#मिट्टी मुक्त खेती
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ravi-123 · 1 year ago
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जैविक खेती क्या है? और कैसे करें।
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Organic Farming in Hindi: जैविक खेती एक स्थायी कृषि दृष्टिकोण है जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर जोर देती है और सिंथेटिक रसायनों या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों से परहेज करती है। यह खाद, गोबर और प्राकृतिक कीट नियंत्रण विधियों जैसे जैविक आदानों के उपयोग के इर्द-गिर्द घूमता है। मृदा स्वास्थ्य और जैव विविधता का पोषण करके, जैविक खेती संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र और स्वस्थ उपज को बढ़ावा देती है। जैविक खेती में संलग्न होने के लिए, उपयुक्त फसलों का चयन करके और जैविक बीज प्राप्त करके शुरुआत करें। खाद और फसल चक्र के माध्यम से मिट्टी संवर्धन को प्राथमिकता दें। रासायनिक हस्तक्षेपों के उपयोग को कम करने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन तकनीकों को लागू करें। सफल जैविक खेती के लिए कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की नियमित निगरानी और पोषण महत्वपूर्ण है, जिससे अंततः पौष्टिक, रसायन-मुक्त उपज प्राप्त होती है
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khetikisaniwala · 2 years ago
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लौकी और करेले की खेती-एक हज़ार प्लांट्स,1-लाख रुपए तक कमाई!
कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यहां के किसान विभिन्न फसलें उगाते हैं और अपने मेहनत से अच्छा मुनाफा कमाते हैं। लौकी और करेले की खेती एक ऐसी कृषि प्रथा है जिसमें कम निवेश और कामयाबी के साथ अच्छी कमाई की जा सकती है।
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यह लाभकारी व्यवसायिक विकल्प है जिसे किसान छोटे या बड़े स्तर पर अपना सकते हैं। इस लेख में, हम Lauki Aur Karele Ki kheti के बारे में विस्तार से जानेंगे, जो एक हजार प्लांट्स से एक लाख रुपए तक कमाई का मौका प्रदान करती है।
1. लौकी और करेले की खेती के लिए भूमि का चयन
अगर आप लौकी और करेले की खेती में रुचि रखते हैं, तो सबसे पहले आपको उपयुक्त भूमि का चयन करना होगा। लौकी और करेले उगाने के लिए मृदा को नींबू या नींबू की खेती से पहले धो देना चाहिए, ��िससे कीटाणुओं का संक्षेपण हो। धान और गेहूं जैसी फसलों के लिए उचित खेती तैयार करें।
2. बीज का चयन और रोपण
लौकी और करेले की खेती के लिए उचित बीज का चयन करना महत्वपूर्ण है। आपको उच्च गुणवत्ता वाले बीज खरीदने चाहिए जो उगाने के लिए सबसे अच्छे हों। बीज रोपण के दौरान ध्यान दें कि प्रत्येक पौधे के बीच विशेष दूरी रखी जाए ताकि वे अच्छे से विकसित हो सकें।
3. उचित जलवायु और पानी का उपयोग
लौकी और करेले की खेती के लिए उचित जलवायु महत्वपूर्ण है। यह फसल गर्म और धूपी जलवायु को पसंद करती है और तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच रहना उचित होता है। इसके अलावा, समय-समय पर पानी की आपूर्ति का ध्यान रखना भी जरूरी है, खासतौर पर गर्मियों में।
4. खरपतवार और कीट प्रबंधन
लौकी और करेले की खेती में खरपतवार और कीटों का सामना करना आम बात है। यह फसल विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं के लक्षित बन जाती है जो उन्हें हराने के लिए उचित प्रबंधन की आवश्यकता होती है। पेस्टिसाइड्स के उपयोग से पहले एक विशेषज्ञ की सलाह लेना सुनिश्चित करें ताकि पर्याप्त सुरक्षा उपायों का पालन किया जा सके।
5. उपयुक्त खेती की देखभाल
लौकी और करेले की खेती में उचित देखभाल बढ़ जाती है जब पौधे विकसित होते हैं। समय-समय पर खेती जाँच करें और उन्हें बीमारियों और कीटों से मुक्त रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। उचित खेती की देखभाल से फसल का उत्पादन बढ़ाना संभव होता है जो आपकी कमाई को बढ़ा सकता है।
6. फसल कटाई और बिक्री
लौकी और करेले के पौधे पक जाने पर उन्हें कट देना और बिक्री के लिए तैयार करना एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। उचित समय पर फसल कटाई करना महत्वपूर्ण है ताकि पौधे अधिक उपज दे सकें और उचित मूल्य पर उन्हें बेचने का प्रबंधन करना भी जरूरी है।
7. लौकी और करेले की खेती में टिप्स
उपयोगी लाभ
लौकी और करेले की खेती एक लाभकारी व्यवसायिक विकल्प है जो किसानों को अधिक उत्पादन और मुनाफे का मौका प्रदान करता है। यह खेती कम निवेश और समय में उचित प्रबंधन के साथ किया जा सकता है और किसान इससे एक लाख रुपए तक कमा सकते हैं।
तोरई की बेल को उगाने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
1. ज़मीन की तैयारी: तोरई की बेल को उगाने के लिए एक धान्यवंत और नींबूवाले मिट्टी की आवश्यकता होती है। उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी का चयन करें जो आपके पास खेती के लिए उपयुक्त हो।
2. बीज का चयन: अच्छे गुणवत्ता वाले बीज का चयन करें। बीज की खराबी, दाने, और कीटाणु मुक्त होने का ध्यान रखें।
3. बीज का बोना: तोरई के बीज को एक गहरे और नरम खेत में 1 इंच तक की गहराई तक बोने। बीजों के बीच न्यून��म 12-18 इंच की दूरी रखें।
4. पानी की देखभाल: तोरई को उगाने के बाद ध्यान दें कि पौधों क�� प्राथमिक 4 सप्ताहों में नियमित रूप से पानी दिया जाए। पानी देने की सिवाय, पौधों को साफ और स्वच्छ रखें।
5. खेत की देखभाल: तोरई पौधों के चारों ओर कीटाणु और विषाणुओं से बचने के लिए खेत की देखभाल करें। ज्यादा पीड़कारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का उपयोग करें।
6. ट्रेलिंग: जब पौधे 5 से 6 हफ्तों के हो जाएं, तो उन्हें समर्थन के लिए ट्रेलिंग का उपयोग करें। ट्रेलिंग तोरई को सही तरीके से ऊपर उठाकर बंधने में मदद करता है जिससे पौधा बेहतर रूप से विकसित हो सकता है।
याद रखें कि तोरई की बेल को गर्मी और धूप वाली स्थानों पर उगाने के लिए अधिक उपयुक्त होता है |
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crazynewsindia · 2 years ago
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कृषि उत्पादों का गुणवत्ता युक्त होना आवश्यक: प्रो. चंद्र कुमार
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कृषि मंत्री प्रो. चंद्र कुमार ने केरल राज्य के तिरूवंतपुरम में ‘कृषि में आय अर्जन के लिए मूल्यवर्धन’ (वैगा-2023) विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मूल्यवर्धन विभिन्न गतिविधियों की एक श्रृंखला है जो एक उत्पाद को खेत से उपभोक्ता तक लाने में शामिल होती है। इसमें उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन और वितरण जैसी गतिविधियां शामिल हैं। उन्होंने कहा कि एक मूल्य श्रृंखला विकसित करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि किसानों को उनके उत्पादों के उचित दाम मिलें और उपभोक्ताओं की उच्च गुणवत्ता वाले, स्थानीय रूप से उगाए खाद्य पदार्थों तक पहुंच सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने कृषि क्षेत्र में मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने के लिए खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना, विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों और उद्यमियों को वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करके ग्रेडिंग और पैकिंग सुविधाएं प्रदान करने के लिए कई पहल की हैं। कृषि मंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश अनुकूल जलवायु, समृद्ध मृदा और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। प्रदेश में अनाज, बेमौसमी सब्जियां, फल, दालें, बाजरा और विदेशी सब्जियों सहित विभिन्न प्रकार की फसलों के उत्पादन के लिए एक उपयुक्त परिवेश विद्यमान है। राज्य देश में सेब और अन्य समशीतोष्ण फलों जैसे खुमानी, चेरी, आड़ू, नाशपाती के प्रमुख उत्पादकों में से एक है और ��न समशीतोष्ण फलों विशेष रूप से सेब और अन्य बेमौसमी सब्जियों, टमाटर, लहसुन और अदरक के उत्पादन के कारण राष्ट्रीय बाजार में एक विशेष स्थान रखता है। हिमाचल प्रदेश मशरूम के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। कृषि मंत्री ने कहा कि प्रदेश, कांगड़ा घाटी में उगाई जाने वाली ‘कांगड़ा चाय’ के लिए भी प्रसिद्ध है। कांगड़ा चाय अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों और बेहतरीन स्वाद के लिए दुनिया भर में लोकप्रिय है। यह वर्ष 2005 से भौगोलिक संकेतकों की प्रतिष्ठित सूची में भी शामिल है। प्रदेश में मक्का की खेती व्यापक रूप से की जाती है। हिमाचल प्रदेश बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। यहां विशेष रूप से टमाटर, लहसुन, अदरक, बाजरा, दालें, मिर्च, शिमला मिर्च, बीन्स, खीरे और लगभग सभी प्रकार की सब्जियां भी उगाई जाती हैं। राज्य में लगभग 18.50 लाख मीट्रि�� टन सब्जियों का उत्पादन होता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने लागत कम करने, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार, पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और उपभोक्ताओं के लिए रसायन मुक्त स्वस्थ खाद्यान्नों का उत्पादन करने के लिए वर्ष 2018 से प्राकृतिक खेती की पहल की। वर्तमान में 9.97 लाख किसानों में से लगभग 1.5 लाख किसानों ने लगभग 16684 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती शुरू कर दी है और इसके उत्साहजनक परिणाम मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम जैविक खेती को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार, राज्य में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए राज्य को ग्रेडिंग, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, आदर्श भंडारण और कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाओं के माध्यम से इन फसलों की गुणवत्ता स्वाद और पोषण मूल्य को बढ़ाकर मूल्यवर्धन पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। उन्होंने कहा कि शीघ्र खराब होने वाली उपज के लिए प्रशीतित वैन, आपूर्ति श्रृंखला और विपणन को मजबूत करने पर भी बल दिया जा रहा है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, सिक्किम के कृषि मंत्री लोक नाथ शर्मा, अरुणाचल प्रदेश के कृषि मंत्री तागे ताकी और देश के विभिन्न राज्यों के नेताओं ने भी कार्यक्रम में अपने विचार साझा किए। Read the full article
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everynewsnow · 4 years ago
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शिल्पा शेट्टी की सलाद बाउल में उनके पिछवाड़े से स्वस्थ वेजीज़ हैं
शिल्पा शेट्टी की सलाद बाउल में उनके पिछवाड़े से स्वस्थ वेजीज़ हैं
शिल्पा शेट्टी ने ताजा, देसी सब्जियों और पत्तेदार साग के साथ एक स्वस्थ सलाद बनाया। हाइलाइट शिल्पा शेट्टी ने एक स्वादिष्ट और स्वस्थ सलाद साझा किया जो उनके पास था सलाद में अपने ही खेत से होमग्रोन ग्रीन्स थे खेती के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधि ‘हाइड्रोपोनिक्स’ थी कोविद के बाद के युग में स्थायी रसोई तेजी से लोकप्रिय हो गए हैं। किचन गार्डन के अंदर सब्जियां, फल और जड़ी-बूटियां उगाना अब केवल शगल…
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merikheti · 2 years ago
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घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम
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भारत के किसानों के लिए कृषि ��े अलावा पशुपालन का भी अपना ही एक अलग महत्व होता है। छोटे से लेकर बड़े भारतीय किसान एवं ग्रामीण महिलाएं, पशुपालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को एक ठोस आधार प्रदान करने के अलावा, खेती की मदद से ही पशुओं के लिए चारा एवं फसल अवशेष प्रबंधन (crop residue management) की भी व्यवस्था हो जाती है और बदले में इन पशुओं से मिले हुए ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल खेत में ही करके उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।
एजोला चारा (Azolla or Mosquito ferns)
अलग-अलग पशुओं को अलग-अलग प्रकार का चारा खिलाया जाता है, इसी श्रेणी में एक विशेष तरह का चारा होता है जिसे ‘एजोला चारा‘ के नाम से जाना जाता है।
