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#• याददाश्त की कमी होना
aushadhiauryog1 · 2 years
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प्रोटीनेक्स पाउडर प्रयोग करने से पहले जन लीजिये ये 10 बातें- Protinex Powder Benefits in Hindi
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दोस्तों प्रोटीनेक्स पाउडर बाजार में पाया जाने वाला एक खास किस्म का स्वास्थ्य वर्धक प्रोटीन सप्लीमेंट है। अक्सर लोग इस पाउडर का प्रयोग लोग अपने शरीर की मांसपेशियों को विकसित करने बॉडी बनाने वजन बढ़ाने और समूचे स्वास्थ्य को बूस्ट करने के लिए करते हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से जानेंगे कि प्रोटीनेक्स पाउडर के क्या-क्या स्वास्थ्य लाभ-Protinex Powder Benefits in Hindi हैं और इसके क्या  साइड इफेक्ट्स है-
मसल्स ग्रोथ में प्रोटीनेक्स का प्रयोग- Protinex for Muscle Growth
प्रोटीनेक्स में उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन होता है जो मांसपेशियों और उतकों के निर्माण और मरम्मत के लिए आवश्यक है।
वर्कआउट के बाद प्रोटीनेक्स पाउडर का सेवन करने से मांसपेशियों की वृद्धि और रिकवरी में सहायता मिलती है।
शरीर का वजन संतुलित करने में प्रोटीनेक्स का प्रयोग
बहुत से लोग बचपन से ही दुबले पतले होते हैं और अपना वजन बढ़ाना चाहते हैं। शारीरिक रूप से कमजोर और दुबला पतला होना बहुत ही लज्जा जनक होता है। इसलिए लोग अपना वजन बढ़ाने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं।
प्रोटीनेक्स पाउडर में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट और फाइबर की अच्छी मात्रा पाई जाती है। यह शरीर का वजन तेजी से बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही साथ ही यदि आप शारीरिक व्यायाम करते हैं तो मसल्स ग्रोथ में बहुत सहायता देता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में प्रोटीनेक्स का प्रयोग
प्रोटीनेक्स पाउडर में विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर के साथ-साथ मिनरल्स और अमीनो अम्ल भी पाए जाते हैं। यह सभी तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और रोगों से लड़ने में शरीर की मदद करते हैं।
ऊर्जा और स्फूर्ति बढ़ाने के लिए प्रोटीनेक्स का प्रयोग
प्रोटीनेक्स पाउडर में कार्बोहाइड्रेट की अच्छी मात्रा होती है जो शरीर को त्वरित गति से उर्जा प्रदान करती है। यदि इस पाउडर का सेवन मुख्य रूप से एथलीट और सक्रिय जीवन शैली वाले लोग करते हैं तो उन्हें अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।
हड्डियों को मजबूत बनाने में प्रोटीनेक्स का प्रयोग
प्रोटीनेक्स पाउडर में कैल्शियम की अच्छी मात्रा उपलब्ध होती है जो शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक है। इस पाउडर का नियमित प्रयोग हड्डियों के नुकसान को रोकने और ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम को कम करने में मदद करता है।
पाचन क्रिया को सुधारने में प्रोटीनेक्स का प्रयोग
इस पाउडर में फाइबर की अच्छी मात्रा उपलब्ध होने के कारण यह पाचन क्रिया में भी सुधार लाता है। इसके साथ ही साथ यह आंतों को भी स्वस्थ बनाता है।
प्रोटीनेक्स पाउडर का नियमित सेवन करने से कब्ज और अन्य पाचन संबंधी समस्याओं को ठीक किया जा सकता है।
कोलेस्ट्रॉल को कम करने में प्रोटीनेक्स का प्रयोग
प्रोटीनेक्स पाउडर विभिन्न पोषक तत्वों से युक्त होता है और इसमें सोया प्रोटीन पाई जाती है। सोया प्रोटीन शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है। नियमित रूप से प्रोटीनेक्स पाउडर का सेवन करने से हृदय रोगों के जोखिम को कम किया जा सकता है।
ब्रेन फंक्शन सुधारने में प्रोटीनेक्स का प्रयोग
प्रोटीनेक्स पाउडर में पाया जाने वाला कोलीन और ओमेगा 3 फैटी एसिड ग्रीन फंक्शन को सुधारने के लिए बहुत आवश्यक तत्व माने गए हैं। इसके नियमित सेवन से याददाश्त और दिमागी कार्य क्षमता को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।
मधुमेह अर्थात डायबिटीज को संतुलित करने में प्रोटीनेक्स का प्रयोग
प्रोटीनेक्स पाउडर में जटिल कार्बोहाइड्रेट होते हैं जो मधुमेह के रोगियों की रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं। संतुलित आहार के रूप में प्रोटीनेक्स पाउडर का प्रयोग करने से रक्त शर्करा को संतुलित किया जा सकता है और मधुमेह की जटिलताओं से बचा जा सकता है।
जनरल हेल्थ सप्लीमेंट के रूप में प्रोटीनेक्स पाउडर का प्रयोग
सामान्य तौर पर लोग प्रोटीनेक्स पाउडर का प्रयोग एक जनरल हेल्थ सप्लीमेंट की तरह करते हैं। सामान्य भारतीय भोजन में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की कमी पाई जाती है। जिसकी पूर्ति प्रोटीनेक्स पाउडर के सेवन द्वारा आसानी से की जा सकती है। नियमित रूप से प्रोटीनेक्स पाउडर का प्रयोग करने से लंबे समय तक दुरुस्त रहा जा सकता है।
प्रोटीनेक्स पाउडर बाजार में तीन प्रकार के उपलब्ध हैं- बच्चों के लिए प्रोटीनेक्स जूनियर, महिलाओं के लिए mama Protinex और वयस्कों के लिए सामान्य Protinex. भारतीय बाजार में 1kg protinex pack  600~700 INR तक के मूल्य में उपलब्ध है.
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bestsexologistdoctor · 2 months
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Consult Senior Sexologist Doctor Clinic in Patna, Bihar for Dhat Syndrome Treatment
धात सिंड्रोम पर महत्वपूर्ण टिप्पणी:-
धात सिंड्रोम पश्चिमी चिकित्सा पद्धति में एक अस्पष्ट गुप्त व यौन समस्या है जिसका कोई जैविक कारण उपलब्ध नहीं है। आयुर्वेद में इस समय को संस्कृति से जोड़कर देखा जाता है क्योकि इस समस्या के कारण शरीर का महत्वपूर्ण धातु पेशाब के माध्यम से रोगी के शरीर से निकलता रहता है। यह आमतौर पर युवावस्था के दौरान या अन्य कारणों से युवाओं के यौन जीवन को प्रभावित करता है। इस मामले में, धात सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति रिपोर्ट करता है कि उसका कीमती धातु पेशाब के दौरान उसके पिंटू के माध्यम से बाहर निकलता रहता है। हिंदी अध्यात्म की परंपरा में यह वर्णित है कि वीर्य हमारे शरीर का महत्वपूर्ण द्रव है। वीर्य की कमी के कारण व्यक्ति खुद को स्वस्थ नहीं रख पाता और यही इसे कमजोर और लक्ष्यहीन बनाती है।
जैसा कि हमने पहले ही जान चुके है कि युवाओं में इस गुप्त व यौन समस्या का कारण अस्पष्ट है। यही कारण है कि लक्षणों के आधार पर, यौन स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सक या आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर्स इस प्रकार के रोगियों का इलाज करते हैं। विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ सुनील दुबे पटना, बिहार में एक वरिष्ठ और अनुभवी क्लिनिकल आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर हैं जिन्होंने इस धात सिंड्रोम पर शोध किया है और अपने आयुर्वेदिक व सेक्सोलोजी चिकित्सा पेशे में इस दवा की खोज की है। उनका कहना है कि धात सिंड्रोम के निम्नलिखित लक्षण हैं और इन्ही लक्षणों के आधार पर, रोगी अपना इलाज करवा सकता है।
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जानिए धात सिंड्रोम के लक्षणो के बारे में:-
पेशाब के ज़रिए वीर्य का निकलना
भूख न लगना या कमी का होना
शारीरिक शक्ति में कमी
थकान और थकावट की अधिकता
सुस्ती व आलस्य में रहना
एकाग्रता में कमी होना
भूलने की बीमारी का होना
अन्य अस्पष्ट शारीरिक परेशानियाँ
बहुत सारे लोग स्पर्मेटोरिया के बारे में पूछते हैं, उन्हें इसके बारे में यह समझना चाहिए कि यह भी इसी धात सिंड्रोम का एक हिस्सा है और यह संभोग के बिना वीर्य के अत्यधिक उत्सर्जन को संदर्भित करता है। यह पुरुषों के जीवन की गुणवत्ता से समझौता कर सकता है।
आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर और उनके क्लीनिक व हॉस्पिटल के बारे में:
डॉ. सुनील दुबे पटना के टॉप व सर्वश्रेठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर हैं और वे दुबे क्लिनिक में प्रतिदिन प्रैक्टिस करते हैं। यह भारत का प्रमाणित आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी मेडिकल साइंस क्लिनिक है जो लंगर टोली, चौराहा, पटना-04 में स्थित है। दुबे क्लिनिक पुरुषों और महिलाओं के गुप्त व यौन रोग के इलाज हेतु एक अच्छी तरह से सुसज्जित स्वास्थ्य सेवा केंद्र क्लिनिक है। दरअसल, दुबे क्लिनिक बिहार, भारत का पहला आयुर्वेदिक क्लिनिक है जिसकी स्थापना 1965 में सभी प्रकार के गुप्त व यौन रोगियों की समस्याओं को देखते हुए की गई थी।
वर्तमान में, विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य इस क्लिनिक में पुरुषों, महिलाओं, युवाओं और मध्यम आयु वर्ग के लोगों को अपना व्यापक आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार प्रदान करते हैं। वे आयुर्वेद चिकित्सा अनुसंधान और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान के बहुत बड़े विशेषज्ञ हैं जिन्होंने विवाहित और अविवाहित लोगों की विभिन्न गुप्त व यौन समस्याओं पर शोध किया है। उन्होंने पुरुषों में होने वाले इस धात सिंड्रोम गुप्त समस्या पर भी शोध किया और उनका कहना है कि इस प्रकार के रोगी का उपचार चिंता-विरोधी आयुर्वेदिक दवाओं, यौन परामर्श, संज्ञानात्मक यौन व्यवहार चिकित्सा, यौन शिक्षा और सुसंस्कृत-उपयुक्त परामर्श पर आधारित होता है।
भारत के इस सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर का कहना है कि पुरुषों में इस धातु सिंड्रोम के कई साइड-इफेक्ट्स हैं। ये उन्हें डिप्रेशन और एंग्जायटी की ओर ले जाते हैं। इस यौन समस्या के कारण मरीज अपना संतुलित जीवन नहीं जी पाता। इसके निम्नलिखित साइड-इफेक्ट्स हैं:-
पेशाब करने के दौरान वीर्य का गिरना मरीज को परेशान करता है
इस लक्षण से बचने के लिए उसे नियमित रूप से हस्तमैथुन की जरूरत पड़ती है
बार-बार अत्यधिक यौन गतिविधियों में भाग लेना पड़ता है
एकाग्रता में कमी के कारण याददाश्त कमज़ोर होने लगती है
भविष्य को लेकर चिंता और डर में डूबे रहता है
जीवन में ज़्यादातर समय घबराहट महसूस करता है
जल्दी थकान और थकावट महसूस होता है
शरीर और कोशिकाओं में ताकत की कमी होने लगती है
डॉ. सुनील दुबे जो कि बिहार के सबसे अच्छे क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर है, का यह भी कहना है कि मरीज को अधिक चिंता करने की जरुरत नहीं है क्योंकि पुरे विश्व में 70% से ज़्यादा युवा इस समस्या से पीड़ित होते हैं। आयुर्वेद में इसका इलाज पूर्ण रूप से संभव है और आयुर्वेदिक दवा, व्यवहार संबंधी उपचार और यौन परामर्श के एक निश्चित कोर्स के बाद मरीज की समस्या में सुधार होने लगता है।
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धात सिंड्रोम के रोगी के लिए समृद्ध भोजन जो धात को रोकने में मदद करता है:-
विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य ने कहा कि टमाटर, आम, तरबूज आदि फल हैं जो शरीर में DHT के उत्पादन को रोकने में मदद करते हैं। वास्तव में, वह भोजन जो लाइकोपीन से भरपूर होता है जो रोगियों की मदद करता है। जामुन, फलियां, तैलीय मछली और केला भी शरीर में त्वचा और खोपड़ी के निर्माण में सहायक होते हैं। वैसे, आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार के दौरान; सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर हमेशा आपको स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के अनुसार इन प्राकृतिक सप्लीमेंट्स को लेने का मार्गदर्शन करते हैं।
दुबे क्लिनिक के साथ अपॉइंटमेंट लें:-
यदि आप धात सिंड्रोम या किसी अन्य गुप्त व यौन समस्या से पीड़ित रोगी हैं; तो आप दुबे क्लिनिक के साथ अपनी अपॉइंटमेंट ले सकते हैं। अपॉइंटमेंट फोन पर उपलब्ध है जहाँ औसतन तीस से चालीस गुप्त व यौन रोगी अपने-अपने समस्याओं को सुधारने के लिए हर दिन इस क्लिनिक में आते हैं। सही यौन स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सक का चयन हमेशा आपको उपचार और दवा का सुरक्षित तरीका प्रदान करता है और एक स्वस्थ जीवन की ओर ले जाता है। यदि आप अपनी गुप्त या यौन समस्याओं से हमेशा के लिए छुटकारा पाने के लिए दुबे क्लिनिक से जुड़ना चाहते हैं, तो एक बार हमें कॉल करें @ +91 98350 92856
हार्दिक सम्मान के साथ
डॉ. सुनील दुबे, सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर
बी.ए.एम.एस. (रांची) | एम.आर.एस.एच. (लंदन) | आयुर्वेद में पी.एच.डी. (यू.एस.ए.)
