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प्लास्टिक मुक्त भारत: हमारी धरती, हमारी जिम्मेदारी आज ही संकल्प लें
प्लास्टिक मुक्त भारत प्लास्टिक मुक्त भारत की दिशा में हम सबकी जिम्मेदारी है। जानें कैसे छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं और मिलकर एक स्वच्छ, हरा-भरा भविष्य बना सकते हैं।भारत में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो न केवल हमारे पर्यावरण को बल्कि हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। “प्लास्टिक मुक्त भारत हमारी धरती, हमारी जिम्मेदारी” पहल ��ा उद्देश्य इस समस्या से निपटना और एक…
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#अभियान#पर्यावरण संरक्षण#प्लास्टिक कचरे प्रबंधन#प्लास्टिक पुनर्चक्रण#प्लास्टिक प्रदूषण#प्लास्टिक मुक्त भारत#स्वच्छता अभियान#हमारी धरती
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लखनऊ, 14.09.2024 | विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 2024 के उपलक्ष्य पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज के सहयोग से जागरूकता कार्यक्रम “पर्यावरण बचाओ, जीवन बचाओ” का आयोजन भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, विनीत खंड, गोमती नगर, लखनऊ में किया |
कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने महाविद्यालय की छात्राओं को पेड़ लगाने के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि, “पेड़ हमारे जीवन के आधार हैं । वे न केवल हमें स्वच्छ हवा और छाया प्रदान करते हैं, बल्कि हमारे पर्यावरण को संतुलित रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । पेड़ लगाना केवल एक पौधा रोपण नहीं है, बल्कि यह एक स्वस्थ और स्वच्छ भविष्य की नींव रखने जैसा है । पेड़ हमारी धरती के फेफड़े हैं, जो वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर हमें शुद्ध ऑक्सीजन देते हैं । पेड़ केवल पर्यावरण को ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन को भी बेहतर बनाते हैं । एक पेड़ हजारों जीव-जंतुओं और पक्षियों का घर होता है, जिससे हमारी पृथ्वी पर जीवन का संतुलन बना रहता है । इसलिए पर्यावरण की रक्षा के लिए हम सभी को पेड़ लगाने के इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए । हर छात्रा को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह न केवल आज बल्कि हर साल कम से कम एक पेड़ लगाएगा और उसकी ��ेखभाल करेगा । यह छोटा सा कदम हमारे जीवन और धरती के भविष्य को सुरक्षित रखने की दिशा में एक बड़ा योगदान होगा ।“
जागरूकता कार्यक्रम “पर्यावरण बचाओ जीवन बचाओ” में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों सुश्री रितिका त्रिपाठी, सुश्री साक्षी राठौड़, सुश्री अंजलि सिंह (एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी) ने भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज की छात्राओं के सहयोग से महाविद्यालय के प्रांगण में मनोकामनी, मिनी चांदनी, गांधार चंपा और गुड़हल के पौधे लगाए तथा हमेशा पर्यावरण की सुरक्षा करने का संकल्प लिया । इस अवसर पर भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज की प्राचार्या डॉ. अलका निवेदन जी, उप प्राचार्य डॉ. संदीप बाजपेई जी और सहायक प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, डॉ. छवि निगम जी की गरिमामयी उपस्थिति रही ।
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#Allah_Is_Kabir
मुस्लिम भाइयों ! अल्लाह एक, धरती एक फिर धर्म कैसे बने अनेक ।
अल्लाह के भेजे हुये बाखबर संत रामपाल जी महाराज आ गये हैं। जो धर्म मजहब की दीवार को तोडक़र अल्लाह के सब बन्दों को एक कर रहे हैं।
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा । हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा ।।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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धरती को स्वर्ग बनाना है
#धरती_को_स्वर्ग_बनाना_है
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संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग वचन सुनकर उनसे निःशुल्क जुड़ें ताकि हमारी तरह आप भी सुखी हों, उनसे जुड़ने के बाद शरीर के सभी प्रकार के रोग नष्ट होंगे। सभी प्रकार के नशे छूट जाऐंगे। जीवन यापन के लिए थोड़ी कमाई से ही काम चल जाएगा। निर्धनता खत्म हो जाएगी।
अधिक जानकारी के लिए अनमोल और पवित्र पुस्तक "धरती ऊपर स्वर्ग" अवश्य पढ़ें।
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#GodMorningThrusday 🌟🌷🌟🌷🌟🌷🌟🌷🌟🌷🌟🌷🌟🌷🌟🌷🌟🌷🌟
मुस्लिम भाइयों ! अल्लाह एक, धरती एक फिर धर्म कैसे बने अनेक ।
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा ।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा ।।
