#सती स्त्री
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#GodMorningMonday कबीर#साधु सती और सूरमा#राखा रहै न ओट।माथा बा��धि पताक सों#नेजा घालैं चोट।।कबीर साहिब जी कहते हैं कि साधु#सती स्त्री
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#GodNightTuesday जगत_उद्धारक_संत_रामपालजीसति स्त्री के लक्षण....सती स्त्री उसको कहते हैं जो अपने पति से लगा#super mario#barbie
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"भक्त जती तथा सती होना चाहिए" "जति के लक्षण" पुरूष यति (जति) सो जानिये, निज त्रिया तक विचार। माता बहन पुत्री सकल और जग की नार।। भावार्थ:- यति पुरूष उसको कहते हैं जो अपनी स्त्री के अतिरिक्त अन्य स्त्री में पति-पत्नी वाला भाव न रखें। परस्त्री को आयु अनुसार माता, बहन या बेटी के भाव से जानें।
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सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू राम भगत कर लच्छन एहू
शिव के चरण कमलों में जिनकी प्रीति नहीं है, वे राम को स्वप्न में भी अच्छे नहीं लगते विश्वनाथ शिव के चरणों में निष्कपट (विशुद्ध) प्रेम होना यही रामभक्त का लक्षण है
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी। बिनु अघ तजी सती असि नारी
पनु करि रघुपति भगति देखाई। को सिव सम रामहि प्रिय भाई
शिव के समान रघुनाथ (की भक्ति) का व्रत धारण करने वाला कौन है? जिन्होंने बिना ही पाप के सती जैसी स्त्री को त्याग दिया और प्रतिज्ञा करके रघुनाथ की भक्ति को दिखा दिया। हे भाई! राम को शिव के समान और कौन प्यारा है?
ॐ नमः शिवाय🔱☘️🙏
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#GodMorningMonday
कबीर, साधु सती और सूरमा, राखा रहै न ओट।
माथा बांधि पताक सों, नेजा घालैं चोट।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साधु, सती स्त्री और शूरवीर यह पर्दे की वोट में रखने से नहीं रह सकते, अर्थात इन्हें छुपाया नहीं जा सकता।
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( #MuktiBodh_Part116 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part117
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 229-230
कथा :- शंकर जी का मोहिनी स्त्री के रूप पर मोहित होना
जिसमें दक्ष की बेटी यानि उमा (शंकर जी की पत्नी) ने श्री रामचन्द्र जी की बनवास में सीता रूप बनाकर परीक्षा ली थी। श्री शिव जी ऐसा न करने को कहकर घर से बाहर चले गए थे। सीता जी का अपहरण होने के पश्चात् श्रीराम जी अपनी पत्नी के वियोग में विलाप कर रहे थे तो उनको सामान्य मानव जानकर उमा जी ने शंकर भगवान की उस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि ये विष्णु जी ही पृथ्वी पर लीला कर रहे हैं। जब उमा जी सीता जी का रूप बनाकर श्री राम जी के पास गई तो वे बोले, हे दक्ष पुत्र माया! भगवान शंकर को कहाँ छोड़ आई। इस बात को श्री राम जी के मुख से सुनकर उमा जी लज्जित हुई और अपने निवास पर आई। शंकर जी की आत्मा में प्रेरणा हुई कि उमा ने परीक्षा ली है। शंकर जी ने विश्वास के साथ कहा कि परीक्षा ले आई। उमा जी ने कुछ संकोच करके
भय के साथ कहा कि परीक्षा नहीं ली अविनाशी। शंकर जी ने सती जी को हृदय से त्याग दिया था। पत्नी वाला कर्म भी बंद कर दिया। बोलना भी कम कर दिया तो सती जी अपने घर राजा दक्ष के पास चली गई।
