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राज्य निगम कर्मचारी अधिकारी महासंघ उत्तराखण्ड की बैठक, निगमों के निजीकरण (मालदारी) व्यवस्था को लागू करने पर आक्रोश
राज्य निगम कर्मचारी अधिकारी महासंघ उत्तराखण्ड की बैठक, निगमों के निजीकरण (मालदारी) व्यवस्था को लागू करने पर आक्रोश देहरादून: राज्य निगम कर्मचारी अधिकारी महासंघ उत्तराखण्ड की पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार गांधी रोड परिषद कार्यालय में बैठक श्री दिनेश गौसाई की अध्यक्षता में की गयी। बैठक में नियमितीकरण में हो रही देरी व सार्वजनिक निगमों के निजीकरण (मालदारी) व्यवस्था को लागू करने पर आक्रोश…
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इंटरडिस्कॉम तबादलों को लेकर कर्मचारियों में आक्रोश
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विशनाराम मेघवाल के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए बालोतरा में आक्रोश रैली
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 13 दिसंबर 2024 | जयपुर : बालोतरा में मंगलवार को दिनदहाड़े हुई हत्या के मामले में आरोपियों को पकड़ने की मांग को लेकर लोगों ने धरना स्थल मॉर्च्युरी से कलेक्ट्रेट तक आक्रोश रैली निकाली। विशनाराम मेघवाल के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए बालोतरा में आक्रोश रैली इस दौरान प्रथम रेलवे अंडर ब्रिज के पास सड़क पर टायर जलाए गए। जुलूस के रूप में कलेक्ट्रेट पहुंचकर कार्यालय का घेराव किया…
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रात 1:30 बजे तक चली कुम्हार समाज की परगना बैठक, आंदोलन तेज करने के लिए बनाई रणनीति
विकास प्रजापत मौत मामले की गुत्थी 5 महीने में भी नहीं सुलझने से कुम्हार समाज आक्रोशित हैं। आरोपियों की गिरफ्तारी न होने और ना ही मामले का खुलासा होने से सरकार के खिलाफ आमजन में भी आक्रोश पनपता दिखाई दे रहा है।
विकास प्रजापत मौत मामला, परिजनों ने कहा, पुलिस प्रशासन की आरोपियों से मिलीभगत के चलते पनप रहा समाज में आक्रोश न्यूज़ चक्र, कोटपूतली। विकास प्रजापत मौत मामले की गुत्थी 5 महीने में भी नहीं सुलझने से कुम्हार समाज आक्रोशित हैं। आरोपियों की गिरफ्तारी न होने और ना ही मामले का खुलासा होने से सरकार के खिलाफ आमजन में भी आक्रोश पनपता दिखाई दे रहा है। शुक्रवार रात्रि को कस्बे के प्रजापति छात्रावास में…
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इन रातों में जब अंधेरे रंग की
अकेलेपन के धागों से सिली चद्दर ताने,
आंखे मूंद ती हूं तो अब नींद भी गले नही लगती।
सपनो में खिल खिलाते चेहरे सामने बेरंग से दिखते है,
रोशनी जो कभी इन आखों में बस्ती थी,
आज काली तूफान सी रातों ने वो दिए भुजा दिए है।
गले लगाने को के कोई शक्श पास ��ै,
न चार शबद बोलने सुनने को
दो हाथो दो पैरो वाला कोई जीव।
मखमल के तकिए आजकल अश्रुओं के प्रेम
में बरबाद होने को तैयार बैठे है,
न जाने किस आक्रोश में
जल रही है मन की शमशान,
मानो भीतर तन्हाई की आग
में रूह भी राख हो रही है।
-bahara
#latenightdeepthoughts#iwishicouldsinkinwater#ocean shall hug me and consume me#desi poetry#lonliness#lonlinights#poetess#poetry#tanhayi
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क्या फ़र्क़ पड़ता है?
