#हिंदू धर्म में अनुष्ठान
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पारस परिवार हिंदू धर्म की प्रेरणा
भारत की संस्कृति और धर्म का आधार सनातन धर्म है, जो अपने गहरे मूल्यों और शिक्षाओं के लिए विश्वभर में पहचाना जाता है। इस धर्म को संरक्षित और प्रचारित करने में कई परिवारों और व्यक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्हीं में से एक नाम है पारस परिवार का, जो हिंदू धर्म और सनातन परंपराओं की प्रेरणा स्रोत है। उनकी धार्मिक निष्ठा और समाज सेवा ने उन्हें न केवल स्थानीय समुदाय में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति दिलाई है। आइए, इस ब्लॉग में हम पारस परिवार की यात्रा और उनकी प्रेरणादायक भूमिका पर चर्चा करें।
पारस भाई जी: सनातन धर्म के सच्चे अनुयायी
पारस भाई जी पारस परिवार के प्रमुख सदस्य हैं, जिनका जीवन सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उनकी सरलता, समर्पण और सेवा भाव ने उन्हें हर वर्ग के लोगों का प्रिय बना दिया है। पारस भाई जी का मानना है कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। उनका उद्देश्य है कि हर व्यक्ति धर्म को समझे और इसे अपने जीवन में उतारे।
पारस भाई जी की शिक्षाएँ
धर्म को जीवन का आधार बनाना: पारस भाई जी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक मार्ग है।
समाज सेवा: उनके अनुसार, सच्चा धर्म वही है जो दूसरों की सेवा और मदद के लिए प्रेरित करे।
युवाओं को प्रेरित करना: पारस भाई जी युवाओं को अपनी परंपराओं और जड़ों से जोड़े रखने के लिए प्रेरित करते हैं।
पारस परिवार: धर्म और सेवा का संगम
पारस परिवार सनातन धर्म के प्रचार और सामाजिक सेवा के लिए समर्पित है। इस परिवार का हर सदस्य धर्म के प्रति निष्ठा और समाज के प्रति दायित्व निभाने में विश्वास रखता है। पारस परिवार का मुख्य उद्देश्य है कि हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाया जाए।
पारस परिवार के प्रमुख कार्य
धार्मिक आयोजन: पारस परिवार नियमित रूप से धार्मिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और सत्संग का आयोजन करता है।
समाज सेवा: गरीबों की मदद, शिक्षा का प्रचार और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना उनके प्रमुख कार्य हैं।
धर्म प्रचार: सनातन धर्म के सिद्धांतों को सरल और प्रभावी तरीके से समाज तक पहुँचाना उनकी प्राथमिकता है।
सनातन धर्म की महानता
सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म के रूप में भी जाना जाता है, विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। इसकी शिक्षाएँ सत्य, अहिंसा, करुणा और धर्म पालन पर आधारित हैं। पारस परिवार इन मूल सिद्धांतों को अपने जीवन और कार्यों में अपनाता है।
सत्य
सत्य सनातन धर्म का प्रमुख स्तंभ है। पारस भाई जी और उनका परिवार हमेशा सत्य की राह पर चलने का संदेश देता है। उनका मानना है कि सत्य से जीवन में स्थिरता और शांति आती है।
अहिंसा
अहिंसा केवल हिंसा न करने का संदेश नहीं है, बल्कि यह हमारे विचारों और वचनों में भी अपनाई जानी चाहिए। पारस परिवार इस सिद्धांत को अपने सामाजिक कार्यों में पूरी तरह आत्मसात करता है।
करुणा
करुणा का अर्थ है दूसरों की पीड़ा को समझना और उनकी सहायता करना। पारस परिवार समाज के जरूरतमंद वर्गों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहता है।
पारस परिवार की प्रेरणा
पारस परिवार की प्रेरणा माता रानी की भक्ति और सनातन धर्म की शिक्षाएँ हैं। उनका मानना है कि धर्म के प्रति अटूट निष्ठा और भक्ति से हर समस्या का समाधान संभव है।
माता रानी की भक्ति
"जय माता दी" पारस परिवार के जीवन का आधार है। माता रानी के प्रति उनकी गहरी आस्था उनके कार्यों में झलकती है। पारस परिवार नियमित रूप से माता की चौकी और भक्ति आयोजनों का आयोजन करता है, जिसमें सैकड़ों भक्त भाग लेते हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणा
पारस भाई जी विशेष रूप से युवाओं को धर्म और परंपराओं से जोड़ने का प्रयास करते हैं। उनका मानना है कि आज की युवा पीढ़ी यदि धर्म को अपनाएगी, त�� समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकता है।
समाज में पारस परिवार का योगदान
पारस परिवार ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देकर एक मिसाल कायम की है। उनके द्वारा चलाए गए सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम न केवल लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाते हैं, बल्कि समाज में एकता और सद्भाव का संदेश भी देते हैं।
धार्मिक जागरूकता
पारस परिवार के प्रयासों से हजारों लोग धर्म की महत्ता को समझ पाए हैं। उनके सत्संग और प्रवचन लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।
सामाजिक उत्थान
पारस परिवार गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए विभिन्न सेवाएँ प्रदान करता है। उनका मानना है कि धर्म का पालन तभी सार्थक है, जब यह समाज के हर वर्ग के लिए उपयोगी हो।
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क्या है कुम्भ विवाह और इसके धार्मिक महत्व?
