#बांस की खेती
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श्री त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ और आगे
#Blog श्री त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ और आगे "भईया यहां सांप बड़े बड़े दिखे। सोपारी की भी खेती होती है। सागौन के जंगल भी बहुत दिखे। बांस का भी खूब इस्तेमाल दिखा। नहर जो महानंदा को तीस्ता से जोड़ती है उसमें पानी महानंदा की ओर से तीस्ता की ओर बह रहा था।"
23 अप्रेल 2023 गीता प्रेस की शक्तिपीठ दर्शन में श्री त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ के बारे में एक पैराग्राफ है – पूर्वोत्तर रेलवे में सिलीगुड़ी-हल्दीवाड़ी रेलवे लाइन पर जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन है। यह जिला मुख्यालय भी है। इस जिले के बोदा इलाके में शालवाड़ी ग्राम है। यहां तीस्ता नदी के तट पर देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां देवी (सती) का वाम चरण गिरा था। यहां की शक्ति ‘भ्रामरी’ और भैरव ‘ईश्वर’ हैं। बस इतना…
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जिन किसान भाइयों को *बांस* के साथ औषधीय खेती करनी हो वे जल्द से जल्द आर्डर करें।
*समय चल रहा है पौधे व बीज़ भिजवाए जा रहे है।*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
जिन साथियो को *बांस* शतावरी और अश्वगन्धा की एक साथ मॉडल फरमिंग करनी हो वे भी आर्डर कर सकते है।
जिन्होंने बुकिंग करवा ली है वे बकाया जमा करवाये।
ताकि समय पर पौधे व बीज़ पहुंचाए जा सके।
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"GROUP OF COMPANIES"
*औषधीय खेती विकास सन्स्थान*
संपर्क करें-: *9044966260_9667529762*
🌱सर्वे भवन्तु सुखिनः🌱
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में वृक्षों के व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा देने की अपार संभानाओं को देखते हुए ‘‘मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना’’ Mukhyamantri Vriksha Sampada Yojana को लागू किए जाने की घोषणा की है। इस योजनांतर्गत कृषकों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से कृषकों की सहमति पर उनके भूमि पर वाणिज्यिक वृक्षारोपण किया जाना है। मुख्यमंत्री वृक्ष सम्पदा योजना की क्रियान्वयन की तैयारी में वन विभाग जुट गया है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना अंतर्गत समस्त वर्ग के सभी इच्छुक भूमि स्वामी पात्र होंगे। इसके अलावा शासकीय, अर्धशासकीय तथा शासन के स्वायत्व संस्थान जो अपने स्वयं के भूमि पर रोपण करना चाहते हैं, पात्र होंगे। इसी तरह निजी शिक्षण संस्थाएं, निजी ट्रस्ट, गैर शासकीय संस्थाएं, पंचायतें, भूमि अनुबंध धारक, जो अपने भूमि में रोपण करना चाहते हैं, वे पात्र होंगे। इस योजनांतर्गत राज्य शासन द्वारा 5 एकड़ तक वृक्षारोपण हेतु 100 प्रतिशत अनुदान तथा 5 एकड़ से अधिक क्षेत्र में वृक्षारोपण हेतु 50 प्रतिशत वित्तीय अनुदान देगी। योजना अंतर्गत मुख्य रूप से 05 वृक्ष प्रजातियों की खेती के लिए कृषकों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। इनमें टिशू कल्चर बांस, क्लोनल नीलगिरी, मिलिया डूबिया, टिशू कल्चर सागौन तथा सफेद चंदन शामिल है। मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य में वाणिज्यिक वृक्षारोपण को बढ़ावा देना है। इसके तहत राज्य के सभी कृषकों, शासकीय, गैर शासकीय, अर्धशासकीय, पंचायतें, अथवा स्वायत्व संस्थानों की भूमि पर वाणिज्यिक प्रजातियों के वृक्षारोपण उपरांत सहयोगी संस्था, निजी कंपनियों के माध्यम से निर्धारित समर्थन मूल्य पर वनोपज के क्रय की व्यवस्था करते हुए एक सुदृढ़ बाजार व्यवस्था आदि सुनिश्चित करना है। इस संबंध में प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री संजय शुक्ला ने बताया कि मुख्यमंत्री वृक्ष सम्पदा योजनांतर्गत राज्य में इस वर्ष 12 प्रकार के प्रजाति के वृक्ष का 30 हजार एकड़ रकबे में रोपण किया जाएगा। इनमें से क्लोनल यूकलिप्टस का 17 हजार 182 एकड़ में, रूटशूट टीक का 6 हजार 456 एकड़ में, टिश्यू कल्चर का 2 हजार 617 एकड़ में, चंदन का 1 हजार 462 एकड़ में, मिलिया डूबिया का 8 सौ 34 एकड़ में, सामान्य बांस का 7 सौ 37 एकड़ में, टिश्यू कल्चर बम्बू का 6 सौ 7 एकड़ में, रक्त चंदन का 1 सौ 26 एकड़ में, आमला का 43 एकड़ में, खमार का 40 एकड़ में, शीशम का 20 एकड़ में तथा महानीम का 20 एकड़ रकबे में लगाने का लक्ष्य रखा गया है।
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बांस और सागौन के पेड़ों पर भूपेश सरकार देगी 100 फीसदी सब्सिडी
बांस और सागौन के पेड़ों पर भूपेश सरकार देगी 100 फीसदी सब्सिडी #BhupeshGovernment #Subsidy #Chhattisgarh
