हिन्दुस्तानी भाषा में आमजन के लिए प्रस्तुत किया l
श्रीराम कथावाचक मोरारी बापू बताते हैं, अनवर जलालपुरी ने सम्पूर्ण गीता को बेहद आकर्षक ढंग से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है l मेरा यक़ीन है कि 'उर्दू शायरी में गीता' मदीना को काशी तक ले आएगी और काशी को मदीना तक ले जाएगी l यह किताब दोनों मज़हब की दूरी ख़त्म कर सकती है l 'हम इकट्ठे होते हैं लेकिन एक नहीं होते' l संस्कृत उर्दू में उतरे, उर्दू संस्कृत में उतरे, ये 21वीं सदी की ज़रूरत है l
भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा कहते हैं, हमने हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के ज़रिये गीता के उर्दू तर्जुमा के 1761 अशआर को अपनी आवाज़ दी l अक्सर तर्जुमे ऐसे होते हैं कि उनमें असल मज़मून के अर्थ नहीं आ पाते हैं, लेकिन अनवर जलालपुरी ने जो तर्जुमा किया उसमें ऐसी कमी ज़रा भी नहीं थी l इसीलिए हमने उसे रिकॉर्ड किया l मुझे उम्मीद है कि शायरी में श्रीमद्भगवद्गीता की संगीतमय प्रस्तुति हर उम्र के लोगों को पसंद आएगी l
वयोवृद्ध कवि उदय प्रताप सिंह का कहना है, गीता का दार्शनिक पक्ष जन सुलभ शैली में जन साधारण को उपलब्ध कराना काम जटिल ज़रूर है, साथ ही पवित्र भी है और आवश्यक भी l गीता का मूल संदेश कर्म करो फल की चिंता मत करो l संसार से दूर का लगाव रखना, सुख दुख में एक सा व्यवहार तथा आत्मा की अजरता, अमरता की प्रकृति से भौतिक शरीर की नश्वरता से तुलना, अनवर जलालपुरी साहब ने अपने शेरों में बखूबी की है l
डॉ० कुमार विश्वास कहते हैं, उर्दू शायरी गीता में, गीता के विशद और व्यापक ज्ञान को अपनी सारगर्भित शायरी में बेहद सलीक़े से ढालने का काम बड़े भाई मरहूम अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l क़ौमी यकजहती के एक सशक्त शाब्दिक-सिपाही, अज़ीम शायर व नाज़िम थे अनवर जलालपुरी l
अनवर जलालपुरी के पुत्र शहरयार जलालपुरी कहते हैं कि, सबसे पहले तो मैं ‘उर्दू शायरी में गीता’ को यूट्यूब पर रिलीज़ करने के लिये हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबं�� न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल जी का धन्यवाद करता हूँ l मेरे पिता पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी साहब की उर्दू शायरी में गीता को पढ़कर यह लगता है कि, इस महान पुस्तक के अन्दर जो ज्ञान का भण्डार है वह जन सामान्य की समझ में आसानी से आ जाये, इस का प्रयास श्री अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l अनवर जलालपुरी साहब पूरे जीवन हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा हिन्दी-उर्दू को करीब लाने का काम करते रहे यही भाव गीता में भी पाया जाता है l गीता हमें कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग का सन्देश देती है अर्थात गीता सभी को जोड़ने का कार्य करती है l गीता का दर्शन सदैव प्रासंगिक है l
ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल का कहना है कि, अनवर जलालपुरी जी ने भगवद्गीता के 18 अध्यायों के सभी 700 श्लोकों को 1761 अशआर में उर्दू काव्य में प्रस्तुत किया l साम्प्रदायिक एवं भावनात्मक सौहार्द तथा राष्ट्रीय एकीकरण के प्रति जलालपुरी जी के सुझाव एवं प्रेरणा को देखते हुए यह पहल उत्कृष्ट है l जलालपुरी जी का यह मत रहा है कि गीता आमजन में इंसानियत का बोध कराती है, "गीता, उपनिषद और क़ुरान 'मानव विरासत' से किसी भी प्रकार से कमतर नहीं है तथा इन्हें हर क़ीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए तथा धर्म का लिहाज़ किये बिना गीता में अन्तर्निहित संदेश को समस्त मानवजाति के बीच प्रसारित करने की प्रबल आवश्यकता है l"
उर्दू शायरी में गीता के 18 अध्याय निम्नलिखित YouTube Link पर उपलब्ध हैं:
https://www.youtube.com/playlist?list=PL7aGD41D00hALNqQTXp4B0y2-1OrdM3-G
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर उर्दू के अज़ीम शायर व नाज़िम पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी द्धारा देवनागरी लिपि (हिंदी) में रचित पुस्तक उर्दू शायरी में गीता का ऑडियो वर्जन आज यूट्यूब (YouTube) पर रिलीज़ हुआ l हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल की परिकल्पना के तहत भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा ने आवाज़ और संगीत विवेक प्रकाश ने दिया है l ऑडियो वर्जन ट्रस्ट के YouTube चैनल youtube.com/c/HelpUTrust पर उपलब्ध है l ऑडियो में भगवद्गीता के 18 अध्याय के 18 ट्रैक हैं और सम्पूर्ण संस्करण 452 मिनट का है l साहित्य, आध्यात्म, संस्कृति एवं राष्ट्रीय सौहार्द के संवर्धन एवं उत्थान के मद्देनज़र ट्रस्ट ने इसे निःशुल्क उपलब्ध कराया है l ट्रैक के प्रारम्भ में अनवर जलालपुरी के स्वर में प्रत्येक अध्याय का संक्षिप्त विवरण है तथा भगवद्गीता के 700 श्लोक जिन्हें अनवर जलालपुरी ने उर्दू शायरी के 1761 अशआर में भावान्तरित किया है l
इस ऑडियो वर्जन के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी भावनाएं इस प्रकार प्रकट की हैं, “हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट' के माध्यम से श्री अनवर जलालपुरी द्धारा रचित 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण तैयार किए जाने के बारे में जानकार प्रसन्नता हुई है l श्री अनूप जलोटा जी के स्वर से सजने वाला यह संस्करण निश्चय ही कर्णप्रिय और मनोहारी होगा l मुझे आशा है कि 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण से अधिकाधिक लोगों तक इसके अमृत वचनों का प्रसार होगा l इस महत्वपूर्ण कार्य से जुड़े सभी लोगों को बधाई और इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएं l”
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है, भगवद्गीता को शायरी में ढालना एक बहुत बड़ा काम है l वर्तमान परिवेश में, गीता पढ़ के आदमी साहसी बनता है l जिन लोगों का मनोबल कम हो जाता है गीता उन्हें शक्ति प्रदान करती है l गीता ने समाज को रास्ता दिखाया है l जितनी बार गीता पढ़ी जाती है उतनी ही सारगर्मित लगती है l गीता श्लोक को अनवर जलालपुरी ने अपनी शायरी में सरल शब्दों में पेश किया है l यह आम जनता में प्रचलित होगी l यह प्रयास समाज को सार्थक दिशा देने का काम करेगा l समाज को जोड़ने का काम करेगा l
डॉ० दिनेश शर्मा का विचार है, गीता का उपदेश संस्कृत भाषा में है, जैसे रामायण की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की है l मैं समझता हूँ अनवर जलालपुरी साहब ने आम बोलचाल की भाषा में गीता के फ़लसफ़े को पेश किया है l एक व्यक्ति कर्मयोगी बने इसके लिये गीता के उपदेश में तमाम श्लोकों का वर्णन जलालपुरी साहब ने अपने शब्दों में किया है l इसके लिये वह साधुवाद के पात्र हैं l
महाकवि डॉ० गोपाल दास 'नीरज' ने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था कि, “मैनें गीता के हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं के कई अनुवाद पढ़े हैं लेकिन जैसा अनुवाद अनवर जलालपुरी ने किया है वैसा मुझे अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिला l उर्दू शायरी में गीता इतनी बोधगम्य सहज और सरल है जो ज़ुबां पर तुरंत बैठ जाती है l सबसे बड़ी सार्थकता गीता की यही होगी कि, वो किताब में ही न होकर लोगों की ज़ुबां पर भी हो, जिसे वो गायेंगे भी गुनगुनायेंगे भी l
योगगुरु स्वामी रामदेव कहते हैं, पुस्तक के कुछ अंश पढ़ने पर मुझे बहुत खुशी हुई l मरहूम शायर ने लिखा है कि 'गीता क़दीम हिन्दुस्तान की बेइंतिहा मक़बूल किताब है l सारे हिन्दुस्तान के आवाम पर इसके फलसफे का बड़ा गहरा असर है l' अनवर साहब ने वास्तव में भगवद्गीता का गहराई से अध्ययन किया था l इस पवित्र ग्रन्थ से प्रेरणा प्राप्त कर उन्होनें 'उर्दू शायरी में गीता' की रचना कर जीवन की जटिल समस्याओं का हल साधारण हिन्दुस्तानी भाषा में आमजन के लिए प्रस्तुत किया l
श्रीराम कथावाचक मोरारी बापू बताते हैं, अनवर जलालपुरी ने सम्पूर्ण गीता को बेहद आकर्षक ढंग से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है l मेरा यक़ीन है कि 'उर्दू शायरी में गीता' मदीना को काशी तक ले आएगी और काशी को मदीना तक ले जाएगी l यह किताब दोनों मज़हब की दूरी ख़त्म कर सकती है l 'हम इकट्ठे होते हैं लेकिन एक नहीं होते' l संस्कृत उर्दू में उतरे, उर्दू संस्कृत में उतरे, ये 21वीं सदी की ज़रूरत है l
भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा कहते हैं, हमने हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के ज़रिये गीता के उर्दू तर्जुमा के 1761 अशआर को अपनी आवाज़ दी l अक्सर तर्जुमे ऐसे होते हैं कि उनमें असल मज़मून के अर्थ नहीं आ पाते हैं, लेकिन अनवर जलालपुरी ने जो तर्जुमा किया उसमें ऐसी कमी ज़रा भी नहीं थी l इसीलिए हमने उसे रिकॉर्ड किया l मुझे उम्मीद है कि शायरी में श्रीमद्भगवद्गीता की संगीतमय प्रस्तुति हर उम्र के लोगों को पसंद आएगी l
वयोवृद्ध कवि उदय प्रताप सिंह का कहना है, गीता का दार्शनिक पक्ष जन सुलभ शैली में जन साधारण को उपलब्ध कराना काम जटिल ज़रूर है, साथ ही पवित्र भी है और आवश्यक भी l गीता का मूल संदेश कर्म करो फल की चिंता मत करो l संसार से दूर का लगाव रखना, सुख दुख में एक सा व्यवहार तथा आत्मा की अजरता, अमरता की प्रकृति से भौतिक शरीर की नश्वरता से तुलना, अनवर जलालपुरी साहब ने अपने शेरों में बखूबी की है l
