#कैसे करें बांस की खेती
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बांस की खेती पर मोदी सरकार का बड़ा प्लान, हर पौधे पर मिलेगी 120 रुपये की सरकारी मदद, जानिए सबकुछ
बांस की खेती पर मोदी सरकार का बड़ा प्लान, हर पौधे पर मिलेगी 120 रुपये की सरकारी मदद, जानिए सबकुछ
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नई दिल्ली.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने बृहस्पतिवार को कहा कि नेशनल बैंबू मिशन के तहत बैंबू किसानों, हैंडीक्राफ्ट से जुड़े आर्टिस्ट्स और दूसरी सुविधाओं के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए का निवेश किया जा रहा है. बैंबू प्रोडक्ट आत्मनिर्भर भारत अभियान को ताकत देने का सामर्थ्य रखता है. जब बैंबू यानी…
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इस खेती से कमा सकते हैं लाखों रुपये, प्रति पौधा 120 रुपए मिलेगी सरकारी सहायता
इस खेती से कमा सकते हैं लाखों रुपये, प्रति पौधा 120 रुपए मिलेगी सरकारी सहायता
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बड़े मुनाफे का है मोदी सरकार का ये खास प्लान बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बैंबू मिशन (National Bamboo Mission) भी बनाया है. इसके तहत किसान को बांस की खेती करने पर प्रति पौधा 120 रुपए की सरकारी सहायता भी मिलती है. सरकार…
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Sagwan: एक एकड़ में मात्र इतने पौधे लगाकर सागवान की खेती से करोड़ पक्के !
नेशनल-इंटरनेशनल मार्केट में छाल-पत्तों से लेकर लकड़ी तक की डिमांड वाले सागवान प्लांट की फार्मिंग (Sagwan Farming) से करोड़ों रुपए का मुनाफा तय है। कृषि विज्ञान एवं किसानी की पारंपरिक विधियों के सम्मिश्रण से सागवान की खेती कर किसान करोड़ों रुपयों का मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।
ट्रिक करोड़ों की
मेरीखेती में, हम एक एकड़ के मान के आधार पर सागवान की खेती (Sagwan Ki Kheti) के तरीकों एवं उससे मिलने वाले अनुमानित लाभ पर फोकस करेंगे। कड़ी लकड़ी वाले इस पेड़ के जरिये, पेड़ के मालिक करोड़पति बन सकते हैं।
सागवान की खेती का गणित
खेत ही क्या, मुद्रा यानी रुपया (भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका), डॉलर, दिरहम, युआन का रोल जहां आ जाता है, वहां किसी वस्तु, सेवा या विचार की गुणवत्ता, उसकी जरूरत एवं उपलब्धता और कीमत ही उसकी सफलता की कुंजी मानी जाती है।
सागवान की खेती (Teak Wood Farming) भी प्रकृति का वह विकल्प है जिसकी गुणवत्ता, मांग और कीमत उसे उत्पाद के तौर पर श्रेष्ठ बनाती है।
सागवान की डिमांड
सागवान को स्थानीय स्तर पर सगौना, सागौन, टीक, टीकवुड (Teak, Teakwood) भी कहा जाता है। इसकी लकड़ियों का जहाज़, रेल, बड़े यात्री वाहनों और फर्नीचर इंडस्ट्री सेक्टर तक व्यापक मार्केट है।
सागवान के औषधीय गुण
जीवित सागवान पेड़ की छाल और पत्तियां तक मनुष्य के लिए गुणकारी होती हैं। औषधीय उपचार में भी सागौन की छाल, पत्ती एवं जड़ों का उपयोग किया जाता है। खास तौर पर कई तरह की शक्ति वर्धक दवाएं भी इससे बनाई जाती हैं।
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मतलब साफ है कि सागवान फार्मिंग (Sagwan Farming) में लाभ के अवसर अपार हैं, सागौन के पेड़ के जरिए किसान बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं।
अड़ियल स्वभाव वाला है सागवान का पेड़
खेत, जंगल, झरना, पोखर कहीं भी पनपने वाले अड़ियल स्वभाव के सागवान पौधे की खेती (Sagwan Cultivation) के मात्र इतने ही फायदे नहीं हैं, बल्कि यह गुणों की भरमार है।
जंगल नहीं अब खेतों की भी शान
पारंपरिक खेती-किसानी में आधुनिक कृषि विज्ञान की युक्तियों के साथ आज का किसान किसानी से दिन दूनी रात चौगुनी कमाई के विकल्प तलाश रहा है। कभी खेत से मात्र मुख्य फसल उपजाने वाला आज का किसान अब आय के अन्य विकल्प भी अपना रहा है।
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ऐसा ही एक विकल्प है सागवान फार्मिंग (Sagwan Farming) भी, लेकिन इसके लाभ हासिल करने के लिए कुछ खास चीजों का ध्यान रखने की जरूरत है। मसलन पौधरोपण के तरीके, पौधरोपण का समय, देखभाल में रखी जाने वाली सावधानियां, संभावित नुकसान, आदि।
सागवान के पौधे की कीमत
ऑनलाइन कृषि उत्पाद, पौधे आदि बेचने वाली कंपनियां मात्र 20 रुपए में सागवान के पौधे की सेल ऑफर कर रही हैं। नर्सरियों में पौधे की गुणवत्ता के आधार पर सागवान की कीमत में घट-बढ़ हो सकती है।
सागवान है मुनाफे का सौदा
मतलब आज लगाया गया सागवान का 20 रुपए का पौधा दस साल बाद परिपक्व होने पर आज की कीमत के मान से 25 से 40 हजार रुपए तक किसान को कमा कर दे सकता है। अधिक संख्या में रोपेे गए पौधे अधिक लाभ का पक्का संकेत है!
