#महत्वपूर्ण हिंदू व्रत
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निर्जला एकादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है जो भगवान विष्णु की आराधना में समर्पित है। यह व्रत श्रद्धा, त्याग, और आत्म-समर्पण का प्रतीक है। इसके माध्यम से उपवासी शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ बनते हैं और अपने अंतरंग शांति का आनंद लेते हैं। यह व्रत संतुष्टि, शक्ति, और आनंद को अनुभव करने का एक अवसर प्रदान करता है।
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Hindu Panchang: June 17, 2023 | Vrat, Tyohar, Muhurat, Choghadiya, and More
देखें जून 17, 2023 के लिए हिंदू पंचांग के व्रत, त्योहार, मुहूर्त, चौघड़िया और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी। यह वीडियो आपको सभी संगठनों और कार्यों के लिए सही समय और मुहूर्त की जानकारी प्रदान करेगी। जीवन को आसान बनाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए इस वीडियो को देखें।
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Utpanna Ekadashi Puja Samagri: इन चीजों के बिना अधूरी है उत्पन्ना एकादशी की पूजा, नोट कर लें पूरी सामग्री लिस्ट
Utpanna Ekadashi Samagri: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत बहुत महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है. हर साल मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है. उत्पन्ना एकादशी पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है. साथ ही भक्तों के दुख और संकट भी दूर हो…
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हिंदू कैलेंडर नवंबर 2024, जानें पूरे माह के व्रत-त्योहार, शुभ मुहूर्त
नवंबर 2024 का हिंदू कैलेंडर व्रत-त्योहार और शुभ मुहूर्त से भरपूर है। इस माह में छठ पूजा, भाई दूज और देवउठनी एकादशी जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाए जाते हैं। इसके अलावा गोपाष्टमी, तुलसी विवाह, कार्तिक पूर्णिमा और उत्पन्ना एकादशी जैसे अन्य त्योहारों का भी विशेष म
हिंदू कैलेंडर नवंबर 2024, जानें पूरे माह के व्रत-त्योहार, शुभ मुहूर्तनवंबर 2024 का हिंदू कैलेंडर व्रत-त्योहार और शुभ मुहूर्त से भरपूर है। इस माह में छठ पूजा, भाई दूज और देवउठनी एकादशी जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाए जाते हैं। इसके अलावा गोपाष्टमी, तुलसी विवाह, कार्तिक पूर्णिमा और उत्पन्ना एकादशी जैसे अन्य त्योहारों का भी विशेष महत्व है। यहां नवंबर 2024 में पड़ने वाले व्रत और त्योहारों की सूची दी गई…
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पारस भाई देवउठनी एकादशी पर एक शुभ दिन
सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है। पूरे वर्ष में लगभग 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन देवउठनी ग्यारस का अपना महत्व है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन को भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से सभी तरह के शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयन एकादशी के बाद ये सभी शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं।
धार्मिक महत्व और देवउठनी एकादशी।
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु देवशयन एकादशी योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसके बाद वे चार महीने बाद देवउठनी एकादशी पर जागते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। यह समय ध्यान, साधना, संयम और त्याग का प्रतीक कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के पावन काल में भगवान विष्णु के शुभ जागरण के साथ ही सभी सकारात्मक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है और इस दिन की गई पूजा और व्रत से विशेष लाभ मिलता है। श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी, हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता में कहा जाता है कि एक बार हिंदू धर्म की लोकप्रिय देवी मां लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया और उन्हें और देवताओं को चार महीने के लिए अपने काम से आराम करने और योग निद्रा में जाने के लिए कहा। भगवान उनकी बात मान गए और चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए। भगवान ने आषाढ़ माह में यह निद्रा ली और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपना नैतिक कार्य फिर से शुरू किया। जागने के बाद उन्होंने सभी देवताओं को उनके कर्तव्यों के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में देवउठनी ग्यारस को आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है पारस भाई जी की मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं, जीवन के सभी रो�� नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र विवाह अनुष्ठान को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
पारस परिवार के मुखिया श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी तुलसी विवाह के पीछे एक कथा है। भगवान विष्णु ने राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा को पवित्र तुलसी मां में बदल दिया और फिर उनका विवाह स्वयं विष्णु के एक रूप भगवान शालिग्राम से कराया। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा मनाई जाने लगी।
पवित्र देवउठनी ग्यारस व्रत की विधि
सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने धूपबत्ती और दीपक जलाया जाता है। भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष फूल, फल, मिठाई, चावल आदि अर्पित किए जाते हैं। इस दिन लोग अपने पूजा स्थल पर तुलसी के पत्ते रखकर उनकी पूजा भी करते हैं। पारस भाई जी के अनुसार तुलसी के पत्ते चढ़ाए बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी रहती है। इस दिन शाम के समय भगवान विष्णु को मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत के लाभ
देवउठनी एकादशी का व्रत करने से कई लाभ मिलते हैं। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सनातन धर्म व्रत अनुष्ठानों का पालन करता है और अपनी आत्मा को इन धार्मिक देवों से जोड़ने का प्रयास करता है। व्रत करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। तुलसी विवाह करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है और उनके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी पर ध्यान देने योग्य बातें
व्रत का पालन: इस दिन व्रत करने से मन शुद्ध होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। व्रती को केवल फलाहार ही करना चाहिए तथा अन्न नहीं खाना चाहिए।
दिनभर विष्णु भजन: इस दिन भगवान विष्णु के भजनों का पाठ करना चाहिए, जिससे मन को शांति मिलती है।
सामूहिक पूजा: इस दिन पूरा परिवार सामूहिक पूजा करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
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Chhath Puja Song 2024
**छठ पूजा: सूर्य देवता की आराधना और भारतीय संस्कृति में इसका महत्व**
**परिचय**
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की पूजा का पर्व है, जिसमें श्रद्धालु सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा करते हैं। यह पर्व शुद्धता, तात्त्विकता और सूर्य के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
**छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति**
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में कई अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह पूजा सूर्य देवता की आराधना से संबंधित है, जिसे हिंदू धर्म में 'आदि देवता' के रूप में पूजा ��ाता है। छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में मानी जाती है, जब पांडवों ने सूर्य देवता की आराधना की थी।
**छठ पूजा का महत्व**
छठ पूजा का महत्व शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता से जुड़ा हुआ है। इस पूजा में सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है, जो जीवन के उत्थान और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इस पूजा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत कल्याण है, बल्कि पूरे समाज के कल्याण की भी कामना की जाती है। यह पर्व एकता, भाईचारे, और समाज की समृद्धि को बढ़ावा देने वाला है।
**छठ पूजा की तैयारी**
छठ पूजा की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। इस पूजा का सबसे अहम हिस्सा है 'व्रत'। जो लोग व्रत करते हैं, वे पूरे दिन उपवासी रहते हैं, और सन्नाटे में अपना समय बिताते हैं। यह पूजा पूरी तरह से शुद्धता और संयम पर आधारित है, इसलिए पूजा की तैयारी में ध्यान, स्वच्छता, और साधना का विशेष स्थान होता है।
**छठ पूजा का व्रत और विधि**
छठ पूजा के मुख्य रूप से दो दिन होते हैं -
1. **पहला दिन - नहाय-खाय**: इस दिन व्रति गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करके, शुद्ध होकर अपने घर लौटते हैं। इस दिन व्रति विशेष प्रकार का भोजन करते हैं, जिसे 'नहाय-खाय' कहा जाता है। यह भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, जिसमें कद्दू-चिउड़ा, चावल, दाल और साग होते हैं। इस दिन का उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और मानसिक रूप से पूजा के लिए तैयार होना होता है।
2. **दूसरा दिन - खट्टी-चढ़ाई**: यह दिन व्रति के लिए विशेष रूप से कठिन होता है। इस दिन व्रति केवल फलाहार करते हैं और पूरे दिन उपवासी रहते हैं। वे सूर्य देवता की उपासना के लिए पवित्र जल में स्नान करते हैं और छठी मइया को सम्मानित करने के लिए पूजा करते हैं। इस दिन के अंत में व्रति ठेकुआ और अन्य पकवानों का प्रसाद छठी मइया को अर्पित करते हैं।
**छठ पूजा में पर्यावरण का महत्व** छठ पूजा में प्रकृति और पर्यावरण का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इस पूजा के दौरान नदी, तालाब या जलाशयों में स्नान करना और सूर्य देवता की पूजा करना, यह प्रदूषण और जलवायु संरक्षण का संदेश देता है।
**समाप्ति**
छठ पूजा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन में संयम, शुद्धता, और आस्था को भी बढ़ावा देती है। सूर्य देवता की आराधना के माध्यम से हम अपने जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की कामना करते हैं।
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करवा चौथ 2024: पूजा का महत्व, विधि और तिथि
Karwa Chauth 2024: करवा चौथ का व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य, और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के साथ रखा जाता है। यह निर्जला व्रत है, जिसमें महिलाओं को अन्न और जल ग्रहण करने की अनुमति नहीं होती। करवा चौथ के दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत किया जाता है और रात में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ 20 अक्टूबर, 2024 को मनाया जाएगा।
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Jitiya vrat 2024 - पंचांग अनुसार इस दिन रखा जायेगा जितिया व्रत, जानें जीवित्पुत्रिका व्रत की सही तिथि, मुहूर्त और महत्व
