हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
~ फैज़ अहमद फ़ैज़
57 notes
·
View notes
वो शख़्स!
दिलों में हर वक्त चलती सुगबुगाहट जाने क्यों बेचैनी सी भरती है
ख़ुशियाँ जो बयाँ कर सके उस मुस्कराहट पर दुनियाँ ही मरती है
ला-फ़ानी होने की फ़िराक़ में जीना ही भूल गया है हर शख़्स यहाँ
आब-ए-हयात पाने की चाहत में वो मारा फिरता है बस यहाँ वहाँ!
कोई समन्दर में ढूँढता है इसे तो कोई सोचता है सुकून में मिलेगा
लगता तो नहीं कोई आब-ए-हयात उसका दिल ख़ुशियों से भरेगा!
दर्द-ओ-ग़म की मारी दुनिय��ँ में हर तरफ़ बस ख़ौफ़ का साया है
हर शब फ़िक्र में सोती है दुनियाँ हर दिल ज़ख़्मों से भर आया है!
जाने क्यों नाउम्मीदी का आलम हर तरफ ही फैला हुआ है यहाँ
चाहे टूटने पे रोती हो मगर दुनियाँ ख़्बाव बुनने से थकती है कहाँ!
ज़ुबान भी जाने क्यों ज़हर उगलने को हर दम ही आमादा रहती है
ना-अहल रुकती नहीं नफ़रतों नालों की मानिंद दिलों में बहती है!
मुस्कान भरे चेहरों के पीछे छुपी बेताबी कौन जाने क्या कहती है
हँसी में छुपी आँसुओं की लड़ी बारिश के इंतज़ार में क्यों रहती है!
12 notes
·
View notes
"फ़र्ज़ करो" - इब्न-ए-इंशा
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें खुश करने के ढूंढे हम ने बहाने हों फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सच-मुच के मय-ख़ाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग बजोग का हम ने ढोंग रचाया हो फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने 'हू' बस्ती बस्ती सहरा सहरा लाखों करें दिवाने 'हू'
जोगी भी जो नगर नगर में मारे मारे फिरते हैं कासा लिए भबूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं
शाइ'र भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं बंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
इन में सच्चे मोती भी हैं, इन में कंकर पत्थर भी इन में उथले पानी भी हैं, इन में गहरे सागर भी
गोरी देख के आगे बढ़ना सब का झूटा सच्चा 'हू' डूबने वाली डूब गई वो घड़ा था जिस का कच्चा 'हू'
2 notes
·
View notes
Free tree speak काव्यस्यात्मा 1344.
नव वर्ष
नृत्य की सदी हो,
प्रेम की बहती नदी हो
ज़र्रे-ज़र्रे ने दुआएँ दी हो
गीत-संगीत में बंदगी हो।
ज़र्द रिश्ता शीतल शजर हो,
ज़मीं पर ख़ुशनुमा मंज़र हो
खिला-खिला हर चेहरा हो
हर आशियाँ अहल-ए-नज़र हो।
चारों ओर रौशन चराग़ाँ हो,
क़दम मंज़िल तक फ़रोज़ाँ हो।
सर-ए-शाम उजाले जश्न मनाए यहाँ
क़ामयाबी बे-हिसाब अरमाँ मेहमाँ हो।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ:
ज़र्रे-ज़र्रे : कण-कण
ज़र्द : पीले रंग का
शजर : वृक्ष
मंज़र : दृश्य, नज़ारा
अहल-ए-नज़र : अंतर्दृष्टि, सत्य प्रेमी
सर-ए-शाम : सुबह से शाम
चराग़ाँ: दीपमाला
फ़रोज़ाँ : रौशन, चमकदार
अरमाँ: इच्छा, ख़्वाहिश
मेहमाँ : मेहमान
3 notes
·
View notes
Jamshedpur eid miladunnabi : सोमवार 16 सितंबर को मनाया जाएगा जश्न ए ईद मिलादुन्नबी, उसी दिन मानगो गांधी मैदान से निकलेगा जुलूस ए मुहम्मदी
जमशेदपुर : आगामी सोमवार, 16 सितंबर को जश्न ए ईद मिलादुन्नबी हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा. इसी दिन 16वां संयुक्त जुलूस ए मोहम्मदी का आयोजन भी किया जायेगा. इस अवसर पर मानगो गांधी मैदान से विशाल जुलूस निकाला जाएगा, जो साकची आमबगान से होते हुए घातकीडीह सेंटर मैदान में पहुंच कर संपन्न होगा. (नीचे भी पढ़ें)
मदरसा फैजुलउलूम के हॉल में तंजीम अहल ए सुन्नत व जमात की आयोजित एक अहम बैठक हुई, जिसकी मुफ्ती…
0 notes
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके,
तुम ने हमें भुला दिया हम न तुम्हें भुला सके,
तुम ही न सुन सके अगर क़िस्सा-ए-ग़म सुनेगा कौन?
