#अशुभ योग इन कुंडली
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astrotalk1726 · 5 months ago
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क्या राहु-केतु से भी राजयोग बनता है, यदि हाँ तो उसकी परिस्थिति किस प्रकार बनती है?
हाँ, राहु-केतु से भी राजयोग बन सकता है, लेकिन इसकी स्थिति और परिणाम विशिष्ट और असामान्य होते हैं। यहां 5 मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो राहु-केतु से बनने वाले राजयोग की परिस्थिति को दर्शाते हैं:
विपरीत राजयोग: जब राहु या केतु केंद्र (1st, 4th, 7th, 10th घर) में स्थित होते हैं और शुभ ग्रहों जैसे कि बृहस्पति, शुक्र, या चंद्रमा से संबंध बनाते हैं, तो "विपरीत राजयोग" बन सकता है। इसका अर्थ यह है कि शुरू में व्यक्ति को संघर्ष या कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अंततः वह सफल और शक्तिशाली बनता है।
गुरु-चांडाल योग: जब राहु गुरु (बृहस्पति) के साथ संयोजन में होता है, तो इसे "गुरु-चांडाल योग" कहा जाता है। अगर यह योग शुभ ग्रहों से प्रभावित हो और मजबूत स्थिति में हो, तो यह व्यक्ति को उच्च बुद्धिमत्ता, अद्वितीय दृष्टिकोण, और समाज में प्रभावशाली स्थान दिला सकता है।
कालसर्प योग के सकारात्मक परिणाम: हालांकि कालसर्प योग क�� आमतौर पर अशुभ माना जाता है, कुछ स्थितियों में यह राजयोग की तरह कार्य कर सकता है। यदि कालसर्प योग में राहु-केतु अच्छे घरों में हों और शुभ ग्रहों से प्रभावित हों, तो व्यक्ति को अप्रत्याशित रूप से सफलता, सत्ता और संपत्ति मिल सकती है।
इन योगों में राहु-केतु से राजयोग बनने की संभावना तब होती है जब ये ग्रह शुभ ग्रहों से संयोजन, दृष्टि या स्थिति के द्वारा सकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। यदि आपको आपकी कुंडली के आधार पर जाना चाहते है। तो आप Kundli for Android - Astrology App का प्रयोग कर सकते है। जो आपको आपकी कुंडली के आधार पर बेहतर जानकारी दे सकता है।
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drvinaybajrangiji · 2 months ago
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मेरी शादी कब होगी? कुंडली के माध्यम से पता करें विवाह का सही समय
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शादी हर व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण और खास हिस्सा होती है। लेकिन यह सवाल कि मेरी शादी कब होगी? कई युवाओं और उनके परिवारों के मन में गूंजता रहता है। वैदिक ज्योतिष में इस प्रश्न का उत्तर कुंडली के माध्यम से पाया जा सकता है। कुंडली में विवाह योग और अन्य ग्रहों की स्थिति देखकर यह समझा जा सकता है कि शादी का सही समय कब आएगा और विवाह का जीवन कैस��� होगा।
कुंडली में विवाह योग कैसे पहचाने? 
कुंडली में विवाह योग का निर्धारण मुख्य रूप से सप्तम भाव (7th House) के माध्यम से किया जाता है। सप्तम भाव विवाह, जीवनसाथी और वैवाहिक जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। यदि इस भाव में शुभ ग्रह जैसे शुक्र, गुरु या चंद्रमा स्थित हों, तो यह शुभ विवाह योग का संकेत देता है।
विवाह योग को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक: 
1. शुक्र ग्रह की स्थिति: शुक्र को प्रेम और विवाह का कारक ग्रह माना जाता है। यदि शुक्र मजबूत हो और शुभ ग्रहों के साथ हो, तो व्यक्ति को जल्दी और सुखद विवाह प्राप्त होता है।
2. सप्तमेश की स्थिति: कुंडली का सप्तम भाव और उसका स्वामी (सप्तमेश) यदि शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो, तो विवाह योग प्रबल होता है। 
3. गुरु ग्रह की दृष्टि: गुरु की दृष्टि सप्तम भाव पर हो तो यह विवाह के लिए शुभ संकेत देता है। 
मांगलिक दोष और उसका प्रभाव
कुंडली में कई बार मांगलिक दोष के कारण शादी में देरी होती है या वैवाहिक जीवन में समस्याएं आ सकती हैं। मंगल दोष तब बनता है जब मंगल ग्रह 1, 4, 7, 8, या 12वें भाव में स्थित हो। लेकिन मंगल दोष के उपाय और कुंडली मिलान के माध्यम से इसे कम किया जा सकता है।
कुंडली मिलान का महत्व
कुंडली मिलान शादी से पहले भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा है। यह न केवल सही समय का पता लगाता है जिसमें शादी हो सकती है, बल्कि यह यह भी सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्षों की कुंडलियों के बीच सामंजस्य है या नहीं। कुंडली मिलान के दौरान मुख्य रूप से इन बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है:
1. गुण मिलान:  36 गुणों की गणना के आधार पर जोड़ी की अनुकूलता देखी जाती है। 
2. दोषों का समाधान: किसी भी प्रकार के दोष जैसे मांगलिक दोष, पितृ दोष, या कालसर्प दोष की पहचान और उनके उपाय किए जाते हैं। 
3. दाम्पत्य जीवन की भविष्यवाणी: विवाह के बाद का जीवन कैसा रहेगा, इसका भी आकलन किया जाता है।
और पढ़े : कब बनते है तलाक के योग
विवाह में देरी के कारण और समाधान
कुंडली में ग्रहों की अशुभ स्थिति कारण विवाह में देरी होती है। मैं आपका उदाहरण स्वीकार करता हूं: 
शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती: शनि की प्रतिकूल स्थिति से विवाह में बाधा आती है। 
राहु और केतु का प्रभाव: राहु और केतु का सप्तम भाव में होना भी शादी में देरी कर सकता है।
इन बाधाओं को दूर करने के लिए उपाय जैसे कि मंत्र जाप, पूजा-पाठ, रत्न धारण, और दान करना लाभकारी हो सकता है।
मेरी शादी कब होगी? इस प्रश्न का सटीक उत्तर कुंडली के माध्यम से दिया जा सकता है। विवाह योग, कुंडली मिलान, और दोषों के समाधान के माध्यम से न केवल शादी के सही समय का पता लगाया जा सकता है, बल्कि एक सुखद वैवाहिक जीवन की नींव भी रखी जा सकती है। ज्योतिषीय परामर्श के साथ सकारात्मक दृष्टिकोण और विश्वास बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
Source URL: https://medium.com/@latemarriage/meri-shaadi-kab-hogi-kundali-ke-maadhyam-se-pata-karen-vivaah-ka-sahi-samay-b623bbcefe15
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karmaastro · 5 months ago
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दशहरे 2024  का ज्योतिषीय महत्व : नौ देवियों के रूप और आपकी कुंडली में उनके प्रभाव
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दशहरा, जिसे विजयदशमी के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है, जब भगवान राम ने रावण का वध किया और माँ दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की। इस पर्व का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी है, जो व्यक्ति की कुंडली, ग्रहों की स्थिति और उसके जीवन में आने वाली बाधाओं पर गहरा प्रभाव डालता है।
दशहरे का ज्योतिषीय महत्व:
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दशहरे के दिन ग्रहों की स्थिति में विशेष परिवर्तन होते हैं, जो व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बुरे ग्रहों का प्रभाव हो, तो इस दिन की पूजा से उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं। खासकर जिनकी जन्मकुंडली में शनि, राहु और केतु का दोष होता है, उन्हें इस दिन माँ दुर्गा की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है।
इस दिन माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विशेष महत्व है। इन नौ रूपों को समझना और उनकी पूजा करना जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन और सफलता लाने में सहायक होता है।
माँ दुर्गा के नौ रूप और ज्योतिषीय प्रभाव:
शैलपुत्री
माँ दुर्गा का पहला रूप है शैलपुत्री, जो पर्वतों की पुत्री हैं। इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता और धैर्य प्राप्त होता है। यदि किसी की कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो, तो इस देवी की आराधना से चंद्रमा की दशा स��धरती है और मानसिक शांति मिलती है।
ब्रह्मचारिणी
यह देवी तपस्या का प्रतीक हैं। इनकी पूजा से व्यक्ति को अपने कार्यों में संयम और ध्यान केंद्रित करने की शक्ति म���लती है। इस देवी की पूजा से मंगल ग्रह का प्रभाव सुधरता है, जिससे साहस और शक्ति प्राप्त होती है।
चंद्रघंटा
माँ चंद्रघंटा देवी शक्ति और साहस का प्रतीक हैं। इनकी पूजा से जीवन में सकारात्मकता और आत्मविश्वास आता है। यदि आपकी कुंडली में मंगल या राहु का दोष हो, तो इस देवी की आराधना से ये दोष दूर होते हैं।
कूष्मांडा
माँ कूष्मांडा की पूजा से सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य में सुधार होता है। यदि किसी की कुंडली में सूर्य या बुध ग्रह कमजोर हो, तो इस देवी की पूजा करने से लाभ मिलता है।
स्कंदमाता
माँ स्कंदमाता की पूजा से बच्चों के स्वास्थ्य और उनकी शिक्षा में सुधार होता है। यह देवी बुध ग्रह की अशुभ दशाओं को समाप्त करती हैं और बच्चों के लिए ज्ञान और बुद्धि का आशीर्वाद लाती हैं।
कात्यायनी
माँ कात्यायनी की पूजा विवाह और प्रेम संबंधों में सफलता लाने के लिए की जाती है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र ग्रह कमजोर हो, तो इस देवी की पूजा से प्रेम संबंधों में सुधार होता है और विवाह के योग बनते हैं।और आप ज्योतिष की सहायता से कुंडली के अनुसार यह भी जान सकेंगे कि आपकी शादी कब होगी / When will I get married |
कालरात्रि
माँ कालरात्रि का रूप विनाशकारी और बुरी शक्तियों को नष्ट करने वाला है। इनकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में आने वाली बाधाएँ समाप्त होती हैं। यदि आपकी कुंडली में शनि या राहु का दोष हो, तो इस देवी की पूजा विशेष रूप से लाभकारी होती है।
महागौरी
माँ महागौरी की पूजा से जीवन में शांति और संतोष प्राप्त होता है। यह देवी शुक्र और चंद्रमा के प्रभाव को संतुलित करती हैं और आर्थिक स्थिति को मजबूत करती हैं।
सिद्धिदात्री
माँ सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों की दात्री मानी जाती हैं। इनकी पूजा से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और सिद्धि प्राप्त होती है। यह देवी राहु और केतु के दोषों को समाप्त करती हैं और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
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निष्कर्ष:
दशहरा न केवल धर्म और संस्कृति का पर्व है, बल्कि ज्योतिष के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने से न केवल आध्यात्मिक बल मिलता है, बल्कि जीवन की हर कठिनाई से उबरने की शक्ति भी मिलती है। अगर आप अपनी कुंडली के ग्रह दोषों से परेशान हैं, तो इस दशहरे पर माँ दुर्गा के इन रूपों की आराधना अवश्य करें और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस करें।
Source URL - https://correctionkarma.wordpress.com/2024/10/03/dashahara-2024-ka-jyotish-mahatva/
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horoscope1726 · 10 months ago
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अगर किसी की नवमांश कुंडली में राहु सातवे भाव में होतो हम क्या उपाय कर सकते ह जिससे शादी जल्दी हो जाये ?