शार्प भारत डेस्क : जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपवास माना गया है. जितिया व्रत में, महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं. पंचांग के अनुसार आश्विन माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी पर जितिया व्रत किया जाता है. इस साल यह व्रत 25 सितंबर को किया जा रहा है. मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से संतान की आयु लंबी होती है.…
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भाद्रपद पूर्णिमा 2024: धार्मिक महत्व और पूजा विधि
भाद्रपद पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष महत्व रखती हैं।
2024 में भाद्रपद पूर्णिमा की तारीख:
तिथि: 17 सितंबर, 2024
शुभ मुहूर्त: (यहाँ आप विशिष्ट शुभ मुहूर्त का उल्लेख कर सकते हैं, जैसे कि पूजा का समय, स्नान का समय आदि)
भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व:
धार्मिक महत्व: इस दिन पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। इसलिए, पितरों का श्राद्ध करना और दान करना विशेष महत्व रखता है।
ज्योतिषीय महत्व: चंद्रमा की किरणें इस दिन विशेष प्रभाव डालती हैं। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
आध्यात्मिक महत्व: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा की पूजा विधि:
स्नान: सुबह जल्दी उठकर गंगा जल से स्नान करना शुभ माना जाता है।
पूजा: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र को स्नान कराकर शुद्ध करें। उन्हें फूल, चंदन, अक्षत, रोली और धूप-दीप अर्पित करें।
व्रत: इस दिन व्रत रखना शुभ माना जाता है।
दान: गरीबों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
कथा: भाद्रपद पूर्णिमा की कथा का पाठ करना चाहिए।
भाद्रपद पूर्णिमा पर क्या करें:
चंद्र दर्शन: पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को अर्घ्य दें।
मंत्र जाप: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें।
धार्मिक ग्रंथों का पाठ: भगवद गीता, श्रीमद् भागवत गीता आदि धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें।
भाद्रपद पूर्णिमा पर क्या न करें:
अशुभ कार्य: इस दिन कोई भी अशुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
झू�� बोलना: झूठ बोलने से बचना चाहिए।
क्रोध करना: क्रोध करने से बचना चाहिए।
भाद्रपद पूर्णिमा के लाभ:
मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
रोगों से छुटकारा मिलता है।
नारायण सेवा संस्थान के स्वयंसेवक इस दिन जरूरतमंद लोगों की सेवा में जुट जाते हैं। वे भोजन, कपड़े, दवाइयाँ और अन्य आवश्यक चीज़ें वितरित करते हैं। इसके अलावा, वे गरीब बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिए भी कार्य करते हैं।
निष्कर्ष:
भाद्रपद पूर्णिमा एक पवित्र त्योहार है जो धार्मिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
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Hartalika Teej: हरतालिका तीज पर भूल से भी ना खाएं, ये चीजें नाराज हो सकती हैं तीज माताHartalika Teej: हरतालिका तीज एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो खासकर महिलाओं द्वारा व्रत के रूप में मनाया जाता है, इस दिन, महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए उपवासी रहती हैं,
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को ढेरों शुभकामनायें
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व आज, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
कान्हा जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। उनकी अद्भुत लीलाओं का वर्णन आज भी उनके भक्तों के जुबान पर है। यह दिव्य त्योहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का प्रतीक है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह पर्व (Krishna Janmashatami 2024 Subh Muhurat) 26 अगस्त को मनाया जाएगा तो आइए इसकी पूजा विधि मंत्र और पूजन का समय जानते हैं।
जन्माष्टमी का पर्व बेहद शुभ माना जाता है।
कान्हा जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं।
इस साल जन्माष्टमी 26 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी
जन्माष्टमी के पर्व को बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 2024 वर्ष में जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन (Janmashatami 2024 Subh Muhurat) सच्चे भाव के साथ कान्हा जी की पूजा-अर्चना करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में शुभता का आगमन होता है।
करियर में सफलता प्राप्ति के लिए कान्हा जी को अर्पित करें प्रिय फूल, पूजा होगी सफल
जन्माष्टमी का पर्व कान्हा जी को समर्पित है। मान्यता है कि जन्माष्टमी (Janmashtami 2024) पर विधिपूर्वक कान्हा जी की उपासना और व्रत करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी। साथ ही प्रभु प्रसन्न होंगे। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे जन्माष्टमी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नियम जिनका पालन करने से आप करियर में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
भाद्रपद माह में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
इस अवसर पर लड्डू गोपाल का अभ��षेक किया जाता है।
प्रभु को प्रिय फूल अर्पित करने चाहिए।
Janmashtami 2024: धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। इसलिए इस तिथि पर हर साल जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार आज यानी 26 अगस्त को है। ऐसा माना जाता है कि पूजा के दौरान लड्डू गोपाल को प्रिय फूल अर्पित करने से साधक का जीवन सदैव खुशहाल रहता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। ऐसे में आइए जानते हैं प्रभु को कौन से फूल चढ़ाने चाहिए ?
