#यः
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#आओ जानें भगवान को गीता अध्याय 15 के श्लोक 17 में कहा है:उतमः#पुरुषः#तु#अन्यः#प��मात्मा#इति#उदाहृतः#यः#लोकत्रायम् आविश्य#बिभर्ति#अ
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#अध्याय 8 का श्लोक 13ओम्#इति#एकाक्षरम्#ब्रह्म#व्याहरन्#माम्#अनुस्मरन्#यः#प्रयाति#त्यजन्#देहम्#सः#याति#परमाम्#गतिम्।।13।।अनुवा
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#GodNightSaturday गीताजी अध्याय 15 श्लोक 17“उत्तमः#पुरुषः#तु#अन्यः#परमात्मा#इति#उदाहृतः#यः#लोकत्रायम् आविश्य#बिभति#अव्ययः#ईश्व
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#गीता अध्याय 16#श्लोक 23 यः शास्त्र-विधिम उत्सृज्य वर्तते काम-कर्तीरू न स सिद्धिं अवाप्नोति न सुखं न परम गतिम्
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#GodMorningFridayगीता अध्याय 16#श्लोक 23 💫 यः शास्त्र- विधिम् उत्सृज्य वर्तते काम- कतिः न सिद्धि अवाप्नोति न सुखं न परम गतिम् 💫✔ इ
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तत्वदर्शी संत की पहचान
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम��,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।1।।
अर्थात ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला अविनाशी विस्तारित पीपल का वृक्ष है, जिसके जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से टहनियाँ व पत्ते कहे हैं। उस संसार रूप वृक्ष को जो इसे विस्तार से जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी संत है।
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The Lotus Flower
The lotus flower is intimately connected with Lord Sri Krishna. Sanskrit language has many words for “lotus,” one being pankaja, or “mud-born.�� Panka means “mud,” and ja means “born.”
The roots of the Lotus flower grow in the muddy water, away from the source of sunlight. As the lotus plant grows and rises above the murky water, it catches the sunlight to bloom and reveal its beauty.
The Lotus flower is regarded in many cultures, especially in the eastern religions, as a symbol of purity, enlightenment, self-regeneration, and rebirth.
Bhagavad Gita:
ONE IS NOT TOUCHED BY SIN — WHEN ONE GIVES-UP WORLDLY ATTACHMENT — AND DEDICATES ALL WORK TO GOD:
One who gives up all worldly attachment, and dedicates all deeds to the Supreme Spirit of God, is not touched by sin as a lotus leaf by water. (Book: Word of God Bhagavad Gita: Chapter 5 verse 10): Ajay Gupta
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।। (5:10)
Transliteration from the original Sanskrit to English…brahmani: — -in the spirit of God (Brahman); adhaya: — -having placed; karmani: — -actions; sangam: — -attachments; tyaktva: — — having given-up; karoti: — -acts; yah: — -who; lipyate: — -is touched; na…sa: — — not he; papena: — -by sin; padma…patram: — -lotus leaf; iva: — -like; ambhasa: — -by water.
The lotus plant grows and gets all nourishment from the water in which it grows. It withers away and dries up if taken out of the water. While growing in the water, the lotus leaf is so slippery that water drops do not wet it, and water just slips off.
Similar to the lotus leaf, a person who remains unattached with the world, and dedicates all deeds to the spirit of God is not touched by the effects of karma deeds.
The Blooming of Lotus flower signifies rising from the lower regions of lust to the higher regions of enlightenment.
Lord Vishnu is depicted with four hands holding holds four things: a conch shell, a disc, a mace, and a lotus flower, the lotus flower being a symbol of enlightenment and purity.
Both Hindu and Buddhist scriptures abound with analogies of the lotus flower. The word is used as a respectful appellation while describing various attributes of God like “lotus-like feet,” and “lotus-like eyes.”
The lotus flower is one of Buddhism’s most recognizable symbols of enlightenment and is important in many Buddhist traditions. The famous ‘Lotus Sutra’ is one of the most important texts of Mahayana Buddhism.
Krishna Lotus by Talon Abraxas
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ll श्रीमहालक्ष्मी अष्टकम ll
इंद्र उवाच
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शंखचक्र गदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ 1 ॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयंकरि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ 2 ॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्व दुष्ट भयंकरि ।
सर्वदुःख हरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ 3 ॥
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि ।
मंत्र मूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ 4 ॥
आद्यंत रहिते देवि आदिशक्ति महेश्वरि ।
योगज्ञे योग संभूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ 5 ॥
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महा पाप हरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ 6 ॥
पद्मासन स्थिते देवि परब्रह्म स्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातः महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ 7 ॥
श्वेतांबरधरे देवि नानालंकार भूषिते ।
जगस्थिते जगन्मातः महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ 8 ॥
महालक्ष्मष्टकं स्तोत्रं यः पठेद् भक्तिमान् नरः ।
सर्व सिद्धि मवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥
एककाले पठेन्नित्यं महापाप विनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धन धान्य समन्वितः ॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनम् ।
महालक्ष्मी र्भवेन्-नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥
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#विश्व_में_पूर्णगुरु_कौन_है
तत्वदर्शी संत की पहचान
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्, छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।
Complete Guru Sant Rampal Ji
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#GodMorningSaturday
Who is Saint Rampal ji Maharaj?
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है:-
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।
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#विश्व_में_पूर्णगुरु_कौन_है
तत्वदर्शी संत की पहचान
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।1।।
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संत रामपाल जी कौन हैं?
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संतकी पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने
ऊध्वमूलम्, अध:शाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः,अव्ययम्छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम् वेद, सः ,वेदवित्।।1।।
ऊपर को पूरर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वररूपी जड़ वाल�� नीचे को तीनों गुण अर्थात्रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिवरूपी शाखा वाला अविनारशी विस्तारित पीपलका वृक्ष है, जिसके जैसे वेद में छन्द है ऐसेसंसार रूपी वृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटेहिस्से टहनियाँ व पत्ते कहे ���ैं। उस संसाररूपी वृक्ष को जो विस्तार से जानता है वहपूर्ण ज्ञानी अथ्थात् तत्वदर्शी संत है।
#तारणहार_संतरामपालजी_महाराज
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संत रामपाल जी महाराज जी ही वहतत्वदर्शी संत हैं।
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#GodMorningSaturday
🌹संत रामपाल जी कौन हैं?
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।
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#GodNightWednesdayश्रीमद्भगवद्गीता_का_यथार्थ_ज्ञानगीता अध्याय 16#श्लोक 23 यः शास्त्र-विधिम उत्सृज्य वर्तते काम-कर्ताः न स सिद्धिं अवाप्न
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गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्, छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित् ।
जो संसार रूपी वृक्ष का पूर्ण विवरण बता देगा कि मूल तो पूर्ण परमात्मा है, तना अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म है, डार ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष है तथा शाखा तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) है तथा पात रूप संसार अर्थात् सर्व ब्रह्मण्ड़ों का विवरण बताएगा वह तत्वदर्शी संत है।
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#विश्व_में_पूर्णगुरु_कौन_है
Complete Guru Sant Rampal Ji
तत्वदर्शी संत की पहचान
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान बताते हुए गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।1।।
अर्थात ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला अविनाशी विस्तारित पीपल का वृक्ष है, जिसके जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से टहनियाँ व पत्ते कहे हैं। उस संसार रूप वृक्ष को जो इसे विस्तार से जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी संत है।
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