सागवान है सहफसली विकल्प
अब किसान एक करोड़ रुपए के मुनाफे के लिए 10 साल तो नहीं रुक सकता तो ऐसे में नियमित कमाई भी संभव है। सहफसली कृषि विधि से किसान सागवान के पेड़ों के बीच की भूमि पर सब्जियों और फूलों की खेती कर कमाई और मुनाफे को डबल कर सकते हैं।
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सागवान के पेड़ की परिपक़्वता में कितने साल लगेंगे ?
सागवान का पेड़ 10 से 12 साल बाद परिपक़्व होने पर किसान को 25 से 40 हजार रुपये तक कमा कर देगा। परिपक़्व सागवान का प्रत्येक पेड़ लम्बाई और मोटाई के हिसाब से 25 हजार से 40 हजार रुपये तक बिकता है। कृषि अनुसंधान के अनुसार एक एकड़ खेत में लगभग 120 सागवान के पौधे लगते हैं। यह पेड़ अपनी परिपक��वता के बाद भी करोड़ों रुपए की हैसियत रखते ह��ं।
मतलब साफ है कि खेत में बारिश, गर्मी, तेज ठंड में यदि कोई फसल न भी हो, तब भी सागौन के करोड़ों रुपए के चंद पेड़, आमदनी की आस हो सकते हैं।
source Sagwan: एक एकड़ में मात्र इतने पौधे लगाकर सागवान की खेती से करोड़ पक्के !
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Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में
किसान भाईयों, आपने आलू, खीरा और प्याज की फसल पर अपने जानते खूब मेहनत की। फसल भी अपने हिसाब से बेहद ही उम्दा हुई। गुणवत्ता एक नंबर और क्वांटिटी भी जोरदार। लेकिन, आप अभी भी पुराने जमाने के तौर-तरीके से ही अगर फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं तो ठहरें। हो सकता है, आप जिन प्राचीन विधियों का इस्तेमाल करके फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं, वह आपकी फसल को खराब कर दे। संभव है, आप पूरी फसल न ले पाएं। इसलिए, कृषि वैज्ञानिकों ने जो तौर-तरीके बताएं हैं फसल निकालने के, हम आपसे शेयर कर रहे हैं। इस उम्मीद के साथ कि आप पूरी फसल ले सकें, शानदार फसल ले सकें। तो, थोड़ा गौर से पढ़िए इस लेख को और उसी हिसाब से अपनी फसल निकालिए।
प्याज की फसल
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प्याज देश भर में बारहों माह इस्तेमाल होने वाली फसल है। इसकी खेती देश भर में होती है। पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक। अब आपका फसल तैयार है। आप उसे निकालना चाहते हैं। आपको क्या करना चाहिए, ये हम बताते हैं। जब आप प्याज की फसल निकालने जाएं तो सदैव इस बात का ध्यान रखें कि प्याज और उसके बल्बों को किसी किस्म का नुकसान न हो। आपको बेहद सावधानी बरतनी पड़ेगी। हड़बड़ाएं नहीं। धैर्य से काम लें। सबसे पहले आप प्याज को छूने के पहले जमीन के ऊपर से खींचे या फिर उसकी खुदाऊ करें। बल्बों के चारों तरफ से मिट्टी को धीरे-धीरे हिलाते चलें। फिर जब मिट्टी हिल जाए तब आप प्याज को नीचे, उसकी जड़ से आराम से निकाल लें। आप जब मिट्टी को हिलाते हैं तब जो जड़ें मिट्टी के संपर्क में रहती हैं, वो धीरे-धीरे मिट्टी से अलग हो जाती हैं। तो, आपको इससे साबुत प्याज मिलता है। प्याज निकालने के बाद उसे यूं ही न छोड़ दें। आपके पास जो भी कमरा या कोठरी खाली हो, उसमें प्याज को सुखा दें। कम से कम एक हफ्ते तक। उसके बाद आप प्याज को प्लास्टिक या जूट की बोरियों में रख कर बाजार में बेच सकते हैं या खुद के इस्तेमाल के लिए रख सकते हैं। प्याज को कभी झटके से नहीं उखाड़ना चाहिए।
आलू
आलू देश भर में होता है। इसके कई प्रकार हैं। अधिकांश स्थानों पर आलू दो रंगों में मिलते हैं। सफेद और लाल। एक तीसरा रंग भी हैं। धूसर। मटमैला धूसर रंग। इस किस्म के आलू आपको हर कहीं दिख जाएंगे।
