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#संस्कृति ज्ञान
vlogrush · 6 months
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भारतीय संस्कृति की विशेषताएं: तथा संस्कृति ज्ञान के महत्व
भारत एक विविधताओं से भरा देश है और इसकी संस्कृति इसी विविधता को दर्शाती है। यहां धर्म, भाषा, परिवार, त्योहार, भोजन, कला और रहन-सहन सभी में विविधता देखी जाती है। भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता धार्मिक विविधता है, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी धर्मों के अनुयायी एक साथ रहते हैं। देश की भाषाई विविधता भी उल्लेखनीय है, जहां हिंदी, बंगाली, तेलुगु, मराठी, तमिल, उर्दू, गुजराती…
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sanatanpragati12 · 1 year
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सपने में सीढ़ी देखने का मतलब - Sapne Mein Sidhi Dekhna
सीढ़ी का स्वप्न फल शुभ या अशुभ !
आप सभी को नमस्कार! आज हम आपको सपने में सीढ़ी देखने के मतलब के बारे में बताने जा रहे हैं। सपनों की दुनिया में सीढ़ी के सपने के मतलब को जानने के लिए आपको इस लेख को ध्यान से पढ़ना चाहिए। इसके अलावा, हम आपको सीढ़ी चढ़ने और उतरने, छोटी या लंबी सीढ़ी के सपनों के बारे में भी बताएंगे। इससे आप अपने सपनों को समझ सकते हैं और उनसे संबंधित उचित निर्णय ले सकते हैं।दोस्तों, हर व्यक्ति के सपने उनकी खुशियों और…
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thegardendreamer · 2 years
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#गुरू गोविन्द दोऊ खड़े#काके लागूं पांय।#बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।#कबीर का यह दोहा उतना ही अर्थपूर्ण है जितना अर्थपूर्ण है मेरी अध्यापिका का मुझ पर आशीर्वाद।#रामचरितमानस को लेकर जब सवाल तुलसी पर उठाया जा रहा था तो वे अपनी सूती साड़ी का पल्ला पकड़ती है और#कितना सुंदर कवि है ये हमारे भाई तुलसीदास जी !#क्यों उसकी छोटी सी कविता के भाग को समझने में इतनी तकलीफ़ हुई जाती है बेटा जी।#उन्होंने हमारी किताब को हाथ में लिया और चश्मा संभालकर जो समझाया उसने दुनिया को देखने समझने और व#और यही तो है २१वी सदी का ज्ञान कि जानो#परखो और चुनो।#ढोल गंवार शुद्र पशु नारी#सकल तारणा के अधिकारी : रामचरित मानस#१. ढोल (वाद्य यंत्र)- ढोल को हमारे सनातन संस्कृति में उत्साह का प्रतीक माना गया है इसके थाप से हमे#उत्साहमय हो जाता है. आज भी विभिन्न अवसरों पर ढोलक बजाया जाता है. इसे शुभ माना जाता है.#२. गंवार {गांव के रहने वाले लोग )- गाँव के लोग छल-प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं. गाँ#३. शुद्र (जो अपने कर्म व सेवाभाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे)- सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दू#४. पशु (जो एक निश्चित पाश में रहकर हमारे लिए उपयोगी हो) - प्राचीन काल और आज भी हम अपने दैनिक जीवन मे#दही. घी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न इत्यादि के लिए हम पशुओं पर ही निर्भर हैं. पशुओ के बिना हमारे#५. नारी ( जगत -जननी#आदि-शक्ति#मातृ-शक्ति )- नारी के बिना इस चराचर जगत की कल्पना ही मिथ्या है नारी का हमारे जीवन में माँ#बहन बेटी इत्यादि के रूप में बहुत बड़ा योगदान है. नारी के ममत्व से ही हम हम अपने जीवन को भली-भाँती स#काली#लक्ष्मीबाई बनकर हमारा कल्याण करती है. इसलिए सनातन संस्कृति में नारी को पुरुषों से अधिक महत्त्#सकल तारणा के अधिकारी से यह तात्पर्य है-#१. सकल= सबका#२. तारणा= उद्धार करना#३. अधिकारी = अधिकार रखना#उपरोक्त सभी से हमारे जीवन का उद्धार होता है इसलिए इसे उद्धार करने का अधिकारी कहा गया है.#writing
