वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
बसन्त पंचमी कथा
१.सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।
२.पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।
३.दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
ऐतिहासिक महत्व
*वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को १६ बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
*वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसन्त पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।
* वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म १८१६ ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था।
* राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही हुआ था । राजा भोज इस दिन एक बड़ा उत्सव करवाते थे जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था जो चालीस दिन तक चलता था।
* हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी का जन्म भी बसंत पंचमी हुआ था।
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MP का 'जल्लाद' पेड़, जहां 27 क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने दी थी यहां फांसी, अब ऐसी है सुरक्षा
नीमच: मध्य प्रदेश के नीमच जिले में एक बरगद का पेड़ है, जिसे जल्लाद पेड़ भी कहा जाता है। आजादी के आंदोलन के समय अंग्रेजों ने इस पेड़ पर 27 क्रांतिकारियों को फांसी दी थी। उस पेड़ के कुछ हिस्से नीमच जिले में आज भी सुरक्षित है। इस पेड़ की रक्षा आर्मी, नेवी और एयरफोर्स से रिटायर्ड लोग करते हैं। कहा जाता है कि आजादी की लड़ाई के दौरान पहली गोली यही चलाई गई थी। बड़ी संख्या में लोग इस पेड़ को यहां देखने भी आते हैं। साथ ही खास मौकों पर कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। नीमच जिले में इस जगह को शहीद स्मारक नाम से जाना जता हैं। 26 जनवरी, 15अगस्त सहित अन्य राष्ट्रीय त्योहारों पर यहां देश के विभिन्न सेनाओं में शहीद हुए वीर सैनिको को श्रद्धांजलि दी जाती है। दरअसल, 1857 में देश की आजादी के लिए पहली बार यहीं से एक सशक्त आवाज उठी थी। उस समय हुई क्रांति में मध्यप्रदेश-राजस्थान में पहली आवाज नीमच से उठी थी। कहते हैं कि 03 जून 1857 को नीमच से पहली गोली चली थी, लेकिन बाद में इस क्रांति को दबा दिया था।
फांसी पर लटका दिया
क्रांति दब जाने पर अंग्रेजों ने आजादी के लिए आवाज उठाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाया था। इतिहासकार बताते हैं कि किसी को तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया गया था। वहीं, कुछ लोगों को एक साथ यहां स्थित बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गई थी। इस पेड़ के आसपास ऐसी तस्वी�� भी बनाई गई है। ताकि क्रांति की यादें हमेशा लोगों की जेहन में जीवित रहे।
पूर्व सैनिक करते हैं इसकी देखभाल
