गोष्टी बाबे नानक और कबीर जी की (कबीर जी)उह गुरु जी चरनि लागि करवै, बीनती को पुन करीअहु देवा।अगम अपार अभै पद कहिए, सो पाईए कित सेवा।।मुहि समझाई कहहु गुरु पूरे, भिन्न-भिन्न अर्थ दिखावहु।जिह बिधि परम अभै पद पाईये, सा विधि मोहि बतावहु।मन बच करम कृपा करि दीजै, दीजै शब्द उचारं।।कहै कबीर सुनहु गुरु नानक, मैं दीजै शब्द बीचारं।।1।।(नानक जी)नानक कह सुनों कबीर जी, सिखिया एक हमारी।तन मन जीव ठौर कह ऐकै, सुंन लागवहु तारी।।करम अकरम दोऊँ तियागह, सहज कला विधि खेलहु।जागत कला रहु तुम निसदिन, सतगुरु कल मन मेलहु।।तजि माया र्निमायल होवहु, मन के तजहु विकारा।नानक कह सुनहु कबीर जी, इह विधि मिलहु अपारा।।2।।(कबीर जी)गुरु जी माया सबल निरबल जन तेरा, क्युं अस्थिर मन होई।काम क्रोध व्यापे मोकु, निस दिन सुरति निरत बुध खोई।।मन राखऊ तवु पवण सिधारे, पवण राख मन जाही।मन तन पवण जीवैं होई एकै, सा विधि देहु बुझााई।।3।।(नानक जी) दिृढ करि आसन बैठहु वाले, उनमनि ध्यान लगावहु।अलप-अहार खण्ड कर निन्द्रा, काम क्रोध उजावहु।।नौव दर पकड़ि सहज घट राखो, सुरति निरति रस उपजै।गुरु प्रसादी जुगति जीवु राखहु, इत मंथत साच निपजै।।4।।(कबीर जी) (कबीर कवन सुखम कवन स्थूल कवन डाल कवन है मूल)गुरु जी किया लै बैसऊ, किआ लेहहु उदासी।कवन अग्नि की धुणी तापऊ कवन मड़ी महि बासी।।5।।(नानक जी) (नानक ब्रह्म सुखम सुंन असथुल, मन है पवन डाल है मूल)करम लै सोवहु सुरति लै जागहु, ब्रह्म अग्नि ले तापहु।निस बासर तुम खोज खुजावहु, संुन मण्डल ले डूम बापहु।।6।।(सतगुरु कहै सुनहे रे चेला, ईह लछन परकासे)(गुरु प्रसादि सरब मैं पेखहु, सुंन मण्डल करि वासे)(कबीर जी) सुआमी जी जाई को कहै, ना जाई वहाँ क्या अचरज होई जाई।मन भै चक्र रहऊ मन पूरे, सा विध देहु बताई।।7।।(अपना अनभऊ कहऊ गुरु जी, परम ज्योति किऊं पाई।)(नानक जी) ससी अर चड़त देख तुम लागे, ऊहाँ कीटी भिरणा होता।नानक कह सुनहु कबीरा, इत बिध मिल परम तत जोता।।8।।(कबीर जी) धन धन धन गुरु नानक, जिन मोसो पतित उधारो।निर्मल जल बतलाइया मो कऊ, राम मिलावन हारो।।9।।(नानक जी) जब हम भक्त भए सुखदेवा, जनक विदेह किया गुरुदेवा।कलि महि जुलाहा नाम कबीरा, ढूंड थे चित भईआ न थीरा।।बहुत भांति कर सिमरन कीना, इहै मन चंचल तबहु न भिना।जब करि ज्ञान भए उदासी, तब न काटि कालहि फांसी।।जब हम हार परे सतिगुरु दुआरे, दे गुरु नाम दान लीए उधारे।।10।।(कबीर जी) सतगुरु पुरुख सतिगुरु पाईया, सतिनाम लै रिदै बसाईआ।जात कमीना जुलाहा अपराधि, गुरु कृपा ते भगति समाधी।।मुक्ति भइआ गुरु सतिगुरु बचनी, गईया सु सहसा पीरा।जुग नानक सतिगुरु जपीअ, कीट मुरीद कबीरा।।11।।सुनि उपदेश सम्पूर्ण सतगुरु का, मन महि भया अनंद।मुक्ति का दाता बाबा नानक, रिंचक रामानन्द।।12।
ऊपर लिखी वाणी ‘प्राण संगली‘ नामक पुस्तक से लिखी हैं। इसमें स्पष्ट लिखा है कि वाणी संख्या 9 तक दोहों में पूरी पंक्ति के अंतिम अक्षर मेल खाते हैं। परन्तु वाणी संख्या 10 की पाँच पंक्तियां तथा वाणी संख्या 11 की पहली दो पक्तियां चैपाई रूप में हैं तथा फिर दो पंक्तियां दोहा रूप में है तथा फिर वाणी संख्या 12 में केवल दो पंक्तियां हैं जो फिर दोहा रूप में है। इससे सिद्ध है कि वास्तविक वाणी को निकाला गया है जो वाणी कबीर साहेब जी के विषय में श्री नानक जी ने सतगुरु रूप में स्वीकार किया होगा। नहीं तो दोहों में चलती आ रही वाणी फिर चैपाईयों में नहीं लिखी जाती। फिर बाद में दोहों में लिखी है। यह सब जान-बूझ कर प्रमाण मिटाने के लिए किया है। वाणी संख्या 10 की पहली पंक्ति ‘जब हम भक्त भए सुखदेवा, जनक विदेही किया गुरुदेवा‘ स्पष्ट करती है कि श्री नानक जी कह रहे हैं कि मैं जनक रूप में था उस समय मेरा शिष्य (भक्त) श्री सुखदेव ऋषि हुए थे। इस वाणी संख्या 10 को नानक जी की ओर से कही मानी जानी चाहिए तो स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे है कि मैं हार कर गुरू कबीर के चरणों में गिर गया उन्होंने नाम दान करके उद्धार किया। वास्तव में यह 10 नं. वाणी कही अन्य वाणी से है। यह पंक्ति भी परमेश्वर कबीर साहेब जी की ओर से वार्ता में लिख दिया है। क्योंकि परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपनी शक्ति से श्री नानक जी को पिछले जन्म की चेतना प्रदान की थी। तब नानक जी ने स्वीकार किया था कि वास्तव में मैं जनक था तथा उस समय सुखदेव मेरा भक्त हुआ था।
वाणी संख्या 11 में चार पंक्तियां हैं जबकि वाणी संख्या 10 में पाँच पंक्तियां लिखी हैं। वास्तव में प्रथम पंक्ति ‘जब हम भक्त भए सुखदेवा ... ‘ वाली में अन्य तीन पंक्तियां थी, जिनमें कबीर परमेश्वर को श्री नानक जी ने गुरु स्वीकार किया होगा। उन्हें जान बूझ कर निकाला गया लगता है।
वाणी संख्या 1 व 2 में 6.6 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 3 व 4 में 4.4 पंक्तियाँ, वाणी संख्या 5 व 6 में 3.3 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 7 में 4 पंक्तियाँ हैं, वाणी संख्या 8 में 3 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 9 में 2 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 10 में 5 पंक्तियाँ हैं, वाणी संख्या 11 में 4 पंक्तियाँ है तथा वाणी संख्या 12 में 2 पंक्तियाँ है। यदि ये वाणी पूरी होती तो सर्व वाणीयों (कलियों) में एक जैसी वाणी संख्या होती।
श्री नानक जी ने दोनों की वार्ता जो प्रभु कबीर जी से हुई थी, लिखी थी। परन्तु बाद में प्राण संगली तथा गुरु ग्रन्थ साहिब में उन वाणियों को छोड़ दिया गया जो कबीर परमेश्वर जी को श्री नानक जी का गुरुदेव सिद्ध करती थी। इसी का प्रमाण कृप्या निम्न देखें। दो शब्दों में प्रत्यक्ष प्रमाण है(श्री गुरू ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 1189, 929, 930 पर)।
आगे श्री गुरु ग्रन्थ पृष्ठ नं. 1189
राग बसंत महला 1
चंचल चित न पावै पारा, आवत जात न लागै बारा।
दुख घणों मरीअै करतारा, बिन प्रीतम के कटै न सारा।।1।।
सब उत्तम किस आखवु हीना, हरि भक्ति सचनाम पतिना(रहावु)।
औखद कर थाकी बहुतेरे, किव दुख चुकै बिन गुरु मेरे।।
बिन हर भक्ति दुःख घणोरे, दुख सुख दाते ठाकुर मेरे।।2।।
रोग वडो किंवु बांधवु धिरा, रोग बुझै से काटै पीरा।
मैं अवगुण मन माहि सरीरा, ढुडत खोजत गुरिू मेले बीरा।।3।।
नोट:-- यहाँ पर स्पष्ट है कि अक्षर कबीरा की जगह ‘गुरु मेले बीरा‘ लिखा है। जबकि लिखना था ‘ढुंडत खोजत गुरि मेले कबीरा‘
गुरु का शब्द दास हर नावु, जिवै तू राखहि तिवै रहावु।
जग रोगी कह देखि दिखाऊ, हरि निमाईल निर्मल नावु।।4।।
घट में घर जो देख दिखावै, गुरु महली सो महलि बुलावै।
मन में मनुवा चित्त में चीता, अैसे हर के लोग अतीता।।5।।
हरख सोग ते रहैहि निरासा, अमृत चाख हरि नामि निवासा।।
आप पीछाणे रह लिव लागा, जनम जीति गुरुमति दुख भागा।।6।।
गुरु दिया सच अमृत पिवैऊ, सहज मखु जीवत ही जीवऊ।
अपणे करि राखहु गुरु भावै, तुमरो होई सु तुझहि समावै।।8।।
भोगी कऊ दुःख रोग बिआपै, घटि-घटि रवि रहिया प्रभु आपै।
सुख दुःख ही तै गुरु शब्द अतीता, नानक राम रमै हरि चीता।।9(4)।।
इस ऊपर के शब्द में प्रत्यक्ष प्रमाण है कि श्री नानक जी का कोई आकार रूप में गुरु था जिसने सच्चनाम (सतनाम) दिया तथा उस गुरुदेव को ढूंडते-खोजते काशी में कबीर गुरु मिला तथा वह सतनाम प्राणियों को कर्म-कष्ट रहित करता है तथा हरदम गुरु के वचन में रह कर गुरुदेव द्वारा दिए सत्यनाम (सच्चनाम) का जाप करते रहना चाहिए।
राग रामकली महला 1 दखणी आंैकार
गुरु ग्रन्थ पृष्ठ नं. 929.30
औंकार ब्रह्मा उत्पति। औंकार किया जिन चित।।
औंकार सैल जुग भए। औंकार वेद निरमए।।
औंकार शब्द उधरे। औंकार गुरु मुख तरे।।
ओंम अखर सुन हुँ विचार। ओम अखर त्रिभूवण सार।।
सुण पाण्डे किया लिखहु जंजाला, लिख राम नाम गुरु मुख गोपाला।।1।।रहाऊ।।
ससै सभ जग सहज उपाइया, तीन भवन इक जोती।
गुरु मुख वस्तु परापत होवै, चुण लै मानक मोती।।
समझै सुझै पड़ि-पड़ि बुझै अति निरंतर साचा।
गुरु मुख देखै साच समाले, बिन साचे जग काचा।।2।।
धधै धरम धरे धरमा पुरि गुण करी मन धीरा। {ग्रन्थ साहेब मंे एक ही पंक्ति है।}
यहाँ पंक्ति अधूरी(अपूर्ण) छोड़ रखी है। प्रत्येक पंक्ति में अंतिम अक्षर दो एक जैसे है। जैसे ऊपर लिखी वाणी में ‘‘ज्योति‘‘ फिर दूसरी में ‘‘मोती‘‘। फिर ‘‘साचा‘‘ दूसरी में ‘‘काचा‘‘। यहाँ पर ‘‘धीरा‘‘ अंतिम अक्षर वाली एक ही पंक्ति है। इसमें साहेब कबीर का नाम प्रत्यक्ष था जो कि मान वस होकर ग्रन्थ की छपाई करते समय निकाल दी गई है(छापाकारों ने काटा होगा, संत कभी ऐसी गलती नहीं करते) क्योंकि कबीर साहेब जुलाहा जाति में माने जाते हैं जो उस समय अछूत जानी जाती थी। कहीं गुरु नानक जी का अपमान न हो जाए कि एक जुलाहा नानक जी का पूज्य गुरु व भगवान था।
फिर प्रमाण है ‘‘राग बसंत महला पहला‘‘ पौड़ी नं. 3 आदि ग्रन्थ(पंजाबी) पृष्ठ नं. 1188
नानक हवमों शब्द जलाईया, सतगुरु साचे दरस दिखाईया।।
इस वाणी से भी अति स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे हैं कि सत्यनाम (सत्यशब्द) से विकार-अहम्(अभिमान) जल गया तथा मुझे सच्चे सतगुरु ने दर्शन दिए अर्थात् मेरे गुरुदेव के दर्शन हुए। स्पष्ट है कि नानक जी को कोई सतगुरु आकार रूप में अवश्य मिला था। वह ऊपर तथा नीचे पूर्ण प्रमाणित है। स्वयं कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा(अकाल मूर्त) स्वयं सच्चखण्ड से तथा दूसरे रूप में काशी बनारस से आकर प्रत्यक्ष दर्शन देकर सच्चखण्ड (सत्यलोक) भ्रमण करवा के सच्चा नाम उपदेश काशी (बनारस) में प्रदान किया।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज {गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर(हरियाणा)} को भी परमेश्वर कबीर जिन्दा महात्मा के रूप में जंगल में मिले थे। इसी प्रकार सतलोक दिखा कर वापिस छोड़ा था। परमेश्वर ने बताया कि मैंने ही श्री नानक जी तथा श्री दादू जी को पार किया था। जब श्री नानक जी ने पूर्ण परमात्मा को सतलोक में भी देखा तथा फिर बनारस (काशी) में जुलाहे का कार्य करते देखा तब उमंग में भरकर कहा था ‘‘वाहेगुरु सत्यनाम‘‘ वाहेगुरु-वाहेगुरु तथा इसी उपरोक्त वाक्य का उच्चारण करते हुए काशी से वापिस आए। जिसको श्री नानक जी के अनुयाईयों ने जाप मंत्र रूप में जाप करना शुरु कर दिया कि यह पवित्र मंत्र श्री नानक जी के मुख कमल से निकला था, परन्तु वास्तविकता को न समझ सके। अब उन से कौन छुटाए, इस नाम के जाप को जो सही नहीं है। क्योंकि वास्तविक मंत्र को बोलकर नहीं सुनाया जाता। उसका सांकेतिक मंत्र ‘सत्यनाम‘ है तथा वाहे गुरु कबीर परमेश्वर को कहा है। इसी का प्रमाण संत गरीबदास साहेब ने अपने सतग्रन्थ साहेब में फुटकर साखी का अंग पृष्ठ न. 386 पर दिया है।
गरीब - झांखी देख कबीर की, नानक कीती वाह।
वाह सिक्खों के गल पड़ी, कौन छुटावै ताह।।
गरीब - हम सुलतानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, कांशी माहे कबीर हुआ।।
प्रमाण के लिए ‘‘जीवन दस गुरु साहिबान‘‘ पृष्ठ न. 42 से 44 तक (लेखक - सोढी तेजा सिंघ जी) - (प्रकाशक - चतर सिंघ जीवन सिंघ)
बेई नदी में प्रवेश
”जीवन दस गुरु साहेब से ज्यों का त्यों सहाभार“
गुरु जी प्रत्येक प्रातः बेई नदी में जो कि शहर सुलतानपुर के पास ही बहती है, स्नान करने के लिए जाते थे। एक दिन जब आपने पानी में डुबकी लगाई तो फिर बाहर न आए। कुछ समय ऊपरान्त आप जी के सेवक ने, जो कपड़े पकड़ कर नदी के किनारे बैठा था, घर जाकर जै राम जी को खबर सुनाई कि नानक जी डूब गए हैं तो जै राम जी तैराकों को साथ लेकर नदी पर गए। आप जी को बहुत ढूंढा किन्तु आप नहीं मिले। बहुत देखने के पश्चात् सब लोग अपने अपने घर चले गए।
भाई जैराम जी के घर बहुत चिन्ता और दुःख प्रकट किया जा रहा था कि तीसरे दिन सवेरे ही एक स्नान करने वाले भक्त ने घर आकर बहिन जी को बताया कि आपका भाई नदी के किनारे बैठा है। यह सुनकर भाईआ जैराम जी बेई की तरफ दौड़ पड़े और जब जब पता चलता गया और बहुत से लोग भी वहाँ पहुँच गए। जब इस तरह आपके चारों तरफ लोगों की भीड़ लग गई आप जी चुपचाप अपनी दुकान पहुँच गए। आप जी के साथ स्त्राी और पुरूषों की भीड़ दुकान पर आने लगी। लोगों की भीड़ देख कर गुरु जी ने मोदीखाने का दरवाजा खोल दिया और कहा जिसको जिस चीज की जरूरत है वह उसे ले जाए। मोदीखाना लुटाने के पश्चात् गुरु जी फकीरी चोला पहन कर शमशानघाट में जा बैठे। मोदीखाना लुटाने और गुरु जी के चले जाने की खबर जब नवाब को लगी तो उसने मुंशी द्वारा मोदीखाने की किताबों का हिसाब जैराम को बुलाकर पड़ताल करवाया। हिसाब देखने के पश्चात् मुंशी ने बताया कि गुरु जी के सात सौ साठ रूपये सरकार की तरफ अधिक हैं। इस बात को सुनकर नवाब बहुत खुश हुआ। उसने गुरु जी को बुलाकर कहा कि उदास न हो। अपना फालतू पैसा और मेरे पास से ले कर मोदीखाने का काम जारी रखें। पर गुरु जी ने कहा अब हमने यह काम नहीं करना हमें कुछ और काम करने का भगवान् की तरफ से आदेश हुआ है। नवाब ने पूछा क्या आदेश हुआ है ? तब गुरु जी ने मूल-मंत्र उच्चारण किया।
