#प्रेम मंत्र
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salasarjigemsllp222 · 2 years ago
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13 Mukhi Nepali Rudraksha(13 मुखी नेपाली रुद्राक्ष)
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13 Mukhi Nepali Rudraksha represents Lord Indra and Kamadeva, the God of love and attraction. This fertile bead blesses you with high attraction power and ultimate sensual pleasure. This Rudraksha acts on both excessive and low sexual desires, thus, bringing balance. It fills a person with immense power and encourages him to achieve something in life.The wearer of this Rudraksha becomes intelligent, powerful, free from diseases, a good life partner, son and daughter. The person lives the life of a king; This is said by Lord Dattatreya.The person wearing 13 Mukhi Rudraksha is liked by all those who come in contact with him with the blessings of Lord Indra. Hence, a person can reach the pinnacle of success in his life by wearing this Rudraksha. People in the field of alchemy, research work and medicine can achieve perfection in their work by wearing this Rudraksha.A person is able to enjoy all the luxuries of life and he is able to lead a happy and satisfied life. Since Lord Indra is the king of all other deities, wearing this Rudraksha blesses all other deities as well. A person desirous of gaining knowledge, good oratory and debating power should wear this Rudraksha. 13 Mukhi is the symbol of world gods. The wearer of this bead gets all the pleasures of this world. It fulfills all the wishes of the wearer and it brings good luck to him. Such a person stays away from sinful deeds and thoughts. All his worldly desires are fulfilled. Only the lucky ones are able to achieve it. By wearing this all your wishes can be fulfilled. It is advisable to take it in hand first and then the following mantra should be recited 432 times. After that it should be worn around the neck. With the blessings of Lord Indra, the wearer achieves all kinds of success in his or her life.
Benefit: Wearing 13 Mukhi Rudraksha bestows luck and brings all the pleasures of life to the person. Helps in curing mental disorders and warding off the inauspicious effects of Mars and Venus. Strengthens physically. One can also wear this Thirteen Mukhi Rudraksha to face challenges and achieve victory. It helps in attaining a sound mind and body and enjoy various luxuries of life. The ruling planet of 13 Mukhi Rudraksha is Venus, hence it bestows charm and popularity to its wearer. A Thirteen Mukhi Rudraksha ensures that the wearer is victorious in challenging situations and that his/her destiny is available to him/her to the full potential. Lord Kamadeva also favors the wearer and fulfills all his/her worldly desires.13 mukhi rudraksha helps in diseases related to muscles like dystrophy, kidney, thyroid, sexlessness, dropsy, throat, neck, eye diseases, indigestion, rheumatism, gout, all obstructions in nerves/ nerves and psychiatry by wearing this rudraksha Related disorders can be eradicated.
Method of Wearing 13 Mukhi Rudraksha : This Rudraksha should be worn on Tuesday only. Wake up on Tuesday morning and after taking bath, sit in front of the place of worship facing east. Place 13 Face Rudraksha on a copper vessel in the temple and sprinkle Gangajal on it. Now chant ‘Om Hree Namah’ mantra 108 times. Now tie 13 Mukhi Rudraksha in red or yellow silk thread and wear it around your neck or hand. You can also wear it in gold ,silver chain.
222, Agarwal tower, I.P.Extension, Patparganj, Delhi, 110092
7042891757
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#13 मुखी नेपाली रुद्राक्ष भगवान इंद्र और प्रेम और आकर्षण के देवता कामदेव का प्रतिनिधित्व करता है#इस प्रकार संतुलन लाता है। यह एक व्यक्ति को अपार शक्ति से भर देता है और उसे जीवन में कुछ हासिल करन#शक्तिशाली#रोगों से मुक्त#एक अच्छा जीवन साथी#पुत्र और पुत्री बनता है। जातक राजा का जीवन व्यतीत करता है; ऐसा भगवान दत्तात्रेय ने कहा है। 13 मुख#अनुसंधान कार्य और चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले लोग इस रुद्राक्ष को धारण करके अपने काम#इस रुद्राक्ष को पहनने से अन्य सभी देवताओं को भी आशीर्वाद मिलता है। ज्ञान#अच्छी वाक्पटुता और वाद-विवाद शक्ति प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को यह रुद्राक्ष धारण करना च#इसे पहले हाथ में लेने की सलाह दी जाती है और फिर निम्न मंत्र को 432 बार पढ़ना चाहिए। इसके बाद इसे गल#पहनने वाला अपने जीवन में सभी प्रकार की सफलता प्राप्त करता है।#लाभ: 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से भाग्य की वृद्धि होती है और व्यक्ति को जीवन के सभी सुख मिलते है#इसलिए यह अपने पहनने वाले को आकर्षण और लोकप्रियता प्रदान करता है। एक तेरह मुखी रुद्राक्ष यह सुन#किडनी#थायरॉयड#सेक्सलेसनेस#ड्रॉप्सी#गले#गर्दन#आंखों के रोग#अपच#गठिया#गाउट#सभी बाधाओं जैसे मांसपेशियों से संबंधित रोगों में मदद करता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से स्न
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indrabalakhanna · 4 months ago
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Shraddha TV Satsang 30-06-2024 || Episode: 2608 || Sant Rampal Ji Mahara...
#GodMorningSunday
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Sant Rampal Ji Maharaj
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🙏पूर्ण सतगुरु से ही मोक्ष संभव है !
वर्तमान में एकमात्र संत रामपाल जी महाराज जी पूर्ण संत और सतगुरु हैं!
जो 📚शास्त्र अनुकूल सत भक्ति प्रदान करते हैं!
📕पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर की सद्भक्ति करने से हमें सभी प्रकार का लाभ प्राप्त होता है !
प्रारब्ध और संचित पाप कर्मों का नाश होता है! मोक्ष की प्राप्ति होती है!
मोक्ष का अर्थ है काल के कर्मबंधन से छूटना+जन्म मरण से छूटना + 84 लाख योनियों से छूटना और सदा के लिए अपने सतलोक घर में अविनाशी घर में अजर अमर शरीर के साथ सुख से रहना!
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📚सत भक्ति करने से हमारे सभी बुराइयां और विकार नष्ट हो जाते हैं !
+ बाधाएं नष्ट हो जाती हैं + चिंताएं नष्ट हो जाती हैं + तकलीफें नष्ट हो जाती हैं !
हमें सत भक्ति करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है! अपने पूर्ण परमेश्वर मूल मालिक से प्रेम करने की शक्ति मिलती है! ऐसी 24 सिद्धियां प्राप्त होती है + ऐसे मंत्र प्राप्त होते हैं_जिनकी ताकत से हम अपने घर सतलोक चले जाते हैं !
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*🙏अवश्य सब्सक्राइब करें ! संत रामपाल जी महाराज यू ट्यूब 📺चैनल पर!*
*🙏प्रतिदिन अवश्य देखें 🙏📚साधना 📺 चैनल 7:30 p.m.*
*संत के वर्तमान अवतार में स्वयं पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर धरती पर विराज मान हैं!*
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*🙏जगतगुरु परमेश्वर तत्वदर्शी संत सतगुरु संत रामपाल जी महाराज����*
🙏सच्चे समाज सुधारक हम आत्माओं के प्रेमी पुरुष परमात्मा विश्व की सभी आत्माओं के तारनहार उद्धारक (उद्धार करने वाले पुरुष) हैं! सभी विश्व की सभी आत्माओं से प्रार्थना है संत रामपाल जी महाराज के सत्संग को विशेष रूप से ध्यान से देखें प्रतिदिन देखें और निर्णय करें कि हमें अपना उद्धार करना है संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आए और नाम दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर सब भक्ति करें अपना कल्याण कारण अपने परिवार और वंश का भी उद्धार कराएं! 🙏
*🙏सतगुरु परमात्मा के चरण कमलों की तुच्छ दासी🙏*
*🙏 सत साहेब जी 🙏*
*🙏जय बंदीछोड़ जी की🙏*
काल के बंधन से छुड़ाने वाले भगवान को *बंदीछोड़* भगवान कहते हैं!
*पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब बंदीछोड़ भगवान हैं !*
*संत रामपाल जी महाराhvज के रूप में आए हैं! *
Sant Rampal Ji Maharaj
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saritadevi142 · 5 months ago
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सेउ की कटी हुई गर्दन को जोड़ना
सम्मन और नेकी ने अपने गुरुदेव कबीर जी की सेवा के लिए किसी कारण वश अपने बेटे की गर्दन काटनी पड़ गई तो परमेश्वर कबीर जी ने अपने भक्त की कटी हुई गर्दन को वापिस जोड़ दी और कहा-
आओ सेऊ जी मिलो, यह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत है चोरों के, साधो के नित क्षेम।।
गरीब, सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत मांही। नहीं घरैरा गर्दन पर, औह सेऊ अक नांही।।
ऋग्वेद मंडल नं. 10 सूक्त 161 मंत्र 2, मंडल नं. 9 सूक्त 80 मंत्र 2, सामवेद मंत्र संख्या 822 में भी यहीं प्रमाण है कि परमेश्वर अपने भक्तों की आयु भी बढ़ा देता है।
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helputrust · 6 months ago
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धरोहर | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट | Dharohar | Help U Educational and Charitable Trust
लखनऊ, 28.04.2023 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना के 11 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर "स्थापना दिवस कार्यक्रम" तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र NCZCC के संयुक्त तत्वावधान में सांस्कृतिक कार्यक्रम "धरोहर” का आयोजन सी एम एस ऑडिटोरियम, विशाल खंड, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया |
कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान तथा श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा डॉ रूपल अग्रवाल, न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, ट्रस्ट की आतंरिक सलाहकार समिति के सदस्यगण ने दीप प्रज्वलन करके किया l
सांस्कृतिक कार्यक्रम "धरोहर” में, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक पद्माभूषण स्वर्गीय गोपाल दास नीरज, पद्माश्री स्वर्गीय अनवर जलालपुरी तथा वर्तमान संरक्षक पद्माश्री अनूप जलोटा की रचनाओं, गीतों, शायरी तथा भजनों की प्रस्तुति प्रदीप अली, आकांक्षा सिंह, मल्लिका शुक्ला ने की तथा भारतीय सभ्यता और संस्कृति को समर्पित सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत भाव नृत्य राम भी रहीम भी, अवधी नृत्य नाटिका वैदेही के राम, महारास, राजस्थानी लोक नृत्य घूमर, की प्रस्तुति उर्मिला पाण्डेय ग्रुप द्वारा की गयी |
उर्मिला पाण्डेय ग्रुप - भाव नृत्य राम भी रहीम भी
हमारी भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही राष्ट्रीय भाईचारे और सौहार्द को बढ़ावा दिया है । राष्ट्रीय भाईचारे और सौहार्द्र को समर्पित भाव नृत्य शीर्षक राम भी रहीम भी प्रस्तुत किया ।
अवधी नृत्य नाटिका वैदेही के राम
श्री राम तथा माता सीता इनके मिलन की ही गाथा है ये नृत्य नाटिका वैदेही के राम। प्रभु श्री राम जब महर्षि विश्वामित्र के साथ मिथिला नगरी पहुँचे और वहाँ की पुष्प वाटिका में देवी सीता और श्री राम एक दूसरे को देख मंत्र मुग्ध हो गए। अंततः प्रभु श्री राम ने स्वयंवर में रखे शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर राजकुमारी सीता से विवाह किया।
महारास
राधा कृष्ण और गोपियों द्वारा किया जाने वाला आनंदमयी तथा सौंदर्यवर्धक नृत्य रास कहलाता है। लीलापुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात में छः महीने की रातों को एक कर ब्रजभूमि के कुंज में सर्वप्रथम यह नृत्य किया था । नृत्य की बंदिशों के साथ भाव भंगिमाओं तथा डांडिया नृत्य का उच्चतम प्रयोग रास के अंतर्गत देखने को मिलता है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है तथा यह राधा कृष्ण के प्रेम से परिपक्व नृत्य शैली मानी जाती है। आज की इस रासलीला में सर्वप्रथम बाल कृष्ण तत्पश्चात युवा कृष्ण एवम् राधा रानी का नृत्य प्रस्तुत किया ।
राजस्थानी लोक नृत्य घूमर
घूमर और राजस्थान दोनो एक दूसरे के पर्याय हैं और घूमर राजस्थान का सर्व जन प्रिय लोक नृत्य है। यह नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है। किसी भी मांगलिक अवसर एवम् उत्सव में घूमर नृत्य अति आवश्यक रूप से नाचा जाता रहा है।
"स्थापना दिवस कार्यक्रम" में, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, ट्रस्ट की न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट की आतंरिक सलाहकार समिति के सदस्यगण ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की विवरण पुस्तिका का विमोचन किया गया | विवरण पुस्तिका में ट्रस्ट के विगत 11 वर्षों के कार्यों का विवरण उपलब्ध है |
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा विगत 11 वर्षों में ट्रस्ट को महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करने वाली 7 विभूतियों का हेल्प यू सम्मान तथा वैश्विक महामारी कोरोना काल में बहुमूल्य सहयोग प्रदान करने हेतु 119 कोरोना वॉरियर्स का सम्मान किया गया |
इस मौके पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि, "आज के मुख्य अतिथि आदरणीय श्री बृजेश पाठक जी प्रदेश में निकाय चुनाव में व्यस्तता के कारण कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हो पा रहे हैं, वह आज इस समय वाराणसी में हैं | अपने पूज्य बाबा श्री राधेश्याम अग्रवाल जी व अपने पिताजी श्री राजीव अग्रवाल जी के जनहित के कार्यों से प्रभावित होकर 28 अप्रैल, 2012 को हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की | तत्कालीन मेयर परम आदरणीय श्री दिनेश शर्मा जी ने ट्रस्ट को अपना बहुमूल्य सहयोग एवं मार्गदर्शन प्रदान किया | हमें संरक्षक के रूप में महाकवि पदम भूषण डॉ श्री गोपाल दास नीरज जी, पदम श्री अनवर जलालपुरी तथा भजन सम्राट पदम श्री अनूप जलोटा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ |  देश के सभी राज्यों की राजधानियों तथा अन्य देशो में ट्रस्ट के कार्यालय स्थापित कर जनहित के कार्यों को और विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे हम सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में जनहित के कार्यों में अपना योगदान दे सकें | वर्तमान समय में माननीय प्रधानमंत्री परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के मूल मंत्र सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास का अनुसरण करते हुए समाज के हर क्षेत्र में लोगों की मदद कर रहे हैं | 
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल ने हेल्प यू सम्मान से नवाजे गए सभी विभूतियों तथा हेल्प यू कोरोना वॉरियर्स से सम्मानित महानुभावों को बहुत-बहुत बधाई | विगत 11 वर्षों में बहुत कुछ बदला और हमने सबसे कठिन दौर तब देखा जब वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरे विश्व को ज़कर लिया | उस समय लखनऊ शहर के अनेक संवेदनशील लोगों ने हमारा साथ दिया, जिससे हम सही समय पर असहाय व जरूरतमंद लोगों की मदद कर पाए | मैं बस यही कहना चाहूंगी कि आप भविष्य में भी इसी तरह हमारा साथ दीजिए जिससे हम  समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की अपनी मुहिम को पूरा कर सकें |
कार्यक्रम का संचालन डॉ अलका निवेदन ने किया I
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rupesh619 · 1 year ago
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सेउ की कटी हुई गर्दन को जोड़ना
सम्मन और नेकी ने अपने गुरुदेव कबीर जी की सेवा के लिए किसी कारण वश अपने बेटे की गर्दन काटनी पड़ गई तो परमेश्वर कबीर जी ने अपने भक्त की कटी हुई गर्दन को वापिस जोड़ दी और कहा-
आओ सेऊ जी मिलो, यह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत है चोरों के, साधो के नित क्षेम।।
गरीब, सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत मांही। नहीं घरैरा गर्दन पर, औह सेऊ अक नांही।।
ऋग्वेद मंडल नं. 10 सूक्त 161 मंत्र 2, मंडल नं. 9 सूक्त 80 मंत्र 2, सामवेद मंत्र संख्या 822 में भी यहीं प्रमाण है कि परमेश्वर अपने भक्तों की आयु भी बढ़ा देता है।
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"Sant Rampal Ji Maharaj"
Kabir Prakat Diwas 4 june 2023
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essentiallyoutsider · 1 year ago
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अंशु मालवीय की एक कविता
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मेहरबान ! आपकी तवज्जो चाहूँगा
ये स्क्रिप्ट ज़रा हटके नहीं बहुत हटके है
हॉरर हाउस – दि थ्रिलर... !
ये एक भुतहे घर के बारे में है
एक ऐसा घर जिसमें चार दीवारें नहीं हैं
सड़कें हैं अछोर घर के भीतर से गुजरती हुई;
सुनिए मेहरबान ! गौर कीजिएगा
ये हॉरर फिल्म मेकिंग के सारे
मेयार बदल देगी –
एकदम ताज़े बिम्ब ताज़े टटके
एकदम ताज़ा डर... रस टपकाता हुआ।
यहाँ भय दरवाज़े के पीछे से नहीं निकलेगा
चौंकाता हुआ आपको
बल्कि चौराहे-चौराहे
मंच बाँधकर बाँटा जाएगा... कुछ भी
नहीं होगा अचानक ...बल्कि पूर्व नियोजित
लम्बी तैयारी के इत्मीनान के सा��।
बिम्ब बदल दिए जाएँगे सब
बिल्ली की आँखों के बजाए
गाँजे से रक्ताभ सीकरी के सन्तों की मादक आँखें
आपको डरा देंगी;
भूत किसी लड़की के नहाते वक्त
बाथ टब से नहीं निकलेगा
बल्कि शहर की सारी सड़कें होंगी
एक विशाल बाथ टब
जिनसे गुज़रती हुई
हर लड़की के भीतर से
डर गुजरेगा...
उनका मज़हब बदलता हुआ!
न कोई सलीब न तांत्रिक
न तंत्र न मंत्र
न बियाबान न कब्रिस्तान
बस भीड़ भरे चौराहे पर
कोई कहेगा आपके कान में - ‘डेमोक्रेसी ‘
और आप पसीने से तरबतर हो जाएँगे
न दरवाजे की चरमराहट
न उल्लू न चमगादड़
न मकड़ी के जाले
बस कुछ पवित्र किताबों के
पन्ने सरसराएँगे
एक चिरन्तन प्रेम का कवि
अपनी कलम छिड़केगा
और आपकी पेशानी पर छाले पड़ जाएँगे
सीलन की ज़रूरत नहीं होगी
न अँधेरे की
शॉपिंग विंडो की चमचमाहट में
आप टटोलने पर मजबूर हो जाएँगे
अँधेरे से नहीं बल्कि रोशनी से
धुँधला जाएगी आपकी नज़र
अति नएपन से बजबजाता... एक...
