Surya Grahan 2024: कहां कहां दिखाई देगा साल का पहला सूर्यग्रहण , क्या भारत में दिखाई देगा सूर्यग्रहणSurya Grahan 2024: ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण का विशेष महत्व है। चंद्रग्रहण के बाद अब साल का पहला सूर्यग्रहण लगने वाला है आपको बता दें ये ग्रहण चैत्र नवरात्रि शुरू होने से ठीक एक दिन पहले लगेगा साल का पहला सूर्य ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा
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💥नवरात्रि विशेष 💥
कल रविवार 15 अक्टूबर से देवी दुर्गा का नौ दिवसीय पर्व नवरात्रि शुरू हो रहा है. कल रविवार को घट कलश स्थापना होगी. ये पर्व 23 अक्टूबर तक चलेगा. इस साल देवी दुर्गा का वाहन हाथी है. शास्त्रों की मान्यता है कि नवरात्रि में जब देवी हाथी पर सवार होकर आती हैं, तब ज्यादा बारिश के योग बनते हैं. आइए जानते हैं इस पर्व की संपूर्ण जानकारी-
🌞नवरात्रि पर योग🌞
👉 इस वर्ष शारदीय नवरात्रि पूरे 9 दिनों का होगा और 30 साल बाद दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है. शारदीय नवरात्रि पर बुधादित्य योग, शश राजयोग और भद्र राजयोग का निर्माण हो रहा है. इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का आरंभ रविवार 15 अक्टूबर 2023 से हो रहा है।
👉देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि महालया के दिन जब पितृगण धरती से लौटते हैं तब मां दुर्गा अपने परिवार और गणों के साथ पृथ्वी पर आती हैं. जिस दिन नवरात्र का आरंभ होता है उस दिन के हिसाब से माता हर बार अलग-अलग वाहनों से आती हैं।
👉माता का अलग-अलग वाहनों से आना भविष्य के लिए संकेत भी होता है जिससे पता चलता है कि आने वाला साल कैसा रहेगा. वैसे तो देवी दुर्गा का वाहन सिंह है, लेकिन नवरात्रि की शुरुआत में वार के अनुसार देवी का वाहन बदल जाता है।
👉इस बार नवरात्रि रविवार से शुरू हो रही है, इस कारण देवी का वाहन हाथी रहेगा. देवी के इस वाहन का संदेश ये है कि आने वाले समय में देश को लाभ हो सकता है. लोगों को सुख-समृद्धि मिलेगी।
👉 हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है. मां दुर्गा की उपासना का पर्व साल में चार बार आता है. जिसमें दो गुप्त नवरात्रि और दो चैत्र व शारदीय नवरात्रि होती है।
👉शारदीय नवरात्रि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है. नवरात्रि की शुरुआत कल रविवार 15 अक्टूबर 2023 से होगी. 23 अक्टूबर 2023 को नवरात्रि समाप्त होगी।
👉24 अक्टूबर विजयादशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाएगा।
👉धार्मिक मान्यता के अनुसार नवरात्रि में जब मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं तो ये बेहद शुभ माना जाता है. हाथी पर सवार होकर मां दुर्गा अपने साथ ढेर सारी खुशियां और सुख-समृद्धि लेकर आती हैं. मां का वाहन हाथी ज्ञान व समृद्धि का प्रतीक है. इससे देश में आर्थिक समृद्धि आयेगी. साथ ही ज्ञान की वृद्धि होगी. हाथी को शुभ का प्रतीक माना गया है. ऐसे में आने वाला यह साल बहुत ही शुभ कार्य होगा. लोगों के बिगड़े काम बनेंगे. माता रानी की पूजा अर्चना करने वाले भक्तों पर विशेष कृपा बरसेगी.
🌞कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त🌞
👉पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को यानी पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को 11:48 मिनट से दोपहर 12:36 तक ��ै. ऐसे में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त इस साल 48 मिनट ही रहेगा।
💥शारदीय नवरात्रि की तिथियां💥
👉15 अक्टूबर 2023 मां शैलपुत्री पहला दिन प्रतिपदा तिथि
👉16 अक्टूबर 2023 मां ब्रह्मचारिणी दूसरा दिन द्वितीया तिथि
👉17 अक्टूबर 2023 मां चंद्रघंटा तीसरा दिन तृतीया तिथि
👉18 अक्टूबर 2023 मां कुष्मांडा चौथा दिन चतुर्थी तिथि
👉19 अक्टूबर 2023 मां स्कंदमाता पांचवा दिन पंचमी तिथि
👉20 अक्टूबर 2023 मां कात्यायनी छठा दिन षष्ठी तिथि
👉21 अक्टूबर 2023 मां कालरात्रि सातवां दिन सप्तमी तिथि
👉22 अक्टूबर 2023 मां महागौरी आठवां दिन दुर्गा अष्टमी
👉23 अक्टूबर 2023 महानवमी नौवां दिन शरद नवरात्र व्रत पारण
👉24 अक्टूबर 2023 दशहरा मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन
💥कलश स्थापना की सामग्री💥
👉मां दुर्गा को लाल रंग खास पसंद है इसलिए लाल रंग का ही आसन खरीदें. इसके अलावा कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र, जौ, मिट्टी, जल से भरा हुआ कलश, मौली, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, फूलों की माला और श्रृंगार पिटारी भी चाहिए।
💥कैसे करें कलश स्थापना💥
👉नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें. मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं. कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं. अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं. लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें.