अगर नवमांश कुंडली में राहु सातवें भाव में है और शादी में देरी हो रही है, तो कुछ उपाय अपनाकर इस समस्या को दूर करने की कोशिश की जा सकती है। राहु का सातवें भाव में होना विवाह में बाधाएँ उत्पन्न कर सकता है या विवाह में अस्थिरता ला सकता है। यहाँ कुछ ज्योतिषीय उपाय दिए गए हैं जो इस स्थिति में सहायक हो सकते हैं:
राहु के प्रभाव को कम करने के उपाय:
राहु के बीज मंत्र का जाप:राहु के बीज मंत्र "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः" का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।इस मंत्र का जाप विशेष रूप से राहु के विशेष दिन (शुक्रवार या शनिवार) को करें।
नागों की पूजा:नाग पंचमी या नागों से संबंधित त्योहारों पर नागों की पूजा करें।नाग देवता की मूर्ति या चित्र पर दूध और चावल अर्पित करें।
काला तिल और सरसों का दान:काले तिल और सरसों का दान किसी जरूरतमंद को करें।शनिवार को काले तिल और सरसों का दान विशेष फलदायी होता है।
राहु यंत्र स्थापना:राहु यंत्र की स्थापना करके उसकी नियमित पूजा करें।यंत्र को साफ-सुथरी जगह पर रखें और रोज़ धूप-दीप दिखाकर पूजा करें।
हनुमान जी की पूजा:हनुमान जी की पूजा और सुंदरकांड का पाठ करें। हनुमान चालीसा का नियमित पाठ भी राहु के अशुभ प्रभाव को कम कर सकता है।मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से हनुमान जी की पूजा करें।
सफेद चंदन और नीले रंग का प्रयोग:सफेद चंदन का तिलक लगाएं और नीले रंग के वस्त्र पहनें। ये राहु के प्रभाव को संतुलित करने में मदद कर सकते हैं।
सामान्य उपाय जो विवाह में देरी को कम कर सकते हैं:
गौरी-शंकर पूजा:शिव जी और माता पार्वती (गौरी-शंकर) की नियमित पूजा करें।विशेष रूप से सोमवार को शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाएं।
रुद्राक्ष धारण:सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें जो राहु के प्रभाव को कम करता है और शादी के योग को मजबूत करता है।इसे सोमवार को विधि-विधान से धारण करें।
विवाह संबंधित मंत्र:"ॐ नमः शिवाय" मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।इस मंत्र का जाप विशेष रूप से सोमवार को करें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ:दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करें। यह पाठ विशेष रूप से जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।
इन उपायों को नियमित रूप से और श्रद्धा के साथ करने से राहु के सातवें भाव में होने के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है और विवाह के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है। और अधिक जानकरी के लिए आप विवाह सूत्रम सॉफ्टवेयर की मदद ले सकते है। जो आपको आपकी कुंडली के आधार पर आपकी शादी के तिथि निकल कर दे सकता। है और भी अधिक जानकरी दे सकता है
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bestmarriageastrologer · 11 months ago
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कुंडली में कारक, अकारक और मारक ग्रह
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ज्योतिष शास्त्र में, ग्रहों को उनके प्रभाव के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है - कारक ग्रह, अकारक ग्रह और मारक ग्रह। यहां हम समझेंगे कि कारक ग्रह किसे कहते हैं और इन तीनों प्रकारों के बीच का अंतर।
कारक ग्रह किसे कहते हैं? कारक ग्रह वे ग्रह होते हैं जो किसी व्यक्ति की कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी जीवन की विभिन्न घटनाओं को प्रभावित करते हैं। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन के लिए शुभ परिणाम लाते हैं और उनकी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करते हैं। कारक ग्रह सौभाग्य, धन, संतान, शिक्षा, करियर आदि जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को संचालित करते हैं।
अकारक ग्रह अकारक ग्रह वे होते हैं जो न तो शुभ होते हैं और न ही अशुभ। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन में न्यूटलिटी लाते हैं और उनके प्रभाव को कम करते हैं। हालांकि, अकारक ग्रहों के उपयुक्त योग और गोचर स्थितियों में, वे शुभ परिणाम दे सकते हैं।
मारक ग्रह जैसा कि नाम से पता चलता है, मारक ग्रह व्यक्ति के जीवन में विघ्न डालते हैं और कष्ट पहुंचाते हैं। ये ग्रह नकारात्मक शक्तियों को प्रतिनिधित्व करते हैं और व्यक्ति के लिए बाधाएं और चुनौतियां पैदा करते हैं। हालांकि, मारक ग्रहों के शुभ योग और गोचर स्थितियों में, उनके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
कुंडली विश्लेषण में, ये तीनों प्रकार के ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक सिद्धांत यह है कि कुंडली का संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है, जिससे कारक ग्रहों के शुभ प्रभाव को अधिकत�� करने और अकारक व मारक ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को न्यूनतम करने में मदद मिलती है।
Read More: https://www.futuresamachar.com/hi/karak-akarak-and-marak-planets-in-horoscope-6854
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southindianastrologer · 11 months ago
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कुंडली में कारक, अकारक और मारक ग्रह
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ज्योतिष शास्त्र में, ग्रहों को उनके प्रभाव के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है - कारक ग्रह, अकारक ग्रह और मारक ग्रह। यहां हम समझेंगे कि कारक ग्रह किसे कहते हैं और इन तीनों प्रकारों के बीच का अंतर।
कारक ग्रह किसे कहते हैं? कारक ग्रह वे ग्रह होते हैं जो किसी व्यक्ति की कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी जीवन की विभिन्न घटनाओं को प्रभावित करते हैं। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन के लिए शुभ परिणाम लाते हैं और उनकी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करते हैं। कारक ग्रह सौभाग्य, धन, संतान, शिक्षा, करियर आदि जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को संचालित करते हैं।
अकारक ग्रह अकारक ग्रह वे होते हैं जो न तो शुभ होते हैं और न ही अशुभ। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन में न्यूटलिटी लाते हैं और उनके प्रभाव को कम करते हैं। हालांकि, अकारक ग्रहों के उपयुक्त योग और गोचर स्थितियों में, वे शुभ परिणाम दे सकते हैं।
मारक ग्रह जैसा कि नाम से पता चलता है, मारक ग्रह व्यक्ति के जीवन में विघ्न डालते हैं और कष्ट पहुंचाते हैं। ये ग्रह नकारात्मक शक्तियों को प्रतिनिधित्व करते हैं और व्यक्ति के लिए बाधाएं और चुनौतियां पैदा करते हैं। हालांकि, मारक ग्रहों के शुभ योग और गोचर स्थितियों में, उनके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
कुंडली विश्लेषण में, ये तीनों प्रकार के ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक सिद्धांत यह है कि कुंडली का संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है, जिससे कारक ग्रहों के शुभ प्रभाव को अधिकतम करने और अकारक व मारक ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को न्यूनतम करने में मदद मिलती है।
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lawyer-usa · 2 years ago
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Stri Ki Kundli Me Mangal Grah Ka Prabhav
स्त्री की कुंडली में मंगल का प्रभाव आज हम स्त्री की कुंडली में मंगल का प्रभाव Stri Ki Kundli Me Mangal Grah Ka Prabhav और उसके उपाय के बारे में सम्पूर्ण विधि बताएंगे। स्त्री जातक की कुंडली में ग्रहों का अलग अलग घरों में क्या प्रभाव रहता है? स्त्री की कुंडली के अनुसार स्त्रियों के ग्रहों का प्रभाव शुभ है। अथवा अशुभ है, उस पर हमारी उस पर भी हम बात करेंगे।
दोस्तों मंगल अगर किसी स्त्री की कुंडली में बैठे हैं। तो कई घरों में वह मांगलिक दोष बनाते है। इसका स्त्री की कुंडली में क्या प्रभाव पड़ेगा?