नवाब ने पूछा कि यह आदेश आपके भगवान् ने कब दिया ? गुरु जी ने बताया कि जब हम बेई में स्नान करने गए थे तो वहाँ से हम सच्चखण्ड अपने स्वामी के पास चले गए थे वहाँ हमें आदेश हुआ कि नानक जी यह मंत्र आप जपो और बाकियों को जपा कर कलयुग के लोगों को पार लगाओ। इसलिए अब हमें अपने मालिक के इस हुक्म की पालना करनी है। इस सन्दर्भ को भाई गुरदास जी वार 1 पउड़ी 24 में लिखते हैं--
बाबा पैधा सचखण्ड नउनिधि नाम गरीबी पाई।।
अर्थात्--बाबा नानक जी सचखण्ड गए। वहाँ आप को नौनिधियों का खजाना नाम और निर्भयता प्राप्त हुई। यहाँ बेई किनारे जहाँ गुरु जी बेई से बाहर निकल कर प्रकट हुए थे, गुरु द्वारा संत घाट अथवा गुरुद्वारा बेर साहिब, बहुत सुन्दर बना हुआ है। इस स्थान पर ही गुरु जी प्रातः स्नान करके कुछ समय के लिए भगवान् की तरफ ध्यान करके बैठते थे।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
गोष्टी बाबे नानक और कबीर जी की (कबीर जी)उह गुरु जी चरनि लागि करवै, बीनती को पुन करीअहु देवा।अगम अपार अभै पद कहिए, सो पाईए कित सेवा।।मुहि समझाई कहहु गुरु पूरे, भिन्न-भिन्न अर्थ दिखावहु।जिह बिधि परम अभै पद पाईये, सा विधि मोहि बतावहु।मन बच करम कृपा करि दीजै, दीजै शब्द उचारं।।कहै कबीर सुनहु गुरु नानक, मैं दीजै शब्द बीचारं।।1।।(नानक जी)नानक कह सुनों कबीर जी, सिखिया एक हमारी।तन मन जीव ठौर कह ऐकै, सुंन लागवहु तारी।।करम अकरम दोऊँ तियागह, सहज कला विधि खेलहु।जागत कला रहु तुम निसदिन, सतगुरु कल मन मेलहु।।तजि माया र्निमायल होवहु, मन के तजहु विकारा।नानक कह सुनहु कबीर जी, इह विधि मिलहु अपारा।।2।।(कबीर जी)गुरु जी माया सबल निरबल जन तेरा, क्युं अस्थिर मन होई।काम क्रोध व्यापे मोकु, निस दिन सुरति निरत बुध खोई।।मन राखऊ तवु पवण सिधारे, पवण राख मन जाही।मन तन पवण जीवैं होई एकै, सा विधि देहु बुझााई।।3।।(नानक जी) दिृढ करि आसन बैठहु वाले, उनमनि ध्यान लगावहु।अलप-अहार खण्ड कर निन्द्रा, काम क्रोध उजावहु।।नौव दर पकड़ि सहज घट राखो, सुरति निरति रस उपजै।गुरु प्रसादी जुगति जीवु राखहु, इत मंथत साच निपजै।।4।।(कबीर जी) (कबीर कवन सुखम कवन स्थूल कवन डाल कवन है मूल)गुरु जी किया लै बैसऊ, किआ लेहहु उदासी।कवन अग्नि की धुणी तापऊ कवन मड़ी महि बासी।।5।।(नानक जी) (नानक ब्रह्म सुखम सुंन असथुल, मन है पवन डाल है मूल)करम लै सोवहु सुरति लै जागहु, ब्रह्म अग्नि ले तापहु।निस बासर तुम खोज खुजावहु, संुन मण्डल ले डूम बापहु।।6।।(सतगुरु कहै सुनहे रे चेला, ईह लछन परकासे)(गुरु प्रसादि सरब मैं पेखहु, सुंन मण्डल करि वासे)(कबीर जी) सुआमी जी जाई को कहै, ना जाई वहाँ क्या अचरज होई जाई।मन भै चक्र रहऊ मन पूरे, सा विध देहु बताई।।7।।(अपना अनभऊ कहऊ गुरु जी, परम ज्योति किऊं पाई।)(नानक जी) ससी अर चड़त देख तुम लागे, ऊहाँ कीटी भिरणा होता।नानक कह सुनहु कबीरा, इत बिध मिल परम तत जोता।।8।।(कबीर जी) धन धन धन गुरु नानक, जिन मोसो पतित उधारो।निर्मल जल बतलाइया मो कऊ, राम मिलावन हारो।।9।।(नानक जी) जब हम भक्त भए सुखदेवा, जनक विदेह किया गुरुदेवा।कलि महि जुलाहा नाम कबीरा, ढूंड थे चित भईआ न थीरा।।बहुत भांति कर सिमरन कीना, इहै मन चंचल तबहु न भिना।जब करि ज्ञान भए उदासी, तब न काटि कालहि फांसी।।जब हम हार परे सतिगुरु दुआरे, दे गुरु नाम दान लीए उधारे।।10।।(कबीर जी) सतगुरु पुरुख सतिगुरु पाईया, सतिनाम लै रिदै बसाईआ।जात कमीना जुलाहा अपराधि, गुरु कृपा ते भगति समाधी।।मुक्ति भइआ गुरु सतिगुरु बचनी, गईया सु सहसा पीरा।जुग नानक सतिगुरु जपीअ, कीट मुरीद कबीरा।।11।।सुनि उपदेश सम्पूर्ण सतगुरु का, मन महि भया अनंद।मुक्ति का दाता बाबा नानक, रिंचक रामानन्द।।12।
ऊपर लिखी वाणी ‘प्राण संगली‘ नामक पुस्तक से लिखी हैं। इसमें स्पष्ट लिखा है कि वाणी संख्या 9 तक दोहों में पूरी पंक्ति के अंतिम अक्षर मेल खाते हैं। परन्तु वाणी संख्या 10 की पाँच पंक्तियां तथा वाणी संख्या 11 की पहली दो पक्तियां चैपाई रूप में हैं तथा फिर दो पंक्तियां दोहा रूप में है तथा फिर वाणी संख्या 12 में केवल दो पंक्तियां हैं जो फिर दोहा रूप में है। इससे सिद्ध है कि वास्तविक वाणी को निकाला गया है जो वाणी कबीर साहेब जी के विषय में श्री नानक जी ने सतगुरु रूप में स्वीकार किया होगा। नहीं तो दोहों में चलती आ रही वाणी फिर चैपाईयों में नहीं लिखी जाती। फिर बाद में दोहों में लिखी है। यह सब जान-बूझ कर प्रमाण मिटाने के लिए किया है। वाणी संख्या 10 की पहली पंक्ति ‘जब हम भक्त भए सुखदेवा, जनक विदेही किया गुरुदेवा‘ स्पष्ट करती है कि श्री नानक जी कह रहे हैं कि मैं जनक रूप में था उस समय मेरा शिष्य (भक्त) श्री सुखदेव ऋषि हुए थे। इस वाणी संख्या 10 को नानक जी की ओर से कही मानी जानी चाहिए तो स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे है कि मैं हार कर गुरू कबीर के चरणों में गिर गया उन्होंने नाम दान करके उद्धार किया। वास्तव में यह 10 नं. वाणी कही अन्य वाणी से है। यह पंक्ति भी परमेश्वर कबीर साहेब जी की ओर से वार्ता में लिख दिया है। क्योंकि परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपनी शक्ति से श्री नानक जी को पिछले जन्म की चेतना प्रदान की थी। तब नानक जी ने स्वीकार किया था कि वास्तव में मैं जनक था तथा उस समय सुखदेव मेरा भक्त हुआ था।
वाणी संख्या 11 में चार पंक्तियां हैं जबकि वाणी संख्या 10 में पाँच पंक्तियां लिखी हैं। वास्तव में प्रथम पंक्ति ‘जब हम भक्त भए सुखदेवा ... ‘ वाली में अन्य तीन पंक्तियां थी, जिनमें कबीर परमेश्वर को श्री नानक जी ने गुरु स्वीकार किया होगा। उन्हें जान बूझ कर निकाला गया लगता है।
वाणी संख्या 1 व 2 में 6.6 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 3 व 4 में 4.4 पंक्तियाँ, वाणी संख्या 5 व 6 में 3.3 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 7 में 4 पंक्तियाँ हैं, वाणी संख्या 8 में 3 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 9 में 2 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 10 में 5 पंक्तियाँ हैं, वाणी संख्या 11 में 4 पंक्तियाँ है तथा वाणी संख्या 12 में 2 पंक्तियाँ है। यदि ये वाणी पूरी होती तो सर्व वाणीयों (कलियों) में एक जैसी वाणी संख्या होती।
श्री नानक जी ने दोनों की वार्ता जो प्रभु कबीर जी से हुई थी, लिखी थी। परन्तु बाद में प्राण संगली तथा गुरु ग्रन्थ साहिब में उन वाणियों को छोड़ दिया गया जो कबीर परमेश्वर जी को श्री नानक जी का गुरुदेव सिद्ध करती थी। इसी का प्रमाण कृप्या निम्न देखें। दो शब्दों में प्रत्यक्ष प्रमाण है(श्री गुरू ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 1189, 929, 930 पर)।
आगे श्री गुरु ग्रन्थ पृष्ठ नं. 1189
राग बसंत महला 1
चंचल चित न पावै पारा, आवत जात न लागै बारा।
दुख घणों मरीअै करतारा, बिन प्रीतम के कटै न सारा।।1।।
सब उत्तम किस आखवु हीना, हरि भक्ति सचनाम पतिना(रहावु)।
औखद कर थाकी बहुतेरे, किव दुख चुकै बिन गुरु मेरे।।
बिन हर भक्ति दुःख घणोरे, दुख सुख दाते ठाकुर मेरे।।2।।
रोग वडो किंवु बांधवु धिरा, रोग बुझै से काटै पीरा।
मैं अवगुण मन माहि सरीरा, ढुडत खोजत गुरिू मेले बीरा।।3।।
नोट:-- यहाँ पर स्पष्ट है कि अक्षर कबीरा की जगह ‘गुरु मेले बीरा‘ लिखा है। जबकि लिखना था ‘ढुंडत खोजत गुरि मेले कबीरा‘
गुरु का शब्द दास हर नावु, जिवै तू राखहि तिवै रहावु।
जग रोगी कह देखि दिखाऊ, हरि निमाईल निर्मल नावु।।4।।
घट में घर जो देख दिखावै, गुरु महली सो महलि बुलावै।
मन में मनुवा चित्त में चीता, अैसे हर के लोग अतीता।।5।।
हरख सोग ते रहैहि निरासा, अमृत चाख हरि नामि निवासा।।
आप पीछाणे रह लिव लागा, जनम जीति गुरुमति दुख भागा।।6।।
गुरु दिया सच अमृत पिवैऊ, सहज मखु जीवत ही जीवऊ।
अपणे करि राखहु गुरु भावै, तुमरो होई सु तुझहि समावै।।8।।
भोगी कऊ दुःख रोग बिआपै, घटि-घटि रवि रहिया प्रभु आपै।
सुख दुःख ही तै गुरु शब्द अतीता, नानक राम रमै हरि चीता।।9(4)।।
इस ऊपर के शब्द में प्रत्यक्ष प्रमाण है कि श्री नानक जी का कोई आकार रूप में गुरु था जिसने सच्चनाम (सतनाम) दिया तथा उस गुरुदेव को ढूंडते-खोजते काशी में कबीर गुरु मिला तथा वह सतनाम प्राणियों को कर्म-कष्ट रहित करता है तथा हरदम गुरु के वचन में रह कर गुरुदेव द्वारा दिए सत्यनाम (सच्चनाम) का जाप करते रहना चाहिए।
राग रामकली महला 1 दखणी आंैकार
गुरु ग्रन्थ पृष्ठ नं. 929.30
औंकार ब्रह्मा उत्पति। औंकार किया जिन चित।।
औंकार सैल जुग भए। औंकार वेद निरमए।।
औंकार शब्द उधरे। औंकार गुरु मुख तरे।।
ओंम अखर सुन हुँ विचार। ओम अखर त्रिभूवण सार।।
सुण पाण्डे किया लिखहु जंजाला, लिख राम नाम गुरु मुख गोपाला।।1।।रहाऊ।।
ससै सभ जग सहज उपाइया, तीन भवन इक जोती।
गुरु मुख वस्तु परापत होवै, चुण लै मानक मोती।।
समझै सुझै पड़ि-पड़ि बुझै अति निरंतर साचा।
गुरु मुख देखै साच समाले, बिन साचे जग काचा।।2।।
धधै धरम धरे धरमा पुरि गुण करी मन धीरा। {ग्रन्थ साहेब मंे एक ही पंक्ति है।}
यहाँ पंक्ति अधूरी(अपूर्ण) छोड़ रखी है। प्रत्येक पंक्ति में अंतिम अक्षर दो एक जैसे है। जैसे ऊपर लिखी वाणी में ‘‘ज्योति‘‘ फिर दूसरी में ‘‘मोती‘‘। फिर ‘‘साचा‘‘ दूसरी में ‘‘काचा‘‘। यहाँ पर ‘‘धीरा‘‘ अंतिम अक्षर वाली एक ही पंक्ति है। इसमें साहेब कबीर का नाम प्रत्यक्ष था जो कि मान वस होकर ग्रन्थ की छपाई करते समय निकाल दी गई है(छापाकारों ने काटा होगा, संत कभी ऐसी गलती नहीं करते) क्योंकि कबीर साहेब जुलाहा जाति में माने जाते हैं जो उस समय अछूत जानी जाती थी। कहीं गुरु नानक जी का अपमान न हो जाए कि एक जुलाहा नानक जी का पूज्य गुरु व भगवान था।
फिर प्रमाण है ‘‘राग बसंत महला पहला‘‘ पौड़ी नं. 3 आदि ग्रन्थ(पंजाबी) पृष्ठ नं. 1188
नानक हवमों शब्द जलाईया, सतगुरु साचे दरस दिखाईया।।
इस वाणी से भी अति स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे हैं कि सत्यनाम (सत्यशब्द) से विकार-अहम्(अभिमान) जल गया तथा मुझे सच्चे सतगुरु ने दर्शन दिए अर्थात् मेरे गुरुदेव के दर्शन हुए। स्पष्ट है कि नानक जी को कोई सतगुरु आकार रूप में अवश्य मिला था। वह ऊपर तथा नीचे पूर्ण प्रमाणित है। स्वयं कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा(अकाल मूर्त) स्वयं सच्चखण्ड से तथा दूसरे रूप में काशी बनारस से आकर प्रत्यक्ष दर्शन देकर सच्चखण्ड (सत्यलोक) भ्रमण करवा के सच्चा नाम उपदेश काशी (बनारस) में प्रदान किया।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज {गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर(हरियाणा)} को भी परमेश्वर कबीर जिन्दा महात्मा के रूप में जंगल में मिले थे। इसी प्रकार सतलोक दिखा कर वापिस छोड़ा था। परमेश्वर ने बताया कि मैंने ही श्री नानक जी तथा श्री दादू जी को पार किया था। जब श्री नानक जी ने पूर्ण परमात्मा को सतलोक में भी देखा तथा फिर बनारस (काशी) में जुलाहे का कार्य करते देखा तब उमंग में भरकर कहा था ‘‘वाहेगुरु सत्यनाम‘‘ वाहेगुरु-वाहेगुरु तथा इसी उपरोक्त वाक्य का उच्चारण करते हुए काशी से वापिस आए। जिसको श्री नानक जी के अनुयाईयों ने जाप मंत्र रूप में जाप करना शुरु कर दिया कि यह पवित्र मंत्र श्री नानक जी के मुख कमल से निकला था, परन्तु वास्तविकता को न समझ सके। अब उन से कौन छुटाए, इस नाम के जाप को जो सही नहीं है। क्योंकि वास्तविक मंत्र को बोलकर नहीं सुनाया जाता। उसका सांकेतिक मंत्र ‘सत्यनाम‘ है तथा वाहे गुरु कबीर परमेश्वर को कहा है। इसी का प्रमाण संत गरीबदास साहेब ने अपने सतग्रन्थ साहेब में फुटकर साखी का अंग पृष्ठ न. 386 पर दिया है।
गरीब - झांखी देख कबीर की, नानक कीती वाह।
वाह सिक्खों के गल पड़ी, कौन छुटावै ताह।।
गरीब - हम सुलतानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, कांशी माहे कबीर हुआ।।
प्रमाण के लिए ‘‘जीवन दस गुरु साहिबान‘‘ पृष्ठ न. 42 से 44 तक (लेखक - सोढी तेजा सिंघ जी) - (प्रकाशक - चतर सिंघ जीवन सिंघ)
बेई नदी में प्रवेश
”जीवन दस गुरु साहेब से ज्यों का त्यों सहाभार“
गुरु जी प्रत्येक प्रातः बेई नदी में ��ो कि शहर सुलतानपुर के पास ही बहती है, स्नान करने के लिए जाते थे। एक दिन जब आपने पानी में डुबकी लगाई तो फिर बाहर न आए। कुछ समय ऊपरान्त आप जी के सेवक ने, जो कपड़े पकड़ कर नदी के किनारे बैठा था, घर जाकर जै राम जी को खबर सुनाई कि नानक जी डूब गए हैं तो जै राम जी तैराकों को साथ लेकर नदी पर गए। आप जी को बहुत ढूंढा किन्तु आप नहीं मिले। बहुत देखने के पश्चात् सब लोग अपने अपने घर चले गए।
भाई जैराम जी के घर बहुत चिन्ता और दुःख प्रकट किया जा रहा था कि तीसरे दिन सवेरे ही एक स्नान करने वाले भक्त ने घर आकर बहिन जी को बताया कि आपका भाई नदी के किनारे बैठा है। यह सुनकर भाईआ जैराम जी बेई की तरफ दौड़ पड़े और जब जब पता चलता गया और बहुत से लोग भी वहाँ पहुँच गए। जब इस तरह आपके चारों तरफ लोगों की भीड़ लग गई आप जी चुपचाप अपनी दुकान पहुँच गए। आप जी के साथ स्त्राी और पुरूषों की भीड़ दुकान पर आने लगी। लोगों की भीड़ देख कर गुरु जी ने मोदीखाने का दरवाजा खोल दिया और कहा जिसको जिस चीज की जरूरत है वह उसे ले जाए। मोदीखाना लुटाने के पश्चात् गुरु जी फकीरी चोला पहन कर शमशानघाट में जा बैठे। मोदीखाना लुटाने और गुरु जी के चले जाने की खबर जब नवाब को लगी तो उसने मुंशी द्वारा मोदीखाने की किताबों का हिसाब जैराम को बुलाकर पड़ताल करवाया। हिसाब देखने के पश्चात् मुंशी ने बताया कि गुरु जी के सात सौ साठ रूपये सरकार की तरफ अधिक हैं। इस बात को सुनकर नवाब बहुत खुश हुआ। उसने गुरु जी को बुलाकर कहा कि उदास न हो�� अपना फालतू पैसा और मेरे पास से ले कर मोदीखाने का काम जारी रखें। पर गुरु जी ने कहा अब हमने यह काम नहीं करना हमें कुछ और काम करने का भगवान् की तरफ से आदेश हुआ है। नवाब ने पूछा क्या आदेश हुआ है ? तब गुरु जी ने मूल-मंत्र उच्चारण किया।