#SaintRampalJiQuotes
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शायरी, कविता, नज़्म, गजल, सिर्फ दिल्लगी का मसला नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि कविता ने हमेशा इंसान को सांस लेने की सहूलियत दी है। जब चारों ओर से दुनिया घेरती है; घटनाओं और सूचनाओं के तेज प्रवाह में हमारा विवेक चीजों को छान-घोंट के अलग-अलग करने में नाकाम रहता है; और विराट ब्रह्मांड की शाश्वत धक्कापेल के बीच किसी किस्म की व्यवस्था को देख पाने में असमर्थ आदमी का दम घुटने लगता है; जबकि उसके पास उपलब्ध भाषा उसे अपनी स्थिति बयां कर पाने में नाकाफी मालूम देती है; तभी वह कविता की ओर भागता है। जर्मन दार्शनिक विटगेंस्टाइन कहते हैं कि हमारी भाषा की सीमा जितनी है, हमारा दुनिया का ज्ञान भी उतना ही है। यह बात कितनी अहम है, इसे दुनिया को परिभाषित करने में कवियों के प्रयासों से बेहतर समझा जा सकता है।
कबीर को उलटबांसी लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? खुसरो डूबने के बाद ही पार लगने की बात क्यों कहते हैं? गालिब के यहां दर्द हद से गुजरने के बाद दवा कैसे हो जाता है? पाश अपनी-अपनी रक्त की नदी को तैर कर पार करने और सूरज को बदनामी से बचाने के लिए रात भर खुद जलने को क्यों कहते हैं? फैज़ वस्ल की रा��त के सिवा बाकी राहतों से क्या इशारा कर रहे हैं? दरअसल, एक जबरदस्त हिंसक मानवरोधी सभ्यता में मनुष्य अपनी सीमित भाषा को ही अपनी सुरक्षा छतरी बना कर उसे अपने सिर के ऊपर तान लेता है। उसकी छांव में वह दुनियावी कोलाहल को अपने ढंग से परिभाषित करता है, अपनी ठोस राय बनाता है और उसके भीतर अपनी जगह तय करता है। एक कवि और शायर ऐसा नहीं करता। वह भाषा की तनी हुई छतरी में सीधा छेद कर देता है, ताकि इस छेद से बाहर की दुनिया को देख सके और थोड़ी सांस ले सके। इस तरह वह अपने विनाश की कीमत पर अपने अस्तित्व की संभावनाओं को टटोलता है और दुनिया को उन आयामों में संभवत: समझ लेता है, जो आम लोगों की नजर से प्रायः ओझल होते हैं।
भाषा की सीमाओं के खिलाफ उठी हुई कवि की उंगली दरअसल मनुष्यरोधी कोलाहल से बगावत है। गैलीलियो की कटी हुई उंगली इस बगावत का आदिम प्रतीक है। जरूरी नहीं कि कवि कोलाहल को दुश्मन ही बनाए। वह उससे दोस्ती गांठ कर उसे अपने सोच की नई पृष्ठभूमि में तब्दील कर सकता है। यही उसकी ताकत है। पाश इसीलिए पुलिसिये को भी संबोधित करते हैं। सच्चा कवि कोलाहल से बाइनरी नहीं बनाता। कविता का बाइनरी में जाना कविता की मौत है। कोलाहल से शब्दों को खींच लाना और धूप की तरह आकाश पर उसे उकेर देना कवि का काम है।
कुमाऊं के जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ इस बात को बखूबी समझते थे। एक संस्मरण में वे बताते हैं कि एक जनसभा में उन्होंने फ़ैज़ का गीत 'हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे' गाया, तो देखा कि कोने में बैठा एक मजदूर निर्विकार भाव से बैठा ही रहा। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, गोया कुछ समझ ही न आया हो। तब उन्हें लगा कि फ़ैज़ को स्थानीय बनाना होगा। कुमाऊंनी में उनकी लिखी फ़ैज़ की ये पंक्तियां उत्तराखंड में अब अमर हो चुकी हैं: ‘हम ओढ़, बारुड़ी, ल्वार, कुल्ली-कभाड़ी, जै दिन यो दुनी धैं हिसाब ल्यूंलो, एक हांग नि मांगूं, एक भांग नि मांगू, सब खसरा खतौनी किताब ल्यूंलो।'
प्रेमचंद सौ साल पहले कह गए कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है, लेकिन उसे हमने बिना अर्थ समझे रट लिया। गिरदा ने अपनी एक कविता में इसे बरतने का क्या खूबसूरत सूत्र दिया है:
ध्वनियों से अक्षर ले आना क्या कहने हैं
अक्षर से फिर ध्वनियों तक जाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाना क्या कहने हैं
गीतों से कोहराम मचाना क्या कहने हैं
प्यार, पीर, संघर्षों से भाषा बनती है
ये मेरा तुमको समझाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? डेल्यूज और गटारी अपनी किताब ह्वॉट इज फिलोसॉफी में लिखते हैं कि दो सौ साल पुरानी पूंजी केंद्रित आधुनिकता हमें कोलाहल से बचाने के लिए एक व्यवस्था देने आई थी। हमने खुद को भूख या बर्बरों के हाथों मारे जाने से बचाने के लिए उस व्यवस्था का गुलाम बनना स्वीकार किया। श्रम की लूट और तर्क पर आधारित आधुनिकता जब ढहने लगी, तो हमारे रहनुमा ही हमारे शिकारी बन गए। इस तरह हम पर थोपी गई व्यवस्था एक बार फिर से कोलाहल में तब्दील होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ है कि वैश्वीकरण ने इस धरती पर मौजूद आठ अरब लोगों की जिंदगी और गतिविधियों को तो आपस में जोड़ दिया है लेकिन इन्हें जोड़ने वाला एक साझा ऐतिहासिक सूत्र नदारद है। कोई ऐसा वैचारिक ढांचा नहीं जिधर सांस लेने के लिए मनुष्य देख सके। आर्थिक वैश्वीकरण ने तर्क आधारित विवेक की सार्वभौमिकता और अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना को तोड़ डाला है। ऐसे में राष्ट्रवाद, नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता आदि हमारी पहचान को तय कर रहे हैं। इतिहास मजाक बन कर रह गया है। यहीं हमारा कवि और शायर घुट रहे लोगों के काम आ रहा है।