क्या स्त्री के कुंडली में मांगलिक होना ज्यादा खतरनाक होता है? मंगल स्त्रियों की कुंडली में अलग अलग घरों में कितना दुख और कितना सुख देता है।
कुंडली का पहला घर जिसे तन मन, धन कहा जाता है, जो हमारे जीवन का इंजन है। जहाँ पर अगर किसी स्त्री की कुंडली में मंगल आ जाता है तो ये मंगलिक दोष कहलाता है।
जैसे आम शब्दों में मंगली बोला जाता है, वो एक्चुअल में मंगला दोष कहलाता है। भौम दोष कहलाता है या कुंज दोष कहलाता है? इसे आम स्त्री जाति का की कुंडली में पुरानी पुस्तकों में बताया गया है। की ये विधवा योग बना देता है, खतरनाक योग बना देता है। एक से लेकर बारहवे भाव तक हम स्त्री की कुंडली में मंगल का प्रभाव के बारे में जानेंगे है।
स्त्री की कुंडली में प्रथम भाव में मंगल का प्रभाव प्रिय जातकों इन सारी बातों के लिए आपको केवल पहले घर को देख कर ही नहीं चलना होता है। स्त्रियों की कुंडली में लग्न में अगर मंगल हो तो भले ही यह मंगलिक दोष बनता हो। लेकिन मैनेजमेंट की पावर बहुत स्ट्रॉन्ग होती है।
अपनी क्षमताओं से पूरे परिवार को बांध लेना, उनको मैनेज करना, सुपरविज़न करना, ये क्वालिटी? मंगल नेगेटिव प्रभाव नहीं देता, लगन में बैठा हुआ मंगल सामाजिक रूप से बहुत स्ट्रॉन्ग बनाता है। और ऐसी स्त्रियों को हमें।
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मैनेजमेंट की पावर बहुत स्ट्रॉन्ग होती है। अपनी क्षमताओं से पूरे परिवार को बांध लेना, उनको मैनेज करना, सुपरविज़न करना, ये क्वालिटी इन स्त्रियों में होती है।
भले ही चेहरे पर चोट लगना, सर पर चोट लगना, ऐसी घटनाएं कुछ होती है,
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vilaspatelvlogs · 4 years ago
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ज्योतिष: कुंडली में ये योग भंग कर देते हैं राजयोग के प्रभाव, देते हैं भयंकर कष्ट
ज्योतिष: कुंडली में ये योग भंग कर देते हैं राजयोग के प्रभाव, देते हैं भयंकर कष्ट
पं. मनोज कुमार द्विवेदी, ज्योतिषाचार्य, नई दिल्ली Published by: रुस्तम राणा Updated Sun, 11 Apr 2021 11:52 AM IST कुंडली में सामान्यतः ज्यादातर राजयोगों की ही चर्चा होती है। कई बार ज्योतिषी कुछ दुर्योगों को नजरअंदाज कर जाते हैं जिस कारण राजयोग फलित नहीं होते और जातक को ज्योतिष विद्या पर संशय होता है परन्तु कुछ ऐसे दुर्योग हैं जिनके प्रभाव से जातक कई राजयोगों से लाभांवित होने से चूक जाते हैं। हम…
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astroneelkanth · 2 years ago
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जानिए क्या होता है जब राहु और मंगल का योग बनता है
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राहु के साथ मंगल की उपस्थिति काफी मजबूती और उग्रता को दर्शाती है। यह दो उग्र ग्रहों की जोड़ी है। Astrology में ये दोनों ग्रह कठोर ग्रहों की श्रेणी में आते हैं जो कि उग्रता के प्रतीक होते हैं। राहु को अस्थिरता, उत्तेजना और बेचैनी दिखाने के लिए जाना जाता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में मंगल को उग्र और आक्रामक ग्रह माना गया है। राहु और मंगल का जन्म कुंडली में एक साथ होना या ग्रह गोचर में एक साथ आना दोनों ही मामलों में महत्वपूर्ण परिणाम देता है। ज्योतिष में इस जोड़ी  को अशुभ योगों की श्रेणी में गिना जाता है। यह योग व्यक्ति में असंतोष, विद्रोह, अशांति और हिंसा को जन्म देता है।
जब राहु मंगल के साथ हो तो इस योग  को गहराई से समझने की जरूरत है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इन दोनों ग्रहों की चरित्र को समझें। हम इस राहु-मंगल जोड़ी  के परिणाम को समझने के लिए इन दोनों ग्रहों के महत्व और शुभ ��र अशुभ परिणामों का विश्लेषण कर सकते हैं।
तो सबसे पहले हम राहु के बारे में जानते हैं, इसके व्यक्तित्व के बारे में जानते हैं 
राहु व्यक्ति को जीवन में अलग-अलग दिशाओं में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने के लिए जाना जाता है।
 लेकिन साथ ही यह आलस्य, विलंब और कार्यों में रुकावट देने वाला भी माना जाता है।
राहु एक छाया ग्रह है जिसका भौतिक अस्तित्व नहीं है।
 यह कठोर, बलवान, क्रूर, उष्ण, रहस्यमय और गहरा ग्रह है। 
यह व्यक्ति में आध्यात्मिक चिंतन की क्षमता भी देता है।
 राहु दोनों नक्षत्रों को ग्रहण करने के लिए जाना जाता है अर्थात सूर्य और चंद्रमा।
 जन्म कुण्डली में जहां भी यह स्थित होता है, वहां भ्रमित करने वाली स्थिति पैदा करता है। साथ ही, यह जिस घर में रखा जाता है, उसके अर्थों को ग्रहण करता है। अलग-अलग भावों, राशियों और ग्रहों में स्थित होने पर यह पूरी तरह से अलग स्व दर्शाता है। यह इन भावों, ग्रहों और राशियों के कारकत्व या अर्थ को बिगाड़ देता है। यह व्यक्ति को किसी चीज के सही या गलत में स्पष्टता नहीं आने देता। यह हर जगह भ्रम पैदा करता है और जब भी कोई इसके करीब आता है, तो यह उस इकाई के अनुसार कार्य करना शुरू कर देता है।
मंगल ग्रह: अब हम मंगल ग्रह के बारे में जानते हैं :-
 मंगल सेनापति है और ज्योतिष शास्त्र में इसे तेज गति वाला माना जाता है। 
इसके गुणों में बहादुरी, साहस और निडरता शामिल हैं। 
मंगल एक उग्र ग्रह है और इसका रंग लाल है।
 शरीर में रक्त में मंगल का गुण समाहित है या हम कह सकते हैं कि यह शरीर में रक्त को दर्शाता है। 
मंगल के विशेष गुणों में स्वाभिमान और स्वाभिमान शामिल है।
 इसे जहां भी रखा जाता है, वहां यह शक्ति और उत्साह दिखाता है। यह जातक को निर्णय लेने में तेज बनाता है। काम में देरी न करना, जीवन में आने वाली कठिनाइयों या चुनौतियों से लड़ना इसके विशेष लक्षणों में शामिल है। मंगल ग्रह दुनिया को बदलने की क्षमता रखता है। शीघ्र और निर्णायक परिणाम प्राप्त करने की क्षमता मंगल के द्वारा ही प्राप्त होती है।
राहु-मंगल जोड़ी  के परिणाम या प्रभाव
जब हम इन दोनों ग्रहों के गुणों को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि ये दोनों ही जीवन में अडिग होकर चलने की क्षमता रखते हैं। यदि एक क्रूर, असभ्य और कठोर है तो दूसरा दूसरे से दो कदम आगे है। अत: जब भी वे दोनों एक साथ आएंगे, तो निश्चित रूप से ये इन बताए गए प्रभावों को बढ़ाएंगे। अब यह समझना मुश्किल नहीं है कि आक्रामकता और उत्तेजना अच्छी है या बुरी। यही कारण है कि जब वे एक दूसरे के साथ संयोजन में रखे जाते हैं तो वे गहरा और महत्वपूर्ण प्रभाव देते हैं। और वे जो भी प्रभाव प्र��ान करते हैं वह लंबे समय तक चलने वाला और स्थायी प्रकार का ह��ता है। लेकिन अगर सिक्के के दूसरे पहलू की बात करें तो कई बार कठोर और असभ्य होने का भी फायदा मिलता है। आमतौर पर कहा जाता है कि बिना डर ​​के स्नेह नहीं होता है, इसलिए यह एक ऐसा योग है जो नकारात्मक होने के बाद भी कुछ सकारात्मकता रखता है।
राहु-मंगल की युति से अंगारक योग बनता है
ज्योतिष में राहु और मंगल मिलकर एक योग बनाते हैं जिसे अंगारक योग कहा जाता है। ये दोनों ही भयंकर गर्मी या आग की स्थिति पैदा करते हैं और इसलिए ये दोनों एक साथ होने पर उग्र परिणाम देते हैं। वैसे तो यह योग अशुभ या अशुभ योग के अंतर्गत आता है लेकिन फिर भी इससे संबंधित कुछ अच्छे प्रभाव भी होते हैं। 
यह योग व्यक्ति के जीवन में संघर्षों और चुनौतियों को बढ़ाने के लिए जाना जाता है।
 इस योग के कारण जातक अधिक उत्तेजित रह सकता है।
 जातक कठोर स्वभाव का भी हो सकता है। 
अपने फैसले दूसरों पर थोप सकते हैं और मनमानी कर सकते हैं। 
इस योग का प्रभाव जातक के रिश्तों में भी दिखाई देता है, वह झगड़ालू हो सकता है। 
राहु-मंगल का योग जिस भी घर में होता है; यह उस घर के अर्थ को प्रभावित करता है। 
भावों के फल और उससे संबंधित महत्वों में गिरावट आती है। 
जातक को जीवन में जन्म कुण्डली के उस भाव से संबंधित अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
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राहु-मंगल की युति का फल कब और कैसे मिलता है?
यदि जन्म कुंडली में राहु और मंगल उपयुक्त भावों और राशियों में स्थित हैं, तो वे जातक के लिए शुभ परिणाम ला सकते हैं। ये दोनों मिलकर एक बेचैन या अशांत स्थिति का परिचय देते हैं लेकिन फिर भी वे जातक को सफलता, उपलब्धि और पहचान दिलाने में सहायक हो सकते हैं।
एक साथ मिलकर एक बेचैन या अशांत स्थिति का परिचय देते हैं लेकिन फिर भी वे जातक को सफलता, उपलब्धि और पहचान दिलाने में सहायक हो सकते हैं। 
इन दोनों ग्रहों की युति के साथ, जातक को अतिरिक्त सचेत रहने की आवश्यकता है क्योंकि जातक में अनियंत्रित उत्साह और जुनून होगा। अब अगर हम अपनी ऊर्जा को सही दिशा में नहीं ले जाते हैं तो हम अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर लेते हैं। जातक में आक्रामकता होती है और यदि इसका सदुपयोग नहीं किया जाता है तो जातक को इस ऊर्जा के अप्रत्याशित परिणामों का सामना करना पड़ता है।
वैदिक ज्योतिष में यह योग हमारे दुख और सुख को दर्शाता है। हमें जो भी शुभ या अशुभ फल मिलेगा वह ग्रहों की अच्छी या बुरी स्थिति या युति पर निर्भर करता है। इस योग से आपको जीवन में क्या प्रभाव पड़ रहा है यह भी आपकी जन्म कुंडली का गहराई से विश्लेषण करने के बाद ही पता चलेगा। इसलिए, युति के परिणामों को समझने के लिए, एक Expert Astrologer से संपर्क करना होगा, जो ग्रहों का विश्लेषण करने के बाद आपके जीवन में इस युति के परिणामों की भविष्यवाणी कर सकता है।
Author: Ravi k. Shastri Best astrological services Provider
Website:- https://www.neelkanthastrology.com/
Contact Number :-  +91-9988809986    
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studycarewithgsbrar · 2 years ago
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इन दोनों ग्रहों के बिगड़ने से जीवन में बार-बार धोखा मिलता है, इसे ठीक करें - Punjab News Latest Punjabi News Update Today
इन दोनों ग्रहों के बिगड़ने से जीवन में बार-बार धोखा मिलता है, इसे ठीक करें – Punjab News Latest Punjabi News Update Today
शनि देव, राहु: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुभ ग्रहों की संख्या अधिक हो और उनसे शुभ योग बनते हैं तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में बड़ी सफलता मिलती है, उसके जीवन में सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं होती है। लेकिन जब ग्रह अशुभ होते हैं तो जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कुछ ग्रह ऐसे भी होते हैं जिनकी अशुभता के कारण व्यक्ति को जीवन में बार-बार धोखा देना पड़ता है।…
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jyotishforyou · 3 years ago
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29 अप्रैल को शनिदेव कर रहे है राशि परिवर्तन!