इस पेड़ की हिफाजत करने वाले पूर्व सैनिक कमलेश नलवाया ने नवभारत टाइम्स.कॉम से बात करते हुए कहा कि फांसी की सजा पाने वाले सैनिकों में रामरतन खत्री, प्यारे खान पठान, केसर सिंह बैंस, दिलीप सिंह जैसे कई नाम महत्वपूर्ण हैं। इसकी देखरेख के लिए हम पूर्व सैनिक संकल्पित हैं। विजय और शौर्य दिवस के मौके पर यहां बड़े कार्यक्रम होते हैं। बड़ी संख्या में शहर के लोग आते हैं। नीमच के इतिहास की इस घटना पर जिले के शिक्षाविद डॉ सुरेंद्र सिंह शक्तावत ने एक किताब लिखी हैं। इसका विमोचन मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने किया हैं। इस किताब में नीमच के इतिहास से जुड़ी और स्वतंत्रता की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख हैं। इसी किताब में स्वतंत्रता की पहली गोली चलाने के उल्लेख किया हैं।
भागते फिरे अंग्रेज
सुरेंद्र शक्तावत ने कहा कि क्रांतिकारियों के खौफ से नीमच में अंग्रेज भागते फिरे। वह जंगलों में छिपकर रहते थे। अंग्रेजों ने यहां वनवासी जैसा जीवन काटा था। जब आजादी की लड़ाई धीमी पड़ी तो अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को कुचलना शुरू कर दिया। नीमच में 27 क्रांतिकारी प्रमुख रूप से फांसी के फंदे पर चढ़े। उन्होंने कहा कि मूल पेड़ 1977 के करीब बारिश और आंधी की वजह से गिर गया था। इसके बाद उसकी एक शाखा को पास में ही लगा दिया गया। साथ ही एक मंदसौर में लगा दिया गया है। अब वह शाखा विशाल पेड़ का रूप ले चुका है। http://dlvr.it/T0s2w6
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Astrobhoomi-ग्रह के अनुसार व्यवसाय और करें उपाय, पाएं लाभ part VI
शनि ग्रह से संबंधित व्यापार
शनि का भूमि क्षेत्र से विशेष संबंध है। शनि पृथ्वी के भीतर पाये जाने वाले पदार्थ का कारक है। लोहा संबंधित कार्य, मशीनरी के कार्य, केमिकल प्रोडक्ट, ज्वलनशील तेल (पेट्रोल, डीजल आदि), कुकिंग गैस , प्राचीन वस्तुएं, पुरातत्व विभाग, अनुसंधान कार्य, ज्योतिष कार्य, लोहे से संबंधित कच्ची धातु, कोयला, चमड़े का काम, जूते, अधिक श्रम वाला कार्य, नौकरी, मजदूरी, ठेकेदारी, दस्तकारी, मरम्मत के कार्य, लकड़ी का कार्य, मोटा अनाज, प्लास्टिक एवं रबर उद्योग , काले पदार्थ, स्पेयर पार्ट्स, भवन निर्माण सामग्री, पत्थर एवं चिप्स, ईंट, शीशा, टाइल्स, राजमिस्त्री, बढ़ई, श्रम एवं समाज कल्याण विभाग, टायर उद्योग, पलम्बर, घड़ियों का काम, कबाड़ी का काम, जल्लाद, तेल निकालना, पीडब्ल्यूडी , सड़क निर्माण, सीमेंट। शनि+गुरु+मंगल= इलेक्ट्रिक इंजिनियर। शनि+बुध+गुरु= मेकेनिकल इंजीनियर। शनि+शुक्र= पत्थर की मूर्ति। लोहा, पेट्रोल या कोयले का बिजनेस मुख्य रूप से शनि ग्रह से जुड़े व्यवसाय है।
शनि ग्रह को मजबूत करने के उपाय
1) शनि ग्रह को मजबूत करने के लिए जातक को दाहिने हाथ की मध्य अंगुली में लोहे का छल्ला जरूर पहनना चाहिए। इसके अलावा दाहिनी कलाई में काला रेशमी धागा बांधें।
2) शनि ग्रह से पीड़ित जातक को रोज सुबह या शाम को ‘ऊं शं शनैश्चराय नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
जातक हर शनिवार को तिलयुक्त भोजन का दान करें।
3) शनिवार के दिन लोहा, उड़द, सरसों का तेल, तिल, काले वस्त्र आदि चीजों का दान करना चाहिए। इसी के साथ शनिदेव की कृपा पाने के लिए सदैव परिश्रम, ईमानदारी, विनम्रता भाव को अपनाना चाहिए। हमेशा सत्कर्म करने चाहिए। बड़े-बुजुर्गों, निसहाय, निर्धन सभी का सम्मान करना चाहिए।
