#मत्सरासुर
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भगवान श्रीगणेश के 8 अवतार :-
8 Incarnation (Avtar) of Lord Ganesha :- आज हम आपको भगवान गणेश के प्रमुख 8 अवतारों के बारे में बताएंगे। अन्य सभी देवताओं के समान भगवान गणेश ने भी आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए विभिन्न अवतार लिए। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि ग्रंथो में मिलता है।जानिए श्रीगणेश के अवतारों के बारे में-
1. वक्रतुंड (Vakratunda)-
वक्रतुंड का अवतार राक्षस मत्सरासुर के दमन के लिए हुआ था। मत्सरासुर शिव भक्त था और उसने शिव की उपासना करके वरदान पा लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा। मत्सरासुर ने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। उसके दो पुत्र भी थे सुंदरप्रिय और विषयप्रिय, ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे। सारे देवता शिव की शरण में पहुंच गए। शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें, गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे। देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड अवतार लिया। वक्रतुंड भगवान ने मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया। वही मत्सरासुर कालांतर में गणपति का भक्त हो गया।
2. एकदंत (Ekadanta)-
महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की। वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बनाया। शिक्षा होने पर उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया। सारे देवता उससे प्रताडि़त रहने लगे। मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि उसने भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की। तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं थीं, एक दांत था, पेट बड़ा था और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल था। एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया।
3. महोदर (Mahodar)-
जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ खड़ा कर दिया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।
4. गजानन (Gajanan)-
एक बार धनराज कुबेर भगवान शिव-पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा। वहां पार्वती को देख कुबेर के मन में काम प्रधान लोभ जागा। उसी लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ। वह शुक्राचार्य की शरण में गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिव की उपासना शुरू की। शिव लोभासुर से प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे सबसे निर्भय होने का वरदान दिया। इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया और खुद शिव को भी उसके लिए कैलाश को त्यागना पड़ा। तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश की उपासना करने की सलाह दी। गणेश ने गजानन रूप में दर्शन दिए और देवताओं को वरदान दिया कि मैं लोभासुर को पराजित करूंगा। गणेश ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा। शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली।
5. लंबोदर (Lambodar)-
समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर काम मोहित हो गए। उनका शुक्र स्खलित हुआ, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई। इस दैत्य का नाम क्रोधासुर था। क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान ले लिया। क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए। वो युद्ध करने निकल पड़ा। तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया। क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता। क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।
6. विकट (Vikata)-
भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर। कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया। इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया। तब भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया। विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए। उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया।
7. विघ्नराज (Vighnaraj)-
एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं। उनकी हंसी से एक ��िशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई। शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दीं। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांग लिया।
शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं के बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की। गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया।
8. धूम्रवर्ण (Dhoomvarna)-
एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया। उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए।
उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।
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देश का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां गजमुख नहीं बल्कि इंसान के रूप विराजमान हैं भगवान गणेश
चैतन्य भारत न्यूज गणेश चतुर्थी 10 दिन हम आपको रोजाना भगवान गणेश के विश्वभर में प्रसिद्द कुछ खास मंदिरों के बारे में बता रहे थे। आज गणेश विसर्जन के दिन हम आपको आज भगवान गणेश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां वे गजमुख न होकर इंसान के रूप में हैं।
तमिलनाडु के कूटनूर से लगभग 2 कि.मी. की दूरी पर तिलतर्पणपुरी नामक स्थान पर भगवान गणेश का आदि विनायक मंदिर है, जहां वे इंसान के चेहरे में विराजित हैं। इस मंदिर की एक खूबी ये भी है कि, यह ऐसा एक मात्र गणेश मंदिर है जहां लोग अपने पितरों की शांति के लिए पूजन करने भी आते हैं। मान्यता है कि, इस जगह पर भगवान श्रीराम ने भी अपने पूर्वजों की शांति के लिए पूजा की थी। इसी परंपरा के चलते आज भी कई भक्त अपने पूर्वजों की शांति के लिए यहां पूजा करने आते हैं। तमिलनाडु में मौजूद ये मंदिर भले ही बहुत भव्य न हो लेकिन ये अपनी इस खूबी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द है।
बता दें इस मंदिर के साथ-साथ यहां सरस्वती मंदिर भी है। सरस्वती मंदिर को कवि ओट्टकुठार ने बनवाया था। यहां आने वाले भक्त सरस्वती मंदिर के दर्शन किए बिना नहीं जाते हैं। मंदिर परिसर में भगवान शिव का भी मंदिर बना है। इस मंदिर से बाहर निकलते ही श्रीगणेश का नरमुखी मंदिर स्थित है।
तिलतर्पणपुरी का अर्थ इस जगह का नाम तिलतर्पणपुरी पड़ने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। तिलतर्पणपुरी दो शब्दों के मेल से बना है। पहला तिलतर्पण और दूसरा पुरी। तिलतर्पण का अर्थ होता है- पूर्वजों को समर्पित और पुरी का अर्थ होता है शहर, यानी इस जगह का मतलब ही है पूर्वजों को समर्पित शहर। ये भी पढ़े... खजराना गणेश मंदिर में मन्नत पूरी करने के लिए शास्त्रों के विपरीत काम करते हैं भक्त, 3 करोड़ का सोन��� पहनते हैं भगवान शाकाहारी मगरमच्छ करता है इस मंदिर की रखवाली, खाता है सिर्फ प्रसाद मत्सरासुर का वध करने के लिए भगवान गणेश ने लिया था वक्रतुण्ड अवतार, बड़ी रोचक है कहानी गणेश चतुर्थी : इन चीजों को अर्पित करने से खुश होते हैं बप्पा, पूरी होती है सभी मनोकामनाएं Read the full article
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avtaar of ganesh ji, Lord ganesh awataar, benefits of ganesh puja, ganesh utsav tips for happy life | महोदर अवतार में गणेशजी ने किया था मोहासुर को, वक्रतुंड स्वरूप में मत्सरासुर और एकदंत स्वरूप में मदासुर को किया था पराजित