यह एक सस्ता और पौष्टिक पशु आहार होता है, जिसे खिलाने से पशुओं में वसा एवं वसा रहित पदार्थ वाली दूध बढ़ाने में मदद मिलती है।
अजोला चारा की मदद से पशुओं में बांझपन की समस्या को दूर किया जा सकता है, साथ ही उनके शरीर में होने वाली फास्फोरस की कमी को भी दूर किया जा सकता है।
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इसके अलावा पशुओं में कैल्शियम और आयरन की आवश्यकता की पूर्ति करने से उनका शारीरिक विकास भी बहुत अच्छे से हो पाता है।
समशीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाला यह अजोला एक जलीय फर्न होता है।
अजोला की लोकप्रिय प्रजाति पिन्नाटा भारत से किसानों के द्वारा उगाई जाती है। यदि अजोला की विशेषताओं की बात करें तो यह पानी में बहुत ही तेजी से वृद्धि करते हैं और उनमें अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन होने की वजह से जानवर आसानी से पचा भी लेते है।
अजोला में 25 से 30% प्रोटीन, 60 से 70 मिलीग्राम तक कैल्शियम और 100 ग्राम तक आयरन की मा��्रा पाई जाती है।
कम उत्पादन लागत वाला वाला यह चारा पशुओं के लिए एक जैविक वर्धक का कार्य भी करता है।
एक किसान होने के नाते आप जानते ही होंगे, कि रिजका और नेपियर जैसा चारा भारतीय पशुओं को खिलाया जाता रहा है, लेकिन इनकी तुलना में अजोला पांच गुना तक अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन और दस गुना अधिक उत्पादन दे सकता है।
अजोला चारा उत्पादन के लिए आपको किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होगी, बल्कि किसान खुद ही आसानी से घर पर ही इसको ऊगा सकते है।
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इसके लिए आपको क्षेत्र को समतल करना होगा और चारों ओर ईंट खड़ी करके एक दीवार बनाई जाती है।
उसके अंदर क्यारी बनाई जाती है जिससे पानी स्टोर किया जाता है और प्लांट को लगभग 2 मीटर गहरे गड्ढे में बनाकर शुरुआत की जा सकती है।
इसके लिए किसी छायादार स्थान का चुनाव करना होगा और 100 किलोग्राम छनी हुई मिट्टी की परत बिछा देनी होगी, जोकि अजोला को पोषक तत्व प्रदान करने में सहायक होती है।
इसके बाद लगभग पन्द्रह लीटर पानी में पांच किलो गोबर का घोल बनाकर उस मिट्टी पर फैला देना होगा।
अपने प्लांट में आकार के अनुसार 500 लीटर पानी भर ले और इस क्यारी में तैयार मिश्रण पर, बाजार से खरीद कर 2 किलो ताजा अजोला को फैला देना चाहिए। इसके पश्चात 10 लीटर हल्के पानी को अच्छी तरीके से छिड़क देना होगा।
इसके बाद 15 से 20 दिनों तक क्यारियों में अजोला की वर्द्धि होना शुरू हो जाएगी। इक्कीसवें दिन की शुरुआत से ही इसकी उत्पादकता को और तेज करने के लिए सुपरफ़ास्फेट और गोबर का घोल मिलाकर समय-समय पर क्यारी में डालना होगा।
यदि आप अपने खेत से तैयार अजोला को अपनी मुर्गियों को खिलाते हैं, तो सिर्फ 30 से 35 ग्राम तक खिलाने से ही उनके शरीर के वजन एवं अंडा उत्पादन क्षमता में 20% तक की वृद्धि हो सकती है, एवं बकरियों को 200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से उनके दुग्ध उत्पादन में 30% की वृद्धि देखी गई है।
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अजोला के उत्पादन के दौरान उसे संक्रमण से मुक्त रहना अनिवार्य हो जाता है, इसके लिए सीधी और पर्याप्त सूरज की रोशनी वाल��� स्थान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि किसी पेड़ के नीचे भी लगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि वहां पर सूरज की रोशनी भी आनी चाहिए।
साथ ही अजोला उत्पादन के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को उचित माना जाता है।
सही मात्रा में गोबर का घोल और उर्वरक डालने पर आपके खेत में उगने वाली अजोला की मात्रा को दोगुना किया जा सकता है।
यदि आप स्वयं पशुपालन या मुर्गी पालन नहीं करते हैं, तो उत्पादन इकाई का एक सेंटर खोल कर, इस तैयार अजोला को बाजार में भी बेच सकते है।
उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड जैसे राज्यों में ऐसी उत्पादन इकाइयां काफी मुनाफा कमाती हुई देखी गई है और युवा किसान इकाइयों के स्थापन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
किसान भाइयों को जानना होगा कि पशुओं के लिए एक आदर्श आहार के रूप में काम करने के अलावा, अजोला का इस्तेमाल भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में हरी खाद के रूप में भी किया जाता है। इसे आप 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अपने खेत में फैला सकते हैं, तो आपके खेत की उत्पादकता आसानी से 20% तक बढ़ सकती है। लेकिन भारतीय किसान इसे खेत में फैलाने की तुलना में बाजार में बेचना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वहां पर इसकी कीमत काफी ज्यादा म��लती है।
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आशा करते हैं, घर में तैयार किया गया अजोला चारा भारतीय किसानों के पशुओं के साथ ही उनके खेत के लिए भी उपयोगी साबित होगा और हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी उन्हें पूरी तरीके से पसंद आई होगी।
Source घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम
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abhay121996-blog · 4 years ago
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जहरमुक्त भोजन के लिए पीएम के ऑर्गेनिक खेती की अपील का दिखने लगा है असर
बेगूसराय। विभिन्न गंभीर बीमारियों का कारण बनते जहर युक्त भोजन से लोगों को दूर रखने का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रयास रंग लाने लगा है। प्रधानमंत्री के आह्वान पर इस सीजन में बेगूसराय में एक सौ एकड़ से अधिक में ऑर्गेनिक (जैविक) खेती किया जा रहा है। बड़ी संख्या में किसानों ने जैविक तरीके से सब्जी आदि लगाया है। 1960 के दशक में बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए अधिक अन्न उपजाने के उद्देश्य से तत्कालीन सरकार ने विदेशों से रासायनिक खाद का आयात कर किसानों को इसके लिए प्रेरित किया था।
लेकिन अब वही खाद जानलेवा साबित हो जा रहा है। जिसके कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नो केमिकल यानी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए हैं। जिस प्रयास का असर गांव-गांव तक पहुंच गया है। बखरी के किसान कृष्णदेव राय ने सोमवार को बताया कि रासायनिक खाद के प्रयोग से अधिक उपज होने के कारण पेट तो भर गया। लेकिन रासायनिक खाद का असर उत्पाद के माध्यम से शरीर में जाने से विभिन्न प्रकार की ��ीमारी बढ़ गई, अधिकतर लोग गैस्ट्रिक, डायबिटीज और कैंसर की चपेट में आ गए। रोगों की बढ़ती संख्या के बाद जब रिसर्च किया गया तो पता चला कि अधिकतर बीमारियों का कारण रसायनिक खाद युक्त भोजन है।
अब सरकार लोगों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रही है। हम लोगों ने भी जैविक खेती का अभियान किसानों तक पहुंचाना शुरू कर दिया है। सभी किसान अपने जमीन की मिट्टी का टेस्ट कराएं, उसमें उर्वरक की मात्रा और जमीन के शुद्ध होने के समय का पता लगाएं। जैविक तरीके से खेती करें-क्योंकि अगला भविष्य जैविक खेती का है। सरकार चाहती है कि 60-70 वर्ष पहले की तरह खेती हो, धीरे-धीरे लोग रासायनिक खाद से दूर हों, प्रोडक्शन कम हो लेकिन शुद्ध हो तो रेट ऊंचा कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि 60 साल पहले खेत में रासायनिक खाद-दवा का प्रयोग नहीं होता था। जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई तो बढ़ती हुई जनसंख्या का पेट भरने के लिए सरकार उर्वरक के प्रयोग को बढ़ावा देने लगी।
पहले मानसून आधारित खेती होती थी, आषाढ़ आते-आते किसानों के घर खाली हो जाते थे तो भुखमरी की हालत हो जाती थी। सिंचाई के अभाव के अभाव में रबी फसल की खेती कम होती थी। भूख से मौत का सरकार पर बोझ बढ़ने लगा तो सरकार ने विदेश से खाद मंगवाया। पैदावार बढ़ा तो हरित क्रांति की शुरुआत हुई, पौधा को तुरंत भोजन मिलने से वृद्धि तेज हो गई। विदेश से मंगाए गए खाद हजारों वर्षों से जमीन में दबे उर्वरा शक्ति को तुरंत पौधे को पहुंचाने लगे। जिससे फसल अच्छी हुई, लेकिन 15-20 साल बाद ही जमीन की उर्वरा शक्ति कम होने लगी। अब बगैर खाद के कोई फसल नहीं होता है।
इस स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभियान चलाया है कि खेतों में खाद नहीं दीजिए, दलहन की खेती कीजिए। दलहन और ढ़ैंचा वायुमंडल से नाइट्रोजन खींचकर जमीन को देते हैं। ढ़ैंचा के रूट में नुडस बनता है, इससे जमीन में नाइट्रोजन फिक्स होती है। वायुमंडल से जब जमीन में नाइट्रोजन फिक्स होगा तो जमीन की उर्वरा शक्ति पुनः कायम होगी और बगैर खाद के भी फसल हो सकेगा। सभी लोगों को प्रधानमंत्री के इस अभियान को आत्मसात करते हुए जहर मुक्त भोजन के लिए नो केमिकल खेती-ऑर्गेनिक खेती-जैविक खेती-प्राकृतिक खेती करनी चाहिए। तभी हम और हमारा समाज स्वस्थ तरीके से लंबा जीवन जी सकेगा। 
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mad4india · 4 years ago
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भारत में जवान और किसान देश की ताकत माने जाते हैं। देश का 70 प्रतिशत हिस्सा एग्रीकल्चर का काम करता है। ऐसे में ये सेक्टर देश की आर्थिक स्थिति के लिए बहुत अहम माना जाता है। हालांकि इतना अहम सेक्टर होने के बावजूद भी देश में किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इसकी वजह देश के कई इलाकों में सूखा, पानी की कमी, बिन मौसम बरसात से फसलों का खराब होना, खेती के पुराने तरीके आदि हैं।
खेती के मामले में आज भी भारत ��े ज्यादातर किसान पुराने तरीके अपनाते है, जिस व��ह से वो फसल अच्छी ना होने पर नुकसान में चले जाते हैं। भारत के कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं एग्रीकल्चर सेक्टर को बेहतर बनाने के लिए काम कर रही है, उन्हीं में से एक संस्था है – Sawyyam ।
ये संस्था अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के जरिए एग्रीकल्चर सेक्टर के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रही है। Sawyyam ने साल 2016 में The 1000 Tree Project की शुरुवात की थी। जिसे दक्षिण भारत के गांवों में शुरू किया गया। इनका उद्देश्य वनों की कटाई, मिट्टी का कटाव, असफल मानसून जैसी समस्याओं को दूर कर खेती को बेहतर बनाने के लिए काम करना है।
The 1000 Tree Project ने बदली किसानों की किस्मत
साल 2016 में सूखे के कारण साउथ में कई किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। डेफोरेस्टशन, असफल मानसून, केमिकल फार्मिंग, क्लाइमेट चेंज, बारिश का कम या ज्यादा होना फसलों की गुणवत्ता और मात्रा पर असर करता है। जिससे ज्यादातर फसल खराब हो जाती हैं और किसान ना तो कुछ कमा पाते हैं और ना ही कर्ज चुका पाते हैं।
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इसी वजह से साल 2016 में Sawyyam ने The 1000 Tree Project शुरु किया। इस प्रोजेक्ट के तहत किसानों के छोटे-छोटे ग्रुप बनाए जाते हैं। एक ग्रुप में कम से कम 4 किसान होते हैं जिसमें एक महिला किसान का होना अनिवार्य होता है। ये छोटे-छोटे ग्रुप मिलकर 10 या 10 एकड़ से ज्यादा की जमीन को ओपरेट करते हैं।
Tree Sapling System को बढ़ावा
1000 Tree Project के तहत संस्था Water Harvesting और Tree Saplings पर जोर देती है, ताकि क्लाइमेट चेंज और सूखे की समस्या को कम किया जा सके।
प्रोजेक्ट के अतंर्गत ऐसे प्रोग्राम चलाए जाते हैं जो किसानों को मिक्सड क्रॉप, वॉटर हारवेस्टिंग, Alley Cropping सिस्टम के बारे में सिखाते हैं ताकि किसान कम जगह में ज्यादा से ज्यादा फसलों की खेती कर सकें। साथ ही इस प्रोग्राम के जरिए किसानों को हर 1 एकड़ में कम से कम 100 पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है, ताकि सूखा ना पड़े।
किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है विज़न
कई भारतीय किसान आज भी पारंपरिक तरीकों से ही खेती करना पसंद करते हैं यानी कि साल में मौसम के अनुसार दो बड़ी फसलों की खेती करना। जिस वजह से खेती में नुकसान का रिस्क भी बढ़ जाता है। 1000 ट्री प्रोजेक्ट इन सब समस्याओं पर पिछले 4 साल से काम कर रहा है और किसानों को खेती की नई तकनीकों के बारे में सिखाने और जागरुक करने का प्रयास कर रहा है।
The 1000 Tree Project के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए चेक करें – Facebook, Website , Instagram.