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अपना हाता
मेरे आसपास आजकल बहुत कुछ घट रहा है
और बहुत तेजी से
कुछ दोस्तों ने मुखौटे बदल लिए हैं
कुछ दुश्मनों ने चेहरे।
एक बस है जो लगता है छूटने वाली है
एक और बस है ठसाठस भरी हुई
उसका खलासी गायब है
चलने का वक़्त भी नहीं पता
लोग भाग रहे हैं बेतहाशा
इधर से उधर
उधर से इधर
कुछ खड़े हैं ज��� असमंजस में
छूट जाने के डर से अकेले
दांव तौल रहे हैं
इधर जाएं
या उधर
किसी को मिल गए हैं बारहमासा टिकाऊ जूते
किसी ने तान ली है छतरी धूप में।
मुझसे कहता है पकी दाढ़ी वाला घुटा हुआ एक आदमी
बेटा जी लो अपनी ज़िन्दगी, कमा लो पैसे
फिर नहीं आने का सुनहरा मौका
क्यों जी रहे हो जैसे तैसे
वह अभी अभी चढ़ा है एक बस में
और पुकार रहा है मुझे सीढ़ी से ही
वो छूटने वाली बस का है मुसाफिर
उसकी दौड़ ज़्यादा लंबी नहीं, जानते हुए भी
दे रहा है मुझे आखिरी आवाज़
दिस इज़ द लास्ट कॉल फॉर पैसेंजर नंबर फलां फलां
मैं असमंजस में हूं
पैरों के नीचे की धरती कर सकता हूं महसूस
थोड़ा और शिद्दत के साथ
वह मुझे गुब्बारे दिखाता है
गुब्बारे रंग बिरंगे उसकी छतरी हैं गोया उल्टा पैराशूट
आकाश की ओर उतान जिनमें भरी है
निष्प्राण, निरर्थक, नीरस गैस
मेरे सिर के ठीक ऊपर चमकाता है वह
अपने बारहमासा जूते
जिनसे अगले पांच माह वह काट लेगा कम से कम
ऐसा दावा करता है।
मेरे साथी कह रहे हैं चढ़ जाओ
मेरी संगिन कहती है तोड़ दो दीवारें जो
बना रखी हैं तुमने अपने चारों ओर।
एक देश है जहां उत्तेजना ऐसी है गोया
सोलह मई को नेहरू जी संसद से करेंगे
ट्रिस्ट विद डेस्टिनी का भाषण
और आज़ाद हो जाएंगे सवा अरब लोग
चौक चौराहों और ट्रेनों में बैठे लोग किसी को
देख रहे हैं आता हुए सवार सफेद घोड़े पर
उसके पीछे उड़ती हुई एक चादर है और उसके
हाथों में जादू की एक छड़ी
बिल्कुल ऐसा ही हुआ था पांच साल पहले
लेकिन कोई याद नहीं करना चाहता उस घोड़े को
जिसकी टाप ने कर दिया था हमें बहरा
जिसके खुरों से उड़ने वाली धूल का कण अब भी
गड़ता है हमारी आंखों में और घुड़सवार के उतरते ही
हुई थी आकाशवाणी
हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं
उसने हवा में जो रुमाल लहराया था उसमें लगी इत्र
की मादकता अब भी सिर चढ़ कर बोलती है
आदमी पागल
औरत पागल
बच्चे पागल
पागल बुज़ुर्ग
भीतर से दरकता हुआ एक दुर्ग
बाहर सवारियों को समेटती खचाखच भरी बस
कोई छूटने न पाए
सबका साथ ही सबका विकास है।
मेरे आसपास आजकल बहुत कुछ घट रहा है
और बहुत तेजी से
और मैं असमंजस में हूं और यह कोई नई बात नहीं है
क्योंकि शादियों में उदास हो जाना अचानक बचपन से मेरी फितरत रही है
कोई मर जाए तो निस्संग हो कर मलंग हो जाना पुरानी
अदा रही है अपनी
एकाध बार पूछते हैं, कहते हैं लोग हाथ बढ़ाकर-
चढ़ जाओ
फिर प्रेरणा के दो शब्द कह कर हो लेते हैं फरार
अबकी बार मजबूत सरकार।
मैंने पिछले एक हफ्ते में दर्जनों लोगों से पूछा है कि प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस का वोट कैसे बढ़ेगा
सबके मन में केवल विश्वास है
पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब वाला
विश्वास पर दुनिया कायम है तो कांग्रेस क्यों नहीं?
एक बस में अंधविश्वास का भरा है पे��्रोल
दूसरे में विश्वास का
संदेह वर्जित है
विरासत में मिला जो कुछ भी है वही अर्जित है
हाउ इज़ द जोश
सब महामिलावट का है दोष।
मेरे आसपास आजकल बहुत कुछ घट रहा है
और बहुत तेजी से
इसीलिए
मैंने किया है निश्चय बहुत धीरे धीरे
ऐन चुनाव के बीच बच्चों को गणित पढ़ाऊंगा
तेजी से घटती हुई दुनिया में उन्हें जोड़ना सिखाऊंगा
न इस बस से आऊंगा
न उस बस से जाऊंगा
अपनी हदों में रहूंगा
पकी दाढ़ी वाले घुटे हुए आदमी की बातों में
नहीं आऊंगा
न पहनूंगा जूता न तानूंगा छाता
किसी के बाप का क्या जाता
अपना खेल
अपना हाता।
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 126
परमात्मा कबीर जी की भक्ति से हुए भक्तों को लाभ‘‘
’’परमात्मा ने की जीवन रक्षा‘‘
।। बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय ।।