avtaar of ganesh ji, Lord ganesh awataar, benefits of ganesh puja, ganesh utsav tips for happy life | महोदर अवतार में गणेशजी ने किया था मोहासुर को, वक्रतुंड स्वरूप में मत्सरासुर और एकदंत स्वरूप में मदासुर को किया था पराजित
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23 मिनट पहले
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गणेशजी की पूजा से क्रोध, मोह, ईर्ष्या, अहंकार जैसी बुराइयों से मिल सकती है मुक्ति
अभी गणेश उत्सव चल रहा है। इस पर्व का समापन 1 सितंबर को होगा। गणेशजी की पूजा करने से भक्तों की कई बुराइयां भी दूर हो सकती है। उज्जैन के ज्��ोतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा ने बताया गणेश अंक के अनुसार जिस तरह राक्षसों के नाश के लिए भगवान विष्णु ने अवतार लिए हैं, ठीक उसी तरह गणेशजी ने भी…
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avtaar of ganesh ji, Lord ganesh awataar, benefits of ganesh puja, ganesh utsav tips for happy life | महोदर अवतार में गणेशजी ने किया था मोहासुर को, वक्रतुंड स्वरूप में मत्सरासुर और एकदंत स्वरूप में मदासुर को किया था पराजित 27 मिनट पहले कॉपी लिस्ट गणेशजी की पूजा से क्रोध, मोह, ईर्ष्या, अहंकार जैसी बुराइयों से मिल सकता है
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avtaar of ganesh ji, Lord ganesh awataar, benefits of ganesh puja, ganesh utsav tips for happy life | महोदर अवतार में गणेशजी ने किया था मोहासुर को, वक्रतुंड स्वरूप में मत्सरासुर और एकदंत स्वरूप में मदासुर को किया था पराजित 19 मिनट पहले कॉपी लिंक गणेशजी की पूजा से क्रोध, मोह, ईर्ष्या, अहंकार जैसी बुराइयों से मिल सकती है मुक्ति
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गणेश के इन 3 महत्वपूर्ण अवतारों के बारे में नहीं जानते होंगे आप , पढ़ें अभी
गणेश के इन 3 महत्वपूर्ण अवतारों के बारे में नहीं जानते होंगे आप , पढ़ें अभी #ganesh #ganeshchaturthi #god #hindu #bad #interesting
गणेश ने आठ अवतार लिए थे पापियों को नष्ट करने के लिए। इसलिए आज हम आपको उनके कुछ अवतारों से जुड़ी एक कहानी बताने जा रहे हैं।
सरकारी नौकरियां यहाँ देख सकते हैं :-
सरकारी नौकरी करने के लिए बंपर मौका 8वीं 10वीं 12वीं पास कर सकते हैं आवेदन
वक्रतुंड-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गजानन ने राक्षस मत्सरासुर के पुत्रों को इस रूप में मारा था। ऐसा कहा जाता है कि यह राक्षस शिव का ��क भक्त था और तपस्या करने से…
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इस तरह टूटा था भगवान गणेश का एक दांत और कहलाने लगे 'एकदंत'
चैतन्य भारत न्यूज 22 अगस्त से गणेश उत्सव की शुरुआत हो गई है। प्रत्येक घर में गणेश जी के अलग-अलग स्वरूपों की स्थापना की जाती है। बता दें भगवान गणेश के कुल 8 स्वरुप हैं। इनमें से दूसरा स्वरुप 'एकदंत' है। यह देहि-ब्रह्म का धारक है और इनका वाहन मूषक बताया गया है। लेकिन भगवान गणेश को क्यों एकदंत कहा जाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी- पुराणों में बताया गया है कि एक बार विष्णु अवतार भगवान परशुराम जी भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पर गए थे। उस दौरान गणेश जी ने उन्हें भगवान शिव से मिलने से रोक दिया और उन्हें मिलने की अनुमति नहीं दी। इस बात से परशुराम जी बेहद क्रोधित हो गए और उन्होंने गणेश जी को युद्ध के लिए चुनौती दे डाली। गणेश जी ने भी परशुरामजी की यह चुनौती स्वीकार कर ली। फिर दोनों में घोर युद्ध हुआ। इसी युद्ध में परशुराम के फरसे के प्रहार से गणेश जी का एक दांत खंडित हो गया था। तभी से वे ��कदंत कहलाए।