राजा दक्ष ने उसका आदर नहीं किया क्योंकि उसने शिव जी के साथ विवाह पिता की इच्छा के विरूद्ध किया था। राजा दक्ष ने हवन कर रखा था। हवन कुण्ड में छलाँग लगाकर सती जी ने प्राणान्त कर दिया था। शंकर जी को पता चला तो अपनी ससुराल आए। राजा दक्ष का सिर काटा, फिर उस पर बकरे का सिर लगाया। अपनी पत्नी के कंकाल को उठाकर दस हजार वर्ष तक उमा-उमा करते हुए पागलों की तरह फिरते रहे। एक दिन भगवान विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से उस कंकाल को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। जहाँ पर धड़ गिरा, वहाँ पर वैष्णव देवी मंदिर बना। जहाँ पर आँखें गिरी, वहाँ पर नैना देवी मंदिर बना।
जहाँ पर जीभ गिरी, वहाँ पर ज्वाला जी का मंदिर बना तथा पर्वत से अग्नि की लपट निकलने लगी। तब शंकर जी सचेत हुए तथा अपनी दुर्गति का कारण कामदेव (sex) को माना। कामदेव वश हो जाए तो न स्त्री की आवश्यकता हो और न ऐसी परेशानी हो। यह विचार करके हजारों वर्ष काम (sex) का दमन करने के उद्देश्य से तप किया। एक दिन कामदेव उनके निकट आया और शंकर जी की दृष्टि से भस्म हो गया। शंकर जी को अपनी सफलता पर असीम प्रसन्नता हुई। जो भी देव उनके पास आता था तो उससे कहते थे कि मैंने कामदेव को भस्म कर दिया है यानि काम विषय पर विजय प्राप्त कर ली है। मैं कभी भी किसी सुंदरी से प्रभावित नहीं हो सकता। अन्य जो विवाह किए हुए हैं, वे ऊपर से सुखी नजर आते हैं, अंदर से महादु��खी रहते हैं। उनको सदा अपनी पत्नी की रखवाली, समय पर घर पर न आने से डाँटें खाना आदि-आदि परेशानियां सदा बनी रहती हैं। मैंने यह दुःख निकट से देखा है। अब न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।
काल ब्रह्म को चिंता बनी कि यदि सब इस प्रकार स्त्री से घृणा करेंगे तो संसार का अंत हो जाएगा। मेरे लिए एक लाख मानव का आहार कहाँ से आएगा? इस उद्देश्य से नारद जी को प्रेरित किया। एक दिन नारद मुनि जी आए। उनके सामने भी अपनी कामदेव पर विजय की कथा सुनाई। नारद जी ने भगवान विष्णु को यथावत सुनाई। श्री विष्णु जी को काल ब्रह्म ने प्रेरणा की। भाई की परीक्षा करनी चाहिए कि ये कितने खरे हैं। काल ब्रह्म की प्रेरणा से एक दिन शिव जी विष्णु जी के घर के आँगन में आकर बैठ गए। सामने बहुत बड़ा फलदार वृक्षों का बाग था। भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल खिले थे। बसंत जैसा मौसम था। श्री विष्णु जी, शिव जी के पास बैठ गए। कुशलमंगल जाना। फिर विष्णु जी ने पूछा, सुना है
कि आपने काम पर विजय प्राप्ति कर ली है। शिव जी बोले, हाँ, मैंने कामदेव का नाश कर दिया है। कुछ देर बाद शिव जी के मन में प्रेरणा हुई कि भगवान मैंने सुना है कि सागर मंथन के समय आप जी ने मोहिनी रूप बनाकर राक्षसों को आकर्षित किया था। आप उस रूप में कैसे लग रहे थे? मैं देखना चाहता हूँ। पहले तो बहुत बार विष्णु जी ने मना किया, परंतु शिव जी के हठ के सामने स्वीकार किया और कहा कि कभी फिर आना। आज मुझे किसी आवश्यक कार्य से कहीं जाना है। यह कहकर विष्णु जी अपने महल में चले गए। शिव जी ने कहा कि जब तक आप वह रूप नहीं दिखाओगे, मैं भी जाने वाला नहीं हूँ। कुछ ही समय के बाद शिव जी की दृष्टि बाग के एक दूर वाले कोने में एक अपसरा पर पड़ी जो सुन्दरता का सूर्य थी। इधर-उधर देखकर शिव जी उसकी ओर चले पड़े, ज्यों-ज्यों निकट गए तो वह सुंदरी अधिक सुंदर लगने लगी और वह अर्धनग्न वस्त्र पहने थी। कभी गुप्तांग वस्त्र से ढ़क जाता तो कभी हवा के झोंके से आधा हट जाता। सुंदरी ऐसे भाव दिखा रही थी कि जैसे उसको कोई नहीं देख रहा। जब शिव जी को निकट देखा तो शर्मशार होकर तेज चाल से चल पड़ी। शिव जी ने भी गति बढ़ा दी। बड़े परिश्रम के पश्चात् तथा घने