आजादी के 75 साल बाद भी आज भी देश की आधी से ज्यादा आबादी खेती-बाड़ी पर निर्भर है. देश के अधिकांश किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है. ऐसे में किसानों की आय बढ़ाने के लिए समय-समय पर सरकार की तरफ से प्रभाव कारी उपाय किए जा रहे हैं. इसी कड़ी में किसानों को पेड़ों को लगाने के लिए ज्यादा प्रोत्साहित किया जा रहा है. पेड़ों की खेती पर मिलेगा 100% सब्सिडी पेड़ों की खेती करने की इच्छुक किसानों के लिए…
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पाली हाउस कैसे बनाये,फायदे, Polly House In Hindi
पाली हाउस कैसे बनाये
हेलो मेरे किसान भाइयो वैसे आज के टाइम मैं लोग किसानी से बहुत पैसा कमाते है , अगर आप आपने दिमाग और tecnology mix कर देते है तो आपके पास लाखों से करोड़ की कमाई कर सकते हो, लेकिन भाइयो आज के टाइम मैं bahut compitition है और लोग किसान/खेती से लाखो कामना चाहता है और अगर आपको लोगो से ज्यादा पैसा कामना कहते है तो आपको एक नया आईडिया से खेत करना किये इसलिए आपको how to make polly house/geen house in hindiमैं आपको पूरी जानकारी देंगे।
पाली हाउस कैसे बनाये
ग्रीन हाउस इंट्रोडक्शन & polly house introduction
जैसे जैसे खेती मैं लोगो नया नया आईडिया बनाया जा रहा है और लोगो नया नया तरीका से काम करना सिख रहा है और दुगुनी मुनाफा हो रहा है पाली हाउस को आप green house भी बोल सकते है
और इसमें उगने वाले सब्ज़ी नार्मल सब्ज़ी से ज्यादा होता है वैसे सब्ज़ी इसलिए महंगा बिकता है क्योकि पोली हाउस मैं उगने वाले सबसे तजा और सुरक्षा से उगता है और न ही इसमें कीड़े होने के डर है
और न ही इसमें इसमें कोई बीमारी आता है और पाली हॉउस मैं सब्ज़िया पूरी तरह से सुरक्षा होते है।
पाली हाउस कैसे बनाये how to make polly house
पोलीथीन और बांस और लोगो की पाइप से बनाया जाता है जो की लोहा सपोर्ट के रूप मैं काम करता है और पॉलीथिन एक रक्षात्मक के रूप मैं काम करता है
ध्यान रहे की पोलीहॉउस बढ़ी जगह चुने और आपके जमीन समतल हो आपको जमीन मैं GI पाइप डालने के जमीन से दो फुट से ज्यादा गरहा खोदना होंगे
जिससे आपके ग्रीन हाउस मजबूत से खड़ा रहे और तेज तूफान को निपट सके और तेज बारिस से आछे से निपट सके और ग्रीन हाउस जमीं से 25 foot ऊंचा होना किये
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इस खेती से कमा सकते हैं लाखों रुपये, प्रति पौधा 120 रुपए मिलेगी सरकारी सहायता
इस खेती से कमा सकते हैं लाखों रुपये, प्रति पौधा 120 रुपए मिलेगी सरकारी सहायता
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बड़े मुनाफे का है मोदी सरकार का ये खास प्लान बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बैंबू मिशन (National Bamboo Mission) भी बनाया है. इसके तहत किसान को बांस की खेती करने पर प्रति पौधा 120 रुपए की सरकारी सहायता भी मिलती है. सरकार…
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#agriculture#Bamboo Cultivation#Bamboo Farming#Business news in hindi#farmers#modi government#नेशनल बैंबू मिशन National Bamboo Mission#बांस का टिफिन#बांस की खेती#बांस की खेती कैसे करें#बांस की नर्सरी#बांस की बोतल#बांस के पौधे कैसे लगाएं#मोदी सरकार
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इस खेती से कमा सकते हैं लाखों रुपये, प्रति पौधा 120 रुपए मिलेगी सरकारी सहायता
इस खेती से कमा सकते हैं लाखों रुपये, प्रति पौधा 120 रुपए मिलेगी सरकारी सहायता
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बड़े मुनाफे का है मोदी सरकार का ये खास प्लान बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बैंबू मिशन (National Bamboo Mission) भी बनाया है. इसके तहत किसान को बांस की खेती करने पर प्रति पौधा 120 रुपए की सरकारी सहायता भी मिलती है. सरकार…
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#agriculture#Bamboo Cultivation#Bamboo Farming#business news in Hindi#farmers#Modi Government#नेशनल बैंबू मिशन National Bamboo Mission#बांस का टिफिन#बांस की खेती#बांस की खेती कैसे करें#बांस की नर्सरी#बांस की बोतल#बांस के पौधे कैसे लगाएं#मोदी सरकार
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ग्रामीण क्षेत्रों में बांस की खेती पर जोर दे रहे हैं किसान, बन रहा स्थायी आमदनी का जरिया
ग्रामीण क्षेत्रों में बांस की खेती पर जोर दे रहे हैं किसान, बन रहा स्थायी आमदनी का जरिया
बांस की खेती को किसान स्थायी आमदनी का जरिया बना रहे हैं. Image Credit source: TV9 (फाइल फोटो) वर्तमान समय में ग्रामीण क्षेत्रों में किसान बांस की खेती कर रहे हैं और यह उनके लिए स्थायी आमदनी का जरिया बन रहा है. सरकार की कोशिशों की मदद भी उन्हें मिल रही है. बंजर जमीन पर बांस उगाकर किसान पारंपरिक फसलों के साथ बांस का उत्पादन कर रहे हैं और खुद को आर्थिक तौर पर सशक्त कर रहे हैं. आज के समय में किसान…
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देवास के बांस अब जाएंगे डेनमार्क, बनेगी ऐसी चीज जो 40 साल तक नहीं होगी खराब