👉अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं. फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें. इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं. अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें.
फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें. अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं हैं. कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है. आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं
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नवरात्रि का पहला दिन घटस्थापना से शुरू होता है । नौ दिन व्रत रखने के बाद समापन किया जाता है।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा में
चैत्र नवरात्रि
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आचार्य हरिओम त्रिपाठी से जाने चैत्र नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि
आचार्य हरिओम त्रिपाठी से जाने चैत्र नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि
प्रतिवर्ष की भांति इसवर्ष भी हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो में से एक चैत्र नवरात्रि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाएगा। इस वर्ष 2023 में चैत्र नवरात्रों का आरंभ 22 मार्च (बुधवार) से होगा और 30 मार्च तक व्रत उपासना का पर्व मनाया जाएगा। इस बार किसी भी तिथि का क्षय नहीं होने से नवरात्र का महोत्सव पूरे नौ दिन का होगा तथा 31 मार्च दशमी के दिन श्रीदुर्गा विसर्जन किया जाएगा।
दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को 22 मार्च (बुधवार) के दिन की जाएगी।इस बार नवरात्रि महासंयोग लेकर आ रही है। इस बार नवरात्रों में शुभ योग बन रहा है |इस बार मां का आगमन (नौका) नाव पर हो रहा है।
देवी भागवत में नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के वार अनुसार माताजी के आगमन प्रस्थान के वाहन इस प्रकार बताए गए हैं:
आगमन वाहन
"शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां ब��धे नौकाप्रकीर्तिता॥"
देवीभाग्वत पुराण के इस श्लोक में बताया गया है कि माता का वाहन क्या होगा यह दिन के अनुसार तय होता है। अगर नवरात्र का आरंभ सोमवार या रविवार को हो रहा है तो माता का आगमन हाथी पर होगा। शनिवार और मंगलवार को माता का आगमन होने पर उनका वाहन घोड़ा होता है। गुरुवार और शुक्रवार को आगमन होने पर माता डोली में आती हैं जबकि बुधवार को नवरात्र का आरंभ होने पर माता का वाहन नाव होता है।
माँ के वाहन का फल
इन तथ्यों को बाकायदा देवी भागवत के एक श्लोक के जरिए बताया गया है।
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे चदोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता ।।
अर्थात जब मां हाथी पर सवार होकर धरती पर आती हैं तो ज्यादा पानी बरसता है, घोड़े पर सवार होकर आती हैं तो युद्ध के हालात पैदा होते हैं, नौका पर सवार होकर आती हैं तो सब अच्छा होता है और शुभ फलदायी होता है। अगर मां डोली में बैठकर आती हैं तो महामारी, संहार का अंदेशा होता है।
प्रस्थान वाहन
देवीभाग्वत पुराण में बताया गया है कि
"शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा,
शनि भौमदिने यदि सा विजया
चरणायुध यानि करी विकला।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया
गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा,
सुरराजगुरौ यदि सा विजया
नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
इस श्लोक से स्पष्ट है कि इस वर्ष माता (गज) हाथी वाहन पर जा रही हैं।
माँ के प्रस्थान वाहन का फल
रविवार या सोमवार को देवी मां भैंसे की सवारी से प्रस्थान करती हैं तो देश में रोग और शोक बढ़ता है।शनिवार या मंगलवार को देवी मां मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं तो जनता में दुख और कष्ट बढ़ता है |बुधवार या शुक्रवार को देवी मां हाथी पर सवार होकर विदा लेती हैं तो ज्यादा बारिश ज्यादा होती है।गुरुवार को मां दुर्गा मनुष्य की सवारी से जाती हैं और इसका तात्पर्य ये हुआ कि मनुष्यता बढ़ेगी, सुख शांति बनी रहेगी।
साधक भाई बहन जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ है एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समयाभाव के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये अत्यंत साधरण लौकिन मंत्रो से पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण पूजन विधि बताई जा रही है आशा है आप सभी साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।
घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त
नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
नवरात्री की पहली तिथि पर सभी भक्त अपने घर के मंदिर में कलश स्थापना क���ते हैं। इस कलश स्थापना की भी अपनी एक विधि, एक मुहूर्त होता है। परंतु चैत्र शुक्ल प्रतिपदा स्वयं सिद्ध साढ़े तीन मुहूर्त में से प्रथम है इसलिये इस दिन किसी भी प्रकार के मुहूर्त देखने की आवश्यकता नही होती फिर भी संभव हो तो इस वर्ष घट स्थापना प्रातः 06 बजकर 23 मिनट से लेकर 07 बजकर 32 मिनट तक कर लें। यह घटस्थापना मुहूर्त, द्वि-स्वभाव मीन लग्न के समय है। इसके पश्चात केवल राहुकाल के समय दिन 12:24 से 01:55 तक के समय को छोड़कर अपनी सुविधानुसार दिन में कभी भी घटस्थापना की जा सकती है।
शारदीय नवरात्रि 2023 की महत्वपूर्ण तारीखें
1 22 मार्च बुधवार - प्रतिपदा - पहला दिन, घट या कलश स्थापना। इस दिन माता दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होगी।
2 23 मार्च गुरुवार- द्वितीया - दूसरा दिन। इस दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है।
3 24 मार्च शुक्रवार- तृतीया - तीसरा दिन। इस दिन दुर्गा जी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाएगी।
4 25 मार्च शनिवार- चतुर्थी - चौथा दिन। माता दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा-अर्चना होगी।
5 26 मार्च रविवार- पंचमी - पांचवां दिन- इस दिन मां भगवती के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है।
6 27 मार्च सोमवार- षष्ठी- छठा दिन- इस दिन माता दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है।
7 28 मार्च मंगलवार- सप्तमी- सातवां दिन- इस दिन माता दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की आराधना की जाती है।
8 29 मार्च बुधवार- अष्टमी - आठवां दिन- दुर्गा अष्टमी पूजन। इस दिन माता दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है।
9 30 मार्च गुरुवार- नवमी - नौवां दिन- इस दिन माता के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजन तथा नवमी हवन होगा, नवरात्रि पारण।
10 31 मार्च शुक्रवार- दशमी के दिन जिन लोगों ने माता दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना की होगी, वे विधि विधान से माता का विसर्जन करेंगे।
घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है।
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )।
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )।
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल।
नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल।
रोली,मौली।
इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )।
पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )।
पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )।
कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )।
ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल।
नारियल, लाल कपडा, फूल माला,फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती।
भगवती मंडल स्थापना विधि
जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
सबसे पहले गौरी-गणेश जी का पुजन करें।
भगवती का चित्र बीच ��ें उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।
मैं एक चित्र बना कर संलग्न किये दे रहा हूं कि कैसे रखना है सारा चीज। मैं एक एक कर विधि दे रहा हूं। आप बिल्कुल आराम से कर सकेंगे।
दुर्गा पूजन सामग्री
पंचमेवा पंचमिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।
गणपति पूजन विधि
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है.हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें।
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन:👉 हाथ में अक्षत लेकर
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥
ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें।
हाथ में फूल लेकर ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः आसनं समर्पयामि,
अर्घ्य👉 अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि,
आचमनीय-स्नानीयं👉 ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पयामि
वस्त्र👉 लेकर ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पयामि,
