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आक्रोश
इंसानों में समय का बदलाव आया है नम्रता नहीं सबमें आक्रोश का साया है, बात बात पर विवाद और उसका प्रतिकार इंसानियत को करती तार तार ये कैसा वहशीपन की छाया है, इंसानों में समय का बदलाव आया है । अपने अपने व्यक्तिगत उलझनों में उलझा इंसान, खोते जा रहा अपनी खुद की पहचान प्यार मोहब्बत भाईचारा की परिणति नफरत और आक्रोश में बदल आया है इंसानों में समय का बदलाव आया है । नम्रता नहीं सबमें आक्रोश का…
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बेगूसराय में सरेआम आभूषण कारोबारी की गोली मारकर हत्या
बेगूसराय। बिहार की औद्योगिक राजधानी बेगूसराय पूरी तरह से आपराधिक नगरी में तब्दील हो गया है। पुलिस के लाख दावों के बावजूद बेखौफ अपराधी लगातार आपराधिक वारदात को अंजाम दे रहे हैं। सोमवार की शाम बेख़ौफ अपराधियों ने दिनदहाड़े जिला मुख्यालय में एक आभूषण कारोबारी की गोली मारकर हत्या कर दी। घटना नगर थाना से मात्र दो सौ मीटर दूर मुंगेरीगंज सोनरपट्टी की है। मृतक कारोबारी जय माता जी ज्वेलर्स के प्रोपराइटर…
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रात 1:30 बजे तक चली कुम्हार समाज की परगना बैठक, आंदोलन तेज करने के लिए बनाई रणनीति
विकास प्रजापत मौत मामले की गुत्थी 5 महीने में भी नहीं सुलझने से कुम्हार समाज आक्रोशित हैं। आरोपियों की गिरफ्तारी न होने और ना ही मामले का खुलासा होने से सरकार के खिलाफ आमजन में भी आक्रोश पनपता दिखाई दे रहा है।
विकास प्रजापत मौत मामला, परिजनों ने कहा, पुलिस प्रशासन की आरोपियों से मिलीभगत के चलते पनप रहा समाज में आक्रोश न्यूज़ चक्र, कोटपूतली। विकास प्रजापत मौत मामले की गुत्थी 5 महीने में भी नहीं सुलझने से कुम्हार समाज आक्रोशित हैं। आरोपियों की गिरफ्तारी न होने और ना ही मामले का खुलासा होने से सरकार के खिलाफ आमजन में भी आक्रोश पनपता दिखाई दे रहा है। शुक्रवार रात्रि को कस्बे के प्रजापति छात्रावास में…
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Petrol Attack Case | जळीत कांडातील आरोपीला न्यायालयीन कोठडी
आरोपीला फाशीच्या शिक्षेकरीता सुर्याटोलावासियांचा न्यायालय परिसरात आक्रोश मोर्चा गोंदिया : शहराजवळील सूर्याटोला येथे जावयाने आपल्या सासऱ्यासह पत्नी व मुलाला पेट्रोल घ��लून जाळल्याची घटना बुधवारी (दि. १५) पहाटे १ वाजताच्या सुमारास घडली होती. या प्रकरणात अटकेनंतर पीसीआरमध्ये असलेल्या आरोपी किशोर श्रीराम शेंडे(४०, रा.भिवापूर, ता.तिरोडा) याला आज (दि.20)जिल्हा सत्र न्यायालयात हजर करण्यात आले असता,…
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राजस्थान: कोविड मामलों में वैश्विक वृद्धि के मद्देनजर भाजपा ने 'जन आक्रोश यात्रा' स्थगित की
राजस्थान: कोविड मामलों में वैश्विक वृद्धि के मद्देनजर भाजपा ने ‘जन आक्रोश यात्रा’ स्थगित की
द्वारा पीटीआई नई दिल्ली: वैश्विक स्तर पर कोरोनोवायरस के मामलों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर भाजपा ने राजस्थान में अपनी “जन आक्रोश यात्रा” को स्थगित कर दिया है, पार्टी महासचिव अरुण सिंह ने गुरुवार को कहा। राजस्थान में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा 1 दिसंबर को किसानों और शासन से जुड़े मुद्दों पर अशोक गहलोत सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस शासित राज्य…
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इन रातों में जब अंधेरे रंग की
अकेलेपन के धागों से सिली चद्दर ताने,
आंखे मूंद ती हूं तो अब नींद भी गले नही लगती।
सपनो में खिल खिलाते चेहरे सामने बेरंग से दिखते है,
रोशनी जो कभी इन आखों में बस्ती थी,
आज काली तूफान सी रातों ने वो दिए भुजा दिए है।
गले लगाने को के कोई शक्श पास है,
न चार शबद बोलने सुनने को
दो हाथो दो पैरो वाला कोई जीव।
मखमल के तकिए आजकल अश्रुओं के प्रेम
में बरबाद होने को तैयार बैठे है,
न जाने किस आक्रोश में
जल रही है मन की शमशान,
मानो भीतर तन्हाई की आग
में रूह भी राख हो रही है।
-bahara
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क्या फ़र्क़ पड़ता है?