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Sawyyam के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए चेक करें – Facebook, Website, Youtube
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acropolismediainc · 5 years ago
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गाय के खुरों में सर्प का वास है। जिस मिट्टी में गाय के कदम पड़ जाएं उस मिट्टी में कभी रोग लग ही नहीं सकते। इसके पीछे तथ्य ये दिया जाता है कि गाय में शरीर में सूरज कि किरणों को खींचने की शक्ति होती है और ये किरणें गाय के शरीर से होते हुए उसके खूरों के माध्यम से जब ज़मीन में जाती हैं तो वो मिट्टी रोगाणु मुक्त हो जाती है। ऐसी मिट्टी में खेती करने पर ना तो, फसल के पत्ते मुरझाते हैं, ना उस फसल में कोई रोग लगता है। भले ही तापमान कम या ज़्यादा हो जाए। लेकिन ऐसा केवल देसी गाय से ही सं��व होता है, विदेशी नस्ल या संकर नस्ल की गायों में ऐसा कोई गुण नहीं होता।आपको बता दें कि भारत की मूल प्रजाति की केवल 150 ही गाय हैं
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jmyusuf · 5 years ago
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प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश को 12 मई 2020 को रात 8 बजे किया गया, अपने देश के नाम सम्भोधन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा: 
शब्दशः प्रधानमंत्री
सभी देशवासियों को आदर पूर्वक नमस्कार,
कोरोना संक्रमण से मुकाबला करते हुए दुनिया को अब चार महीने से ज्यादा हो रहे हैं। इस दौरान तमाम देशों के 42 लाख से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं। पौने तीन लाख से ज्यादा लोगों की दुखद मृत्यु हुई है। भारत में भी लोगों ने अपने स्वजन खोए हैं। मैं सभी के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं।
साथियों,
एक वायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है। विश्व भर में करोड़ों जिंदगियां संकट का सामना कर रही हैं। सारी दुनिया, जिंदगी बचाने की जंग में जुटी है। हमने ऐसा संकट न देखा है, न ही सुना है। निश्चित तौर पर मानव जाति के लिए ये सब कुछ अकल्पनीय है, ये Crisis अभूतपूर्व है। लेकिन थकना, हारना, टूटना-बिखरना, मानव को मंजूर नहीं है। सतर्क रहते हुए, ऐसी जंग के सभी नियमों का पालन करते हुए, अब हमें बचना भी है और आगे भी बढ़ना है। आज जब दुनिया संकट में है, तब हमें अपना संकल्प और मजबूत करना होगा। हमारा संकल्प इस संकट से भी विराट होगा।
साथियों,
हम पिछली शताब्दी से ही सुनते आए हैं कि 21वीं सदी हिंदुस्तान की है। हमें कोरोना से पहले की दुनिया को, वैश्विक व्यवस्थाओं को विस्तार से देखने-समझने का मौका मिला है। कोरोना संकट के बाद भी दुनिया में जो स्थितियां बन रही हैं, उसे भी हम निरंतर देख रहे हैं। जब हम इन दोनों कालखंडो को भारत के नजरिए से देखते हैं तो लगता है कि 21वीं सदी भारत की हो, ये हमारा सपना नहीं, ये हम सभी की जिम्मेदारी है। लेकिन इसका मार्ग क्या हो? विश्व की आज की स्थिति हमें सिखाती है कि इसका मार्ग एक ही है- "आत्मनिर्भर भारत"। हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है- एष: पंथा: यानि यही रास्ता है- आत्मनिर्भर भारत।
साथियों,
एक राष्ट्र के रूप में आज हम एक बहुत ही अहम मोड़ पर खड़े हैं। इतनी बड़ी आपदा, भारत के लिए एक संकेत लेकर आई है, एक संदेश लेकर आई है, एक अवसर लेकर आई है। मैं एक उदाहरण के साथ अपनी बात रखूंगा। जब कोरोना संकट शुरु हुआ, तब भारत में एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी। एन-95 मास्क का भारत में नाममात्र उत्पादन होता था। आज स्थिति ये है कि भारत में ही हर रोज 2 लाख PPE और 2 लाख एन-95 मास्क बनाए जा रहे हैं। ये हम इसलिए कर पाए, क्योंकि भारत ने आपदा को अवसर में बदल दिया। आपदा को अवसर में बदलने की भारत की ये दृष्टि, आत्मनिर्भर भारत के हमारे संकल्प के लिए उतनी ही प्रभावी सिद्ध होने वाली है।
साथियों,
आज विश्व में आत्मनिर्भर शब्द के मायने बदल गए हैं, Global World में आत्मनिर्भरता की Definition बदल गई है। अर्थकेंद्रित वैश्वीकरण बनाम मानव केंद्रित वैश्वीकरण की चर्चा जोरों पर है। विश्व के सामने भारत का मूलभूत चिंतन, आशा की किरण नजर आता है। भारत की संस्कृति, भारत के संस्कार, उस आत्मनिर्भरता की बात करते हैं जिसकी आत्मा वसुधैव कुटुंबकम है। भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है, तो आत्मकेंद्रित व्यवस्था की वकालत नहीं करता।
भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता होती है। जो संस्कृति जय जगत में विश्वास रखती हो, जो जीव मात्र का कल्याण चाहती हो, जो पूरे विश्व को परिवार मानती हो, जो अपनी आस्था में 'माता भूमिः पुत्रो अहम् पृथिव्यः' की सोच रखती हो जो पृथ्वी को मां मानती हो, वो संस्कृति, वो भारतभूमि, जब आत्मनिर्भर बनती है, तब उससे एक सुखी-समृद्ध विश्व की संभावना भी सुनिश्चित होती है।
भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है। भारत के लक्ष्यों का प्रभाव, भारत के कार्यों का प्रभाव, विश्व कल्याण पर पड़ता है। जब भारत खुले में शौच से मुक्त होता है तो दुनिया की तस्वीर बदल जाती है। टीबी हो, कुपोषण हो, पोलियो हो, भारत के अभियानों का असर दुनिया पर पड़ता ही पड़ता है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस, ग्लोबर वॉर्मिंग के खिलाफ भारत की सौगात है। इंटरनेशनल योगा दिवस की पहल, मानव जीवन को तनाव से मुक्ति दिलाने के लिए भारत का उपहार है। जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही दुनिया में आज भारत की दवाइयां एक नई आशा लेकर पहुंचती हैं। इन कदमों से दुनिया भर में भारत की भूरि-भूरि प्रशंसा होती है, तो हर भारतीय गर्व करता है। दुनिया को विश्वास होने लगा है कि भारत बहुत अच्छा कर सकता है, मानव जाति के कल्याण के लिए बहुत कुछ अच्छा दे सकता है। सवाल यह है - कि आखिर कैसे? इस सवाल का भी उत्तर है- 130 करोड़ देशवासियों का आत्मनिर्भर भारत का संकल्प।
साथियों,
हमारा सदियों का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। भारत जब समृद्ध था, सोने की चिड़िया कहा जाता था, संपन्न था, तब सदा विश्व के कल्याण की राह पर ही चला। वक्त ��दल गया, देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ गया, हम विकास के लिए तरसते रहे। आज भारत विकास की ओर सफलतापूर्वक कदम बढ़ा रहा है, तब भी विश्व कल्याण की राह पर अटल है। याद करिए, इस शताब्दी की शुरुआत के समय Y2K संकट आया था। भारत के टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स ने दुनिया को उस संकट से निकाला था। आज हमारे पास साधन हैं, हमारे पास सामर्थ्य है, हमारे पास दुनिया का सबसे बेहतरीन टैलेंट है, हम Best Products बनाएंगे, अपनी Quality और बेहतर करेंगे, सप्लाई चेन को और आधुनिक बनाएंगे, ये हम कर सकते हैं और हम जरूर करेंगे।
साथियों,
मैंने अपनी आंखों से कच्छ भूकंप के वो दिन देखे हैं। हर तरफ सिर्फ मलबा ही मलबा। सब कुछ ध्वस्त हो गया था। ऐसा लगता था मानो कच्छ, मौत की चादर ओढ़कर सो गया हो। उस परिस्थिति में कोई सोच भी नहीं सकता था कि कभी हालात बदल पाएंगे। लेकिन देखते ही देखते कच्छ उठ खड़ा हुआ, कच्छ चल पड़ा, कच्छ बढ़ चला। यही हम भारतीयों की संकल्पशक्ति है। हम ठान लें तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं, कोई राह मुश्किल नहीं। और आज तो चाह भी है, राह भी है। ये है भारत को आत्मनिर्भर बनाना। भारत की संकल्पशक्ति ऐसी है कि भारत आत्मनिर्भर बन सकता है।
साथियों,
आत्मनिर्भर भारत की ये भव्य इमारत, पाँच Pillars पर खड़ी होगी। पहला पिलर Economy एक ऐसी इकॉनॉमी जो Incremental change नहीं बल्कि Quantum Jump लाए । दूसरा पिलर Infrastructure एक ऐसा Infrastructure जो आधुनिक भारत की पहचान बने। तीसरा पिलर- हमारा System- एक ऐसा सिस्टम जो बीती शताब्दी की रीति-नीति नहीं, बल्कि 21वीं सदी के सपनों को साकार करने वाली Technology Driven व्यवस्थाओं पर आधारित हो। चौथा पिलर- हमारी Demography- दुनिया की सबसे बड़ी Democracy में हमारी Vibrant Demography हमारी ताकत है, आत्मनिर्भर भारत के लिए हमारी ऊर्जा का स्रोत है। पाँचवाँ पिलर- Demand- हमारी अर्थव्यवस्था में डिमांड और सप्लाई चेन का जो चक्र है, जो ताकत है, उसे पूरी क्षमता से इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है।
देश में डिमांड बढ़ाने के लिए, डिमांड को पूरा करने के लिए, हमारी सप्लाई चेन के हर स्टेक-होल्डर का सशक्त होना जरूरी है। हमारी सप्लाई चेन, हमारी आपूर्ति की उस व्यवस्था को हम मजबूत करेंगे जिसमें मेरे देश की मिट्टी की महक हो, हमारे मजदूरों के पसीने की खुशबू हो।
साथियों,
कोरोना संकट का सामना करते हुए, नए संकल्प के साथ मैं आज एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा कर रहा हूं। ये आर्थिक पैकेज, 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' की अहम कड़ी के तौर पर काम करेगा।
साथियों,
हाल में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी जो आर्थिक घोषणाएं की थीं, ��ो रिजर्व बैंक के फैसले थे, और आज जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान हो रहा है, उसे जोड़ दें तो ये करीब-करीब 20 लाख करोड़ रुपए का है। ये पैकेज भारत की GDP का करीब-करीब 10 प्रतिशत है। इन सबके जरिए देश के विभिन्न वर्गों को, आर्थिक व्यवस्था की कड़ियों को, 20 लाख करोड़ रुपए का संबल मिलेगा, सपोर्ट मिलेगा। 20 लाख करोड़ रुपए का ये पैकेज, 2020 में देश की विकास यात्रा को, आत्मनिर्भर भारत अभियान को एक नई गति देगा। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए, इस पैकेज में Land, Labour, Liquidity और Laws, सभी पर बल दिया गया है।
ये आर्थिक पैकेज हमारे कुटीर उद्योग, गृह उद्योग, हमारे लघु-मंझोले उद्योग, हमारे MSME के लिए है, जो करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन है, जो आत्मनिर्भर भारत के हमारे संकल्प का मजबूत आधार है। ये आर्थिक पैकेज देश के उस श्रमिक के लिए है, देश के उस किसान के लिए है जो हर स्थिति, हर मौसम में देशवासियों के लिए दिन रात परिश्रम कर रहा है। ये आर्थिक पैकेज हमारे देश के मध्यम वर्ग के लिए है, जो ईमानदारी से टैक्स देता है, देश के विकास में अपना योगदान देता है। ये आर्थिक पैकेज भारतीय उद्योग जगत के लिए है जो भारत के आर्थिक सामर्थ्य को बुलंदी देने के लिए संकल्पित हैं। कल से शुरू करके, आने वाले कुछ दिनों तक, वित्त मंत्री जी द्वारा आपको 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' से प्रेरित इस आर्थिक पैकेज की विस्तार से जानकारी दी जाएगी।
साथियों,
आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए Bold Reforms की प्रतिबद्धता के साथ अब देश का आगे बढ़ना अनिवार्य है। आपने भी अनुभव किया है कि बीते 6 वर्षों में जो Reforms हुए, उनके कारण आज संकट के इस समय भी भारत की व्यवस्थाएं अधिक सक्षम, अधिक समर्थ नज़र आईं हैं। वरना कौन सोच सकता था कि भारत सरकार जो पैसा भेजेगी, वो पूरा का पूरा गरीब की जेब में, किसान की जेब में पहुंच पाएगा। लेकिन ये हुआ। वो भी तब हुआ जब तमाम सरकारी दफ्तर बंद थे, ट्रांसपोर्ट के साधन बंद थे। जनधन-आधार-मोबाइल- JAM की त्रिशक्ति से जुड़ा ये सिर्फ एक रीफॉर्म था, जिसका असर हमने अभी देखा। अब Reforms के उस दायरे को व्यापक करना है, नई ऊंचाई देनी है।