शनिदेव कर रहे है राशि परिवर्तन इन राशि वालों के लिए रहेगा लाभकारी!
ज्योतिष में शनि देव को बहुत महत्व पूर्ण ग्रह माना जाता है । शनि देव को न्याय का देवता भी कहा जाता है । ज्योतिष के मुताबिक इस समय शनि का गोचर मकर राशि में जारी है लेकिन जल्द ही शनि देव राशि परिवर्तन करेंगे । शनि सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है । शनि 29 अप्रैल2022को कुंभ राशि में गोचर करेंगे । मकर और कुंभ राशि शनि देव की ही राशियां है । वैदिक ज्योतिष में मान्यता है कि शनि देव को एक राशि से दूसरी राशि में जाने में करीब ढाई वर्ष का समय लगता है ।
30साल बाद कुंभ राशि में शनि देव का प्रवेश शनि देव30साल बाद कुंभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं । ज्योतिष में मान्यता है कि शनि का राशि परिवर्तन है सभी राशियों का जातक पर शुभ और अशुभ प्रभाव पड़ता है । जिन लोगो की कुंडली में शनि देव शुभ भाव में होते हैं उन पर शनि देव बहुत कृपालु होते हैं । वही जिन लोगों की कुंडली में शनि गलत भाव में स्थित है उन्हे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है ऐसे में29 अप्रैल को शनि देव राशि परिवर्तन शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि में प्रवेश करेंगे । शनि का कुंभ में प्रवेश मीन राशि वालो को साढ़े सती चालु हो जायेगी और मकर अथवा कुंभ राशि वालो को साढ़े सती चल रही है।
29 अप्रैल को शनिदेव राशि परिवर्तन कर रहे है। जानिए सभी राशियों पर शनि के गोचर का प्रभाव। हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी से सलाह लें और जानिए गोचर के प्रभाव को कम करने के उपाय। अभी संपर्क करें।
यह शनि का राशि परिवर्तन सभी राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा
मेष राशि – यदि जातक मेष राशि का है तो शनि देव का प्रभाव सकारात्मक होगा इस दौरान मेष राशि के जातकों की आय में बड़ोतरी के संकेत हैं । आर्थिक स्थिति में मजबूती आएगी । व्यापार में भी अच्छे संकेत मिलेंगे । व्यापार में नई शाखाएं खोल सकते हैं । इसके अलावा नोकरी पेशा लोगो को प्रमोशन मिल सकता है । ऑफिस में सभी साथियों का सहयोग प्राप्त होगा । यह शनि का गोचर आपके ग्यारवे भाव में आ रहा है शनि की तिसरी दृष्टि आपके चंद्र लग्न पर पड़ेगी तो यह थोड़ा आलसी बना सकता है तो आप प्राणायाम करे वायु तत्व बढ़ाए यह करने से आलस कम होगा ।
वृष��� राशि – वृषभ राशि में आपके व्यक्तित्व और जीवन की स्पष्टता को बदल देगी । दुनिया की वास्तविकता का एहसास होगा और यह अवधि आपको आपकी अधिकतम सीमा की और धकेल देगी । वृषभ राशि के जातकों को अपने कैरियर और जिमेदारी के मामलो में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा । अपनी काबिलियत साबित करने के लिए कड़ी मेहनत और गंभीरता से काम करना होगा । वृषभ राशि के जातकों का कार्य समाज में नई स्थापना देगा । छात्रों को शिक्षा में सफलता मिलेगी और रोजगार के नए अवसर मिल सकते है साथ में नए क्षेत्र में निवेश से व्यापार में बड़ोतरी होगी । शनि ग्रह का गोचर आपके नेतृत्व गुणों को भी प्रभावित करेगा और यह समय आपकी वास्तविक क्षमताओं को दिखाने का होगा । हालंकि आप किसी विवाद या मुसिबत में फस सकते है जो जीवन में परेशानी पैदा करेगा लेकिन जल्द ही आप अपने कैरियर की मांगों को पूरा करेंगे चिंता ना करे कुल मिलाकर यह गोचर वृषभ राशि के जातकों के लिए एक चुनौती हो सकता है हालंकि यह लंबे समय के लिए मदत गार होगा।
मिथुन राशि – मिथुन राशि वालो के लिए यह शनि का गोचर आपकी राशि के नवें भाव में गोचर करेंगे और उनके गोचर के साथ ही आपके पुराने रुके हुए कार्य तेजी से पकड़ने लगेगे नवा स्थान कुंडली में भाग्य स्थान होता है और वही शनि की मूल त्रिकोण राशि है आप दोगुने जोश के साथ काम करने लगोगे आपकी मेहनत रंग लायेगी और सफलताओ का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा साथ ही आप अपने आप को काफी ऊर्जावान और उत्साहित भी महसूस करेगे। इस अवधि में काम के चलते विदेश यात्रा के लिए प्रबल योग बनेंगे इस दौरान आप अपने कैरियर और आमदनी में वृद्धि के लिए अत्यधिक मेहतत करते नजर आएंगे शनि की ढैया से मुक्त होने के बाद आपकी साम���जिक प्रतिष्ठा में लगातार वृद्धि होगी । आपके भीतर छिपी हुई प्रतिभा उभर कर सामने आएगी । कोर्ट कचहरी में अगर कोई मामला चल रहा हो तो आपको सफलता मिलने के चांस है । पारिवारिक जीवन खुशाल रहेगा इनकम बड़ सकती है । बिजनस वाले लोगो को इस दौरान बड़ी सफलता मिल सकती है । बेरोजगार लोगो को नोकरी मिलने के चांस है नोकरी में तरक्की होगी ।
कर्क राशि – कर्क राशि वालो के लिए यह शनि का गोचर आपकी राशि से अष्टम में आ जायेगे तो कर्क राशि वालो के लिए ढैया का प्रारंभ हो जायेगा । मानसिक चिंताएं रहेगी गोपनिय चिंता देगा हेल्थ प्रभलाम हो सकती है अड़चने देगे परंतु आठवें भाव में शनि की मूल त्रिकोण राशि है वही शनि का गोचर कर रहा है मूल त्रिकोण शनि के कारण अच्छे कमिनेशन जो साधक है उनकी साधना अच्छी रहेगी क्योंकी आठवां भाव साधना का भी है जो लोग रिसर्च की साइड है जो रिसर्च में जाना चाहते है उनके लिए अच्छा है कर्क राशि वाले अपनी शिक्षा से खोजना चाह रहे हैं , सिद्धि करना चाह रहे हैं , मंत्र सिद्धि करना चाह रहे हैं । यह वायु तत्व राशि है विचारो के अंदर बहुत ज्यादा आवागमन होगा । व्यक्ति स्वभाव में दार्शनिक हो जायेगा व्यक्ति दूर की सोच रखने वाला होगा । जिनको पेत्रक संपति का मामला उलझा हुआ है पेत्रक संपति मिल सकती है ।। यहां शनि की तिसरी दृष्टि दशम पर है तो संघर्ष की दृष्टि कर्म में मेहनत करवाएंगे शनि की सातवी दृष्टि दूसरे भाव पर है तो वाणी के द्वारा इनकम मिलेगी और दसवीं दृष्टि पंचम भाव पर है तो अधुरी शिक्षा पूर्ण होगी शिक्षा को शोध में बदल देगी परंतु जरा सी लापरवाही नुकसान देगी।
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सिंह राशि – सिंह राशि जातकों के लिए शनि का राशि परिवर्तन सिंह राशि वालो के लिए यह शनि का गोचर सातवे भाव में होने वाला है जो लोग विवाह के लिए प्रयास कर रहे हैं तो रिश्ते तो बहुत आयेगे परंतु थोड़ी सी रुकावट रहेगी। विवाह जिवन में भी समस्या लाइफ पार्टनर को लेकर भी थोड़ी परेशानी रहेगी । लाइफ पार्टनर में बहस होना पति पत्नी में टकराव और पटनार शिप में मन मुटाव की स्थिति पैदा रहेगी । काम के प्रति आलसी पन काम करने का मन नही होगा कुटुंब परिवार में कलेश की स्थिति रहेगी । पत्नी के साथ संबध अच्छे रखे भाग्य थोड़ा कम साथ देगा लेकिन काम जरूर होंगे । किसी के साथ मन मुटाव की स्थिति पैदा नही होने दे अपने काम के प्रति ईमानदारी रखे और सातवी दृष्टि लग्न पर होगी तो भ्रमित करेगा शनि की तिसरी दृष्टि भाग्य भाव पर होगी तो भाग्य साथ तो देगा पर रुक रुक कर देगा जल्द बाजी नही करना जैसा काम चल रहा है वैसा चलने देना और नया काम आप बिलकुल ना बदले जो काम आप कर रहे हैं वही काम करे भूमि, मकान, वाहन खरीदते समय थोड़ा ध्यान रखे । पटनार शिप में व्यापार जो कर रहे हैं तो पटनार के साथ मतभेद हो सकता है ।
कन्या राशि – कन्या राशि जातकों के लिए शनि का गोचर छटे भाव में हो रहा है वैसे छटे भाव में शनि का गोचर अच्छा माना जाता है रोग, ऋण , शत्रु को समाप्त करने का काम करता है । किसी का कोर्ट कचहरी का मामला चल रहा है तो विजय होगी अगर कर्ज है चुकाना चाहते हैं तो कर्ज चुकेगा और मामा मोसी से संबध अच्छे रहेंगे अगर कन्या राशि वाले लोग कंपीटिशन परिक्षा दे रहे है तो उनको सफलता मिलेगी और कन्या राशि वाले जातक नोकरी की तलाश में हैं तो नोकरी लगने के चांस है । शनि की तिसरी दृष्टि अष्टम भाव पर है तो गुप्त धन प्राप्त हो सकता है । आध्यात्मकता के क्षेत्र में भी आपका लगाव रहेगा । शनि की सातवी दृष्टि बरहवे भाव पर है खर्च तो होगा परंतु विदेश यात्राएं भी हो सकती है विदेश से जुड़े हुए कामों में सफलता मिलेगी खर्चों पर नियंत्रण रखें ��नि की दशम दृष्टि तृतीय भाव पर है संघर्ष और मेहनत करवाकर सफलता मिलेगी परंतु स्वास्थ का ध्यान रखे योगा एक्सरसाइज करते रहे ।
तुला राशि – तुला राशि पर को ढैया चल रहा था वह समाप्त हो जायेगा आपकी संतान के रुके हुए काम बनते हुए नजर आ रहे हैं । नोकरी में बदलाव आएगा और यह बदलाव अच्छा रहेगा शनि की तिसरी दृष्टि सातवे भाव पर है तो जिनकी बहुत टाइम से शादी नही हो रही है तो शादी के योग बनेंगे । पति पत्नी में मन मुटाव चल रहा है तो वह भी समाप्त हो जायेगा शनि की सातवी दृष्टि लाभ भाव पर है तो कही न कही से इन्वेस्टमेंट से फायदा होगा और उधार लेने वाले भी बहुत आयेगे ऐसे में अपने हाथो से लंबा धन उधार ना दे नही तो आपको परेशानी होगी और शनि की दसवीं दृष्टि दुसरे भाव में है तो और गुरु की भी दृष्टि है तो धन लाभ होने वाला है । प्रमोशन के द्वारा धन लाभ होगा ।