4) शनिवार के दिन नीलम रत्न धारण करना चाहिए। नीलम रत्न को बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार इस रत्न को धारण करने से शनि की प्रतिकूलता के प्रभाव समाप्त होते हैं और आपकी कार्यक्षेत्र से संबंधित समस्याएं भी दूर होती हैं। नीलम रत्न को बहुत शक्तिशाली रत्न माना जाता है, इसलिए इसे धारण करने से पहले किसी योग्य ज्योतिष से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
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पति ने कहा-बेवफा है वो बीवी बोली-पति जल्लाद
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बिस्तर पर शौहर की हैवानियत: सोते हुए किया घिनौना काम...दर्द में तड़पती रही पत्नी, अस्पताल में कराना पड़ा भर्ती
बिस्तर पर शौहर की हैवानियत: सोते हुए किया घिनौना काम
उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में पति ने ऐसी हैवानियत की, जिसे सुनकर किसी की भी रूह कांप जाएगी। रात में सोते समय पति ने पत्नी संग अप्राकृतिक कृत्य करना शुरू कर दिए। पत्नी ने विरोध किया तो पति जल्लाद बन गया। उसने पत्नी संग रात में ही मारपीट की और फिर प्रेस को गर्म करके उसके कूल्हों को जलाना शुरू कर दिया। पत्नी दर्द से चीखती रही, लेकिन पति को उस पर जरा भी रहम नहीं आया। पीड़ित महिला…
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स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ प्रदर्शन कर पुतलें को लगाई फांसी
अवधनामा संवाददाता
आजमगढ़। रामचरित मानस पर अशोभनीय टिप्पणी का मामला आजमगढ़ में भी सुर्खियों में बना हुआ है। जिसको लेकर हिन्दू संगठनो में उबाल है। शुक्रवार को हरिवंश मिश्र के नेतृत्व में कलेक्ट्रेट चैराहे पर सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या का प्रतिकात्मक पुतले को जल्लाद की भूमिका निभाते हुए मिथिलेश चैरसिया ने फांसी पर चढ़ा दी। इसके बाद हिन्दू जागरण मंच, गौ रक्षा प्रकोष्ठ, विश्व हिन्दू महासंघ, वर्ल्ड…
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स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ प्रदर्शन कर पुतलें को लगाई फांसी
अवधनामा संवाददाता
आजमगढ़। रामचरित मानस पर अशोभनीय टिप्पणी का मामला आजमगढ़ में भी सुर्खियों में बना हुआ है। जिस��ो लेकर हिन्दू संगठनो में उबाल है। शुक्रवार को हरिवंश मिश्र के नेतृत्व में कलेक्ट्रेट चैराहे पर सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या का प्रतिकात्मक पुतले को जल्लाद की भूमिका निभाते हुए मिथिलेश चैरसिया ने फांसी पर चढ़ा दी। इसके बाद हिन्दू जागरण मंच, गौ रक्षा प्रकोष्ठ, विश्व हिन्दू महासंघ, वर्ल्ड…
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इस बहते हुए लहू में मुझे तो
इस बहते हुए लहू में मुझे तो बस इन्सान नज़र आ रहा है
लानत हो तुम पे तुम्हे ही हिन्दू मुसलमां नज़र आ रहा है,
ऐसी नफ़रत और हैवानियत से सियासत ही बड़ी ख़ुश है
वरना तो खलकत में हर कोई ही परेशां नज़र आ रहा है,
ये जो बने है एक दूसरे की जाँ के दुश्मन जल्लाद नहीं है
मुझे तो इस भीड़ में हर कोई ही बेगुनाह नज़र आ रहा है,
शौक़ ए आतिशबाज़ी महज़ तुम्हारी तफरीह का सामां है
वरना जिधर देखो जलता हुआ हिन्दोस्तां नज़र आ रहा है,