ये रिफॉर्मस खेती से जुड़ी पूरी सप्लाई चेन में होंगे, ताकि किसान भी सशक्त हो और भविष्य में कोरोना जैसे किसी दूसरे संकट में कृषि पर कम से कम असर हो। ये रिफॉर्म्स, Rational टैक्स सिस्टम, सरल और स्पष्ट नियम-कानून, उत्तम इंफ्रास्ट्रक्चर, समर्थ और सक्षम Human Resource, और मजबूत फाइनेंशियल सिस्टम के निर्माण के लिए होंगे। ये रिफॉर्म्स, बिजनेस को प्रोत्साहित करेंगे, निवेश को आकर्षित करेंगे और मेक इन इंडिया के हमारे संकल्प को सशक्त करेंगे।
साथियों,
��त्मनिर्भरता, आत्मबल और आत्मविश्वास से ही संभव है। आत्मनिर्भरता, ग्लोबल सप्लाई चेन में कड़ी स्पर्धा के लिए भी देश को तैयार करती है। और आज ये समय की मांग है कि भारत हर स्पर्धा में जीते, ग्लोबल सप्लाई चेन में बड़ी भूमिका निभाए। इसे समझते हुए, भी आर्थिक पैकेज में अनेक प्रावधान किए गए हैं। इससे हमारे सभी सेक्टर्स की Efficiency बढ़ेगी और Quality भी सुनिश्चित होगी।
साथियों,
ये संकट इतना बड़ा है, कि बड़ी से बड़ी व्यवस्थाएं हिल गई हैं। लेकिन इन्हीं परिस्थितियों में हमने, देश ने हमारे गरीब भाई-बहनों की संघर्ष-शक्ति, उनकी संयम-शक्ति का भी दर्शन किया है। खासकर हमारे जो रेहड़ी वाले भाई-बहन हैं, ठेला लगाने वाले हैं, पटरी पर सामान बेचने वाले हैं, जो हमारे श्रमिक साथी हैं, जो घरों में काम करने वाले भाई-बहन हैं, उन्होंने इस दौरान बहुत तपस्या की है, त्याग किया है। ऐसा कौन होगा जिसने उनकी अनुपस्थिति को महसूस नहीं किया। अब हमारा कर्तव्य है उन्हें ताकतवर बनाने का, उनके आर्थिक हितों के लिए कुछ बड़े कदम उठाने का। इसे ध्यान में रखते हुए गरीब हो, श्रमिक हो, प्रवासी मजदूर हों, पशुपालक हों, हमारे मछुवारे साथी हों, संगठित क्षेत्र से हों या असंगठित क्षेत्र से, हर तबके के लिए आर्थिक पैकेज में कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का ऐलान किया जाएगा।
साथियों,
कोरोना संकट ने हमें Local Manufacturing, Local Market, Local Supply Chain, का भी महत्व समझाया है। संकट के समय में, Local ने ही हमारी Demand पूरी की है, हमें इस Local ने ही बचाया है। Local सिर्फ जरूरत नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी है। समय ने हमें सिखाया है कि Local को हमें अपना जीवन मंत्र बनाना ही होगा।
आपको आज जो Global Brands लगते हैं वो भी कभी ऐसे ही बिल्कुल Local थे। लेकिन जब वहां के लोगों ने उनका इस्तेमाल शुरू किया, उनका प्रचार शुरू किया, उनकी ब्रांडिंग की, उन पर गर्व किया, तो वो Products, Local से Global बन गए। इसलिए, आज से हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए वोकल बनना है, न सिर्फ लोकल Products खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है।
मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा देश ऐसा कर सकता है। आपके प्रयासों ने, तो हर बार, आपके प्रति मेरी श्रद्धा को और बढ़ाया है। मैं गर्व के साथ एक बात महसूस करता हूं, याद करता हूं। जब मैंने आपसे, देश से खादी खरीदने का आग्रह किया था। ये भी कहा था कि देश के हैंडलूम वर्कर्स को सपोर्ट करें। आप देखिए, बहुत ही कम समय में खादी और हैंडलूम, दोनों की ही डिमांड और बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। इतना ही नहीं, उसे आपने बड़ा ब्रांड भी बना दिया। बहुत छोटा सा प्रयास था, लेकिन परिणाम मिला, बहुत अच्छा परिणाम मिला।
साथियों,
सभी एक्सपर्ट्स बताते हैं, सा��ंटिस्ट बताते हैं कि कोरोना लंबे समय तक हमारे जीवन का हिस्सा बना रहेगा। लेकिन साथ ही, हम ऐसा भी नहीं होने दे सकते कि हमारी जिंदगी सिर्फ कोरोना के इर्द-गिर्द ही सिमटकर रह जाए। हम मास्क पहनेंगे, दो गज की दूरी का पालन करेंगे लेकिन अपने लक्ष्यों को दूर नहीं होने देंगे।
इसलि���, लॉकडाउन का चौथा चरण, लॉकडाउन 4, पूरी तरह नए रंग रूप वाला होगा, नए नियमों वाला होगा। राज्यों से हमें जो सुझाव मिल रहे हैं, उनके आधार पर लॉकडाउन 4 से जुड़ी जानकारी भी आपको 18 मई से पहले दी जाएगी। मुझे पूरा भरोसा है कि नियमों का पालन करते हुए, हम कोरोना से लड़ेंगे भी और आगे भी बढ़ेंगे।
साथियों,
हमारे यहाँ कहा गया है- 'सर्वम् आत्म वशं सुखम्' अर्थात, जो हमारे वश में है, जो हमारे नियंत्रण में है वही सुख है। आत्मनिर्भरता हमें सुख और संतोष देने के साथ-साथ सशक्त भी करती है। 21वीं सदी, भारत की सदी बनाने का हमारा दायित्व, आत्मनिर्भर भारत के प्रण से ही पूरा होगा। इस दायित्व को 130 करोड़ देशवासियों की प्राणशक्ति से ही ऊर्जा मिलेगी। आत्मनिर्भर भारत का ये युग, हर भारतवासी के लिए नूतन प्रण भी होगा, नूतन पर्व भी होगा। अब एक नई प्राणशक्ति, नई संकल्पशक्ति के साथ हमें आगे बढ़ना है। जब आचार-विचार कर्तव्य भाव से सराबोर हो, कर्मठता की पराकाष्ठा हो, कौशल्य की पूंजी हो, तो आत्मनिर्भर भारत बनने से कौन रोक सकता है? हम भारत को आत्म निर्भर भारत बना सकते हैं। हम भारत को आत्म निर्भर बनाकर रहेंगे। इस संकल्प के साथ, इस विश्वास के साथ, मैं आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
आप अपने स्वास्थ्य का, अपने परिवार, अपने करीबियों का ध्यान रखिए।
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khetikisaniwala · 2 years ago
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"जैविक खेती: एक लाभकारी और Top ऑर्गैनिक खेती से पर्यावरण को लाभ
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जैविक खेती के नियम के अनुसार भारत में कुछ जैवी खेती या ऑर्गैनिक खेती इस प्रकार है -orgainic farming , भारत में जैविक खेती, जैविक खेती की आवश्यकता , जैविक परिभाषा , जैविक खेती के घटक,जैविक खेती का विकास , जैविक खेती का प्रोजेक्ट,से होने वाले लाभ और परिणाम के बारे में आज अपने ब्लॉग पोस्ट में बात करेंगे |
जैविक खेती
अपना खेती , अपना बीज , अपना खाद , अपना स्वाद
परिचय -
जैविक खेती एक ऐसी खेती होती है जिसमे हम पर्यावरण को कोई हानि नहीं होने देते जिसकी वजह से हमारे ��ेतो की प्राकतिक संतुलन भी कायम रहता है |इसमें हम भूमि में जल और वायु को बिना दुसित किये लम्बे समय तक उत्पादन को प्राप्त करने में सफल रहते है| जैविक खेती में हम बहुत ही कम रसायनिक उपयोग करते है या फिर जरुरत के अनुसार उपयोग करते है |
यह कृषि रसायनिक पद्दति के अनुसार सस्ती और स्वालम्बी एवं स्थाई होती है | कृषक इसकी मिटटी को जीवित मानते है |इस तरह के भूमि में जीवो का अंश माना जाता है | जैविक खेती में जीवांश के रूप में गोबर , पौधे ,व जीवो के अवशेस इत्यादि को खाद के रूप में जमीं या भूमि को प्राप्त होता है |
जीवांश खादों के प्रयोग से पौधों के समस्त पोषक तत्वो से प्राप्त हो जाते हैं। साथ हीसाथ इनके प्रयोग से उगाई गयी फसलों पर बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप बहुत कम हो जाता है, जिससे हानिकारक रसायन, कीटनाशकों के छिड़काव की जरुरत नहीं पड़ती है। इसका परिणाम यह मिलता है, कि -फसलों से प्राप्त खाद्य , फल एवं सब्जी आदि हानिकारक रसायनों से पूर्णतः मुक्त हो जाते हैं, जीवांश खाद के प्रयोग से उत्पादित खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट,एवं पोषक - तत्वों से भरपूर एवं रसायनों से मुक्त रहते हैं। जैविक खेती के लिए जीवांश जैसे- गोबर की खाद (नैडप विधि) वर्मी कम्पोस्ट, जैव उर्वरक एवं हरी खाद का प्रयोग भूमि में किया जाना जरुरी है।
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1.नादेप कम्पोस्ट :
कम्पोस्ट बनाने का एक नया विकसित तरीका नादेप विधि है, जिसमें महाराष्ट्र के कृषक नारायण राव पान्डरी पाडे (नाडेप काका) ने खोज की है ।इस नादेप विधि में कम्पोस्ट खाद जमीन की सतह पर टांका बनाकर उसमें प्रक्षेत्र अवशेष तथा बराबर मात्रा में खेत की मिट्टी तथा गोबर को मिक्स करके बनाया जाता है। इस विधि से 01 किलो गोबर से 30 किलो खाद चार माह में बनकर तैयार हो जाती है । नादेप कम्पोस्ट निम्न तरीको द्वारा ��ैयार किया जाता है---
(1) टांका बनाना :
नादेप कम्पोस्ट का टांका उस स्थान पर बनाये जाना चाहिए जहाँ भूमि समतल (Plane)हो तथा जल भराव की समस्या न हो। टांका के निर्माण हेतु आंतरिक माप 10 fut लम्बी, 6 fut चौड़ी और 3 fut गहरी होना चाहिए । इससे गड्ढे की मापन से टांका का आयतन 180 घन फुट हो जाता है। टांका बिधि में टांका की दीवार लगभग 9 Inch चौड़ी रखना। दीवार बनाने में कुछ बाते याद रखना जरुरी है | जैसे - कि बीच- बीच(Mid) में छेद छोड़ छोड़ना जरुरी होता है | इस प्रकार कि टांका में वायु का स्थान्तरण बना रहे , और खाद सामग्री आसानी से पक जाये । प्रत्येक दो ईटों के बाद तीसरी ईंट की जुड़ाई करते समय 7 इंच(Inch) का छेद छोड़ देना जरुरी है । 3 फुट ऊँची दीवार में पहले, तीसरे छठे और नवें रदे में छेद बनाना चाहिए। दीवार के भीतरी व बाहरी हिस्से को गाय या भैंस के गोबर से अच्छे से लीप दिया जाता है और फिर तैयार टांका को सूख जाने देना चाहिए। इस प्रकार के बने टांका में नादेप खाद बनाने के लिये मुख्य रूप से 4 चीजों की जरुरत पड़ती है |
पहली : व्यर्थ पदार्थ(Waist Material) या कचरा जैसे- सूखे एवं हरे पत्ते, डंठल,छिलके, जड़ें व बारीक टहनियां एवं व्यर्थ खाद पदार्थ (Waist Material) आदि । हमे ध्यान रखना चाहिए की इसमें कोई पल्स्टिक व कांच का कोई ख़राब पदार्थ न पड़पाये |इस प्रकार कचरे की मात्रा 1500 किलोग्राम(kg ) की जरुरत होती है।
दूसरी : गाय या भैंस का गोबर 100 किलोग्राम से गैस संयंत्र से निकाले गए गोबर का घोल ।
तीसरी : 1750 किलोग्राम मिट्टी चाहिए जो की सूखी महीन छनी हुई तालाब या नाले से निकाली गयी मिटटी । अगर गौसले की मिटटी मिल जाये तो अति उत्तम रहेगी ।उस मिट्टी में प्लास्टिक /पॉलीथीन नहीं होना चाहिए ।
चौथी : पानी की जरुरत मौसम पर निर्भर करता है। बरसात में उस जगहे हो जहाँ पानी की जरुरत कम हो | और उस जगहे पर गर्मी के मौसम में अधिक पानी की जरुरत होगी। लगभग 2000 लीटर की जरुरत पड़ेगी । इसमें अगर आप गो-मूत्र या अन्य पशु- मूत्र मिला देने से नादेप खाद की गुणवत्ता(Quality) में बढ़ोत्तरी होगी ।
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sahu4you · 5 years ago
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नींबू घास की खेती - लेमन ग्रास से जुडी जानकारी
लेमन ग्रास की उन्नत खेती से जुडी जानकारी: क्या आप लेमन ग्रास की उन्नत खेती करना चाहते है पर यह नहीं मालूम की इसे कैसे किया जाये? जानिए इस नींबू घास की खेती कैसे करे डिजीज सीड प्लांटेशन आदि इनफार्मेशन. यह पतला और लंबे पत्तों के साथ एक बारहमासी पौधे है और यह भारत और अन्य देशों में पाया जाता है।
