#महत्वपूर्ण हिंदू व्रत
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निर्जला एकादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है जो भगवान विष्णु की आराधना में समर्पित है। यह व्रत श्रद्धा, त्याग, और आत्म-समर्पण का प्रतीक है। इसके माध्यम से उपवासी शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ बनते हैं और अपने अंतरंग शांति का आनंद लेते हैं। यह व्रत संतुष्टि, शक्ति, और आनंद को अनुभव करने का एक अवसर प्रदान करता है।
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Hindu Panchang: June 17, 2023 | Vrat, Tyohar, Muhurat, Choghadiya, and More
देखें जून 17, 2023 के लिए हिंदू पंचांग के व्रत, त्योहार, मुहूर्त, चौघड़िया और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी। यह वीडियो आपको सभी संगठनों और कार्यों के लिए सही समय और मुहूर्त की जानकारी प्रदान करेगी। जीवन को आसान बनाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए इस वीडियो को देखें।
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Chhath Puja 2024 Paran: उषा अर्घ्य के साथ हुआ छठ पूजा का समापन, अब व्रती करेंगे निर्जला व्रत का पारण
Chhath Puja 2024 Morning Arghya: छठ महापर्व का शुरुआत नहाय खाय से होती है और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद समाप्त होती है. जो कि 5 नवंबर से शुरू हुई थी और समापन 8 नवंबर को यानी आज उगते सूर्य को अर्घ्य देने से हुई. हिंदू धर्म में यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं सुबह उगते हुए सूर्य को नदी के घाट पर जाकर अर्घ्य देती हैं. इसके साथ ही छठी मैया और सूर्य भगवान की आराधना…
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Chhath Puja Song 2024
**छठ पूजा: सूर्य देवता की आराधना और भारतीय संस्कृति में इसका महत्व**
**परिचय**
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की पूजा का पर्व है, जिसमें श्रद्धालु सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा करते हैं। यह पर्व शुद्धता, तात्त्विकता और सूर्य के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
**छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति**
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में कई अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह पूजा सूर्य देवता की आराधना से संबंधित है, जिसे हिंदू धर्म में 'आदि देवता' के रूप में पूजा जाता है। छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में मानी जाती है, जब पांडवों ने सूर्य देवता की आराधना की थी।
**छठ पूजा का महत्व**
छठ पूजा का महत्व शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता से जुड़ा हुआ है। इस पूजा में सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है, जो जीवन के उत्थान और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इस पूजा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत कल्याण है, बल्कि पूरे समाज के कल्याण की भी कामना की जाती है। यह पर्व एकता, भाईचारे, और समाज की समृद्धि को बढ़ावा देने वाला है।
**छठ पूजा की तैयारी**
छठ पूजा की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। इस पूजा का सबसे अहम हिस्सा है 'व्रत'। जो लोग व्रत करते हैं, वे पूरे दिन उपवासी रहते हैं, और सन्नाटे में अपना समय बिताते हैं। यह पूजा पूरी तरह से शुद्धता और संयम पर आधारित है, इसलिए पूजा की तैयारी में ध्यान, स्वच्छता, और साधना का विशेष स्थान होता है।
**छठ पूजा का व्रत और विधि**
छठ पूजा के मुख्य रूप से दो दिन होते हैं -
1. **पहला दिन - नहाय-खाय**: इस दिन व्रति गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करके, शुद्ध होकर अपने घर लौटते हैं। इस दिन व्रति विशेष प्रकार का भोजन करते हैं, जिसे 'नहाय-खाय' कहा जाता है। यह भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, जिसमें कद्दू-चिउड़ा, चावल, दाल और साग होते हैं। इस दिन का उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और मानसिक रूप से पूजा के लिए तैयार होना होता है।
2. **दूसरा दिन - खट्टी-चढ़ाई**: यह दिन व्रति के लिए विशेष रूप से कठिन होता है। इस दिन व्रति केवल फलाहार करते हैं और पूरे दिन उपवासी रहते हैं। वे सूर्य देवता की उपासना के लिए पवित्र जल में स्नान करते हैं और छठी मइया को सम्मानित करने के लिए पूजा करते हैं। इस दिन के अंत में व्रति ठेकुआ और अन्य पकवानों का प्रसाद छठी मइया को अर्पित करते हैं।
**छठ पूजा में पर्यावरण का महत्व** छठ पूजा में प्रकृति और पर्यावरण का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इस पूजा के दौरान नदी, तालाब या जलाशयों में स्नान करना और सूर्य देवता की पूजा करना, यह प्रदूषण और जलवायु संरक्षण का संदेश देता है।
**समाप्ति**
छठ पूजा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन में संयम, शुद्धता, और आस्था को भी बढ़ावा देती है। सूर्य देवता की आराधना के माध्यम से हम अपने जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की कामना करते हैं।
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करवा चौथ 2024: पूजा का महत्व, विधि और तिथि
Karwa Chauth 2024: करवा चौथ का व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य, और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के साथ रखा जाता है। यह निर्जला व्रत है, जिसमें महिलाओं को अन्न और जल ग्रहण करने की अनुमति नहीं होती। करवा चौथ के दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत किया जाता है और रात में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ 20 अक्टूबर, 2024 को मनाया जाएगा।
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विजया एकादशी क्या है पारस जी से जाने?