नवाब ने पूछा कि यह आदेश आपके भगवान् ने कब दिया ? गुरु जी ने बताया कि जब हम बेई में स्नान करने गए थे तो वहाँ से हम सच्चखण्ड अपने स्वामी के पास चले गए थे वहाँ हमें आदेश हुआ कि नानक जी यह मंत्र आप जपो और बाकियों को जपा कर कलयुग के लोगों को पार लगाओ। इसलिए अब हमें अपने मालिक के इस हुक्म की पालना करनी है। इस सन्दर्भ को भाई गुरदास जी वार 1 पउड़ी 24 में लिखते हैं--
बाबा पैधा सचखण्ड नउनिधि नाम गरीबी पाई।।
अर्थात्--बाबा नानक जी सचखण्ड गए। वहाँ आप को नौनिधियों का खजाना नाम और निर्भयता प्राप्त हुई। यहाँ बेई किनारे जहाँ गुरु जी बेई से बाहर निकल कर प्रकट हुए थे, गुरु द्वारा संत घाट अथवा गुरुद्वारा बेर साहिब, बहुत सुन्दर बना हुआ है। इस स्थान पर ही गुरु जी प्रातः स्नान करके कुछ समय के लिए भगवान् की तरफ ध्यान करके बैठते थे।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
Sad Shayari For Boys in Hindi | लड़कों के लिए सैड शायरी
दोस्तों, हम आपके लिए पेश करते हैं Sad Shayari For Boys in Hindi का बेहतरीन कलेक्शन, जो खास तौर पर हमारे प्यारे दोस्तों के लिए बनाया गया है।.
अक्सर कहा जाता है कि लड़के बहुत मज़बूत होते हैं और रोते नहीं हैं। जबकि यह सच है कि लड़के आसानी से हार नहीं मानते, लगातार झूठ, धोखे और विश्वासघात का सामना करना किसी को भी दुखी कर सकता है। आपकी आत्माओं को ऊपर उठाने में मदद करने के लिए, हमने Sad Shayari For Boys in Hindi संकलित की है। इन Shayari को पढ़ने से आपको सुकून मिलेगा और आप बेहतर महसूस करेंगे।.
आप इस लड़कों की Sad Shayari For Boys को किसी के साथ भी शेयर कर सकते हैं, खासकर अपने करीबी लोगों के साथ। इसके अलावा, आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर इन्हें शेयर करके अपने दिल के दर्द को बयां कर सकते हैं। लड़कों के लिए सैड शायरी का यह कलेक्शन दिल को छू लेने वाला और दिल को छू लेने वाला है, और यह अनुभव को बढ़ाने के लिए आकर्षक छवियों के साथ आता है।.
Sad Shayari For Boys Collection in Hindi
वो लौट आई है मानने को,
लगता है आजमा चुकी है ज़माने को..!!!
वहम से भी खत्म हो जाते है रिश्ते,
कसूर हर बार गलतियों का नही होता..!!!
वक्त-ए-रुखसत आ गया दिल फिर भी घबराया ही नहीं,
उसको हम क्या कहेंगे जिसको कभी पाया ही नहीं..!!!
ए दिल थोड़ा सा इंतजार कर,
उसे भी पता चल जाएगा उसने क्या खोया ह..!!!
समय से भी महंगी भावनाएं होती है,
जो समंझे उसी पर खर्च करो..!!!
शुक्र है मैसेज का जमाना है वरना,
तुम मेरे भेजे कबूतर भी मार डालते..!!!
पता तो मुझे भी था कि लोग बदल जाते हैं,
पर मैंने तुम्हें कभी उन लोगों में गिना ही नहीं..!!!
आज फिर की थी मोहब्बत से तौबा,
आज फिर तेरा चेहरा देखकर इरादा बदल लिया..!!!
इश्तिहार दे दो कि ये दिल खाली है,
वो जो आया था किराएदार निकला..!!!
चलते रहेंगे काफिले हमारे बाद भी यहां,
एक सितारा टूट जाने से आसमान खाली नहीं होता..!!!
उसे छूना जुर्म है तो इंतजाम मेरी फांसी का कर लो,
मेरे दिल की जिद है आज उसे सीने से लगाने की..!!!
तिनका सा मैं और समंदर सा इश्क,
डूबने का डर और डूबना ही इश्क..!!!
मेरी तमन्ना मेरा एतबार नहीं करती,
वो प्यार से बात तो करती है मगर प्यार नहीं करती..!!!
निभाना सकेंगे एक दिन मेरा किरदार,
मशवरे जो देते फिरते है हजार..!!!
Boy Sad Shayari in Hindi लड़कों के लिए सैड शायरी
खो देने के बाद ख्याल आता है,
कितना कीमती था वो वक्त, इंसान और रिश्ता..!!!
कुछ ठोकरों के बाद नजाकत आ गई मुझमें,
अब दिल के मशवरे पे भरोसा नहीं करता..!!
एक अजीब सी खबर है सुनोगे क्या,
मोहब्बत का हकीम मोहब्बत से मर गया..!!!
मैं ना आऊंगा तुम्हे उस तरह नजर,
जिस तरह मुझे तुमने पिछले साल देखा था..!!!
किस-किस से मोहब्बत के तूने वादे किए हैं,
हर रोज नया शख्स तेरा नाम पूछता है..!!!
जिस दिल में तेरा नाम बसा था हमने वह दिल तोड़ दिया,
न होने दिया बदनाम तुझे तेरा नाम ही लेना छोड़ दिया..!!!
जालिम ज़ख्म पे ज़ख्म दिए जा रहा है,
शायद जान गया है उसकी हर एक अदा पे मरते हैं हम..!!!
थक सा गया है मेरी चाहतों का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगता है तो मैं इजहार नहीं करता..!!!
पुराना जहर नए नाम से पिला रहा है,
ये सरफिरा इश्क मुझे फिर से आजमा रहा है..!!!
उसके साथ जीने का एक मौका दे दे खुदा,
तेरे साथ तो हम मरके भी रह लेंगे..!!!
Very Sad Shayari For Boys in Hindi
वह आज घर से नकाब में निकली,
सारी गली उसके फिराक में निकली,
वो इनकार करती रही मेरी मोहब्बत से हमेशा,
आज मेरी ही तस्वीर उसकी किताब से निकली..!!!
कोई साबुत-ऐ-निशा नहीं होगा मोहब्बत का,
उसका नाम सुनते ही धड़कने बढ़ जाए तो समंझो मोहब्बत हैं..!!!!
तेरा गुरूर किसी और को ना कमियाब कर डाले,
तू गिनता रहे गुनाह दुसरो के और खुदा तेरा हिसाब कर डाले…!!!
हम तो फना हो गए उनकी आंखें देखकर,
ना जाने वह आइना कैसे देखे होंगे..!!!
अगली बार मिलो तो हाथ ना मिलाना,
क्योंकि तुम थम नहीं पाओगे और मैं छोड़ नहीं पाऊंगा.!!!
वो रोज नहाते है इसी उम्मीद में की,
एक दिन बेवफा होने का दाग मिट जाए..!!!
अगर बोलते तुम नही तो बुलाते हम भी नही,
खामोश जिसका जवाब हो उसे पुकारते हम भी नही..!!!
चार दिन की जिंदगी किस किस से कतरा के चलूं,
खाक हु मै खाक, पर क्या खाक इतरा के चलूं..!!!
मुझे समझना चाहते हो तो, सुनना सीखो,
मेरे हर लफ्ज़ के खास मतलब होते है..!!!
दुखो का लिफाफा, गमों की कहानी,
एक बेवफा से दिल लगाया उजड़ गई जवानी..!!!
इंतजार है मुझे जिंदगी के आखिरी पन्ने का,
सुना है आखिरी में सब ठीक हो जाता है..!!!
कुछ इस तरह से हमारी बातें कम हो गई,
कैसे हो, से शुरू हुई, ठीक हु पर खत्म हो गई..!!!
हकीकत जिद्द किए बैठी है चकनाचूर करने की,
मगर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है..!!!
ये मोहब्बत एक ऐसा खेल है,
जो सीख जाता है वही हार जाता है..!!!
Emotional Sad Shayari For Boys in Hindi with pic
नसीब मेरा मुझसे खफा हो जाता है,
अपना जिसको भी मानो बेवफा हो जाता है,
क्यू ना हो शिकायत मेरी नजरो को रात से,
सपना पूरा होता नही और सवेरा हो जाता है.!!!
मैं झुक गया तो वो सजदा समझ बैठे,
मैं इंसानियत निभा रहा था, वो खुद को खुदा समझ बैठे..!!!
तू चाहता है किसी और को पता ना लगे,
मैं तेरे साथ फिरू और मुझे हवा ना लगे.!!!
मैं चांद तोड़ कर तो लाने से रहा,
तू ज़िद करेगी तो एक आइना दे दूंगा..!!!
मुझे खामोश देख कर इतना क्यों हैरान होते हो दोस्त,
कुछ नही हुआ है बस भरोसा करके धोखा खाया है..!!!
कोई हुनर, कोई राज, कोई तरीका बताओ दोस्त,
दिल टूटे भी ना, साथ छूटे भी ना, कोई रूठे भी ना, और जिंदगी गुज़र जाए..!!!
यहां मजबूत से मजबूत लोहा टूट जाता है,
कई झूठे इकट्ठे हो तो सच्चा टूट जाता है..!!!
मुकद्दर की लिखावट का एक ऐसा भी कायदा हो,
देर से किस्मत खुलने वाले का दुगना फायदा हो..!!!
नजर और नसीब में भी क्या इत्तेफाक है,
नजर उसे पसंद करती हैं जो नसीब में नहीं होता…!!!
Sad Shayari For Boys Video in Hindi
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उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी के साथ हुऐ इस अपराध के लिए दोषियों को फांसी की सजा होगी पर दुःख होता है ये सुनकर की आज देवभूमि उत्तराखंड मे भी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं आखिर इस दिन के लिए हमने उत्तराखंड राज्य बनाया था आखिर क्या वजह रही जो अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो गए कुछ कमी तो हमारी सरकार में भी है जो इन लोगो पर जल्दी कारवाही नही करती वो तो भला हो सोशल मीडिया का जिसकी बदौलत आज इस बेटी को न्याय मिल रहा है नहीं तो पिछले 5 दिनों से तो कोई सुनने वाला तक नही था 🙏🙏🙏🙏🙏 justice for Ankita Bhandari
#Justiceforankita 😥
सरकार से यही विनती हैं की इन दरिंदो को फांसी पर लटका दो. तभी अगले बार उत्तराखंड मैं कोई दूसरी अंकिता इन का शिकार नही होंगी 🥺🙏 चाहे वह किसी नेता का बेटा हो या किसी बड़े मंत्री का बेटा हो. उसकी पहुँच किसी भी बड़े-बड़े नेता तक ही क्यों ना हो लेकिन उसको सजा जरूर मिलनी चाहिए.🙏🥺#Justiceforankita
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नई दिल्ली: इन दिनों पूरे देश में शबनम मामले की चर्चा जोरों पर है. आजाद भारत में पहली बार किसी महिला को फांसी की सजा सुनाई गई है. उत्तर प्रदेश की मथुरा जेल में शबनम नाम की महिला को फांसी देने की तैयारी भी चल रही है. बस फांसी की तारीख तय होना बाकी रह गया है. शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने ही घर में खूनी-खेल खेला था. वो फिलहाल रामपुर की जेल में बंद है. आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्या…
शहीदे आजम भगत सिंह:एक क्रांतिकारी के आखिर 24 घंटे -
शहीदे आजम भगत सिंह और 23 मार्च 1931 -
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं।उन्होंने कारण नहीं बताया। उनके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से है।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया।
" भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे-
कभी वो दिन भी आएगा
कि जब आजाद हम होंगें
ये अपनी ही जमीं होगी
ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक क���के वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त।
फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी सदस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
🚩राजस्थान में तालिबानी हुकूमत है या कांग्रेस का लोकतंत्र ❓❓
🚩उदयपुर में मोहम्मद रियाज अंसारी और मोहम्मद गौस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी धमकी बोले आज कन्हैयालाल की गर्दन काटी है, कल मोदी की गर्दन भी काट देंगे।
🚩देश के सभी हिंदुओं की मांग है कि ऐसे मुसलमानों को 24 घंटे के अंदर फाँसी दो।
🚩राजस्थान के उदयपुर में 10 दिन पहले नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने वाले 8 साल के बालक के पिता कन्हैयालाल को 28 जून 2022 मंगलवार को 2 मुसलमानों ने तालिबानी तरीके से मर्डर कर दिया गया। 2 हमलावर मंगलवार को दिनदहाड़े उसकी दुकान में घुसे। तलवार से कई वार किए और उसका गला काट दिया। इस पूरे हमले का वीडियो भी बनाया। इतना ही नहीं, आरोपियों ने घटना के बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर हत्या की जिम्मेदारी भी ली है।
🚩इन मुसलमानों का कहना कि हम नूपुर शर्मा जैसे हर हिंदूवादी,रामभक्त, शिवभक्त की ऐसी ही गला काटकर हत्या करेंगे,ये तो राजस्थान के कांगेस शासन में ही ऐसी हिम्मत कर सकते है,अगर BJP शासन योगी राज में करते तो अब तक ऐसे मुस्लिम दरिंदो के ऊपर बुलडोजर चल गया होता।
🚩उदयपुर के 7 थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाया गया है। इसमें धानमंडी, घंटाघर, हाथीपोल, अंबामाता, सूरजपोल, भुपालपुरा और सवीना थाना क्षेत्र शामिल हैं। साथ ही, धारा 144 लागू कर दिया गया है। आरोपियों ने वीडियो के माध्यम से PM नरेंद्र मोदी तक को धमकी दे डाली है। दोनों आरोपी रियाज अंसारी और मोहम्मद गौस को राजसमंद के भीम से शाम 7 बजे गिरफ्तार किया गया है। दोनों उदयपुर के सूरजपोल क्षेत्र के निवासी ।
🚩घटना के बाद हिन्दू संगठनों में आक्रोश व्याप्त हो गया। विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं ने देहली गेट पर एकत्रित होकर प्रदर्शन किया और हत्यारों का पुतला फूंका। उन्होंने हत्यारों को फांसी की सजा की मांग की है।
🚩आपको बता दें कि कन्हैयालाल तेली की मालदास स्ट्रीट में भूतमहल के पास सुप्रीम टेलर्स नाम से दुकान है। जहां कपड़ो की नाप देने का बहाने दो मुस्लिम लोगों ने प्रवेश किया और कन्हैयालाल कुछ समझ पाता, उससे पहले उन्होंने उसके उपर हमला कर दिया। गर्दन पर कई वारों के चलते कन्हैयालाल की मौत मौके पर ही हो गई और उसके बाद दोनों लोग फरार हो गए। उन लोगों ने घटना का वीडियो भी बनाया और वायरल भी किया।
🚩वीडियो में दोनों मुसलमानों ने पीएम मोदी की हत्या की धमकी देते हुए कहता है, ”नरेंद्र मोदी सुन ले, आग तूने लगाई है और बुझाएंगे हम, इंसाअल्लाह मैं रब से दुआ करता हूं कि यह छुरा तेरी गर्दन तक भी जरूर पहुंचेगा। उदयपुर वालों नारा लगाओ गुस्ताखे नबी की एक ही सजा, सर तन से जुदा। दुआओं में याद रखना।”
🚩भारत में हिंदुविरोधी ताकतों के मंसूबे इतने बढ़ गए हैं, की पूरे भारत में राज्यों के स्तर पर खूनी खेला चला रहा है!