डॉ० कुमार विश्वास कहते हैं, उर्दू शायरी गीता में, गीता के विशद और व्यापक ज्ञान को अपनी सारगर्भित शायरी में बेहद सलीक़े से ढालने का काम बड़े भाई मरहूम अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l क़ौमी यकजहती के एक सशक्त शाब्दिक-सिपाही, अज़ीम शायर व नाज़िम थे अनवर जलालपुरी l
अनवर जलालपुरी के पुत्र शहरयार जलालपुरी कहते हैं कि, सबसे पहले तो मैं ‘उर्दू शायरी में गीता’ को यूट्यूब पर रिलीज़ करने के लिये हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल जी का धन्यवाद करता हूँ l मेरे पिता पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी साहब की उर्दू शायरी में गीता को पढ़कर यह लगता है क��, इस महान पुस्तक के अन्दर जो ज्ञान का भण्डार है वह जन सामान्य की समझ में आसानी से आ जाये, इस का प्रयास श्री अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l अनवर जलालपुरी साहब पूरे जीवन हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा हिन्दी-उर्दू को करीब लाने का काम करते रहे यही भाव गीता में भी पाया जाता है l गीता हमें कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग का सन्देश देती है अर्थात गीता सभी को जोड़ने का कार्य करती है l गीता का दर्शन सदैव प्रासंगिक है l
ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल का कहना है कि, अनवर जलालपुरी जी ने भगवद्गीता के 18 अध्यायों के सभी 700 श्लोकों को 1761 अशआर में उर्दू काव्य में प्रस्तुत किया l साम्प्रदायिक एवं भावनात्मक सौहार्द तथा राष्ट्रीय एकीकरण के प्रति जलालपुरी जी के सुझाव एवं प्रेरणा को देखते हुए यह पहल उत्कृष्ट है l जलालपुरी जी का यह मत रहा है कि गीता आमजन में इंसानियत का बोध कराती है, "गीता, उपनिषद और क़ुरान 'मानव विरासत' से किसी भी प्रकार से कमतर नहीं है तथा इन्हें हर क़ीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए तथा धर्म का लिहाज़ किये बिना गीता में अन्तर्निहित संदेश को समस्त मानवजाति के बीच प्रसारित करने की प्रबल आवश्यकता है l"
उर्दू शायरी में गीता के 18 अध्याय निम्नलिखित YouTube Link पर उपलब्ध हैं:
https://www.youtube.com/playlist?list=PL7aGD41D00hALNqQTXp4B0y2-1OrdM3-G
#उर्दूशायरीमेंगीता
#UrduShayariMeinGita
#AnwarJalalpuri
#AnupJalota
#VivekPrakash
#HelpUTrust
#HelpUEducationalandCharitableTrust
#HarshVardhanAgarwal
www.helputrust.org
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लखनऊ | 30 अगस्त |
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर उर्दू के अज़ीम शायर व नाज़िम पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी द्धारा देवनागरी लिपि (हिंदी) में रचित पुस्तक उर्दू शायरी में गीता का ऑडियो वर्जन आज यूट्यूब (YouTube) पर रिलीज़ हुआ l हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल की परिकल्पना के तहत भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा ने आवाज़ और संगीत विवेक प्रकाश ने दिया है l ऑडियो वर्जन ट्रस्ट के YouTube चैनल youtube.com/c/HelpUTrust पर उपलब्ध है l ऑडियो में भगवद्गीता के 18 अध्याय के 18 ट्रैक हैं और सम्पूर्ण संस्करण 452 मिनट का है l साहित्य, आध्यात्म, संस्कृति एवं राष्ट्रीय सौहार्द के संवर्धन एवं उत्थान के मद्देनज़र ट्रस्ट ने इसे निःशुल्क उपलब्ध कराया है l ट्रैक के प्रारम्भ में अनवर जलालपुरी के स्वर में प्रत्येक अध्याय का संक्षिप्त विवरण है तथा भगवद्गीता के 700 श्लोक जिन्हें अनवर जलालपुरी ने उर्दू शायरी के 1761 अशआर में भावान्तरित किया है l
इस ऑडियो वर्जन के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी भावनाएं इस प्रकार प्रकट की हैं, “हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट' के माध्यम से श्री अनवर जलालपुरी द्धारा रचित 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण तैयार किए जाने के बारे में जानकार प्रसन्नता हुई है l श्री अनूप जलोटा जी के स्वर से सजने वाला यह संस्करण निश्चय ही कर्णप्रिय और मनोहारी होगा l मुझे आशा है कि 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण से अधिकाधिक लोगों तक इसके अमृत वचनों का प्रसार होगा l इस महत्वपूर्ण कार्य से जुड़े सभी लोगों को बधाई और इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएं l”
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है, भगवद्गीता को शायरी में ढालना एक बहुत बड़ा काम है l वर्तमान परिवेश में, गीता पढ़ के आदमी साहसी बनता है l जिन लोगों का मनोबल कम हो जाता है गीता उन्हें शक्ति प्रदान करती है l गीता ने समाज को रास्ता दिखाया है l जितनी बार गीता पढ़ी जाती है उतनी ही सारगर्मित लगती है l गीता श्लोक को अनवर जलालपुरी ने अपनी शायरी में सरल शब्दों में पेश किया है l यह आम जनता में प्रचलित होगी l यह प्रयास समाज को सार्थक दिशा देने का काम करेगा l समाज को जोड़ने का काम करेगा l
डॉ० दिनेश शर्मा का विचार है, गीता का उपदेश संस्कृत भाषा में है, जैसे रामायण की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की है l मैं समझता हूँ अनवर जलालपुरी साहब ने आम बोलचाल की भाषा में गीता के फ़लसफ़े को पेश किया है l एक व्यक्ति कर्मयोगी बने इसके लिये गीता के उपदेश में तमाम श्लोकों का वर्णन जलालपुरी साहब ने अपने शब्दों में किया है l इसके लिये वह साधुवाद के पात्र हैं l
महाकवि डॉ० गोपाल दास 'नीरज' ने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था कि, “मैनें गीता के हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं के कई अनुवाद पढ़े हैं लेकिन जैसा अनुवाद अनवर जलालपुरी ने किया है वैसा मुझे अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिला l उर्दू शायरी में गीता इतनी बोधगम्य सहज और सरल है जो ज़ुबां पर तुरंत बैठ जाती है l सबसे बड़ी सार्थकता गीता की यही होगी कि, वो किताब में ही न होकर लोगों की ज़ुबां पर भी हो, जिसे वो गायेंगे भी गुनगुनायेंगे भी l
योगगुरु स्वामी रामदेव कहते हैं, पुस्तक के कुछ अंश पढ़ने पर मुझे बहुत खुशी हुई l मरहूम शायर ने लिखा है कि 'गीता क़दीम हिन्दुस्तान की बेइंतिहा मक़बूल किताब है l सारे हिन्दुस्तान के आवाम पर इसके फलसफे का बड़ा गहरा असर है l' अनवर साहब ने वास्तव में भगवद्गीता का गहराई से अध्ययन किया था l इस पवित्र ग्रन्थ से प्रेरणा प्राप्त कर उन्होनें 'उर्दू शायरी में गीता' की रचना कर जीवन की जटिल समस्याओं का हल साधारण हिन्दुस्तानी भाषा में आमजन के लिए प्रस्तुत किया l
श्रीराम कथावाचक मोरारी बापू बताते हैं, अनवर जलालपुरी ने सम्पूर्ण गीता को बेहद आकर्षक ढंग से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है l मेरा यक़ीन है कि 'उर्दू शायरी में गीता' मदीना को काशी तक ले आएगी और काशी को मदीना तक ले जाएगी l यह किताब दोनों मज़हब की दूरी ख़त्म कर सकती है l 'हम इकट्ठे होते हैं लेकिन एक नहीं होते' l संस्कृत उर्दू में उतरे, उर्दू संस्कृत में उतरे, ये 21वीं सदी की ज़रूरत है l
भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा कहते हैं, हमने हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के ज़रिये गीता के उर्दू तर्जुमा के 1761 अशआर को अपनी आवाज़ दी l अक्सर तर्जुमे ऐसे होते हैं कि उनमें असल मज़मून के अर्थ नहीं आ पाते हैं, लेकिन अनवर जलालपुरी ने जो तर्जुमा किया उसमें ऐसी कमी ज़रा भी नहीं थी l इसीलिए हमने उसे रिकॉर्ड किया l मुझे उम्मीद है कि शायरी में श्रीमद्भगवद्गीता की संगीतमय प्रस्तुति हर उम्र के लोगों को पसंद आएगी l
वयोवृद्ध कवि उदय प्रताप सिंह का कहना है, गीता का दार्शनिक पक्ष जन सुलभ शैली में जन साधारण को उपलब्ध कराना काम जटिल ज़रूर है, साथ ही पवित्र भी है और आवश्यक भी l गीता का मूल संदेश कर्म करो फल की चिंता मत करो l संसार से दूर का लगाव रखना, सुख दुख में एक सा व्यवहार तथा आत्मा की अजरता, अमरता की प्रकृति से भौतिक शरीर की नश्वरता से तुलना, अनवर जलालपुरी साहब ने अपने शेरों में बखूबी की है l
डॉ० कुमार विश्वास कहते हैं, उर्दू शायरी गीता में, गीता के विशद और व्यापक ज्ञान को अपनी सारगर्भित शायरी में बेहद सलीक़े से ढालने का काम बड़े भाई मरहूम अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l क़ौमी यकजहती के एक सशक्त शाब्दिक-सिपाही, अज़ीम शायर व नाज़िम थे अनवर जलालपुरी l
अनवर जलालपुरी के पुत्र शहरयार जलालपुरी कहते हैं कि, सबसे पहले तो मैं ‘उर्दू शायरी में गीता’ को यूट्यूब पर रिलीज़ करने के लिये हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल जी का धन्यवाद करता हूँ l मेरे पिता पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी साहब की उर्दू शायरी में गीता को पढ़कर यह लगता है कि, इस महान पुस्तक के अन्दर जो ज्ञान का भण्डार है वह जन सामान्य की समझ में आसानी से आ जाये, इस का प्रयास श्री अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l अनवर जलालप��री साहब पूरे जीवन हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा हिन्दी-उर्दू को करीब लाने का काम करते रहे यही भाव गीता में भी पाया जाता है l गीता हमें कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग का सन्देश देती है अर्थात गीता सभी को जोड़ने का कार्य करती है l गीता का दर्शन सदैव प्रासंगिक है l
ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल का कहना है कि, अनवर जलालपुरी जी ने भगवद्गीता के 18 अध्यायों के सभी 700 श्लोकों को 1761 अशआर में उर्दू काव्य में प्रस्तुत किया l साम्प्रदायिक एवं भावनात्मक सौहार्द तथा राष्ट्रीय एकीकरण के प्रति जलालपुरी जी के सुझाव एवं प्रेरणा को देखते हुए यह पहल उत्कृष्ट है l जलालपुरी जी का यह मत रहा है कि गीता आमजन में इंसानियत का बोध कराती है, "गीता, उपनिषद और क़ुरान 'मानव विरासत' से किसी भी प्रकार से कमतर नहीं है तथा इन्हें हर क़ीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए तथा धर्म का लिहाज़ किये बिना गीता में अन्तर्निहित संदेश को समस्त मानवजाति के बीच प्रसारित करने की प्रबल आवश्यकता है l"
उर्दू शायरी में गीता के 18 अध्याय निम्नलिखित YouTube Link पर उपलब्ध हैं:
https://www.youtube.com/playlist?list=PL7aGD41D00hALNqQTXp4B0y2-1OrdM3-G
#उर्दूशायरीमेंगीता
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर उर्दू के अज़ीम शायर व नाज़िम पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी द्धारा देवनागरी लिपि (हिंदी) में रचित पुस्तक उर्दू शायरी में गीता का ऑडियो वर्जन आज यूट्यूब (YouTube) पर रिलीज़ हुआ l हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल की परिकल्पना के तहत भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा ने आवाज़ और संगीत विवेक प्रकाश ने दिया है l ऑडियो वर्जन ट्रस्ट के YouTube चैनल youtube.com/c/HelpUTrust पर उपलब्ध है l ऑडियो में भगवद्गीता के 18 अध्याय के 18 ट्रैक हैं और सम्पूर्ण संस्करण 452 मिनट का है l साहित्य, आध्यात्म, संस्कृति एवं राष्ट्रीय सौहार्द के संवर्धन एवं उत्थान के मद्देनज़र ट्रस्ट ने इसे निःशुल्क उपलब्ध कराया है l ट्रैक के प्रारम्भ में अनवर जलालपुरी के स्वर में प्रत्येक अध्याय का संक्षिप्त विवरण है तथा भगवद्गीता के 700 श्लोक जिन्हें अनवर जलालपुरी ने उर्दू शायरी के 1761 अशआर में भावान्तरित किया है l
इस ऑडियो वर्जन के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी भावनाएं इस प्रकार प्रकट की हैं, “हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट' के माध्यम से श्री अनवर जलालपुरी द्धारा रचित 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण तैयार किए जाने के बारे में जानकार प्रसन्नता हुई है l श्री अनूप जलोटा जी के स्वर से सजने वाला यह संस्करण निश्चय ही कर्णप्रिय और मनोहारी होगा l मुझे आशा है कि 'उर्दू शायरी में गीता' के श्रव्य संस्करण से अधिकाधिक लोगों तक इसके अमृत वचनों का प्रसार होगा l इस महत्वपूर्ण कार्य से जुड़े सभी लोगों को बधाई और इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएं l”
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है, भगवद्गीता को शायरी में ढालना एक बहुत बड़ा काम है l वर्तमान परिवेश में, गीता पढ़ के आदमी साहसी बनता है l जिन लोगों का मनोबल कम हो जाता है गीता उन्हें शक्ति प्रदान करती है l गीता ने समाज को रास्ता दिखाया है l जितनी बार गीता पढ़ी जाती है उतनी ही सारगर्मित लगती है l गीता श्लोक को अनवर जलालपुरी ने अपनी शायरी में सरल शब्दों में पेश किया है l यह आम जनता में प्रचलित होगी l यह प्रयास समाज को सार्थक दिशा देने का काम करेगा l समाज को जोड़ने का काम करेगा l
डॉ० दिनेश शर्मा का विचार है, गीता का उपदेश संस्कृत भाषा में है, जैसे रामायण की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की है l मैं समझता हूँ अनवर जलालपुरी साहब ने आम बोलचाल की भाषा में गीता के फ़लसफ़े को पेश किया है l एक व्यक्ति कर्मयोगी बने इसके लिये गीता के उपदेश में तमाम श्लोकों का वर्णन जलालपुरी साहब ने अपने शब्दों में किया है l इसके लिये वह साधुवाद के पात्र हैं l
महाकवि डॉ० गोपाल दास 'नीरज' ने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था कि, “मैनें गीता के हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं के कई अनुवाद पढ़े हैं लेकिन जैसा अनुवाद अनवर जलालपुरी ने किया है वैसा मुझे अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिला l उर्दू शायरी में गीता इतनी बोधगम्य सहज और सरल है जो ज़ुबां पर तुरंत बैठ जाती है l सबसे बड़ी सार्थकता गीता की यही होगी कि, वो किताब में ही न होकर लोगों की ज़ुबां पर भी हो, जिसे वो गायेंगे भी गुनगुनायेंगे भी l
योगगुरु स्वामी रामदेव कहते हैं, पुस्तक के कुछ अंश पढ़ने पर मुझे बहुत खुशी हुई l मरहूम शायर ने लिखा है कि 'गीता क़दीम हिन्दुस्तान की बेइंतिहा मक़बूल किताब है l सारे हिन्दुस्तान के आवाम पर इसके फलसफे का बड़ा गहरा असर है l' अनवर साहब ने वास्तव में भगवद्गीता का गहराई से अध्ययन किया था l इस पवित्र ग्रन्थ से प्रेरणा प्राप्त कर उन्होनें 'उर्दू शायरी में गीता' की रचना कर जीवन की जटिल समस्याओं का हल साधारण हिन्दुस्तानी भाषा में आमजन के लिए प्रस्तुत किया l
श्रीराम कथावाचक मोरारी बापू बताते हैं, अनवर जलालपुरी ने सम्पूर्ण गीता को बेहद आकर्षक ढंग से पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है l मेरा यक़ीन है कि 'उर्दू शायरी में गीता' मदीना को काशी तक ले आएगी और काशी को मदीना तक ले जाएगी l यह किताब दोनों मज़हब की दूरी ख़त्म कर सकती है l 'हम इकट्ठे होते हैं लेकिन एक नहीं होते' l संस्कृत उर्दू में उतरे, उर्दू संस्कृत में उतरे, ये 21वीं सदी की ज़रूरत है l
भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा कहते हैं, हमने हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के ज़रिये गीता के उर्दू तर्जुमा के 1761 अशआर को अपनी आवाज़ दी l अक्सर तर्जुमे ऐसे होते हैं कि उनमें असल मज़मून के अर्थ नहीं आ पाते हैं, लेकिन अनवर जलालपुरी ने जो तर्जुमा किया उसमें ऐसी कमी ज़रा भी नहीं थी l इसीलिए हमने उसे रिकॉर्ड किया l मुझे उम्मीद है कि शायरी में श्रीमद्भगवद्गीता की संगीतमय प्रस्तुति हर उम्र के लोगों को पसंद आएगी l
वयोवृद्ध कवि उदय प्रताप सिंह का कहना है, गीता का दार्शनिक पक्ष जन सुलभ शैली में जन साधारण को उपलब्ध कराना काम जटिल ज़रूर है, साथ ही पवित्र भी है और आवश्यक भी l गीता का मूल संदेश कर्म करो फल की चिंता मत करो l संसार से दूर का लगाव रखना, सुख दुख में एक सा व्यवहार तथा आत्मा की अजरता, अमरता की प्रकृति से भौतिक शरीर की नश्वरता से तुलना, अनवर जलालपुरी साहब ने अपने शेरों में बखूबी की है l
डॉ० कुमार विश्वास कहते हैं, उर्दू शायरी गीता में, गीता के विशद और व्यापक ज्ञान को अपनी सारगर्भित शायरी में बेहद सलीक़े से ढालने का काम बड़े भाई मरहूम अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l क़ौमी यकजहती के एक सशक्त शाब्दिक-सिपाही, अज़ीम शायर व नाज़िम थे अनवर जलालपुरी l
अनवर जलालपुरी के पुत्र शहरयार जलालपुरी कहते हैं कि, सबसे पहले तो मैं ‘उर्दू शायरी में गीता’ को यूट्यूब पर रिलीज़ करने के लिये हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल जी का धन्यवाद करता हूँ l मेरे पिता पद्मश्री स्व० अनवर जलालपुरी साहब की उर्दू शायरी में गीता को पढ़कर यह लगता है कि, इस महान पुस्तक के अन्दर जो ज्ञान का भण्डार है वह जन सामान्य की समझ में आसानी से आ जाये, इस का प्रयास श्री अनवर जलालपुरी साहब ने किया है l अनवर जलालपुरी साहब पूरे जीवन हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा हिन्दी-उर्दू को करीब लाने का काम करते रहे यही भाव गीता में भी पाया जाता है l गीता हमें कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग का सन्देश देती है अर्थात गीता सभी को जोड़ने का कार्य करती है l गीता का दर्शन सदैव प्रासंगिक है l
ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल का कहना है कि, अनवर जलालपुरी जी ने भगवद्गीता के 18 अध्यायों के सभी 700 श्लोकों को 1761 अशआर में उर्दू काव्य में प्रस्तुत किया l साम्प्रदायिक एवं भावनात्मक सौहार्द तथा राष्ट्रीय एकीकरण के प्रति जलालपुरी जी के सुझाव एवं प्रेरणा को देखते हुए यह पहल उत्कृष्ट है l जलालपुरी जी का यह मत रहा है कि गीता आमजन में इंसानियत का बोध कराती है, "गीता, उपनिषद और क़ुरान 'मानव विरासत' से किसी भी प्रकार से कमतर नहीं है तथा इन्हें हर क़ीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए तथा धर्म का लिहाज़ किये बिना गीता में अन्तर्निहित संदेश को समस्त मानवजाति के बीच प्रसारित करने की प्रबल आवश्यकता है l"
उर्दू शायरी में गीता के 18 अध्याय निम्नलिखित YouTube Link पर उपलब्ध हैं:
https://www.youtube.com/playlist?list=PL7aGD41D00hALNqQTXp4B0y2-1OrdM3-G
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#गरिमा_गीता_की_Part_1
भूमिका
