#अहल
Explore tagged Tumblr posts
oyeevarnika · 1 year ago
Text
Tumblr media Tumblr media Tumblr media
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
~ फैज़ अहमद फ़ैज़
59 notes · View notes
deepjams4 · 2 years ago
Text
वो शख़्स!
दिलों में हर वक्त चलती सुगबुगाहट जाने क्यों बेचैनी सी भरती है
ख़ुशियाँ जो बयाँ कर सके उस मुस्कराहट पर दुनियाँ ही मरती है
ला-फ़ानी होने की फ़िराक़ में जीना ही भूल गया है हर शख़्स यहाँ
आब-ए-हयात पाने की चाहत में वो मारा फिरता है बस यहाँ वहाँ!
कोई समन्दर में ढूँढता है इसे तो कोई सोचता है सुकून में मिलेगा
लगता तो नहीं कोई आब-ए-हयात उसका दिल ख़ुशियों से भरेगा!
दर्द-ओ-ग़म की मारी दुनियाँ में हर ���रफ़ बस ख़ौफ़ का साया है
हर शब फ़िक्र में सोती है दुनियाँ हर दिल ज़ख़्मों से भर आया है!
जाने क्यों नाउम्मीदी का आलम हर तरफ ही फैला हुआ है यहाँ
चाहे टूटने पे रोती हो मगर दुनियाँ ख़्बाव बुनने से थकती है कहाँ!
ज़ुबान भी जाने क्यों ज़हर उगलने को हर दम ही आमादा रहती है
ना-अहल रुकती नहीं नफ़रतों नालों की मानिंद दिलों में बहती है!
मुस्कान भरे चेहरों के पीछे छुपी बेताबी कौन जाने क्या कहती है
हँ��ी में छुपी आँसुओं की लड़ी बारिश के इंतज़ार में क्यों रहती है!
12 notes · View notes
inevitable-trash · 10 months ago
Text
Tumblr media
"फ़र्ज़ करो" - इब्न-ए-इंशा
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें खुश करने के ढूंढे हम ने बहाने हों फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सच-मुच के मय-ख़ाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग बजोग का हम ने ढोंग रचाया हो फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने 'हू' बस्ती बस्ती सहरा सहरा लाखों करें दिवाने 'हू'
जोगी भी जो नगर नगर में मारे मारे फिरते हैं कासा लिए भबूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं
शाइ'र भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं बंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
इन में सच्चे मोती भी हैं, इन में कंकर पत्थर भी इन में उथले पानी भी हैं, इन में गहरे सागर भी
गोरी देख के आगे बढ़ना सब का झूटा सच्चा 'हू' डूबने वाली डूब गई वो घड़ा था जिस का कच्चा 'हू'
2 notes · View notes
sharpbharat · 4 months ago
Text
Jamshedpur eid miladunnabi : सोमवार 16 सितंबर को मनाया जाएगा जश्न ए ईद मिलादुन्नबी, उसी दिन मानगो गांधी मैदान से निकलेगा जुलूस ए मुहम्मदी
जमशेदपुर : आगामी सोमवार, 16 सितंबर को जश्न ए ईद मिलादुन्नबी हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा. इसी दिन 16वां संयुक्त जुलूस ए मोहम्मदी का आयोजन भी किया जायेगा. इस अवसर पर मानगो गांधी मैदान से विशाल जुलूस निकाला जाएगा, जो साकची आमबगान से होते हुए घातकीडीह सेंटर मैदान में पहुंच कर संपन्न होगा. (नीचे भी पढ़ें) मदरसा फैजुलउलूम के हॉल में तंजीम अहल ए सुन्नत व जमात की आयोजित एक अहम बैठक हुई, जिसकी मुफ्ती…
0 notes
purohitkeyur · 4 months ago
Text
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके,
तुम ने हमें भुला दिया हम न तुम्हें भुला सके,
तुम ही न सुन सके अगर क़िस्सा-ए-ग़म सुनेगा कौन?