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आपका आलू तैयार हो गया। आप उसे निकालेंगे कैसे। कई लोग खुरपी का इस्तेमाल करते हैं। यह नहीं करना चाहिए क्योंकि अनेक बार आधे से ज्यादा आलू खुरपी से कट जाते हैं। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि इसके लिए बांस सबसे बेहतर है, बशर्ते वह नया हो, हरा हो। इससे आप सबसे पहले तो आलू के चारों तरफ की मिट्टी को ढीली कर दें, फिर अपने हाथ से ही आलू निकालें। आप बांस से आलू निकालने की गलती हरगिज न करें। बांस, सिर्फ मिट्टी को साफ करने, हटाने के लिए है।
नए आलू की कटाई
नए आलू छोटे और बेहद नरम होते हैं। इसमें भी आप बांस वाले फार्मूले का इस्तेमाल कर सकते हैं। आलू, मिट्टी के भीतर, कोई 6 ईंच नीचे होते हैं। इसिलए, इस गहराई तक आपका हाथ और बांस ज्यादा मुफीद तरीके से जा सकता है। बेहतर यही हो कि आप हाथ का इस्तेमाल कर मिट्टी को हटाएं और आलू को निकाल लें।
गाजर
गाजर बारहों मास नहीं मिलता है। जनवरी से मार्च तक इनकी आवक होती है। बिजाई के 90 से 100 दिनों के भीतर गाजर तैयार हो जाता है। इसकी कटाई हाथों से सबसे बेहतर होती है। इसे आप ऊपर से पकड़ कर खींच सकते हैं। इसकी जड़ें मिट्टी से जुड़ी होती हैं। बेहतर तो यह होता कि आप पहले हाथ अथवा बांस की सहायता से मिट्टी को ढीली कर देते या हटा देते और उसके बाद गाजर को आसानी से खींच लेते। गाजर को आप जब उखाड़ लेते हैं तो उसके पत्तों को तोड़ कर अलग कर लेते हैं और फिर समस्त गाजर को पानी में बढ़िया से धोकर सुखा लिया जाता है।
खीरा
खीरा एक ऐसी पौधा है जो बिजाई के 45 से 50 दिनों में ही तैयार हो जाता है। यह लत्तर में होता है। इसकी कटाई के लिए चाकू का इस्तेमाल सबसे बेहतर होता है। खीरा का लत्तर कई बार आपकी हथेलियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। बेहतर यह हो कि आप इसे लत्तर से अलग करने के लिए चाकू का ही इस्तेमाल करें।
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कुल मिलाकर, फरवरी माह या उसके पहले अथवा उसके बाद, अनेक ऐसी फसलें होती हैं जिनकी पैदावार कई बार रिकार्डतोड़ होती है। इनमें से गेहूं और धान को अलग कर दें तो जो सब्जियां हैं, उनकी कटाई में दिमाग का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करना पड़ता है। आपको धैर्य बना कर रखना पड़ता है और अत्यंत ही सावधानीपूर्वक तरीके से फसल को जमीन से अलग करना होता है। इसमें आप अगर हड़बड़ा गए तो अच्छी-खासी फसल खराब हो जाएगी। जहां बड़े जोत में ये वेजिटेबल्स उगाई जाती हैं, वहां मजदूर रख कर फसल निकलवानी चाहिए। बेशक मजदूरों को दो पैसे ज्यादा ��ेने होंगे पर फसल भी पूरी की पूरी आएगी, इसे जरूर समझें। कोई जरूरी नहीं कि एक दिन में ही सारी फसल निकल आए। आप उसमें कई दिन ले सकते हैं पर जो भी फसल निकले, वह साबुत निकले। साबुत फसल ही आप खुद भी खाएंगे और अगर आप उसे बाजार अथवा मंडी में बेचेंगे, तो उसकी कीमत आपको शानदार मिलेगी��� इसलिए बहुत जरूरी है कि खुद से लग कर और अगर फसल ज्यादा है तो लोगों को लगाकर ही फसलों को बाहर निकालना चाहिए।
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कहते हैं प्रकृति के पास इंसान की हर समस्या का समाधान है फिर वो समस्या रोग से जुड़ी हो या फिर आपदा से। पुराने समय में लोग आज की तरह सीमेंट ईंट की बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाकर नहीं रहते थे बल्कि घर बनाने के लिए मिट्टी, पत्थर और लकड़ियों का इस्तेमाल करते थे।
लकड़ियों से बना घर कई लोगों को खतरनाक और आउट ऑफ फैशन लग सकता है। लेकिन मिट्टी, पत्थर और लकड़ियों के बने घर आज के सीमेंट ईँट के बने घरों के मुकाबले आपदा से बचाने में ज्यादा सहायक होते हैं। साथ ही ये ईको-फ्रेंडली भी होते हैं।