🚩कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल के बाद अब राजस्थान की कांग्रेस शासित सरकार मैडम और मौलानाओं को खुश करने के लिए हिंदुओं के खून से हाथ रंगने वाले जेहादियों की पनाहगाह बन रही है!?
🚩जहां अकेले मई के महीने कश्मीर में 7 हिंदुओं की हत्या की गई, जिनमें 3 पुलिस वाले और 3 सामान्य नागरिक थे,वहीं पश्चिम बंगाल में सामूहिक बलात्कार और जनसंहार का खेला पिछले साल मई से को शुरू हुआ था, वो अभी तक थमा नहीं हैं!?
🚩सड़कों पर हिंदुओं का खून ऐसे ही बहेगा तो आखिर कब तक वो केवल हिंदुओं का ही रहेगा?
🚩क्या भारत में कानून नाम की चिड़िया है अभी या शरिया चल रहा है!?
🚩सोशल मीडिया चिल्ला चिल्लाकर याद दिला रहा है…की एक दो जगह नहीं पूरे भारत में मुसलमानों द्वारा हिंदुओं की सिलेक्टिव किलिंग करवाई जा रही है, और पुलिस, सेना, सरकार, हिंदुत्ववादी संगठनों को खुलेआम जेहादी गरिया रहे हैं, गाली दे रहे हैं!?
🚩क्या 2002 की गुजरात की स्थिति आज 2022 में पूरे भारत में दोहराई जायेगी, तब शांति होगी!?
🚩क्या मोपला, नोआखली की तरह हिंदुओं के सब्र का इम्तिहान ले रही है सरकारें या फिर हिंदू सड़कों पर आ जाएं यही उद्देश्य है!?
🚩एक जरूरी बात उदयपुर के वीडियो ने साबित कर दिया है की, हिंदुओं के वोटों से सत्ता शीर्ष पर पहुंचे मोदी का भारतीय मुसलमान युवाओं के बारे में वक्तव्य बिलकुल गलत निकला जैसा वो कहते थे कि मुसलमानों के एक हाथ में कुरान है, और दूसरे में कंप्यूटर है! साफ दिखाई देता है, ये बिल्कुल गलत है, इनके दोनों हाथों में कलमा पढ़ा हुआ छुरा है, तलवार है,सर पर मौलाना की टोपी और चेहरे पर मूंछ साफ दाढ़ी जेहादी हिंदू हत्यारों की पहचान है!
🚩आखिर कब तक हम केवल हिंदू युवक, युवतियों, साधु, संत, समान्य भारतीय जनता के शवों की केवल गिनती करते रहेंगे!?
🚩सत्ता की राजनीति से सनातन धर्म को बचाना है तो राष्ट्रनीति का यही समय है, सही समय है!
🚩ऐसे में भारत सरकार को चाहिए की वो आतंकवाद की निगरानी के लिए एक टास्क फोर्स बनाएं, साथ ही घटना को अंजाम दे रहे ऐसे आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल का सफाया किया जाए।
🚩जागों हिन्दू जागों और हिन्दुओ के हत्यारों से आर्थिक व्यवहार बंद करो।
🚩भारत के सभी हिन्दू इन मुसलमानों से आर्थिक व्यवहार बन्द कर ,इनकी दुकानों से सामान लेना बन्द करके, इनके पत्थर बाजी , देशी बम का जवाब इनकी दुकानों से सामान लेना बंद करके दे।
🚩इतना तो हर हिन्दू कर सकता हैं।
🚩अब समय आ गया है जब सभी राष्ट्रवादी हिन्दू संगठन एकजुट होकर कट्टरपन्त के विरुद्ध, सत्य के पक्ष में आगे आएं।
प्रथम गरूड़ सों भैंट जब भयऊ। सत साहब मैं बोल सुनाऊ।
धर्मदास सुनो कहु बुझाई। जेही विधि गरूड़ को समझाई।।
गरूड़ वचन
सुना बचन सत साहब जबही। गरूड़ प्रणाम किया तबही।।
शीश नीवाय तिन पूछा चाहये। हो तुम कौन कहाँ से आये।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
कहा कबीर है नाम हमारा। तत्त्वज्ञान देने आए संसारा।।
सत्यलोक से हम चलि आए। जीव छुड़ावन जग में प्रकटाए।।
गरूड़ वचन
सुनत बचन अचम्भो माना। सत्य पुरूष है कौन भगवाना।।
प्रत्यक्षदेव श्री विष्णु कहावै। दश औतार धरि धरि जावै।।
ज्ञानी (कबीर) बचन
तब हम कहया सुनो गरूड़ सुजाना। परम पुरूष है पुरूष पुराना।।(आदि का)
वह कबहु ना मरता भाई। वह गर्भ से देह धरता नाहीं।।
कोटि मरे विष्णु भगवाना। क्या गरूड़ तुम नहीं जाना।।
जाका ज्ञान बेद बतलावैं। वेद ज्ञान कोई समझ न पावैं।।
जिसने कीन्हा सकल बिस्तारा। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव का सिरजनहारा।।
जुनी संकट वह नहीं आवे। वह तो साहेब अक्षय कहावै।।
गरूड़ वचन
राम रूप धरि विष्णु आया। जिन लंका का मारा राया।।
पूर्ण ब्रह्म है विष्णु अविनाशी। है बन्दी छोड़ सब सुख राशी।।
तेतीस कोटि देवतन की बन्द छुड़ाई। पूर्ण प्रभु हैं राम राई।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तुम गरूड़ कैसे कहो अविनाशी। सत्य पुरूष बिन कटै ना काल की फांसी।।
जा दिन लंक में करी चढ़ाई। नाग फांस में बंधे रघुराई।।
सेना सहित राम बंधाई। तब तुम नाग जा मारे भाई।।
तब तेरे विष्णु बन्दन से छूटे। याकु पूजै भाग जाके फूटे।।
कबीर ऐसी माया अटपटी, सब घट आन अड़ी।
किस-किस कूं समझाऊँ, कूअै भांग पड़ी।।
गरूड़ वचन
ज्ञानी गरूड़ है दास तुम्हारा। तुम बिन नहीं जीव निस्तारा।।
इतना कह गरूड़ चरण लिपटाया। शरण लेवों अविगत राया।।
कबहु ना छोडूँ तुम्हारा शरणा। तुम साहब हो तारण तरणा।।
पत्थर बुद्धि पर पड़े है ज्ञानी। हो तुम पूर्ण ब्रह्म लिया हम जानी।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
तब हम गरूड़ कुं पाँच नाम सुनाया। तब वाकुं संशय आया।।
यह तो पूजा देवतन की दाता। या से कैसे मोक्ष विधाता।।
तुमतो कहो दूसरा अविनाशी। वा से कटे काल की फांसी।।
नायब से कैसे साहेब डरही। कैसे मैं भवसागर तिरही।।
ज्ञानी (कबीर) वचन
साधना को पूजा मत जानो। साधना कूं मजदूरी मानो।।
जो कोऊ आम्र फल खानो चाहै। पहले बहुते मेहनत करावै।।
धन होवै फल आम्र खावै। आम्र फल इष्ट कहावै।।
पूजा इष्ट पूज्य की कहिए। ऐसे मेहनत साधना लहिए।।
यह सुन गरूड़ भयो आनन्दा। संशय सूल कियो निकन्दा।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी से गरूड़ देव ने कहा कि हे परमेश्वर! आपने तो इन्हीं देवताओं के नाम मंत्रा दे दिये। यह इनकी पूजा है। आपने बताया कि ये तो केवल 16 कला युक्त प्रभु हैं। काल एक हजार कला युक्त प्रभु है। पूर्ण ब्रह्म असँख्य कला का परमेश्वर है। आपने सृष्टि रचना में यह भी बताया है कि काल ने आपको रोक रखा है। काल ब्रह्म के आधीन तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी हैं। हे परमेश्वर! नायब (उप यानि छोटा) से साहब (स्वामी-मालिक) कैसे डरेगा? यानि ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी तो केवल काल ब्रह्म के नायब हैं। जैसे नायब तहसीलदार यानि छोटा तहसीलदार होता है। तो छोटे से बड़ा कैसे डर मानेगा? भावार्थ है कि ये काल ब्रह्म के नायब हैं। आपने इनकी भक्ति बताई है, इनके मंत्र जाप दिए हैं। ये नायब अपने साहब (काल ब्रह्म) से हमें कैसे छुड़वा सकेंगे? तब परमेश्वर कबीर जी ने पूजा तथा साधना में भेद बताया कि यदि किसी को आम्र फल यानि आम का फल खाने की इच्छा हुई है तो आम फल उसका पूज्य है। उस पूज्य वस्तु को प्राप्त करने के लिए किया गया प्रयत्न साधना कही जाती है। जैसे धन कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। उस धन से आम मोल लेकर खाया जाता है। इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा हमारा इष्ट देव यानि पूज्य देव है। जो देवताओं के मंत्रा का जाप मेहनत (मजदूरी) है। जो नाम जाप की कमाई रूपी भक्ति धन मिलेगा, उसको काल ब्रह्म में छोड़कर कर्जमुक्त होकर अपने इष्ट यानि पूज्य देव कबीर देव (कविर्देव) को प्राप्त करेंगे। यह बात सुनकर गरूड़ जी अति प्रसन्न हुए तथा गुरू के पूर्ण गुरू होने का भी साक्ष्य मिला कि पूर्ण गुरू ही शंका का समाधान कर सकता है और दीक्षा प्राप्ति की। गरूड़ को त्रोतायुग में शरण में लिया था। श्री विष्णु जी का वाहन होने के कारण तथा बार-बार उनकी महिमा सुनने के कारण तथा कुछ चमत्कार श्री विष्णु जी के देखकर गरूड़ जी की आस्था गुरू जी में कम हो गई, परंतु गुरू द्रोही नहीं हुआ। फिर किसी जन्म में मानव शरीर प्राप्त करेगा, तब परमेश्वर कबीर जी गरूड़ जी की आत्मा को शरण में लेकर मुक्त करेंगे। दीक्षा के पश्चात् गरूड़ जी ने ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी से ज्ञान चर्चा करने का विचार किया। गरूड़ जी चलकर ब्रह्मा जी के पास गए। उनसे ज्ञान चर्चा की।
गरूड़ वचन ब्रह्मा के प्रति
ब्रह्मा कहा तुम कैसे आये। कहो गरूड़ मोहे अर्थाय।।
तब हम कहा सुनों निरंजन पूता। आया तुम्हें जगावन सूता।।
जन्म-मरण एक झंझट भारी। पूर्ण मोक्ष कराओ त्रिपुरारी।।
‘‘ब्रह्मा वचन‘‘
हमरा कोई नहीं जन्म दाता। केवल एक हमारी माता।।
पिता हमारा निराकर जानी। हम हैं पूर्ण सारंगपाणी।।
हमरा मरण कबहु नहीं होवै। कौन अज्ञान में पक्षि सोवै।।
तबही ब्रह्मा विमान मंगावा। विष्णु, ब्रह्मा को तुरंत बुलावा।।
गए विमान दोनों पासा। पल में आन विराजे पासा।।
इन्द्र कुबेर वरूण बुलाए। तेतिस करोड़ देवता आए।।
आए ऋषि मुनी और ��ाथा। सिद्ध साधक सब आ जाता।।
ब्रह्मा कहा गरूड़ नीन्द मैं बोलै। कोरी झूठ कुफर बहु तोलै।।
कह कोई और है सिरजनहारा। जन्म-मरण बतावै हमारा।।
ताते मैं यह मजलिस जोड़ी। गरूड़ के मन क्या बातां दौड़ी।।
ऋषि मुनि अनुभव बताता। ब्रह्मा, विष्णु, शिव विधाता।।
निर्गुण सरगुण येही बन जावै। कबहु नहीं मरण मैं आवै।।
‘‘विष्णु वचन‘‘
पक्षीराज यह क्या मन में आई। पाप लगै बना आलोचक भाई।।
हमसे और कौन बडेरा दाता। हमहै कर्ता और चैथी माता।।
तुमरी मति अज्ञान हरलीनि। हम हैं पूर्ण करतार तीनी।।
‘‘महादेव वचन‘‘
कह महादेव पक्षी है भोला। हृदय ज्ञान इन नहीं तोला।।
ब्रह्मा बनावै विष्णु पालै। हम सबका का करते कालै।।
और बता गरूड़ अज्ञानी। ऋषि बतावै तुम नहीं मानी।।
चलो माता से पूछै बाता। निर्णय करो कौन है विधाता।।
सबने कहा सही है बानी। निर्णय करेगी माता रानी।।
सब उठ गए माता पासा। आपन समस्या करी प्रकाशा।।
‘‘माता वचन‘‘
कहा माता गरूड़ बताओ। और कर्ता है कौन समझाओ।।
‘‘गरूड़ वचन‘‘
मात तुम जानत हो सारी। सच्च बता कहे न्याकारी।।
सभा में झूठी बात बनावै। वाका वंश समूला जावै।।
मैं सुना और आँखों देखा। करता अविगत अलग विशेषा।।
जहाँ से जन्म हुआ तुम्हारा। वह है सबका सरजनहारा।।
वेद जाका नित गुण गावैं। केवल वही एक अमर बतावै।।
मरहें ब्रह्मा विष्णु नरेशा। मर हैं सब शंकर शेषा।।
अमरपुरूष सत पुर रहता। अपने मुख सत्य ज्ञान वह कहता।।
वेद कहे वह पृथ्वी पर आवै। भूले जीवन को ज्ञान बतलावै।।
क्या ये झूठे शास्त्रा सारे। तुम व्यर्थ बन बैठे सिरजनहारे।।
मान बड़ाई छोड़ो भाई। ताकि भक्ति करे अमरापुर जाई।।
माता कहना साची बाता। बताओ देवी है कौन विधाता।।
‘‘माता (दुर्गा) वचन‘‘
माता कह सुनो रे पूता। तुम जोगी तीनों अवधूता।।
भक्ति करी ना मालिक पाए। अपने को तुम अमर बताए।।
वह कर्ता है सबसे न्यारा। हम तुम सबका सिरजनहारा।।
गरूड़ कहत है सच्ची बानी। ऐसे बचन कहा माता रानी।।
सब उठ गए अपने अस्थाना। साच बचन काहु नहीं माना।।
‘‘गरूड़ वचन‘‘
ब्रह्मा विष्णु मोहे बुलाया। महादेव भी वहाँ बैठ पाया।।
तीनों कहे कोई दो प्रमाणा। तब हम तोहे साचा जाना।।
मैं कहा गुंगा गुड़ खावै। दुजे को स्वाद क्या बतलावै।।
मैं जात हूँ सतगुरू पासा। ला प्रमाण करू भ्रम विनाशा।।
त्रिदेव कहें लो परीक्षा हमारी। पूर्ण करें तेरी आशा सारी।।
हमही मारें हमही बचावैं। हम रहत सदा निर्दावैं।।
गरूड़ कहा हम करें परीक्षा। तुम पूर्ण तो लूं तुम्हारी दीक्षा।।
उड़ा वहाँ से गुरू पासे आया। सब वृन्तात कह सुनाया।।
‘‘सतगुरू (कबीर) वचन‘‘
गरूड़ सुनो बंग देश को जाओ। बालक मरेगा कहो उसे बचाओ।।
दिन तीन की आयु शेषा। करो जीवित ब्रह्मा विष्णु महेशा।।
फिर हम पास आना भाई। हम बालक को देवैं जिवाई।।
बंग देश में गरूड़ गयो, बालक लिया साथ।
त्रिदेवा से अर्ज करी, जीवन दे बालक करो सुनाथ।।
‘‘त्रिदेव वचन‘‘
धर्मराज पर है लेखा सारा। बासे जाने सब विचारा।।
गरूड़ और बालक सारे। गए धर्मराज दरबारे।।
धर्मराज से आयु जानी। दिन तीन शेष बखानी।।
याकी आयु बढ़ै नाहीं। मृत्यु अति नियड़े आयी।।
त्रिदेव कहँ आए राखो लाजा। हम क्या मुख दिखावैं धर्मराजा।।
धर्म कह आपन आयु दे भाई। तो बालक की आयु बढ़ जाई।।
चले तीनों न नहीं पार बसाई। बने बैठे थे समर्थ राई।।
सुन गरूड़ यह सत्य है भाई। आई मृत्यु न टाली जाई।।
गरूड़ वचन
समर्थ में गुण ऐसा बताया। आयु बढ़ावै और अमर करवाया।।
अब मैं जाऊँ समर्थ पासा। बालक बचने की पूरी आशा।।
गया गरूड़ कबीर की शरणा। दया करो हो साहब जरणा(विश्वास)।।
‘‘कबीर साहब वचन‘‘
सुनो गरूड़ एक अमर बानी। यह अमृत ले बालक पिलानी।।
जीवै बालक उमर बढ़ जावै। जग बिचरे बालक निर्दावै।।
बालक लाना मेरे पासा। नाम दान कर काल विनाशा।।
जैसा कहा गरूड़ ने कीन्हा। बालक कूं जा अमृत दीना।।
ले बालक तुरंत ही आए। सतगुरू से दीक्षा पाए।।
आशीर्वाद दिया सतगुरू स्वामी। दया करि प्रभु अंतर्यामी।।
बदला धर्मराज का लेखा। ब्रह्मा विष्णु शिव आँखों देखा।।
गए फिर धर्मराज दरबारा। लेखा फिर दिखाऊ तुम्हारा।।
धर्मराज जब खाता खोला। अचर्ज देख मुख से बोला।।
परमेश्वर का यह खेल निराला। उसका क्या करत है काला।।
वो समर्थ राखनहारा। वाने लेख बदल दिया सारा।।
सौ वर्ष यह बालक जीवै। भक्ति ज्ञान सुधा रस पीवै।।
यह भी लेख इसी के माहीं। आँखों देखो झूठी नाहीं।।
देखा लेखा तीनों देवा। अचर्ज हुआ कहूँ क्या भेवा।।
बोले ब्रह्मा विष्णु महेशा। परम पुरूष है कोई विशेषा।।
जो चाहे वह मालिक करसी। वाकी शरण फिर कैसे मरसी।।
पक्षीराज तुम साचे पाये। नाहक हम मगज पचाऐ।।
करो तुम जो मान मन तेरा। तुम्हरा गरूड़ भाग बड़ेरा।।
पूर्ण ब्रह्म अविनाशी दाता। सच्च में है कोई और विधाता।।
इतना कह गए अपने धामा। गरूड़ और बालक करि प्रणामा।।
भक्ति करी बालक चित लाई। गरूड़ अरू बालक भये गुरू भाई।।
Fact About North Korea In Hindi-किसी एक की गलती की वजह से पूरे परिवार को दी जाती है सजा, यहां। जाने कोरिया के बारे में रोचक तथ्य
Fact About North Korea In Hindi-किसी एक की गलती की वजह से पूरे परिवार को दी जाती है सजा, यहां। जाने कोरिया के बारे में रोचक तथ्य
Fact About North Korea In Hindi-
क्या हो अगर आपने किसी गलत मौके या फिर किसी गलत दिन पर अपने हंस। दिया और आपको फांसी की सजा सुना दी जाए। और ये सब कुछ असल जिंदगी। में उत्तर कोरिया में होता है। आपको बता दे की उत्तर कोरिया का कानून काफी अजीब है, इसलिए जानते है उत्तर कोरिया से जुड़े हुए कुछ फैक्ट।
Fact About North Korea In Hindi
विदेशी फिल्म देखने पर दी जाती है फांसी –