किस की ज़बाँ खुलेगी फिर? हम न अगर सुना सके,
होश में आ चुके थे हम जोश में आ चुके थे हम,
बज़्म का रंग देख कर सर न मगर उठा सके,
रौनक़-ए-बज़्म बन गए लब पे हिकायतें रहीं,
दिल में शिकायतें रहीं लब न मगर हिला सके,
शौक़-ए-विसाल है यहाँ लब पे सवाल है यहाँ,
किस की मजाल है यहाँ हम से नज़र मिला सके,
ऐसा हो कोई नामा-बर बात पे कान धर सके,
सुन के यक़ीन कर सके जा के उन्हें सुना सके,
इज्ज़ से और बढ़ गई बरहमी-ए-मिज़ाज-ए-दोस्त,
अब वो करे इलाज-ए-दोस्त जिस की समझ में आ सके,
अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल,
कौन तिरी तरह 'हफ़ीज़' दर्द के गीत गा सके।
- हफ़ीज़ जलंधरी
क़िस्सा-ए-ग़म - Story of sorrows
बज़्म - Party,Mehfil
रौनक़-ए-बज़्म - Splendor of the Party
हिकायतें - Story
शिकायतें - Complaint
शौक़-ए-विसाल - Pleasure of union
नामा-बर - Bearer of a story or note
इज्ज़ - Helplessness
बरहमी-ए-मिज़ाज-ए-दोस्त - Tempered nature of beloved
इलाज-ए-दोस्त - Cure of beloved
अहल-ए-ज़बाँ - Native speakers
अहल-ए-दिल - People with loving heart
0 notes
सियासि शख्सियत की सच्चाई
डंका बजाते बजाते वह लंका लगा गया
एक शख्स मे में करते करते देश लूट गया।
आओ दिखाता हूं सच्चाई अपने मुल्क का
नफरत बेचते बेचते मुल्क फरोख्त कर गया।
लोग कहते हैं उसे बादशाह हिंदू दिलों का
कैसा बादशाह जो हिंदुओं में डर भर गया।
कितना ना अहल दौर ए हाजिर का हुक्मरान है
पूरे मुल्क में मंहगाई बेरोजगारी बांट गया।
लाख कहो उसको मर्दे आहन या कुछ और
था कल नफरती आज पूरा मुल्क नफरती बना गया।
View On WordPress
0 notes
फ़र्ज़ करो- Ibn-e-Insha
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूँढे हम ने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सच-मुच के मय-ख़ाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग बजोग का हम ने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने 'हू'
बस्ती बस्ती सहरा सहरा लाखों करें दिवाने 'हू'
जोगी भी जो नगर नगर में मारे मारे फिरते हैं
कासा लिए भबूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं
शाइ'र भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं
बंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
इन में सच्चे मोती भी हैं, इन में कंकर पत्थर भी
इन में उथले पानी भी हैं, इन में गहरे सागर भी
गोरी देख के आगे बढ़ना सब का झूटा सच्चा 'हू'
डूबने वाली डूब गई वो घड़ा था जिस का कच्चा 'हू'
0 notes
सितम के दौर में हम अहल-ए-दिल ही काम आए
ज़बाँ पे नाज़ था जिन को वो बे-ज़बाँ निकले ........
