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जैन धर्म और शास्त्रविरुद्ध भक्ति: क्या जैन धर्म सही मार्ग पर है?
अहिंसा और तपस्या: जैन धर्म के सिद्धांत या भ्रांतियां?
जैन धर्म: एक आध्यात्मिक यात्रा या शास्त्रविरुद्ध आचरण?
#SundaySpecial
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SundaySpecial दहेज प्रथा: रिश्तों को खोखला करती लालच की आग
शादी का नाम या शोषण का जाल, दहेज की भूख ने रिश्तों को किया बेहाल
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धर्म का अनकहा सच धर्मगुरु और उनके अधूरे ज्ञान का सच
SundaySpecial
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नशा: एक अभिशाप नशे की लत से मुक्त होने का सबसे कारगर उपाय! नशा और मानसिक शांति: छलावा या हकीकत?
SundaySpecial Satsang
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गुरु नानक जयंती पर जानिए गुरु नानक देव जी के गुरु का रहस्य #SundaySpecial Satsang
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छठी मैया की पूजा से क्या मिलते हैं सभी सुख? क्या छठ पूजा सच में लाभकारी है या महज एक लोकपरंपरा? छठ पूजा का रहस्य: क्या सूर्य उपासना से संतान सुख और समृद्धि मिलती है? छठ पूजा पर्व: कठिन व्रत और लोककथाओं के पीछे छिपी क्या है सच्चाई? छठ पूजा: क्या शास्त्रों में भी कठोर व्रत की होती है पुष्टि?
SundaySpecial Satsang #SantRampalJi
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सर्वोच्च कौन है भगवान, श्रीकृष्ण या कबीर भगवान? गीता का ज्ञान कौन दे गया, क्या कोई और ही श्रीकृष्ण में प्रवेश कर गया? "हरे राम हरे कृष्ण" मंत्र का जाप, क्या मिलता है इससे सच्चा लाभ?
SundaySpecial #Janmashtami
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रक्षाबंधन पर जानिए कौन है असली रक्षक? शास्त्रों की रोशनी में रक्षा बंधन: एक धागे से ज्यादा जरूरी है सच्चा रक्षक
SundaySpecial #SantRampalJi #RakshaBandhan
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सूक्ष्मवेद में कहा है कि:- गरीब, भूत जूनी तहाँ छूटत हैं, पिंड दान करंत। गरीबदास जिंदा कहै, नहीं मिले भगवंत।। अर्थात् संत गरीबदास जी ने कहा है कि पिण्ड दान करने से भूत योनि तो छूट जाती है। फिर वह जीव गधे की योनि में चला जाता है। क्या मुक्ति हुई? वेदों में इस कर्मकाण्ड को अविद्या यानि मूर्ख साधना कहा है।
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कबीर, गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी। गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भूष छड़े मूढ़ किसाना।। अर्थात् जो पूर्ण गुरू के बिना स्वयं वेदों को पढ़ता है, वह वेदों का सार ज्ञान नहीं समझ सकता, वह अज्ञानी ही रहता है।
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बिना गुरू के किया गया नाम जाप व दिया गया दान निष्फल होता है। कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।। अर्थात् कबीर जी ने कहा है कि गुरू बिन नाम स्मरण करना व दान देना व्यर्थ है। अपने वेदों व पुराणों में पढ़ लो।