हर महीने में दो बार एकादशी व्रत किया जाता है और इस तरह एक साल में 24 एकादशी व्रत किए जाते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपको किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त हो तो इसके लिए विजया एकादशी का व्रत रखें। इस व्रत को रखने से और भगवान विष्णु की पूजा करने से आपको जीवन में अवश्य सफलता मिलती है। इसी कड़ी में आइये जानते हैं कब है विजया एकादशी का व्रत और क्या है इस व्रत का महत्व ?
कब है विजया एकादशी 2024 ?
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। उदयातिथि के आधार पर विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च बुधवार को है। क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 6 मार्च को होगा इसलिए यह व्रत इसी दिन किया जायेगा। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले विजया एकादशी का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से उन्होंने रावण का वध किया था इसलिए ��स दिन व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि
विजया एकादशी के दिन सबसे पहले सवेरे उठकर स्नान आदि करें और फिर सच्चे मन से भगवान विष्णु का नाम लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर भगवान को अक्षत, फल, पुष्प, चंदन, मिठाई, रोली, मोली आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है। श्रद्धा-भाव से पूजा कर अंत में भगवान विष्णु की आरती करने के बाद सबको प्रसाद बांटें।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी शुभ होता है क्योंकि इस पाठ को करने से लक्ष्मी जी आपके घर में वास करती हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के शुभ दिन किसी गोशाला में गायों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करें। विजया एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गरीबों व जरूरतमंदों को अन्न , वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें।
विजया एकादशी पारण
विजया एकादशी व्रत के दूसरे दिन पारण किया जाता है। एकादशी व्रत में दूसरे दिन विधि-विधान से व्रत को पूर्ण किया जाता है। विजया एकादशी व्रत का पारण 7 मार्च, गुरु��ार को किया जाएगा। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस व्रत का पारण करने से पहले आप ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें और साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद को दान करें और इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।
विजया एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। साल में जो 24 एकादशी आती हैं, हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की मुश्किलें दूर होती हैं और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पाप मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी जिसके नाम से ही पता चलता है कि इस एकादशी के प्रभाव से आपको विजय की प्राप्ति होती है। यानि विजय प्राप्ति के लिए इस दिन श्रीहरि की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उस मनुष्य के पितृ स्वर्ग लोक में जाते हैं।
पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें- कृं कृष्णाय नम:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:। महंत श्री पारस भाई जी ने इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है। विजया एकादशी का व्रत भी बाकी एकादशियों की तरह बहुत ही कल्याणकारी है।
महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि यदि आप शत्रुओं से घिरे हो और कैसी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, तब विजया एकादशी के व्रत से आपकी जीत निश्चित है।
इस दिन ये उपाय होते हैं बहुत ख़ास
तुलसी की पूजा विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा को बहुत ही अधिक महत्व दिया जाता है। इस तुलसी के पौधे को जल अर्पित कर दीपक जलाएं। इसके अलावा तुलसी का प्रसाद भी ग्रहण करें। ऐसा करने से घर से दुःख दूर होते हैं और घर में खुशालीआती है ।
शंख की पूजा
विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा की तरह शंख पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। इस दिन शंख को तिलक लगाने के बाद शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक कर शंख बजाएं। शंख से अभिषेक कर बजाना भी फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पीला चंदन प्रयोग करें
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के दिन पीले चंदन का अत्यंत महत्व होता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को और स्वयं भी पीले चंदन का टीका अवश्य लगाएं। पीले चंदन का टीका लगाने से आपको कभी असफलता नहीं मिलेगी और आपकी सदैव जीत होगी।