यज्ञोपवीत👉 ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि,
पुनराचमनीयम्👉 दोबारा पात्र में जल छोड़ें। ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः
रक्त चंदन लगाएं:👉 इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः , इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।
इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं "इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः,
दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि,
मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र👉 शर्करा खण्ड खाद्यानि दधि क्षीर घृतानि च, आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक।
प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनीयं ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें👉 ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
अब फल लेकर गणपति को चढ़ाएं ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः फलं समर्पयामि,
अब दक्षिणा चढ़ाये ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि, अब विषम संख्या में दीपक जलाकर निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अर्पित करें, फिर तीन प्रदक्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।
घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।
नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।
आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें
"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें
नीचे दिए मंत्र से आचमन करें -
ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम:,
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
दुर्गा पूजन हेतु संकल्प
पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2077, तमेऽब्दे प्रमादि नाम संवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायने दक्षिण गोले शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदायां तिथौ शनि वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं करिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं यथामिलितोपचारे गणपति पूजनं करिष्ये।
दुर्गा पूजन विधि
सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
आवाहन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहयामि॥
आसन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
अर्घ्य👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि॥
आचमन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पयामि॥
स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पयामि॥
स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।
स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
पंचामृत स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पयामि॥
पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
गन्धोदक-स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
गंधोदक स्नान (रोली
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चैत्र नवरात्रि 2021: यहाँ बताया गया है कि यह दिन 1 आमिद कोविद कैसे दिखता है। पिक्स देखें
चैत्र नवरात्रि 2021 छवियाँ: दिल्ली के झंडेवालान मंदिर में चैत्र नवरात्रि का पहला दिन
आज चैत्र नवरात्रि का पहला दिन है। यह दूसरा चैत्र नवरात्रि कोविद -19 महामारी के बीच एक पंक्ति में। चैत्र नवरात्रि देश में सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है और एक ऐसा समय भी है जब कई राज्य नए साल या हिंदू नववर्ष का स्वागत करते हैं। जबकि महाराष्ट्र गुड़ी पड़वा, कर्णताल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादी मनाता…
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🚩 आप सभी को हिन्दू नववर्ष गुड़ी-पड़वा ( 2 अप्रैल शनिवार ) की बहुत-बहुत बधाइयां। 1 अप्रैल 2022
🚩हिन्दू नव सवंत्सर 2079 चैत्र प्रतिपदा गुड़ी-पड़वा की आप सभी को शुभकामनाएं।
🚩चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा ही हिन्दुओं का वर्षारंभ दिवस है,क्योंकि यह सृष्टि की उत्पत्ति का पहला दिन है । इस दिन प्रजापति देवता की तरंगें पृथ्वी पर अधिक आती हैं।
🚩 इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की शुरुआत इसी दिन से होती है। जिसमें हिन्दू उपवास एवं पवित्र रहकर नववर्ष की शुरूआत करते हैं।
🚩चैत्र प्रतिपदा गुड़ी-पड़वा के दिन भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था।