इस पुस्तक में श्रीमद्भगवत गीता के सम्पूर्ण ज्ञान का यथार्थ प्रकाश किया गया है जो गीता से 18 अध्यायों के 700 श्लोकों का हिन्दी सारांश है। ऐसा आज तक किसी हिन्दू धर्म के गुरू ने तथा गीता के अनुवादकर्ता ने नहीं किया। सबने भोले हिन्दू समाज को भ्रमित करके उल्टा पाठ पढ़ाया है। मेरा मानव समाज से निवेदन है कि इन झूठे गुरूओं की मेरे साथ आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा करवाऐं। तब पता चलेगा ज्ञानी और अज्ञानी का। इस पुस्तक को ध्यानपूर्वक दिल थामकर पढ़ें। आप स्वयं समझ जाओगे कि माजरा क्या है? इसी पुस्तक में लिखी सृष्टि रचना में तथा गीता के सारांश में आप जी को श्री ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी के माता-पिता तथा देवी दुर्गा के पति कौन हैं? आदि का ज्ञान भी होगा जिससे आज तक अपने धर्मगुरू नहीं बता पाए जो अपने ही ग्रन्थों में लिखे हैं।
श्रीमद्भगवत गीता चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का संक्षिप्त रूप है। दूसरे शब्दों में गागर में सागर है। चारों वेदों में अठारह हजार (18000) श्लोक (मंत्र) हैं। उनको गीता में 574 श्लोकों में लिखा है। जिस कारण से गीता में सांकेतिक शब्द अधिक हैं। वैसे तो गीता में सात सौ (700) श्लोक हैं। जिनमें 574 काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण के मुख से कहे हैं, शेष श्लोक संजय तथा अर्जुन के कहे हैं जो ज्ञान से संबंधित नहीं हैं।
गीता के सांकेतिक शब्दों को हिन्दू धर्म के धर्मगुरू समझ नहीं पाए। जिस कारण से शब्दों के अर्थों का अनर्थ किया है। उदाहरण के लिए गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में ‘‘व्रज’’ शब्द है। उसका अर्थ है जाना, जाओ, चले जाना, ��ूर जाना। सर्व गीता अनुवादकों ने व्रज का अर्थ ‘‘आना’’ किया है। आप प्रत्येक अनुवादक के किए अनुवाद में इस श्लोक को देखें। एस्कोन वालों ने तो कमाल कर रखा है। गीता अध्याय 18 श्लोक 66 के शब्दार्थ पहले लिखे हैं, नीचे अनुवाद किया है। शब्दार्थ में तो ‘‘व्रज’’ शब्द का अर्थ किया है ‘‘जाओ’’, परंतु अनुवाद में कर दिया ‘‘मेरी शरण में आओ।’’
देखें गीता अध्याय 18 श्लोक 66 के शब्दार्थ तथा अनुवाद की फोटोकाॅपी जो भक्तिवेदान्त बुक ट्रस्ट, हरे कृष्ण धाम जूहू, मुंबई-400049 द्वारा प्रकाशित है तथा ए.सी. भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभु द्वारा अनुवादित है जिसका पूरा नाम इस प्रकार है कृष्ण कृपा मूर्ति श्री ए.सी. भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद। संस्थापकाचार्य:- अन्तर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ।
यह फोटोकाॅपी गीता अध्याय 18 श्लोक 66 की है। इसमें आप देख रहे हैं कि शब्दार्थ में ‘‘व्रज = जाओ’’ किया है, नीचे अनुवाद में लिखा है कि मेरी शरण में आओ।
विचार करें:- अंग्रेजी भाषा के शब्द ळव का अर्थ जाना, जाओ है। इस शब्द का अर्थ आना, आओ करना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इसी प्रकार गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित सर्व गीता अनुवादकों जैसे श्री जयदयाल गोयन्दका, श्री रामसुख दास जी, महामण्डलेश्वर गीता मनीषी जैसी उपाधि प्राप्त श्री ज्ञानानंद जी, अड़गड़ानंद जी ने तथा अन्य महानुभावों ने गीता के गूढ़ तथा सांकेतिक शब्दों के गूढ़ रहस्य को न समझकर अर्थ न करके अनर्थ किए हैं, गलत अर्थ करके भोली जनता को भ्रमित किया है। इनके द्वारा किए गए गीता के अनुवाद वाली गीता पर प्रतिबंध लगना चाहिए। जिन्होंने गलत अनुवाद किए हैं, उन सबकी अनुवादित गीता से समाज में गीता की गरिमा को ठेस पहुँच रही है तथा गीता का यथार्थ संदेश जनता को नहीं मिल रहा।
जैसे गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में भी गीता ज्ञान बोलने वाला अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में जाने के लिए कह रहा है। उसी से संबंधित प्रकरण गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में है जिसका अर्थ गलत करके गलत अनुवाद किया है। ऐसी-ऐसी अनेकों गलतियाँ गीता के अनुवाद में मेरे अतिरिक्त सबके द्वारा की गई हैं।
गीता के अनुवादक लिखते हैं कि श्री कृष्ण जी ने गीता का ज्ञान अर्जुन से कहा। श्री कृष्ण को विष्णु जी का अवतार यानि स्वयं विष्णु जी ही माता देवकी के गर्भ से उत्पन्न मानते हैं और श्री विष्णु जी उर्फ श्री कृष्ण जी को अविनाशी कहते हैं। जबकि गीता का ज्ञान कहने वाला गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में अपने को नाशवान कहता है। कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं। कृप्या देखें फोटोकाॅपी गीता अध्याय 4 श्लोक 5 की जिसका अनुवाद भी हिन्दू धर्मगुरूओं ने किया है।
अन्य प्रमाण:- श्री देवी महापुर���ण के तीसरे स्कंद के अध्याय 4.5 पृष्ठ 138 की सम्बन्धित प्रकरण की फोटोकाॅपी:-
यह फोटोकाॅपी श्री देवी पुराण की है। इसमें श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि मेरा (विष्णु का) श्री ब्रह्मा का तथा श्री शिव का आविर्भाव यानि जन्म तथा तिरोभाव यानि मरण होता है। इसी फोटोकाॅपी में यह भी प्रमाणित है कि इन तीनों को जन्म देने वाली भी देवी दुर्गा जी यानि अष्टांगी है। हिन्दू धर्म के अज्ञानी धर्मगुरू कहते हैं कि इनके कोई माता-पिता नहीं हैं। इस प्रकार की अनेक मिथ्या कथाऐं शास्त्रों के विपरित बताकर इन अज्ञानियों ने हिन्दू समाज का बेड़ा गरक कर रखा है।
हिन्दू धर्मगुरू कहते हैं कि श्री विष्णु जी सतगुण, श्री शिव जी तमगुण व अन्य देवी-देवताओं की पूजा करो जबकि गीता में अध्याय 7 श्लोक 12,15 तथा 20,23 में कहा है कि इनकी पूजा करने वाले राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं।
हिन्दू धर्मगुरू श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी को ईश यानि सर्व के स्वामी बताते हैं जबकि श्री शिव महापुराण भाग-1 में विद्येश्वर संहिता पृष्ठ 17,18 अध्याय 9,10 में स्पष्ट है कि सदाशिव यानि काल ब्रह्म श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा शिव जी के पिता जी हैं जो गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में कह रहा है कि मैं काल हूँ। उसने विद्येश्वर संहिता भाग-1 के पृष्ठ 17 पर आपस में लड़ रहे श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी के मध्य में तेजोमय स्तम्भ खड़ा करके उनका युद्ध बंद करवाकर कहा कि तुम अपने को संसार का ईश यानि स्वामी कह रहे हो, इस बात पर लड़ रहे हो। तुम ईश (प्रभु=भगवान) नहीं हो। यह सब मेरा है। मेरा एक (ओम्) मंत्र भक्ति का है जो पाँच अवयवों से एकीभूत होकर यानि अ,उ,म,नाद तथा बिंदु से मिलकर एक (ओम्) अक्षर बना है। गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में भी इसी ने श्री कृष्ण में प्रेतवत् प्रवेश करके गीता ज्ञान कहा था। उसमें कहा है कि मुझ ब्रह्म का केवल एक ओम् अक्षर है उच्चारण करके स्मरण करने का।
श्री शिव पुराण का प्रकरण बताता हूँ:- शिवपुराण के विद्येश्वर संहिता भाग-1 पर काल ब्रह्म जो उस समय अपने पुत्र शिव के वेश में उपस्थित था, ने बताया कि हे पुत्रो! मेरे पाँच कृत्य हैं सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव तथा अनुग्रह। हे पुत्रो ब्रह्मा, विष्णु! सृष्टि की उत्पत्ति ब्रह्मा तेरे को तथा पालन करना विष्णु तेरे को मैंने तुम्हारे तप के प्रतिफल में दिए हैं।
संहार (सामान्य प्राणियों को मारना) रूद्र को तथा तिरोभाव (भक्तों तथा देवताओं आदि को मारना) महेश को दिए, परंतु ‘‘अनुग्रह’’ कृत्य को पाने में कोई भी समर्थ नहीं है।(1,12)
श्री शिव महापुराण के इस प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी ईश यानि संसार के स्वामी (प्रभु) नहीं हैं। इ�� तीनों का पिता काल ब्रह्म है तथा माता श्री देवी (दुर्गा) जी हैं जो श्री देवी भागवत पुराण यानि देवी पुराण में लिखा है। हिन्दू धर्मगुरूजन अपने शास्त्रों से ही परिचित नहीं हैं तो ये गुरू पद के योग्य नहीं हैं। इन्होंने हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओं के मानव जीवन का नाश कर दिया। शास्त्रविधि विरूद्ध भक्ति साधना करवाकर भिखारी, चोर, डाकू, रिश्वतखोर, मिलावटखोर बनाकर छोड़ दिया। गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में स्पष्ट किया है कि जो साधक शास्त्रविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है यानि जो भक्ति की साधना शास्त्रों में वर्णित नहीं है, उसे करता है तो उसे न तो सुख प्राप्त होता है, न उसे भक्ति की शक्ति यानि सिद्धि प्राप्त होती है तथा न उसकी गति यानि मुक्ति होती है।
इसी कारण से सर्व साधक तन-मन-धन से झूठे गुरूओं द्वारा बताई शास्त्र विरूद्ध साधना, दान-धर्म भी करते हैं। फिर भी न तो घर-परिवार में सुख, न कारोबार में बरकत (लाभ) जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति भगवान की साधना से अपेक्षा करता है। साधना शास्त्राविरूद्ध होने से परमात्मा की और से कोई लाभ नहीं मिलता। जिसकी पूर्ति के लिए चोरी, हेराफेरी, रिश्वत, ठगी, मिलावट आदि अपराध करने लग जाते हैं। कुछ समय पश्चात् नास्तिक हो जाते हैं। ऐसे हिन्दू समाज का बेड़ा गरक शास्त्र ज्ञान से अपरिचित हिन्दू गुरूओं ने कर दिया। मेरे (लेखक-रामपाल दास के) पास शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान है तथा शास्त्रोक्त साधना के यथार्थ स्मरण मंत्र हैं जो साधक को सुख यानि घर-परिवार में सुख, कृषि व कारोबार में बरकत (लाभ), आध्यात्मिक शक्ति (सिद्धि) तथा पूर्ण मोक्ष प्रदान करते हैं। इस पुस्तक ‘‘गरिमा गीता की’’ में आप जी को उन शास्त्रों में वर्णित यथार्थ साधना के मंत्रों की जानकारी पढ़ने को मिलेगी।
