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#गीताजी_का_ज्ञान_किसने_बोला
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#SantRampalJiMaharaj 📙गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ‘‘युद्ध से न भागना’’ आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता। न उसकी राय श्रोता को ठीक जचेगी। वह उपहास का पात्र बनेगा। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल) ने प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे।
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#SantRampalJiMaharaj
गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ‘‘युद्ध से न भागना’’ आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता। न उसकी राय श्रोता को ठीक जचेगी। वह उपहास का पात्र बनेगा। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल) ने प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवता��� धार कर आए थे।
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#गूढ़_रहस्य_गीता_का
गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ‘‘युद्ध से न भागना’’ आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता। न उसकी राय श्रोता को ठीक जचेगी। वह उपहास का पात्र बनेगा। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल) ने प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे।
Sant Rampal Ji Explains Gita
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#गीताजी_का_ज्ञान_किसने_बोला
गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि "युद्ध से न भागना" आदि-2
गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे,
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गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ‘‘युद्ध से न भागना’’ आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता। न उसकी राय श्रोता को ठीक जचेगी। वह उपहास का पात्र बनेगा। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल) ने प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे।
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छात्रों को इतना सताया कि शेख़ हसीना को भागना पड़ गया । Navin Kumar
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‼️Political Earthquake in Bangladesh effect of it in NDA v/s BJP‼️
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अब आ जाओ!
तुम्हारी यादों के फूल खिले है धूप में
बरसात तुम अब वापिस लौट आओ
मिलना बिछड़ना एक बात है जाना
मुझसे लिपट के रोने की बात हो तो आओ
तुम्हारे बिन नींद मेरी गायब है कबसे
कोई उपाय अगर हो तो साथ लेके आओ
दिन से भागना आसान है मगर
तुम्हें रुकना हो तो सारी रात लेकर आओ
-praphull
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#सत_भक्ति_संदेश
सतगुरु मेरा शूरमा, तकि तकि मारै तीर । लागे पन भागे नहीं, ऐसा दास कबीर ।।
सद्गुरु सच्चे शूरवीर हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। वे शिष्य की अज्ञानता पर ज्ञान-रूपी तीरों (शब्दों) को मारते हैं। कबीरजी कहते हैं कि शिष्य-सेवक को इन वारों (चोटों) को प्रेम से सहना चाहिए, भागना नहीं चाहिए।
📲अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj " Youtube Channel पर विजिट करें।
Watch sadhna TV_7:30pm Daily 👀
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#सत_भक्ति_संदेश
सद्गुरु सच्चे शूरवीर हैं, इसमें कोई संदेह नहीं । वे शिष्य की अज्ञानता पर ज्ञान- रूपी तीरों (शब्दों) को मारते हैं। कबीरजी कहते हैं कि शिष्य-सेवक को इन वारों (चोटों) क��� प्रेम से सहना चाहिए, भागना नहीं चाहिए ।
#GodMorningTuesday
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पैसों के पीछे भागना या जीवन के रंग मनाना | आपका विचार
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In our fast-paced world, it's easy to get caught up in the race for more - more cars, bigger houses, fancier businesses, and the relentless pursuit of money and status. But are we truly living, or are we just racing against each other without enjoying the real essence of life?