देवास : बांस से बनी बांसुरी की मधुर तान तो आपने सुनी ही होगी, लेकिन आज हम आपको बांस से बनने वाले आकर्षक घरेलू सामान से लेकर बांस से बने सुंदर मकान को बताने जा रहे हैं। यह है देवास में भोपाल रोड़ पर जामगोद में स्थित आर्टिशन कंपनी यानि आर्ट इज ऑनकला शुरू है। अपने नाम को चरितार्थ करती यह कंपनी अब प्रोसेस बांस का फाइबर डेनमार्क भेजेगी। जहां यही कंपनी पवन चक्की में लगने वाले पंखे (ब्लेड) का निर्माण भी करेगी। सस्ता भी और 40 साल तक नहीं होगा खराब पवन चक्की में जो पंखा लगता है वह 3 वर्ष में ही खराब हो जाता है, लेकिन बांस से बनाया जाने वाला यह पंखा करीब 40 वर्षों तक काम करेगा। बता दें कि यह कंपनी करीब 120 फीट लंबाई और करीब 35 फीट गोलाई वाली पंखुड़ी तैयार करेगी। यह काम आने वाले कुछ ही महीनों में शुरू हो जाएगा। अभी पवन चक्की में फाइबर ग्लास की ब्लेड का इस्तमाल होता है जो महंगी होने के साथ ही वजन में भी भारी होती है। जबकि अब बांस की पंखुड़ी (ब्लेड) लगेगी जो कि सस्ती होने के साथ ही वजन में हल्की होगी। ब्लेड हल्की होने के चलते ज्यादा पवन ऊर्जा भी बनाएगी। बांस से बनाए जा रहे आकर्षक सामान और घर देवास में करीब 19 एकड़ में फैले हुए प्लांट में बांस की खेती किए जाने से लेकर बांस से बने आकर्षक सामान और तो और मकान की दीवारें, पिल्लर और बेहद आकर्षक मकान तक तैयार किए जा रहे हैं जो ज्यादातर विदेशों में भेजे जा रहे हैं और इसका सारा श्रेय पश्चिम बंगाल के देबोपम मुखर्जी को जाता है। आईआईएम से एमबीए पास होकर अमेरिका में 22 साल तक खुद की सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी कंपनी चलाने के बाद भारत को आगे बढ़ाने की चाह लिए देबोपम मुखर्जी वापस भारत लौट आए और ऐसे उत्पादों को बनाने का मन बनाया जिसका कच्चा माल भारत में आसानी से उपलब्ध हो। विश्व में जिसकी मांग हो। उन्होंने बताया कि बांस की विश्व में पाई जाने वाली करीब 1380 प्रजातियों में सबसे बेहतर प्रजाति भारत में ही पाई जाती है। बांस की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे किसान देबोपम मुखर्जी ने भारत के मध्य प्रदेश में पाए जाने वाले बांस की विशेषता को ताक़त बनाते हुए एक बड़ा कारखाना वर्ष 2014 में देवास में लगाया। आज करीब 600 कर्मचारी दिन-रात उनके इस प्लांट में काम कर रहे हैं। आज मप्र, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में उनकी कुल 19 नर्सरी है और उनसे करीब 17 हजार 700 किसान जुड़े हुए है। वह खुद भी अपनी नर्सरी में बांस के पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराते हैं और फिर उन्हीं किसानों से वह बांस भी खरीदते हैं। बांस की खेती करके किसान न सिर्फ लाभ अर्जित कर रहे हैं बल्कि आत्मनिर्भर भारत की ओर बांस की खेती से जुड़कर अपना कदम आगे बढ़ा रहे है। ये है देवास के बांस की खासियत देबोपम मुखर्जी ने देवास के बांस की कई खासियतें बताई। उन्होंने बताया कि देवास स्थित यह प्लांट विश्व में एक अनूठा प्लांट है। बांस के उत्पादों के फायदे बताते हुए देबोपम मुखर्जी कहते है कि 70 साल तक बांस को पानी से कभी नुकसान नहीं होता, कभी दीमक नहीं लगती। तेज आग में भी ये करीब 1 घण्टे तक जलता नहीं। बांस से बने हुए मकानों को लेकर उन्होंने कहा कि आने वाले समय में भारत में भी बाँस के मकान देखने को मिलेंगे। http://dlvr.it/Sc4rF0
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हम बाहर से मंगवाते हैं पवन, हम से खरीद रहे हैं कलपुर्ज़! हाल क्या है?
हम बाहर से मंगवाते हैं पवन, हम से खरीद रहे हैं कलपुर्ज़! हाल क्या है?
डेनमार्क में बांस निर्यात: आज जाने बैग से संबंधित को तवज्जो दी जाती है। भारत में बैंस की जांच करने के लिए यह नियंत्रित किया जाता है। इस योजना को आर्थिक मदद भी प्रदान की जाती है, वो अच्छी तरह से बांस कर देश-विदेश में (बांस निर्यात) कर रहा है। प्रांतों का देवास बैंबैं की खेती ‘बैंबू हब’ के नाम से बेच रहा है। आज तक पूरे देश में संक्रमण की स्थिति थी। हवा में उड़ने वाली हवाएं वायरल होने वाली हैं। . ये…
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प्रकृति उपासक
एक्सप्रेस समाचार सेवा अरुणाचल प्रदेश का हरा-भरा स्वर्ग लगभग 26 जनजातियों और 100 उप-जनजातियों का घर है, जिनमें से प्रत्येक के अपने रीति-रिवाज, परंपराएं और प्रथाएं हैं। एक एकीकृत विशेषता यह तथ्य है कि वे प्रकृति के साथ सहजीवी संबंध बनाए रखते हैं और जिस भूमि पर वे रहते हैं। उनके घर बांस और स्टिल्ट से बने होते हैं। वे कृषि और आर्द्रभूमि की खेती का अभ्यास करते हैं और शिल्प कौशल की परंपरा का पालन करते…
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महंगी तार फैंसिंग नहीं, कम लागत पर जानवर से ऐसे बचाएं फसल, कमाई करें डबल
नीलगाय, हिरन फटकेंगे नहीं पास फसल सुरक्षा के साथ सेफ एक्स्ट्रा इनकम जानिए मॉडर्न बिजूका संग कई फलदार तरीके