किसी से होने या चले जाने से,
बातें छुपा लेने से या बताने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
रात भर ना सोने से, सुबह जल्दी जाग जाने से,
खड़े होकर लड़ने से, डरकर भाग जाने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
किसी का ग़म समझने से, किसी को दर्द देने से,
किसी को याद करने से, सभी को भूल जाने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
अच्छा या बुरा, छोटा या बड़ा,
रात या दिन, शाम या सुबह।
क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
पर शायद फ़र्क़ पड़ना चाहिए,
जब दुनिया जल रही हो, मानवता पिघल रही हो,
जब किसी की चीख़ें सुनाई दे, सिर्फ़ अंधेरा दिखाई दे,
जब तुम चाहो की दुनिया बदल जाये,
कोई तो अपने घर से निकल जाये,
ये आक्रोश ख़त्म ना हो,
मरने का जोश ख़त्म ना हो।
जब तुम्हें लगे कि किसी को कुछ करना चाहिए,
तुम्हें, फ़र्क़ पड़ना चाहिए।..... @teddygirl20
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हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC) के संयुक्त तत्वावधान में "धरोहर” कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 07 मई, 2023, दिन रविवार, सायं 04:30 बजे से 06:00 बजे तक, स्थान: ऑडिटोरियम, शेरवुड अकैडमी, सेक्टर-25, इंदिरा नगर, लखनऊ में किया जा रहा है l
"धरोहर” कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित नाटक "काकोरी ट्रेन एक्शन" का मंचन किया जाएगा |
नाटक, काकोरी ट्रेन एक्शन की क्रांतिकारी घटना पर आधारित है । भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में काकोरी ट्रेन एक्शन एक महत्वपूर्ण घटना है, काकोरी ट्रेन एक्शन के बाद क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाए जाने के दौरान क्रांतिकारियों द्वारा अदालत में दिए गए बयानों से पूरा देश अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोश से उबल पड़ा था तथा इसी एक्शन से क्रांतिकारी आंदोलनों का पुनर्जागरण हुआ व देश में एक नए उत्साह का संचार हुआ और नव युवकों में देश के लिए मर मिटने की भावना जागृत हुई। बात उस समय की है जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा गोरखपुर में शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चलाने के कारण नाराज लोगों ने थाने में आग लगा दी थी, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए । हिंसा से क्षुब्ध गांधी जी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया, इसकी देशभर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई, विशेषकर युवाओं की भावनाओं को अत्यधिक ठेस पहुंची और वे क्रांतिकारी आंदोलनों में से जुड़ने के लिए उतावले हो गए। तभी क्रांतिकारी दल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन हुआ और देखते-देखते तमाम युवा इस दल में शामिल हो गए जिसमें चंद्रशेखर आजाद, मुकुंदी लाल, सुरेश चंद्र भट्टाचार्य, सचिंद्र नाथ बक्शी, राजे��्द्र नाथ लाहड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, सचिन दा प्रमुख थे। क्रांतिकारी युवा से भली-भांति समझ चुके थे कि अब हमें आजादी शांति के रास्ते पर नहीं मिल सकती , हमें सशस्त्र क्रांति करनी पड़ेगी, जिसके लिए शस्त्रों की आवश्यकता पड़ेगी और शस्त्र खरीदने के लिए धन की आवश्यकता है । इसी कार्य को पूरा करने के लिए क्रांतिकारियों ने एक योजना बनाई । शाहजहांपुर से लखनऊ जाने वाली 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन जिसमें की अंग्रेजी सरकार का खजाना जाता था, उसे लूटने की योजना बनाई और उसे 10 क्रांतिकारियों ने बिना किसी हिंसा के अंजाम दे दिया । इससे क्रांतिकारियों के दो प्रमुख उद्देश्य पूरे हुए, शासन को खुली चुनौती और जनता को संदेश, संस्था को मजबूती प्रदान करने हेतु लूटे गए धन से बड़े पैमाने पर आवश्यक वस्तुओं की खरीद।