आपको बता दे की उत्तर कोरिया में…
कुछ दिन पूर्व ये तुर्की की यात्रा में थे। जहाँ ये एर्दोगन याने राष्ट्रपति आवास के आगे फोटोग्राफी कर रहे थे। इस फोटोग्राफी के दौरान इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ये कह कर कि ये जासूस है और इजराइल के लिए जासूसी कर रहे हैं। कुछ फोटोग्राफ्स भी बरामद हुए इनके यहाँ से।
अब जासूस का ठप्पा लग जाने पे मालूम है न आगे परिणाम क्या होता है सो ?? और वो भी उन दो देशों के बीच की जासूसी जो एक दूसरे के जानी दुश्मन हो!!
इन दोनों दंपतियों को अलग-अलग रखा गया जहां कैसा सलूक किया गया होगा अब इनके बयानों से साफ पता कर सकते हैं। ये कभी सोचे भी नहीं थे अब ये यहाँ से जिंदा निकल पाएंगे। या तो कम से कम 30 साल की कैद या सीधे फांसी।
तो बात सीधे इजरायल के पीएम तक पहुँची... और पीएम बेनेट ने तत्काल एक्शन लिया... फॉरेन मिनिस्टर से ले के मोसाद चीफ तक इसमें लग गए। पीएम बेनेट ने डाइरेक्ट फोन पे एर्दोगन से बात की।
और बात क्या हुई होगी और कैसे हुई होगी इसका इस बात से अंदाजा लगाइए कि आनन फानन में सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी की गई और इजरायल द्वारा भेजे गए दो स्पेशल अधिकारियों के साथ प्राइवेट जेट वहां जा पहुँचा और फिर उन दंपति को वहाँ से इजराइल वापिस लाया गया।
खबर बाहर आनी थी सो आई... लेकिन जब जासूसी का मामला हो तो ये बहुत बड़ी बात हो जाती है। लिंकिंग के लिए इनके पास कोई विकल्प भी नहीं था मतलब तुर्की और इजरायल के बीच कोई अम्बेसी नहीं है मतलब कोई दूतावास नहीं जहाँ इनकी बात पहुँचती और कुछ मदद हो पाता।
8 दिन पहले तुर्की में इजराइल के दंपत्ति को तुर्की में सैन्य जासूसी करते गिरफ्तार किया गया
गिरफ्तार करते समय इजराइल का यह दंपत्ति तुर्की के राष्ट्रपति और नए-नए खलीफा बने एरडोगन के आवास के पास वीडियो बना रहा था और इस दंपत्ति के पास तुर्की के विभिन्न सैन्य ठिकानों के फोटोग्राफ्स और दूसरी चीजें मिली
तुर्की की एक अदालत ने इस दंपत्ति को 30 दिन के पुलिस रिमांड में भेजा और तुर्की के मीडिया में चर्चा थी कि वे दंपत्ति या तो फांसी पाएगा या कम से कम 30 साल जेल में अंदर रहेगा
इजरायल के प्रधानमंत्री ने अर्दोगन को फोन किया एर्दोगान ने रातों-रात एक विशेष जज की बेंच बैठाई और उस जज साहब ने इस दंपत्ति को मानवीय आधार पर इजराइल भेजने भेजने का आदेश दे दिया और कल यह दंपत्ति एक विशेष विमान से इजराइल अपने घर आ गया
यूरोप की मीडिया में चर्चा है इजरायल के प्रधानमंत्री ने नए-नए खलीफा बने एर्दोगान को यह नहीं कहा कि मित्र हमारे नागरिक को छोड़ दो यार
उन्होंने कहा है कि अगर कल तक मेरे देश का दंपत्ति रिहा नहीं होगा तब तुर्की का नामोन��शान दुनिया के नक्शे से मिट जाएगा और यह कोई धमकी नहीं है हमने भूतकाल में किया है
इस धमकी के बाद खलीफा की फटकर फ्लावर हो गयी
खलीफा इतने डर गए कि रातों-रात एक विशेष जज की बेंच बुलाई गई और उस दंपत्ति को रिहा करने का आदेश दिया गया
वीर भोग्या वसुंधरा
जब दोनों पति-पति मिले तो उनके मिलने की खुशी आप फ़ोटो में देख सकते हैं।
जब ये घर पहुंचे तो पीएम बेनेट और फॉरेन मिनिस्टर याइर लापीड ने फोन पे बात करके उनके घर वापसी पे बधाई दिए।
बताते चले कि ये दंपति पेशे से ड्राइवर हैं,जो एक कंपनी के लिए काम करते हैं।
एक मामूली ड्राइवर के लिए पूरा देश का सिस्टम लग जाता है छुड़ाने के लिए और छुड़ा के ही दम लेता है।
ये होती है नागरिक के प्रति देश जज्बा, उसे बचाने का जज्बा। ऐसे ही कोई इजरायल नहीं बन जाता है। एक-एक जान क�� कीमत उन्हें पता है। और अगर इनके एक की जान गई तो फिर इन्हें हजार की भी परवाह नहीं चाहे सामने वाला कोई कितना भी बड़ा भेटनर क्यों न हो।
गोष्टी बाबे नानक और कबीर जी की (कबीर जी)उह गुरु जी चरनि लागि करवै, बीनती को पुन करीअहु देवा।अगम अपार अभै पद कहिए, सो पाईए कित सेवा।।मुहि समझाई कहहु गुरु पूरे, भिन्न-भिन्न अर्थ दिखावहु।जिह बिधि परम अभै पद पाईये, सा विधि मोहि बतावहु।मन बच करम कृपा करि दीजै, दीजै शब्द उचारं।।कहै कबीर सुनहु गुरु नानक, मैं दीजै शब्द बीचारं।।1।।(नानक जी)नानक कह सुनों कबीर जी, सिखिया एक हमारी।तन मन जीव ठौर कह ऐकै, सुंन लागवहु तारी।।करम अकरम दोऊँ तियागह, सहज कला विधि खेलहु।जागत कला रहु तुम निसदिन, सतगुरु कल मन मेलहु।।तजि माया र्निमायल होवहु, मन के तजहु विकारा।नानक कह सुनहु कबीर जी, इह विधि मिलहु अपारा।।2।।(कबीर जी)गुरु जी माया सबल निरबल जन तेरा, क्युं अस्थिर मन होई।काम क्रोध व्यापे मोकु, निस दिन सुरति निरत बुध खोई।।मन राखऊ तवु पवण सिधारे, पवण राख मन जाही।मन तन पवण जीवैं होई एकै, सा विधि देहु बुझााई।।3।।(नानक जी) दिृढ करि आसन बैठहु वाले, उनमनि ध्यान लगावहु।अलप-अहार खण्ड कर निन्द्रा, काम क्रोध उजावहु।।नौव दर पकड़ि सहज घट राखो, सुरति निरति रस उपजै।गुरु प्रसादी जुगति जीवु राखहु, इत मंथत साच निपजै।।4।।(कबीर जी) (कबीर कवन सुखम कवन स्थूल कवन डाल कवन है मूल)गुरु जी किया लै बैसऊ, किआ लेहहु उदासी।कवन अग्नि की धुणी तापऊ कवन मड़ी महि बासी।।5।।(नानक जी) (नानक ब्रह्म सुखम सुंन असथुल, मन है पवन डाल है मूल)करम लै सोवहु सुरति लै जागहु, ब्रह्म अग्नि ले तापहु।निस बासर तुम खोज खुजावहु, संुन मण्डल ले डूम बापहु।।6।।(सतगुरु कहै सुनहे रे चेला, ईह लछन परकासे)(गुरु प्रसादि सरब मैं पेखहु, सुंन मण्डल करि वासे)(कबीर जी) सुआमी जी जाई को कहै, ना जाई वहाँ क्या अचरज होई जाई।मन भै चक्र रहऊ मन पूरे, सा विध देहु बताई।।7।।(अपना अनभऊ कहऊ गुरु जी, परम ज्योति किऊं पाई।)(नानक जी) ससी अर चड़त देख तुम लागे, ऊहाँ कीटी भिरणा होता।नानक कह सुनहु कबीरा, इत बिध मिल परम तत जोता।।8।।(कबीर जी) धन धन धन गुरु नानक, जिन मोसो पतित उधारो।निर्मल जल बतलाइया मो कऊ, राम मिलावन हारो।।9।।(नानक जी) जब हम भक्त भए सुखदेवा, जनक विदेह किया गुरुदेवा।कलि महि जुलाहा नाम कबीरा, ढूंड थे चित भईआ न थीरा।।बहुत भांति कर सिमरन कीना, इहै मन चंचल तबहु न भिना।जब करि ज्ञान भए उदासी, तब न काटि कालहि फांसी।।जब हम हार परे सतिगुरु दुआरे, दे गुरु नाम दान लीए उधारे।।10।।(कबीर जी) सतगुरु पुरुख सतिगुरु पाईया, सतिनाम लै रिदै बसाईआ।जात कमीना जुलाहा अपराधि, गुरु कृपा ते भगति समाधी।।मुक्ति भइआ गुरु सतिगुरु बचनी, गईया सु सहसा पीरा।जुग नानक सतिगुरु जपीअ, कीट मुरीद कबीरा।।11।।सुनि उपदेश सम्पूर्ण सतगुरु का, मन महि भया अनंद।मुक्ति का दाता बाबा नानक, रिंचक रामानन्द।।12।
ऊपर लिखी वाणी ‘प्राण संगली‘ नामक पुस्तक से लिखी हैं। इसमें स्पष्ट लिखा है कि वाणी संख्या 9 तक दोहों में पूरी पंक्ति के अंतिम अक्षर मेल खाते हैं। परन्तु वाणी संख्या 10 की पाँच पंक्तियां तथा वाणी संख्या 11 की पहली दो पक्तियां चैपाई रूप में हैं तथा फिर दो पंक्तियां दोहा रूप में है तथा फिर वाणी संख्या 12 में केवल दो पंक्तियां हैं जो फिर दोहा रूप में है। इससे सिद्ध है कि वास्तविक वाणी को निकाला गया है जो वाणी कबीर साहेब जी के विषय में श्री नानक जी ने सतगुरु रूप में स्वीकार किया होगा। नहीं तो दोहों में चलती आ रही वाणी फिर चैपाईयों में नहीं लिखी जाती। फिर बाद में दोहों में लिखी है। यह सब जान-बूझ कर प्रमाण मिटाने के लिए किया है। वाणी संख्या 10 की पहली पंक्ति ‘जब हम भक्त भए सुखदेवा, जनक विदेही किया गुरुदेवा‘ स्पष्ट करती है कि ���्री नानक जी कह रहे हैं कि मैं जनक रूप में था उस समय मेरा शिष्य (भक्त) श्री सुखदेव ऋषि हुए थे। इस वाणी संख्या 10 को नानक जी की ओर से कही मानी जानी चाहिए तो स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे है कि मैं हार कर गुरू कबीर के चरणों में गिर गया उन्होंने नाम दान करके उद्धार किया। वास्तव में यह 10 नं. वाणी कही अन्य वाणी से है। यह पंक्ति भी परमेश्वर कबीर साहेब जी की ओर से वार्ता में लिख दिया है। क्योंकि परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपनी शक्ति से श्री नानक जी को पिछले जन्म की चेतना प्रदान की थी। तब नानक जी ने स्वीकार किया था कि वास्तव में मैं जनक था तथा उस समय सुखदेव मेरा भक्त हुआ था।
वाणी संख्या 11 में चार पंक्तियां हैं जबकि वाणी संख्या 10 में पाँच पंक्तियां लिखी हैं। वास्तव में प्रथम पंक्ति ‘जब हम भक्त भए सुखदेवा ... ‘ वाली में अन्य तीन पंक्तियां थी, जिनमें कबीर परमेश्वर को श्री नानक जी ने गुरु स्वीकार किया होगा। उन्हें जान बूझ कर निकाला गया लगता है।
वाणी संख्या 1 व 2 में 6.6 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 3 व 4 में 4.4 पंक्तियाँ, वाणी संख्या 5 व 6 में 3.3 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 7 में 4 पंक्तियाँ हैं, वाणी संख्या 8 में 3 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 9 में 2 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 10 में 5 पंक्तियाँ हैं, वाणी संख्या 11 में 4 पंक्तियाँ है तथा वाणी संख्या 12 में 2 पंक्तियाँ है। यदि ये वाणी पूरी होती तो सर्व वाणीयों (कलियों) में एक जैसी वाणी संख्या होती।
श्री नानक जी ने दोनों की वार्ता जो प्रभु कबीर जी से हुई थी, लिखी थी। परन्तु बाद में प्राण संगली तथा गुरु ग्रन्थ साहिब में उन वाणियों को छोड़ दिया गया जो कबीर परमेश्वर जी को श्री नानक जी का गुरुदेव सिद्ध करती थी। इसी का प्रमाण कृप्या निम्न देखें। दो शब्दों में प्रत्यक्ष प्रमाण है(श्री गुरू ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 1189, 929, 930 पर)।
आगे श्री गुरु ग्रन्थ पृष्ठ नं. 1189
राग बसंत महला 1
चंचल चित न पावै पारा, आवत जात न लागै बारा।
दुख घणों मरीअै करतारा, बिन प्रीतम के कटै न सारा।।1।।
सब उत्तम किस आखवु हीना, हरि भक्ति सचनाम पतिना(रहावु)।
औखद कर थाकी बहुतेरे, किव दुख चुकै बिन गुरु मेरे।।
बिन हर भक्ति दुःख घणोरे, दुख सुख दाते ठाकुर मेरे।।2।।
रोग वडो किंवु बांधवु धिरा, रोग बुझै से काटै पीरा।
मैं अवगुण मन माहि सरीरा, ढुडत खोजत गुरिू मेले बीरा।।3।।
नोट:-- यहाँ पर स्पष्ट है कि अक्षर कबीरा की जगह ‘गुरु मेले बीरा‘ लिखा है। जबकि लिखना था ‘ढुंडत खोजत गुरि मेले कबीरा‘
गुरु का शब्द दास हर नावु, जिवै तू राखहि तिवै रहावु।
जग रोगी कह देखि दिखाऊ, हरि निमाईल निर्मल नावु।।4।।
घट में घर जो देख दिखावै, गुरु महली सो महलि बुलावै।
मन में मनुवा चित्त में चीता, अैसे हर के लोग अतीता।।5।।
हरख सोग ते रहैहि निरासा, अमृत चाख हरि नामि निवासा।।
आप पीछाणे रह लिव लागा, जनम जीति गुरुमति दुख भागा।।6।।
गुरु दिया सच अमृत पिवैऊ, सहज मखु जीवत ही जीवऊ।
अपणे करि राखहु गुरु भावै, तुमरो होई सु तुझहि समावै।।8।।
भोगी कऊ दुःख रोग बिआपै, घटि-घटि रवि रहिया प्रभु आपै।
सुख दुःख ही तै गुरु शब्द अतीता, नानक राम रमै हरि चीता।।9(4)।।
इस ऊपर के शब्द में प्रत्यक्ष प्रमाण है कि श्री नानक जी का कोई आकार रूप में गुरु था जिसने सच्चनाम (सतनाम) दिया तथा उस गुरुदेव को ढूंडते-खोजते काशी में कबीर गुरु मिला तथा वह सतनाम प्राणियों को कर्म-कष्ट रहित करता है तथा हरदम गुरु के वचन में रह कर गुरुदेव द्वारा दिए सत्यनाम (सच्चनाम) का जाप करते रहना चाहिए।
राग रामकली महला 1 दखणी आंैकार
गुरु ग्रन्थ पृष्ठ नं. 929.30
औंकार ब्रह्मा उत्पति। औंकार किया जिन चित।।
औंकार सैल जुग भए। औंकार वेद निरमए।।
औंकार शब्द उधरे। औंकार गुरु मुख तरे।।
ओंम अखर सुन हुँ विचार। ओम अखर त्रिभूवण सार।।
सुण पाण्डे किया लिखहु जंजाला, लिख राम नाम गुरु मुख गोपाला।।1।।रहाऊ।।
ससै सभ जग सहज उपाइया, तीन भवन इक जोती।
गुरु मुख वस्तु परापत होवै, चुण लै मानक मोती।।
समझै सुझै पड़ि-पड़ि बुझै अति निरंतर साचा।
गुरु मुख देखै साच समाले, बिन साचे जग काचा।।2।।
धधै धरम धरे धरमा पुरि गुण करी मन धीरा। {ग्रन्थ साहेब मंे एक ही पंक्ति है।}
यहाँ पंक्ति अधूरी(अपूर्ण) छोड़ रखी है। प्रत्येक पंक्ति में अंतिम अक्षर दो एक जैसे है। जैसे ऊपर लिखी वाणी में ‘‘ज्योति‘‘ फिर दूसरी में ‘‘मोती‘‘। फिर ‘‘साचा‘‘ दूसरी में ‘‘काचा‘‘। यहाँ पर ‘‘धीरा‘‘ अंतिम अक्षर वाली एक ही पंक्ति है। इसमें साहेब कबीर का नाम प्रत्यक्ष था जो कि मान वस होकर ग्रन्थ की छपाई करते समय निकाल दी गई है(छापाकारों ने काटा होगा, संत कभी ऐसी गलती नहीं करते) क्योंकि कबीर साहेब जुलाहा जाति में माने जाते हैं जो उस समय अछूत जानी जाती थी। कहीं गुरु नानक जी का अपमान न हो जाए कि एक जुलाहा नानक जी का पूज्य गुरु व भगवान था।
फिर प्रमाण है ‘‘राग बसंत महला पहला‘‘ पौड़ी नं. 3 आदि ग्रन्थ(पंजाबी) पृष्ठ नं. 1188
नानक हवमों शब्द जलाईया, सतगुरु साचे दरस दिखाईया।।
इस वाणी से भी अति स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे हैं कि सत्यनाम (सत्यशब्द) से विकार-अहम्(अभिमान) जल गया तथा मुझे सच्चे सतगुरु ने दर्शन दिए अर्थात् मेरे गुरुदेव के दर्शन हुए। स्पष्ट है कि नानक जी को कोई सतगुरु आकार रूप में अवश्य मिला था। वह ऊपर तथा नीचे पूर्ण प्रमाणित है। स्वयं कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा(अकाल मूर्त) स्वयं सच्चखण्ड से तथा दूसरे रूप में काशी बनारस से आकर प्रत्यक्ष दर्शन देकर सच्चखण्ड (सत्यलोक) भ्रमण करवा के सच्चा नाम उपदेश काशी (बनारस) में प्रदान किया।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज {गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर(हरियाणा)} को भी परमेश्वर कबीर जिन्दा महात्मा के रूप में जंगल में मिले थे। इसी प्रकार सतलोक दिखा कर वापिस छोड़ा था। परमेश्वर ने बताया कि मैंने ही श्री नानक जी तथा श्री दादू जी को पार किया था। जब श्री नानक जी ने पूर्ण परमात्मा को सतलोक में भी देखा तथा फिर बनारस (काशी) में जुलाहे का कार्य करते देखा तब उमंग में भरकर कहा था ‘‘वाहेगुरु सत्यनाम‘‘ वाहेगुरु-वाहेगुरु तथा इसी उपरोक्त वाक्य का उच्चारण करते हुए काशी से वापिस आए। जिसको श्री नानक जी के अनुयाईयों ने जाप मंत्र रूप में जाप करना शुरु कर दिया कि यह पवित्र मंत्र श्री नानक जी के मुख कमल से निकला था, परन्तु वास्तविकता को न समझ सके। अब उन से कौन छुटाए, इस नाम के जाप को जो सही नहीं है। क्योंकि वास्तविक मंत्र को बोलकर नहीं सुनाया जाता। उसका सांकेतिक मंत्र ‘सत्यनाम‘ है तथा वाहे गुरु कबीर परमेश्वर को कहा है। इसी का प्रमाण संत गरीबदास साहेब ने अपने सतग्रन्थ साहेब में फुटकर साखी का अंग पृष्ठ न. 386 पर दिया है।