मुझ दास का नाम रोहित दास पुत्र श्री रामबाबू दास ग्राम उदयपुरा जिला-रायसेन (मध्यप्रदेश) है। सतगुरु देव जी से नाम-उपदेश लेने से पहले मेरे घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। मेरी पत्नी बीमार रहती थी। इतनी परेशानियाँ होने के बावजूद भी हम देवी-देवताओं की भक्ति करते रहते थे। हम जयगुरुदेव पंथ से जुड़े हुए थे। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मेरी माता जी ने जयगुरुदेव पंथ में परमात्मा को पाने के लिए बहुत ही कठिन साधना की। 72 दिन तक भोजन नहीं किया। उनके हाथ-पैर पूर्ण रूप से काम करना बंद कर गए। उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि वह अपने हाथों से खाना भी नहीं खा पाती थी।
एक बार हम जयगुरूदेव मथुरा गए हुए थे। वहाँ पर संत रामपाल जी के भक्तों ने पुस्तकें वितरित की। कार्यक्रम के दौरान वहाँ पर उस पुस्तक के बारे में बताया कि कोई भी सदस्य इस पुस्तक को खोलकर न पढ़े। इसको पढ़ने से आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी। ऐसा उन लोगों ने बोला और जो संत रामपाल जी के शिष्य जो वहाँ पुस्तक वितरित कर रहे थे, बाबा जयगुरूदेव के भक्तों ने उनको पकड़कर पीटा। सारी पुस्तकों को इकठ्ठा करके जला दिया। उसी समय दास के मन में आया कि आखिर इस पुस्तक में ऐसा क्या है? लेकिन मुझे वो पुस्तक प्राप्त नहीं हो पाई थी। कुछ समय बाद गाँव के एक भक्त ने ज्ञान गंगा पुस्तक लाकर दी। टी.वी. पर सत्संग भी दिखाया। ज्ञान समझकर दास उनके साथ सतलोक आश्रम बरवाला में आया और नाम-दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद लाभ ही लाभ बढ़ते गए।
एक बार मेरी पत्नी (भक्तमति राधा) के सीने में तेज दर्द हुआ। मैंने कहा उपदेश ले���े का, लेकिन उनको परमात्मा पर विश्वास नहीं था, परंतु दर्द बढ़ने पर उन्होंने सतलोक आश्रम बरवाला जाने का विचार किया। ठंड के दिन थे। ट्रेन में बहुत तेज ठण्ड लग रही थी। मेरी पत्नी ने मन ही मन कहा कि यदि परमात्मा हैं तो मुझे ठंड से बचाये। कुछ देर के बाद एक सफेद कंबल मेरी पत्नी के ऊपर आकर गिरा। मैंने पूछा कि यह कंबल किसका है? जितने भी लोग केबिन में बैठे थे, सभी ने मना कर दिया। मैंने कहा कि यह कंबल परमात्मा ने दिया है।
तब मेरी पत्नी को बरवाला आश्रम पहुँचने से पहले ही परमात्मा पर पूर्ण विश्वास हो गया और सतलोक आश्रम बरवाला पहँुचते ही उन्होंने नाम-उपदेश ले लिया। नाम-उपदेश के पश्��ात् ही उनके सीने का दर्द भी ठीक हो गया।
सबसे बड़ा लाभ परमात्मा ने मेरे छोटे बेटे अरूण दास को नया जीवन दान देकर किया। उसे एक रात 10-11 बजे के आसपास अचानक सीने में दर्द और सांस लेने में दिक्कत होने लगी। वह पूरा पसीने से भीग गया और बैड से नीचे गिर गया। बेटे की हालत देखकर तो मैंने उसे मृत ही मान लिया था। मेरी बेटी ने कहा कि सतगुरु देव जी से अरदास लगा लो। मैंने कहा कि रात 11ः00 बजे अरदास नहीं लगती और मेरे पास आश्रम में अरदास लगाने का नम्बर भी नहीं है। मेरी बेटी ने मोबाइल से संभाग काॅर्डिनेटर से अरदास का मोबाइल नंबर लेकर सतगुरु देव जी से अरदास लगाई। अरदास लगाने के बाद बेटा सांस लेने लगा। हम उसे तुरंत हाॅस्पिटल लेकर गये। उन्होंने कहा कि आपके पास 1 घंटा है।
यह कहकर दूसरे हाॅस्पिटल में रैफर कर दिया। लेकिन वहाँ पर भी एक बोतल लगाकर तीसरे हाॅस्पिटल में रैफर कर दिया। वहाँ पर 15 दिन तक मेरे बेटे को आॅक्सीजन लगी रही। उसके बाद सारी रिपोर्ट नाॅर्मल आ रही थी। डाॅक्टर भी हैरान थे। उनको समझ नहीं आ रहा था कि बीमारी क्या है?
रिपोर्ट सारी नाॅर्मल आ रही हैं। यह बहुत बड़ा चमत्कार मालिक ने किया, लड़का पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया।
सतगुरु जो चाहे सो करहीं, चैदह कोटि दूत जम डरहीं।
ऊत भूत जम त्रास निवारैं, चित्र-गुप्त के कागज फारैं।।
एक बार मेरा बड़ा बेटा तरूण दास काॅलेज से घर आ रहा था। उसकी बस का एक्सीडेन्ट हो गया जिसमें तीन बच्चों की मृत्यु हो गयी। लेकिन मेरे बेटे को मामूली खरोंचें ही आई और मेरे बेटे को परमात्मा ने नया जीवन दान दिया।
सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम-उपदेश लेने के बाद अब मेरी माता जी के भी हाथ काम करने लगे हैं। अब वे अपने हाथों से खाना खा पाती हैं। आज परमात्मा से नाम-उपदेश लेने के पश्चात् हमारी आर्थिक स्थिति बिल्कुल ठीक है तथा हम सपरिवार पूर्ण रूप से ठीक हैं तथा परमात्मा की भक्ति कर रहे हैं। आप सभी से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि पूर्ण परमात्मा धरती पर सतगुरु रामपाल जी महाराज के रूप में आए हुए हैं। उन्हें पहचानें तथा नाम-उपदेश लेकर अपना कल्याण कराएँ तथा जन्म-मरण से छुटकारा पाएँ।
।। सत साहिब ।।
भक्त रोहित दास
ग्राम-उदयपुरा, जिला रायसेन (मध्यप्रदेश)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#Life #Detox #Sadhna #free #aabhamandaltrust
11 Days #तपशून्य साधना: #एकांतवास द्वारा शून्य अवस्था प्राप्त करना
सभी #साधकों के लिए यह साधना पूर्णत: निःशुल्क है