वृक्षों के बीच मोहिनी का हाथ पकड़ पाए। तब तक शिव जी का शुक्रपात हो चुका था। उसी समय सुंदरी वाला स्वरूप श्री विष्णु रूप था। भगवान विष्णु जी शिव जी की दशा देखकर मुस्काए तथा कहा कि ऐसे उन राक्षसों से अमृत छीनकर लाया था। वे राक्षस ऐसे मोहित हुए थे जैसे मेरा छोटा ��ाई कामजीत अब काम पराजित हो गया। शिव जी ने उसके पश्चात् हिमालय राजा की बेटी पार्वती से अंतिम बार विवाह किया। पार्वती वाली आत्मा वही है जो सती जी थी। पार्वती रूप में अमरनाथ स्थान पर अमर मंत्रा शिव जी से प्राप्त करके अमर हुई है। इस प्रकार वाणी में कहा है कि शंकर जी की समाधि तो अडिग (न डिगने वाली) थी जैसा पौराणिक मानते हैं। वह भी मोहे गए। माया के वश हो गए।
◆ वाणी नं. 140 में बताया है कि भगवान शिव की पत्नी पार्वती तीनों लोकों में सबसे सुंदर स्त्रियां में से एक है। शिव राजा ऐसी सुंदर पत्नी को छोड़ मोहिनी स्त्री के पीछे चल पड़े। पहले अठासी हजार वर्ष तप किया। फिर लाख वर्ष तप किया काम (sex) पर विजय पाने के लिए और भर्म भी था कि मैनें काम जीत लिया। फिर हार गया।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 145 :-
गरीब, कष्ण गोपिका भोगि करि, फेरि जती कहलाय। याकी गति पाई नहीं, ऐसे त्रिभुवनराय।। 145।।
◆ सरलार्थ :- श्री कृष्ण के विषय में श्रीमद् भागवत (सुधा सागर) में प्रमाण है कि श्री कृष्ण मथुरा वृंदावन की गोपियों (गोपों की स्त्रियों) के साथ संभोग (sex) किया करते थे। वे फिर भी जती कहलाए। (अपनी स्त्री के अतिरिक्त अन्य की स्त्री से कभी संभोग न करने वाला या पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी को जती कहते हैं।) उसका भेद ही नहीं पाया। ऐसे ये तीन लोक के मालिक {श्री कृष्ण के अंदर प्रवेश करके काल ब्रह्म गोपियों से सैक्स करता था। स्त्रियों को तो श्री कृष्ण नजर आता था। काल ब्रह्म सब कार्य गुप्त करता है।} हैं।
◆ वाणी नं. 142-144 :-
गरीब, योह बीजक बिस्तार है, मन की झाल किलोल। पुत्र ब्रह्मा देखि करि, हो गये डामांडोल।।142।।
गरीब, देह तजी दुनियां तजी, शिब शिर मारी थाप।
ऐसे ब्रह्मा पिता कै, काम लगाया पाप।।143।।
गरीब, फेरि कल्प करुणा करी, ब्रह्मा पिता सुभान।
स्वर्ग समूल जिहांन में, योह मन है शैतान।।144।।
◆ सरलार्थ :- एक समय ब्रह्मा जी देवताओं तथा ऋषियों को वेद ज्ञान समझा रहे थे। मन तथा इंद्रियों पर संयम रखने पर जोर दे रहे थे। ब्रह्मा जी की बेटी सरस्वती पति चुनने के लिए अपने पिता की सभा में गई जिसमें युवा देवता तथा ऋषि विराजमान थे। उनको आकर्षित करने के लिए सब श्रृंगार करके सज-धजकर गई थी। अपनी पुत्र की सुंदरता देखकर काम (sex) के वश होकर संयम खोकर विवेक का नाश करके अपनी बेटी से संभोग (Sex) करने को उतारू हो गया था। ब्रह्मा पाप के भागी बने। मन तो कबीर परमात्मा की भक्ति तथा तत्वज्ञान से काबू में आता है।
क्रमशः__________
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SundayMotivation💫
🙇🏼♀️👉सती स्त्री उसको कहते हैं...👇👇
जो अपने पति से लगाव रखे, 'अपने पति के अतिरिक्त संसार के अन्य पुरुषों को आयु अनुसार पिता,भाई तथा पुत्र के भाव से देखे यानी बरते। अपने पति की आज्ञा में रहे,तन मन से सेवा करे, कोई कार्य पति के विपरीत न करे।👏👏
सत_भक्ति_संदेश
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#GodMorningSunday
सती स्त्री उसको कहते है
जो अपने पति से लगाव रखे। अपने पति के अतिरिक्त संसार के अन्य पुरुषों को आयु अनुसार पिता, भाई तथा पुत्र के भाव से देखे यानि बरते। अपने पति की आज्ञा में रहे। मन-तन से सेवा करे, कोई कार्य पति के विपरीत न करे।