शास्त्रों के अध्याय, श्लोक तथा पृष्ठ भी लिखे हैं जो आप अपनी संतुष्टि के लिए अपने शास्त्रों से मिलान करके जाँच सकते हो।
यदि कोई व्यक्ति (स्त्राी-पुरूष) उन मंत्रों को इस पुस्तक में पढ़कर जाप करेगा तो उसे कोई लाभ नहीं होगा। उन मंत्रों को मेरे से या मेरे द्वारा बताई दीक्षा की साधना के माध्यम से दीक्षा लेकर आजीवन मर्यादा में रहकर साधना करने से सर्व लाभ तथा पूर्ण मोक्ष मिलेगा।
श्रीमद्भगवत गीता चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का सारांश है तथा यह पुस्तक ‘‘गरिमा गीता की’’ श्रीमद्भगवत गीता का यथार्थ सारांश है। प्रत्येक अध्याय से मक्खन निकालकर फिर उसको शुद्ध करके गीता रूपी गाय का घी बनाया है। आप जी इसे पढ़ें तथा गीता की गरिमा से यथार्थ रूप से परिचित होकर स्वयं तथा अपने परिवार को धन्य बनाऐं। मेरे से नाम दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करें। विश्व के सर्व प्राणी एक परमेश्वर कबीर जी के बच्चे हैं यानि परमेश्वर द्वारा उत्पन्न आत्माऐं हैं जो काल ब्रह्म के लोक में जन्म-मरण तथा अनेकों कष्ट उठा रहे हैं। परमेश्वर कबीर जी चाहते हैं कि मेरी आत्माऐं मुझे अध्यात्म ज्ञान से पहचानें। फिर सत्य साधना करके सनात�� परम धाम (सत्यलोक) में जाकर सदा सुखी जीवन जीऐं। उस परमेश्वर जी ने स्वयं यथार्थ भक्ति मंत्रों को बताया है जो सर्व शास्त्रों में प्रमाण मिला है। जिस कारण सत्य भक्ति की साधना की सार्थकता सिद्ध हुई है।
मेरा निष्कर्ष है कि:-
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
आप जी इस पुस्तक ‘‘गरिमा गीता की’’ में पवित्रा गीता के दिव्य सार को पढ़ें तथा अन्य को पढ़ाऐं। भूलों को राह बताऐं। इससे बड़ा पृथ्वी पर कोई पुण्य का कार्य नहीं है। मेरे अनुयाई तथ्यों को आँखों शास्त्रों में देखकर आश्चर्यचकित हुए थे। सत्य को स्वीकार करके तुरंत झूठी साधना त्यागकर सत्य साधना की दीक्षा मुझ दास (रामपाल दास) से लेकर जीवन धन्य कर रहे हैं। साथ-साथ इस अद्वितीय यथार्थ अध्यात्म ज्ञान का प्रचार करके भूले-भटकों को सत्य मार्ग बताकर पुण्य के भागी बन रहे हैं। झूठे गुरूओं से प्रभावित भोली जनता के द्वारा दी जा रही परेशानियों को झेलते हुए प्रचार में लगे हैं। ये आपको अपना भाई-बहन मानते हैं। आपके कल्याण का उद्देश्य रखते हैं। लेखक का उद्देश्य भी मानव समाज का कल्याण करना है। आप जी मेरे द्वारा बताया अध्यात्म ज्ञान समझें। पूर्ण रूप से जाँच करें। फिर हमसे जुड़ें। मर्यादा में रहकर भक्ति करें। तब देखना आपको प्रत्यक्ष लाभ होता महसूस होगा। आप अपने बीते मानव जीवन के समय का व्यर्थ साधना से नष्ट होने का बहुत पाश्चाताप् करोगे। सत्य भक्ति मार्ग मिलने से परमेश्वर कबीर जी की शरण में आने के पश्चात् उन भक्तों-भक्तमतियों, बहनों-माईयों का कोटि-कोटि धन्यवाद करोगे जिन्होंने आप जी को घर बैठों को परमात्मा का सत्य ज्ञान व सत्य भक्ति संदेश पुस्तकों के माध्यम से पहुँचाया। फिर आप ऐसा अनुभव करोगे जैसे कोई मौत के मुख से निकलने पर सुरक्षित परंतु भय-सा महसूस करता है। विचार करेंगे कि हे परमात्मा कबीर जी! हमारा ऐसा कौन-से जन्म का शुभ कर्म फला। जिस कारण से आपकी शरण मिली।
यदि यह तत्वज्ञान पढ़ने-सुनने को नहीं मिलता तो लुट-पिट जाते। हमारा अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता। इसलिए आप जी अविलंब अपने निकट वाले हमारे नामदान केन्द्र पर आऐं और दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाऐं।
प्रार्थी-लेखक
(संत) रामपाल दास (महाराज)
सतलोक आश्रम, बरवाला
जिला-हिसार, हरियाणा (भारत)।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part19
‘‘गीता का ज्ञान श्री कृष्ण में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा’’
कबीर जी का वकील:- दास श्री कृष्ण जी के वकील साहेबानों से अदालत में पुनः जानना चाहता हूँ कि कृपया बताएँ श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान किसने कहा?
कृष्ण जी के वकील:- इस बात को तो बच्चा भी जानता है कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को बताया।
कबीर जी का वकील:- लगता है कि श्री कृष्ण जी के वकील साहेबानों को अपने ही सद्ग्रंथों का ज्ञान नहीं है। इसलिए सब ऊवा-बाई बोल रहे हैं। स्वयं भी भ्रमित हैं तथा अदालत को भी भ्रमित करना चाहते हैं। दास प्रमाणों सहित पेश करता है, सद्ग्रंथों की सच्चाई जो इस प्रकार है:- श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं कहा। उनक�� शरीर के अंदर प्रेतवत् प्रवेश करके काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने बोला था।
प्रमाण:- महाभारत ग्रंथ में लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् युद्धिष्ठिर जी को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारका जाने की तैयारी की तो अर्जुन ने कहा कि ’’आप एक सत्संग करके जाना। मेरे को गीता वाला ज्ञान फिर से बताना जो आप जी ने युद्ध के समय बताया था। मैं भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि अर्जुन! तू बड़ा बुद्धिहीन है, श्रद्धाहीन है। तूने उस निर्मल गीता ज्ञान को क्यों भुला दिया है। अब मुझे भी याद नहीं।‘‘ फिर श्री कृष्ण जी ने अपने स्तर की गीता का ज्ञान बताया जिसमें श्रीमद्भगवत गीता वाला एक भी शब्द नहीं है।
‘‘अदालत के प्रश्न तथा कबीर जी के वकील के उत्तर’’
अदालत में प्रमाण पेश हैं कि श्रीमद्भगवत् गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनके शरीर में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा था।
अदालत का कबीर जी के वकील से प्रश्न नं. 1:- गीता का ज्ञान कब तथा किसने, किसको सुनाया, किसने लिखा? विस्तार से बताएँ।
कबीर जी के वकील का उत्तर:- श्री मद्भगवत् गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल भगवान ने (जिसे वेदों व गीता में “ब्रह्म” नाम से भी जाना जाता है) अर्जुन को सुनाया। जिस समय कौरव तथा पाण्डव अपनी सम्पत्ति अर्थात् दिल्ली के राज्य पर अपने-अपने हक का दावा करके युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे, दोनों की सेनाएँ आमने-सामने कुरूक्षेत्रा के मैदान में खड़ी थी। अर्जुन ने देखा कि सामने वाली सेना में भीष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, रिश्तेदार, कौरवों के बच्चे, दामाद, बहनोई, ससुर आदि-आदि लड़ने-मरने के लिए खड़े हैं। कौरव और पाण्डव आपस में चचेरे भाई थे। अर्जुन में साधु भाव जागृत हो गया तथा विचार किया कि जिस राज्य को प्राप्त करने के लिए हमें अपने चचेरे भाईयों, भतीजों, दामादों, बहनोइयों, भीष्म पितामह जी तथा गुरूजनों को मारेंगे। यह भी नहीं पता कि हम कितने दिन संसार में रहेंगे? इसलिए इस प्रकार से प्राप्त राज्य के सुख से अच्छा तो हम भिक्षा माँगकर अपना निर्वाह कर लेंगे, परन्तु युद्ध नहीं करेंगे। यह विचार करके अर्जुन ने धनुष-बाण हाथ से छोड़ दिया तथा रथ के पिछले भाग में बैठ गया। अर्जुन की ऐसी दशा देखकर श्री कृष्ण बोले:- देख ले सामने किस योद्धा से आपने लड़ना है। अर्जुन ने उत्तर दिया कि हे कृष्ण! मैं किसी कीमत पर भी युद्ध नहीं करूँगा। अपने उद्देश्य तथा जो विचार मन में उठ रहे थे, उनसे भी अवगत कराया। उसी समय श्री कृष्ण जी में काल भगवान प्रवेश कर गया जैसे प्रेत किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके बोलता है। ऐसे ही काल ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके श्री मद्भगवत गीता का ज्ञान युद्ध करने की प्रेरणा करने के लिए तथा कलयुग में वेदों को जानने वाले व्यक्ति नहीं रहेंगे, ��सलिए चारों वेदों का संक्षिप्त वर्णन व सारांश “गीता ज्ञान” रूप में 18 अध्यायों में 584 श्लोकों में सुनाया।(श्रीमद्भगवत गीता में कुल 700 श्लोक हैं जिनमें से 584 काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके बोले थे। शेष संजय, धृतराष्ट्र संवाद ��े श्लोक हैं।)
श्री कृष्ण को तो पता नहीं था कि मैंने क्या बोला था गीता ज्ञान में।
कुछ वर्षों के बाद वेदव्यास ऋषि ने इस अमृतज्ञान को संस्कृत भाषा में देवनागरी लिपि में लिखा। बाद में अनुवादकों ने अपनी बुद्धि के अनुसार इस पवित्रा ग्रन्थ का हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जो वर्तमान में गीता प्रैस गोरखपुर (न्ण्च्) से प्रकाशित किया जा रहा है जो कुछ गलत कुछ ठीक है।
पेश हैं ढ़ेर सारे प्रमाण कि गीता शास्त्र का ज्ञान “काल” ने कहा।
सर्व प्रथम गीता से ही प्रमाणित करता हूँ:-
प्रमाण नं. 1:- गीता अध्याय 11 में प्रमाण है कि जब गीता ज्ञान दाता ने अपना विराट रूप दिखा दिया तो उसको देखकर अर्जुन भयभीत हो गया, काँपने लगा। यहाँ पर यह बताना भी अनिवार्य है कि अर्जुन का साला था श्री कृष्ण क्योंकि श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था।
गीता ज्ञान दाता ने जिस समय अपना भयंकर विराट रूप दिखाया जो हजार भुजाओं वाला था। तब अर्जुन ने पूछा कि हे देव! आप कौन हैं?(गीता अध्याय 11 श्लोक 31)
गीता अध्याय 11 श्लोक 46:- हे सहंस्राबाहु (हजार भुजा वाले) आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए (क्योंकि अर्जुन उन्हें विष्णु अवतार कृष्ण तो मानता ही था, परन्तु उस समय श्री कृष्ण के शरीर से बाहर निकलकर काल ने अपना अपार विराट रूप दिखाया था) मैं भयभीत हूँ, आपके इस रूप को सहन नहीं कर पा रहा हूँ।