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#धर्म_TheSaviour
9 नवम्बर, 1675
वह घोड़े से उतरा और घर के अंदर गया। घर क्या था, हवेली थी; आखिर, औरंगज़ेब का शाही जल्लाद था वह। ख्वाबगाह में पहुँच कर टोपी उतार फेंकी और सिर के बाल नौंचने लगा, चोगा भी उतार फेंका लेकिन फिर धीरे से उठा लिया और उन पर लगे लाल धब्बों को देख कर गुमसुम सा था कि बीवी आ गयी—
“हाय अल्लाह! आपके चेहरे पर हवाइयाँ क्यों उड़ रही हैं,” उसने खूबसूरत और नर्म हाथों से उसका चेहरा सहलाया।
कोई भी असर न हुआ! ऐसा तो कभी न हुआ था कि उसने उसे फौरन बाहों में जकड़ कर उसके गुलाबी लबों का बोसा न लिया हो। हुस्नारा ने पंजों पर ऊँची होकर उसके गाल चूमे तो लगा जैसे वह मुर्दा हो।
“आपके लिए शर्बत लाती हूँ, आपको पता नहीं क्या हो गया है?” वह जाने लगी तो शाहबाज़ ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे चोगा देकर बोला—
“इस चोगे पर एक अज़ीम इंसान का ख़ून लगा है, जिसकी शहादत मेरे हाथों से हुई है। इसे संभाल कर रख लो, कभी धोना नहीं इसे”।
हुस्नारा ने अपने शौहर को कभी ऐसा न देखा था। उसने जाने कितने ही लोगों को फांसी दी थी, कितनों के सिर कलम किए थे। मगर आज तो जैसे वह अपनी सुध-बुध खोया हुआ था। उसकी आवाज़ भी ऐसी थी जैसे कुएं से आ रही हो।
“रहम परवरदिगार, रहम!” उसने दोनों हाथ आसमान की ओर करके छत की ओर देखा।
शाहबाज़ की आँखों से टपटप आँसू बहने लगे थे और उसने कस कर अपने दोनों हाथों से कानों को दबा रखा था, जैसे किसी आवाज़ को रोक देना चाहता हो।
“हुआ क्या है? मुझे बताओ न, आपको तसल्ली मिलेगी,” वह बेहद फिक्रमंद हो कर उसका सिर सहलाने लगी।
“आज शहंशाह के हुक्म की तामील के लिए एक सिख, भाई मति दास को जिंदा ही आर�� से चीरना पड़ा। ऐसी सजा तो कभी न दी गई थी आज तक! बादशाह को उम्मीद थी कि ये बेरहम तरीका इख़्तियार करने से वह बेइंतहा चीखेगा और सिखों का गुरू, तेग बहादुर, आखों से ये मंज़र देख नहीं पाएगा, कानों से चीखें सुन नहीं पाएगा और पल भर में इस्लाम कुबूल कर लेगा। मगर…”।
हुस्नारा और सुन नहीं पाई और धम्म से दीवान पर बैठ गई।
“वह चीखा नहीं, चिल्लाया नहीं बस तेज आवाज़ में सतनाम श्री वाहे-गुरू जपता रहा। आरे के दांते जब उसकी खोपड़ी की हड्डी को करड़-करड़ करके चीरते, तो हर बार उसकी आवाज़ में सतनाम श्री वाहे-गुरू की और तेजी आ जाती। मुझे भी लगा था वह आरा लगते ही चीखेगा, रहम की भीख माँगेगा, मगर नहीं...”।
“जब आरा तीन-चार इंच तक सिर में धंस गया और खून का फौवारा छूटने लगा तो काज़ी ने उससे कहा— अब भी इस्लाम कुबूल ले, शाही ज़र्राह तेरे घाव ठीक कर देगा; तुझे दरबार में ऊँचा पद दिया जाएगा और तेरी पाँच शादियाँ करवा दी जायेंगी मगर वह बस जोर से हँसा; फिर और भी जोर से सतनाम श्री वाहे-गुरू जपने लगा। आरा उसकी छाती तक उतर आया मगर उसकी आवाज़ बंद ही नहीं हुई”।
“मैं उसके चेहरे की तरफ था, दूसरा जल्लाद पीछे था। उसकी आँखों की चमक मुझे अब तक चीरे जा रही है, और आवाज़ मेरी रूह में घुसी चली आ रही है। वो आवाज़ बंद नहीं हुई… अब तक नहीं हुई, हुस्नारा, मेरे कानों में अब तक उसकी आवाज़ गूँज रही है… सतनाम श्री वाहे-गुरू, सतनाम श्री वाहे-गुरू...”