किस की ज़बाँ खुलेगी फिर? हम न अगर सुना सके,
होश में आ चुके थे हम जोश में आ चुके थे हम,
बज़्म का रंग देख कर सर न मगर उठा सके,
रौनक़-ए-बज़्म बन गए लब पे हिकायतें रहीं,
दिल में शिकायतें रहीं लब न मगर हिला सके,
शौक़-ए-विसाल है यहाँ लब पे सवाल है यहाँ,
किस की मजाल है यहाँ हम से नज़र मिला सके,
ऐसा हो कोई नामा-बर बात पे कान धर सके,
सुन के यक़ीन कर सके जा के उन्हें सुना सके,
इज्ज़ से और बढ़ गई बरहमी-ए-मिज़ाज-ए-दोस्त,
अब वो करे इलाज-ए-दोस्त जिस की समझ में आ सके,
अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल,
कौन तिरी तरह 'हफ़ीज़' दर्द के गीत गा सके।
- हफ़ीज़ जलंधरी
क़िस्सा-ए-ग़म - Story of sorrows
बज़्म - Party,Mehfil
रौनक़-ए-बज़्म - Splendor of the Party
हिकायतें - Story
शिकायतें - Complaint
शौक़-ए-विसाल - Pleasure of union
नामा-बर - Bearer of a story or note
इज्ज़ - Helplessness
बरहमी-ए-मिज़ाज-ए-दोस्त - Tempered nature of beloved
इलाज-ए-दोस्त - Cure of beloved
अहल-ए-ज़बाँ - Native speakers
अहल-ए-दिल - People with loving heart
0 notes
beardedbluebirdcheesecake · 9 months ago
Text
सियासि शख्सियत की सच्चाई
डंका बजाते बजाते वह लंका लगा गया एक शख्स मे में करते करते देश लूट गया। आओ  दिखाता हूं सच्चाई अपने मुल्क का नफरत  बेचते बेचते मुल्क फरोख्त कर गया। लोग कहते हैं उसे  बादशाह हिंदू दिलों का कैसा बादशाह जो हिंदुओं में डर भर गया। कितना ना अहल दौर ए हाजिर का हुक्मरान है पूरे मुल्क में मंहगाई बेरोजगारी बांट  गया। लाख कहो उसको मर्दे आहन या कुछ और था कल नफरती आज पूरा मुल्क नफरती  बना गया।
View On WordPress
0 notes
pacificleo · 11 months ago
Text
फ़र्ज़ करो- Ibn-e-Insha
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूँढे हम ने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सच-मुच के मय-ख़ाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग बजोग का हम ने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने 'हू'
बस्ती बस्ती सहरा सहरा लाखों करें दिवाने 'हू'
जोगी भी जो नगर नगर में मारे मारे फिरते हैं
कासा लिए भबूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं
शाइ'र भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं
बंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
इन में सच्चे मोती भी हैं, इन में कंकर पत्थर भी
इन में उथले पानी भी हैं, इन में गहरे सागर भी
गोरी देख के आगे बढ़ना सब का झूटा सच्चा 'हू'
डूबने वाली डूब गई वो घड़ा था जिस का कच्चा 'हू'
0 notes
casualflowerglitter · 1 year ago
Text
सितम के दौर में हम अहल-ए-दिल ही काम आए
ज़बाँ पे नाज़ था जिन को वो बे-ज़बाँ निकले ........
- साहिर लुधियानवी
( अहल-ए-दिल = प्यार करने वाले )
0 notes
mendakpoetry · 2 years ago
Text
बयान
जब आंखों से ज़ुल्फ़ों के पहरे को हटाएगी थोड़ी सी चुराई नज़रें, थोड़ी तो मिलाएगी उस खुदा की बरकत है तू मुरझाए गुलज़ार भी खिल उठेंगे जब इन ��ूल जैसे होंठों से मुस्कुराएगी इतने तो लोगों को ख्याल भी नहीं आते जितना तू मेरे ख्यालों में आती है अपने ही ख्यालों में खोया पाएगी जब भी इस अहल-ए-वफ़ा के दिल पे खटखटाएगी तेरे साथ पल प्यार के बिताना चाहता हूं पर भीख समझ के ना देना वो मुलाकातें हमारी अतम कर जाएगी जब तू भी मिलने की थोड़ी बेसबरी सी दिखाएगी कितनी हुस्न-ओ-हसीन है तू कभी मेरे लफ़्ज़ों की गहराई में तो डूब मुझसे हो न हो तुझे खुदसे मोहब्बत हो जाएगी
Tumblr media
0 notes
bazmeshayari · 9 months ago
Text
हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है
हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है किसी ने जिस्म किसी ने ज़मीर बेचा है, नहीं रही बशीरत की ख़ूबी इंसा में आसास ए अनस का सब ने ख़मीर बेचा है, मज़ाक उड़ा मज़हब का अहल ए इल्म ने जब से आयतों को सर ए बाज़ार बेचा है, इरम भी न मिली जिस के हसूल की खातिर समझ कर ईमां को सब ने हक़ीर बेचा है, बस एक ओहदे की ख़ातिर अमीर ए लश्कर ने मुखालफिन को एक एक तीर बेचा है, बुजुर्ग के हुआ फैज़ान का यहाँ सौदा कि पैरोकारों ने अपना ही पीर…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
alhabibstmblrworld · 5 years ago
Photo
Tumblr media
आमिना के बेटे अब्दुल्लाह के लाल,मोहसिन ए इंसानियत, राहमतुललिल आलमीन, नबी ए आखिरूज़ज़्मा #हज़रत_मोहम्मद_स0अ0व0 की #यौमे_पैदाइश की #अहले_मुल्क़ को #बिलखुसूस #शीराज़_ए_हिन्द_जौनपुर की ज़िंदादिल अवाम को दिली मुबारकबाद https://www.instagram.com/p/B4mlnlyHaAY/?igshid=242ujqj3m4nb
0 notes
kaminimohan · 2 years ago
Text
Free tree speak काव्यस्यात्मा 1344.