ध्यान रहे:- श्री विष्णु (श्री कृष्ण) केवल चार भुजा से युक्त हैं। ये दो भुजा तो बना सकते हैं, परंतु चार से अधिक का प्रदर्शन नहीं कर सकते। काल ब्रह्म हजार (संहस्र) भुजा युक्त है। यह एक हजार तथा इन से नीचे भुजाओं का प्रदर्शन कर सकता है। हजार भुजाओं से अधिक का प्रदर्शन नहीं कर सकता। चार भुजा, दो भुजा, दस भुजा आदि-आदि बना सकता है। शरीर में बने कमल चक्रों में भी इस काल ब्रह्म के चक्र का नाम संहस्र कमल दल चक्र है।
विचारणीय विषय है कि क्या हम अपने साले से पूछेंगे कि हे महानुभाव! बताईए आप कौन हैं? {एक समय एक व्यक्ति में प्रेत बोलने लगा। साथ बैठे व्यक्ति ने पूछा आप कौन बोल रहे हो? उत्तर मिला कि तेरा मामा बोल रहा हूँ। मैं दुर्घटना में मरा था। क्या हम अपने भाई को नहीं जानते? ठीक इसी प्रकार श्री कृष्ण में काल बोल रहा था।}
प्रमाण नं. 2:- गीता अध्याय 11 श्लोक 21 में अर्जुन ने कहा कि आप तो देवताओं के समूह के समूह को ग्रास (खा) रहे हैं जो आपकी स्तुति हाथ जोड़कर भयभीत होकर कर रहे हैं। महर्षियों तथा सिद्धों के समुदाय आप से अ��ने जीवन की रक्षार्थ मंगल कामना कर रहे हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान दाता ने बताया कि हे अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब प्रवृत हुआ हूँ अर्थात् श्री कृष्ण के शरीर में अब प्रवेश हुआ हूँ।
सर्व व्यक्तियों का नाश करूँगा। विपक्ष की सर्व सेना, तू युद्ध नहीं करेगा तो भी नष्ट हो जाएगी।
गीता अध्याय 11 श्लोक 21 व 32 से सिद्ध हुआ कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रविष्ट होकर काल ने कहा है। श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी को देखकर कोई भयभीत नहीं होता था। गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सब दर्शन करके आनंदित होते थे। तो ‘‘क्या श्री कृष्ण जी काल थे?‘‘ नहीं। इसलिए गीता ज्ञान दाता ‘‘काल‘‘ है
जिसने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके गीता शास्त्रा का ज्ञान दिया।
प्रमाण नं. 3:- गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञानदाता ने कहा कि हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी कृपा से तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट रूप दिखाया है। यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है।
विचार करें:- महाभारत ग्रन्थ में प्रकरण आता है कि जिस समय श्री कृष्ण जी कौरवों की सभा में उपस्थित थे और उनसे कह रहे थे कि आप दोनों (कौरव और पाण्डव) आपस में बातचीत करके अपनी सम्पत्ति (राज्य) का बटँवारा कर लो, युद्ध करना शोभा नहीं देता। पाण्डवों ने कहा कि हमें पाँच (5) गाँव दे दो, हम उन्हीं से निर्वाह कर लेंगे। दुर्योधन ने यह भी माँग नहीं मानी और कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक के समान भी राज्य नहीं है, युद्ध करके ले सकते हैं। इस बात से श्री कृष्ण भगवान बहुत नाराज हो गए तथा दुर्योधन से कहा कि तू पृथ्वी के नाश के लिए जन्मा है, कुलनाश करके टिकेगा। भले मानव! कहाँ आधा, राज्य कहाँ 5 गाँव। कुछ तो शर्म कर ले। इतनी बात श्री कृष्ण जी के मुख से सुनकर अभिमानी दुर्योधन राजा आग-बबूला हो गया और सभा में उपस्थित अपने भाईयों तथा मन्त्रिायों से बोला कि इस कृष्ण यादव को गिरफ्तार कर लो।
उसी समय श्री कृष्ण जी ने विराट रूप दिखाया। सभा में उपस्थित सर्व सभासद उस विराट रूप को देखकर भयभीत होकर कुर्सियों के नीचे छिप गए, कुछ आँखों पर हाथ रखकर जमीन पर गिर गए। श्री कृष्ण जी सभा छोड़ कर चले गए तथा अपना विराट रूप समाप्त कर दिया।
गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञान दाता ने कहा था कि यह मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त अर्जुन! पहले किसी ने नहीं देखा था। यदि श्री कृष्ण गीता ज्ञान बोल रहे होते तो यह कभी नहीं कहते कि मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था क्योंकि श्री कृष्ण जी के विराट रूप को कौरव तथा अन्य सभासद पहले देख चुके थे।
इससे भी सिद्ध हुआ कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा, उनके शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके काल (क्षर पुरूष) ने कहा था। (यह तीसरा प्रमाण हुआ।)
यथार्थ अनुवाद:- गीता अध्याय 7 श्लोक 24,25 का यथार्थ अनुवाद इस प्रकार हैः-
काल ब्रह्म ने कहा है कि मुझ अव्यक्त (गुप्त रहने वाले) को ये बुद्धिहीन जन-समुदाय मेरे (अनुतमम्) घटिया (अव्ययम्) अविनाशी यानि अटल नियम को नहीं जानते कि मैं अपने यथार्थ रूप में किसी के सा��ने प्रत्यक्ष नहीं होता। मुझे (व्यक्तिम्) मनुष्य रूप में यानि कृष्ण मान रहे हैं। (मैं कृष्ण नहीं हूँ।) श्लोक 25 में कहा है कि मैं अपनी योग माया से छिपा रहता हूँ। किसी के सामने प्रत्यक्ष नहीं होता। यह (मूढ़ः) अज्ञानी जन समुदाय मुझको इस प्रकार नहीं जानता कि मैं कृष्ण की तरह नहीं जन्मता। गीता 4 श्लोक 9 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि मेरे जन्म तथा कर्म अलौकिक (दिव्य) हैं यानि यह जन्मता-मरता तो है। वह अलग परम्परा है। उपरोक्त दोनों श्लोकों से सिद्ध हुआ कि काल गुप्त रहकर कार्य करता है।
प्रमाण नं. 4:- श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के चैथे अंश के अध्याय 2 श्लोक 19, 26 में प्रमाण है कि एक समय देवताओं और राक्षसों का युद्ध हुआ।
देवता पराजित होकर समुद्र के किनारे जाकर छिप गए। फिर श भगवान की तपस्या स्तुति करने लगे। काल का विधान है अर्थात् काल ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि मैं अपने वास्तविक काल रूप में कभी किसी को दर्शन नहीं दूंगा। अपनी योग माया से छिपा रहूँगा। (प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में) इसलिए यह काल (क्षर पुरूष) किसी को विष्णु जी के रूप में दर्शन देता है, किसी को शंकर जी के रूप में, किसी को ब्रह्मा जी के रूप में दर्शन देता है।
देवताओं को श्री विष्णु जी के रूप में दर्शन देकर कहा कि मैंने जो आप की समस्या है, वह जान ली है। आप पुरंज्य राजा को युद्ध के लिए तैयार कर लो। मैं उस राजा श्रेष्ठ के शरीर में प्रविष्ट होकर राक्षसों का नाश कर दूंगा, ऐसा ही किया गया।
श्री विष्णु पुराण के चैथे अंश के अध्याय 2
इसमें स्पष्ट लिखा है कि गीता ज्ञान देने वाला काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है। इसी प्रकार श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके गीता का ज्ञान कहा है।
प्रमाण नं. 5:- श्री विष्णु पुराण के चैथे अंश के अध्याय 3 श्लोक 4,6 में प्रमाण है कि एक समय नागवंशियों तथा गंधर्वों का युद्ध हुआ। गंधर्वों ने नागों के सर्व बहुमूल्य हीरे, लाल व खजाने लूट लिए, उनके राज्य पर भी कब्जा कर लिया। नागाओं ने भगवान की स्तुति की, वही ‘‘काल‘‘ भगवान विष्णु रूप धारण करके प्रकट हुआ। कहा कि आप पुरूकुत्स राजा को गंधर्वों के साथ युद्ध के लिए तैयार कर लें। मैं राजा पुरूकुत्स के शरीर में प्रवेश करके दुष्ट गंधर्वों का नाश कर दूँगा, ऐसा ही हुआ।
प्रमाण नं. 6:- महाभारत ग्रन्थ में (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित में) भाग-2 पृष्ठ 800,802 पर लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठर को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारिका जाने की तैयारी की। तब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से कहा कि आप वह गीता वाला ज्ञान फिर से सुनाओ, मैं उस ज्ञान को भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन! आप बड़े बुद्धिहीन हो, बड़े श्रद्धाहीन हो। आपने उस अनमोल ज्ञान को क्यों भुला दिया, अब मैं उस ज्ञान को नहीं सुना सकता क्योंकि मैंने उस समय योगयुक्त होकर गीता का ज्ञान सुनाया था। जब वक्ता को ज्ञान नहीं तो श्रोता को कैसे याद रह सकता है। इससे सिद्ध है कि श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान नहीं कहा।
प्रमाण के लिए पढे़ं संक्षिप्त महाभारत ग्रन्थ (भाग-2) के पृष्ठ 800,802।
विचार करें:- युद्ध के समय योगयुक्त हुआ जा सकता है तो शान्त वातावरण में योगयुक्त होने में क्या समस्या हो सकती है? वास्तव में यह ज्ञान काल ने श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोला था।
���्री कृष्ण जी को स्वयं तो वह गीता ज्ञान याद नहीं, यदि वे वक्ता थे तो वक्ता को तो सर्व ज्ञान याद होना चाहिए। श्रोता को तो प्रथम बार में 40 प्रतिशत ज्ञान याद रहता है। इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश होकर काल (क्षर पुरूष) ने बोला था। उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ कि श्रीमद् भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनको तो पता ही नहीं कि क्या कहा था, श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने बोला था।
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part19
‘‘गीता का ज्ञान श्री कृष्ण में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा’’
कबीर जी का वकील:- दास श्री कृष्ण जी के वकील साहेबानों से अदालत में पुनः जानना चाहता हूँ कि कृपया बताएँ श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान किसने कहा?