और शाहबाज़ ग़श खाकर गिर पड़ा। उसके दिल की धड़कन रुक गई थी।
भाई मति दास जी का बलिदान, कभी न भूलेगा हिन्दुस्तान🙏🚩
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🚩 भाई मतिदास और दो भाइयों ने धर्म के लिए प्राण दिए पर धर्मपरिवर्तन नहीं किया - 9 November 2022
🚩औरंगज़ेब के शासनकाल में उसकी इतनी हठधर्मिता थी,कि उसे इस्लाम के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा तक सहन नहीं थी।
🚩मुग़ल आक्रांता औरंगजेब ने मंदिर, #गुरुद्वारों को तोड़ने और मूर्ति पूजा बंद करवाने के फरमान जारी कर दिए थे, उसके आदेश के अनुसार कितने ही मंदिर और गुरूद्वारे तोड़े गए, मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ कर टुकड़े कर दिए गए और मंदिरों में गायें काटीं गयीं, औरंगज़ेब ने सबको इस्लाम अपनाने का आदेश दिया, संबंधित अधिकारी को यह कार्य सख्ती और तत्परता से करने हेतु सौंप दिया।
🚩औरंगजेब ने हुक्म दिया कि किसी #हिन्दू को राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर नियुक्त न किया जाये तथा हिन्दुओं पर जजिया कर लगा दिया जाये। उस समय अनेकों कर केवल #हिन्दुओं पर लगाये गये। इस भय से असंख्य हिन्दू मुसलमान हो गये। हिन्दुओं #त्योहार, पूजा,#आरती आदि सभी #धार्मिक कार्य बंद होने लगें। मंदिर गिराये गये, मस्जिदें बनवायी गयीं और अनेकों #धर्मात्मा व्यक्ति मरवा दिये गये। उसी समय की उक्ति है –“सवा मन यज्ञोपवीत रोजाना उतरवा कर,औरंगजेब रोटी खाता था।”
🚩औरंगज़ेब ने कहा – “सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें।”
🚩इस प्रकार की ज़बर्दस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया। हिंदू और सिखों को इस्लाम अपनाने के लिए सभी उपायों, लोभ लालच, भय, दंड से मजबूर किया गया। जब गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया तो उनको औरंगजेब के हुक्म से गिरफ्तार कर लिया गया था। गुरुजी के साथ तीन सिख वीर दयाला, भाई मतीदास और सतीदास भी दिल्ली में कैद थे।
🚩क्रूर औरंगजेब चाहता था कि गुरुजी मुसलमान बन जायें, उन्हें डराने के लिए इन तीनों वीरो को तड़पा तड़पा कर मारा गया, पर गुरुजी विचलित नहीं हुए।
🚩मतान्ध औरंगजेब ने सबसे पहले 9 नवम्बर सन 1675 ई. को भाई मतिदास को आरे से दो भागों में चीरने को कहा, लकड़ी के दो बड़े तख्तों में जकड़कर उनके सिर पर आरा चलाया जाने लगा, जब आरा दो तीन इंच तक सिर में धंस गया, तो काजी ने उनसे कहा –
🚩“मतिदास अब भी इस्लाम स्वीकार कर ले, शाही जर्राह तेरे घाव ठीक कर देगा, तुझे दरबार में ऊँचा पद दिया जाएगा और तेरी पाँच शादियाँ कर दी जायेंगी।
🚩तब भाई मतिदास ने व्यंग्यपूर्वक पूछा – “काजी, यदि मैं इस्लाम मान लूँ, तो क्या मेरी कभी मृत्यु नहीं होगी.” काजी ने कहा कि – “यह कैसे सम्भव है, जो धरती पर आया है उसे मरना तो है ही।”
🚩भाई मतिदास ने हँसकर कहा – “यदि तुम्हारा इस्लाम मजहब मुझे मौत से नहीं बचा सकता, तो फिर मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म में रहकर ही मृत्यु का वरण क्यों न करूँ।”स्वधर्म निधनम श्रेयो, पर धर्मों भयावहो।
🚩उन्होंने जल्लाद से कहा कि – “अपना आरा तेज चलाओ, जिससे मैं शीघ्र अपने प्रभु के धाम पहुँच सकूँ।”
🚩यह कहकर वे ठहाका मार कर हँसने लगे, काजी ने कहा कि – “यह मृत्यु के भय से पागल हो गया है।”
🚩भाई मतिदास ने कहा – ” मैं डरा नहीं हूँ, मुझे प्रसन्नता है कि मैं धर्म पर स्थिर हूँ। जो धर्म पर अडिग रहता है, उसके मुख पर लाली रहती है, पर जो धर्म से विमुख हो जाता है, उसका मुँह काला हो जाता है।”
🚩कुछ ही देर में उनके शरीर के दो टुकड़े हो गये। अगले दिन 10 नवम्बर को उनके छोटे भाई सतिदास को रुई में लपेटकर जला दिया गया। भाई दयाला को पानी में उबालकर मारा गया।