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350 925486
वेन्यू: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना, बिहार
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healthremedeistips · 6 months
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उम्र बढ़ने पर याददाश्त का कमजोर होना स्वाभाविक बात है। लेकिन कम उम्र में ही अगर आप चीजें रखकर भूल जाते हैं या फिर आपको किसी की कही बात याद ��हीं रहती हैं तो यह आपकी याददाश्त कमजोर होने की तरफ इशारा है। ये समस्या आजकल सिर्फ युवाओं में ही नहीं बल्कि कुछ बच्चों में भी देखी जाती है। उन्हें भी बातें और चीजें याद रखने में दिक्कत होती है। ऐसा अक्सर पोषण की कमी या किसी चोट या बीमारी की वजह से भी हो सकता है। रिसर्च में भी इस बात का खुलासा हुआ है की मस्तिष्क बेहतर विकास के लिए संपूर्ण और पौष्टिक आहार काफी जरूरी होता है। ऐसे में अगर आपको भी लगता है कि आपकी याददाश्त कमजोर हो रही है तो ये आयुर्वेदिक उपाय याददाश्त बढ़ाने में आपकी मदद कर सकते हैं। 
सात दाने बादाम गिरी सायंकाल किसी कांच के बर्तन में पानी में भिगो दें। प्रात: उनका लाल छिलका उतारकर बारीक पीस लें। यदि ऑंखों कमजोर हो तो साथ ही चार काली मिर्च पीस लें। इसे उबलते हुए 250 ग्राम दूध में मिलाएँ। जब तीन ऊफान आ जायें उतारकर एक चम्मच देशी घी और दो चम्मच बूरा (या चीनी ) डाल कर ठंडा करें। पीने लायक गर्म रह जाने पर इसे आवश्यकतानुसार पन्द्रह दिन से चालीस दिन तक लें। यह दूध मस्तिष्क और स्मरण शक्ति की कमजोरी दूर करने के लिए अति उत्तम होने के साथ वीर्य बलवर्धक है। 
बादाम का दूध सर्दियों में विशेष लाभप्रद है और दिमागी मेहनत करने वाले एंव विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। प्रात: खाली पेट इस दूध को लेने के बाद दो घंटे तक कुछ न खायें पीएँ। 
उपरोक्त बादाम का दूध तीन -चार दिन पीने से आधे सिर के दर्द में आराम होता है। 
बादाम को चन्दन की तरह रगड़ने के समान बारीकतम पीसना या खूब चबाकर मलाई की तरह कोमल बनाकर सेवन करना आवश्यक है। इससे बादाम आसानी से हजम हो जाने पर पूरा लाभ मिलता है और कम बादाम से भी अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। 
यदि उपरोक्त तरीके से बादाम का दूध लेना संभव न हो तो सात भिगोई हुई बादाम की गिरियाँ छीलकर ( चार काली मिर्च के साथ पीसकर बारीक करके अथवा वैसे ही ) एक -एक बादाम को नित्य प्रात: खूब चबा -चबाकर खा लें और ऊपर से गर्म दूध पी लें। स्मरणशक्ति की वृद्धि के साथ -साथ इससे ऑंखों के अनेक रोग दूर हो जाते है 
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Why magnesium is important for bone and brain || हड्डी और ब्रेन के लिए क्यों जरूरी होती है मैग्नीशियम
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why-magnesium-is-important-for-bone-and-brain - मैग्नीशियम शरीर की मजबूती और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए जरूरी है । ज्यादातर लोगों को इसकी कमी का पता ही नहीं चलता है, जिससे उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सेहतमंद रहने और शरीर को कारगर तरीके से चलाने के लिए जरूरी है, संतुलित आहार इससे प्रोटीन ,विटामिन आयरन के साथ-साथ हमारे शरीर को मैग्नीशियम की भी जरूरत होती है। जो हमें आहार से मिलती है। शरीर में 50 फीसदी मैग्निशियम हड्डियों में पाया जाता है। इसकी कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती है और ओस्टियोपोरोसिस हो जाता है. मैग्निशियम की कमी से शारीरिक और मानसिक वीकार भी आ सकते हैं, जैसे याददाश्त का कम होना ,नाखूनों में सफेद धब्बे का पड़ना,कमजोरी थकान और तनाव जैसी स्थिति आदि गर्भवती महिलाओं को पैर में दर्द रहता है इसकी कमी की वजह से महिलाओं को पीरियड के दौरान पैरों में दर्द की शिकायत रहती है। मैग्निशियम शरीर में आराम पहुंचा कर अच्छी नींद लाने में मददगार है। यह शरीर में ATP(Adenosine triphosphate) ऊर्जा का उत्पादन करता है इसकी कमी से थकावट और शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होती है। याददाश्त होती है मजबूत: सेहत के साथ हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए शरीर को मैग्नीशियम की जरूरत होती है। इसकी कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती है एवं लगातार सिर दर्द की शिकायत रहती है। मैग्नीशियम की पर्याप्त मात्रा से याददाश्त मजबूत होती है .विज्ञान पत्रिका न्यूरॉन में छपी एक शोध के अनुसार यादाश्त को बढ़ाने के लिए मैग्निशियम का सेवन भरपूर मात्रा में करना चाहिए . इसकी पर्याप्त शरीर को ओस्टियोपोरोसिस से बचाती है कोरोनरी हार्ट डिजीज से बचाव के लिए भी मैग्नीशियम का सेवन लगातार करना चाहिए, इसकी कमी से दिल के दौरे का खतरा अधिक हो जाता है ।इसलिए दिल को मजबूत बनाए रखने के लिए मैग्निशियम सेवन जरूरी है यह शरीर को उच्च रक्तचाप से बचाता है। एक शोध में यह भी पाया गया कि अगर शरीर में मैग्नीशियम की कमी हो जाए तो इसके कारण टाइप -2 डायबिटीज होने की आशंका बढ़ जाती है। फल व सब्जियों में मौजूद होती है मैग्निशियम मैग्नीशियम की डेफिशियेंसी से बचने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां टोफू राजमा काजू ,बादाम ,तिल, पालक और अन्य साबुत अनाज खासकर साबुत गेहूं में एक कप में 160 एमजी मैग्निशियम पाया जाता है ।गर्भावस्था में मां और गर्व में पल रहे बच्चों के लिए भी मैग्निशियम बहुत जरूरी है. गर्भ में पल रहे बच्चे के उत्त को के निर्माण व मरम्मत के लिए 350 ��े 400 एमजी अतिरिक्त मैग्नीशियम की जरूरत होती है इसकी कमी से भ्रूण के विकास में बाधा होती है प्रतिदिन एक केले के सेवन से 30 से 32 एमजी मैग्निशियम शरीर को मिल जाता है. इससे शरीर के धमनियों में खून पतला रहने के कारण खून का बह��व सही रहता है खजूर पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है एक सौ ग्राम खजूर में 43 एमजी मैग्नीशियम पाया जाता है खजूर में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन ,कैल्शियम, पोटेशियम आयरन, फास्फोरस आदि भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं प्रतिदिन पांच से छह बादाम खाने से 75 mg तक मैग्नीशियम होता है इसके अलावा बदाम में कैल्शियम विटामिन E जिंक ओमेगा 3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में मौजूद होता है दही में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम और मैग्नीशियम पाए जाते हैं जो शरीर को ओस्टियोपोरोसिस की समस्या से बचाता है प्रतिदिन के आहार में इसे लेना चाहिए। सोयाबीन भी मैग्नीशियम की कमी को पूरा कर सकता है इससे भिगोकर अंकुरित करके खाने से बहुत फायदे मिलते हैं नियमित रूप से पालन करने से आयरन की पूर्ति होती है बल्कि मैग्निशियम भी प्राप्त होती है। पालक डायबिटीज और कैंसर के रोगियों के लिए भी बहुत गुणकारी है एक चम्मच अलसी प्रतिदिन देने से उन 39mg मैग्नीशियम की प्राप्ति होती है। मैग्नीशियम की कमी को पूरा करने के लिए सप्ताह में कम से कम 1 दिन मछली का सेवन जरूर करना चाहिए विटामिन बी बी - 12 ओमेगा- 3 फैटी एसिड और मैग्नीशियम से भरपूर मछली में 53 एमजी मैग्नीशियम पाया जाता है। Read the full article
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ds-hospital · 2 years
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renatuslove · 5 years
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★दोस्तों अगर आप किसी भी बीमारी से परेशान हैं और काफी समय से दवाओं के सेवन से भी कोई फायदा नहीं हो रहा है,(चाहे उसे डॉक्टर ने जवाब भी दे दिया हो)तो संपर्क करे:-* *RENATUS NOVA benefits - Single Produce Multiple Solutions* *उदाहरण:-**1- शुगर (मधुमेह) 2- ब्लड प्रेशर (B.P.)  3- हृदय रोग 4- कोलेस्ट्रॉल  5- कैंसर. 6- एड्स. 7- दमा  8- लकवा ( paralysis ) 9- स्वाइन फ्लू  10- थाइरोइड 11- माइग्रेन  12- थकान 13- आर्थराइटिस 14- गठिया 15-जोड़ों का दर्द 16- कमर में दर्द 17-बदन दर्द 18-कमजोर हड्डियां 19- हड्डियों का पतला होना 20-ऑस्टिओपोरोसिस 21- सेक्सुअल समस्या 22- नपुसंकता 23-फर्टिलिटी 24-वीर्य संख्या बढाने में सहायक 25- गैंग्रीन 26-पुराना घाव 27-सर्वाइकल 28- मोटापा 29- त्वचा / चर्म रोग 30- सोराइसिस 31-लूकोडर्मा 32- एलर्जी 33-नासूर 34- किडनी की समस्या 35- पथरी की समस्या 36- बवासीर 37- अलसर 38- एसिडिटी 39- गैस्ट्रायटिस 40- कोलाइटिस 41- श्वसन संबंधी समस्या 42- पाचन सम्बंधित रोग 43- एंटी एजिंग 44- झुर्रिया कम करना 45- एकाग्रता 46- डिटॉक्सीफिकेशन 47- ऊर्जा की कमी 48- नासूर 49- यूरिक एसिड का बढ़ना 50- मिर्गी 51- लीवर से जुडी कोई भी परेशानी 52- अनिद्रा 53- अनीमिया (खून की कमी) 54- मानसीक तनाव 55- धूम्रपान / तम्बाकू वालो के लिए 56-कामकाजी लोगों के लिए  57- अल्ज़ाइमर 58- पार्किंसंस ड���सीज 59- खांसी 60- प्रोस्टेट 61- साईनस 62- पेट में गैस बनना 63- पैर के तलवे मे जलन 64- आखों से संबंधित रोग 65- साइटिका 66- धात 67- स्वेद प्रदर 68- मlसिक धर्म (M.C.) अनियमितता 69- फाइलेरिया 70- बालों का झड़ना 71- प्रजनन क्षमता 72- पागलपन 73- कमजोर याददाश्त 74- बच्चो/बुजुर्गों/महिलाओं के लिए संपूर्ण आहार 75- स्वाइन फ्लू   इत्यादि!*                     रैनाटाॅस नोवा अपनाएं।     खुशियों भरा जीवन पाए। अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करे : महीपाल सिंह 9812023760
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sabkuchgyan · 3 years
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क्या आपको लगता है की आपकी याददाश्त कम हो गई है..? तो इस तरह करें मेमोरी बूस्ट
क्या आपको लगता है की आपकी याददाश्त कम हो गई है..? तो इस तरह करें मेमोरी बूस्ट
आज के दौर में लोग इतने मशरूफ हो गए हैं कि लोगों को अपना ख्याल रखने का भी टाइम नहीं है। इन सब चीज़ों का असर हमारे याददाश्त पर पड़ता है। अक्सर देखा जाता है कि हम अपनी छोटी-छोटी बाते भूल जाते हैं, कुछ सामान रखकर भूल जाते हैं या कुछ पढ़ा हुआ भूल जाते हैं। वैसे तो यह सब बढ़ती उम्र के साथ होना आम है, लेकिन अब याददाश्त की कमी युवा और बच्चों में भी देखा जा रहा है। तो आइए आज हम आपको बताते हैं कि कैसे अपने…
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shaileshg · 4 years
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डिमेंशिया एक तरह का सिंड्रोम है, जिससे जूझ रहे व्यक्ति की सोचने, समझने शक्ति कम हो जाती है। डिमेंशिया के कई प्रकार होते हैं, लेकिन इसका सबसे आम प्रकार अल्जाइमर्स रोग है। अल्जाइमर्स एसोसिएशन की वेबसाइट के मुताबिक, भारत में 40 लाख से ज्यादा लोगों को किसी न किसी तरह का डिमेंशिया है। दुनिया में यह आंकड़ा करीब 5 करोड़ है। आज विश्व अल्जाइमर्स दिवस है यानी इस बीमारी को लेकर जागरूकता का दिन। आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में।
क्या है अल्जाइमर्स रोग सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, अल्जाइमर्स रोग एक तरह का डिमेंशिया है, जो 60 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को अपना शिकार बना सकता है। अल्जाइमर्स रोग का सबसे बड़ा जोखिम बढ़ती उम्र ही है इस बीमारी का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता जाता है। ऐसा नहीं है कि युवा अल्जाइमर्स का शिकार नहीं होते, लेकिन आमतौर पर ऐसा कम ही होता है।
अल्जाइमर्स एक ऐसा रोग है, जिसमें व्यक्ति की याददाश्त, सोचने और समझने की शक्ति धीरे-धीरे कम होने लगती है। अल्जाइमर्स एसोसिएशन के मुताबिक, इस बीमारी के बढ़ने का स्तर हर मरीज में अलग-अलग होता है, लेकिन औसतन मरीज लक्षण शुरू होने के 8 साल तक जिंदा रहते हैं।
अल्जाइमर्स रोग के शुरुआती लक्षण क्या हो सकते हैं? अल्जाइमर्स रोग के कारण हम हमारे रोज के काम भी ठीक से नहीं कर पाते हैं। इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों को चीजों को याद रखना, गणना करना, दूसरों से संपर्क बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इस रोग के शुरुआती 10 लक्षण या संकेत ये हो सकते हैं।
मेमोरी लॉस: अल्जाइमर्स रोग का सबसे आम लक्षण है याददाश्त का कम होना। खासतौर से शुरुआती स्टेज में। अगर व्यक्ति हाल में जानी हुई चीजों को तुरंत भूल जाता है तो यह शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।
प्लानिंग और प्रॉब्लम सॉल्व करने में मुश्किल: डिमेंशिया से जूझ रहे लोग किसी प्लान को बनाने या उसे मानने में परेशानी महसूस कर सकते हैं। इसके अलावा नंबरों के साथ काम करने में भी इन्हें परेशानी होती है। लोगों को कोई रेसिपी या मासिक बिल याद रखने में मुश्किल हो सकती है। इसके अलावा उनको ऐसे काम करने में काफी समय लगता है, जिन्हें वे बड़ी आसानी से कर लेते थे।
आसान चीजों को भूलना: अल्जाइमर्स पीड़ित व्यक्ति रोज के काम में शामिल आसान चीजों को भी पूरा करने में दिक्कत का सामना करता है। जैसे उन्हें अपने पसंदीदा खेलों के नियम याद नहीं रहते या किराना लिस्ट नहीं बना पाते।
जगह या समय के साथ कंफ्यूजन होना: लोगों को समय और जगह का ध्यान नहीं रहता है। उन्हें हाल ही में हुई किसी चीज को समझने में वक्त लगता है। इसके अलावा कई बार उन्हें यह भी पता नहीं चल पाता कि वे कहां हैं और वहां तक पहुंचे कैसे।
चित्रों, रंगों और संतुलन में दिक्कत: मरीज को नजर की भी परेशानी हो सकती है। हो सकता है कि वे किसी चीज का संतुलन बनाने और पढ़ने में परेशानी महसूस करें। इसके साथ ही हो सकता है कि वे दूरी और रंग का भी पता न कर पाएं।
बोलने-लिखने में परेशानी: बातचीत में परेशानी होना भी एक बड़ा लक्षण माना जाता है। अल्जाइमर्स से जूझ रहे लोग किसी भी बातचीत में शामिल होने में दिक्कतों का सामना करते हैं। हो सकता है कि वे बातचीत को बीच में ही छोड़कर चले जाएं या उन्हें पता ही न चले कि आगे बोलना क्या और अपनी ही बात को दोहराते रहें। उन्हें शब्दों के साथ भी परेशानी हो सकती है या यह भी हो सकता है कि किसी जानी पहचानी चीज को वे गलत नाम से पुकारें।
चीजें रखकर भूल जाना: मरीज अपनी चीजों को अजीब जगह पर रख देते हैं या रखकर भूल सकते हैं। हो सकता है कि वे रास्ते का पता नहीं लगा पाएं, जहां उन्होंने चीजों को रखा था। इसके अलावा यह भी मुमकिन है कि वे दूसरों पर चीजों को चुराने के आरोप लगाएं। यह बीमारी के बढ़ने का संकेत है।
चीजों को समझने में मुश्किल: इस बीमारी में हो सकता है कि मरीजों को फैसले लेने में परेशानी आए। उदाहरण के लिए किसी को पेमेंट करना या खुद को साफ रखने की आदतों में कमी लाना।
पुरानी आदतें छोड़ देना: अल्जाइमर्स बीमारी के साथ जी रहा व्यक्ति लोगों से बातचीत करने में परेशानी का सामना करता है। ऐसे में वे अपनी हॉबीज, सोशल एक्टिविटीज और दूसरी चीजों से दूरी बना लेता है। इसके अलावा मरीज अपनी पसंदीदा चीजों को जारी नहीं रख पाते।
मूड और पर्सनालिटी बदलना: मरीज के व्यक्तित्व में भी कई बदलाव आ सकते हैं। हो सकता है कि वे भ्रमित रहने लगे, अवसाद में आ जाएं, डरने या घबराने लगें। यह भी मुमकिन है कि वे घर पर, दोस्तों के साथ दुखी रहने लगें।
आइए अल्जाइमर्स रोग के जोखिम के बारे में जानते हैं सीडीसी के मुताबिक, वैज्ञानिक अभी तक अल्जाइमर्स रोग के कारण का सटीक पता नहीं लगा पाए हैं। हालांकि, इस बीमारी में उम्र को ही सबसे बड़ा जोखिम माना जाता है। शोधकर्ता इस बात का पता लगा रहे हैं कि पढ़ाई, खाना और वातावरण का भी असर अल्जाइमर्स बीमारी के बढ़ने पर पड़ता है या नहीं। अल्जाइमर्स एसोसिएशन के मुताबिक, ये कुछ फैक्टर्स बीमारी का जोखिम बढ़ा सकते हैं।
परिवार में किसी को अल्जाइमर्स: अगर परिवार में पैरेंट्स या भाई-बहन को अल्जाइमर्स है तो इससे दूसरे सदस्यों में भी बीमारी विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों को इस बात की पूरी जानकारी नहीं है कि परिवार में अल्जाइमर्स फैलने का क्या कारण हैं, लेकिन जेनेटिक्स और वातावरण इसके कारण हो सकते हैं।
जेनेटिक्स: शोधकर्ताओं ने कई जीन वैरिएंट्स तलाश की है, जो अल्जाइमर्स बीमारी बढ़ने की संभावनाएं बढ़ाते हैं। APOE-e4 जीन को सबसे आम जोखिम वाला जीन माना जाता है। अनुमान है कि यह जीन अल्जाइमर्स बीमारी के एक चौथाई मामलों में बड़ी भूमिका निभाता है।
कार्डियो-वेस्कुलर बीमारी: शोध बताते हैं कि मेंटल हेल्थ के तार दिल और ब्लड वेसल्स से जुड़े होते हैं। दिमाग को काम करने के लिए खून से ऑक्सीजन और न्यूट्रिएंट्स मिलते हैं और दिल खून को दिमाग तक पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाता है। इस वजह से जो फैक्टर्स कार्डियो-वेस्कुलर (दिल की) बीमारी का कारण बनते हैं, वे अल्जाइमर्स और दूसरे डिमेंशिया को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
माइल्ड कॉग्निटिव इंपेयरमेंट (MCI): MCI के लक्षणों में सोचने की क्षमता में बदलाव शामिल हैं, लेकिन यह लक्षण रोज के जीवन को प्रभावित नहीं करते हैं। इसके अलावा MCI के लक्षण अल्जाइमर्स जितने गंभीर भी नहीं होते हैं। मेमोरी से जुड़ी MCI होने अल्जाइमर्स और दूसरे डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकता है। हालांकि, कई मामलों में MCI बढ़ती नहीं है।
अल्जाइमर्स रोग की तीन स्टेज शुरुआती स्टेज (हल्का): अल्जाइमर्स की शुरुआती स्टेज में व्यक्ति सारे काम करता है। जैसे- ड्राइविंग करना, काम करना और सोशल एक्टिविटीज में शामिल होना। इसके बावजूद व्यक्ति को ऐसा महसूस हो सकता है कि वो कुछ भूल रहा है। जैसे- शब्द, जगह। इस स्टेज में लक्षण एकदम नजर नहीं आते, लेकिन परिवार और दोस्त बदलाव को नोटिस कर सकते हैं। इसके अलावा डॉक्टर्स भी कुछ खास डायग्नोस्टिक टूल्स से लक्षणों का पता कर सकते हैं।
इस स्टेज में आने वाली आम परेशानियां....
गलत शब्द या नाम बोलना।
हाल ही में पढ़ी हुई किसी चीज को भूलना।
कीमती चीजों को खोना या गलत जगह पर रख देना।
प्लानिंग और ऑर्गेनाइज करने में परेशानी महसूस करना।
मिडिल स्टेज (सामान्य) अल्जाइमर्स रोग की यह स्टेज सबसे लंबी स्टेज होती हैं और सालों तक चलती है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, मरीज को ज्��ादा केयर की जरूरत होती है। अल्जाइमर्स की मिडिल स्टेज में डिमेंशिया के लक्षण स्पष्ट होते हैं। व्यक्ति नाम के साथ कंफ्यूज, नाराज या चिढ़ जाता है। इसके अलावा मरीज अलग तरह से व्यवहार करने लगता है, जैसे- नहाने के लिए मना कर देना। दिमाग में नर्व सेल का खराब होना व्यक्ति को अपने विचार और रोज के काम करने में और मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
लोगों में लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। इस स्टेज में यह लक्षण शामिल हो सकते हैं...