जन्माष्टमी 2024 पूजा शुभ मुहूर्त (Janmashtami 2024 Puja Time)
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 26 अगस्त को मध्य रात्रि 03 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो गई है। साथ ही इस तिथि का समापन 27 अगस्त को मध्य रात्रि 02 बजकर 19 पर समाप्त होगा। ऐसे में जन्माष्टमी व्रत आज यानी 26 अगस्त को किया जाएगा। कान्हा जी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 27 अगस्त की रात्रि 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक है।
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वरलक्ष्मी व्रत पूजन की विधि और महत्व: सुख, समृद्धि, वैवाहिक सौभाग्य का वरदान
वरलक्ष्मी व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए होता है और माना जाता है कि इसे रखने से सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वरलक्ष्मी व्रत एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को रखने से सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यदि आप भी वरलक्ष्मी व्रत रखना चाहते हैं, तो उपरोक्त विधि का पालन कर सकते हैं।
वरलक्ष्मी व्रत का महत्व
इस व्रत को रखने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। लक्ष्मी जी धन की देवी हैं और उनकी कृपा से घर में सुख-समृद्धि आती है।
विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।
वरलक्ष्मी व्रत को रखने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत पूजन विधि
वरलक्ष्मी व्रत पूजन की विधि इस प्रकार है
सबसे पहले एक कलश स्थापित किया जाता है। कलश को आम के पत्तों और फूलों से सजाया जाता है।
कलश स्थापना के बाद गणेश जी की पूजा की जाती है।
फिर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र को फूलों और रोली से सजाया जाता है।
लक्ष्मी जी को रोली, चावल, फूल, मिठाई और फल अर्पित किए जाते हैं।
दीपक जलाकर लक्ष्मी जी को अर्पित किया जाता है।
लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप किया जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत कथा सुनी जाती है।
अंत में आरती की जाती है।
अन्य जानकारी
वरलक्ष्मी व्रत आमतौर पर श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
इस व्रत को रखने के लिए विशेष रूप से सोलह श्रृंगार किया जाता है।
इस दिन महिलाएं नए वस्त्र पहनती हैं और सोने के आभूषण धारण करती हैं।
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Hindu Panchang: June 16, 2023 | Vrat, Tyohar, Muhurat, Choghadiya, and More
देखें जून 16, 2023 के लिए हिंदू पंचांग के व्रत, त्योहार, मुहूर्त, चौघड़िया और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी। यह वीडियो आपको सभी संगठनों और कार्यों के लिए सही समय और मुहूर्त की जानकारी प्रदान करेगी। जीवन को आसान बनाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए इस वीडियो को देखें।
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Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करने की है मनाही? जानें क्या करें और क्या न करें
Kartik Purnima par kya na kare: हिंदू धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह में दिवाली से लेकर भाई दूज और छठ जैसे कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार पड़ते हैं. कार्तिक माह की पूर्णिमा को साल की सबसे पवित्र और शुभ पूर्णिमा माना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली और गुरुनानक जयंती भी मनाई जाती है. इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और अपने सामर्थ्यानुसार दान देते…
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अविश्वसनीय "जया एकादशी व्रत कथा: 2024" (मोक्ष प्राप्ति)
"जया एकादशी" का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। 2024 में जया एकादशी का व्रत 9 फरवरी को पड़ेगा। इस व्रत की कथा और महत्व को समझना मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
जया एकादशी व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्रलोक में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक अप्सरा रहती थी। एक बार दोनों ने इंद्र की सभा में अपने कर्तव्यों का पालन करते समय एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होकर ध्यान भंग कर दिया। इससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने दोनों को श्राप देकर पृथ्वी पर राक्षस योनि में जन्म लेने का आदेश दिया। पृथ्वी पर आकर वे दोनों दुखी और कष्टमय जीवन जीने लगे।
एक दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन, भूले-भटके उन्होंने इस पवित्र दिन का व्रत रखा और भगवान विष्णु की आराधना की। उनके इस व्रत के प्रभाव से वे अपने पापों से मुक्त हो गए और पुनः अपने दिव्य स्वरूप में लौट आए। भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद देकर उनके कष्टों का अंत किया और उन्हें स्वर्गलोक भेज दिया।
जया एकादशी व्रत का महत्व:
जया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मि��ती है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है। कहा जाता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं।
व्रत के दिन प्रातः काल स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और व्रत की कथा का पाठ करना चाहिए। व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है और संभव हो तो रात में जागरण करके भगवान का स्मरण करना चाहिए। जया एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और अंततः मोक्ष प्राप्ति होती है।
इस प्रकार, जया एकादशी व्रत कथा और इसका पालन करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है।
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विजया एकादशी क्या है पारस जी से जाने?