ॐ श्री विष्णवे नम: “पारस परिवार” की ओर से विजया एकादशी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
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Jitiya vrat 2024 - पंचांग अनुसार इस दिन रखा जायेगा जितिया व्रत, जानें जीवित्पुत्रिका व्रत की सही तिथि, मुहूर्त और महत्व
शार्प भारत डेस्क : जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपवास माना गया है. जितिया व्रत में, महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं. पंचांग के अनुसार आश्विन माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी पर जितिया व्रत किया जाता है. इस साल यह व्रत 25 सितंबर को किया जा रहा है. मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से संतान की आयु लंबी होती है.…
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भाद्रपद पूर्णिमा 2024: धार्मिक महत्व और पूजा विधि
भाद्रपद पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष महत्व रखती हैं।
2024 में भाद्रपद पूर्णिमा की तारीख:
तिथि: 17 सितंबर, 2024
शुभ मुहूर्त: (यहाँ आप विशिष्ट शुभ मुहूर्त का उल्लेख कर सकते हैं, जैसे कि पूजा का समय, स्नान का समय आदि)
भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व:
धार्मिक महत्व: इस दिन पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। इसलिए, पितरों का श्राद्ध करना और दान करना विशेष महत्व रखता है।
ज्योतिषीय महत्व: चंद्रमा की किरणें इस दिन विशेष प्रभाव डालती हैं। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
आध्यात्मिक महत्व: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा की पूजा विधि:
स्नान: सुबह जल्दी उठकर गंगा जल से स्नान करना शुभ माना जाता है।
पूजा: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र को स्नान कराकर शुद्ध करें। उन्हें फूल, चंदन, अक्षत, रोली और धूप-दीप अर्पित करें।
व्रत: इस दिन व्रत रखना शुभ माना जाता है।
दान: गरीबों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
कथा: भाद्रपद पूर्णिमा की कथा का पाठ करना चाहिए।
भाद्रपद पूर्णिमा पर क्या करें:
चंद्र दर्शन: पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को अर्घ्य दें।
मंत्र जाप: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के मंत्र���ं का जाप करें।
धार्मिक ग्रंथों का पाठ: भगवद गीता, श्रीमद् भागवत गीता आदि धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें।
भाद्रपद पूर्णिमा पर क्या न करें:
अशुभ कार्य: इस दिन कोई भी अशुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
झूठ बोलना: झूठ बोलने से बचना चाहिए।
क्रोध करना: क्रोध करने से बचना चाहिए।
भाद्रपद पूर्णिमा के लाभ:
मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
रोगों से छुटकारा मिलता है।
नारायण सेवा संस्थान के स्वयंसेवक इस दिन जरूरतमंद लोगों की सेवा में जुट जाते हैं। वे भोजन, कपड़े, दवाइयाँ और अन्य आवश्यक चीज़ें वितरित करते हैं। इसके अलावा, वे गरीब बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिए भी कार्य करते हैं।
निष्कर्ष:
भाद्रपद पूर्णिमा एक पवित्र त्योहार है जो धार्मिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
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Hartalika Teej: हरतालिका तीज पर भूल से भी ना खाएं, ये चीजें नाराज हो सकती हैं तीज माताHartalika Teej: हरतालिका तीज एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो खासकर महिलाओं द्वारा व्रत के रूप में मनाया जाता है, इस दिन, महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए उपवासी रहती हैं,
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को ढेरों शुभकामनायें
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व आज, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
कान्हा जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। उनकी अद्भुत लीलाओं का वर्णन आज भी उनके भक्तों के जुबान पर है। यह दिव्य त्योहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का प्रतीक है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह पर्व (Krishna Janmashatami 2024 Subh Muhurat) 26 अगस्त को मनाया जाएगा तो आइए इसकी पूजा विधि मंत्र और पूजन का समय जानते हैं।
जन्माष्टमी का पर्व बेहद शुभ माना जाता है।
कान्हा जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं।
इस साल जन्माष्टमी 26 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी
जन्माष्टमी के पर्व को बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 2024 वर्ष में जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन (Janmashatami 2024 Subh Muhurat) सच्चे भाव के साथ कान्हा जी की पूजा-अर्चना करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में शुभता का आगमन होता है।
करियर में सफलता प्राप्ति के लिए कान्हा जी को अर्पित करें प्रिय फूल, पूजा होगी सफल
जन्माष्टमी का पर्व कान्हा जी को समर्पित है। मान्यता है कि जन्माष्टमी (Janmashtami 2024) पर विधिपूर्वक कान्हा जी की उपासना और व्रत करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी। साथ ही प्रभु प्रसन्न होंगे। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे जन्माष्टमी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नियम जिनका पालन करने से आप करियर में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
भाद्रपद माह में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
इस अवसर पर लड्डू गोपाल का अभिषेक किया जाता है।
प्रभु को प्रिय फूल अर्पित करने चाहिए।
Janmashtami 2024: धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। इसलिए इस तिथि पर हर साल जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार आज यानी 26 अगस्त को है। ऐसा माना जाता है कि पूजा के दौरान लड्डू गोपाल को प्रिय फूल अर्पित करने से साधक का जीवन सदैव खुशहाल रहता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। ऐसे में आइए जानते हैं प्रभु को कौन से फूल चढ़ाने चाहिए ?
जन्माष्टमी 2024 पूजा शुभ मुहूर्त (Janmashtami 2024 Puja Time)
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 26 अगस्त को मध्य रात्रि 03 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो गई है। साथ ही इस तिथि का समापन 27 अगस्त को मध्य रात्रि 02 बजकर 19 पर समाप्त होगा। ऐसे में जन्माष्टमी व्रत आज यानी 26 अगस्त को किया जाएगा। कान्हा जी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 27 अगस्त की रात्रि 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक है।
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Mob. +91 8929 440 683
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वरलक्ष्मी व्रत पूजन की विधि और महत्व: सुख, समृद्धि, वैवाहिक सौभाग्य का वरदान
वरलक्ष्मी व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए होता है और माना जाता है कि इसे रखने से सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वरलक्ष्मी व्रत एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को रखने से सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यदि आप भी वरलक्ष्मी व्रत रखना चाहते हैं, तो उपरोक्त विधि का पालन कर सकते हैं।
वरलक्ष्मी व्रत का महत्व
इस व्रत को रखने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। लक्ष्मी जी धन की देवी हैं और उनकी कृपा से घर में सुख-समृद्धि आती है।
विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।
वरलक्ष्मी व्रत को रखने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत पूजन विधि
वरलक्ष्मी व्रत पूजन की विधि इस प्रकार है
सबसे पहले एक कलश स्थापित किया जाता है। कलश को आम के पत्तों और फूलों से सजाया जाता है।
कलश स्थापना के बाद गणेश जी की पूजा की जाती है।
फिर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र को फूलों और रोली से सजाया जाता है।
लक्ष्मी जी को रोली, चावल, फूल, मिठाई और फल अर्पित किए जाते हैं।
दीपक जलाकर लक्ष्मी जी को अर्पित किया जाता है।
लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप किया जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत कथा सुनी जाती है।
अंत में आरती की जाती है।
अन्य जानकारी
वरलक्ष्मी व्रत आमतौर पर श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
इस व्रत को रखने के लिए विशेष रूप से सोलह श्रृंगार किया जाता है।
इस दिन महिलाएं नए वस्त्र पहनती हैं और सोने के आभूषण धारण करती हैं।
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अविश्वसनीय "जया एकादशी व्रत कथा: 2024" (मोक्ष प्राप्ति)
"जया एकादशी" का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। 2024 में जया एकादशी का व्रत 9 फरवरी को पड़ेगा। इस व्रत की कथा और महत्व को समझना मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