खुद के बारे में या किसी आयोजन के बारे में भूलना।
चुनौती भरे माहौल में मूडी या खुद को अलग महसूस करना।
खुद का पता, फोन नंबर या पुराने स्कूल के बारे में भूलना।
कहां हैं और आज दिन कौन सा है, इस बारे में कंफ्यूजन महसूस करना।
मल-मूत्र पर नियंत्रण करने में मुश्किल होना।
सोने के तरीके में बदलाव। जैसे- दिन भर सोना और रात पर बेचैन रहना।
लेट स्टेज (गंभीर) इस बीमारी की आखिरी स्टेज में डिमेंशिया के लक्षण बहुत गंभीर हो जाते हैं। मरीजों को बातचीत करने और अपने आसपास के वातावरण को नियंत्रित करने की क्षमता खत्म हो जाती है। इस स्टेज में व्यक्ति शब्द या वाक्य कह सकता है, लेकिन अपना दर्द बताना उसके लिए मुश्किल हो जाता है। लगातार मेमोरी का खराब होना और व्यक्तित्व में बदलाव आने के कारण मरीज को देखभाल की जरूरत होती है।
इस स्टेज में मरीज ऐसा महसूस कर सकते हैं....
रोज देखभाल की जरूरत पड़ती है।
हाल ही में हुई किसी चीज को लेकर सतर्क न रहना।
चलने, बैठने और कभी-कभी निगलने की क्षमता में बदलाव आना।
बातचीत करने में परेशानी होना।
संक्रमण का खतरा बढ़ जाना। खासतौर से निमोनिया का।
अल्जाइमर्स रोग का इलाज क्या है? सीडीसी के मुताबिक, फिलहाल अल्जाइमर्स रोग का कोई इलाज नहीं है। अल्जाइमर्स एसोसिएशन के अनुसार, कुछ लोगों के लिए दवाइयां अस्थाई रूप से डिमेंशिया के लक्षणों को ठीक कर सकती हैं। ये दवाइयां दिमाग में न्यूरो ट्रांसमीटर्स बढ़ा देती हैं। शोधकर्ता अल्जाइमर्स और दूसरे डिमेंशिया के बेहतर इलाज के लिए तरीकों की खोज में लगे हुए हैं।
करंट बायोलॉजी जर्नल में छपी एक स्टडी बताती है कि डिमेंशिया के इस खतरनाक प्रकार से बचने का अच्छा तरीका गहरी और ज्यादा नींद हो सकती है। इस स्टडी का नेतृत्व यूसी बार्कले के न्यूरो साइंटिस्ट मैथ्यू वॉकर और जोसेफ वीनर ने किया था।
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world Alzheimer's day: Symptoms start appearing after the age of 60, scientists have not yet found a cure; Over 4 million dementia patients in India
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kisansatta · 4 years
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नींद की कमी से पुरुषों में होती है प्रजनन क्षमता दिक्कत
नींद के साथ खिलवाड़ करने का अर्थ जीवन के साथ खिलवाड़ करना है। विभिन्न शोध हमें लगातार भरपूर नींद लेने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन हमारी औसत नींद कम होती जा रही है। इस वजह से तनाव के साथ ही कई तरह की समस्याएं हमें घेर रही हैं। 21वीं सदी पर्यावरण प्रदूषण की ही नहीं, बल्कि नींद की कमी की भी सदी है। शहरों की जिंदगी और भागदौड��� भरी जीवनशैली ने हमे नींद की बीमारी दे दी है। नींद हर 24 घंटे में नियमित रुप से आने वाला वो समय है जब हम अचेतन अवस्था मे होते है, और आस-पास की चीजों से अनजान रहते है। नींद के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं होती। ये आपकी दिनचर्या का एक हिस्सा है।
लेकिन ज्यादातर लोग कभी न कभी नींद आने मे परेशानी का सामना करते है। आप लोगो ने एक शब्द सुना होगा – अनिद्र, अगर आप बहुत चिन्तित हों या बहुत उत्तेजित हों तो थोड़े समय के लिए आप इसके शिकार हो सकते हो और जब आपकी उत्तेजना या चिन्ता खत्म हो जाती है तो सब सामान्य हो जाता है। अगर आपको अच्छी नींद नही आती है तो ये एक समस्या है क्योंकि नींद आपके शरीर और दिमाग को स्वस्थ एवं चुस्त रखती है।अच्छी सेहत के लिए अच्छी नींद बेहद जरूरी है। कई बार नींद न पूरी होने पर ऑफिस में लोग अनमने से रहते हैं जिसका फर्क उनकी कार्य क्षमता पर भी पड़ता है। अच्छी नींद न सिर्फ याददाश्त के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी इजाफा करती है। नए शोध में यह बात सामने आई है।
जब शरीर पर किसी बैक्टीरिया या वायरस का हमला होता है, तो रोग प्रतिरोधक प्रणाली, दिमाग में मेमरी-टी कोशिकाओं का निर्माण होता है। तनाव और अवसाद की वजह से कई बार लोगों में अनिद्रा की समस्या सामने आती है। इससे लोगों की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है।90 फीसदी से ज्यादा भारतीय नींद की समस्या से जूझ रहे हैं। बस 2 फीसदी ही इस बीमारी को लेकर सचेत हैं और डॉक्टर के पास जाते हैं। यही वजह है कि हमें अपनी नींद को लेकर जागरूक होने के लिए ‘विश्व नींद दिवस’ तक मनाने की जरूरत पड़ रही है, चिंता इतनी ही नहीं बल्कि इससे कई ज्यादा गंभीर है। नींद की कमी आपको शारीरिक थकान, अवसाद, चिड़चिड़ापन और सिर दर्द ही नहीं देती, बल्कि आपकी प्रजनन क्षमता को भी कम कर देती है।
पहली बार शोधकर्ताओं ने इस तरह हमारा ध्यानाकर्षण किया है। इस सिलसिले में नीदरलैंड के आरहूस यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने वियना के ‘यूरोपियन सोसायटी ऑफ ह्युमन रिप्रोडक्शन एंड एंब्रीओलॉजी’ कार्यक्रम में जानकारी देते हुए कहा कि पूरी नींद न ले पाने की वजह से पुरुषों का स्पर्म काउंट कम हो जाता है। जिससे कि उनकी बच्चा पैदा करने की क्षमता प्रभावित होती है।शोध में शोधकर्ताओं ने ये भी बताया है कि सेहतमंद जीवन के लिए सामान्य रूप से 8 घंटे की नींद लेना जरूरी है। पूरी नींद लेने से शरीर की चयापचय दर सुचारु रूप से काम करती है। जिससे कि शरीर बेहतर ढंग से काम करता है और पाचन तंत्र भी अच्छा रहता है।
अनिद्रा की वजह से मेटाबॉलिज्म बुरी तरह प्रभावित होता है जिससे कि तनाव, थकान, अवसाद और प्रजनन क्षमता कम होने जैसे समस्याएं सामने आती हैं। मेमरी-टी कोशिकाएं संभावित तौर पर रोगाणुओं से संबंधित जानकारियों को रखने का काम करती हैं। अब जर्मनी के शोधकर्ताओं ने शोध के बाद कहा है कि गहरी नींद लेने से मेमरी-टी कोशिकाओं को मजबूती मिलती है, जिससे संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है।बहुत से लोगों को यह बात पता ही नहीं होती कि कम नींद आना भी बीमारी है। वह इसे सामान्य मानकर चलते हैं और नींद की गड़बड़ी को लेकर कभी डॉक्टरी सलाह लेते ही नहीं है। जबकि इस वक्त दुनियाभर में नींद की कमी खतरनाक बीमारी के तौर पर उभर के सामने आ रही है। अगर आपको नींद से जुड़ी किसी भी तरह की समस्या हो रही है तो इसे बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें। फौरन डॉक्टर को दिखाएं। ‘स्लिप डिसऑर्डर’ यानी कम नींद आना या अनिद्रा कई तरह से आपके शरीर को प्रभावित कर सकती है।  
अनिद्रा को आप इन कुछ लक्षणों से पहचान सकते हैं:-
सोने में दिक्कत होना।
देर रात तक नींद का न आना।
 स्वभाव में चिड़चिड़ापन और घबराहट
किसी चीज पर ध्यान कम लगना।
 अवसाद होना।
अनिद्रा के कुछ और गम्भीर कारण है जैसे:-
भावनात्मक समस्यायें रोजगार सम्बन्धित परेशानियां उलझन और चिन्ता उदासी की बीमारी – आप सुबह बहुत जल्दी उठ जाते है और फिर से सोने मे दिक्कत होती है बार -बार समस्याओं के बारे मे सोचना
हालांकि इसके अलावा भी कई वजह हो सकती हैं जो अनिद्रा के लिए जिम्मेदार हैं। आपको शारीरिक स्वास्थ्य अगर ठीक नहीं है और कोई दूसरी बीमारी है तब भी आपको अनिद्रा हो सकती है। श्वास की समस्या भी अनिद्रा की वजह हो सकती है। इसके अलावा एलर्जी और रात में बार-बार पेशाब जाने और बार-बार जागने से भी अनिद्रा की समस्या हो सकती है।
यही नहीं आपको डायबिटीज है तो भी नींद की कमी की परेशानी हो सकती है। अगर आप अवसाद में जी रहे हैं और मानसिक तौर पर परेशान हैं तो भी आपको कम नींद आने की बीमारी हो सकती है।हमें कितनी नींद की आवश्यकता होती है यह उम्र पर निर्भर है-
1- बच्चे -17 घन्टे
2- किशोर – 9 से 10 घन्टे
3- व्यस्क – 8 घन्टे
4- वृद्ध – व्यस्क के समान, लेकिन गहरी नींद केवल एक बार ही आती है, सामान्यतः शुरुआती 3-4 घन्टे- उसके बाद वे आसानी से जाग जाते हैं तथा वे स्वप्न भी कम देखते हैं| रात में जागने का थोड़ा समय भी उनको वास्तविकता से ज्यादा लम्बा लगता है। उनको लगता है कि वे उतना नहीं सोये हैं जितना कि वे वास्तव में सोये थे|
समान उम्र के लोगों के बीच मे भी अन्तर पाया जाता है| अधिकांश लोग 8 घन्टे सोते हैं जबकि कुछ लोगों के लिये 3 घन्टे की नींद ही पर्याप्त होती है|भरपूर नींद स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। नींद वैसी ही जैसे आपके लिए रोज का खाना है। बेहतर उत्पादन और किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने के लिए या किसी चीज को पूरी लगन के साथ करने के लिए भरपूर नींद लेना जरूरी है। अगर आपको वजन बढ़ने की समस्या से निजात पाना चाहते हैं तो भी भरपूर नींद आपके लिए फायदेमंद हो सकती है। यहां तक की शोध यह भी बताते हैं कि अच्छी नींद लेने वालों को हृदय से जुड़ी बीमारियां भी कम होती हैं।
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shalu-p-things-blog · 5 years
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What is stress? its signs and symptoms?
                                                Stress मानसिक तनाव(Stress ) आजकल लोगो पर इतना हावी हो चुका है कि  लोगो को मनोचिकित्सा  का सहारा लेना पड़ रहा है| यह एक गंभीर बीमारी का रूप लेती जा  रही है जिसका इलाज काफी मुश्किल  है|हमें  हर रोज  अपनी जिंदगी में बहुत  मुश्किलों का सामना करना पड़ता  हैं। कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जिनसे हम चाह कर भी  संभाल नहीं पाते और  उनसे निपटने के चककर में हम काफी टेंसन (stress ) में चले जाते हैं हम में से कई लोग तो  तनावों को झेलते हुए इतने  आदी हो चुके होते हैं कि वें महसूस ही नहीं कर पाते। ऐसे तनाव को यूस्ट्रेस (Eustress) कहा जाता है। अगर देखा जाए तो ये तनाव आपकी परफॉरमेंस और काम करने की क्षमता पर निगेटिव असर(negative effoct ) डालता है। इस आर्टिकल में हम discus करेंगे कि  तनाव/टेंशन क्या है, तनाव के लक्षण, कारण और टेंशन से बचने के उपाय क्या हैं ? स्ट्रेस क्या है? (What is stress?) : स्ट्रेस या तनाव होना सामान्य सी  बात है। ये तब महसूस होता है जब किसी स्थिति से निपटना मुश्किल हो जाता है। टेंशन होने पर एड्रेनालाईन (Adrenaline -When a stressful situation occurs and your heart begins to race, your hands begin to sweat, and you start looking for an escape, you have experienced a textbook case of fight-or-flight response.) हमारे पूरे शरीर में दौड़ने लगता है जिससे  दिल की धड़कन बढ़ जाती है और मानसिक और शारीरिक चेतना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। हमें पसीना आता है, सनसनी महसूस होती है और कई बार पूरे शरीर के रोएं खड़े हो जाते हैं। कितना खतरनाक(Harmfull ) है तनाव? ऐसा नहीं है कि हमारे पूर्वजों(बुजुर्गों ) की जिंदगी में Stress नहीं  था, लेकिन वो करो या मरो (Do or Die )की स्थिति को अपनाकर आसानी से इससे निजात  पा सकते थे। आज हमारे जीवन में तनाव की मात्रा और उनकी आवृत्ति भी बहुत  ज्यादा ही  है। लेकिन सबसे मुश्किल  बात यह है कि Stress  देने वाले हार्मोन जैसे एड्रेलिन और कॉर्टिसोल का उत्सर्जन उस वक्त और ज्यादा harmfull  हो जाता है जब हमें उनकी जरूरत नहीं होती है । अगर तनाव लंबे वक्त तक रहेगा  तो हमारे इम्यून सिस्टम और हृदय को नुकसान पहुंच सकता है। इसके अलावा  तनाव के रहते  हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमतापर भी प्रभाव पड़ता  है। इसका मतलब यह  है कि तनाव उस वक्त और  भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है जब  हर पांच मिनट में करो या मरो (Do or Die )की स्थिति में जाना पड़े। ज्यादा तनाव होने  से : हमारे  इम्यून सिस्टम और हृदय को नुकसान पहुंच सकता है। गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता  है। उम्र कम होती है। तनाव को समझना क्यों जरूरी है? (Why does understanding stress matter?) तनाव के कारण कई गंभीर मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। भारत में हर चार में से एक इंसान हर साल Stress का शिकार हो  जाता है। तनाव के कारण  कई बार हम लोग काम करते हुए भी लंबे वक्त तक काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। अगर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लंबे वक्त तक अनदेखा किया जाए जो ये गंभीर समस्या में बदल सकती  है। देश में Stress  और depression का इलाज करवाने वाले मरीजों में से तीन चौथाई महिलाएं हैं। लेकिन जो तीन चौथाई लोग टेंशन और डिप्रेशन के चलते आत्महत्या कर लेते हैं वह पुरुष हैं। चूंकि डिप्रेशन और टेंशन ही सुसाइड के मामलों के लिए अधिक  जिम्मेदार  साबित हुये  हैं इसलिए इसका  इलाज जरुरी है | क्यों होता है तनाव? (What causes stress?) आजकल होने वाले तनाव के सामान्य कारण निम्नलिखित हैं। जैसे - 1.काम 2.बेरोजगारी 3.पैसा 4.अलगाव और कुछ अन्य कारण जैसे घर छोड़ना 5.पार्टनर से ब्रेकअप 6.नौकरी में बदलाव होना 7.बच्चों का घर छोड़ना 8.आपका स्वास्थ्य और मूड 9.मौसम 10.पार्टनर का निधन होना या करीब न होना 11.तलाक के कारण परिवार टूट जाना 12.नशाखोरी और ड्रिंक करना 12.बुरी आदतों का शिकार होना 14.हिंसा या बुरे व्यवहार का शिकार होना थोड़ी देर के लिए जीवन में उतार-चढ़ाव आना तो जरुरी  है लेकिन अगर ये लंबे वक्त तक बने  रहे तो ये जिंदगी से जुड़ी बाकी चीजों को भी नष्ट  कर सकती है। वैसे भी तनाव इसलिए कभी नहीं होता क्योंकि आप कमजोर हैं बल्कि हमेशा इसलिए होता है कि आप उसकी मौजूदगी होने के बाद भी टेंशन को रहने देते हैं और उसका विरोध नहीं करते  हैं। तनाव होने पर हमेशा चीजों को सकारात्मक तरीके से देखने और सोचने  की कोशिश करनी चाहिए। कुछ मामलों में हो सकता है कि आपको Fresh Start  की भी जरुरत पड़े। लेकिन अगर आप लगातार नौकरियां, पार्टनर या घर बदल रहे हैं तो ऐसे हालात में आपको हालात नहीं बल्कि खुद को बदलने की जरुरत होती  है। क्या हैं Stress के   चेतावनी देने वाले लक्षण (​What are the warning signs of stress ?) अगर आपको इतना ज्यादा तनाव होता है कि संभलने का मौका तक नहीं मिल पाता है, तो ये आपके लिए खतरे की घंटी जैसा हो सकता है। इसलिए ये जानना बहुत जरुरी  है कि तनाव होने से पहले  वो कौन से  लक्षण हैं जिन्हें जानकर आप थोड़ी देर में होने वाले तनाव से पहले ही निपट सकते हैं। टेंशन से पहले होने वाले सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं:- 1.