किसी से होने या चले जाने से,
बातें छुपा लेने से या बताने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
रात भर ना सोने से, सुबह जल्दी जाग जाने से,
खड़े होकर लड़ने से, डरकर भाग जाने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
किसी का ग़म समझने से, किसी को दर्द देने से,
किसी को याद करने से, सभी को भूल जाने से।
क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
अच्छा या बुरा, छोटा या बड़ा,
रात या दिन, शाम या सुबह।
क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
पर शायद फ़र्क़ पड़ना चाहिए,
जब दुनिया जल रही हो, मानवता पिघल रही हो,
जब किसी की चीख़ें सुनाई दे, सिर्फ़ अंधेरा दिखाई दे,
जब तुम चाहो की दुनिया बदल जाये,
कोई तो अपने घर से निकल जाये,
ये आक्रोश ख़त्म ना हो,
मरने का जोश ख़त्म ना हो।
जब तुम्हें लगे कि किसी को कुछ करना चाहिए,
तुम्हें, फ़र्क़ पड़ना चाहिए।..... @teddygirl20
#teddygirl20#alonetime#poetry#feeling alone#female writers#tumblr#writters on tumblr#poem#alone with my thoughts#hindi shayari
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हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC) के संयुक्त तत्वावधान में "धरोहर” कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 07 मई, 2023, दिन रविवार, सायं 04:30 बजे से 06:00 बजे तक, स्थान: ऑडिटोरियम, शेरवुड अकैडमी, सेक्टर-25, इंदिरा नगर, लखनऊ में किया जा रहा है l
"धरोहर” कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित नाटक "काकोरी ट्रेन एक्शन" का मंचन किया जाएगा |
नाटक, काकोरी ट्रेन एक्शन की क्रांतिकारी घटना पर आधारित है । भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में काकोरी ट्रेन एक्शन एक महत्वपूर्ण घटना है, काकोरी ट्रेन एक्शन के बाद क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाए जाने के दौरान क्रांतिकारियों द्वारा अदालत में दिए गए बयानों से पूरा देश अंग्रेजों के विरुद्�� आक्रोश से उबल पड़ा था तथा इसी एक्शन से क्रांतिकारी आंदोलनों का पुनर्जागरण हुआ व देश में एक नए उत्साह का संचार हुआ और नव युवकों में देश के लिए मर मिटने की भावना जागृत हुई। बात उस समय की है जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा गोरखपुर में शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चलाने के कारण नाराज लोगों ने थाने में आग लगा दी थी, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए । हिंसा से क्षुब्ध गांधी जी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया, इसकी देशभर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई, विशेषकर युवाओं की भावनाओं को अत्यधिक ठेस पहुंची और वे क्रांतिकारी आंदोलनों में से जुड़ने के लिए उतावले हो गए। तभी क्रांतिकारी दल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन हुआ और देखते-देखते तमाम युवा इस दल में शामिल हो गए जिसमें चंद्रशेखर आजाद, मुकुंदी लाल, सुरेश चंद्र भट्टाचार्य, सचिंद्र नाथ बक्शी, राजेन्द्र नाथ लाहड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, सचिन दा प्रमुख थे। क्रांतिकारी युवा से भली-भांति समझ चुके थे कि अब हमें आजादी शांति के रास्ते पर नहीं मिल सकती , हमें सशस्त्र क्रांति करनी पड़ेगी, जिसके लिए शस्त्रों की आवश्यकता पड़ेगी और शस्त्र खरीदने के लिए धन की आवश्यकता है । इसी कार्य को पूरा करने के लिए क्रांतिकारियों ने एक योजना बनाई । शाहजहांपुर से लखनऊ जाने वाली 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन जिसमें की अंग्रेजी सरकार का खजाना जाता था, उसे लूटने की योजना बनाई और उसे 10 क्रांतिकारियों ने बिना किसी हिंसा के अंजाम दे दिया । इससे क्रांतिकारियों के दो प्रमुख उद्देश्य पूरे हुए, शासन को खुली चुनौती और जनता को संदेश, संस्था को मजबूती प्रदान करने हेतु लूटे गए धन से बड़े पैमाने पर आवश्यक वस्तुओं की खरीद।इस घटना से पूरे देश में सनसनी फैल जाना स्वभाविक था शासन ने तो कुछ समय तक हतभ्रम रह गया। अभियुक्त को पकड़ने के लिए रूपये 5000 इनाम की घोषणा की गई, इस घोषणा इस्तिहार टांग दिए गए । परंतु इससे उत्साहित जनता की क्रांतिकारियों के प्रति सहानभूति और गहरी हो गई । 26 सितंबर 1925 की रात को पूरे उत्तर भारत में लोगों के घर छापे डाले गए जिसमें अनेकों क्रांतिकारी पकड़े गए । उनका मुकदमा लखनऊ चला और फैसले में ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र नाथ लाहड़ी व अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई और अंततः 17 दिसंबर 1927 को क्रांतिवीर राजेंद्र नाथ लाहडी को गोंडा जेल में तथा 19 दिसंबर 1927 को शेष तीनों क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान एवं ठाकुर रोशन सिंह को क्रमशः गोरखपुर जिला जेल, फैजाबाद जिला जेल व इलाहाबाद जिला जेल में बड़ी दिलेरी के साथ हंसते-हंसते फांसी का वरण कर क्रांति इतिहास में सदा-सदा के अमर हो गए, और इस घटना के बाद से पूरे देश में क्रांतिकारी घटनाओं ने जोर पकड़ लिया ।
आप "धरोहर” कार्यक्रम में सपरिवार सादर आमंत्र��त है |
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1404.