हजारों साल से #योगी यह ध्यान विधि खुद को जानने के लिए करते आ रहे हैं यह आत्म निरीक्षण और आत्म शुद्धि की सबसे बेहतरीन पद्धति है, यह योग, ध्यान एवं एकांतवास पर आधारित है, इसके नियम एकांतवास, मौन, अहिंसा, बह्मचर्य, नशे से दूर रहना, टेक्नोलॉजी निषेध प्रक्रिया एवं अपने दैनिक कार्य ख़ुद एवं प्राकृतिक परिवेश व ख़ान-पान का पालन करना होता है।
यह साधना मन की शांति के लिए, तनाव से पूर्ण छुटकारे के लिए और हर तरह की मानसिक समस्या से निजात दिलाने के लिए की जाती है। दिमाग और मन को हेल्��ी बनाए रखने के लिए यह अद्भुत प्रयास है इसके करने से मन में नकारात्मकता नहीं आती, मन में हमेशा शांति बनी रहती है जिससे शरीर भी निरोग रहता है।
स्वयंभू भगवान आदिशिव ने ध्यान का मार्ग अपना कर ख़ुद को शून्य कर लिया। हमने जब भी उनके जीवन से जुड़ी कथाएँ, कहानी या बातें सुनी तो उनमें अक्सर किसी एकान्तवास में भगवान #शिव के ध्यानअवस्था में होने का ज़िक्र सुना, संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी शिव का यह मनुष्य जाति को संदेश है कि #ध्यान_मार्ग द्वारा हम जीवन में कुछ भी कर सकते हैं किसी भी स्तर पर जा सकते हैं। प्राचीन सभ्यताओं में सभी #धर्म के लोग जब अपने #ईश्वर का ध्यान करते थे तो वह एकांत मे रहना चाहते थे ताकि कोई दूसरा उन्हे परेशान न करे और भगवान से जुड़ने की प्रक्रिया में कोई अवरोध ना आये। कुछ समय के एकांत में हम अपने ध्यान और #चेतना को क़ाबू कर इस ब्रह्माँड में फैली #दिव्य #ऊर्जा से जुड़ पाते हैं और यह दिव्य ऊर्जा इस धरती पर उपस्थित प्रत्येक #जीवात्मा की संजीवनी है, हमारी वर्तमान जीवन शैली में #ब्रह्मांड की ऊर्जा प्राप्त करने में अवरोध उत्पन्न हो रहे हैं यही कारण है कि अधिकतर लोग किसी न किसी परेशानी में फँसे है और प्रतिपल विचलित रहते हैं और अपने आप के लिए भी नकारात्मक सोच बना लेते है।
इसका सबसे बडा कारण हमारा एकांत मे न रहना है जो एकांत मे रहता है वह अपने आप को संतुलित कर सकारात्मक भावनाओं से भर लेता है और जीवन में सफल हो जाता है।अपने जीवन को सुधारने के कार्यो को करने के लिए कभी-२ एकांत जरूरी है।
#आभामंडल में तपशून्य एकांतवास वह अवस्था है जिसमें साधक दूसरो के सम्पर्क में नही रहता है एवं #मौन अवस्था में ज़्यादा रहता है, जिसका उद्देश्य ख़ुद से संवाद करना और ख़ुद को पहचानना है। ग्यारह दिवसीय #आवासीय #शिविरों में यह साधना कराई जाती है। साधकों को अनुशासन संहिता का पालन करना होता है जिससे वे लाभान्वित हो सके। साधना शिविर में #गंभीरता, दृढता से काम करना होता है।
तपशून्य साधना विधि व्यापारीकरण से दूर है एवं प्रशिक्षण देने वाले योगियों को इससे कोई भी आर्थिक अथवा भौतिक लाभ नहीं मिलता है। साधना शिविर का संचालन स्वैच्छिक दान से होता है। रहने एवं खाने का भी शुल्क किसी से नहीं लिया जाता। शिविरों का पूरा खर्च उन साधकों के दान से चलता है जो पहिले किसी शिविर से लाभान्वित होकर दान देकर बाद में आने वाले साधकों को लाभान्वित करना चाहते हैं।
साधना के नियमों का पालन करने से मन इतना शांत हो जाता है कि इतनी असुविधा में भी हमें आनंद आने लगता है मन एकाग्र होता है अपने शरीर के भीतर संवेदनाओं के प्रति सजगता आ जाती है। यह साधना मन का योग है। जैसे शारीरिक व्यायाम से शरीर को स्वस्थ बनाया जाता है वैसे ही तपशून्य साधना से मन को स्वस्थ बनाया जाता है।
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प्लास्टिक मुक्त भारत: हमारी धरती, हमारी जिम्मेदारी आज ही संकल्प लें
प्लास्टिक मुक्त भारत प्लास्टिक मुक्त भारत की दिशा में हम सबकी जिम्मेदारी है। जानें कैसे छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं और मिलकर एक स्वच्छ, हरा-भरा भविष्य बना सकते हैं।भारत में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो न केवल हमारे पर्यावरण को बल्कि हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। “प्लास्टिक मुक्त भारत हमारी धरती, हमारी जिम्मेदारी” पहल का उद्देश्य इस समस्या से निपटना और एक…
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#अभियान#पर्यावरण संरक्षण#प्लास्टिक कचरे प्रबंधन#प्लास्टिक पुनर्चक्रण#प्लास्टिक प्रदूषण#प्लास्टिक मुक्त भारत#स्वच्छता अभियान#हमारी धरती
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लखनऊ, 14.08.2024 | 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में “श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि” कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ0 रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने देश के विभाजन के समय बलिदान हुए सभी नागरिकों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की ।