सामान्य से ज्यादा या कम भोजन करना। 2.तेजी से मूड बदलना। 3.आत्म-सम्मान में कमी आना। 4.हर वक्त टेंशन या बेचैनी महसूस करना। 5.ज्यादा या कम सोना। 6.कमजोर याददाश्त या भूलने की समस्या। 7.जरुरत से ज्यादा शराब या ड्रग्स लेना। 8.जरुरत से ज्यादा थकान या ऊर्जा में कमी होना। 9.परिवार और दोस्तों से दूर-दूर रहना। 10.ध्यान कें​द्रित न करना और काम में संघर्ष करना। 11.उन चीजों में भी मन न लगना जो पहले आपको पसंद थीं। 12.विचित्र अनुभव होना, उन चीजों का दिखना जो वहां हैं ही नहीं।  इसके अलावा टेंशन के कुछ शारीरिक लक्षण भी हो सकते हैं जिनमें सिरदर्द, कब्ज या किसी खास अंग या शरीर में दर्द होना। अपने अनुभव के बारे में कैसे बताएं? (How do I talk about how I'm feeling?) हम सभी जानते हैं कि जब हम किसी से जुड़ाव/lagav महसूस करते हैं तो उससे बात करना हमेशा अच्छा लगता है। हम लोगों में से कुछ के लिए, सोशल मीडिया इसका सबसे अच्छा माध्यम है। लेकिन रिसर्च से पता चला कि सोशल मीडिया ही हम लोगों में से कई की जिंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत बनकर सामने आया  है। ये कहावत काफी पुरानी  भी है और सुनी भी सभी ने है  कि दर्द बांटने से कम होता है। लेकिन सच में  ये बात सही  है। ये लोगों को बताने के लिए नहीं है, ना ही ये साबित करने के लिए है कि आप जरुरत में हैं और किस दौर से गुजर रहे हैं। बल्कि ये उनसे समझने के लिए है कि अगर वह उस तकलीफ में होते तो क्या करते? कई बार जब हम टेंशन में होते हैं तो आसान से उपाय भी हमारे दिमाग में नहीं आते हैं। लेकिन दूसरे वही बात सुनकर हमें ऐसे रास्ते सुझा देते हैं जो हमारी हर मुश्किल को आसान बना देते हैं। इसलिए खुलकर संवाद करना भी बहुत जरूरी है। वैसे भी किसी से बात करना कौन सी बड़ी बात है।  इसलिए ईमानदारी से बात रखिए और दोस्तों को हर वो बात बता दीजिए जो आपको परेशान कर रही है। घबराएं नहीं, डॉक्टर से सलाह लें क्या कभी आपको जुकाम, दस्त या फिर बुखार ​की समस्या हुई है? इन बीमारियों के इलाज के लिए आप जरूर ही डॉक्टर के पास भी गए होंगे। अगर हां, तो फिर टेंशन होने पर डॉक्टर के पास जाने में हिचक क्यों? अगर आप सच में  टेंशन से उबरने में मुश्किल महसूस कर रहे हों तो बेहतर है कि बिना ���ेर किए डॉक्टर के पास जाएं। मनोचिकित्सक सच में  बहुत धैर्य से मरीज की बात सुनते हैं और वह आपकी समस्या को औरों से बेहतर समझते हैं। उनके सामने बात रखने से वह न सिर्फ आपका सही इलाज कर सकते हैं बल्कि आपकी जिंदगी को नई राह भी दिखा सकते हैं। टेंशन, डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी उतनी ही आम बीमारी है जितनी कि जुकाम या बुखार होना। अगर आप उनके इलाज के लिए डॉक्टर के पास जा सकते हैं तो फिर टेंशन के इलाज के लिए क्यों नहीं? संकोच छोड़ दीजिए और डॉक्टर से इस मामले में बात कीजिए। आशा करती हूँ कि ये जानकारी helpfull होगी | हेल्थ से सम्बंधित अधिक लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर विजिट करें :https://www.wisehealths.com/
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renatuslove · 5 years
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★दोस्तों अगर आप किसी भी बीमारी से परेशान हैं और काफी समय से दवाओं के सेवन से भी कोई फायदा नहीं हो रहा है,(चाहे उसे डॉक्टर ने जवाब भी दे दिया हो)तो संपर्क करे:-* *RENATUS NOVA benefits - Single Produce Multiple Solutions* *उदाहरण:-**1- शुगर (मधुमेह) 2- ब्लड प्रेशर (B.P.)  3- हृदय रोग 4- कोलेस्ट्रॉल  5- कैंसर. 6- एड्स. 7- दमा  8- लकवा ( paralysis ) 9- स्वाइन फ्लू  10- थाइरोइड 11- माइग्रेन  12- थकान 13- आर्थराइटिस 14- गठिया 15-जोड़ों का दर्द 16- कमर में दर्द 17-बदन दर्द 18-कमजोर हड्डियां 19- हड्डियों का पतला होना 20-ऑस्टिओपोरोसिस 21- सेक्सुअल समस्या 22- नपुसंकता 23-फर्टिलिटी 24-वीर्य संख्या बढाने में सहायक 25- गैंग्रीन 26-पुराना घाव 27-सर्वाइकल 28- मोटापा 29- त्वचा / चर्म रोग 30- सोराइसिस 31-लूकोडर्मा 32- एलर्जी 33-नासूर 34- किडनी की समस्या 35- पथरी की समस्या 36- बवासीर 37- अलसर 38- एसिडिटी 39- गैस्ट्रायटिस 40- कोलाइटिस 41- श्वसन संबंधी समस्या 42- पाचन सम्बंधित रोग 43- एंटी एजिंग 44- झुर्रिया कम करना 45- एकाग्रता 46- डिटॉक्सीफिकेशन 47- ऊर्जा की कमी 48- नासूर 49- यूरिक एसिड का बढ़ना 50- मिर्गी 51- लीवर से जुडी कोई भी परेशानी 52- अनिद्रा 53- अनीमिया (खून की कमी) 54- मानसीक तनाव 55- धूम्रपान / तम्बाकू वालो के लिए 56-कामकाजी लोगों के लिए  57- अल्ज़ाइमर 58- पार्किंस���स डिसीज 59- खांसी 60- प्रोस्टेट 61- साईनस 62- पेट में गैस बनना 63- पैर के तलवे मे जलन 64- आखों से संबंधित रोग 65- साइटिका 66- धात 67- स्वेद प्रदर 68- मlसिक धर्म (M.C.) अनियमितता 69- फाइलेरिया 70- बालों का झड़ना 71- प्रजनन क्षमता 72- पागलपन 73- कमजोर याददाश्त 74- बच्चो/बुजुर्गों/महिलाओं के लिए संपूर्ण आहार 75- स्वाइन फ्लू   इत्यादि!*                     रैनाटाॅस नोवा अपनाएं।     खुशियों भरा जीवन पाए। अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करे : महीपाल सिंह 9812023760
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merisahelimagazine · 4 years
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क्या आप भी करती हैं सेहत से जुड़ी ये 10 गलतियां (10 Health Mistakes All Women Make)
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ख़ूबसूरत नज़र आने के लिए महिलाएं हर तरह की एक्सरसाइज़ और डायटिंग करने के साथ ही आउटफ़िट से लेकर एक्सेसरीज़ तक ढेरों एक्सपेरिमेंट करती हैं, लेकिन ऐसा करते समय कई बार वो ऐसी गलतियां करती हैं, जो उनकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकती हैं. आइए, हम आपको सेहत से जुड़ी ऐसी 10 गलतियों के बारे में बताते हैं, जो लगभग सभी महिलाएं करती हैं.
1) हाई हील वाले फुटवेयर्स पहनना अक्सर महिलाएं कॉन्फिडेंट और इंप्रेसिव नज़र आने के लिए हाई हील वाली सैंडल पहनती हैं. अगर आप भी ऐसा करती हैं, तो ज़रा संभल जाइए, क्योंकि हाई हील वाले फुटवेयर्स आपका कॉन्फिडेंस बढ़ाएं न बढ़ाएं, लेकिन आपकी सेहत का ग्राफ़ ज़रूर गिरा देते हैं. दरअसल, हाई हील वाली सैंडल पहनने से बॉडी पोस्चर प्रभावित होता है, जिससे जोड़ों में दर्द, पैरों में सूजन, बैक पेन आदि की समस्या हो सकती है. कैसे बचें इस गलती से? अगर आप अपनी सेहत के साथ समझौता नहीं करना चाहतीं, तो 1.5 इंच या उससे कम हील वाले फुटवेयर्स पहनें. इससे आपका शौक़ भी पूरा हो जाएगा और किसी तरह की समस्या भी नहीं होगी.
2) हैवी हैंडबैग का इस्तेमाल मोबाइल, वॉलेट, एक्सेसरीज़, कॉस्मेटिक्स आदि को हैंडबैग में एडजस्ट करने के चक्कर में महिलाएं अक्सर बड़ा बैग चुनती हैं और उनका ये ओवरसाइज़्ड बैग कब ओवर लोड हो जाता है, उन्हें पता ही नहीं चलता. ऐसे में भारी-भरकम बैग की वजह से पीठ, गर्दन व कंधे में दर्द की शिकायत हो जाती है और धीरे-धीरे ये दर्द गंभीर रूप लेता है. कैसे बचें इस गलती से? प्लस साइज़ की बजाय छोटी साइज़ का हैंडबैग यूज़ करें और अगर आप ओवरसाइज़्ड बैग ट्राई करना ही चाहती हैं, तो उसमें कम से कम सामान रखने की कोशिश करें.
3) मेकअप उतारे बिना सो जाना कई महिलाएं देर रात पार्टी-फंक्शन से लौटने के बाद थकान की वजह से बिना मेकअप उतारे ही सो जाती हैं, जिससे उनके चेहरे की ख़ूबसूरती बिगड़ सकती है. रात में बिना मेकअप उतारे सोने से दिनभर की जमी चिकनाई और धूल-मिट्टी त्वचा पर ही चिपकी रह जाती है, जिससे रोम छिद्र बंद हो जाते हैं और त्वचा खुलकर सांस नहीं ले पाती. नतीजतन पिंपल्स की समस्या हो जाती है. इसी तरह मस्कारा व आई मेकअप से आंखों में जलन हो सकती है. कैसे बचें इस गलती से? पार्टी से आने के बाद अच्छी क्वालिटी के मेकअप रिमूवर से मेकअप उतारें.
4) ड्रिंक करना करियर के साथ ही अब शराब पीने के मामले में भी महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं हैं, लेकिन अधिक शराब के सेवन से उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में भी यह बात सामने आई है कि ज़्यादा शराब पीने से महिलाओं के मस्तिष्क के उस हिस्से को नुक़सान पहुंचता है, जो याददाश्त को नियंत्रित करता है यानी उनकी याददाश्त कमज़ोर हो जाती है. इसी तरह गर्भावस्था में भी शराब पीना ख़तरनाक हो सकता है. इससे न केवल भ्रूण के विकास में समस्या आती है, बल्कि बच्चा मिर्गी आदि का भी शिकार हो सकता है. कैसे बचें इस गलती से? सेहतमंद बने रहने के लिए शराब की लत से बचें और पैसिव स्मोकिंग से भी दूर रहें.
5) गलत साइज़ की ब्रा पहनना हाल में हुए एक शोध से यह बात सामने आई है कि लगभग 70 फ़ीसदी महिलाएं ग़लत साइज़ की ब्रा पहनती हैं, जिससे लुक के साथ ही उनकी सेहत भी प्रभावित होती है. ग़लत साइज़ की ब्रा की वजह से बैक, नेक व ब्रेस्ट पेन के चांसेस बढ़ जाते हैं. साथ ही स्किन इरीटेशन, ब्लड सर्कुलेशन प्रॉब्लम व ब्रेस्ट कैंसर का ख़तरा भी बढ़ जाता है. कैसे बचें इस गलती से? ब्रा ख़रीदने से पहले अपनी ब्रेस्ट साइज़ का माप जान लें. अगर आप प्रेग्नेंट हैं, तो एक साइज़ बड़ी ब्रा ख़रीदें, ताकि वो ब्रेस्ट साइज़ के साथ एडजस्ट हो जाए.
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6) तनावग्रस्त रहना कॉम्पिटीशन के इस दौर में घर और ऑफ़िस दोनों जगह ख़ुद को बेहतर साबित करने के चक्कर में अक्सर महिलाएं तनावग्रस्त हो जाती हैं. लंबे समय तक तनावग्रस्त रहने से डिप्रेशन, अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिसीज़, कैंसर जैसी बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है. हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार, पीरियड्स के दौरान तनावग्रस्त रहने वाली महिलाओं के प्रेग्नेंट होने की संभावना कम हो जाती है. साथ ही वे सिरदर्द, पेट में ख़राबी, हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियों की शिकार हो जाती हैं. इतना ही नहीं, धीरे-धीरे उनमें सेक्स की इच्छा भी ख़त्म होने लगती है. कैसे बचें इस गलती से? इन समस्याओं से निजात पाने के लिए नियमित रूप से एक्��रसाइज़ करें और सकारात्मक सोच विकसित करें. इससे आपको नई ऊर्जा मिलेगी. मुमकिन हो तो वीकेंड पर दोस्तों के साथ हॉलिडे पर चली जाएं, इससे आप फ्रेश और तनावमुक्त महसूस करेंगी.
7) साइज़ ज़ीरो फिगर पाने के लिए डायटिंग साइज़ ज़ीरो फिगर के प्रति महिलाओं की दीवानगी उन्हें डायटिंग के लिए मजबूर कर रही है, लेकिन ऐसा करते समय वो ये नहीं सोचती कि स्लिम होने की उनकी इस कोशिश का उनकी सेहत पर कितना बुरा असर होता है. हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार, डायटिंग करने से शरीर को ज़रूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिसका नतीजा आंखों के नीचे काले घेरे, चेहरे का रंग फीका पड़ना, कमज़ोर हड्डियों और लो ब्लड प्रेशर के रूप में सामने आता है. इतना ही नहीं, क्रश डायटिंग (जल्दी पतला होने के लिए डायनिंग करना) से शरीर में कैलोरीज़, मिनरल और विटामिन्स की भी कमी हो जाती है, जिससे बालों का झड़ना, दोमुंहे और बेजान बालों की समस्या बढ़ जाती है. साथ ही नाखून और त्वचा की रंगत भी फीकी पड़ जाती है. कैसे बचें इस गलती से? डायटिंग करने में कोई बुराई नहीं, बशर्ते वो किसी अच्छे डायटीशियन की सलाह से की जाए. डायटिंग का मतलब ये नहीं कि आप खाना-पीना पूरी तरह बंद कर दें. बेहतर होगा कि ऐसा करने की बजाय अपनी डायट में कम ़फैट, हाई प्रोटीन व फ़ाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करें, ताकि स्लिम रहने के साथ ही आप हेल्दी भी बनी रहें.
8) इमोशनल ईटिंग पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज़्यादा इमोशनल होती हैं और अपनी भावनाओं को क़ाबू में रखने के लिए कई महिलाएं खाने का सहारा लेती हैं. ऐसे में अक्सर वो मीठी और अधिक कैलोरी वाली चीज़ें खा लेती हैं, जिससे उनका वज़न बढ़ने लगता है और वो मूड स्विंग, हाई ब्लड प्रेशर, शुगर जैसी बीमारियों की शिकार हो जाती हैं. कैसे बचें इस गलती से? ‘इमोशनल ईटर’ बनने से बचें. जब भी आप पर इमोशन्स हावी होने लगें, तो उस वक़्त खाने पर से ध्यान हटाने के लिए ख़ुद को दूसरे कामों में व्यस्त रखें, जैसे- घर की सफ़ाई करें, गाना सुनें, क़िताब पढ़ें आदि.
9) पर्याप्त नींद न लेना ख़राब सेहत के लिए कई बार अपर्याप्त नींद भी ज़िम्मेदार होती है और इसकी ज़्यादातर शिकार कामकाजी महिलाएं ही होती हैं. हाल ही में हुए एक शोध में कहा गया है कि 5 घंटे से कम सोने से हाइपरटेंशन और हार्ट डिसीज़ का ख़तरा बढ़ जाता है. साथ ही नींद पूरी न होने से हार्मोनल बैलेंस भी बिगड़ने लगता है, जिससे भूख बढ़ जाती है और ज़्यादा खाने से वज़न बढ़ने लगता है. कैसे बचें इस गलती से? हार्मोन्स के स्तर को बैलेंस करनेे के लिए रोज़ाना कम से कम 6 से 8 घंटे की नींद लें. अच्छी सेहत के लिए ये बहुत ज़रूरी है. इससे पाचन शक्ति और याददाश्त भी बढ़ती है.
10) ख़ुद की अनदेखी महिलाएं अक्सर घर-परिवार और ऑफ़िस का तो पूरा ख़्याल रखती हैं, लेकिन इन सबके बीच वो ख़ुद की अनदेखी कर जाती हैं. घर-परिवार की देखभाल और बच्चों की मांग पूरी करने में वो इतनी बिज़ी रहती हैं कि उन्हें अपनी सेहत का ख़्याल ही नहीं रहता. ऐसा करते समय वो ये भूल जाती हैं कि दूसरों का ख़्याल रखने के लिए पहले ख़ुद सेहतमंद होना ज़रूरी है. कैसे बचें इस गलती से? परिवार के साथ ही अपना भी ख़्याल रखें. ख़ुद के लिए वक़्त निकालें. संतुलिट डायट लें, सुबह वॉक पर जाएं या घर पर ही एक्सरसाइज़, योगा आदि करें. इससे आप फिट और हेल्दी रहेंगी.