बोलते हुए फ़ोटोग्राफ़
और देखती नज़र
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
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फ़ोटोग्राफ़ी शब्द ग्रीक शब्द "फ़ोटो" और "ग्राफोज़" से बना है, जिसका अर्थ है प्रकाश और ड्राइंग। दुनिया का पहला कैमरा "कैमरा ऑब्स्कुरा" था, जो 16वीं शताब्दी में आविष्कार के बाद सामने आया। पहला कैमरा बनाने का श्रेय जोहान्न ज़हन को जाता है। कैमरे का अस्तित्व, 1816 से माना जाता है। इसी कैमरे से फ्रांस के इंजीनियर जोसेफ नाइसफोन निप्से ने साल 1816 में पहली फ़ोटोग्राफ़ निकाली थी।
भारत में भी फ़ोटोग्राफ़ी की शुरुआत 16 वीं सदी से होती है तब अनुमानित छवियों के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य शुरु हुआ था। फ़ोटोग्राफ़ी में कल्पनाशीलता, ग्लैमर, सादगी की भावनाएँ, पुरज़ोर कशिश यानी वह सब कुछ होता है, जो देखने वाले से बावस्ता हो। देखने के बाद उन्हें अमेजिंग कहने पर विवश कर दे। फ़ोटोग्राफ़ी की ख़ासियत होती है कि वह बोलती नज़र आती है। फ़ोटोग्राफ़र को यह पता होना चाहिए कि वह किसी शख़्स से किस समय पर क्या बात करते हुए फ़ोटोशूट करें, ताकि चेहरे को पढ़ा जा सके।
चेहरा पढ़ने की क़ाबिलियत होना बेहद ज़रूरी है। जिसे हम फ़ोटो की दुनिया में पीपुल (Pupil) फ़ोटोग्राफ़ी, फैसियल (Facial) एक्सप्रेशन फ़ोटोग्राफ़ी भी कहते हैं। समाज में यह दोनों बहुतायात में उपलब्ध है। फ़ोटोग्राफ़ी के मार्फ़त घरेलू हिंसा, बाल अपराध, अव्यवस्था, आक्रोश, दर्द, ख़ुशी को महसूस कराया जा सकता है।
एक कला के रूप में फ़ोटोग्राफ़ी दुनिया को एक अलग तरीके से देखने के बारे में है। एक कलाकार ही दुनिया को अलग ढंग से देखने की चाहत रखता हैं। कलाकार को अपने अस्तित्व को प्रकट करने के लिए आंतरिक संतुलन को अभिव्यक्त करने की लालसा रहती हैं, क्योंकि, कला अपने आप में एक उपकरण है, जो कलाकार को आंतरिक और वाह्य दुनिया के दो पलड़ों के बीच संतुलन महसूस करने में मदद करती है।
ऑनलाइन मीडिया साइटों और माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म पर एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है। फ़ोटोग्राफ़िक कला में पहला रेखा, दूसरा आकार, तीसरा रूप, चौथा बनावट, पाँचवा रंग, छठवाँ आकार और सातवा गहराई कुल सात बुनियादी तत्व शामिल होते हैं। एक तस्वीर को प्रकाश, रंग, रचना और विषय पूरा दृश्य प्रदान करता है। ईमानदार भावना और कलात्मक स्पष्टता के साथ उत्तम शिल्प कौशल एक कलाकार को जीवन का दृष्टिकोण प्रदान करती है।
एडवरटाइजिंग और फ़ैशन की दुनिया में फ़ोटोग्राफ़ी एक नया आयाम जोड़ता है। ऑफबीट कॉंसेप्ट को अपना थीम बनाकर भी आकर्षक ढंग से सजीवता को दर्शाया जाता है। बड़े-बड़े सेलिब्रिटी में ब्रांड्स को आधार बनाकर की गई फ़ोटोग्राफ़ी, फ़ोटोग्राफ़र की क्रिएटिविटी को गहराई तक सोचने को मज़बूर करती है। कैमरे की क्लिक और डार्क रूम से निकली तस्वीर पलभर में यादगार लम्हों को बयां करने लगती है।
