#महत्वपूर्ण हिंदू व्रत
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santoshkukreti04-blog · 2 years ago
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निर्जला एकादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है जो भगवान विष्णु की आराधना में समर्पित है। यह व्रत श्रद्धा, त्याग, और आत्म-समर्पण का प्रतीक है। इसके माध्यम से उपवासी शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ बनते हैं और अपने अंतरंग शांति का आनंद लेते हैं। यह व्रत संतुष्टि, शक्ति, और आनंद को अनुभव करने का एक अवसर प्रदान करता है।
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dharmikjeevan · 2 years ago
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Hindu Panchang: June 17, 2023 | Vrat, Tyohar, Muhurat, Choghadiya, and More
देखें जून 17, 2023 के लिए हिंदू पंचांग के व्रत, त्योहार, मुहूर्त, चौघड़िया और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी। यह वीडियो आपको सभी संगठनों और कार्यों के लिए सही समय और मुहूर्त की जानकारी प्रदान करेगी। जीवन को आसान बनाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए इस वीडियो को देखें।
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praysure · 1 day ago
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मिथिला पंचांग - 2025 एकादशी व्रत तिथियाँ एवं समय
एकादशी व्रत को हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे रखने से मोक्ष प्राप्ति, पापों का नाश और मन की शुद्धि होती है। हर महीने में दो बार एकादशी आती है—एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। मिथिला पंचांग – 2025 एकादशी व्रत तिथियाँ एवं समयएकादशी व्रत का महत्वएकादशी व्रत से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) मिथिला पंचांग – 2025…
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narayansevesansthan · 12 days ago
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षटतिला एकादशी 2025: तिथि, महत्व और अनुष्ठान
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षटतिला एकादशी का महत्व
षटतिला एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है, जिसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और आध्यात्मिक शुद्धिकरण के लिए रखा जाता है। यह एकादशी विशेष रूप से तिल (तिल के बीज) के उपयोग पर केंद्रित होती है। "षटतिला" नाम संस्कृत शब्दों "षट" (छह) और "तिल" (तिल के बीज) से बना है, जो इस दिन तिल के छह प्रकार के उपयोगों को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन व्रत करने से न केवल आत्मा की शुद्धि होती है बल्कि व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। इसलिए, यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है जो अपने जीवन में शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार चाहते हैं।
षटतिला एकादशी 2025 तिथि
षटतिला एकादशी 2025 माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल बदलती रहती है। 2025 में यह एकादशी किस दिन पड़ेगी, इसकी सटीक जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है ताकि भक्त सही समय पर व्रत और पूजा कर सकें।
इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के मन और शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ उसके कर्मों को सुधारने का अवसर प्रदान करता है। सही समय पर इस एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को अधिकतम आध्यात्मिक लाभ मिलता है।
षटतिला एकादशी के अनुष्ठान
षटतिला एकादशी के दिन विशेष रूप से तिल का उपयोग किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन तिल के छह प्रकार के प्रयोग करने से अधिकतम पुण्य की प्राप्ति होती है। ये छह प्रयोग इस प्रकार हैं:
तिल का दान – इस दिन जरूरतमंदों को तिल और अन्य खाद्य सामग्री का दान करना बेहद शुभ माना जाता है।
तिल का सेवन – उपवास करने वाले भक्त दिनभर तिल से बनी चीजों का सेवन कर सकते हैं।
तिल से स्नान – इस दिन तिल मिश्रित जल से स्नान करने से शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।
तिल से हवन – भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए तिल से हवन करना शुभ माना जाता है।
तिल से दी��क जलाना – इस दिन तिल के तेल से दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
तिल से तर्पण करना – पितरों की शांति के लिए तिल से तर्पण करना पुण्यदायी माना जाता है।