🚩चैत्र प्रतिपदा गुड़ी-पड़वा के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के डॉ. हेडगेवारजी का जन्मदिन मनाया जाता हैं।
🚩 सिंधी समाज का मुख्य त्यौहार चेटीचंड महोत्सव भी आज से ही प्रारम्भ होता है। भगवान वरुण अवतार झूलेलाल जी का अवतरण दिवस भी आज ही के दिन हुआ था।
🚩स्वामी दयानंद जी ने आर्य समाज की स्थापना आज ही के दिन की थी।
🚩सतयुग का प्रारम्भ भी आज के दिन ही हुआ था।
🚩धर्मराज युधिष्ठिर संवत का प्रारम्भ भी आज ही के दिन हुआ था।
🚩आज के दिन ही राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था और फिर विक्रम सवंत्सर प्रारम्भ हुआ।
🚩 ऐसा कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के राज्य में कभी भी सूर्य नही होता था अस्त - विक्रमादित्य अपने ज्ञान और वीरता के लिए थे प्रसिद्ध ।
🚩राजा विक्रमादित्य के राज्य में प्रजा सुखी और सम्पन्न रहती थी,राजा विक्रमादित्य के राज्य में कभी किसी के साथ भी अन्याय नही होता था,बल्कि तुरन्त सभी के साथ न्याय होता था,पर आज देखो तो सालों निकल जाते है , पर न्याय नही मिल पाता है,मिलती है तो सिर्फ तारीख।
🚩चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ इसी दिन से होता है,सुखी-स्वस्थ जीवन के लिए और जीवन में आने वाले विघ्नों के निवारण के लिए और शक्ति प्राप्ति के लिए नवरात्रि व्रत किया जाता है।
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जाने नवरात्रि की पूजा विधि (Navratri Puja Vidhi), कलश स्थापना व महत्व
Navratri Puja Vidhi : नवरात्रि मे देवी के नौ स्वरूप की पूजा की जाती है । हिन्दुओ मे नवरात्रि (Navratri) की बहुत मान्यता है नवरात्रि साल मे दो बार मनाया जाते है जिन्हे चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है । उत्तर भारत मे नवरात्र को बहुत ही खुशी और धूम धाम से मनाया जाता है । इस दिन माँ के भक्त नौ दिन के व्रतो का सकल्प लेते है और देवी माँ की चौकी की स्थापना करते है । नवरात्रि मे घर की साफ सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है ।
ऐसा कहा जाता है की इन नौ दिन देवी माँ धरती पर अपने भक्तो के साथ रहने आती है । इस बार शारदीय नवरात्र 29 सितंबर 2019 से शुरु हो रहे है । (Navratri Puja Vidhi)नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है फिर देवी माँ की मूर्ति स्थापित की जाती है और अंठवे दिन हवन किया जाता है तथा नवे व दसवे दिन कन्या खिलाया जाता है और पूरे विधि विधान (Navratri Puja Vidhi)से देवी माँ की मूर्ति को विसर्जित किया जाता है ।
नवरात्रि पूजा विधि (Navratri Puja Vidhi)
भारत त्योहारो का देश माना जाता है यहाँ साल के शुरू से ही त्योहार शुरू हो जाते है और अंत तक चलते है । इन मे एक नवरात्रि का त्योहार है जिसे पूरे नौ दिनो तक मनाया जाता है । नवरात्रि मे लोग दुर्गा माँ के नो रूप की पूजा करते हैं । वैसे तो देवी माँ के पूजा कभी भी की जा सकती है परंतु नवरात्र मे पूजा (Navratri Puja) का अलग ही मान्यता है । नवरात्र की पूजा, कलश स्थापना से शुरू होती है इसमे कलश पूजा का बहुत महत्व होता है । कलश को सुख समृद्धि ऐश्वर्या देने वाला मंगलकारी माना गया है । कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तियों का कलश में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है। नवरात्र मे शुभ मुहूरत मे कलश स्थापना की जाती है कुछ लोग स्थापना करने के लिए किसी पंडित को बुलवाते है तो कुछ अपने आप ही कर लेते है ।( Navratri Puja Vidhi )
कलश स्थापना से पहले देवी की माँ की चौकी रखे उस पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाये और देवी की मूर्ति रखे माँ को चुनरी उढ़ाये । देवी का माँ का तिलक करे और उन्हे सुहाग का समान चढ़ाये । स्थापना के बाद अज्ञारी करे । अज्ञारी के लिए गोबर का उबला ले उसे जलाए और मिट्टी के पात्र मे रखे फिर अज्ञारी मे घी या कपूर डाले और जलाए हवन सामीग्री चढ़ाये लॉन्ग के दो जोड़े व बताशा चढ़ाये देवी माँ को भोग लगाए घर मे जो भी व्रत वाली सामाग्री हो उससे बनाकर और दुर्गा कवच का पाठ करे दुर्गा चालीसा पढे उसके बाद देवी माँ की आरती करे । भोग का प्रसाद घर मे सबको बाँट दे ।
कलश स्थापना की सामाग्री – मिट्टी का चौड़ा बर्तन,कलश, मिट्टी, जौ, जल, कलावा, इत्र, सुपारी, सिक्के, आम के पत्ते, चावल, नारियल, लाल कपड़ा, फूल, फूल माला, दूर्वा ।
नवरात्रि मे कलश स्थापना विधि (Navratri Kalash Sthapna Vidhi)