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गरीब, वही मुहम्मद वही महादेव, वही आदम वही ब्रह्मा। गरीबदास दूसरा कोई नहीं, देख आपने घरमा।। अर्थात् संत गरीबदास जी ने कहा है कि हजरत मुहम्मद जी शिव लोक से आई आत्मा थे। इसलिए मुसलमान धर्म का प्रवर्तक भी परमात्मा शिव की खास आत्मा है। बाबा आदम के विषय में कहा जाता है कि ये ब्रह्मा जी के लोक से नीचे आए थे। इसलिए ब्रह्मा जी व आदम जी का मूल निवास स्थान एक ही है। यदि मेरी बात पर विश्वास नहीं होता है तो अपने घर यानि शरीर रूपी महल में मेरी बताई साधना करके देखो, आपकी दिव्य दृष्टि खुल जाएगी। फिर आपको विश्वास हो जाएगा कि विश्व के सर्व मानव एक परम पिता की संतान हैं।
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आदि सनातन पंथ हमारा। जानत नहीं इसे संसारा।। षट्दर्शन सब खट-पट होई। हमरा पंथ ना पावे कोई।। इन पंथों से वह पंथ अलहदा। पंथों बीच सब ज्ञान है बहदा।। अर्थात् हमारा आदि सनातन पंथ है जिसको संसार के व्यक्ति नहीं जानते। वह आदि सनातन पंथ सब पंथों से भिन्न है।
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कबीर जी ने कहा है:- नहाहे धोए क्या भया, जे मन का मैल न जाय। मीन सदा जल में रहे, धोए बांस न नसाए।। शरीर की स्वच्छता के लिए स्नान करना अनिवार्य है। सो आप समय लगने पर स्नान करें। भक्तजन मंत्रों का जाप नित्य अवश्य करें। किन्हीं परिस्थितियों में तीनों समय की संध्या स्तुति न हो पाए तो कोई बात नहीं, परंतु मंत्रों के जाप को कभी न छोड़ें। जितना बन सके करें और भी अधिक करें। इस प्रकार अपना जीव धर्म समझकर भक्ति कर्म करके जीवन धन्य बनाऐं।
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कर्म न यारी देत है, भसमागीर भस्मन्त। कर्म व्यर्थ है तास का, जे रीझै नहीं भगवन्त।। परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि यदि कोई भक्ति करता है और मन में अभिमान भी रखता है तो उस पर परमेश्वर की कृपा वर्षा नहीं होती। जिस कारण से उसकी भक्ति नष्ट हो जाती है। भावार्थ है कि भक्ति कर्म भी करे और परमेश्वर का कृपा पात्र भी बना रहे तो जीव को लाभ मिलता है।
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उत्तम धर्म जो कोई लखि पाये। आप गहैं औरन बताय।। तातें सत्यपुरूष हिये हर्षे। कृपा वाकि तापर बर्षे।। जो कोई भूले राह बतावै। परम पुरूष की भक्ति में लावै।। ऐसो पुण्य तास को बरणा। एक मनुष्य प्रभु शरणा करना।। कोटि गाय जिनि गहे कसाई। तातें सूरा लेत छुड़ाई।। एक जीव लगे जो परमेश्वर राह। लाने वाला गहे पुण्य अथाह।। भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि एक मानव (स्त्री-पुरूष) उत्तम धर्म यानि शास्त्र अनुकूल धर्म-कर्म में पूर्ण संत की शरण आता है, औरों को भी राह (मार्ग) बताता है। उसको परमेश्वर हृदय से प्रसन्न होकर प्यार करता है। जो कोई एक जीव को परमात्मा की शरण में लगाता है तो उसको बहुत पुण्य होता है। एक गाय को कसाई से छुड़वाने का पुण्य एक यज्ञ के तुल्य होता है। करोड़ गायों को छुड़वाने जितना पुण्य होता है, उतना पुण्य एक जीव को काल से हटाकर पूर्ण परमात्मा की शरण में लगाने का मध्यस्थ को होता है।
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गरीब, मेलै ठेलै जाईयो, मेले बड़ा मिलाप। पत्थर पानी पूजते, कोई साधु संत मिल जात।। भावार्थ:- संत गरीबदास जी ने कहा है कि तीर्थों पर जो भक्तों के मेले लगते हैं। वहाँ जाते रहना। हो सकता है कभी कोई संत मिल जाए और कल्याण हो जाए। जैसे धर्मदास जी तीर्थ भ्रमण पर मथुरा-वृदांवन गया था। वहाँ स्वयं परमेश्वर कबीर जी ही जिन्दा संत के रूप में मिले और धर्मदास जी का जन्म ही सुधर गया, कल्याण को प्राप्त हुआ।
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