इस दिन भक्तों को चाहिए कि वे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें। व्रत रखने वाले व्यक्ति को क्रोध, लोभ और नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए तथा पूरी श्रद्धा से इस व्रत का पालन करना चाहिए।
निष्कर्ष
षटतिला एकादशी 2025 का पालन करने से भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यह दिन न केवल आत्मा की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इसे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने का मार्ग भी माना जाता है।
भगवान विष्णु की पूजा, व्रत, तिल का उपयोग, और जरूरतमंदों की सेवा करने से व्यक्ति के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। यदि आप इस एकादशी को सच्चे मन से मनाते हैं, तो यह आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। इसलिए, इस पावन दिन का अधिकतम लाभ उठाने के लिए सही तिथि, अनुष्ठान और नियमों का पालन करें।
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karmaastro · 25 days ago
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सकट चौथ 2025: तिथि, पूजा का समय, व्रत कथा, विधि और क्या करें और क्या न करें
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सकट चौथ, जिसे संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है, भगवान गणेश और देवी संकटहर्ता को समर्पित एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। मुख्य रूप से हिंदू भक्तों द्वारा मनाया जाने वाला यह दिन बाधाओं को दूर करने और भक्तों के जीवन में समृद्धि लाने में विश्वास रखता है। 2025 में, सकट चौथ उनके लिए विशेष महत्व रखता है जो अपने परिवार के कल्याण के लिए दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं।
सकट चौथ 2025 तिथि और पूजा का समय
पवित्र सकट चौथ 2025 को शुक्रवार, 17 जनवरी, 2025 को मनाया जाएगा। विस्तृत समय इस प्रकार है:
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 17 जनवरी 2025 को सुबह 6:14 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त: 18 जनवरी 2025 को सुबह 4:58 बजे
चंद्रोदय का समय: रात 8:47 बजे
भक्तों को शाम के समय पूजा करन�� चाहिए और चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत तोड़ना चाहिए।
सकट चौथ व्रत कथा
सकट चौथ व्रत कथा गहन आध्यात्मिक महत्व रखती है और भक्ति और विश्वास का महत्व सिखाती है। पूरी कथा इस प्रकार है:
प्राचीन समय में, एक समृद्ध राज्य पर एक धर्मपरायण राजा शासन करता था। राज्य की रानी गहरी भक्त थीं और नियमित रूप से अपने परिवार के कल्याण के लिए अनुष्ठान करती थीं। लेकिन राजकुमार, उनका इकलौता पुत्र, गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। सबसे अच्छे चिकित्सकों की सलाह और अनगिनत अनुष्ठानों के बावजूद, उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
एक दिन, एक ज्ञानी साधु महल में आए। राजकुमार की स्थिति सुनने के बाद, साधु ने सकट चौथ व्रत रखने और भगवान गणेश और देवी संकटहर्ता को समर्पित एक विशेष पूजा करने का सुझाव दिया। साधु ने बताया कि देवी संकटहर्ता इस दिन विशेष रूप से कृपालु होती हैं और जो लोग भक्ति के साथ व्रत रखते हैं उन्हें कठिनाइयों से राहत प्रदान करती हैं।
रानी ने साधु की सलाह मानने का निर्णय लिया। सकट चौथ के दिन, उन्होंने निर्जला व्रत (बिना पानी के व्रत) रखा, पूरी श्रद्धा के साथ अनुष्ठान किए और व्रत कथा सुनी। उन्होंने भगवान गणेश और देवी संकटहर्ता से प्रार्थना की कि वे उनके पुत्र का जीवन बचाएं। चंद्रमा के उदय के समय, उन्होंने चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर व्रत तोड़ा।
चमत्कारिक रूप से, उसी रात से राजकुमार की तबीयत में सुधार होने लगा। कुछ ही दिनों में, वह पूरी तरह से ठीक हो गया, जिससे शाही परिवार में आनंद और राहत फैल गई। तब से, सकट चौथ व्रत रखने की परंपरा जारी है, और भक्तों का मानना है कि यह उनके बच्चों की रक्षा कर सकता है और उनके जीवन से बाधाओं को दूर कर सकता है।
सकट चौथ व्रत की दूसरी कथा
एक गांव में एक गरीब लेकिन भक्त महिला रहती थी। उसका इकलौता पुत्र था, जिसे उसने अपनी कठिनाइयों के बावजूद बहुत प्यार और देखभाल से पाला। महिला की भगवान गणेश में गहरी आस्था थी, और वह नियमित रूप से उनके व्रत और पूजा करती थी।