यही वजह है की पिछले तीन दशकों से आर्किटेक्ट Neelam Manjunath बांस से बने घरों को लोगों के बीच लोकप्रिय करने का काम कर रही हैं। ताकि आने वाले समय में बांस कंस्ट्रक्शन मैटिरियल का पार्ट बन सके। नीलम मंजूनाथ के लगातार प्रयासों के कारण उन्हे बैम्बो लेडी ऑफ इंडिया (Bamboo Lady of India) भी कहा जाता है।
सालों से Bamboo के लिए अभियान
आर्किटेक्ट Neelam Manjunath बांस, मिट्टी, पत्थर और वेस्ट कंस्ट्रक्शन मैटीरियल से हैरिटेज साइट्स, आपर्टमेंट और अपना ऑफिस तक बना चुकी हैं। वो पिछले बहुत सालों से बांस को घर बनाने के लिए कंस्ट्रक्शन मैटिरियल में शामिल करने की वकालत कर रही है। जिसकी उनके पास एक नहीं कई वजह हैं। जिसमें सबसे बड़ी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है।
कंस्ट्रक्शन के कारण वातावरण में प्रदूषण तेजी से बढ़ता है, जिस वजह से दुनियाभर में लगातार ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या बढ़ रही है। ऐसे में बांस एक ऐसी लकड़ी है जिसका इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन में करके, ना केवल प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है बल्कि आपदा से भी बचा जा सकता है।
बांस के पेड़ दूसरे किसी भी पेड़ के मुकाबले 35 प्रतिशत ज्यादा ऑक्सीजन जनरेट करते हैं।
दुनिया मे बांस के पेड़ सबसे ज्यादा चीन में पाए जाते हैं। चीन के बाद भारत बांस का दूसरा सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है। ऐसे में भारत के पास एक बहुत बड़ा अवसर है की इन पेड़ों का इस्तेमाल कर कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री को नई दिशा और सोच दे सकें। जो ईको-फ्रेंडली भी हो और सुरक्षित भी हो।
Bamboo इस्तेमाल करने का आइडिया
Neelam Manjunath ने जब अपना करियर शुरु किया था तो वो भी बाकी आर्चीटेक्ट्स की तरह बांस के इस्तेमाल से अंजान थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि साल 1999 में उन्होंने पहली बार इसका इस्तेमाल किया। नीलम के अनुसार जब वो बैंगलुरु के राजभवन के प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी, उस दरौन उनके क्लाइंट ने कंस्ट्रक्शन में बांस का इस्तेमाल करने को कहा।
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इस प्रोजेक्ट के दौरान उन्होंने जाना कि इस मैटीरियल में कितनी समक्षता है। उन्होंने पहचाना और समझा की बांस कैसे हमारे ट्रेडिशनल कंस्ट्रक्शन सिस्टम से जुड़ा हुआ है, लेकिन लोग अभी इसकी समक्षता को नहीं समझते। उसके बाद से ही नीलम National Mission for Bamboo Applications का हिस्सा है। वो अपने क्लाइंट्स को ही नहीं बल्कि हर किसी को बांस के इस्तेमाल के बारे में जागरुक करती हैं, ताकि लोग इसके असली महत्व को समझ सकें।
बांस के इस्तेमाल से किसानों को मिलेगा रोजगार
बांस को कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में शामिल करने से इसकी मांग तेजी से बढ़ेगी, जिससे हर किसी के मन में ये सवाल उठना भी लाजमी है कि इसके लिए बांस के पेड़ों को तेजी से काटा जाएगा। जिसे वातावरण को नुकसान हो सकता है। पर इसका जवाब भी नी Neelam Manjunath के पास है।
Neelam Manjunath बांस के पेड़ों से घर बनाने की वकालत इसलिए करती आ रही है क्योंकि वो जानती है कि बांस के पेड़ को उगने के लिए बाकी पेड़ों की तरह 30 साल का समय नहीं लगता है। बांस के पेड़ बहुत तेजी से उगते हैं। जिस वजह से किसान इनकी खेती भी आराम से कर सकते हैं और अगर बांस को कंस्ट्रक्शन इंड्स्ट्री में मैटिरियल के तौर पर शामिल कर लिया जाता है तो इसका सीधा फायदा इसकी खेतरी करने वाले किसानों को होगा।
आमतौर पर कंस्ट्रक्शन मैटीरियल के जरिए कंस्टमर का पैसा कंपनी को जाता है। लेकिन अगर वो बांस की लकड़ियों का घर बनवाता है तो उसका पैसा कंपनी से होते हुए किसानों तक पहुंचता है। ऐसे में देखा जाए तो बांस के कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इस्तेमाल से किसानों के लिए भी रोजागर के अवसर बढ़ेंगे।