चीज अगर कीमती हो तो फिर उसकी सुरक्षा भी सर्वोपरि है। जीवन की सभी सुख सुविधाओं के उद्भव केंद्रबिंदु अनाज, फल, फसल जैसे बेशकीमती प्राकृतिक उपहार की रक्षा, उससे भी ज्यादा अहम होनी चाहिए। भारत में खेती किसानी की रक्षा के मामले में स्थिति जरा उलट है।
देश मे खेतों की नीलगाय, हिरन, जंगली शूकर, आवारा मवेशियों से सुरक्षा के लिए इन दिनों कंटीले तारों की फेंसिंग का चलन देखा जा रहा है। यह तरीका बाप-दादाओं के जमाने से चली आ रही खेत की सुरक्षा युक्ति के मुकाबले जरा महंगा है।
तार की बाउंड्री के अलावा और किस तरह फसल की जानवरों से रक्षा की जा सकती है, किस तरीके की सुरक्षा के क्या अल्प एवं दीर्�� कालिक लाभ हैं, कंटीले तार की फेंसिंग के क्या लाभ, हानि खतरे हैं, जानिये मेरीखेती के साथ।
ये भी पढ़ें: रोका-छेका अभियान : आवारा पशुओं से फसलों को बचाने की पहल
तार फेंसिंग लाभ, हानि, खतरे
शुरुआत करते हैं खेत के चारों ओर कटीले तारों को लगाने के मौजूदा प्रचलित तरीके से। इस तरीके से खेत की सुरक्षा में तारों की फेंसिंग के लिए सीमेंट के पिलर आदि से लेकर तारों की क्वालिटी के आधार पर सुरक्षा की लागत तय होती है। पिलर के लिए गड्ढे खोदने पर भी मजदूरी आदि पर व्यय करना पड़ता है।
तार चोरी का खतरा
तार फेंसिंग की एक टेंशन ये भी है कि, इस तरह की खेत की सुरक्षा में महंगी क्वालिटी के तारों के चोरी होने का डर रहता है। भारत में खेत से तारों के चोरी होने के कई मामले आए दिन प्रकाश में आते रहते हैं। कटीले तारों के मौसमी प्रभाव से खराब होने का भी खतरा रहता है। कटीले तारों से खेतों की सुरक्षा कई बार किसानों के लिए फायदे के बजाए नुकसान का सौदा साबित हुई है।
नीलगाय जैसे बलशाली एवं कुलाचें मारने में माहिर हिरणों के झुंड के सामने, तार फेंसिंग भी फेल हो जाती है। बलशाली नीलगाय के झुंड जहां तार फेंसिंग को धराशाई कर फसल चौपट कर देते हैं, वहीं हिरन झुंड छलांग मार खेत की फसल चट कर खेत से पलक झपकते ओझल हो जाते हैं।
तार की फेंसिंग में फंसने या फिर इसमें चूकवश प्रवाहित करंट की चपेट में आने से जन एवं पशुधन की हानि के कारण मामले थाना, कोर्ट, कचहरी से लेकर जेल की सैर तक जाते देखे गए हैं।
प्राकृतिक विकल्प श्रेष्ठ विचार
हालांकि प्राकृतिक तरीका एक दीर्घकालिक प्रक्रिय�� है, लेकिन इसमें नुकसान के बजाए फायदे ही फायदे हैं। इस तरीके से खेत की बाड़, बागड़ या फेंसिंग के लिए तार जैसे कृत्रिम विकल्पों के बजाए प्रकृति प्रदत्त पौधों आधारित विकल्पों से खेत और फसल की सुरक्षा का प्रबंध किया जाता है।
कुछ पेड़, पौधे हैं जिन्हें खेत की सीमा पर लगाकर अतिरिक्त कृषि आमदनी से भरपूर बाड़ सुरक्षा तैयार की जा सकती है। इसमें किसी एक पेड़, पौधे, वृक्ष या फिर इनके मिश्रित प्रयोग से वर्ष भर के लिए मिश्रित कृषि जनित आय का भी कुशल प्रबंध किया जा सकता है।
तो शुरुआत करते हैं बिसरा दिए गए उन ठेठ देसी तरीकों से, जिनमें आधुनिक तकनीक का तड़का लगाकर और भी ज्यादा श्रेष्ठ नतीजे हासिल किए जा सकते हैं।
ये भी पढ़ें: इस राज्य में बनने जा रहीं है नंदीशालाएं, किसानों को मिलेगी राहत
मॉडर्न बिजूका (Scarecrow)
घर की छत पर बुरी नजर से बचाने टंगी काली मटकी या लटके पुराने जूते की ही तरह खेती किसानी की सुरक्षा का पीढ़ी दर पीढ़ी आजमाया जाने वाला खास टोटका है, बिजूका।
भारत का शायद ही ऐसा कोई खेत हो जहां बिजूका के हिस्से जमीन न छोड़ी जाती हो। मवेशी से फसल सुरक्षा के लिए इस युक्ति में खेत के चारों ओर सुरक्षा दायरा बनाने के बजाए महज बांस और मिट्टी की मटकी और पुराने कपड़ों से इंसान की मौजूदगी के लिए बिजूका जैसे भ्रम का ताना-बाना बुना जाता है।
ऐसी प्रयोगजनित मान्यता है कि हवा में बिजूका की मटकी अपने आप हिलती-डुलती है और कपड़े लहराते हैं, तो जानवरों को खेत में इंसान के होने का आभास होता है और वे दूसरे खेत की राह पकड़ लेते हैं। घासपूस और कपड़ों का बनाया गया पुतला जिसे बिजूका कहा जाता है, दिन रात बगैर थके, मुस्कुराते हुए किसान के गाढ़े पसीेने की कमाई की रक्षा में रत रहता है।
हालांकि बिजूका को अब तकनीक की सुलभता के कारण आधुनिक स्वरूप भी दिया जा सकता है। अब बिजूका को बाजार में सस्ती कीमत पर मिलने वाले एफएम या मैमोरी की सहायता से चलने वाले लाउड स्पीकर के जरिए मॉडर्न बनाया जा सकता है। लाउड स्पीकर के जरिए ऐसे जानवरों की रिकॉर्डेड आवाज जिनसे फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर डरते हैं, पैदा कर भ्रम में इंसान की मौजूदगी का और गहरा एवं असरकारक प्रभाव निर्मित किया जा सकता है। आप भी आजमा के देखिये। बस इसके लिए आपको जानवरों की डरावनी आवाज वाली ऑडियो लाइब्रेरी का जुगाड़ करना होगा।
नीलगाय समस्या का हर्बल इलाज
प्रकृति प्रदत्त संसाधनों से, बगैर कृत्रिम रासायनिक पदार्थों की मदद लिए प्राकृतिक तरीके से तैयार हर्बल घोल नीलगाय को भगाने का कारगर उपाय बताया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों ने खेत से नीलगायों के झुंड को दूर रखने घरेलू और परंपरागत हर्बल नुस्ख़ों पर प्रकाश डाला है।