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helputrust · 4 months
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24.04.2024, लखनऊ | महान  वैदिक ऋषि "महर्षि कश्यप" की जन्म जयन्ती के पावन अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के  सेक्टर 25, इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम में ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने  महर्षि कश्यप जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें सादर नमन किया |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, “महर्षि कश्यप भारतीय संस्कृति में एक महान ऋषि और प्राचीन विद्वान थे । उन्हें प्राचीन काल के महान ऋषियों में से एक माना जाता है जो ज्ञान, ध्यान और तप के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करते थे । महर्षि कश्यप ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते थे। सुर-असुरों के मूल पुरूष मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहां वे पर-ब्रह्म परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते थे। मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे | महर्षि कश्यप द्वारा संपूर्ण सृष्टि की सृजना में दिए गए महायोगदान के कारण उन्हें ‘सृष्टि के सृजक’ उपाधि से विभूषित किया गया।हमें भी महर्षि कश्यप की तरह धर्म और नीति के मार्ग पर चलकर एक विकसित राष्ट्र बनाने में अपना योगदान देना चाहिए |"
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helpukiranagarwal · 1 year
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।
समस्त हिंदी प्रेमी साहित्यकारों, भाषाविदों, लेखकों एवं शिक्षकों को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
हमारी हिंदी भाषा भारतीय सनातनी संस्कृति और परंपरा एवं अपनी मधुरता व अपने साहित्य के लिए संपूर्ण विश्व में विख्यात है ।
आइए हम सब अपने लेखन एवं वार्तालाप में अपनी मातृभाषा हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करने का संकल्प करें ।
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drrupal-helputrust · 1 year
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helputrust-drrupal · 1 year
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बिन निज भाषा-ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।
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helputrust-harsh · 1 year
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।
समस्त हिंदी प्रेमी साहित्यकारों, भाषाविदों, लेखकों एवं शिक्षकों को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
हमारी हिंदी भाषा भारतीय सनातनी संस्कृति और परंपरा एवं अपनी मधुरता व अपने साहित्य के लिए संपूर्ण विश्व में विख्यात है ।
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sirfdabba · 2 years
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फलक पे शब्द लिखा गया, घास सा चबाया गया,
कुछ अंश निगला गया, कुछ को थूका गया।
श्वेत रंगधारी झमूरे, शब्दो को ताकते गए,
सुनते गए, सुनते गए, सुनने का ढोंग करते गए।
ज्ञान की प्यास थी जिनको, अब अंकों के लिए जीते है,
श्वेत झमुरे विधि घर में, परदे के आड़े रहते है।
मत तो घर पे छोड़ आए, मतभेद पे "स्वयंघोषित" बंदी है,
किताबों के ढेर है, इस विधि घर में,
पर, अफसोस की, सवालों की मंदी है।
~संस्कृति
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brahmrishiramanand · 2 years
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#मूर्ति_उपासना_क्यों?