कुम्भ विवाह हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए होती है जिनके विवाह में ग्रह दोष या अन्य समस्याएँ आ रही होती हैं। इसे एक धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है, जो ग्रहदोषों को समाप्त करता है और वैवाहिक जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति के लिए किया जाता है।अगर आप भी इस पवित्र संस्कार को सही विधि-विधान से संपन्न करना चाहते हैं, तो वैकुंठ से अनुभवी पंडितों की सेवाएँ प्राप्त कर सकते हैं।
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जिसने भी तेरा नाम लिया माँ
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नवरात्रि: डांडिया गीत और माता के भजन :-
नवरात्रि, भारत का एक प्रमुख त्योहार, विशेष रूप से हिंदू धर्म में माता दुर्गा की पूजा का समय है। यह नौ दिनों का पर्व, माता के विभिन्न रूपों की आराधना करने का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान, डांडिया और गरबा जैसे पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया जाता है, जो न केवल धार्मिक भावना को जागृत करता है, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।
नवरात्रि का महत्व:- नवरात्रि का त्योहार देवी दुर्गा की शक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इसे विशेष रूप से पश्चिमी भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर, भक्तगण नौ दिनों तक उपवास रखते हैं, देवी की पूजा करते हैं, और सामूहिक नृत्य का आनंद लेते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिसमें माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल हैं।
डांडिया: एक सांस्कृतिक धरोहर -
डांडिया, एक पारंपरिक गुजराती नृत्य है जो विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है। इसे छोटे-छोटे डंडों के साथ खेला जाता है, जहां लोग एक-दूसरे के साथ ताल मिलाते हैं। यह नृत्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। डांडिया की धुनों पर लोग देवी की आराधना करते हैं, और यह सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाता है। डांडिया नृत्य के दौरान गाए जाने वाले गीत मुख्यतः माता की महिमा का गुणगान करते हैं। ये गीत भक्तों को ऊर्जा और उत्साह प्रदान करते हैं, और हर किसी को नृत्य में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं।
माता के भजन:
श्रद्धा और भक्ति का संगम - नवरात्रि के दौरान गाए जाने वाले माता के भजन भक्तों के हृदय में गहरी श्रद्धा और भक्ति की भावना जागृत करते हैं। ये भजन अक्सर देवी के विभिन्न रूपों की विशेषताओं का वर्णन करते हैं। माता के भजनों में भक्त अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं और माता से सहायता क��� प्रार्थना करते हैं।
कई प्रसिद्ध भजन इस दौरान गाए जाते हैं,
जैसे:
1. "जय माता Di" – यह भजन देवी की जयकारा है, जो भक्तों को एकजुट करता है।
2. "माता रानी की जय"– इस भजन में भक्त माता को नमन करते हैं और उनकी कृपा की कामना करते हैं।
3. "नवरात्रि में माँ का दरबार" – इस भजन में माता के दरबार की महिमा का बखान किया गया है।
इन भजनों की धुनें भक्तों के मन को छू जाती हैं और नवरात्रि के उत्सव का आनंद बढ़ाती हैं।
संगीत और नृत्य का संगम:- नवरात्रि में डांडिया और गरबा नृत्य का आयोजन होता है, जिसमें संगीत और नृत्य का अद्भुत संगम होता है। विभिन्न प्रकार के डांडिया गीतों की धुनें और बोल इस नृत्य को और भी रंगीन बना देते हैं। जैसे-जैसे रात बढ़ती है, भक्त जन उत्साह के साथ नृत्य करते हैं और माता की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दौरान, लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर एक-दूसरे से मिलते हैं, और यह एक अनोखा अनुभव होता है। यह नृत्य न केवल उत्सव का हिस्सा है, बल्कि यह सामाजिक जुड़ाव और भाईचारे का प्रतीक भी है।
नवरात्रि का समापन :-
नवरात्रि का समापन विजयादशमी (दशहरा) के दिन होता है, जो रावण के दहन के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त माता की पूजा के साथ-साथ अपने जीवन में बुराईयों को समाप्त करने का संकल्प लेते हैं। विजयादशमी का पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में अच्छे और बुरे का संघर्ष हमेशा चलता रहता है, लेकिन अंततः सत्य की जीत होती है।
निष्कर्ष:- नवरात्रि का पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। डांडिया गीत और माता के भजन इस पर्व को और भी खास बनाते हैं। यह हमें न केवल माता की आराधना करने का अवसर प्रदान करते हैं, बल्कि हमें एकजुट होने और अपने परंपराओं को संरक्षित करने की प्रेरणा भी देते हैं। इस नवरात्रि, हम सब मिलकर माता के चरणों में श्रद्धा निवेदित करें और अपनी भक्ति के साथ इस उत्सव का आनंद लें। माता का आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे, यही प्रार्थना है।
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Andhra Pradesh: पवन कल्याण ने मंदिर में की शुद्धि, बोले- सनातन धर्म पर हमलों पर चुप नहीं बैठेंगे
आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम पवन कल्याण ने तिरुमाला के लड्डू प्रसादम में कथित मिलावट को लेकर अपनी 11 दिवसीय ‘प्रायश्चित्त दीक्षा’ के हिस्से के रूप में कनक दुर्गा मंदिर में शुद्धिकरण अनुष्ठान किया। उन्होंने कहा कि आज प्रायश्चित्त दीक्षा का तीसरा दिन है। मैं बचपन से ही सनातन धर्म का पालन करता आया हूं। मैं श्री राम का भक्त हूं और हिंदू होने पर गर्व है। उन्होंने कहा कि वाईएसआरसीपी शासन के दौरान कनक…
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गणेश चतुर्थी 2024 कब है? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और इस त्यौहार की विधि
गणेश को हेरम्बा, एकदंत, गणपति, विनायक और पिल्लैयार नामों से जाना जाता है। गणेश चतुर्थी / गणेश पूजा देश में व्यापक रूप से मनाए जाने वाले हिंदू त्योहारों में से एक है । धार्मिक समारोहों में भगवान गणेश का आशीर्वाद लिया जाता है। भगवान विनायक को भाग्य दाता और प्राकृतिक आपदाओं से बचने में सहायता करने वाले के रूप में जाना जाता है। भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी या गणेश उत्सव के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू संस्कृति और आध्यात्मिकता में अत्यधिक महत्व रखता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्हें देवी पार्वती ने अपने शरीर से बनाया था, जिन्होंने उनमें प्राण फूंक दिए थे। 'विघ्नहर्ता' या बाधाओं को दूर करने वाले के रूप में नियुक्त भगवान गणेश को ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है।
गणेश चतुर्थी एक ऐसा त्यौहार है जो समुदायों को एक साथ लाता है। इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, और पूरे भारत में हर वर्ग के लोग इस त्यौहार में भाग लेते हैं। अपने गहन धार्मिक सार से परे, गणेश चतुर्थी का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व बहुत अधिक है, जो एकता की शक्ति और कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। यह त्यौहार हिंदू माह भाद्रपद के चौथे दिन (चतुर्थी) से शुरू होता है, जो आमतौर पर अगस्त और सितंबर के बीच मनाया जाता है।