एक छवि में पीले, नारंगी और लाल टोन के स्पेक्ट्रम तस्वीर के मूड को दर्शाते हैं। एक कलाकार की मौलिकता या ऐसे कहे कि हमारी स्वयं के होने का हस्ताक्षर अद्वितीय होता है। यह हमारी पहचान है। हमारी व्यक्तिगत शैली है। मौलिक अभिव्यक्ति हमेशा से ही जीवन को समृद्ध करती है। इसकी अपनी गुणवत्ता होती है और अपने में विशेषताओं को समेटे रहती है। इस विशेषता के कारण ही इसकी अलग पहचान होती है।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
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Shaheed Diwas 2023: 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए
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Shaheed Diwas : 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी थी
हर साल 23 मार्च को भारत शहादत दिवस मनाया जाता है। भारत के तीन वीर सपूतों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे । ये तीनों ही युवाओं के लिए आदर्श और प्रेरणा है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भारत की आजादी के लिए अपनी जान देने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु नाम के तीन युवकों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी। वह 23 वर्ष के थे। इसलिए ,शहीदों को श्रद्धांजलि के रूप में, भारत सरकार ने 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में घोषित किया। लेकिन क्या आपको पता है कि इन तीनों शहीदों की मौत भी अंग्रेजी हुकूमत की एक साजिश थी? भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सभी को 24 मार्च को फाँसी देनी तय हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने एक दिन पहले 23 मार्च को भारत के तीनों वीर पुत्रो को फांसी पर लटका दिया। आखिर इसकी वजह क्या थी? आखिर भगत सिंह और उनके साथियों ने ऐसा क्या अपराध किया था कि उन्हें फांसी की सजा दी गई। भगत सिंह की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन के बारे में कई दिलचस्प बातें।
देश की आजादी के लिए सेंट्रल असेंबली में बम फेंका गया।
8 अप्रैल, 1929 को दो क्रांतिकारियों, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका और ‘साइमन गो बैक’ नारे में भी संदर्भित किया गया था। ��हां कुख्यात आयोग के प्रमुख सर जॉन साइमन मौजूद थे। साइमन कमीशन को भारत में व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था। बम फेंकने के बाद दोनों ने भागने की कोशिश नहीं की और सभा में पर्चे फेंक कर आजादी के नारे लगाते रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। जो पर्चे गिराए उनमें पहला शब्द “नोटिस” था। उसके बाद उनमें पहला वाक्य फ्रेंच शहीद अगस्त वैलां का था। लेकिन दोनों क्रांतिकारियों द्वारा दिया गया प्रमुख नारा ‘’इंकलाब जिंदाबाद’’ था । इस दौरान उन्हें करीब दो साल की सजा हुई।
करीब दो साल की मिली कैद
भगत सिंह करीब दो साल तक जेल में रहे। उन्होंने बहुत सारे क्रांतिकारी लेख लिखे, जिनमें से कुछ ब्रिटिश लोगों के बारे में थे, और अन्य पूंजीपतियों के बारे में थे। जिन्हें वह अपना और देश का दुश्मन मानते थे। उन्होंने कहा कि श्रमिकों का शोषण करने वाला कोई भी व्यक्ति उनका दुश्मन है, चाहे वह व्यक्ति भारतीय ही क्यों न हो।