ब्रह्मांड की रचना से लेकर योगेश्वर वाशुदेव श्रीकृष्णा के काल तक मूर्ति पूजा का प्रावधान नहीं हुआ करता था, वल्कि यज्ञ-हवन, माता-पिता गुरूजनों की सेवा-वन्दना का प्रावधान हुआ करता तथा अथिति का सम्मान अतिथि देवोंभव के रूप में हुआ करता था, जोकि कलयुग के आने के पश्चात एक अन्तराल के बाद मूर्तिपूजा के रूप में प्रारम्भ हो गया, जिसके साथ ही साथ वटबृक्ष आदि की प्रथाओं का चलन प्रारम्भ हो गया।
कलयुग में माता-पिताश्री तथा जेष्ठभ्राताश्री से श्रेष्ठ पूजा के योग्य कोई-भी दूसरा नहीं हो सकता है - यहीं परम्परा हमारी सनातन संस्कृति की धरोहर हुआ करती थी, जिसका आज के मानव ने स्वयं त्याग परित्याग कर दिया हैं, यही उसके दुखों का मूलकारण हैं।
हमारें धर्मग्रंथ हमारी धरोहर हुआ करती थी, जिसका नियमित पाठ तथा हवन-पूजन की व्यवस्था थी, जोकि शनैः-शनैः समाप्त होती चली गई - यही मानव के बिनाश का मूलकारण हैं।
क्या आज कोई युवक आपने माता-पिता, गुरूजनों का आदर सत्कार याफिर उनकी चरण वन्दना करता हैं, संस्कार धर्मग्रंथों के द्वारा आतें थें, जिनका प्रचलन आज समाज में नही हैं और न ही गुरूप्रथा ही हैं और न ही वैदिक आश्रम ही शेष बचें हैं जहां जाकर ज्ञान प्राप्त किया जा सकें - जिसके लियें हम स्वयं जिम्मेदार हैं?
#बिनाशकाले_बिपरीत_बुद्धि?
यदि स्वयं का कल्याण चाहतें हैं, तो सनातन संस्कृति की ओर लौटे वरना आपका बिनाश निश्चित हैं। श्रीमद्भागवतगीता और रामायण का नियमित पाठ करें और अतिथियों का सम्मान तथा ब्रह्ममूहुर्त में उठना प्रारम्भ करें स्वयं जागें औरों को भी चिरनिद्रा से जागने का प्रयास करें, तभी हम सभी सुरक्षित रहेंगे और हमारी सनातन संस्कृति?
बिचार अपने-अपने
#श्रीकृष्णाय_नमोऽस्तुते
ब्रह्मर्षि रामानन्द सरस्वती
दूरभाष 09540666000
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vlogrush · 6 months
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भारतीय संस्कृति की विशेषताएं: तथा संस्कृति ज्ञान के महत्व
भारत एक विविधताओं से भरा देश है और इसकी संस्कृति इसी विविधता को दर्शाती है। यहां धर्म, भाषा, परिवार, त्योहार, भोजन, कला और रहन-सहन सभी में विविधता देखी जाती है। भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता धार्मिक विविधता है, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी धर्मों के अनुयायी एक साथ रहते हैं। देश की भाषाई विविधता भी उल्लेखनीय है, जहां हिंदी, बंगाली, तेलुगु, मराठी, तमिल, उर्दू, गुजराती…
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seedharam · 23 hours
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#रामचरितमानसअनुसारमोक्षकैसेहो
गरीब,तीर्थ यज्ञ जुग जुग करो,पावत नहीं जगदीश *
काशी करवत लेत हैं, जाय कटावे शीस **
🌼🌼🌼 क्या आप जानते हैं कि आदि सनातनी पूजा तीन चरण में पूरी होती हैं।
✓ प्रथम चरण की भक्ति साधना में वही द्वादश अक्षर का मंत्र प्रदान किया जाता हैं जिसका वर्णन रामचरितमानस के बालकांड में हैं।
✓ द्वितीय चरण में पवित्र गीता जी में वर्णित मोक्ष मंत्र "ॐ तत् सत्" में से ॐ और तत् का भेद बताया जाता हैं।
✓ तृतीय और अंतिम चरण में "ॐ तत् सत्" में से सत् मंत्र के वास्तविक रहस्य को बताया जाता हैं।
🌼🌼🌼 आपको बता दें कि ऐसे "शास्त्र अनुकूल भक्ति साधना" में हमारे देवी देवताओं से लेकर सच्चिदानन्द घनब्रम्ह (#असली_साहेब) अर्थात् #पूर्ण_परमात्मा तक के पूजा अर्थात् भक्ति साधना का ज्ञान वर्तमान में सिर्फ "तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज" के पास ही हैं और वे ही परमात्मा के परमपद अर्थात् सनातन परमधाम (सत्यलोक) के एकमात्र जानकार सतगुरू हैं और वही सनातन धर्म और सनातन संस्कृति के असली रक्षक भी हैं ।
गरीब,चरण कमल धुन्न लाइये,हर #दम बारंबार *
अर्थ धर्म काम मोक्ष होय, #साहेब के दरबार **
और अधिक जानकारी हेतु सपरिवार
देखिए...