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अल्जाइमर रोग के कारण, लक्षण और इलाज – Alzheimer’s Causes, Symptoms and Treatment in Hindi
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अल्जाइमर रोग के कारण, लक्षण और इलाज – Alzheimer’s Causes, Symptoms and Treatment in Hindi
अल्जाइमर रोग के कारण, लक्षण और इलाज – Alzheimer’s Causes, Symptoms and Treatment in Hindi vinita pangeni Hyderabd040-395603080 December 17, 2019
रोजमर्रा के कामकाज के दौरान छोटी-छोटी बातों को भूल जाना आम है। हां, अगर कोई अहम बातों को भी भूलने लगे, तो अल्जाइमर का लक्षण हो सकता है। दुनियाभर में कई लोग इस रोग की चपेट में हैं। अल्जाइमर से पीड़ित मरीज अपनों के साथ होते हुए भी नहीं होते, क्योंकि उनके दिमाग में मौजूद तमाम बातें व यादें मिटने लगती हैं। अफसोस, इस भूलने की बीमारी यानी अल्जाइमर रोग का कोई इलाज नहीं है (1)। यह समय के साथ और गंभीर होती चली जाती है, लेकिन डॉक्टर की दवा और अल्जाइमर के लिए घरेलू उपाय का इस्तेमाल कर इसके लक्षण को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम अल्जाइमर रोग, इसके विभिन्न स्टेज और इस भूलने की बीमारी का इलाज न होने के बावजूद, इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है, इस बारे में विस्तार से बताएंगे।
लेख में सबसे पहले हम आपको बता रहे हैं कि अल्जाइमर रोग आखिर क्या होता है।
विषय सूची
अल्जाइमर रोग क्या है? – What is Alzheimer’s in Hindi
अल्जाइमर रोग (AD) न्यूरोलॉजिकल (दिमाग से संबंधित) विकार है। इसके कारण मस्तिष्क की कोशिकाएं खत्म व नष्ट होने लगती हैं, जिससे याददाश्त और दैनिक गतिविधियों की क्षमता प्रभावित होती है। अल्जाइमर डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का सबसे आम प्रकार है। शुरुआती दौर में अल्जाइमर के लक्षण कम होते हैं, लेकिन समय के साथ यह समस्या काफी गंभीर होती जाती है। इस बीमारी से प्रभावित लोगों को भूलने की बीमारी लग जाती है, जिस कारण वह परिवार के सदस्यों को पहचान नहीं पाते। कई बार बोलने, पढ़ने और लिखने में भी समस्या होने लगती है। कई बार तो मरीज दांत ब्रश करना और बालों को कंघी करना तक भूल जाते हैं। बाद में बीमारी से ग्रसित लोग, चिंतित और आक्रामक व गुस्सैल हो जाते हैं। आमतौर पर अल्जाइमर रोग 60 साल के बाद होना शुरू होता है और उम्र बढ़ने के साथ-साथ गंभीर होता जाता है (1)।
माना जाता है कि युवा लोगों को भी अल्जाइमर रोग हो सकता है, लेकिन यह आम नहीं है। हालांकि, अभी भी अल्जाइमर डिजीज का कारण स्पष्ट नहीं हुआ है, इसलिए वैज्ञानिक इस मामले में काफी शोध कर रहे हैं (2)। एक शोध में यह भी सामने आया था कि अल्जाइमर रोग भी एक तरह की ऑटोइम्यून बीमारी हो सकती है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही न्यूरोन्स को खत्म करने लगती है (3)।
इस विकार से प्रभावित लोगों को देखभाल की काफी जरूरत होती है। ऐसा करने के लिए अल्जाइमर रोग के विभिन्न चरणों को समझने भी जरूरी है, जिसे हम नीचे विस्तार से बता रहे हैं।
अल्जाइमर रोग के चरण – Stages of Alzheimer’s in Hindi
व्यापक रूप से अल्जाइमर को 7 चरणों में विभाजित किया गया। इन सभी सात स्टेज के बारे में हम यहां विस्तार से बता रहे हैं (4)।
स्टेज 1: नो कॉग्निटिव इंपेयरमेंट (No cognitive impairment)
इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति अगर कमजोर नहीं हैं, तो इस दौरान स्मृति से संबंधित किसी तरह की समस्याओं का अनुभव नहीं होता। साथ ही डॉक्टर भी इस स्टेज का पता नहीं लगा पाते, क्योंकि इस चरण के दौरान एक प्रभावित व्यक्ति में आमतौर पर कोई लक्षण नजर नहीं आते।
स्टेज 2: मामूली गिरावट (Very mild decline)
इस स्टेज में अल्जाइमर प्रभावित व्यक्ति को लगता है कि उसकी याददाश्त कम हो रही है और वह परिचित शब्दों, जगह और लोगों के नाम को भूल रहा है। जैसे चाबियां, चश्मा और अन्य रोजमर्रा की चीजों को रखने की जगह को भूलना।
स्टेज 3: माइल्ड कॉग्निटिव डिकलाइन (Mild cognitive decline)
इस स्टेज पर रोगी के मानसिक (संज्ञानात्मक) व्यवहार में बदलाव दिखने लगते हैं। इनकी याददाश्त और एकाग्रता में कमी आने लगती है। इस स्टेज के लोगों का निदान संभव होता है। डॉक्टर परीक्षण के दौरान इसका पता लगा सकता है। ऐसे मरीज परिवार व करीबी लोगों के नाम भूल जाते हैं और नए लोगों से मिलने पर उनका नाम याद नहीं रख पाते। साथ ही किसी भी प्लान को बनाने और उसे याद रखने की क्षमता में कमी आने लगती है। कुछ भी पढ़ने के बाद उसे याद न रख पाना, सामान खोना या किसी गलत जगह पर रख देना।
स्टेज- 4: माडरेट कॉग्निटिव डिकलाइन (Moderate cognitive decline)
इस दौरान हाल ही में हुई घटनाओं को भूलना व इससे संबंधित कुछ ही बातों का याद होना। किसी भी तरह का बिल भरना, पैसों से संबंधित कामों को करना व खुद से जुड़ी हुई बीती बातों को भूलना।
स्टेज-5: मॉडेरटली सीवियर कॉग्निटिव डिक्लाइन (Moderately severe cognitive decline)
इस चरण में अल्जाइमर के लक्षण काफी ज्यादा दिखने लगते हैं। कई नई समस्याएं होने लगती हैं, जैसे खुद से संबंधित बातों को भूलना, मोबाइल नंबर, घर का पता, तारीख, महीने और मौसम को याद रखने में समस्या व गिनती भूलना आदि। इस स्टेज में व्यक्ति को अपना नाम और अपने घर परिवार वालों का नाम याद रहता है। साथ ही खाना खाने और शौचालय इस्तेमाल करने में कोई समस्या नहीं होती।
स्टेज -6:  गंभीर गिरावट  (Severe cognitive decline)
इस अवस्था में स्मृति से संबंधित समस्याएं इतनी ज्यादा गंभीर हो जाती हैं कि व्यक्ति कई तरह की महत्वपूर्ण बातों को भूलने लगता है। प्रभावित व्यक्तियों को दैनिक गतिविधियों जैसे कपड़े पहने और बाथरूम इस्तेमाल करने में भी समस्या होने लगती है। सामान्य तौर पर इस दौरान व्यक्ति अपने घरवालों का नाम भूल जाता है, लेकिन अपना नाम याद रखता है और परिचितों को भी पहचान लेता है। इस स्टेज में नींद आने में भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
स्टेज – 7: लेट स्टेज  (Very severe cognitive decline)
अल्जाइमर डिजीज का यह अंतिम चरण होता है। इसमें व्यक्ति प्रतिक्रिया करने, बोलने और शरीर को नियंत्रित करने की क्षमता खो देता है। हालांकि, कभी-कभी पीड़ित शब्द या छोटे-छोटे वाक्य बोल लेता है। इस दौरान व्यक्ति को खाने और शौचालय जाने में सहायता की जरूरत पड़ती है। साथ ही सहायता के बिना चलने, उठने व बैठने की क्षमता भी लगभग खत्म हो जाती है। इसके अलावा, मांसपेशियां भी कठोर होने लग जाती हैं। खाना निगलने में भी समस्या होने लगती है।
 चलिए, अब अल्जाइमर रोग के कारण के बारे में जान लेते हैं।
अल्जाइमर रोग के कारण – Causes of Alzheimer’s in Hindi
अल्जाइमर रोग का वैसे तो कोई सटीक कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन शोध से पता चलता है कि मस्तिष्क में कुछ परिवर्तन होने की वजह से ही अल्जाइमर रोग होता है (5)। इसके कुछ संभावित कारण हम नीचे बता रहे हैं : 
मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम के नर्व सेल्स (तंत्रिका कोशिकाओं) का काम न करना व नष्ट होना (6)।
माना जाता है कि पूरी नींद न लेना भी आगे चलकर अल्जाइमर रोग का कारण बन सकता है (7)।
ताउ प्रोटीन (Tau protein) का जमा होना (7)।
न्यूरोपिल थ्रेड (असामान्य न्यूरोनल प्रक्रियाएं) (9) ।
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस भी कारण हो सकता है (10)।
भूलने की बीमारी का इलाज भले ही न हो, लेकिन अल्जाइमर रोग के लक्षण दिखते ही इन्हें कम करने के लिए डॉक्टर से संपर्क जरूर करना चाहिए। इसलिए, नीचे हम विस्तार से अल्जाइमर के लक्षण के बारे में बता रहे हैं।
अल्जाइमर रोग के लक्षण – Symptoms of Alzheimer’s in Hindi
भूलने की बीमारी जिसकी वजह से हर दिन प्रभावित हो, वह सामान्य रूप से बढ़ती उम्र का हिस्सा नहीं है। यह डिमेंशिया के एक प्रकार एल्जाइमर का लक्षण हो सकता है। ऐसे में भूलने की बीमारी से घर में कोई भी जूझ रहा हो, तो सतर्क होना जरूरी है। नीचे हम 10 संकेत व लक्षण बता रहे हैं। इन लक्षणों से यह साफ हो जाएगा कि इस भूलने की बीमारी का इलाज करना जरूरी है, क्योंकि यह बुढ़ापे का संकेत नहीं, बल्कि उसे कहीं बढ़कर है (4)।
स्मर्ण शक्ति का कम होना।
घर से संबंधित कार्य करने में परेशानी होना।
कुछ भी बोलने व समझने में समस्या होना।
समय और स्थान को लेकर भ्रम होना व पहचान न पाना।
निर्णय लेने की क्षमता का कम व खत्म होना।
सोचने में परेशानी व क्षमता में कमी।
चीजों का खो जाना।
बर्ताव और मन की स्थिति में बदलाव होना।
व्यक्तित्व में परिवर्तन।
आत्मबल में कमी।
अल्जाइमर रोग के लक्षण तो आप जान ही चुके हैं, अब हम अल्जाइमर रोग के लिए घरेलू उपाय के बारे में बता रहे हैं। यह घरेलू उपाय अल्जाइमर रोग के उपचार तो नहीं हैं, लेकिन इनके जरिए लक्षण कम करने में मदद जरूर मिल सकती है।
अल्जाइमर रोग के लिए घरेलू उपाय – Home Remedies for Alzheimer’s in Hindi 
1. गिंको बाइलोबा (जिन्‍कगो) 
सामग्री:
जिन्कगो बाइलोबा की पत्तियां या सप्लीमेंट
उपयोग का तरीका:
जिन्कगो बाइलोबा की पत्तियां को महीन पीस लें।
अब इसमें से आधा कप जूस निकालकर पी लें।
डॉक्टर की सलाह पर इसके सप्लीमेंट का भी सेवन किया जा सकता है।
कैसे लाभदायक है:
जिन्कगो बाइलोबा मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार करने में मदद कर सकता है। इसलिए, माना जाता है कि यह अल्जाइमर रोग से संबंधित कुछ लक्षणों को कम कर सकता है। अल्जाइमर रोग के इलाज में जिन्कगो बाइलोबा की गुणवत्ता और प्रभावशिलता को परखने के लिए अभी और शोध किए जाने जरूरी हैं (11) (12)।
2. विटामिन-ई Vitamin E 
सामग्री:
विटामिन-ई युक्त खाद्य पदार्थ या सप्लीमेंट 
उपयोग का तरीका: 
सीधे विटामिन-ई से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन किया जा सकता है।
विटामिन-ई युक्त खाद्य पदार्थों में बादाम, सूरजमुखी के बीज, पालक, कीवी और हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल हैं।
विटामिन-ई के अतिरिक्त सप्लीमेंट डॉक्टर की सलाह पर लिए जा सकते हैं। 
कैसे लाभदायक है:
एनसीबीआई (नेशनल सेंटर ऑफ बायोटेक्नोलॉजी फॉर इंफोर्मेशन) में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, अल्जाइमर होने का मुख्य कारण ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को भी माना गया है। ऐसे में अल्जाइमर के इलाज और इसके लक्षण को ठीक करने में विटामिन-ई अहम भूमिका निभा सकता है। अल्जाइमर को लेकर की गई स्टडी के मुताबिक, विटामिन-ई न केवल ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को दूर करने में सक्षम है, बल्कि यह याददाश्त और मस्तिष्क स्वास्थ्य पर भी अच्छा असर डाल सकता है (10)। विटामिन-ई युक्त खाद्य पदार्थों के अलावा विटामिन-ई 15mg तक के सप्लीमेंट्स भी लिए जा सकते हैं (13)।
3. हल्दी 
सामग्री:
1 चम्मच हल्दी पाउडर
1 गिलास गर्म दूध
उपयोग का तरीका: 
एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी पाउडर मिक्स कर लें।
इसे अच्छी तरह से मिलाएं और फिर पी लें।
इस मिश्रण का रोजाना एक बार सेवन किया सकता है।
कैसे लाभदायक है:
हल्दी में करक्यूमिन पाया जाता है, जो एक प्रकार का पॉलीफेनोल कंपाउंड है। माना जाता है कि यह कंपाउंड अल्जाइमर के उपचार और रोकथाम में भूमिका निभा सकता है। दरअसल, करक्यूमिन में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी व लिपोफिलिक गुण होता है, जो मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार करने में मदद कर सकता है। शोध के मुताबिक, करक्यूमिन में कई गुण होते हैं, जो न्यूरोन्स को नष्ट होने से रोककर अल्जाइमर के रोगियों की स्मृति में सुधार करने में मदद कर सकते हैं। इसलिए, माना जाता है कि हल्दी के प्रयोग से अल्जाइमर रोग के लक्षण को कम करने में मदद मिल सकती है (14)।
4. ओमेगा-3 (Omega-3) 
सामग्री:
ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त खाद्य पदार्थ व सप्लीमेंट
उपयोग का तरीका:
रोजाना ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त भोजन का सेवन करें।
ओमेगा-3 से भरपूर खाद्य पदार्थों में वसा युक्त मछली, अलसी, अखरोट, सोया और चिया बीज शामिल हैं।
डॉक्टर की सलाह पर ही सप्लीमेंट ले सकते हैं। 
कैसे लाभदायक है:
ओमेगा-3 फैटी एसिड मस्तिष्क संबंधी कार्यों व गतिविधियों को बढ़ाने में मदद कर सकता है। जानवरों पर किए गए शोध के मुताबिक, यह फैटी एसिड बीटा-एमिलॉइड (न्यूरोन में जमने वाला अमिनो एसिड) को कम करने के साथ ही अल्जाइमर रोग की वजह से न्यूरोन्स को पहुंचने वाले नुकसान को भी रोकने में मदद कर सकता है। इसलिए, माना जाता है कि अल्जाइमर रोग के हल्के लक्षण नजर आने पर ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है (15)।
अल्जाइमर रोग के घरेलू उपाय के बाद हम इसके जोखिम कारक के बारे में बता रहे हैं।
अल्जाइमर रोग के जोखिम कारक – Risk Factors of Alzheimer’s in Hindi
अल्जाइमर का जोखिम कारक सेरेब्रोवास्कुलर (Cerebrovascular) रोग भी है। यह रोग मरीज के मस्तिष्क और रक्त वाहिकाओं में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ती को रोकता है। इसके अलावा, रक्त वाहिका से संबंधित वास्कुलोपैथी (Vasculopathies) नामक विकार होने पर भी अल्जाइमर होने का खतरा बढ़ जाता है। इन बीमारियों के साथ ही अल्जाइमर के अन्य जोखिम कारक कुछ इस प्रकार हैं (5) (16): 
उम्र का बढ़ना अल्जाइमर का जोखिम कारक हो सकता है।
परिवार या करीबी रिश्तेदार में किसी का अल्जाइमर रोग से पीड़ित होना।
शरीर में अल्जाइमर रोग से जुड़े कुछ जीन का होना।
महिलाओं को अल्जाइमर होना का ज्यादा खतरा होता है।
उच्च कोलेस्ट्रॉल की वजह से हृदय और रक्त वाहिकाओं से संबंधित समस्याओं का होना।
सिर में किसी तरह की चोट का लगना।
पर्यावरण का प्रभाव भी एक जोखिम कारक है।
मधुमेह।
उच्च रक्तचाप।
धूम्रपान।
मोटापा।
अल्जाइमर रोग के उपचार के साथ ही इससे बचने के कुछ टिप्स को भी अपनाया जा सकता है, जिससे भूलने की बीमारी के इलाज में मदद मिल सकती है।
अल्जाइमर रोग से बचने के उपाय – Prevention Tips for Alzheimer’s in Hindi
भूलने की बीमारी का इलाज करवाना तो जरूरी है ही, लेकिन दिनचर्या में कुछ बदलाव भी अल्जाइमर रोगियों के लिए जरूरी होते हैं। यह बदलाव शुरुआती स्टेज के अल्जाइमर रोग के लक्षण को कम करने के साथ ही स्वस्थ लोगों को इस बीमारी से बचा सकते हैं (17)।
नियमित रूप से व्यायाम और अन्य शारीरिक गतिविधियों को करना।
ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम रखना।
संतुलित और स्वस्थ आहार का सेवन करना। खासकर मेडिटेरेनियन डाइट।
खाली समय में साइकलिंग, घुड़सवारी व स्विमिंग आदि करना।
दिमाग से संबंधित गतिविधियों में हिस्सा लेना।
सिर को चोट लगने से बचाएं रखना।
सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेना।
डिप्रेशन व तनाव से बचना।
धूम्रपान को छोड़ना।
वजन को नियंत्रित रखना।
अच्छी नींद लेना।
अल्जाइमर से निपटना और इससे प्रभावित व्यक्ति को संभालना काफी मुश्किल हो सकता है, लेकिन इस लेख में दी गई जानकारी की मदद से अल्जाइमर ग्रसित व्यक्ति को संभालने और इस रोग को समझने में मदद मिल सकती है। हम समझ सकते हैं कि अपने प्रियजनों में अल्जाइमर रोग से संबंधित बदलाव को स्वीकार करना आसान नहीं, लेकिन इस मुश्किल की घड़ी में हार नहीं माननी चाहिए। आर्टिकल में दी गई जानकारी की सहायता से आप अल्जाइमर रोगी को भावनात्मक और मानसिक सहायता देकर उनके साथ खड़े रहे सकते हैं। अल्जाइमर रोग के लक्षण को कम करने के लिए दवाओं के साथ ही घरेलू उपचार का भी डॉक्टर की सलाह पर इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आप अल्जाइमर रोग से संबंधित कोई अन्य सवाल पूछना चाहते हैं, तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से आप उसे हम तक पहुंचा सकते हैं। 
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
अल्जाइमर के लिए डॉक्टर से कब संपर्क करें?