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श्रीमद् भगवद्गीता यथारूप 2.34 अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् । सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते ॥ २.३४ ॥ TRANSLATION लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्य��� से भी बढ़कर है । PURPORT अब अर्जुन के मित्र तथा गुरु के रूप में भगवान् कृष्ण अर्जुन को युद्ध से विमुख न होने का अन्तिम निर्णय देते हैं । वे कहते हैं, “अर्जुन! यदि तुम युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व ही युद्धभूमि छोड़ देते हो तो लोग तुम्हें कायर कहेंगे । और यदि तुम सोचते हो कि लोग गाली देते रहें, किन्तु तुम युद्धभूमि से भागकर अपनी जान बचा लोगे तो मेरी सलाह है कि तुम्हें युद्ध में मर जाना ही श्रेयस्कर होगा । तुम जैसे सम्माननीय व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बुरी है । अतः तुम्हें प्राणभय से भागना नहीं चाहिए, युद्ध में अपनी प्रतिष्ठा खोने के अपयश से बच जाओगे ।” अतः अर्जुन के लिए भगवान् का अन्तिम निर्णय था कि वह संग्राम से पलायन न करे अपितु युद्ध में मरे । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 2.34 akīrtiṁ cāpi bhūtāni kathayiṣyanti te ’vyayām sambhāvitasya cākīrtir maraṇād atiricyate TRANSLATION People will always speak of your infamy, and for a respectable person, dishonor is worse than death. PURPORT Both as friend and philosopher to Arjuna, Lord Kṛṣṇa now gives His final judgment regarding Arjuna’s refusal to fight. The Lord says, “Arjuna, if you leave the battlefield before the battle even begins, people will call you a coward. And if you think that people may call you bad names but that you will save your life by fleeing the battlefield, then My advice is that you’d do better to die in the battle. For a respectable man like you, ill fame is worse than death. So, you should not flee for fear of your life; better to die in the battle. That will save you from the ill fame of misusing My friendship and from losing your prestige in society.” So, the final judgment of the Lord was for Arjuna to die in the battle and not withdraw. -----
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#गूढ़_रहस्य_गीता_का
Sant Rampal Ji Explains Gita
📙गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ‘‘युद्ध से न भागना’’ आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता। न उसकी राय श्रोता को ठीक जचेगी। वह उपहास का पात्र बनेगा। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल) ने प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे।
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#GodMorningFriday
📙 गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में "युद्ध से न भागना" क्षत्रिय का धर्म बताया गया है। श्री कृष्ण तो कालयवन से भागे थे। इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान काल ने बोला था।
Must read Holy book "Gyan - Ganga"
#शास्त्रविरुद्ध_साधना_छठ_पूजा
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#गूढ़_रहस्य_गीता_का
गीता जी का ज्ञान किसने बोला?
गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि "युद्ध से न भागना" आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता। न उसकी राय श्रोता को ठीक जचेगी। वह उपहास का पात्र बनेगा। ✨सतलोक आश्रम ✨
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#GodMorningFriday
📙 गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में "युद्ध से न भागना" क्षत्रिय का धर्म बताया गया है। श्री कृष्ण तो कालयवन से भागे थे। इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान काल ने बोला था।
Must read Holy book "Gyan - Ganga"
#शास्त्रविरुद्ध_साधना_छठ_पूजा
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बहुत दूर आ चुका हूँ
उन जगहों से जहां कभी ज़िंदगी बीती थी
जहाँ समय रुका था मेरे लिए
जहाँ मेरे बचपनें के सामने सूरज झुका था
बहुत दूर आ चुका हूँ अब उन जगहों से
अपने बचपनें को छोड़ कर
माँ के साथ बिताए पल पीछे छूटते जा रहे है
ज़िंदगी मुझे बहुत दूर ले कर जा रही है सबकुछ से
मैं भागना चाहता हूँ अपनी माँ के पास
इतनी पीड़ाओं के बीच मुझे बस उनकी याद आती है
सबकुछ से दूर आ चुका हूँ कहीं किनारे पर
जिसके आगे कुछ नहीं
पीछे बस अंधकार है
सारे रिश्ते न जाने कहाँ छूट चुके है
मैं बहुत पीछे छूट चुका हूँ
अब बस चलना है
शायद कहीं पहुँच सकूं
सुकून की ��लाश अब मुश्किल होती जा रही है
मैंने तलाश करना सीखा भी नहीं
माँ ख्वाइशों का ख्याल रखती थी
अब माँ दूर है
और मेरी सारी ख्वाइशें कहीं दफ़न!
—praphull
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