बांस के घर – एक प्राचीन कला
हालांकि ऐसा नहीं है कि बांस के घर इससे पहले चलन में नहीं थे, कई गांवों में बांस से बने घरों का चलन बरसों पुराना है। चीन जापान जैसे कई देशों में भी बांस की लकड़ी के बने घर देखने को मिलते हैं। Neelam Manjunath के अनुसार वो इस ट्रेडिशन को मैन स्ट्रीम लाना चाहती है, ताकि इस तरह के घरों की और लोग आकर्षित हो और इसकी मांग बढ़े।
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पुराने जमाने में बहुत से ऐसे सिस्टम फॉलो किए जाते थे जो प्रकृति की सुरक्षा और आपदा से बचाव के लिए बहुत कारगार साबित होते थे, लेकिन इन सिस्टम को ये कहकर भुला दिया गया कि ये आउट डेटिड हैं। हम ट्रेंड फैशन और सुंदरता के पीछे अक्सर ये भुल जाते हैं कि इसका असर नेचर पर किस तरह पड़ेगा।
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मन की बात: प्रधानमंत्री मोदी बोले- पाकिस्तान ने पाल रखे थे बड़े-बड़े मंसूबे, हमारी जमीन हथियाने का किया था दुस्साहस
मन की बात: प्रधानमंत्री मोदी बोले- पाकिस्तान ने पाल रखे थे बड़े-बड़े मंसूबे, हमारी जमीन हथियाने का किया था दुस्साहस
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मन की बात कार्यक्रम के 67 वें संस्करण में आज देशवासियों को संबोधित किया।पीएम मोदी ने अपने संबोधन की शुरूआत कारगिल के शहीदों को याद करते हुए की। उन्होंने कहा, आज 26 जुलाई है, आज का दिन बहुत खास है। आज ‘कारगिल विजय दिवस’ है।
21 साल पहले आज के ही दिन कारगिल के युद्ध में हमारी सेना ने भारत की जीत का झंडा फहराया था। कारगिल का युद्ध जिन परिस्थितियों में हुआ था, वो भारत कभी नहीं भूल सकता। पाकिस्तान ने बड़े-बड़े मनसूबे पालकर भारत की भूमि हथियाने और अपने यहां चल रहे आन्तरिक कलह से ध्यान भटकाने को लेकर दुस्साहस किया था।
आप कल्पना कर सकते हैं–ऊचें पहाडों पर बैठा हुआ दुश्मन और नीचे से लड़ रही हमारी सेना, हमारे वीर जवान लेकिन जीत पहाड़ की ऊँचाई की नहीं,भारत की सेनाओं के ऊँचे हौंसले और सच्ची वीरता की हुई। साथियो, उस समय, मुझे भी कारगिल जाने और हमारे जवानों की वीरता के दर्शन का सौभाग्य मिला, वो दिन, मेरे जीवन के सबसे अनमोल क्षणों में से एक है। मेरा, देश के नौजवानों से आग्रह है, कि आज दिन-भर कारगिल विजय से जुड़े हमारे जाबाजों की कहानियाँ, वीर-माताओं के त्याग के बारे में, एक-दूसरे को बताएं और शेयर करें।
पीएम मोदी ने कहा, मैं,आज सभी देशवासियों की तरफ से हमारे इन वीर जवानों के साथ-साथ, उनकी माताओं को भी नमन क���ता हूं, जिन्होंने, माँ-भारती के सच्चे सपूतों को जन्म दिया। साथियों, मैं आपसे आग्रह करता हूं https://ift.tt/2w8hli4 वेबसाइट पर आप ज़रूर Visit करें, वहां आपको, हमारे वीर पराक्रमी योद्धाओं और उनके पराक्रम के बारे में बहुत सारी जानकारियां प्राप्त होंगी। साथियो, कारगिल युद्ध के समय अटल जी ने लालकिले से जो कहा था, वो, आज भी हम सभी के लिए बहुत प्रासंगिक है।
पीएम मोदी ने कहा, अटल जी ने कहा था कि कारगिल युद्ध ने, हमें एक दूसरा मंत्र दिया है- ये मंत्र था, कि, कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले, हम ये सोचें, कि, क्या हमारा ये कदम, उस सैनिक के सम्मान के अनुरूप है जिसने उन दुर्गम पहाड़ियों में अपने प्राणों की आहुति दी थी। युद्ध की परिस्थिति में, हम जो बात कहते हैं, करते हैं, उसका सीमा पर डटे सैनिक के मनोबल पर उसके परिवार के मनोबल पर बहुत गहरा असर पड़ता है। ये बात हमें कभी भूलनी नहीं चाहिए।