लेख में ऊपर बताए गए अल्जाइमर रोग के लक्षण नजर आते ही, तुरंत डॉक्टर से संपर्क किया जाना चाहिए। जितनी जल्दी अल्जाइमर रोग का पता चलता है, उतनी जल्दी इस रोग का निदान करके स्थिति को काबू करने में मदद मिल सकती है।
क्या अल्जाइमर के नए लक्षण अन्य स्वास्थ्य स्थितियों को संभालने में परेशानी पैदा कर सकते हैं?
हां, अचानक सामने आने वाले अल्जाइमर डिजीज के नए लक्षण – जैसे नाम को भूलना, निर्णय लेने में परेशानी, टूथब्रथ करना भूलना अन्य स्वास्थ्य स्थितियों का इलाज करने में मुश्किल पैदा कर सकते हैं।
समय के साथ अल्जाइमर रोग कितना बढ़ेगा?
समय के साथ अल्जाइमर रोग और गंभीर हो सकता है, क्योंकि नए-नए लक्षण नजर आने लगते हैं। साथ ही ऐसा समय भी आ जाता है कि व्यक्ति कुछ भी बोलने और समझने की क्षमता को खो देता है। इस स्थिति के गंभीर होने की दर प्रत्येक रोगी पर निर्भर करती है। यह हर किसी में अलग-अलग हो सकती है।
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vinita pangeni
विनिता पंगेनी ने एनएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन में बीए ऑनर्स और एमए किया है। टेलीविजन और डिजिटल मीडिया में काम करते हुए इन्हें करीब चार साल हो गए हैं। इन्हें उत्तराखंड के कई पॉलिटिकल लीडर और लोकल कलाकारों के इंटरव्यू लेना और लेखन का अनुभव है। विशेष कर इन्हें आम लोगों से जुड़ी रिपोर्ट्स करना और उस पर लेख लिखना पसंद है। इसके अलावा, इन्हें बाइक चलाना, नई जगह घूमना और नए लोगों से मिलकर उनके जीवन के अनुभव जानना अच्छा लगता है।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/alzheimer-rog-ke-karan-lakshan-aur-ilaj-in-hindi/
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bisaria · 6 years
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अनिद्रा (नींद न आना) क्या है?
अनिद्रा एक नींद से सम्बन्धित समस्या है, जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करती है। संक्षेप में, अनिद्रा से पीड़ित व्यक्तियों के लिए नींद आना या सोते रहना मुश्किल होता है। अनिद्रा के प्रभाव बहुत भयंकर हो सकते हैं।
अनिद्रा आमतौर पर दिन के समय नींद, सुस्ती, और मानसिक व शारीरिक रूप से बीमार होने की सामान्य अनुभूति को बढाती है। मनोस्थिति में होने वाले बदलाव (मूड स्विंग्स), चिड़चिड़ापन और चिंता इसके सामान्य लक्षणों से जुड़े हुए हैं।
अनिद्रा में नींद से जुड़े विकारों की एक विस्तृत श्रृंखला है, जिसमें अच्छी नींद के अभाव से लेकर नींद की अवधि में कमी से जुडी समस्याएं हैं। अनिद्रा को आमतौर पर तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है
अस्थायी अनिद्रा यह तब होती है, जब लक्षण तीन रातों तक रहते हैं।
एक्यूट अनिद्रा इसे अल्पकालिक अनिद्रा भी कहा जाता है। लक्षण कई हफ्तों तक जारी रहते हैं।
क्रोनिक अनिद्रा यह आमतौर पर महीनों और कभी-कभी सालों तक रहती है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, क्रोनिक अनिद्रा के ज़्यादातर मामले किसी अन्य प्राथमिक (primary) समस्या से उत्पन्न दुष्प्रभाव होते हैं।
अनिद्रा रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। यह वयस्क पुरुषों की तुलना में वयस्क महिलाओं में अधिक आम है। नींद विकार स्कूल और काम के प्रदर्शन को कमजोर कर सकता है। साथ ही,यहमोटापे, चिंता, अवसाद, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता की समस्याओं, याददाश्त से जुडी समस्याओं, प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) की कार्यक्षमता को कमज़ोर और प्रतिक्रिया समय (reaction time) को कम करने का कारण बनता है।
अनिद्रा रोग दीर्घकालिक बीमारियों के होने के जोखिम को बढ़ाताहै। अमेरिका कीराष्ट्रीय निद्रा फाउंडेशन (National Sleep Foundation) के मुताबिक 30-40 प्रतिशत अमेरिकी वयस्कों का कहना है कि उनमेंपिछले 12 महीनों में अनिद्रा के लक्षण उत्पन्न हुए हैं और 10-15 प्रतिशत वयस्कों का दावा है कि उन्हें क्रोनिक अनिद्रा है।
अनिद्रा के कारणों में मनोवैज्ञानिक कारक, दवाएं और हार्मोन का स्तर शामिल है।
अनिद्रा का उपचार चिकित्सकीय या व्यावहारिक हो सकता है।
अनिद्रा से ग्रसित लोगों में काम पर ध्यान केंद्रित करने और एकाग्रता से जुडी समस्याएं सामान्य हैं। अमेरिका कीराष्ट्रीय हृदय, फेफड़े और रक्त संस्थान (National Heart, Lung and Blood Institute) के अनुसार, 20 प्रतिशत गैर-अल्कोहल से संबंधित कार दुर्घटनाएं ड्राइवर द्वारा झपकी लेने के कारण होती हैं।
लघु जीवन प्रत्याशा (Shortened life expectancy)
अनिद्रा के कारण आपकी जीवन प्रत्याशा कम हो सकती है। 16 अध्ययनों के एक विश्लेषण में 10 लाख से अधिक प्रतिभागियों और 112,566 मौतों के अंतर्गत नींद की अवधि और मृत्यु दर के बीच के संबंध को जाँचा गया। उसमें पाया कि जो लोग हर रात सात से आठ घंटे सोते थे, उनकी तुलना में कम सोने वाले व्यक्तियों में मृत्यु का खतरा 12 प्रतिशत ज़्यादा था।
हाल ही में हुए एक अध्ययन में 38 सालों से सतत अनिद्रा और मृत्यु दर के प्रभावों को जाँचा गया। उसमें पाया कि सतत अनिद्रा से ग्रसित लोगों की मौत का जोखिम 97% अधिक था।
अनिद्रा (नींद न आना) के प्रकार
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अनिद्रा के प्रकार - होने के कारण के आधार पर
अनिद्रा को उसके होने के कारण आधार पर तीन प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है प्राथमिक अनिद्रा (Primaryinsomnia),माध्यमिक अनिद्रा (Secondary insomnia),अस्थायी या क्षणिक अनिद्रा (Transient insomnia)
1. प्राथमिक अनिद्रा
प्राथमिक अनिद्रा में व्यक्ति को नींद की समस्याएं होती हैं, जो किसी भी अन्य स्वास्थ्य समस्या से प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुडी होती हैं।
2. माध्यमिक अनिद्रा
माध्यमिक अनिद्रा का अर्थ है कि व्यक्ति को होने वाली नींद की समस्याएं किसी अन्य कारण की वजह से होती हैं, जैसे कि स्वास्थ्य समस्या (अस्थमा, अवसाद, गठिया, कैंसर, या सीने में जलन), दर्द; उसके द्वारा ली जाने वाली दवाएं या उसके द्वारा शराब जैसे पदार्थ का सेवन करना।
3. क्षणिक या अस्थायी अनिद्रा
यह तब होती है, जब लक्षण तीन रातों तक रहते हैं।
अनिद्रा रोग के प्रकार - अवधि के आधार पर
अनिद्रा की अवधि भी भिन्न होती हैं। अवधि के आधार पर अनिद्रा के दो प्रकार हैं एक्यूट अनिद्रा (अल्पकालिक),क्रोनिक अनिद्रा (दीर्घकालिक)।
1. एक्यूट अनिद्रा
यह अल्पकालिक हो सकती है। तीव्र अनिद्रा एक रात से लेकर कुछ हफ्तों तक रह सकती है।
2. क्रोनिक अनिद्रा
यह एक लंबे समय के लिए रह सकती है। जब व्यक्ति को एक महीने या उससे अधिक समय तक एक सप्ताह में कम से कम तीन रातों तक अनिद्रा होती है, तो उसे 'दीर्घकालिक अनिद्रा' कहा जाता है।
अनिद्रा (नींद न आना) के लक्षण
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अनिद्रा के लक्षण क्या होते हैं?
चिकित्सक अनिद्रा के साथ कई अन्य संकेतों और लक्षणों को भी जोड़ देते हैं। अक्सर ये लक्षण अन्य चिकित्सकीय या मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में उलझन पैदा कर सकते हैं।
1. अनिद्रा से ग्रसित कुछ लोग अक्सर रात में नींद न आने और पूरी रात जागने की शिकायत कर सकते हैं। समस्या तनाव से शुरू हो सकती है। जबआपकी नींद न आने की अक्षमता बिस्तर के साथ जुड़ना शुरू हो जाती है, तब ये समस्या गंभीर हो सकती है।
2. ज़्यादातर दिन में दिखाई देने वाले लक्षण लोगों को चिकित्सकीय देखभाल के लिए प्रेरित कर सकते हैं।अनिद्रा के कारण दिन में होने वाली समस्याओं में निम्नलिखित शामिल हैं
हीन एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करने कीक्षमता।
याददाश्त कमज़ोर होना।
कुसमायोजित (uncoordinated) हो जाना।
चिड़चिड़ापन
सामाजिक रूप से मिलना-जुलना बंद कर देना।
थके होने और पर्याप्त नींद न लेने के कारण होने वालीमोटर वाहन दुर्घटनाएं।
3. दिन में दिखाई देने वाले इन लक्षणों का इलाज स्वयं करने के प्रयासों द्वारा लोग इन लक्षणों को बदतर बनासकते हैं। इन प्रयासों में शामिल हैं -
शराब पीना याएंटीथिस्टामाइन (antihistamines) लेनानींद न आने की समस्याओं को और बदतर कर सकताहै।
कुछ अन्य लोग बिना डॉक्टर से परामर्श किये नींद की गोलियाँ लेने की कोशिश करते हैं।
नींद न आने (अनिद्रा) के कारण
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अनिद्रा के कारण क्या होते हैं?
अनिद्रा प्राथमिक समस्या हो सकती है या अन्य स्थितियों से जुडी हो सकती है। अनिद्रा आमतौर पर तनाव, जीवन की घटनाओं या आदतों का परिणाम होती है, जिससे नींद में बाधा आती है। मुख्य कारणों का इलाज करने से अनिद्रा का समाधान हो सकता है, लेकिन कभी-कभी इसमें कई साल लग जाते हैं।
क्रोनिक अनिद्रा के सामान्य कारणों में शामिल हैं
तनाव ऑफिस, स्कूल, स्वास्थ्य, आर्थिक या परिवार से जुडी हुई समस्याएं रात में आपके मस्तिष्क को सक्रिय रख सकती हैं, जिसके कारण सोना मुश्किल हो जाता है। तनावपूर्ण जीवन की घटनाएं या मानसिक परेशानी, जैसे आपके किसी करीबी व्यक्ति की मृत्यु या बीमारी, तलाक या नौकरी छूटजाना के कारण अनिद्रा हो सकती है।
यात्रा या काम की समय-सारणी (schedule) आपकीसिरकेडियनरिदम (circadian rhythm)एक आंतरिक घड़ी के रूप में कार्य करता है, जो आपके सोने-जागने के चक्र, चयापचय और शरीर के तापमान का मार्गदर्शन करती है। आपके शरीर के सिरकेडियनरिदम के बिगड़नेसे अनिद्रा हो सकती है। इसके कारणों में विभिन्न समय क्षेत्रों (time zones) में हवाई यात्रा करना, जल्दी या देर वाली पारी (शिफ्ट) में काम करना या पारी (शिफ्ट) का बार-बार बदलना शामिल हैं।
सोने की ख़राब आदतें सोने की ख़राब आदतों में सोने का अनियमित समय, दिन में सोना, सोने से पहले उत्तेजक गतिविधियों, सोने के लिए उचित वातावरण का अभाव और अपने बिस्तर पर बैठकर खाना या टीवी देखना शामिल हैं। सोने से पहले कंप्यूटर, टीवी, वीडियो गेम, स्मार्टफ़ोन या अन्य स्क्रीन आपके नींद के चक्र में हस्तक्षेप कर सकते हैं।
शाम को अधिक मात्रा में भोजन करना सोने के समय से पहले हल्का भोजनकरना ठीक है, लेकिन बहुत अधिक खाने से आपको सोते समय शारीरिक रूप से असहज महसूस हो सकता है। बहुत से लोग सीने में दर्द का अनुभव करते हैं।एसिड और भोजन का बैकफ्लो पेट से भोजन नलिका (esophagus)की ओर होने लगता है, जिसके कारण आप जागते रह सकते हैं।
क्रोनिक अनिद्रा भी चिकित्सकीय परिस्थितियों या कुछ दवाओं के उपयोग के साथ संबंधित हो सकती है। चिकित्सकीय परिस्थितियों का इलाज करने से नींद में सुधार हो सकता है, लेकिन चिकित्सा की स्थिति में सुधार के बाद अनिद्रा जारी रह सकती है।
अनिद्रा के अतिरिक्त सामान्य कारणों में शामिल हैं
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकार चिंता संबंधी विकार, जैसे कि पोस्ट-ट्रॉमैटिक तनाव विकार आपकी नींद को बाधित कर सकते हैं।बहुत जल्दी जाग जाना अवसाद का संकेत हो सकता है। अनिद्रा अक्सर अन्य मानसिक स्वास्थ्य विकारों के साथ भी होतीहै।
दवाएं कई निर्धारित (prescription) दवाएं नींद में हस्तक्षेप कर सकती हैं, जैसे कि अस्थमाके लिए दवा, हाई बीपीके लिए दवा, याएंटीडिप्रेसेंट दवाएं। कई ओवर-द-काउंटर दवाएं (बिना प्रिस्क्रिप्शन के मिलनी वाली दवाएं, जैसे कि कुछ दर्द की दवाएं, एलर्जी और जुकामकी दवा तथावजन घटाने के उत्पादो में कैफीन और अन्य उत्तेजक होते हैं, जो नींद को बाधित कर सकते हैं।
चिकित्सकीय परिस्थितियाँ अनिद्रा से जुड़ी स्थितियों के उदाहरणों में क्रोनिक दर्द, कैंसर, शुगर (डायबिटीज), हृदय रोग, अस्थमा, गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी; GERD), अतिसक्रिय थायरॉयड, पार्किंसंस रोग और अल्जाइमर रोग शामिल हैं। (और पढ़ें अल्ज़ाइमर से बचाव के लिएखाएं ये आहार)
नींद से संबंधित विकार स्लीप एपनिया आपको रात में समय-समय पर सांस लेने से रोकता है, जिसके कारण आप सो नहीं पाते। रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम आपके पैरों में अजीब सी सनसनी पैदा करता है और न चाहते हुए भी आपको आपको अपने पैर बार-बार हिलाने के लिए विवश होना पड़ता है। ऐसी स्थितिमें आप सो नहीं पाते हैं।
कैफीन, निकोटीन और शराब कॉफी, चाय, कोला और अन्य कैफीन युक्त पेय उत्तेजक होते हैं। दोपहर के बाद या शाम को इन्हें पीने से आपकी नींद बाधित होती है।तंबाकू उत्पादों में निकोटीन एक और उत्तेजक है, जो नींद में हस्तक्षेप कर सकता है। शराब आपको सोने में मदद कर सकती है, लेकिन यह गहरी नींद को रोकती है और अक्सर आप आधी रात में जाग जाते हैं।
नींद न आने (अनिद्रा) से बचाव
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अनिद्रा की रोकथाम
सोने की अच्छी आदतें अनिद्रा को रोकने और गहरी नींद सोने में मदद कर सकती हैं
सप्ताहांत के साथ-साथ अपने हर दिन के सोने और जागने के समय को एक जैसा रखें।
सक्रिय रहें। नियमित की गयी गतिविधियाँ रात में अच्छी नींद के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
अपनी दवाओं की जाँच करें और देखें कि क्या उनकी वजह से ही आपको अनिद्रा की बीमारी हुई है या नहीं।
अल्पनिद्रा या झपकी लेने से बचें।
कॉफ़ीऔर अल्कोहल से बचें या सीमित मात्रामें सेवन करें। धूम्रपानका उपयोग न करें।
सोने से पहले अधिक मात्रा में भोजन करने और पेय पदार्थों से बचें।
अपने बेडरूम को आरामदायक बनाएं और केवल सेक्स करने या सोने के लिए इसका इस्तेमाल करें।
आरामपूर्वक तरीके से सोने के लिए कुछ आदतें अपना सकते हैं, जैसे सोने से पहले स्नान करना, किताबें पढ़ना या धीमी आवाज़ में संगीत सुनना।
अनिद्रा (नींद न आना) का परीक्षण
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अनिद्रा का निदान
डॉक्टर एक पूर्ण चिकित्सकीय इतिहास के साथ अनिद्रा का मूल्यांकन शुरू करेंगे। संपूर्ण चिकित्सकीय मूल्यांकन के साथ एक पूर्ण चिकित्सा इतिहास और शारीरिक परीक्षण, अनिद्रा के मूल्यांकन और उपचार के महत्वपूर्ण पहलू हैं।
आपकी स्थिति के आधार पर अनिद्रा के निदान और इसके कारणों की खोज में शामिल हो सकते हैं
शारीरिक परीक्षण यदि अनिद्रा का कारण अज्ञात है, तो चिकित्सकीय समस्याओं के लक्षणों को देखने के लिए जो अनिद्रा से संबंधित हो सकते हैं, आपकेडॉक्टर शारीरिक परीक्षण कर सकते हैं। कभी-कभी थायरॉयड समस्याओं या अन्य स्थितियों की जाँच करने के लिए रक्त परीक्षण किया जा सकता है, जो नींद की कमी से जुड़ा हो सकता है।
नींद की आदतों की समीक्षा आपकी नींद से संबंधित प्रश्न पूछने के अलावा डॉक्टर आपके सोने-जागने का पैटर्न और दिन में आने वाली नींद का स्तर निर्धारित करने के लिए आपको एक प्रश्नावली भरने के लिए दे सकते हैं। आपको कुछ हफ्तों तक स्लीप डायरी (इस डायरी में व्यक्ति दैनिक रूप से अपने सोने और जागने के समय और पैटर्न का रिकॉर्ड रखता है) रखने के लिए भी कहा जा सकता है।
नींद का अध्ययन यदि आपकी अनिद्रा का कारण स्पष्ट नहीं है या आपके अंदर किसी अन्य नींद की बीमारी, जैसे कि स्लीप एपनिया या रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के लक्षण दिख रहे हैं, तो आपको स्लीप सेंटर (जहाँ नींद की बीमारियों का इलाज किया जाता है) में एक रात बिताने की आवश्यकता हो सकती है। जब आप सोते हैं, तो आपकी मस्तिष्क तरंगों, श्वास, दिल की धड़कन, आँखों और शरीर की अन्य गतिविधियों की निगरानी और रिकॉर्ड के लिए टेस्ट किये जाते हैं।
आपके डॉक्टरपूर्ण चिकित्सा इतिहास के साथ अनिद्रा का मूल्यांकन शुरू कर देंगे। चिकित्सकीय मूल्यांकन के साथ, एक पूर्ण चिकित्सा इतिहास और शारीरिक परीक्षण, अनिद्रा के मूल्यांकन और उपचार के महत्वपूर्ण पहलू हैं।
नींद न आने (अनिद्रा) का इलाज
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अनिद्रा का उपचार क्याहै?