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, “विभाजन विभीषिका में न जाने कितनी निर्दोष जानें गईं, कितनी महिलाओं की अस्मिता को ठेस पहुंची और कितने बच्चों का बचपन हमेशा के लिए खो गया । जो लोग इस त्रासदी से बचे, वे जीवनभर उस पीड़ा, उस दर्द को अपने दिल में समेटे रहे । हमारे पूर्वजों ने जो भोगा, उसे हम भूल नहीं सकते और हमें भूलना भी नहीं चाहिए । इतिहास की इस भयावहता को याद रखना हमारा कर्तव्य हैं, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को यह सिखा सकें कि नफरत और असहिष्णुता का क्या अंजाम हो सकता हैं । यह भी ज़रूरी है कि हम इस विभाजन की घटना से सीख लेकर, अपने समाज में प्रेम, भाईचारे और एकता की भावना को और मजबूत करें । हमें यह समझना होगा कि धर्म, जाति, भाषा, या क्षेत्रीयता से बढ़कर हमारी पहचान एक भारतीय के रूप में हैं । आज, हम उन सभी विभाजन पीड़ितों को नमन करते हैं जिन्होंने इस त्रासदी में अपने प्राण गंवाए, अपने परिवारों को खोया और उन असहनीय दुखों को सहन किया । आइए, हम यह संकल्प लें कि हम देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे ताकि भविष्य में ऐसा कोई विभाजन हमारी धरती पर न हो ।"
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#Allah_Is_Kabir
मुस्लिम भाइयों ! अल्लाह एक, धरती एक फिर धर्म कैसे बने अनेक ।
अल्लाह के भेजे हुये बाखबर संत रामपाल जी महाराज आ गये हैं। जो धर्म मजहब की दीवार को तोडक़र अल्लाह के सब बन्दों को एक कर रहे हैं।
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा । हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा ।।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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दिल्ली: मुझे इस बात में बिल्कुल भी संदेह नहीं है कि एलियंस हमारी धरती पर आ चुके
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में एक उल्लेखनीय बयान दिया। इस पॉडकास्ट में सोमनाथ ने एलियंस के अस्तित्व पर चर्चा की. सोमनाथ ने कहा कि ब्रह्मांड में एलियन की मौजूदगी जरूर है और उनकी सभ्यताएं कई तरह से विकसित हुई होंगी। एस। सोमनाथ का यह बयान ऐसे समय आया है जब दुनिया भर में एलियन जीवन को लेकर चर्चा हो रही है। एस। सोमनाथ ने बताया कि एलियन ने…
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ऑस्ट्रेलिया की संसद में किंग चार्ल्स से भिड़ गई महिला सांसद, कहा, यह हमारी जमीन है, आप इसे छोड़कर चले जाएं
ऑस्ट्रेलिया की संसद में किंग चार्ल्स से भिड़ गई महिला सांसद, कहा, यह हमारी जमीन है, आप इसे छोड़कर चले जाएं #KingCharles #Australia #Parliament
King Charles News: ऑस्ट्रेलिया की संसद को संबो��ित करने पहुंचे ब्रिटेन के किंग चार्ल्स को विरोध झेलना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया की सांसद लिडिया थोर्प ने उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी की और कहा कि यह आपका देश नहीं है। यह हमारी जमीन है और आप लोग इसे छोड़कर चले जाएं। इस दौरान जुटे सारे सांसद लिडिया थोर्प के व्यवहार से हैरान रह गए। लिडिया थोर्प अचानक ही चिल्लाने लगी, ‘हमारी जमीन वापस कर दो। वह धरती जो आप लोगों…
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कोड / ऋतुराज
भाषा को उलट कर बरतना चाहिए
मैं उन्हें नहीं जानता
यानी मैं उन्हें बख़ूबी जानता हूं
वे बहुत बड़े और महान् लोग हैं
यानी वे बहुत ओछे, पिद्दी
और निकृष्ट कोटि के हैं
कहा कि आपने बहुत प्रासंगिक
और सार्थक लेखन किया है
यानी यह अत्यन्त अप्रासंगिक
और बकवास है
आप जैसा प्रतिबद्ध और उदार
दूसरा कोई नहीं
यानी आप जैसा बेईमान और जातिवादी इस धरती पर
कहीं नहीं
अगर अर्थ मंशा में छिपे होते हैं
तो उल्टा बोलने का अभ्यास
ख़ुद-ब-ख़ुद आशय व्यक्त कर देगा
मुस्कराने में घृणा प्रकट होगी
स्वागत में तिरस्कार
आप चाय में शक्कर नहीं लेते
जानता हूँ
यानी आप बहुत ज़हरीले हैं
मैंने आपकी बहुत प्रतीक्षा की
यानी आपके दुर्घटनाग्रस्त होने की ख़बर का
इन्तज़ार किया
वह बहुत कर्तव्यनिष्ठ है
यानी बहुत चापलूस और कामचोर है
वह देश और समाज की
चिन्ता करता है
यानी अपनी सन्तानों का भविष्य सुनहरा
बनाना चाहता है
हमारी भाषा की शिष्टता में
छिपे होते हैं
अनेक हिंसक रूप
विपरीत अर्थ छानने के लिए
और अधिक सुशिक्षित होना होगा
इतना सभ्य और शिक्षित
कि शत्रु को पता तो चले
कि यह मीठी मार है
लेकिन वह उसका प्रतिवाद न कर सके
सिर्फ कहे, आभारी हूँ,
धन्यवाद !!
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खाद: प्रकृति का उपहार, हमारी जिम्मेदारी
खाद का अर्थ होता है, खाद्य पदार्थ (पौधों का भोजन), पौधों को पानी के साथ साथ भोजन की भी आवश्यकता होती है। पौधे अधिकतर भोजन प्रकाश संश्लेषण से प्राप्त करते हैं, लेकिन पोषकतत्व (माइक्रो न्यूट्रेंट) जड़ों के माध्यम से पानी के साथ जमीन से ग्रहण करते हैं। भूमि में जो जैविक कार्बन तत्व होता है वह भूमि में जीवन का आधार होता है। यह भूमि में रहने वाले सभी जीव, जीवाणुओं का भोजन होता है। इससे ही भूमि उपजाऊ बनती है और पौधे पनपते है।