मदासुर नामक पराक्रमी दैत्य ने संपूर्ण धरती पर साम्राज्य स्थापित कर स्वर्ग पर चढ़ाई की। उसने भगवान शिव को भी पराजित कर दिया था। ऐसे में सभी जगह असुरों का क्रूर शासन चलने लगा। फिर देवताओं की उपासना करने पर भगवान एकदंत प्रकट हुए। उनके एक वार से मदासुर बेहोश होकर गिर गया। जब वह होश में आया तो एकदंत से क्षमा मांगने लगा। फिर एकदंत ने उसे भी पाताल में जाने को कह दिया। एकदंत गणपति का मंत्र एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः । प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥ अर्थ - जिनके एक दांत और सुंदर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को नमस्कार है। ये भी पढ़े... मत्सरासुर का वध करने के लिए भगवान गणेश ने लिया था वक्रतुण्ड अवतार, बड़ी रोचक है कहानी ये हैं भगवान गणेश का ऐसा अनोखा मंदिर जहां लगातार बढ़ रहा है मूर्ति का आकार गणेश चतुर्थी 2020 : ये हैं पोटली वाले गणपति बप्पा, रुकी हुई शादियों की मन्नत करते हैं पूरी Read the full article
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मत्सरासुर का वध करने के लिए भगवान गणेश ने लिया था 'वक्रतुण्ड' अवतार, बड़ी रोचक है कहानी
चैतन्य भारत न्यूज 22 अगस्त से गणेश उत्सव की शुरुआत हो गई है। प्रत्येक घर में गणेश जी के अलग-अलग स्वरूपों की स्थापना की जाती है। बता दें भगवान गणेश के कुल 8 स्वरुप हैं। इनमें से पहला स्वरुप 'वक्रतुण्ड' है। यह ब्रह्मरूप से संपूर्ण शरीरों को धारण करनेवाला और सिंह वाहन पर चलने वाला है। लेकिन भगवान गणेश को आखिर क्यों वक्रतुण्ड अवतार लेना पड़ा था और इसके पीछे का क्या रहस्य है? आइए जानते हैं- (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री गणेश ने वक्रतुण्ड अवतार मत्सरासुर का वध करने के लिए लिया था। देवताओं के राजा इंद्र के प्रमाद से ही मत्सरासुर का जन्म हुआ था। कठोर तपस्या करके मत्सरासुर ने भगवान शंकर से अभय होने का वरदान लिया था। इसके बाद मत्सरासुर ने पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग पर भी चढ़ाई कर दी। फिर दुखी देवताओं की प्रार्थना से वक्रतुण्ड प्रकट हुए। वक्रतुण्ड और मत्सरासुर में 5 दिनों तक भयंकर युद्ध चला। इस युद्ध में मत्सरासुर के दोनों पुत्र मारे गए। वक्रतुण्ड का क्रोधित रूप देख मत्सरासुर भय के मारे कांपने लगा और उसकी सारी शक्ति क्षीण हो गई। वह उनकी स्तुति करने लगा। भगवान वक्रतुण्ड ने उसे भक्ति का वरदान दिया और शांत जीवन बिताने के लिए पाताल जाने का आदेश दिया।
वक्रतुण्ड का मंत्र वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ अर्थ - घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली। मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥ ये भी पढ़े... खजराना गणेश मंदिर में मन्नत पूरी करने के लिए शास्त्रों के विपरीत काम करते हैं भक्त, 3 करोड़ का सोना पहनते हैं भगवान आज इस शुभ मुहूर्त में करें गणेश स्थापना, घर लाए शुभ फल देने वाली ऐसी प्रतिमा दरिद्रता से बचना चाहते हैं तो गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी न करें ये गलतियां गणेश चतुर्थी : इन चीजों को अर्पित करने से खुश होते हैं बप्पा, पूरी होती है सभी मनोकामनाएं Read the full article
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देश का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां गजमुख नहीं बल्कि इंसान के रूप विराजमान हैं भगवान गणेश
चैतन्य भारत न्यूज गणेश चतुर्थी की शुरुआत हो चुकी हैं। इस मौके पर हम आपको रोजाना भगवान गणेश के विश्वभर में प्रसिद्द कुछ खास मंदिरों के बारे में बताएंगे। इस कड़ी में हम आपको आज भगवान गणेश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां वे गजमुख न होकर इंसान के रूप में हैं।