पीएम मोदी ने कहा, कभी-कभी हम इस बात को समझे बिना Social Media पर ऐसी चीजों को बढ़ावा दे देते हैं जो हमारे देश का बहुत नुकसान करती हैं। कभी-कभी जिज्ञासा वश forward करते रहते हैं। पता है गलत है ये करते रहते हैं। आजकल, युद्ध, केवल सीमाओं पर ही नहीं लड़े जाते हैं, देश में भी कई मोर्चों पर एक साथ लड़ा जाता है, और, हर एक देशवासी को उसमें अपनी भूमिका तय करनी होती है।
पीएम मोदी ने कहा, पिछले कुछ महीनों से पूरे देश ने एकजुट होकर जिस तरह कोरोना से मुकाबला किया है, उसने, अनेक आशंकाओं को गलत साबित कर दिया है। आज, हमारे देश में recovery rate अन्य देशों के मुकाबले बेहतर है, साथ ही, हमारे देश में कोरोना से मृत्यु-दर भी दुनिया के ज्यादातर देशों से काफ़ी कम है।
पीएम मोदी ने कहा, कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है। हमें बहुत ही ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। चेहरे पर mask लगाना या गमछे का उपयोग करना, दो गज की दूरी, लगातार हाथ धोना, कहीं पर भी थूकना नहीं, साफ़ सफाई का पूरा ध्यान रखना - यही हमारे हथियार हैं जो हमें कोरोना से बचा सकते हैं।
पीएम मोदी ने कहा, मैं, आप से आग्रह करूँगा जब भी आपको mask के कारण परेशानी feel होती हो, मन करता हो उतार देना है, तो, पल-भर के लिए उन Doctors का स्मरण कीजिये, उन नर्सों का स्मरण कीजिये, हमारे उन कोरोना वारियर्स का स्मरण कीजिये।
पीएम मोदी ने कहा, सकारात्मक approach से हमेशा आपदा को अवसर में, विपत्ति को विकास में बदलने में मदद मिलती है। हम कोरोना के समय भी देख रहे हैं, कि कैसे देश के युवाओं-महिलाओं ने talent और skill के दम पर कुछ नये प्रयोग शुरू किये हैं।
पीएम मोदी ने कहा, बिहार में कई women self help groups ने मधुबनी painting वाले mask बनाना शुरू किया है, और देखते-ही-देखते, ये खूब popular हो गये हैं। ये मधुबनी mask एक तरह से अपनी परम्परा का प्रचार तो करते ही हैं, लोगों को, स्वास्थ्य के साथ, रोजगारी भी दे रहे हैं।
पीएम मोदी ने कहा, North East में bamboo यानी, बाँस, कितनी बड़ी मात्रा में होता है, अब, इसी बांस से त्रिपुरा, मणिपुर, असम के कारीगरों ने high quality की पानी की बोतल और Tiffin Box बनाना शुरू किया है।
पीएम मोदी ने कहा, लद्दाख में एक विशिष्ट फल होता है जिसका नाम चूली या apricot यानी खुबानी है। दूसरी ओर कच्छ में किसान Dragon Fruits की खेती के लिए सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। आज कई किसान इस कार्य में जुटे हैं। फल की गुणवत्ता और कम ज़मीन में ज्यादा उत्पाद को लेकर काफी innovation किये जा रहे हैं।
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Prime Minister Narendra Modi addresses Indian people in episode 67 of 'Mann Ki Baat Program' mann ki baat live updates
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मोती की खेती कर कमाए 1 से २ लाख हर महीने अगर आप छोटे खर्चे से लाखों की कमाई करना चाहतें है तो आप के पास मोती की खेती का एक बेहतरीन विकल्प है. सभी लोग किसी ना किसी रूप में मोती का इस्तेमाल करतें है. जैसे माला, अंगूठी, कंगन और यहाँ तक की ड्रेस पर भी मोती का खूब इस्तेमाल होता है. मोती की मांग इन दिनों घरेलु और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी अधिक है. इसलिए इसके अच्छे दाम भी मिल रहें है. आप महज एक से दो लाख के इन्वेस्टमेंट से इससे करीब डेढ़ साल में २० लाख रूपए यानि की हर महीने 1 से 2 लाख तक की कमाई कर सकतें है. आप मात्र २० से २५ हजार रूपए में मोती की खेती की शुरुआत कर सकतें है. प्राक्रतिक रूप से मोती बनाना व उस पर आने वाले खर्च आपको भी सीप से ही मोती बनाना होता है. जैसे प्राक्रतिक रूप से मोती बनाया जाता है. इसके लिए 10 से १५ हजार रूपए स्ट्रक्चर सेटअप पर खर्च होंगे. आप इसको छोटे स्तर से शुरु कर सकतें है. इसके लिए आपको ५०० वर्ग फुट का तालाब बनाना होगा तालाब में आप 100 से २०० सीप पाल कर मोती उत्पादन कर सकतें है. 