Tumblr media
नव वर्ष 
नृत्य की सदी हो,
प्रेम की बहती नदी हो
ज़र्रे-ज़र्रे ने दुआएँ दी हो
गीत-संगीत में बंदगी हो। 
ज़र्द रिश्ता शीतल शजर हो,
ज़मीं पर ख़ुशनुमा मंज़र हो
खिला-खिला हर चेहरा हो
हर आशियाँ अहल-ए-नज़र हो।
चारों ओर रौशन चराग़ाँ हो,
क़दम मंज़िल तक फ़रोज़ाँ हो।
सर-ए-शाम उजाले जश्न मनाए यहाँ 
क़ामयाबी बे-हिसाब अरमाँ मेहमाँ हो।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ:
ज़र्रे-ज़र्रे : कण-कण
ज़र्द : पीले रंग का
शजर : वृक्ष
मंज़र : दृश्य, नज़ारा
अहल-ए-नज़र : अंतर्दृष्टि, सत्य प्रेमी
सर-ए-शाम : सुबह से शाम
चराग़ाँ: दीपमाला
फ़रोज़ाँ : रौशन, चमकदार 
अरमाँ: इच्छा, ख़्वाहिश
मेहमाँ : मेहमान
3 notes · View notes
sharpbharat · 11 months ago
Text
Jamshedpur meeting on gyanvapi and haldwani issue : ज्ञानवापी मस्जिद, हल्द्वानी एवं मुफ्ती सलमान अजहरी की गिरफ्तारी को लेकर 23 को होगी महासभा, तंजीम ए अहल ए सुन्नत व ऑल इंडिया माइनॉरिटी सोशल वेलफेयर फ्रंट गांधी मैदान में करेंगे आयोजन
जमशेदपुर : तंजीम ए अहल ए सुन्नत एवं ऑल इंडिया माइनॉरिटी सोशल वेलफेयर फ्रंट मानगो की ओर से आगामी 23 फरवरी को ज्ञानवापी मस्जिद, उत्तराखंड के हल्द्वानी के मामले एवं मुफ्ती सलमान अजहरी की गिरफ्तारी के मुद्दों को लेकर एक सभा आयोजित करेंगे. मानगो में आयोजित एक बैठक में उक्त निर्णय लिया गया. मानगो गांधी मैदान में संध्या 4 बजे से आयोजित होनेवाली उक्त सभा की तैयारियों को लेकर ऑल इंडिया माइनॉरिटी सोशल…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
Text
यादों पर आधारित (कविता)
हम ने समंदर को दरिया में सिमटते देखा है, मौजों के दरमियान कश्ती को चलते देखा है। देखा है हम ने जुल्म व तशददूद का सैलाब, जालिमों को काबा में अमान मांगते देखा है। किस ने सोचा था खत्म होगा जुल्म फिरौन हर जालिम के खिलाफ बंदा खुदा को देखा है। हैसियत देख कर न कर निकाह अपने बेटों का, खजाना ए कारून को तबाह होते देखा है। दरस ए कुरान जरूरी है जिंदगी में, अहल वा अयाल को इम्तेहान बनते देखा है।
View On WordPress
0 notes
professorpoet · 3 years ago
Text
उस पाक रूह को एक दफा, तू सूनेपन में याद कर
उसका क्या हुआ था हश्र, जब तू रोया था दहाड़ कर !
एक आँसू तक ना सह सकी वो कौन थी ना कह सकी
पर जो भी थी वो या इलाही, अप्सरा से कम ना थी !!
ज़ार ज़ार आँखों से छलकती उसकी बेबसी
क़रार बेक़रारी की, वो काली रात की शशि !
इस दौर-ए-दर्द में मेरा, वो महज़बीं, सुकून थी
दफनाये दिल में आरज़ू, वो ग़मज़दा सी कौन थी ?
इतनी दया इतनी नरम, एक अहल-ए-दिल होकर भला
हर दर्द सह के  मुसकुरा के मौन थी, वो कौन थी?