गरीब - झांखी देख कबीर की, नानक कीती वाह।
वाह सिक्खों के गल पड़ी, कौन छुटावै ताह।।
गरीब - हम सुलतानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, कांशी माहे कबीर हुआ।।
प्रमाण के लिए ‘‘जीवन दस गुरु साहिबान‘‘ पृष्ठ न. 42 से 44 तक (लेखक - सोढी तेजा सिंघ जी) - (प्रकाशक - चतर सिंघ जीवन सिंघ)
बेई नदी में प्रवेश
”जीवन दस गुरु साहेब से ज्यों का त्यों सहाभार“
गुरु जी प्रत्येक प्रातः बेई नदी में जो कि शहर सुलतानपुर के पास ही बहती है, स्नान करने के लिए जाते थे। एक दिन जब आपने पानी में डुबकी लगाई तो फिर बाहर न आए। कुछ समय ऊपरान्त आप जी के सेवक ने, जो कपड़े पकड़ कर नदी के किनारे बैठा था, घर जाकर जै राम जी को खबर सुनाई कि नानक जी डूब गए हैं तो जै राम जी तैराकों को साथ लेकर नदी पर गए। आप जी को बहुत ढूंढा किन्तु आप नहीं मिले। बहुत देखने के पश्चात् सब लोग अपने अपने घर चले गए।
भाई जैराम जी के घर बहुत चिन्ता और दुःख प्रकट किया जा रहा था कि तीसरे दिन सवेरे ही एक स्नान करने वाले भक्त ने घर आकर बहिन जी को बताया कि आपका भाई नदी के किनारे बैठा है। यह सुनकर भाईआ जैराम जी बेई की तरफ दौड़ पड़े और जब जब पता चलता गया और बहुत से लोग भी वहाँ पहुँच गए। जब इस तरह आपके चारों तरफ लोगों की भीड़ लग गई आप जी चुपचाप अपनी दुकान पहुँच गए। आप जी के साथ स्त्राी और पुरूषों की भीड़ दुकान पर आने लगी। लोगों की भीड़ देख कर गुरु जी ने मोदीखाने का दरवाजा खोल दिया और कहा जिसको जिस चीज की जरूरत है वह उसे ले जाए। मोदीखान�� लुटाने के पश्चात् गुरु जी फकीरी चोला पहन कर शमशानघाट में जा बैठे। मोदीखाना लुटाने और गुरु जी के चले जाने की खबर जब नवाब को लगी तो उसने मुंशी द्वारा मोदीखाने की किताबों का हिसाब जैराम को बुलाकर पड़ताल करवाया। हिसाब देखने के पश्चात् मुंशी ने बताया कि गुरु जी के सात सौ साठ रूपये सरकार की तरफ अधिक हैं। इस बात को सुनकर नवाब बहुत खुश हुआ। उसने गुरु जी को बुलाकर कहा कि उदास न हो। अपना फालतू पैसा और मेरे पास से ले कर मोदीखाने का काम जारी रखें। पर गुरु जी ने कहा अब हमने यह काम नहीं करना हमें कुछ और काम करने का भगवान् की तरफ से आदेश हुआ है। नवाब ने पूछा क्या आदेश हुआ है ? तब गुरु जी ने मूल-मंत्र उच्चारण किया।
नवाब ने पूछा कि यह आदेश आपके भगवान् ने कब दिया ? गुरु जी ने बताया कि जब हम बेई में स्नान करने गए थे तो वहाँ से हम सच्चखण्ड अपने स्वामी के पास चले गए थे वहाँ हमें आदेश हुआ कि नानक जी यह मंत्र आप जपो और बाकियों को जपा कर कलयुग के लोगों को पार लगाओ। इसलिए अब हमें अपने मालिक के इस हुक्म की पालना करनी है। इस सन्दर्भ को भाई गुरदास जी वार 1 पउड़ी 24 में लिखते हैं--
बाबा पैधा सचखण्ड नउनिधि नाम गरीबी पाई।।
अर्थात्--बाबा नानक जी सचखण्ड गए। वहाँ आप को नौनिधियों का खजाना नाम और निर्भयता प्राप्त हुई। यहाँ बेई किनारे जहाँ गुरु जी बेई से बाहर निकल कर प्रकट हुए थे, गुरु द्वारा संत घाट अथवा गुरुद्वारा बेर साहिब, बहुत सुन्दर बना हुआ है। इस स्थान पर ही गुरु जी प्रातः स्नान करके कुछ समय के लिए भगवान् की तरफ ध्यान करके बैठते थे।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
30 जून 1855 ई. का वह दिन, जिसके बाद न संताल परगना का, न झारखण्ड और न देश का इतिहास वैसा रहा जैसा उससे पहले था। महाजनों और अंग्रेजों के शोषण से उपजी इतिहास के गर्भ की छटपटाहट हूल का रूप लेकर जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी थी। जिसने अंग्रेजों को अपनी साम्राज्यवादी नीतियों पर फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। भारतीयों को कमजोर और डरपोक मानने की उनकी सोच को संताल हूल से बड़ा झटका लगा था। चार भाई और दो बहनों के नेतृत्व में संतालों के साहस और जज्बे ने ब्रिटिश सरकार की नींव हिला डाली थी। इसी हूल ने बाद में उलगुलान का रूप लिया और फिर आज़ादी की लड़ाई की मजबूत सड़क की बुनियाद रची।
संताली हूल के इतिहासकार कल्याण हाड़ाम ने पश्चिम बंगाल संताली अकादेमी से प्रकाशित अपनी किताब ‘होड़कोरेन मारी हापड़ामको रेयाक् कथा’ में संताल हूल को याद करते हुए लिखा है कि सिदो-कान्हू का यह नारा कि ‘राजा-महाराजा को ख़त्म करो’, ‘दिकुओं को गंगा पार भेजो’ और हमारा राज्य हमारा शासन’ (आबुआ राज आबुआ दिसोम) का नारा संताल परगना के जंगल-पहाड़ में चारों तरफ गूँज रहा था। संताल, पहाड़िया और गैर आदिवासी जातियाँ जो यहाँ पहले से रह रही थीं वह सिदो-कान्हू के नेतृत्व में बाहर से आये महाजनों और अंग्रेजों के खिलाफ मुकम्मल लड़ाई के लिए तैयार हो रहीथीं।
साहित्य के परिप्रेक्ष्य से संताली लोकगीतों-लोककथाओं में सिदो,कान्हू, चाँद,भैरव, फूलो और झानो के साथ-साथ हूल विद्रोह के कई अन्य लड़ाकों से सम्बंधित साहित्य दिखाई पड़ता है। आधुनिक संताली साहित्य में भी हूल और उनके शहीदों को लेकर रचनाएँ दिखाई पड़ती हैं। हिन्दी कविता या हिन्दी साहित्य पर अगर विचार किया जाए तो इस दृष्टि से थोड़ी निराशा हाथ लगती है। एक तरफ बिरसा और उनके आन्दोलन उलगुलान पर आधारित प्रचुर लेखन दिखाई पड़ता है।
न सिर्फ हिन्दी में बल्कि मराठी,बांग्ला सहित अन्य भारतीय भाषाओँ में भी बिरसा की उपस्थिति गौरतलब है। भुजंग मेश्राम ने मराठी में बिरसा पर कविता लिखी तो महाश्वेता देवी ने बिरसा के आन्दोलन पर ‘अरण्येर अधिकार’ जैसा प्रसिद्ध उपन्यास लिखा। अंग्रेजी में भी बिरसा पर आधारित लेखन दिखाई पड़ जाता है। दूसरी तरफ हिन्दी साहित्य में सिदो-कान्हू और उनके हूल पर आधारित लेखन बहुत कम दिखाई पड़ता है। जबकि यह सच है कि सिदो-कान्हू के हूल की विरासत के बिना बिरसा का उलगुलान संभव न था। हूल का ही अगला कदम उलगुलान था और उसका परिणाम तात्कालिक तौर पर संताल परगना टेनेंसी एक्ट और छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट के रूप में दिखाई पड़ता है।
ऐसा नहीं है कि हूल पर आधारित या हूल से प्रेरित साहित्य बिलकुल नहीं है। हिन्दी कविता में झारखण्ड के अब जो कुछ नये नाम अपनी जगह बना रहे हैं वे अपनी कविताओं में हूल की क्रांतिधर्मिता को जगह दे रहे हैं। जसिंता केरकेट्टा और अनुज लुगुन कुछ ऐसे ही नाम हैं। बिनोद सोरेन संताली के एक समकालीन कवि हैं जिनकी कविताएँ संताली के साथ हिन्दी में भी प्रकाशित होती हैं। उनकी एक कविता ‘कुल्ही के धुल में हूल’ में वह बच्चों के खेल के माध्यम से यह बताते हैं कि संताल परगना की मिट्टी और धुल तक में हूल की आग बरकरार है और लगातार जल रही रही है। वे लिखते हैं कि खेलने के लिए बच्चे तय करते हैं कि-‘तय हुआ खेलेंगे ‘हुल’... /खड़े हो गये वे दो कतारों में/ एक तरफ गोरों की पलटन/ दूसरे सिदो-कान्हु के हूलगरिया’।
उनके अनुसार ये बच्चे भी सिदो-कान्हू की विद्रोही सेना के हुलगरिया यानि हूल में शामिल होने वाले दस्ते के ही सदस्य हैं। आदिवासी अपने इतिहास और उसके सबक को हमेशा नये-नये तरीके से संजो कर रखते हैं और अपनी अगली पीढ़ी को सौंपते जाते हैं। इस नजरिए से इनका इतिहासबोध आपको चौंका सकता है। हूल की आग जो निरंतर बोरसी के आग की तरह लगातार जलती रही इसे चंद्रमोहन किस्कू अपनी कविता में इस तरह दर्ज करते है –‘जब छीन-उजाड़ रहे थे / लोगों का घर-आंगन / कपड़े-लत्ते / हरियाली जंगल / खेत-खलिहान / और मिट्टी के अंदर का पानी/ तब हूल की आग जली।’
हूल को अक्सर सामाजिक और राजनीतिक असंतोष से जोड़कर देखा जाता है, जो इसका सबसे बड़ा पहलू भी है। परन्तु हूल को प्रकृति के साथ होने वाले विनाश की पृष्ठभूमि में भी देखा जाना चाहिए। 1819ई की अपनी रिपोर्ट में सदरलैंड ने 1855 के हूल को देशी महाजनों और जमीदारों के अत्याचार का परिणाम बताया है। उसका मानना था कि अंग्रेजी सरकार आदिवासियों तक नहीं पहुँच पा रही थी इसलिए संतालों के साथ छल कपट और अन्याय हो रहा था। इसी कारण दामिन-ए-कोह यानि संताल परगना में विद्रोह फूट पड़ा। बड़ी चालाकी से सदरलैंड ने अपनी रिपोर्ट में हूल को भारतीयों द्वारा भारतीयों के खिलाफ किया गया षड्यंत्र बता दिया।
8 जून 1819 को सौंपे अपनी रिपोर्ट में लिखा-अंग्रेज आधिकारियों की अनुपस्थिति में बंगाली तथा अन्य दिकुओं का शोषण चक्र तेज हो गया था। रेजिडेंट मजिस्ट्रेट जिसे दामिन-ए- कोह की जिम्मेदारी दी गयी थी वह सिर्फ देवघर में बैठता था और संताल इतनी दूर अपनी शिकायत उस तक पहुंचा नहीं पाते थे। इसलिए हूल जैसा विद्रोह हुआ। दूसरी तरफ इन्हीं अंग्रेजों ने सिदो-कान्हू को उपद्रवी के रूप में प्रचारित किया। अन्य आदिवासी शहीदों के प्रति भी इनका यही रवैया था।पर संताली भाषा के साहित्यकारों ने इस राजनीति का पर्दाफाश अपने रचनाओं में बखूबी किया है। जदुनाथ टुडू का ‘लो बीर’, रबीलाल टुडू का ‘बीर बिरसा’, कालीराम सोरेन का ‘सिदो-कान्हू हूल’ ऐसी ही कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं।
सामाजिक एवं आर्थिक शोषण के साथ प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ और इससे आदिवासियों के जीवन का प्रभावित होना भी हूल का एक प्रमुख कारण था। इस दृष्टि से हूल की प्रासंगिकता पर विचार किया जाना अभी शेष है। परन्तु ये कई इतिहासकार स्वीकार करते हैं कि राजमहल की पहाड़ियों में रेल की पटरी निर्माण और और उससे होने वाले प्रकृति के विनाश का सम्बन्ध भी हूल से था। हूल सिर्फ बरहेट के भोगनाडी या सिदो-कान्हू और उनके भाई बहनों तक सीमित कोई आंदोलन नहीं था। इसमें पूरा संताल परगना और इसके लोग शामिल थे।
इसलिए हूल की आग 1855 तक भी महदूद नहीं है बल्कि विकास के लिए होने वाले विनाश का प्रतिकार के रूप में आज भी जीवित है। चंद्रमोहन किस्कू अपनी इसी कविता में लिखते हैं कि हूल की आग तब भी जलती है या जलनी चाहिए ‘जब छीन रहे थे/विकास के नाम पर/लोगों का हक़ और अधिकार/ जब कुचल रहे थे/निर्धन-गरीब लोगों को/ चौड़ी सड़क पर’। प्रकृति के साथ आदिवासियों का अटूट सम्बन्ध होता है। उसे भी हूल के आलोक में समझे और विश्लेषित करने की जरुरत है।
आज संताल परगना के साथ तमाम झारखण्ड और यहाँ के आदिवासियों की स्थिति बदहाल है। विकास की रफ़्तार जितनी भी तेज़ हो इन आदिवासियों तक नहीं पहुंची और पहुंची भी तो धक्का देने का ही काम ज्यादा किया। आज हूल की क्रांतिधर्मिता की लगतार हत्या यहाँ दिखाई पड़ रही है। जसिंता केरकेट्टा अपनी कविता ‘हूल की हत्या’ में लिखती हैं, “हाँ मैं वही गाछ हूँ / पंचकठिया-बरहेट के क्रांति स्थल का / वक़्त की अदालत में खड़ा / एक जीवित गवाह / जो पहचानता है / हूल के हत्यारों के चेहरे’। वह बरगद का पेड़ आज भी वहीँ खड़ा है जिस पर वीर सिदो को अंग्रेजों ने बेरहमी से फांसी पर चढ़ा दिया था। जसिंता के अनुसार बरगद का पेड़ हूल की उस सच्चाई का जिंदा सबूत है जो इतिहास को नींद में भी जगाये रखता है।
यह भी पढ़ें - स्वाधीनता आन्दोलन की पूर्वपीठिका ‘संथाल हूल विद्रोह’ (1855-1856)
अदालत द्वारा हत्यारों के चेहरों के बारे में पूछे जाने पर पेड़ बताता है कि उनका चेहरा हर काल में एक सा ही होता है और यह सुनकर अदालत की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी जाती है। आज भी अपने राज्य में आदिवासियों को कितना न्याय मिल रहा है इस पर भी विचारे जाने और इसके वजहों को कायदे से खंगाले जाने की जरुरत है। हूल की आग हल्की जरूर पड़ी है पर मिटाई नहीं जा सकी है। हूल की हत्या संभव भी नहीं है। जब तक राजमहल की पहाड़ियों में आखिरी पेड़ और आखिरी आदिवासी बचा हुआ है तब तक यह लौ जलती रहेगी। इसलिए कवयित्री भी गहरे भरोसे के साथ यह लिखती हैं, ‘उसकी (सिदो) देह से अंतिम बार निकली पसीने की गंध / कुचले हूल की सिर उठाती गंध बन / बह रही जंगल की शिराओं में /पारे की तरह आज भी’।
इस एक पहलू पर भी विचार करना जरुरी है कि क्या कारण है कि संताल हूल या सिदो-कान्हू से प्रेरित या उन पर आधारित रचनाओं का हिन्दी में अभाव दिखाई पड़ता है। छोटानागपुर अंचल की तुलना में संताल परगना से बहुत कम ही साहित्यकार हिन्दी की पटल पर अपनी पहचान बना पाए हैं। पर ऐसा नहीं है कि संताल परगना से हिन्दी में लिखने वाले हुए ही नहीं। संताल परगना के पत्थरगामा के कवि ज्ञानेंद्रपति को साहित्य अकादेमी जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुका है। संताल परगना के कई नाम आज हिन्दी में सक्रिय हैं,पर उनकी रचनाओं में हूल की प्रतिध्वनि सुनाई नहीं देती। आश्चर्य तो निर्मला पुतुल जैसी संताली कवियत्री के रचना संसार को देख कर होता है। उनके तीन कविता संग्रह के सौ से भी ज्यादा कविताओं में मात्र एक कविता सिदो -कान्हू की मूर्ति से हुई छेड़-छाड़ की एक घटना पर आधारित है। हूल की विरासत और प्रेरणा का इनके यहाँ भी अभाव ही दिखाई पड़ता है।
हिन्दी साहित्य का यह परिदृश्य थोड़ा निराशाजनक है पर उम्मीद की जानी चाहिए की निकट भविष्य में इससे प्रभावित साहित्य हिन्दी में भी दिखाई पड़ेगा। हाल के वर्षों में झारखण्ड के साथ देश भर में संताल हूल को लेकर नये तौर पर विचार-विमर्शों का दौर शुरू हुआ है। हूल के राष्ट्रीय और ऐतिहासिक महत्त्व को स्वीकार किया जा रहा है और इतिहास के पन्नों को शिद्दत से टटोला जा रहा है। इससे इस उम्मीद को बल मिलता है कि हूल की आग, फूल बनकर जो जून 1855 में खिला था वह आगे और भी लहलहाएगा। समकालीन कवि अनुज लुगुन के शब्दों में इस उम्मीद को बेहतर ढंग से प्रकट किया जा सकता है, जिसमें अनुज हूल को फूल की संज्ञा देते हुए लिखते हैं – ‘तू फूल सिदो, कान्हू, तिलका, बिरसा, गोविन्द, तांत्या बाबा का / तुझे खोंसता हूँ तो उलगुलान नाचता है / तुझे पूजता हूँ तो जंगल लहलहाता है / खिला रहे यह फूल जंगल जंगल/ हूल हूल हूल हूल’।