🚩ग्राम करयाला, जिला झेलम वर्तमान पाकिस्तान तत्कालीन अविभाजित भारत निवासी भाई मतिदास एवं सतिदास के पूर्वजों का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। उनके परदादा भाई परागा छठे गुरु हरगोविन्द के सेनापति थे। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध युद्ध में ही अपने प्राण त्यागे थे। उनके समर्पण को देखकर गुरुओं ने उनके परिवार को ‘भाई’ की उपाधि दी थी।
🚩इसी वंश के क्रान्तिकारी भाई बालमुकुन्द ने 8 मई सन 1915 ई. को केवल 26 वर्ष की आयु में फाँसी पायी थी। उनकी पत्नी रामरखी ने पति की फाँसी के समय घर पर ही देह त्याग दी। लाहौर में भगतसिंह आदि सैकड़ों क्रान्तिकारियों को प्रेरणा देने वाले भाई परमानन्द भी इसी वंश के तेजस्वी नक्षत्र थे।
🚩किसी ने ठीक ही कहा है – सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत पुरजा-पुरजा कट मरे, तऊँ न छाड़त खेत।।
🚩अफ़सोस की बात ये है कि इसके बाद भी इतिहास में भाई मतिदास, भाई ��तिदास तथा भाई दयाला को जगह नहीं दी गई तथा उनके बलिदान की गौरवगाथा को हिंदुस्तान के लोगों से छिपाकर रखा गया। बहुत कम लोग होंगे जो इनके बलिदान तथा त्याग के बारे में जानते होंगे।
🚩हिंदुस्तान में आज जो हिन्दू बचे हैं वे भी ऐसे महापुरुषों के कारण ही है, क्योंकि उन्होंने अपने धर्म के लिए प्राण दिए पर लालच में आकर धर्मपरिवर्तन नहीं किया, नही तो वे भी बड़ा ऊंचा पद लेकर अपनी आराम से जिंदगी जी सकते थे, पर उन्होंने ऐशो आराम को ठुकरा कर धर्म के लिए शरीर को तड़पाकर प्राण त्याग दिए इन महापुरुषों के कारण आज हिन्दू धर्म जीवित है। आज जो लालच में आकर धर्म परिवर्तन कर लेते है उनको भाई मतिदास से सिख लेनी चाहिए।
🚩ऐसे महापुरुषों के बलिदान दिवस पर शत-शत नमन।
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जंग में शामिल हुए रूस के मुसलमान, यूक्रेन युद्ध को बताया 'जिहाद', दुनिया के सबसे खूंखार जल्लाद ने किया ये बड़ा ऐलान
जंग में शामिल हुए रूस के मुसलमान, यूक्रेन युद्ध को बताया ‘जिहाद’, दुनिया के सबसे खूंखार जल्लाद ने किया ये बड़ा ऐलान
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चेचन्या का कमांडर और पुतिन का समर्थक रमजान कादिरोव
Russia Ukraine War: चेचन्या का खूंखार कमांडर और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का खास समर्थक रमजान कादिरोव यूक्रेन में रूसी सेना की हार से बौखला गया है। उसने यूक्रेन युद्ध को ग्रेट जिहाद घोषित कर दिया है। उसने दुनिया भर के मुसलमानों से कहा है कि वह शैतानी ताकतों से लड़ें। कादिरोव ने कहा है कि रूसी मुसलमानों की जिम्मेदारी…
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फाशी देण्यापूर्वी जल्लाद गुन्हेगाराच्या कानात काय सांगतात? जाणून घ्या
फाशी देण्यापूर्वी जल्लाद गुन्हेगाराच्या कानात काय सांगतात? जाणून घ्या
फाशी देण्यापूर्वी जल्लाद गुन्हेगाराच्या कानात काय सांगतात? जाणून घ्या
सध्या देशभरात शबनम प्रकरणाची चर्चा जोरात सुरू आहे. स्वतंत्र भारताच्या इतिहासात पहिल्यांदाच एका महिलेला फाशीची शिक्षा सुनावण्यात आली आहे
सध्या देशभरात शबनम प्रकरणाची चर्चा जोरात सुरू आहे. स्वतंत्र भारताच्या इतिहासात पहिल्यांदाच एका महिलेला फाशीची शिक्षा सुनावण्यात आली आहे
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जब जेल में दी जाती है दोषी को फांसी, तो रुक जाते हैं सारे काम, इन नियम-कानून का करना पड़ता है पालन
चैतन्य भारत न्यूज