इस घटना से पूरे देश में सनसनी फैल जाना स्वभाविक था शासन ने तो कुछ समय तक हतभ्रम रह गया। अभियुक्त को पकड़ने के लिए रूपये 5000 इनाम की घोषणा की गई, इस घोषणा इस्तिहार टांग दिए गए । परंतु इससे उत्साहित जनता की क्रांतिकारियों के प्रति सहानभूति और गहरी हो गई । 26 सितंबर 1925 की रात को पूरे उत्तर भारत में लोगों के घर छापे डाले गए जिसमें अनेकों क्रांतिकारी पकड़े गए । उनका मुकदमा लखनऊ चला और फैसले में ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र नाथ लाहड़ी व अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई और अंततः 17 दिसंबर 1927 को क्रांतिवीर राजेंद्र नाथ लाहडी को गोंडा जेल में तथा 19 दिसंबर 1927 को शेष तीनों क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान एवं ठाकुर रोशन सिंह को क्रमशः गोरखपुर जिला जेल, फैजाबाद जिला जेल व इलाहाबाद जिला जेल में बड़ी दिलेरी के साथ हंसते-हंसते फांसी का वरण कर क्रांति इतिहास में सदा-सदा के अमर हो गए, और इस घटना के बाद से पूरे देश में क्रांतिकारी घटनाओं ने जोर पकड़ लिया ।
आप "धरोहर” कार्यक्रम में सपरिवार सादर आमंत्रित है |
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1404.
बोलते हुए फ़ोटोग्राफ़
और देखती नज़र
-© का��िनी मोहन पाण्डेय।
फ़ोटोग्राफ़ी शब्द ग्रीक शब्द "फ़ोटो" और "ग्राफोज़" से बना है, जिसका अर्थ है प्रकाश और ड्राइंग। दुनिया का पहला कैमरा "कैमरा ऑब्स्कुरा" था, जो 16वीं शताब्दी में आविष्कार के बाद सामने आया। पहला कैमरा बनाने का श्रेय जोहान्न ज़हन को जाता है। कैमरे का अस्तित्व, 1816 से माना जाता है। इसी कैमरे से फ्रांस के इंजीनियर जोसेफ नाइसफोन निप्से ने साल 1816 में पहली फ़ोटोग्राफ़ निकाली थी।
भारत में भी फ़ोटोग्राफ़ी की शुरुआत 16 वीं सदी से होती है तब अनुमानित छवियों के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य शुरु हुआ था। फ़ोटोग्राफ़ी में कल्पनाशीलता, ग्लैमर, सादगी की भावनाएँ, पुरज़ोर कशिश यानी वह सब कुछ होता है, जो देखने वाले से बावस्ता हो। देखने के बाद उन्हें अमेजिंग कहने पर विवश कर दे। फ़ोटोग्राफ़ी की ख़ासियत होती है कि वह बोलती नज़र आती है। फ़ोटोग्राफ़र को यह पता होना चाहिए कि वह किसी शख़्स से किस समय पर क्या बात करते हुए फ़ोटोशूट करें, ताकि चेहरे को पढ़ा जा सके।
चेहरा पढ़ने की क़ाबिलियत होना बेहद ज़रूरी है। जिसे हम फ़ोटो की दुनिया में पीपुल (Pupil) फ़ोटोग्राफ़ी, फैसियल (Facial) एक्सप्रेशन फ़ोटोग्राफ़ी भी कहते हैं। समाज में यह दोनों बहुतायात में उपलब्ध है। फ़ोटोग्राफ़ी के मार्फ़त घरेलू हिंसा, बाल अपराध, अव्यवस्था, आक्रोश, दर्द, ख़ुशी को महसूस कराया जा सकता है।
एक कला क�� रूप में फ़ोटोग्राफ़ी दुनिया को एक अलग तरीके से देखने के बारे में है। एक कलाकार ही दुनिया को अलग ढंग से देखने की चाहत रखता हैं। कलाकार को अपने अस्तित्व को प्रकट करने के लिए आंतरिक संतुलन को अभिव्यक्त करने की लालसा रहती हैं, क्योंकि, कला अपने आप में एक उपकरण है, जो कलाकार को आंतरिक और वाह्य दुनिया के दो पलड़ों के बीच संतुलन महसूस करने में मदद करती है।