जेल में भी जारी रखा विरोध
भगत सिंह बहुत बुद्धिमान थे और कई भाषाएँ जानते थे। वह हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी आती जानते थे । उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से बंगाली भी सीखी थी। भगत सिंह अक्सर अपने लेखों में भारतीय समाज में लिपि, जाति और धर्म के कारण आई लोगों के बीच की दूरी के बारे में चिंता और दुख व्यक्त करते थे।
राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की फांसी की तारीख तय की गई
दो साल तक कैद में रहने के बाद, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फाँसी दी जानी थी। हालाँकि, उनकी फाँसी की ख़बर से देश में बहुत हंगामा हुआ और ब्रिटिश सरकार प्रतिक्रिया से डर गई। वह तीनों सपूतों की फांसी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीयों का आक्रोश और विरोध देख अंग्रेज सरकार डर गई थी।
डर गई अंग्रेज सरकार
ब्रिटिश सरकार को इस बात की चिंता थी कि भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की फाँसी के दिन भारतीयों का गुस्सा उबलने की स्थिति में पहुँच जाएगा, और स्थिति और भी बदतर हो सकती है। इसलिए, उन्होंने उसकी फांसी की तारीख और समय को बदलने का फैसला किया।
तय समय से पहले दी भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी
ब्रिटिश सरकार ने जनता के विरोध को देखते हुए 24 मार्च जो फांसी का दिन था उसे 11 घंटे पहले 23 मार्च का दिन कर दिया। इसका पता भगत सिंह को नहीं था। 22 मार्च की रात सभी कैदी मैदान में बैठे थे। तभी वार्डन चरत सिंह आए और बंदियों को अपनी-अपनी कोठरियों में जाने को कहा। कुछ ही समय बाद नाई बरकत की बात कैदियों के कानों में पड़ी कि उस रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है।
23 मार्च 1931 को शाम 7.30 बजे फांसी दे दी जायगी । कहते है कि जब भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन (Reminiscences of Leni) की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। लेकिन जेल के अधिकारियों ने चलने को कहा तो उन्होंने किताब को हवा में उछाला और कहा – ’’ठीक है अब चलो।’’
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 बजकर 33 मिनट पर 23 मार्च 1931 को शाम में लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव एक दूसरे से मिले और उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थामे आजादी का गीत गाया।
”मेरा रँग दे बसन्ती च���ला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग इे बसन्ती चोला।।’’
साथ ही ’इंक़लाब ज़िन्दाबाद’ और ’हिंदुस्तान आजाद हो’ का नारा लगये ।
उनके नारे सुनते ही जेल के कैदी भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। कहा जाता है कि फांसी का फंदा पुराना था लेकिन जिसे फांसी दी गई वह काफी तंदुरुस्त था। मसीद जलाद को फाँसी के लिए लाहौर के पास शाहदरा से बुलाया गया था। भगतसिंह बीच में खङे थे और अगल-बगल में राजगुरु और सुखदेव खङे थे। जब मसीद जल्लाद ने पूछा कि, ’सबसे पहले कौन जाएगा?’