वृश्चिक राशि – वृश्चिक राशि वालो के लिए यह शनि का गोचर चतुर्थ भाव में रहेगा तो वृश्चिक राशि वालो को ढैया शुरू हो जाएगा । जब शनि देव चौथे भाव में आयेगे तो दसवें भाव को देखेगे और छठे भाव को देखेगे सबसे पहले तो इस बिच में कोई कर्ज या लोन आपके ऊपर चढ़ सकता है । आपके कार्य क्षेत्र में आपके वर्किंग प्लेस में आस पास कही न कही आपके ऊपर पोलिटिक्स हो सकती है । लोग आपके बिना वजह से पोलिटिक्स आपका नाम खराब करना ऐसा आपके साथ में देखा जा सकता है उन चिजो से आपको बचकर रहना होगा। जब शनि देव आपके चौथे भाव में आयेगे तो आपकी माता का स्वास्थ खराब रह सकता है थोड़ा ध्यान रखना होगा । वाहा पर शनि देव अपनी राशि में मूल त्रिकोण राशि में शाशा नाम का राजयोग भी बनायेगे लेकिन फिर भी थोड़ा बहुत ध्यान रखना होगा और अपने कार्य क्षेत्र को लेकर चिंता भी हो सकती है । आपकी नौकरी चेंज हो सकती है आपकी नौकरी में एक बड़ा बदलाव देखा जा सकता है । काफी टाइम से सोच रहे हैं की घर लेना चाह रहे प्रापर्टी लेने की सोच रहे हैं तो प्रापर्टी के योग आपके बहुत अच्छे हैं और वाहन भी खरीद सकते हैं ।
धनु राशि – धनु राशि वालो के लिए यह शनि का गोचर तिसरे भाव में आ रहा है तिसरे भाव में शनि का गोचर अच्छा माना जाता है । भाग्य में वृद्धि करने का काम करता है । बल पराक्रम में मजबूती लाने का काम करेगे । यदि लेबर से जुड़ा काम करते हैं या नेटवर्किंग से जुड़ा काम करते हैं तो बेहद लाभ मिलेगा शनि की तिसरी दृष्टि पंचम भाव पर पड़ेगी शिक्षा में कही न कही दिक्कत पैदा करेगी । पड़ने में मन नहीं लगेगा और संतान को लेकर भी चिंता बनी रहेगी । अगर शेयर मार्केट का काम करते हैं तो थोड़ी सावधानी रखे । पेट से जुड़े रोग हो सकते हैं । शनि की सप्तम दृष्टि भाग्य भाव पर होगी तो भाग्य तो साथ देगा परंतु रुक रुक कर देगा । शनि की दशम दृष्टि बारहवें भाव पर रहेगी तो आपके खर्चे बड़ सकते हैं । अस्पताल के खर्चे बड़ सकते है । देश विदेश की यात्राएं भी हो सकती है । यदि आप विदेश जाना चाहते हैं तो समय अच्छा है
मकर राशि – मकर राशि वालो के लिए शनि का राशि परिवर्तन मकर राशि से दूसरे भाव में होने जा रहा है । दूसरे भाव में शनि अच्छे परिणाम नही देते । धन के लिए अच्छा है क्योंकि शनि जहां बैठते हैं वहा की ��ृद्धि करते हैं । इसलिए धन में वृद्धि करेगे लेकिन कुटुंब परिवार में विवाद भी कराने का काम करेंगे । धन भी खर्च हो सकता है परिवार में धन खर्च हो सकता है । अपनी वाणी पर संयम रखने की जरूरत है । शनि की तिसरी दृष्टि चौथे भाव में पड़ेगी भूमि, भवन , प्रापर्टी , मकान इन क्षेत्रों में नुकसान हो सकता है । इसलिए सोच समझकर कर कार्य करने की जरूरत ��ै । शनि की सातवी दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ेगी अष्टम भाव ससुराल पक्ष का भी माना जाता है । ससुराल पक्ष में संबधो में मन मुटाव की स्थिति बनेगी । शनि की दशम दृष्टि ग्यारवे भाव पर पड़ेगी तो लाभ देने वाली है । लेकिन कई सारे कार्यों में मतभेद की स्थिति पैदा हो सकती है कोई भी कार्य जल्दबाजी में ना करे सोच समझकर करे दूसरो की सलाह लेकर करे लेकिन फिर भी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी अलीगल काम बिलकुल भी ना करे शनि न्याय के देवता है ।
कुंभ राशि – कुंभ राशि वालो पर साढ़े साती चल रही है तो स्वास्थ का ध्यान रखना है स्वास्थ संबधी परेशानी होने लगेगी मानसिक तनाव हो सकता है । जन्म के चंद्रमा कुंभ राशि पर गोचर का शनि आ रहा है तो मन को मजबूत बनाना होगा । सिर दर्द , नसों की परेशानी हो सकती हैं । जब भी चंद्र राशि पर गोचर का शनि आता है तो बैचेनी रहती है और हाथ पेरो नसो में दर्द हो सकता है । शनि की तीसरी दृष्टि तिसरे भाव में होने जा रही है तो आपको मेहनत बहुत रहेगी परंतु मेहतत का फल जरूर मिलेगा । शनि की सप्तम दृष्टि दमपंतय भाव में पड़ रही है वह अशुभ है पति पत्नी में अनबन हो सकती है । आपके लाइफ पार्टनर को हेल्थ समस्या हो सकती हैं ।। जिनकी शादी होने वाली है उनको संघर्ष रहेगा संघर्ष के बाद ही शादी होगी । शनि की दशम दृष्टि दशम भाव पर पड़ेगी तो व्यापार में अच्छी ग्रोथ होगी । और विदेश यात्रा के योग बनेंगे । व्यापारियों के लिए शुभ है ।
मीन राशि – मीन राशि वालो को साढ़े सती शुरू हो रही है । मीन राशि वालो के ग्यारावे और बारहवें भाव के स्वामी हैं । आपकी राशि से बारहवें भाव में शनि का गोचर होने वाला है तो आपको हेल्थ का ध्यान रखना होगा । मानसिक तनाव रह सकता है । और पैसा खर्च हो सकता है । कोर्ट कचहरी में फस सकते है । कुटुंब परिवार से ताल मेल बनाकर रखे ।। खाने पीने में ध्यान रखें गलत ना खाए तबियत खराब हो सकती हैं । सप्तम दृष्टि छटे भाव पर होगी तो हेल्थ स्पेशल ध्यान रखें जोड़ो में दर्द और लंबी बीमारियां हो सकती है शुगर भी हो सकती है फिर शनि दशम दृष्टि से नावे भाव पर देखेगे तो पिता का ध्यान रखें पिता पर खर्चा भी हो सकता है । पूजा पाठ में मन नहीं लगेगा । शत्रु से ध्यान रखें उधारी से बचे । अस्पताल में दान करे तो बहुत अच्छा रहेगा।
एस्ट्रोलोक (ज्योतिष संस्थान) में शामिल हों जहां आपको ऑनलाइन वास्तु पाठ्यक्रम, वैदिक ज्योतिष पाठ्यक्रम, अंकशास्त्र पाठ्यक्रम, हस्तरेखा पाठ पाठ्यक्रम और आयुर्वेदिक ज्योतिष पाठ्यक्रम एक ही स्थान पर मिलेंगे। निःशुल्क ज्योतिष पाठ्यक्रम भी उपलब्ध है। कोर्स पूरा करने के बाद आप एक प्रोफेशनल के तौर पर अपना करियर शुरू कर सकते हैं। ज्योतिष पाठ्यक्रम विश्व प्रसिद्ध ज्योतिषी श्री आलोक खंडेलवाल द्वारा पढ़ाया जाता है। अभी दाखिला ले।
एस्ट्रोलॉजर – ममता अरोरा
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drvinaybajrangiji · 7 months ago
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रेवती नक्षत्र: करियर में हैं बेहतर संभावनाएं लेकिन गंडमूल का प्रभाव दे सकता है चुनौतियां 
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नक्षत्रों की अंतिम कड़ी रेवती नक्षत्र पर आकर समाप्त होती है, लेकिन यह समाप्ति नहीं बली एक नई शुरुआत की सूचक है. करियर ज्योतिष में रेवती नक्षत्र गंडमूल नक्षत्र का प्रभाव पाता है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक अपने करियर में वह कर पाता है जो जन सामान्य के मध्य उनकी प्रसिद्धि और तरक्की का स्थान निर्धारित करता है. इस नक्षत्र में कार्यक्षेत्र की अपार संभावनाएं हैं क्योंकि यहां बुध का असर फलीभूत होता है जो एक ऎसा ग्रह जहां भी जिस भी क्षेत्र में जुड़ता है उसमें ढल जाने की योग्यता रखता है. तो चलिये फिर देख लेते हैं कि आखिर इस नक्षत्र में जन्मे होने पर कौन कौन से कामों में व्यक्ति रह सकता है आगे और करियर चयन में कैसे मिलती है सफलता. करियर नक्षत्र ज्योतिष में रेवती गंडमूल नक्षत्र होकर भी कोमल नक्षत्रों की श्रेणी में आता है. इस नक्षत्र के ग्रह स्वामी बुध हैं, रेवती नक्षत्र के राशि स्वामी गुरु हैं क्योंकि इस नक्षत्र के सभी चरण मीन राशि में आते हैं इस कारण से गुरु महाराज की कृपा भी इस नक्षत्र पर होती है. रेवती नक्षत्र के देवता पूषा हैं जो जीवन में चेतना, आरंभ का रंग भर देने में सहायक हैं. रेवती नक्षत्र 27 में से अंतिम नक्षत्र है. यह 32 छोटे तारों के मेल से बनता है जो मृदंग की आकृति बनाते हैं और इस कारण इसे रेवती नक्षत्र कहते हैं.   यह नक्षत्र मीन राशि के अंतर्गत आता है और इस नक्षत्र का स्वामी बुध है. इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति पर बृहस्पति और बुध का प्रभाव होता है. बृहस्पति और बुध दोनों के बीच मित्रता नहीं है ऎसे में करियर को एक मार्ग पर लेकर चलना काफी कठिन हो जाता है. इस कारण से अगर करियर के विकल्पों में आप सही दिशा में जाना चाहते हैं उसके ���िए जन्म कुंडली में बुध और बृहस्पति की स्थिति देखनी भी बहुत आवश्यक होती है. गंडमूल  का असर करियर को करता है प्रभावित रेवती नक्षत्र गंडमूल नक्षत्र के चलते कुछ चुनौतियों को देने वाला होता है. अपने कामकाज को लेकर व्यक्ति उलझन और संघर्ष को भी झे��ता है. नक्षत्र करियर अनुसार रेवती में जन्मा जातक शिक्षा प्राप्त करने का इच्छुक होता है और इसी के कारण वह शिक्षा क्षेत्र में आगे बढ़ने के इच्छुक होते हैं. हर चीज से ज्ञान पाने की इच्छा इन्हें एक से अधिक क्षेत्रों से जोड़ती है. हर किसी चीज से जुड़ने की इच्छा भी होती है. नौकरी हो या बिजनेस कुछ नया करना नई चीजों को अपने कार्यक्षेत्र से जोड़ना पसंद होता है यह एक अच्छी बात है लेकिन कई बार इसी के कारण करियर में लोग किसी एक काम में अधिक समय तक नहीं टिक पाते. एक ही काम में अधिक समय तक लगे रहने से इनकी एकाग्रता समाप्त हो जाती है और ये कोई दूसरा काम करना चाहते हैं. इसलिए आवश्यकता है कि अपने काम में बदलाव करें काम को न बदलें अन्यथा सफलता के लिए आपका किया परिश्रम व्यर्थ हो सकता है. मूल नक्षत्र का अर्थ उस स्थिति से है जो शुरुआत और अंत दोनों के साथ जुड़ी होती है. यह एक प्रकार की गांठ भी है, तो संवेदनशील बिंदु के कारण ही ये नक्षत्र जीवन के हर पक्ष को प्रभावित करने वाला होता है. इसलिए जन्म कुंडली का अध्ययन भी बेहद आवश्यक हो जाता है. अगर नौकरी में परिवर्तन और अस्थिरता का असर है तब उस स्थिति में जरुरी है की कुंडली में इस नक्षत्र का सही से निरीक्षण कर लिया जाए. कारोबार या बिजनेस में साझेदारी के मुद्दे भी रेवती नक्षत्र के जातक के लिए चुनौती देने वाले होते हैं. अगर रेवती नक्षत्र में शनि और राहु का प्रभाव दशम भाव में पड़ रहा है और रेवती नक्षत्र का स्वामी कमजोर स्थिति में हो तो इस कारण से दूसरों के साथ पार्टनरशिप करना मुश्किल होता है.