ऑनलाइन मीडिया साइटों और माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म पर एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है। फ़ोटोग्राफ़िक कला में पहला रेखा, दूसरा आकार, तीसरा रूप, चौथा बनावट, पाँचवा रंग, छठवाँ आकार और सातवा गहराई कुल सात बुनियादी तत्व शामिल होते हैं। एक तस्वीर को प्रकाश, रंग, रचना और विषय पूरा दृश्य प्रदान करता है। ईमानदार भावना और कलात्मक स्पष्टता के साथ उत्तम शिल्प कौशल एक कलाकार को जीवन का दृष्टिकोण प्रदान करती है।
एडवरटाइजिंग और फ़ैशन की दुनिया में फ़ोटोग्राफ़ी एक नया आयाम जोड़ता है। ऑफबीट कॉंसेप्ट को अपना थीम बनाकर भी आकर्षक ढंग से सजीवता को दर्शाया जाता है। बड़े-बड़े सेलिब्रिटी में ब्रांड्स को आधार बनाकर की गई फ़ोटोग्राफ़ी, फ़ोटोग्राफ़र की क्रिएटिविटी को गहराई तक सोचने को मज़बूर करती है। कैमरे की क्लिक और डार्क रूम से निकली तस्वीर पलभर में यादगार लम्हों को बयां करने लगती है।
एक छवि में पीले, नारंगी और लाल टोन के स्पेक्ट्रम तस्वीर के मूड को दर्शाते हैं। एक कलाकार की मौलिकता या ऐसे कहे कि हमारी स्वयं के होने का हस्ताक्षर अद्वितीय होता है। यह हमारी पहचान है। हमारी व्यक्तिगत शैली है। मौलिक अभिव्यक्ति हमेशा से ही जीवन को समृद्ध करती है। इसकी अपनी गुणवत्ता होती है और अपने में विशेषताओं को समेटे रहती है। इस विशेषता के कारण ही इसकी अलग पहचान होती है।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
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Shaheed Diwas 2023: 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए
Shaheed Diwas : 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी थी
हर साल 23 मार्च को भारत शहादत दिवस मनाया जाता है। भारत के तीन वीर सपूतों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे । ये तीनों ही युवाओं के लिए आदर्श और प्रेरणा है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भारत की आजादी के लिए अपनी जान देने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु नाम के तीन युवकों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी। वह 23 वर्ष के थे। इसलिए ,शहीदों को श्रद्धांजलि के रूप में, भारत सरकार ने 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में घोषित किया। लेकिन क्या आपको पता है कि इन तीनों शहीदों की मौत भी अंग्रेजी हुकूमत की एक साजिश थी? भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सभी को 24 मार्च को फाँसी देनी तय हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने एक दिन पहले 23 मार्च को भारत के तीनों वीर पुत्रो को फांसी पर लटका दिया। आखिर इसकी वजह क्या थी? आखिर भगत सिंह और उनके साथियों ने ऐसा क्या अपराध किया था कि उन्हें फांसी की सजा दी गई। भगत सिंह की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन के बारे में कई दिलचस्प बातें।
देश की आजादी के लिए सेंट्रल असेंबली में बम फेंका गया।
8 अप्रैल, 1929 को दो क्रांतिकारियों, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका और ‘साइमन गो बैक’ नारे में भी संदर्भित किया गया था। जहां कुख्यात आयोग के प्रमुख सर जॉन साइमन मौजूद थे। साइमन कमीशन को भारत में व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था। बम फेंकने के बाद दोनों ने भागने की कोशिश नहीं की और सभा में पर्चे फेंक कर आजादी के नारे लगाते रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। जो पर्चे गिराए उनमें पहला शब्द “नोटिस” था। उसके बाद उनमें पहला वाक्य फ्रेंच शहीद अगस्त वैलां का था। लेकिन दोनों क्रांतिकारियों द्वारा दिया गया प्रमुख नारा ‘’इंकलाब जिंदाबाद’’ था । इस दौरान उन्हें करीब दो साल की सजा हुई।