एक बार, गांव में भयंकर अकाल पड़ा, और महिला को भोजन जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। एक दिन, उसने सकट चौथ का महत्व सुना और व्रत रखने का निर्णय लिया। उसने निर्जला व्रत किया और पूरी श्रद्धा से भगवान गणेश की पूजा की। पूजा के दौरान उसने व्रत कथा सुनी और अपनी संतान की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए प्रार्थना की।
उसके बेटे को एक दिन अचानक जंगल में एक बड़े खतरे का सामना करना पड़ा। एक विशाल सांप ने उसे काटने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही वह सांप उसके करीब आया, भगवान गणेश प्रकट हुए और अपने दिव्य प्रभाव से सांप ��ो वहां से भगा दिया।
जब महिला को इस घटना के बारे में पता चला, तो उसने भगवान गणेश का धन्यवाद किया और समझ गई कि सकट चौथ व्रत ने उसके बेटे की जान बचाई। तभी से यह परंपरा प्रचलित हो गई कि इस दिन व्रत रखने से बच्चों की रक्षा होती है और परिवार पर आने वाले संकट दूर हो जाते हैं।
सकट चौथ की एक और प्रसिद्ध कथा
प्राचीन समय में, एक गांव में एक साहूकार (व्यापारी) रहता था। उसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। साहूकार की सबसे छोटी बहू बहुत भक्त थी और भगवान गणेश में गहरी आस्था रखती थी। जब भी कोई पर्व या व्रत आता, वह श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए पूजा-अर्चना करती।
एक बार सकट चौथ का दिन आया। साहूकार की छोटी बहू ने व्रत रखने का संकल्प लिया। पूरे दिन उसने निर्जला व्रत किया और शाम को पूजा की तैयारी करने लगी। लेकिन साहूकार और उसकी अन्य बहुओं ने उसका मजाक उड़ाया। उन्होंने कहा, "तुम्हारे इस उपवास और पूजा का कोई अर्थ नहीं है। इससे किसी को कोई लाभ नहीं होगा।"
छोटी बहू ने उनकी बातों को अनसुना किया और अपने व्रत और पूजा में ध्यान केंद्रित किया। उसने भगवान गणेश की पूजा करते हुए दुर्वा, मोदक, और लाल फूल अर्पित किए और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला।
उस रात, साहूकार के परिवार में एक अनहोनी घटित हुई। साहूकार और उसकी छह बहुएं गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं। घर में अशांति फैल गई। परिवार के लोग इस विपदा का कारण समझने में असमर्थ थे। परेशान होकर उन्होंने गांव के एक संत से परामर्श लिया।
संत ने कहा, "आपने सकट चौथ व्रत और पूजा का अपमान किया है। भगवान गणेश ने आपको यह सजा दी है। इस संकट से बचने के लिए पूरे परिवार को गणेश जी से क्षमा मांगनी होगी और व्रत को श्रद्धा के साथ करना होगा।"
साहूकार और उसकी बहुएं बहुत पछताईं। उन्होंने अगले दिन गणेश जी की विधिवत पूजा की और भगवान गणेश से क्षमा मांगी। उनकी प्रार्थनाओं के बाद, परिवार के सभी सदस्य ठीक हो गए।
तब से, यह कथा प्रचलित हो गई और सकट चौथ व्रत का महत्व हर घर में बताया जाने लगा। यह व्रत सिखाता है कि भक्ति, श्रद्धा, और विश्वास से भगवान गणेश सभी संकटों को हर लेते हैं और परिवार में सुख-शांति लाते हैं।
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इस कथा का महत्व
यह कहानी सिखाती है कि भक्ति और विश्वास के साथ व्रत रखने से भगवान गणेश और देवी संकटहर्ता की कृपा प्राप्त होती है। संकटों से मुक्ति पाने और संतान के कल्याण के लिए यह व्रत विशेष रूप से प्रभावशाली माना जाता है।
सकट चौथ पूजा विधि
1. सुबह की तैयारी:
सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
पूजा स्थल को साफ करें और वहां भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
2. संकल्प:
व्रत को श्रद्धा से रखने का संकल्प लें और अपने परिवार के कल्याण और बाधाओं को दूर करने के लिए प्रार्थना करें।
3. पूजा विधि:
एक दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं।
दुर्वा, लाल फूल, फल और मोदक जैसे मिठाई भगवान गणेश को अर्पित करें।
गणेश मंत्र जैसे “ॐ गं गणपतये नमः” का जाप करें।
4. शाम की पूजा:
भगवान गणेश के लिए भोग तैयार करें।
सकट चौथ व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
आरती करें और सभी बाधाओं को दूर करने के लिए प्रार्थना करें।
5. व्रत तोड़ना :
चंद्रमा के दर्शन के बाद, चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करके व्रत तोड़ें।
क्या करें (Dos) सकट चौथ पर
• निर्जला व्रत रखें: यह व्रत का सबसे शुभ तरीका माना जाता है। जो लोग निर्जला व्रत नहीं रख सकते, वे आंशिक व्रत रख सकते हैं।
• मोदक और दुर्वा चढ़ाएं: यह भगवान गणेश की प्रिय भेंट मानी जाती है।
• गणेश मंत्र का जाप करें: भगवान गणेश को समर्पित मंत्रों का जाप व्रत के सकारात्मक प्रभावों को बढ़ाता है।
• व्रत कथा सुनें: पूजा के दौरान सकट चौथ कथा अवश्य सुनें या पढ़ें।
क्या न करें (Don’ts) सकट चौथ पर
