#यः
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subhashdagar123 · 4 months ago
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sitadasi12345 · 5 months ago
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govindnager · 11 months ago
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rajeshdiwathe · 6 months ago
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deliciousnachocandy · 7 months ago
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gothalokhabar · 2 years ago
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यः मरिको स्वाद चाख्दै रमाए विदेशी पर्यटक
यः मरिको स्वाद चाख्दै रमाए विदेशी पर्यटक
भक्तपुर, २५ मङ्सिर । अष्ट्रेलियाबाट नेपाल भ्रमणमा आउनुभएकी कार्टलक्स र उहाँका पति ओमरान जोन भक्तपुरको ऐतिहासिक एवं सम्पदास्थल दत्तात्रय मन्दिरको डबलीमा बसेर महामाली नाच हेर्दा निकै मख्ख देखिन्थे । दत्तात्रय मन्दिर आसपासमा शनिबार साँझ विद्युत��य बत्तीले झिलीमिली बन्दा देखिएको आकर्षक दृश्यमा भक्तपुर नगरपालिकाले प्रदर्शन गरेको सांस्कृति कार्यक्रमअन्तर्गत विदेशी पर्यटक महामाली नाच निकै चाख लिएर…
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talonabraxas · 4 months ago
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The Lotus Flower
The lotus flower is intimately connected with Lord Sri Krishna. Sanskrit language has many words for “lotus,” one being pankaja, or “mud-born.” Panka means “mud,” and ja means “born.”
The roots of the Lotus flower grow in the muddy water, away from the source of sunlight. As the lotus plant grows and rises above the murky water, it catches the sunlight to bloom and reveal its beauty.
The Lotus flower is regarded in many cultures, especially in the eastern religions, as a symbol of purity, enlightenment, self-regeneration, and rebirth.
Bhagavad Gita:
ONE IS NOT TOUCHED BY SIN — WHEN ONE GIVES-UP WORLDLY ATTACHMENT — AND DEDICATES ALL WORK TO GOD:
One who gives up all worldly attachment, and dedicates all deeds to the Supreme Spirit of God, is not touched by sin as a lotus leaf by water. (Book: Word of God Bhagavad Gita: Chapter 5 verse 10): Ajay Gupta
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।। (5:10)
Transliteration from the original Sanskrit to English…brahmani: — -in the spirit of God (Brahman); adhaya: — -having placed; karmani: — -actions; sangam: — -attachments; tyaktva: — — having given-up; karoti: — -acts; yah: — -who; lipyate: — -is touched; na…sa: — — not he; papena: — -by sin; padma…patram: — -lotus leaf; iva: — -like; ambhasa: — -by water.
The lotus plant grows and gets all nourishment from the water in which it grows. It withers away and dries up if taken out of the water. While growing in the water, the lotus leaf is so slippery that water drops do not wet it, and water just slips off.
Similar to the lotus leaf, a person who remains unattached with the world, and dedicates all deeds to the spirit of God is not touched by the effects of karma deeds.
The Blooming of Lotus flower signifies rising from the lower regions of lust to the higher regions of enlightenment.
Lord Vishnu is depicted with four hands holding holds four things: a conch shell, a disc, a mace, and a lotus flower, the lotus flower being a symbol of enlightenment and purity.
Both Hindu and Buddhist scriptures abound with analogies of the lotus flower. The word is used as a respectful appellation while describing various attributes of God like “lotus-like feet,” and “lotus-like eyes.”
The lotus flower is one of Buddhism’s most recognizable symbols of enlightenment and is important in many Buddhist traditions. The famous ‘Lotus Sutra’ is one of the most important texts of Mahayana Buddhism.
Krishna Lotus by Talon Abraxas
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mohanjaglan · 2 months ago
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#GodMorningSaturday
Who is Saint Rampal ji Maharaj?
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है:-
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।
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radhadasi26363 · 3 months ago
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संत रामपाल जी कौन हैं?
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संतकी पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने
ऊध्वमूलम्, अध:शाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः,अव्ययम्छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम् वेद, सः ,वेदवित्।।1।।
ऊपर को पूरर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वररूपी जड़ वाला नीचे को तीनों गुण अर्थात्रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिवरूपी शाखा वाला अविना��शी विस्तारित पीपलका वृक्ष है, जिसके जैसे वेद में छन्द है ऐसेसंसार रूपी वृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटेहिस्से टहनियाँ व पत्ते कहे हैं। उस संसाररूपी वृक्ष को जो विस्तार से जानता है वहपूर्ण ज्ञानी अथ्थात् तत्वदर्शी संत है।
#तारणहार_संतरामपालजी_महाराज
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संत रामपाल जी महाराज जी ही वहतत्वदर्शी संत हैं।
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electroniccyclecupcake · 2 months ago
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#GodMorningSaturday
🌹संत रामपाल जी कौन हैं?