करीब दो साल की मिली कैद
भगत सिंह करीब दो साल तक जेल में रहे। उन्होंने बहुत सारे क्रांतिकारी लेख लिखे, जिनमें से कुछ ब्रिटिश लोगों के बारे में थे, और अन्य पूंजीपतियों के बारे में थे। जिन्हें वह अपना और देश का दुश्मन मानते थे। उन्होंने कहा कि श्रमिकों का शोषण करने वाला कोई भी व्यक्ति उनका दुश्मन है, चाहे वह व्यक्ति भारतीय ही क्यों �� हो।
जेल में भी जारी रखा विरोध
भगत सिंह बहुत बुद्धिमान थे और कई भाषाएँ जानते थे। वह हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी आती जानते थे । उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से बंगाली भी सीखी थी। भगत सिंह अक्सर अपने लेखों में भारतीय समाज में लिपि, जाति और धर्म के कारण आई लोगों के बीच की दूरी के बारे में चिंता और दुख व्यक्त करते थे।
राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की फांसी की तारीख तय की गई
दो साल तक कैद में रहने के बाद, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फाँसी दी जानी थी। हालाँकि, उनकी फाँसी की ख़बर से देश में बहुत हंगामा हुआ और ब्रिटिश सरकार प्रतिक्रिया से डर गई। वह तीनों सपूतों की फांसी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीयों का आक्रोश और विरोध देख अंग्रेज सरकार डर गई थी।
डर गई अंग्रेज सरकार
ब्रिटिश सरकार को इस बात की चिंता थी कि भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की फाँसी के दिन भारतीयों का गुस्सा उबलने की स्थिति में पहुँच जाएगा, और स्थिति और भी बदतर हो सकती है। इसलिए, उन्होंने उसकी फांसी की तारीख और समय को बदलने का फैसला किया।
तय समय से पहले दी भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी
ब्रिटिश सरकार ने जनता के विरोध को देखते हुए 24 मार्च जो फांसी का दिन था उसे 11 घंटे पहले 23 मार्च का दिन कर दिया। इसका पता भगत सिंह को नहीं था। 22 मार्च की रात सभी कैदी मैदान में बैठे थे। तभी वार्डन चरत सिंह आए और बंदियों को अपनी-अपनी कोठरियों में जाने को कहा। कुछ ही समय बाद नाई बरकत की बात कैदियों के कानों में पड़ी कि उस रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।
23 मार्च 1931 को शाम 7.30 बजे फांसी दे दी जायगी । कहते है कि जब भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन (Reminiscences of Leni) की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। लेकिन जेल के अधिकारियों ने चलने को कहा तो उन्होंने किताब को हवा में उछाला और कहा – ’’ठीक है अब चलो।’’
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 बजकर 33 मिनट पर 23 मार्च 1931 को शाम में लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव एक दूसरे से मिले और उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थामे आजादी का गीत गाया।
”मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग इे बसन्ती चोला।।’’
साथ ही ’इंक़लाब ज़िन्दाबाद’ और ’हिंदुस्तान आजाद हो’ का नारा लगये ।
उनके नारे सुनते ही जेल के कैदी भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। कहा जाता है कि फांसी का फंदा पुराना था लेकिन जिसे फांसी दी गई वह काफी तंदुरुस्त था। मसीद जलाद को फाँसी के लिए लाहौर के पास शाहदर�� से बुलाया गया था। भगतसिंह बीच में खङे थे और अगल-बगल में राजगुरु और सुखदेव खङे थे। जब मसीद जल्लाद ने पूछा कि, ’सबसे पहले कौन जाएगा?’