जया एकादशी व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्रलोक में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक अप्सरा रहती थी। एक बार दोनों ने इंद्र की सभा में अपने कर्तव्यों का पालन करते समय एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होकर ध्यान भंग कर दिया। इससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने दोनों को श्राप देकर पृथ्वी पर राक्षस योनि में जन्म लेने का आदेश दिया। पृथ्वी पर आकर वे दोनों दुखी और कष्टमय जीवन जीने लगे।
एक दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन, भूले-भटके उन्होंने इस पवित्र दिन का व्रत रखा और भगवान विष्णु की आराधना की। उनके इस व्रत क�� प्रभाव से वे अपने पापों से मुक्त हो गए और पुनः अपने दिव्य स्वरूप में लौट आए। भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद देकर उनके कष्टों का अंत किया और उन्हें स्वर्गलोक भेज दिया।
जया एकादशी व्रत का महत्व:
जया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है। कहा जाता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं।
व्रत के दिन प्रातः काल स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और व्रत की कथा का पाठ करना चाहिए। व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है और संभव हो तो रात में जागरण करके भगवान का स्मरण करना चाहिए। जया एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और अंततः मोक्ष प्राप्ति होती है।
इस प्रकार, जया एकादशी व्रत कथा और इसका पालन करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है।
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Hindu Panchang: June 16, 2023 | Vrat, Tyohar, Muhurat, Choghadiya, and More
देखें जून 16, 2023 के लिए हिंदू पंचांग के व्रत, त्योहार, मुहूर्त, चौघड़िया और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी। यह वीडियो आपको सभी संगठनों और कार्यों के लिए सही समय और मुहूर्त की जानकारी प्रदान करेगी। जीवन को आसान बनाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए इस वीडियो को देखें।
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Rama Ekadashi 2024 Vrat Katha: रमा एकादशी के दिन पढ़ें ये व्रत कथा, वैवाहिक जीवन बना रहेगा सुखी!
Rama Ekadashi 2024 Vrat Katha Hindi Me Padhe: हिंदू धर्म में रमा एकादशी एक महत्वपूर्ण व्रत ��ाना जाता है. ये व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. यह व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस…
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छठ पूजा गीत
**छठ पूजा: सूर्य देवता की आराधना और भारतीय संस्कृति में इसका महत्व**
**परिचय**
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की पूजा का पर्व है, जिसमें श्रद्धालु सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा करते हैं। यह पर्व शुद्धता, तात्त्विकता और सूर्य के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। छठ पूजा का आयोजन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। इस दिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय विशेष पूजा होती है। इस पूजा में व्रति (व्रत रखने वाले) अपनी संतान की सुख-समृद्धि, आरोग्य और दीर्घायु के लिए सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जल में खड़े होकर पूजा करते हैं।
**छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति**
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में कई अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह पूजा सूर्य देवता की आराधना से संबंधित है, जिसे हिंदू धर्म में 'आदि देवता' के रूप में पूजा जाता है। छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में मानी जाती है, जब पांडवों ने सूर्य देवता की आराधना की थी। उस समय सूर्य देवता ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनका राज्य पुनः प्राप्त करने में मदद की थी। इसके बाद से यह पूजा विशेष रूप से पांडवों द्वारा की जाती थी, और समय के साथ यह पूजा विभिन्न समुदायों में लोकप्रिय हो गई। कुछ अन्य कथाओं के अनुसार, छठ पूजा का संबंध राजा कीर्तिवर्मा और उनकी पत्नी से भी जुड़ा हुआ है, जिन्होंने इस पूजा के माध्यम से अपने पुत्र को मृत्यु से बचाया। हालांकि, इसकी वास्तविक उत्पत्ति के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि यह पूजा सूर्य देवता की अनंत कृपा और उनकी ऊर्जा का प्रतीक है।