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nimbu ghaans ki kgeti kaise karen नींबू घास सुगंधित फसल में से एक और यह भारत में वाणिज्यिक रूप से खेती की जाती है। यह पौधा पोसै के परिवार के अंतर्गत आता है और उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय अफ्रीका के कई हिस्सों में पाया जाता है। यह मुख्य रूप से पश्चिमी घाट (केरल महाराष्ट्र) तमिलनाडु असम और कर्नाटक के साथ भारत में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे शहरों में खेती की जाती है। लीची की वैज्ञानिक खेती कैसे करें? (Organic Farming Litchi) गन्ने की व्यावसायिक खेती कैसे करें? गन्ने की खेती जिमीकंद की खेती कैसे करें? नींबू घास के बहुत अधिक औषधीय गुण और स्वास्थ्य लाभ हैं। यह सबसे अच्छा सुगंधित स्वाद के लिए नियमित चाय में इस्तेमाल किया जा सकता है। तो चलिए जाने लेमन ग्रास (Lemon Grass) की खेती से संबंधित कुछ जानकारियों के बारे में। नींबू घास की खेती - लेमन ग्रास की उन्नत खेती नींबू घास से तेल बनाई जाती है जो की इसके पौधे के पत्तों तथा फूलों से बनाया जाता है। इस पौधे से निर्मित तेल में अधिक से अधिक प्रतिशत Citral के कारण इसकी खुसबू नींबू की तरह देते हैं। तेल की यह Citral गंध हर्बल उत्पादों, डिटर्जेंट, साबुन Scenting, और कीट विकर्षक को बनाने में उपयोग किया जाता है। Lemon Grass Oil का प्रमुख उपयोग Citral का एक स्रोत है, जिसका उपयोग सुगंध, सौंदर्य पदार्थ और पेय पदार्थों में किया जाता है। 1. नींबू घास के लिए जलवायु: नींबू घास की खेती के लिए गर्म आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती ह�� और वर्ष भर में 200 से 250 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। नींबू घास की खेती कम वर्षा वाले इलाके में संभव तभी है जब उस क्षेत्र में वैकल्पिक रूप से सिंचाई प्रणाली की सुविधा हो। 2. नींबू घास के लिए मिट्टी: Lemon Grass समृद्ध Loamy मिट्टी की एक विस्तृत श्रृंखला में अच्छी तरह से पनपती है। लेकिन अच्छी तरह से जल निकासी और अच्छे कार्बनिक पदार्थ के साथ चिकनी बलुई मिट्टी और लाल मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होता है। Water Logged वाली मिट्टी को इसकी खेती के लिए नहीं माना जाना जाता है। 3. नींबू घास बीज दर: लीमन ग्रास की खेती में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 2.5 किलोग्राम की आवश्यकता होती है। 4. नींबू घास की नर्सरी: नर्सरी में उठाए गए बीज के माध्यम से नींबू घास की फसल सबसे अच्छी होती है, ताजे बीज के 2.5 से 3 किलोग्राम वृक्षारोपण के लिए अंकुर एक हेक्टेयर भूमि क�� उत्पादन करता है। इन्हें 60 Cm X 80 Cm की दुरी में नर्सरी की जाती है। वृक्षारोपण के एक हेक्टेयर में करीब 25,000 Slips की आवश्यक होती हैं। 5. भूमि की तैयारी: खेत की तैयारी खुदाई कर या खेत को जोत कर करे। खेत को अच्छे से जोतने के बाद खेतों में 30 से 35 Cm चौड़ी Trenches का निर्माण करे। इन Trenches में अच्छी तरह से सड़े हुए खाद को मिट्टी के साथ मिलाया जाना चाहिए। 2 पंक्तियों में 20 Cm की दूरी पर उथले खाइयों में 20 से 30 दिन के पुराने नींबू घास के पौधों को Transplant करें। बरसात के मौसम के दौरान, उठाए गए मेड़ेहों पर रोपण करना चाहिए। 5. नींबू घास रोपण समय: नींबू घास की बागबानी मई के अंतिम सप्ताह या जून के पहले सप्ताह में किया जाना चाहिए। नींबू घास लगाने से पहले, मुख्य क्षेत्र को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है और 6 मीटर X 6 मीटर आकार के मेड में रखा जाता है। मिट्टी पोटाश और फास्फोरस की पूर्ण मात्रा से पूरक होना चाहिए। अक्टूबर से नवंबर महीने के अलावा सिंचाई करने वाले क्षेत्र में वर्ष के किसी भी समय नींबू घास को लगाया जा सकता है । 6. खाद और उर्वरक: गोबर या जैविक खाद के साथ मिट्टी को पूरक करे। नींबू की खेती करने के लिए जैविक खाद 25 Tonnes/Ha पर्याप्त होता है। जब खेतो में N.P.K का इस्तेमाल करने की बात आती है, तो रोपण के समय 30 किलो N 30 किलो P और 30 Kg K प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है। बाकी के बचे Nitrogen (70 To 90 Kg) फसल के बढ़ते मौसम के दौरान 3 या 4 बार देना चाहिए। 7. कीट और रोग: उच्च पैदावार, समानता के बीज और तेल के लिए Lemongrass वृक्षारोपण में कीट और रोग नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण होता है :- कीट: Stem Boring Caterpillar और Nematodes ये दो आम कीट-कीटनाशक हैं जो कि Lemon Grass की खेती में पाए जाते हैं। इन कीटों और उनके नियंत्रण उपायों के लक्षणों के लिए अपने Horticulture Department (बागवानी विभाग) से संपर्क करें। रोग: Leaf Blight, Red Leaf Spot, And Little Leaf Or Grassy Shoot लेमन ग्रास की खेती में पाए जाने वाले आम रोग हैं। इन रोगों के लक्षणों और उनके नियंत्रण उपायों के लिए अपने बागवानी विभाग से संपर्क करें। 8. सिंचाई का समय: खेतों को प्रत्येक Alternate दिनों में 4 सप्ताह तक सिचाई करना चाहिए, और फिर मौसम और मिट्टी के प्रकार के आधार पर सप्ताह में एक बार सिचाई किया जाना चाहिए। बरसात के मौसम में, सिंचाई की जरूरत नहीं होती है लेकिन खेतों से उचित जल निकासी होनी चाहिए। 9. खरपतवार नियंत्रण: मुख्य क्षेत्र को नींबू घास के लगाने के बाद पहले 3 से 4 महीने के लिए खेतों को खरपतवार मुक्त रखा जाता है। आम तौर पर, एक वर्ष के दौरान 2 से 3 बार खेतों से खर पतवारों की सफाई करने की आवश्यकता होती है। 10. कटाई: रोपण के बाद 90 दिनों में नींबू घास कटाई के लिए तैयार हो जाता है। घास को जमीन स्तर से 10 से 15 सेमी के ऊपर ��े काटना चाहिए। मौसम की स्थिति के अनुसार एक वर्ष में 5 से 6 गुना घास की कटाई की जा सकती है। 11. प्राप्ति: फसल की पैदावार पर कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे, किस्म, सिंचाई, फसल की उम्र और फसल प्रबंधन। प्रथम वर्ष में 25 किलोग्राम / हेक्ट दुसरे वर्ष के बाद 75 - 100 किलोग्राम / हेक्ट 12. नीबू घास को बेचना: यदि बड़े पैमाने पर लेमनग्रास उगाया जाता है, तो यह उचित मार्केटिंग दृष्टिकोण की सलाह दी जाती है की थोक खरीद गेहूं की खेती कैसे करें (Wheat Farming) मूंगफली की वैज्ञानिक खेती की जानकारी सहजन (Drumstick की वैज्ञानिक खेती कैसे करें? नींबू घास की खेती: जी हाँ दोस्तों, आपको आज की पोस्ट कैसी लगी, आज हमने आपको बताया Nimbu Ghaans Ki Kheti Kaise Kare और Lemon Grass Kya Hai बहुत आसान शब्दों में, हमने आज की पोस्ट में भी सीखा। आज मैंने इस पोस्ट में Lemon Grass Farming in Hindi सीखा। आपको इस पोस्ट की जानकारी अपने दोस्तों को भी देनी चाहिए। वे और सोशल मीडिया पर भी यह पोस्ट ज़रूर साझा करें। इसके अलावा, कई लोग इस जानकारी तक पहुंच सकते हैं। यदि आप हमारी वेबसाइट के नवीनतम अपडेट पाना चाहते है उसके लिए Sahu4You.com को Visit करते रहे साथ ही हमसे Facebook, Twitter और Instagram पर जरूर जुड़े। Read the full article
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bansgaonbhim · 5 years ago
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गांव में खाली पड़े सरकारी भूमि पर दबंगों का कब्जा गांव में खाली पड़े सरकारी भूमि पर दबंगों का कब्जा बांसगांव l विकासखंड के अंतर्गत धोबौली गहरवार में भू माफिया का आतंक बढ़ गया है। द गांव में वर्षों से खाली पड़े सरकारी जमीनों पर कब्जा किया गया है । खाली पड़े सरकारी जूनियर हाई स्कूल पर कब्जा करके वर्षों से खेती की जा रही है साथ ही साथ पोखरी को पाटकर भी, साथ ही साथ चक मार्ग भी कब्जा कर लिया गया है। और इसके साथ ही जेसीबी मशीन लगा कर लाखो रुपए की पोखरे के भिटा की मिट्टी बेच गया है इसके साथ ही साथ प्राथमिक विद्यालय के भूमि पर घर का कूड़ा रखकर भी कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। जिसकी सूचना गांव के अभय सिंह द्वारा जिलाधिकारी से मिलकर लिखित प्रार्थना पत्र दिया गया और आग्रह किया गया कि सभी बिंदुओं की निष्पकष जांच कराई जाए और हो रहे इन अवैध कब्जों से भूमि को मुक्त कराया जाए। जिसके लिए जिलाधिकारी ने एसडीएम को बांसगांव तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिए हैं।
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welcometochinakasoori · 5 years ago
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भूटान में क्या मच्छर मारना भी पाप है?
युवा माधवी शर्मा मुस्कुराते हुए ये बात हमें बताती हैं. उनका परिवार धान की खेती करता है और जानवर पाल कर अपना गुज़र-बसर करता है.
माधवी, भूटान के दक्षिणी इलाक़े में स्थित गांव समटेलिंग की रहने वाली हैं. माधवी का परिवार शाम का वक़्त किचेन में गुज़ारता है. वहां वो खुले चूल्हे में खाना पकाते हैं. इसके धुएं से कीड़े-मकोड़े भाग जाते हैं.
माधवी शर्मा ने दसवीं तक पढ़ाई की है. वो भी मुंहज़बानी और सरकारी अभियानों की मदद से उन्हें मलेरिया और उन्हें डेंगू के ख़तरों का अच्छे से अंदाज़ा है. दोनों ही बीमारियां मच्छरों से फैलती हैं.
माधवी का परिवार कभी भी अपनी रिहाइश के आस-पास पानी नहीं रुकने देता. वो मच्छरदानी लगाकर सोते हैं, जिन्हें सरकार की तरफ़ से बांटा गया है. माधवी के 14 महीने के बच्चे के लिए एक खटोला है. उस में भी मच्छरदानी लगी हुई है.
शर्मा परिवार के घर में साल में दो बार कीटनाशकों का छिड़काव होता है. परिवार ने घर की दीवारों पर मिट्टी और गोबर का लेप लगा रखा है. घर की दीवारों के बीच दरारें हैं. इस वजह से मच्छरदानी की ज़रूरत और बढ़ जाती है.
मच्छरदानी, कीटनाशकों का छिड़काव और लोगों को मच्छरों के ख़तरे के प्रति जागरूक करना, सब भूटान सरकार के मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम का हिस्सा है. ये कार्यक्रम 1960 के दशक में शुरू हुआ था. लेकिन इसका असर 1990 के बाद दिखना शुरू हुआ.
1994 में भूटान में मलेरिया के 40 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए थे. इन मरीज़ों में से 68 की मौत हो गई थी. लेकिन, 2018 के आते-आते मलेरिया के केवल 54 केस सामने आए.
इनमें से भी केवल 6 ही भूटान के मूल निवासी थे. मलेरिया से भूटान में 2017 में 21 साल के एक सैनिक की मौत हो गई थी. ये सैनिक भूटान की भारत से लगने वाली सीमा पर तैनात था. वो अस्पताल इतनी देर से पहुंचा था कि डॉक्टर उसे नहीं बचा सके.
मलेरिया की वजह से लोगों के काम करने की क्षमता घट जाती है. उनकी ख़ुशहाली कम हो जाती है. और बहुत बिगड़े मामलों में जान भी चली जाती है. इसीलिए, भूटान के अधिकारी इस बीमारी को अपने देश से जड़ से मिटाने की मुहिम चला रहे हैं. लेकिन, इस मिशन में क़ामयाबी के लिए भूटान को अपने विशाल पड़ोसी भारत से सहयोग की ज़रूरत होगी.
जब कोई देश मलेरिया से मुक्त होता है, तो ये जश्न की बात होती है. एक दशक में गिने-चुने देश ��ी ये क़ामयाबी हासिल कर पाते हैं. इससे देश के संसाधन दूसरी बीमारियों से लड़ने के काम आते हैं.
फिर, परजीवी कीटाणुओं का समूल नाश करने से उनके अंदर दवाओं से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी नहीं विकसित हो पाती है. क्योंकि मलेरिया से लड़ने के लिए गिनी-चुनी दवाएं ही उपलब्ध हैं.
भूटान को ये देखने की भी ज़रूरत है कि क्या वो मलेरिया मुक्त देश बनने की मंज़िल तक पहले भी पहुंच सकता था?
इस बीमारी से लड़ने की कोशिश कर रहे भूटान की एक धार्मिक चुनौती भी है. एक बौद्ध देश होने की वजह से भूटान में किसी भी जीव को मारना पाप माना जाता है.
भले ही वो बीमारी फैलाने वाला कीटाणु ही क्यों न हो. ऐसे में मलेरिया से बचने के लिए दवाएं छिड़कने वाले अधिकारियों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.
भूटान के पहले कीट वैज्ञानिक रिनज़िन नामगे उन दिनों को याद कर के बताते हैं, "हम लोगों को ये समझाते थे कि हम तो बस दवा छिड़क रहे हैं. अब कोई मच्छर यहां आकर ख़ुदकुशी करना चाहता है, तो उस में कोई क्या कर सकता है."
आज से कई दशक पहले छिड़काव करने वालों को घरों के भीतर कई बार तो ज़बरदस्ती घुसना पड़ता था. क्योंकि लोग विरोध करते थे.
जब हमारी मुलाक़ात ड्रक डायग्नोस्टिक सेंटर की ऑफ़िस मैनेजर डेनचेन वांगमो से हुई, तो बड़ा दिलतस्प वाक़या हुआ. जब हमने पूछा कि क्या हम किसी तिलचट्टे को पैर से दबा सकते हैं. तो डेनचेन ने कहा कि क़तई नहीं.
उन्होंने कहा, "ऐसा करना पाप है. हालांकि वो बाद में हँस पड़ीं. डेनचेन, भारत से रोज़ भूटान मज़दूरी करने आने वालों की पड़ताल करती हैं. जांच ये होती है कि कहीं वो अपने साथ मलेरिया के परजीवी तो नहीं ला रहे हैं."
