#सामान्य ज्ञान
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cg general knowledge
टेबुल कौन सा शब्द हैं?
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https://youtu.be/cSWL31d-6Bg?si=Iw23flPVkoH3X0Qq
#छत्तीसगढ़ का सामान्य ज्ञान#Cg gk#Cg general knowledge#सामान्य ज्ञान#Cg psc peon gk#Kkdbs tech#Cg psc hindi vyakaran#Youtube
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The pink city
Gk questions and answers in hindi || GK IN HINDI || GK QUIZ VIDEO || GENERAL KNOWLEDGE ||GK Question
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Chhattisgarh (CG) GK Question Answer In Hindi Chhattisgarh (CG) GK Question Answer In Hindi | छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर हिंदी में Chhattisgarh (CG) GK Question Answer In Hindi (छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर हिंदी ) दोस्तों इस पोस्ट में हम यह आपके लिए छत्तीसगढ़ GK महत्वपूर्ण विषय है जो कि आपके एग्जाम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी |
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GK Questions in Hindi: महत्वपूर्ण 50 सामान्य ज्ञान अध्यन
GK Questions in Hindi: दोस्तो यदि आप भी सरकारी नौकरी के तैयारी के लिए सामान्य अध्यन से जुड़े GK Questions की तैयारी करना चाहते है तो आप के लिए इस लेखन में हम देंगे सामान्य ज्ञान के समान्य अध्यन, और प्राकृतिक सामान्य अध्यन सामाजिक विज्ञान के महत्वपूर्ण जीके क्वेश्चन, इन सभी समान्य ज्ञान प्रश्नों को देश के सभी कॉम्प्टेटिव एग्जाम GK में अक्सर पूछें जाते है। GK Questions in Hindi with Answer…
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Read Hindi Current Affairs of 26 December 2023, Daily 2023 Important Hindi Current Affairs are very important for the preparation of the Govt exams like SSC CGL, IBPS PO, SBI PO, UPSC, State PSC, Defence exams.
#Hindi Current Affairs 22 december 2023#weekly ssc hindi current affairs#weekly hindi current affairs#वीकली करेंट अफेयर्स#2023 करंट अफेयर्स इन हिंदी#2023 सामान्य ज्ञान हिंदी में
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#विद्यार्थियों के लिए आयोजित किया गया सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता#aryasamaj#aryasamaj 0#aryaveeranganadal#aryaveerdal#आर्यवीरंगनादल#आर्यसमाज#आर्यवीरदल
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एक कप कॉफ़ी EK CUP COFFEE
जापान के टोक्यो शहर के निकट एक कस्बा अपनी खुशहाली के लिए प्रसिद्द था । एक बार एक व्यक्ति उस कसबे की खुशहाली का कारण जानने के लिए सुबह -सुबह वहाँ पहुंचा । कस्बे में घुसते ही उसे एक कॉफ़ी -शॉप दिखायी दी। उसने मन ही मन सोचा कि मैं यहाँ बैठ कर चुप -चाप लोगों को देखता हूँ , और वह धीरे -धीरे आगे बढ़ते हुए शॉप के अंदर लगी एक कुर्सी पर जा कर बैठ गया । कॉफ़ी-शॉप शहर के रेस्टोरेंटस की तरह ही थी , पर वहाँ…
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#उत्तर प्रदेश : एक सामान्य परिचय#Uttar Pradesh: A brief Introduction#Up Gk in hindi | उत्तर प्रदेश सामान्य ज्ञान#Establishment#Naming and Capital of Uttar Pradesh#Geographical location/Characterstics of Uttar Pradesh#Uttar Pradesh State Symbol#Onshore City of Uttar Pradesh to Rivers#Structure of administration and govt. in Uttar Pradesh#Mandal and district of Uttar Pradesh
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उत्तर प्रदेश सामान्य ज्ञान : Uttar Pradesh General Knowledge
राज्य उत्तर प्रदेश राजधानी लखनऊ गठन 1 नवंबर, 1956 क्षेत्रफल 2,40,928 वर्ग किमी. ज़िले 75 संभाग 4 मंडल 18 जनसंख्या 19,98,12,341 सामान्य जानकारी राज्य का पुनर्गठन -1 नवंबर, 1956 को राज्य का नाम -उत्तर-पश्चिम प्रांत (1836 से) -उत्तर-पश्चिम आगरा एवं अवध प्रांत (1877 से) -संयुक्त प्रांत आगरा एवं अवध (1902 से) -संयुक्त प्रांत (1937 से) …
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भारत का सामान्य ज्ञान
वैदिक भारत में किस नदी को बिपाशा कहा जाता था?