तब सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकाने की सहमति दी। मसीद जल्लाद ने सावधानी से एक-एक करके रस्सियों को खींचा और उनके पैरों के नीचे लगे तख्तों को पैर मारकर हटा दिया। लगभग 1 घंटे तक उनके शव तख्तों से लटकते रहे, उसके बाद उन्हें नीचे उतारा गया और लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट एनएस सोढ़ी द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
तीन क्रांतिकारियों, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का अंतिम संस्कार
ब्रिटिश सरकार की योजना थी इन सबका अंतिम दाह संस्कार जेल में करने की योजना बनाई थी। हालांकि, अधिकारियों को चिंता हुई कि अगर जेल से दाह संस्कार की प्रक्रिया से निकलने वाले धुएं को देखा तो जनता नाराज हो जाएगी। इसलिए, उन्होंने जेल की दीवार को तोड़ने और कैदियों के शवों को जेल के बाहर ट्रकों पर फेंकने का फैसला किया।
इससे पहले ब्रिटिश सरकार ने तय किया था कि भगत सिंह राजगुरु सुखदेव का अंतिम संस्कार रावी नदी के तट पर किया जाएगा, लेकिन उस समय रावी में पानी नहीं था। इसलिए उनके शव को फिरोजपुर के पास सतलुज नदी के किनारे लाया गया। उनके शवों को आग लगाई गई। इसके बारे में जब आस-पास के गाँव के लोगों को पता चल गया, तब ब्रिटिश सैनिक शवों को वहीं छोङकर भाग गये। कहा जाता है कि सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया था।
अगले दिन जब तीनों क्रांतिकारियों की मौत की खबर फैली तो उनके ��म्मान में तीन मील लंबा जुलूस निकाला था। इसको लेकर लोगों ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया ।
फांसी से पहले भगत सिंह ने अपने साथियों को एक पत्र लिखा था।
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
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नगर पंचायत में चोपन रोड पर नाला निर्माण की धीमी गति से स्थानीय लोगों में आक्रोश
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नेशनल चंबल सेंचुरी पर मंडराते संकट के बादल: बाह की जनता में आक्रोश
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एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मो���ी की 'हर घर नल, हर घर जल' योजना पूरे देश में जल संकट दूर करने के लिए चलाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर चंबल के पानी को अन्यत्र ले जाने की खबरों से बाह क्षेत्र के किसानों और आम जनता में गहरी चिंता व्याप्त हो गई है। इस मुद्दे पर प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री राजा अरिदमन सिंह ने कहा है कि यदि बाह क्षेत्र के लिए निर्धारित चंबल का पानी अन्यत्र मोड़ा गया, तो जनता जल संकट से जूझेगी और किसानों की फसलें बर्बाद हो जाएंगी। उन्होंने साफ कहा कि किसी भी हालत में 'राजा महेन्द्र रिपुदमन सिंह चंबल डाल परियोजना' को बंद नहीं होने दिया जाएगा। 1979 से संघर्ष, 1997 में मिली सफलता राजा अरिदमन सिंह ने बताया कि 1979 में उनके पिता राजा महेन्द्र रिपुदमन सिंह ने जब प्रदेश में जनता पार्टी सरकार में मंत्री रहते हुए इस परियोजना को स्वीकृति दिलाई, तब विपक्ष की सरकार ने इसे रोक दिया। 1997 में जब वे मंत्री बने, तो उन्होंने इस परियोजना को फिर से स्वीकृत कराया। तत्कालीन सिंचाई मंत्री ओमप्रकाश जी ने इसमें रुचि ली और सख्त निर्देश देकर इसे पूरा करवाया। तब एक चीफ इंजीनियर को लापरवाही के कारण निलंबित तक कर दिया गया था। मात्र 18 महीनों में यह परियोजना शुरू हो गई, जिससे बाह क्षेत्र को राहत मिली। लेकिन अब इस पानी की धार को अन्यत्र मोड़ने की साजिशें हो रही हैं, जिससे नेशनल चंबल सेंचुरी और बाह क्षेत्र दोनों संकट में आ जाएंगे। राजा अरिदमन सिंह ने जोर देकर कहा कि चंबल में उत्तर प्रदेश का 10% जल हिस्सा है, जिसमें से केवल 450 क्यूसेक पानी बाह क्षेत्र के लिए सुरक्षित किया गया है। अगर इसे अन्यत्र भेजा गया, तो पूरा बाह क्षेत्र पानी के लिए तरस जाएगा। चंबल