कृष्ण जी के वकील:- इस बात को तो बच्चा भी जानता है कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को बताया।
कबीर जी का वकील:- लगता है कि श्री कृष्ण जी के वकील साहेबानों को अपने ही सद्ग्रंथों का ज्ञान नहीं है। इसलिए सब ऊवा-बाई बोल रहे हैं। स्वयं भी भ्रमित हैं तथा अदालत को भी भ्रमित करना चाहते हैं। दास प्रमाणों सहित पेश करता है, सद्ग्रंथों की सच्चाई जो इस प्रकार है:- श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं कहा। उनके शरीर के अंदर प्रेतवत् प्रवेश करके काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने बोला था।
प्रमाण:- महाभारत ग्रंथ में लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् युद्धिष्ठिर जी को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारका जाने की तैयारी की तो अर्जुन ने कहा कि ’’आप एक सत्संग करके जाना। मेरे को गीता वाला ज्ञान फिर से बताना जो आप जी ने युद्ध के समय बताया था। मैं भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि अर्जुन! तू बड़ा बुद्धिहीन है, श्रद्धाहीन है। तूने उस निर्मल गीता ज्ञान को क्यों भुला दिया है। अब मुझे भी याद नहीं।‘‘ फिर श्री कृष्ण जी ने अपने स्तर की गीता का ज्ञान बताया जिसमें श्रीमद्भगवत गीता वाला एक भी शब्द नहीं है।
‘‘अदालत के प्रश्न तथा कबीर जी के वकील के उत्तर’’
अदालत में प्रमाण पेश हैं कि श्रीमद्भगवत् गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनके शरीर में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा था।
अदालत का कबीर जी के वकील से प्रश्न नं. 1:- गीता का ज्ञान कब तथा किसने, किसको सुनाया, किसने लिखा? विस्तार से बताएँ।
कबीर जी के वकील का उत्तर:- श्री मद्भगवत् गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल भगवान ने (जिसे वेदों व गीता म���ं “ब्रह्म” नाम से भी जाना जाता है) अर्जुन को सुनाया। जिस समय कौरव तथा पाण्डव अपनी सम्पत्ति अर्थात् दिल्ली के राज्य पर अपने-अपने हक का दावा करके युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे, दोनों की सेनाएँ आमने-सामने कुरूक्षेत्रा के मैदान में खड़ी थी। अर्जुन ने देखा कि सामने वाली सेना में भीष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, रिश्तेदार, कौरवों के बच्चे, दामाद, बहनोई, ससुर आदि-आदि लड़ने-मरने के लिए खड़े हैं। कौरव और पाण्डव आपस में चचेरे भाई थे। अर्जुन में साधु भाव जागृत हो गया तथा विचार किया कि जिस राज्य को प्राप्त करने के लिए हमें अपने चचेरे भाईयों, भतीजों, दामादों, बहनोइयों, भीष्म पितामह जी तथा गुरूजनों को मारेंगे। यह भी नहीं पता कि हम कितने दिन संसार में रहेंगे? इसलिए इस प्रकार से प्राप्त राज्य के सुख से अच्छा तो हम भिक्षा माँगकर अपना निर्वाह कर लेंगे, परन्तु युद्ध नहीं करेंगे। यह विचार करके अर्जुन ने धनुष-बाण हाथ से छोड़ दिया तथा रथ के पिछले भाग में बैठ गया। अर्जुन की ऐसी दशा देखकर श्री कृष्ण बोले:- देख ले सामने किस योद्धा से आपने लड़ना है। अर्जुन ने उत्तर दिया कि हे कृष्ण! मैं किसी कीमत पर भी युद्ध नहीं करूँगा। अपने उद्देश्य तथा जो विचार मन में उठ रहे थे, उनसे भी अवगत कराया। उसी समय श्री कृष्ण जी में काल भगवान प्रवेश कर गया जैसे प्रेत किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके बोलता है। ऐसे ही काल ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके श्री मद्भगवत गीता का ज्ञान युद्ध करने की प्रेरणा करने के लिए तथा कलयुग में वेदों को जानने वाले व्यक्ति नहीं रहेंगे, इसलिए चारों वेदों का संक्षिप्त वर्णन व सारांश “गीता ज्ञान” रूप में 18 अध्यायों में 584 श्लोकों में सुनाया।(श्रीमद्भगवत गीता में कुल 700 श्लोक हैं जिनमें से 584 काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके बोले थे। शेष संजय, धृतराष्ट्र संवाद के श्लोक हैं।)
श्री कृष्ण को तो पता नहीं था कि मैंने क्या बोला था गीता ज्ञान में।
कुछ वर्षों के बाद वेदव्यास ऋषि ने इस अमृतज्ञान को संस्कृत भाषा में देवनागरी लिपि में लिखा। बाद में अनुवादकों ने अपनी बुद्धि के अनुसार इस पवित्रा ग्रन्थ का हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जो वर्तमान में गीता प्रैस गोरखपुर (न्ण्च्) से प्रकाशित किया जा रहा है जो कुछ गलत कुछ ठीक है।
पेश हैं ढ़ेर सारे प्रमाण कि गीता शास्त्र का ज्ञान “काल” ने कहा।
सर्व प्रथम गीता से ही प्रमाणित करता हूँ:-
प्रमाण नं. 1:- गीता अध्याय 11 में प्रमाण है कि जब गीता ज्ञान दाता ने अपना विराट रूप दिखा दिया तो उसको देखकर अर्जुन भयभीत हो गया, काँपने लगा। यहाँ पर यह बताना भी अनिवार्य है कि अर्जुन का साला था श्री कृष्ण क्योंकि श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था।
गीता ज्ञान दाता ने जिस समय अपना भयंकर विराट रूप दिखाया जो हजार भुजाओं वाला था। तब अर्जुन ने पूछा कि हे देव! आप कौन हैं?(गीता अध्याय 11 श्लोक 31)
गीता अध्याय 11 श्लोक 46:- हे सहंस्राबाहु (हजार भुजा वाले) आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए (क्योंकि अर्जुन उन्हें विष्णु अवतार कृष्ण तो मानता ही था, परन्तु उस समय श्री कृष्ण के शरीर से बाहर निकलकर काल ने अपना अपार विराट रूप दिखाया था) मैं भयभीत हूँ, आपके इस रूप को सहन नहीं कर पा रहा हूँ।
ध्यान रहे:- श्री विष्णु (श्री कृष्ण) केवल चार भुजा से युक्त हैं। ये दो भुजा तो बना सकते हैं, परंतु चार से अधिक का प्रदर्शन नहीं कर सकते। काल ब्रह्म हजार (संहस्र) भुजा युक्त है। यह एक हजार तथा इन से नीचे भुजाओं का प्रदर्शन कर सकता है। हजार भुजाओं से अधिक का प्रदर्शन नहीं कर सकता। चार भुजा, दो भुजा, दस भुजा आदि-आदि बना सकता है। शरीर में बने कमल चक्रों में भी इस काल ब्रह्म के चक्र का नाम संहस्र कमल दल चक्र है।
विचारणीय विषय है कि क्या हम अपने साले से पूछेंगे कि हे महानुभाव! बताईए आप कौन हैं? {एक समय एक व्यक्ति में प्रेत बोलने लगा। साथ बैठे व्यक्ति ने पूछा आप कौन बोल रहे हो? उत्तर मिला कि तेरा मामा बोल रहा हूँ। मैं दुर्घटना में मरा था। क्या हम अपने भाई को नहीं जानते? ठीक इसी प्रकार श्री कृष्ण में काल बोल रहा था।}
प्रमाण नं. 2:- गीता अध्याय 11 श्लोक 21 में अर्जुन ने कहा कि आप तो देवताओं के समूह के समूह को ग्रास (खा) रहे हैं जो आपकी स्तुति हाथ जोड़कर भयभीत होकर कर रहे हैं। महर्षियों तथा सिद्धों के समुदाय आप से अपने जीवन की रक्षार्थ मंगल कामना कर रहे हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान दाता ने बताया कि हे अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब प्रवृत हुआ हूँ अर्थात् श्री कृष्ण के शरीर में अब प्रवेश हुआ हूँ।
सर्व व्यक्तियों का नाश करूँगा। विपक्ष की सर्व सेना, तू युद्ध नहीं करेगा तो भी नष्ट हो जाएगी।
गीता अध्याय 11 श्लोक 21 व 32 से सिद्ध हुआ कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रविष्ट होकर काल ने कहा है। श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी को देखकर कोई भयभीत नहीं होता था। गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सब दर्शन करके आनंदित होते थे। तो ‘‘क्या श्री कृष्ण जी काल थे?‘‘ नहीं। इसलिए गीता ज्ञान दाता ‘‘काल‘‘ है
जिसने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके गीता शास्त्रा का ज्ञान दिया।
प्रमाण नं. 3:- गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञानदाता ने कहा कि हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी कृपा से तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट रूप दिखाया है। यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है।
विचार करें:- महाभारत ग्रन्थ में प्रकरण आता है कि जिस समय श्री कृष्ण जी कौरवों की सभा में उपस्थित थे और उनसे कह रहे थे कि आप दोनों (कौरव और पाण्डव) आपस में बातचीत करके अपनी सम्पत्ति (राज्य) का बटँवारा कर लो, युद्ध करना शोभा नहीं देता। पाण्डवों ने कहा कि हमें पाँच (5) गाँव दे दो, हम उन्हीं से निर्वाह कर लेंगे। दुर्योधन ने यह भी माँग नहीं मानी और कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक के समान भी राज्य नहीं है, युद्ध करके ले सकते हैं। इस बात से श्री कृष्ण भगवान बहुत नाराज हो गए तथा दुर्योधन से कहा कि तू पृथ्वी के नाश के लिए जन्मा है, कुलनाश करके टिकेगा। भले मानव! कहाँ आधा, राज्य कहाँ 5 गाँव। कुछ तो शर्म कर ले। इतनी बात श्री कृष्ण जी के मुख से सुनकर अभिमानी दुर्योधन राजा आग-बबूला हो गया और सभा में उपस्थित अपने भाईयों तथा मन्त्रिायों से बोला कि इस कृष्ण यादव को गिरफ्तार कर लो।
उसी समय श्री कृष्ण जी ने विराट रूप दिखाया। सभा में उपस्थित सर्व सभासद उस विराट रूप को देखकर भयभीत होकर कुर्सियों के नीचे छिप गए, कुछ आँखों पर हाथ रखकर जमीन पर गिर गए। श्री कृष्ण जी सभा छोड़ कर चले गए तथा अपना विराट रूप समाप्त कर दिया।
गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञान दाता ने कहा था कि यह मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त अर्जुन! पहले किसी ने नहीं देखा था। यदि श्री कृष्ण गीता ज्ञान बोल रहे होते तो यह कभी नहीं कहते कि मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था क्योंकि श्री कृष्ण जी के विराट रूप को कौरव तथा अन्य सभासद पहले देख चुके थे।
इससे भी सिद्ध हुआ कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा, उनके शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके काल (क्षर पुरूष) ने कहा था। (यह तीसरा प्रमाण हुआ।)
यथार्थ अनुवाद:- गीता अध्याय 7 श्लोक 24,25 का यथार्थ अनुवाद इस प्रकार हैः-
काल ब्रह्म ने कहा है कि मुझ अव्यक्त (गुप्त रहने वाले) को ये बुद्धिहीन जन-समुदाय मेरे (अनुतमम्) घटिया (अव्ययम्) अविनाशी यानि अटल नियम को नहीं जानते कि मैं अपने यथार्थ रूप में किसी के सामने प्रत्यक्ष नहीं होता। मुझे (व्यक्तिम्) मनुष्य रूप में यानि कृष्ण मान रहे हैं। (मैं कृष्ण नहीं हूँ।) श्लोक 25 में कहा है कि मैं अपनी योग माया से छिपा रहता हूँ। किसी के सामने प्रत्यक्ष नहीं होता। यह (मूढ़ः) अज्ञानी जन समुदाय मुझको इस प्रकार नहीं जानता कि मैं कृष्ण की तरह नहीं जन्मता। गीता 4 श्लोक 9 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि मेरे जन्म तथा कर्म अलौकिक (दिव्य) हैं यानि यह जन्मता-मरता तो है। वह अलग परम्परा है। उपरोक्त दोनों श्लोकों से सिद्ध हुआ कि काल गुप्त रहकर कार्य करता है।
प्रमाण नं. 4:- श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के चैथे अंश के अध्याय 2 श्लोक 19, 26 में प्रमाण है कि एक समय देवताओं और राक्षसों का युद्ध हुआ।
देवता पराजित होकर समुद्र के किनारे जाकर छिप गए। फिर श भगवान की तपस्या स्तुति करने लगे। काल का विधान है अर्थात् काल ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि मैं अपने वास्तविक काल रूप में कभी किसी को दर्शन नहीं दूंगा। अपनी योग माया से छिपा रहूँगा। (प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में) इसलिए यह काल (क्षर पुरूष) किसी को विष्णु जी के रूप में दर्शन देता है, किसी को शंकर जी के रूप में, किसी को ब्रह्मा जी के रूप में दर्शन देता है।
देवताओं को श्री विष्णु जी के रूप में दर्शन देकर कहा कि मैंने जो आप की समस्या है, वह जान ली है। आप पुरंज्य राजा को युद्ध के लिए तैयार कर लो। मैं उस राजा श्रेष्ठ के शरीर में प्रविष्ट होकर राक्षसों का नाश कर दूंगा, ऐसा ही किया गया।
श्री विष्णु पुराण के चैथे अंश के अध्याय 2
इसमें स्पष्ट लिखा है कि गीता ज्ञान देने वाला काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है। इसी प्रकार श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके गीता का ज्ञान कहा है।
प्रमाण नं. 5:- श्री विष्णु पुराण के चैथे अंश के अध्याय 3 श्लोक 4,6 में प्रमाण है कि एक समय नागवंशियों तथा गंधर्वों का युद्ध हुआ। गंधर्वों ने नागों के सर्व बहुमूल्य हीरे, लाल व खजाने लूट लिए, उनके राज्य पर भी कब्जा कर लिया। नागाओं ने भगवान की स्तुति की, वही ‘‘काल‘‘ भगवान विष्णु रूप धारण करके प्रकट हुआ। कहा कि आप पुरूकुत्स राजा को गंधर्वों के साथ युद्ध के लिए तैयार कर लें। मैं राजा पुरूकुत्स के शरीर में प्रवेश करके दुष्ट गंधर्वों का नाश कर दूँगा, ऐसा ही हुआ।
प्रमाण नं. 6:- महाभारत ग्रन्थ में (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित में) भाग-2 पृष्ठ 800,802 पर लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठर को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारिका जाने की तैयारी की। तब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से कहा कि आप वह गीता वाला ज्ञान फिर से सुनाओ, मैं उस ज्ञान को भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन! आप बड़े बुद्धिहीन हो, बड़े श्रद्धाहीन हो। आपने उस अनमोल ज्ञान को क्यों भुला दिया, अब मैं उस ज्ञान को नहीं सुना सकता क्योंकि मैंने उस समय योगयुक्त होकर गीता का ज्ञान सुनाया था। जब वक्ता को ज्ञान नहीं तो श्रोता को कैसे याद रह सकता है। इससे सिद्ध है कि श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान नहीं कहा।
प्रमाण के लिए पढे़ं संक्षिप्त महाभारत ग्रन्थ (भाग-2) के पृष्ठ 800,802।
विचार करें:- युद्ध के समय योगयुक्त हुआ जा सकता है तो शान्त वातावरण में योगयुक्त होने में क्या समस्या हो सकती है? वास्तव में यह ज्ञान काल ने श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोला था।
श्री कृष्ण जी को स्वयं तो वह गीता ज्ञान याद नहीं, यदि वे वक्ता थे तो वक्ता को तो सर्व ज्ञान याद होना चाहिए। श्रोता को तो प्रथम बार में 40 प्रतिशत ज्ञान याद रहता है। इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश होकर काल (क्षर पुरूष) ने बोला था। उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ कि श्रीमद् भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनको तो पता ही नहीं कि क्या कहा था, श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने बोला था।
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SA style="font-size:10pt;line-height:115%;font-family:Mangal,serif">अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमौषधम्। अन्वय अर्थ हिन्दी अनुवाद
SA style=”font-size:10pt;line-height:115%;font-family:Mangal,serif”>अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमौषधम्। अन्वय अर्थ हिन्दी अनुवाद
अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमौषधम्। अन्वय अर्थ हिन्दी अनुवाद अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमौषधम्। अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः॥ श्लोक का पदच्छेद और हिन्दी अनुवाद · अमन्त्रम् – मन्त्रहीन, बिना किसी काम का, बेकार, · अक्षरम् – अ, आ, ई, क्, ख् ग, इत्यादि अक्षर · न – नहीं · अस्ति है · नास्ति – नहीं है · मूलम् – जड़ · अनौषधम् – जो दवा न हो · अयोग्यः – बिना किसी काम का, बेकार, फालतू ·…
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#CBSE#NCERT#SA style="font-size:10pt;line-height:115%;font-family:Mangal#serif">सुभाषित#serif">सुभाषितानि कक्षा दशमी#style="font-size:10pt;line-height:115%;font-family:Mangal#श्लोक#श्लोकों का हिन्दी अनुवाद#संस्कृत#संस्कृत श्लोक#संस्कृत सुभाषित#सुभाषित श्लोक#सुभाषितानि#हिन्दी अनुवाद
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अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र (हिन्दी अनुवाद सहित) चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय। धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।१।। आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकरजी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।१।। कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारज:पुंजविचर्चिताय। कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।२।। पार्वतीजी के शरीर में कस्तूरी और कुंकुम का लेप लगा है और भगवान शंकर के शरीर में चिता-भस्म का पुंज लगा है। पार्वतीजी कामदेव को जिलाने वाली हैं और भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं, ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।२।। चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय। हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।३।। भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर के हाथों और पैरों में सर्पों के फुफ��ार की ध्वनि हो रही है। पार्वतीजी की भुजाओं में बाजूबन्द सुशोभित हो रहे हैं और भगवान शंकर की भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।३।। विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय। समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।४।। पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं। पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।४।। मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय। दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।५।। पार्वतीजी के केशपाशों में मन्दार-पुष्पों की माला सुशोभित है और भगवान शंकर के गले में मुण्डों की माला सुशोभित हो रही है। पार्वतीजी के वस्त्र अति दिव्य हैं और भगवान शंकर दिगम्बर रूप में सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।५।। अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय। निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।६।। पार्वतीजी के केश जल से भरे काले मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर की जटा विद्युत्प्रभा के समान कुछ लालिमा लिए हुए चमकती दीखती है। पार्वतीजी परम स्वतन्त्र हैं अर्थात् उनसे बढ़कर कोई नहीं है और भगवान शंकर सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।६।। प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय। जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय।।७।। भगवती पार्वती लास्य नृत्य करती हैं और उससे जगत की रचना होती है और भगवान शंकर का नृत्य सृष्टिप्रपंच का संहारक है। पार्वतीजी संसार की माता और भगवान शंकर संसार के एकमात्र पिता हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।७।। प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय। शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।८।। पार्वतीजी प्रदीप्त रत्नों के उज्जवल कुण्डल धारण किए हुई हैं और भगवान शंकर फूत्कार करते हुए महान सर्पों का आभूषण धारण किए हैं। भगवती पार्वतीजी भगवान शंकर की और भगवान शंकर भगवती पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।८।। स्तोत्र पाठ का फल एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी। प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि:।।९।। आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट सिद्धि करने वाला है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है और दीर्घजीवी बनता है, वह अनन्त काल के लिए सौभाग्य व समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है। ।।इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।। शक्तिसहित शिव सब कुछ करने में समर्थ हैं, पर शक्ति के बिना वे स्पन्दन भी नहीं कर सकते। अत: ब्रह्मा, विष्णु आदि सबकी आराध्या तुझ परमशक्ति सहित शिव का कोई पुण्यहीन व्यक्ति प्रणाम व स्तवन नहीं कर सकता। (बड़े पुण्य से ही आपकी स्तुति का संयोग मिलता है।
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अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र (हिन्दी अनुवाद सहित) चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय। धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।१।। आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकरजी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।१।। कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारज:पुंजविचर्चिताय। कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।२।। पार्वतीजी के शरीर में कस्तूरी और कुंकुम का लेप लगा है और भगवान शंकर के शरीर में चिता-भस्म का पुंज लगा है। पार्वतीजी कामदेव को जिलाने वाली हैं और भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं, ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।२।। चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय। हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।३।। भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर के हाथों और पैरों में सर्पों के फुफकार की ध्वनि हो रही है। पार्वतीजी की भुजाओं में बाजूबन्द सुशोभित हो रहे हैं और भगवान शंकर की भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।३।। विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय। समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।४।। पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं। पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।४।। मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय। दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।५।। पार्वतीजी के केशपाशों में मन्दार-पुष्पों की माला सुशोभित है और भगवान शंकर के गले में मुण्डों की माला सुशोभित हो रही है। पार्वतीजी के वस्त्र अति दिव्य हैं और भगवान शंकर दिगम्बर रूप में सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।५।। अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय। निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।६।। पार्वतीजी के केश जल से भरे काले मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर की जटा विद्युत्प्रभा के समान कुछ लालिमा लिए हुए चमकती दीखती है। पार्वतीजी परम स्वतन्त्र हैं अर्थात् उनसे बढ़कर कोई नहीं है और भगवान शंकर सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।६।। प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय। जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय।।७।। भगवती पार्वती लास्य नृत्य करती हैं और उससे जगत की रचना होती है और भगवान शंकर का नृत्य सृष्टिप्रपंच का संहारक है। पार्वतीजी संसार की माता और भगवान शंकर संसार के एकमात्र पिता हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।७।। प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय। शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।८।। पार्वतीजी प्रदीप्त रत्नों के उज्जवल कुण्डल धारण किए हुई हैं और भगवान शंकर फूत्कार करते हुए महान सर्पों का आभूषण धारण किए हैं। भगवती पार्वतीजी भगवान शंकर की और भगवान शंकर भगवती पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।८।। स्तोत्र पाठ का फल एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी। प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि:।।९।। आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट सिद्धि करने वाला है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है और दीर्घजीवी बनता है, वह अनन्त काल के लिए सौभाग्य व समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है। ।।इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।। शक्तिसहित शिव सब कुछ करने में समर्थ हैं, पर शक्ति के बिना वे स्पन्दन भी नहीं कर सकते। अत: ब्रह्मा, विष्णु आदि सबकी आराध्या तुझ परमशक्ति सहित शिव का कोई पुण्यहीन व्यक्ति प्रणाम व स्तवन नहीं कर सकता। (बड़े पुण्य से ही आपकी स्तुति का संयोग मिलता है।)
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