गंगा
झेलम
व्यास
सिंधु
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DAY 5925
Jalsa, Mumbai May 8/9, 2024 Wed/Thu 9:10 AM
🪔 ,
Belated birthday greetings to Ef Sunanda Yadav from Kolkata .. for May 08 .. 🙏🏻🚩❤️
Change .. the inevitable feature in the life of the Universe and for us that inhabit it .. it has remained a mystery, despite the thousands of intellectual minds and researchers in the fields of science and more in philosophy - darshan shaastra .. दर्शन शास्त्र ..
"दर्शनशास्त्र (Darśanaśāstra) वह ज्ञान है जो परम् सत्य और सिद्धान्तों, और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है।"
to gain knowledge of the permanent truth, principles of life .. to get a view of the reasons and meanings of so much that is unknown .. the search .. the construct of the way social norms be conducted , the routines and rules of it all .. and more ..
Still a territory that never stops evolving, yet unable to resolve ..
"Darshan Shastra, a profound philosophy, delves into the nature of truth and falsehood. Rooted in ancient Indian wisdom, it scrutinizes the complexities of deception, perception, and reality. Darshan Shastra underscores the interplay between subjective perception and objective truth, exploring the dynamics of dharma (duty) and adharma (immorality). It illuminates the ethical implications of falsehood, advocating for integrity and transparency in thought and action. Through intricate analyses of human cognition and societal norms, it offers insights into the consequences of deceit and the pursuit of truth. Darshan Shastra serves as a guiding beacon, inspiring seekers to navigate the labyrinth of lies towards enlightenment."
And during its intriguing features that we encounter each moment, the debate and argument continue .. some convincing, some evasive, some just glanced by and driven away ..
The boiling point that is now bubbling with the heat of 'change' is the nature of change in each generation .. the past gone, the present, and the future to be .. and its reflections on the conduct of our living .. our existence, our conduct towards 'all things bright and beautiful' ..
For the professionals like us to adapt or to ignore .. what to make what to access what to exhibit , what to give for maximum benefit and gain and deliverance in its quotient of the investment and return, to put it crudely ..
And there are no firm responses ..
Flow with the tide .. or create your own waves for the tides to follow ..
That phase of creation at this stage has long passed for me .. better to flow .. be a part of .. not too dependent on result, but dependent on the involvement of the flow - whichever direction it takes ..
At least you become a part of it .. time, energy, to be procured for created creation, takes an eternity, at this stage .. limitations of life years , the brilliance of youthful exuberance, the screams of vivacity and enthusiasm - all forgone now , and no time to reinvent it - so -
FLOW ..
I flow , you flow , we all flow for flow !!