रासायनिक खादों की वजह से मिट्टी में यह जैविक कार्बन तत्व कम होता जा रहा है और भूमि बंजर होती जा रही है। रसायनिक खाद रूपी नशा देकर धरती माता का दोहन, बलात्कार किया जा रहा है। एक इंच मिट्टी की परत बनने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। दिनों दिन मिट्टी कम होती जा रही है। कुछ मिट्टी को हमने बिल्डिंग, शेड, सड़कों, फुटपाथ के नीचे दबा दिया है, कुछ से हम खनिज लवण, बिल्डिंग मैटेरियल, रेत, कोयला, निकालकर खत्म कर रहे हैं, कुछ से ईंट, मिट्टी के बर्तन बनाकर उसे हमेशा हमेशा के लिए मार दिया हैं। कुछ को रसायनिक केमिकल डालकर, जहरीला करके मार रहे हैं। कुछ को मलबे, प्लास्टिक के नीचे दबाकर, दम घोंटकर मार रहे हैं। कुछ आग लगने से बंजर हो रही है। भले ही हम धरती को माता कहें लेकिन हम इसकी देखभाल माता की तरह बिलकुल भी नही कर रहे हैं। दिल्ली जैसे शहरों में गमलों में पौधे लगाने के लिए ऑनलाइन से मिट्टी 55 रुपए प्रति किलो तक मिलती है। हम मिट्टी को पैदा नहीं कर सकते हैं, लेकिन खाद बनाना ही एक मात्र ऐसी विधि है जिससे हम उपजाऊ मिट्टी उत्पन्न कर सकते हैं। इसे पोंटिंग सॉइल कहते हैं जो विदेशों में बहुत महंगी मिलती है जिसे लोग गमलों में डालकर पौधे लगाते हैं। इसका (खाद का) एक फायदा और है कि हम जैविक कचरे का सदुपयोग करते है जिससे कचरें के ढेर नही बनते है और वातावरण, भूमि, भूजल को प्रदूषित करने से रोका जाता है, जमीन का दुरुपयोग लैंडफिल के रूप में होने से बचाव होता है और बाहर से खाद खरीदनी नहीं पड़ती है और रसायनिक खाद का उपयोग कम होता है।
पत्तों को जलाना या कचरे के रूप में विद्यालय परिसर से बाहर भेजना एक पर्यावरणीय और नैतिक अपराध, पाप होता है, जिससे बचना चाहिए। पत्तों को जलाने से वायु का प्रदूषण बढ़ता है जिससे फेफड़ों की बीमारियां होती है। कचरा सड़क किनारे डालने से बदबू, मक्खी, मच्छर, कॉकरोच, चूहे, बीमारी पैदा करने वाले कीटाणु पैदा होते हैं। लैंडफिल में फेंकने से उपयोगी जमीन खराब होती है, बहुत धन खर्च होता है, हानिकारक गैसें उत्पन होती है। अगर हम विधालय से ब्लैक गोल्ड रूपी इस धन को कचरे के रूप में बाहर भेजते हैं या जलाते हैं तो फिर हमारी पर्यावरण संरक्षण की बातें खोखली ही कही जायेंगी। पत्तों की खाद को मिट्टी या ग्रोइंग मीडिया की तरह प्रयोग में लाया जा सकता है। यह बहुत हल्की होती है इससे छत, बालकनी में लगे गमलों में भार कम होता है और इसकी वाटर रिटेनिंग कैपेसिटी (जल धारण क्षमता) अधिक होती है इससे पानी की आवश्यकता कम होती है। इसमें पनपे पौधों को अलग से खाद देने की खास आवश्यकता नही होती है और पौधों की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिससे उनमें बीमारियां नही लगती है। इसमें मिट्टी वाले रोग नहीं लगते है।
खाद कई प्रकार की होती है जैसे कि पत्तो की खाद, केंचुआ खाद, रूड़ी की खाद, किचन वेस्ट से बनी खाद, रसायनिक खाद इत्यादि। सभी खाद बनाने का तरीका अलग अलग होता है। खाद बनना एक बायोलॉजिकल प्रक्रिया होती है, विज्ञान होती है इसलिए इसके सिद्धांतो को, विज्ञान को समझना बहुत जरूरी होता है। पत्तो की खाद को अंग्रेजी में लीफ मोल्ड भी कहते हैं क्योंकि यह मोल्ड यानि फंगस, फंफूदी बनाती हे। जबकि किचन वेस्ट खाद जीवाणुओं से बनती हे। और केंचुआ खाद केंचुओ से बनती है।
पत्तो की खाद (Leafmold)
पत्तों की खाद बनाने के लिए चार तत्वों की आवश्यकता होती है। १ जैविक कार्बन (पत्ते, फसल अवशेष), २. नमी, ३. ऑक्सीजन, ४. फंगस। विद्यालयों में इसे जमीन में 3,4 फीट गहरा, 3,4 फीट चौड़ा और 5,6 फीट लंबा गढ़ा या नाली खोदकर बनाया जा सकता है। अगर विधालय में जमीन नहीं हो तो ईंटो, लकड़ी, जाली, कपड़े की 4 फीट ऊंची बाड़/दीवार बनाकर या ढेर बनाकर भी बनाया जा सकता है। रोजाना जो भी पेड़ों के पत्ते नीचे गिरे उन्हे गड्ढे या ढेर में डाल देना चाहिए। लेकिन इसमें नॉन जैविक पदार्थ जैसे कि प्लास्टिक, कांच, ईंट पत्थर, मलबा, तेल इत्यादि नहीं डालना चाहिए। जब लॉन की घास कटे तो उसे भी इस गढ़े या ढेर में बिछा देना चाहिए। पौधों की कटा��, छंगायी से प्राप्त पत्ते, छोटी टहनी, खरपतवार, मरे, सूखे हुए पौधे, जड़ें भी डाले जा सकते है, बचा हुआ खाना, फल, सब्जियां, ज्यूस, छाछ, आचार इत्यादि भी इसमें डाले जा सकते है। ऊपर से पत्तों से ढक देना चाहिए ताकि मक्खी मच्छर उत्त्पन ना हो। टहनियों को छोटे टुकड़ों में काटकर (श्रेड करके) डालने से जल्दी खाद बनती है। सप्ताह में एक दो बार इसमें पानी छिड़ककर गीला कर देना चाहिए। गड्ढे या ढेर की लंबाई जगह अनुसार हो सकती है लेकिन चौड़ाई और गहराई/ऊंचाई कम से कम तीन फीट होनी चाहिए। जब एक गड्ढा भर जाए तो दूसरे में शुरू कर देना चाहिए। जब तक दूसरा गड्ढा भरेगा तब तक पहले गढ़े की खाद तैयार हो जायेगी। जब यह खाद पूरी तरह तैयार हो जाती है तो इसमें सोंधी मिट्टी की खुशबू आती है। और यह भूरे, काले, ग्रे रंग की हो जाती हे, साइज छोटा हो जाता है। इसे छानकर या बिना छाने भी प्रयोग में लाया जा सकता है। इसे पूरी तरह बनने में 6 महीने लगते है लेकिन उपयोग में लाने के लिए 3 महीने में तैयार हो जाती हे। गांवों, खेतों में पत्तों के साथ साथ फसल अवशेष भी इसमें ड��ला जा सकता है। घरों में जमीन नहीं होने पर पत्तों की खाद छेद हुए 200 लीटर वाले ड्रम या बोरों में भी बनाई जा सकती है।