• मांसाहारी भोजन से बचें: इस पवित्र दिन पर मांसाहारी भोजन और शराब से दूर रहें।
• चंद्रोदय अनुष्ठान को न छोड़ें: व्रत चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित किए बिना अधूरा माना जाता है।
• लहसुन और प्याज का उपयोग न करें: भोग और अपने भोजन (यदि आंशिक व्रत) के लिए सात्विक भोजन तैयार करें।
• नकारात्मक विचार न रखें: पूरे दिन सकारात्मक और भक्ति से भरा दृष्टिकोण बनाए रखें। सकट चौथ का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष के अनुसार, सकट चौथ मनाने से राहु और केतु जैसे अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो अपने कुंडली में प्रतिकूल ग्रहों की महादशा या अंतरदशा के कठिन समय से गुजर रहे हैं। इस शुभ दिन के लाभों को अपनी अनूठी ग्रह स्थिति के आधार पर अधिकतम करने के लिए डॉ. विनय बजरंगी जैसे अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श करें।
निष्कर्ष
सकट चौथ 2025 भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने और जीवन की चुनौतियों को दूर करने का एक शक्तिशाली दिन है। व्रत को श्रद्धा से रखकर, पूजा को भक्ति से करके, और क्या करें और क्या न करें का पालन करके, भक्त आध्यात्मिक और भौतिक लाभों का अनुभव कर सकते हैं। इस दिन का आपके जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ सकता है, इस पर व्यक्तिगत ज्योतिषीय मार्गदर्शन के लिए डॉ. विनय बजरंगी से परामर्श करें।
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narayansevango · 29 days ago
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पौष पुत्रदा एकादशी 2025: महत्व, तिथि, पूजा विधि और दान
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पौष पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है और माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी 2025 की तिथि और समय
तिथि: पौष पुत्रदा एकादशी 2025, 10 जनवरी को मनाई जाएगी।
समय: एकादशी तिथि 9 जनवरी, 2025 को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी और 10 जनवरी, 2025 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी।
पारण समय: 11 जनवरी, 2025 को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 21 मिनट के बीच किया जाएगा।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्र प्राप्ति: यह व्रत मुख्य रूप से पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।
पापों का नाश: माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है।
भगवान विष्णु की कृपा: यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का एक शक्तिशाली साधन है।
आध्यात्मिक विकास: यह व्रत आध्यात्मिक विकास और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि
पूजा का समय: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं।
व्रत कथा: पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें।
मंत्र जाप: विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।
दान: गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें।
पौष पुत्रदा एकादशी में दान का महत्व
दान करना पौष पुत्रदा एकादशी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। माना जाता है कि इस दिन दान करने से पुण्�� की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आप अन्न, वस्त्र, धन आदि दान कर सकते हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी का निष्कर्ष
पौष पुत्रदा एकादशी एक पवित्र और शुभ अवसर है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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parasparivaarorg · 3 months ago
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पारस भाई देवउठनी एकादशी पर एक शुभ दिन
सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है। ��ूरे वर्ष में लगभग 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन देवउठनी ग्यारस का अपना महत्व है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन को भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से सभी तरह के शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयन एकादशी के बाद ये सभी शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं।
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धार्मिक महत्व और देवउठनी एकादशी।