😀
😀
🤣
With my love for all the Ef .. ❤️
Amitabh Bachchan
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वेदों पर किये गये आक्षेपों का उत्तर
भूमिका सभी वेदानुरागी महानुभावो! जैसा कि आपको विदित है कि मैंने विगत श्रावणी पर्व वि० सं० २०८० तदनुसार ३० जुलाई २०२३ को सभी वेदविरोधियों का आह्वान किया था कि वे वेदादि शास्त्रों पर जो भी आक्षेप करना चाहें, खुलकर ३१ दिसम्बर २०२३ तक कर सकते हैं। हमने इस घोषणा का पर्याप्त प्रचार किया और करवाया भी था। इस पर हमें कुल १३४ पृष्ठ के आक्षेप प्राप्त हुए हैं। इन आक्षेपों को हमने अपने एक पत्र के साथ देश के शंकराचार्यों के अतिरिक्त पौराणिक जगत् में महामण्डलेश्वर श्री स्वामी गोविन्द गिरि, श्री स्वामी रामभद्राचार्य, श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती आदि कई विद्वानों को भेजा था। आर्यसमाज में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, परोपकारिणी सभा, वानप्रस्थ साधक आश्रम (रोजड़), दर्शन योग महाविद्यालय (रोजड़), गुरुकुल काँगड़ी हरिद्वार तथा सभी प्रसिद्ध आर्य विद्वानों को भेजकर निवेदन किया था कि ऋषि दयानन्द के २०० वें जन्मोत्सव फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी वि० सं० २०८० तदनुसार ५ मार्च २०२४ तक जिन आक्षेपों का उत्तर दिया जा सकता है, लिखकर हमें भेजने का कष्ट करें। उस उत्तर को हम अपने स्तर से प्रकाशित और प्रचारित करेंगे।
यद्यपि मुझे ही सब प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए, परन्तु मैंने विचार किया कि इन आक्षेपों का उत्तर देने का श्रेय मुझे ही क्यों मिले और वेदविरोधियों को यह भी न लगे कि आर्यसमाज में एक ही विद्वान् है। इसके साथ ���ैंने यह भी विचार किया कि मेरे उत्तर देने के पश्चात् कोई विद्वान् यह न कहे कि हमें उत्तर देने का अवसर नहीं मिला, यदि हमें अवसर मिलता, तो हम और भी अच्छा उत्तर देते। दुर्भाग्य की बात यह है कि निर्धारित समय के पूर्ण होने के पश्चात् तक कहीं से कोई भी उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है। बड़े-बड़े शंकराचार्य, महामण्डलेश्वर, महापण्डि���, गुरु परम्परा से पढ़े महावैयाकरण, दार्शनिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता, योगी एवं वेद विज्ञान अन्वेषक कोई भी एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे पाये। तब यह तो निश्चित हो ही गया कि ये आक्षेप वा प्रश्न सामान्य नहीं हैं। आक्षेपकर्त्ताओं ने पौराणिक तथा आर्यसमाजी दोनों के ही भाष्यों को आधार बनाकर गम्भीर व घृणित आक्षेप किये हैं। उन्होंने गायत्री परिवार को भी अपना निशाना बनाया है, परन्तु सभी मौन बैठे हैं, लेकिन मैं मौन नहीं रह सकता। इस कारण इन आक्षेपों का धीरे-धीरे क्रमश: उत्तर देना प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं जो उत्तर दूँगा उसको कोई भी वैदिक विद्वान्, जो आज मौन बैठे हैं, गलत कहने के अधिकारी नहीं रह पायेंगे, न मेरे उत्तर और वेदमन्त्रों के भाष्यों पर नुक्ताचीनी करने के अधिकारी रहेंगे। आज धर्म और अधर्म का युद्ध हो रहा है, उसका मूक दर्शक सच्चा वेदभक्त नहीं कहला सकता। मैंने चुनौती स्वीकारी तो है, उनकी भाँति मौन तो नहीं बैठा। वेद पर किये गये आक्षेपों पर मौन रहना भी उन आक्षेपों का मौन समर्थन करना ही है। यद्यपि मैं बहुत व्यस्त हूँ, पुनरपि धीरे-धीरे एक-एक प्रश्न का उत्तर देता रहूँगा। मैं सभी उत्तरदायी महानुभावों से दिनकर जी के शब्दों में यह अवश्य कहना चाहूँगा—