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कजिन की आत्महत्या के बाद बोलीं गीता फोगाट- हार-जीत जीवन का हिस्सा, हमें ऐसा नहीं करना चाहिए Divya Sandesh
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कजिन की आत्महत्या के बाद बोलीं गीता फोगाट- हार-जीत जीवन का हिस्सा, हमें ऐसा नहीं करना चाहिए
नई दिल्ली
भारत की स्टार महिला पहलवान बबीता फोगाट और गीता फोगाट की ममेरी बहन रितिका फोगाट ने एक कुश्ती टूर्नामेंट में मैच हारने के बाद आत्महत्या कर ली है। उनके इस कदम से राष्ट्रमंडल खेलों-2010 में भारत को महिला वर्ग में कुश्ती में पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाली गीता फोगाट बेहद दुखी हैं और उन्होंने कहा है कि हार-जीत खिलाड़ी के जीवन का हिस्सा होता है और किसी भी खिलाड़ी को ऐसे कदम नहीं उठाना चाहिए।
गीता फोगाट ने टिवटर पर लिखा, ‘भगवान मेरी छोटी बहन मेरे मामा की लड़की रितिका की आत्मा को शांति दे। मेरे परिवार के लिए बहुत ही दुख की घड़ी है। रितिका बहुत ही होनहार पहलवान थी। पता नहीं क्यों उसने ऐसा कदम उठाया। हार-जीत खिलाड़ी के जीवन का हिस्सा होता है हमें ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिये।’
17 साल की रितिका ने राजस्थान के भरतपुर के लोहागढ़ स्टेडियम में आयोजित स्टेट लेवल सब जूनियर टूनार्मेंट में हिस्सा लिया था। इस टूर्नामेंट के फाइनल मुकाबले में रितिका एक अंक से हार गईं थी और इस हार से निराश होकर उन्होंने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।
खबरों के मुताबिक, रितिका ने बुधवार रात करीब 11 बजे फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उन्होंने अपने फूफा और द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच महाबीर फोगाट से कुश्ती की ट्रेनिंग ली थी। महाबीर भी फाइनल के दिन मुकाबले के समय मौजूद थे। रितु फोगाट ने रितिका की मौत पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने टिवटर पर लिखा, ‘छोटी बहन रितिका की आत्मा को भगवान शांति दे। मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि आपके साथ क्या हुआ। आप हमेशा हमें याद आएंगी।’
शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम जो बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।अब के समय के बच्चे जो उस उम्र में कुछ सोच -समझ नहीं पाते उस उम्र भगत सिंह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गये। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना सा था कि सुबह-सुबह जोर की आँधी आई थी। लेकिन जेल के कैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं���उन्होंने कारण नहीं बताया। ��नके मुंह से सिर्फ ये निकला कि आदेश ऊपर से है।अभी कैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है,जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुजरा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया। कैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे। बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया। सारे कैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो।आखिर में ड्रॉ निकाला गया।
भगत सिंह ने क्यों कहा -इन्कलाबियों को मरना ही होता है-
अब सब कैदी चुप हो चले थे। उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुजरने वाले रास्ते पर लगी हुई थी। भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरने वाले थे।एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज ऊँची कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया।
" भगत सिंह का जवाब था,"इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है,अदालत में अपील से नहीं।" वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के खैरख्वाह थे और अपनी तरफ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे। उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं।भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख की 'मिलिट्रिजम', लेनिन की 'लेफ्ट विंग कम्युनिजम' और अपटन सिनक्लेयर का उपन्यास 'द स्पाई' कुलबीर के जरिए भिजवा दें।
भगत सिंह अपने जेल की कोठरी में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे-
भगत सिंह जेल की कठिन जिंदगी के आदी हो चले थे। उनकी कोठरी नंबर 14 का फर्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी। कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फिट, दस इंच का शरीर बमुश्किल उसमें लेट पाए।भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे।उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हे किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो।मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, "सिर्फ दो संदेश... साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंकलाब जिदाबाद!" इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें,जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी गयी -
भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे। राजगुरु के अंतिम शब्द थे, "हम लोग जल्द मिलेंगे।" सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था।मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, "क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?" भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं।लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।
तीनों क्रांतिकारियों अंतिम क्षण -
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे-
कभी वो दिन भी आएगा
कि जब आजाद हम होंगें
ये अपनी ही जमीं होगी
ये अपना आसमाँ होगा।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वजन लिया गया।सब के वजन बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें। फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, "पूरी जिदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है। इसलिए ये माफी मांगने आया है।" जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, कैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं।उनके साथ भारी बूटों के जमीन पर पड़ने की आवाजे भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।।।" सभी को अचानक जोर-जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे सुनाई देने लगे।फांसी का तख्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफी तंदुरुस्त।
फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख्ते से 'इंकलाब जिदाबाद' का नारा लगाएंगे।
भगत सिंह ने अपने माँ से किया वादा निभाया और फांसी के फंदे को चूमकर -इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया -
लाहौर जिला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था। भगत सिंह ने इतनी जोर से 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज सोंधी के घर तक सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही जेल के दूसरे कैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई।उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा? सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मार कर हटा दिया।काफी देर तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे।अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया।
क्यों मृतकों की पहचान करने से एक अधिकारी ने मना किया -
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया। एक जूनियर अफसर ने ये काम अंजाम दिया।पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है। इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई।उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।उनके पार्थिव शरीर को फिरोजपुर के पास सतलज के किनारे लाया गया। तब तक रात के 10 बज चुके थे। इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए। अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया।जैसे ही ब्रितानी सैन���कों ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ भागे। सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया।अगले दिन दोपहर के आसपास जिला मैजिस्ट्रेट के दस्तखत के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया।इस खबर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया। जिला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया।
वॉर्डेन चरत सिंह फूट-फूट कर रोने लगे -
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं। लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे।लाहौर के मॉल से गुजरता हुआ जुलूस अनारकली बाजार के बीचोबीच रूका। अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोजपुर से वहाँ पहुंच गया है। जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई। लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए।उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त कदमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे। अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने।किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की जमीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे।
शहीद-ए-आजम का भगत सिंह नाम कैसे पड़ा -
भारत माँ के इस महान सपूत का नाम उनकी दादी के मुँह से निकले लफ्जों के आधार पर रखा गया था।जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी। इस पर उनकी दादी जय कौर के मुँह से निकला 'ए मुंडा ते बड़ा भागाँवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्यशाली है)।शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र) यादविंदरसिंह संधु ने बताया कि दादी के मुँह से निकले इन अल्फाज के आधार पर घरवालों ने फैसला किया कि भागाँवाला (भाग्यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता होना चाहिए, लिहाजा उनका नाम भगतसिंह रख दिया गया।
शहीद-ए-आजम का नाम भगतसिंह रखे जाने के साथ ही नामकरण संस्कार के समय किए गए यज्ञ में उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे। भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था, इसलिए नामकरण के समय यज्ञ किया गया।यादविंदर ने बताया कि उन्होंने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना है कि भगतसिंह बचपन से ही देशभक्ति और आजादी की बातें किया करते थे। यह गुण उन्हें विरासत में मिला था, क्योंकि उनके घर के सभी सदस्य उन दिनों आजादी की लड़ाई में शामिल थे।हमारा उद्देश्य हमेशा रहता है की अपने इतिहास के चुनिंदा घटनाओं से आपको अवगत कराते रहे है। हमारे आर्टिकल आपको अगर पसंद आते है तो हमे अपना समर्थन दे।
कुंवर सिंह नेगी लड़खड़ाते कदमों से एक छोटे से किराए के घर में दाखिल होते हैं। ये उनके रिटायर हो जाने की उम्र हैं, लेकिन कुछ देर बाद ही उन्हें नाइट ड्यूटी पर जाना है। वो सुरक्षा गार्ड हैं और घर के अकेले कमाने वाले। बड़ी बेटी, जिसने नौकरी करके परिवार की ज़िम्मेदारी थाम ली थी, सामने दीवार पर उसकी तस्व���र टंगी है। कुंवर सिंह नेगी हाथ से इशारा करके कहते हैं, ये थी मेरी बेटी, और मैं उस लड़की को देखती रहती हूं।
सलीके से पहने कुर्ते पर गले में पड़ा सफेद दुपट्टा। चेहरा बिलकुल पिता जैसा। आंखों से झांक रहे सपने। ये तस्वीर उसने अपने दस्तावेजों पर लगाने के लिए खिंचाई थी। अब दीवार पर टंगी हैं। उसकी मौत के साथ सिर्फ उसके सपने ही खत्म नहीं हुए हैं बल्कि परिवार में बाकी रह गए चार लोगों के सपने भी चकनाचूर हो गए हैं।
पिता जो हमेशा ये सोचता था कि अब बेटी कमाने लगी है, मेरे आराम करने के दिन आ रहे हैं। वो मां जो बेटी के टिफिन में रोटियां रखते हुए गर्व से फूली नहीं समाती थी कि मेरी बेटी काम पर जा रही है। वो छोटे भाई-बहन जो अपनी हर जरूरत के लिए दीदी की ओर दौड़ते थे, अब गुमसुम उदास से बैठे हैं। वो घर में एक दूसरे से अपना दर्द छुपाते हैं, अकेले होते हैं तो दिल भर रो लेते हैं, लेकिन गम है कि कम नहीं होता।
वो 9 फरवरी 2012 की शाम थी। किरण नेगी रोजाना की तरह काम से घर लौट रही थी। सूरज डूब चुका था, कुछ धुंधली रोशनी रह गई थी। बस से उतरते ही किरण के कदम तेज हो गए थे, बीस मिनट का ये पैदल रास्ता उसे जल्दी तय करना था। घर पहुंचते ही वो मां से कहती थी, मां मैं आ गई।
लेकिन, उस दिन दरिंदों की उस पर नजर थी। एक लाल रंग की इंडिका कार में उसे अगवा कर लिया गया। हरियाणा ले जाकर तीन दिन तक उसका रेप किया गया। फिर एक सरसों के खेत में उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया। पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं वो दरिंदों से अपनी जान की भीख मांगती रही, लेकिन हवस मिटाने के बाद भी उनका दिल नहीं पसीजा और उन्होंने उसे ऐसी दर्दनाक मौत दी कि लिखते हुए हाथ कांपने लगते हैं।
9 फरवरी 2012 को किरण नेगी को अगवा करने के बाद दरिंदों ने तीन दिनों तक गैंगरेप किया था।
क्या यहां ये बताना मायने रखता है कि उसकी आंखों में तेजाब डाल दिया गया था। उसके नाजुक अंगों से शराब की बोतल मिली थी। पाना गरम करके उसके शरीर को दाग दिया गया था। अगर ये सब ना भी हुआ होता तो क्या उसकी मौत का गम परिवार के लिए कम होता?