- साहिर लुधियानवी
( अहल-ए-दिल = प्यार करने वाले )
0 notes
बयान
जब आंखों से ज़ुल्फ़ों के पहरे को हटाएगी
थोड़ी सी चुराई नज़रें, थोड़ी तो मिलाएगी
उस खुदा की बरकत है तू
मुरझाए गुलज़ार भी खिल उठेंगे
जब इन फूल जैसे होंठों से मुस्कुराएगी
इतने तो लोगों को ख्याल भी नहीं आते
जितना तू मेरे ख्यालों में आती है
अपने ही ख्यालों में खोया पाएगी
जब भी इस अहल-ए-वफ़ा के दिल पे खटखटाएगी
तेरे साथ पल प्यार के बिताना चाहता हूं
पर भीख समझ के ना देना
वो मुलाकातें हमारी अतम कर जाएगी
जब तू भी मिलने की थोड़ी बेसबरी सी दिखाएगी
कितनी हुस्न-ओ-हसीन है तू
कभी मेरे लफ़्ज़ों की गहराई में तो डूब
मुझसे हो न हो
तुझे खुदसे मोहब्बत हो जाएगी
0 notes
हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है
हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है
किसी ने जिस्म किसी ने ज़मीर बेचा है,
नहीं रही बशीरत की ख़ूबी इंसा में
आसास ए अनस का सब ने ख़मीर बेचा है,
मज़ाक उड़ा मज़हब का अहल ए इल्म ने
जब से आयतों को सर ए बाज़ार बेचा है,
इरम भी न मिली जिस के हसूल की खातिर
समझ कर ईमां को सब ने हक़ीर बेचा है,
बस एक ओहदे की ख़ातिर अमीर ए लश्कर ने
मुखालफिन को एक एक तीर बेचा है,
बुजुर्ग के हुआ फैज़ान का यहाँ सौदा
कि पैरोकारों ने अपना ही पीर…
View On WordPress
0 notes
• ऐसी ही बेहतरीन शायरी के लिए हमारे Page @jazbaat.e.mann को अभी Follow करें। . 'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है ब-क़ौल उस आँख के दुनिया बदल तो सकती है तिरे ख़याल को कुछ चुप सी लग गई वर्ना कहानियों से शब-ए-ग़म बहल तो सकती है उरूस-ए-दहर चले खा के ठोकरें लेकिन क़दम क़दम पे जवानी उबल तो सकती है पलट पड़े न कहीं उस निगाह का जादू कि डूब कर ये छुरी कुछ उछल तो सकती है बुझे हुए नहीं इतने बुझे हुए दिल भी फ़सुर्दगी में तबीअ'त मचल तो सकती है अगर तू चाहे तो ग़म वाले शादमाँ हो जाएँ निगाह-ए-यार ये हसरत निकल तो सकती है अब इतनी बंद नहीं ग़म-कदों की भी राहें हवा-ए-कूच-ए-महबूब चल तो सकती है कड़े हैं कोस बहुत मंज़िल-ए-मोहब्बत के मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है हयात लौ तह-ए-दामान-ए-मर्ग दे उट्ठी हवा की राह में ये शम्अ जल तो सकती है कुछ और मस्लहत-ए-जज़्ब-ए-इश्क़ है वर्ना किसी से छुट के तबीअ'त सँभल तो सकती है अज़ल से सोई है तक़दीर-ए-इश्क़ मौत की नींद अगर जगाइए करवट बदल तो सकती है ग़म-ए-ज़माना-ओ-सोज़-ए-निहाँ की आँच तो दे अगर न टूटे ये ज़ंजीर गल तो सकती है शरीक-ए-शर्म-ओ-हया कुछ है बद-गुमानी-ए-हुस्न नज़र उठा ये झिजक सी निकल तो सकती है कभी वो मिल न सकेगी मैं ये नहीं कहता वो आँख आँख में पड़ कर बदल तो सकती है बदलता जाए ग़म-ए-रोज़गार का मरकज़ ये चाल गर्दिश-ए-अय्याम चल तो सकती है वो बे-नियाज़ सही दिल मता-ए-हेच सही मगर किसी की जवानी मचल तो सकती है तिरी निगाह सहारा न दे तो बात है और कि गिरते गिरते भी दुनिया सँभल तो सकती है ये ज़ोर-ओ-शोर सलामत तिरी जवानी भी ब-क़ौल इश्क़ के साँचे में ढल तो सकती है सुना है बर्फ़ के टुकड़े हैं दिल हसीनों के कुछ आँच पा के ये चाँदी पिघल तो सकती है हँसी हँसी में लहू थूकते हैं दिल वाले ये सर-ज़मीन मगर ला'ल उगल तो सकती है जो तू