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। मनुष्य इस संसार का सबसे विचारशील प्राणी है। इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड में जहाँ भी कोई विचारशील प्राणी रहते हैं, वे भी सभी मनुष्य ही कहे जायेंगे। यूँ तो ज्ञान प्रत्येक जीवधारी का एक प्रमुख लक्षण है। ज्ञान से ही किसी की चेतना का प्रकाशन होता है, सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर हम मनुष्यों तक सभी प्राणी जीवनयापन के क्रियाकलापों में भी अपने ज्ञान और विचार का प्रयोग करते ही हैं। जीवन-मरण, भूख-प्यास, गमनागमन, सन्तति-जनन, भय, निद्रा और जागरण आदि सबके पीछे भी ज्ञान और विचार का सहयोग रहता ही है, तब महर्षि यास्क ने ‘मत्वा कर्माणि सीव्यतीति मनुष्य:’ कहकर मनुष्य को परिभाषित क्यों किया? इसके लिए ऋषि दयानन्द द्वारा प्रस्तुत आर्यसमाज के पाँचवें नियम ‘सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए’ पर विचार करना आवश्यक है। विचार करना और सत्य-असत्य पर विचार करना इन दोनों में बहुत भेद है, जो हमें पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों से पृथक् करता है। विचार वे भी करते हैं, परन्तु उनका विचार केवल जीवन���ापन की क्रियाओं तक सीमित रहता है।
इधर सत्य और असत्य पर विचार जीवनयापन करने की सीमा से बाहर भी ले जाकर परोपकार में प्रवृत्त करके मोक्ष तक की यात्रा करा सकता है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि जीवनयापन के विचार तक सीमित रहने वाले प्राणी जन्म से ही आवश्यक स्वाभाविक ज्ञान प्राप्त किये हुए होते हैं, परन्तु मनुष्य जैसा सर्वाधिक बुद्धिमान् प्राणी पशु-पक्षियोंं की अपेक्षा न्यूनतर ज्ञान लेकर जन्म लेता है। वह अपने परिवेश और समाज से सीखता है। इस कारण केवल मनुष्य के लिए ही समाज तथा शिक्षण-संस्थानों की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में मनुष्य पशु-पक्षियों को देखकर उन जैसा ही बन जाता है। हाँ, उनकी भाँति उड़ने जैसी क्रियाएँ नहींं कर सकता। समाज और शिक्षा के अभाव में वह मानवीय भाषा और ज्ञान दोनों ही दृष्टि से पूर्णत: वंचित रह जाता है। यदि उसे पशु-पक्षियों को भी न देखने दिया जाये, तब उसके आहार-विहार में भी कठिनाई आ सकती है। इसके विपरीत करोड़ों वर्षों से हमारे साथ रह रहे गाय-भैंस, घोड़ा आदि प्राणी हमारा एक भी व्यवहार नहीं सीख पाते। हाँ, वे अपने स्वामी की भाषा और संकेतों को कुछ समझकर तदनुकूल खान-पान आदि व्यवहार अवश्य कर लेते हैं। इस कारण कुछ पशु यत्किंचित् प्रशिक्षित भी किये जा सकते हैं, परन्तु मनुष्य की भाँति उन्हें शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य एवं विद्वान् नहीं बनाया जा सकता। यही हममें और उनमें अन्तर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य जन्म लेते समय पशु-पक्षियों की अपेक्षा मूर्ख होता है, जीवनयापन में भी सक्षम नहीं होता, वह सबसे अधिक विद्वान्, सभ्य व सुशिक्षित कैसे हो जाता है?