तिथि और समय :
उत्सव हिंदू माह भाद्रपद के चौथे दिन (चतुर्थी) से शुरू होता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अगस्त और सितंबर के बीच मनाया जाता है। 2024 में, उत्सव और उनका अनुष्ठान शुक्रवार, 6 सितंबर को दोपहर 03:01 बजे शुरू होगा और मंगलवार , 17 सितंबर को शाम 05:37 बजे समाप्त होगा । 2024 गणेश विसर्जन के लिए मंगलवार, 17 सितंबर को निर्धारित है । मध्याह्न गणेशपूजा उत्सव, एक अत्यंत व्यापक अवधि, सुबह 11:03 बजे शुरू होती है और दोपहर 01:34 बजे तक चलती है, जो 2 घंटे और 31 मिनट तक चलती है।
*अगर आप जीवन में किसी बाधा का सामना कर रहे हैं, तो ऐसे में गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करें और मोदक समेत आदि चीजों का भोग लगाएं। इस दौरान प्रभु से सुख-शांति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। माना जाता है कि ऐसा करने से सभी समस्याओं का अंत होता है।
* इसके अलावा आर्थिक तंगी से मुक्ति पाने के लिए गणेश चतुर्थी की पूजा के दौरान सच्चे मन से ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ करें और गरीब लोगों में श्रद्धा अनुसार दान करें। मान्यता है कि इस टोटके को करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन लाभ के योग बनते हैं।
* गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा को पूजा के समय शमी के पत्ते और दुर्वा अर्पित करें। माना जाता है कि इससे प्रभु प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
गणेश चतुर्थी 2024: अनुष्ठान और उत्सव
मान्यता के अनुसार भगवान गणेश को विघ्नहर्ता या सभी बाधाओं को दूर करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में उनका बहुत महत्व है, जहाँ लगभग सभी अनुष्ठान उनकी पूजा से शुरू होते हैं। इस त्यौहार का जश्न भगवान गणेश की मूर्तियों की तैयारी के साथ महीनों पहले शुरू हो जाता है।
गणेश चतुर्थी के चार मुख्य अनुष्ठान हैं - प्राणप्रतिष्ठा, षोडशोपचार, उत्तरपूजा और विसर्जन पूजा। लोग अपने घरों को फूलों और रंगोली से सजाते हैं और भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्तियाँ अपने घरों में लाते हैं। चतुर्थी के दिन पूजा पंडालों, घरों, कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में भी सुंदर ढंग से सजी हुई गणेश मूर्तियाँ रखी जाती हैं।
प्राणप्रतिष्ठा अनुष्ठान एक पुजारी द्वारा मंत्रोच्चार करके किया जाता है। उसके बाद, 16 अलग-अलग अनुष्ठान किए जाते हैं - जिन्हें षोडशोपचार पूजा के रूप में जाना जाता है।
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शाम की पूजा में क्यों नहीं बजाई जाती है घंटी, जानें पूजा से जुड़े ये नियम…
घर में पूजा करने से जातक को धार्मिक उत्साह प्राप्त होता है और व्यक्ति ईश्वर के साथ जुड़ाव का अनुभव करता है। साथ ही पूजा करने से परिवार के सदस्यों के संबंधों में प्रेम और एकता बढ़ती है।
हिंदू धर्म में पूजा का विशेष महत्व माना जाता है, क्योंकि पूजा धार्मिक अनुष्ठान के रूप में की जाती है और इसमें भगवान की प्रार्थना, ध्यान, मंत्र और आरती की जाती हैं। पूजा के माध्यम से व्यक्ति भगवान के सामने अपनी सभी भावनाओं व इच्छाओं को रखता हैं। इसे धर्म के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में माना जाता है, जो जातक को धार्मिक जीवन में सुधार करने में मदद करता है। पूजा से मनुष्य का मन शुद्ध होता है और जातक का ध्यान भगवान की ओर जाता है, जिससे व्यक्ति को आस्था, विश्वास और शक्ति प्राप्त होती है। लेकिन भगवान की पूजा करने से पहले जातक को शाम की पूजा से जुड़े नियम को समझना चाहिए ताकि वह बिना किसी परेशानी के भगवान की पूजा कर सकें।
बता दें कि पूजा धार्मिक आदर्शों को स्थापित करने में मदद करती है। साथ ही यह जातक में अनुशासन, संयम, उत्तम आचार और श्रद्धा जैसे गुणों का विकास करती है। इसके अलावा, पूजा सामाजिक एवं आध्यात्मिक भाव को बढ़ाती है ��र जातक को समाज में एक अच्छी स्थिती प्रदान करती हैं। चलिए आज इस लेख में जानते है कि शाम की पूजा करते समय तुलसी व घंटी का उपयोग क्यों नहीं किया जाता हैं।
हिंदू धर्म में पूजा का महत्व घर में पूजा करने से जातक को धार्मिक उत्साह प्राप्त होता है और व्यक्ति ईश्वर के साथ जुड़ाव का अनुभव करता है। साथ ही पूजा करने से परिवार के सदस्यों के संबंधों में प्रेम और एकता बढ़ती है। पूजा करने से जातक के घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता हैं और घर में शांति का माहौल बन रहता है। घर में पूजा करने से जातक को आत्मिक एवं मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है, जो स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक होती है। पूजा करने से समय के साथ-साथ जातक के व्यवहार में भी बदलाव होता हैं और व्यक्ति का संबंध ईश्वर और धर्म से मजबूत हो जाता हैं।
सुबह और शाम पूजा करने से दिन की शुरुआत और अंत धार्मिक अनुभव से होती है और इससे जातक को दिन के सभी कामों के लिए प्रेरणा मिलती है। सुबह और शाम पूजा करने से व्यक्ति ईश्वर के साथ जुड़ाव अनुभव करता है, जिससे जातक को आत्मिक शांति मिलती है। साथ ही पूजा करने से घर का माहौल धार्मिक, सद्भाव और सौहार्द बना रहता है। पूजा करने से जातक के मन में शुद्धि उत्पन्न होती है, जो व्यक्ति के आत्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है।
इस पूजा विधि से करें शाम की पूजा शाम के समय पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके लिए आप निम्नलिखित विधि का पालन कर सकते हैं:
सबसे पहले, देवी या देवता की मूर्ति के सामने बैठ जाएं। इसके बाद उपयुक्त पूजा सामग्री जैसे फूल, दीपक, धूप, अगरबत्ती आदि का पूजा में उपयोग करें। अब भगवान के सामने एक दीपक, धूप और अगरबत्ती ��लाएं। इसके बाद आप भगवान की आरती करें। अंत में, भगवान से दोनों हाथ जोड़कर आशीर्वाद मांगें और ध्यान करें। पूजा का प्रसाद घर के सभी लोगों में जरूर बांटे।
ज्योतिष अनुसार घर पर पूजा करने के नियम हिंदू धर्म में घर पर पूजा करने के कुछ नियम होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। यह नियम इस प्रकार हैं:
स्नान करना हिंदू धर्म में पूजा के लिए स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य शुद्धता और पवित्रता को बनाए रखना होता है। स्नान करने से शरीर के समस्त अंगों को स्वच्छ और शुद्ध करके अधिक उत्तेजित बनाया जाता है, जो पूजा के दौरान ध्यान और अध्ययन करने में मदद करता है। इसके अलावा, स्नान करने से अनेक बीमारियों से बचाव होता है और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में भी मदद मिलती है। पूजा से पहले स्नान करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इससे आपका मन और शरीर दोनों ही शांत और अच्छा महसूस करते हैं।