हर महीने में दो बार एकादशी व्रत किया जाता है और इस तरह एक साल में 24 एकादशी व्रत किए जाते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपको किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त हो तो इसके लिए विजया एकादशी का व्रत रखें। इस व्रत को रखने से और भगवान विष्णु की पूजा करने से आपको जीवन में अवश्य सफलता मिलती है। इसी कड़ी में आइये जानते हैं कब है विजया एकादशी का व्रत और क्या है इस व्रत का महत्व ?
कब है विजया एकादशी 2024 ?
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। उदयातिथि के आधार पर विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च बुधवार को है। क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 6 मार्च को होगा इसलिए यह व्रत इसी दिन किया जायेगा। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले विजया एकादशी का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से उन्होंने रावण का वध किया था इसलिए इस दिन व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि
विजया एकादशी के दिन सबसे पहले सवेरे उठकर स्नान आदि करें और फिर सच्चे मन से भगवान विष्णु का नाम लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर भगवान को अक्षत, फल, पुष्प, चंदन, मिठाई, रोली, मोली आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को त��लसी दल जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है। श्रद्धा-भाव से पूजा कर अंत में भगवान विष्णु की आरती करने के बाद सबको प्रसाद बांटें।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी शुभ होता है क्योंकि इस पाठ को करने से लक्ष्मी जी आपके घर में वास करती हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के शुभ दिन किसी गोशाला में गायों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करें। विजया एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गरीबों व ज���ूरतमंदों को अन्न , वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें।
विजया एकादशी पारण
विजया एकादशी व्रत के दूसरे दिन पारण किया जाता है। एकादशी व्रत में दूसरे दिन विधि-विधान से व्रत को पूर्ण किया जाता है। विजया एकादशी व्रत का पारण 7 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस व्रत का पारण करने से पहले आप ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें और साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद को दान करें और इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।
विजया एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। साल में जो 24 एकादशी आती हैं, हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की मुश्किलें दूर होती हैं और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पाप मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी जिसके नाम से ही पता चलता है कि इस एकादशी के प्रभाव से आपको विजय की प्राप्ति होती है। यानि विजय प्राप्ति के लिए इस दिन श्रीहरि की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उस मनुष्य के पितृ स्वर्ग लोक में जाते हैं।
पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें- कृं कृष्णाय नम:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:। महंत श्री पारस भाई जी ने इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है। विजया एकादशी का व्रत भी बाकी एकादशियों की तरह बहुत ही कल्याणकारी है।
महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि यदि आप शत्रुओं से घिरे हो और कैसी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, तब विजया एकादशी के व्रत से आपकी जीत निश्चित है।
इस दिन ये उपाय होते हैं बहुत ख़ास
तुलसी की पूजा विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा को बहुत ही अधिक महत्व दिया जाता है। इस तुलसी के पौधे को जल अर्पित कर दीपक जलाएं। इसके अलावा तुलसी का प्रसाद भी ग्रहण करें। ऐसा करने से घर से दुःख दूर होते हैं और घर में खुशालीआती है ।
शंख की पूजा
विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा की तरह शंख पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। इस दिन शंख को तिलक लग��ने के बाद शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक कर शंख बजाएं। शंख से अभिषेक कर बजाना भी फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पीला चंदन प्रयोग करें
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के दिन पीले चंदन का अत्यंत महत्व होता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को और स्वयं भी पीले चंदन का टीका अवश्य लगाएं। पीले चंदन का टीका लगाने से आपको कभी असफलता नहीं मिलेगी और आपकी सदैव जीत होगी।
ॐ श्री विष्णवे नम: “पारस परिवार” की ओर से विजया एकादशी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
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