विश्वव्यापी गाँव आपके सिर को दबोच लेगा
और पुरानेपन के कई छोटे-छोटे गाँव
जोंकों की तरह आपके पैरों से चिपट जाएँगे ;
फिल्म में नहीं होगा कोई दो मुँहा अजदहा
आप खुद दो अजनबियों में टूट जाएँगे।
न कोई वीभत्स मुखौटा
न नाखून
न खून के धब्बे
न बिजली की कड़कड़ाहट
बस कोई दोस्त आपसे पूछ लेगा
तुम्हारा मज़हब क्या है
और आपकी रीढ़
बर्फ की तरह ठंडी हो जाएगी।
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bhagwati-123 · 1 year ago
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*कबीर परमेश्वर के चमत्कार*
कबीर परमेश्वर जब 600 वर्ष पहले आए हुए थे तब हजारों चमत्कार किए थे ताकि मेरे बच्चे मुझे पहचान सके
भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना
एक समय तोताद्रि नामक स्थान पर सत्संग था सत्संग के पश्चात भण्डारा शुरू हुआ भंडारे में भोजन करने वाले व्यक्ति को वेद के चार मन्त्र बोलने पर प्रवेश मिल रहा था कबीर साहेब की बारी आई तब थोड़ी सी दूरी पर घास चरते हुए भैंसे को हुर्रर हुर्रर करते हुए बुलाया तब कबीर जी ने भैंसे की कमर पर थपकी लगाई और कहा कि भैंसे इन पंडितों को वेद के चार मन्त्र सुना दे भैंसे ने छः मन्त्र सुना दिए ।
ऐसे कबीर परमात्मा 600 वर्ष पहले एक भैंसे द्वारा वेद मंत्रों को बुलवाकर अपने समर्थतता का प्रमाण दिए थे ।
कबीर परमेश्वर जब से 600 वर्ष पहले आए हुए थे तब सैउ की कटी हुई गर्दन को जोड़ा था,,
परमात्मा कबीर ने अपने भक्त की कटी हुई गर्दन वापिस जोड़ दी थी
आओ सेउ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम ।
सिर कटते हैं चोरों के , साधों के नित्य क्षेम ।।
और सेउ की गर्दन धड़ के ऊपर जुड़ गई।
ऐसी-2 बहुत लीलाएँ साहेब कबीर (कविरग्नि) ने की हैं जिनसे यह स्वसिद्ध है कि ये ही पूर्ण परमात्मा हैं सामवेद संख्या नं. 822 तथा ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 162 मंत्र 2 में कहा है कि कविर्देव अपने वि��िवत् साधक साथी की आयु बढ़ा देता है।
ऐसे हजारों चमत्कार कबीर परमेश्वर 600 वर्ष पहले आकर करके गए थे।
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rohidasdeore · 1 year ago
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🎈सेउ की कटी हुई गर्दन को जोड़ना
सम्मन और नेकी ने अपने गुरुदेव कबीर जी की सेवा के लिए किसी कारण वश अपने बेटे की गर्दन काटनी पड़ गई तो परमेश्वर कबीर जी ने अपने भक्त की कटी हुई गर्दन को वापिस जोड़ दी और कहा-
आओ सेऊ जी मिलो, यह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत है चोरों के, साधो के नित क्षेम।।
गरीब, सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत मांही। नहीं घरैरा गर्दन पर, औह सेऊ अक नांही।।
ऋग्वेद मंडल नं. 10 सूक्त 161 मंत्र 2, मंडल नं. 9 सूक्त 80 मंत्र 2, सामवेद मंत्र संख्या 822 में भी यहीं प्रमाण है कि परमेश्वर अपने भक्तों की आयु भी बढ़ा देता है।
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kaminimohan · 1 year ago
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1383.
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से विचलित थे भारतेंदु हरिश्चंद्र
- कामिनी मोहन पाण्डेय। 
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मुंशी प्रेमचंद ने लिखा है कि जिन्होंने राष्ट्र का निर्माण किया है उनकी कृति अमर हो गई है। त्याग तपस्या और बलिदान 1857 की क्रांति के रणबांकुरों ने ही नहीं किया बल्कि उससे प्रभावित होकर कई लेखकों, साहित्यकारों, पत्रकारों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उसी त्याग की भावना व संघर्ष की प्रेरणा को जगाने में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने महती भूमिका निभाई। 
भारतेंदु ने भारत की स्वाधीनता, राष्ट्र उन्नति और सर्वोदय भावना का विकास किया। आज के संदर्भ में बात करें तो भारतेंदु ने हीं देश के सभी पत्रकारों, संपादकों व लेखकों को देश की दुर्दशा यानी देश की दशा और दिशा को समझने का मंत्र दिया। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की हुंकार की गूंज के बाद इस संबंध पर बेतहाशा लेखन और पठन-पाठन हुआ। उस समय क्रांति के असफल होने के बाद जब  निराशा का बीज व्याप्त हो गया था, तब समाज की दुर्दशा देखकर भारतेंदु का हृदय काफी व्यथित हुआ। देश की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक गिरावट देखकर वह तिलमिला उठे थे। देश की दशा पर उनकी अभिव्यक्ति थी- "हां हां भारत दुर्दशा न देखी जाई।" उनके इस प्रलाप पर भारत आरत, भारत सौभाग्य, वर्तमान-दशा, देश-दशा, भारत दुर्दिन जैसे नवजागरण की पोषक रचनाएँ प्रकाशित हुई। 
इनमें देश के प्राचीन गौरव के स्मरण, समाज में व्याप्त आलस्य तथा देश की दीनता का वर्णन होता था। क्रांति के समय एवं उसके बाद स्वदेशाभिमानी पत्रकारों ने अपनी विवेचना शक्ति के बल पर जनमानस को सशक्त अभिव्यक्ति दी। उस समय हिंदी अपने विकास के नए आयाम गढ़ रही थी। सारे प्रतिरो��ों के बीच पत्रकारिता की पैनी नज़र खुल चुकी थी। ऐसे में स्वाभिमान के संचार व स्वदेश प्रेम के उदय तथा आंग्ल शासन के प्रबल प्रतिरोध पत्रों में प्रकाशित तत्वों में दिखता था। पत्र और पत्रकार ख़ुद स्वतंत्रता आंदोलन के सक्षम सेनानी बन गए थे। अन्याय, अज्ञान, प्रपीड़न व प्रव॔चना के संहारक समाचार पत्रों ने ही हिंदी पत्रकारिता की आधारशिला रखी थी।
राष्ट्र उत्थान की दृष्टि से इतिहास एवं पत्रकारिता दोनों संश्लिष्ट हैं। राष्ट्रीय अस्मिता को समर्पित भारतेंदु की रचनाओं का मूलाधार गौरव की वृद्धि रहा है। नौ सितंबर 1850 को काशी में जन्मे भारतेंदु को हिंदी पत्रकारिता का आधार स्तंभ कहा जाता है। भारतेंदु द्वारा पत्रकारिता में देश प्रेम के लिए जलाई गई अलख काशी में अब भी दिखती है। इसका कारण यह है कि यहाँ जो पैदा हुआ वह भी गुरु जो मर गया वह भी गुरु होता है। यहाँ किसी बात के लिए कोई हाय-हाय नहीं है। 
काशी की हिंदी पत्रकारिता की नींव 1845 में बनारस अखबार के रूप में पड़ी। इसके बारह साल बाद देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम आम लोगों को गहरे तक प्रभावित कर गया था। क्रांति का बिगुल काशी में भी सुनाई दिया। क्रांति के दौर में देश की आज़ादी के लिए यहाँ कई अख़बार प्रकाशित होते रहे। स्वाभिमान के साथ उठ खड़े होने को आमजन और क्रांतिकारियों को जो उसे से भरते रहे।
प्रमुख प्रकाशनों में कवि वचन सुधा (1867) हरिश्चंद्र मैगजीन (1875), हरिश्चंद्र चंद्रिका (1879) में भारतेंदु का मूल मंत्र सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति जगाना तथा सभी जातियों के अंदर स्वाभिमान का भाव भरना था। वे मानते थे कि "जिस देश में और जिस समाज में उसी समाज और उसी देश की भाषा में समाचार पत्रों का जब तक प्रचार नहीं होता, तब तक उसे देश और समाज की उन्नति नहीं हो सकती। समाचार पत्र राजा और प्रजा के वकील है। समाचार पत्र दोनों की ख़बर दोनों को पहुँचा सकता है जहाँ सभ्यता है, वहीं स्वाधीन समाचार पत्र है"।
देश में लकड़ी बीनने वाले से लेकर लकड़ी का तमाशा दिखाने वाले तक सभी ने क्रांति के जयकारे में लकड़ी बजाते हुए आहुति दी थी। यह वह दौर था, जिस पर क्रांति ने अपना असर गहरे तक छोड़ा था। इसी का परिणाम रहा कि देश के हर नौजवान ने अपनी छाती अंग्रेजों की गोलियाँ खाने के लिए चौड़ी कर ली थी। अल्पायु में ही भारतेंदु अपने युग का प्रतिनिधित्व करने लगे थे  रचनात्मक लेखन, पत्रकारिता के माध्यम से भारतेंदु ने देश की राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों पर अपने आक्रामक तेवर के साथ संवेदन पूर्ण वि��ारों से सार्थक हस्तक्षेप किया था। साहित्य को उन्होंने जनसामान्य के बीच लाकर खड़ा कर दिया था।
��ोर उथल-पुथल के बावजूद उनके काल में साहित्यिक विचारों के कारण आत्ममंथन शुरू हो गया था। वे ब्रिटिश राज की कार्यप्रणाली पर जमकर बरसते थे। हर समस्या के प्रति भारतेंदु का दृष्टिकोण दूरगामी होता था। वे वैचारिक क्रांति लाने के लिए हर घड़ी प्रतिबद्ध दिखते थे। भारतेंदु चाहते थे कि भारतवासी स्वयं आत्मोत्थान और देशोत्थान में सक्रिय हो। यह बात आज भी प्रासंगिक है कि आर्थिक उत्थान से ही देश का भला हो सकता है। 