घर की साफ-सफाई घर पर साफ सफाई बहुत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि एक साफ सुथरा मंदिर या पूजा स्थल आपके मन को शांति देता है और आपके आध्यात्मिकता के अनुभव को बढ़ावा देता है। साथ ही साफ मंदिर शुद्धता और स्वच्छता का प्रतीक होता है, जो आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।
पूजा का आसन हिंदू धर्म में पूजा के दौरान आसन का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह शरीर को स्थिर रखता है और चित्त को शांत करता है। एक स्थिर आसन में बैठकर पूजा करने से शरीर का रक्त संचार बेहतर होता है और मन शांत रहता है। इसलिए आसन का उपयोग पूजा के दौरान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
पूजा का समय हिंदू धर्म में सुबह और शाम दो बार पूजा की जाती है। सुबह की पूजा को सूर्योदय के समय किया जाना चाहिए, जब सूर्य की किरणें पृथ्वी पर चमकती हैं। शाम की पूजा को सूर्यास्त के समय किया जाना चाहिए, जब सूर्य की रोशनी ढलने लगती है। यह समय स्थान और ऋतु के अनुसार भी बदल सकता है। आप इसके लिए किसी अनुभवी ज्योतिष या पंडित से बात कर सकते हैं।
शाम की पूजा करते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान घंटी न बजाएं हिंदू धर्म में शाम की पूजा करते समय घंटी नहीं बजानी चाहिए, क्योंकि इस समय पितृ देवताओं की पूजा की जाती है और इन देवताओं को अस्तित्व में लाने के लिए शांति और सामंजस्य की आवश्यकता होती है। घंटी बजाने से इस शांति एवं सामंजस्य को विघटित किया जा सकता है और इससे पितृ देवताओं को असंतोष हो सकता है। इसलिए शाम की पूजा में घंटी नहीं बजानी चाहिए।
पूजा में तुसली का पत्ता हिंदू धर्म में शाम को तुलसी के पत्ते को नहीं छूना चाहिए, क्योंकि शाम का समय देवी-देवताओं का माना जाता है और तुलसी को देवी का स्वरूप कहा जाता है। यही कारण है कि सूर्यास्त होने के बाद तुलसी के पत्ते को नहीं छूना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से तुलसी देवी नाराज हो जाती है और यह जातक के लिए शुभ नहीं होता हैं।
शाम को सूर्यदेव की पूजा पूजा के नियमों के अनुसार शाम को सूर्य देव की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि शाम का समय सूर्यास्त के बाद होता है और सूर्य देव को दिन के देवता कहा जाता है। इसलिए शाम के समय इनका पूजन नहीं किया जाता हैं। हालांकि, शाम की पूजा में अग्नि का उपयोग किया जा सकता है, जो प्रकृति का एक महत्वपूर्ण तत्व मानी जाती है।
शाम की पूजा में फूल हिंदू धर्म में शाम की पूजा करने के लिए फूलों को तोड़ना अशुभ माना जाता है, क्योंकि शाम की पूजा का मुख्य उद्देश्य देवी-देवताओं की आराधना करना होता है, जो संसार के सभी जीवों का कल्याण करते हैं। साथ ही भगवान पेड़-पौधों के रूप में धरती पर विराजमान होते है और उन्हें तोड़ने से देवी-देवताओं को बुरा लगता है। इसलिए शाम की पूजा के लिए फूलों को तोड़ने से बचना चाहिए।
शाम की पूजा के दौरान अपनाएं ये ज्योतिषी उपाय होगा लाभ आप शाम की पूजा के दौरान निम्नलिखित ज्योतिषीय उपाय करके परेशानियों से बच सकते है।
पूजा करते समय अगर जातक को शुरू में कुछ अशुभ विचार आते हैं, तो उन्हें दूर करें और मन को शुद्ध व शांत रखने के लिए ध्यान करना चाहिए।
आप पूजा के दौरान कम से कम एक मिठाई और थोड़ा प्रसाद भगवान को जरूर चढ़ाएं।
पूजा के दौरान अगर संभव हो, तो तुलसी के पत्तों का प्रयोग करें, क्योंकि तुलसी का पत्ता शुभता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन शाम की पूजा में इसका उपयोग न करें।
यदि संभव हो, तो पूजा के दौरान उपयुक्त वस्तुओं का दान करना चाहिए।
पूजा के बाद भगवान के समक्ष आरती जरूर करें।
आपको रोजाना देवी-देवताओं व अपने इष्ट देवता की पूजा करें और उनसे धन, स्वास्थ्य, समृद्धि और शांति की प्रार्थना करें।
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श्रावण मास 2024 के व्रत और त्योहारों की पूरी जानकारी
श्रावण मास हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस महीने में कई व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं। श्रावण मास में हर सोमवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाना और व्रत रखना शुभ माना जाता है।
श्रावण मास का महत्व
श्रावण मास में शिव भक्ति का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस महीने में भगवान शिव भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं।
श्रावण मास को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इस महीने में लोग व्रत रखते हैं, जप करते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
श्रावण मास में प्रकृति अपने चरम पर होती है। बारिश होती है और हरियाली चारों ओर फैली होती है।
श्रावण मास के प्रमुख व्रत और त्योहार
यह त्योहार महिलाओं द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता है। हरियाली तीज के दिन महिलाएं शिव और पार्वती की पूजा करती हैं और सुहाग की सामग्री से सजती हैं।
इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। मान्यता है कि नाग देवता सांपों के देवता हैं और नाग पंचमी के दिन उनकी पूजा करने से सांप का डर दूर होता है।
यह भाई-बहन का त्योहार है। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का वचन देते हैं।
श्रावण मास के सभी सोमवारों को विशेष महत्व दिया जाता है। श्रावण सोमवार के दिन भक्त शिव मंदिरों में जाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं।
श्रावण मास में कावड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है। भक्त दूर-दूर से कावड़ लेकर शिव मंदिरों में जल चढ़ाते हैं।
श्रावण मास में क्या करें
श्रावण मास में नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा करें।
श्रावण मास में व्रत रखने से मन और शरीर शुद्ध होता है।
इस महीने में ओम नमः शिवाय मंत्र का जप करना बहुत लाभदायक होता है।
श्रावण मास में शिव पुराण, गीता आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें।
इस महीने में दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
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Maa Saraswati Aarti Lyrics: हिंदू धर्म में माँ सरस्वती का एक महत्वपूर्ण स्थान है। उन्हें विद्या, संगीत, कला, और ज्ञान की देवी के रूप में पूजा जाता है। माँ सरस्वती की आरती उनकी पूजा के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिससे हमें बुद्धि, ज्ञान, और शिक्षा प्राप्त होती है
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पवित्र वेदी पर नर्मदेश्वर शिवलिंग
नर्मदेश्वर शिवलिंग क्यों चुनें? मूल्य: आध्यात्मिक सार का अनावरण क्या है।
आध्यात्मिक क्षेत्र में नर्मदेश्वर शिवलिंग narmadeshwar shivling price का अत्यधिक महत्व है। कई साधक न केवल इसकी दिव्य आभा से बल्कि इसकी कीमतों में भिन्नता ��े भी उत्सुक है���। आइए नर्मदेश्वर शिवलिंग की रहस्यमय दुनिया में उतरें और इसकी कीमत को प्रभावित करने वाले कारकों को उजागर करें।
नर्मदेश्वर शिवलिंग:
नर्मदेश्वर शिवलिंग क्या है?