✓ "Factful Debates YouTube channel"
✓ श्रद्धा टीवी चैनल दोपहर दो बजे से तीन बजे तक
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astrovastukosh · 3 days
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*🌞~ आज दिनांक - 20 सितम्बर 2024 का वैदिक हिन्दू पंचांग सटीक गणना के साथ दीप – प्रज्वलन अनिवार्य क्यों ? ~🌞*
*⛅दिनांक - 20 सितम्बर 2024*
*⛅दिन - शुक्रवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - आश्विन*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - तृतीया रात्रि 09:15 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र - अश्विनी रात्रि 02:43 सितम्बर 21 तक तत्पश्चात भरणी*
*⛅योग - ध्रुव दोपहर 03:19 तक तत्पश्चात व्याघात*
*⛅राहु काल - प्रातः 11:02 से दोपहर 12:33 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:28*
*⛅सूर्यास्त - 06:38*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:53 से 05:40 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:08 से दोपहर 12:57 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:09 सितम्बर 21 से रात्रि 12:57 सितम्बर 21 तक*
*व्रत पर्व विवरण - तृतीया श्राद्ध, सर्वार्थ सिद्धि योग (प्रातः 06:28 से रात्रि 02:43 सितम्बर 21 तक)*
*⛅विशेष - तृतीया को परवल खाना शत्रु वृद्धि करता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹दीप – प्रज्वलन अनिवार्य क्यों ?🔹*
*🔸 भारतीय संस्कृति में धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दीपक प्रज्वलित करने की परम्परा है । दीपक हमें अज्ञानरुपी अंधकार को दूर करके पूर्ण ज्ञान को प्राप्त करने का संदेश देता है । आरती करते समय दीपक जलाने के पीछे उद्देश्य यही होता है कि प्रभु हमें अज्ञान-अंधकार से आत्मिक ज्ञान-प्रकाश की ओर ले चलें ।*
*🔸मनुष्य पुरुषार्थ कर संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीपक हमें देता है । दीपावली पर्व में, अमावस्या की अँधेरी रात में दीप जलाने के पीछे भी यही उद्देश्य छुपा हुआ है । घर में तुलसी की क्यारी के पास भी दीप जलाये जाते हैं । किसी भी नये कार्य की शुरुआत भी दीप जलाकर की जाती है । अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है ।*
🔹✍️🙏
Akshay Jamdagni ****
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helputrust · 1 year
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राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन ही स्वामी विवेकानन्द को सच्ची है श्रद्धांजलि – हर्ष वर्धन अग्रवाल
स्वामी विवेकानन्द की 121वीं पुण्य तिथि के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के 25/2जी, सेक्टर-25, इन्दिरा नगर स्थित कार्यालय में ''श्रद्धेय पुष्पांजलि'' कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम के तहत हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्द्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ. रूपल अग्रवाल एवं ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने स्वामी विवेकानन्द के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी, हर्ष वर्द्धन अग्रवाल ने कहा, 'यह हम सभी के लिए बहुत गर्व की बात है कि आज हम स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य तिथि मना रहे हैं । यह दिन एक महान आदर्शवादी, धार्मिक नेता और योगी को समर्पित है जिन्होंने अपने जीवन से दुनिया को ज्ञान, समग्रता और