**छठ पूजा का महत्व**
छठ पूजा का महत्व शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता से जुड़ा हुआ है। इस पूजा में सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है, जो जीवन के उत्थान और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इस पूजा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत कल्याण है, बल्कि पूरे समाज के कल्याण की भी कामना की जाती है। यह पर्व एकता, भाईचारे, और समाज की समृद्धि को बढ़ावा देने वाला है। छठ पूजा के दौरान व्रति (व्रत रखने वाले) अपने जीवन में शुद्धता बनाए रखते हैं और कई प्रकार के मानसिक और शारीरिक संयम का पालन करते हैं। यह पूजा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व भी रखती है।
**छठ पूजा की तैयारी**
छठ पूजा की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। इस पूजा का सबसे अहम हिस्सा है 'व्रत'। जो लोग व्रत करते हैं, वे पूरे दिन उपवासी रहते हैं, और सन्नाटे में अपना समय बिताते हैं। यह पूजा पूरी तरह से शुद्धता और संयम पर आधारित है, इसलिए पूजा की तैयारी में ध्यान, स्वच्छता, और साधना का विशेष स्थान होता है। व्रति घर की सफाई करते हैं, और घर में कोई भी अशुद्धता या गंदगी नहीं रहने देत��। इसके अलावा, पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे कि ठेकुआ (एक प्रकार की मिठाई), फल, गुड़, नारियल, दीपक, और पूजा की थाली तैयार की जाती है।
**छठ पूजा का व्रत और विधि**
छठ पूजा के मुख्य रूप से दो दिन होते हैं -
1. **पहला दिन - नहाय-खाय**:
इस दिन व्रति गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करके, शुद्ध होकर अपने घर लौटते हैं। इस दिन व्रति विशेष प्रकार का भोजन करते हैं, जिसे 'नहाय-खाय' कहा जाता है। यह भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, जिसमें कद्दू-चिउड़ा, चावल, दाल और साग होते हैं। इस दिन का उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और मानसिक रूप से पूजा के लिए तैयार होना होता है।
2. **दूसरा दिन - खट्टी-चढ़ाई**:
यह दिन व्रति के लिए विशेष रूप से कठिन होता है। इस दिन व्रति केवल फलाहार करते हैं और पूरे दिन उपवासी रहते हैं। वे सूर्य देवता की उपासना के लिए पवित्र जल में स्नान करते हैं और छठी मइया को सम्मानित करने के लिए पूजा करते हैं। इस दिन के अंत में व्रति ठेकुआ और अन्य पकवानों का प्रसाद छठी मइया को अर्पित करते हैं।
3. **तीसरा दिन - सूर्यास्त पूजा**:
यह दिन विशेष महत्व रखता है। सूर्यास्त के समय व्रति नदियों या तालाबों के किनारे खड़े होकर सूर्य देवता की पूजा करते हैं। इस दौरान व्रति पूरी तरह से ध्यान केंद्रित कर सूर्य देवता से अपनी इच्छाएं पूरी करने की कामना करते हैं। यह पूजा सूर्य देवता को अर्घ्य देने की प्रक्रिया में होती है, जिसमें जल में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य देवता की पूजा के बाद व्रति ठेकुआ और अन्य पकवानों का प्रसाद सभी को वितरित करते हैं।
4. **चौथा दिन - सूर्योदय पूजा (अर्घ्य दान)**:
यह दिन पूजा का अंतिम दिन होता है। इस दिन सूर्योदय के समय व्रति सूर्य देवता को अर्घ्य प्रदान करते हैं। इस दिन के बाद व्रति का व्रत समाप्त होता है और वे प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन के बाद व्रति का शरीर और मन पूरी तरह से शुद्ध हो जाता है, और वे अपने जीवन में शांति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
**छठ पूजा में पर्यावरण का महत्व**
छठ पूजा में प्रकृति और पर्यावरण का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इस पूजा के दौरान नदी, तालाब या जलाशयों में स्नान करना और सूर्य देवता की पूजा करना, यह प्रदूषण और जलवायु संरक्षण का संदेश देता है। व्रति जल में खड़े होकर न केवल सूर्य देवता की पूजा करते हैं, बल्कि वे जल की शुद्धता और इसके महत्व को भी समझते हैं। छठ पूजा के दौरान नदियों के किनारे साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।
**समाप्ति**
छठ पूजा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन में संयम, शुद्धता, और आस्था को भी बढ़ावा देती है। सूर्य देवता की आराधना के माध्यम से हम अपने जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की कामना करते हैं। यह पर्व समाज में भाईचारे, सहयोग और सामूहिकता की भावना को प्रगाढ़ करता है। जो लोग इस पूजा को श्रद्धा और विश्वास से करते हैं, उनका जीवन एक नई दिशा की ओर बढ़ता है, और वे हर कठिनाई को पार करने के लिए मानसिक रूप से सशक्त हो जाते हैं। इस प्रकार, छठ पूजा हमारे समाज में न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करने का एक माध्यम भी है।
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हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत/Pradosh Vrat 2024 को बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
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