आर्थिक लूट पर वे लिखते हैं- 
भीतर-भीतर सब रस चूसै, बाहर से तन-मन-धन मूसै। 
जाहिर बातन में अति तेज, क्यों सखि सज्जन नहिं अंग्रेज अंग्रेजों।। 
अंग्रेजों को अपना भाग्य विधाता मानने वालों को भारतेंदु ने झकझोरा था। कविवचन सुधा में वे लिखते हैं- "देशवासियों तुम इस निद्रा से चौको, इन अंग्रेजों के न्याय के भरोसे मत फूले रहो।... अंग्रेजों ने हम लोगों को विद्यामृत पिलाया और उससे हमारे देश बांधवों को बहुत लाभ हुए, इसे हम लोग अमान्य नहीं करते, परंतु उन्हीं के कहने के अनुसार हिंदुस्तान की वृद्धि का समय आने वाला हो, सो तो, एक तरफ रहा, पर प्रतिदिन मूर्खता दुर्भिक्षता और दैन्य प्राप्त होता जाता है।... अख़बार इतना भूंकते हैं, कोई नहीं सुनता। अंधेर नगरी है। व्यर्थ न्याय और आज़ादी देने का दावा है।"
गांधीजी की कई नीतियों व योजनाओं के बीज भारतेंदु साहित्य में पहले ही आ चुके थे। भारतीय धर्मनिरपेक्षता, जाति निरपेक्षता, जो भारतीय संविधान के मूलाधार है, उन पर भारतेंदु के चिंतन में तात्कालिकता ही नहीं, भविष्योन्मुखता भी थी। वे हिंदू व मुसलमानों के प्रति भाईचारे का भाव रखने को प्रेरित करते थे। कहना ही पड़ता है कि देश के विकास उसकी उन्नति के लिए भारतेंदु स्वदेशी और राष्ट्रीयता के संदर्भ में दूरगामी अंतर्दृष्टि रखते थे। 
समय बदल गया, हम आज़ाद हैं। भारत वही है। संविधान वही है। भारत में रहने वाले जीव-जंतु, पशु-पक्षी और मनुष्य भी वही है। विभिन्न धर्मों, मज़हबों,पंथों को मानने वाले मुसलमानों के सभी फ़िरक़ों, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाईयों तथा सनातन धर्म की गहराई में उतरने वाले हिन्दू क्रांति के बीज को आज भी वृक्ष बनते देखते हैं। उन ��िचारों की जो भारतेंदु के समय लोगों तक पत्रकारिता के माध्यम से पहुंचे थे, वे विचार आज भी प्रासंगिक हैं। देश के लोगों को इसकी परम आवश्यकता है। 
- © Image art by Chandramalika 
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parasparivaarorg · 60 minutes ago
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जय माता दी पारस परिवार के साथ कुंडली भजन 
सनातन धर्म के हृदय में दिव्य मंत्र है: जय माता दी। यह सिर्फ़ अभिवादन से कहीं बढ़कर है; यह एक प्रार्थना है, सार्वभौमिक माँ, माँ का आह्वान है। चाहे वह मंदिरों में गूंजने वाले ��धुर भजन हों या हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने वाली कुंडली पढ़ना, हिंदू धर्म का सार पारस परिवार की आध्यात्मिक प्रथाओं में जटिल रूप से बुना हुआ है। आइए जानें कि पारस परिवार किस तरह से माँ के सार का जश्न मनाता है और कुंडली पढ़ने, भजन और सनातनी आध्यात्मिकता से इसका क्या संबंध है।
पारस परिवार और जय माता दी का महत्व
जय माता दी का जाप न केवल दिव्य माँ का आह्वान है, बल्कि दुनिया भर के हिंदू भाइयों (हिंदू भाइयों और बहनों) के लिए एक एकीकृत नारा भी है। पारस परिवार, सनातन धर्म में गहराई से निहित एक समुदाय है, जो माँ से जुड़ने के साधन के रूप में इस आध्यात्मिक अभिवादन पर जोर देता है। यह देवी से आशीर्वाद, सुरक्षा और मार्गदर्शन की मांग करते हुए एक हार्दिक प्रार्थना का प्रतिनिधित्व करता है।
सनातन धर्म के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित पारस परिवार आध्यात्मिक एकजुटता का एक मजबूत समर्थक है। समुदाय प्राचीन परंपराओं को कायम रखता है और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से हिंदू भाइयों को एक साथ लाता है, जो दिव्य माँ के प्रति अपने प्रेम और भक्ति से एकजुट होते हैं।
सनातन धर्म और पारस परिवार में कुंडली की भूमिका
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सनातन धर्म की प्रथाओं में, कुंडली (जन्म कुंडली) का एक प्रमुख स्थान है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के आधार पर किसी के जीवन का खाका प्रदान करती है। पारस परिवार, वैदिक परंपराओं की अपनी गहरी समझ के साथ, भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करने के लिए कुंडली पढ़ने का उपयोग करता है।
हिंदू धर्म में कुंडली का महत्व
कुंडली की अवधारणा ब्रह्मांडीय व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जो हिंदू धर्म में एक मुख्य विश्वास है। प्रत्येक ग्रह (ग्रह) का व्यक्ति के जीवन पर एक विशिष्ट प्रभाव होता है। इन प्रभावों को समझकर, व्यक्ति चुनौतियों का सामना कर सकता है और शक्तियों का लाभ उठा सकता है। पारस परिवार कुंडली पढ़ने के माध्यम से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे भक्तों को माँ और ब्रह्मांडीय शक्तियों द्वारा निर्धारित उनके जीवन पथ को समझने में मदद मिलती है।
कुंडली पढ़ना: पारस परिवार की एक परंपरा
पीढ़ियों से, कुंडली पढ़ना हिंदू धर्म में आध्यात्मिक प्रथाओं का हिस्सा रहा है। पारस परिवार इस परंपरा को जारी रखता है, अपने समुदाय के सदस्यों को व्यक्तिगत रीडिंग प्रदान करता है। इस प्राचीन प्रथा को ईश्वरीय इच्छा के साथ अपने कार्यों को संरेखित करने का एक तरीका माना जाता है, जिससे सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए माँ से आशीर्वाद मांगा जा सके। जब पारस परिवार के किसी जानकार मार्गदर्शक द्वारा कुंडली पढ़ी जाती है, तो यह जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे करियर, विवाह, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
पारस परिवार में भजनों की शक्ति
जय माता दी का कोई भी उत्सव भजनों की भावपूर्ण प्रस्तुति के बिना पूरा नहीं होता है। भजन ईश्वर की स्तुति में गाए जाने वाले भक्ति गीत हैं, विशेष रूप से माँ की कृपा पर ध्यान केंद्रित करते हुए। पारस परिवार को देवी माँ को समर्पित भजन गाने और रचना करने की अपनी समृद्ध परंपरा पर बहुत गर्व है।
भजन: हिंदू धर्म का आध्यात्मिक संगीत
सनातन धर्म के हृदय में, भजनों को भक्ति का संगीतमय अवतार माना जाता है। माना जाता है कि इन भजनों को गाने से उत्पन्न कंपन ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, जो गायक को माँ के करीब लाते हैं। पारस परिवार के भजन अपनी सादगी, माधुर्य और गहरे आध्यात्मिक अर्थ के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें हिंदू भाइयों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बनाते हैं।
आत्मा पर भजनों का प्रभाव
भजन मन और आत्मा पर शांत प्रभाव डालते हैं। वे तनाव को दूर करने, विचारों को शुद्ध करने और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करते हैं। भजन गाने या सुनने का कार्य, विशेष रूप से जय माता दी के साथ गाया जाने वाला भजन, वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। पारस परिवार की सभाओं में, ये भजन एक शक्तिशाली सामूहिक आध्यात्मिक अनुभव बनाते हैं, जो हिंदू भाइयों की एकता और विश्वास को मजबूत करते हैं।
पारस परिवार के साथ सनातन धर्म का जश्न मनाना
सनातन धर्म को संरक्षित करने और मनाने के लिए पारस परिवार की प्रतिबद्धता इसकी विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों में स्पष्ट है। भव्य नवरात्रि कार्यक्रमों के आयोजन स�� लेकर नियमित भजन सत्रों की मेजबानी तक, पारस परिवार हिंदू धर्म की परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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sanjay1997 · 2 months ago
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[22/09, 8:42 am] Naveen Dass: सारनाम मंत्र का जाप करने से मन की अशांति दूर होती है। क्या यह आपके अनुभव में भी सच है?
#रामचरितमानसअनुसारमोक्षकैसेहो
जानने के लिए Factful Debates Youtube Channel पर देखिए वीडियो असली रामायण सार।
[22/09, 8:42 am] Naveen Dass: वासुदेव का संदेश: प्रेम और करुणा से भरा जीवन मोक्ष की ओर ले जाता है। क्या आप इस पर विश्वास करते हैं?