रेवती नक्षत्र का जातक कैसे करें करियर का चुनाव रेवती नक्षत्र के जातकों के लिए करियर में कौन सी फील्ड अधिक बेहतर होगी तो इस मामले में आवश्यक है कुछ मूलभूत सूत्रों को समझ लिया जाए, क्योंकि रेवती नक्षत्र की स्थिति जन्म कुंडली में कैसी है इस बात को जानकर करियर को समझ पाना आसान होगा. इसमें कुछ बातें जैसे कि : - रेवती नक्षत्र जन्म कुंडली में किस स्थिति में मौजूद करियर नक्षत्र में रेवती नक्षत्र किन ग्रहों से प्रभावित होता है. रेवती नक्षत्र का दशम भाव, सप्तम भाव, छठे भाव के साथ संबंध. रेवती नक्षत्र पर शुभ अशुभ ग्रहों का प्रभाव इन कुछ मुख्य बातों के चलते करियर चयन की स्थिति काफी विशेष होती है. इस मामले में रेवती नक्षत्र का जन्म कुंडली में असर उनके चरण यानी उसके चरण पद का असर विशेष होता है. नक्षत्र चरण का ग्रह प्रभाव भी अपना असर दिखाता है. उदाहरण के लिए जन्म कुंडली में अगर उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में गुरु और बुध का युति योग छठे भाव में बन रहा हो तो इस स्थिति के कारण व्यक्ति के प्रतिस्पर���धाओं में खुद को जमाए रखना काफी मुश्किल लग सकता है. लेकिन अगर यह दोनों ग्रह दूसरे चरण में स्थिति है तो व्यक्ति के लिए प्रतियोगिताओं में शामिल होना कठिन नहीं होगा और वह अपने रचनात्मक एवं कलात्मक गुणों से करियर को समृद्ध बना सकता है.
जन्म कुंडली में रेवती नक्षत्र करियर के विकल्पों की जानकारी में ज्योतिषी "कुंडली परामर्श" बेहद विशेष होता है. व्यक्तिगत कुंडली अनुसार नक्षत्र का कुंडली में प्रभाव और करियर योग की भूमिका का विश्लेषण करने पर सही करियर चुनाव संभव होता है और साथ ही साथ करियर से जुड़ी संभावनाओं में चुनौतियों और सफलता को समझ कर आगे बढ़ सकते हैं.  
Source Url: https://medium.com/@latemarriage/revati-nakshatra-career-mein-hain-behatar-sambhaavanaen-lekin-gandamool-ka-prabhaav-de-sakata-hai-97556e02e348
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astrologer-mridul · 3 years ago
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१) जातक का शरीर, कद,रूप, सिर आदि प्रथम भाव से देखते है।।इस तनुभाव भी कहते है।।इस का ग्रह कुंडली का लग्नेश भी है और लग्नेश को बल दीजिए उसका दान कभी मत कीजिए।।क्युकी अगर शरीर बलहीन हो गया तो धन दौलत रिश्ते कुछ काम नही आएगा।।
२) लगन के बाद चंद्र का उपाय अवश्य कीजिए क्युकी चंद्र मन है।।लगन और चंद्र का व्यक्ति पर पूर्ण और अधिक तेज प्रभाव परता।।अगर दोनो कमजोर हुए तो जीवन व्यर्थ जाएगा।।इनके उपाय अधिक अवश्य होगे।।
३)जिस ग्रह के बारे में विचार करे उसके नक्षत्र को जरूर देखे।।क्युकी नक्षत्र अगर शुभ हो तो अशुभ ग्रह के भी उपाय कम हो जाते है।।
४) दशा और गोचर का ध्यान रखे।।महादशा अंतर्दशा का उपाय अति आवश्यक है।।और प्रत्यंत्र दशा रोजाना चेक करे।।इन सब को रोजाना ३० मिनिट देकर आप अपना जीवन सुखमय बना सकते है।।
५)कुंडली के योग को एक्टिवेट करने के लिए उसे बल देना अति आवश्यक है और कुंडली के दोष को शांत करने के लिए उसका बल कम करना।।और ये सिर्फ दान से संभव नही।।इसके उपाय अति आवश्यक है।।उदहारण शनि को शांत करने के लिए सिर्फ तेल का दान प्रयाप्त नहीं इसमें कुंडली अनुसार शनि को बलहीन करना।।यही कुंडली की परिभाषा है।।
अपनी कुंडली को समझे और कुछ साधारण उपायों से अपने जीवन को सुखमय बनाए।।आपकी खुशियां आपकी कुंडली में और कुंडली आपके पास।।
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abhay121996-blog · 4 years ago
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Maha Shivratri 2021: शिवरात्रि को बन रहा कल्याणकारी शिव योग …कई दोषों से मिलेगी मुक्ति Divya Sandesh
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Maha Shivratri 2021: शिवरात्रि को बन रहा कल्याणकारी शिव योग …कई दोषों से मिलेगी मुक्ति
11 मार्च महाशिवरात्रि पर बन रहा कल्याणकारी शिव योग
हिंदू पंचांग के अनुसार शिवरात्रि के दिन बेहद खास माना जाता है। इस दिन भक्त भोलेनाथ की पूजा और व्रत करते हैं। हर साल यह पर्व फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल महाशिवरात्रि पर्व 11 मार्च को है। इस बार महाशिवरात्रि पर शिव योग के साथ घनिष्ठा नक्षत्र होगा और चंद्रमा मकर राशि में विराजमान रहेंगे। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन सुबह 09 बजकर 22 मिनट तक महान कल्याणकारी ‘शिवयोग’ भी विद्यामान रहेगा। उसके बाद सभी कार��यों में सिद्धि दिलाने वाला ‘सिद्धयोग’ आरम्भ हो जाएगा। शिव योग को स्वयं भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त है कि जो तुम्हारे उपस्थित रहने पर कोई भी धर्म-कर्म मांगलिक अनुष्ठान आदि कार्य करेगा वह संकल्पित कार्य कभी भी बाधित नहीं होगा उसका कार्य का सुपरिणाम कभी निष्फल नहीं रहेगा इसीलिए इस योग के किये गए शुभकर्मों का फल अक्षुण रहता है। सिद्ध योग में भी सभी आरम्भ करके कार्यसिद्धि प्राप्त की जा सकती है। इन योगों के विद्यमान रहने पर रुद्राभिषेक करना, शिव नाम कीर्तन करना, शिवपुराण का पाठ करना अथवा शिव कथा सुनना, दान पुण्य करना तथा ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करना अतिशुभ माना गया है।
विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 11 मार्च को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 12 मार्च को दोपहर 3 बजे बजकर कर 2 मिनट तक रहेगी। महाशिवरात्रि पर्व में रात्रि की प्रधानता रहती है। इस कारण 11 मार्च को महाशिवरात्रि पर्व मनाना शास्त्र सम्मत होगा। महाशिवरात्रि का निशीथ काल 11 मार्च को रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा। यह पावन पर्व देवों के देव महादेव भोलेनाथ को समर्पित है। इस दिन शिव भक्त महादेव का आशीर्वाद पाने के लिए कई उपाय करते हैं।
शिवपुराण के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा जाता है। दरअसल महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन की रात का पर्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि की रात आध्यात्मिक शक्तियां जागृत होती हैं। विख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन ज्योतिष उपाय करने से आपकी सभी परेशानियां खत्म हो सकती हैं। महाशिवरात्रि के दिन शुभ काल के दौरान ही महादेव और पार्वती की पूजा की जानी चाहिए तभी इसका फल मिलता है। इस दिन का प्रत्येक घड़ी-पहर परम शुभ रहता है। कुवांरी कन्याओं को इस दिन व्रत करने से मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है और विवाहित स्त्रियों का वैधव्य दोष भी नष्ट हो जाता है। महाशिवरात्रि में शिवलिंग की पूजा करने से जन्मकुंडली के नवग्रह दोष तो शांत होते हैं विशेष करके चंद्र्जनित दोष जैसे मानसिक अशान्ति, माँ के सुख और स्वास्थ्य में कमी, मित्रों से संबंध, मकान-वाहन के सुख में विलम्ब, हृदयरोग, नेत्र विकार, चर्म-कुष्ट रोग, नजला-जुकाम, स्वांस रोग, कफ-निमोनिया संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है और समाज में मान प्रतिष्ठा बढती है। शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से व्यापार में उन्नति और सामाजिक प्रतिष्ठा बढती है। विश्वविख्यात कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि भांग अर्पण से घर की अशांति, प्रेत बाधा तथा चिंता दूर होती है। मंदार पुष्प से नेत्र और ह्रदय विकार दूर रहते हैं। ��िवलिंग पर धतूर के पुष्प-फल चढ़ाने से दवाओं के रिएक्शन तथा विषैले जीवों से खतरा समाप्त हो जाता है। शमीपत्र चढ़ाने से शनि की शाढ़ेसाती, मारकेश तथा अशुभ ग्रह-गोचर से हानि नहीं होती। इसलिए श्रीमहाशिवरात्रि के एक-एक क्षण का सदुपयोग करें और शिवकृपा प्रसाद से त्रिबिध तापों से मुक्ति पायें।