जब मनुष्य की प्रथम पीढ़ी इस पृथिवी पर जन्मी होगी, तब उसने अपने चारों ओर पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों को ही देखा होगा, तब यदि वह पीढ़ी उनसे कुछ सीखती, तो उन्हीं के जैसा व्यवहार करती और उनकी सन्तान भी उनसे वैसे ही व्यवहार सीखती। आज तक भी हम पशुओं जैसे ही रहते, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। हमने विज्ञान की ऊँचाइयों को भी छूआ। वैदिक काल में हमारे पूर्वज नाना लोक-लोकान्तरोंं की यात्रा भी करते थे। कला, संगीत, साहित्य आदि के क्षेत्र में भी मनुष्य का चरमोत्कर्ष हुुआ, परन्तु पशु-पक्षी अपनी उछल-कूद से आगे बढ़कर कुछ भी नहीं सीख पाए। मनुष्य को ऐसा अवसर कैसे प्राप्त हो गया? उसने किसकी संगति से यह सब सीखा? इसके विषय में कोई भी नास्तिक कुछ भी विचार नहीं करता। वह इसके लिए विकासवाद की कल्पनाओं का आश्रय लेता देखा जाता है। यदि विकास से ही सब कुछ सम्भव हो जाता, तब तो पशु-पक्षी भी अब तक वैज्ञानिक बन गये होते, क्योंकि उनका जन्म तो हमसे भी पूर्व में हुआ था। इस कारण उनको विकसित होने के लिए हमारी अपेक्षा अधिक ��मय ही मिला है। इसके साथ ही यदि विकास से ही सब कुछ स्वत: सिद्ध हो जाता, तो मनुष्य के लिए भी किसी प्रकार के विद्यालय और समाज की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु ऐसा नहीं है। नास्तिकों को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि मनुष्य में भाषा और ज्ञान का विकास कहाँ से हुआ?
इस विषय में विस्तार से जानने के लिए मेरा ग्रन्थ ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ अवश्य पठनीय है, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रथम पीढ़ी के चार सर्वाधिक समर्थ ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा ने ब्रह्माण्ड से उन ध्वनियों को अपने आत्मा और अन्त:करण से सुना, जो ब्रह्माण्ड में परा और पश्यन्ती रूप में विद्यमान थीं। उन ध्वनियों को ही वेदमन्त्र कहा गया। उन वेदमन्त्रों का अर्थ बताने वाला ईश्वर के अतिरिक्त और कोई भी नहीं था। दूसरे मनुष्य तो इन ध्वनियों को ब्रह्माण्ड से ग्रहण करने में भी समर्थ नहींं थे, भले ही उनका प्रातिभ ज्ञान एवं ऋतम्भरा ऋषि स्तर की थी। सृष्टि के आदि में सभी मनुष्य ऋषि कोटि के ब्राह्मण वर्ण के ही थे, अन्य कोई वर्ण भूमण्डल में नहीं था। उन चार ऋषियों को समाधि अवस्था में ईश्वर ने ही उन मन्त्रों के अर्थ का ज्ञान दिया। उन चारों ने मिलकर महर्षि ब्रह्मा को चारों वेदों का ज्ञान दिया और महर्षि ब्रह्मा से फिर ज्ञान की परम्परा सभी मनुष्यों तक पहुँचती चली गई। इस प्रकार ब्रह्माण्ड की इन ध्वनियों से ही मनुष्य ने भाषा और ज्ञान दोनों ही सीखे। इस कारण मनुष्य नामक प्राणी सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बन गया।
ध्यातव्य है कि प्रथम पीढ़ी में जन्मे सभी मनुष्य मोक्ष से पुनरावृत्त होकर आते हैं। इसी कारण ये सभी ऋषि कोटि के ही होते हैं। ज्ञान की परम्परा किस प्रकार आगे बढ़ती गयी और मनुष्य की ऋतम्भरा कैसे धीरे-धीरे क्षीण होती गयी और मनुष्यों को वेदार्थ समझाने के लिए कैसे-कैसे ग्रन्थों की रचना आवश्यक होती चली गई और कैसा-कैसा साहित्य रचा गया, इसकी जानकारी के लिए मेरा ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पठनीय है। वेद को वेद से समझने की प्रज्ञा मनुष्य में जब समाप्त वा न्यून हो जाती है, तभी उसके लिए किसी अन्य ग्रन्थ की आवश्यकता होती है। धीरे-धीरे वेदार्थ में सहायक आर्ष ग्रन्थ भी मनुष्य के लिए दुरूह हो गये और आज तो स्थिति यह है कि वेद एवं आर्ष ग्रन्थों के प्रवक्ता भी इनके यथार्थ से अति दूर चले गये हैं। इस कारण वेद तो क्या, आर्ष ग्रन्थ भी कथित बुद्धिमान् मानव के लिए अबूझ पहेली बन गये हैं। इस स्थिति से उबारने के लिए ऋषि दयानन्द सरस्वती और उनके महान् गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु समयाभाव आदि परिस्थितियों के कारण ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य एवं अन्य ग्रन्थ वेद के रहस्यों को खोलने के लिए संकेतमात्र ही रह गये। वे वेद के यथार्थ को जानने के लिए सुमार्ग पर चलने वाले पथिक के रेत में बने हुुए पदचिह्न के समान थे। गन्तव्य की ओर गये हुए पदचिह्न किसी भी भ्रान्त पथिक के लिए महत्त्वपूर्ण सहायक होते हैं।
दुर्भाग्य से ऋषि दयानन्द के अनुयायियों ने ऋषि के बनाये हुए कुछ पदचिह्नों को ही गन्तव्य समझ लिया और वेदार्थ को समझने के लिए उन्होंने कोई ठोस प्रयत्न नहीं किया। उनका यह कर्म महापुरुषों की प्रतिमाओं को ही परमात्मा मानने की भूल करने जैसा ही था। इसका परिणाम यह हुआ कि ऋषि दयानन्द के अनुयायी विद्वान् भी वेदादि शास्त्रों के भाष्य करने में आचार्य सायण आदि के सरल प्रतीत होने वाले परन्तु वास्तव में भ्रान्त पथ के पथिक बन गये। इसी कारण पौराणिक (कथित सनातनी) भाष्यकारों की भाँति आर्य विद्वानों के भाष्यों में भी अश्लीलता, पशुबलि, मांसाहार, नरबलि, छुआछूत आदि पाप विद्यमान हैं। यद्यपि उन्होंने शास्त्रों को इन पापों से मुक्त करने का पूर्ण प्रयास किया, परन्तु वे इसमें पूर्णत: सफल नहीं हो सके। इसी कारण इनके भाष्यों में सायण आदि आचार्यों के भाष्यों की अपेक्षा ये दोष कम मात्रा में विद्यमान हैं, परन्तु वेद और ऋषियों के ग्रन्थों में एक भी दोष का विद्यमान होना वेद के अपौरुषेयत्व और ऋषियों के ऋषित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने के लिए पर्याप्त होता है। इसलिए ऋषि दयानन्द के भाष्य के अतिरिक्त सभी भाष्य दोषपूर्ण और मिथ्या हैं। हाँ, ऋषि दयानन्द के भाष्य भी सांकेतिक पदचिह्न मात्र होने के कारण सात्त्विक व तर्कसंगत व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं।
इसके लिए सब मनुष्यों को यह अति उचित है कि वे वेद के रहस्य को समझने के लिए ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ ग्रन्थ का गहन अध्ययन करें। जो विद्वान् वेद और ऋषियों की प्रज्ञा की गहराइयों में और अधिक उतरना चाहते हैं, उन्हें ‘वेदविज्ञान-आलोक’ और ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। जो आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहे शिक्षक वा विद्यार्थी वेद का सामान्य परिचय चाहते हैं, उन्हें ऋषि दयानन्द कृत ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ एवं ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ और प्रिय विशाल आर्य कृत ‘परिचय वैदिक भौतिकी’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। अब हम क्रमश: वेदादि शास्त्रों पर किये गये आक्षेपों का समाधान प्रस्तुत करेंगे—
क्रमशः... ✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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#SpiritualKnowledge
आध्यात्मिक ज्ञान
जो जाकि शरणा बसै, ताको ताकी लाज।
जल सौंही मछली चढ़े, बह जाते गजराज ।।
भावार्थ:- जो भक्त जिस भी देवी-देव की भक्ति करता है, वह ईष्ट अपने भक्त ��ो राहत अवश्य देता है जो सामान्य व्यक्ति के लिए अनहोनी के समान होती है।
Visit 📲 "Satlok Ashram" Youtube Channel Saint Rampal Ji Maharaj 👇
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49. स्थितप्रज्ञा ही आंतरिक घटना आहे
अर्जुनाच्या प्रश्नाला उत्तर देताना श्रीकृष्ण म्हणतात की स्थितप्रज्ञ हा स्वत:बद्द�� समाधानी असतो (2.55). यातील गंमतीचा भाग असा की स्थितप्रज्ञ चालतो-बोलतो कसा या अर्जुनाच्या प्रश्नाला मात्र श्रीकृष्ण काहीच उत्तर देत नाही.