1 सीप की बाजार मैं कीमत १५ से २५ रूपए होती है. वाटर ट्रीटमेंट पर १००० रूपए तक और १००० रूपए के इन्स्ट्रूमेंट्स आपको खरीदने होतें है. आप मोती का बिज़नेस कर लाखों की कमाई कर सकतें है. १५ से २० महीने बाद एक सीप से 1 मोती तैयार होता है बाजार में एक मोती की कीमत लगभग १५०० से २००० तक होती है. और बेहतर क्व़ालटी और डिज़ाइनर मोती की कीमत 10 हजार तक भी मिल जाती है.बाद में आप सीप की संख्या बढ़ा कर अपने संसाधनों के आधार पर कर सकतें है. अगर आप 2 हजार सीप पालते हैं तो इस पर 2 लाख तक का खर्च आ सकता है. यह भी पढ़ें:-शहद का बिज़नेस शुरू करें सरकार करेगी मदद गोल मोती कैसे बनाते हैं बीज डालने के लिए सबसे पहले सीप की सर्जरी करनी होती है. आपको इसकी खेती से कुशल वैज्ञानिकों से प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है. जो भारत सरकार के द्वारा कराया जाता है. प्रशिक्षण पूरा करने के बाद आपको सरकारी सस्थानो या मछुआरो से सीप खरीदने होंगे सीपों को 2-3 दिन के लिए पानी में छोड़ा जाता है. ऐसा करने से उनके ऊपर का कव्च और मांसपेशियां ढीली पड़ जाती है. सीपों को ज्यादा देर तक पानी से बाहर नहीं रखा जाता है. जैसे ही सीपों की मांस पेशियाँ ढीली हो जाती हैं. फिर उनकी सतह पर एक छोटा सा छेद कर उसमें एक छोटा सा रेत का कण डाला जाता है. यह रेत का कण जब सीप पर चुभता है तो वह अपने अन्दर से निकलने वाला पदार्थ छोड़ने लगता है और फिर सीपों को नायलॉन के बैग में रख कर तालब में बांस या pvc के पाईप के सहारे छोड़ दिया जाता है और १५ से २० महीने बाद सीप में मोती तैयार हो जाता है. आप सीप का कवच तोड़ कर मोती ��िकाल सकतें है. डिज़ाइनर मोती कैसे बनाते हैं आपने ज्यादातर मोती गोल ही देखें होंगे पर आप खेती करके इनको डिज़ाइनर भी बना सकतें है. डिज़ाइनर मोती की बाजार मे ज्यादा कीमत है. आप सीप के अन्दर जो भी आक्रती डालतें है और पूरी प्रक्रिया के बाद मोती यही रूप ले लेता है. देश विदेश में इस प्रकार के मोती की बहुत ज्यादा डीमांड है. सरकार की तरफ से इसकी १५ दिनों की ट्रेनिंग भी दी जाती है. जिस में सर्जरी समेत सब कुछ सिखाया जाता है. आप इसकी खेती शुरु करने के लिए १५ साल के लिए लोन भी ले सकतें है. यह भी पढ़ें:-तुलसी की खेती कैसे करें ? अधिक जानकारी के लिए मेरा यह विडियो देखे
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किसानों के लिए खुशखबरी- इस खेती के लिए आधे पैसे देगी सरकार, लाखों कमाने का मौका
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गांव में रहकर इस खेती से कमाएं लाखों, सरकार करेगी आपकी मदद
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इस खेती से कमा सकते हैं लाखों रुपये, प्रति पौधा 120 रुपए मिलेगी सरकारी सहायता
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कम जमीन हो तो इजराईली तकनीक से करें खेती, होगी मोटी कमाई
अगर जमीन कम हो तो किसान सोच में पड़ जाता है कि कैसे खेती से ज्यादा कमाई होगी. लेकिन जमीन के छोटे टुकड़े में भी खेती करके अधिक पैदावार प्राप्त किया जा सकता है.
कम जमीन पर भी ज्यादा पैदावार प्राप्त करना मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं है. इसको लेकर लगातार प्रयोग किया जाता रहा है. भारत ही नहीं विदेशों में भी कम जमीन में अधिक उपज प्राप्त करने को लेकर प्रयास किए जाते रहे हैं. इस क्षेत्र में इजराईल ने महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है.