काफी कम लागत में तैयार हर्बल घोल खेत में उपलब्ध संसाधनों से ही अल्प समय में रेडी हो जाता है। गोमूत्र, मट्ठा और लालमिर्च के अलावा नीलगाय के मल, गधे की लीद इत्यादि के मिश्रण से तैयार हर्बल घोल की गंध से नीलगाय और दूसरे जानवर दूर रहते हैं। इस हर्बल घोल का खेत की परिधि के आसपास छिड़काव करने से जानवरों से खेत की सुरक्षा संभव है। इस तरीके से कम से कम 20 दिन तक खेत की नीलगायों के झुंड से सुरक्षा होने के अपने-अपने दावे हैं। रामदाने की खुशबू से भी नीलगाय दूर रहती है।
कृषि विज्ञान केंंद्र या कृषि समस्या समाधान संबंधी कॉल सेंटर से भी हर्बल घोल बनाने की विधि के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है।
खेत की मेढ़ के किनारे या आसपास करौंदा, जेट्रोफा, तुलसी, खस आदि लगाकर भी नीलगाय से फसल सुरक्षा की जा सकती है।
बांस का जंजाल
बांस के पौधे, खेत की मेढ़ किनारे नियोजित तरीके से कतार में रोपकर, खेत की जानवरों से सुरक्षा का अच्छा खाका तैयार किया जा सकता है। किसी भी तरह की मिट्टी पर विकसित होने मेें सक्षम बांस, हर हाल में भविष्य के लिए मुनाफे भरा निर्णय है।
बांस के पौधे सामान्यतः तीन से चार साल में परिपक़्व हो जाते हैं। इससे किसान मित्र कृषि आय का अतिरिक्त जरिया भुना सकते हैं। खेत की मेढ़ पर बैंबू कल्टीवेशन (Bamboo Cultivation), यानी बांस की पैदावार कर किसान को 40 सालों तक कमाई सुनिश्चित है। किसानों की आय में वृद्धि करने भारत सरकार ने बांस की खेती के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) की शुरुआत की है। इसमें किसानों के लिए आर्थिक सहायता का प्रावधान किया गया है।
बांस के फायदों और सुनिश्चित लाभ के बारे में विस्तार से जानने के लिए शीर्षक को क्लिक करें: जानिये खेत में कैसे और कहां लगाएं बांस ताकि हो भरपूर कमाई
बेर से फेंसिंग
हरी, पीली, लाल, नारंगी, रंग-बिरंगी, खट्टी-मीठी बेर के पौधों को खेत की सीमा पर चारों ओर नियोजित कतार में लगाकर खेत की प्राकृतिक रूप से सुरक्षा की जा सकती है। आम तौर पर जंगली समझा जाने वाला यह फलदार पौधा, ज्यादा देखभाल के अभाव में भी अपना विस्तार करने में सक्षम है।
बारिश में यह खास तौर पर तेजी से बढ़ता है। नर्सरी में तैयार उच्च किस्म के बेर के पौधे कम समय में कृषि आय प्रदान करने में सक्षम होते हैं। नर्सरी में तैयार पौधों पर अपने आप पनपने वाले पेड़ों की तुलना में अधिक मात्रा में बेर के फलों की पैदावार होती है। इनके कंटीले तनों के कारण खेत की भरपूर सुरक्षा होती है, क्योंकि जानवरों को इसमें प्रवेश करने में ��िक्कत होती है।
मार्च अप्रेल में कच्चे फल बेचकर किसान जहां मौसमी कमाई कर सकता है, वहीं सूखे बेर के लिए चूरन, बोरकुट, गटागट जैसे उत्पादों के लिए निर्माताओं के बीच तगड़ी डिमांड रहती है।
करौंदा के पेड़
करौंदा भी बेर की ही तरह कंटीले पौधों की एक फलदार प्रजाति है। मौसमी फल का यह पौधा भी कृ़षि आय में वृद्धि के साथ ही खेत की सुरक्षा में कारगर प्रबंध हो सकता है। खेत की मेढ़ के पास नियोजित तरीके से करौंदा की बागड़ से जहां खेत की सुरक्षा हो सकती है, वहीं मौसम में फल से एक्स्ट्रा फार्म इनकम भी सुनिश्चित हो जाती है।
कांटा युक्त करौंदा का पौधा, झाडिय़ों के स्वरूप में अपना विस्तार करता है। गर्म जलवायु तथा सूखा माहौल सहने में सक्षम करौंदा विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहता है। खास तौर पर किसी भी तरह की मिट्टी में करौंदा ग्रोथ करने लगता है।
विदेशी प्रजातियों की बात करें तो लागत और संसाधन की उपलब्धता के आधार पर जैपनीज़ होली, जहरीली बेल के अलावा गैर जहरीली इंगलिश आइवी बेल, अमेरिकन होली, फर्न्स, क्लीमेंटिस, सीडर्स ट्री लगाकर भी खेत की सुरक्षा का प्रबंध किया जा सकता है। हालांकि इन पौधों से अतिरिक्त कमाई के अवसर कम हैं, लेकिन पर्यावरण सुरक्षा की सौ फीसदी गारंटी जरूर है।
Source महंगी तार फैंसिंग नहीं, कम लागत पर जानवर से ऐसे बचाएं फसल, कमाई करें डबल
#kam laagat par janwaron se bachaayen fasal#कम लागत पर जानवर से बचाएं फसल#करौंदा की बागड़#करौंदा के पेड़#नीलगाय समस्या का हर्बल इलाज#बांस का जंजाल#बिजूका (Scarecrow)#बेर से फेंसिंग
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धान और कपास की फसलों पर अपनी निर्भरता को कैसे समाप्त कर सकता है तेलंगाना
धान और कपास की फसलों पर अपनी निर्भरता को कैसे समाप्त कर सकता है तेलंगाना
ए. अमरेंद्र रेड्डी, प्रमुख वैज्ञानिक (कृषि अर्थशास्त्र)
आईसीएआर-सेंटर रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राईलैंड एग्रीकल्चर हैदराबाद
अपनी हाल की यात्राओं में, मैंने देखा कि तेलंगाना की फसल पैटर्न केवल दो फसलों - धान और कपास की ओर अत्यधिक विषम हैं। दो फसलों पर इस अति निर्भरता से उत्पादन और मूल्य जोखिमों में वृद्धि होती है, कीटों और बीमारियों के प्रकोप के कारण पूरी तरह से तबाही होती है, और पर्यावरणीय खतरे होते हैं।