आपकीनींद की आदतों को बदलकरऔर अनिद्रा से संबंधित किसी भी समस्या का पता लगाकर (जैसे कि तनाव, चिकित्सकीय स्थितियाँ या दवाइयां) कई लोगों की आरामदायक नींद को लौटाया जा सकता है। यदि ये उपाय काम नहीं करते हैं, तो आपकेडॉक्टर तनाव से मुक्ति दिलाने और नींद में सुधार करने के लिए संज्ञानात्मक व्यावहारिक थेरेपी (cognitive behavioral therapy), दवाओं या दोनों का सुझाव दे सकते हैं।
1. अनिद्रा के लिए संज्ञानात्मक व्यावहारिक थेरेपी (Cognitive Behavioral Therapy for Insomnia)
अनिद्रा के लिए की जाने वाली संज्ञानात्मक व्यावहारिक थेरेपी (CBT-I)नकारात्मक विचारों और क्रियाओं को नियंत्रित करने में आपकी मदद कर सकती है, जो आपको जगाते रहते हैं। आमतौर पर अनिद्रा से ग्रसित लोगों के लिए उपचार की पहली सीढ़ी के रूप में इस थेरेपी की सिफारिश की जाती है। सामान्य तौर पर, सीबीटी-आई (CBT-I)नींद की दवाओं के समान या अधिक प्रभावी है। सीबीटी-आई का संज्ञानात्मक हिस्सा आपको उन कारणों को पहचानना और बदलना सिखाता है, जो आपकी सोने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। यह नकारात्मक विचारों और चिंताओं को नियंत्रित करने में आपकी मदद कर सकता है, जो आपको जगातेहैं। यह उस चक्र को दूर करने में भी शामिल हो सकता है, जहाँ आपको सोते वक़्त इस बात की चिंता होती है कि आपको नींद नहीं आएगी।(और पढ़ें -अनिद्रा के घरेलू उपचार)
सीबीटी-आई का व्यावहारिक हिस्सा आप में अच्छी नींद की आदतों को विकसित करने और ऐसे व्यवहारों को दूर करने में मदद करता है, जो आपकी नींद को बाधित करते हैं। इन रणनीतियों में निम्नलिखित उदाहरण शामिल हैं
उद्दीपन नियंत्रण चिकित्सा (Stimulus control therapy) यह विधि उन कारकों को दूर करने में मदद करती है, जो आपके मस्तिष्कको नींद का विरोध करने के लिए तैयार करते हैं। उदाहरण के लिए आप सोने और जागने का एक नियत समय तय कर करें और दिन में सोने से बचें। केवल सोने और सेक्स करने के लिए बिस्तर का उपयोग करें। अगर आपको लेटने के 20 मिनट के भीतर नींद नहीं आती, तो बाहर चले जाएं और जब नींद आये, तभी अपने बैडरूम में वापस आएं।(और पढ़ें -sex kaise kare)
विश्राम तकनीकें (Relaxation techniques) प्रोग्रेसिव मांसपेशीय विश्राम (Progressive muscle relaxation), बायोफीडबैक (biofeedback) और श्वसन सम्बन्धी व्यायाम, सोने के समय होने वालीचिंता को कम करने के तरीके हैं। इन तकनीकों का अभ्यास करने से आपको अपनी श्वास, हृदय गति, मांसपेशियों में तनाव और मूड को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है, ताकि आप आराम कर सकें।
नींद पर रोक यह उपचार आपके बिस्तर में बिताए जाने वाले समय को घटाता है और दिन की नींद से बचाता है, जिससे आंशिक नींद का अभाव होता है और आप अगली रात बहुत थका हुआ महसूस करते हैं। एक बार आपकी नींद में सुधार हो जाये, तो आपके सोने का समय धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है।
निष्क्रिय अवस्था में जागृत रहना इसे "विरोधाभासी उद्देश्य" (paradoxical intention)भी कहा जाता है।इस चिकित्सा का उद्देश्य अनिद्रा से ग्रस्त व्यक्तियों की चिंता को कम करना है, जो उन्हें बिस्तर में लेटकर नींद न आने के कारण होती है।इस उपचार में व्यक्ति को नींद की चिंता करने के बजाय जागने का प्रयत्न करने के लिए कहा जाता है।
प्रकाश चिकित्सा यदि आप बहुत जल्दी सो जाते हैं और फिर बहुत जल्दी जागते हैं, तो आप इस चक्र में संतुलन बनाने के लिए प्रकाश का उपयोग कर सकते हैं। साल में जब दिन बड़े होते हैं और शाम को बाहर रोशनी होती है, तो उस समय आप बाहर घूम सकते हैं या आप एक प्रकाश बॉक्स का उपयोग कर सकते हैं। अपने चिकित्सक से इनके बारे में परामर्श करें।
आपकेडॉक्टर आपकी नींद और दिन में सतर्कता (alertness) को बढ़ावा देने वाली आदतों को विकसित करने में आपकी सहायता करने के लिए आपकी जीवन शैली और नींद के वातावरण से संबंधित अन्य रणनीतियों की सिफारिश कर सकते हैं।
2. निर्धारित दवाएं (Prescription medications)
डॉक्टर द्वारा निर्धारित नींद की गोलियां आपको नींद आने में, सोये रहने में या दोनों में मदद कर सकती हैं।आमतौर पर डॉक्टर एक हफ्ते से ज़्यादा समय के लिए नींद की गोलियों का सुझाव नहीं देते हैं, लेकिन कुछ दवाएं लम्बे समय तक ली जा सकती हैं।इनमें ज़ोपिकॉल्न (लुनेस्टा) (Eszopiclone - Lunesta), रमेल्टॉन (रोज़ेरेम) (Ramelteon - Rozerem) शामिल हैं।
निर्धारित (Prescription)नींद की गोलियों के दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जैसे कि दिन में अर्धचेतनावस्था और बेहोश होने का खतरा बढ़ना या ये हमारी आदत भी बन सकती हैं। अतःइन दवाओं और अन्य संभावित दुष्प्रभावों के बारे में अपने डॉक्टर से बात करें।
3. मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध नींद के अन्य साधन
गैर-निर्धारित (Nonprescription) नींद की दवाओं में एंटीहिस्टामाइन (antihistamines)होते हैं, जो आपको सुस्त कर सकते हैं, लेकिन इनका नियमित उपयोग ठीक नहीं है। इन दवाओं को लेने से पहले अपने चिकित्सक से बात करें। एंटीहिस्टामाइन के कईदुष्परिणाम हो सकते हैं, जैसे दिन में नींद आना, चक्कर आना, भ्रम, चेतना में कमी आना और पेशाब करने में कठिनाई, जो अधेड़ व्यक्तियों में और भी गंभीर हो सकते हैं।
4. वैकल्पिक चिकित्सा (Alternative medicine)
बहुत से लोग अनिद्रा के उपचार के लिए अपने चिकित्सक के पास नहीं जाते हैं और अपने आप इस समस्या से निपटने की कोशिश करते हैं। हालाँकि, कई मामलों में सुरक्षा और प्रभाव साबित नहीं किया गया है। कुछ लोग निम्नलिखित उपचार करने की कोशिश करते हैं, जैसे
मेलाटोनिन(Melatonin) मेडिकल स्टोर पर मिलने वाला यह सप्लीमेंट अनिद्रा को दूर करने का एक तरीका है। आमतौर पर कुछ हफ्तों तक मेलाटोनिन का उपयोग सुरक्षित माना जाता है, लेकिन यह साबित करने के लिएकोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं है कि मेलाटोनिन अनिद्रा के लिए एक प्रभावी उपचार है।इसके दीर्घकालिक उपयोग की सुरक्षा के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
वेलेरियन (Valerian) यह आहार सम्बन्धी पूरक (dietary supplement) नींद लाने में सहायक होता है, क्योंकि इसका एक हल्का प्रभाव होता है। हालाँकि, यह अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है। इसका उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से चर्चा करे���।कुछ लोग जो इसकी ज़्यादा खुराक का इस्तेमाल करते हैंया लंबे समय से उपयोग कर रहे हैं, उनके लिवर को नुकसान हो सकता है।हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि यह नुकसान वेलेरियन के करण होता है।
एक्यूपंक्चर (Acupuncture) कुछ प्रमाण हैं कि एक्यूपंक्चर अनिद्रा से ग्रसित लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन अधिक शोध की आवश्यकता है। यदि आप अपने पारंपरिक उपचार के साथ एक्यूपंक्चर का चुनाव करते हैं, तो अपने चिकित्सक से पूछिए कि एक योग्य एक्यूपंक्चर चिकित्सक कैसे खोजें।
योग कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि योग या ताई ची (tai chi) का नियमित अभ्यास नींद की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
ध्यान (Meditation) कई छोटे अध्ययन सुझाव देते हैं कि पारंपरिक उपचार के साथ ध्यान (मेडिटेशन) से नींद में सुधार और तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है।
5. हर्बल और डाइटरी स्लीप एड्स (dietary sleep aids)के बारे में सावधानी
क्योंकि खाद्य एवं औषधि प्रशासन (Food and Drug Administration) ने निर्माताओं के लिए यह अनिवार्य नहीं किया है कि वे डाइटरी सप्लीमेंट स्लीप एड्स को बेचने से पहले उनके प्रभावशाली या सुरक्षित होने का प्रमाण दिखाएं, इसलिएकिसी भी हर्बल सप्लीमेंट या अन्य ओटीसी (OTC - Over- The-Counter) उत्पादों को लेने से पहले अपने चिकित्सक से बात करें। कुछ उत्पाद हानिकारक हो सकते हैं और यदि आप कुछ दवाएं ले रहे हैं, तो इसका नुकसान हो सकता है।
अनिद्रा (नींद न आना) के जोखिम और जटिलताएं
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अनिद्रा के जोखिम और जटिलताएं
क्रोनिक अनिद्रा से गंभीर स्वास्थ्य जोखिम जुड़े हुए हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ के अनुसार, अनिद्रा आपके मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के साथ-साथ समग्र स्वास्थ्य के प्रति जोखिम को बढ़ा सकती है।
1. चिकित्सकीय परिस्थितियों के लिए जोखिम में वृद्धि
इनमें शामिल हैं
स्ट्रोक
अस्थमा के दौरे
मिर्गी का दौरा
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली
दर्द के प्रति संवेदनशीलता
सूजन
मोटापा
डायबिटीज मेलिटस
उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)
हृदय रोग
2. मानसिक स्वास्थ्य विकारों के लिए जोखिम में वृद्धि
इनमें शामिल हैं
अवसाद
चिंता
भ्रम और हताशा
3. दुर्घटनाओं के लिए जोखिम में वृद्धि
अनिद्रा प्रभावित कर सकती है आपके
ऑफिस या स्कूल में किया जाने वाले कार्य
सेक्स ड्राइव
स्मृति
निर्णय लेने की क्षमता
दिन में आने वाली नींद तत्काल चिंता का विषय है।ऊर्जा की कमी चिंता, अवसाद या चिड़चिड़ापन पैदा कर सकती है। ये न सिर्फ आपकेऑफिस या स्कूल के कार्य को प्रभावित कर सकते हैं, बल्कि बहुतकम नींद लेनाकार दुर्घटनाओं केजोखिम कोभी बढ़ासकता है।
अनिद्रा (नींद न आना) में परहेज़
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निम्नलिखित सुझावों का उद्देश्य अस्थायी अनिद्रा से उबरने में मदद करना और रात में एक अच्छी नींद लेने की संभावना को बढ़ाना है
अपने बेडरूम को एक आकर्षक स्थान बनाएं। कमरे को व्यवस्थित रखें। सुनिश्चित करें कि आपके पास आपकी ज़रूरतों के मुताबिक सही बिस्तर और गद्दे हों।घटिया गद्दे मांसपेशियों की समस्याओं और नींद में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
केवल सोने और सेक्स करने के लिए ही बिस्तर का उपयोग करें। टीवी देखने, खाने, काम करने या किसी भी अन्य गतिविधि के लिए बिस्तर का उपयोग करने से बचें। यदि आप रात को बिस्तर पर बैठकर पढ़ना चाहते हैं, तो केवल मनोरंजक पुस्तकेंपढ़ें।
चिकित्सक अक्सर अनिद्रा के लिए उपचार योजना के एक हिस्से के रूप में "रीकंडीशनिंग" का उपयोग करते हैं। इस पद्धति के साथ लोग नए तरीके से निद्रा के साथ बिस्तर को संबद्ध करते हैं। यदि आप अपने आप को सोने में असमर्थ पाते हैं, तो बिस्तर छोड़कर दूसरे कमरे में चले जाएं, ताकि आप सिर्फ सोने के लिए बिस्तर का उपयोग करें न कि जागने के लिए।
नियमित रूप से सोने और जागने का एक पैटर्न बना लें।इसके परिणामस्वरूप आपका शरीर आंतरिक रूप से भी उस पैटर्न के अनुसार अपने आपको ढाल लेगा और आपको निर्धारित समय पर सोने और जागने के संकेत देगा। यह शुरू करने का एक अच्छा तरीका है हर रोज़ एक ही समय पर उठना, यहाँ तक ​​कि सप्ताहांत (weekends) में भी।
चाहे दिन में कितनी भी नींद आये, लेकिन झपकी न लें।दो���हर में ली जाने वाली झपकी से रात में नींद आना मुश्किल हो सकता है। सप्ताहांत (weekends) पर अतिरिक्त नींद लेना आपके नियमित निद्रा पैटर्न को बिगाड़ सकता है और मिडवीक (midweek) अनिद्रा की स्थिति को खराब कर सकता है।
दोपहर और शाम को कैफीन के सेवन को सीमित करें। याद रखें कि चॉकलेट खाने और कोको और कोला पीने से भी शरीर में कैफीन की मात्रा बढ़ती है।
अपने शराब के सेवन का ध्यान रखें।सोनेसे कुछ घंटे पहले किसी भी मादक पेय पदार्थ को न पीएं। दिन में किसी भी समय शराब की अत्यधिक मात्रा नींद के पैटर्न को बाधित कर सकती है और असंतोषजनक नींद की ओर ले जा सकते है। सिगरेट धूम्रपान के कारण भी अनिद्रा रोग गंभीर हो सकता है। (और पढ़ें धूम्रपान छोड़ने के सरल तरीके)
दिन में थोड़ाव्यायाम करने की आदत डालें, लेकिन सोने से पहले व्यायाम बिलकुल न करें।
शाम को हल्का भोजन खाएं। शाम को अत्यधिक भोजन करने या बिस्तर पर जाने से ठीक पहले खाना खाने से आपकी नींद में बाधा आ सकती है।
सोने जाने से पहले कुछ चीज़ों की आदत डालें।सोने से पहले अपने मन को परेशान करने वाले विचारों से मुक्त करने की कोशिश करें और आरामदायक तथा मनोरंजक गतिविधि में संलग्न हों जैसे कि पढ़ना, संगीत सुनना या एक मनोरंजक फ़िल्म देखना।
अनिद्रा (नींद न आना) में क्या खाना चाहिए?
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अनिद्रा में क्या खाएं?