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु देवशयन एकादशी योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसके बाद वे चार महीने बाद देवउठनी एकादशी पर जागते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। यह समय ध्यान, साधना, संयम और त्याग का प्र���ीक कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के पावन काल में भगवान विष्णु के शुभ जागरण के साथ ही सभी सकारात्मक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है और इस दिन की गई पूजा और व्रत से विशेष लाभ मिलता है। श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी, हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता में कहा जाता है कि एक बार हिंदू धर्म की लोकप्रिय देवी मां लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया और उन्हें और देवताओं को चार महीने के लिए अपने काम से आराम करने और योग निद्रा में जाने के लिए कहा। भगवान उनकी बात मान गए और चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए। भगवान ने आषाढ़ माह में यह निद्रा ली और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपना नैतिक कार्य फिर से शुरू किया। जागने के बाद उन्होंने सभी देवताओं को उनके कर्तव्��ों के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में देवउठनी ग्यारस को आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है पारस भाई जी की मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं, जीवन के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र विवाह अनुष्ठान को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
पारस परिवार के मुखिया श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी तुलसी विवाह के पीछे एक कथा है। भगवान विष्णु ने राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा को पवित्र तुलसी मां में बदल दिया और फिर उनका विवाह स्वयं विष्णु के एक रूप भगवान शालिग्राम से कराया। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा मनाई जाने लगी।
पवित्र देवउठनी ग्यारस व्रत की विधि
सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने धूपबत्ती और दीपक जलाया जाता है। भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष फूल, फल, मिठाई, चावल आदि अर्पित किए जाते हैं। इस दिन लोग अपने पूजा स्थल पर तुलसी के पत्ते रखकर उनकी पूजा भी करते हैं। पारस भाई जी के अनुसार तुलसी के पत्ते चढ़ाए बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी रहती है। इस दिन शाम के समय भगवान विष्णु को मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत के लाभ
देवउठनी एकादशी का व्रत करने से कई लाभ मिलते हैं। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सनातन धर्म व्रत अनुष्ठानों का पालन करता है और अपनी आत्मा को इन धार्मिक देवों से जोड़ने का प्रयास करता है। व्रत करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। तुलसी विवाह करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है और उनके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी पर ध्यान देने योग्य बातें
व्रत का पालन: इस दिन व्रत करने से मन शुद्ध होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। व्रती को केवल फलाहार ही करना चाहिए तथा अन्न नहीं खाना चाहिए।
दिनभर विष्णु भजन: इस दिन भगवान विष्णु के भजनों का पाठ करना चाहिए, जिससे मन को शांति मिलती है।
सामूहिक पूजा: इस दिन पूरा परिवार सामूहिक पूजा करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
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digitalramsharma · 3 months ago
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Chhath Puja Song 2024
**छठ पूजा: सूर्य देवता की आराधना और भारतीय संस्कृति में इसका महत्व**
**परिचय**
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की पूजा का पर्व है, जिसमें श्रद्धालु सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा करते हैं। यह पर्व शुद्धता, तात्त्विकता और सूर्य के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
**छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति**
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में कई ��लग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह पूजा सूर्य देवता की आराधना से संबंधित है, जिसे हिंदू धर्म में 'आदि देवता' के रूप में पूजा जाता है। छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में मानी जाती है, जब पांडवों ने सूर्य देवता की आराधना की थी।