नर्मदेश्वर शिवलिंग भगवान शिव का एक पवित्र प्रतिनिधित्व है, जिसे नर्मदा नदी से प्राप्त पत्थरों से बनाया गया है। भक्तों का मानना है कि इसमें अद्वितीय ऊर्जा और आशीर्वाद है, जो इसे हिंदू धर्म में एक पूजनीय प्रतीक बनाता है।
कीमत को प्रभावित करने वाले कारक:
आकार और वजन:
उपयोग की जाने वाली सामग्री की बढ़ी हुई मात्रा और अधिक आध्यात्मिक महत्व के कारण बड़े और भारी शिवलिंगों की कीमत narmadeshwar shivling price अक्सर अधिक होती है।
पत्थर की गुणवत्ता:
शिवलिंग के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर का प्रकार और गुणवत्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जटिल पैटर्न या अद्वितीय चिह्नों वाले पत्थरों की कीमत अक्सर अधिक होती है।
कलात्मक विवरण:
जटिल नक्काशीदार डिज़ाइन और शिल्प कौशल कीमत बढ़ा सकते हैं। कलात्मक तत्व सौंदर्य अपील और आध्यात्मिक मूल्य को बढ़ाते हैं।
दुर्लभता:
दुर्लभ नर्मदेश्वर शिवलिंग, चाहे अद्वितीय चिह्नों के कारण या पत्थर की सीमित उपलब्धता के कारण, अधिक महंगे हो सकते हैं।
शिवलिंग की कीमतों का हुआ अनावरण:
अब, आइए बाजार में नर्मदेश्वर शिवलिंगों की मूल्य सीमा देखें:
छोटे शिवलिंग: RS500 – Rs1000
मध्यम शिवलिंग: $100 - $300
बड़े और दुर्लभ शिवलिंग: $300 और अधिक
नर्मदेश्वर शिवलिंग के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
Q1: क्या नर्मदेश्वर शिवलिंग को घर में रखा जा सकता है?
उ1: हाँ, कई घरों में आध्यात्मिक साधना के लिए नर्मदेश्वर शिवलिंग होता है। ऐसा माना जाता है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
Q2: नर्मदेश्वर शिवलिंग की सफाई और पूजा कैसे करें?
उ2: इसे जल से साफ करें और पूजा के दौरान दूध, शहद और जल अर्पित करें। अनुष्ठान के दौरान भक्त अक्सर प्रार्थना करते हैं और मंत्रों का जाप करते हैं।
Q3: क्या नर्मदेश्वर शिवलिंग पूजा के लिए कोई विशेष दिन है?
उ3: सोमवार, विशेष रूप से श्रावण माह के दौरान, नर्मदेश्वर शिवलिंग पूजा के लिए शुभ माने जाते हैं।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः, नर्मदेश्वर शिवलिंग narmadeshwar shivling price मात्र एक पत्थर की नक्काशी नहीं है; यह दिव्य ऊर्जा और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इसकी कीमत को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने से इस पवित्र कलाकृति के प्रति सराहना की एक परत जुड़ जाती है। चाहे व्यक्तिगत भक्ति के लिए या एक सार्थक उपहार के रूप में, नर्मदेश्वर शिवलिंग अपने रहस्य और महत्व से दिलों को मोहित करता रहता है।
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Tulsi Puja: हिंदू धर्म में तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। तुलसी को देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इसलिए तुलसी पूजन सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक है। तुलसी की नियमित पूजा करने वाले घरों में कभी कोई कमी नहीं होती। तुलसी के पौधे को माता लक्ष्मी का प्रतीक मानकर इसे घरों में लगाना हमारे धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा है। इसके नियमित पूजन से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। तुलसी के इस महत्वपूर्ण पौधे की पूजा में कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए, जिससे पूजा का सही और सकारात्मक प्रभाव हो।
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पारस भाई देवउठनी एकादशी पर एक शुभ दिन
सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है। पूरे वर्ष में लगभग 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन देवउठनी ग्यारस का अपना महत्व है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन को भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से सभी तरह के शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयन एकादशी के बाद ये सभी शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं।
धार्मिक महत्व और देवउठनी एकादशी।
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु देवशयन एकादशी योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसके बाद वे चार महीने बाद देवउठनी एकादशी पर जागते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। यह समय ध्यान, साधना, संयम और त्याग का प्रतीक कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के पावन काल में भगवान विष्णु के शुभ जागरण के साथ ही सभी सकारात्मक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है और इस दिन की गई पूजा और व्रत से विशेष लाभ मिलता है। श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी, हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता में कहा जाता है कि एक बार हिंदू धर्म की लोकप्रिय देवी मां लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया और उन्हें और देवताओं को चार महीने के लिए अपने काम से आराम करने और योग निद्रा में जाने के लिए कहा। ��गवान उनकी बात मान गए और चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए। भगवान ने आषाढ़ माह में यह निद्रा ली और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपना नैतिक कार्य फिर से शुरू किया। जागने के बाद उन्होंने सभी देवताओं को उनके कर्तव्यों के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में देवउठनी ग्यारस को आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है पारस भाई जी की मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं, जीवन के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र विवाह अनुष्ठान को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
पारस परिवार के मुखिया श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी तुलसी विवाह के पीछे एक कथा है। भगवान विष्णु ने राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा को पवित्र तुलसी मां में बदल दिया और फिर उनका विवाह स्वयं विष्णु के एक रूप भगवान शालिग्राम से कराया। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा मनाई जाने लगी।
पवित्र देवउठनी ग्यारस व्रत की विधि
सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने धूपबत्ती और दीपक जलाया जाता है। भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष फूल, फल, मिठाई, चावल आदि अर्पित किए जाते हैं। इस दिन लोग अपने पूजा स्थल पर तुलसी के पत्ते रखकर उनकी पूजा भी करते हैं। पारस भाई जी के अनुसार तुलसी के पत्ते चढ़ाए बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी रहती है। इस दिन शाम के समय भगवान विष्णु को मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत के लाभ