इंसान थी पर हरकतें भगवान वाली थी सभी
नैनों में प्यार भरके तनहा थी खड़ा वो कौन थी?
आँख ना लगे जो क��ई रात, वो जुगनू को पुकारती
जो सोऊँ मैं मिज़ाज़ भर, वो ख्वाबों में दुलारती !
याद है मुझे के एक रात, मैं प्यासा सोने को चला
आँचल में दरिया भरके दौड़ी थी भला वो कौन थी?
बूँद भर कठोरपन, ब्रह्माण्ड भर वो दे खुशी
साँसें लगा दे दाव पे, के संतान रह सके सुखी !
दिल में दबाये हसरतें, बेजान थी पर मौन थी
करा के सुख से रुबरू, जो दुख सही वो कौन थी?
इस बे-रहम इस बे-कदर, भरम भरे जहान में
मुझे सजाये दुल्हन सी, खुद सादगी में कौन थी?
ना मैं प्रचंड आसमाँ, ना सूर्य से थी दिल्लगी
फिर इर्द-गिर्द घूमती वो चंद्रमा सी कौन थी?
ना कोई हुश्न-ए-ताम थी, रंग-रूप से ना आम थी
रुखसार पे शिकन लिए, मुर्शद मेरा वो कौन थी?
ना धूप थी ना छाँव थी, वो हर पहर की नूर थी
शिकस्तगी में जीत सी, खुदा मेरा वो कौन थी?
ममता की मिशाल थी, बेख़याली में एक ख़याल थी
ना थी पढ़ी लिखी, पर आंखें पढ़ने में कमाल थी !
हल्की मुस्कानों के आड़ में, वो काम ऐसा करती थी
जब तक बुझे ना  दुख मेरा, वो आग जैसी जलती थी !
वो जिस्म थी वो खून थी वो पीर में सुकून थी
एक कहकशाँ महरूम सी, ऐ रब मेरे वो कौन थी?
वो भूख-प्यास भूल के, हर एक सीमायें तोड़ के
कहाँ गई वो आँसू को आंखों में तनहा छोड के ?
सौ हमदर्द आस पास था, कोई उस सा मिल सका नहीं
जो ना मिला वो ना मिला, पर जो मिला वो कौन थी?
वो कहती थी के एक दिन, ये दुनिया छोड़ दूँगी मैं
ये जिस्म हो ना हो मगर, रूहानी प्यार दूँगी मैं !
मुझको बनाया जिसने मौला, कतरा-कतरा जोड़ के
खुद सितारा बन गयी, अपने चाँद को तनहा छोड़ के !
चलना सिखाया ज़िन्दगी में, खुद गिर रही पर मौन थी
जो चल रहा वो मैं रहा, जो गिर गयी वो कौन थी ?
बस चार दिन की चाँदनी, दिखा के वो चली गई
ना जल सकी ना बुझ सकी, वो आग थी या मोम थी?
ना बह सकी ना सो सकी, वो अश्क़ थी या नैन थी?
जो थम गया, तूफ़ान था, जो मचल रही  वो कौन थी?
उसका बे-हिसाब एहसानों का, खुदा भी कर्ज़दार था
करके सैकड़ों एहसान, नूर-ए-जहान सी वो कौन थी?
जो आहिस्ता से पूछा रब से, तो बतलाया के वो ' माँ ' ही थी
जो इस मृत्युलोक में जीजीविशा सी, ममतामयी महान थी !!❤
_ 🖋
4 notes · View notes
deepjams4 · 3 years ago
Text
दिल-ए-ख़ूँ!
रहा दिल का चाहत पर न इख़्तियार कोई
हो क़ैद-ए-हयात कहे बार बार ये तिश्नगी!
जज़्बात-ए-दिल बेशक दरख़्शाँ नहीं मगर
समझते हैं उमड़ना देखकर जमाल-ए-हुस्न!
दिल जो लगा है वहाँ तो सहे उनके सितम
दीदार को भटकता है कहाँ जाने इधर उधर!
कश्मकश-ए-हयात में पिसता रहे यह दिल
जाने कब तक रहेगी दिल की ये जद्दोजहद!
दिल-ए-बर्बाद तो बस दश्त-ओ-सहरा बना
अहल-ए-जहाँ समझे फ़र्क़ ��ेख़ुद को कहाँ!
दिल-ए-नादाँ न समझा बेरुख़ी का आलम
तग़ाफ़ुल से भी न जाना है उन्हें वो नापसंद!
बेक़रार वो दिल-ए-ख़ूँ नहीं संग-ओ-ख़िश्त
याद में रहे मुन्तज़िर दिल नहीं कोई बेहिस!
6 notes · View notes