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।
👉संत रामपाल जी महाराज ऐप डाउनलोड करें।
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jayshrisitaram108 · 4 months ago
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ll शिव मंगलाष्टकम् ll
भवाय चंद्रचूडाय निर्गुणाय गुणात्मने
कालकालाय रुद्राय नीलग्रीवाय मंगलम् ॥ 1 ॥
वृषारूढाय भीमाय व्याघ्रचर्मांबराय च
पशूनांपतये तुभ्यं गौरीकांताय मंगलम् ॥ 2 ॥
भस्मोद्धूलितदेहाय नागयज्ञोपवीतिने
रुद्राक्षमालाभूषाय व्योमकेशाय मंगलम् ॥ 3 ॥
सूर्यचंद्राग्निनेत्राय नमः कैलासवासिने
सच्चिदानंदरूपाय प्रमथेशाय मंगलम् ॥ 4 ॥
मृत्युंजयाय सांबाय सृष्टिस्थित्यंतकारिणे
त्रयंबकाय शांताय त्रिलोकेशाय मंगलम् ॥ 5 ॥
गंगाधराय सोमाय नमो हरिहरात्मने
उग्राय त्रिपुरघ्नाय वामदेवाय मंगलम् ॥ 6 ॥
सद्योजाताय शर्वाय भव्य ज्ञानप्रदायिने
ईशानाय नमस्तुभ्यं पंचवक्राय मंगलम् ॥ 7 ॥
सदाशिव स्वरूपाय नमस्तत्पुरुषाय च
अघोराय च घोराय महादेवाय मंगलम् ॥ 8 ॥
महादेवस्य देवस्य यः पठेन्मंगलाष्टकम्
सर्वार्थ सिद्धि माप्नोति स सायुज्यं ततः परम् ॥ 9 ॥
ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव🔱☘️🙏
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jitena · 19 days ago
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गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्, छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित् ।
जो संसार रूपी वृक्ष का पूर्ण वि��रण बता देगा कि मूल तो पूर्ण परमात्मा है, तना अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म है, डार ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष है तथा शाखा तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) है तथा पात रूप संसार अर्थात् सर्व ब्रह्मण्ड़ों का विवरण बताएगा वह तत्वदर्शी संत है।
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govindnager · 11 months ago
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janardan7310singh · 20 days ago
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तत्वदर्शी संत की पहचान
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।। ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला अविनाशी विस्तारित पीपल का वृक्ष है, जिसके जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से टहनियाँ व पत्ते कहे हैं। उस संसार रूप वृक्ष को जो इसे विस्तार से जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी संत है।
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gothalokhabar · 2 years ago
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यः मरि : पाञ्चाल देश (पनौती)बाट प्रचलनको किंवदन्ती
यः मरि : पाञ्चाल देश (पनौती)बाट प्रचलनको किंवदन्ती
काभ्रेपलाञ्चोक, २२ मङ्सिर । आज यः मरि पूर्णिमा (थिंला पुन्हि)को दिन हो । यो पर्व विशेषतः नेवार समुदायमा प्रख्यात छ । वर्षभरिको १२ पूर्णिमामध्ये मङ्सिर महिना अर्थात् मार्गशुक्ल पूर्णिमालाई यः मरि पुन्हि भन्ने गरिएको हो । धेरै पहिला ‘पाञ्चाल देश’ भन्ने एउटा ठाउँ थियो जो अहिले काभ्रेपलाञ्चोकको पनौती हो । लिच्छविकालीन ग्रन्थअनुसार ‘महासत्त्व’ नाम गरेका एक राजकुमारले जङ्गलमा भोकाएका बघिनी र केही डमरू…
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authorkoushik · 7 months ago
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Bhanasuropasita Shiva Kavacham from brahmvavaivarta purana
सौतिरुवाच ।। शिवस्य कवचं स्तोत्रं श्रूयतामिति शौनक ।। वशिष्ठेन च यद्दत्तं गन्धर्वाय च यो मनुः ।। ३९ ।। ॐ नमो भगवते शिवाय स्वाहेति च मनुः ।। दत्तो वशिष्ठेन पुरा पुष्करे कृपया विभो ।। 1.19.४० ।। अयं मन्त्रो रावणाय प्रदत्तो ब्रह्मणा पुरा ।। स्वयं शम्भुश्च बाणाय तथा दुर्वाससे पुरा ।।४१।। मूलेन सर्वं देयं च नैवेद्यादिकमुत्तमम् ।। ध्यायेन्नित्यादिकं ध्यानं वेदोक्तं सर्वसम्मतम्।।४२।।
[