हालांकि राज्य सरकार फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली है। एक समग्र रणनीति न केवल जोखिमों को कम कर सकती है बल्कि किसानों को उच्च आय प्राप्त करने में भी मदद कर सकती है।
तेलंगाना में कुल बोया गया क्षेत्र लगभग 135.63 लाख एकड़ है और सकल फसल क्षेत्र 203 लाख एकड़ था। राज्य में शुद्ध सिंचित क्षेत्र लगभग 55 लाख एकड़ है जिसमें 78.1 लाख एकड़ सकल सिंचित क्षेत्र है। राज्य के 59.48 लाख किसानों में से 65% के पास 1 हेक्टेयर (1 हेक्टेयर = 2.47 एकड़) से कम की छोटी जोत है।
कपास (बोए गए क्षेत्र का 45%) और धान (39%) हैं, जिसमें लाल चना, मक्का और सोयाबीन की खेती के तहत एक ��ोटा हिस्सा है। बरसात के बाद के मौसम के दौरान, अधिकांश खेती वाले क्षेत्र में धान (77%), कुछ क्षेत्रों में मक्का (7%), बंगाल चना (5%) और मूंगफली (4%) की खेती होती है।
तेलंगाना धान का सबसे बड़ा उत्पादक और भारत में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। फसल उत्पादन राज्य के कृषि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 43% हिस्सा है, शेष का योगदान पशुधन, डेयरी और कुक्कुट आदि द्वारा किया जाता है।
राज्य में धान और कपास की एक फसल की वजह से खरीद में समस्या आ रही है, साथ ही कीमत और उपज के जोखिम का अत्यधिक जोखिम और कीटों और बीमारियों के अचानक संभावित प्रकोप भी हो रहे हैं। यह पिछले साल हुआ था, जब तेलंगाना के कुछ हिस्सों में मिर्च की फसल खराब हो गई थी। फसल के पूर्ण नुकसान के साथ, किसानों को प्रति एकड़ 1.3-1.5 लाख रुपये का नुकसान हुआ।
यद्यपि धान की उपज 22-25 क्विंटल प्रति एकड़ के साथ काफी अच्छी है, राज्य में कपास की पैदावार 2.8 क्विंटल प्रति एकड़ कम है, लेकिन कपास को कुछ वर्षों में उच्च बाजार कीमतों से फायदा हुआ है। बरसात के मौसम में सोयाबीन, मक्का और लाल चने जैसी फसल वैकल्पिक फसल के रूप में उभर रही है, जबकि रबी सीजन में मक्का, बंगाल चना और मूंगफली वैकल्पिक फसलें हैं।
एक जिला-एक उत्पाद दृष्टिकोण के तहत, फसल कॉलोनियों को बढ़ावा दिया जाता है ताकि किसानों को उच्च मूल्य वाली फसलों पर स्विच करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके और प्रत्येक जिले में एक विशेष वस्तु के आसपास आवश्यक बुनियादी वस्तु-विशिष्ट बुनियादी ढांचे, जैसे प्रसंस्करण इकाइयों और कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे की पहचान की जा सके। . कृषि विभाग भी प्रदर्शनों, कृषि मशीनीकरण और मूल्यवर्धन, और अन्य साइट-विशिष्ट गतिविधियों के माध्यम से वैकल्पिक फसलों का प्रचार कर रहा है।
तेलंगाना में ताड़ के तेल, बागवानी, बांस और कृषि-वानिकी के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए फसल विविधीकरण के उद्देश्य से कई योजनाएं चल रही हैं। ताड़ के तेल जैसी वैकल्पिक फसलों की खेती के लिए नकद और तरह के प्रोत्साहन भी मौजूद हैं, लेकिन बहुत कम सफलता मिली है।
24 घंटे मुफ्त बिजली जैसी नीतियों के चलते राज्य के कई हिस्सों में बोरवेल के नीचे भी दो सीजन में धान की खेती हो रही है. यह लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है और सरकार और किसानों दोनों के लिए बहुत महंगा साबित होगा���
धान एक पानी की खपत वाली फसल है, जिसमें दलहन और तिलहन (लगभग 900 लीटर प्रति किलो अनाज) की तुलना में लगभग तीन से पांच गुना (3,000 से 5,000 लीटर प्रति किलो अनाज) अधिक पानी की खपत होती है। फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए लंबे समय तक चलने वाली स्थिर नीतियां समय की मांग हैं। दलहन, तिलहन और अन्य वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देने के लिए पिछली नीतियां धान से बदलाव को ट्रिगर करने के लिए पर्याप्त स्थिर नहीं हैं।
हालांकि वैकल्पिक फसलें कुछ वर्षों में अधिक मूल्य प्राप्त करती हैं, वे पैदावार और कीमतों दोनों के मामले में जोखिम भरी होती हैं। इसके अलावा, इन वैकल्पिक फसलों के उच्च बाजार मूल्य कम पैदावार की भरपाई करने में सक्षम नहीं थे। इसलिए, राज्य में वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देने के लिए, सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से किसी प्रकार की मूल्य गारंटी को लागू करना होगा, इसके अलावा, सरकार को उपज बढ़ाने वाले को अपनाने को बढ़ावा देने के प्रयास करने चाहिए।
एमएसपी पर गारंटीकृत खरीद के बिना, दलहन और तिलहन की कीमतें 'कोबवेब चक्र' का पालन करती हैं, जिसमें किसान फसल की अवधि के दौरान पूर्वानुमानित कीमतों के आधार पर नहीं, बल्कि पिछले वर्ष की कीमतों के आधार पर उत्पादन निर्णय लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में व्यापक उतार-चढ़ाव होता है।