शिव पूजा का महत्व भगवान शिव की पूजा करते समय बिल्वपत्र, शहद, दूध, दही, शक्कर और गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति की सभी समस्याएं दूर होकर उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं।
शिवरात्रि का पौराणिक महत्व पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी पावन रात्रि को भगवान शिव ने संरक्षण और विनाश का सृजन किया था। मान्यता यह भी है कि इसी पावन दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का शुभ विवाह संपन्न हुआ था।
महाशिवरात्रि पूजा विधि शिवपुराण के अनुसार व्रती को प्रातः काल उठकर स्नान संध्या कर्म से निवृत्त होने पर मस्तक पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्षमाला धारण कर शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं शिव को नमस्कार करना चाहिए। तत्पश्चात उसे श्रद्धापूर्वक व्रत का इस प्रकार संकल्प करना चाहिए।
मनोकामना के लिए विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि महाशिवरात्रि के दिन मनुष्य को अपनी मनोकामना के अनुसार शिव की पूजा करनी चाहिए। जो व्यक्ति सांसारिक मोह माया से मुक्त होना चाहते हैं और शिवजी के चरणों में स्थान पाने की कामना रखते हैं। ऐसे जातकों को महाशिवरात्रि के दिन गंगाजल और दूध से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए और रात्रि जागरण में शिव पुराण का पाठ करना या सुनना चाहिए।
आर्थिक समस्याओं के लिए जो व्यक्ति काफी समय से वाहन खरीदने के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कामयाबी नहीं ���िल रही है। तो महाशिवरात्रि के दिन दही से भगवान शिव का अभिषेक करें। आर्थिक समस्याओं के कारण जो लोग परेशान और चिंतित रहते हैं उनके लिए महाशिवरात्रि पर शिव जी की पूजा का खास विधान है। ऐसे लोगों को शहद और घी से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। प्रसाद के तौर पर भोलेनाथ को गन्ना अर्पित करें।
अच्छी सेहत के लिए जो व्यक्ति अक्सर बीमार रहते हैं या जिनके स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव बना रहता है उन्हे महाशिवरात्रि के मौके का लाभ उठाना चाहिए। विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि शास्त्रों में कहा गया है कि भोलेनाथ कालों के भी काल हैं जिनके सामने यम भी हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन बेहतर स्वास्थ्य की इच्छा रखने वालों को जल में दुर्वा मिलाकर शिव जी को अर्पित करना चाहिए। जितना अधिक संभव हो महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
संतान प्राप्ति के लिए जो दंपत्ति योग्य संतान की अभिलाषा रखते हैं उन्हें महाशिवरात्रि के दिन दूध से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। शिव के साथ ही मां पार्वती और गणेश एवं कार्तिक की पूजा भी संतान सुख के योग मजबूत बनाता है।
नवग्रह दोष के लिए पं��ित मदनमोहन शर्मा ने बताया कि जिन लोगो की कुंडली में नवग्रह दोष है। वो दोष भी शांत हो जाता है। नवग्रह दोष होने पर जीवन कष्टों से भर जाता है और मानसिक अशान्ति बनीं रहती है। ऐसे में जो लोग भी इस दोष से ग्रस्त हैं वो महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक कर दें।
पति की आयु के लिए इस दिन शिव की पूजा करने से विवाहित स्त्रियों का वैधव्य दोष भी नष्ट हो जाता है और पति की आयु बढ़ जाती है। सुहागिन महिलाएं इस दिन माँ पार्वती की पूजा शिव जी के साथ करें। उसके बाद मां का श्रृंगार करें। मां को पूरा श्रृंगार का सामान चढ़ाया। उसके बाद पंचामृतए दूध दही घी शहद और शक्कर से भोले नाथ का स्नान करेँ।
सच्चा जीवन साथी के लिए पंडित मदनमोहन शर्मा ने बताया कि महाशिवरात्रि का दिन कुवांरी कन्याओं के लिए शुभ माना जाता है और इस दिन व्रत करने से सच्चा जीवन साथी मिलता है। कुवांरी कन्या सुबह के समय मंदिर जाकर शिवलिंग पर जल जरूर अर्पित करें व गौरी मां की पूजा करें। मान्यता है कि ऐसा करने से एक साल के अंदर ही विवाह हो जाएगा और सच्चा जीवन साथी मिल जाएगा।
महाशिवरात्रि पूजा का शुभ मुहू्र्त महाशिवरात्रि तिथि: – 11 मार्च 2021 महाशिवरात्रि निशिता काल: 11 मार्च (रात 12:06 से लेकर 12:55 तक) अवधि: 48 मिनट महाशिवरात्रि प्रथम प्रहर: 11 मार्च (शाम 06:27 से लेकर 09:29 तक) महाशिवरात्रि द्वितिय प्रहर: 11 मार्च (रात 09:29 से लेकर 12:31 तक) महाशिवरात्रि तृतीय प्रहर: 11 मार्च (रात 12:31 से लेकर 03:32 तक) महाशिवरात्रि चतुर्थ प्रहर: 12 मार्च (सुबह 03:32 से लेकर 06:34 तक) महाशिवरात्रि पारण समय: 12 मार्च (सुबह 06:34 से लेकर शाम 03:02 तक)
विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बता रहे है राशि अनुसार करें महाशिवरात्रि के दिन इन मंत्रों का जाप मेष- ॐ विश्वरूपाय नम: का जाप करें। वृषभ- ॐ उपेन्द्र नम: का जाप करें। मिथुन- ॐ अनंताय नम: का जाप करें। कर्क-ॐ दयानिधि नम: का जाप करें। सिंह- ॐ ज्योतिरादित्याय नम: का जाप करें। कन्या- ॐ अनिरुद्धाय नम: का जाप करें। तुला-ॐ हिरण्यगर्भाय नम: का जाप करें। वृश्चिक- ॐ अच्युताय नम: का जाप करें। धनु- ॐ जगतगुरवे नम: का जाप करें। मकर- ॐ अजयाय नम: का जाप करें। कुंभ-ॐ अनादिय नम: का जाप करें। मीन- ॐ जगन्नाथाय नम: का जाप करें।
अनीष व्यास विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर
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supermamaworld · 5 years ago
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जाने कर्ज़ की समस्या व उनसे जुड़े समाधान जरुर मिलेगी कर्ज से मुक्ति। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देखा जाए तो हर व्यक्ति का जन्म होते ही वह अपने प्रारब्ध के चक्र से बंध जाता है और ज्योतिषशास्त्र ��्वारा निर्मित जन्म कुंडली हमारे इसी प्रारब्ध को प्रकट करती है। हमारे जीवन में सभी घटनाएं बारह राशि व नवग्रह द्वारा ही संचालित होती हैं। इन ग्रहों का आपके जीवन पर आने वाले समय में कैसा प्रभाव पड़ेगा इसके बारे में विस्तृत जवाब जानने के लिए अभी फोन करें देश के जाने-माने ज्योतिषि पंडित महेंद्र कुमार शास्त्री जी से प्रश्न पूछें। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कब बनती है कुंडली में कर्ज़ की स्थिति जानने के लिए आप संकोच नहीं फोन करे। 9815102954 आज के समय मे�� जहाँ आर्थिक असंतुलन हमारी चिंता का एक मुख्य कारण है, वहीं एक दूसरी स्थिति जिसके कारण अधिकांश लोग चिंतित और परेशान रहते हैं वह है ‘कर्ज़’। धन का कर्ज़ चाहे किसी से व्यक्तिगत रूप से लिया गया हो या सरकारी लोन के रूप में, ये दोनों ही स्थितियाँ व्यक्ति के ऊपर एक बोझ के समान बनी रहती हैं। कई बार ना चाहते हुए भी परिस्थितिवश व्यक्ति को इस कर्ज़ रुपी बोझ का सामना करना पड़ता है। वैसे तो आज के समय में अपने कार्यो की पूर्ति के लिए अधिकांश लोग कर्ज लेते हैं, परन्तु जब कर्ज़ की यह स्थिति जीवन पर्यन्त बनी रहे या बार-बार सामने आये तो वास्तव में यह भी हमारी कुंडली में बने कुछ विशेष ग्रहयोगों के कारण ही होता है। बृहत् कुंडली बनवाए फीस 500 रुपए : जानें विवाह, आर्थिक, स्वास्थ्य, संतान, प्रॉपर्टी और परिवार से जुड़े शुभ अशुभ प्रभाव। कब आएगा अपना जीवन आनंदमय सुखी संपन्न व्यतित करने का योग। जन्म कुंडली में ‘छठा भाव’ कर्ज का भाव माना गया है। अर्थात कुंडली का छठा भाव ही व्यक्ति के जीवन में कर्ज की स्थिति को नियंत्रित करता है। जब कुंडली के छठे भाव में कोई पाप योग बना हो या षष्ठेश ग्रह बहुत पीड़ित हो तो व्यक्ति को कर्ज की समस्या का सामना करना पड़ता है। जैसे – यदि छठे भाव में कोई पाप ग्रह नीच राशि में बैठा हो, छठे भाव में राहु–चन्द्रमा या राहु–सूर्य के साथ होने से ग्रहण योग बन रहा हो, छठे भाव में राहु-मंगल का योग हो, छठे भाव में गुरु–चाण्डाल योग बना हो, शनि–मंगल या केतु–मंगल की युति छठे भाव में हो। तो ऐसे पाप या क्रूर योग जब कुंडली के छठे भाव में बनते हैं तो व्यक्ति को कर्ज की समस्या बहुत परेशान करती है और कर्ज को देने में बहुत समस्यायें आती हैं। छठे भाव का स्वामी ग्रह भी जब नीच राशि में हो, अष्टम भाव में हो या बहुत पीड़ित हो तो कर्ज की समस (at Haridwar Tourism - देवभूमि हरिद्वार उत्तराखंड) https://www.instagram.com/p/CEqRQ1JAxSV/?igshid=1amoxyxrtwz0a