देवउठनी एकादशी का व्रत करने से कई लाभ मिलते हैं। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सनातन धर्म व्रत अनुष्ठानों का पालन करता है और अपनी आत्मा को इन धार्मिक देवों से जोड़ने का प्रयास करता है। व्रत करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। तुलसी विवाह करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है और उनके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी पर ध्यान देने योग्य बातें
व्रत का पालन: इस दिन व्रत करने से मन शुद्ध होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। व्रती को केवल फलाहार ही करना चाहिए तथा अन्न नहीं खाना चाहिए।
दिनभर विष्णु भजन: इस दिन भगवान विष्णु के भजनों का पा�� करना चाहिए, जिससे मन को शांति मिलती है।
सामूहिक पूजा: इस दिन पूरा परिवार सामूहिक पूजा करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
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💥सतयुग में ही लुप्त हो चुकी वेदोक्त सनातनी पूजा का पुनः हो रहा उत्थान💥
सनातन धर्म एवं सच्चे सनातनी के नाम पर समय समय पर पूरे देशभर में होने वाली राजनैतिक चर्चाओं का दौर अब आम हो चला है। लेकिन सनातन धर्म एवं उसकी यथार्थ पूजा पद्धति तक पहुंचने के लिए पहले हमें हमारे सनातन शास्त्रों की तरफ लौटना होगा और जानना होगा कि सनातन पूजा के संबंध में किन गूढ़ रहस्यों से आज तक हिंदू भक्त समाज अनभिज्ञ था।
हिंदुओं के ही सनातन धर्मग्रंथों से प्रमाण मिलता है कि सनातन धर्म अथवा पूजा सतयुग में केवल एक लाख वर्षों तक ही अस्तित्व में रही थी। गीता अध्याय 4 श्लोक 1-2 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट किया है कि हे अर्जुन! यह योग यानि गीता वाला अर्थात चारों वेदों वाला ज्ञान मैंने सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र मनु से कहा। मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को कहा। इसके पश्चात यह ज्ञान कुछ राज ऋषियों ने समझा। उसके पश्चात यह ज्ञान नष्ट हो गया यानि लुप्त हो गया।
इक्ष्वाकु वंश में सनातन पूजा के इतिहास के सम्बंध में जैन संस्कृति कोष नामक पुस्तक में पृष्ठ 175-177 पर दिए गए प्रमाणों से भी स्पष्ट होता है कि इक्ष्वाकुवंश के राजा नाभिराज तक यानि सत्ययुग में लगभग एक लाख वर्षों तक ही वेदों अर्थात गीता वाले ज्ञानानुसार पूजा की जाती थी। उसके बाद उनके पुत्र ऋषभदेव जी से शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हुआ। और इस प्रकार वेदोक्त सनातनी पूजा का अंत सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद ही हो गया था।
सत्ययुग में ही लुप्त हो चुकी सनातनी पूजा के उपरोक्त शास्त्र आधारित पुख्ता प्रमाणों के मद्देनजर यदि आज की हिन्दू धर्म में प्रचलित पूजाओं पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि लगभग पूरा हिन्दू समाज ही शास्त्र विरुद्ध भक्ति आचरण कर अपने सनातन शास्त्रों की अवहेलना कर रहा है। आज का समस्त हिंदू समाज ही पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवी देवताओं की पूजा करके पवित्र सनातन ग्रंथ गीताजी के भक्ति निर्देशों की उपेक्षा करके हानि उठा रहा है। (प्रमाण - गीता अध्याय 16 श्लोक 23 व 24, अध्याय 9 श्लोक 25 एवं अध्याय 7 श्लोक 15)
वर्तमान परिदृश्य में खुद को सच्चे सनातनी कहने वाले हिंदू महानुभावों को चाहिए था कि वे सबसे पहले यथार्थ सनातन धर्म की उत्पत्ति एवं अंत के विषय में पहले अपने सनातन शास्त्रों में दिए गूढ़ रहस्यों को जानने परखने का प्रयास करते। और उसी से निष्कर्ष निकालते कि आज वर्तमान समय में हिंदुओं में से कितने लोग सनातनी रह गए हैं और कितने हिंदू जाने अनजाने में स���ातन पंथ से दूरी बना चुके हैं।
क्योंकि हमारे ही सनातन शास्त्रों (गीता व वेद) के अनुसार वास्तविक सनातनी केवल वही है जो कि सनातन शास्त्रों में बताए गए भक्ति निर्देशों के अनुसार ही अपना धार्मिक आचरण व अनुष्ठान आदि करता है। एवं यथार्थ धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी के लिए सनातन शास्त्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्त्वदर्शी ज्ञानी संत की शरण ग्रहण करने का स्पष्ट निर्देश है। और यहीं पर आगे अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्त्वदर्शी संत के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो संत उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के जड़ से पत्तियों तक के रहस्य को जानता है वह तत्त्वदर्शी संत है। आज सर्वविदित हो चुका है कि गीताजी के अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित उस संसार रूपी वृक्ष की जड़ से लेकर पत्तियों तक के यथार्थ आध्यात्मिक रहस्य को केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्र सम्मत प्रमाण देकर उजागर कर दिया है।
*हो रहा सनातनी पूजा का पुनः उत्थान*
समय के सतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पावन सानिध्य में कलियुग की इस बिचली पीढ़ी में शास्त्रोक्त सनातनी पूजा का पुनरूत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज के 90% अनुयायी हिंदू हैं, जिन्होंने सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद से चली आ रही शास्त्रविधि रहित साधनाओं को त्यागकर सनातन शास्त्रों में प्रमाणित यथार्थ सनातनी पूजा प्रारंभ की है।
विचारण��य विषय है कि गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने भी सनातन साधना जानने के लिए अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 के माध्यम से केवल तत्त्वदर्शी संत की शरण में जाने का निर्देश किया है। वर्तमान समय में विश्व कल्याणार्थ धरती पर अवतरित पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी के पूर्ण अवतार तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी को पहचानकर एवं उनकी शरण ग्रहण कर समस्त मानव समाज अपने जीवन को सार्थक कर सकता है।
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हर दिन करें तुलसी स्तोत्र का पाठ
तुलसी को हिंदू धर्म में एक पवित्र और दिव्य पौधा माना जाता है, जिसे माता लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा जाता है। तुलसी स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति, और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।वैदिक रीति से ��ुलसी स्तोत्र का पाठ बुक करें और अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करें। हमारे अनुभवी पंडित पवित्र और शुभ अनुष्ठान कराते हैं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि प्राप्त होती है। आज ही तुलसी स्तोत्र का पाठ बुक करें और एक शुभ शुरुआत करें!