इस परिदृश्य में, वैकल्पिक भरमार और कमी हो सकती है। इससे बचने के लिए, बुवाई से पहले आगामी फसल अवधि के लिए सटीक मूल्य पूर्वानुमान का प्रसार महत्वपूर्ण है, इसलिए किसान पिछले वर्ष की कीमत के बजाय पूर्वानुमानित कीमतों के आधार पर रकबा निर्णय ले सकते हैं। ऐसा करने का एक तरीका एमएसपी की घोषणा करना है जो पर्याप्त खरीद द्वारा समर्थित होगा ताकि किसान आगामी फसल अवधि के लिए मूल्य संकेत के रूप में एमएसपी पर भरोसा करें और कोबवे चक्र में गिरने के बजाय उसके अनुसार अपने रकबे की योजना बनाएं।
स्थिर मूल्य नीति के अलावा, सरकार को वैकल्पिक फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास और प्रसार पर ध्यान देना होगा। भूजल सिंचाई धान के विविधीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह नियंत्रित पानी छोड़ने की सुविधा प्रदान करती है, जो सब्जियों, फलों, मिर्च और कपास जैसी फसलों को उगाने के लिए एक पूर्वापेक्षा है। इस कारण से भूजल पर अधिक निर्भर जिलों (जैसे बोरवेल सिंचाई) को फसल विविधीकरण योजनाओं में उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
एक अन्य प्राथमिकता हस्तक्षेप फसल की जरूरतों के अनुसार पानी की नियंत्रित रिहाई की सुविधा के लिए नहर सिंचाई प्रणाली का प्रबंधन करना है। पानी की यह नियंत्रित रिहाई किसानों को उनकी लाभप्रदता के ��धार पर फसलों का चयन करने की अनुमति देगी।
यह ध्यान देने योग्य है कि तेलंगाना में आदिलाबाद और तटीय आंध्र प्रदेश जैसे उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में, पूरक सिंचाई प्रदान करने के लिए जल संचयन संरचनाओं (जैसे गाँव के तालाबों या खेत के तालाबों) को बढ़ावा देकर न केवल फसल विविधता को बढ़ाने के लिए बल्कि फसल की तीव्रता को भी बढ़ाने की अधिक गुंजाइश है। जिससे धान की कटाई के बाद सब्जियों, दालों और तिलहन की खेती का दायरा बढ़ेगा।
नियंत्रित सिंचाई के अलावा, नीति आयोग के अध्ययनों ने संकेत दिया है कि बेहतर बाजार बुनियादी ढांचे, जैसे ग्रामीण सड़कों, गांव भंडारण बुनियादी ढांचे और अच्छी तरह से जुड़े बाजारों ने बागवानी फसलों (फल और सब्जियां) जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर फसल विविधीकरण में मदद की है। है, जिसे बढ़ावा देने की जरूरत है।
कुल मिलाकर, फसल विविधीकरण योजना को सफल बनाने के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए (i) वैकल्पिक फसलों के लिए एमएसपी का कार्यान्वयन; (ii) वैकल्पिक फसलों के लिए उपज बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रसार; (iii) नियंत्रित सिंचाई के तहत क्षेत्र का विस्तार; और (iv) ग्रामीण बुनियादी ढांचे, सड़कों और बाजारों सहित।
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धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका
हमारा देश विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक देश है। हमारे देश में 50 प्रतिशत धान का इस्तेमाल खाने के रूप में होता है। धान की खेती की देखभाल समय से नहीं करने पर काफी नुकसान होता है। विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार धान की फसल की बुआई, सिंचाई, कटाई, मड़ाई, गहाई और भंडारण समय और सही तरीके ने नहीं करने से उत्पादन का 10 प्रतिशत का नुकसान होता है। इसमें थोड़ी सी लापरवाही भंडारण के समय हो जाये तो यह नुकसान काफी बढ़ जाता है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि वो धान के भंडारण के समय वैज्ञानिक तरीका अपनायें तो होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। आइये जानते हैं कि धान के भंडारण के समय कौन-कौन सी सावधानियां बरती जानी चाहिये।
Content
क्यों होती है भंडारण की आवश्यकता
धान के भंडारण की प्रथम तैयारी
भंडार गृह के लिए उचित स्थान
भंडार गृह कैसा बनवायें
कीटाणु रहित गोदाम बनवाने के लिए करें ये काम
पुरानी बोरियों का इस तरह से करें इस्तेमाल
कीट प्रबंधन के लिए करें ये काम
बोरों को कीटाणु रहित बनाने के लिए करें ये उपाय
हवा का रुख देखकर करें भंडारण
क्यों होती है भंडारण की आवश्यकता
पूरे साल पर धान यानी चावल मिलता रहे। इसके लिए धान के भंडारण की आवश्यकता होती है। इसके लिए किसान भाइयों को चाहिये कि धान का उचित तरीके से भंडारण करें। भंडारण से पूर्व न���ी की मात्रा सुरक्षित कर लें। लम्बी अवधि के लिए धान के भंडारण के लिए उसमें नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिये। यदि कम समय के लिए भंडारण करना है तो धान में नमी का प्रतिशत 14 तक चलेगा।
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धान का हाल न बिगाड़ दे मौसम
धान के भंडारण की प्रथम तैयारी
धान के भंडारण करने के लिए एक अच्छी जगह तलाश करनी चाहिये। इस स्थान पर भंडार गृह बनाने से पहले जमीन को कीटमुक्त कर लेना चाहिये। उसके बाद भंडारण की तैयारी करनी चाहिये।
भंडार गृह के लिए उचित स्थान