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्चलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
]
ॐ नमो महादेवाय ।। बाणासुर उवाच ।। महेश्वर महाभाग कवचं यत्प्रकाशितम् ।। संसार पावनं नाम कृपया कथय प्रभो ।। ४३ ।। महेश्वर उवाच ।। शृणु वक्ष्यामि हे वत्स कवचं परमाद्भुतम् ।। अहं तुम्यं प्रदास्यामि गोपनीयं सुदुर्लभम् ।। ४४ ।। पुरा दुर्वाससे दत्तं त्रैलोक्यविजयाय च ।। ४५ ।। ममैवेदं च ��वचं भक्त्या यो धारयेत्सुधीः ।। जेतुं शक्नोति त्रैलोक्यं भगवन्नवलीलया।।४६।। संसारपावनस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः।। ऋषिश्छन्दश्च गायत्री देवोऽहं च महेश्वरः।। धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ।। ४७ ।। पंचलक्षजपेनैव सिद्धिदं कवचं भवेत् ।। यो भवेत्सिद्धकवचो मम तुल्यो भवेद्भुवि ।। तेजसा सिद्धि योगेन तपसा विक्रमेण च ।।४८ ।। शम्भुर्मे मस्तकं पातु मुखं पातु महेश्वरः ।। दन्तपक्तिं नीलकण्ठोऽप्यधरोष्ठं हरः स्वयम् ।। ४९।। कण्ठं पातु चन्द्रचूडः स्कन्धौ वृषभवाहनः ।। वक्षःस्थलं नीलकण्ठः पातु पृष्ठं दिगम्बरः ।। 1.19.५० ।। सर्वाङ्गं पातु विश्वेशः सर्वदिक्षु च सर्वदा ।। स्वप्ने जागरणे चैव स्थाणुर्मे पातु सन्ततम् ।। ५१ ।। इति ते कथितं बाण कवचं परमाद्भुतम् ।। यस्मै कस्मै न दातव्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ।। ५२ ।। यत्फलं सर्वतीर्थानां स्नानेन लभते नरः ।। तत्फलं लभते नूनं कवचस्यैव धारणात् ।। ५३ ।। इदं कवचमज्ञात्वा भजेन्मां यः सुमन्दधीः ।। शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ।। ५४ ।।
sautiruvāca .. śivasya kavacaṃ stotraṃ śrūyatāmiti śaunaka .. vaśiṣṭhena ca yaddattaṃ gandharvāya ca yo manuḥ .. 39 .. oṃ namo bhagavate śivāya svāheti ca manuḥ .. datto vaśiṣṭhena purā puṣkare kṛpayā vibho .. 1.19.40 .. ayaṃ mantro rāvaṇāya pradatto brahmaṇā purā .. svayaṃ śambhuśca bāṇāya tathā durvāsase purā ..41.. mūlena sarvaṃ deyaṃ ca naivedyādikamuttamam .. dhyāyennityādikaṃ dhyānaṃ vedoktaṃ sarvasammatam..42..
[
dhyāyennityaṃ maheśaṃ rajatagirinibhaṃ cārucandrāvataṃsaṃ
ratnākalpojjcalāṅgaṃ paraśumṛgavarābhītihastaṃ prasannam.
padmāsīnaṃ samantāt stutamamaragaṇairvyāghrakṛttiṃ vasānaṃ
viśvādyaṃ viśvabījaṃ nikhilabhayaharaṃ pañcavaktraṃ trinetram..
]
oṃ namo mahādevāya .. bāṇāsura uvāca .. maheśvara mahābhāga kavacaṃ yatprakāśitam .. saṃsāra pāvanaṃ nāma kṛpayā kathaya prabho .. 43 .. maheśvara uvāca .. śṛṇu vakṣyāmi he vatsa kavacaṃ paramādbhutam .. ahaṃ tumyaṃ pradāsyāmi gopanīyaṃ sudurlabham .. 44 .. purā durvāsase dattaṃ trailokyavijayāya ca .. 45 .. mamaivedaṃ ca kavacaṃ bhaktyā yo dhārayetsudhīḥ .. jetuṃ śaknoti trailokyaṃ bhagavannavalīlayā..46.. saṃsārapāvanasyāsya kavacasya prajāpatiḥ.. ṛṣiśchandaśca gāyatrī devo'haṃ ca maheśvaraḥ.. dharmārthakāmamokṣeṣu viniyogaḥ prakīrtitaḥ .. 47 .. paṃcalakṣajapenaiva siddhidaṃ kavacaṃ bhavet .. yo bhavetsiddhakavaco mama tulyo bhavedbhuvi .. tejasā siddhi yogena tapasā vikrameṇa ca ..48 .. śambhurme mastakaṃ pātu mukhaṃ pātu maheśvaraḥ .. dantapaktiṃ nīlakaṇṭho'pyadharoṣṭhaṃ haraḥ svayam .. 49.. kaṇṭhaṃ pātu candracūḍaḥ skandhau vṛṣabhavāhanaḥ .. vakṣaḥsthalaṃ nīlakaṇṭhaḥ pātu pṛṣṭhaṃ digambaraḥ .. 1.19.50 .. sarvāṅgaṃ pātu viśveśaḥ sarvadikṣu ca sarvadā .. svapne jāgaraṇe caiva sthāṇurme pātu santatam .. 51 .. iti te kathitaṃ bāṇa kavacaṃ paramādbhutam .. yasmai kasmai na dātavyaṃ gopanīyaṃ prayatnataḥ .. 52 .. yatphalaṃ sarvatīrthānāṃ snānena labhate naraḥ .. tatphalaṃ labhate nūnaṃ kavacasyaiva dhāraṇāt .. 53 .. idaṃ kavacamajñātvā bhajenmāṃ yaḥ sumandadhīḥ .. śatalakṣaprajapto'pi na mantraḥ siddhidāyakaḥ .. 54 ..
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