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gethealthy18-blog · 6 years ago
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जिनसेंग के 13 फायदे, उपयोग और नुकसान – Ginseng Benefits, Uses and Side Effects in Hindi
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जिनसेंग के 13 फायदे, उपयोग और नुकसान – Ginseng Benefits, Uses and Side Effects in Hindi
Ankit Rastogi Hyderabd040-395603080 July 19, 2019
आयुर्वेद में हजारों सालों से एक नाम बहुत ज्यादा चलन में है, जिनसेंग। यह एक औषधीय पौधा है, जिसे कई गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस पौधे के गुण ही हैं, जो इसे आयुर्विज्ञान में मौजूद किसी अन्य जड़ी-बूटी से बेहतर और प्रचलित बनाते हैं। बताया जाता है कि यह औषधि इतनी कारगर और अचूक है कि आज इसे करीब छह मिलियन से ज्यादा अमरीकी नियमित रूप से इस्तेमाल करते हैं। माना जाता है कि जिनसेंग के फायदे अनगिनत हैं। इसमें शरीर की उत्तेजना बढ़ाने, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने, फ्लू जैसे कई संक्रमणों से मुकाबला करने की अद्भुत क्षमता ��ाई जाती है (1)। स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम जिनसेंग के ऐसे ही कई गुणों और चमत्कारी फायदों के बारे में जानेंगे।
विषय सूची
जिनसेंग के फायदे के बारे में जानने से पहले जरूरी होगा कि हम जिनसेंग के बारे में थोड़ा और अच्छे से जान लें।
जिनसेंग क्या हैं – What is Ginseng in Hindi
सबसे पहले हम लेख में जानेंगे कि जिनसेंग क्या है। बता दें जीनस पैनाक्स (genus panax) नामक पौधे की जड़ को जिनसेंग कहा जाता है। इसका स्वाद कड़वा और मसालेदार होता है। यह पौधा अरिलियासी (Araliaceae) परिवार से संबंध रखता है। बताया जाता है कि दुनिया में जिनसेंग की करीब 11 प्रजातियां मौजूद हैं। वहीं प्रकार की बात करें, तो मुख्य रूप से जिनसेंग के पांच प्रकार अधिक चलन में हैं, जिन्हें एशियाई जिनसेंग, अमेरिकी जिनसेंग, साइबेरियाई जिनसेंग, भारतीय जिनसेंग व ब्राजील जिनसेंग के नाम से जाना जाता है।
आगे के लेख में हम जिनसेंग के सभी प्रकारों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
जिनसेंग के प्रकार – Types of Ginseng in Hindi
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जैसा कि इस लेख के शुरुआत में बताया कि प्रजातियों के आधार पर जिनसेंग को करीब 11 भागों में विभाजित किया गया है। आइए, उनके बारे में थोड़ा अच्छे से जान लेते हैं (2)।
ओरिएंटल जिनसेंग- ओरिएंटल जिनसेंग को पैनेक्स जिनसेंग के नाम से भी जाना जाता है। जिनसेंग का यह प्रकार मूल रूप से चीन और कोरिया से ताल्लुक रखता है। कहा जाता है कि इसे सदियों पहले बड़ी भारी मात्रा में पाया गया था। बताया जाता है कि लोकप्रियता के कारण यह लगभग विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया था। बाद में इसकी पैदावार के तरीके को खोजा गया। आज यह आसानी से उपलब्ध होने वाला जिनसेंग का एक प्रकार है।
वाइल्ड ओरिएंटल जिनसेंग- यह जिनसेंग का एक दुर्लभ प्रकार है, जो आसानी से नहीं मिलता। कहा जाता है कि 221 ईसा पूर्व में सम्राट शोआंगते ने करीब 3,000 से ज्यादा सिपाहियों को इस जड़ी-बूटी की खोज में भेजा था। जिनसेंग का यह प्रकार इतना दुर्लभ है कि करीब 28 ग्राम वाइल्ड ओरिएंटल जिनसेंग की कीमत लगभग 13 लाख रूपये से भी ज्यादा है। 
कल्टीवेटेड ओरिएंटल जिनसेंग- यह जिनसेंग का एक आम प्रकार है, जो आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसे खेती कर उगाया जाता है। इस कारण पूरे अमेरिका में इसकी खरीद-फरोख्त सस्ते दामों पर होती है।
व्हाइट जिनसेंग- पूरी तरह से प्राकृतिक रंग होने के कारण जिनसेंग के इस प्रकार को व्हाइट जिनसेंग के नाम से पुकारा जाता है। कटाई और धुलाई के बाद जब जिनसेंग को सुखाया जाता है, तो यह सुर्ख सफेद रंग ले लेता है और यही इसकी पहचान है। 
रेड जिनसेंग- लाल जिनसेंग, जिनसेंग का वह प्रकार है, जिसे लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए भाप और ताप से गुजारा जाता है। इस कारण यह लाल रंग में परिवर्तित हो जाता है। दावा किया जाता है कि व्हाइट जिनसेंग के मुकाबले रेड जिनसेंग अत्यधिक प्रभावकारी साबित होती है।
अमेरिकन जिनसेंग- जिनसेंग का यह प्रकार खासतौर पर अपालाचियन पर्वतीय क्षेत्र में मौजूद जंगलों में पाया जाता है।
वाइल्ड अमेरिकन जिनसेंग- जिनसेंग का यह प्रकार अपने आप ही पैदा होता है। यह खासकर उन अमेरिकी जंगलों में ज्यादा पाया जाता है, जहां पेड़ों की मजबूत लकड़ियां छाया में रहती हैं।
वुड्स-ग्रोन अमेरिकन जिनसेंग- जिनसेंग के इस प्रकार को उगाने के लिए प्राकृतिक माहौल का सहारा लिया जाता है। इनकी पैदावार जंगलों में ही की जाती है। बेहतर परिणामों के लिए खेती वाली जगह पर अलग से मिट्टी लाकर डाली जाती है।
कल्टीवेटेड अमेरिकन जिनसेंग- जिनसेंग के इस प्रकार की खेती कृत्रिम शेड में की जाती है। इनके बढ़ने के लिए पेड़ों की छाया वाले स्थान का उपयोग किया जाता है। बता दें कि कनाडा में इस प्रकार के जिनसेंग की खेती काफी मशहूर हैं।
साइबेरियन जिनसेंग- जिनसेंग का एक ऐसा प्रकार, जो वाकई में एक जिनसेंग नहीं है। इसे केवल जिनसेंग के नाम से बाजार में उपलब्ध कराया जाता है। यह पौधा जिनसेंग से मिलता-जुलता है। इसमें जिनसेंग जैसे एडाप्टोजेनिक गुण शामिल रहते हैं। साथ ही यह सामान्य जिनसेंग के मुकाबले काफी सस्ता है।
वाइल्ड रेड अमेरिकन (डेसर्ट) जिनसेंग- यह देशी अमेरिकी पौधा है। इसे कैनिग्रे या रुमेक्स कहा जाता है। इसका अनुचित तरीके से उपयोग जहरीला और घातक साबित हो सकता है।
प्रकारों से अच्छी तरह अवगत होने के बाद अब आगे के लेख में हम जिनसेंग के फायदे जानने की कोशिश करेंगे।
जिनसेंग के फायदे – Benefits of Ginseng in Hindi
1. ऊर्जा के स्तर में सुधार
विशेषज्ञों की मानें तो जिनसेंग एक बेहतरीन एनर्जी बूस्टर के तौर पर काम करता है। इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व थकान जैसे विकारों को दूर कर शरीर में ऊर्जा का संचार करते हैं। इसलिए, इसका उपयोग उन लोगों के शारीरिक और मानसिक सुधार के लिए किया जा सकता है, जिनमें एनर्जी की कमी के कारण निर्जीवता का एहसास पैदा हो जाता है (3)। अभी इस संबंध में कम ही वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है, इसलिए शारीरिक कमजोरी के मामले में इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।
2. कैंसर में लाभकारी 
जिनसेंग और कैंसर से संबंधित शोध के आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि कैंसर बीमारी एक लंबे समय तक रहने वाले तनाव की तरह होता है। ऐसे में अगर जिनसेंग के उपयोग से व्यक्ति के तनाव को दूर कर शारीरिक क्रियाशीलता को बढ़ा दिया जाए, तो ��स गंभीर बीमारी पर विजय प्राप्त की जा सकती हैं। इस तरह जिनसेंग के इस्तेमाल से रोगी को कैंसर में काफी हद तक आराम मिल सकता है (4)।
3. वजन घटाने में मददगार
वजन घटाने के लिए भी जिनसेंग को इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इसमें एंटी-ओबेसिटी गुण होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जिनसेंग शरीर में पाचन क्रिया को मजबूत बनाने का काम करता है। साथ ही यह शरीर पर अतिरिक्त वसा को चढ़ने नहीं देता और वजन घटाने में लाभकारी सिद्ध होता है (5) (6)।
4. डायबिटीज में मिलता है आराम 
खाना खाने से दो घंटे पूर्व 3 ग्राम जिनसेंग का सेवन भोजन के बाद टाइप-2 डायबिटीज के रोगी में बढ़ने वाली रक्त शर्करा की मात्रा को कंट्रोल कर सकता है। वहीं, कुछ मामलों में यह भी पाया गया है कि भोजन के पूर्व जिनसेंग की अधिक मात्रा का कोई बड़ा प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता है। वहीं, विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अलग-अलग जिनसेंग उत्पादों के प्रभाव भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इसका कारण उनमें पाए जाने वाले रसायन हैं, जिन्हें जिनसिनोसाइड्स कहा जाता है (1)।
5. यौन रोग में सुधार 
जिनसेंग को यौन रोगों के उपचार के लिए भी लाभकारी माना गया है। यह यौन शिथिलता में मददगार साबित हो सकता है (7)। इसलिए, इसे हर्बल वियाग्रा भी कहा जाता है। बता दें कि इसमें जिनसिनोसाइड्स मौजूद होता है, जो नाइट्रिक ऑक्साइड के स्तर को बढ़ाकर लिंग में रक्त प्रवाह को बढ़ावा देता है। साथ ही कामइच्छा को भी प्रेरित करता है। वहीं, कुछ शोध से इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि जिनसेंग को पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन (पुरुषत्व बढ़ाने वाला हार्मोन) के स्तर को गति देने के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है (8)।
6. मानसिक क्षमता का विकास 
शोधकर्ताओं के मुताबिक जिनसेंग का उपयोग इंसान में दिमागी क्षमता को बढ़ावा देता है (9)। वहीं, एक शोध में पाया गया है कि इसकी सहायता से अल्जाइमर (याददाश्त कमजोर होने की बीमारी) के लक्षणों को भी काफी हद तक सुधारा जा सकता है (10)।
7. तनाव को करता है मुक्त
वहीं, एक अन्य शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि दिमागी क्षमता के विकास के साथ-साथ जिनसेंग का उपयोग दिमागी तनाव को कम करने और मानसिक भावनाओं को ठीक करने में भी लाभकारी साबित हो सकता है (11)।
8. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार 
जिनसेंग को लेकर किए गए शोध में शोधकर्ताओं ने इस बात का भी पता लगाया है कि इसका उपयोग कई संक्रामक बीमारियों से निजात दिलाने में कारगर साबित हो सकता है। दरअसल, जिनसेंग एक रेजिस्टेंस बूस्टर की तरह काम करता है, जो संक्रामक बीमारियों को फैलाने वाले वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देता है (12)।
9. बुढ़ापा जाता है दूर
जिनसेंग के गुण में एक खासियत यह भी है कि इसे बुढ़ापा दूर रखने वाली औषधि के रूप में जाना जाता है। कारण यह है कि इसमें मौजूद जिनसेनोसाइड्स बुढ़ापे में होने वाले कई शारीरिक विकारों को दूर करते हैं। साथ ही मानसिक रूप से भी लाभकारी साबित हो सकते हैं। इसमें तनाव को कम करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। साथ ही यह जड़ी-बूटी एंटी-एजिंग की तरह भी काम करती है (10) (12) (13) (14)।
10. सूजन से लड़ने में सक्षम 
जिनसेंग के फायदे में एक चमत्कारी फायदा यह भी शामिल है कि यह सूजन को घटाने में मदद करता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, रेड जिनसेंग में पाए जाने वाले यौगिकों में इन्फ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं, जो सूजन को घटाने में मददगार साबित हो सकते हैं (15)।
11. मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं में कारगर 
मासिक धर्म के दौरान महिलाओं में तनाव और पेट में होने वाली पीड़ा के लिए रेड जिनसेंग बेहतर आयुर्वेदिक उपचार साबित हो सकता है। इस संबंध में किए गए वैज्ञानिक शोध के दौरान विशेषज्ञों ने पाया कि जिनसेंग के गुण इतने खास हैं कि इसके सेवन से महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान होने वाली इन तकलीफों में भी काफी राहत महसूस होती है। वहीं, शोध के दौरान इसके सेवन से किसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला (16)।
 12. त्वचा संबंधी विकार 
त्वचा संबंधी विकार के संबंध में जिनसेंग पर किए गए शोध से यह निष्कर्ष निकल कर सामने आया कि रेड जिनसेंग का एंटी एजिंग और सूजन प्रतिरोधक गुण त्वचा संबंधी विकार जैसे- झुर्रियां, दाग-धब्बे और बेजान त्वचा पर काफी असरदार साबित हो सकता है। इसका उपयोग निरोगी और चमकदार त्वचा पाने का बेहतर माध्यम साबित हो सकता है (17)।
13. बालों का रखे ख्याल
जिनसेंग में पाए जाने वाले खास यौगिक बालों के विकास और स्वस्थ स्कैल्प को बनाए रखने में मददगार साबित हो सकते हैं। जिनसेंग में पाए जाने वाले जिनसेनोसाइड्स बालों को झड़ने से बचाते हैं और उनकी जड़ों को मजबूती प्रदान करने का काम करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, जिनसेंग के प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले गुण बालों के स्वास्थ्य को बरकरार रखने में मददगार साबित हो सकते हैं (18)।
आगे लेख में हम जानेंगे जिनसेंग के पोषक तत्वों के बारे में।
जिनसेंग के पौष्टिक तत्व – Ginseng Nutritional Value in Hindi
जिनसेंग में पाए जाने वाले सभी पोषक तत्वों के बारे में हमने नीचे दी गई तालिका में विस्तार से बताया है।
पोषक तत्व मात्रा कैलोरी 25 वसायुक्त कैलोरी 0 कुल वसा 0.0g सैचुरेटेड फैट 0.0g कोलेस्ट्रॉल 0.0g सोडियम 5mg कार्बोहाइड्रेट 6.0g डायटरी फाइबर 0.0g शुगर 6.0g प्रोटीन 0.0g विटामिन ए 0.0g