#रामचरितमानसअनुसारमोक्षकैसेहो
जानने के लिए Factful Debates Youtube Channel पर देखिए वीडियो असली रामायण सार।
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jyotis-things · 3 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart78 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart79
> गवाह नं. 5:- संत नानक देव जी को सुल्तानपुर शहर के पास बह रही बेई नदी पर मिले जहाँ गुरुद्वारा "सच्चखण्ड साहेब" यादगार रूप में बना है :-
" श्री नानक देव जी का संक्षिप्त यथार्थ परिचय"
आदरणीय श्री नानक जी प्रभु कबीर (धाणक) जुलाहा के साक्षी :- श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत् 1526 (सन् 1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दू परिवार में श्री कालूराम मेहत्ता (खत्री) के घर माता श्रीमती तृप्ता देवी की पवित्र कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। इस स्थान को अब "ननकाना साहब" कहते हैं। इन्होंने फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा पढ़ी हुई थी। श्रीमद् भगवत गीता जी को श्री बृजलाल पांडे से पढ़ा करते थे। श्री नानक देव जी के श्री चन्द तथा लखमी चन्द दो लड़के थे।
श्री नानक जी चौदह वर्ष की आयु में अपनी बहन नानकी की ससुराल शहर सुल्तानपुर लोधी में चले गए थे। अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ मोदी खाने की नौकरी किया करते थे। प्रभु में असीम प्रेम था क्योंकि यह पुण्यात्मा युगों-युगों से पवित्र भक्ति ब्रह्म भगवान (काल) की करते हुए आ रहे थे। सत्ययुग में यही नानक जी राजा अम्ब्रीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को ईष्ट मानक�� किया करते थे। दुर्वासा
जैसे महान तपस्वी भी इनके दरबार में हार मानकर क्षमा याचना करके गए थे। त्रेता युग में श्री नानक जी ही राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता कहलाए। एक सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे जो अपनी
सिद्धि से आकाश में उड़ जाते थे। परन्तु गुरु से उपदेश नहीं ले रखा था।
जब सुखदेव विष्णुलोक के स्वर्ग में गए तो गुरु न होने के कारण वापिस आना पड़ा। विष्णु जी के आदेश से राजा जनक को गुरु बनाया तब स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। फिर कलयुग में यही राजा जनक की आत्मा एक हिन्दू परिवार में श्री कालुराम महत्ता (खत्री) के घर उत्पन्न हुए तथा श्री नानक नाम रखा गया।
"श्री नानक देव जी तथा परमेश्वर कबीर जी की ज्ञान चर्चा"
बाबा नानक देव जी प्रातःकाल प्रतिदिन सुल्तानपुर लोधी के पास बह रही बेई दरिया में स्नान करने जाया करते थे तथा घण्टों प्रभु चिन्तन में बैठे रहते थे।
एक दिन परमेश्वर कबीर जी जिन्दा फकीर के वेश में बेई दरिया पर मिले तथा नानक जी के साथ दरिया में गोता लगाया। कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए।
श्री नानक जी ने बन्दी छोड़ कबीर जी को एक जिज्ञासु जानकर भक्ति मार्ग बताना प्रारम्भ किया:-
श्री नानक जी ने कहा हे जिन्दा! गीता में लिखा है कि एक ‘ओ3म’ मंत्र का जाप करो। सतगुण श्री विष्णु जी (जो श्री कृष्ण रूप में अवतरित हुए थे) ही पूर्ण परमात्मा है। स्वर्ग प्राप्ति का एक मात्र साधारण-मार्ग है। गुरु के बिना मोक्ष नहीं, निराकार ब्रह्म की एक ‘ओम् ’मंत्र की साधना से स्वर्ग प्राप्ति होती है।
जिन्दा रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा गुरु किसे बनाऊँ? कोई पूरा गुरु मिल ही नहीं रहा जो संशय समाप्त करके मन को भक्ति में लगा सके। स्वामी रामानन्द जी मेरे गुरु हैं परन्तु उन से मेरा संशय निवारण नहीं हो पाया है (यहाँ पर कबीर परमेश्वर अपने आप को छुपा कर लीला करते हुए कह रहे हैं तथा साथ में यह उद्देश्य है कि इस प्रकार श्री नानक जी को समझाया जा सकता है)।
श्री नानक जी ने कहा मुझे गुरु बनाओ, आप का कल्याण निश्चित है। जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा कि मैं आप को गुरु धारण करता हूँ, परन्तु मेरे कुछ प्रश्न हैं, उनका आप से समाधान चाहूँगा। श्री नानक जी बोले - पूछो।
जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा हे गुरु नानक जी! आपने बताया कि तीन लोक के प्रभु (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) है। त्रिगुण माया सृष्टि, स्थिति तथा संहार करती है। श्री कृष्ण जी ही श्री विष्णु रूप में स्वयं आए थे, जो सर्वेश्वर, अविनाशी, सर्व लोकों के धारण व पोषण कर्ता हैं। यह सर्व के पूज्य ��ैं तथा सृष्टि रचनहार भी यही हैं। इनसे ऊपर कोई प्रभु नहीं है। इनके माता-पिता नहीं है, ये तो अजन्मा हैं। श्री कृष्ण ने ही गीता ज्ञान दिया है (यह ज्ञान श्री नानक जी ने श्री बृजलाल पाण्डे से सुना था, जो उन्हें गीता जी पढ़ाया करते थे)। परन्तु गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! मैं तथा तू पहले भी थे तथा यह सर्व सैनिक भी थे, हम सब आगे भी उत्पन्न होंगे। तेरे तथा मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता मैं जानता हूँ। इससे तो सिद्ध है कि गीता ज्ञान दाता भी नाशवान है, अविनाशी नहीं है। गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि जो त्रिगुण माया (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) के द्वारा मिलने वाले क्षणिक लाभ के कारण इन्हीं की पूजा करके अपना कल्याण मानते हैं, इनसे ऊपर किसी शक्ति को नहीं मानते अर्थात् जिनकी बुद्धि इन्हीं तीन प्रभुओं (त्रिगुणमयी माया) तक सीमित है वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख मुझे भी नहीं पूजते। इससे तो सिद्ध हुआ कि श्री विष्णु (सतगुण) आदि पूजा के योग्य नहीं है तथा अपनी साधना के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में कहा है कि मेरी (गति) पूजा भी (अनुत्तमाम्) अति घटिया है। इसलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 4, अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम सतलोक चला जाएगा। जहाँ जाने के पश्चात् साधक का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा के लिए छूट जाएगा। वह साधक फिर लौट कर संसार में नहीं आता अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। उस परमात्मा के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि मैं नहीं जानता। उस के विषय में पूर्ण (तत्व) ज्ञान तत्वदर्शी संतों से पूछो। जैसे वे कहें वैसे साधना करो। प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में। श्री नानक जी से परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि क्या वह तत्वदर्शी संत आपको मिला है जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि बताएगा ? श्री नानक जी ने कहा नहीं मिला। परमेश्वर कबीर जी ने कहा जो भक्ति आप कर रहे हो यह तो पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है। उस पूर्ण परमात्मा के विषय में पूर्ण ज्ञान रखने वाला मैं ही वह तत्वदर्शी संत हूँ। बनारस (काशी) में धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। गीता ज्ञान दाता प्रभु स्वयं को नाशवान कह रहा है, जब स्वर्ग तथा महास्वर्ग (ब्रह्मलोक) भी नहीं रहेगा तो साधक का क्या होगा ? जैसे आप ने बताया कि श्रीमद् भगवत गीता में लिखा है कि ओ3म मंत्र के जाप से स्वर्ग प्राप्ति हो जाती है। वहाँ स्वर्ग में साधक जन कितने दिन रह सकते हैं? श्री नानक जी ने उत्तर दिया जितना भजन तथा दान के आधार पर उनका स्वर्ग का समय निर्धारित होगा उतने दिन स्वर्ग में आनन्द से रह सकते हैं।
जिन्दा फकीर ने प्रश्न किया कि तत् पश्चात् कहाँ जाएँगे?
उत्तर (नानक जी ��ा) - फिर इस मृत लोक में आना होता है तथा कर्माधार पर अन्य योनियाँ भी भोगनी पड़ती हैं।
प्रश्न (जिन्दा रूप में कबीर साहेब का)- क्या जन्म मरण मिट सकता है? उत्तर (श्री नानक जी का) - नहीं, गीता में कहा है अर्जुन तेरे मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं और आगे भी होंगे अर्थात् जन्म-मरण बना रहेगा(गीता अध्याय 2 श्लोक 12 तथा अध्याय 4 श्लोक 5)। शुभ कर्म ज्यादा करने से स्वर्ग का समय अधिक हो जाता है।
प्रश्न {जिन्दा फकीर (कबीर जी) का} - गीता अध्याय न. 8 के श्लोक न. 16 में लिखा है कि ब्रह्मलोक से लेकर सर्वलोक नाशवान हैं। उस समय कहाँ रहोगे? जब न पृथ्वी रहेगी, न श्री विष्णु रहेगा, न विष्णुलोक, न स्वर्ग लोक तथा पूरे ब्रह्मण्ड का विनाश होगा। इसलिए गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर, फिर जैसे उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति की विधि वह संत बताए उसके अनुसार साधना कर। उसके पश्चात् उस परम पद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए, जहाँ पर जाने के पश्चात् साधक का फिर जन्म-मृत्यु कभी नहीं होता अर्थात् फिर लौट कर संसार में नहीं आते। जिस परमेश्वर से सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति हुई है। मैं (गीता ज्ञान दाता) भी उसी पूर्ण परमात्मा की शरण में हूँ (गीता अध्याय 4 श्लोक 34, अध्याय 15 श्लोक 4) इसलिए कहा है कि अर्जुन सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सतलोक स्थान अर्थात् सच्चखण्ड में चला जाएगा(गीता अध्याय 18 श्लोक 62)। उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ओम-तत्-सत् केवल यही मंत्र है(गीता अध्याय 17 श्लोक 23)।
उत्तर नानक जी का - इसके बारे में मुझे ज्ञान नहीं।
जिन्दा फकीर (कबीर साहेब) ने श्री नानक जी को बताया कि यह सर्व काल की कला है। गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 32 में स्वयं गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि मैं काल हूँ और सभी को खाने के लिए आया हूँ। वही निरंकार कहलाता है। उसी काल का ओंकार (ओम्) मंत्र है।
गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 21 में अर्जुन ने कहा है कि आप तो ऋषियों को भी खा रहे हो, देवताओं को भी खा रहे हो जो आपही का स्मरण स्तुति वेद विधि अनुसार कर रहे हैं। इस प्रकार काल वश सर्व साधक साधना करके उसी के मुख में प्रवेश करते रहते हैं। आपने इसी काल (ब्रह्म) की साधना करते करते असंख्यों युग हो गए। साठ हजार जन्म तो आपके महर्षि तथा महान भक्त रूप में हो चुके हैं। फिर भी काल के लोक में जन्म-मृत्यु के चक्र में ही रहे हो।
सर्व सृष्टि रचना सुनाई तथा श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा श्री शिव (तमगुण) की स्थिति बताई। श्री देवी महापुराण तीसरा स्कंद (पृष्ठ 123, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, मोटा टाईप) में स्वयं विष्णु जी ने कहा है कि मैं (विष्णु) तथा ब्रह्मा व शिव तो नाशवान हैं, अविनाशी नहीं हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होता है। आप (दुर्गा/अष्टांगी) हमारी माता हो। दुर्गा ने बताया कि ब्रह्म (ज्योति निरंजन) आपका पिता है। श्री शंकर जी ने स्वीकार किया कि मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर ��ी आपका पुत्र हूँ तथा ब्रह्मा भी आपका बेटा है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे नानक जी! आप इन्हें अविनाशी, अजन्मा, इनके कोई माता-पिता नहीं हैं आदि उपमा दे रहे हो। यह दोष आप का नहीं है। यह दोष दोनों धर्मों(हिन्दू तथा मुसलमान) के ज्ञानहीन गुरुओं का है जो अपने-अपने धर्म के सद्ग्रन्थों को ठीक से न समझ कर अपनी-अपनी अटकल से दंत कथा (लोकवेद) सुना कर वास्तविक भक्ति मार्ग के विपरीत शास्त्रा विधि रहित मनमाना आचरण (पूजा) का ज्ञान दे रहे हैं। दोनों ही पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रा एक पूर्ण प्रभु का(मेरा) ही ज्ञान करा रहे हैं। र्कुआन शरीफ में सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में भी मुझ कबीर का वर्णन है।
श्री नानक जी ने कहा कि यह तो आज तक किसी ने नहीं बताया। इसलिए मन स्वीकार नहीं कर रहा है। तब जिन्दा फकीर जी (कबीर साहेब जी) श्री नानक जी की अरूचि देखकर चले गए। उपस्थित व्यक्तियों ने श्री नानक जी से पूछा यह भक्त कौन था जो आप को गुरुदेव कह रहा था? नानक जी ने कहा यह काशी में रहता है, नीच जाति का जुलाहा(धाणक) कबीर था। बेतुकी बातें कर रहा था। कह रहा था कि कृष्ण जी तो काल के चक्र में है तथा मुझे भी कह रहा था कि आपकी साधना ठीक नहीं है। तब मैंने बताना शुरू किया तब हार मान कर चला गया। {इस वार्ता से सिक्खों ने श्री नानक जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी का गुरु मान लिया।}
श्री नानक जी प्रथम वार्ता पूज्य कबीर परमेश्वर के साथ करने के पश्चात् यह तो जान गए थे कि मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं है तथा गीता जी का ज्ञान भी उससे कुछ भिन्न ही है जो आज तक हमें बताया गया था। इसलिए हृदय से प्रतिदिन प्रार्थना करते थे कि वही संत एक बार फिर आए। मैं उससे कोई वाद-विवाद नहीं करूंगा, कुछ प्रश्नों का उत्तर अवश्य चाहूँगा। परमेश्वर कबीर जी तो अन्तर्यामी हैं तथा आत्मा के आधार व आत्मा के वास्तविक पिता हैं, अपनी प्यारी आत्माओं को ढूंढते रहते हैं। कुछ समय के ऊपरान्त जिन्दा फकीर रूप में कबीर जी ने उसी बेई नदी के किनारे पहुँच कर श्री नानक जी को राम-राम कहा। उस समय श्री नानक जी कपड़े उतार कर स्नान के लिए तैयार थे। जिन्दा महात्मा केवल श्री नानक जी को दिखाई दे रहे थे अन्य को नहीं। श्री नानक जी से वार्ता करने लगे। कबीर जी ने कहा कि आप मेरी बात पर विश्वास करो। एक पूर्ण परमात्मा है तथा उसका सतलोक स्थान है जहाँ की भक्ति करने से जीव सदा के लिए जन्म-मरण से छूट सकता है। उस स्थान तथा उस परमात्मा की प्राप्ति की साधना का केवल मुझे ही पता है अन्य को नहीं तथा गीता अध्याय न. 18 के श्लोक न. 62, अध्याय 15 श्लोक 4 में भी उस परमात्मा तथा स्थान के विषय में वर्णन है।
पूर्ण परमात्मा गुप्त है उसकी शरण में जाने से उसी की कृपा से तू (शाश्वतम्) अविनाशी अर्थात् सत्य (स्थानम्) लोक को प्राप्त होगा। गीता ज्ञान दाता प्रभु भी कह रहा है कि मैं भी उसी ��दि पुरुष परमेश्वर नारायण की शरण में हूँ��� श्री नानक जी ने कहा कि मैं आपकी एक परीक्षा लेना चाहता हूँ। मैं इस दरिया में छुपूँगा और आप मुझे ढूंढ़ना। यदि आप मुझे ढूंढ दोगे तो मैं आपकी बात पर विश्वास कर लूँगा। यह कह कर श्री नानक जी ने बेई नदी में डुबकी लगाई तथा मछली का रूप धारण कर लिया। जिन्दा फकीर (कबीर पूर्ण परमेश्वर) ने उस मछली को पकड़ कर जिधर से पानी आ रहा था उस ओर लगभग तीन किलो मीटर दूर ले गए तथा श्री नानक जी बना दिया।
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indrabalakhanna · 5 months ago
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Sant Rampal Ji Maharaj
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True Guru Sant Rampal Ji
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🙏पूर्ण सतगुरु से ही मोक्ष संभव है !
वर्तमान में एकमात्र संत रामपाल जी महाराज जी पूर्ण संत और सतगुरु हैं!
जो 📚शास्त्र अनुकूल सत भक्ति प्रदान करते हैं!
📕पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर की सद्भक्ति करने से हमें सभी प्रकार का लाभ प्राप्त होता है !
प्रारब्ध और संचित पाप कर्मों का नाश होता है! मोक्ष की प्राप्ति होती है!
मोक्ष का अर्थ है काल के कर्मबंधन से छूटना+जन्म मरण से छूटना + 84 लाख योनियों से छूटना और सदा के लिए अपने सतलोक घर में अविनाशी घर में अजर अमर शरीर के साथ सुख से रहना!
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📚सत भक्ति करने से हमारे सभी बुराइयां और विकार नष्ट हो जाते हैं !
+ बाधाएं नष्ट हो जाती हैं + चिंताएं नष्ट हो जाती हैं + तकलीफें नष्ट हो जाती हैं !
हमें सत भक्ति करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है! अपने पूर्ण परमेश्वर मूल मालिक से प्रेम करने की शक्ति मिलती है! ऐसी 24 सिद्धियां प्राप्त होती है + ऐसे मंत्र प्राप्त होते हैं_जिनकी ताकत से हम अपने घर सतलोक चले जाते हैं !
*🙏अवश्य सब्सक्राइब करें ! संत रामपाल जी महाराज यू ट्यूब 📺चैनल पर!*
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*संत के वर्तमान अवतार में स्वयं पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर धरती पर विराज मान हैं!*
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*🙏जगतगुरु परमेश्वर तत्वदर्शी संत सतगुरु संत रामपाल जी महाराज🙏*
🙏सच्चे समाज सुधारक हम आत्माओं के प्रेमी पुरुष परमात्मा विश्व की सभी आत्माओं के तारनहार उद्धारक (उद्धार करने वाले पुरुष) हैं! सभी विश्व की सभी आत्माओं से प्रार्थना है संत रामपाल जी महाराज के सत्संग को विशेष रूप से ध्यान से देखें प्रतिदिन देखें और निर्णय करें कि हमें अपना उद्धार करना है संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आए और नाम दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर सब भक्ति करें अपना कल्याण कारण अपने परिवार और वंश का भी उद्धार कराएं! 🙏
*🙏सतगुरु परमात्मा के चरण कमलों की तुच्छ दासी🙏*
*🙏 सत साहेब जी 🙏*
*🙏जय बंदीछोड़ जी की🙏*
काल के बंधन से छुड़ाने वाले भगवान को *बंदीछोड़* भगवान कहते हैं!
*पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब बंदीछोड़ भगवान हैं !*
*संत रामपाल जी महाराज के रूप में आए हैं! *
Sant Rampal Ji Maharaj
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pradeepdasblog · 3 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart78 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart79
> गवाह नं. 5:- संत नानक देव जी को सुल्तानपुर शहर के पास बह रही बेई नदी पर मिले जहाँ गुरुद्वारा "सच्चखण्ड साहेब" यादगार रूप में बना है :-
" श्री नानक देव जी का संक्षिप्त यथार्थ परिचय"
आदरणीय श्री नानक जी प्रभु कबीर (धाणक) जुलाहा के साक्षी :- श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत् 1526 (सन् 1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दू परिवार में श्री कालूराम मेहत्ता (खत्री) के घर माता श्रीमती तृप्ता देवी की पवित्र कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। इस स्थान को अब "ननकाना साहब" कहते हैं। इन्होंने फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा पढ़ी हुई थी। श्रीमद् भगवत गीता जी को श्री बृजलाल पांडे से पढ़ा करते थे। श्री नानक देव जी के श्री चन्द तथा लखमी चन्द दो लड़के थे।
श्री नानक जी चौदह वर्ष की आयु में अपनी बहन नानकी की ससुराल शहर सुल्तानपुर लोधी में चले गए थे। अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ मोदी खाने की नौकरी किया करते थे। प्रभु में असीम प्रेम था क्योंकि यह पुण्यात्मा युगों-युगों से पवित्र भक्ति ब्रह्म भगवान (काल) की करते हुए आ रहे थे। सत्ययुग में यही नानक जी राजा अम्ब्रीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को ईष्ट मानकर किया करते थे। दुर्वासा
जैसे महान तपस्वी भी इनके दरबार में हार मानकर क्षमा याचना करके गए थे। त्रेता युग में श्री नानक जी ही राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता कहलाए। एक सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे जो अपनी
सिद्धि से आकाश में उड़ जाते थे। परन्तु गुरु से उपदेश नहीं ले रखा था।
जब सुखदेव विष्णुलोक के स्वर्ग में गए तो गुरु न होने के कारण वापिस आना पड़ा। विष्णु जी के आदेश से राजा जनक को गुरु बनाया तब स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। फिर कलयुग में यही राजा जनक की आत्मा एक हिन्दू परिवार में श्री कालुराम महत्ता (खत्री) के घर उत्पन्न हुए तथा श्री नानक नाम रखा गया।
"श्री नानक देव जी तथा परमेश्वर कबीर जी की ज्ञान चर्चा"