चेरी का जूस खट्टे पेय पदार्थों में मेलाटोनिन नामक हार्मोन होता है, जो नींद पर नियंत्रण रखता है।
दूध दूध में ट्रीप्टोफन (tryptophan) नामक एक एमिनो एसिड होता है।रात को गरम दूध पीने सेनींद जल्दी आ जाती है।
साबुत अनाज जौ, कुट्टूमें मैग्नीशियम पाया जाता है, जो मांसपेशियों को सुचारु रूप से काम करने और लोगों को शांति का एहसास दिलाने में मदद करता है।
कॉम्प्लेक्स कार्ब्स (Complex carbs) फली और चावल, विशेष रूप से चमेली चावल (jasmine rice) इसके उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स (glycemic index) के साथ, जिसका मतलब है कि यह धीरे-धीरे पचता है और शकरकंद नींद लानेके अद्भुत स्रोत हैं, क्योंकि इनमें पोटेशियम होता है जो मांसपेशियों को शिथिल करने में मदद करता है।
हर्बल चाय हर्बल चाय में एक तेज़ सुगंध होती है, लेकिन यह कुछ लोगों को जल्दी सोने में मदद करती है।यह चाय कैफीन मुक्त होती है, जो लोगों को सोनेसे पहले शांत करने में मदद करती है।
केले केलेनींद को बढ़ाते हैं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक रूप से मांसपेशियों को शिथिल करने वाले मैग्नीशियम और पोटेशियम मौजूद होते हैं।
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gyanyognet-blog · 7 years
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सूर्य नमस्कार के फायदे और 3 टिप्स
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सूर्य नमस्कार के फायदे और 3 टिप्स
सूर्य नमस्कार सबसे जाने-माने योग अभ्यासों में से एक है। इसका प्रभाव पूरे शरीर पर महसूस किया जा सकता है। लेकिन क्या आध्यात्मिक साधना करने वालों के लिए भी ये फायदेमंद है? क्या यह मन और विचारों पर भी प्रभाव डाल सकता है?
सद्‌गुरु:
आम तौर पर सूर्य नमस्कार को कसरत माना जाता है जो आपकी पीठ, आपकी मांसपेशियों, वगैरह को मजबूत करता है। हां, वह यह सब और इसके अलावा भी बहुत कुछ करता है। यह शारीरिक तंत्र के लिए एक संपूर्ण अभ्यास है – व्यायाम का एक व्यापक रूप जिसके लिए किसी उपकरण की जरूरत नहीं होती। मगर सबसे बढ़कर यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो इंसान को अपने जीवन के बाध्यकारी चक्रों और स्वरूपों से आजाद होने में समर्थ बनाता है।
सूर्य नमस्कार : शरीर को एक सोपान बनाना
सूर्य नमस्कार का मतलब है, सुबह में सूर्य के आगे झुकना। सूर्य इस धरती के लिए जीवन का स्रोत है। आप जो कुछ खाते हैं, पीते हैं और सांस से अंदर लेते हैं, उसमें सूर्य का एक तत्व होता है। जब आप यह सीख लेते हैं कि सूर्य को बेहतर रूप में आत्मसात कैसे करना है, उसे ग्रहण करना और अपने शरीर का एक हिस्सा बनाना सीखते हैं, तभी आप इस प्रक्रिया से वाकई लाभ उठा सकते हैं।
भौतिक शरीर उच्चतर संभावनाओं के लिए एक शानदार सोपान है मगर ज्यादातर लोगों के लिए यह एक रोड़े की तरह काम करता है। शरीर की बाध्यताएं उन्हें आध्यात्मिक पथ पर आगे नहीं जाने देतीं। सौर चक्र के साथ तालमेल में होने से संतुलन और ग्रहणशीलता मिलती है। यह शरीर को उस बिंदु तक ले जाने का एक माध्यम है, जहां वह कोई बाधा नहीं रह जाता।
  सूर्य नमस्कार : सौर चक्र के साथ तालमेल
यह शारीरिक तंत्र के लिए एक संपूर्ण अभ्यास है – व्यायाम का एक व्यापक रूप जिसके लिए किसी उपकरण की जरूरत नहीं होती।
सूर्य नमस्कार का मकसद मुख्य रूप से आपके अंदर एक ऐसा आयाम निर्मित करना है जहां आपके भौतिक चक्र सूर्य के चक्रों के तालमेल में होते हैं। यह चक्र लगभग बारह साल और तीन महीने का होता है। यह कोई संयोग नहीं है, बल्कि जानबूझकर इसमें बारह मुद्राएं या बारह आसन बनाए गए हैं। अगर आपके तंत्र में सक्रियता और तैयारी का एक निश्चित स्तर है और वह ग्रहणशीलता की एक बेहतर अवस्था में है तो कुदरती तौर पर आपका चक्र सौर चक्र के तालमेल में होगा।
युवा स्त्रियों को एक लाभ होता है कि वे चंद्र चक्रों के भी तालमेल में होती हैं। यह एक शानदार संभावना है कि आपका शरीर सौर और चंद्र दोनों चक्रों से जुड़ा हुआ है। कुदरत ने एक स्त्री को यह सुविधा दी है क्योंकि उसे मानव जाति को बढ़ाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसलिए, उसे कुछ अतिरिक्त सुविधाएं दी गई हैं। मगर बहुत से लोगों को यह पता नहीं होता कि उस संबंध से उत्पन्न अतिरिक्त ऊर्जा को कैसे संभालें, इसलिए वे इसे एक अभिशाप की तरह, बल्कि एक तरह का पागलपन मानते हैं। ‘लूनर’ (चंद्रमा संबंधी) से ‘लूनी’ (विक्षिप्त) बनना इसका प्रमाण है।
सूर्य नमस्कार का महत्त्व
चंद्र चक्र, जो सबसे छोटा चक्र (28 दिन का चक्र) और सौर चक्र, जो बारह साल से अधिक का होता है, दोनों के बीच तमाम दूसरे तरह के चक्र होते हैं। चक्रीय या साइक्लिकल शब्द का अर्थ है दोहराव। दोहराव का मतलब है कि किसी रूप में वह विवशता पैदा करता है। विवशता का मतलब है कि वह चेतनता के लिए अनुकूल नहीं है। अगर आप बहुत बाध्य होंगे, तो आप देखेंगे कि स्थितियां, अनुभव, विचार और भावनाएं सभी आवर्ती होंगे यानि बार-बार आपके पास लौट कर आएंगे। छह या अठारह महीने, तीन साल या छह साल में वे एक बार आपके पास लौट कर आते हैं। अगर आप सिर्फ मुड़ कर देखें, तो आप इस पर ध्यान दे सकते हैं।
योग के अभ्यास के बाद कम से कम डेढ़ घंटे बाद स्नान करें – तीन घंटे उससे भी बेहतर होंगे। पसीने के साथ दो से तीन घंटे न नहाना गंध के मामले में थोड़ा मुश्किल हो सकता है – इसलिए बस दूसरों से दूर रहें!
अगर वे बारह साल से ज्यादा समय में एक बार लौटते हैं, तो इसका मतलब है कि आपका शरीर ग्रहणशीलता और संतुलन की अच्छी अवस्था में है। सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो इसे संभव बनाती है। साधना हमेशा चक्र को तोड़ने के लिए होती है ताकि आपके शरीर में और बाध्यता न हो और आपके पास चेतनता के लिए सही आधार हो।
चक्रीय गति या तंत्रों की आवर्ती प्रकृति, जिसे हम पारंपरिक रूप से संसार के नाम से जानते हैं, जीवन के निर्माण के लिए जरूरी स्थिरता लाती है। अगर यह सब बेतरतीब होता, तो एक स्थिर जीवन का निर्माण संभव नहीं होता। इसलिए सौर चक्र और व्यक्ति के लिए चक्रीय प्रकृति में जमे रहना जीवन की दृढ़ता और स्थिरता है। मगर एक बार जब जीवन विकास के उस स्तर पर पहुंच जाता है, जहां इंसान पहुंच चुका है, तो सिर्फ स्थिरता नहीं, बल्कि परे जाने की इच्छा स्वाभाविक रूप से पैदा होती है। अब यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह या तो चक्रीय प्रकृति में फंसा रहे जो स्थिर भौतिक अस्तित्व का आधार है, या इन चक्रों को भौतिक कल्याण के लिए इस्तेमाल करे और उन पर सवार होकर चक्रीय से परे चला जाए।
सही तरीकों से बढ़ा सकते हैं सूर्य नमस्कार के फायदे
सूर्य नमस्कार के लाभों को बढ़ाना
हठ योग का मकसद एक ऐसे शरीर का निर्माण है जो आपके जीवन में बाधा न हो बल्कि अपनी चरम संभावना में विकसित होने की ओर एक सोपान हो। अपने शरीर को इसके लिए तैयार करने के लिए आप कुछ सरल चीजें कर सकते हैं और अपने अभ्यास से अधिकतम लाभ पा सकते हैं।
सूर्य नमस्कार से पहले ठंडे पानी से स्नान करें
अभ्यास शुरू करने से पहले, सामान्य तापमान से थोड़े ठंडे पानी से स्नान करें। अगर एक खास मात्रा में पानी आपके शरीर के ऊपर से बहता है या आपका शरीर सामान्य तापमान से कुछ ठंडे पानी में डूबा हुआ रहता है, तो एपथिलियल कोशिकाएं संकुचित होती हैं और कोशिकाओं के बीच का अंतर बढ़ता है। अगर आप गुनगुने या गरम पानी का इस्तेमाल करते हैं, तो कोशिकाओं के रोमछिद्र खुल जाते हैं और पानी को सोख लेते हैं, हम ऐसा नहीं चाहते। योग के अभ्यास के लिए यह बहुत जरूरी है कि कोशिकाएं संकुचित हों और कोशिकाओं के बीच का अंतर खुल जाए क्योंकि हम शरीर की कोशिका संरचना को ऊर्जा के एक अलग आयाम से सक्रिय करना चाहते हैं। अगर कोशिकाएं संकुचित होकर बीच में जगह बनाती हैं, तो योग का अभ्यास कोशिका की संरचना को ऊर्जावान बनाता है।
कुछ लोग दूसरे लोगों के मुकाबले ज्यादा जीवंत और सक्रिय इसलिए लगते हैं क्योंकि उनकी कोशिकाओं का ढांचा ज्यादा ऊर्जावान होता है। जब वह ऊर्जा से सक्रिय होता है, तो वह बहुत लंबे समय तक ताजगीभरा रहता है। यह करने का एक तरीका है, हठ योग। दक्षिण भारत में, नल का पानी आम तौर पर सामान्य तापमान से थोड़ा ज्यादा ठंडा होता है। अगर आप एक मध्यम तापमान वाली जलवायु में रहते हैं, तो नल का पानी ज्यादा ठंडा हो सकता है। सामान्य तापमान से तीन से पांच डिग्री सेंटीग्रेड तापमान आदर्श होगा। सामान्य से दस डिग्री सेंटीग्रेड तक कम तापमान चल सकता है – पानी उससे ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के बाद पसीने को त्वचा में मलें
चाहे आप आसन कर रहे हों, सूर्य नमस्कार या सूर्य क्रिया – अगर आपको पसीना आए, तो उस पसीने को तौलिये से न पोंछें – हमेशा उसे वापस मल दें, कम से कम अपने शरीर के खुले हिस्सों में। अगर आप पसीने को पोंछ देते हैं तो आप उस ऊर्जा को बहा देते हैं, जो आपने अभ्यास से पैदा की है। पानी में याददाश्त और ऊर्जा को धारण करने की क्षमता होती है। इसीलिए आपको तौलिये से पसीना नहीं पोंछना चाहिए, पानी नहीं पीना चाहिए या अभ्यास के दौरान शौचालय नहीं जाना चाहिए, जब तक कि उसे अनिवार्य बना देने वाले विशेष हालात न पैदा हों।
और योग के अभ्यास के बाद कम से कम डेढ़ घंटे बाद स्नान करें – तीन घंटे उससे भी बेहतर होंगे। पसीने के साथ दो से तीन घंटे न नहाना गंध के मामले में थोड़ा मुश्किल हो सकता है – इसलिए बस दूसरों से दूर रहें!
सही मात्रा में पानी पिएं
योग के अभ्यास के बाद स्नान से पहले कम से कम डेढ़ घंटे इंतजार करें।
सिर्फ उतना पानी पीना सीखें, जितने की शरीर को जरूरत है। जब तक कि आप रेगिस्तान में न हों या आपकी आदतें ऐसी न हों जिनसे आपके शरीर में पानी की कमी हो जाती है – जैसे कैफीन और निकोटिन का अत्यधिक सेवन – तब तक लगातार पानी के घूंट भरने की जरूरत नहीं है। शरीर का 70 फीसदी हिस्सा पानी है। शरीर जानता है कि उसे खुद को कैसे ठीक रखना है।
अगर आप सिर्फ मांसपेशियां मजबूत करने और शारीरिक मजबूती के लिए इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो आपको सूर्य शक्ति करना चाहिए। अगर आप शारीरिक तौर पर फिट होना चाहते हैं, मगर उसमें थोड़ा आध्यात्मिक पुट भी चाहते हैं, तो आपको सूर्य नमस्कार करना चाहिए।
अगर आप अपनी प्यास के मुताबिक और 10 फीसदी अतिरिक्त पानी पीते हैं, तो यह काफी होगा। मसलन – अगर दो घूंट पानी के बाद आपकी प्यास बुझ जाती है तो 10 फीसदी पानी और पी लें। इससे आपके शरीर की पानी की जरूरत पूरी हो जाएगी। बस अगर आप धूप में हैं या पहाड़ पर चढ़ाई कर रहे हैं, आपको बहुत पसीना आ रहा है और शरीर से तेजी से पानी निकल रहा है, तो आपको ज्यादा पानी पीने की जरूरत है। तब नहीं, जब आप एक छत के नीचे योग कर रहे हों।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा, जितना हो सके, पसीने को वापस शरीर में मल लें मगर आपको हर समय ऐसा करने की जरूरत नहीं है। वह थोड़ा टपक सकता है – बस तौलिये का इस्तेमाल न करें। उसे वापस शरीर में जाने दें क्योंकि हम ऊर्जा को बहाना नहीं चाहते, हम उसे बढ़ाना चाहते हैं।
सूर्य नमस्कार और सूर्य क्रिया
अगर कोई व्यक्ति सूर्य नमस्कार के द्वारा एक तरह की स्थिरता और शरीर पर थोड़ा अधिकार पा लेता है, तो उसे सूर्य क्रिया नामक अधिक शक्तिशाली और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण प्रक्रिया से परिचित कराया जा सकता है। सूर्य क्रिया मूलभूत प्रक्रिया है। सूर्य नमस्कार, सूर्य क्रिया का अधिक आसान और सरल रूप है, दूसरे शब्दों में वह सूर्य क्रिया का ‘देहाती भाई’ है। सूर्य शक्ति नामक एक और प्रक्रिया है, जो और भी दूर का रिश्तेदार है। अगर आप सिर्फ मांसपेशियां मजबूत करने और शारीरिक मजबूती के लिए इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो आपको सूर्य शक्ति करना चाहिए। अगर आप शारीरिक तौर पर फिट होना चाहते हैं, मगर उसमें थोड़ा आध्यात्मिक पुट भी चाहते हैं, तो आपको सूर्य नमस्कार करना चाहिए। मगर यदि आप एक शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रक्रिया चाहते हैं, तो आपको सूर्य क्रिया करना चाहिए।
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renatuslove · 5 years
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★दोस्तों अगर आप किसी भी बीमारी से परेशान हैं और काफी समय से दवाओं के सेवन से भी कोई फायदा नहीं हो रहा है,(चाहे उसे डॉक्टर ने जवाब भी दे दिया हो)तो संपर्क करे:-* *RENATUS NOVA benefits - Single Produce Multiple Solutions* *उदाहरण:-**1- शुगर (मधुमेह) 2- ब्लड प्रेशर (B.P.)  3- हृदय रोग 4- कोलेस्ट्रॉल  5- कैंसर. 6- एड्स. 7- दमा  8- लकवा ( paralysis ) 9- स्वाइन फ्लू  10- थाइरोइड 11- माइग्रेन  12- थकान 13- आर्थराइटिस 14- गठिया 15-जोड़ों का दर्द 16- कमर में दर्द 17-बदन दर्द 18-कमजोर हड्डियां 19- हड्डियों का पतला होना 20-ऑस्टिओपोरोसिस 21- सेक्सुअल समस्या 22- नपुसंकता 23-फर्टिलिटी 24-वीर्य संख्या बढाने में सहायक 25- गैंग्रीन 26-पुराना घाव 27-सर्वाइकल 28- मोटापा 29- त्वचा / चर्म रोग 30- सोराइसिस 31-लूकोडर्मा 32- एलर्जी 33-नासूर 34- किडनी की समस्या 35- पथरी की समस्या 36- बवासीर 37- अलसर 38- एसिडिटी 39- गैस्ट्रायटिस 40- कोलाइटिस 41- श्वसन संबंधी समस्या 42- पाचन सम्बंधित रोग 43- एंटी एजिंग 44- झुर्रिया कम करना 45- एकाग्रता 46- डिटॉक्सीफिकेशन 47- ऊर्जा की कमी 48- नासूर 49- यूरिक एसिड का बढ़ना 50- मिर्गी 51- लीवर से जुडी कोई भी परेशानी 52- अनिद्रा 53- अनीमिया (खून की कमी) 54- मानसीक तनाव 55- धूम्रपान / तम्बाकू वालो के लिए 56-कामकाजी लोगों के लिए  57- अल्ज़ाइमर 58- पार्किंसंस डिसीज 59- खांसी 60- प्रोस्टेट 61- साईनस 62- पेट में गैस बनना 63- पैर के तलवे मे जलन 64- आखों से संबंधित रोग 65- साइटिका 66- धात 67- स्वेद प्रदर 68- मlसिक धर्म (M.C.) अनियमितता 69- फाइलेरिया 70- बालों का झड़ना 71- प्रजनन क्षमता 72- पागलपन 73- कमजोर याददाश्त 74- बच्चो/बुजुर्गों/महिलाओं के लिए संपूर्ण आहार 75- स्वाइन फ्लू   इत्यादि!*                     रैनाटाॅस नोवा अपनाएं।     खुशियों भरा जीवन पाए। अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करे : महीपाल सिंह 9812023760
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