Read more- समस्त विपत्तियों से रक्षा करती है भगवत्कृत तुलसी स्तोत्रम्
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#हिन्दू_साहेबान_नहीं_समझे_गीता_वेद_पुराण
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सनातन धर्म एवं सच्चे सनातनी के नाम पर समय समय पर पूरे देशभर में होने वाली राजनैतिक चर्चाओं का दौर अब आम हो चला है। लेकिन सनातन धर्म एवं उसकी यथार्थ पूजा पद्धति तक पहुंचने के लिए पहले हमें हमारे सनातन शास्त्रों की तरफ लौटना होगा और जानना होगा कि सनातन पूजा के संबंध में किन गूढ़ रहस्यों से आज तक हिंदू भक्त समाज अनभिज्ञ था।
हिंदुओं के ही सनातन धर्मग्रंथों से प्रमाण मिलता है कि सनातन धर्म अथवा पूजा सतयुग में केवल एक लाख वर्षों तक ही अस्तित्व में रही थी। गीता अध्याय 4 श्लोक 1-2 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट किया है कि हे अर्जुन! यह योग यानि गीता वाला अर्थात चारों वेदों वाला ज्ञान मैंने सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र मनु से कहा। मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को कहा। इसके पश्चात यह ज्ञान कुछ राज ऋषियों ने समझा। उसके पश्चात यह ज्ञान नष्ट हो गया यानि लुप्त हो गया।
इक्ष्वाकु वंश में सनातन पूजा के इतिहास के सम्बंध में जैन संस्कृति कोष नामक पुस्तक में पृष्ठ 175-177 पर दिए गए प्रमाणों से भी स्पष्ट होता है कि इक्ष्वाकुवंश के राजा नाभिराज तक यानि सत्ययुग में लगभग एक लाख वर्षों तक ही वेदों अर्थात गीता वाले ज्ञानानुसार पूजा की जाती थी। उसके बाद उनके पुत्र ऋषभदेव जी से शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हुआ। और इस प्रकार वेदोक्त सनातनी पूजा का अंत सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद ही हो गया था।
सत्ययुग में ही लुप्त हो चुकी सनातनी पूजा के उपरोक्त शास्त्र आधारित पुख्ता प्रमाणों के मद्देनजर यदि आज की हिन्दू धर्म में प्रचलित पूजाओं पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि लगभग पूरा हिन्दू समाज ही शास्त्र विरुद्ध भक्ति आचरण कर अपने सनातन शास्त्रों की अवहेलना कर रहा है। आज का समस्त हिंदू समाज ही पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवी देवताओं की पूजा करके पवित्र सनातन ग्रंथ गीताजी के भक्ति निर्देशों की उपेक्षा करके हानि उठा रहा है। (प्रमाण - गीता अध्याय 16 श्लोक 23 व 24, अध्याय 9 श्लोक 25 एवं अध्याय 7 श्लोक 15)
वर्तमान परिदृश्य में खुद को सच्चे सनातनी कहने वाले हिंदू महानुभावों को चाहिए था कि वे सबसे पहले यथार्थ सनातन धर्म की उत्पत्ति एवं अंत के विषय में पहले अपने सनातन शास्त्रों में दिए गूढ़ रहस्यों को जानने परखने का प्रयास करते। और उसी से निष्कर्ष निकालते कि आज वर्तमान समय में हिंदुओं में से कितने लोग सनातनी रह गए हैं और कितने हिंदू जाने अनजाने में सनातन पंथ से दूरी बना चुके हैं।
क्योंकि हमारे ही सनातन शास्त्रों (गीता व वेद) के अनुसार वास्तविक सनातनी केवल वही है जो कि सनातन शास्त्रों में बताए गए भक्ति निर्देशों के अनुसार ही अपना धार्मिक आचरण व अनुष्ठान आदि करता है। एवं यथार्थ धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी के लिए सनातन शास्त्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्त्वदर्शी ज्ञानी संत की शरण ग्रहण करने का स्पष्ट निर्देश है। और यहीं पर आगे अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्त्वदर्शी संत के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो संत उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के जड़ से पत्तियों तक के रहस्य को जानता है वह तत्त्वदर्शी संत है। आज सर्वविदित हो चुका है कि गीताजी के अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित उस संसार रूपी वृक्ष की जड़ से लेकर पत्तियों तक के यथार्थ आध्यात्मिक रहस्य को केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्र सम्मत प्रमाण देकर उजागर कर दिया है।
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समय के सतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पावन सानिध्य में कलियुग की इस बिचली पीढ़ी में शास्त्रोक्त सनातनी पूजा का पुनरूत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज के 90% अनुयायी हिंदू हैं, जिन्होंने सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद से चली आ रही शास्त्रविधि रहित साधनाओं को त्यागकर सनातन शास्त्रों में प्रमाणित यथार्थ सनातनी पूजा प्रारंभ की है।
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इक्ष्वाकु वंश में सनातन पूजा के इतिहास के सम्बंध में जैन संस्कृति कोष नामक पुस्तक में पृष्ठ 175-177 पर दिए गए प्रमाणों से भी स्पष्ट होता है कि इक्ष्वाकुवंश के राजा नाभिराज तक यानि सत्ययुग में लगभग एक लाख वर्षों तक ही वेदों अर्थात गीता वाले ज्ञानानुसार पूजा की जाती थी। उसके बाद उनके पुत्र ऋषभदेव जी से शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हुआ। और इस प्रकार वेदोक्त सनातनी पूजा का अंत सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद ही हो गया था।
सत्ययुग में ही लुप्त हो चुकी सनातनी पूजा के उपरोक्त शास्त्र आधारित पुख्ता प्रमाणों के मद्देनजर यदि आज की हिन्दू धर्म में प्रचलित पूजाओं पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि लगभग पूरा हिन्दू समाज ही शास्त्र विरुद्ध भक्ति आचरण कर अपने सनातन शास्त्रों की अवहेलना कर रहा है। आज का समस्त हिंदू समाज ही पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवी देवताओं की पूजा करके पवित्र सनातन ग्रंथ गीताजी के भक्ति निर्देशों की उपेक्षा करके हानि उठा रहा है। (प्रमाण - गीता अध्याय 16 श्लोक 23 व 24, अध्याय 9 श्लोक 25 एवं अध्याय 7 श्लोक 15)