बाबा नानक देव जी प्रातःकाल प्रतिदिन सुल्तानपुर लोधी के पास बह रही बेई दरिया में स्नान करने जाया करते थे तथा घण्टों प्रभु चिन्तन में बैठे रहते थे।
एक दिन परमेश्वर कबीर जी जिन्दा फकीर के वेश में बेई दरिया पर मिले तथा नानक जी के साथ दरिया में गोता लगाया। कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए।
श्री नानक जी ने बन्दी छोड़ कबीर जी को एक जिज्ञासु जानकर भक्ति मार्ग बताना प्रारम्भ किया:-
श्री नानक जी ने कहा हे जिन्दा! गीता में लिखा है कि एक ‘ओ3म’ मंत्र का जाप करो। सतगुण श्री विष्णु जी (जो श्री कृष्ण रूप में अवतरित हुए थे) ही पूर्ण परमात्मा है। स्वर्ग प्राप्ति का एक मात्र साधारण-मार्ग है। गुरु के बिना मोक्ष नहीं, निराकार ब्रह्म की एक ‘ओम् ’मंत्र की साधना से स्वर्ग प्राप्ति होती है।
जिन्दा रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा गुरु किसे बनाऊँ? कोई पूरा गुरु मिल ही नहीं रहा जो संशय समाप्त करके मन को भक्ति में लगा सके। स्वामी रामानन्द जी मेरे गुरु हैं परन्तु उन से मेरा संशय निवारण नहीं हो पाया है (यहाँ पर कबीर परमेश्वर अपने आप को छुपा कर लीला करते हुए कह रहे हैं तथा साथ में यह उद्देश्य है कि इस प्रकार श्री नानक जी को समझाया जा सकता है)।
श्री नानक जी ने कहा मुझे गुरु बनाओ, आप का कल्याण निश्चित है। जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा कि मैं आप को गुरु धारण करता हूँ, परन्तु मेरे कुछ प्रश्न हैं, उनका आप से समाधान चाहूँगा। श्री नानक जी बोले - पूछो।
जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा हे गुरु नानक जी! आपने बताया कि तीन लोक के प्रभु (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) है। त्रिगुण माया सृष्टि, स्थिति तथा संहार करती है। श्री कृष्ण जी ही श्री विष्णु रूप में स्वयं आए थे, जो सर्वेश्वर, अविनाशी, सर्व लोकों के धारण व पोषण कर्ता हैं। यह सर्व के पूज्य हैं तथा सृष्टि रचनहार भी यही हैं। इनसे ऊपर कोई प्रभु नहीं है। इनके माता-पिता नहीं है, ये तो अजन्मा हैं। श्री कृष्ण ने ही गीता ज्ञान दिया है (यह ज्ञान श्री नानक जी ने श्री बृजलाल पाण्डे से सुना था, जो उन्हें गीता जी पढ़ाया करते थे)। परन्तु गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! मैं तथा तू पहले भी थे तथा यह सर्व सैनिक भी थे, हम सब आगे भी उत्पन्न होंगे। तेरे तथा मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता मैं जानता हूँ। इससे तो सिद्ध है कि गीता ज्ञान दाता भी नाशवान है, अविनाशी नहीं है। गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि जो त्रिगुण माया (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) के द्वारा मिलने वाले क्षणिक लाभ के कारण इन्हीं की पूजा करके अपना कल्याण मानते हैं, इनसे ऊपर किसी शक्ति को नहीं मानते अर्थात् जिनकी बुद्धि इन्हीं तीन प्रभुओं (त्रिगुणमयी माया) तक सीमित है वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख मुझे भी नहीं पूजते। इससे तो सिद्ध हुआ कि श्री विष्णु (सतगुण) आदि पूजा के योग्य नहीं है तथा अपनी साधना के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में कहा है कि मेरी (गति) पूजा भी (अनुत्तमाम्) अति घटिया है। इसलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 4, अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम सतलोक चला जाएगा। जहाँ जाने के पश्चात् साधक का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा के लिए छूट जाएगा। वह साधक फिर लौट कर संसार में नहीं आता अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। उस परमात्मा के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि मैं नहीं जानता। उस के विषय में पूर्ण (तत्व) ज्ञान तत्वदर्शी संतों से पूछो। जैसे वे कहें वैसे साधना करो। प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में। श्री नानक जी से परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि क्या वह तत्वदर्शी संत आपको मिला है जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि बताएगा ? श्री नानक जी ने कहा नहीं मिला। परमेश्वर कबीर जी ने कहा जो भक्ति आप कर रहे हो यह तो पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है। उस पूर्ण परमात्मा के विषय में पूर्ण ज्ञान रखने वाला मैं ही वह तत्वदर्शी संत हूँ। बनारस (काशी) में धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। गीता ज्ञान दाता प्रभु स्वयं को नाशवान कह रहा है, जब स्वर्ग तथा महास्वर्ग (ब्रह्मलोक) भी नहीं रहेगा तो साधक का क्या होगा ? जैसे आप ने बताया कि श्रीमद् भगवत गीता में लिखा है कि ओ3म मंत्र के जाप से स्वर्ग प्राप्ति हो जाती है। वहाँ स्वर्ग में साधक जन कितने दिन रह सकते हैं? श्री नानक जी ने उत्तर दिया जितना भजन तथा दान के आधार पर उनका स्वर्ग का समय निर्धारित होगा उतने दिन स्वर्ग में आनन्द से रह सकते हैं।
जिन्दा फकीर ने प्रश्न किया कि तत् पश्चात् कहाँ जाएँगे?
उत्तर (नानक जी का) - फिर इस मृत लोक में आना होता है तथा कर्माधार पर अन्य योनियाँ भी भोगनी पड़ती हैं।
प्रश्न (जिन्दा रूप में कबीर साहेब का)- क्या जन्म मरण मिट सकता है? उत्तर (श्री नानक जी का) - नहीं, गीता में कहा है अर्जुन तेरे मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं और आगे भी होंगे अर्थात् जन्म-मरण बना रहेगा(गीता अध्याय 2 श्लोक 12 तथा अध्याय 4 श्लोक 5)। शुभ कर्म ज्यादा करने से स्वर्ग का समय अधिक हो जाता है।
प्रश्न {जिन्दा फकीर (कबीर जी) का} - गीता अध्याय न. 8 के श्लोक न. 16 में लिखा है कि ब्रह्मलोक से लेकर सर्वलोक नाशवान हैं। उस समय कहाँ रहोगे? जब न पृथ्वी रहेगी, न श्री विष्णु रहेगा, न विष्णुलोक, न स्वर्ग लोक तथा पूरे ब्रह्मण्ड का विनाश होगा। इसलिए गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर, फिर जैसे उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति की विधि वह संत बताए उसके अनुसार साधना कर। उसके पश्चात् उस परम पद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए, जहाँ पर जाने के पश्चात् साधक का फिर जन्म-मृत्यु कभी नहीं होता अर्थात् फिर लौट कर संसार में नहीं आते। जिस परमेश्वर से सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति हुई है। मैं (गीता ज्ञान दाता) भी उसी पूर्ण परमात्मा की शरण में हूँ (गीता अध्याय 4 श्लोक 34, अध्याय 15 श्लोक 4) इसलिए कहा है कि अर्जुन सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सतलोक स्थान अर्थात् सच्चखण्ड में चला जाएगा(गीता अध्याय 18 श्लोक 62)। उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ओम-तत्-सत् केवल यही मंत्र है(गीता अध्याय 17 श्लोक 23)।
उत्तर नानक जी का - इसके बारे में मुझे ज्ञान नहीं।
जिन्दा फकीर (कबीर साहेब) ने श्री नानक जी को बताया कि यह सर्व काल की कला है। गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 32 में स्वयं गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि मैं काल हूँ और सभी को खाने के लिए आया हूँ। वही निरंकार कहलाता है। उसी काल का ओंकार (ओम्) मंत्र है।
गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 21 में अर्जुन ने कहा है कि आप तो ऋषियों को भी खा रहे हो, देवताओं को भी खा रहे हो जो आपही का स्मरण स्तुति वेद विधि अनुसार कर रहे हैं। इस प्रकार काल वश सर्व साधक साधना करके उसी के मुख में प्रवेश करते रहते हैं। आपने इसी काल (ब्रह्म) की साधना करते करते असंख्यों युग हो गए। साठ हजार जन्म तो आपके महर्षि तथा महान भक्त रूप में हो चुके हैं। फिर भी काल के लोक में जन्म-मृत्यु के चक्र में ही रहे हो।
सर्व सृष्टि रचना सुनाई तथा श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा श्री शिव (तमगुण) की स्थिति बताई। श्री देवी महापुराण तीसरा स्कंद (पृष्ठ 123, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, मोटा टाईप) में स्वयं विष्णु जी ने कहा है कि मैं (विष्णु) तथा ब्रह्मा व शिव तो नाशवान हैं, अविनाशी नहीं हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होता है। आप (दुर्गा/अष्टांगी) हमारी माता हो। दुर्गा ने बताया कि ब्रह्म (ज्योति निरंजन) आपका पिता है। श्री शंकर जी ने स्वीकार किया कि मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर भी आपका पुत्र हूँ तथा ब्रह्मा भी आपका बेटा है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे नानक जी! आप इन्हें अविनाशी, अजन्मा, इनके कोई माता-पिता नहीं हैं आदि उपमा दे रहे हो। यह दोष आप का नहीं है। यह दोष दोनों धर्मों(हिन्दू तथा मुसलमान) के ज्ञानहीन गुरुओं का है जो अपने-अपने धर्म के सद्ग्रन्थों को ठीक से न समझ कर अपनी-अपनी अटकल से दंत कथा (लोकवेद) सुना कर वास्तविक भक्ति मार्ग के विपरीत शास्त्रा विधि रहित मनमाना आचरण (पूजा) का ज्ञान दे रहे हैं। दोनों ही पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रा एक पूर्ण प्रभु का(मेरा) ही ज्ञान करा रहे हैं। र्कुआन शरीफ में सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में भी मुझ कबीर का वर्णन है।
श्री नानक जी ने कहा कि यह तो आज तक किसी ने नहीं बताया। इसलिए मन स्वीकार नहीं कर रहा है। तब जिन्दा फकीर जी (कबीर साहेब जी) श्री नानक जी की अरूचि देखकर चले गए। उपस्थित व्यक्तियों ने श्री नानक जी से पूछा यह भक्त कौन था जो आप को गुरुदेव कह रहा था? नानक जी ने कहा यह काशी में रहता है, नीच जाति का जुलाहा(धाणक) कबीर था। बेतुकी बातें कर रहा था। कह रहा था कि कृष्ण जी तो काल के चक्र में है तथा मुझे भी कह रहा था कि आपकी साधना ठीक नहीं है। तब मैंने बताना शुरू किया तब हार मान कर चला गया। {इस वार्ता से सिक्खों ने श्री नानक जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी का गुरु मान लिया।}