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kisansatta · 5 years ago
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शनि चलने जा रहे हैं उल्टी चाल, जानें किन राशि वालों को रहना होगा सतर्क, किसे होगा लाभ
शनि जब भी राशि परिवर्तन करते हैं तो सभी पर प्रभाव डालते हैं। शनि के इस गोचर का भी सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ेगा।शनि ग्रह को अनुशासन और न्याय कारक के रूप में जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, शनि प्रत्येक ढाई साल में अपनी चाल में परिवर्तन करते हैं। शनि का राशि परिवर्तन इस साल 24 जनवरी को हो चुका है और शनि अब वक्री होने जा रहे हैं। वक्री होने पर शनि 142 दिन तक मकर राशि में गोचर करेंगे। इसके बाद 29 सितंबर 2020 से शनि फिर से मकर राशि में मार्गी हो जाएंगे। न्याय के देवता शनि 11 मई को मार्गी से वक्री होने जा रहा है। जब किसी ग्रह की चाल उल्टी होती है तो उसे वक्री कहा जाता है।शनि की चाल बदलते ही सभी राशियों पर अच्छे-बुरे प्रभाव दिखने शुरू हो जाएंगे। वृषभ, सिंह, धनु और कुंभ राशि वालों के लिए ज्योतिषविद वक्री शनि को अशुभ मान रहे हैं।वक्री शनि होने पर व्यक्ति को अपनी महत्वाकांक्षाओ एवं असीमित इच्छाओं पर अंकुश लगाना चाहिए। क्योंकि शनि के वक्री काल मे व्यक्ति असुरक्षित, असंतोष, अशांति एवं अनात्मियता का अनुभव करने लगता है। ऐसे में उसके आत्म विश्वास की कमी आ जाती है । अपने शकी स्वभाव के कारण आत्मीय बंधुओ एवं सच्चे मित्रों को भी अपना शत्रु बन लेता है। इस काल मे व्यक्ति आत्म केंद्रित एवं स्वार्थी प्रकृति का होने लगता है।जानें इस स्थिति का क्या प्रभाव पड़ेगा इन राशियों पर-
मेष:- शनि देव की चाल बदलते ही मेष राशि के जातकों को बड़ा फायदा होने वाला है। जीवन में चल रहे आर्थिक संकट से निजात पा सकते हैं। व्यापार और नौकरी में शनि की उल्टी चाल आपको लाभ दे सकती है। हर काम में सफलता हाथ लगेगी। कर्ज, रोग आदि से मुक्ति मिल सकती है। पार्टनर के साथ भी अच्छे पल बिताएंगे।
वृषभ:- शनि के वक्री होने के बाद वृषभ राशि के जातकों को थोड़ा संभलकर रहने की जरूरत होगी। कुछ मामलों में आपको नुकसान झेलना पड़ सकता है। लाभान्वित यात्राओं के बारे में सोच समझकर फैसला लें। इस वक्त यात्रा करना आपके लिए ठीक नहीं है। सेहत का भी खास ख्याल रखना होगा।
मिथुन:- शनि की उल्टी चाल मिथुन राशि के जातकों के लिए शुभ संकेत लेकर आने वाली है। व्यापारी वर्ग के जातकों के लिए शनि की उल्टी चाल लाभ के द्वार खोलेगी। नौकरीपेशा लोगों को भी समान रूप से फायदा होगा। चोट-चपेट से दूर रहें��े। साथ ही आपकी लव लाइफ भी अच्छी गुजरेगी।
कर्क:– सप्तमेश-अष्टमेश होते है। भागीदारी लम्बी नहीं चलेगी, चाहे विवाह हो ,चाहे व्यापार हो ,वक्री शनि वाला जातक दूसरे साथी के प्रति शक करने वाला, अविश्वास रखने वाला होगा। जीवनसाथी में कमी खोजता है। ऐसे में दूसरों के प्रति निष्ठा रखकर ,लोगो का विश्वास अर्जित करना चाहिए, दाम्पत्य में थोड़ा अवरोध हो सकता है। सिर की समस्या,घरेलू तनाव या खर्च ।माता का स्वास्थ्य खराब ही हो सकता है।
सिंह :– वक्री होकर स्वगृही है। जनहित के कार्यो में रुचि ,रोग, ऋण, शत्रु पर विजय होगी। स्वास्थ्य की समस्या, क्योंकि आप अपने स्वास्थ्य के प्रति इस अवधि में लापरवाही बरत सकते है। दूसरों के प्रति संवेदनशील रहिए। अगर मूल कुण्डली में भी वक्री है तो बड़ी सफलता का भी योग है। यशश्वी अधिकारी बन सकते है। दाम्पत्य में अवरोध,पराक्रम वृद्धि ,खर्च में वृद्धि।
कन्या:– पंचमेश -रोगेश। वक्री होकर पंचम भाव मे ,संतान के प्रति लापरवाह बना देता है। अगर मूल कुंडली मे वक्री है तो संतान एकाधिक पैदा करने के बाद भी उनका भरण पोषण में ध्यान नहीं देता है। प्रेम के मामलों में स्वार्थी हो जाते है। व्यवहार के कारण असम्मान की भी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अचानक धन लाभ हो सकता है। नज़दीकी लोगो से मनमुटाव,वाणी में तीव्रता,दांत की समस्या,दाम्पत्य में तनाव वजह लापरवाही।
तुला :– सुखेश-पंचमेश होकर सुख भाव मे स्वगृही ,आपको अति भावुक बना देगा। मकान,घर ,माता ,नौकर-चाकर के प्रति लापरवाह बना देगा। दूसरो की चिंता आपको नहीं होगी। जिस काम मे आप लगेंगे उसी में पूरी तन्मयता के साथ लग जाएंगे। अतः घर की कोई चिंता ही नही रह जाएगी जो कलह का कारण होगा। शनि यहाँ मकर राशि के होंगे फलतः जायदाद मिल सकती है ,घर खरीद सकते है। गाड़ी पर भी खर्च होगा। रोग, ऋण शत्रुओ का समन होगा। परिश्रम में अवरोध,मानसिक चिंता,अध्ययन अध्यापन में अरुचि।
वृश्चिक :- पराक्रम एवं सुख भाव के कारक होते हैं। अपने स्वयं के जीवन एवं चरित्र निर्माण के प्रति जरूरी कार्यो पर भी ध्यान नही दे पाते है। छोटी सी भी विमारी इनको परेशान कर देती है। ��ाई बहनों एवं मित्रो के प्रति असंतुष्ट ,पराक्रम में अत्यधिक वृद्धि,आन्तरिक अशांति ,माता को कष्ट ,गृह एवं वाहन पर खर्च ,व्यय में अधिकता,संतान के प्रति थोड़ी चिंता,पिता को स्वास्थ्य के समस्या। तृतीय भावस्थ वक्री शनि वाला जातक अटूट परिश्रम के बाद भी अशांत रहता है। परंतु इनके पराक्रम को जल्दी कोई पा नहीं सकता है। बड़े ही पराक्रमी होते है।
धनु:- धनेश एवं पराक्रमेश होता है। द्वितीय भावस्थ वक्री शनि वाला जातक शारीरिक एवं भौतिक साधनों को प्राप्त करने के लिए दीवानों की तरह भागता है। धन खर्च करने में भी ज्यादा बुद्धिमत्ता ,तर्क ,या विवेक से काम नहीं लेता है। धन भाव मे विद्यमान शनि वाला जातक विदेश या दूर से ज्यादा पैसा कमाते हैं। अपनी वाणी पर विशेष ध्यान देना चाहिए । पान मसाला,गुटका ,या अन्य व्यसन आपको बहुत नुकसान कर सकता है। पेट की समस्या, पैर में चोट या दर्द,लाभ अचानक मिल सकता है, माता को अचानक कष्ट की संभावना।
मकर :- लग्नेश एवं धनेश होता है। लग्नेश होकर वक्री होने से व्यक्ति अपनी बातों को बड़ी दृढ़ता से मानता एवं मनवाता है। इनमे कुछ विशेष गुण ,रचनात्मक शैली भी होती है जो औरों से अलग करती है। इनमे अहम ज्यादा होता है। अतः अगर अहम ,जिद्द त्यागकर कार्य करें तो बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। लग्नस्थ वक्री शनि जातक को कुटिल एवं धनवान बनाता है। व्यक्ति राजा तुल्य राज भोगता है, अपने समाज का अग्रणी होता है। पराक्रम में वृद्धि होगी। दाम्पत्य में तनाव ,पद प्रतिष्ठा एवं सम्मान में, अचानक वृद्धि या बड़ी सफलता।
कुम्भ :- व्ययेश-लग्नेश होकर स्वगृही व्यय भाव मे ही विद्यमान है। द्वादश भावस्थ वक्री शनि जातक को अंतर्मुखी बनाता हैं। जातक को घूमने का शौक रहता है ,आलस्य ,एवं लापरवाही की प्रवृति भी होती है। अचानक मानसिक या शारीरिक कष्ट भी हो सकता है। शत्रु भाव पर दृष्टि से जातक शत्रुओ को पराजित तो कर देता है परंतु स्वयं के नकारात्मक विचारों के कारण कष्ट भी उठाना पड़ सकता है। यहाँ शनि स्वग्रही है फलतः उच्च रहन सहन ,विदेश यात्रा, धनी ,सम्मानित बनाता है। वाणी एवं खर्च पर संयम रखें,भाग्य में तीव्र वृद्धि होगी।
मीन :- लाभेश-व्ययेश होकर लाभ भाव एवं एकादश भाव मे विद्यमान है। एकादश भावस्थ वक्री शनि जातक को अपने रिश्तेदारों ,सम्बन्धियो एवं मित्रो के प्रति सही तालमेल नही होता। ऐसा जातक अपने से निम्न वर्गीय लोगों के साथ ज्यादा जुड़ा रहता है। वह अचानक बड़े लाभ को प्राप्त भी करता है। आत्म प्रशंसा ,चापलूसी वगैरह से बचना चाहिए। लाभ भाव मे वक्री शनि जीवन साथी एवं संतान के लिए अनुकूल नही होता है। परंतु यह स्वग्रही है फलतः नकारात्मक नहीं होगा सिर्फ तनाव ही देगा। पेट एवं पैर की समस्या ,से बचें उस अवधि में। 
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