वर्तमान परिदृश्य में खुद को सच्चे सनातनी कहने वाले हिंदू महानुभावों को चाहिए था कि वे सबसे पहले यथार्थ सनातन धर्म की उत्पत्ति एवं अंत के विषय में पहले अपने सनातन शास्त्रों में दिए गूढ़ रहस्यों को जानने परखने का प्रयास करते। और उसी से निष्कर्ष निकालते कि आज वर्तमान समय में हिंदुओं में से कितने लोग सनातनी रह गए हैं और कितने हिंदू जाने अनजाने में सनातन पंथ से दूरी बना चुके हैं।
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समय के सतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पावन सानिध्य में कलियुग की इस बिचली पीढ़ी में शास्त्रोक्त सनातनी पूजा का पुनरूत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज के 90% अनुयायी हिंदू हैं, जिन्होंने सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद से चली आ रही शास्त्रविधि रहित साधनाओं को त्यागकर सनातन शास्त्रों में प्रमाणित यथार्थ सनातनी पूजा प्रारंभ की है।
विचारणीय विषय है कि गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने भी सनातन साधना जानने के लिए अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 के माध्यम से केवल तत्त्वदर्शी संत की शरण में जाने का निर्देश किया है। वर्तमान समय में विश्व कल्याणार्थ धरती पर अवतरित पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी के पूर्ण अवतार तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी को पहचानकर एवं उनकी शरण ग्रहण कर समस्त मानव समाज अपने जीवन को सार्थक कर सकता है।
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सनातन धर्म एवं सच्चे सनातनी के नाम पर समय समय पर पूरे देशभर में होने वाली राजनैतिक चर्चाओं का दौर अब आम हो चला है। लेकिन सनातन धर्म एवं उसकी यथार्थ पूजा पद्धति तक पहुंचने के लिए पहले हमें हमारे सनातन शास्त्रों की तरफ लौटना होगा और जानना होगा कि सनातन पूजा के संबंध में किन गूढ़ रहस्यों से आज तक हिंदू भक्त समाज अनभिज्ञ था।
हिंदुओं के ही सनातन धर्मग्रंथों से प्रमाण मिलता है कि सनातन धर्म अथवा पूजा सतयुग में केवल एक लाख वर्षों तक ही अस्तित्व में रही थी। गीता अध्याय 4 श्लोक 1-2 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट किया है कि हे अर्जुन! यह योग यानि गीता वाला अर्थात चारों वेदों वाला ज्ञान मैंने सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र मनु से कहा। मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को कहा। इसके पश्चात यह ज्ञान कुछ राज ऋषियों ने समझा। उसके पश्चात यह ज्ञान नष्ट हो गया यानि लुप्त हो गया।
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सत्ययुग में ही लुप्त हो चुकी सनातनी पूजा के उपरोक्त शास्त्र आधारित पुख्ता प्रमाणों के मद्देनजर यदि आज की हिन्दू धर्म में प्रचलित पूजाओं पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि लगभग पूरा हिन्दू समाज ही शास्त्र विरुद्ध भक्ति आचरण कर अपने सनातन शास्त्रों की अवहेलना कर रहा है। आज का समस्त हिंदू समाज ही पित्तर पूजा, भूत पूजा, देवी देवताओं की पूजा करके पवित्र सनातन ग्रंथ गीताजी के भक्ति निर्देशों की उपेक्षा करके हानि उठा रहा है। (प्रमाण - गीता अध्याय 16 श्लोक 23 व 24, अध्याय 9 श्लोक 25 एवं अध्याय 7 श्लोक 15)
वर्तमान परिदृश्य में खुद को सच्चे सनातनी कहने वाले हिंदू महानुभावों को चाहिए था कि वे सबसे पहले यथार्थ सनातन धर्म की उत्पत्ति एवं अंत के विषय में पहले अपने सनातन शास्त्रों में दिए गूढ़ रहस्यों को जानने परखने का प्रयास करते। और उसी से निष्कर्ष निकालते कि आज वर्तमान समय में हिंदुओं में से कितने लोग सनातनी रह गए हैं और कितने हिंदू जाने अनजाने में सनातन पंथ से दूरी बना चुके हैं।
क्योंकि हमारे ही सनातन शास्त्रों (गीता व वेद) के अनुसार वास्तविक सनातनी केवल वही है जो कि सनातन शास्त्रों में बताए गए भक्ति निर्देशों के अनुसार ही अपना धार्मिक आचरण व अनुष्ठान आदि करता है। एवं यथार्थ धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी के लिए सनातन शास्त्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्त्वदर्शी ज्ञानी संत की शरण ग्रहण करने का स्पष्ट निर्देश है। और यहीं पर आगे अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्त्वदर्शी संत के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो संत उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के जड़ से पत्तियों तक के रहस्य को जानता है वह तत्त्वदर्शी संत है। आज सर्वविदित हो चुका है कि गीताजी के अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित उस संसार रूपी वृक्ष की जड़ से लेकर पत्तियों तक के यथार्थ आध्यात्मिक रहस्य को केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्र सम्मत प्रमाण देकर उजागर कर दिया है।
*हो रहा सनातनी पूजा का पुनः उत्थान*
समय के सतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पावन सानिध्य में कलियुग की इस बिचली पीढ़ी में शास्त्रोक्त सनातनी पूजा का पुनरूत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज के 90% अनुयायी हिंदू हैं, जिन्होंने सत्ययुग के लगभग एक लाख वर्ष बाद से चली आ रही शास्त्रविधि रहित साधनाओं को त्यागकर सनातन शास्त्रों में प्रमाणित यथार्थ सनातनी पूजा प्रारंभ की है।
विचारणीय विषय है कि गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने भी सनातन साधना जानने के लिए अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 के माध्यम से केवल तत्त्वदर्शी संत की शरण में जाने का निर्देश किया है। वर्तमान समय में विश्व कल्याणार्थ धरती पर अवतरित पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी के पूर्ण अवतार तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी को पहचानकर एवं उनकी शरण ग्रहण कर समस्त मानव समाज अपने जीवन को सार्थक कर सकता है।
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