**छठ पूजा का महत्व**
छठ पूजा का महत्व शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता से जुड़ा हुआ है। इस पूजा में सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है, जो जीवन के उत्थान और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इस पूजा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत कल्याण है, बल्कि पूरे समाज के कल्याण की भी कामना की जाती है। यह पर्व एकता, भाईचारे, और समाज की समृद्धि को बढ़ावा देने वाला है।
**छठ पूजा की तैयारी**
छठ पूजा की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। इस पूजा का सबसे अहम हिस्सा है 'व्रत'। जो लोग व्रत करते हैं, वे पूरे दिन उपवासी रहते हैं, और सन्नाटे में अपना समय बिताते हैं। यह पूजा पूरी तरह से शुद्धता और संयम पर आधारित है, इसलिए पूजा की तैयारी में ध्यान, स्वच्छता, और साधना का विशेष स्थान होता है।
**छठ पूजा का व्रत और विधि**
छठ पूजा के मुख्य रूप से दो दिन होते हैं -
1. **पहला दिन - नहाय-खाय**: इस दिन व्रति गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करके, शुद्ध होकर अपने घर लौटते हैं। इस दिन व्रति विशेष प्रकार का भोजन करते हैं, जिसे 'नहाय-खाय' कहा जाता है। यह भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, जिसमें कद्दू-चिउड़ा, चावल, दाल और साग होते हैं। इस दिन का उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और मानसिक रूप से पूजा के लिए तैयार होना होता है।
2. **दूसरा दिन - खट्टी-चढ़ाई**: यह दिन व्रति के लिए विशेष रूप से कठिन होता है। इस दिन व्रति केवल फलाहार करते हैं और पूरे दिन उपवासी रहते हैं। वे सूर्य देवता की उपासना के लिए पवित्र जल में स्नान करते हैं और छठी मइया को सम्मानित करने के लिए पूजा करते हैं। इस दिन के अंत में व्रति ठेकुआ और अन्य पकवानों का प्रसाद छठी मइया को अर्पित करते हैं।
**छठ पूजा में पर्यावरण का महत्व** छठ पूजा में प्रकृति और पर्यावरण का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इस पूजा के दौरान नदी, तालाब या जलाशयों में स्नान करना और सूर्य देवता की पूजा करना, यह प्रदूषण और जलवायु संरक्षण का संदेश देता है।
**समाप्ति**
छठ पूजा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन में संयम, शुद्धता, और आस्था को भी बढ़ावा देती है। सूर्य देवता की आराधना के माध्यम से हम अपने जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की कामना करते हैं।
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festivalblogs · 4 months ago
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करवा चौथ 2024: पूजा का महत्व, विधि और तिथि
Karwa Chauth 2024: करवा चौथ का व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य, और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के साथ रखा जाता है। यह निर्जला व्रत है, जिसमें महिलाओं को अन्न और जल ग्रहण करने की अनुमति नहीं होती। करवा चौथ के दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत किया जाता है और रात में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ 20 अक्टूबर, 2024 को मनाया जाएगा।
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sharpbharat · 5 months ago
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Jitiya vrat 2024 - पंचांग अनुसार इस दिन रखा जायेगा जितिया व्रत, जानें जीवित्पुत्रिका व्रत की सही तिथि, मुहूर्त और महत्व
शार्प भारत डेस्क : जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपवास माना गया है. जितिया व्रत में, महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं. पंचांग के अनुसार आश्विन माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी पर जितिया व्रत किया जाता है. इस साल यह व्रत 25 सितंबर को किया जा रहा है. मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से संतान की आयु लंबी होती है.…
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jeevanjali · 5 months ago
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Hartalika Teej: हरतालिका तीज पर भूल से भी ना खाएं, ये चीजें नाराज हो सकती हैं तीज माताHartalika Teej: हरतालिका तीज एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो खासकर महिलाओं द्वारा व्रत के रूप में मनाया जाता है, इस दिन, महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए उपवासी रहती हैं,