सबसे पहले गणेश जी का आवाहन करे और देवी माँ का ध्यान करे फिर कलश स्थापना शुरू करे । सबसे पहले मिट्टी का चौड़ा बर्तन ले उसमे मिट्टी डाले और उसको बर्तन मे चारो तरफ अच्छे से दाल दे, ताकि जब हम जौ डाले तो वो अच्छे से मिल सके फिर मिट्टी मे जौ डाले और मिला दे अगर पानी की जरूरत हो तो थोड़ा डाल दे उसके बाद कलश ले । कलश मिट्टी ताँबे या पीतल किसी का भी हो सकता है । कलश पर स्वस्तिक बनाए फिर कलश मे जल भरे, जल मे कुछ बूंदे गंगा जल की डाल दे और कलश पर कलावा बांधे और एक सिक्का, सुपारी और फूल डाल दे । इसके बाद कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे पत्ते ऐसे रखे की आधे वह कलश के भीतर हो व आधे बाहर की ओर हो । उसके बाद कलश को मीठी से बनी कलश के आकार की प्लेट से ढक दे फिर उसके ऊपर कुछ चावल के दाने रखे और उसके ऊपर नारियल । नारियल को लाल कपड़े से लपेट दे और उस पर कलावा बांध ले । यह सब होने के बाद दिया जलाएँ नौ दिन तक कलश को वैसा ही रखा रहने दे । माँ के सामने ज्योत जलाए जो नौ दिन तक लगातार जलती रहनी चाहिए इसे अखंड ज्योत भी कहते है ज्योत के नीचे थोड़े से अक्षत रख दे ।
नवरात्रि मे कंजक पूजा विधि(Kanjak Puja Vidhi)
(Navratri Puja Vidhi) नवरात्रि के नौवे दिन कन्या खिलाई जाती है जिनहे हम कंजक भी कहते है 3 साल से 9 साल के बीच की कन्याओ को खिलाया जाता है । नौ कन्या और एक लांगुर को न्योता दिया जाता है । नवमी के दिन जब वे आते है तो सबसे पहले उनके पैर धुलाये जाते है उसके बाद उन्हे जमीन मे कुछ बिछाकर एक लाइन मे बैठाया जाता है । फिर इन्हे हलवा, पूरी, चने, खीर, सब्जी परोसा जाता है खाना परोसने की शुरुआत लांगुर से करते है जब सभी कन्याएँ व लांगुर खाना खा लेते है तब, उसके बाद उनका तिलक किया जाता है व उनके हाथ मे कलावा बंधा जाता है उन्हे दक्षणा या फल या कोई गिफ्ट देते है फिर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है और उनको विदा किया जाता है ।
नवरात्रि व्रत का महत्व
Navratri Puja Vidhi नवरात्रि का अलग अलग शहरो मे अलग-अलग महत्व है कुछ जगह अष्टमी को कन्या पूजी जाती है तो कुछ जगह नवमी को कन्या पूजने का विधान है । दुर्गा पंडालो मे अष्टमी के दिन हवन होता है और नवरात्र समापन की पूजा भी होती है जिसे महाष्टमी कहते है | कुछ लोग पूरे नवरात्र न रखकर पहला नवरात्र और अष्टमी को व्रत रखते है । बंगाल मे इस दिन विशेष पूजा होती है और देवी माँ को दुर्गा पूजा के समय सिंदूर छड़ते है और एक दूसरे को लगाते भी है । सप्तमी से अष्टमी तक पूरा बंगाल दुर्गा पूजा मे डूबा रहता है नवमी के दिन पुसपंजंजलीकुछ लोग अष्टमी की रात को जागरण कराते है और नवमी की सुबह व्रत खोलने के बाद भंडारे का आयोजन करते है और भर पेट लोगो को खाना खिलते है । कई जगह व मंदिरो मे पूरे नवरात्र मेला लगा रहता है । कई जगह नवमी वाले दिन रामलीला का कार्यक्रम होता है जिसे देखने दूर दूर से लोग आते है । देवी माँ अपने भक्तो पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाती है । माँ का अटूट प्यार, दुलार और स्नेह आशीर्वाद के रूप मे मिलता रहता है । जिससे भक्तो को किसी अन्य सहायता की जरुरत नहीं पढ़ती और वह सर्वशक्तिमान हो जाता है । माँ की करुणा अपार है जिसका न कोई मोल है न ही कोई अंत है ।
देवी के 9 रूपों के नाम
शैलपुत्री – न���रात्रि के पहले दिन माता के प्रथम रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और इसी कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा ।
ब्रह्मचारिणी – माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या-साधना की थी, उसी रूप के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा ।
चंद्रघंटा – माता के इस रूप में उनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। इसी वजह से माँ दुर्गा का नाम चंद्रघण्टा भी है ।
कूष्माण्डा – माता के इस रूप में उनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। इसी वजह से माँ दुर्गा का नाम चंद्रघण्टा भी है ।
स्कंदमाता – भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक अन्य नाम स्कन्द भी है। अतः भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस रूप को स्कन्दमाता के नाम से भी लोग जानते हैं ।
कात्यायनी – माता कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। माता को अपनी तपस्या से प्रसन्न करने के बाद उनके यहां माता ने पुत्री रूप में जन्म लिया, इसी कारण वे कात्यायनी कहलाईं ।