धान के भंडार गृह के निर्माण के लिए उचित स्थान एक ऊंची जगह होनी चाहिये।जहां पर पानी न भरता हो और बरसात आदि का पानी तत्काल निकल जाता हो। इसके साथ ही इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिये कि भंडार गृह में नमी व अत्यधिक गर्मी, धान नाशक कीट, चूहों तथा खराब मौसम का प्रभाव न होता हो। भंडार गृह में जमीन से 20 से 25 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर लकड़ी से प्लेटफार्म बनाकर उसमें बोरियों की छल्लियों को लगायें ताकि जमीन से सीलन न आ सके और अनाज को नुकसान से बचाया जा सके।
भंडार गृह कैसा बनवायें
भंडारण से पहले या बाद में भंडारित कीटों से बचाव करने के लिए भी वैज्ञानिक प्रबंध करने जरूरी हैं। भंडारण के लिए पारंपरिक रूप से विभिन्न आकारों और विभिन्न सामग्रियों के बने बड़े बड़े पात्र प्रयोग किये जाते हैं। इन्हें कोठी, कुठला आदि ग्रामीण भाषा में कहा जाता है। ये पात्र लकड़ी, मिट्टी, बांस, जूट की बोरियों, ईंटों, कपड़ों आदि उपलब्ध वस्तुओं से बनाये जाते हैं। इस तरह के पात्रों में थोडे समय के लिए धान का भंडारण किया जा सकता है जबकि लम्बे समय के लिए भंडारण करने के लिए आधुनिक भंडार गृह बनवाने चाहिये। लम्बी अवधि के लिए धान के भंडारण के लिए पूसा कोठी, धातुओं की कोठी, साइलो स्टील जैसे आधुनिक भंडारण गृह आदि का प्रयोग किया जाता है। इसमें धान को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
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कीटाणु रहित गोदाम बनाने के लिए करें ये काम
आम तौर पर भवनों में बनने वाले भंडार गृह में धान के बोरों के दो ढेरों के बीच उचित हवा का संचारण के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध करानी चाहिये। साफ मौसम के दौरान उचित हवा संचारण होनी चाहिये जबकि वर्षा के मौसम से इससे बचना चाहिये। गोदाम मं धान या चावल के सुरक्षित भंडारण से पहले उसे उपयुक्त धुआं देकर कीटाणु रहित करना चाहिये। भंडार गृह को अच्छीतरह से साफ कर लेना चाहिये। वहां पर पुराने दाने नहीं रहने देना चाहिये। भंडार गृह की दरारों व छेदों को अच्छी तरह से भर देना चाहिये।
पुरानी बोरियों का इस तरह से करें इस्तेमाल
भंडारण के दौरान धान के नुकसान को कम करने के लिए रोगमुक्त बीट्वील पटसन के थैलों में सूखे हुए धान रखने चाहिये। केवल नयी व सूखी बोरियों का ही ��ान को रखने में प्रयोग करना चाहिये। यदि पुरानी बोरियों में ही धान की फसल को रखा जाना जरूरी हो तब उस दशा में पुरानी बोरियों को एक प्रतिशत मालाथियान के उबलते हुए घोल में 3 से 4 मिनट तक भिगोएं और फिर उसको धूप में अच्छी तरह से सुखा कर उसमें धान को रखें। यदि विद्युत चालित यंत्र से भी बोरियों को सुखाया जा सकता है तो उसे सुखा लें लेकिन यह तय कर लें कि उनमे नमी न रह जाये।
कीट प्रबंधन के लिए करें ये काम
भंडारण गृह में कीट प्रबंधन करना बहुत जरूरी होता है। इसके लिए गोदाम में साधारण मौसम में प्रत्येक 15 दिन में प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में मालाथियान (Malathiyan) (50 प्रतिशत ईसी) 10 लीटर पानी में एक लीटर मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। सर्दियों के दिनों मे इस तरह के घोल का छिड़काव 21 दिन में एक बार अवश्य कर देना चाहिये।
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धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल
यदि किसी कारण से मालाथियान न मिल सके तो उसकी जगह पर किसान भाई 40 ग्राम डेल्टामेथ्रिन (Deltamethrin) (2.5 प्रतिशत) चूरन को एक लीटर पानी में मिलाकर तीन महीने में प्रत्येक 100 वर्ग मीटर के क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिये। इसके अलावा डीडीवीपी (DDVP) (75 प्रतिशत ईसी) () को 150 लीटर पानी में एक लीटर मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। इन दोनों कीटनाशकों का छिड़काव करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि इनका छिड़काव प्रति 100वर्ग मीटर में कम से कम तीन लीटर हो।
बोरों को कीटाणु रहित बनाने के लिए करें ये उपाय
गोदाम या भंडार गृह में बोरियों में धान की फसल को रखने से पहले दूसरी जगह पर बोरों का धूम्रीकरण कर देना चाहिये। उसके बाद 5 से 7 दिनों के लिए 9 ग्राम प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से एलुमिनियम फास्फाइड (Aluminium Phosphide) से धुआं दें।
केवल पॉलीथिन से ढके गोदाम में किसान भाइयों को चाहिये कि धान की बोरियों में एलुमिनियम फास्फाइड से 10.8 ग्राम प्रति मीट्रिक टन की दर से धूम्रीकरण करें। पुरानी व नई बोरियों को अलग-अलग रखें और उनमें साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें। जिससे दानों में किसी प्रकार का रोग न लग सके।
हवा का रुख देखकर करें भंडारण
धान का भंडारण करते समय हवा के रुख को ध्यान से देखना चाहिये। यदि पुरवैया हवा चल रही हो तब धान की फसल का भंडारण नहीं करना चाहिये।
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