ने तर्क-ए-मोहब्बत को अहल-ए-दिल से कहा हज़ार नर्म हो ये बात खल तो सकती है अरे वो मौत हो या ज़िंदगी मोहब्बत पर न कुछ सही कफ़-ए-अफ़सोस मल तो सकती है हैं जिस के बल पे खड़े सरकशों को वो धरती अगर कुचल नहीं सकती निगल तो सकती है। . . Share this in Your Story 🤗. Tag someone if you Relate. . . For more.... Follow @jazbaat.e.mann Follow @jazbaat.e.mann Follow @jazbaat.e.mann Follow @jazbaat.e.mann . . Like | Comment | Share | Save Turn all your Notifications On. Follow for Relatable Content. . . #jazbaat #jazbaatemann ------------------------------------------------------ (at Kanpur, Uttar Pradesh) https://www.instagram.com/p/CmrGKaWp00N/?igshid=NGJjMDIxMWI=
0 notes
26/11 हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद को शियाओं ने की फांसी देने की मांग
26/11 हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद को शियाओं ने की फांसी देने की मांग
हाफिज सईद
ऑल इंडिया शिया हुसैनी फंड के सदस्यों ने 26/11 मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को न्याय देने की मांग की है। यहां आयोजित अहल-ए-बत सम्मेलन में शामिल हुए देश के विभिन्न हिस्सों के शिया धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों ने एक स्वर से आतंकवाद की निंदा करते हुए कहा कि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन भारत और शिया समुदाय दोनों के दुश्मन हैं।
सम्मेलन में शामिल होने से मुंबई से आए मौलाना जहीर अब्बास ने…
View On WordPress
0 notes
आमिना के बेटे अब्दुल्लाह के लाल,मोहसिन ए इंसानियत, राहमतुललिल आलमीन, नबी ए आखिरूज़ज़्मा #हज़रत_मोहम्मद_स0अ0व0 की #यौमे_पैदाइश की #अहले_मुल्क़ को #बिलखुसूस #शीराज़_ए_हिन्द_जौनपुर की ज़िंदादिल अवाम को दिली मुबारकबाद https://www.instagram.com/p/B4mlnlyHaAY/?igshid=242ujqj3m4nb
0 notes
Jamshedpur meeting on gyanvapi and haldwani issue : ज्ञानवापी मस्जिद, हल्द्वानी एवं मुफ्ती सलमान अजहरी की गिरफ्तारी को लेकर 23 को होगी महासभा, तंजीम ए अहल ए सुन्नत व ऑल इंडिया माइनॉरिटी सोशल वेलफेयर फ्रंट गांधी मैदान में करेंगे आयोजन
जमशेदपुर : तंजीम ए अहल ए सुन्नत एवं ऑल इंडिया माइनॉरिटी सोशल वेलफेयर फ्रंट मानगो की ओर से आगामी 23 फरवरी को ज्ञानवापी मस्जिद, उत्तराखंड के हल्द्वानी के मामले एवं मुफ्ती सलमान अजहरी की गिरफ्तारी के मुद्दों को लेकर एक सभा आयोजित करेंगे. मानगो में आयोजित एक बैठक में उक्त निर्णय लिया गया. मानगो गांधी मैदान में संध्या 4 बजे से आयोजित होनेवाली उक्त सभा की तैयारियों को लेकर ऑल इंडिया माइनॉरिटी सोशल…
View On WordPress
0 notes
यादों पर आधारित (कविता)
हम ने समंदर को दरिया में सिमटते देखा है,
मौजों के दरमियान कश्ती को चलते देखा है।
देखा है हम ने जुल्म व तशददूद का सैलाब,
जालिमों को काबा में अमान मांगते देखा है।
किस ने सोचा था खत्म होगा जुल्म फिरौन
हर जालिम के खिलाफ बंदा खुदा को देखा है।
हैसियत देख कर न कर निकाह अपने बेटों का,
खजाना ए कारून को तबाह होते देखा है।
दरस ए कुरान जरूरी है जिंदगी में,
अहल वा अयाल को इम्तेहान बनते देखा है।
View On WordPress
0 notes