कालरात्रि – माता काल अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करने वाली हैं इसलिए इन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाता है |
महागौरी – माँ दुर्गा का यह आठवां रूप उनके सभी नौ रूपों में सबसे सुंदर है। इनका यह रूप बहुत ही कोमल, करुणा से परिपूर्ण और आशीर्वाद देता हुआ रूप है, जो हर एक इच्छा पूरी करता है
सिद्धिदात्री – माँ दुर्गा का यह नौंवा और आखिरी रूप मनुष्य को समस्त सिद्धियों से परिपूर्ण करता है।
नवरात्रि मे इन खास बातों का रखे ध्यान (Navratri Puja Vidhi)
नवरात्रि में सूर्योदय से पहले उठें और नहा लें। शांत रहने की कोशिश करें। झूठ न बोलें और गुस्सा करने से भी बचें।
नवरात्रि के दौरान तामसिक भोजन नहीं करें। यानि इन 9 दिनों में लहसुन, प्याज, मांसाहार, ठंडा और झूठा भोजन नहीं करना चाहिए।
नवरात्रि के व्रत-उपवास बीमार, बच्चों और बूढ़ों को नहीं करना चाहिए। क्योंकि इनसे नियम पालन नहीं हो पाते हैं।
मन में किसी के लिए गलत भावनाएं न आने दें। अपनी इंद्रियों का काबु रखें और मन में कामवासना जैसे गलत विचारों को न आने दें।
नवरात्रि मे बाल और नाखून न कटवाएं और शेव भी न बनावाएं। नवरात्रि के दौरान दिन में नहीं सोएं।
पूजा के संपूर्ण होने के बाद दुर्गा मां से अपनी गलतियों की माफी मांग कर पूजा संपन्न करें |
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Happy Navratri Wishes Live: नवरात्रि पर क्या करें और क्या न करें, भेजें शुभकामना संदेश, राशि अनुसार ऐसे करें मां दुर्गा की आराधना
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Chaitra Navratri 2022 Maa Durga Puja Vidhi Shubh Muhurat Live: चैत्र नवरात्रि हिंदू नववर्ष का पहला दिन होता है यह दिन बहुत ही शुभ और कल्याणकारी माना गया है। चै
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चैत्र नवरात्र 2022 आज से शुरू, देशभर में उत्सव व पूजा भारत समाचार
चैत्र नवरात्र 2022 आज से शुरू, देशभर में उत्सव व पूजा भारत समाचार
नई दिल्ली: आज (2 अप्रैल, 2022) हिंदू पौराणिक कथाओं में चैत्र नवरात्रि और नए साल का पहला दिन है, और पूरे देश में मनाया जा रहा है। कोविड -19 महामारी का मतलब था कि त्योहार दो साल से अधिक समय तक कम महत्वपूर्ण रहे, लेकिन मामलों में उल्लेखनीय कमी के साथ, नौ दिवसीय उत्सव में बड़े पैमाने पर उत्सव होने की संभावना है।
देशभर में नवरात्रि का जश्न
शनिवार की सुबह तड़के नई दिल्ली के जंदेवलन मंदिर में शनिवार को…
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हिन्दू नववर्ष, चैत्र शुक्ल एकम्, विक्रमी सम्वत् २०७९ की बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित कुछ साधकोपयोगी चर्चा। परंपरा पालन के तीन आयाम हैं। पहला, परिवार के स्तर पर नई पीढ़ी में संस्कार पड़ जाएँ, छोटे छोटे बालकों को अपने इतिहास और संस्कृति की जानकारी हो जाए। महापुरुषों के प्रति गर्व और स्वाभिमान में वृद्धि हो। दूसरा आयाम, राष्ट्रीय स्तर पर सनातन हिन्दू आचार, विचार और व्यवहार के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो। अपने देश के मूल प्राण "धर्म" का प्रचार प्रसार हो और समाज में समरसता का भाव उत्पन्न हो। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण आयाम, आध्यात्मिक स्तर पर ऋषियों द्वारा प्रमाणित मार्ग पर चलकर, परमात्मा प्राप्ति रूपी एकमात्र लक्ष्य को पाकर, इस परम पवित्र भारत भूमि पर जन्म लेने का लाभ लिया जाए। विचार करें, कैलेण्डर में चैत लगने से जीवन में चैत नहीं आता। और बाहर भले लाख बार लगे, जीवन में न लगे, तो लगा न लगा एक बराबर है, कोई लाभ नहीं, कोई भी लाभ नहीं। देखें, प्रस्तुत नौ दिन, सामान्य नहीं हैं, विशेष हैं। यह वह पुरानी बंधन में डालने वाली मोह रूपी रात्रि नहीं, नवरात्रि है, नई रात है। यह वही है, जिसमें संसारी सोया रहता है, पर संयमी जाग जाता है, सदा सदा के लिए जाग जाता है, फिर वह सोता ही नहीं, वह तो मुक्त ही हो जाता है। ध्यान दो! चित का चेत जाना ही चैत है, होश में आ जाना, जाग जाना। याद आ जाए की जाना कहाँ है? पूरा जीवन जिसने माँग माँग कर, भिखारी बन कर बिता दिया, इन आठ दिन मन को रोक ले, कुछ न चाहे, कुछ न माँगे। इन आठ दिनों में व्रत नियम उपवास करे, संकल्प करे, जगज्जननी जगदम्बा भक्ति देवी की उपासना करे, अष्टधा मूल प्रकृति के बंधन को काट डाले, और नवें दिन, जीवन में असली नवमी आ जाए, नव, नया सूर्य निकल आए, भगवान अन्त:करण में अवतार ले लें, राम जन्म हो जाए, राम नवमी हो जाए। लोकेशानन्द की शुभकामनाएँ॥ 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 https://www.instagram.com/p/Cb1OfXVh--p/?utm_medium=tumblr