आगे लेख में हम जानेंगे कि जिनसेंग के फायदे पाने के लिए इसका सही उपयोग कैसे किया जा सकता है।
जिनसेंग का उपयोग – How to Use Ginseng in Hindi
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जिनसेंग के चमत्कारी फायदों का लाभ पाने के लिए इसे उपयोग करना बेहद ही आसान है। इसका इस्तेमाल आप कई तरीकों से कर सकते हैं। जैसे- चाय के रूप में, जड़ी बूटी के रूप में, पाउडर या कैप्सूल के रूप में। बता दें कि बाजार में इसके पहले से तैयार टी बैग, पाउडर और कैप्सूल आसानी से मिल जाते हैं। अगर घर में खुद इसे पीसकर भी चाय या पाउडर के रूप में इस्तेमाल में ला सकते हैं (19)।
नोट- इसे 2 से 3 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 से 4 बार लिया जा सकता है। बता दें इसका निरंतर 3 से 4 सप्ताह तक उपयोग किया जा सकता है। वहीं, इसके सेवन की निरंतरता इस बात पर भी निर्भर करती है कि इसे किस उपयोग के लिए लिया जा रहा है। इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए विशेषज्ञों की सलाह आवश्यक है (19)।
अभी तक आपने जिनसेंग के कई फायदों के बारे में जाना और समझा। बता दें फायदों के साथ-साथ जिनसेंग के नुकसान भी हैं, जिन्हें जान लेना बेहतर होगा।
जिनसेंग के नुकसान – Side Effects of Ginseng in Hindi
आइए नजर डालते हैं उन स्थितियों पर, जिनमें जिनसेंग के नुकसान होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है (19)।
कुछ मामलों में जिनसेंग का उपयोग दुष्परिणामों को प्रदर्शित करता है, जैसे- सिरदर्द, पाचन और नींद से संबंधित समस्याओं का होना। यह जिनसेंग के नुकसान में शामिल है।
गर्भवती महिलाएं या जो बच्चों को स्तनपान करा रही हैं, उन्हें इस औषधि को लेने से बचना चाहिए। उन पर जिनसेंग के नुकसान नजर आ सकते हैं।
हाई बीपी और हृदय संबंधी बीमारियों से ग्रस्त व्यक्ति बिना चिकित्सक की सलाह के जिनसेंग का सेवन न करें।
अगर आप शुगर की दवाइयों का सेवन कर रहे हैं, तो जिनसेंग का इस्तेमाल चिकित्सक की सलाह से ही करें। हो सकता है कि इसके सेवन से ब्लड शुगर काफी कम हो जाए।
जिनसेंग के साथ किसी अन्य दवा या खाद्य पदार्थ का सेवन न करें।
अब तो आप जिनसेंग के फायदे, उपयोग और नुकसान के बारे में अच्छी तरह से जान चुके होंगे। इस लेख के माध्यम से आपको जिनसेंग से संबंधित सभी अच्छी-बुरी जानकारियों से अवगत कराया जा चुका है। अगर आप भी जिनसेंग के फायदे जान इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करने का मन बना रहे हैं, तो बेहतर होगा कि पहले लेख में दी गई सभी जानकारियों को अच्छे से पढ़ लें। आशा करते हैं कि इस लेख के माध्यम से आप न केवल जिनसेंग को सही तरीके से उपयोग में ला सकेंगे, बल्कि यह आपको कई गंभीर बीमारियों से निजात दिलाने में मददगार भी साबित होगा। इस विषय में किसी अन्य प्रकार के सुझाव और सवालों के लिए आप हमसे नीचे दिए कमेंट बॉक्स के माध्यम से जुड़ सकते हैं।
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/ginseng-ke-fayde-upyog-aur-nuksan-in-hindi/
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jayveer18330 · 7 years ago
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जाती व्यवस्था का उदभव
सामाजिक भेदभ��व और जाति व्यवस्था के उद्भव निर्धारित जीवन में भी आंतरिक सामाजिक स्तरीकरण के एक अधिक से अधिक डिग्री निहित है जनजाति या गांव के भीतर प्रारंभिक वैदिक काल में भी एक अंतर था एक जनजाति और योद्धा के साधारण मुक्त सदस्यों (विश) के बीच बनाया बड़प्पन (क्षत्रिय), जिनमें से आदिवासी सरदार (रजन) था चयनित। पुजारी के रूप में ब्राह्मणों को एक विशिष्ट सामाजिक के रूप में भी उल्लेख किया गया था इन प्रारंभिक वैदिक ग्रंथों में समूह जब अर्ध-खानाबदोश समूह बसे नीचे उन्होंने स्वदेशी लोगों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किए, जो मजदूरों या कारीगरों के रूप में उनके लिए काम किया रंग (वर्ना) के रूप में सेवा मुक्त आर्यों और अधीनता के बीच भेद का बैज स्वदेशी लोग। वर्ना ने जल्द ही 'जाति' का अर्थ ग्रहण किया और वह था के स्तर को वर्गीकृत करने के लिए आर्यों के लिए खुद को भी लागू किया याजकों, योद्धाओं, स्वतंत्र किसानों और अधीनस्थ लोगों एक देर का भजन ऋग्वेद में इस नई प्रणाली का पहला सबूत शामिल है। यह इसमें से संबंधित है पौराणिक पुरूष और ब्रह्मांड के निर्माण और बलिदान का बलिदान चार वर्णों में से इस भजन (एक्स, 9 0) ने महान आदर्श महत्व ग्रहण किया हिंदू समाज के आदेश के लिए और की स्थिति को वैधता सामाजिक पदानुक्रम के शीर्ष पर ब्राह्मण पुजारी: जब देवताओं ने अपनी पेशकश के रूप में पुरूष के साथ बलिदान तैयार किया इसका तेल वसंत था, पवित्र उपहार शरद ऋतु था, गर्मियों में लकड़ी थी जब उन्होंने पुरुष को विभाजित किया तो उन्होंने कितने भाग किए? वे अपने मुंह, उनकी बाहों को क्या कहते हैं? वे अपनी जांघों को क्या कहते हैं और पैर? ब्राह्मण उसका मुंह था, दोनों हथियारों का राज किसी भी एक था [क्षत्रिय] बनाया उनकी जांघ वैश्य बन गई, अपने पैरों से शूद्र था का उत्पादन किया। चार वर्ण मूल रूप से सम्पदा थे जो फिर सामान्य के रूप में कार्य करते थे विभिन्न जातियों के लिए श्रेणियां, क्योंकि व्यक्तिगत जातियों को बुलाया गया था क्योंकि एक एक जाति में जन्मा (जावा) है लेकिन इस पूर्ण जातीय प्रणाली को ग्रहण किया अधिक महत्वपूर्ण अवधि केवल बहुत बाद की अवधि में। में सामाजिक स्तरीकरण स्वर्गीय वैदिक अवधि एक पदानुक्रमित के उद्भव द्वारा विशेषता थी विभिन्न सामाजिक के बीच श्रम के एक विभाजन परिलक्षित जो सम्पदा के आदेश कक्षाएं। इस पदानुक्रम के शीर्ष पर पहले दो सम्पदाएं, ब्राह्मण थे याजकों और योद्धा बड़प्पन, दूसरे स्तर पर मुक्त कब्जा कर लिया गया था किसानों और व्यापारियों और तीसरे स्तर पर दास, मजदूरों का था और स्वदेशी लोगों से संबंधित कारीगर आर्यों के बीच एक आंतरिक स्तरीकरण का उद्भव दिखाया गया है अर्थ के आधार पर गमनी और ग्रामीन शब्द एक ग्रामनी मूल रूप से वाहनों और योद्धाओं की एक ट्रेन के नेता थे और यह पद एक गांव के महापौर का उल्लेख करने के लिए आया था जो आमतौर पर एक था वैश्य (तीसरी संपत्ति का सदस्य) ग्रामीन, हालांकि, था एक गांव या मकान मालिक के मालिक, और वह हमेशा एक क्षत्रिय था यह यह ज्ञात नहीं है कि इन नए जमींदारों ने अपने अधिकारों को इस रूप में हासिल कर लिया है या नहीं इस में उभरे हुए छोटे-छोटे राजाओं से वैधानिक या पूर्ववर्ती अनुदान अवधि या क्या वे बल द्वारा गांवों को जब्त कर लिया और एक को ठीक किया उनके द्वारा सुरक्षा किराया लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि सामाजिक संघर्ष इस अवधि में जो कि अवधि के उन लोगों से अलग थे खानाबदोश जीवन कई ग्रंथों सामाजिक के इस नए स्वरूप में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं संघर्ष: 'जब भी क्षत्रिय ऐसा महसूस करता है तो वह कहता है:' वैश्य मुझे ले आओ क्या तुम मुझ से छिपा है। "वह लूट और लूट वह क्या करता है वह चाहता है।  लेकिन आंतरिक अंतर भी रैंकों के भीतर उभरा है या योद्धा बड़प्पन के वंश एक उच्च बड़प्पन और एक कम था एक (राज्या) जिसमें से यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह अधिकार नहीं है शासन। कारीगरों को भी प्रारंभिक वैदिक काल में भी जाना जाता था, विशेष रूप से गाड़ी की ढांचे जो निर्माण और मरम्मत के लिए जिम्म���दार थे रथ जो आर्यों के लिए महत्वपूर्ण महत्व के थे लेकिन अन्य शिल्प उन शुरुआती दिनों में शायद ही उल्लेख किया गया था निपटान की अवधि में यह बहुत हद तक बदल गया बढ़ई, कुम्हार और लोहार में दिखाई दिए ग्रंथों विभिन्न धातुओं का उल्लेख किया गया था: तांबे (लोहा), कांस्य (आर्य), एक तांबा-टिन मिश्र धातु (कम्सा), चांदी (राजता), सोने (सुवर्णा) और लोहा (श्यामा या कृष्ण नायस)। एक महत्वपूर्ण विशेषता जाति की बाद की कठोरता को दर्शाती है प्रणाली इस शुरुआती काल में भी साक्ष्य में थी: कारीगरों को तुच्छ जाना था और ज्यादातर शूद्र (चौथी संपत्ति) के रैंकों से संबंधित थे। अन्य शुरुआती संस्कृतियों ने कारीगरों को ऐसी सीमांत स्थिति भी सौंप दी। वजह से तत्वों, जैसे कि अग्नि और पानी, कारीगरों जैसे, जैसे उनके प्रत्यक्ष संपर्क मिथकों और मिलर्स, डर और साथ ही तुच्छ थे। लेकिन भारत में वहां था अनुष्ठान अशुद्धता की अतिरिक्त विशेषता (अशुद्ध) जिसका अर्थ था एक शूद्र कारीगर का बलि ब्रह्मचर्य (अमेधा) से अपवर्जन का डर इस प्रारंभिक अवस्था में भी इस तरह के चरम सीमाओं के लिए अनुष्ठान अशुद्धता रही थी अग्निहोत्र जैसे कुछ बलिदान जहाजों के साथ आयोजित किया जाना था आर्यों द्वारा ही बनाया गया है: '[[स्थली, एक मातृ दूध पॉट] एक द्वारा बनाई गई है आर्य, देवताओं के साथ तालमेल के लिए सीधा पक्षों के साथ। इसमें जिस तरह से यह देवताओं के साथ एकजुट है साम्राज्य (असुरिया), वास्तव में, पोत है जो कुम्हार के पहिये पर एक कुम्हार के द्वारा किया जाता है। एक स्वर्गीय वैदिक पाठ से यह उद्धरण कई मामलों में प्रकट होता है। यह पता चलता है कि आर्यों द्वारा स्वामिति वाले स्वदेशी लोग महान थे कारीगरों के रूप में कौशल इन काले-चमड़ी लोगों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव उन्होंने ट्रेडों के खिलाफ भेदभाव भी किया जो वे करते थे। वैदिक आर्यों के बीच इस तरह के कौशल की मूल कमी शायद एक थी जाति व्यवस्था के उद्भव के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण है, जो आर्यों की सामाजिक और राजनीतिक श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया था। ऊपर उद्धृत पाठ में यह भी संकेत मिलता है कि वैदिक आर्यों ने नहीं लाया कुत्ते के पहिये के साथ जब वे भारत में प्रवेश करते थे लेकिन उन्हें मिल गया था क्या आप वहां मौजूद हैं। इस पाठ में व्यक्त की गई मिट्टी के बर्तनों के खिलाफ पूर्वाग्रह को व्यक्त किया गया था ऐसा पहिया यह बेहद संभावना नहीं देता कि शुरू में आर्यों की स्वयं प्रसिद्ध 'रंगा ग्रे वेयर' का उत्पादन किया गया, जिस पर कुशलतापूर्वक फैशन बनाया गया कुम्हार का पहिया पुरातत्वविदों अब इस पेंट ग्रे से संबंध रखते हैं स्वर्गीय वैदिक लोगों के बस्तियों के एक सूचक के रूप में वेयर लेकिन इस प्रकार सिरेमिक का शायद स्वदेशी लोगों के बीच उत्पन्न हुआ था और केवल यही था आर्यों द्वारा पूर्व की ओर अपने प्रवास के दौरान फैल गया स्वर्गीय वैदिक काल में व्यापार में बहुत वृद्धि हुई (वंजीज) जो कारीगरों द्वारा बढ़ते कमोडिटी उत्पादन के कारण था और खेती का विस्तार यहां तक ​​कि भारतीय इतिहास की शुरुआती अवधि में, व्यापारियों ने नई जमीन और नए के बारे में जानने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो सकती है मार्गों। नमक और धातुओं में लंबी दूरी के व्यापार और नए के लिए खोज अयस्क की जमाराशि विशेष रूप से इस संबंध में उत्तेजक होगी। के लिए ज़रूरी सामाजिक व्यवस्था के भविष्य के विकास, व्यापार को नहीं माना जाता था एक अपवित्र गतिविधि और इसलिए उच्च जाति इसमें भाग ले सकते ��ैं और इस अवधि के ब्राह्मण ग्रंथ स्पष्ट रूप से एक गतिविधि के समान व्यापार के रूप में संदर्भित हैं कृषि (कृष्णा) के साथ मूल्य, पुजारी (ब्रह्मचारी) और शाही सेवा (राजनुचर्य) वास्तव में, ऊपरी जातियों के पास एकाधिकार है इस प्रारंभिक चरण में व्यापार और यह अपेक्षाकृत उच्च स्थिति की व्याख्या करता है बाद में उम्र के हिंदू समाज में बानिया (व्यापारी) जाति । सामाजिक भेदभाव और जाति व्यवस्था के उद्भव निर्धारित जीवन में भी आंतरिक सामाजिक स्तरीकरण के एक अधिक से अधिक डिग्री निहित है जनजाति या गांव के भीतर प्रारंभिक वैदिक काल में भी एक अंतर था एक जनजाति और योद्धा के साधारण मुक्त सदस्यों (विश) के बीच बनाया बड़प्पन (क्षत्रिय), जिनमें से आदिवासी सरदार (रजन) था चयनित। पुजारी के रूप में ब्राह्मणों को एक विशिष्ट सामाजिक के रूप में भी उल्लेख किया गया था इन प्रारंभिक वैदिक ग्रंथों में समूह जब अर्ध-खानाबदोश समूह बसे नीचे उन्होंने स्वदेशी लोगों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किए, जो मजदूरों या कारीगरों के रूप में उनके लिए काम किया रंग (वर्ना) के रूप में सेवा मुक्त आर्यों और अधीनता के बीच भेद का बैज स्वदेशी लोग। वर्ना ने जल्द ही 'जाति' का अर्थ ग्रहण किया और वह था के स्तर को वर्गीकृत करने के लिए आर्यों के लिए खुद को भी लागू किया याजकों, योद्धाओं, स्वतंत्र किसानों और अधीनस्थ लोगों एक देर का भजन ऋग्वेद में इस नई प्रणाली का पहला सबूत