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dharmikjeevan · 2 years ago
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Hindu Panchang: June 16, 2023 | Vrat, Tyohar, Muhurat, Choghadiya, and More
देखें जून 16, 2023 के लिए हिंदू पंचांग के व्रत, त्योहार, मुहूर्त, चौघड़िया और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी। यह वीडियो आपको सभी संगठनों और कार्यों के लिए सही समय और मुहूर्त की जानकारी प्रदान करेगी। जीवन को आसान बनाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए इस वीडियो को देखें।
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praysure · 3 months ago
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हिंदू कैलेंडर नवंबर 2024, जानें पूरे माह के व्रत-त्योहार, शुभ मुहूर्त
नवंबर 2024 का हिंदू कैलेंडर व्रत-त्योहार और शुभ मुहूर्त से भरपूर है। इस माह में छठ पूजा, भाई दूज और देवउठनी एकादशी जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाए जाते हैं। इसके अलावा गोपाष्टमी, तुलसी विवाह, कार्तिक पूर्णिमा और उत्पन्ना एकादशी जैसे अन्य त्योहारों का भी विशेष म
हिंदू कैलेंडर नवंबर 2024, जानें पूरे माह के व्रत-त्योहार, शुभ मुहूर्तनवंबर 2024 का हिंदू कैलेंडर व्रत-त्योहार और शुभ मुहूर्त से भरपूर है। इस माह में छठ पूजा, भाई दूज और देवउठनी एकादशी जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाए जाते हैं। इसके अलावा गोपाष्टमी, तुलसी विवाह, कार्तिक पूर्णिमा और उत्पन्ना एकादशी जैसे अन्य त्योहारों का भी विशेष महत्व है। यहां नवंबर 2024 में पड़ने वाले व्रत और त्योहारों की सूची दी गई…
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essentialoilsmanufacturar · 5 months ago
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को ढेरों शुभकामनायें
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व आज, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
कान्हा जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। उनकी अद्भुत लीलाओं का वर्णन आज भी उनके भक्तों के जुबान पर है। यह दिव्य त्योहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का प्रतीक है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह पर्व (Krishna Janmashatami 2024 Subh Muhurat) 26 अगस्त को मनाया जाएगा तो आइए इसकी पूजा विधि मंत्र और पूजन का समय जानते हैं।
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जन्माष्टमी का पर्व बेहद शुभ माना जाता है।
कान्हा जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं।
इस साल जन्माष्टमी 26 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी
जन्माष्टमी के पर्व को बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 2024 वर्ष में जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन (Janmashatami 2024 Subh Muhurat) सच्चे भाव के साथ कान्हा जी की पूजा-अर्चना करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में शुभता का आगमन होता है।
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करियर में सफल��ा प्राप्ति के लिए कान्हा जी को अर्पित करें प्रिय फूल, पूजा होगी सफल
जन्माष्टमी का पर्व कान्हा जी को समर्पित है। मान्यता है कि जन्माष्टमी (Janmashtami 2024) पर विधिपूर्वक कान्हा जी की उपासना और व्रत करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी। साथ ही प्रभु प्रसन्न होंगे। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे जन्माष्टमी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नियम जिनका पालन करने से आप करियर में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
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भाद्रपद माह में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
इस अवसर पर लड्डू गोपाल का अभिषेक किया जाता है।
प्रभु को प्रिय फूल अर्पित करने चाहिए।
Janmashtami 2024: धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। इसलिए इस तिथि पर हर साल जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार आज यानी 26 अगस्त को है। ऐसा माना जाता है कि पूजा के दौरान लड्डू गोपाल को प्रिय फूल अर्पित करने से साधक का जीवन सदैव खुशहाल रहता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। ऐसे में आइए जानते हैं प्रभु को कौन से फूल चढ़ाने चाहिए ?