नई दिल्ली. 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड के आरोपितों में से चार गुनाहगारों की मौत की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। हर देशवासी को उस घड़ी का इंतजार है जब चारों दरिंदों को फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा। चार में से तीन दोषी मुकेश, विनय और अक्षय पिछले सात सालों से तिहाड़ में बंद हैं। पवन को भी अब मंडोली जेल से तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया गया है। अब उनकी फांसी की तैयारी चल रही है। क्या आपको पता है कि जब किसी को फांसी दी जाती है, तो जेल में वक्त थम-सा जाता है। आइए जानते हैं फांसी के वक्त जेल में कैसा माहौल रहता है।
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आसान नहीं फांसी की प्रक्रिया
फांसी की प्रक्रिया आसान नहीं है। इस दौरान कई अहम बातों का ख्याल रखा जाता है। जैसे कि- कैदी को अलग रखा जाना, उसके स्वास्थ का अच्छे से ख्याल रखना, 24 घंटे उसकी निगरानी करना ताकि वो खुद को कोई नुकसान ना पहुंचा सके।
फांसी के दौरान जेल में रुक जाता है वक्त
किसी भी दोषी को फांसी देने की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है। इसके लिए कई नियम-कानून का भी पालन सख्ती से किया जाता है। जब भी किसी दोषी कैदी को फांसी दी जाती है तो वह कार्रवाई तब तक अंजाम तक नहीं पहुंचती, जब तक लाश फंदे से नीचे नहीं उतार ली जाए। फांसी देते समय जेल के सभी काम रोक दिए जाते हैं। हर कैदी अपने सेल और अपने बैरक में होता है। यहां तक कि जेल में कोई मूवमेंट नहीं होता। यानी फांसी देते वक्त जेल में हर तरफ सन्नाटा-सा पसर जाता है। यह सब जेल मैनुअल का हिस्सा है। जैसे ही डॉक्टर कैदी को मृत घोषित कर देता है और उसकी लाश फंदे पर से उतार ली जाती है, उसके बाद फांसी की प्रक्रिया खत्म हो जाती है। फिर जेल में दोबारा सारे काम शुरू हो जाते हैं।
बैरक से काफी दूर है फांसी कोठी
तिहाड़ जेल का निर्माण 1958 में हुआ था। अंग्रेजों के जमाने में ही वहां फांसी घर (फांसी कोठी) का नक्शा बना दिया गया था। ये फांसी कोठी तिहाड़ के जेल नंबर तीन में कैदियों के बैरक से बहुत दूर बिल्कुल अलग सुनसान जगह पर है। जिस बिल्डिंग में फांसी कोठी बनी है उस बिल्डिंग में कुल 16 डेथ सेल हैं। बता दें डेथ सेल वो जगह होती है जहां सिर्फ उन्हीं कैदियों को रखा जाता है, जिन्हें मौत की सजा मिली है। डेथ सेल में कैदी को अकेला रखा जाता है। उसे 24 घंटे में सिर्फ आधे घंटे के लिए ही बाहर निकाला जाता है।
तमिलनाडु स्पेशल पुलिस करती डेथ सेल की पहरेदारी
जानकारी के मुताबिक, डेथ सेल की पहरेदारी तमिलनाडु स्पेशल पुलिस करती है। यहां दो-दो घंटे की शिफ्ट में काम किया जाता है। इनका काम मौत की सजा मिलने वाले कैदियों पर नजर रखना होता है, ताकि वे खुदकुशी न कर लें। डेथ सेल में कैदियों को कोई भी चीज खुद करने की इजाजत नहीं दी जाती है।
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भारत में पहली बार होगी किसी महिला को फांसी जिसे अंजाम देने वाले होंगे पवन जल्लाद
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एस. खान। जिला अमरोहा जो बहुत मशहूर है। वहीं के कमाल अमरोही बहुत मशहूर डायरेक्टर हैं। और वही अमरोहा से बहुत से प्रसिद्ध लोग पैदा हुए लेकिन इसी अमरोहा जिला की एक महिला की फांसी, भारत में पहली बार किसी महिला की फांसी होगी।
अमरोहा के बावन खेड़ी गांव में शबनम भी पैदा हुई। हंसते खेलते घर की इकलौती चिराग थी। उसके पिता सरकारी टीचर थे माँ भी पढ़ी लिखी थी। दो भाई अनीस और राशिद, अनीस जॉब कर रहे थे जबकि…
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रामपूर कारागृहात अमरोहा शबनम प्रकरण शबनम व्हायरल फोटो रामपूर कारागृहात दोन बंदिवान गार्डला निलंबित
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