कम भूमि में खेती कर अधिक उत्पादन प्राप्त कर इजराइल ने बनाया मिसाल
इजराइल एक ऐसा देश है जो अपने नवीन अनु��ंधानों के लिये जाना जाता है और इसी के कारण निरंतर चर्चा में रहता है. रक्षा के क्षेत्र में हो या स्वास्थ्य के क्षेत्र में इजराईल हमेशा नए नए कीर्तिमान स्थापित करता रहा है. अब कृषि के क्षेत्र में उसके प्रयोग ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है. आजकल इजरायल द्वारा विकसित की गई वर्टिकल फार्मिंग (Vertical farming) की आधुनिक तकनीक काफी चर्चा में है और यह तकनीक देश-विदेश में काफी लोकप्रिय हो रही है.
क्या है वर्टिकल फार्मिंग की आधुनिक तकनीक ?
वर्टिकल फार्मिंग की आधुनिक तकनीक के तहत कम जगह में दीवार बनाकर खेती की जाती है. वर्टिकल फार्मिंग की आधुनिक तकनीक के तहत सबसे पहले लोहे या बांस की मदद से दीवार नुमा ढांचा खड़ा किया जाता है. ढांचे पर छोटे-छोटे गमलों को खाद, मिट्टी और बीज डालकर करीने से रखा जाता है. इसके पौधों की रोपाई नर्सरी की तरह भी गमलों में की जा सकती है.
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बहुत उपयोगी है ये वर्टिकल फार्मिंग तकनीक
कम जमीन और कम संसाधनों में खेती करने के लिए यह एक बहुत उपयोगी विकल्प है. हालांकि भारत जैसे देशों में खेती के लिए पर्याप्त उपजाऊ जमीन मौजूद है लेकिन विश्वा में बहुत से देश ऐसे हैं जहाँ खेती योग्य जमीन की कमी है. इजराइल के पास भी खेती योग्य जमीन कम है जिसके कारण उसे खाद्यान्न आपूर्ति के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है. इसी को देखते हुए इजराईल नें वर्टिकल फार्मिंग की आधुनिक तकनीक का इजाद किया जो कम भूमि संसाधनों वाले देशों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है.
चीन, कोरिया, जापान, अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी इस तकनीक को सफलतापूर्वक अपना रहे हैं. बड़े शहरों में अच्छी और ताज़ी सब्जियों की आपूर्ति करना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि दूर दराज के गांवों से लाया जाता है. वर्टिकल फार्मिंग के द्वारा अब शहरों में ही वर्टिकल फार्मिंग द्वारा सब्जियों को उगाकर मांग की आपूर्ति करना आसान होता जा रहा है.
ड्रिप इरीगेशन से होती है पानी की बचत
इजरायल द्वारा ही सिंचाई तकनीक ड्रिप इरीगेशन या बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति इस तरह की खेती के लिये उपयोगी होता है. इससे पानी की बर्बादी भी बचती है और पौधों में जरूरत के मुताबिक पानी दिया जाता है. इस तकनीक का उपयोग अब भारत में भी होने लगा है. इस तकनीक के जरिए अनाज, सब्जियां, मसाले और औषधीय फसलें सभी कुछ उत्पादित की जा रही हैं. इस तकनीक का दूसरा लाभ ये है कि इससे पौधों में कीड़े और बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है.
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वर्टीकल फार्मिंग रोजगार का भी है माध्यम
बहुत कम जगह में उत्पादन की क्षमता के कारण वर्टीकल फार्मिंग का यह तकनीक शहरी क्षेत्रों के लिए बेहद लाभदायक है. हांलाकि वर्टीकल फार्मिंग में खर्च परंपरागत खेती से ज्यादा है लेकिन यह भी सच है की इससे लाभ भी ज्यादा है. यही कारण है कि मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, चेन्नई और गुरुग्राम जैसे बड़े शहरों के लोग न��करियां छोड़कर वर्टिकल फार्मिंग को अपना रहे हैं क्योंकि उन्हें अच्छा मुनाफा प्राप्त हो रहा है.
इको फ्रेंडली वर्टीकल फार्मिंग
वर्टीकल फार्मिंग तकनीक जहां कम जमीन में खेती के लिए लाभदायक है, इससे वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदुषण भी कम होता है और पानी एवं अन्य संसाधनों की भी बचत होती है. शहरों में अपनाए जाने के कारण हरियाली तो बढाती ही है साथ ही पर्यावरण को शुद्ध रखने में ये सहायक है. शहरों में उत्पादन करने से परिवहन लागत भी कम हो जाती है.
source कम जमीन हो तो इजराईली तकनीक से करें खेती, होगी मोटी कमाई
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