आध्यात्मिकता के प्रतीकों से परिचित कराया । स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में हुआ था और उनकी मृत्यु 4 जुलाई, 1902 को हुई थी । उनके जीवन के इस संक्षिप्त समय में, उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म की महत्ता को संपूर्ण विश्व में फैलाया । स्वामी विवेकानंद ने विश्वभर में अपने व्याख्यानों और प्रवचनों के माध्यम से लोगों को तत्त्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की तथा ज्ञान, उद्यम, एकता, और मानवता के सिद्धांतों को अपनाने पर बल दिया क्योंकि स्वामी जी का यह मानना था कि अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा' | आज स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर आइए हम सभी यह संकल्प लें कि हम स्वामी विवेकानंद जी के उपदेशों, आदर्शों और विचारों अनुसरण करेंगे एवं राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने हेतु प्रतिबद्ध होंगे | राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन ही स्वामी विवेकानन्द को सच्ची श्रद्धांजलि है |
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kathahindi · 5 days
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आइये सीखें कर्मकांड पूजा विधि Karmakand Sikhe
 आइये सीखें कर्मकांड पूजा विधि Karmakand Sikhe
कर्मकांड पूजा विधि: एक आध्यात्मिक यात्रा
श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र में आपका स्वागत है, जहाँ आप कर्मकांड पूजा विधि सीख सकते हैं। कर्मकांड का अभ्यास भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से आत्मिक शांति और संतोष की प्राप्ति में मदद करता है। यहाँ पर आप केवल 5 महीनों में कर्मकांड पूजा विधि की विधिवत तैयारी कर सकते हैं।
कर्मकांड का महत्व
कर्मकांड, जिसे हिन्दू धर्म में अनुष्ठान और पूजा विधियों का संग्रह माना जाता है, हमारे जीवन में विशेष स्थान रखता है। यह न केवल व्यक्तिगत भक्ति का साधन है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है। कर्मकांड का अध्ययन हमें निम्नलिखित बातों का ज्ञान कराता है:
धार्मिक अनुष्ठान: कर्मकांड पूजा विधि विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करने में मदद करती है, जो व्यक्ति को ईश्वर के निकट लाने का कार्य करती है।
सामाजिक एकता: सामूहिक पूजा और अनुष्ठान समुदाय को एकजुट करते हैं और आपसी संबंधों को मजबूत बनाते हैं।
आध्यात्मिक विकास: नियमित पूजा से व्यक्ति का मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है। यह आत्मा को शुद्ध करने और सकारात्मकता लाने में सहायक है।
संस्कारों का पालन: कर्मकांड हमें संस्कारों और परंपराओं को बनाए रखने में मदद करते हैं, जो पीढ़ियों से आगे बढ़ते हैं।
प्रशिक्षण केंद्र का उद्देश्य
श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र का उद्देश्य आपको कर्मकांड पूजा विधि का गहन अध्ययन और अभ्यास कराना है। यहाँ पर आप निम्नलिखित लाभ उठा सकते हैं:
विधिवत अध्ययन: आप कर्मकांड की विधियों को विस्तार से समझ सकते हैं और उन्हें सही तरीके से लागू कर सकते हैं।
ऑनलाइन क्लासेस: यह सुविधा आपको घर बैठे सीखने की अनुमति देती है। आप किसी भी समय और स्थान से कक्षाओं में शामिल हो सकते हैं।
अनुभवी शिक्षक: हमारे प्रशिक्षित शिक्षक आपको पूजा विधियों की विस्तृत जानकारी देंगे, जिससे आप इसे सही तरीके से सीख सकें।
कक्षाओं का विवरण
श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र में विभिन्न ऑनलाइन कक्षाएँ निम्नलिखित हैं:
कर्मकांड ऑनलाइन क्लास
समय: 04:00 PM से 05:00 PM
भागवत पुराण मूलपाठ ऑनलाइन क्लास
समय: 06:05 PM से 07:00 PM
भागवत पुराण साप्ताहिक कथा ऑनलाइन क्लास
समय: 07:30 PM से 09:00 PM
राम कथा ऑनलाइन क्लास
समय: 09:05 PM से 10:00 PM
कक्षा में जुड़ने की प्रक्रिया
आप कक्षा में शामिल होने के लिए निम्नलिखित लिंक का उपयोग कर सकते हैं:
Join Zoom Meeting: Join Zoom Meeting
Meeting ID: 419 969 0017
Passcode: Radhe
सभी कक्षाओं में जुड़ने का लिंक वही है, इसलिए बस आपको समय का ध्यान रखना है।
कैसे तैयारी करें
कक्षा में शामिल होने के लिए निम्नलिखित सुझावों का पालन करें:
पंजीकरण: पहले से संपर्क करें और अपनी सीट सुनिश्चित करें।
सामग्री की तैयारी: कक्षा से पहले अध्ययन सामग्री को पढ़ें और किसी भी प्रश्न को नोट करें।
अनुशासन बनाए रखें: कक्षा में भाग लेते सम�� ध्यान और अनुशासन बनाए रखें ताकि आप बेहतर तरीके से सीख सकें।
कर्मकांड पूजा विधि की मूल बातें
कर्मकांड पूजा विधि में निम्नलिखित महत्वपूर्ण तत्व शामिल होते हैं:
पूजा की तैयारी: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री का संग्रह करना जैसे फूल, दीपक, धूप, और नैवेद्य।
शुद्धता का ध्यान: पूजा के समय शुद्धता का ध्यान रखना आवश्यक है। इसे मन, वचन, और क्रिया से पालन करना चाहिए।
मंत्रों का उच्चारण: सही मंत्रों का उच्चारण करना आवश्यक है, क्योंकि मंत्रों की शक्ति विशेष होती है। सही उच्चारण से पूजा का प्रभाव बढ़ता है।
नैवेद्य अर्पण: भगवान को भोग अर्पित करना और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करना महत्वपूर्ण है।
आरती और प्रार्थना: पूजा के अंत में आरती करना और प्रार्थना करना, ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का एक साधन है।
निष्कर्ष
कर्मकांड पूजा विधि केवल धार्मिक कृत्यों का पालन नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो हमें सिखाती है कि जीवन को किस प्रकार से सार्थक बनाया जाए। श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र के माध्यम से आप इस अद्भुत विधि का अध्ययन कर सकते हैं और अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।
इस यात्रा में शामिल होकर आप न केवल कर्मकांड की विधियों को जानेंगे, बल्कि अपने जीवन में सकारात्मकता और शांति का अनुभव भी करेंगे। हम आपके सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए यहाँ हैं। आइए, इस आध्यात्मिक यात्रा में कदम रखें और अपने जीवन को समर्पित करें।
आइये सीखें कर्मकांड पूजा विधि Karmakand Sikhe
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ianamika27 · 8 days
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अपना बिहार
अपना बिहार
छिपा है जिसके नाम में , एक सम्पूर्ण इतिहास , आओ जाने "अपने बिहार", की कुछ बातें खास ||
ऋषि -मुनियों के चरणों ने, जिस स्थान को पवित्र किया , बहा कर ज्ञान की गंगा , महात्मा बुध ने "बिहार" नाम दिया ||
जहाँ वाल्मीकि ने रामायण, और पाणिनी ने व्याकरण रचा, वही तुलसी की चौपाईयों से संस्कृति और धर्म का दीप जला।
दिनकर की कविता सुनी , आर्यभट्ट का ज्ञान,
प्रख्यात है इस भूमि की 
नालंदा का ज्ञान ।
चंद्रगुप्त की साहस देखी, देखी अशोक की तलवार , आर्यभट्ट का शून्य, है सब इतिहास और भविष्य का आधार।
पूज्य है ये धरती हमारी,भारत माँ का मान है, गौरवशाली ये भूमि, यह अपना बिहार है।
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