सेंचुरी पर मंडराता संकट चंबल सेंचुरी में पहले से ही जल स्तर कम होता जा रहा है। लिफ्ट इरीगेशन प्रणाली के जरिए इस पानी का उपयोग बाह क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल के लिए किया जाता है। यदि यह योजना बंद हो गई, तो भूगर्भ जल स्तर गिर जाएगा और किसान त्रस्त हो जाएंगे। सेंट्रल वॉटर कमीशन में भी यह मुद्दा उठाया जाएगा ताकि जल साझेदारी के अधिकारों की रक्षा हो सके। बरसात में लिफ्ट इरीगेशन संभव नहीं राजा अरिदमन सिंह ने बताया कि बरसात के मौसम में चंबल का पानी मटमैला होने से पंप खराब हो जाते हैं और गर्मियों में जल स्तर इतना नीचे चला जाता है कि लिफ्ट इरीगेशन प्रणाली काम नहीं कर पाती। अप्रैल महीने में जल स्तर 110-111 मीटर तक गिर जाता है और 110.85 मीटर से नीचे जाने पर इसे संचालित कर��ा तकनीकी रूप से संभव नहीं होता। ऐसे में यदि अतिरिक्त जल निकासी की गई, तो पूरा इलाका सूखे की चपेट में आ जाएगा। दो बार के सांसद की जिम्मेदारी फतेहपुर सीकरी से लगातार दो बार सांसद बने राजकुमार चाहर से भी राजा अरिदमन सिंह ने अपील की कि वे इस परियोजना की रक्षा करें। यदि चंबल का पानी अन्यत्र चला गया, तो न केवल सेंचुरी बल्कि बाह की जनता भी जल संकट में फंस जाएगी। तालाबों के पुनर्जीवन के लिए प्रयास जारी राजा अरिदमन सिंह ने बताया कि वे पिछले 5-6 वर्षों से आगरा क्षेत्र में 2825 तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए 13वें, 14वें और 15वें वित्त आयोग के साथ-साथ मनरेगा योजनाओं का भी उपयोग किया गया है। उन्होंने सरकार द्वारा बनाए जा रहे 'अमृत सरोवर' कार्यक्रम की भी सराहना की। बाह क्षेत्र के नागरिकों और किसानों में इस मुद्दे को लेकर आक्रोश है। अगर चंबल का पानी अन्यत्र भेजा गया, तो सड़कों पर विरोध प्रदर्शन से इनकार नहीं किया जा सकता। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर क्या कदम उठाता है। Read the full article
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नाबालिग हिन्दू लड़कियों को माचिस की डिब्बी जितना मोबाइल देकर फंसा रहे मुस्लिम लड़के, जानें कैसे हुआ खुलासा
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"चॉकलेट चुराने के आरोप में 13 साल की बाल नौकरानी इकरा की मौत, पाकिस्तान में भड़का आक्रोश"
“पंजाब प्रांत में गिरफ्तार हुए नियोक्ता, सोशल मीडिया पर #Justiceforlqra की मांग घटना का संक्षिप्त विवरण पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में 13 वर्षीय नौकरानी इकरा की मौत ने देशभर में गुस्सा और बहस छेड़ दी है। इकरा पर उसके नियोक्ता द्वारा चॉकलेट चुराने का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद उसे इतना प्रताड़ित किया गया कि बुधवार को अस्पताल में उसकी मौत हो गई। पुलिस ने नियोक्ता दंपत्ति समेत तीन लोगों को…
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Jamshedpur aissf protest - अमेरिका से अप्रवासी भारतीयों को अपमानजनक तरीके से भेजे जाने के खिलाफ फेडरेशन में उबाल, साकची में किया विरोध प्रदर्शन
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छत्तीसगढ़ क्रेडा विवाद: न्याय मांगने वालों को निलंबन की चेतावनी, कर्मचारियों में आक्रोश
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ताड़ीघाट रजवाहा के ओवरफ्लो से फसलें जलमग्न, ग्रामीणों ने की मुआवजे की मांग
जमानिया। ताड़ीघाट रजवाहा के ओवरफ्लो होने से डेढ़गावां गांव में किसानों की 50 बीघे से अधिक फसल जलमग्न हो गई, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश व्याप्त है। सिंचाई विभाग की लापरवाही से हुए इस नुकसान को देखते हुए अधिशासी अभियंता ने चार सदस्यीय अवर अभियंताओं की एक टीम गठित कर 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। निर्देश के तहत अवर अभियंताओं की टीम शनिवार को डेढ़गावां गांव पहुंची और ताड़ीघाट…
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