शामिल है। यह इसमें से संबंधित है पौराणिक पुरूष और ब्रह्मांड के निर्माण और बलिदान का बलिदान चार वर्णों में से इस भजन (एक्स, 9 0) ने महान आदर्श महत्व ग्रहण किया हिंदू समाज के आदेश के लिए और की स्थिति को वैधता सामाजिक पदानुक्रम के शीर्ष पर ब्राह्मण पुजारी: जब देवताओं ने अपनी पेशकश के रूप में पुरूष के साथ बलिदान तैयार किया इसका तेल वसंत था, पवित्र उपहार शरद ऋतु था, गर्मियों में लकड़ी थी जब उन्होंने पुरुष को विभाजित किया तो उन्होंने कितने भाग किए? वे अपने मुंह, उनकी बाहों को क्या कहते हैं? वे अपनी जांघों को क्या कहते हैं और पैर? ब्राह्मण उसका मुंह था, दोनों हथियारों का राज किसी भी एक था [क्षत्रिय] बनाया उनकी जांघ वैश्य बन गई, अपने पैरों से शूद्र था का उत्पादन किया। चार वर्ण मूल रूप से सम्पदा थे जो फिर सामान्य के रूप में कार्य करते थे विभिन्न जातियों के लिए श्रेणियां, क्योंकि व्यक्तिगत जातियों को बुलाया गया था क्योंकि एक एक जाति में जन्मा (जावा) है लेकिन इस पूर्ण जातीय प्रणाली को ग्रहण किया अधिक महत्वपूर्ण अवधि केवल बहुत बाद की अवधि में। में सामाजिक स्तरीकरण स्वर्गीय वैदिक अवधि एक पदानुक्रमित के उद्भव द्वारा विशेषता थी विभिन्न सामाजिक के बीच श्रम के एक विभाजन परिलक्षित जो सम्पदा के आदेश कक्षाएं। इस पदानुक्रम के शीर्ष पर पहले दो सम्पदाएं, ब्राह्मण थे याजकों और योद्धा बड़प्पन, दूसरे स्तर पर मुक्त कब्जा कर लिया गया था किसानों और व्यापारियों और तीसरे स्तर पर दास, मजदूरों का था और स्वदेशी लोगों से संबंधित कारीगर आर्यों के बीच एक आंतरिक स्तरीकरण का उद्भव दिखाया गया है अर्थ के आधार पर गमनी और ग्रामीन शब्द एक ग्रामनी मूल रूप से वाहनों और योद्धाओं की एक ट्रेन के नेता थे और यह पद एक गांव के महापौर का उल्लेख करने के लिए आया था जो आमतौर पर एक था वैश्य (तीसरी संपत्ति का सदस्य) ग्रामीन, हालांकि, था एक गांव या मकान मालिक के मालिक, और वह हमेशा एक क्षत्रिय था यह यह ज्ञात नहीं है कि इन नए जमींदारों ने अपने अधिकारों को इस रूप में हासिल कर लिया है या नहीं इस में उभरे हुए छोटे-छोटे राजाओं से वैधानिक या पूर्ववर्ती अनुदान अवधि या क्या वे बल द्वारा गांवों को जब्त कर लिया और एक को ठीक किया उनके द्वारा सुरक्षा किराया लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि सामाजिक संघर्ष इस अवधि में जो कि अवधि के उन लोगों से अलग थे खानाबदोश जीवन कई ग्रंथों सामाजिक के इस नए स्वरूप में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं संघर्ष: 'जब भी क्षत्रिय ऐसा महसूस करता है तो वह कहता है:' वैश्य मुझे ले आओ क्या तुम मुझ से छिपा है। "वह लूट और लूट वह क्या करता है वह चाहता है।  लेकिन आंतरिक अंतर भी रैंकों के भीतर उभरा है या योद्धा बड़प्पन के वंश एक उच्च बड़प्पन और एक कम था एक (राज्या) जिसमें से यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह अधिकार नहीं है शासन। कारीगरों को भी प्रारंभिक वैदिक काल में भी जाना जाता था, विशेष रूप से गाड़ी की ढांचे जो निर्माण और मरम्मत के लिए जिम्मेदार थे रथ जो आर्यों के लिए महत्वपूर्ण महत्व के थे लेकिन अन्य शिल्प उन शुरुआती दिनों में शायद ही उल्लेख किया गया था निपटान की अवधि में यह बहुत हद तक बदल गया बढ़ई, कुम्हार और लोहार में दिखाई दिए ग्रंथों विभिन्न धातुओं का उल्लेख किया गया था: तांबे (लोहा), कांस्य (आर्य), एक तांबा-टिन मिश्र धातु (कम्सा), चांदी (राजता), सोने (सुवर्णा) और लोहा (श्यामा या कृष्ण नायस)। एक महत्वपूर्ण विशेषता जाति की बाद की कठोरता को दर्शाती है प्रणाली इस शुरुआती काल में भी साक्ष्य में थी: कारीगरों को तुच्छ जाना था और ज्यादातर शूद्र (चौथी संपत्ति) के रैंकों से संबंधित थे। अन्य शुरुआती संस्कृतियों ने कारीगरों को ऐसी सीमांत स्थिति भी सौंप दी। वजह से तत्वों, जैसे कि अग्नि और पानी, कारीगरों जैसे, जैसे उनके प्रत्यक्ष संपर्क मिथकों और मिलर्स, डर और साथ ही तुच्छ थे। लेकिन भारत में वहां था अनुष्ठान अशुद्धता की अतिरिक्त विशेषता (अशुद्ध) जिसका अर्थ था एक शूद्र कारीगर का बलि ब्रह्मचर्य (अमेधा) से अपवर्जन का डर इस प्रारंभिक अवस्था में भी इस तरह के चरम सीमाओं के लिए अनुष्ठान अशुद्धता रही थी अग्निहोत्र जैसे कुछ बलिदान जहाजों के साथ आयोजित किया जाना था आर्यों द्वारा ही बनाया गया है: '[[स्थली, एक मातृ दूध पॉट] एक द्वारा बनाई गई है आर्य, देवताओं के साथ तालमेल के लिए सीधा पक्षों के साथ। इसमें जिस तरह से यह देवताओं के साथ एकजुट है साम्राज्य (असुरिया), वास्तव में, पोत है जो कुम्हार के पहिये पर एक कुम्हार के द्वारा किया जाता है। एक स्वर्गीय वैदिक पाठ से यह उद्धरण कई मामलों में प्रकट होता है। यह पता चलता है कि आर्यों द्वारा स्वामिति वाले स्वदेशी लोग महान थे कारीगरों के रूप में कौशल इन काले-चमड़ी लोगों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव उन्होंने ट्रेडों के खिलाफ भेदभाव भी किया जो वे करते थे। वैदिक आर्यों के बीच इस तरह के कौशल की मूल कमी शायद एक थी जाति व्यवस्था के उद्भव के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण है, जो आर्यों की सामाजिक और राजनीतिक श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया था। ऊपर उद्धृत पाठ में यह भी संकेत मिलता है कि वैदिक आर्यों ने नहीं लाया कुत्ते के पहिये के साथ जब वे भारत में प्रवेश करते थे लेकिन उन्हें मिल गया था क्या आप वहां मौजूद हैं। इस पाठ में व्यक्त की गई मिट्टी के बर्तनों के खिलाफ पूर्वाग्रह को व्यक्त किया गया था ऐसा पहिया यह बेहद संभावना नहीं देता कि शुरू में आर्यों की स्वयं प्रसिद्ध 'रंगा ग्रे वेयर' का उत्पादन किया गया, जिस पर कुशलतापूर्वक फैशन बनाया गया कुम्हार का पहिया पुरातत्वविदों अब इस पेंट ग्रे से संबंध रखते हैं स्वर्गीय वैदिक लोगों के बस्तियों के एक सूचक के रूप में वेयर लेकिन इस प्रकार सिरेमिक का शायद स्वदेशी लोगों के बीच उत्पन्न हुआ था और केवल यही था आर्यों द्वारा पूर्व की ओर अपने प्रवास के दौरान फैल गया स्वर्गीय वैदिक काल में व्यापार में बहुत वृद्धि हुई (वंजीज) जो कारीगरों द्वारा बढ़ते कमोडिटी उत्पादन के कारण था और खेती का विस्तार यहां तक ​​कि भारतीय इतिहास की श��रुआती अवधि में, व्यापारियों ने नई जमीन और नए के बारे में जानने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो सकती है मार्गों। नमक और धातुओं में लंबी दूरी के व्यापार और नए के लिए खोज अयस्क की जमाराशि विशेष रूप से इस संबंध में उत्तेजक होगी। के लिए ज़रूरी सामाजिक व्यवस्था के भविष्य के विकास, व्यापार को नहीं माना जाता था एक अपवित्र गतिविधि और इसलिए उच्च जाति इसमें भाग ले सकते हैं और इस अवधि के ब्राह्मण ग्रंथ स्पष्ट रूप से एक गतिविधि के समान व्यापार के रूप में संदर्भित हैं कृषि (कृष्णा) के साथ मूल्य, पुजारी (ब्रह्मचारी) और शाही सेवा (राजनुचर्य) वास्तव में, ऊपरी जातियों के पास एकाधिकार है इस प्रारंभिक चरण में व्यापार और यह अपेक्षाकृत उच्च स्थिति की व्याख्या करता है बाद में उम्र के हिंदू समाज में बानिया (व्यापारी) जाति ।
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aajkarashifal · 7 years ago
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लाभ हेतु विजय पर्व पर विजय काल में शुरु करें नए काम
अभिषेक सिंह नवरात्रि के 9 दिन के उपवास के बाद भक्त मां दुर्गा को प्रसन्न करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। नवरात्रि के बाद की तिथि को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, अश्विन महीने के दसवें दिन हर वर्ष इस पर्व को सेलिब्रेट किया जाता रहा है। दशहरा को विजयादशमी या आयुधपूजा के नाम से भी जाना जता है। दशहरा संस्कृत का शब्द है, जिसका मतलब होता है रावण की हार। कई कथाओं में रावण को महान ज्ञानी और संत बताया गया है, लेकिन उसमें निहित बुराइयों के कारण उसका अंत हो गया। इसलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है। किवदंतियां कहती हैं कि भगवान राम ने रावण पर जीत हासिल की थी। यह त्योहार उसी जीत का प्रतीक है। जीवन में इस दिन से हमें कई सीख मिलती हैं। धार्मिक कहानियों के अनुसार, रावण ने सीताजी का अपहरण किया और उसके बाद श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण, हनुमान सहित वानर सेना के साथ रावण की नगरी लंका पर चढ़ाई कर विजय हासिल की। रामायण हिंदू महाकाव्य में इस बात का जिक्र है कि भगवान राम सर्वगुण संपन्न थे और हमेशा ही प्रजा हित में फैसला लेते थे। उन्होंने समाज में कई आदर्श स्थापित किए। यही कारण है कि आज उनकी विशेष रूप से पूजा की जाती है। दूसरी कथाओं में इसे कौरवों पर पांडवों की जीत को भी दर्शाया गया है। इसके अलावा एक और कहानी प्रसिद्ध है, जो देवी दुर्गा और महिषासुर वध की ओर प्रकाश डालती है। नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के उन रूपों की उपासना की जाती है और दुर्गा सप्तशती में युद्ध का विस्तार से वर्णन है। वहीं दशहरे को खासतौर पर फसल के मौसम की शुरुआत से भी जोड़कर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा के आशीर्वाद से मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है। ��सलिए खेती करने वाले लोगों के लिए दशहरा का महत्व काफी बढ़ जाता है। यह सच है कि दशहरे को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं और सभी जीवन में सत्य के उदय का संदेश देती हैं। गौर से देखें तो समझ में आता है कि सदियों से मनाया जाने वाला दशहरा पर्व कहीं न कहीं सार्थकता का संदेश भी देता है। इससे जुड़ी कहानियों से इस बात की सीख मिलती है कि जीवन में कितनी ही विषम परिस्थितियों का सामना क्यों न करना पड़े, हमें सत्य के पथ पर चलते हुए अपने लक्ष्य को साधना चाहिए। भगवान श्रीराम सत्य के प्रतीक हैं। रावण भी एक बड़ा ज्ञानी था। उसने तपस्या के बल पर अनेकों देवताओं का आशीर्वाद हासिल किया था। वह कई कलाओं में निपुण था। लेकिन जीवन जीने के क्रम में उसने अहंकार का वरण किया और असत्य की ओर रुख किया। इसका परिणाम उसे भुगतना पड़ा। वह जीवन भर जिन्हें पूजता रहा, उनके सामने आने पर उन्हें पहचान भी न सका। यह सच है कि तमाम कोशिशों के बावजूद सत्य की जीत ही होती है। रावण के वध के साथ हर साल हम सत्य की जीत के इस उत्सव को बड़े पैमाने पर मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि सीताजी को रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए भगवान श्रीराम ने 10 दिनों तक रावण से घोर युद्ध किया था। दशहरे पर शुभ मुहूर्त की बात करते हुए एक पंडितजी बताते हैं कि दशहरे के दिन शाम के समय को खासतौर पर शुभ माना जाता है। इसे विजय काल के नाम से जाना जाता है। इसके नाम से ही समझ सकते हैं कि इस मुहूर्त में आप जो भी काम करेंगे, उसमें आपको विजय हासिल होगी। लेकिन इसके साथ एक शर्त है, वह यह है कि आपको सत्य मन से उस काम को अंजाम देना होता है। इसके अलावा उस काम में सकारात्मकता का भाव होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि विजय दशमी के दिन नीलकण्ठ का दर्शन हो जाए, तो यह अति शुभ होता है। पंडितजी बताते हैं कि विजय काल में शमी वृक्ष की भी पूजा की जानी चाहिए। यह आपके घर में न हो, तो भी कहीं जाकर आप पूजा कर सकते हैं। इस दिन आप शस्त्र पूजा या कोई नया कार्य शुरू करते हैं, तो उसमें सफलता के असवसर बढ़ जाते हैं। इस दौरान नया व्यापार, बीज बोना, सगाई करना और गाड़ी की खरीदारी को भी शुभ माना गया है। यह सत्य है कि त्योहार कोई भी हो, ये जीवन में खुशियों का संचार करते हैं। नवरात्रि से त्योहारों का शुभारंभ हो चुका है। दशहरा के साथ ही आने वाले दिनों में बिग फेस्टिवल जिंदगी में और भी रौनक घोलने वाले हैं। ऐसे में आप त्योहारों के मौसम का लुत्फ उठाने को पूरी तरह से तैयार हो जाइए। परिवार के साथ खुश रहिए। खासतौर पर दशहरा के मौके पर आप इस बात का प्रण लें कि समाज के हित में काम करेंगे और जरूरत पड़ने पर सत्य का साथ देंगे। सही मायने में दशहरे जैसा पर्व सभी तरह की सामाजिक बुराइयों को समाज से हटाने का पर्व है। रावण और उसका दहन तो मात्र प्रतीक हैं, जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि हम सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों के खिलाफ लड़े और एकजुट होकर इनके खिलाफ खड़ें भी रहें। दशहरा की सार्थकता भी इसी में है। मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट। http://dlvr.it/PrCdpc
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