किचन वेस्ट से खाद (compost)
घरों में किचन वेस्ट से भी अच्छी खाद बनाई जा सकती है। इसके लिए पांच तत्वों की आवश्यकता होती है। १. कार्बन युक्त पदार्थ (सूखे पत्ते, फसल अवशेष, कोकोपीट, गत्ते, लकड़ी का बुरादा, इत्यादि), २. नाइट्रोजन युक्त पदार्थ (हरे पत्ते, हरी घास, किचेन वेस्ट, फूड वेस्ट, चाय पत्ती, कॉफी पाउडर, गाय का गोबर,मूत्र इत्यादि), ३. नमी (55%)। गीला: सुखा कचरा 1:1 से लेकर 1:2 अनुपात में डालने से नमी की पूर्ति हो जाती हैं वरना पानी ऊपर से छिड़कना पड़ता है। ४. ऑक्सीजन - खाद बनाने वाले जीवाणुओं के लिए ऑक्सीजन/हवा की आवश्यकता होती है। जमीन में गड्ढे में खाद बनाने से मिट्टी के छिद्रों में उपस्थित हवा स्वत ही प्राप्त हो जाती है। ड्रम या बाल्टी में खाद बनाने के लिए छेद करने पड़ते है। ये छेद 3 एमएम डायामीटर के 6 इंच परस्पर दूरी पर किए जाते हैं। ५. जीवाणु : जीवाणु ही जैविक कचरे को खाद में परिवर्तित करते हैं। वैसे तो भोजन की तलाश में जीवाणु वातावरण से अपने आप ही आ जाते हैं लेकिन वातावरण में तो अनेकों तरह के अच्छे बुरे जीवाणु हो सकते हैं जैसे कि बीमारी या बदबू पैदा करने वाले भी। इसलिए अच्छे जीवाणुओं को कल्चर या जामन के रूप में मिलाने से खाद अच्छ�� और जल्दी बनती है। क्योंकि अच्छे जीवाणु अपनी कालोनी में बुरे कीटाणुओं को घुसने नहीं देते हैं।
विधि १ :
विधि २ :
विधि ३: घर में ड्रम नहीं होने पर इसे बड़े खाली गमले या बड़े मुंह वाले मिट्टी के घड़े या जूट बैग में भी बनाया जा सकता है।
विधि ४: अगर बड़े गमले में पहले से ही मिट्टी भरी हो तो उसकी आ��ी मिट्टी निकालकर उसमें किचन वेस्ट और मिट्टी के परत डालकर भी खाद बनाई जा सकती है।
विधि ५ : पेड़ों, बड़े पौधों के चारों और कैनोपी के क्षैत्र में मिट्टी खोदकर, 1 फुट चौड़ी और 1 फीट गहरी नाली बनाकर, किचन वेस्ट को सीधा ही डालकर, मिट्टी से ढककर भी खाद बनाई जा सकती है, जो पौधे की जड़ों को मिलती रहेगी।
अच्छी खाद बनने की निशानी यही है कि उसमें सोंधी मिट्टी की खुशबू आनी शुरू हो जाती है। अगर खाद में बदबू आ रही हो तो इसका मतलब गीले कचरे की मात्रा ज्यादा है, हवा नही लग रही है या नीचे लिक्विड/ पानी इक्ट्ठा हो गया है। उसमें पानी निकालकर और सुखा कचरा मिलाकर फिर से बनाया जा सकता है।
नोट : किचन वेस्ट में सब्जियों, फलों के छिलके, सब्जियों के पत्ते, डंठल, चाय की पत्ती, काफी पाउडर, रोटी, चावल, सुखी सब्जी, आचार, सड़े हुए फल, सब्जियां, नाखून, बाल इत्यादि डाले जा सकते हैं। इसमें मिठाई, दूध, डेरी प्रोडक्ट, तेल, तरी, तरल पदार्थ, नॉन वेज आइटम इत्यादि नहीं डालने चाहिए।
गांवों खेतों में गाय- भैंस के गोबर और फसल अवशेष से खाद
गांवों में लोग गाय ,भैंस, बकरी, ऊंठ ,घोड़ा इत्यादि के गोबर से तो खाद बनाते हैं लेकिन पत्तों, फसल अवशेष, लकड़ी, खरपतवार, खराब हुए भूसे को जला देते हैं। गाय भैंस के गोबर से जो रुड़ी की खाद बनाते है उसमें भी सिर्फ गोबर ही डालते हैं जिसमें नाइट्रोजन की अधिकता होती है, और उसमें ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है इसलिए खाद बनने में लंबा समय लगता है, खाद कम बनती है और वह खाद पौधों को जला भी सकती है। अगर खाद बनने के सिद्धांतो (पांच तत्वों : कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, नमी, जीवाणु) के अनुसार खाद बनाई जाए तो खाद जल्दी, अच्छी क्वालिटी की और ज्यादा मात्रा में बनती है और इससे मिट्टी में भी सुधार होता है।
विधि :
कृपया आप खाद बनाना अवश्य शुरू करें। कोई भी दिक्कत या जानकारी , मार्गदर्शन के लिए मुझसे कभी भी संपर्क कर सकते हैं। मैं 25 से अधिक लोगों के लिए ऑनलाइन मीटिंग/वर्कशॉप भी करने के लिए तैयार हूं।
खाद बनाएं, जैविक कचरा निपटाएं खाद बनाएं, धरती माता को बचाएं खाद बनाएं, पर्यावरण बचाएं खाद बनाएं, धन बचाएं खाद बनाएं, जैविक भोजन उपजाएं खाद बनाएं, सुंदर बगीचा लगाएं खाद बनाएं, पानी बचाएं
आर के बिश्नोई, कचरा प्रबंधन प्रमुख दिल्ली प्रांत, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि प्रांत पर्यावरण प्रमुख, विद्याभारती दिल्ली 9899303026 [email protected]
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