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जन्माष्टमी 2024 पूजा शुभ मुहूर्त (Janmashtami 2024 Puja Time)
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पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 26 अगस्त को मध्य रात्रि 03 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो गई है। साथ ही इस तिथि का समापन 27 अगस्त को मध्य रात्रि 02 बजकर 19 पर समाप्त होगा। ऐसे में जन्माष्टमी व्रत आज यानी 26 अगस्त को किया जाएगा। कान्हा जी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 27 अगस्त की रात्रि 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक है।
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hindunidhi · 6 months ago
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वरलक्ष्मी व्रत पूजन की विधि और महत्व: सुख, समृद्धि, वैवाहिक सौभाग्य का वरदान
वरलक्ष्मी व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए होता है और माना जाता है कि इसे रखने से सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वरलक्ष्मी व्रत एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को रखने से सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यदि आप भी वरलक्ष्मी व्रत रखना चाहते हैं, तो उपरोक्त विधि का पालन कर सकते हैं।
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वरलक्ष्मी व्रत का महत्व
इस व्रत को रखने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। लक्ष्मी जी धन की देवी हैं और उनकी कृपा से घर में सुख-समृद्धि आती है।
विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।
वरलक्ष्मी व्रत को रखने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत पूजन विधि
वरलक्ष्मी व्रत पूजन की विधि इस प्रकार है
सबसे पहले एक कलश स्थापित किया जाता है। कलश को आम के पत्तों और फूलों से सजाया जाता है।
कलश स्थापना के बाद गणेश जी की पूजा की जाती है।
फिर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र को फूलों और रोली से सजाया जाता है।
लक्ष्मी जी को रोली, चावल, फूल, मिठाई और फल अर्पित किए जाते हैं।
दीपक जलाकर लक्ष्मी जी को अर्पित किया जाता है।
लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप किया जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत कथा सुनी जाती है।
अंत में आरती की जाती है।
अन्य जानकारी
वरलक्ष्मी व्रत आमतौर पर श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
इस व्रत को रखने के लिए विशेष रूप से सोलह श्रृंगार किया जाता है।
इस दिन महिलाएं नए वस्त्र पहनती हैं और सोने के आभूषण धारण करती हैं।
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samparkpanditji · 9 months ago
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अविश्वसनीय "जया एकादशी व्रत कथा: 2024" (मोक्ष प्राप्ति)
"जया एकादशी" का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। 2024 में जया एकादशी का व्रत 9 फरवरी को पड़ेगा। इस व्रत की कथा और महत्व को समझना मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
जया एकादशी व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्रलोक में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक अप्सरा रहती थी। एक बार दोनों ने इंद्र की सभा में अपने कर्तव्यों का पालन करते समय एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होकर ध्यान भंग कर दिया। इससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने दोनों को श्राप देकर पृथ्वी पर राक्षस योनि में जन्म लेने का आदेश दिया। पृथ्वी पर आकर वे दोनों दुखी और कष्टमय जीवन जीने लगे।
एक दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन, भूले-भटके उन्होंने इस पवित्र दिन का व्रत रखा और भगवान विष्णु की आराधना की। उनके इस व्रत के प्रभाव से वे अपने पापों से मुक्त हो गए और पुनः अपने दिव्य स्वरूप में लौट आए। भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद देकर उनके कष्टों का अंत किया और उन्हें स्वर्गलोक भेज दिया।
जया एकादशी व्रत का महत्व:
जया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है। कहा जाता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं।
व्रत के दिन प्रातः काल स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और व्रत की कथा का पाठ करना चाहिए। व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है और संभव हो तो रात में जागरण करके भगवान का स्मरण करना चाहिए। जया एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और अंततः मोक्ष प्राप्ति होती है।
इस प्रकार, जया एकादशी व्रत कथा और इसका पालन करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है।
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