तब सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकाने की सहमति दी। मसीद जल्लाद ने सावधानी से एक-एक करके रस्सियों को खींचा और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मारकर हटा दिया। लगभग 1 घंटे तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे, उसके बाद उन्हें नीचे उतारा गया और लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट एनएस सोढ़ी द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
तीन क्रांतिकारियों, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का अंतिम संस्कार
ब्रिटिश सरकार की योजना थी इन सबका अंतिम दाह संस्कार जेल में करने की योजना बनाई थी। हालांकि, अधिकारियों को चिंता हुई कि अगर जेल से दाह संस्कार की प्रक्रिया से निकलने वाले धुएं को देखा तो जनता नाराज हो जाएगी। इसलिए, उन्होंने जेल की दीवार को तोड़ने और कैदियों के शवों को जेल के बाहर ट्रकों पर फेंकने का फैसला किया।
इससे पहले ब्रिटिश सरकार ने तय किया था कि भगत सिंह राजगुरु सुखदेव का अंतिम संस्कार रावी नदी के तट पर किया जाएगा, लेकिन उस समय रावी में पानी नहीं था। इसलिए उनके शव को फिरोजपुर के पास सतलुज नदी के किनारे लाया गया। उनके शवों को आग लगाई गई। इसके बारे में जब आस-पास के गाँव के लोगों को पता चल गया, तब ब्रिटिश सैनिक शवों को वहीं छोङकर भाग गये। कहा जाता है कि सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया था।
अगले दिन जब तीनों क्रांतिकारियों की मौत की खबर फैली तो उनके सम्मान में तीन मील लंबा जुलूस निकाला था। इसको लेकर लोगों ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया ।
फांसी से पहले भगत सिंह ने अपने साथियों को एक पत्र लिखा था।
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और ��ेश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
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समर्थक बोले-बांग्लादेश में इस्कॉन के चिन्मय कृष्ण दास की जान को खतरा, अंतर्राष्ट्रीय संगठन हमारी मदद करें
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के प्रमुख नेता और इस्कॉन के वरिष्ठ सदस्य चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ़्तारी ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. सोमवार को हुई इस गिरफ्तारी के बाद देशभर में हिंदू समुदाय के बीच डर और आक्रोश का माहौल है. चिन्मय कृष्ण दास, जो बांग्लादेश में हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा से मुखर रहे हैं, अब उन पर…
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अखिल झारखंड छात्र संघ (आजसू) का युवा आक्रोश मार्च 12 जनवरी को
अखिल झारखंड छात्र संघ (आजसू) का युवा आक्रोश मार्च 12 जनवरी को
रांची। आजसू पार्टी की सहयोगी इकाई अखिल झारखण्ड छात्र संघ नौजवानों के प्रणेता तथा महान समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद जी की जयंती तथा राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर युवा आक्रोश मार्च निकालेगी। इस दौरान अखिल झारखंड छात्र संघ के सभी प्रदेशस्तरीय पदाधिकारी, कार्यकर्ता तथा झारखंड के नौजवान विधानसभा मैदान से मोराबादी बापू वाटिका तक पैदल मार्च कर युवा विरोधी सरकार के खिलाफ हुंकार भरेंगे। उक्त जानकारी अखिल…
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जशपुर: किसानों का आक्रोश, 21 नहीं केवल 14 क्विंटल धान की हो रही खरीदी, सरकार पर उठे सवाल
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हादसों की सड़क बनी पटेल नगर-वल्लभ गॉर्डन सड़क
(विवेक मित्तल), बीकानेर 23 नवम्बर, 2024। जनप्रतिनियों के उपेक्षित रवैये तथा जिम्मेदारों की उदासीनता और लापरवाही के कारण हादसों की सड़क बन रही है पटेल नगर-वल्लभ गॉर्डन की मुख्य सड़क, आये दिन हो रहे हैं हादसे। लम्बे समय से चल रही लापरवाही और अनदेखी के कारण स्थानीय नागरिकों में पनप रहा है गहरा आक्रोश। ऐसा प्रतीत होता है कि जर्जर हो चुकी सड़क और सीवरेज की समस्या के बारे में न हम सुनेंगे, न हम इसे…
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पंडित पुरन जोशी के कोल्ड स्टोर में मिला सैकड़ों गोवंशों का 153 टन गोमांस, धार्मिक संगठनों में फैला आक्रोश
नोएडा में हाल ही में एक बड़े गौमांस तस्करी मामले का खुलासा हुआ है, जिसने पूरे क्षेत्र को हिलाकर रख दिया है। अधिकारियों ने पंडित पुरन जोशी के कोल्ड स्टोर से 153 टन गौमांस जब्त किया है। इस बात की पुष्टि मथुरा की लैब में की गई, जिसमें स्पष्ट हुआ कि यह मांस गौवंशों का है। घटना का खुलासा और छानबीन जांच एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई में यह बड़ी बरामदगी हुई। रिपोर्ट के अनुसार, स्टोर…
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adityapur park problem : आदित्यपुर उपनगर आयुक्त पारुल सिंह पहुंची प्रभात पार्क, पेड़ काटने के मामले को पाया सही, कहा - मामला गंभीर
आदित्यपुर: नगर निगम के वार्ड 17 स्थित प्रभात पार्क में काटे गए पेड़ मामले को लेकर सोमवार को उप नगर आयुक्त पारूल सिंह ने निरीक्षण किया. जहां उन्हें स्थानीय लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा. उप नगर आयुक्त ने निरीक्षण के क्रम में पेड़ काटे जाने की सूचना को सही पाया और उन्होंने ठेकेदार को जेल भेजे जाने की धमकी देते हुए तत्काल पार्क में तालाबंदी कर वन विभाग द्वारा जांच पूरी होने तक काम रुकवाया दिया है.…
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