‘स्वत:बद्दल समाधानी’ ही पूर्णपणे अंतर्गत प्रक्रिया आहे आणि बाह्य वर्तनावरून तिचे अनुमान किंवा आकलन अजिबात शक्य नाही. एखाद्या परिस्थिती अज्ञानी मनुष्य आणि स्थितप्रज्ञ सारख्याच भाषेत बोलू शकतो, एकसारखाच चालू–वागू शकतो. या परिस्थितीमुळे आपल्या मनात स्थितप्रज्ञतेबद्दल अधिकच गुंतागुंत निर्माण होते.
कृष्णाचे आयुशःय हे स्थितप्रज्ञतेचे सर्वोत्तम उदाहरण आहे. तो जन्मत:च आपल्या पालकांपासून दूर झाला. ‘त्याला ‘माखनचोर’ म्हणून ओळखले गेले. त्याचे प्रेम, नृत्य आणि बासरी या सगळ्यांच्या कथा झाल्या, मात्र जेव्हा त्याने वृंदावन सोडले त्यानंतर तो या प्रेमासाठी कधीही परत आला नाही. गरज होती तेव्हा तो लढला आणि जीवही घेतले, पण विविध वेळी त्याने युद्ध टाळले आणि त्यातून त्याला रणछोडदास असेही नाव मिळाले. त्याने अनेक चमत्कार दाखवले आणि मित्र म्हणूनही तो सर्वोत्तम होता. लग्न करायची वेळ आली तेव्हा त्याने ते केले, कुटुंब सांभाळले, चोरीचा खोटा आळ नष्ट करता यावा म्हणून समंतक मणी त्याने शोधून आणला आणि गीतेचे ज्ञान सांगायची वेळ आली तेव्हा ते ही केले. एका सामान्य माणसासारखा त्याचा मृत्यू झाला.
सर्व प्रथम, त्यांच्या जीवनाची रचना वर्तमानात जगण्याची आहे. दुसरे म्हणजे, कठीण परिस्थितीतही ते आनंदाचे आणि उत्सवाचे जीवन आहे, कारण त्याने अडचणींना अनित्य मानले. तिसरे, श्लोक 2.47 मध्ये नमूद केल्याप्रमाणे, त्यांच्यासाठी स्वतःवर समाधानी असणे म्हणजे निष्क्रियता नाही, तर कर्तात्वाची भावना आणि कृतीच्या परिणामाची अपेक्षा सोडून कृती करणे असा होतो.
मूलत:, भूतकाळाचे ओझे मनावर न घेता आणि भविष्याकडून कोणतीही अपेक्षा न करता वर्तमान क्षणात जगायला हवे. या वर्तमान क्षणात शक्ती आहे आणि नियोजनापासून ते अंमलबजावणीपर्यंत सगळे काही याच वर्तमान क्षणात घडत असते.
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