श्री नानक जी प्रथम वार्ता पूज्य कबीर परमेश्वर के ���ाथ करने के पश्चात् यह तो जान गए थे कि मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं है तथा गीता जी का ज्ञान भी उससे कुछ भिन्न ही है जो आज तक हमें बताया गया था। इसलिए हृदय से प्रतिदिन प्रार्थना करते थे कि वही संत एक बार फिर आए। मैं उससे कोई वाद-विवाद नहीं करूंगा, कुछ प्रश्नों का उत्तर अवश्य चाहूँगा। परमेश्वर कबीर जी तो अन्तर्यामी हैं तथा आत्मा के आधार व आत्मा के वास्तविक पिता हैं, अपनी प्यारी आत्माओं को ढूंढते रहते हैं। कुछ समय के ऊपरान्त जिन्दा फकीर रूप में कबीर जी ने उसी बेई नदी के किनारे पहुँच कर श्री नानक जी को राम-राम कहा। उस समय श्री नानक जी कपड़े उतार कर स्नान के लिए तैयार थे। जिन्दा महात्मा केवल श्री नानक जी को दिखाई दे रहे थे अन्य को नहीं। श्री नानक जी से वार्ता करने लगे। कबीर जी ने कहा कि आप मेरी बात पर विश्वास करो। एक पूर्ण परमात्मा है तथा उसका सतलोक स्थान है जहाँ की भक्ति करने से जीव सदा के लिए जन्म-मरण से छूट सकता है। उस स्थान तथा उस परमात्मा की प्राप्ति की साधना का केवल मुझे ही पता है अन्य को नहीं तथा गीता अध्याय न. 18 के श्लोक न. 62, अध्याय 15 श्लोक 4 में भी उस परमात्मा तथा स्थान के विषय में वर्णन है।
पूर्ण परमात्मा गुप्त है उसकी शरण में जाने से उसी की कृपा से तू (शाश्वतम्) अविनाशी अर्थात् सत्य (स्थानम्) लोक को प्राप्त होगा। गीता ज्ञान दाता प्रभु भी कह रहा है कि मैं भी उसी आदि पुरुष परमेश्वर नारायण की शरण में हूँ। श्री नानक जी ने कहा कि मैं आपकी एक परीक्षा लेना चाहता हूँ। मैं इस दरिया में छुपूँगा और आप मुझे ढूंढ़ना। यदि आप मुझे ढूंढ दोगे तो मैं आपकी बात पर विश्वास कर लूँगा। यह कह कर श्री नानक जी ने बेई नदी में डुबकी लगाई तथा मछली का रूप धारण कर लिया। जिन्दा फकीर (कबीर पूर्ण परमेश्वर) ने उस मछली को पकड़ कर जिधर से पानी आ रहा था उस ओर लगभग तीन किलो मीटर दूर ले गए तथा श्री नानक जी बना दिया।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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helputrust · 2 years ago
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माननीय प्रधानमंत्री परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी को आपका सबका साथ, स्वर्गीय अनवर जलालपुरी को सच्ची श्रद्धांजलि – हर्ष वर्धन अग्रवाल I
लखनऊ, 25.03.2023 | परम आदरणीय माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी, माननीय प्रधानमंत्री जी के "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास", मंत्र की प्रेरणा से, हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक पद्मश्री स्व. अनवर जलालपुरी जी को समर्पित, फखरूद्दीन अली अहमद मेमो��ि��ल कमेटी तथा हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम "मुशायरा" का आयोजन ऑडिटोरियम, जयपुरिया इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, विनीत खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया |
मुशायरा का शुभारंभ राष्ट्रगान तथा श्री तुरज जैदी, अध्यक्ष, फखरूद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी, श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा डॉ रूपल अग्रवाल, न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने दीप प्रज्वलन करके किया l
फखरूद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी के अध्यक्ष श्री तुरज जैदी जी तथा आमंत्रित शायरों को हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी, श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल तथा न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने प्रतीक चिन्ह व कॉफ़ी टेबल बुक "अनवर जलालपुरी : मोहब्बत के सफ़ीर" देकर सम्मानित किया I मुशायरे में शायरों ने अपनी शायरी से सभागार में उपस्थित सभी श्रोतागणों को मंत्र मुग्ध कर दिया I
इस मौके पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि, "पदम श्री स्वर्गीय अनवर जलालपुरी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक थे वह उर्दू अदब के बड़े नामों में से एक थे I अनवर जलालपुरी उर्दू शायरी के बगीचे का एक ऐसा गुलाब थे जिसकी ख़ुशबू जलालपुर की सरहदों को पार कर पूरी दुनिया में फैली और अपनी शायरी की शाब्दिक जादूगरी से लोगों के दिलों को महकाया I आज का यह कार्यक्रम हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा अनवर जलालपुरी जी को समर्पित है |
हमारा देश भारत विभिन्न धर्मों का संगम है, यहां पर एक दूसरे से धार्मिक और विचारात्मक विभिन्नता होने के बावजूद भी हम लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिए मोहब्बतों के चिराग रौशन हैं I यह हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति का नतीजा है तथा अनवर जलालपुरी जी हिन्दुस्तान की सरज़मीं पर पनपी गंगा-जमुनी तहज़ीब के उज्जवल प्रतीक थे । उन्होनें पवित्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद गीता की ज्ञानगंगा को बहुत ही सरल तरीके से उर्दू भाषा में उर्दू जानने वाले लोगों के समक्ष शायरी के रूप में पेश किया । इस काम में उन्होनें अपनी जिंदगी के 38 साल लगाए । उनका कहना था कि भगवद गीता एक इल्मी किताब है । इसे हर इंसान को पढ़ना और समझना चाहिए। यह जीवन का दर्शन शास्त्र है। इसमें दी गयी तालीम से इंसान इस दुनिया में अपनी ज़िंदगी को आसान बना सकता है । इससे फ़ायदा ले सकता है । अनवर जलालपुरी की हमेशा यही कोशिश रहती थी कि हमारी इस तहज़ीब को किसी की नज़र न लगे और आपसी भाईचारे का ज़ज़्बा परवान चढ़े I
आज के इस कार्यक्रम के माध्यम से हम सभी को मिलकर माननीय प्रधानमंत्री परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के मूल मंत्र सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास, को आत्म��ात करते हुए भारत देश को विश्व का सबसे संपन्न देश बनाने का संकल्प लेना चाहिए जिसके लिए सभी देशवासियों को आपसी प्रेम और सौहार्द को बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी देशवासियों के साथ से ही किसी संपन्न देश का निर्माण किया जा सकता है इसलिए देश हित तथा जनहित में अपना सहयोग देते हुए देश को विश्व का सबसे संपन्न राष्ट्र बनाने की माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम में अपना योगदान अवश्य दें I माननीय प्रधानमंत्री परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी को आपका सबका साथ, स्वर्गीय अनवर जलालपुरी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी I
श्री तुरज़ जैदी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि, आज की शाम शायरी और कविता की जो महफ़िल सजी हुई है इस महफिल के रूह ए रवा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक व प्रबंध न्यासी भाई हर्ष वर्धन अग्रवाल जी हैं जो पिछले दस वर्षों से हिन्दी उर्दू साहित्य की सेवा के साथ साथ समाज के सभी वर्गों के विकास और सहायता में अपने ट्रस्ट की तरफ से निरंतर अपना योगदान दे रहे हैं I हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के सामजिक उत्थान के कार्यों की सराहना करते हुए गीतों के कवि पद्मभूषण गोपाल दास नीरज, पद्मश्री अनवर जलालपुरी तथा श्री अनूप जलोटा जी ने ट्रस्ट का संरक्षक बनना स्वीकार किया I हर्ष वर्धन अग्रवाल जी ने इस मुशायरे में शिरकत के लिए मुझसे बहुत पहले चर्चा की थी तब मैंने कहा कि, मैं आप की हर सम्भव मदद अपनी फखरूद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी की तरफ से करने के लिए तैयार हूँ I इस मुशायरे की सबसे अहम बात ये है कि ये मुशायरा उर्दू हिन्दी अदब की उस अज़ीम शख्सियत के नाम मनसूब है जिसे साहित्य की दुनिया में लोग अनवर जलालपुरी के नाम से जानते हैं I अनवर जलालपुरी साहब ने अपने पूरे पचास वर्षों के साहित्यिक जीवन में समाज के सभी वर्गों को भाईचारा, प्रेम, मोहब्बत के साथ रहने और देश की एकता को जोड़ कर रखने का पैग़ाम दिया I आज इस कार्यक्रम के जरिये अनवर साहब को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं व उर्दू साहित्य को फलक तक पहुँचाने व उर्दू शेर ओ शायरी में उनके द्वारा दिए गए योगदान को सादर नमन करते हैं I
मुशायरे में आमंत्रित शायर, श्री ख़ुशबीर सिंह शाद (जालंधर से), श्री अज़्म शाकरी (एटा से), श्री शारिक कैफी (बरेली से), श्री पवन कुमार (लखनऊ से), श्री मनीष शुक्ला (लखनऊ से), प्रो. (डॉ.) अब्बास रज़ा 'नय्यर जलालपुरी' (लखनऊ से), डॉ. तारिक़ क़मर (लखनऊ से) तथा डॉ. भावना श्रीवास्तव (वाराणसी से), जैसे मक़बूल शोरा, शायरात और कवियों ने शिरकत की l कार्यक्रम की सदारत श्री खुशबीर सिंह शाद ने की तथा निज़ामत प्रो. (डॉ.) अब्बास रज़ा (नय्यर जलालपुरी) ने की I
कार्यक्रम का संचालन श्री नवल शुक्ला ने किया I
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brijkerasiya · 3 months ago
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श्री बृहस्पति देव चालीसा हिंदी अर्थ सहित (Shree Brihaspati Dev Chalisa with Hindi meaning)
श्री बृहस्पति देव चालीसा विडियो श्री बृहस्पति देव चालीसा ॥ दोहा ॥ प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान। श्री गणेश शारद सहित, बसों हृदय में आन॥ अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान। दोषों से मैं भरा हुआ हूँ, तुम हो कृपा निधान॥ ॥ चालीसा ॥ जय नारायण जय निखिलेशवर, विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर। यंत्र-मंत्र विज्ञान के ज्ञाता, भारत भू के प्रेम प्रेनता। जब जब हुई धरम की हानि, सिद्धाश्रम…
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