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चैत्र नवरात्रि का पहला दिन कैसा होना चाहिए, जानिए घट स्थापना से लेकर देवी पूजा तक के सारे नियम #news4
चैत्र माह की नवरात्रि यानी वसंत नवरात्रि का पहला दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन होता है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होता है। इसीलिए इस नवरात्रि का खासा महत्व है। यह दिन बहुत विशेष होता है क्योंकि इसी दिन से नववर्ष के साथ ही नवरात्रि का पर्व भी प्रारंभ होता है। आओ जानते हैं चैत्र नवरात्रि का पहला दिन कैसा होना चाहिए, जानिए घट स्थापना से लेकर देवी पूजा तक के सारे नियम।
कैसे…
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चैत्र नवरात्रि 2021: महा अष्टमी मंगलवार के दिन, ऐसे करें मां दुर्गा को प्रसन्न
चैत्र नवरात्रि 2021: महा अष्टमी मंगलवार के दिन, ऐसे करें मां दुर्गा को प्रसन्न
चैत्र नवरात्रि हिन्दू धर्म का वह त्योहार जिसका पहला दिन के साथ ही हिन्दुओं का नव वर्ष प्रारम्भ होता है। ऐसे में इस साल यानि 2021 में भी चैत्र नवरात्रि 2021 (चैत्र नवरात्रि) की शुरुआत के साथ ही हिन्दुओं का नवसंवत्सर 2078 शुरू हुआ। इस वर्ष 13 अप्रैल से नवरात्रि का पहला दिन शुरू हुआ मंगलवार था। ऐसे में नव संवत्सर 2078 का भी उसी दिन से प्रारम्भ हुआ नव संवत्सर 2078 (नव संवत्सर) के राजा और मंत्री दोनों…
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चैत्र नवरात्रि 2021 दिन 1: माँ शैलपुत्री पूजा विधी, समय, मंत्र और समाग्री
चैत्र नवरात्रि 2021 दिन 1: माँ शैलपुत्री पूजा विधी, समय, मंत्र और समाग्री
चैत्र नवरात्रि 2021 दिन 1, माँ शैलपुत्री पूजा विधान: चैत्र नवरात्रि हिंदू समुदाय द्वारा मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। नौ दिनों तक चलने वाले इस शुभ काल के दौरान, भक्त उपवास करते हैं और गाते हैं भजन देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों या अवतारों का आह्वान करने के लिए। वसंत नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है, इस अवधि के दौरान, भक्त एक दिन के आधार पर नौ रूपों की पूजा करते हैं – एक…
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चैत्र नवरात्रि: इस इस शुभ मुहूर्त में करें घट स्थापना, पूरे साल मिलेगा लाभ
चैतन्य भारत न्यूज
13 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि की शुरूआत होने वाली है। चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है। इन दिनों पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। लोग तरह-तरह मां दुर्गा को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। नवरात्रि की शुरूआत कलश स्थापना या घट स्थापना से होती है।
घोड़े पर सवार होकर आएंगे मां
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि पर देवी मां का आगमन घोड़े पर होगा। दशमी में दिन मां का प्रस्थान यानी कि विदाई नर वाहन पर होगी। वैसे तो मां दुर्गा का वाहन सिंह को माना जाता है लेकिन हर साल नवरात्रि के समय तिथि के अनुसार माता अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर धरती पर आगमन करती हैं। ज्योतिषशास्त्र और देवीभागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा का आगमन आने वाले भविष्य की घटनाओं के बारे में संकेत देता है।
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
नवरात्रि का पहला दिन मंगलवार को है। इस दिन सूर्योदय सुबह 5 बजकर 58 मिनट पर होगा। घट स्थापना का शुभ मुहूर्त इसी समय से शुरू हो जाएगा जो 10 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
इस बात का ध्यान रखें
माता लक्ष्मी उसी घर में प्रवेश करती हैं जहां साफ-सफाई होती है। घर की सफाई जरूर करे। स्वास्तिक के निशान को किसी भी शुभ कार्य से पहले बनाना अच्छा माना जाता है। ऐसे में नवरात्रि के पहले दिन घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक का निशान बनाएं।
चैत्र नवरात्रि 2021: इस बार घोड़े पर सवार होकर आएंगी मां भवानी, इस वाहन पर होगी विदाई
इस दिन से हो रही चैत्र नवरात्रि और हिंदू नववर्ष की शुरुआत, पूजा के दौरान इस बात का रखें खास ध्यान
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