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#GodMorningThursday
सती स्त्री वह होती है जो अपने पति से लगाव रखे। अपने पति के अतिरिक्त संसार के अन्य पुरुसो को आयु समान पिता भाई व पुत्र के भाव से देखे।
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@SaintRampalJiM
साधु सती और सूरमा, राखा रहै न ओट।
माथा बांधि पताक सों, नेजा घालैं चोट।।
👉कबीर साहेब जी कहते हैं कि साधु, सती स्त्री और शूरवीर ये परदे की ओट में रखने से नहीं रह सकते, अर्थात इन्हें छिपाया नहीं जा सकता।
#kabir is supreme god#sa news channel#satlok_vs_earth#santrampaljimaharaj#satlokashram#santrampaljiquotes
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साधु सती और सूरमा, राखा रहै न ओट। माथा बांधि पताक सों, नेजा घालैं चोट ।।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि साधु, सती स्त्री और शूरवीर ये परदे की ओट में रखने से नहीं रह सकते, अर्थात इन्हें छिपाया नहीं जा सकता। इनके पुरुषार्थ-कर्म की ध्वजा तो इनके माथे से बंधी हुई रहती है, चाहे कोई इन पर भाले की चोट ही क्यों न करे, परंतु ये अपने मत-संकल्प को नहीं त्यागते।
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कबीर, साधु सती और सूरमा, राखा रहे न ओट। माथा बांधि पताक सों, नेजा घालें चोट ।।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि साधु, सती स्त्री और शूरवीर ये परदे की ओट में रखने से नहीं रह सकते, अर्थात इन्हें छिपाया नहीं जा सकता। इनके पुरुषार्थ-कर्म की ध्वजा तो इनके माथे से बंधी हुई रहती है, चाहे कोई इन पर भाले की चोट ही क्यों न करे, परंतु ये अपने मत-संकल्प को नहीं त्यागते ।
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"सति स्त्री के लक्षण" स्त्री सो जो पतिव्रत धर्म धरै, निज पति सेवत जोय।। अन्य पुरूष सब जगत में पिता भ्रात सुत होय।। अपने पति की आज्ञा में रहै, निज तन मन से लाग।। पिया विपरीत न कछु करै, ता त्रिया को बड़ भाग।। भावार्थ:- सती स्त्री उसको कहते हैं जो अपने पति से लगाव रखे। अपने ��ति के अतिरिक्त संसार के अन्य पुरूषों को आयु अनुसार पिता, भाई तथा पुत्र के भाव से देखे यानि बरते। अपने पति की आज्ञा में रहे। मन-तन से सेवा करे, कोई कार्य पति के विपरीत न करे।
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#GodMorningMonday
कबीर, साधु सती और सूरमा, राखा रहै न ओट।
माथा बांधि पताक सों, नेजा घालैं चोट।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साधु, सती स्त्री और शूरवीर यह पर्दे की वोट में रखने से नहीं रह सकते, अर्थात इन्हें छुपाया नहीं जा सकता।
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#सत_भक्ति_संदेश
कबीर, साधु सती और सूरमा, राखा रहै न ओट।
माथा बांधि पताक सों, नेजा घालैं चोट।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साधु, सती स्त्री और शूरवीर यह पर्दे की वोट में रखने से नहीं रह सकते, अर्थात इन्हें छुपाया नहीं जा सकता।
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#GodMorningMonday
कबीर, साधु सती और सूरमा, राखा रहै न ओट।
माथा बांधि पताक सों, नेजा घालैं चोट।।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि साधु, सती स्त्री और शूरवीर यह पर्दे की वोट में रखने से नहीं रह सकते, अर्थात इन्हें छुपाया नहीं जा सकता।
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