किरण नेगी की मौत पर आक्रोश नहीं फूटा था। वो मीडिया की सुर्खियां नहीं बनीं थी। उसके चले जाने के बाद बहसें नहीं हुई थीं, कानून नहीं बदले गए थे। कोई नेता उसके घर नहीं गया था। उसके पिता जब बेटी के लिए इंसाफ मांगने तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास गए थे तो ये कहकर टरका दिया गया था कि 'ऐसी घटनाएं तो होती ही रहती हैं।'
उस दिन को याद करके वो आज भी फफक पड़ते हैं। वो कहते हैं, मैं उस वक्त की सीएम शीला दीक्षित के पास गया था। कई लोग मेरे साथ थे। जब हमने उनसे घटना के बारे में बताया तो उन्होंने कहा ऐसे अपराध तो होते ही रहते हैं। नेगी बताते हैं कि वहां अधिकारियों ने उन्हें एक लाख रुपए का चैक दिया। इसके अलावा किसी भी तरह की कोई मदद या मुआवजा उन्हें नहीं दिया गया।
इस घटना को नौ साल होने को आए हैं, लेकिन परिवार अभी भी इंसाफ का इंतजार कर रहा है। किरण नेगी का गैंगरेप करने वाले तीनों दरिंदों को हाई कोर्ट ने साल 2014 में ही फांसी की सजा सुना दी थी। लेकिन, फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और लटक गया। परिवार को तो अब ये भी नहीं पता कि अगली तारीख कब है। वो अपने वकील का नाम तक सही से नहीं जानते। बस इस उम्मीद में रहते हैं कि उनके जीते-जी दरिंदों को फांसी हो जाए।
किरण नेगी एक गरीब परिवार में पैदा हुए मेहनती बेटी थी, जिसे पता था कि घर की पूरी जिम्मेदारी उसे उठानी है। उसकी मां माहेश्वरी नेगी कहती हैं, 'वो बहुत सपने देखती थी, कहती थी जल्द से जल्द अपना घर खरीदना है। वो उड़ना चाहती थी। हमने भी कभी उस पर कोई पाबंदी नहीं लगाई। काम से वापस लौटती थी तो तेजी से पास आकर कहती थी मां मैं आ गई।'
इंसाफ की उम्मीद, देरी पर रोष
किरण के पिता कहते हैं, 'आठ साल कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते लगाते बीत गए। पांव में छाले पड़ जाते हैं। हम न्याय के लिए ही दौड़ रहे हैं, लेकिन न्याय मिल नहीं रहा है। हमारी कानून व्यवस्था अपराधियों को पनाह देती है और पीड़ितों से चक्कर कटवाती है। अगर हमारी बेटी हाथरस की होती तो न्याय मिलता, हमारी बेटी देश की निर्भया होती तो न्याय मिलता। ये निर्भया से पहले का केस है, निर्भया के मुलजिमों को फांसी हो गई, हम अभी भी लाइन में ही लगे हैं। हमें नहीं पता कि कब फांसी होगी।'
परिवार कहता है, 'सरकार अंधी तो है नहीं, सब देखती है। मां-बाप कब तक अपनी बेटियों के पीछे-पीछे जाएंगे और कहां-कहां तक जाएंगे। सुरक्षा की जिम्मेदारी तो सरकार की ही है। बेटियों को घर में कैद नहीं रखा जा सकता। आजकल एक की कमाई से घर नहीं चलता है। बेटियों को नौकरी करने के लिए बाहर निकलना ही है।'
पीड़िता के माता और पिता। घटना के लगभग नौ साल बाद भी ये परिवार उबर नहीं सका है। आर्थिक मदद के लिए ना समाज आगे आया और न ही सरकार।
तुरंत फांसी की मांग
कुंवर नेगी का कहना है कि जब तक रेप के मामलों में त्वरित न्याय नहीं होगा कुछ नहीं बदलेगा। वो कहते हैं कि जो डर बेटियां महसूस करती हैं वो डर अपराधियों में होना चाहिए। नेगी कहते हैं, "मेरा मानना है जब तक अपराधियों को फांसी नहीं होगी, रेप नहीं रुकेंगे। इन जैसे अपराधियों को तुरंत फांसी देनी चाहिए। जिन मामलों में पुख्ता सबूत होता है उनमें तीन से छह महीनों के भीतर इन दरिंदों को फांसी होनी चाहिए। ऐसा होगा तब ही ये अपराध रुकेंगे। ये लोग सरकारी राशन खा रहे हैं, इन्हें तिहाड़ में भर रखा है। इन्हें सरकारी खर्चे पर जिंदा रखने की क्या जरूरत है?"
जंतर-मंतर पर दिया धरना, सबने नजरअंदाज किया
अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए कुंवर नेगी जंतर-मंतर पर लंबा धरना भी दे चुके हैं। वो कहते हैं कि कोई भी नेता उनसे मिलने नहीं पहुंचा। नेगी कहते हैं, 'मैं जंतर-मंतर पर धरने पर बैठा हुआ था। वहां केजरीवाल का पंडाल लगा था, भाषण चल रहा था, उन्होंने हमारी ओर झांककर नहीं देखा। दूसरे गेट पर राहुल गांधी की बैठक चली, वो भी हमारी तरफ नहीं आए। मेरी बेटी को न्याय दिलाने के लिए पोस्टर लगे थे, लेकिन किसी ने उस पर गौर नहीं किया।'
उसकी मौत के बाद परिवार के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया। लेकिन परिवार की आर्थिक मदद के लिए ना समाज आगे आया और न ही सरकार। घटना के लगभग नौ साल बाद भी ये परिवार उबर नहीं सका है। वो एक अंधेरे भरी दुनिया में फंसा हैं जहां सिर्फ न्याय ही उनकी जिंदगी में रोशनी ला सकता है।
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बलात्कार समाज का कोढ़ है और यह सब तब है जब हम खुद को सभ्य व आधुनिक युग का प्राणी कहते हैं। जिसका इलाज हम सबको मिलकर ढूंढना है। बौद्धिक, कानूनी और सामाजिक प्रयासों के बावजूद भी इस तरह के अपराध निरन्तर हो रहे हैं या यूँ कहें बढ़ रहे हैंl जिससे महिलाओं की जिंदगी नर्क बन कर रह जाती है। ऐसे जघन्य अपराध के लिए विकृत मानसिकता कहीं ना कहीं इसका मूल कारण हैl मेरे हिसाब से बलात्कार पर रोक लगाने के लिए सरकार व कानून से ज्यादा वातावरण, शिक्षा-पद्धति, सामाजिक व्यवस्थाओं पर पुनर्विचार की तुरन्त आवश्यकता है।
देश में बेटियों- महिलाओं के साथ जो रेप की घटनायें हो रही हैं वो समाज की स्थिति के बारे में सोचने को विवश करतीं हैं, पर क्या कोई सोच भी रहा है? या समाज के लिए अब इस तरह की घटनायें खबरें या मुद्दे मात्र ही बन कर रह गये है। कब तक समाज को इन दरिंदों के हाथ में सौंपे रहेंगे ? कोई जवाब है क्या? या बस महिलायें पुरुषों को और पुरुष महिलाओं को जिम्मेदार ठहराते रहेंगे? एक दूसरे को अपराधी मानते रहेंगे।
प्रकृति ने स्त्री को भावुक,संवेदनशील,व कोमल बनाया है और यही उसकी सुंदरता व आकर्षण है। पर जब इसी स्त्री के साथ जो कि किसी की मां, बेटी, बहु, बहन, पत्नी है कोई अनाचार या रेप करता है तो समाज में उस लड़की व उसके माँ-बाप व परिजनों की कैसी असहनीय व दयनीय स्थिति होती है ये कड़वी सच्चाई किसी से अब छुपी नहीं रह गई है । बेटी के माँ-बाप या पीड़िता के परिजनों को ही समाज के ताने सुनने पड़ते हैं। अपराधी कोई और दण्ड किसी और को भुगतना पड़ता है। उल्टे पीड़िता व उसके परिजनों को ही ताउम्र मानसिक प्रताड़ना और दोहरी मानसिकता वाले समाज की टेढ़ी नजरों का सामना करना पड़ता है l
बलात्कार का सबसे दुखद पहलू है कि पीड़िता क��� शारीरिक और मानसिक कष्ट ही नहीं सामाजिक लांछन भी सहना पड़ता है l जो कि भयानक प्रताड़ना हैl
इससे पीड़िता व उसके परिजन पल-पल घुट-घुट कर मरते रहते हैl इसके लिए बदलाव मात्र कानूनों में ही नहीं हमारी सोच व सामाजिक मान्यताओं में भी लाना जरूरी है। वो भी अति शीघ्र। अभी तक बलात्कार की घटनाओं पर काबू पाने के मकसद से कड़े कानून बने, निगरानी तंत्र को मुस्तैद बनाने की कोशिशें भी हुई , पर रिजल्ट क्या निकला? हकीकत अब भी यही है कि इन घटनाओं में कमी के बजाय निरंतर बढ़ोतरी ही दर्ज हुई है। जब भी कोई बड़ी घटना होती है,अपराधियों व अपराध के प्रति लोगों मे उबाल आता है। लोग सड़कों पर उतर आते हैं।सामाजिक संगठन व राजनीतिक पार्टियां प्रदर्शन करती है। आरोप-प्रत्यारोप लगते है।सवाल-जवाब होते हैं, और ऐसा लगता है कि अब सब कुछ ही ठीक हो कर ही रहेगा। अब इसके बाद ऐसी घटनाएं कभी नही घटित होंगी। लेकिन धीरे-धीरे सब टॉय-टॉय फ़िस हो जाता है। स्त्री सुरक्षा की बात थम जाती है और स्त्री असुरक्षित रह जाती है। इस पनपती रेप संस्कृति पर अंकुश लगाने में हम, हमारा समाज, हमारी सरकार, हमारे लोग सब नाकाम हो जाते हैं, और फिर जब कभी ऐसी विभत्स, समाज को शर्मसार करने वाली रेप की घटना पुनः घटित होती है तो फिर समाज का एक तबका दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग उठाते हुए सड़कों पर उतर आता है, पर यह सवाल अपनी जगह बना रहता है कि आखिर क्या वजहें हैं? जिनसे समाज में ऐसी कुत्सित मानसिकता को बल मिल रहा है। कुत्सित और जघन्य अपराध की मानसिकता तैयार करने वाले कारणों की पड़ताल क्यों नही होती है ?
लोग गन्दी मानसिकता अपने मन से क्यों निकाल नही फेंकते? मेरा मानना है कि बलात्कार जैसी गन्दगी को विभत्स दरिंदगी को न तो कोई सरकार और न ही कोई कानून अकेले खत्म कर सकता है बल्कि इसके लिए कठोर कानून के साथ-साथ महिलाओं के प्रति अच्छी सोच व समाज की अच्छी मानसिकता बहुत जरूरी है। आजकल किसी भी अख़बार को उठा के देख लीजिए या किसी भी न्यूज़ चैनल को शायद ही कोई ऐसा दिन होता होगा जब रेप की घटना न होती हो। क्या यही हमारा समाज है? क्या कारण है कि दरिंदे मासूम बच्चियों को भी नहीं छोड़ते, चाहे वो बच्ची 5 महीने की हो या 5 साल की। जब इस तरह की कोई घटना घटित होती है तो हमारा समाज भी उन दरिंदो का साथ अप्रत्यक्ष रूप से देता है। लोग नसीहत देते हुए अक्सर कहते हैं कि लड़कियों को देर तक बाहर नहीं रहना चाहिए, मॉडर्न व छोटे कपड़े न पहनने चाहिए, लड़कों से ज्यादा घुल-मिल कर नही रहना चाहिए वगैरह-वगैरह बहुत सी नसीहतों की झड़ी लगा देते हैं ये समाज के जिम्मेदार लोग। मैं इन सभी समाज के ठेकेदारों से पूछना चाहता हूं कि इसमें उन बच्चियों का क्या दोष है? जिनको रेप की परिभाषा भी नहीं आती और उनकी ज़िन्दगी दरिंदो द्वारा बर्बाद कर दी जाती है? अगर लड़कियां छोटे कपड़े पहन कर निकलती हैं, जो कि आपके मुताबिक गलत है, तो उन बच्चियों के बारे में क्या कहेंगे जो 4 महीने, 4 साल या चार दिन की हैं, जिन्हें ये कुत्सित मानसिकता के भेड़िये नहीं छोड़ते। वो ऐसी कौन सी गलती करती होंगी। उनकी एक ही गलती है कि वो मासूम है। समाज के लोगों को अब यह अच्छी तरह समझना होगा कि बेटियां अनमोल हैं, चाहें वो आप की हो या किसी और की। जब भी किसी महिला को मुसीबत में देखें तो उसकी उचित मदद करने की कोशिश जरूर करें, और एक बात ये भी हमेशा याद रखें कि प्रत्येक व्यक्ति अश्लील चर्चाओं से, जोक्स से, महिलाओं की इज्जत न करने वाले सर्किल से खुद को दूर रखें, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि किसी भी महिला को देखें तो अपनी नज़र पर ‘अश्लीलता’ का चश्मा न चढ़ाएं!अगर आप गन्दी नज़रों से किसी महिला को देख रहे हैं, उसके बारे में सोच रहे हैं तो कहीं न कहीं आप भी एक बलात्कारी मानसिकता के ही हैं। अगर देश का प्रत्येक व्यक्ति ऐसी सोच विकसित कर ले तब जाकर इस तरह के जघन्य अपराध पर रोक लग पायेगी, अन्यथा हमारा समाज नीचे की ओर ही गर्त में गिरता जायेगा, और हम-सब केवल ऐसी विभत्स घटनाओं के बाद प्रदर्शन तक सीमित रह जाएंगे।
लेखक- धीरेन्द्र सिंह “राणा”
इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के जॉर्नलिस्ट है
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