तमिलनाडु के कूटनूर से लगभग 2 कि.मी. की दूरी पर तिलतर्पणपुरी नामक स्थान पर भगवान गणेश का आदि विनायक मंदिर है, जहां वे इंसान के चेहरे में विराजित हैं। इस मंदिर की एक खूबी ये भी है कि, यह ऐसा एक मात्र गणेश मंदिर है जहां लोग अपने पितरों की शांति के लिए पूजन करने भी आते हैं। मान्यता है कि, इस जगह पर भगवान श्रीराम ने भी अपने पूर्वजों की शांति के लिए पूजा की थी। इसी परंपरा के चलते आज भी कई भक्त अपने पूर्वजों की शांति के लिए यहां पूजा करने आते हैं। तमिलनाडु में मौजूद ये मंदिर भले ही बहुत भव्य न हो लेकिन ये अपनी इस खूबी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द है।
बता दें इस मंदिर के साथ-साथ यहां सरस्वती मंदिर भी है। सरस्वती मंदिर को कवि ओट्टकुठार ने बनवाया था। यहां आने वाले भक्त सरस्वती मंदिर के दर्शन किए बिना नहीं जाते हैं। मंदिर परिसर में भगवान शिव का भी मंदिर बना है। इस मंदिर से बाहर निकलते ही श्रीगणेश का नरमुखी मंदिर स्थित है।
तिलतर्पणपुरी का अर्थ इस जगह का नाम तिलतर्पणपुरी पड़ने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। तिलतर्पणपुरी दो शब्दों के मेल से बना है। पहला तिलतर्पण और दूसरा पुरी। तिलतर्पण का अर्थ होता है- पूर्वजों को समर्पित और पुरी का अर्थ होता है शहर, यानी इस जगह का मतलब ही है पूर्वजों को समर्पित शहर। ये भी पढ़े... खजराना गणेश मंदिर में मन्नत पूरी करने के लिए शास्त्रों के विपरीत काम करते हैं भक्त, 3 करोड़ का सोना पहनते हैं भगवान शाकाहारी मगरमच्छ करता है इस मंदिर की रखवाली, खाता है सिर्फ प्रसाद मत्सरासुर का वध करने के लिए भगवान गणेश ने लिया था वक्रतुण्ड अवतार, बड़ी रोचक है कहानी गणेश चतुर्थी : इन चीजों को अर्पित करने से खुश होते हैं बप्पा, पूरी होती है सभी मनोकामनाएं Read the full article
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मत्सरासुर का वध करने के लिए भगवान गणेश ने लिया था वक्रतुण्ड अवतार, बड़ी रोचक है कहानी
चैतन्य भारत न्यूज 2 सितंबर से गणेश उत्सव की शुरुआत हो गई है। प्रत्येक घर में गणेश जी के अलग-अलग स्वरूपों की स्थापना की जाती है। बता दें भगवान गणेश के कुल 8 स्वरुप हैं। इनमें से पहला स्वरुप 'वक्रतुण्ड' है। यह ब्रह्मरूप से संपूर्ण शरीरों को धारण करनेवाला और सिंह वाहन पर चलने वाला है। लेकिन भगवान गणेश को आखिर क्यों वक्रतुण्ड अवतार लेना पड़ा था और इसके पीछे का क्या रहस्य है? आइए जानते हैं- (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री गणेश ने वक्रतुण्ड अवतार मत्सरासुर का वध करने के लिए लिया था। देवताओं के राजा इंद्र के प्रमाद से ही मत्सरासुर का जन्म हुआ था। कठोर तपस्या करके मत्सरासुर ने भगवान शंकर से अभय होने का वरदान लिया था। इसके बाद मत्सरासुर ने पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग पर भी चढ़ाई कर दी। फिर दुखी देवताओं की प्रार्थना से वक्रतुण्ड प्रकट हुए। वक्रतुण्ड और मत्सरासुर में 5 दिनों तक भयंकर युद्ध चला। इस युद्ध में मत्सरासुर के दोनों पुत्र मारे गए। वक्रतुण्ड का क्रोधित रूप देख मत्सरासुर भय के मारे कांपने लगा और उसकी सारी शक्ति क्षीण हो गई। वह उनकी स्तुति करने लगा। भगवान वक्रतुण्ड ने उसे भक्ति का वरदान दिया और शांत जीवन बिताने के लिए पाताल जाने का आदेश दिया।
वक्रतुण्ड का मंत्र वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ अर्थ - घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली। मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥ ये भी पढ़े... खजराना गणेश मंदिर में मन्नत पूरी करने के लिए शास्त्रों के विपरीत काम करते हैं भक्त, 3 करोड़ का सोना पहनते हैं भगवान आज इस शुभ मुहूर्त में करें गणेश स्थापना, घर लाए शुभ फल देने वाली ऐसी प्रतिमा दरिद्रता से बचना चाहते हैं तो गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी न करें ये गलतियां गणेश चतुर्थी : इन चीजों को अर्पित करने से खुश होते हैं बप्पा, पूरी होती है सभी मनोकामनाएं Read the full article
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